#बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र
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tezlivenews · 3 years ago
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BSF Juridiction: ममता सरकार ने केंद्र के फैसले के खिलाफ पास किया रिजोल्यूशन, सुवेंदु अधिकारी ने कहा- कुछ फर्क नहीं पड़ेगा, TMC के तस्कर डरे हैं
BSF Juridiction: ममता सरकार ने केंद्र के फैसले के खिलाफ पास किया रिजोल्यूशन, सुवेंदु अधिकारी ने कहा- कुछ फर्क नहीं पड़ेगा, TMC के तस्कर डरे हैं
हाइलाइट्स ममता बनर्जी सरकार ने किया बीएसएफ अधिकार क्षेत्र बढ़ाने के खिलाफ प्रस्ताव पास विधानसभा में प्रस्ताव पास किए जाने के बाद भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने बोला हमला चर्चा पर भी उठाए सवाल, पाकिस्तान व अफगानिस्तान के विधानसभा की चर्चा से की तुलना कोलकातापश्चिम बंगाल विधानसभा में मंगलवार को बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का दायरा बढ़ाए जाने के खिलाफ प्रस्ताव पास कर दिया गया। विधानसभा में भारतीय जनता…
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lazypenguinearthquake · 3 years ago
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अमरिंदर सिंह: केंद्र का बीएसएफ अधिकार क्षेत्र आदेश: पंजाब के मंत्री परगट ने अमरिंदर की खिंचाई की, उन्होंने पलटवार किया | इंडिया न्यूज - टाइम्स ऑफ इंडिया
अमरिंदर सिंह: केंद्र का बीएसएफ अधिकार क्षेत्र आदेश: पंजाब के मंत्री परगट ने अमरिंदर की खिंचाई की, उन्होंने पलटवार किया | इंडिया न्यूज – टाइम्स ऑफ इंडिया
चंडीगढ़ : पंजाब के मंत्री परगट सिंह गुरुवार को पूर्व मुख्यमंत्री पर निशाना साधा अमरिंदर सिंह, जिन्होंने विस्तार करने के केंद्र के फैसले के लिए अपना समर्थन आवाज उठाई बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र राज्य में, वरिष्ठ नेता पर इस कदम के पीछे एक भूमिका होने का आरोप लगाया। अमरिंदर सिंह ने मंत्री पर पलटवार करते हुए कहा कि वह और पंजाब कांग्रेस प्रमुख हैं नवजोत सिंह सिद्धू सस्ते प्रचार के लिए हास्यास्पद कहानियां…
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lok-shakti · 3 years ago
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राज्य की शक्तियों पर बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने के लिए कदम: एससी में पंजाब
राज्य की शक्तियों पर बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने के लिए कदम: एससी में पंजाब
पंजाब में कांग्रेस सरकार ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अधिकार क्षेत्र को 15 किलोमीटर से बढ़ाकर 50 किलोमीटर करने की केंद्रीय अधिसूचना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, यह कहते हुए कि यह अधिकारहीन है और संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ है। पंजाब के महाधिवक्ता डीएस पटवालिया ने द संडे एक्सप्रेस को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दायर मुकदमे को शुक्रवार को रजिस्ट्रार के…
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currentnewsss · 3 years ago
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राज्य की शक्तियों पर बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने के लिए कदम: एससी में पंजाब
राज्य की शक्तियों पर बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने के लिए कदम: एससी में पंजाब
पंजाब में कांग्रेस सरकार ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अधिकार क्षेत्र को 15 किलोमीटर से बढ़ाकर 50 किलोमीटर करने की केंद्रीय अधिसूचना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, यह कहते हुए कि यह अधिकार नहीं है और संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ है। पंजाब के महाधिवक्ता डीएस पटवालिया ने द संडे एक्सप्रेस को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दायर मुकदमे को शुक्रवार को रजिस्ट्रार के…
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insolubleworld · 3 years ago
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पंजाब सरकार ने बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने के केंद्र के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया | इंडिया न्यूज - टाइम्स ऑफ इंडिया
पंजाब सरकार ने बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने के केंद्र के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया | इंडिया न्यूज – टाइम्स ऑफ इंडिया
नई दिल्ली: पंजाब सरकार ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अधिकार क्षेत्र को राज्य में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर 50 किलोमीटर तक बढ़ाने के केंद्र के फैसले को चुनौती देते हुए शनिवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया। इस कदम का स्वागत करते हुए, पंजाब कांग्रेस प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले चरणजीत सिंह चन्नी सरकार को बधाई दी। सिद्धू ने ट्वीट किया, “मैं पंजाब और उसकी कानूनी टीम को…
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khsnews · 3 years ago
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पंजाब के फिरोजपुर में आठ पैकेट हेरोइन बरामद
पंजाब के फिरोजपुर में आठ पैकेट हेरोइन बरामद
सार पंजाब में सीमा सुरक्षा बल के अधिकार क्षेत्र के विस्तार को लेकर विवाद जारी है। इन सबके बीच बीएसएफ सीमा पार तस्करी की कोशिशों को नाकाम कर रही है. सीमा से निर्यात किया जाने वाला माल। – फोटो: ANI खबर सुनें खबर सुनें पंजाब में हेरोइन का निर्यात जारी है। फिरोजपुर सेक्टर में सीमा सुरक्षा बल ने उपनगरों से हेरोइन के 8 पैकेट बरामद किए। रात में बीएसएफ ने बाड़ के पार के खेतों में पाकिस्तानी तस्करों…
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tezlivenews · 3 years ago
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'चेकिंग के दौरान गलत तरीके से महिलाओं को छूते हैं BSF जवान', टीएमसी विधायक के आरोप पर बीएसएफ ने दिया यह जवाब
‘चेकिंग के दौरान गलत तरीके से महिलाओं को छूते हैं BSF जवान’, टीएमसी विधायक के आरोप पर बीएसएफ ने दिया यह जवाब
नई दिल्लीतृणमूल कांग्रेस के एक विधायक ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) पर तलाशी करने की आड़ में महिलाओं को अनुचित तरीके से छूने का मंगलवार को आरोप लगाया। टीएमसी विधायक के इस आरोप को खारिज करते हुए बीएसएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसे निराधार बताया। पश्चिम बंगाल विधानसभा में चर्चा के दौरान विधायक की ओर से यह आरोप लगाए गए थे।BSF का अधिकार क्षेत्र बढ़ाने के केंद्र के कदम के विरोध में एक प्रस्ताव पर पश्चिम…
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lazypenguinearthquake · 3 years ago
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ममता बनर्जी ने पीएम मोदी से की मुलाकात, बढ़ाया बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र | इंडिया न्यूज - टाइम्स ऑफ इंडिया
ममता बनर्जी ने पीएम मोदी से की मुलाकात, बढ़ाया बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र | इंडिया न्यूज – टाइम्स ऑफ इंडिया
नई दिल्ली: बंगाल सीएम ममता बनर्जी, बुधवार को दिल्ली में पीएम मोदी के साथ उनकी बैठक में, केंद्र-राज्य प्रशासनिक और राजनीतिक मुद्दों की मेजबानी की और उन्हें अगले साल के बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने “स्वीकार” किया है। बैठक के बाद, तृणमूल प्रमुख ने कहा कि उन्होंने पीएम से सीमावर्ती राज्यों में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने के आदेश को वापस लेने के…
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lok-shakti · 3 years ago
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पंजाब सरकार ने बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने वाली केंद्रीय अधिसूचना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
पंजाब सरकार ने बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने वाली केंद्रीय अधिसूचना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
पंजाब में कांग्रेस सरकार ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अधिकार क्षेत्र को 15 से 50 किमी तक बढ़ाने वाली केंद्रीय अधिसूचना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और कहा है कि यह संविधान के विरुद्ध है और संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ है। पंजाब के महाधिवक्ता डीएस पटवालिया ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दायर मुकदमे को शुक्रवार को रजिस्ट्रार के समक्ष…
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abhay121996-blog · 4 years ago
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राज्यपाल धनखड़ ने ममता पर साधा निशाना, कहा-कोई भी संविधान से ऊपर नहीं Divya Sandesh
#Divyasandesh
राज्यपाल धनखड़ ने ममता पर साधा निशाना, कहा-कोई भी संविधान से ऊपर नहीं
कोलकाता| पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्यपाल जगदीप धनखड़ से राज्य सरकार की सिफारिशों के अनुसार अपनी यात्रा को सीमित करने के लिए कहा तो धनखड़ ने मुख्यमंत्री और सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने उन्हें याद दिलाया कि कोई भी संविधान से ऊपर नहीं है और राज्यपाल जैसा संवैधानिक पद प्रशासन अधीन नहीं आता। धनखड़ ने गुरुवार को बीएसएफ के हेलीकॉप्टर से कूचबहार में उतरने के बाद कहा, “मुख्यमंत्री ने मुझे क्या लिख��? यही कि मुझे राज्य की सिफारिशों का पालन करना होगा। इससे राज्यपाल का पद प्रशासन के अधीन आ जाएगा।” राज्यपाल ने सवाल किया, “राज्यपाल केवल राज्य द्वारा अनुशंसित स्थानों पर जाएंगे। क्या भारत के संविधान को सरकार के प्रशासनिक निर्णयों के अंतर्गत आना चाहिए?” राज्यपाल की यह प्रतिक्रिया ममता बनर्जी द्वारा बुधवार को उन्हें पत्र लिखे जाने के बाद आई है। ममता ने लिखा था कि राज्यपाल को किसी भी स्थान की यात्रा करने के संबंध में अचानक और एकतरफा फैसला नहीं लेना चाहिए। उन्हें सरकार द्वारा की गई सिफारिशों पर अमल करना चाहिए। मुख्यमंत्री ने यह भी लिखा था : “राज्यपाल द्वारा जिलों में स्थानों का दौरा करने का कार्यक्रम राज्यपाल के सचिव किसी निजी पार्टी या सरकारी संस्थान की सिफारिश पर तय करते हैं। उससे पहले वह सरकार और डिवीजन के कमिश्नर और जिलाधिकारी से परामर्श लेते हैं। सचिव ही समग्र कार्यक्रम के उचित निष्पादन के प्रभारी होते हैं।”
मुख्यमंत्री ने उन्हें राज्य सरकार की सिफारिश के बिना कूचबिहार नहीं जाने के लिए भी कहा था। ममता ने लिखा था, “मुझे सोशल मीडिया से पता चला है कि आप 13-5-2021 को कूचबिहार जिले के लिए एकतरफा कार्यवाही कर रहे हैं और दुख की बात है कि मुझे लगता है कि कई दशकों से विकसित हो रहे लंबे समय के मानदंडों का उल्लंघन हो रहा है। इसलिए, मैं उम्मीद करती हूं कि आप प्रोटोकॉल के सुस्थापित नियमों का पालन करेंगे, जैसा कि ऊपर कहा गया है, और क्षेत्र के दौरे के संबंध में अचानक निर्णय लेने से बचेंगे।” चुनाव के बाद की हिंसा की स्थिति का जायजा लेने के लिए कूचबिहार पहुंचने के बाद राज्यपाल ने कहा, “चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव था। कहीं कोई समस्या नहीं थी। केवल बंगाल में रक्तपात क्यों हुआ? जिन लोगों ने एक पार्टी के पक्ष में अपना समर्थन नहीं दिया, उनके अधिकार कुचल डाले गए। उन्हें इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।” राज्यपाल ने राज्य में हुई हिंसा के लिए मुख्यमंत्री को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा, “यह सब तब शुरू हुआ, जब ममता ने कहा कि केंद्रीय बल हमेशा के लिए नहीं रहेंगे और मुझे दुख हुआ, जब मैंने देखा कि चुनाव के दौरान वह कानून और संविधान और कानून की अनदेखी करने के लिए कह रही थीं और कहा था कि कानून 2 मई से शुरू होगा।”
यह खबर भी पढ़ें: यहां पर प्रारंभ हुआ जानवरों के लिए पहले कोविड वैक्सीन का उत्पादन
धनखड़ ने चुनाव के बाद की हिंसा के संबंध में राज्य सरकार को क्लीन चिट देने के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय की भी आलोचना की। उन्होंने कहा, “मैंने मीडिया में यह नैरेटिव पेश होते देखा कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने सरकार को क्लीन चिट दी है। मैंने ऐसा कहीं नहीं देखा है। मैंने इसकी जांच की है।” हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि राज्यपाल ने संविधान की अनदेखी की है। तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “राज्यपाल ने सभी हदें पार कर दी हैं। मैं उनसे संविधान को पढ़ने के लिए कहूंगा, जिसमें यह विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि राज्यपाल को राज्य सरकार की सिफारिशों और सुझावों पर काम करना चाहिए।”–आईएएनएस
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insolubleworld · 3 years ago
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ममता बनर्जी कल करेंगी पीएम से मुलाकात, बीएसएफ, केंद्रीय कोष पर चर्चा की संभावना
ममता बनर्जी कल करेंगी पीएम से मुलाकात, बीएसएफ, केंद्रीय कोष पर चर्चा की संभावना
टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी 25 नवंबर तक राष्ट्रीय राजधानी के दौरे पर हैं। नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कल दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगी. उनसे सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अधिकार क्षेत्र में विस्तार और पश्चिम बंगाल के लिए केंद्रीय धन के आवंटन के मुद्दे पर चर्चा करने की उम्मीद है। वह त्रिपुरा में राजनीतिक हिंसा का मुद्दा भी उठा सकती हैं। तृणमूल कांग्रेस…
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jmyusuf · 6 years ago
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विकास के पैमाने पर कहां खड़े हैं पूर्वांचल के मुस्लिम?
'मेरी एक आंख गंगा मेरी एक आंख जमुना, मेरा दिल ख़ुद एक संगम जिसे पूजना हो आए.' नज़ीर बनारसी के इस शेर में ख़ूबसूरत अहसास है उत्तर प्रदेश के पूर्वांचली शहरों के मिज़ाज का. लेकिन इधर कुछ बरसों में ऐसा क्या हुआ है कि इस गंगा-जमुनी तहज़ीब के संगम की एक लहर को अलहदगी का अहसास होने लगा है. क्यों उस लहर को महसूस होने लगा है कि उसे संगम से जुदा करके नदी के किनारों पर धकेलने की कोशिश की जा रही है. इस बदलती तस्वीर और अहसास के पीछे वजह सिर्फ़ और सिर्फ़ सियासत को माना जा रहा है. ऐसी सियासत जिसने धर्म के साथ घुल कर उससे आध्यात्मिकता छीन कर समाज में सांप्रदायिकता का रंग घोल दिया है. सियासत के इसी रंग को समझने के लिये हमने रुख़ किया उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की इन मुस्लिम बस्तियों का. यहां के रहने वाले 2019 के आम चुनाव के आख़िरी तीन चरणों में अपना वोट डालने जा रहे हैं. लेकिन क्या इन मुस्लिम मतदाताओं का वोट उनके मर्ज़ी के उम्मीदवार को संसद भेज पाएगा? क्या इन मतदाताओं के वोट के अधिकार में इतनी ताक़त है, जो इनक�� मांगों को पूरा करवा सके? और क्या है इनकी मांगें? कुछ इन्हीं सवालों के साथ हमने पूर्वांचल के मुस्लिम मतदाताओं से बातचीत की. पूर्वांचल में लोकसभा की 29 सीटे हैं. जिनमें अमेठी, फ़ैज़ाबाद, सुल्तानपुर, गोंडा, कैसरगंज, श्रावस्ती, बहराइच, इलाहाबाद, फूलपुर, प्रतापगढ़, मछलीशहर, जौनपुर, अंबेडकर नगर, बस्ती, डोमरियागंज, मिर्ज़ापुर, वाराणसी, चंदौली, बलिया, ग़ाज़ीपुर, सलेमपुर, घोसी, आज़मगढ़, बांसगांव, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, लालगंज और संत कबीर नगर शामिल हैं. 2014 के आम चुनाव में पूर्वांचल की 29 सीटों में 27 बीजेपी के खाते में गईं. दो सीटों में अमेठी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जीते तो आज़मगढ़ से समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने जीत दर्ज की. जंग इस बार भी पूर्वांचल में दिलचस्प है. यहां की चार सीटों पर देश भर की ख़ास निगाह रहेगी. वाराणसी से ख़ुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उम्मीदवार हैं. अमेठी से राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं और आज़मगढ़ से समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव मैदान में हैं. इन तीन सीटों के अलावा गोरखपुर की सीट भी नज़रों में इसलिये भी होगी क्योंकि ये सीट 1991 से बीजेपी के पास रही है. लगातार 6 बार ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां से चुनाव जीतते आए हैं. लेकिन उनके मुख्यमंत्री पद संभालते ही ये सीट साल 2018 के उपचुनाव में बीजेपी के हाथ से निकल कर समाजवादी पार्टी के खाते में चली गई. देखना ये है कि बीजेपी गोरखपुर सीट फिर हासिल कर पाती है या नहीं. या योगी आदित्यनाथ ब्रैंड की राजनीति को इस बार फिर हार का मुंह देखना पड़ेगा. योगी आदित्यनाथ अल्पसंख्यकों को लेकर किये गए अपने कमेंट्स के लिये भी विवादों में रहे हैं. उनकी ध्रुवीकरण की राजनीति बीजेपी के नारे सबका साथ सबका विकास को महज़ एक जुमले में तब्दील करती नज़र आती है. इससे लोकतंत्र में जश्न माना जाने वाला चुनाव. जंग सी तल्खियों में बदल जाता है. सच तो ये है कि इस चुनाव में भी योगी आदित्यनाथ के एक मुस्लिम उम्मीदवार को बाबर की औलाद पुकराने पर चुनाव आयोग ने जवाब तलब किया है. और योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पूर्वांचल के मुस्लिम मतदाता सबका साथ सबका विकास में क्या ख़ुद को भी साथ पाते हैं. सच तो ये है कि ध्रुवीकरण की राजनीति ने समाज को बांट के रख दिया है. वो भी अलग अलग वोट बैंक की सूरत में. देश की सियासत का ये वो पहलू है, जो सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों को कहीं किनारे कर देता है. और चुनाव मुद्दों नहीं जातीय सम���करण पर जीतने की कोशिश होती है. पूर्वांचल में मुस्लिम मतदाताओं के लिये भी मुद्दा बेरोज़गारी, महंगाई, शिक्षा और कृषि संकट है. साथ ही बनारस से लेकर भदोही. मऊ से लेकर आज़मगढ़, मिर्ज़ापुर, चंदौली तक बहुत बड़ी तादाद में मुस्लिम बुनकर हैं. इनके आर्थिक हालात दिन ब दिन ख़स्ता होते जा रहे हैं. ख़ास तौर से नोटबंदी के बाद. लेकिन राजनीति की कसौटी पर बंटते समाज में मुस्लिम मतदाता का वोट आर्थिक सुरक्षा से ज़्यादा अपनी ख़ुद की सुरक्षा के लिये जाता है. सच तो ये है कि पूर्वांचल की ज़यादातर लोकसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की तादाद बहुत ज़्यादा नहीं है. तो आइये इस नज़रिये से पड़ताल करते हैं, पूर्वांचल के अलग अलग संसदीय क्षेत्र का. सोशल मीडिया पर किसी ने अपने दर्द को कुछ इस तरह बयां किया कि तमाम टीस इन चंद लफ्ज़ों में उभर कर आ गई. आज़मगढ़ का जो मुसलमान 2014 तक आतंकी होने के दाग से जूझ रहा था. वो अब नई दिक्कत से सुलग रहा है. ये नई दिक्कत है राष्ट्रवाद की. जिसके नाम पर मुसलमानों पर बिना पूछे ही लांछन लगा दिया जाता है. आज़मगढ़ में एक बड़ी पुरानी और मशहूर कहावत है. भल मरल, भल पीलूवा पड़ल. इस भोजपुरी कहावत का मतलब है. किसी काम को करने के बाद फौरन उसका नतीजा भी आ जाना. ज़ाहिर है जो तोहमत आज़मगढ़ पर लगा दी गई है, उसे मिटने में थोड़ा वक्त तो लगेगा ही. और आज़मगढिया लोग इस तोहमत का बदला अपने मत को इस्तेमाल कर ले रहे हैं. 2014 में जब यूपी की तमाम सीटें मोदी के तूफान में बह रही थीं. तब भी यहां कमल नहीं खिल पाया और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने 63 हज़ार वोटों से बीजेपी के रमाकांत यादव को हराया. हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अगर मुलायम सिंह यादव को 36 फीसदी वोट और बीजेपी के रमाकांत यादव को 29 फीसदी वोट मिले तो बीएसपी के उम्मीदवार शाह आलम भी 28 फीसदी वोट बटोरने में कामयाब रहे. अगर एसपी और बीएसपी के वोट प्रतिशत को मिला लें तो 64 फीसदी होते हैं. जो बीजेपी उम्मीदवार के मुकाबले 35 फीसदी ज़्यादा है. और अब तो मोदी की लहर भी वैसी नहीं रही. जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 16 फीसदी मुसलमानों के अलावा 35 फीसदी यादव जबकि करीब 2.5 लाख शाक्य वोटर हैं. यही वजह है कि यहां इस बार भी समाजवादी पार्टी को जीत की पूरी उम्मीद है. ये पूर्वांचल है साहब. यहां हर ढहाई कोस पर ज़बान ही नहीं बदलती. बल्कि इलाके का माईं बाप भी बदल जा���ा है. आज़मगढ़ से निकलेंगे तो चंद किलोमीटर में मऊ शुरू हो जाएगा. जो घोसी लोकसभा क्षेत्र में आता है. यहां मुख्तार अंसारी के आदमकद पोस्टर आपको बिना बोले ये समझा देंगे कि संभलकर चलना है. क्योंकि ये मुख्तार का इलाका है. यहां हिंदू मुसलमान समीकरण नहीं चलता. यहां सिर्फ मुख्तार का हुक्म चलता है. पिछले 3 दशक से भी ज़्यादा वक्त से यहां के अकेले विधायक हैं मुख्तार अंसारी. पिछले लोकसभा चुनाव को छोड़ दें तो यहां की घोसी लोकसभा सीट से जीतता भी वही है जिस पर अंसारी का हाथ होता है. कहते हैं इस बार सपा-बसपा गठबंधन का समीकरण बदला हुआ नज़र आ रहा है. ये सीट बीएसपी के खाते में आई है जिसने अतुल राय को यहां से उतारा है. खबर है कि अतुल राय को मुख्तार अंसारी का साथ मिल गया है. जो इस बार हरिनारायण राजभर का मुकाबला करेंगे. आज़ादी के बाद पहली बार इस सीट से कोई बीजेपी कैंडिडेट जीता था. वरना यहां डीएमवाई यानी दलित, मुसलमान, यादव का झुकाव समाजवादी और बीएसपी की तरफ ही रहता है. कांग्रेस भी यहां आखिरी बार साल 1991 में चुनाव जीती थी. इस बार गठबंधन मुस्लिमों और अपने परंपरागत वोट बैंक को गोलबंद कर रहा है. मुस्लिम वोट पूर्वांचल के लिए कितना अहम है. इसका अहसास बीएसपी और एसपी के नेता बार बार करा रहे हैं. घोसी सीट की तरह पूर्वांचल की गाज़ीपुर सीट पर भी अंसारी का दबदबा है. ये सीट भी गबंधन के तहत बीएसपी के हिस्से में आई है, जिसने यहां से मुख्तार अंसारी के भाई अफज़ाल अंसारी को चुनावी मैदान में उतारा है. यहां मुख्तार अंसारी के दबदबे के अलावा गठबंधन सीट होने के नाते 10 फीसदी मुसलमानों और दलित यादव वोट मिलकर बीजेपी नेता मनोज सिन्हा का खेल बिगाड़ सकते हैं. गाज़ीपुर सीट के बाद बारी आती है चंदौली लोकसभा सीट की. जहां मुसलमानों की आबादी करीब 11 फीसदी है. और यहां भी कहा जा रहा है कि मुसलमान जिधर झुकेगा जीत उसी की होगी. हालांकि बीजेपी के महेंद्र नाथ पांडे के मुकाबले में यहां समाजवादी पार्टी ने डॉ संजय चौहान को टिकट दिया गया है. इन्ही दोनों के बीच मुख्य मुकाबला है जबकि पिछली बार के सांसद बीजेपी नेता महेंद्रनाथ पांडे की बात करें तो वो सिर्फ इसलिए जीते क्योंकि करीब 4 लाख 60 हज़ार वोट एसपी और बीएसपी कैंडिडेट में बंट गए. इसलिए जीत बीजेपी के हिस्से में आ गई. हालांकि इस बार मामला अलग है क्योंकि एसपी-बीएसपी इस बार यहां से एक साथ मिलकर दम लगा रहे हैं. यहां का 11 फीसदी मुसलमान भी इस बार एसपी कैंडिडेट डॉ संजय चौहान के साथ नज़र आ रहा है. चंदौली की सीमा से लगी हुई मौजूदा वक्त में देश की सबसे वीवीआईपी लोकसभा सीट है वाराणसी. प्रियंका गांधी ने काशी से लड़ने की इच्छा जताकर यहां के चुनाव में तड़का लगा दिया था. फिर मोदी के सामने समाजवादी पार्टी ने पूर्व बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव को उतारा. मगर उनकी उम्मीदवारी भी कैंसिल कर दी गई. तो गठबंधन की शालिनी यादव को टिकट दिया गया. वहीं कांग्रेस ने 2014 के अपने पुराने उम्मीदवार अजय राय को ही मैदान में उतारा है. मगर काशी में अब मोदी का मुकाबला गठबंधन या कांग्रेस से नहीं बल्कि ��िर्दलीय उम्मीदवार अतीक अहमद से है. जो भौकाल राजा भैय्या का कुंडा में है. मुख्तार अंसारी का गाज़ीपुर में है. वही भौकाल इलाहाबाद से लेकर बनारस तक अतीक अहमद का है. जो इस बार जेल से ही मोदी को चुनाती दे रहे हैं. बनारस में ऐसी ही एक कोशिश मुख्तार अंसारी भी 2009 में कर चुके हैं. जब वो महज़ 17 हज़ार वोटों से डॉ मुरली मनोहर जोशी से मैदान हार गए थे. जबकि तब एसपी, कांग्रेस और अपना दल ने मिलकर करीब ढाई लाख वोट झटक लिए थे. मौजूदा वक्त में तेज बहादुर की दावेदारी खत्म होने के बाद अतीक अहमद ही मोदी के मुख्य प्रतिद्वंदी माने जा रहे हैं. जो 3 लाख मुस्लिमों, करीब दो लाख यादवों और एक लाख दलितों से वोटों की उम्मीद लगाए बैठें हैं. ये कुल वोट 6 लाख होते हैं जबकि मोदी को पिछली दफा 5 लाख 81 हज़ार वोट मिले थे. हालांकि बनारस में कोई उलटफेर हो ऐसा मुमकिन नजर नहीं आता. पूर्वांचल के नक्शे पर बनारस के आसपास की बाकी सीटों मसलन बदोही, मछलीशहर, लालगंज, बलिया, रॉबर्ट्सगंज, सलेमपुर और जौनपुर जैसी सीटें हैं. जहां मुस्लिम या तो 10 फीसदी से कम हैं या उससे थोड़ा सा ज़्यादा. मगर गठबंधन की वजह से यहां उभरे एमवाईडी यानी मुसलमान. यादव और दलित कंबिनेशन कमाल करने की फिराक में है. जबकि पूर्वांचल के बाकी इलाकों में श्रावस्ती, संत कबीर नगर, अंबेडकर नगर, सुल्तानपुर, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया और प्रतापगढ में मुसलमान निर्णायक भूमिका में हैं. मगर इन तमाम ज़िलों में एक अनकही रज़ामंदी इस बात की है कि मुसलमान मिलकर उसी कैंडीडेट को वोट करेगा जो बीजेपी को हराने की हैसियत रखता हो. अब आइये बनारस के बाद पूर्वांचल की दो अहम सीट का गणित समझते हैं. सबसे पहले बात योगी के गढ़ गोरखपुर की जहां 1989 से लेकर 2017 तक पहले महंत अवैद्यनाथ और फिर योगी आदित्यनाथ जीतते आए हैं. मगर साल 2018 में एसपी-बीएसपी गठबंधन की यही प्रयोगशाला बनी. जिसने करीब 30 साल बाद बीजेपी से ये सीट हथिया ली. मुसलमान यहां महज़ 9 फीसदी हैं, मगर उनके वोट किस्मत बना भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं. आपके मन में सवाल उठ सकता है कि अब तक तो योगी को कोई हरा नहीं सका था तो फिर मुसलमान वोटों की अहमियत क्या. मगर आपको बता दें कि यहां वोट बीजेपी को नहीं बल्कि गोरखनाथ मठ के ऊपर पड़ता है. और योगी की गोरखपुर के मुसलमानों के बीच पैठ भी है. मगर पिछले साल हुए चुनाव ने ये साबित कर दिया कि वोट ना बंटें तो योगी को भी हराया जा सकता है. वाराणसी और गोरखपुर के बाद पूर्वांचल की सबसे अहम सीट इलाहाबाद है. वाराणसी से चुनाव लड़ने से पहले 96 से लेकर 99 तक डॉ मुरली मनोहर जोशी यहां से लगातार तीन चुनावों में जीते मगर 2004 में रेवती रमन सिंह ने उनसे ये सीट छीन ली. मगर 2014 की मोदी लहर में उन्हें भी ये सीट गंवानी पड़ी. इस बार बीजेपी को अपनी सीट बचानी है. हालांकि मुमकिन है कि उसे कुंभ के सफल आयोजन का फायदा मिले. कांग्रेस से बीजेपी में गईं और पिलहाल यूपी में मंत्री रीता बहुगुणा जोशी यहां से उम्मीदवार हैं. जातीय समीकरण की बात करें तो सवा लाख यादव, 2 लाख मुस्लिम, और ढाई लाख दलित वोट है यहां. इलाहाबाद की बात हो और फूलपुर की बात ना हो तो सियासत बुरा मान जाएगी. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की लोकसभा सीट. जहां सत्तर साल के इतिहास में एक से एक दिग्गजों ने अपनी किस्मत आज़माई है. एसपी और बीएसपी के गठबंधन की प्रयोगशाला में ये सीट भी शामिल थी. जिसने केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद ये सीट बीजेपी से छीन ली. इस बार यहां बीजेपी और गठबंधन के अलावा कांग्रेस भी मुकाबले में हैं. इस सीट का जातीय समीकरण बताता है कि यहां का ढाई लाख मुस्लिम वोटर जिसकी तरफ भी एक एकमुश्त होकर चला गए जीत उसी की होगी. ज़्यादातर पूर्वांचल संसदीय क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता 9 से 20 फीसदी के आसपास हैं. सबसे ज़्यादा 40 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता बहराइच में है. लेकिन यहां से भी बीजेपी की सावित्री बाई फुले चुनाव जीती थीं. जो इस बार फिर बहराइच से ही कांग्रेस के टिकट पर क़िस्मत आज़मा रही हैं. तो एक सच्चाई ये है कि मुस्लिम मतदाता अपने दम पर नहीं लेकिन एमवाईडी कॉम्बिनेशन का हिस्सा बन कर चुनावी नतीजों पर असर डाल सकते हैं. मुस्लिम, यादव, दलित जिन चुनावी क्षेत्रों में 60 फ़ीसदी से ज़्यादा है, वो हैं आज़मगढ़, घोसी, डुमरियागंज, जौनपुर, अंबेडकर नगर, भदोही. 50 से 60 परसेंट एमवाईडी अमेठी में है और 40 से 50 प्रतिशत वाराणसी में.
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lok-shakti · 3 years ago
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सीमावर्ती राज्यों में जनसांख्यिकीय संतुलन बिगड़ा: 50 किलोमीटर के नियम पर बीएसएफ डीजी
सीमावर्ती राज्यों में जनसांख्यिकीय संतुलन बिगड़ा: 50 किलोमीटर के नियम पर बीएसएफ डीजी
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lazypenguinearthquake · 3 years ago
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