#बाण
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grvbuzz · 1 month ago
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#bajrangban #hanumanji
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nojidon · 4 months ago
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animalvidoes · 7 months ago
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हनुमदष्टादशाक्षर मन्त्र प्रयोग
‘मन्त्र महोदधि‘ में यह मन्त्र इस प्रकार उल्लिखित है- ‘ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा��’ इस अष्टादशाक्षर मन्त्र का प्रयोग स्नान एवं सन्ध्यादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर करना चाहिए। विनियोग ॐ अस्य मन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, हनुमान् देवता, हुं बीजम्, स्वाहा शक्तिः, सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः । श्री सिद्धबली हनुमान मंदिर, गोरखनाथ और बजरंगबली की कहानी (Story of Shri Siddhabali…
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aghora · 1 year ago
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jayshrisitaram108 · 3 months ago
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सरगु नरकु अपबरगु समाना जहँ तहँ देख धरें धनु बाना
करम बचन मन राउर चेरा राम करहु तेहि कें उर डेरा
भावार्थ
स्वर्ग नरक और मोक्ष जिसकी दृष्टि में समान हैं क्योंकि वह जहाँ-तहाँ (सब जगह) केवल धनुष-बाण धारण किए आपको ही देखता है
और जो कर्म से वचन से और मन से आपका दास है हे रामजी
आप उसके हृदय में डेरा कीजिए
जय श्री सीताराम🏹ᕫ🚩🙏
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authorkoushik · 8 months ago
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Bhanasuropasita Shiva Kavacham from brahmvavaivarta purana
सौतिरुवाच ।। शिवस्य कवचं स्तोत्रं श्रूयतामिति शौनक ।। वशिष्ठेन च यद्दत्तं गन्धर्वाय च यो मनुः ।। ३९ ।। ॐ नमो भगवते शिवाय स्वाहेति च मनुः ।। दत्तो वशिष्ठेन पुरा पुष्करे कृपया विभो ।। 1.19.४० ।। अयं मन्त्रो रावणाय प्रदत्तो ब्रह्मणा पुरा ।। स्वयं शम्भुश्च बाणाय तथा दुर्वाससे पुरा ।।४१।। मूलेन सर्वं देयं च नैवेद्यादिकमुत्तमम् ।। ध्यायेन्नित्यादिकं ध्यानं वेदोक्तं सर्वसम्मतम्।।४२।।
[
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्चलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥
]
ॐ नमो महादेवाय ।। बाणासुर उवाच ।। महेश्वर महाभाग कवचं यत्प्रकाशितम् ।। संसार पावनं नाम कृपया कथय प्रभो ।। ४३ ।। महेश्वर उवाच ।। शृणु वक्ष्यामि हे वत्स कवचं परमाद्भुतम् ।। अहं तुम्यं प्रदास्यामि गोपनीयं ��ुदुर्लभम् ।। ४४ ।। पुरा दुर्वाससे दत्तं त्रैलोक्यविजया�� च ।। ४५ ।। ममैवेदं च कवचं भक्त्या यो धारयेत्सुधीः ।। जेतुं शक्नोति त्रैलोक्यं भगवन्नवलीलया।।४६।। संसारपावनस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः।। ऋषिश्छन्दश्च गायत्री देवोऽहं च महेश्वरः।। धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ।। ४७ ।। पंचलक्षजपेनैव सिद्धिदं कवचं भवेत् ।। यो भवेत्सिद्धकवचो मम तुल्यो भवेद्भुवि ।। तेजसा सिद्धि योगेन तपसा विक्रमेण च ।।४८ ।। शम्भुर्मे मस्तकं पातु मुखं पातु महेश्वरः ।। दन्तपक्तिं नीलकण्ठोऽप्यधरोष्ठं हरः स्वयम् ।। ४९।। कण्ठं पातु चन्द्रचूडः स्कन्धौ वृषभवाहनः ।। वक्षःस्थलं नीलकण्ठः पातु पृष्ठं दिगम्बरः ।। 1.19.५० ।। सर्वाङ्गं पातु विश्वेशः सर्वदिक्षु च सर्वदा ।। स्वप्ने जागरणे चैव स्थाणुर्मे पातु सन्ततम् ।। ५१ ।। इति ते कथितं बाण कवचं परमाद्भुतम् ।। यस्मै कस्मै न दातव्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ।। ५२ ।। यत्फलं सर्वतीर्थानां स्नानेन लभते नरः ।। तत्फलं लभते नूनं कवचस्यैव धारणात् ।। ५३ ।। इदं कवचमज्ञात्वा भजेन्मां यः सुमन्दधीः ।। शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः ।। ५४ ।।
sautiruvāca .. śivasya kavacaṃ stotraṃ śrūyatāmiti śaunaka .. vaśiṣṭhena ca yaddattaṃ gandharvāya ca yo manuḥ .. 39 .. oṃ namo bhagavate śivāya svāheti ca manuḥ .. datto vaśiṣṭhena purā puṣkare kṛpayā vibho .. 1.19.40 .. ayaṃ mantro rāvaṇāya pradatto brahmaṇā purā .. svayaṃ śambhuśca bāṇāya tathā durvāsase purā ..41.. mūlena sarvaṃ deyaṃ ca naivedyādikamuttamam .. dhyāyennityādikaṃ dhyānaṃ vedoktaṃ sarvasammatam..42..
[
dhyāyennityaṃ maheśaṃ rajatagirinibhaṃ cārucandrāvataṃsaṃ
ratnākalpojjcalāṅgaṃ paraśumṛgavarābhītihastaṃ prasannam.
padmāsīnaṃ samantāt stutamamaragaṇairvyāghrakṛttiṃ vasānaṃ
viśvādyaṃ viśvabījaṃ nikhilabhayaharaṃ pañcavaktraṃ trinetram..
]
oṃ namo mahādevāya .. bāṇāsura uvāca .. maheśvara mahābhāga kavacaṃ yatprakāśitam .. saṃsāra pāvanaṃ nāma kṛpayā kathaya prabho .. 43 .. maheśvara uvāca .. śṛṇu vakṣyāmi he vatsa kavacaṃ paramādbhutam .. ahaṃ tumyaṃ pradāsyāmi gopanīyaṃ sudurlabham .. 44 .. purā durvāsase dattaṃ trailokyavijayāya ca .. 45 .. mamaivedaṃ ca kavacaṃ bhaktyā yo dhārayetsudhīḥ .. jetuṃ śaknoti trailokyaṃ bhagavannavalīlayā..46.. saṃsārapāvanasyāsya kavacasya prajāpatiḥ.. ṛṣiśchandaśca gāyatrī devo'haṃ ca maheśvaraḥ.. dharmārthakāmamokṣeṣu viniyogaḥ prakīrtitaḥ .. 47 .. paṃcalakṣajapenaiva siddhidaṃ kavacaṃ bhavet .. yo bhavetsiddhakavaco mama tulyo bhavedbhuvi .. tejasā siddhi yogena tapasā vikrameṇa ca ..48 .. śambhurme mastakaṃ pātu mukhaṃ pātu maheśvaraḥ .. dantapaktiṃ nīlakaṇṭho'pyadharoṣṭhaṃ haraḥ svayam .. 49.. kaṇṭhaṃ pātu candracūḍaḥ skandhau vṛṣabhavāhanaḥ .. vakṣaḥsthalaṃ nīlakaṇṭhaḥ pātu pṛṣṭhaṃ digambaraḥ .. 1.19.50 .. sarvāṅgaṃ pātu viśveśaḥ sarvadikṣu ca sarvadā .. svapne jāgaraṇe caiva sthāṇurme pātu santatam .. 51 .. iti te kathitaṃ bāṇa kavacaṃ paramādbhutam .. yasmai kasmai na dātavyaṃ gopanīyaṃ prayatnataḥ .. 52 .. yatphalaṃ sarvatīrthānāṃ snānena labhate naraḥ .. tatphalaṃ labhate nūnaṃ kavacasyaiva dhāraṇāt .. 53 .. idaṃ kavacamajñātvā bhajenmāṃ yaḥ sumandadhīḥ .. śatalakṣaprajapto'pi na mantraḥ siddhidāyakaḥ .. 54 ..
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brijpal · 1 year ago
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#GodNightThursday
गरीब, बाण लगाया बालिया, प्रभास क्षेत्रा के मांहि। सुक्ष्म देही स्वर्गहिं गये, यहां कुछ बिछ्र्या नाहिं ॥
For Information 📲(santrampalji Maharaj) YouTube channel Satlok Ashram l
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upliftingwordss · 23 days ago
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मानसिकता कविता-By Roshni Kumari
मानसिकता से ही हम बांटते है ज्ञान। मानसिकता ही हमारे लिए है वरदान। मानसिकता से ही हम अच्छे दिखते हैं। पढ़ते भी इसी से इसी लिखते हैं। मानसिकता से ही चलता है संसार। इसी में है प्रेम और है अहंकार।मानसिकता ही हमारे जीवन को संवारती है,ये ही हमारे स्तर को निखारती है। यही तो हमारी बढ़ती है सम्मानI मानसिकता हमारे लिए है वरदान।
मानसिकता से ही प्राप्त होते हैं संस्कार।जो करते है हमारे जीवन का उद्धार।इन सबसे ही तो वध हुआ रावण का श्रीराम के बाण से। गूंज उठती है पूरी दुनिया उनके धनुष के डंकार से। यही जीवन के पथ को तय करती है। यही एक व्यक्ति के तन से दूर भय करती है। की मानसिकता से ही नहीं होता अपमान मानसिकता ही हमारे लिए है वरदान, मानसिकता ही देती हैं अच्छे और बुरे का ज्ञान। यही बताती है हर चीज़ का मान।  देती है हृदय के प्रेम का भाव,ये नष्ट कर देती है जो मन में होते है जो तनाव। मानसिकता ही कभी हंसाती तो कभी रुलाती है। आखिर जीवन का सच भी यही बताती है। मानसिकता ही एक दिन मिटाएगी अज्ञान मानसिकता ही हमारे लिए है वरदान।
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sstkabir-0809 · 1 year ago
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( #MuktiBodh_Part117 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part118
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 231
◆ वाणी नं. 146 :-
गरीब, बाण लगाया बालिया, प्रभास क्षेत्र कै मांहि।
सुक्ष्म देही स्वर्गहिं गये, यहां कुछ बिछर्या नाहिं।।146।।
◆ सरलार्थ :- श्री कृष्ण जी के पैर में बालिया नामक शिकारी ने तीर मारा। श्री कृष्ण जी की मृत्यु हो गई, परंतु सुक्ष्म शरीर स्वर्ग चला गया।(146)
◆ वाणी नं. 147- 149 :-
गरीब, दुर्बासा कोपे तहां, समझ न आई नीच।
छप्पन कोटि जादौं कटे, मची रुधिर की कीच।।147।।
गरीब, गूदड़ गर्भ बनाय करि, कीन्हीं बहुत मजाक।
डरिये सांई संत सैं, सुखदे बोलै साख।।148।।
गरीब, दश हजार पुत्र कटे, गोपी काब्यौं लूटि।
गनिका चढी बिवान में, भाव भक्ति सें छूटि।।149।।
◆ सरलार्थ :- एक समय दुर्वासा ऋषि द्वारिका नगरी के पास वन में आकर ठहरा। धूना अग्नि लगाकर तपस्या करने लगा। दुर्वासा ऋषि श्री कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरू थे।
{ऋषि संदीपनी श्री कृष्ण के अक्षर ज्ञान करवाने वाले शिक्षक (गुरू) थे।} दुर्वासा जी की ख्याति चारों ओर द्वारका नगरी में फैल गई कि ऐसे पहुँचे हुए ऋषि हैं। भूत, भविष्य तथा वर्तमान की सब जानते हैं। द्वारिका के निवासी श्री कृष्ण से अधिक किसी भी ऋषि व देव को नहीं मानते थे। उनको अभिमान था कि हमारे साथ श्री कृष्ण हैं। कोई भी देव, ऋषि व साधु हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। श्री कृष्ण को सर्वशक्तिमान मान रखा था।
द्वारिका के नौजवानों को शरारत सूझी। आपस में विचार किया कि साधु लोग ढोंगी होते हैं। इनकी पोल खोलनी चाहिए। चलो दुर्वासा ऋषि की परीक्षा लेते हैं। श्री कृष्ण के पुत्र प्रधूमन ने गर्भवती स्त्री का स्वांग धारण किया। पेट के ऊपर छोटा कड़ाहा बाँधा। उसके ऊपर रूई-लोगड़ रखकर वस्त्र बाँधकर स्त्री के कपड़े पहना दिए। उसका एक पति बना लिया। सात-आठ नौजवान यादव उनके साथ दुर्वासा के डेरे में गए और प्रणाम करके
निवेदन किया कि ऋषि जी आपका बहुत नाम सुना है कि आप भूत-भविष्य तथा वर्तमान की जानते हैं। ये पति-पत्नी हैं। इनके विवाह के बारह वर्ष बाद परमात्मा ने संतान की आश पूरी की है। ये यह जानना चाहते हैं कि गर्भ में लड़का होगा या लड़की। ये यह जानने के लिए उतावले हो रहे हैं। कृपया बताने का कष्ट करें। दुर्वासा ऋषि ने ध्यान लगाकर देखा तो सब समझ में आ गया। क्रोध में भरकर बोला, बताऊँ क्या होगा? सबने एक स्वर में कहा कि हाँ! ऋषि जी बताओ। दुर्वासा बोला कि इस गर्भ से यादव कुल का नाश होगा। चले जाओ यहाँ से। सब भाग लिए। गाँव में बुद्धिमान बुजुर्गों को पता चला कि बच्चों ने ऋषि दुर्वासा के साथ मजाक कर दिया। ऋषि ने यादव कुल का नाश होने का शॉप दे दिया है। जुल्�� हो गया। सब मरेंगे। अब क्या उपाय किया जाए? सब मिलकर अपने गुरू तथा राजा श्री कृष्ण जी के पास गए तथा सब हाल कह सुनाया। श्री कृष्ण जी से कहा कि इस कहर से आप ही बचा सकते हो। श्री कृष्ण जी ने कहा कि उन सब बच्चों को साथ लेकर ऋषि दुर्वासा के पास जाओ। इनसे क्षमा मँगवाओ। तुम भी बच्चों की ओर से क्षमा माँगो। सब मिलकर ऋषि दुर्वासा के पास गए तथा बच्चों से गलती की क्षमा याचना करवाई। स्वयं भी क्षमा याचना की। ऋषि दुर्वासा बोले कि वचन वापिस नहीं हो सकता। सब वापिस श्री कृष्ण के पास आए तथा कहा कि दुर्वासा के शॉप से बचने का उपाय बताऐं। श्री कृष्ण ने कहा कि जो-जो वस्तु गर्भ स्वांग में प्रयोग की थी। उनका नामों-निशान मिटा दो। उन्हीं से अपने कुल का नाश होना कहा है। कपड़े-रूई-लोगड़ को जलाकर उनकी राख को प्रभास क्षेत्रा में नदी में डाल दो। जो लोहे की कड़ाही है, उसे पत्थर पर घिसा-घिसाकर चूरा बनाकर प्रभास क्षेत्र में दरिया में डाल दो। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। द्वारिकावासियों ने अपने गुरू श्री कृष्ण जी के आदेश का पालन किया। लोहे की कड़ाही का एक कड़ा एक व्यक्ति को घिसाने के लिए दिया था। उसने कुछ घिसाया, पूरा नहीं घिसा। वैसे ही जमना दरिया में फैंक दिया।
घिसने से उस कड़े में चमक आ गई थी। एक मछली ने उसे खाने की वस्तु समझकर खा लिया। उस मछली को एक बालिया नाम के भील ने पकड़कर काटा तो कड़ा निकला। उसका लोहा पक्का था। बालिया ने उससे अपने तीर का आगे वाला हिस्सा विषाक्त बनवा
लिया। कड़ाहे का जो लोहे का चूर्ण दरिया में डाला था, उसका तेज-तीखे पत्तों वाला घास उग गया। पत्ते तलवार की तरह पैने थे। कपड़ों तथा रूई-लोगड़ (पुरानी रूई) की राख का
भी घास उग गया।
क्रमशः_________________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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shamelessislamreligionhorse · 6 months ago
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जगन्नाथ मंदिर जाने से पहले जानें यह रहस्य
समुद्र बार बार जगन्नाथ मंदिर को तोड़ रहा था और विष्णु जी से प्रतिशोध ले रहा था। समुद्र ने कबीर परमात्मा से कहा कि जब यह श्री कृष्ण जी त्रेतायुग में श्री रामचन्द्र रूप में आया था तब इसने मुझे अग्नि बाण दिखा कर बुरा भला कह कर अपमानित करके रास्ता मांगा था। मैं वह प्रतिशोध लेने जा रहा हूँ।
Real Jagannath God Kabir
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real-anita · 6 months ago
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जगन्नाथ मंदिर जाने से पहले जानें यह रहस्य
समुद्र बार बार जगन्नाथ मंदिर को तोड़ रहा था और विष्णु जी से प्रतिशोध ले रहा था। समुद्र ने कबीर परमात्मा से कहा कि जब यह श्री कृष्ण जी त्रेतायुग में श्री रामचन्द्र रूप में आया था तब इसने मुझे अग्नि बाण दिखा कर बुरा भला कह कर अपमानित करके रास्ता मांगा था। मैं वह प्रतिशोध लेने जा रहा हूँ।
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janardan7310singh · 7 months ago
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जगन्नाथ मंदिर जाने से पहले जानें यह रहस्य
समुद्र बार बार जगन्नाथ मंदिर को तोड़ रहा था और विष्णु जी से प्रतिशोध ले रहा था। समुद्र ने कबीर परमात्मा से कहा कि जब यह श्री कृष्ण जी त्रेतायुग में श्री रामचन्द्र रूप में आया था तब इसने मुझे अग्नि बाण दिखा कर बुरा भला कह कर अपमानित करके रास्ता मांगा था। मैं वह प्रतिशोध लेने जा रहा हूँ।
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akhleshmourya8665 · 7 months ago
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🏕️जगन्नाथ मंदिर जाने से पहले जानें यह रहस्य
समुद्र बार बार जगन्नाथ मंदिर को तोड़ रहा था और विष्णु जी से प्रतिशोध ले रहा था। समुद्र ने कबीर परमात्मा से कहा कि जब यह श्री कृष्ण जी त्रेतायुग में श्री रामचन्द्र रूप में आया था तब इसने मुझे अग्नि बाण दिखा कर बुरा भला कह कर अपमानित करके रास्ता मांगा था। मैं वह प्रतिशोध लेने जा रहा हूँ।
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bhaktibharat · 9 months ago
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🚩 हनुमान चालीसा - Hanuman Chalisa
…संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६
जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥…
..हनुमान चालीसा पूरा पाठ करने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 👇🏻 📲 https://www.bhaktibharat.com/chalisa/shri-hanuman-chalisa
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🖼️ Tuesday Wishes Whatsapp, Instagram, Facebook and Twitter Wishes, Images and Messages 📥 https://www.bhaktibharat.com/en/wishes-quotes/tuesday
🚩 हनुमान चालीसा, लाभ, पढ़ने का सही समय, क्यों पढ़ें? 📲 https://www.bhaktibharat.com/blogs/hanuman-chalisa-benefits-best-time-to-read-and-why
🚩 संकट मोचन हनुमानाष्टक - Sankatmochan Hanuman Ashtak 📲 https://www.bhaktibharat.com/mantra/sankatmochan-hanuman-ashtak
🚩 मंगलवार व्रत कथा 📲 https://www.bhaktibharat.com/katha/katha-shri-hanuman-mangalwar-vrat
🚩 बजरंग बाण 📲 https://www.bhaktibharat.com/bhajan/bajrang-baan-paath
🚩 हे दुःख भन्जन, मारुती नंदन 📲 https://www.bhaktibharat.com/bhajan/hey-dukh-bhanjan-maruti-nandan
🚩 श्री हनुमान आरती 📲 https://www.bhaktibharat.com/aarti/shri-hanuman-ji-ki-aarti
🚩 हनुमान द्वादश नाम स्तोत्रम 📲 https://www.bhaktibharat.com/mantra/hanuman-dwadash-naam-stotram
🚩 हनुमान भजन 📲 https://www.bhaktibharat.com/bhajan/hanuman-balaji-bhajan
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jayshrisitaram108 · 2 years ago
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श्रीराम वाल्मीकि संबाद
सरगु नरकु अपबरगु समाना जहँ तहँ देख धरें धनु बाना
करम बचन मन राउर चेरा राम करहु तेहि कें उर डेरा
भावार्थ
स्वर्ग, नरक और मोक्ष जिसकी दृष्टि में समान हैं, क्योंकि वह जहाँ-तहाँ (सब जगह) केवल धनुष-बाण धारण किए आपको ही देखता है और जो कर्म से, वचन से और मन से आपका दास है, हे रामजी! आप उसके हृदय में डेरा कीजिए
जय श्री राम᳀ᕫ🏹🙏श्रीरामचरितमानस अयोध्याकाण्ड
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astrovastukosh · 1 year ago
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Dev Diwali - Kartik Purnima 2023: देव दिवाली पर शिव योग का होगा निर्माण इसका शिव से है गहरा संबंध होगा हर समस्या का समाधान
Dev Deepawali 2023: कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली मनाई जाती है. ये दिवाली देवताओं को समर्पित है, इसका शिव जी से गहरा संबंध है. इस दिन धरती पर आते हैं देवतागण कार्तिक पूर्णिमा का दिन कार्तिक माह का आखिरी दिन होता है. इसी दिन देशभर में देव देवाली भी मनाई जाती है लेकिन इस बार पंचांग के भेद के कारण देव दिवाली 26 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी और कार्तिक पूर्णिमा का व्रत, स्नान 27 नवंबर 2023 को है. देव दिवाली यानी देवता की दीपावली. इस दिन सुबह गंगा स्नान और शाम को घाट पर दीपदान किया जाता है. कार्तिक पूर्णिमा पर 'शिव' योग का हो रहा है निर्माण, हर समस्या का होगा समाधान |
देव दिवाली तिथि और समय
पूर्णिमा तिथि आरंभ - 26 नवंबर 2023 - 03:53
पूर्णिमा तिथि समापन - 27 नवंबर, 2023 - 02:45
देव दीपावली मुहूर्त - शाम 05:08 बजे से शाम 07:47 बजे तक
पूजन अवधि - 02 घण्टे 39 मिनट्स
शिव मंत्र
ॐ नमः शिवाय
ॐ शंकराय नमः
ॐ महादेवाय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ श्री रुद्राय नमः
ॐ नील कंठाय नमः
देव दिवाली का महत्व
देव दिवाली का सनातन धर्म में बेहद महत्व है। इस पर्व को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप मनाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने इस दिन राक्षस त्रिपुरासुर को हराया था। शिव जी की जीत का जश्न मनाने के लिए सभी देवी-देवता तीर्थ स्थल वाराणसी पहुंचे थे, जहां उन्होंने लाखों मिट्टी के दीपक जलाएं, इसलिए इस त्योहार को रोशनी के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है।
इस शुभ दिन पर, गंगा घाटों पर उत्सव मनाया जाता है और बड़ी संख्या में तीर्थयात्री देव दिवाली मनाने के लिए इस स्थान पर आते हैं और एक दीया जलाकर गंगा नदी में छोड़ देते हैं। इस दिन प्रदोष काल में देव दीपावली मनाई जाती है. इस दिन वाराणसी में गंगा नदी के घाट और मंदिर दीयों की रोशनी से जगमग होते हैं. काशी में देव दिवाली की रौनक खास होती है.
Dev diwali Katha : देव दिवाली की कथा
��ौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया था. पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए तारकासुर के तीनों बेटे तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने प्रण लिया. इन तीनों को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था. तीनों ने कठोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्म देव ने उन्हें यह वरदान देने से इनकार कर दिया.
ब्रह्मा जी ने त्रिपुरासुर को वरदान दिया कि जब निर्मित तीन पुरियां जब अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में में होगी और असंभव रथ पर सवार असंभव बाण से मारना चाहे, तब ही उनकी मृत्यु होगी. इसके बाद त्रिपुरासुर का आतंक बढ़ गया. इसके बाद स्वंय शंभू ने त्रिपुरासुर का संहार करने का संकल्प लिया.
काशी से देव दिवाली का संबंध एवं त्रिपुरासुर का वध:
शास्त्रों के अनुसार, एक त्रिपुरासुर नाम के राक्षस ने आतंक मचा रखा था, जिससे ऋषि-मुनियों के साथ देवता भी काफी परेशान हो गए थे। ऐसे में सभी देवतागण भगवान शिव की शरण में पहुंचे और उनसे इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा। पृथ्वी को ही भगवान ने रथ बनाया, सूर्य-चंद्रमा पहिए बन गए, सृष्टा सारथी बने, भगवान विष्णु बाण, वासुकी धनुष की डोर और मेरूपर्वत धनुष बने. फिर भगवान शिव उस असंभव रथ पर सवार होकर असंभव धनुष पर बाण चढ़ा लिया त्रिपुरासुर पर आक्रमण कर दिया. इसके बाद भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर का वध कर दिया था और फिर सभी देवी-देवता खुशी होकर काशी पहुंचे थे। तभी से शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है. जहां जाकर उन्होंने दीप प्रज्वलित करके खुशी मनाई थी। इसकी प्रसन्नता में सभी देवता भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचे. फिर गंगा स्नान के बाद दीप दान कर खुशियां मनाई. इसी दिन से पृथ्वी पर देव दिवाली मनाई जाती है.
पूजन विधि
देव दीपावली की शाम को प्रदोष काल में 5, 11, 21, 51 या फिर 108 दीपकों में घी या फिर सरसों के भर दें। इसके बाद नदी के घाट में जाकर देवी-देवताओं का स्मरण करें। फिर दीपक में सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, हल्दी, फूल, मिठाई आदि चढ़ाने के बाद दीपक जला दें। इसके बाद आप चाहे, तो नदी में भी प्रवाहित कर सकते हैं।
देव दीपावली के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें। हो सके,तो गंगा स्नान करें। अगर आप गंगा स्नान के लिए नहीं जा पा रहे हैं, तो स्नान के पानी में थोड़ा सा गंगाजल डाल लें। ऐसा करने से गंगा स्नान करने के बराबर फलों की प्राप्ति होगी। इसके बाद सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल, सिंदूर, अक्षत, लाल फूल डालकर अर्घ्य दें। फिर भगवान शिव के साथ अन्य देवी देवता पूजा करें। भगवान शिव को फूल, माला, सफेद चंदन, धतूरा, आक का फूल, बेलपत्र च��़ाने के साथ भोग लाएं। अंत में घी का दीपक और धूर जलाकर चालीसा, स्तुत, मंत्र का पाठ करके विधिवत आरती कर लें।
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