#बर्लिन का विरोध
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बर्लिन में लगभग 45 पुलिस अधिकारियों ने वायरस के खिलाफ विरोध किया
बर्लिन में लगभग 45 पुलिस अधिकारियों ने वायरस के खिलाफ विरोध किया
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गिरफ्तारी पुलिस अधिकारियों का विरोध करने और असंवैधानिक प्रतीकों के उपयोग सहित अपराधों के लिए थी
बर्लिन: पुलिस ने कहा कि बर्लिन में सप्ताहांत प्रदर्शन की एक लहर में 45 लोग घायल हो गए, जिसमें कोरोनोवायरस प्रतिबंध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी शामिल थे, पुलिस ने कहा कि प्रदर्शनकारी रविवार को कम संख्या में एकत्र हुए।
अनियंत्रित विरोध प्रदर्शन, जिसमें कई प्रदर्शनकारी मास्क पहनने या सामाजिक…
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Iran Hijab Controversy: लड़कियों के हिजाब से निकली आग से झुलस रहा ईरान, अब अमेरिका से जर्मनी तक तूफान
Iran Hijab Controversy: लड़कियों के हिजाब से निकली आग से झुलस रहा ईरान, अब अमेरिका से जर्मनी तक तूफान
Image Source : INDIA TV Hijab Protest Highlights जर्मनी की राजधानी बर्लिन और अमेरिकी के वाशिंगटन डीसी व लॉस एंजेलिस में लोगों ने मार्च निकाले ईरान की सरकार के खिलाफ जमकर हुई नारेबाजी हिजाब को उतार फेंकना चाहती हैं ईरानी युवतियां Iran Hijab Controversy: ईरान में हिजाब प्रदर्शन को लेकर धर्माचार पुलिस की हिरासत में 22 वर्षीय युवती महसा अमीनी की मौत के बाद शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला अब…
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जर्मन लॉकडाउन के लिए मर्केल का धक्का कथित तौर पर अवरुद्ध हो गया क्योंकि मरने वालों की संख्या 100,000 . थी
जर्मन लॉकडाउन के लिए मर्केल का धक्का कथित तौर पर अवरुद्ध हो गया क्योंकि मरने वालों की संख्या 100,000 . थी
बर्लिन, जर्मनी – सितंबर 22: जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल (एल) ने कुलपति और संघीय वित्त मंत्री ओलाफ स्कोल्ज़ के साथ बात की। पूल | गेटी इमेजेज न्यूज | गेटी इमेजेज जर्मनी के कोविड -19 संकट ने गुरुवार को गंभीर खबर के साथ देश को हिलाकर रख दिया कि कुल मौतों की संख्या अब 100,000 को पार कर गई है। हालांकि, देश की नई आने वाली गठबंधन सरकार फिलहाल लॉकडाउन का विरोध कर रही है। जर्मनी ने गुरुवार को बड़े पैमाने…
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जर्मनी की एंजेला मर्केल ने गाजा विरोध के आगे यहूदी-विरोधी के खिलाफ चेतावनी दी
जर्मनी की एंजेला मर्केल ने गाजा विरोध के आगे यहूदी-विरोधी के खिलाफ चेतावनी दी
एंजेला मर्केल ने कहा कि जर्मनी का संविधान “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है” बर्लिन: जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने शनिवार को मध्य पूर्व में लड़ाई के दिनों के मद्देनजर अपेक्षित सप्ताहांत में फिलिस्तीन समर्थक रैलियों से पहले यहूदी-विरोधी या नस्लवादी व्यवहार के किसी भी प्रदर्शन के खिलाफ चेतावनी दी। कई जर्मन शहरों ने इजरायल और हमास के बीच घातक 11-दिवसीय संघर्ष के दौरान फिलिस्तीनी…
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#Divyasandesh
रूस: अलेक्सेई नवलनी की पत्नी भी हिरासत में, कड़ाके की ठंड में सड़कों पर उतरे समर्थकों से बर्बरता की दुनियाभर में निंदा
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आलोचक अलेक्सेई नवलनी (Alexei Navalny) के समर्थकों की शनिवार रात को पुलिस के साथ हिंसक झड़प हो गई। दुनियाभर में नवलनी की गिरफ्तारी के साथ-साथ प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा की आलोचना की गई है। सरकार के खिलाफ करीब 70 शहरों में शनिवार को विरोध प्रदर्शन किए गए जिसके बाद कम से कम 3400 लोगों को हिरासत में लिया गया है। इनमें नवलनी की पत्नी यूलिया नवलनया भी शामिल हैं।Russia Protests: रूस में विरोध प्रदर्शन कर रहे अलेक्सेई नवलनी के समर्थकों को हिरासत में ले लिया गया। उनकी पत्नी की भी हिरासत में लिया गया है। इसकी दुनियाभर में आलोचना की गई है।रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आलोचक अलेक्सेई नवलनी (Alexei Navalny) के समर्थकों की शनिवार रात को पुलिस के साथ हिंसक झड़प हो गई। दुनियाभर में नवलनी की गिरफ्तारी के साथ-साथ प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा की आलोचना की गई है। सरकार के खिलाफ करीब 70 शहरों में शनिवार को विरोध प्रदर्शन किए गए जिसके बाद कम से कम 3400 लोगों को हिरासत में लिया गया है। इनमें नवलनी की पत्नी यूलिया नवलनया भी शामिल हैं।हिरासत में यूलिया समेत सैकड़ों प्रदर्शनकारीयूलिया ने हिरासत में लिए जाने के बाद पुलिस वैन से सेल्फी भी पोस्ट की। उन्होंने लिखा, ‘खराब क्वॉलिटी के लिए माफी ��ाहती हूं। पुलिस वैन में बहुत खराब रोशनी है।’ दंगा पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को बसों और ट्रकों में खींचकर बैठाया। कुछ लोगों को पुलिस की बैटन ने पीटा भी। प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों को मॉस्को के पुश्किन स्क्वेयर से बाहर खदेड़ा लेकिन आधे मील दूर पर ही वे इकट्ठे हो गए। इनमें से कई ने पुलिस पर बर्फ के गोले भी फेंके। -51 डिग्री सेल्सियस की सर्दी लेकिन फर्क नहींदेश में प्रदर्शनकारियों ने कड़ाके की ठंड और प्रशासन के प्रतिबंधों को नजरअंदाज करते हुए भारी रैलियां कीं। यहां तक कि -51 डिग्री सेल्सियस के तापमान में भी प्रदर्शन जारी रहे। प्रदर्शनकारियों ने रविवार तड़के विरोध जारी रखा और बड़ी संख्या में लोग ‘रूस आजाद होगा’ और ‘पुतिन चोर है’ के पोस्टर लेकर खड़े रहे। इसके बाद लोगों ने क्रेमलिन की ओर मार्च बी किया जबकि दूसरे लोगों ने त्वरस्काया स्ट्रीट को ब्लॉक किया जहां से राजधानी में जाने का रास्ता निकलता है। रॉयटर्स के मुताबिक करीब 40 हजार लोग मॉस्को में जा हुए थे जबकि प्रशासन ने सिर्फ 4 हजार लोगों के प्रदर्शन में शामिल होने का दावा किया है। अमेरिका, EU ने की निंदापुलिस की बर्बरता की ��मेरिका और यूरोपियन यूनियन ने कड़ी निंदा की है। अमेरिका ने प्रदर्शनकारियों और पत्रकारों को रिहा करने की मांग की है। अमेरिका के गृह विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा है, ‘नवलनी को हिरासत में लिया जाना और उनके समर्थकों को गिरफ्तार करना सिविल सोसायटी और मूलभूत आजादी पर प्रतिबंध का चिंताजनक संकेत देता है। हम रूस से मांग करते हैं कि जिन लोगों को उनके अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए हिरासत में लिया गया है, उन्हें और नवलनी को फौरन रिहा किया जाए।’बर्लिन से आते ही हिरासत में नवलनीविपक्षी नेता एलेक्सी नवेलनी को पुलिस ने रविवार को मॉस्को एयरपोर्ट पर उतरते ही हिरासत में ले लिया था। पिछली गर्मियों में जहर दिए जाने के बाद से वह जर्मनी में अपना इलाज करा रहे थे और रविवार को ही स्वदेश पहुंचे थे। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के मुखर विरोधियों में से एक नवेलनी को रूस में 20 अगस्त को एक घरेलू उड़ान के दौरान बीमार हो गए थे। बीमार नवलेनी को विमान से आपाकतालीन परिस्थितियों में उतारने और ओम्सक में साइबेरियन अस्पताल में इलाज कराने के दो दिन बाद नवलनी को 22 अगस्त को निजी एयर एंबुलेंस के जरिये बर्लिन लाया गया था।
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कोरोना वायरस से जंग के लिए जर्मनी ने ऐसा क्या कर दिया कि टैंक पर चढ़ने लगे हैं लोग
कोरोना वायरस से जंग के लिए जर्मनी ने ऐसा क्या कर दिया कि टैंक पर चढ़ने लगे हैं लोग
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कोरोना वायरस से जूझ रहे जर्मनी में हजारों की तादाद में लोग बुधवार को राजधानी बर्लिन में हजारों की तादाद में सड़कों पर उतर आए। इन प्रदर्शनकारियों ने जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल के लॉकडाउन के कदमों का जोरदार विरोध किया। प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए बड़ी संख्या में दंगा निरोधक पुलिस तैनात की गई। पुलिस ने पानी का बौछार करके प्रदर्शनकारियों को भगाने का प्रयास किया। हालत यह हो गई कि एक…
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मर्सिडीज-बेंज बर्लिन प्लांट बॉस को टेस्ला, यूनियन कहते हैं FRANKFURT: मर्सिडीज-बेंज द्वारा चलाए जा रहे बर्लिन इंजन प्लांट के प्रमुख ने प्रतिद्वंद्वी टेस्ला से हार मान ली है, जर्मन यूनियन आईजी मेटाल ने बुधवार को कर्मचारियों से अपने प्रस्थान का विरोध करने का आह्वान किया।
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दुनिया में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 4.44 करोड़ से ज्यादा हो गया है। 3 करोड़ 27 लाख 02 हजार 064 मरीज रिकवर हो चुके हैं। अब तक 11.78 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। अमेरिका में पिछले हफ्ते हर दिन औसतन 70 हजार नए केस मिले। एक अहम खबर यूरोप से। फ्रांस के बाद जर्मनी में सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। यहां सरकार ने आंशिक लॉकडाउन लगा दिया है। लेकिन, मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि जल्द ही सख्त लॉकडाउन लगाया जा सकता है।
वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलवार के पहले एक हफ्ते तक अमेरिका में हर दिन औसतन 70 हजार नए संक्रमित मिले। अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। इसके साथ ही मरने वालों का आंकड़ा भी पिछले हफ्ते 5600 बढ़ गया।
ट्रम्प का झूठ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पिछले हफ्ते कहा था कि देश में संक्रमण बढ़ने को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। इसकी वजह यह है कि टेस्टिंग ज्यादा हो रही है या हो सकता है इसके पीछे कोई साजिश हो। लेकिन, व्हाइट हाउस के टेस्टिंग इंचार्ज ब्रेट गिरियोर ने राष्ट्रपति की बात को खारिज कर दिया। गिरियोर ने कहा- यह सच है कि केस बढ़ रहे हैं। इसका सबूत यह है कि अस्पतालों में भर्ती होने वालों के संख्या भी बढ़ रही है।
मास्क पहनने से अब भी बच रहे लोग रिपोर्ट के मुताबिक, महामारी फैलती जा रही है, लेकिन अब भी देश के ज्यादातर हिस्सों में लोग मास्क पहनने में दिलचस्पी नहीं दिखा रह��। व्हाइट हाउस में कोरोनावायरस टास्क फोर्स के कोऑर्डिनेटर डेब्रॉह ब्रिक्स ने कहा- आप ग्रॉसरी स्टोर्स, रेस्टोरेंट्स और होटल्स में देखिए। यहां भी लोग आपको बिना मास्क के नजर आ जाएंगे।
जर्मनी में भी सख्त प्रतिबंधों की तैयारी यूरोप के देश संक्रमण की दूसरी लहर से जूझ रहे हैं। फ्रांस ने एक महीने का सख्त लॉकडाउन लगाया। जर्मनी ने पार्शियल यानी आंशिक लॉकडाउन का ऐलान किया। लेकिन, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि जल्द ही एंजेला मर्केल सरकार सख्त लॉकडाउन लगाने जा रही है। इसकी वजह देश में बढ़ता संक्रमण और लोगों का सावधानी न बरतना है। सरकार की कोशिश है कि संक्रमण एक घर से दूसरे घर तक न पहुंच सके। 10 लोगों से ज्यादा एक स्थान पर नहीं जुट सकेंगे। कुल 16 शहरों में सख्त प्रतिबंध रहेंगे। सरकार ने कहा है कि बहुत जरूरी न होने पर लोग यात्रा करने से बचें। इसकी वजह से दिक्कतें बढ़ सकती हैं।
बुधवार को जर्मनी के बर्लिन में एक रेस्टोरेंट के बाहर से गुजरते लोग। यहां आंशिक लॉकडाउन लगाया गया था। अब खबर है कि सरकार इसे सख्त लॉकडाउन में बदल सकती है।
साउथ अफ्रीकी प्रेसिडेंट आईसोलेशन में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा सेल्फ आईसोलेशन में चले गए हैं। शनिवार को रामफोसा एक डिनर में ��ामिल हुए थे। इस डिनर में शामिल एक शख्स को बाद में संक्रमित पाया गया। हालांकि, राष्ट्रपति के प्रेस सेक्रेटरी ने साफ कर दिया कि रामफोसा में फिलहाल किसी तरह के लक्षण नहीं देखे गए हैं। लेकिन, इसके बावजूद उन्हें ऐहतियातन आईसोलेट होने को कहा गया है।
चीन में 47 नए मामले चीन में बुधवार को एक दिन में 47 नए मामले सामने आए। यह दो महीने में सबसे ज्यादा केस हैं। अब सरकार ने कहा है कि वो इसे संक्रमण की दूसरी लहर की तरह देख रही है और इसे रोकने के लिए सख्त उपाय किए जाएंगे। फिलहाल, सरकार की सबसे बड़ी फिक्र इस बात को लेकर है कि लोकल ट्रांसमिशन के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। नेशनल हेल्थ अथॉरिटी ने बुधवार रात जारी बयान में कहा- 23 मामले स्थानीय संक्रमण के हैं और यह परेशानी पैदा करने वाले हैं।
फोटो बुधवार की है। बीजिंग की एक मेट्रो ट्रेन में मास्क लगाए हुए लोग। चीन सरकार ने संकेत दिए हैं कि देश में संक्रमण की दूसरी लहर शुरू हो रही है। लिहाजा, एक बार फिर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
फ्रांस में दूसरा लॉकडाउन फ्रांस में संक्रमण की दूसरी लहर को देखते हुए सरकार सतर्क हो गई है। बीबीसी के मुताबिक, राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने देश में दूसरी बार लॉकडाउन लगा दिया है। लॉकडाउन पूरे नवंबर के लिए रहेगा। नया प्रतिबंध शुक्रवार से शुरू होगा। लोगों को केवल जरूरी कामों या मेडिकल इमरजेंसी में ही घर से निकलने की इजाजत होगी। इस दौरान रेस्टोरेंट और बार बंद रहेंगे, लेकिन स्कूल और फैक्ट्रियां खुली रहेंगी। देश में अब तक करीब 12 लाख संक्रमित मिल चुके हैं और 35,541 लोगों की मौत हो चुकी है।
अमेरिका में एक हफ्ते में 5600 संक्रमितों की मौत अमेरिका में चुनाव बिल्कुल सिर पर है, लेकिन यहां कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। एक हफ्ते में पांच लाख से ज्यादा नए संक्रमित मिले हैं। इसी दौरान 5600 संक्रमितों की मौत हो गई। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने यह जानाकारी दी है। कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य इलिनॉइस है। 31 हजार मामले इसी ��ाज्य में सामने आए। पेन्सिलवेनिया और विस्कॉन्सिन में भी हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं। विस्कॉन्सिन के हेल्थ इंचार्ज आंद्रे पॉम ने कहा- हम चाहते हैं कि चुनाव के लिए मतदान के दौरान कोरोना दिक्कत न बने। इसके लिए हर जरूरी व्यवस्था की जा रही है।
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बुधवार को फ्रांस के पेरिस शहर में सूना पड़ा एक बाजार। फ्रांस सरकार ने बुधवार रात देश में सख्त लॉकडाउन का ऐलान किया है। हालांकि, इसके विरोध में प्रदर्शन भी शुरू हो गए हैं।
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अगस्त क्रांति की विरासत
जय प्रकाश पाण्डेय
भारतीय मुक्ति संग्राम के महामार्ग पर ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचार एवं शोषण के खिलाफ जन-दबाव से कई बार तीखे मोड़ निर्मित हुए। ऐसी जगहों पर मुक्ति संग्राम नई जमीन तोड़कर अपने सामाजिक एवं क्षेत्रीय आधार को व्यापक करता है। स्वदेशी-बहिष्कार, असहयोग-आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन भारतीय मुक्ति संग्राम के सीधे मार्ग पर ऐसे ही चर्चित मोड़ हैं। भारत छोड़ो आंदोलन इनमें आखिरी महान संघर्ष था जो अपने आवेग एवं व्यापकता के कारण अगस्त क्रांति के भी कहलाता है। अगस्त क्रांति का आवाहन देशवासियों के आशा एवं अपेक्षाओं के केंद्र महात्��ा गांधी ने ही किया लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने कांग्रेस वर्किंग कमिटी के सभी सदस्यों को (गांधी सहित) भारत छोड़ो आंदोलन के प्रस्ताव को पास करते ही नजर बंद कर नेतृत्व विहीन करने का प्रयास किया। किंतु भारतीय इतिहास की विलक्षण प्रवृत्ति के प्रदर्शन ने हुक्मरानों को हैरान कर दिया। ध्यातव्य है कि अवतारवाद के इस देश में जनता नेतृत्व में मुक्तिदाता की तलाश करती है और ऐसे महानायक के साथ ही उत्साह से खड़ी होती है। यहाँ नेतृत्व के संकट के कारण राष्ट्रीय प्रतिशोध एवं प्रतिरोध का बहुप्रतीक्षित स्वरूप परिलक्षित नहीं हो पाता। इसीलिए तुर्क-मुगल-अंग्रेजो की सदियों की गुलामी के दौर में हमें सतत राष्ट्रीय प्रतिरोध/बगावत देखने को नहीं मिलती है।
अलग-अलग अंचलों में क्षेत्रीय नायकों के नेतृत्व में विदेशी हुक्मरानों को चुनौती दी गई। किंतु अगस्त क्रांति में बिना किसी महानायक के नेतृत्व के पूरे देश में जनता खुद ही अपनी मुख्तार बन गई जिस तरह छात्रों, किसानों महिलाओं ने पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपने आक्रोश को व्यक्त किया, उसने 1857 के बाद सबसे खतरनाक चुनौती पेश की। बलिया (उत्तर प्रदेश) तामलुक (बंगाल) तलचर (उड़ीसा) सोलापुर (महाराष्ट्र) धारवाड़ कर्नाटक) जैसे स्थानों पर तो हुकूमत के प्रतीक ध्वस्त कर स्वतंत्र सरकारों की स्थापना हो गई। अगस्त क्रांति/भारत छोड़ो आंदोलन अपने अभिव्यक्ति के स्तर पर गांधीवादी असहयोग एवं सविनय अवज्ञा आंदोलनों की तरह अहिंसा की मर्यादा में नहीं रहा रेलवे लाइन एवं टेलीफोन लाइनों को उखाडना, थानों पर हमला एवं सेना, पुलिस के साथ सशस्त्र प्रतिरोध निश्चित रूप से इसे हिंसक शक्ल देते हैं। राष्ट्र की आजादी को अपनी आजादी समझने का जनता में बोध तथा उस आजादी को हासिल करने के लिए ताकतवर अंग्रेजी हुकूमत से संघर्ष करने का जज्बा निसंदेह जनसहभागिता एवं आजादी के लिए साझे प्रतिरोध जैसे तत्वों के कारण अगस्त क्रांति एक जीवंत लोकतांत्रिक विरासत का सृजन करती है जो आज भी हमें प्रेरित करती है।
भारत की अगस्त क्रांति युद्धरत विश्व (द्वितीय विश्वयुद्ध 1939-45) के कालखंड की घटना है। इस क्रांति के लिए परिवेश के सृजन एवं भारतीय नेतृत्व तथा जनता की मनोदशा बनाने में विश्व युद्ध की निर्णायक भूमिका थी। हिटलर द्वारा पोलैंड पर आक्रमण के साथ ही 1939 द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हो गई। शुरू में यह ब्रिटेन और जर्मनी के मध्य युद्ध था किंतु 1941 जून में यह सही अर्थों में विश्वयुद्ध की शक्ल अख्तियार किया हिटलर ने सोवियत रूस पर आक्रमण क��� दिया वहीं जापान ने पर्ल हर्बल प्रशांत महासागर पर हमला कर अमेरिका को भी युद्ध में खींच लिया। जाहिर है धुरी राष्ट्रों (बर्लिन-रोम-टोकियो) के बरक्स अब मित्र राष्ट्रों (ब्रिटेन-फ्रांस) में सोवियत रूस एवं अमेरिका जैसे विशाल देश भी शामिल हो गए। जापान के सैन्य शासकों ने पश्चिमी प्रशांत तट पर कब्जा कर चीन के अधिकांश हिस्सों पर प्रभुत्व स्थापित कर लिया। चतुर जापानियों ने ’एशिया एशिया वालों के लिए’ का नारा दिया और एशिया में ब्रिटिश उपनिवेशो में मुक्तिदाता के प्रचार के साथ विजय अभियान शुरू किया। सिंगापुर, मलाया एवं वर्मा पर ब्रिटिश सेना को खदेड़ कर जापानियों ने कब्जा कर लिया। अब भारत में अंग्रेजी राज की उपस्थिति जापानियों को आक्रमण का बहाना दे रही थी।
इसलिए मित्र राष्ट्रों के नेताओं विशेषकर अमेरिकी राष्ट्रपति डी रूजवेल्ट, सोवियत संघ के शासक स्टालिन एवं चीन के शासक च्यान्ग काइशेक (जापान से युद्धरत) ने ब्रिटेन पर दबाव डाला कि वह भारत में अटलांटिक चार्टर लागू करें तथा भारतीयों का समर्थन हासिल करें। इसी बढ़ते दबाव के कारण चर्चिल ने क्रिप्स मिशन की घोषणा की। सर स्टैंडर्ड क्रिप्स स्वयं भारत आए। उन्होंने भारतीयों का समर्थन हासिल करने के लिए ठोस उत्तरदाई शासन के त्वरित हस्तांतरण भारतीयों के हाथ में करने तथा युद्ध उपरांत पूर्ण आजादी के मुद्दे पर चर्चा की किंतु भारत की प्रतिरक्षा के दायित्व को भारतीयों के हाथ देने के प्रश्न पर क्रिप्स वचन पूरा ना कर सके और उनका मिशन गतिरोध के साथ खत्म हो गया। अब कांग्रेस पर दबाव बढ़ता जा रहा था 5 जुलाई 1942 में महात्मा गांधी ने हरिजन पत्र में लिखा- ’अंग्रेजों भारत को जापानियों के लिए मत छोड़ो बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़कर जाओ।’ सिंगापुर, मलाया बर्मा में पराजित ब्रिटिश फौज के भारतीय सैनिकों को जापा��� के संरक्षण में रासबिहारी बोस एव मोहन सिंह ने आई एन ए (भारतीय राष्ट्रीय सेना) के रूप में गठित कर लिया। सुभाष चंद्र बोस द्वारा आईएनए का नेतृत्व हासिल करने से इसमें और आक्रामकता आई।
भारत में अंग्रेजों की उपस्थिति निश्चित रूप से आईएनए के सहारे जापान को अवसर प्रदान कर रही थी। आइएनए द्वारा अंडमान निकोबार दीप समूह पर कब्जा एवं उत्तर पूर्व भारत पर हमले से यह धारणा मजबूत होने लगी। इन्हीं हालातों में महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन (अगस्त क्रांति) का आह्वान किया।
अगस्त क्रांति का शंखनाद 8 अगस्त 1942 ग्वालियर टैंक कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भारत छोड़ो प्रस्ताव के पास होने के साथ ही आरंभ हो गया। अपने उद्बोधन में महात्मा गांधी ने जनता को ’करो या मरो’ के नारे के साथ पूर्ण आजादी के लिए संघर्ष का आवाहन किया। यद्यपि समूची कार्यसमिति को ब्रिटिश हुक्मरानों ने अहमदनगर फोर्ट में बंदी बना लिया और महात्मा गांधी को भी आगा खां पैलेस में कैद कर दिया गया। किंतु अरुणा आसफ अली ने 9 अगस्त 1942 को ग्वालियर टैंक मैदान में भारतीय झंडा फहरा कर क्रांति का सूत्रपात कर दिया। इसके बाद देशव्यापी स्वतः स्फूर्त विद्रोह प्रकट हुआ। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य जैसे जेपी, लोहिया, अच्युत पटवर्धन, बीजू पटनायक, सुचेता कृपलानी गुप्त रूप से जनता के बीच में रहकर आंदोलन को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उषा मेहता ने तो गुप्त रूप से कांग्रेस रेडियो का संचालन किया और अपने संदेशों में देशवासियों को क्रांति में शिरकत के लिए प्रेरित किया। ब्रिटिश सरकार ने कठोर सैन्य कार्रवाई से आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया।
60000 से अधिक भारतीय जेल में डाल दिए गए, बंगाल की 73 वर्षीय मातंगिनी हजारा, असम की तरुण छात्रा कनकलाता बरूआ एवं पटना में सचिवालय पर भारतीय ध्वज फहराने के प्रयास में 7 छात्रों को पुलिस द्वारा गोली मारने की घटना बहुत चर्चित हुई। शासन के दमन की प्रतिक्रिया में किसानों, युवाओं ने रेलवे पटरी, टेलीफोन लाइन उखाड़ डाली, थानों पर हमला किया तथा देश के विभिन्न अंचलों स्वतंत्र सरकारों की स्थापना की। बलिया में चीतू पांडेय के नेतृत्व में, उड़ीसा के तलचर में बीजू पटनायक के नेतृत्व में, महाराष्ट्र के सतारा में वाई वी चैहान के नेतृत्व में तथा बंगाल के तामलुक मे जातीय सरकार स्थापित हुई। इस आंदोलन में सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र के किसानों ने बड़े उत्साह से शिरकत की। श्रमिकों ने भी औद्योगिक संस्थानों में हड़ताल कर आंदोलन का समर्थन किया। किंतु भारत की कम्युनिस्ट पार्टी जो विश्व युद्ध के प्रारंभ में इसे साम्राज्यवादी युद्ध कह कर अंग्रेजों के समर्थन का विरोध किया।
हिटलर द्वारा सोवियत रूस पर आक्रमण करते ही कम्युनिस्ट पार्टी का रुख बदल गया और अब वह विश्व युद्ध को पीपुल वार कहने लगी और मित्र राष्ट्रों के समर्थन में बाधा ना आए इसलिए भारत छोड़ो आंदोलन का भी विरोध करने लगी हद तो तब हो गई जब कामरेडो ने भारत छोड़ो आंदोलन को विफल करने के लिए अंग्रेजों के खुफिया दस्ते के रूप में काम किया। यही वह क्षण था, जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भारतीय जनता की निगाहों में संदिग्ध हो गई।
अगस्त क्रांति का हासिल भले ही तात्कालिक तौर पर आमूल परिवर्तन करने वाला न दृष्टिगत हुआ हो। सरकार ने सैन्य बल से इस आन्दोलन को दबा दिया। किंतु इसका परिणाम गहरे स्तर पर क्रांतिकारी था। एक ओर इस आंदोलन ने भारतीय जनता कि वह मानसिक दशा निर्मित कर दी, जिसमें उसे पूर्ण आजादी से कम कुछ भी किसी भी कीमत पर कबूल नहीं था। वही दूसरी ओर ब्रिटिश हुकूमत को यह एहसास हो गया कि नेतृत्व को कुचल देने अथवा सेफ्टीवाल बना लेने से भी भारत में राष्ट्रीयता को कुचलना अब असंभव है। अगस्त क्रांति ने राष्ट्रवाद की चेतना से अछूते सुदूरवर्ती अंचलों के किसान, जनजाति एवं भारतीय सेना को भी संबद्ध कर दिया। जाहिर है कि आईएनए की सेना में ब्रिटिश भारत के हिंदुस्तानी सिपाही ही शामिल थे। इसलिए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जख्मी ब्रिटेन की भारत पर शासन की मंशा का मोहभंग हो गया। युद्धोत्तर काल में कैबिनेट मिशन एवं प्रधानमंत्री एटली की भारत छोड़ने की घोषणा से अंग्रेजों का मोहभंग सर्वविदित हो जाता है। निसंदेह 15 अगस्त 1947 में हासिल भारत की आजादी के पीछे अगस्त क्रांति का योगदान निर्णायक था। भारत की आजादी अगस्त क्रान्ति की सबसे बड़ी देन है।
https://is.gd/5KIQCW In Focus, National, State, Top #InFocus, #National, #State, #Top KISAN SATTA - सच का संकल्प
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अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में विरोध की आग; न्यूयॉर्क, शिकागो और लॉस एंजिल्स में प्रदर्शनकारियों और पुलिस में टकराव
अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में विरोध की आग; न्यूयॉर्क, शिकागो और लॉस एंजिल्स में प्रदर्शनकारियों और पुलिस में टकराव
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अमेरिका में करोनावायरस के चलते लॉकडाउन लगने के बाद तीन अश्वेत व्यक्तियों की हत्या हो चुकी है
लंदन, बर्लिन, क्राइस्टचर्च, सिडनी में हजारों लोगों ने फ्लॉयड के समर्थन में विरोध कर रहे लोगों के लिए मार्च निकाला
दैनिक भास्कर
Jun 01, 2020, 05:00 PM IST
वॉशिंगटन. अमेरिका में अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में हुई मौत का मामला गरमाता जा रहा है। छह दिनों से देशभर में प्रदर्शन किए जा रहे…
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कोरोनोवायरस उपायों के विरोध के लिए बर्लिन ब्रेसिज़
कोरोनोवायरस उपायों के विरोध के लिए बर्लिन ब्रेसिज़
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द्वारा: एपी | बर्लिन | 18 नवंबर, 2020 6:07:44 बजे
पुलिस ने जर्मन संघीय संसद के घर, ब्रैंडेनबर्ग गेट और रीचस्टैग इमारत के बीच एक अवरुद्ध सड़क को साफ करने के लिए वाटर कैनन का उपयोग किया, क्योंकि लोग बर्लिन, जर्मनी, बुधवार, 18 नवंबर, 2020 को ब्रांडेनबर्ग गेट के सामने एक विरोध रैली में भाग लेते हैं। जर्मनी में कोरोनोवायरस प्रतिबंध के…
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अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में विरोध की आग; न्यूयॉर्क, शिकागो और लॉस एंजिल्स में प्रदर्शनकारियों और पुलिस में टकराव
अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में विरोध की आग; न्यूयॉर्क, शिकागो और लॉस एंजिल्स में प्रदर्शनकारियों और पुलिस में टकराव
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अमेरिका में करोनावायरस के चलते लॉकडाउन लगने के बाद तीन अश्वेत व्यक्तियों की हत्या हो चुकी है
लंदन, बर्लिन, क्राइस्टचर्च, सिडनी में हजारों लोगों ने फ्लॉयड के समर्थन में विरोध कर रहे लोगों के लिए मार्च निकाला
दैनिक भास्कर
Jun 01, 2020, 05:05 PM IST
वॉशिं��टन. अमेरिका में अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में हुई मौत का मामला गरमाता जा रहा है। छह दिनों से देशभर में प्रदर्शन किए जा रहे…
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'मुझे मेरी जिंदगी वापस चाहिए', अब जर्मनी से उठी Lockdown के विरोध में आवाजें
‘मुझे मेरी जिंदगी वापस चाहिए’, अब जर्मनी से उठी Lockdown के विरोध में आवाजें
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बर्लिन:पूरी दुनिया लॉकडाउन का सहारा लेकर कोरोना वायरस (coronavirus) से लड़ रही है, क्योंकि जब तक वायरस की दवा नहीं मिलती तब तक लॉकडाउन को ही सबसे कारगर तरीका माना जा रहा है. लेकिन जर्मनी में रहने वाले लोगों को इससे ऐतराज है. मध्य बर्लिन में सैकड़ों लोग कोरोना वायरस लॉकडाउन के खिलाफ सड़कों पर उतर आए. प्रदर्शनकारी चिल्ला रहे थे ‘मुझे मेरी जिंदगी वापस चाहिए’ और उन्होंने हाथों में ‘संवैधानिक…
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'मुझे अपना जीवन वापस चाहिए': जर्मनों ने कोरोनोवायरस लॉकडाउन का विरोध किया
‘मुझे अपना जीवन वापस चाहिए’: जर्मनों ने कोरोनोवायरस लॉकडाउन का विरोध किया
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जर्मन पुलिस ने दंगा गियर और फेस मास्क पहने हुए शनिवार को दर्जनों प्रदर्शनकारियों के साथ सार्वजनिक बर्लिन पर कोरोनोवायरस लॉकडाउन के खिलाफ मध्य बर्लिन में प्रदर्शन किया।
प्रदर्शनकारियों चिल्लाया और इस तरह के “सुरक्षित संवैधानिक अधिकारों” के रूप में नारों के साथ संकेत आयोजित “मैंने अपने जीवन वापस चाहते हैं”, “स्वतंत्रता सब कुछ नहीं है, लेकिन स्वतंत्रता के बिना, सब कुछ कुछ भी नहीं है”, और…
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डॉ. जाकिर हुसैन: भारत के पहले अल्पसंख्यक राष्ट्रपति जो जामिया का VC रहते लेते थे 80 रुपए सैलरी
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डॉ. जाकिर हुसैन: भारत के पहले अल्पसंख्यक राष्ट्रपति जो जामिया का VC रहते लेते थे 80 रुपए सैलरी
डॉ. जाकिर हुसैन ने जर्मनी से अर्थशास्त्र में पीएचडी की थी.
बर्लिन में इकॉनॉमिक्स में पीएच.डी कर रहे जाकिर हुसैन ने जामिया मिलिया को चलाने का दायित्व अपने कंधे पर लेना (1925) स्वीकार किया. तय हुआ कि 150 रुपए की तनख्वाह पर वे जामिया का काम संभालेंगे लेकिन 1928 यानी हकीम अजमल खां की मौत के बाद उन्होंने अपनी तनख्वाह घटाकर 80 रुपए महीना कर ली.
News18Hindi
Last Updated: February 8, 2020, 11:57 AM IST
आज भारत के पहले अल्पसंख्यक राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन (Dr. Zakir Husaain) की ज��ंती है. डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) और सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvpalli Radhakrishnan) के बाद डॉ. जाकिर हुसैन भारत के तीसरे राष्ट्रपति बने थे. वो 13 मई 1967 से 3 मई 1969 तक राष्ट्रपति पद पर रहे. 3 मई 1969 को उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई थी. हैदराबाद में जन्मे मूल रूप से अफगानी पश्तून परिवार से ताल्लुक रखने वाले डॉ. जाकिर हुसैन ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ा योगदान दिया. उनके जीवन से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं. इन्हीं किस्सों में से एक है जामिया में उनका वाइस चांसलर रहते महज 80 रुपए की सैलरी लेना.
कुछ ऐसा था माहौल वह 1920 का वक्त था और महात्मा गांधी जानते थे कि आजादी के आंदोलन को एक व्यापक आधार देना जरूरी है. देश के मुस्लिम समुदाय के भीतर अंग्रेजों के विरुद्ध दो अलग-अलग रुझानों के लोग संघर्ष कर रहे थे. कुछ की सोच थी कि अंग्रेजी राज इस्लाम विरोधी है, सो उसका हरचंद विरोध होना चाहिए जबकि कुछ पश्चिमी शिक्षा प्राप्त नवयुवक थे और बिल्कुल लोकतांत्रिक मिजाज से सोचते थे कि अंग्रेजों ने भारत को नाहक ही उपनिवेश बना रखा है, एक राजनीतिक समुदाय के रूप में भारतीयों को अपने फैसले खुद करने का अख्तियार है.
मुस्लिम समुदाय के भीतर अंग्रेजों की मुखालफत करने वाला यह दोनों तबका गांधी की तरफ मुड़ा और गांधी ने इस मौके को अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन में तब्दील कर दिया. गांधी के आह्वान था कि लोग अंग्रेजी राज के बनाये स्कूल-कॉलेज को छोड़ें, अंग्रेजियत की सीख से अपने दिमाग को धो डालें.
गांधी का असर उनके आह्वान के असर में जिन छात्रों और शिक्षकों ने नौकरी या पढ़ाई छोड़ी उनमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक छात्र जाकिर हुसैन भी थे. खिलाफत आंदोलन और अंग्रेजों से असहयोग की रणनीति से उभरे जन-ज्वार को स्थायी रूप देने के लिए जाकिर हुसैन जैसे कई छात्रों और विद्वानों के एक समूह ने नए तर्ज के तालीम का एक संस्थान बनाने का फैसला लिया. वही संस्थान आज जामिया मिलिया इस्लामिया कहलाता है लेकिन आज के रूप तक आने से पहले उसे अपना वजूद बचाने की लड़ाई लड़नी पड़ी.एक तरफ सियासी संकट थे तो दूसरी तरफ आर्थिक मजबूरी. एक तो इस शिक्षा संस्थान के छात्रों और शिक्षकों ने सारे देश में चल रहे सत्याग्रह में हिस्सेदारी की और अंग्रेजों की जेल में बंद किए गए. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की इस्लामी धारा इस विश्वविद्यालय को अपने वजूद के लिए खतर�� की तरह देख रही थी.
तुर्की के मुस्तफा कमाल पाशा ने 1924 में खिलाफत का खात्मा कर दिया और इससे पहले 1922 में गांधीजी भी असहयोग-आंदोलन वापस ले चुके थे. संस्थान के आगे चुनौती यह थी कि वो अपने को चलाए-बनाए रखे तो किस आधार पर. आर्थिक संकट अलग से थे. खिलाफत के जरिए मिलने वाली आर्थिक मदद खत्म हो चुकी थी. लेकिन गांधी डटे रहे, कहा कि विश्वविद्यालय चलेगा चाहे उसके लिए लोगों से भीख ही क्यों ना मांगनी पड़े.
मुस्तफा कमाल पाशा
ऐसे ही संकल्प के साथ जामिया अलीगढ़ से दिल्ली के करोलबाग में आया, कुछ दिनों तक संस्थान को स्वदेशी शिक्षा के पैरोकार हकीम अजमल खां का सहारा रहा, वे संस्था के सह-संस्थापक और पहले वाइस चांसलर भी थे लेकिन उनकी मौत के बाद सवाल खड़ा हुआ कि आखिर ऐसा कौन है जो जामिया मिलिया को बचाने के लिए अपनी जिंदगी होम कर सके.
जामिया का संभाला जिम्मा संकट के ऐसे ही वक्त में बर्लिन में इकॉनॉमिक्स में पीएच.डी कर रहे जाकिर हुसैन ने जामिया मिलिया को चलाने का दायित्व अपने कंधे पर लेना (1925) स्वीकार किया. तय हुआ कि 150 रुपए की तनख्वाह पर वे जामिया का काम संभालेंगे लेकिन 1928 यानी हकीम अजमल खां की मौत के बाद उन्होंने अपनी तनख्वाह घटाकर 80 रुपए महीना कर ली.
जामिया का ह्यूमैनिटीज ऐंड लैंगुएज डिपार्टमेंट
जामिया को दिए इन 21 सालों ने ही जाकिर हुसैन को एक महान शिक्षाप्रेमी की शख्सियत अता की बल्कि यह कहना ठीक होगा कि जिन बातों को वे अपने बचपन से महसूस करते आ रहे थे, उन्हें जिंदगी के अमल और उसूल के रूप में साकार करना उनके लिए संघर्ष के इन सालों में संभव हो सका. ये भी पढ़ें कोरोना वायरस से मंडराया चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की गद्दी पर खतरा दादा के बनाए कानून के शिकंजे में फंसे उमर अब्दुल्ला, जानें क्या है पब्लिक सेफ्टी एक्ट क्या है बोडो समझौता, जिसके जश्न में शामिल होने असम जा रहे हैं पीएम मोदी कांग्रेस और बीजेपी दोनों की पसंद रहे हैं राम मंदिर के ट्रस्टी परासरन
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First published: February 8, 2020, 11:39 AM IST
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अमेजन आग: ब्राजील ने भेजी सेना
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ब्रासिलिया/ ब्यूनस आयर्स 24 अगस्त (वार्ता) ब्राज़ील के राष्ट्रपति ने अमेज़न के जंगलों में लगी आग को रोकने के लिए सेना की मदद लेने के आदेश दिए हैं जबकि वेनेजुएला सरकार ने अमेजेनियाई देशों से आग के बारे में तुरंत चर्चा करने की अपील की है।
बीबीसी न्यूज के मुताबिक ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो ने एक आदेश जारी करते हुए प्रशासन को सीमाई, आदिवासी और संरक्षित इलाक़ों में सेना तैनात करने को कहा है। ब्राज़ील के राष्ट्रपति ने यह घोषणा यूरोपीय नेताओं के दबाव के बाद की है।
दरअसल, फ़्रांस और आयरलैंड ने कहा था कि वह ब्राज़ील के साथ तब तक व्यापार सौदे को मंज़ूरी नहीं देंगे जब तक कि वह अमेज़न के जंगलों में लगी आग के लिए कुछ नहीं करता है।
फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा था कि ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो ने जलवायु परिवर्तन पर उनसे झूठ कहा है।
इस समय अमेज़न के जंगलों में भीषण आग लगी हुई है और इन जंगलों को दुनिया के ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत माना जाता है। इसकी आग से करीब साढ़े सात अरब लोग प्रभावित हो सकते हैं।
पर्यावरण समूहों का कहना है कि यह आग बोलसोनारो की नीति से जुड़ी हुई है जिसे उन्होंने ख़ारिज किया है। वहीं, दूसरी ओर यूरोपीय नेताओं ने भी अमेज़न के जंगलों में लगी आग पर चिंता जताई है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इस आग को ‘दिल तोड़ने वाला बताते हुए कहा है’ कि यह ‘एक अंतरराष्ट्रीय समस्या’ है। उन्होंने कहा,“हम ऐसी हर संभव मदद के लिए तैयार हैं जिससे आग रोकी जा सकती है और ��िससे पृथ्वी के सबसे बड़े चमत्कार को बचाया जा सकता है।”
जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल ने आग को आपातकालीन स्थिति बताते हुए कहा कि यह सिर्फ़ ब्राज़ील के लिए न केवल चौंकाने वाला और भयंकर है बल्कि यह दूसरे देशों के साथ-साथ दुनिया को भी प्रभावित करेगा।
श्री बोलसोनारो ने शुक्रवार को कहा कि वह आग से लड़ने के विकल्पों पर विचार कर रहे हैं और इसके लिए वह सेना को भी उतारने का विचार कर रहे हैं.
हालांकि, उन्होंने श्री मैक्रों पर आरोप लगाया कि वह ‘राजनीतिक लाभ’ के लिए हस्तक्षेप कर रहे हैं. इससे पहले उन्होंने कहा था कि फ़्रांस में जी-7 सम्मेलन हो रहा है जिसमें ब्राज़ील भाग नहीं ले रहा है और उसमें आग पर चर्चा ‘एक अनुपयुक्त औपनिवेशिक मानसिकता’ को दिखाता है.
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पर्यावरण समूहों ने आग से लड़ने की मांग करते हुए शुक्रवार को ब्राज़ील के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन भी किए।
इसके साथ ही लंदन, बर्लिन, मुंबई और पेरिस में ब्राज़ील दूतावास के बाहर भी कई लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए।
विदेश मंत्री जोर्ज अर्रेज़ा ने कहा कि अमेजोनियन क्षेत्र में जंगल की आग तीन हफ्तों से भड़की हुई है। ब्राजील के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च द्वारा प्रदान किए गए उपग्रह डेटा के अनुसार, इस साल, 2018 की तुलना में जंगल की आग के क्षेत्र में 82 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ब्राजील और बोलीविया जंगल की आग से लड़ने में लगे हुए हैं, जबकि पड़ोसी देशों ने उन्हें सहायता की पेशकश की है।
श्री अर्रेजा ने शुक्रवार को जोर देते हुए कहा,“वेनेजुएला की सरकार अमेजन क्षेत्र में विनाशकारी आग में वन्यजीवों के पारिस्थितिक और सामाजिक परिणामों पर विचार करने और आग को समाप्त करने के लिए अमेज़ॅन सहयोग संधि संगठन के विदेश मंत्रियों की एक आपातकालीन बैठक आयोजित करने की पेशकश करती है।”
मोदी ने जेटली को दी श्रद्धांजलि
अमेज़ॅन सहयोग संधि संगठन में वेनेजुएला के साथ कोलंबिया, इक्वाडोर, गुयाना, बोलीविया, सूरीनाम, ब्राजील और पेरू जैसे देश शामिल हैं।
फ्रांस के राष्ट्रपति ने अमेजन क्षेत्र को नष्ट करने वाले वन्यजीवों को बाहर निकालने की प्राथमिकता के तहत जी 7 शिखर सम्मेलन से पहले विश्व नेताओं से मुलाकात की।
इसी तरह, गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने आग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वैश्विक जलवायु संकट के बीच, दुनिया ऑक्सीजन और जैव विविधता के अपने प्रमुख स्रोत को खोने का जोखिम नहीं उठा सकती है।
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