#बिहार में तालाबंदी जारी है
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बिहार में 16 दिन के लिए बढ़ा तालाबंदी
बिहार में 16 दिन के लिए बढ़ा तालाबंदी
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हृषिकेश सिंह द्वारा संपादित | नवभारताइम्स.कॉम | अपडेट किया गया: 29 जुलाई 2020, 02:52:00 अपराह्न आईएसटी
हाइलाइट्स
बिहार में फिर से लॉकडाउन बढ़ा
बिहार में अब 16 अगस्त तक लॉकडाउन रहेगा
राज्य सरकार ने आदेश जारी किया
कोरोना की नस की हालत के कारण बढ़ी हुई लॉकडाउन है
पटना: बिहार में सक्रिय तरीके से फैलते जा रहे कोरोना के मद्देनजर सरकार ने राज्य में लॉकडाउन को बढ़ा दिया है। राज्य सरकार ने नए…
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#कोविड -19#बिहार#बिहार कोरोना#बिहार ��ालाबंदी का विस्तार#बिहार न्यूज#बिहार में तालाबंदी#बिहार में तालाबंदी जारी है#बिहार में लॉकडाउन बढ़ा#बिहार लॉकडाउन
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पटना पुलिस लॉकडाउन तोड़ने के पहले दिन गिर गई, पटना पुलिस ने लॉकडाउन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वालों पर आरोप लगाया
पटना पुलिस लॉकडाउन तोड़ने के पहले दिन गिर गई, पटना पुलिस ने लॉकडाउन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वालों पर आरोप लगाया
पटना में डाक बंगला, कोतवाली और गंगी मैदान की सड़कों पर चलते समय दर्जनों लोगों को लाठियों से पीटा गया। बिहार लॉकडाउन उल्लंघन: कोरोना के बढ़ते माम���े के कारण बिहार में 5 से 15 मई तक पूर्ण तालाबंदी की गई है। बुधवार को कई जगहों से लॉकडाउन उल्लंघन की तस्वीरें सामने आईं। पटना। बिहार सरकार के आदेश से बिहार में 15 मई तक तालाबंदी जारी रहेगी और आज तालाबंदी का पहला दिन है। सभी वाहनों को रोका और चेक किया जा…
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Sharad Yadav : To Fight Corona Disease State Government Did Not Take Appropriate Stepsकोरोना बीमारी से जंग के लिए नहीं उठे उचित कदम : शरद यादव बिहार में लगातार कोरोना के मामलों की वृद्धि को लेकर देश के दिग्गज नेता शरद यादव ने सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने आज प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि राज्य सरकार इस बीमारी से लड़ने के लिए उचित कदम उठाने में बेहद विफल हुई है। बिहार सरकार ने कोरोना को हल्के में लिया, जिससे मामले प्रतिदिन दुगने होने लगे हैं जो बहुत ही चिंताजनक है। राज्य में टेस्टिंग भी जितनी होनी चाहिए नहीं हो रही हैं तो सही पता कैसे लगेगा कि कितने लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं। जितना आंकड़ा सरकार द्वारा बताया जा रहा है उस पर विश्वास नहीं कर सकते हैं क्योंकि जितने टेस्ट होने चाहिए नहीं किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा अचानक तालाबंदी के बाद किसी भी मामले को चाहे वह प्रदासी मजदूरों का हो या छात्रों का हो कुशलता से नहीं संभाला है। जो क्वारंटाइन केंद्र भी बनाए थे, उनमें भी आवश्यक सुविधाए उपलब्ध नहीं कराई गई थी। इस तरह से राज्य सरकार ने शुरू से ही कोरोना बीमारी के लिए उठाने वाले कदमों में ढिलाई बरती ,है जो निंदनीय है। सरकार का काम जनता के जन जीवन आवश्यक सुविधाएं प्रदान करना होता है जिससे जनता सुखी जीवन व्यतीत कर सके मगर बिहार सरकार की इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई पड़ती है। श्री यादव ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि बिहार सरकार को काफी समय तैयारी का भी मिल गया था, उसके बावजूद भी कोई ऐसा काम नहीं किया, जिससे की जनता को बीमारी से बचाया जा सके। नीतीश सरकार को बिल्कुल भी जनता के वोट की चिंता नहीं है जैसे कि जनता उनके हाथ में है। बिहार राज्य में 13 करोड़ की जनसंख्या है उसपर प्रतिदिन 9-10 हजार टेस्ट किए जा रहे हैं जबकि दिल्ली में जनसंख्या कुल 2 करोड़ है और यहां पर 20 हजार टेस्ट किए जा रहे हैं। यह बढुत गंभीर बात है कि एनडीए की सरकार केन्द्र और राज्य में होते हुए भी जनता को बीमारी से बचाने के लिए कोई राज्य में ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। दिन प्रतिदिन बिहार में हालात बिगड़ते जा रहे हैं मगर सरकार ठीक आंकड़े जनता को बता नहीं रही है जो और भी जनता के हित के खिलाफ काम करने जैसा है क्योंकि जनता इतनी सतर्क नहीं होगी जितना होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि एनडीए सरकार बिहार में हर मोर्चे पर विफल हो रही है। आम जनता के हित का कोई भी मामला हो कानून व्यवस्था से लेकर, महिलाओं की सुरक्षा, सफाई व्यवस्था, बाढ़, नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना, कोई भी मामला उठा लें किसी में भी जनता को राहत नहीं दे पारही है और इसलिए ऐसी सरकार को बने रहने का कोई मतलब नहीं है। अभी के लिए राज्य सरकार को टेस्टिंग बहुत ज्यादा करनी चाहिए और बीमारी का इलाज करने के लिए ज्यादा से ज्यादा केन्द्र बनाने चाहिए।
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Coronavirus: 1.45 Lakh Cases In India So Far, 4,167 Deaths कोरोनावायरस इंडिया: देश की वसूली दर आज सुबह 41.60 प्रतिशत रही। नई दिल्ली: पिछले 24 घंटों में घातक वायरस संक्रमण के लिए 6,535 लोगों के परीक्षण के बाद कोरोनोवायरस मामलों की देशव्यापी रैली 1.45 लाख को पार कर गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश में कुल मामले 1,45,380 हैं, जिनमें 4,167 मौतें शामिल हैं। जबकि महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और दिल्ली ने बुरी तरह से सकारात्मक मामलों की रिपोर्ट जारी की, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों ने अपने COVID-19 मामलों को देखा। प्रधानमंत्री न���ेंद्र मोदी द्वारा देशव्यापी ��ालाबंदी की घोषणा किए जाने के दो महीने बाद भारत में मामलों की संख्या में वृद्धि, सरकार द्वारा छूट के बीच हुई। …
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कोरोना पर मोदी सरकार का बड़ा ऐलान- मृतकों के परिजनों को 4-4 लाख का मुआवजा
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कोरोना पर मोदी सरकार का बड़ा ऐलान- मृतकों के परिजनों को 4-4 लाख का मुआवजा
13 राज्यों में स्कूल-कॉलेज बंद
10 पॉजिटिव मामले से हड़कंप
कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने शनिवार को बड़ा ऐलान किया. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि कोरोना वायरस के चलते अगर किसी की मौत होती है तो उसके परिजनों को 4 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर दिया जाएगा. इसके साथ ही कोरोना वायरस के रिलीफ ऑपरेशन में लगे कर्मचारियों की मौत पर भी सरकार की ओर से इतनी सहायता राशि दी जाएगी. इससे पहले सरकार ने कोविड-19 को सूचीबद्ध आपदा घोषित कर दिया था. इसके तहत अब स्टेट डिजास्टर रेस्पॉन्स फंड से पीड़ितों को सहायता प्रदान की जाएगी.
बता दें, भारत में कोरोना वायरस बहुत तेजी से पैर पसार रहा है. महाराष्ट्र में 2 नए मामले सामने आने के साथ देश में अब तक 85 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही 13 राज्यों में स्कूल-कॉलेज बंद किए गए हैं, ताकि यह बीमारी और आगे न बढ़े. देश में 24 घंटे में कोरोना के 10 पॉजिटिव मामले आने से हड़कंप है. देश में कोरोना से दूसरी मौत राजधानी दिल्ली में हुई है. विदेश से लौटे बेटे से बुजुर्ग महिला में वायरस का संक्रमण हुआ जो पहले से डायबिटिज और हाइपर टेंशन की पीड़ित थी.
Home Ministry: Rs 4 lakh will be paid as ex-gratia to the family of the person who will lose their life due to #Coronavirus, including those involved in relief operations or associated in response activities. https://t.co/duQCN1yVP7
— ANI (@ANI) March 14, 2020
दिल्ली में कोरोना वायरस को महामारी घोषित किया गया है. इस महामारी का ��र और खौफ भी दिखने लगा है. बाजार से रौनक गायब है, दुकानें खुली हैं, लेकिन खरीदार नदारद हैं. दिल्ली ही नहीं देश के दूसरे शहरों का हाल भी ऐसा ही है. कोरोना के बचाव में महाराष्ट्र में सख्त कदम उठाए हैं और जिम, थिएटर, गार्डेन बंद कर दिए हैं. कोरोना वायरस के संदिग्ध लक्षण दिखने पर नागपुर के 5 मरीजों को मायो हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है. उधर गुजरात के वडोदरा में रेलवे की तरफ से आइसोलेशन वार्ड बनाया गया है. वहां पोस्टर के जरिए लोगों को जागरूकता फैलाने की कोशिश की जा रही है. मुंबई में नेवी ने 19 क्वारंटीन कैंप बनाए हैं, जिसमें शुक्रवार को ईरान से लौटे 44 लोगों को भर्ती कराया गया.
ये भी पढ़ें: ट्रेनों में भी कोरोना वायरस का डर, एसी कोच से हटाए जाएंगे कंबल
कोरोना वायरस को देखते हुए कई राज्य सरकारों ने एहतियाती कदम उठाए हैं. यूपी के गौतमबुद्ध नगर में शनिवार से स्कूल 22 मार्च तक बंद रहेंगे. ऐसे ही बिहार में 31 मार्च तक बंद स्कूल-कॉलेज बंद किए गए हैं. कोरोना के खतरे से सिनेमाघरों में भी तालाबंदी है. पंजाब के स्कूलों में भी 31 मार्च तक छुट्टी कर दी गई, लेकिन तय वक्त पर ही परीक्षाएं होंगी. दूसरी ओर इटली में मरने वालों की संख्या 1266 हो गई है. शुक्रवार को एक दिन में सबसे ज्यादा 250 लोगों की हुई मौत की खबर है. इसे देखते हुए एयर इंडिया ने इटली, दक्षिण कोरिया, कुवैत की उड़ानें रद्द कर दी हैं. यह पाबंदी 30 अप्रैल तक जारी रहेगी. चीन में हालात संभलने की खबरों के बीच WHO ने कहा है कि अब यूरोप कोरोना की महामारी का केंद्र बन गया है.
ये भी पढ़ें: देश में कोरोना वायरस के 73 मरीजों का इलाज जारी, 10 हुए ठीक, 2 की मौत
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बड़ी खबर : इस राज्य में 6 सितंबर तक लॉकडाउन लागू एक लाख का आंकड़ा पार
बड़ी खबर : इस राज्य में 6 सितंबर तक लॉकडाउन लागू एक लाख का आंकड़ा पार #lockdown #corona #coronavirus #health #danger #bihar #india
पूरे देश में कोरोना महामारी का कहर जारी है। अकेले बिहार में कोरोना के रोगियों की संख्या एक लाख से अधिक हो गई है। इसलिए, राज्य सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए लॉकडाउन अवधि बढ़ा दी है। नीतीश सरकार द्वारा जारी आदेश के अनुसार, अब राज्य में 6 सितंबर तक तालाबंदी जारी रहेगी।
सरकारी नौकरियां यहाँ देख सकते हैं :-
सरकारी नौकरी करने के लिए बंपर मौका 8वीं 10वीं 12वीं पास कर सकते हैं आवेदन
इससे…
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#कोरोना के बढ़ते मामलों#कोरोना महामारी#देश में कोरोना महामारी#नीतीश कुमार सरकार#बिहार में 6 सितंबर तक लॉकडाउन#बिहार में कोरोना#राज्य सरकार#रात का कर्फ्यू#लॉकडाउन#सक्रिय मामलों की संख्या
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बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पीएम मोदी से कहा तालाबंदी 31 मई तक जारी रहनी चाहिए और ट्रेन नहीं होनी चाहिए - पीएम मोदी बोले नीतीश कुमार
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पीएम मोदी से कहा तालाबंदी 31 मई तक जारी रहनी चाहिए और ट्रेन नहीं होनी चाहिए – पीएम मोदी बोले नीतीश कुमार
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राज्यों के मुख्य सचिवों से कोरोना और लॉकडाउन के मुद्दे पर चर्चा की। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई इस बातचीत में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीएम मोदी से लॉकडाउन को इस महीने की आखिर तक बढ़ाने की अपील की है। नीतीश ने कहा है कि इससे बिहार में आने वाले लोगों को संभालने में सहूलियत होगी। इसके साथ ही उन्होंने सलाह दी है कि वर्तमान में ट्रेनों…
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विगत 17 फरवरी से सात सूत्री मांगों को लेकर जारी हड़ताल और आन्दोलन की आगामी रणनीति को लेकर बिहार पंचायत-नगर प्रारंभिक शिक्षक संघ राज्य इकाई ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से प्रदेश अध्यक्ष आनंद कौशल की अध्यक्षता और प्रदेश उपाध्यक्ष पंकज कुमार सिंह के संचालन में रविवार को बैठक हुई। इसमें 35 जिला के अध्यक्ष और महासचिव ने एक सुर में कहा कि जबतक सरकार सात सूत्री मांगों पर वार्ता नहीं करती है तब तक हड़ताल जारी रह���गा। जानकारी देते हुए संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष पंकज कुमार सिंह ने कहा कि विगत 17 फरवरी से बिहार के 74 हजार स्कूलों में तालाबंदी कर 4 लाख प्रारंभिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षक बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर हड़ताल में है। श्री सिंह ने कहा कि आक्रोश मार्च के लिए हड़ताली शिक्षकों की तैयारी चल रही है। 28 अप्रैल को होने वाली बैठक में यह निर्णय लिया जाएगा कि किस तरह से आंदोलन सफल किया जाएगा। आंदोलन के माध्यम से से अगर सरकार नहीं सुनती है, तो सूबे के लाखों हड़ताली शिक्षक आमरण अनशन और जेल भरो अभियान चलाएंगे। इसके लिए भी तैयारी चल रही है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में प्रदेश महासचिव रामचन्द्र राय, प्रदेश सचिव बिपीन बिहारी भारती, प्रदेश कोषाध्यक्ष प्रशांत कुमार, प्रदेश उपसचिव सुप्रिया कुमारी, प्रदेश मीडिया प्रभारी एजाजुल हक, प्रदेश प्रवक्ता मुस्तफा आजाद सहित 35 जिला के जिलाध्यक्ष और मह���सचिव शामिल थे।
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वीसी में रणनीति तय करते शिक्षक।
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SSC: मांगों को लेकर छात्रों ने अर्धनग्न होकर किया प्रदर्शन (Half-naked performance)
SSC: मांगों को लेकर छात्रों ने अर्धनग्न होकर किया प्रदर्शन (Half-naked performance)
कर्मचारी चयन आयोग (SSC) से हुई भर्तियों की सीबीआइ जांच मांग रहे प्रतियोगियों ने रविवार को अर्धनग्न होकर अपना विरोध जताया। आयोग के मध्य क्षेत्रीय कार्यालय (Central Regional Office of the Commission) के बाहर आंदोलन जारी रखते हुए कहा है कि राज्य और केंद्र सरकार तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं अब उन्हें जवाब का इंतजार है। इलाहाबाद के लाउदर रोड पर स्थित एसएससी के मध्य क्षेत्र कार्यालय के बाहर अभ्यर्थी पिछले सप्ताह से ही डटे हैं। इनमें यूपी ही नहीं बिहार के रहने वाले युवा भी हैं। कार्यालय गेट पर तालाबंदी, इसके बाद प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को अपनी मांग संबंधित पोस्टकार्ड भेज चुके हजारों अभ्यर्थियों ने रविवार शाम अर्धनग्न होकर (Half-naked performance) अपना विरोध जताया। अब तक कोई जवाब नहीं आया : अभ्यर्थियों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि तीन दिन पहले अपर जिलाधिकारी के माध्यम से ज्ञापन सीएम और पीएम को भेजने के बाद अब तक कोई जवाब नहीं आया है। न ही यह आश्वासन मिला है कि 2013 से अब तक हुई सभी भर्तियों की सीबीआइ जांच कराई जाएगी।
आयोग के मध्य क्षेत्र कार्यालय के बाहर यूपी-बिहार के छात्रों का आंदोलन जारी
(UP-Bihar students protest outside the Central Zone office of the Commission)
भर्तियों की सीबीआइ से जांच कराने सहित कीं कई मांगेंजितेंद्र सिंह से इस्तीफा की मांग अभी भी ��ायम एसएससी (SSC) के चेयरमैन अशीम खुराना को पद से तत्काल हटाते हुए निलंबित करने, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह से भी इस्तीफा लिए जाने की मांग कायम है।1..तो खाना पीना भी छोड़ देंगे1 प्रतियोगियों के प्रतिनिधि मंडल का कहना है कि उनकी मांगों पर विचार नहीं किया गया तो आंदोलन स्थल पर खाना पीना भी छोड़ देंगे। वहीं जिला प्रशासन की बेरुखी पर प्रतियोगियों में आक्रोश पनपने लगा है।
Read full post at: http://www.cnnworldnews.info/2018/03/ssc-half-naked-performance.html
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स्प्रिंग लॉकडाउन नियम: लॉकडाउन में निजी ड्राइव करने के लिए ई-पास आवश्यक है, इस तरह से आवेदन करें
स्प्रिंग लॉकडाउन नियम: लॉकडाउन में निजी ड्राइव करने के लिए ई-पास आवश्यक है, इस तरह से आवेदन करें
पटना कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए, बिहार में 5 से 15 मई तक तालाबंदी की घोषणा की गई है। सरकार ने कई प्रतिबंध भी लगाए हैं, जिन्हें अगले दस दिनों तक लागू करना होगा। इस दौरान, आपके लिए यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि कौन से वाहन सड़क पर होंगे और क्या करना चाहिए। बिहार सरकार द्वारा ड्राइविंग आदेश जारी किया गया है। सरकारी आदेश के अनुसार, सार्वजनिक परिवहन, स्वास्थ्य सेवा वाहन, आवश्यक सेवाओं वाले…
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लॉकिंग की मांग कर रहे नेताओं के खिलाफ हड़ताल पर गए जेडीयू सांसद लाल सिंह ने तेजस्वी को बताया कि अनपढ़ नेता बिल में छिपा हुआ था।
लॉकिंग की मांग कर रहे नेताओं के खिलाफ हड़ताल पर गए जेडीयू सांसद लाल सिंह ने तेजस्वी को बताया कि अनपढ़ नेता बिल में छिपा हुआ था।
जदयू सांसद ललन सिंह ने तेजस्वी यादव पर निशाना साधा बिहार न्यूज़: जदयू सांसद लाल सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कोरोना के मामलों की दैनिक समीक्षा करते हैं। अगर राज्य में तालाबंदी की आवश्यकता होती है, तो मुख्यमंत्री खुद फैसला करेंगे। पटना बिहार में, जहां कोरोना कहर बरपा रहा है, संकट के इस समय में भी राजनीति अपनी गति से जारी है। अगर विपक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा रात्रि कर्फ्यू की…
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Sharad Yadav : To Fight Corona Disease State Government Did Not Take Appropriate Stepsकोरोना बीमारी से जंग के लिए नहीं उठे उचित कदम : शरद यादव बिहार में लगातार कोरोना के मामलों की वृद्धि को लेकर देश के दिग्गज नेता शरद यादव ने सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने आज प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि राज्य सरकार इस बीमारी से लड़ने के लिए उचित कदम उठाने में बेहद विफल हुई है। बिहार सरकार ने कोरोना को हल्के में लिया, जिससे मामले प्रतिदिन दुगने होने लगे हैं जो बहुत ही चिंताजनक है। राज्य में टेस्टिंग भी जितनी होनी चाहिए नहीं हो रही हैं तो सही पता कैसे लगेगा कि कितने लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं। जितना आंकड़ा सरकार द्वारा बताया जा रहा है उस पर विश्वास नहीं कर सकते हैं क्योंकि जितने टेस्ट होने चाहिए नहीं किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा अचानक तालाबंदी के बाद किसी भी मामले को चाहे वह प्रदासी मजदूरों का हो या छात्रों का हो कुशलता से नहीं संभाला है। जो क्वारंटाइन केंद्र भी बनाए थे, उनमें भी आवश्यक सुविधाए उपलब्ध नहीं कराई गई थी। इस तरह से राज्य सरकार ने शुरू से ही कोरोना बीमारी के लिए उठाने वाले कदमों में ढिलाई बरती ,है जो निंदनीय है। सरकार का काम जनता के जन जीवन आवश्यक सुविधाएं प्रदान करना होता है जिससे जनता सुखी जीवन व्यतीत कर सके मगर बिहार सरकार की इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई पड़ती है। श्री यादव ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि बिहार सरकार को काफी समय तैयारी का भी मिल गया था, उसके बावजूद भी कोई ऐसा काम नहीं किया, जिससे की जनता को बीमारी से बचाया जा सके। नीतीश सरकार को बिल्कुल भी जनता के वोट की चिंता नहीं है जैसे कि जनता उनके हाथ में है। बिहार राज्य में 13 करोड़ की जनसंख्या है उसपर प्रतिदिन 9-10 हजार टेस्ट किए जा रहे हैं जबकि दिल्ली में जनसंख्या कुल 2 करोड़ है और यहां पर 20 हजार टेस्ट किए जा रहे हैं। यह बढुत गंभीर बात है कि एनडीए की सरकार केन्द्र और राज्य में होते हुए भी जनता को बीमारी से बचाने के लिए कोई राज्य में ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। दिन प्रतिदिन बिहार में हालात बिगड़ते जा रहे हैं मगर सरकार ठीक आंकड़े जनता को बता नहीं रही है जो और भी जनता के हित के खिलाफ काम करने जैसा है क्योंकि जनता इतनी सतर्क नहीं होगी जितना होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि एनडीए सरकार बिहार में हर मोर्चे पर विफल हो रही है। आम जनता के हित का कोई भी मामला हो कानून व्यवस्था से लेकर, महिलाओं की सुरक्षा, सफाई व्यवस्था, बाढ़, नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना, कोई भी मामला उठा लें किसी में भी जनता को राहत नहीं दे पारही है और इसलिए ऐसी सरकार को बने रहने का कोई मतलब नहीं है। अभी के लिए राज्य सरकार को टेस्टिंग बहुत ज्यादा करनी चाहिए और बीमारी का इलाज करने के लिए ज्यादा से ज्यादा केन्द्र बनाने चाहिए।
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एक अप्रत्याशित घटित होता है और आप विचलित हो उठते हैं। जब संभलते हैं तो उसका निहितार्थ ढूंढने की कवायद शुरू हो जाती है। 19 अप्रैल को गृह मंत्रालय ने हर राज्य के भीतर तालाबंदी के वक्त अपने घर से दूर किसी सरकारी शेल्टर में रह रहे मजदूरों के लिए एक एस.ओ.पी. (स्टैन्डर्ड ऑपरेटिंग सिस्टम) जारी किया। यह उन मजदूरों के लिए किसी वज्रपात से कम साबित नहीं होगा जो बड़ी मासूमियत से भूख, थकावट, ऊब और पैसे की घोर किल्लत के बीच किसी तरह इस उम्मीद पर दिन काट रहे थे कि कब तालाबंदी खत्म हो और वे अपने घर-परिवार के पास लौट जाएं और इसमें सरकार उनकी मदद करेगी।
चूंकि 20 अप्रैल से कन्टेनमेंट जोनों के बाहर औद्योगिक, मैन्युफैक्चरिंग, निर्माण, कृषि और मनरेगा की गतिविधियां शुरू करने की अनुमति दे दी गई है, ऐसे में नए एसओपी के अनुसार इन ‘फंसे’ हुए मजदूरों को काम में लगाया जा सकता है। इस सिलसिले में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के भीतर इन मजदूरों के आवागमन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए हैं। सरल शब्दों में कहें तो इस दिशा-निर्देश में मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
ये दिशा-निर्देश उन मजदूरों पर लागू होते हैं जो अपने गृह राज्य या केंद्र शासित क्षेत्र में ‘फंसे’ हुए हैं और किसी सरकारी सहायता केंद्र या शेल्टर में रह रहे हैं। ऐसे मजदूरों का स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा पंजीक���ण किया जाए और उनके कौशल की समीक्षा करके पता लगाया जाए कि कौन मजदूर किस प्रकार के काम के लिए उपयुक्त हैं।
यदि मजदूरों का कोई समूह, शेल्टर से निकल कर अपने गृह राज्य के भीतर काम पर लौटना चाहता है तो उसे काम की जगह पर पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी, बशर्ते स्क्रीनिंग में उनमें कोरोना के कोई लक्षण न पाए जाएं।
बस की यात्रा के दौरान सुरक्षित सामाजिक दूरी रखी जाएगी और इस्तेमाल से पूर्व बसों को कोरोना जीवाणु से मुक्त किया जाएगा।
स्थानीय प्राधिकारी यात्रा के क्रम में उनके भोजन आदि का प्रबंध करेंगे।
सरकारी दिशा-निर्देश जो सवाल छोड़ रहे हैं
यह दिशा-निर्देश जितना कुछ कहता है, उससे ज्यादा सवाल छोड़ जाता है। एक साधारण सा सवाल यह कि जो मजदूर लॉकडाउन खत्म होने तक सहायता केन्द्रों या शेल्टरों में रुकना चाहते हैं, उन पर काम पर लौटने का दबाव तो नहीं बनाया जाएगा? अगर उनको काम के जगहों तक पहुंचाया जा सकता है तो जो काम पर लौटने की जगह उसी राज्य के भीतर अपने घर जाना चाहते हैं, उन्हें घर क्यों नहीं पहुंचाया जा सकता?
सवाल तो यह भी कम महत्व का नहीं है कि अंतर्राज्यीय मजदूरों के बारे में कोई दिशा-निर्देश क्यों नहीं? इसमें राज्य की सीमा क्यों महत्वपूर्ण है? आखिर दिल्ली जैसे राज्य की सीमा का क्या मतलब है? या छोटे-छोटे राज्यों या अंतर-प्रादेशिक सीमाओं पर ‘फंसे’ मजदूरों पर राज्य की सीमा की बंदिश का क्या मतलब है? और यह सवाल भी कि छोटे राज्यों या अंतर-प्रादेशिक सीमाओं पर रुके मजदूरों को लौटने में मदद क्यों नहीं की जा सकती?
ये सवाल दो कारणों से खासतौर से महत्वपूर्ण हैं। पहला सवाल जो पहले भी पूछा जा चुका है फिर भी इसे बार-बार पूछा जाना चाहिए, वह यह कि जब शुरूआती दौर में संक्रमण की दर बहुत कम थी, तब लॉकडाउन की घोषणा और उसे लागू करने के बीच दो-तीन दिनों का समय देकर मजदूरों को उनके घरों (राज्य के भीतर और बाहर भी) तक पहुंचाने की व्यवस्था क्यों नहीं की गई? भारतीय राज्य इतना करने की सक्षमता जरूर रखता है। इससे प्रवासी श्रमिकों और छात्रों की पीड़ा और तकलीफों में बड़ी राहत मिल सकती थी।
चलिए, इस सवाल को ज्यादा तूल नहीं देते हैं, क्योंकि यह तो बीती बात हो गई। लेकिन यदि 3 मई को देश के बड़े भाग से लॉकडाउन खत्म हो जाए तो जिस विशाल पैमाने पर प्रवासी लौटने की कोशिश करेंगे क्या उसका प्रबंधन करने की कहीं कोई तैयारी होती दिख रही है? कितनी ट्रेनें, कहां-कहां से, कितने लोगों को लेकर चलेंगी? सारे लोगों की स्टेशन पर स्क्रीनिंग कैसे होगी? स्टेशन तक लोग कैसे पहुंचेंगे? लोगों की भीड़ को स्टेशन पर कैसे संभाला जाएगा?
आखिर कहीं इसकी चर्चा होती क्यों नहीं दिखती? क���यों ऐसा लगता है कि न तो स्रोत राज्य और न ही केंद्र सरकार किसी मजदूर की वापसी के लिए इच्छुक हैं। इस महती चुनौती को लेकर कहीं कोई बेचैनी नहीं! स्रोत राज्यों में भी चर्चा नहीं कि लौटने वाले कितने हो सकते हैं, प्रमुख स्टेशनों से उन्हें जिलों तक ले जाने के लिए कितनी बसें और दूसरे वाहन लगेंगे और जिले/ब्लॉक/पंचायत में उनकी जांच और उनके क्वारंटीन के लिए किस प्रकार सम्मानपूर्ण व्यवस्था की जाएगी।
आप यदि संख्या का अनुमान लगाना चाहते हैं तो एक सिर्फ एक राज्य बिहार का आंकड़ा देख लीजिये। बिहार सरकार के अनुसार, अब तक 17 लाख 30 हजार से ज्यादा अंतर्राज्यीय प्रवासियों ने एक एप्प के माध्यम से राज्य सरकार से 1000 रूपये की सहायता राशि पाने के लिए पंजीकरण कराया है और अभी और पंजीकरण होंगे। यह भी तय है कि कई अहर्ताओं को पूरा नहीं कर पाने के कारण सभी प्रवासी पंजीकरण करा भी नहीं पाएंगे। अब इसमें से पूरे देश में फैले 10 लाख भी लौटना चाहें तो राज्य और केंद्र की सरकारें इस चकरा देने वाली संख्या के लिए कितनी तैयारी कर रही हैं? कितनी उनींदा, सहमी रातें उन्होंने काटी हैं? यदि नहीं, जो कि साफ दीखता है, तो सवाल उठेगा ही कि आखिर इनका इरादा क्या है?
श्रमिकों की घर वापसी पर संदेह
इसीलिए जब 19 अप्रैल के दिशानिर्देश आए तो यह शक पुख्ता हो गया कि सरकारों की मंशा मजदूरों की घर वापसी में बिलकुल नहीं है। अगर वे खुद से गिरते-पड़ते कुछ कर पाएं तो कर लें। इसके जो खतरे होंगे वे खुद झेलें। हां, सरकार उनको काम में लगाने में जरूर रूचि रखती है। इसमें कॉर्पोरेट जगत की भी रूचि होगी। उनका तर्क होगा कि यदि हम काम दे रहें हैं तो भूखों मरने से काम करना अच्छा ही है। प्रधान सेवक के नेतृत्व में सरकार ऐसे संकट में भी इतना बड़ा काम कर रही है- मजदूरों को याचक नहीं बनना है, राज्य के सहारे बिलकुल नहीं रहना है। उन्हें विपरीत-से-विपरीत परिस्थितियों में भी अपने श्रम के ��ल पर ही जीना (या मरना) है।
बेलआउट कॉर्पोरेट के लिए होता है। राज्यतंत्र भावनाओं से नहीं चलता। ठीक है कि प्रवासी मजदूरों ने इतने दिन दुर्दिन झेले हैं और उन्हें परिवार से मिलने, बीबी-बच्चों का मुंह देखने और दुःख-सुख सुनने-सुनाने की भावनात्मक जरूरत है, लेकिन राज्य के नीतिगत निर्णय भावनाओं की कसौटी पर नहीं लिए जाते। सत्ता का काम शासन करना, देशहित (आप चाहे तो कॉर्पोरेट हित पढ़ लें, बात तो एक ही है) में मजदूरों की मांग और आपूर्ति का संतुलन बन��ना और उच्च व कुछ हद तक मध्य-वर्ग की सुविधाओं और आकांक्षाओं को सुगम बनाना है। प्रवासी श्रमिकों के सन्दर्भ में यह यदि भविष्य की आहट है तो यह घोर चिंताजनक है।
वैसे यह दिशानिर्देश व्यवहार्यतः कैसा लागू होगा और उसके अनुभव क्या होंगे तथा खुद श्रमिकों की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी, यह कुछ समय के पश्चात् ही पता चल पाएगा। लेकिन इसी बीच कई और खतरनाक संकेत मिल रहे हैं। उदाहरण के लिए, गुजरात के चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने केंद्र सरकार से मांग की है कि किसी भी उद्योग में एक ट्रेड यूनियन की अनिवार्यता पर कम से कम एक साल के लिए रोक लगा दी जाए।
आपको याद हो कि पूर्व में उद्योगपतियों ने सर्वोच्च न्यायालय में एक पीआईएल के जरिये न्यूनतम मजदूरी देने के प्रावधान को चुनौती दी थी। इसी प्रकार, श्रम कानूनों में भारी परिवर्तन को लेकर श्रम संगठनों और केंद्र सरकार के बीच ठनी हुई है। इस पृष्ठभूमि में देखें तो 19 अप्रैल के दिशानिर्देश मोदी सरकार की संवेदनशीलता, श्रमिकों के प्रति उसके रवैये और समता के मूल्यों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता के बारे में बहुत कुछ कहते हैं। बल्कि कहने से ज्यादा खौफ पैदा करते हैं।
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