#बालू
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अवैध बालू से लदी नाव गंगा घार में डूबी, छह लापता, तलाश जारी
अवैध बालू से लदी नाव गंगा घार में डूबी, छह लापता, तलाश जारी
पटना। जिले के मनेर थाना क्षेत्र स्थित महावीर टोला के गंगा घाट पर शुक्रवार की सुबह अवैध बालू से लदी नाव डूब गई। बताया गया कि नाव में 12 से अधिक लोग सवार थे। इसमें छह लोग लापता थे। शेष को स्थानीय लोगो की मदद से सुरक्षित निकाल लिया गया है। घटना की सूचना मिलते ही मौके पर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की टीम पहुंची। पुलिस और एनडीआरएफ की टीम की मदद से लापता लोगो की तलाश जारी है।प्रारंभिक सूचना के…
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Both these words come from Sanskrit. बालू comes from वालुका meaning sand, gravel, and भालू from भल्लूक which literally means little bear as -क is a diminutive suffix in Sanskrit.
A synonym for बालू is the feminine noun रेत, which also comes from Sanskrit. This pair is an excellent example of why it is helpful to learn synonyms for Hindi words.
According to Google Search, रेत का किला is more common for a sandcastle than बालू का किला but both are used.
For quicksand, चोर बालू is only slightly more common than चोर रेत.
बलुआ पत्थर is much more common for sandstone than रेतीला पत्थर which also exist.
Oh, and I can't help mentioning how my mind was blown when I realised for the first time that Baloo from The Jungle Book is literally Bear.
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#कबीरसाहेब_की_प्रमाणित_लीला #miracles #divineplay
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श्री कृष्ण जी की नगरी द्वारिका पूरी तरह समुद्र में डूब गई थी। श्री कृष्ण जी के पैर के तलु��� में शिकारी ने धोखे से विषाक्त तीर मारा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। द्वारिका से बाहर गढ्ढा खोदकर वहां उनका अंतिम संस्कार किया। वहां वर्तमान में द्वारिकाधीश मंदिर बना है। वि. सं. 1505 ( सन् 1448 ) में परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारिका गए वहां समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी सागर में आकर मिलती थी, उसके पास एक बालू रेत के टीले ( कोठा ) पर बैठकर श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाते थे। सन् 1448 सें आज तक उस टीले को समुद्र की लहरों, ज्वारभाटे ने छुआ भी नहीं। यह कबीर कोठा द्वारिकाधीश के मंदिर के बगल में है
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कबीर परमेश्वर जी वि.सं.1505 (सन् 1448) में द्वारिका गए। समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी समुद्र में मिलती है। उसके पास बालू रेत के टीले पर बैठकर आने वाले श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाकर उपदेश देते थे। उस स्थान पर गोलाकार चबूतरा (कोठा) बना रखा है।
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इसके पहले मैंने कभी समुद्र नहीं देखा था। इस विशालकाय समंदर को, जिसकी न कोई शुरुआत है न कोई अंत है, उसे अपनी इन बाल-सुलभ आँखों से देखकर मैं निशब्द था। बालू में चहलकदमी करते हुए और आती हुईं लहरों के कोलाहल को सुनते हुए मैं सब कुछ भूल चुका था, अपनी सारी परेशानियाँ, सारी दुखद स्मृतियाँ, सारी अभिलाषाएँ! इन सारे राग द्वेष से मुक्त, मैं समुद्र के साथ एकीकृत हो चुका था, मानो उसमें विलीन हो गया हूँ, खो चुका था उस क्षण में! काश समय वहीं थम जाता ! काश मुझे असलियत में वापस न आना होता !
(📍somewhere in the Bay of Bengal)
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#कबीरपरमात्मा_के_जीवित_प्रमाण
कबीर परमेश्वर जी वि.सं. 1505 (सन 1448) में द्वारिका गए । समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी समुद्र में मिलती है।
उसके पास बालू रेत के टीले पर बैठकर आने वाले श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाकर उपदेश देते थे। उस स्थान पर गोलाकार चबूतरा (कोठा) बना रखा है।
जो आज भी प्रमाण के तौर पर विद्यमान है। कहा जाता है कि आज तक समुद्र की लहरों ने छुआ भी नहीं। समुद्र में ज्वार भाटा आता है लेकिन फिर भी लहरें ��स तरफ नहीं जाती
अधिक जानकारी के लिए पढ़ें पुस्तक सत ग्रंथों के आधार पर ज्ञान गंगा
Kabir Prakat Diwas 4 June
Kabir Prakat Diwas 4 June
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#कबीरपरमात्मा_के_जीवित_प्रमाण
वि. सं. 1505 ( सन् 1448 ) में परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारिका गए वहां समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी सागर में आकर मिलती थी, उसके पास एक बालू रेत के टीले ( कोठा ) पर बैठकर श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाते थे। सन् 1448 सें आज तक उस टीले को समुद्र की लहरों, ज्वारभाटे ने छुआ भी नहीं। यह कबीर कोठा द्वारिकाधीश के मंदिर के बगल में है।
Kabir Prakat Diwas 4 June
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#कबीरपरमात्मा_के_जीवित_प्रमाण
Kabir Prakat Diwas 4 June
🍃कबीर परमेश्वर जी वि.सं.1505 (सन् 1448) में द्वारिका गए। समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी समुद्र में मिलती है। उसके पास बालू रेत के टीले पर बैठकर आने वाले श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाकर उपदेश देते थे। उस स्थान पर गोलाकार चबूतरा (कोठा) बना रखा है। जो आज भी प्रमाण के तौर पर विद्यमान है। कहा जाता है कि आज तक समुद्र की लहरों ने छुआ भी नहीं। समुद्र में ज्वार भाटा आता है लेकिन फिर भी लहरें उस तरफ नहीं जाती।
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#कबीरपरमात्मा_के_जीवित_प्रमाण
कबीर परमेश्वर जी वि.सं.1505 (सन् 1448) में द्वारिका गए। समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी समुद्र में मिलती है। उसके पास बालू रेत के टीले पर बैठकर आने वाले श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाकर उपदेश देते थे। उस स्थान पर गोलाकार चबूतरा (कोठा) बना रखा है। जो आज भी प्रमाण के तौर पर विद्यमान है। कहा जाता है कि आज तक समुद्र की लहरों ने छुआ भी नहीं। समुद्र में ज्वार भाटा आता है लेकिन फिर भी लहरें उस तरफ नहीं जाती।
Kabir Prakat Diwas 4 June
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बालू तस्करों पर खनन टास्क फोर्स ने कसी नकेल, बालू लदा तीन ट्रैक्टर जप्त
बालू तस्करों पर खनन टास्क फोर्स ने कसी नकेल, बालू लदा तीन ट्रैक्टर जप्त
चतरा। जिला खनन टास्क फोर्स की टीम ने शुक्रवार को बालू तस्करों के विरुद्ध छापामारी अभियान चला अवैध बालू तस्करी में लगे तीन ट्रैक्टरों को जप्त किया है। जिला खनन पदाधिकारी गोपाल दास, अनुमंडल पदाधिकारी मुमताज अंसारी और एसडीपीओ अविनाश कुमार के संयुक्त नेतृत्व में चलाए गए स्पेशल अभियान के दौरान चालक और मजदूर समेत सभी तस्कर मौके से भाग निकले। जिसके बाद टीम ने सभी जप्त ट्रैक्टरों को जप्त कर लिया। जप्त…
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श्री कृष्ण जी की नगरी द्वारिका पूरी तरह समुद्र में डूब गई थी । श्री कृष्ण जी के पैर के तलुए में शिकारी ने विषाक्त तीर मारकर वध किया। द्वारिका से बाहर गढ्ढा खोदकर वहां उनका अंतिम संस्कार किया वहां वर्तमान में द्वारिकाधीश मंदिर बना है । वि. सं. 1505 ( सन् 1448 ) में कबीर साहेब द्वारिका गए वहां समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी सागर में आकर मिलती थी, उसके पास एक बालू रेत के टीले ( कोठा ) पर बैठकर श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाते थे। सन् 1448 सें आज तक उस टीले को समुद्र की लहरों, ज्वारभाटे ने छुआ भी नहीं । यह कबीर कोठा द्वारिकाधीश के मंदिर के बगल में है।
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#परमेश्वरकबीर_प्रकट दिवस2023
#कबीरपरमात्मा_के_जीवित_प्रमाण
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श्री कृष्ण जी की नगरी द्वारिका पूरी तरह समुद्र में डूब गई थी। श्री कृष्ण जी के पैर के तलुए में शिकारी ने धोखे से विषाक्त तीर मारा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। द्वारिका से बाहर गढ्ढा खोदकर वहां उनका अंतिम संस्कार किया। वहां वर्तमान में द्वारिकाधीश मंदिर बना है। वि. सं. 1505 ( सन् 1448 ) में परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारिका गए वहां समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी सागर में आकर मिलती थी, उसके पास एक बालू रेत के टीले ( कोठा ) पर बैठकर श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाते थे। सन् 1448 सें आज तक उस टीले को समुद्र की लहरों, ज्वारभाटे ने छुआ भी नहीं। यह कबीर कोठा द्वारिकाधीश के मंदिर के बगल में है।
Kabir Prakat Diwas 4 June
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श्री कृष्ण जी की नगरी द्वारिका पूरी तरह समुद्र में डूब गई थी। श्री कृष्ण जी के पैर के तलुए में शिकारी ने धोखे से विषाक्त तीर मारा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। द्वारिका से बाहर गढ्ढा खोदकर वहां उनका अंतिम संस्कार किया। वहां वर्तमान में द्वारिकाधीश मंदिर बना है। वि. सं. 1505 ( सन् 1448 ) में परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारिका गए वहां समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी सागर में आकर मिलती थी, उसके पास एक बालू रेत के टीले ( कोठा ) पर बैठकर श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाते थे। सन् 1448 सें आज तक उस टीले को समुद्र की लहरों, ज्वारभाटे ने छुआ भी नहीं। यह कबीर कोठा द्वारिकाधीश के मंदिर के बगल में है।
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कबीर परमेश्वर जी वि.सं.1505 (सन् 1448) में द्वारिका गए। समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी समुद्र में मिलती है। उसके पास बालू रेत के टीले पर बैठकर आने वाले श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाकर उपदेश देते थे। उस स्थान पर गोलाकार चबूतरा (कोठा) बना रखा है। जो आज भी प्रमाण के तौर पर विद्यमान है। कहा जाता है कि आज तक समुद्र की लहरों ने छुआ भी नहीं। समुद्र में ज्वार भाटा आता है लेकिन फिर भी लहरें उस तरफ नहीं जाती।
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श्री कृष्ण जी की नगरी द्वारिका पूरी तरह समुद्र में डूब गई थी। श्री कृष्ण जी के पैर के तलुए में शिकारी ने धोखे से विषाक्त तीर मारा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। द्वारिका से बाहर गढ्ढा खोदकर वहां उनका अंतिम संस्कार किया। वहां वर्तमान में द्वारिकाधीश मंदिर बना है। वि. सं. 1505 ( सन् 1448 ) में परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारिका गए वहां समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी सागर में आकर मिलती थी, उसके पास एक बालू रेत के टीले ( कोठा ) पर बैठकर श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाते थे। सन् 1448 सें आज तक उस टीले को समुद्र की लहरों, ज्वारभाटे ने छुआ भी नहीं। यह कबीर कोठा द्वारिकाधीश के मंदिर के बगल में है।
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#कबीरपरमात्मा_के_जीवित_प्रमाण
कबीर परमेश्वर जी वि.सं. 1505 (सन 1448 ) में द्वारिका गए । समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी समुद्र मैं मिलती है। उसके पास बालू रेत के टीले पर बैठकर आने वाले श्रदालुओं को तत्वज्ञान सुनाकर उपदेश देते थे।
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