#भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज
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वाल्मीकि जयंती पर नत्थूसर गेट के बाहर एक सभा का आयोजन और वाल्मीकि समाज के लोगों ने उनके तेलचित्र पर पुष्प अर्पित किये।
बीकानेर। वाल्मीकि जयंती पर नत्थूसर गेट के बाहर एक सभा रखी गई। जिसमें वाल्मीकि समाज के लोगों ने उनके तेलचित्र पर पुष्प अर्पित किये। इस मौके पर भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के पूर्व प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य कन्हैयालाल चांवरिया ने विचार रखते हुए कहा कि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की,जो न केवल हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है,बल्कि भारतीय संस्कृति और साहित्य का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनकी रचनाएं…
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क्यों है प्रभु श्री राम की मूर्ति का श्यामल रंग पारस से जाने?
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमज���र आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
अयोध्या में प्रभु श्री राम जी के प्राण प्रतिष्ठा के उस दिव्य क्षण को हर कोई देखना चाहता था, हर कोई महसूस करना चाहता था, हर कोई इस पल का गवाह बनना चाहता था। यह सच है जिसने भी इस पल को देखा, वो भावुक हुए बिना नहीं रह पाया। जिसने भी गर्भगृह में विराजमान रामलला के विग्रह के चेहरे की पहली तस्वी��� को देखा वो बस देखता ही रह गया। इसके बाद हर किसी के मन में यह बात जरूर थी कि आखिर प्रभु श्री राम की मूर्ति का श्यामल रंग क्यों है ? आइए इस आर्टिकल में जानते हैं क्या है भगवान राम की मूर्ति के रंग के पीछे का रहस्य।
अयोध्या में श्री राम के बाल स्वरूप में मूर्ति का निर्माण
करोड़ों राम भक्तों का सपना 22 जनवरी 2024 को पूरा हो चुका है। इसके साथ 22 जनवरी की तारीख इतिहास के पन्नों में भी दर्ज हो गई है। पूरा देश राम नाम के रंग में रंगा हुआ है। हर किसी की जुबां पर सिर्फ और सिर्फ राम नाम है। सोमवार 22 जनवरी के दिन प्रभु श्री राम मूर्ति की प्राण पर प्रतिष्ठा की गयी। श्री राम के बाल स्वरूप में मूर्ति का निर्माण किया गया, यह मूर्ति श्यामल रंग की है। रामलला की आयु 5 वर्ष बताई गई है। गर्भगृह में विराजमान रामलला के चेहरे की जब पहली तस्वीर सामने आई तो यह बेहद ही सुंदर और अद्भुत था। इस पल की ख़ुशी ने हर किसी की आँख नम कर दी। बहुत ही ��ावुक कर देने वाला दृश्य था यह। मान्यता है कि जन्म भूमि में बाल स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है यही वजह है कि भगवान श्री राम की मूर्ति बाल स्वरूप में बनाई गयी है।
श्यामल रंग ही क्यों?
अयोध्या में श्री राम के बाल स्वरूप में मूर्ति का निर्माण किया गया है, जिसमें मूर्ति का रंग श्यामल है। प्रभु श्री राम की मूर्ति का निर्माण श्याम शिला के पत्थर से किया गया है और यह पत्थर अपने आप में बहुत खास माना जाता है। इस पत्थर का रंग काला ही होता है। यही वजह है कि मूर्ति का रंग श्यामल है।
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि श्याम शिला की आयु हजारों वर्ष मानी जाती है। इसलिए इसके पीछे यह कारण है कि यह मूर्ति हजारों सालों तक अच्छी अवस्था में रहे और इसमें कोई भी बदलाव न हो। इसके अलावा सनातन धर्म में पूजा पाठ के समय मूर्ति का अभिषेक किया जाता है और मूर्ति को धूप, दीप, जल, चंदन, रोली, दूध और पुष्प आदि से अभिषेक किया जाता है। इन सभी चीजों से भी प्रभु श्री राम की मूर्ति को कुछ भी न हो इसका ध्यान रखा गया। इसके अलावा महर्षि वाल्मीकि रामायण में भगवान श्री राम के श्यामल रूप का वर्णन किया गया है। इसलिए प्रभु को श्यामल रूप में पूजा जाता है।
प्राण प्रतिष्ठा क्यों है जरूरी ?
प्राण प्रतिष्ठा हिंदू धर्म का प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान है। प्राण का अर्थ हाेता है जीवन इसलिए प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ हुआ किसी भी मूर्ति या प्रतिमा में देवी देवताओं को आने का आह्वान करना। प्राण प्रतिष्ठा प्रक्रिया का मतलब है मूर्ति में प्राण डालना। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि इसलिए जब भी कोई मंदिर बनता है तो उसमें देवी-देवताओं की मूर्ति स्थापित की जाती है और उनकी पूजा से पहले उनमें प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। बिना प्राण प्रतिष्ठा के मूर्ति पूजन पूर्ण नहीं माना जाता है। मूर्ति में प्राण डालने के लिए मंत्र उच्चारण के साथ देवों का आवाहन किया जाता है।
श्यामल वर्ण माना जाता है शुभ
महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार शास्त्रों में यह वर्णन मिलता है कि प्रभु राम श्याम रंग के हैं। यानि प्रभु राम का बाल रूप, प्रभु राम का जन्म रूप सब श्यामल रंग का ही है। इसलिए यही कारण है कि 500 वर्ष के बहुत ही लंबे संघर्ष के बाद प्रभु श्री राम अपने भव्य महल में विराजमान हुए हैं और उनकी प्रतिमा का रंग श्यामल रखा गया है। इसके साथ ही शास्त्रों के अनुसार, कृष्ण शिला से बनी राम की मूर्ति खास होती है और इसलिए इस मूर्ति को श्याम शिला से बनाया गया है।
किसने किया है प्रभु श्री राम की प्रतिमा का निर्माण ?
राम मंदिर में प्रभु राम बालक राम के रूप में विराजमान हैं। 5 वर्ष के बालक के रूप में रामलला की प्रतिमा बनाई गई है। प्रतिमा का निर्माण मूर्तिकार अरुण योगीराज ने किया है। मूर्तिकार अरुण योगीराज कर्नाटक के मैसूर के रहने वाले हैं। अरुण योगीराज की कई पीढियां इसी काम से जुड़ी हुई हैं। उनके पिता योगीराज शिल्पी एक बेहतरीन मूर्तिकार हैं। अरुण योगीराज का कहना है कि मैं पृथ्वी पर सबसे भाग्यशाली व्यक्ति हू�� और यह मेरे लिए सबसे बड़ा दिन है। भगवान रामलला का आशीर्वाद ह���ेशा मेरे साथ रहा है और कभी-कभी मुझे लगता है जैसे मैं सपनों की दुनिया में हूँ।
प्रतिमा में कमल दल पर प्रभु राम विराजमान हैं। वहीं प्रतिमा के सबसे ऊपर स्वास्तिक और आभामंडल भी बनाया गया है। अरुण योगीराज ने सिर्फ रामलला की ही मूर्ति नहीं बनाई है, इसके अलावा भी उन्होंने कई और भी मूर्तियां बनाई हैं। अरुण योगीराज ने इंडिया गेट के पास स्थापित सुभाष चंद्र बोस की 30 फीट की मूर्ति बनाई है। अरुण योगीराज ने भगवान आदि शंकराचार्य की 12 फीट की मूर्ति बनाई है, जो कि केदारनाथ में है। अरुण योगीराज ने बताया कि वह अयोध्या मंदिर के लिए सबसे सुंदर और उत्तम प्रतिमा बनाना चाहते थे। इस दौरान वो 6 महीने तक अपने परिवार वालों तक से नहीं मिले।
रामलला की मूर्ति में बालत्व, देवत्व और राजकुमार तीनों की छवि
अरुण योगीराज ने रामलला की बेहद खूबसूरत मूर्ति का निर्माण किया है। रामलला की मूर्ति में बालत्व, देवत्व और एक राजकुमार तीनों की छवि दिखाई दे रही है। भगवान राम की मूर्ति की मुख्य विशेषताओं को देखें तो इसमें अनेक खूबियां हैं। प्रभु श्री राम की जो मूर्ति है उसका वजन करीब 200 किलोग्राम है। भगवान राम की मूर्ति कृष्ण शैली में बनाई गई है। मूर्ति में भगवान राम के कई अवतारों को तराशा गया है।
प्रभु श्री राम की बाल सुलभ मुस्कान ने सबको किया आकर्षित
रामलला की प्रतिमा में बालसुलभ मुस्कान ने लोगों को आकर्षित किया। हर कोई उनकी मुस्कान को बस निहारे जा रहा था। दरअसल भगवान राम की मूर्ति का निर्माण चेहरे की कोमलता, आंखों की सुंदरता, मुस्कुराहट और शरीर सहित अन्य कई चीजों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। मूर्ति बेहद ही भव्य और सुन्दर है। यह प्रतिमा 51 इंच ऊंची है, जो बहुत ही आकर्षक ढंग से बनाई गई है।
इसके अलावा भगवान श्रीराम की मूर्ति की लंबाई और ऊंचाई भारत के प्रतिष्ठित अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की सलाह पर इस तरह से डिजाइन की गई है कि हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि राम नवमी को स्वयं भगवान सूर्य श्री राम जी का अभिषेक करेंगे। रामनवमी के दिन दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें सीधे उनके माथे पर पड़ेंगी और वह चमक उठेगा।
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प्राण प्रतिष्ठा और संबंधित आयोजनों का विवरण:
1. आयोजन तिथि और स्थल: भगवान श्री रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा योग का शुभ मुहूर्त, पौष शुक्ल कूर्म द्वादशी, विक्रम संवत 2080, यानी सोमवार, 22 जनवरी, 2024 को आ रहा है।
2. शास्त्रीय पद्धति और समारोह-पूर्व परंपराएं: सभी शास्त्रीय परंपराओं का पालन करते हुए, प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम अभिजीत मुहूर्त में संपन्न किया जाएगा। प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व शुभ संस्कारों का प्रारंभ कल अर्थात 16 जनवरी 2024 से होगा, जो 21 जनवरी, 2024 तक चलेगा।
द्वादश अधिवास निम्नानुसार आयोजित होंगे:-
-16 जनवरी: प्रायश्चित्त और ��र्मकूटि पूजन
-17 जनवरी: मूर्ति का परिसर प्रवेश
-18 जनवरी (सायं): तीर्थ पूजन, जल यात्रा, जलाधिवास और गंधाधिवास
-19 जनवरी (प्रातः): औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास
-19 जनवरी (सायं): धान्याधिवास
-20 जनवरी (प्रातः): शर्कराधिवास, फलाधिवास
-20 जनवरी (सायं): पुष्पाधिवास
-21 जनवरी (प्रातः): मध्याधिवास
-21 जनवरी (सायं): शय्याधिवास
3. अधिवास प्रक्रिया एवं आचार्य: सामान्यत: प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में सात अधिवास होते हैं और न्यूनतम तीन अधिवास अभ्यास में होते हैं। समारोह के अनुष्ठान की सभी प्रक्रियाओं का समन्वय, समर्थन और मार्गदर्शन करने वाले 121 आचार्य होंगे। श्री गणेशवर शास्त्री द्रविड़ सभी प्रक्रियाओं की निगरानी, समन्वय और दिशा-निर्देशन करेंगे, तथा काशी के श्री लक्ष्मीकांत दीक्षित मुख्य आचार्य होंगे।
4. विशिष्ट अतिथिगण: प्राण प्रतिष्ठा भारत के आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूजनीय सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी, उत्तर प्रदेश के आदरणीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में होगी।
5. विविध प्रतिष्ठान: भारतीय आध्यात्मिकता, धर्म, संप्रदाय, पूजा पद्धति, परंपरा के सभी विद्यालयों के आचार्य, 150 से अधिक परंपराओं के संत, महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत, नागा सहित 50 से अधिक आदिवासी, गिरिवासी, तातवासी, द्वीपवासी आदिवासी परंपराओं के प्रमुख व्यक्तियों की कार्यक्रम में उपस्थिति रहेगी, जो श्री राम मंदिर परिसर में प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के दर्शन हेतु पधारेंगे।
6. ऐतिहासिक आदिवासी प्रतिभाग: भारत के इतिहास में प्रथम बार पहाड़ों, वनों, तटीय क्षेत्रों, द्वीपों आदि के वासियों द्वारा एक स्थान पर ऐसे किसी समारोह में प्रतिभाग किया जा रहा है। यह अपने आप में अद्वितीय होगा।
7. समाहित परंपराएँ: शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य, पात्य, सिख, बौद्ध, जैन, दशनाम शंकर, रामानंद, रामानुज, निम्बार्क, माध्व, विष्णु नामी, रामसनेही, घिसापंथ, गरीबदासी, गौड़ीय, कबीरपंथी, वाल्मीकि, शंकरदेव (असम), माधव देव, इस्कॉन, रामकृष्ण मिशन, चिन्मय मिशन, भारत सेवाश्रम संघ, गायत्री परिवार, अनुकूल चंद्र ठाकुर परंपरा, ओडिशा के महिमा समाज, अकाली, निरंकारी, नामधारी (पंजाब), राधास्वामी और स्वामीनारायण, वारकरी, वीर शैव इत्यादि कई सम्मानित परंपराएँ इसमें भाग लेंगी।
8. दर्शन और उत्सव: गर्भ-गृह में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के पूर्ण होने के बाद, सभी साक्षी महानुभावों को दर्शन कराया जाएगा। श्री रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए हर जगह उत्साह का भाव है। इसे अयोध्या समेत पूरे भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाने का संकल्प किया गया है। समारोह के पूर्व विभिन्न राज्यों के लोग लगातार जल, मिट्टी, सोना, चांदी, मणियां, कपड़े, आभूषण, विशाल घंटे, ढोल, सुगंध इत्यादि के साथ आ रहे हैं। उनमें से सबसे उल्लेखनीय थे माँ जानकी के मायके द्वारा भेजे गए भार (एक बेटी के घर स्थापना के समय भेजे जाने वाले उपहार) जो जनकपुर (नेपाल) और सीतामढ़ी (बिहार) के ननिहाल से अयोध्या लाए गए। रायपुर, दंडकारण्य क्षेत्र स्थित प्रभु के ननिहाल से भी विभिन्न प्रकार के आभूषणों आदि के उपहार भेजे गए हैं।
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लुधियाना / विधायक हरदीप मुंडियां ने किया भगवन वाल्मीकि भवन मरम्मत कार्य का शुभारंभ, जोनल कमिश्नर सोनम चौधरी रही मौजूद
लुधियाना / विधायक हरदीप मुंडियां ने किया भगवन वाल्मीकि भवन मरम्मत कार्य का शुभारंभ, जोनल कमिश्नर सोनम चौधरी रही मौजूद
लुधियाना, निखिल दुबे : भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज के राष्ट्रीय सर्वोच्च निदेशक अश्वनी सहोता के नेतृत्व में भगवन वाल्मीकि भवन जमालपुर में एक समारोह का आयोजन किया गया। जिसमे मुख्य मेहमान के तौर पर हल्का साहनेवाल के विधायक हरदीप सिंह मुंडियां उपस्थित रहे। विधायक ने भगवन वाल्मीकि भवन के मरम्मत के काम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर मुंडियां ने कहा कि सरकार लोगो से किया हर वादा पूरा करने में जुटी है। इस…
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#ashwani sahota#bhgwan walmiki#Mla Hardip mundia#sonam choudhary#भगवन वाल्मीकि भवन#भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज
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LIVEDISTRICTNEWS भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज भावाधस द्वारा जिलाधिकारी को ...
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*भगवान महर्षि वाल्मीकि के बताएं गए रास्ते पर चलने का लें संकल्प /प्रेमचंद अग्रवाल*
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*भगवान महर्षि वाल्मीकि के बताएं गए रास्ते पर चलने का लें संकल्प /प्रेमचंद अग्रवाल*
ऋषिकेश 23 अक्टूबर 2021_ बाल्मीकि जयंती के अवसर पर त्रिकालदर्शी भगवान बाल्मीकि द्वार के निकट रेलवे रोड में आयोजित कार्यक्रम के अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल ने कहा कि हमें समाज के कमजोर वर्ग की सेवा व सहायता के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।
कार्यक्रम में अग्रवाल ने कन्याओं को भंडारा भी वितरित कर स्वयं भी भंडारे का प्रसाद वितरण किया।उन्होंने कहा की भगवान बाल्मीकि जी ने रामायण जैसे महान ग्रंथ की रचना क��� विश्व को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के चरित्र से परिचित कराया। यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें मर्यादा, सत्य, प्रेम भातृत्व, मित्रता एवं सेवा के धर्म की परिभाषा सिखाई गई है । अग्रवाल ने अपने संबोधन में कहा गया कि महर्षि बाल्मीकि आदि कवि के नाम से जाने जाते थे जिन्होंने प्रथम श्लोक की खोज की तथा पौराणिक कथाओं के अनुसार वैदिक काल में महान ऋषि बाल्मीकि ने जीवन जीने का संदेश दिया। उन्होंने कहा है कि संकल्प लेना चाहिए कि हम भगवान महर्षि वाल्मीकि द्वारा बताए गए मार्ग पर चलें। इस अवसर पर अग्रवाल ने क्षेत्र में करवाए गए विकास कार्यों का भी उल्लेख किया।
कार्यक्रम में भारतीय जनता पार्टी के ऋषिकेश के मंडल अध्यक्ष दिनेश सती ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल जी ने हमेशा हर वर्ग व हर क्षेत्र के विकास की बात कही है और उस पर खरे भी उतर रहे हैंl इस अवसर पर स्थानी पार्षद रविंद्र बिल्ला, विकास चौहान, ब्रह्मचंद बाल्मीकि, सुरेंद्र कुमार, दिनेश चंद्र, राकेश चंद्र, राजू सिंह, कुलदीप सिंह, सेवाराम बिरला, जगावर सिंह, राकेश चंद, प्रवीण कुमार, सूरज टोंक, नीरज, अनीता देवी, शीला देवी आदि सहित अनेक लोग उपस्थित थे l
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जिन विधायक का नाम ही गणेश, उन्हें स्वयं के हिन्दू होने पर शक कैसे: गरासिया Divya Sandesh
#Divyasandesh
जिन विधायक का नाम ही गणेश, उन्हें स्वयं के हिन्दू होने पर शक कैसे: गरासिया
उदयपुर। आदिवासी समाज हमेशा से हिन्दू है, हिन्दू था और हिन्दू रहेग���। वह भगवान विष्णु के प्रथम मीन अवतार का वंशज है। यह बात भाजपा जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुन्नीलाल गरासिया ने सोमवार को यहां प्रेसवार्ता में कही। गरासिया ने पिछले दिनों राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के डूंगरपुर विधायक गणेश घोघरा और बीटीपी द्वारा आदिवासियों के हिन्दू नहीं होने के बयान और आदिवासी धर्म का अलग से कोड बनाने संबंधी बयान का कड़ा विरोध किया।
यह खबर भी पढ़ें: रेलवे यात्रियों की सुविधा के लिए गोरठ व शामगढ़ स्टेशनों पर होगा ट्रेनों का ठहराव
गरासिया ने कहा कि आदिवासी समाज सनातन काल से भारतीय संस्कृति का संवाहक है। आदिवासी समाज को हिन्दू धर्म से तोड़ने का षड्यंत्र किया जा रहा है। विधायक घोघरा का बयान इसी षड्यंत्र का हिस्सा होकर राजनीतिक रोटियां सेकने का प्रयास है। यह बयान समाजों को आपस में लड़ाने जैसा है। उन्होंने विधायक से कहा कि उनका नाम भी हिन्दू धर्म में प्रथम पूज्य माने जाने वाले भगवान गणेश के नाम पर हैं, ऐसे में क्या वे स्वयं हिन्दू नहीं हैं। गरासिया ने आरोप लगाया कि यह बयान मिशनरीज के इशारों पर दिया गया है। आदिवासी समाज को गुमराह कर नई विचारधारा थोपने का प्रयास किया जा रहा है जो देश की संस्कृति पर ही हमले का षड्यंत्र है।
गरासिया ने महर्षि वाल्मीकि, रामायण, भगवान राम, निषादराज, शबरी आदि का उल्लेख करते हुए कहा कि आदिवासी समाज भारतीय सनातन हिन्दू संस्कृति का अभिन्न अंग है। गोविन्द गुरु ने छप्पनिया अकाल के दौरान नौ धूणियों को प्रज्वलित किया, आदिवासियों को जाग्रत किया और धर्मान्तरित होने से रोकने के साथ भक्ति का शंखनाद किया। गरासिया ने कहा कि धर्म के नाम पर लालच देने वालों के प्रयासों को सफल नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने चुनौती दी कि डूंगरपुर व प्रतापगढ़ के विधायकों को हिन्दू होने में आपत्ति है तो वे अपना नाम बदल दें, लेकिन समाज को भ्रमित करने का प्रयास नहीं करें।
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अहंकार में चूर हैं हरियाणा के मुख्यमंत्री : सुरजेवाला
अहंकार में चूर हैं हरियाणा के मुख्यमंत्री : सुरजेवाला : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी धोखे, विश्वासघात और जुमले जैसे तीन रास्तों पर चल रही है और प्रदेश के मुख्यमंत्री अहंकार में चूर हैं. उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जोड़ी ने जात-पात और धर्म के नाम पर देश को 50 साल ���ीछे धकेलने का काम किया है. उन्होंने आगाह किया कि यदि भाजपा को दोबारा मौका दिया गया तो देश 500 साल पीछे चला जाएगा।रणदीप सुरजेवाला शनिवार को पिल्लूखेड़ा अनाज मंडी में पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य की अध्यक्षता में महाव्रांति रैली को संबोधित कर रहे थे। इन्हे भी पढ़े :- अवैध निर्माण ��हाने पहुंची निगम की टीम पर बरसाई ईटें सुरजेवाला ने कहा, ‘‘साढ़े चार साल पहले देश में उम्मीदों और वादों की भाजपा सरकार आई थी, लेकिन न तो देशवासियों की उम्मीदें पूरी हुईं और न ही भाजपा के वादे। मोदी सरकार ने देशवासियों को झूठे वादे किए कि हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख रुपये आएंगे, युवाओं को दो करोड़ नौकरियां दी जाएंगी, 80 लाख करोड़ रुपये का काला धन देश में वापस लाया जाएगा, किसानों को खेती की लागत के साथ 50 फीसदी मुनाफा दिया जाएगा और अगर देश पर कोई आतंकी हमला करता है तो एक के बदले 10 सर काटे जाएंगे। लेकिन यह सिर्फ जुमलेबाजी ही साबित हुई। सुरजेवाला ने कहा, ‘‘प्रदेश की मनोहर सरकार ने भी सत्ता में आने पर एक परिवार एक रोजगार, कर्ज मुक्ति, इंस्पेक्टरी राज को समाप्त करने और बेरोजगारों को 9,000 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने जैसे वादे किये थे लेकिन इन वादों को पूरा नहीं किया गया। उन्होंने दावा किया कि मोदी और खट्टर की जोड़ी ने देश को 50 साल पीछे धकेल दिया है. सुरजेवाला ने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री मनोहर लाल तो अहंकार में चूर हैं. खट्टर सरकार भ्रष्टाचारियों को हवा दे रही है और विरोध करने वालों पर लाठियां बरसाने और मुकदमे दर्ज करवाने का काम किया जा रहा है. सुरजेवाला ने आरोप लगाया, ‘‘भाजपा को सिर्फ एक काम आता है, समाज को बांटना। जो प्रदेश कभी पूरे देश में खुशहाली का प्रतीक था, आज इस मनोहर सरकार ने उसे बदहाली में बदल दिया है. उन्होंने कहा, ‘‘जितने जुल्म इस सरकार में किसानों पर हुए, वह पहले कभी नहीं हुए। इस सरकार ने तो किसानों की कर्ज माफी से भी साफ इनकार कर दिया।’’ उन्होंने सवाल किया, ‘‘अगर देश के 15 उद्योगपतियों का 3,17,000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया जा सकता है तो देश के अन्नदाता का कर्ज क्यों नहीं माफ हो सकता। सुरजेवाला ने किसानों की फसल और पेट्रो पदाथों के भाव को लेकर भी केंद्र और प्रदेश सरकार की आलोचना की। उन्होंने फसल और डीजल के आज के भावों की तुलना कांग्रेस कार्यकाल के दौरान के भावों से करते हुए कहा, ‘‘महंगाई चरम पर है. किसानों से जबरन बीमा की राशि वसूली गई और बीमा कंपनियों ने करोड़ों के वारे न्यारे कर लिए। किसानों को बीमा के तहत केवल 5600 करोड़ की राशि का भुगतान किया गया, लेकिन निजी कंपनियों ने इससे 16,099 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। इन्हे भी पढ़े :- 19वें दिन भी एनएचएम कर्मचारी संघ की जारी रही हड़ताल ग्रुप डी की नौकरियों को लेकर सरकार की आलोचना करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि यह पढ़े लिखे युवाओं के साथ एक भद्दा ��जाक है कि उच्च शिक्षित युवाओं को माली, हेल्पर जैसा कार्य करने पड़ रहे हैं. इस पक्की नौकरी के नाम पर पहले से काम कर रहे युवाओं को नौकरी से निकाल दिया गया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अगर सत्ता में आई तो नौकरी बेचने वालों और पेपर लीक कराने वालों को जेल की सलाखों के पीछे भेजा जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘अब इस जुमला और झूठ की राजनीति करने वाली भाजपा सरकार को उखाड़ फैंकने का समय आ गया है. आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता भाजपा सरकार को उसकी असलियत बताएगी और उसे सत्ता से बाहर फेंकने का काम करेगी। रैली को पूर्व मंत्री बचनं सिंह आर्य, पूर्व मंत्री राजकुमार वाल्मीकि, शिवशंकर भारद्वाज, सुल्तान सिंह जडौला, पूर्व विधायक रमेश गुप्ता ने भी संबोधित किया। अहंकार में चूर हैं हरियाणा के मुख्यमंत्री : सुरजेवाला स्त्रोत :- dainikseveratimes छायाचित्र भिन्न हो सकता है Read the full article
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लुधियाना ब्यूरो : भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज (भावाधस) के प्रमुख अश्वनी सहोता ने बनाया राजू शेरपुरीया को लुधियाना शहर के 8 विधानसभा का इंचार्ज
लुधियाना ब्यूरो : भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज (भावाधस) के प्रमुख अश्वनी सहोता ने बनाया राजू शेरपुरीया को लुधियाना शहर के 8 विधानसभा का इंचार्ज
लुधियाना, [निखिल भारद्वाज] : भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज भावाधस की तरफ से एक कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें भावाधस के प्रमुख अश्वनी सहोता ने लुधियाना शहर के 8 विधानसभा क्षेत्रों के लिए इंचार्ज के तौर पर राजू शेरपुरीया का नाम आगे किया जिसपर सभी ने अपनी सहमति दी। राजू शेरपुरीया ने इस मौके पर कहा की उनको जो भी जिम्मेवारी दी जाएगी उसका पालन करेंगे और भावाधस का प्रचार परशार करेंगे तथा भावाधस के साथ…
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कभी-कभी हंसी आती है। बोलिए क्यों ? पहले ये तो बताओ, कौन सा धर्म कहता है कि एक दूसरे से प्रेम नहीं करो। क्या कोई धर्म आपस में लड़ने की शिक्षा देता है। क्या कोई धर्म आपसी अलगाव की शिक्षा देता। तो फिर आज का वर्तमान धर्म कौन सा धर्म है । इसलिए हंसी आती है।
आप क्यों पड़ते हो इन राजनीतिक धर्म के चक्कर में ।यह आपको डुबो देगी। यह आपको अपना नहीं रहने देगी। राजनीति के धर्म के शतरंज के मोहरे हमेशा आपके अतीत को मिटाने के लिए चलेगी। हमेशा आप को अलग करने के लिए चलेगी । हमेशा आपस में विद्रोह करने के लिए चलेगी। हमेशा आपके आपसी जातिवादी मतभेद के लिए चलेगी। अगर सच में धर्म की राह पर चलना ही है तो, अपने सत्य सनातन धर्म जिस��� वैदिक धर्म भी कहते हैं, उस पर चल के देखिए । रास्ता सुगम हो जाएगा, आसान हो जाएगा और पूरी दुनिया से प्रेम हो जाएगा। सब तरफ प्रेम का वातावरण होगा ऐसा लगेगा जैसे पूरा समाज ही एक दूसरे में परिणत हो गया।
इसे जरूर पढ़ें: जातिवाद के बंधनों को तोड़कर आपसी एकता कैसे बनेगी ?
अगर आज के परिवेश को सिर्फ निष्पक्ष आंखों से देखा जाए तो धर्म है ही नहीं है। मनुष्य के अंदर धार्मिकता एक भीतरी गुण है और उसका किसी संगठन, किसी संस्था, किसी संप्रदाय या फिर किसी जाति से कोई संबंध नहीं है। क्योंकि धार्मिक आदमी हिंदू नहीं हो सकता, धार्मिक आदमी मुसलमान नहीं हो सकता। धार्मिक आदमी किसी खास जाति का नहीं हो सकता।
जानते हो मेरे दोस्त सबसे बड़ा पत्थर रोड़ा बनकर कहां खड़ा है यह हिंदू मुसलमान और आपसी जातिवाद जो मनुष्यता को अलग करते हैं। मनुष्यता को तोड़ने में अपनी भूमिका अदा करते हैं । इसलिए अगर वर्तमान धर्म को आप धर्म कहते हैं तब तो यह तो धर्म हो ही नहीं सकता है ।
अर्चन तब होती है जब हम हिंदू या मुसलमान कहतें हैं । अर्चन तब होती है जब हम अगरा और पिछड़ा कहते हैं। जिस मनुष्यता का हिंदू, मुसलमान या ईसाई से कोई संबंध नहीं है जिस मनुष्यता का ब्राह्मण राजपूत भूमिहार यादव और अन्य जातियों से कोई संबंध नहीं है। तो फिर सब कुछ धर्म के जैसे कैसे चल रहा है ।
मेरे भाई धर्म तो सब से प्रेम करना सिखाता है धर्म तो किसी से द्वेष करना सिखाता नहीं है। एक बात और मैं वर्तमान हिंदू और मुसलमान धर्म की बात नहीं करना चाहता हूं कि को क्या कर रहा है और किसने क्या किया। आप सोचिए इन सब बातों पर थोड़ा ध्यान दीजिए और अपने दिमाग पर जोर देकर इन सब बातों पर सोचिए आप कहां खड़े है ।
हां अगर मैं सत्य सनातन धर्म की बात करूंगा तो कहूंगा कि उस समय सब एक और उस समय धर्म भी था और आपसी प्रेम था। जिस त्रेता में श्री राम का अवतार ही रावण के वध के लिए हुआ था जिसे रावण जानता था उसी त्रेता में धर्म क्या था रावण श्री राम की द्वारा पूजा के आमंत्रण में पूजा कराने आता है। आप समझ रहे हैं मैं क्या कर रहा हूं । क्योंकि उस समय धर्म की एकता थी । धर्म का बोलबाला था। जिस रामायण को सारे हिंदू पढ़ते हैं और मानते हैं उस रामायण की रचना करने वाले भगवान श्री वाल्मीकि और सभी तुलसीदास जी यहां यह बताने की जरूरत नहीं है आपको कि भगवान श्री वाल्मीकि और श्री तुलसीदास जी किस जाति से थे। इसके बारे में उनसे पूछिए जो ऊंच-नीच जाति धर्म का भेदभाव करते हैं वे आपको इसका सही उत्तर बताएंगें। अगर वह सत्य सनातनी होंगे तो और अगर आज के वर्तमान धर्म को मानने वाले होंगे तब तो वो इसका सही उत्तर नहीं ��ता पाएंगे।
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); द्वापर में धर्म युद्ध हुआ और धर्म को विजय बनाने के लिए भगवान श्री श्री हरि विष्णु में अपने सभी कलाओं के साथ श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिए। आप सभी हिंदू भाई महाभारत और श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ते होंगें। जरा यह तो पता कीजिए क्यों उसके रचयिता किस जाति के थे। उसे लिखने वाले किस जाति के थे। और आप सभी आज वर्तमान धर्म को मानकर बैठे हैं और जाति के नाम पर अपने को तोड़ रहे हैं खुद टूट रहे हैं।
आप देखते हो मैं अपने समाज में चाहे वह किसी भी जाति के हों, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, जो सच्चे अर्थों में धर्म जानते हैं से कभी आज के वर्तमान धर्म को लेकर विचलित नहीं होते। मैं आपको हर समय सत्यता का बोध कराएंगे। मैं आपको हर समय एक शब्द समाज का बोध कराएंगें । ओए हर समय आपको शांति का उपदेश देंगें । वे ना खुद विचलित होंगे और अगर उनके सानिध्य में आप रहेंगे तो, वे आपको भी विचलित नहीं होने देंगे ।
सनातन धर्म क्या है ?
सनातन का अर्थ है शासन या हमेशा बना रहने वाला अर्थात जिसका न आदि है न अंत है। आप यहां इतना ही जाने कि सत्यम शिवम सुंदरम यही सनातन और यही सनातन धर्म को मानने बालों की प्रकृति है। जिस पर चल के लोगों ने इतिहास लिख दिया। ऋग्वेद कहता है कि सत्यम शिवम सुंदरम यह पथ सनातन है समस्त देवता और मनुष्य इसी मार्ग से पैदा हुए तथा प्रगति की है इसलिए हे मनुष्य आप अपने उत्पन्न होने की आधार रूपा अपनी माता को भी नष्ट ना करें। (ऋग्वेद 3-18-1)
सनातन का अर्थ है सास्वत हो जाओ सदा के लिए सत्य मैं खो जाओ। जिन बातों का शासक महत्व उसी को सनातन कहा गया है। जैसे सत्य सनातन है ईश्वर ही सत्य है आत्मा ही सत्य है मोह ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म है जो सत्य है। क्या हुआ सत्य है जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी अंत नहीं होगा। यानी आपका सकते हैं जिनका ना प्रारंभ है और नागिन का अंत उस सत्य को ही सनातन कहते हैं। यही सनातन धर्म का सत्य है और यही हमारा सनातन धर्म है । जिसमें मूल रूप से तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, य��, नियम आदि हैं और जिनका सास्वत महत्व है।
सनातन धर्म का इतिहास
सनातन धर्म जिसे वैदिक धर्म भी कहा जाता है यह ऑडियो और अब साल का इतिहास कहीं-कहीं तो इसे (1960 8513010 साल का इतिहास कहा गया है) भारत की सिंधु घाटी सभ्यता जो सिंधु घाटी अभी आधुनिक पाकिस्तान क्षेत्र में है वह हिंदू धर्म के कई चिन्ह मिले हैं जहां एक और ज्ञात मात्री देवी की मूर्तियां भी मिली है शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएं भी मिली है लिंग और पीपल की पूजा के प्रमाण भी मिले हैं।
कहां जाता है ��्राचीन काल में भारतीय सनातन धर्म में गणपत शैवदेव कोटि वैष्णव शाक्त और सौर नाम के 5 संप्रदाय होते थे। जिसमें गाने पर श्री गणेश की आराधना करते थे। वैष्णव श्री वैष्णव की आराधना करते थे। शैवदेद कोटि शिव की आराधना करते थे। शाक्त शक्ति की आराधना करते थे। और सौर सूर्य की आराधना करते थे। लेकिन यह सभी अलग-अलग देवताओं को मानने वाले भी एक थे जिनकी एक ही व्याख्या थी सत्य। जिसका वर्णन हमारे प्रमुख ग्रंथ ऋग्वेद ही नहीं रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रंथों में भी स्पष्ट रूप से किया गया।
प्रत्येक संप्रदाय के समर्थक अपने देवता को दूसरे संप्रदायों के देवता से बड़ा समझते थे और इस कारण से उन मे वैमनस्य बना रहता था एकता बनाए रखने के उद्देश्य धर्म गुरुओं ने लोगों को यह सिखा देना आरंभ किया कि सभी देवता समान है विष्णु शिव और शक्ति आदि देवी देवता परस्पर एक दूसरे यह भी भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाएं से तीनों संप्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति सनातन धर्म में विष्णु शिव और शक्ति को समान माना गया है और तीनों ही संप्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे सनातन धर्म का सारा साहित्य वेद पुरान श्रुति स्मृतियां उपनिषद रामायण महाभारत गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है और उस पर आधारित है।
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); ऐसा कहा जाता है कि जब कालांतर में मुगलों द्वारा संस्कृत भाषा जिसे देव भाषा कहते हैं उसका ह्रास होने लगा और और सनातन धर्म की अवनति होने लगी तब विद्वान संत कालिदास जी ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की रचना की और धार्मिक साहित्य की रचना कर सनातन धर्म की रक्षा की। जहां संत कालिदास आज के आधुनिक धर्म और जातिवाद के अनुसार छोटी जाति से थे।
जब ब्रिटिश शासन को ईसाई मुस्लिम आदि धर्मों के मानने वालों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए जनगणना करने की आवश्यकता पड़ी तो सनातन सब से उपस्थित होने के कारण उन्होंने यहां के धर्म का नाम सनातन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म रख दिया
सनातन धर्म के स्वरूप
सनातन धर्म में आधुनिक और सम सामयिक चुनौतियों का सामना करने के लिए इसमें समय-समय पर अनेक बदलाव होते रहे जो बदलाव उन महापुरुषों के द्वारा किया गया जो कि सत्य सनातन धर्म की प्रबल सिपाही थे रक्षक थे उन में अग्रणी नाम है राजा राममोहन राय स्वामी दयानंद सरस्वती स्वामी विवेकानंद। जिन्होंने अन्य धर्मो के समावेश जो सनातन संस्कृति में घुल मिल गए थे जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, जैसे सुविधाजनक परंपरागत कुरीतियों से जिसका समर्थन सनातन धर्म कभी नहीं करता है उन कुरीतियों को दूर किए।
साथ ही साथ उन महान आत्माओं में धर्मशास्त्र में मौजूद उन स्लोको मंत्रों को क्षेपक कहा और उसे प्याज घोषित कर दियाजिसके कारण कई पुरानी परंपराओं क��� पुनरुद्धार किया गया जैसे विधवा विवाह स्त्री शिक्षा इत्यादि। जबकि आज सनातन का पर्याय हिंदू है वर्षिक बौद्ध जैन धर्मावलंबी भी अपने आप को सनातनी कहते हैं क्योंकि बुध भी अपने को सनातनी कहते थे। सनातन धर्म के अंखियों को देखते हुए कई बार इसे कठिन धर्म माना जाता है जबकि ऐसा है नहीं। सच्चाई ऐसी नहीं होने के कारण फिर भी इस कितने आयाम इतने पहलू हैं कि लोग बाग कई बार इसे लेकर भ्रमित हो जाते हैं ।
सबसे बड़ा कारण इसका यह है कि सनातन धर्म किसी एक दार्शनिक किसी एक एबीसी के विचारों की उपज नहीं है और ना ही यह किसी खास समय में पैदा हुआ है और ना ही यह किसी खास संप्रदाय या खास जाति के द्वारा पैदा किया गया है। सनातन धर्म का प्रभाव अनादि काल से अनवरत बह रहा है और यह प्रभाव मान और विकास मान है जिसके कारण सनातन धर्म किसी एक दृष्टा सिद्धांत या तर्क को भी बड़ियता नहीं देता है
सनातन धर्म और विज्ञान मार्ग
आधुनिक विश्व का विज्ञान भी सनातन धर्म का अनुसरण करता है और इसकी बताए हुए सिद्धांतों पर चलकर अपनी खोज करता है। जबकि वही विज्ञान सनातन सत्य को पकड़ने में अभी तक नाकामयाब रहा है। स्वामी विवेकानंद के द्वारा दिए गए व्याख्यान में जो वेदांत में सत्य सनातन धर्म की महिमा को उल्लेखित किया गया है अब आधुनिक भारत और विश्व का विज्ञान भी धीरे-धीरे उससे सहमत हो रहा है। जिसे हमारे ऋषि-मुनियों ने अपने ध्यानऔर मोक्ष की अवस्था में ब्रह्म ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को स्पष्ट तौर पर व्यक्त किया और उसके बारे में बताया विज्ञान आज उसका अनुसरण कर रहा है। क्योंकि वेदों में ही सर्वप्रथम ब्रह्म और ब्रह्मांड के रहस्य पर से पर्दा हटा कर मोक्ष की धारणा को प्रतिपादित कर उसके महत्व को समझाया गया था मोक्ष के बगैर आत्मा की कोई गति नहीं इसलिए ऋषि यों ने मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है।
बंधुओं इसलिए मैं जब भी देखता हूं तो अपने सत्य सनातन धर्म को देखता हूं अपने वेदों को देखता हूं अपने पुराणों को देखता हूं अपने उपनिषदों को देखता हूं ना कि आज के वर्तमान हिंदू धर्म जो कि अलग आओ सिखाता है द्वेष सिखाता है जहां प्रेम का कोई मोल नहीं है यह कोई प्रेम का भाव नहीं है
अंत में मैं भगवान श्री कृष्ण की एक उपदेश के साथ इस पोस्ट को खत्म करना चाहूंगा। भगवान सच्चिदानंद श्री कृष्ण कहते हैं "मैं किसी के भाग को नहीं बनाता हूं, हर कोई अपना भाग्य खुद बनाता है, तुम आज जो कर रहे हो उसका फल अपने कल प्राप्त होगा, और आज जो तुम्हारा भाग्य है वह तुम्हारे पहले किए गए कर्मों का फल है।"
बस इससे ज्यादा और कुछ नहीं आप जो बोओगे वही फसल पैदा होगी और आपको उसी को काटना भी है । हो सकता है आप उस समय तक नहीं रहे इस पृथ्वी पर आपके बच्चे जरूर रहेंगे। ��ैसला आपको करना है कि आप प्रेम बोल रहे हो या घृणा बोल रहे हो। चाहे वह धर्म के नाम पर हो या आपसी जातिवाद के नाम पर ।
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रविदास मन्दिर तोड़े जाने के खिलाफ प्रदर्शन
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श्रीगंगानगर, 13 अगस्त (वार्ता) नई दिल्ली में गत दिनों रविदास मन्दिर तोड़े जाने के विरोध में राजस्थान में गंगानगर जिले के सिख संगठनों और दलितों ने आक्रोश जताते हुए आज प्रदर्शन किया। श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय पर रविदासनगर में स्थित रविदास मन्दिर से रोष जुलूस निकाला गया। इसमें भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज तथा अखिल भारतीय सफाई मजदूर यूनियन, सिखों के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि भी इसमें शामिल हुए। शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए जुलूस जिला कलक्ट्रेट पहुंचा। जुलूस में शामिल लोगों ने मन्दिर तोड़े जाने की साजिश रचे जाने के आरोप लगाते हुए दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। जुलूस में नगरपरिषद के पूर्व सभापति जगदीश जांदू, बंटी वाल्मीकि, हरबंस वाल्मीकि, यशपाल कलेर, साथी यशपाल, गुरप्रीत सिंह, प्रेम भाटिया आदि बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। गोल बाजार के गांधी चौक में आमसभा की गई, जिसमें वक्ताओं ने इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की। जुलूस में बाबा दीपसिंह गुरुद्वारा सेवा समिति के तेजेन्द्रपाल सिंह टिम्मा, पूर्व पार्षद मनिन्दर सिंह मान, बाबा दीपसिंह गुरुद्वारा के प्रधान हरप्रीत सिंह बबलू आदि भी शामिल रहे। जिले के पदमपुर, केसरीसिंहपुर, श्रीकरणपुर, रायसिंहनगर और सादुलशहर आदि कस्बों में भी धरने-प्रदर्शन किये जाने के समाचार मिले हैं।
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LIVEDISTRICTNEWS भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज द्वारा एक बैठक का आयोजन
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Valmiki Dharma Society performed | वाल्मीकि धर्म समाज ने किया प्रदर्शन चंडीगढ़7 घंटे पहले कॉपी लिंक भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज के सदस्यों ने वीरवार को सेक्टर-29 के ट्रिब्यून चौक पर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र चौधरी ने कहा कि हाथरस में एक दलित बेटी के साथ जो हुआ, वह बेहद निंदनीय है।
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सच क्या है?.
ब्राह्मण: मिथक एवं तथ्य ***************** सर्वप्रथम में मनुष्य हूँ,तत्पश्चात हिन्दू और फिर ब्राह्मण! जिनको ब्राह्मणों से आपत्ति है वे इसे ध्यान से पढें। आधुनिक इतिहासकार,भांड मीडिया,अधकचरे वक्ता हमें सिखाते हैं कि भारत के ब्राह्मण सदा से दलितों का शोषण करते आये हैं जो घृणित वर्ण-व्यवस्था के प्रवर्तक भी हैं। ब्राह्मण-विरोध का यह काम पिछले दो शतकों में कार्यान्वित किया गया। वे कहते हैं कि ब्राह्मणों ने कभी किसी अन्य जाति के लोगों को पढने लिखने का अवसर नहीं दिया। बड़े बड़े विश्वविद्यालयों के बड़े बड़े शोधकर्ता यह सिद्ध करने में लगे रहते हैं कि ब्राह्मण सदा से समाज का शोषण करते आये हैं और आज भी कर रहे हैं, कि उन्होंने हिन्दू ग्रन्थों की रचना केवल इसीलिए की कि वे समाज में अपना स्थान सबसे ऊपर घोषित कर सकें…किंतु यह सारे तर्क खोखले और बेमानी हैं, इनके पीछे एक भी ऐतिहासिक प्रमाण नहीं। एक झूठ को सौ बार बोला जाए तो वह अंततः सत्य प्रतीत होने लगता, इसी भांति इस झूठ को भी आधुनिक भारत में सत्य का स्थान मिल चुका है। आइये आज हम बिना किसी पूर्व प्रभाव के और बिना किसी पक्षपात के न्याय बुद्धि से इसके बारे सोचे, सत्य घटनायों पर टिके हुए सत्य को देखें। क्योंकि अपने विचार हमें सत्य के आधार पर ह��� खड़े करने चाहियें, न कि किसी दूसरे के कहने मात्र से। खुले दिमाग से सोचने से आप पायेंगे कि ९५ % ब्राह्मण सरल हैं, सज्जन हैं, निर्दोष हैं। आश्चर्य है कि कैसे समय के साथ साथ काल्पनिक कहानियाँ भी सत्य का रूप धारण कर लेती हैं। यह जानने के लिए बहुत अधिक सोचने की आवश्यकता नहीं कि ब्राह्मण-विरोधी यह विचारधारा विधर्मी घुसपैठियों, साम्राज्यवादियों, ईसाई मिशनरियों और बेईमान नेताओं के द्वारा बनाई गयी और आरोपित की गयी,ताकि वे भारत के समाज के टुकड़े टुकड़े करके उसे आराम से लूट सकें। सच तो यह है कि इतिहास के किसी भी काल में ब्राह्मण न तो धनवान थे और न ही शक्तिशाली। ब्राह्मण भारत के समुराई नहीं है। वन का प्रत्येक जन्तु मृग का शिकार करना चाहता है, उसे खा जाना चाहता है, और भारत का ब्राह्मण वह मृग है। आज के ब्राह्मण की वह स्थिति है जो कि नाजियों के राज्य में यहूदियों की थी। क्या यह स्थिति स्वीकार्य है? ब्राह्मणों की इस दुर्दशा से किसी को भी सरोकार नहीं, जो राजनीतिक दल हिन्दू समर्थक माने गए हैं, उन्हें भी नहीं;सब ने हम ब्राह्मणों के साथ सिर्फ छलावा ही किया है। ब्राह्मण सदा से निर्धन वर्ग में रहे हैं! क्या आप ऐसा एक भी उदाहरण दे सकते हैं जब ब्राह्मणों ने पूरे भारत पर शासन किया हो?? शुंग,कण्व ,सातवाहन आदि द्वारा किया गया शासन सभी विजातियों और विधर्मियों को क्यूं कचोटता है? चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता की थी एक अखण्ड भारत की स्थापना करने में। भारत का सम्राट बनने के बाद, चन्द्रगुप्त ,चाणक्य के चरणों में गिर गया और उसने उसे अपना राजगुरु बनकर महलों की सुविधाएँ भोगते हुए, अपने पास बने रहने को कहा। चाणक्य का उत्तर था: ‘मैं तो ब्राह्मण हूँ, मेरा कर्म है शिष्यों को शिक्षा देना और भिक्षा से जीवनयापन करना। क्या आप किसी भी इतिहास अथवा पुराण में धनवान ब्राह्मण का एक भी उदाहरण बता सकते हैं? श्री कृष्ण की कथा में भी निर्धन ब्राह्मण सुदामा ही प्रसिद्ध है। संयोगवश, श्रीकृष्ण जो कि भारत के सबसे प्रिय आराध्य देव हैं, यादव-वंश के थे, जो कि आजकल OBC के अंतर्गत आरक्षित जाति मानी गयी है। यदि ब्राह्मण वैसे ही घमंडी थे जैसे कि उन्हें बताया जाता है, तो यह कैसे सम्भव है कि उन्होंने अपने से नीची जातियों के व्यक्तियों को भगवान् की उपाधि दी और उनकी अर्चना पूजा की स्वीकृति भी?(उस सन्दर्भ में यदि ईश्वर ब्राह्मण की कृति हैं जैसा की कुछ मूर्ख कहते हैं) देवों के देव ��हादेव शिव को पुराणों के अनुसार किराट जाति का कहा गया है, जो कि आधुनिक व्यवस्था में ST की श्रेणी में पाए जाते हैं । दूसरों का शोषण करने के लिए शक्तिशाली स्थान की, अधिकार-सम्पन्न पदवी की आवश्यकता होती है। जबकि ब्राह्मणों का काम रहा है या तो मन्दिरों में पुजारी का और या धार्मिक कार्य में पुरोहित का और या एक वेतनहीन गुरु(अध्यापक) का। उनके धनार्जन का एकमात्र साधन रहा है भिक्षाटन। क्या ये सब बहुत ऊंची पदवियां हैं? इन स्थानों पर रहते हुए वे कैसे दूसरे वर्गों का शोषण करने में समर्थ हो सकते हैं? एक और शब्द जो हर कथा कहानी की पुस्तक में पाया जाता है वह है – ‘निर्धन ब्राह्मण’ जो कि उनका एक गुण माना गया है। समाज में सबसे माननीय स्थान संन्यासी ब्राह्मणों का था, और उनके जीवनयापन का साधन भिक्षा ही थी। (कुछ विक्षेप अवश्य हो सकते हैं, किंतु हम यहाँ साधारण ब्राह्मण की बात कर रहे हैं।) ब्राह्मणों से यही अपेक्षा की जाती रही कि वे अपनी जरूरतें कम से कम रखें और अपना जीवन ज्ञान की आराधना में अर्पित करें। इस बारे में एक अमरीकी लेखक आलविन टाफलर ने भी कहा है कि ‘हिंदुत्व में निर्धनता को एक शील माना गया है।’ सत्य तो यह है कि शोषण वही कर सकता है जो समृद्ध हो और जिसके पास अधिकार हों अब्राह्मण को पढने से किसी ने नहीं रोका। श्रीकृष्ण यदुवंशी थे, उनकी शिक्षा गुरु संदीपनी के आश्रम में हुई, श्रीराम क्षत्रिय थे उनकी शिक्षा पहले ऋषि वशिष्ठ के यहाँ और फिर ऋषि विश्वामित्र के पास हुई। बल्कि ब्राह्मण का तो काम ही था सबको शिक्षा प्रदान करना। हां यह अवश्य है कि दिन-रात अध्ययन व अभ्यास के कारण, वे सबसे अधिक ज्ञानी माने गए, और ज्ञानी होने के कारण प्रभावशाली और आदरणीय भी। इसके कारण कुछ अन्य वर्ग उनसे जलने लगे, किंतु इसमें भी उनका क्या दोष यदि विद्या केवल ब्राह्मणों की पूंजी रही होती तो वाल्मीकि जी रामायण कैसे लिखते और तिरुवलुवर तिरुकुरल कैसे लिखते? और अब्राह्मण संतो द्वारा रचित इतना सारा भक्ति-साहित्य कहाँ से आता? जिन ऋषि व्यास ने महाभारत की रचना की वे भी एक मछुआरन माँ के पुत्र थे। इन सब उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि ब्राह्मणों ने कभी भी विद्या देने से मना नहीं किया। जिनकी शिक्षायें हिन्दू धर्म में सर्वोच्च मानी गयी हैं, उनके नाम और जाति यदि देखी जाए, तो वशिष्ठ, वाल्मीकि, कृष्ण, राम, बुद्ध, महावीर, कबीरदास, विवेकानंद आदि, इनमें कोई भी ब्राह्मण नहीं। तो फिर ब्राह्मणों के ज्ञान और विद्या पर एकाधिकार का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता! यह केवल ��क झूठी भ्रान्ति है जिसे गलत तत्वों ने अपने फायदे के लिए फैलाया, और इतना फैलाया कि सब इसे सत्य मानने लगे। जिन दो पुस्तकों में वर्ण(जाति नहीं) व्यवस्था का वर्णन आता है उनमें पहली तो है मनुस्मृति जिसके रचियता थे मनु जो कि एक क्षत्रिय थे, और दूसरी है श्रीमदभगवदगीता जिसके रचियता थे व्यास जो कि निम्न वर्ग की मछुआरन के पुत्र थे। यदि इन दोनों ने ब्राह्मण को उच्च स्थान दिया तो केवल उसके ज्ञान एवं शील के कारण, किसी ���्वार्थ के कारण नहीं। ब्राह्मण तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध हैं। पुरातन काल में जब कभी भी उन पर कोई विपदा आई, उन्होंने शस्त्र नहीं उठाया, क्षत्रियों से सहायता माँगी। बेचारे असहाय ब्राह्मणों को अरब आक्रमणकारियों ने काट डाला, उन्हें गोवा में पुर्तगालियों ने cross पर चढ़ा कर मारा, उन्हें अंग्रेज missionary लोगों ने बदनाम किया, और आज अपने ही भाई-बंधु उनके शील और चरित्र पर कीचड उछल रहे हैं। इस सब पर भी क्या कहीं कोई प्रतिक्रिया दिखाई दी, क्या वे लड़े, क्या उन्होंने आन्दोलन किया? औरंगजेब ने बनारस, गंगाघाट और हरिद्वार में १५०,००० ब्राह्मणों और उनके परिवारों की ह्त्या करवाई, उसने हिन्दू ब्राह्मणों और उनके बच्चों के शीश-मुंडो की इतनी ऊंची मीनार खडी की जो कि दस मील से दिखाई देती थी, उसने उनके जनेयुओं के ढेर लगा कर उनकी आग से अपने हाथ सेके। किसलिए, क्योंकि उन्होंने अपना धर्म छोड़ कर इस्लाम को अपनाने से मना किया। यह सब उसके इतिहास में दर्ज़ है। क्या ब्राह्मणों ने शस्त्र उठाया? फिर भी ओरंगजेब के वंशज हमें भाई मालूम होते हैं और ब्राह्मण देश के दुश्मन? यह कैसा तर्क है, कैसा सत्य है? कोंकण-गोवा में पुर्तगाल के वहशी आक्रमणकारियों ने निर्दयता से लाखों कोंकणी ब्राह्मणों की हत्या कर दी क्योंकि उन्होंने ईसाई धर्म को मानने से इनकार किया। क्या आप एक भी ऐसा उदाहरण दे सकते हो कि किसी कोंकणी ब्राह्मण ने किसी पुर्तगाली की हत्या की? फिर भी पुर्तगाल और अन्य यूरोप के देश हमें सभ्य और अनुकरणीय लगते हैं और ब्राह्मण तुच्छ! यह कैसा सत्य है? जब पुर्तगाली भारत आये, तब St. Xavier ने पुर्तगाल के राजा को पत्र लिखा “यदि ये ब्राह्मण न होते तो सारे स्थानीय जंगलियों को हम आसानी से अपने धर्म में परिवर्तित कर सकते थे।” यानि कि ब्राह्मण ही वे वर्ग थे जो कि धर्म परिवर्तन के मार्ग में बलि चढ़े। जिन्होंने ने अपना धर्म छोड़ने की अपेक्षा मर जाना बेहतर समझा। St. Xavier को ब्राह्मणों से असीम घृणा थी, क्योंकि वे उसके रास्ते का काँटा थे, हजारों की संख्या में गौड़ सारस्वत कोंकणी ब्राह्मण उसके अत्याचारों ��े तंग हो कर गोवा छोड़ गए, अपना सब कुछ गंवा कर। क्या किसी एक ने भी मुड़ कर वार किया? फिर भी St. Xavier के नाम पर आज भारत के हर नगर में स्कूल और कॉलेज है और भारतीय अपने बच्चों को वहां पढ़ाने में गर्व अनुभव करते हैं । इनके अतिरिक्त कई हज़ार सारस्वत ब्राह्मण काश्मीर और गांधार के प्रदेशों में विदेशी आक्रमणकारियों के हाथों मारे गए। आज ये प्रदेश अफगानिस्तान और पाकिस्तान कहलाते हैं, और वहां एक भी सारस्वत ब्राह्मण नहीं बचा है। क्या कोई एक घटना बता सकते हैं कि इन प्रदेशों में किसी ब्राह्मण ने किसी विदेशी की हत्या की? हत्या की छोडिये, क्या कोई भी हिंसा का काम किया? और आधुनिक समय में भी इस्लामिक आतंकवादियों ने काश्मीर घाटी के मूल निवासी ब्राह्मणों को विवश करके करके काश्मीर से बाहर निकाल दिया। ५००,००० काश्मीरी पंडित अपना घर छोड़ कर बेघर हो गए, देश के अन्य भागों में शरणार्थी हो गये, और उनमे से ५०,००० तो आज भी जम्मू और दिल्ली के बहुत ही अल्प सुविधायों वाले अवसनीय तम्बुओं में रह रहे हैं। आतंकियों ने अनगनित ब्राह्मण पुरुषों को मार डाला और उनकी स्त्रियों का शील भंग किया। क्या एक भी पंडित ने शस्त्र उठाया, क्या एक भी आतंकवादी की ह्त्या की? फिर भी आज ब्राह्मण शोषण और अत्याचार का पर्याय माना जाता है और मुसलमान आतंकवादी वह भटका हुआ इंसान जिसे क्षमा करना हम अपना धर्म समझते हैं। यह कैसा तर्क है? माननीय भीमराव अंबेडकर जो कि भारत के संविधान के तथाकथित रचियता (प्रारूप समिति के अध्यक्ष) थे, उन्होंने एक मुसलमान इतिहासकार का सन्दर्भ देकर लिखा है कि धर्म के नशे में पहला काम जो पहले अरब घुसपैठिया मोहम्मद बिन कासिम ने किया, वो था ब्राह्मणों का खतना। “किंतु उनके मना करने पर उसने सत्रह वर्ष से अधिक आयु के सभी को मौत के घाट उतार दिया।” मुग़ल काल के प्रत्येक घुसपैठ, प्रत्येक आक्रमण और प्रत्येक धर्म-परिवर्तन में लाखों की संख्या में धर्म-प्रेमी ब्राह्मण मार दिए गए। क्या आप एक भी ऐसी घटना बता सकते हो जिसमें किसी ब्राह्मण ने किसी दूसरे सम्प्रदाय के लोगों की हत्या की हो? १९वीं सदी में मेलकोट में दिवाली के दिन टीपू सुलतान की सेना ने चढाई कर दी और वहां के ८०० नागरिकों को मार डाला जो कि अधिकतर मंडयम आयंगर थे। वे सब संस्कृत के उच्च कोटि के विद्वान थे। (आज तक मेलकोट में दिवाली नहीं मनाई जाती।) इस हत्याकाण्ड के कारण यह नगर एक श्मशान बन गया। ये अहिंसावादी ब्राह्मण पूर्ण रूप से शाकाहारी थे, और सात्विक भोजन खाते थे जिसके कारण उनकी वृतियां भी सात्विक थीं और वे किसी के प्रति हिंसा के विषय में सोच भी नहीं सकते थे। उन्होंने तो अपना बचाव तक नहीं किया। फिर भी आज इस देश में टीपू सुलतान की मान्यता है। उसकी वीरता के किस्से कहे-सुने जाते हैं। और उन ब्राह्मणों को कोई स्मरण नहीं करता जो धर्म के कारण मौत के मुंह में चुपचाप चले गए। अब जानते हैं आज के ब्राह्मणों की स्थिति क्या आप जानते हैं कि बनारस के अधिकाँश रिक्शा वाले ब्राह्मण हैं? क्या आप जानते हैं कि दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर आपको ब्राह्मण कुली का काम करते हुए मिलेंगे? दिल्ली में पटेलनगर के क्षेत्र में 50 % रिक्शा वाले ब्राह्मण समुदाय के हैं। आंध्र प्रदेश में ७५ % रसोइये और घर की नौकरानियां ब्राह्मण हैं। इसी प्रकार देश के दुसरे भागों में भी ब्राह्मणों की ऐसी ही दुर्गति है, इसमें कोई शंका नहीं। गरीबी-रेखा से नीचे बसर करने वाले ब्राह्मणों का आंकड़ा ६०% है। हजारों की संख्या में ब्राह्मण युवक अमरीका आदि पाश्चात्य देशों में जाकर बसने लगे हैं क्योंकि उन्हें वहां software engineer या scientist का काम मिल जाता है। सदियों से जिस समुदाय के सदस्य अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण समाज के शिक्षक और शोधकर्ता रहे हैं, उनके लिए आज ये सब कर पाना कोई बड़ी बात नहीं। फिर भारत सरकार को उनके सामर्थ्य की आवश्यकता क्यों नहीं ? क्यों भारत में तीव्र मति की अपेक्षा मंद मति को प्राथमिकता दी जा रही है? और ऐसे में देश का विकास होगा तो कैसे? कर्नाटक प्रदेश के सरकारी आंकड़ों के अनुसार वहां के वासियों का आर्थिक चित्रण कुछ ऐसा है: ईसाई भारतीय – १५६२ रू/ वोक्कालिग जन – ९१४ रू/ मुसलमान – ७९४ रू/ पिछड़ी जातियों के जन – ६८० रू/ पिछड़ी जनजातियों के जन – ५७७ रू/ और ब्राह्मण – ५३७ रू। तमिलनाडु में रंगनाथस्वामी मन्दिर के पुजारी का मासिक वेतन ३०० रू और रोज का एक कटोरी चावल है। जबकि उसी मन्दिर के सरकारी कर्मचारियों का वेतन कम से कम २५०० रू है। ये सब ठोस तथ्य हैं लेकिन इन सब तथ्यों के होते हुए, आम आदमी की यही धारणा है कि पुजारी ‘धनवान’ और ‘शोषणकर्ता’ है, क्योंकि देश के बुद्धिजीवी वर्ग ने अनेक वर्षों तक इसी असत्य को अनेक प्रकार से चिल्ला चिल्ला कर सुनाया है। क्या हमने उन विदेशी घुसपैठियों को क्षमा नहीं किया जिन्होंने लाखों-करोड़ों हिंदुओं की हत्या की और देश को हर प्रकार से लूटा? जिनके आने से पूर्व भारत संसार का सबसे धनवान देश था और जिनके आने के बाद आज भारत पिछड़ा हुआ third world country कहलाता है। इनके दोष भूलना सम्भव है तो अहिंसावादी, ज्ञानमूर्ति, धर्मधारी ब्राह्मणों को किस बात का दोष लगते हो कब तक उन्हें दोष देते जाओगे? क्या हम भूल गए कि वे ब्राह्मण समुदाय ��ी था जिसके कारण हमारे देश का बच्चा बच्चा गुरुकुल में बिना किसी भेदभाव के समान रूप से शिक्षा पाकर एक योग्य नागरिक बनता था? क्या हम भूल गए कि ब्राह्मण ही थे जो ऋषि मुनि कहलाते थे, जिन्होंने विज्ञान को अपनी मुट्ठी में कर रखा था? भारत के स्वर्णिम युग मे��� ब्राह्मण को यथोचित सम्मान दिया जाता था और उसी से सामाज में व्यवस्था भी ठीक रहती थी। सदा से विश्व भर में जिन जिन क्षेत्रों में भारत का नाम सर्वोपरी रहा है और आज भी है वे सब ब्राह्मणों की ही देन हैं, जैसे कि अध्यात्म, योग, प्राणायाम, आयुर्वेद आदि। यदि ब्राह्मण जरा भी स्वार्थी होते तो यह सब अपने था अपने कुल के लिए ही रखते दुनिया में मुफ्त बांटने की बजाए इन की कीमत वसूलते। वेद-पुराणों के ज्ञान-विज्ञान को अपने मस्तक में धारने वाले व्यक्ति ही ब्राह्मण कहे गए और आज उनके ये सब योगदान भूल कर हम उन्हें दोष देने में लगे है। जिस ब्राह्मण ने हमें मन्त्र दिया ‘वसुधैव कुटुंबकं’ वह ब्राह्मण विभाजनवादी कैसे हो सकता है? जिस ब्राह्मण ने कहा ‘लोको सकलो सुखिनो भवन्तु’ वह किसी को दुःख कैसे पहुंचा सकता है? जो केवल अपनी नहीं , केवल परिवार, जाति, प्रांत या देश की नहीं बल्कि सकल जगत की मंगलकामना करने का उपदेश देता है, वह ब्राह्मण स्वार्थी कैसे हो सकता है? इन सब प्रश्नों को साफ़ मन से, बिना पक्षपात के विचारने की आवश्यकता है, तभी हम सही उत्तर जान पायेंगे। आज के युग में ब्राह्मण होना एक दुधारी तलवार पर चलने के समान है। यदि ब्राह्मण अयोग्य है और कुछ अच्छा कर नहीं पाता तो लोग कहते हैं कि देखो हम तो पहले ही जानते थे कि इसे इसके पुरखों के कुकर्मों का फल मिल रहा है। यदि कोई सफलता पाता है तो कहते हैं कि इनके तो सभी हमेशा से ऊंची पदवी पर बैठे हैं, इन्हें किसी प्रकार की सहायता की क्या आवश्यकता? अगर किसी ब्राह्मण से कोई अपराध हो जाए फिर तो कहने ही क्या, सब आगे पीछे के सामाजिक पतन का दोष उनके सिर पर मढने का मौका सबको मिल जाता है। कोई श्रीकांत दीक्षित भूख से मर जाता है तो कहते हैं कि बीमारी से मरा। और ब्राह्मण बेचारा इतने दशकों से अपने अपराधों की व्याख्या सुन सुन कर ग्लानि से इतना झुक चूका है कि वह कोई प्रतिक्रिया भी नहीं करता, बस चुपचाप सुनता है और अपने प्रारब्ध को स्वीकार करता है। बिना दोष के भी दोषी बना घूमता है आज का ब्राह्मण। नेताओं के स्वार्थ, समाज के आरोपों, और देशद्रोही ताकतों के षड्यंत्र का शिकार हो कर रह गया है ब्राह्मण। बहुत से ब्राह्मण अपने पूर्वजों के व्यवसाय को छोड़ चुके हैं आज। बहुत से तो संस्कारों को भी भूल चुके हैं । ��तीत से कट चुके हैं किंतु वर्तमान से उनको जोड़ने वाला कोई नहीं। – डॉक्टर वैद्य पंडित विनय कुमार उपाध्याय
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लुधियाना /भावधास के अश्वनी सहोता ने अजय चंडालिया को यूनिट प्रधान नियुक्त किया
लुधियाना /भावधास के अश्वनी सहोता ने अजय चंडालिया को यूनिट प्रधान नियुक्त किया
लुधियाना :मनोज दुबे की रिपोर्ट /भावधास के अश्वनी सहोता ने अजय चंडालिया को यूनिट प्रधान नियुक्त किया भावधास के अश्वनी सहोता ने अजय चंडालिया को यूनिट प्रधान नियुक्त किया.भारत नगर चौक कैलाश सिनेमा के अधीन पड़ते कपूर पैलेस में ��मरोह का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य मेहमान के तौर पर भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज के राष्ट्रीय सर्वोच्च निर्देशक भावधास पंजाब अश्वनी सहोता, मुख्य मेहमान के तौर शामिल हुए। इस…
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योगी राज में 50 दलित परिवारों ने त्यागा हिन्दू धर्म,500 परिवारों के साथ अपनाएंगे दूसरा धर्म
जी हा योगी सरक��र में दलित उत्पीड़न से आहत 50 परिवारों ने हिन्दू धर्म त्याग दिया। उन्होंने रामगंगा नदी में देवी मूर्ति विसर्जित कर दीं और कहा कि वह जल्द ही आस पड़ोस के जिलों के करीब 500 परिवारों के साथ दूसरा धर्म अपना लेंगे।
धर्म परिवर्तन के ऐलान की सूचना से पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया। एलआईयू की टीम ने मौके पर पहुंचकर रिपोर्ट तैयार कर उच्च अफसरों को जानकारी है।
भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज के राष्ट्रीय मुख्य संचालक लल्ला बाबू द्रविड़ के नेतृत्व में करीब 50 परिवारों के लोग जिगर कालोनी के पास रामगंगा नदी में पहुंच गए। उन्होंने हिन्दू धर्म के देवी देवतों की मूर्ति नदी में विसर्जित कर दी। लल्ला बाबू द्रविड़ ने कहा कि प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के बाद दलित समाज का उत्पीड़न किया जा रहा है।
सहारनपुर, संभल व अन्य जिलों में ऐसी घटनाएं सामने आई है। मुरादाबाद में आरटीओ दफ्तर पर बीजेपी कार्यकर्ता और पदाधिकारियों ने दलितों पर गोलियां चलाईं। इसके बाद दलितों पर ही केस दर्ज कर दिया गया है, लेकिन पुलिस ने बीजेपी नेता के खिलाफ केस दर्ज किया। बीजेपी विधायक और मंत्रियों के दबाव में दलितों का उत्पीड़न किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि अगर पुलिस ने बीजेपी नेता और कार्यकर्ताओं के खिलाफ केस दर्ज नहीं किया और दलितों पर दर्ज केस खत्म नहीं किया। उन्होंने कहा कि उनकी मांग नहीं मानी गई तो वह जल्द ही इस्लाम धर्म अपना लेंगे। इस दौरान लल्ला बाबू द्रविड़ के साथ भावाधस के जिला संयोजक विशाल सरन, सुरेश, रमेश, संजय, बाबू, सौरभ, विशाल समेत अन्य लोगों भी मौजूद रहे।
पहले सपा में रहकर की गुंदागर्दी, अब भगवा अंगोछा डालकर बन गए भाजपाई लल्ला बाबू द्रविड़ ने बताया कि जो खुद को सपाई बताकर गुंडागर्दी कर रहे थे, अब वो ही भगवा अंगोछा डालकर भाजपाई बन गए हैं। ठेकेदारी और अवैध वसूली ��ुरू कर दी गई है। दलितों को उत्पीड़न किया जा रहा है।
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