#राधास्वामी_प्रवर्तकबना_प्रेत
राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी की भक्ति शास्त्रों के अनुसार नहीं थी, बल्कि हठयोग, ध्यान, पाँच नाम उनका मनमाना आचरण था। जिसके कारण राधास्वामी पंथ का मुखिया ही प्रेत बनकर अपनी शिष्या में बोला करता था।
अधिक जानकारी के लिए यूट्यूब पर सर्च करें "RadhaSoami Exposed by Sant Rampal ji"
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हठयोग से न तो परमात्मा मिलता है और न ही जन्म-मृत्यु से मुक्ति मिलती है। बल्कि पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 5 व 6 में मनमाने घोर तप (हठयोग) करने वालों को गीता ज्ञान दाता ने अज्ञानी, आसुर स्वभाव वाले बताया है।
#What_Is_Meditation
Sant Rampal Ji Maharaj
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#राधास्वामी_प्रवर्तकबना_प्रेत
राधास्वामी पंथ का प्रवर्तक बना प्रेत.....
राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी की भक्ति शास्त्रों के अनुसार नहीं थी, बल्कि हठयोग, ध्यान, पाँच नाम (ओंकार, ज्योति निरंजन, ररंकार, सोहं, सत्यनाम) उनका मनमाना आचरण था।
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राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी की भक्ति शास्त्रों के अनुसार नहीं थी, बल्कि हठयोग, ध्यान, पाँच नाम उनका मनमाना आचरण था। जिसके कारण राधास्वामी पंथ का मुखिया ही प्रेत बनकर अपनी शिष्या में बोला करता था।
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#RightWayToMeditate
हठयोग से ना तो परमात्मा मिलता है और ना ही जन्म मृत्यु से मुक्ति मिलती है बल्कि पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 5 व 6 में मनमाने घोर तप हठयोग करने वालों को गीता अध्याय ज्ञानदाता ने अज्ञानी असुर स्वभाव वाले बताया है ।
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#AlmightyGodKabir
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर
हठयोग से न तो परमात्मा मिलता है और न ही जन्म-मृत्यु से मुक्ति मिलती है।
बल्कि पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 5 व 6 में मनमाने घोर तप (हठयोग) करने वालों को गीता ज्ञान दाता ने अज्ञानी, आसुर स्वभाव वाले बताया है। तत्वदर्शी संत से सत्यनाम और सारनाम प्राप्त करके जो कि सच्चे नाम मंत्र की ओर संकेत करते हैं और मर्यादा में रहकर सतभक्ति करने से पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा।
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हठयोग से न तो परमात्मा मिलता है और न ही जन्म-मृत्यु से मुक्ति मिलती है। बल्कि पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 5 व 6 में मनमाने घोर तप (हठयोग) करने वालों को गीता ज्ञान दाता ने अज्ञानी, आसुर स्वभाव वाले बताया है।
तत्वदर्शी संत से सत्यनाम और सारनाम प्राप्त करके जोकि सच्चे नाम मंत्र की ओर संकेत करते हैं और मर्यादा में रहकर सतभक्ति करने से पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा।🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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#RightWayToMeditate
हठयोग से न तो परमात्मा मिलता है और न ही जन्म-मृत्यु से मुक्ति मिलती है। बल्कि पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 5 व 6 में मनमाने घोर तप (हठयोग) करने वालों को गीता ज्ञान दाता ने अज्ञानी, आसुर स्वभाव वाले बताया है।
तत्वदर्शी संत से सत्यनाम और सारनाम प्राप्त करके जोकि सच्चे नाम मंत्र की ओर संकेत करते हैं और मर्यादा में रहकर सतभक्ति करने से पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा।
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#RightWayToMeditate
गीता अध्याय 5 श्लोक 2 में कहा गया है कि तत्वदर्शी संत न मिलने के कारण वास्तविक भक्ति का ज्ञान न होने से साधकों द्वारा गृहत्याग कर वन में चला जाना या कर्म त्याग कर एक स्थान पर बैठ कर कान, नाक आदि बंद करके या तप आदि करना दोनों ही व्यर्थ हैं अर्थात श्रेयकर नहीं हैं।
सतयुग से लेकर अब तक प्रत्येक मानव भगवान को प्राप्त करने, जन्म-मृत्यु, वृद्धावस्था के कष्ट से छुटकारा पाने और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील है। इसके लिए ऋषि, मुनियों और तपस्वियों ने हजारों, लाखों वर्षों तक घोर तप भी किया लेकिन परमात्मा प्राप्ति का उनका यह प्रयत्न विफल रहा।
सहज ध्यान से परमात्मा की प्राप्ति की जा सकती है।
सहज भक्ति विधि को करने में किसी भी तरह के हठ योग की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि सच्चे मंत्रों के जाप से ये सभी क्रियाएँ स्वतः सिद्ध हो जाती हैं।
हठयोग से न तो परमात्मा मिलता है और न ही जन्म-मृत्यु से मुक्ति मिलती है। बल्कि पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 5 व 6 में मनमाने घोर तप (हठयोग) करने वालों को गीता ज्ञान दाता ने अज्ञानी, आसुर स्वभाव वाले बताया है।
तत्वदर्शी संत से सत्यनाम और सारनाम प्राप्त करके जोकि सच्चे नाम मंत्र की ओर संकेत करते हैं और मर्यादा में रहकर सतभक्ति करने से पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा।
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हठयोग से न तो परमात्मा मिलता है और न ही जन्म-मृत्यु से मुक्ति मिलती है।
बल्कि पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 5 व 6 में मनमाने घोर तप करने वालों को गीताज्ञान दाता ने अज्ञानी,आसुर स्वभाव वाले बताया है। त���्वदर्शी संत से सत्यनाम और सारनाम प्राप्त करके जो कि सच्चे नाम मंत्र की ओर संकेत करते हैं और मर्यादा में रहकर सतभक्ति करने से पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा।
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#राधास्वामी_प्रवर्तकबना_प्रेत
राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी की भक्ति शास्त्रों के अनुसार नहीं थी, बल्कि हठयोग, ध्यान, पाँच नाम उनका मनमाना आचरण था। जिसके कारण राधास्वामी पंथ का मुखिया ही प्रेत बनकर अपनी शिष्या में बोला करता था।
RadhaSoami Vs Sant Rampal Ji
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राधास्वामी पंथ का प्रवर्तक बना प्रेत
घट रामायण
Ghat Ramayan (Tulsidas Hathras Waale Ki) Part-1
अंतर गुफा तहाँ चलि जाऊँ। जहे साहिब के दस्सन पाऊँ । पाँचो नाम जीव जब भासा। अठवाँ नाम गुण करि गरबा ॥ पाँचो नाम काल के जानो। तब दानी मन संका आनी ॥ निस्गुन निराकार निरखानी। धर्मराय यों पाँच बवानी ॥ जीव नाम निज कड़े विचारी। जानि वृकि दानों झख मागे ॥ दानी सुनु बिधि बात हमारी। हम चलि जाई पुरुष दुवारी ।। सुरति निरति ले लोक सिपाऊँ। आदि नाम ले काल गिगजे ॥ सच नाम ले जीव उवारी। अस चल जाउँ पुरुष दश्वारी ॥
राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी की भक्ति शास्त्रों के अनुसार नहीं थी, बल्कि हठयोग, ध्यान, पाँच नाम (ओंकार, ज्योति निरंजन, ररंकार, सोहं, सत्यनाम) उनका मनमाना आचरण था। जिसके कारण राधास्वामी पंथ का मुखिया ही प्रेत बनकर अपनी शिष्या में बोला करता था।
जरा विचार करें इस साधना को करने से आपका क्या होगा !
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#राधास्वामी_प्रवर्तकबना_प्रेत
राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी की भक्ति शास्त्रों के अनुसार नहीं थी, बल्कि हठयोग, ध्यान, पाँच नाम (ओंकार, ज्योति निरंजन, ररंकार, सोहं, सत्यनाम) उनका मनमाना आचरण था। जिसके कारण राधास्वामी पंथ का मुखिया ही प्रेत बनकर अपनी शिष्या में बोला करता था
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