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पूर्व मिस वर्ल्ड उरुग्वे प्रतियोगी शेरिका डी अरमास का 26 वर्ष की उम्र में निधन हो गया
उरुग्वे की पूर्व मिस वर्ल्ड प्रतियोगी शेरिका डी अरमास का 13 अक्टूबर को 26 साल की उम्र में निधन हो गया। न्यूयॉर्क पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार वह सर्वाइकल कैंसर से जूझ रही थीं। सुश्री डी अरमास का कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी उपचार हुआ था। उन्होंने अपने देश का प्रतिनिधित्व किया था विश्व सुंदरी 2015 में. उनके निधन की खबर की पुष्टि करते हुए, अरमास के भाई मेक डी अरमास ने सोशल मीडिया पर लिखा, “”ऊंची…
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#सत_भक्ति_संदेश
ज्ञान खोल के धर दिया पूरे विश्व में तूफान आने वाला है कुछ दिनों में देख लेना इस तत्वज्ञान का और दास ने ऐसा रंग रख्या है सारी पृथ्वी एक तरफ और दास का अनुयाई एक तरफ और टस से मस नहीं हो सकते, दास का पूरा काम हो चुका है।
- संत रामपाल जी महाराज 🙏
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#सत_भक्ति_संदेश
ज्ञान खोल के धर दिया पूरे विश्व में तूफान आने वाला है कुछ दिनों में देख लेना इस तत्वज्ञान का और दास ने ऐसा रंग रख्या है सारी पृथ्वी एक तरफ और दास का अनुयाई एक तरफ और टस से मस नहीं हो सकते, दास का पूरा काम हो चुका है।
- संत रामपाल जी महाराज 🙏
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पूर्ण गुरु की पहचान
संत रामपाल जी महाराज जी ही पूर्ण गुरु हैं। ऋग्वेद मण्डल 8 सूक्त 1 मन्त्र 29
में कहा है कि तीन समय परमात्मा की स्तुति (प्रार्थना) करनी चाहिए। सुबह परमात्मा का गुणगान, दिन के मध्य में सर्व देवों की स्तुति तथा शाम को आरती (स्तुति) करनी चाहिए और वेदों अनुसार स्तुति प्रार्थना पूर्णगुरु ही बताता है। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज पूर्ण गुरु हैं जो अपने अनुयायियों को तीन समय की स्तुति प्रार्थना बताते हैं जो वेदों अनुसार उचित है।
★ ऋग्वेद मण्डल 8 सूक्त 1 मन्त्र 29 में कहा है कि तीन समय परमात्मा की स्तुति (प्रार्थना) करनी चाहिए। सुबह परमात्मा का गुणगान, दिन के मध्य में सर्व देवों की स्तुति करनी चाहिए तथा शाम को आरती (स्तुति) करनी चाहिए।
मम॑ त्वा सूर् उर्दिते॒ मम॑ म॒ध्यन्दिने दिवः । मर्स प्रवित्वे अपि शुर्वरे व॑स॒वा स्तोमा॑सो अवृत्सत ॥२९॥
पदार्थः (बत्ती) हे व्यापक प्रभो! (उदिते, सूरे) सूर्योदय के समय (मम स्तोमासः) मेरी स्तुतियां (दिवः) दिन के (मध्यन्दिने) मध्य में ( मस) मेरी स्तुतियां (शर्वरे, प्रपित्वे, अषि) रात्रि होने पर भी (मम) मेरी स्तुतियाँ (त्वा) आप (अवृत्सत) आर्वातत पुनः पुनः स्मरण करें ॥२६॥
★ यह फोटो कापी ऋग्वेद मण्डल 8 सुक्त 1 मंत्र 29 की है। जिसका हिन्दी अनुवाद महर्षि दयानन्द तथा उस के भक्तों द्वारा किया गया है। भले ही कुछ गलत किया है फिर भी स्पष्ट है कि परमात्मा की प्रार्थना (स्तुति) दिन में तीन बार करने का प्रावधान वेद में स्पष्ट है।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart84 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart85
"हिन्दू साहेबान ! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण" Part -85
" समुन्द्र पर रामचन्द्र के पुल के लिए पत्थर तैराना"
एक समय की बात है कि सीता जी को रावण उठा कर ले गया। भगवान राम को पता भी नहीं कि सीता जी को कौन उठा ले गया? श्री रामचन्द्र जी इधर उधर खोज करते हैं। हनुमान जी ने खोज करके बताया कि सीता माता लंकापति रावण की कैद में है। पता लगने के बाद भगवान राम ने रावण के पास शान्ति दूत भेजे तथा प्रार्थना की कि सीता लौटा दे। परन्तु रावण नहीं माना। युद्ध की तैयारी हुई। तब समस्या यह आई कि समुद्र से सेना कैसे पार करें?
भगवान श्री रामचन्द्र ने तीन दिन तक घुटनों पानी में खड़ा होकर हाथ जोड़कर समुद्र से प्रार्थना की कि रास्ता दे। परन्तु समुद्र टस से मस न हुआ। जब समुद्र नहीं माना तब श्री राम ने उसे अग्नि बाण से जलाना चाहा। भयभीत समुद्र एक ब्राह्मण का रूप बनाकर सामने आया और कहा कि भगवन् सबकी अपनी-अपनी मर्यादाएँ हैं। मुझे जलाओ मत। मेरे अंदर न जाने कितने जीव-जंतु वसे हैं। अगर आप मुझे जला भी दोगे तो भी आप मुझे पार नहीं कर सकते, क्योंकि यहाँ पर बहुत गहरा गड्डा बन जायेगा, जिसको आप कभी भी पार नहीं कर सकते।
समुद्र ने कहा भगवन ऐसा काम करो कि सर्प भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। मेरी मर्यादा भी रह जाए और आपका पुल भी बन जाए। तब भगवान श्री राम ने समुद्र से पूछा कि वह क्या है? ब्राह्मण रूप में खड़े समुद्र ने कहा कि आपकी सेना में नल और नील नाम के दो सैनिक हैं। उनके पास उनके गुरुदेव से प्राप्त एक ऐसी शक्ति है कि उनके हाथ से पत्थर भी तैर जाते हैं। हर वस्तु चाहे वह लोहे की हो, तैर जाती है। श्री रामचन्द्र ने नल तथा नील को बुलाया और उनसे पूछा कि क्या आपके पास कोई ऐसी शक्ति है? तो नल तथा नील ने कहा कि हाँ जी, हमारे हाथ से पत्थर भी नहीं डूबेंगे। तो श्रीराम ने कहा कि परीक्षण करवाओ।
उन नादानों (नल-नील) ने सोचा कि आज सब के स���मने तुम्हारी बहुत महिमा होगी। उस दिन उन्होंने अपने गुरुदेव मुनिन्द्र जी (कबीर परमेश्वर जी) को यह सोचकर याद नहीं किया कि अगर हम उनको याद करेंगे तो कहीं श्रीराम ये न सोच लें कि इनके पास शक्ति नहीं है, यह तो कहीं और से मांगते हैं। उन्होंने पत्थर उठाकर समुद्र के जल में डाला तो वह पत्थर डूब गया। नल तथा नील ने बहुत कोशिश की, परन्तु उनसे पत्थर नहीं तैरे। तब भगवान राम ने समुद्र की ओर देखा मानो कहना चाह रहे हों कि आप तो झूठ बोल रहे थे। इनमें तो कोई शक्ति नहीं है। समुद्र ने कहा कि नल-नील आज तुमने अपने गुरुदेव को याद नहीं किया। कृप्या अपने गुरुदेव को याद करो। वे दोनों समझ गए कि आज तो हमने गलती कर दी। उन्होंने सतगुरु मुनिन्द्र साहेब जी को याद किया। सतगुरु मुनिन्द्र (कबीर परमेश्वर) वहाँ पर पहुँच गए। भगवान रामचन्द्र जी ने कहा कि हे ऋषिवर ! मेरा दुर्भाग्य है कि आपके सेवकों से पत्थर नहीं तैर रहे हैं। मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि अब इनके हाथ से कभी तैरेंगे भी नहीं, क्योंकि इनको अभिमान हो गया है।
सतगुरु की वाणी प्रमाण करती है किः-
गरीब, जैसे माता गर्भ को, राखे जतन बनाय।
ठेस लगे तो क्षीण होवे, तेरी ऐसे भक्ति जाय।
उस दिन के बाद नल तथा नील की वह शक्ति समाप्त हो गई। श्री रामचन्द्र जी ने परमेश्वर मुनिन्द्र साहेब जी से कहा कि हे ऋषिवर! मुझ पर बहुत आपत्ति पड़ी हुई है। दया करो किसी प्रकार सेना परले पार हो जाए। जब आप अपने सेवकों को शक्ति दे सकते हो तो प्रभु ! मुझ पर भी कुछ रजा करो। मुनिन्द्र साहेब जी ने कहा कि यह जो सामने वाला पहाड़ है, मैंने उसके चारों तरफ एक रेखा खींच दी है। इसके बीच-बीच के पत्थर उठा लाओ, वे नहीं डूबेंगे। श्री राम ने परीक्षण के लिए पत्थर मंगवाया। उसको पानी पर रखा तो वह तैरने लग गया। नल तथा नील कारीगर (शिल्पकार) भी थे। हनुमान जी प्रतिदिन भगवान याद किया करते थे। उसने अपनी दैनिक क्रिया भी करते रहने के लिए राम राम भी लिखता रहा और पहाड़ के पहाड़ उठा कर ले आता था। नल नील उनको जोड़-तोड़ कर पुल में लगा देते थे। इस प्रकार पुल बना था। धर्मदास जी कहते हैं :-
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।
291
धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।
कोई कहता था कि हनुमान जी ने पत्थर पर राम का नाम लिख दिया था इसलिए पत्थर तैर गये। कोई कहता था कि नल-नील ने पुल बनाया था। कोई कहता था कि श्रीराम ने पुल बनाया था। परन्तु यह सतकथा ऐसे है, जो ऊपर लिखी है।
(सत कबीर की साखी पृष्ठ 179 से 182 तक)
-: पीव पिछान को अंग :-
कबीर- तीन देव को सब कोई ध्यावै, ��ौथे देव का मरम न पावै । चौथा छाड़ पंचम को ध्यावै, कहै कबीर सो हम पर आवै।।3।।
कबीर- ओंकार निश्चय भया, यह कर्ता मत जान । साचा शब्द कबीर का, परदे मांही पहचान।।5।।
कबीर- राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार । जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार । ।17 ।।
कबीर चार भुजा के भजन में, भूलि परे सब संत । कबिरा सुमिरो तासु को, जाके भुजा अनंत । ।23 ।।
कबीर - समुद्र पाट लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार। |26 ।। गिरवर धारयो कृष्ण जी, द्रोणागिरि हनुमंत । कबीर -
शेष नाग सब सृष्टि सहारी, इनमें को भगवंत । | 27 ||
कबीर - काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम।
चिन्हों रे नर प्राणियां, गरुड बड़ो की राम ।।28 ।।
कबीर - कह कबीर चित चेतहूं, शब्द करौ निरूवार। श्रीरामहि कर्ता कहत हैं, भूलि परयो संसार।।29 ||
कबीर - जिन राम कृष्ण व निरंजन कियो, सो तो करता न्यार। अंधा ज्ञान न बूझई, कहै कबीर विचार । ।30 ।।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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प्रार्थना: धन्यवाद से शुरुआत I धन्यवाद! I आपका धन्यवाद करता हूँ। यीशु मस...
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041 मालिक कौन?
एक आदमी एक गाय को घर की ओर ले जा रहा था। गाय जाना नहीं चाहती थी। वह आदमी लाख प्रयास कर रहा था, पर गाय टस से मस नहीं हो रही थी। ऐसे ही बहुत समय बीत गया।एक संत यह सारा माजरा देख रहे थे। अब संत तो संत हैं, उनकी दृष्टि अलग ही होती है, तभी तो दुनियावाले उनकी बातें सुन कर अपना सिर ही खुजलाते रह जाते हैं।संत अचानक ही ठहाका लगाकर हंस पड़े।वह आदमी कुछ तो पहले ही खीज रहा था, संत की हंसी उसे तीर की तरह लगी।…
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( #Muktibodh_part160 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part161
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 309-310
◆ राग निहपाल से शब्द नं. 1 :-
जालिम जुलहै जारति लाई, ऐसा नाद बजाया है।।टेक।।
काजी पंडित पकरि पछारे, तिन कूं
ज्वाब न आया है।
षट्दर्शन सब खारज कीन्हें, दोन्यौं दीन चिताय�� है।।1।।
सुर नर मुनिजन भेद पावैं, दहूं का पीर कहाया है।
शेष महेश गणेश रु थाके, जिन कूं पार न पाया है।।2।।
नौ औतार हेरि सब हारे, जुलहा नहीं हराया है।
चरचा आं��ि परी ब्रह्मा सैं, चार्यों बेद हराया है।।3।।
मघर देश कूं किया पयांना, दोन्यौं दीन डुराया है।
घोर कफन हम काठी दीजौ, चदरि फूल बिछाया है।।4।।
गैबी मजलि मारफति औंड़ी, चादरि बीचि न पाया है।
काशी बासी है अबिनाशी, नाद बिंद
नहीं आया है।।5।।
नां गाड्या ना जार्या जुलहा, शब्द अतीत समाया है।
च्यारि दाग सें रहित सतगुरु, सौ हमरै मन भाया है।।6।।
मुक्ति लोक के मिले प्रगनें, अटलि पटा लिखवाया है।
फिरि तागीर करै ना कोई, धुर का चाकर लाया है।।7।।
तखत हिजूरी चाकर लागे, सति का दाग दगाया है।
सतलोक में सेज हमारी, अबिगत नगर बसाया है।।8।।
चंपा नूर तूर बहु भांती, आंनि पदम
झलकाया है।
धन्य बंदी छोड़ कबीर गोसांई, दास गरीब बधाया है।।9।। 1।।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 649-702 का सरलार्थ :- काजी तथा पंडितों ने विचार-विमर्श किया कि राजा सिकंदर को तो सिद्धि दिखाकर प्रभावित कर लिया। यह कुछ करने वाला नहीं है। तब उन्होंने कबीर परमेश्वर जी को शास्त्रार्थ की चुनौती दी।
◆ शास्त्रार्थ में भी काजी-पंडितों की किरकिरी हो गई तो सिकंदर राजा के पास फिर गए और कहा कि आप अपने सामने हमारी तथा कबीर जी की सिद्धि-शक्ति का परीक्षण करो।
हमारा मुकाबला (compitition) कराओ। उस समय भिन्न-भिन्न प्रकार के साधक, कोई कनफटा नाथ परंपरा से, दण्डी स्वामी, सन्यासी, षटदर्शनी वाले बाबा सब इकट्ठे हुए थे जो संत कबीर जी से ईर्ष्या करते थे। हाथों में पत्थर लेकर कबीर जी से कहने लगे कि तू हमारे देवताओं का अपमान करता है। हे जुलाहे! तुझे पत्थर मारेंगे। सिकंदर लोधी के पास जाकर पंडितों तथा मुल्ला-काजियों ने कहा कि कबीर जुलाहा पापी है। उसके दिल में दया
नहीं है। वह सबके धर्मों में दोष देखता है। हिन्दुओं से राम-राम नहीं करता तथा मुसलमानों से सलाम भी नहीं करता। कुछ और ही बोलता है। सत साहेब।
◆ संत गरीबदास जी ने तर्क दिया है कि उस काशी नगरी के सब ही नागरिकों की बुद्धि का नाश हो चुका था जो परमात्मा को तो नीच कह रहे थे तथा अपनी गलत साधना को उत्तम बता रहे थे और दयावान कबीर परमेश्वर जी को निर्दयी बता रहे थे। स्वयं जो सर्व व्यसन करते थे, लोगों को ठगते थे, अपने को श्रेष्ठ कह रहे थे।
◆ राजा सिकंदर ने कहा कि आप तथा कबीर ��क स्थान पर इकट्ठे होकर अपना एक ही बार फैसला कर लो। बार-बार के झगड़े अच्छे नहीं होते। पंडित तथा अन्य हिन्दू संत एक ओर तथा कबीर जी तथा रविदास जी एक ओर।
एक निश्चित स्थान पर आमने-सामने बैठ गए। मध्य में 20 फुट की दूरी रखी गई जहाँ पर पत्थर की सुंदर टुकडि़यों पर देवताओं की मूर्तियाँ रखी थी तथा शर्त रखी गई कि पत्थर की एक शिला (सुंदर चकोर टुकड़ी) पर चारों वेद रखे जाएंगे तथा अन्य शिलाओं पर चाँदी, सोने तथा पत्थर के सालिग्राम (विष्णु तथा लक्ष्मी व गणेश आदि देवताओं की मूर्तियाँ) रखी जाएंगी। जिनकी सत्य भक्ति होगी, उनकी ओर शिला ही चलकर जाएगी।
◆ ऐसा ही किया गया। जब पत्थर की शिला पर देवताओं की मूर्ति रखी और पंडितजन वेद वाणी पढ़ने लगे। उसी समय कुत्ता आया और उन पत्थर के देवताओं के मुख में टाँग उठाकर मूतकर भाग गया। धो-मांजकर साफ करके फिर सजाए। फिर कुत्ता आया, मूत की धार मारकर दौड़ गया। परमेश्वर कबीर जी तथा संत रविदास जी बहुत हँसे। ऐसा तीन बार किया। फिर विशेष सुरक्षा में मूर्ति रखकर पहले पंडितों ने अपनी भक्ति प्रारम्भ की।
हवन किए, वेदों के मंत्रों का उच्चारण किया, परंतु जिस चौकी (सुसज्जित पत्थर की शिला जिस पर देव मूर्तियाँ रखी थी) टस से मस नहीं हुई। राजा सिकंदर ने कहा कि हे कबीर जी! आप अपनी भक्ति-शक्ति से इन देवताओं को अपनी ओर बुलाओ। कबीर जी ने कहा
कि राजन! जब उच्च जाति के स्वच्छ वस्त्रा धारण किए हुए स्नान किए हुए पंडितों से देवता अपनी ओर नहीं बुलाए गए तो मुझ शुद्र के पास इनके देवता कैसे आएँगे? सिकंदर लोधी
बादशाह ने कहा कि हे कबीर जी! आपकी सच्ची भक्ति है। आप इन देवताओं को बुलाओ।
कबीर जी ने सत्यनाम का श्वांस से जाप किया तथा रविदास के साथ अपनी महिमा के शब्द गाने लगे। उसी समय पत्थर की शिला तथा उन पर रखे पत्थर, पीतल के देवता अपने
आप सरक कर (धीरे-धीरे चलकर) सब कबीर जी की गोद में बैठ गए। यह देखकर पंडित जी उन अठारह बोध वाली पुस्तकों (चारों वेद, पुरण, छः शास्त्र, उपनिषद आदि कुल अठारह बोध यानि ज्ञान की पुस्तकें मानी गई हैं, को) वहीं पटककर चले पड़े क्योंकि उनको कुत्ते के मूत की बूँदें (छींटें) लग गई थी।
◆ सब उपस्थित नकली विद्वान विचार करने लगे कि कबीर जुलाहे यानि शुद्र जाति वाले के पास भक्ति कैसे गई? परंतु वे अभिमानी-बेईमान अज्ञानी पंडित तथा काजी-मुल्ला व अन्य संत फिर भी परमात्मा के चरणों में नहीं गिरे।
क्रमशः_________________
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sentient machines Ai horror story , देर रात तक ऑफिस वर्क और सुबह लेट उठना राजवीर की लाइफ का हिस्सा बन चुका था , जब तक दो चार क्लाइंट के फोन नहीं आ जाते हैं तब तक किसी की क्या मजाल की राजवीर को बिस्तर से टस से मस कर ले , खैर अपनी इन्ही सब हरकतों की वजह से बॉस से लटेड़े जाना राजवीर की फितरत बन गया था , घडी में पौने ११ बज चुके थे , मगर आज राजवीर बिस्तर छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं था , बॉक्सर के अंदर कोहराम मचा रखा था मगर मस्तिष्क पर नींद इतनी हावी थी की बिस्तर गीला हो जाए तो हो जाए मगर वाश रूम तक न जाना पड़े , फोन साइलेंट मोड में था मगर वाइब्रेट मोड़ में घिर्र घिर्र किये जा रहा था , बहुत ज़्यादा इर्रिटेट होने के बाद राजवीर फोन उठाता है ट्रू कॉलर
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ज्ञान खोल के धर दिया पूरे विश्व में तूफान आने वाला है कुछ दिनों में देख लेना इस तत्वज्ञान का और दास ने ऐसा रंग रख्या है सारी पृथ्वी एक तरफ और दास का अनुयाई एक तरफ और टस से मस नहीं हो सकते, दास का पूरा काम हो चुका है।
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"रवीश कोई किताब पढ़ी जिंदगी में" कम्युनिस्टों ने तोप लगाकर उड़ा दी थी मस...
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BB OTT 2 Top Contestants: Elvish के आगे Abhishek के छूटे पसीने, Bebika को लगा करारा झटका, Manisha नहीं हुईं टस से मस
'बिग बॉस ओटीटी 2' के टॉप कंटेस्टेंट्स और रेंकिंग लिस्ट सामने आ चुकी है। इस बार Abhishek के साथ साथ Bebika को तगड़ा झटका लगा है। एक बार फिर एल्विश यादव को जनता ने प्यार दिया है। देखिए बिग बॉस ओटीटी 2 की पॉपुलर कंटेस्टेंट्स की रेंकिंग लिस्ट। Read more...
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रात को घी लगी रोटी का एक टुकड़ा चूहेदानी में रखकर हम लोग सो जाते थे।
रात को लगभग 11-12 बजे ख़ट की आवाज़ आती तो हम समझ जाते थे कि कोई चूहा फंसा है। पर चूँकि उस ज़माने में बिजली उतनी आती नहीं थी तो हमलोग सुबह तक प्रतीक्षा करते थे। सुबह उठ कर जब हम चूहेदानी को देखते थे तो उसके कोने में हमें एक चूहा फंसा हुआ मिलता था।
हम हिन्दू चूँकि जीव हत्या से परहेज करते हैं, इसलिए हमारे बुजुर्ग उस चूहेदानी को उठाकर घर से दूर किसी नाले के पास ले जाते थे और वहां जाकर उसका गेट खोल देते थे ताकि वो चूहा वहां से निकल कर भाग जाए। मगर हमें ये देखकर बड़ा ताज्जुब होता था कि गेट खोले जाने के बाबजूद भी वो चूहा वहां से भागता नहीं था बल्कि वहीं कोने में दुबका रहता था।
तब हमारे बुजुर्ग एक लकड़ी लेकर उससे उस चूहे को धीरे से मारते थे और भाग भाग की आवाज़ लगाते थे पर तब भी वो चूहा अपनी जगह से टस से मस नहीं होता था। बार बार उसे लकड़ी से मारने और शोर करने के बाद वो चूहा निकल कर भागता था।
जब तक अक्ल कम थी हमेशा सोचता था कि गेट खुला होने के बाद भी ये चूहा भागता क्यों नहीं?
पर बाद में जब अक्ल हुई तो समझ आया कि रात के 11-12 बजे चूहेदानी में कैद हुए चूहे ने सारी रात उस कैद से बाहर निकलने की कोशिश की होगी, हर दिशा में जाकर प्रयास किया होगा पर जब उसे ये एहसास हो गया कि अब इस कैद से मुक्ति का कोई रास्ता नहीं है तो थक हार कर उसने अपने दिलो दिमाग को ये समझा दिया कि अब मेरा भविष्य इस पिंजरे के अंदर ही ह��, इसी कैद में मुझे जीना और मरना है। इसलिए सुबह जब चूहेदानी का गेट खोल भी दिया गया तो भी उस चूहे का माइंडसेट यही बना हुआ था कि मैं तो कैद में हूँ, मैं तो गुलाम हूँ, मैं बाहर निकल ही नहीं सकता।
इस माइंडसेट ने उसे ऐसा बना दिया था कि सामने खुला गेट और मुक्ति का रास्ता दिखते हुए भी उसे नहीं दिख रहा था।
अपना हिन्दू समाज भी ऐसा ही था। हजारों सालों की गुलामी में हमने आजादी के लिए बहुत बार प्रयास किये पर आजादी नहीं मिली तो हमारा माइंडसेट ऐसा बन गया कि हम तो गुलामी करने के लिए ही पैदा हुए हैं, हम आजाद हो ही नहीं सकते।
इसलिए मुग़ल गये तो हमने अंग्रेजों की गुलामी शुरू कर दी और जब अंग्रेज गये। यानि गेट खुला, तो भी हमें आजादी का रास्ता नज़र नहीं आया, हम एक वंश की गुलामी में लग गये।
वंश की गुलामी करते करते इतने गिर गये कि हममें गुलामी करने को लेकर भी प्रतिस्पर्धा होने लगी कि कौन सबसे बेहतर गुलामी कर सकता है।
एक खानदान की गुलामी करने में हम इतने गिरे, कि हमारे अपने नेताओं ने ही हिन्दू जाति को आतंकवाद से जोड़ दिया। यानि जिस बात को कहने की हिम्मत आज तक पाकिस्तान ने भी नहीं की, वो बात गुलाम मानसिकता से ग्रस्त, हमारे अपने लोगों ने कही।
हम चूहे वाली माइंडसेट में थे, इसलिए समुचित प्रतिकार नहीं कर सके तो उनका हौसला और बढ़ा।
फिर श्रीराम और श्रीकृष्ण को 'मिथक चरित्र' घोषित कर, वो राम सेतु जैसे हमारे आस्था केन्द्रों को तोड़ने की ओर बढ़े।
फिर हमारे भाई बांधवों का हक छीनकर मजहबी आधार पर आरक्षण की घोषणाएँ करने लगे।
फिर एक दिन ये घोषणा कर दी कि जिस देश को तुम्हारे पूर्वजों ने अपने खून से सींचा है, उसके संसाधनों पर पहला हक तुम्हारा नहीं है।
हम अब भी उस चूहे वाली माइंडसेट में थे, इसलिए फिर एक दिन उन्होंने कहा कि हम "लक्षित हिंसा बिल" लायेंगे और साबित करेंगे कि तुम बहुसंख्यक हिन्दू जुल्मी हो, दंगाई हो, देश के मासूम अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने वाले हो, इसलिए तुम्हारे लिए एक सख्त सजा का प्रावधान रखा जाएगा।
इस अंतहीन काली रात के बाद अब सुबह हो गई थी, लकड़ी लेकर हमें जगाने वाला एक आदमी आ चुका था। जो हमें बता रहा था कि अब बहुत हो चुका कैद से निकलो, गेट खुला हुआ है।
उस आदमी ने पूरे देश में घूम घूम कर हमें गुलामी वाले लंबी निद्रा से जगाया, हमारे सामने खुला दरवाज़ा दिखाया। हम जागने लगे और 16 मई, 2014 को गुलामी वाले कैद से निकल गये।
जो नहीं निकल रहे है उनसे भी निवेदन हैं कि अब तो निकल जाइये। वैसे भी हम वो दरवाजा हमेशा के लिए ��ोड़ चुके हैं, आपको समझने की जरूरत हैं।
जय श्री राम
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#ज्ञानगंगा_Part34
त्रेतायुग में कविर्देव (कबीर साहेब) का मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य
नल तथा नील को शरण में लेना
त्रेतायुग में स्वयंभु (स्वयं प्रकट होने वाला) कविर्देव (कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम से आए हुए थे। अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील। दोनों आपस में मौसी के पुत्र थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नील दोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ीत थे। सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारण की प्रार्थना कर चुके थे। सर्व सन्तों ने बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्म का दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर मृत्यु का इंतजार कर रहे थे।
एक दिन दोनों को मुनिन्द्र नाम से प्रकट पूर्ण परमात्मा का सत्संग सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। सत्संग के उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीर साहेब) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्त्रा हो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए। इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिर कर घण्टों रोते रहे तथा कहा आज हमें प्रभु मिल गया जिसकी तलाश थी तथा उससे प्रभावित होकर उनसे नाम (दीक्षा) ले लिया तथा मुनिन्द्र साहेब जी के साथ ही सेवा में रहने लगे। पहले संतों का समागम पानी की व्यवस्था देख कर नदी के किनारे पर होता था। नल और नील दोनों बहुत प्रभु प्रेमी तथा भोली आत्माएँ थी। परमात्मा में श्रद्धा बहुत थी। सेवा बहुत किया करते थे। समागमों में रोगी व वृद्ध व विकलांग भक्तजन आते तो उनके कपड़े धोते तथा बर्तन साफ करते। उनके लोटे और गिलास मांज देते थे। परंतु थे भोले से दिमाग के। कपड़े धोने लग जाते तो सत्संग में जो प्रभु की कथा सुनी होती उसकी चर्चा करने लग जाते। वे दोनों प्रभु चर्चा में बहुत मस्त हो जाते और वस्तुएँ दरिया के जल में डूब जाती। उनको पता भी नहीं चलता। किसी की चार वस्तु ले कर जाते तो दो वस्तु वापिस ला कर देते थे। भक्तजन कहते कि भाई आप सेवा तो बहुत करते हो, परंतु हमारा तो बहुत काम बिगाड़ देते हो। ये खोई हुई वस्तुएँ हम कहाँ से ��े कर आयें? आप हमारी सेवा ही करनी छोड़ दो। हम अपनी सेवा आप ही कर लेंगे। फिर नल तथा नील रोने लग जाते थे कि हमारी सेवा न छीनों। अब की बार नहीं खोएँगे। परन्तु फिर वही काम करते। फिर प्रभु की चर्चा में लग जाते और वस्तुएँ दरिया जल में डूब जाती। भक्तजनों ने ऋषि मुनिन्द्र जी से प्रार्थना की कि कृपा नल तथा नील को समझाओ। ये न तो मानते है और मना करते हैं तो रोने लग जाते हैं। हमारी तो आधी भी वस्तुएँ वापिस नहीं लाते। ये नदी किनारे सत्संग में सुनी भगवान की चर्चा में मस्त हो जाते हैं और वस्तुएँ डूब जाती हैं। मुनिन्द्र साहेब ने एक दो बार तो उन्हें समझाया। वे रोने लग जाते थे कि साहेब हमारी ये सेवा न छीनों। सतगुरु मुनिन्द्र साहेब ने कहा बेटा नल तथा नील खूब सेवा करो, आज के बाद आपके हाथ से कोई भी वस्तु चाहे पत्थर या लोहा भी क्यों न हो जल में नहीं डुबेगी। मुनिन्द्र साहेब ने उनको यह आशीर्वाद दे दिया।
आपने रामायण सुनी है। एक समय की बात है कि सीता जी को रावण उठा कर ले गया। भगवान राम को पता भी नहीं कि सीता जी को कौन उठा ले गया? श्री रामचन्द्र जी इधर उधर खोज करते हैं। हनुमान जी ने खोज करके बताया कि सीता माता लंकापति रावण (राक्षस) की कैद में है। पता लगने के बाद भगवान राम ने रावण के पास शान्ति दूत भेजे तथा प्रार्थना की कि सीता लौटा दे। परन्तु रावण नहीं माना। युद्ध की तैयारी हुई। तब समस्या यह आई कि समुद्र से सेना कैसे पार करें? भगवान श्री रामचन्द्र ने तीन दिन तक घुटनों पानी में खड़ा होकर हाथ जोड़कर समुद्र से प्रार्थना की कि रास्ता दे दे। परन्तु समुद्र टस से मस न हुआ। जब समुद्र नहीं माना तब श्री राम ने उसे अग्नि बाण से जलाना चाहा। भयभीत समुद्र एक ब्राह्मण का रूप बनाकर सामने आया और कहा कि भगवन सबकी अपनी-अपनी मर्यादाएँ हैं। मुझे जलाओ मत। मेरे अंदर न जाने कितने जीव-जंतु बसे हैं। अगर आप मुझे जला भी दोगे तो भी आप मुझे पार नहीं कर सकते, क्योंकि यहाँ पर बहुत गहरा गड्डा बन जायेगा, जिसको आप कभी भी पार नहीं कर सकते।
समुद्र ने कहा भगवन ऐसा काम करो कि सर्प भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। मेरी मर्यादा भी रह जाए और आपका पुल भी बन जाए। तब भगवान श्री राम ने समुद्र से पूछा कि वह क्या विधि है ? ब्राह्मण रूप में खडे समुद्र ने कहा कि आपकी सेना में नल और नील नाम के दो सैनिक हैं। उनके पास उनके गुरुदेव से प्राप्त एक ऐसी शक्ति है कि उनके हाथ से पत्थर भी जल पर तैर जाते हैं। हर वस्तु चाहे वह लोहे की हो, तैर जाती है। श्री रामचन्द्र ने नल तथा नील को बुलाया और उनसे पूछा कि क्या आपके पास कोई ऐसी शक्ति है? नल तथा नील ने कहा कि हाँ जी, हमारे हाथ से पत्थर भी जल नहीं डुबंेगे। श्रीराम ने कहा कि परीक्षण करवाओ।
उन नादानों (नल-नील) ने सोचा कि आज सब के सामने तुम्हारी बहुत महिमा होगी। उस दिन उन्होंने अपने गुरुदेव भगवान मुनिन्द्र(कबीर साहेब) को यह सोचकर याद नहीं किया कि अगर हम उनको याद करेंगे तो कहीं श्रीराम ये न सोच लें कि इनके पास शक्ति नहीं है, यह तो कहीं और से मांगते हैं। उन्होंने पत्थर उठाकर पानी में डाला तो वह पत्थर प��नी में डूब गया। नल तथा नील ने बहुत कोशिश की, परन्तु उनसे पत्थर नहीं तैरे। तब भगवान राम ने समुद्र की ओर देखा मानो कहना चाह रहे हों कि आप तो झूठ बोल रहे हो। इनमें तो कोई शक्ति नहीं है। समुद्र ने कहा कि नल-नील आज तुमने अपने गुरुदेव को याद नहीं किया। नादानों अपने गुरुदेव को याद करो। वे दोनों समझ गए कि आज तो हमने गलती कर दी। उन्होंने सतगुरु मुनिन्द्र साहेब जी को याद किया। सतगुरु मुनिन्द्र (कबीर साहेब) वहाँ पर पहुँच गए। भगवान रामचन्द्र जी ने कहा कि हे ऋषिवर! मेरा दुर्भाग्य है कि आपके सेवकों के हाथों से पत्थर नहीं तैर रहे हैं। मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि अब इनके हाथ से तैरेंगे भी नहीं, क्योंकि इनको अभिमान हो गया है। सतगुरु की वाणी प्रमाण करती है किः-
गरीब, जैसे माता गर्भ को, राखे जतन बनाय। ठेस लगे तो क्षीण होवे, तेरी ऐसे भक्ति जाय।
उस दिन के पश्चात् नल तथा नील की वह शक्ति समाप्त हो गई। श्री रामचन्द्र जी ने परमेश्वर मुनिन्द्र साहेब जी से कहा कि हे ऋषिवर! मुझ पर बहुत आपत्ति आयी हुई है। दया करो किसी प्रकार सेना परले पार हो जाए। जब आप अपने सेवकों को शक्ति दे सकते हो तो प्रभु कुछ रजा करो। मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि यह जो सामने वाला पहाड़ है, मैंने उसके चारों तरफ एक रेखा खींच दी है। इसके बीच-बीच के पत्थर उठा लाओ, वे नहीं डूबेंगे। श्री राम ने परीक्षण के लिए पत्थर मंगवाया। उसको पानी पर रखा तो वह तैरने लग गया। नल तथा नील कारीगर (शिल्पकार) भी थे। हनुमान जी प्रतिदिन भगवान याद किया करते थे। उसने अपनी दैनिक क्रिया भी साथ रखी राम राम भी लिखता रहा और पहाड़ के पहाड़ उठा कर ले आता था। नल नील उनको जोड़-तोड़ कर पुल में लगा लेते थे। इस प्रकार पुल बना था। धर्मदास जी कहते हैं:-
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।
धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।
कोई कहता था कि हनुमान जी ने पत्थर पर राम का नाम लिख दिया था इसलिए पत्थर तैर गय���। कोई कहता था कि नल-नील ने पुल बनाया था। कोई कहता था कि श्रीराम ने पुल बनाया था। परन्तु यह सत कथा ऐसे ��ै, जैसे आपको ऊपर बताई गई है।
(सत कबीर की साखी - पृष्ठ 179 से 182 तक)
-ः पीव पिछान को अंग:-
कबीर-तीन देव को सब कोई ध्यावै, चैथे देव का मरम न पावै।
चैथा छाड़ पंचम को ध्यावै, कहै कबीर सो हम पर आवै।।3।।
कबीर-ओंकार निश्चय भया, यह कर्ता मत जान।
साचा शब्द कबीर का, परदे मांही पहचान।।5।।
कबीर-राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।17।।
कबीर - चार भुजा के भजन में, भूलि परे सब संत।
कबिरा सुमिरो तासु को, जाके भुजा अनंत।।23।।
कबीर - समुद्र पाट लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार।।26।।
कबीर -गोवर्धनगिरि धारयो कृष्ण जी, द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टि सहारी, इनमें को भगवंत।।27।।
कबीर -काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम।
चिन्हों रे नर प्राणियां, गरुड बड़ो की राम।।28।।
कबीर -कह कबीर चित चेतहंू, शब्द करौ निरूवार।
श्रीरामहि कर्ता कहत हैं, भूलि परयो संसार।।29।।
कबीर -जिन राम कृष्ण व निरंजन कियो, सो तो करता न्यार।
अंधा ज्ञान न बूझई, कहै कबीर विचार।।30।।
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