#बढ़ोतरी से पैसा बढ़ता है
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महंगाई के साथ बढ़ा चुनावी खर्च, पहले लोकसभा चुनाव में प्रति व्यक्ति 67 पैसे खर्च हुए, जानिए अब क्या स्थिति
जयपुर: समय बदलने के साथ जब महंगाई बढ़ती है तो जाहिर तौर पर चुनाव में होने वाला खर्च भी बढ जाता है। हालांकि हर चुनाव में पार्टी और प्रत्याशी की ओर से लाखों करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं लेकिन चुनाव आयोग की ओर खर्च की अधिकतम सीमा तय कर दी गई है। लोकसभा चुनाव में आयोग की ओर से तय की गई सीमा से ज्यादा खर्च नहीं किए जा सकते। चुनाव में बाद प्रत्याशी को अपने खर्च का ब्यौरा भी चुनाव आयोग को पेश करना होता है। प्रत्याशियों की ओर से पेश किए गए ब्यौरे से यह पता लगता है कि प्रति व्यक्ति कुल कितना खर्च हुआ। हजारों गुणा बढ़ गया चुनावी खर्च आप यह जान कर हैरान होंगे कि जब देश में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था तब चुनाव का प्रति व्यक्ति खर्च 0.67 पैसा था। वर्ष 2019 में यह राशि बढकर 31.52 रुपए पहुंच गई। यानी चुनाव में खर्च की राशि करीब 5 हजार गुणा बढ गई। 1952 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद कुछ चुनावों तक खर्च की सीमा घटती बढ़ती रही लेकिन 2009 में हुए लोकसभा चुनाव से लेकर 2019 तक हुई बढ़ोतरी हैरान करने वाली है। इन तीन चुनावों में चुनावी खर्च अचानक सैकड़ों गुना बढ गया। 2004 तक मामूली खर्च बढ़ता रहा वर्ष 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों की ओर से कुल 51.12 लाख रुपए खर्च किए गए। यानी प्रति व्यक्ति खर्चा केवल 67 पैसा था। 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रति व्यक्ति खर्च की राशि घटकर 59 पैसा हो गई थी। तीसरे लोकसभा चुनाव 1962 में प्रति व्यक्ति खर्च फिर से घटा और यह राशि 46 पैसा पहुंच गई। बाद के चुनाव में मामूली बढोतरी होने लगी। वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में 59 पैसा प्रति व्यक्ति खर्च हुआ। बाद में चुनाव खर्च लगातार बढ़ने लगा। वर्ष 2004 तक बढते बढते यह खर्च 7.21 रुपए प्रति व्यक्ति पहुंच गया था। पिछले तीन चुनाव में सैकड़ों गुना बढा चुनावी खर्च पिछले तीन लोकसभा चुनाव यानी वर्ष 2009, 2014 और 2019 में हुआ चुनावी खर्च हैरान करने वाला है। इन तीन चुनाव में खर्च सैकड़ों गुना बढ गया। 2009 के लोकसभा चुनाव में कुल 6394.73 करोड़ रुपए खर्च हुए। यानी प्रति व्यक्ति खर्च 17.26 रुपए था। वर्ष 2014 में कुल 15783.00 करोड़ रुपए खर्च हुए। इस हिसाब से प्रति व्यक्ति खर्च 32.24 रुपए रहा। वर्ष 2019 के चुनाव में भी 15429 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। यानी प्रति व्यक्ति खर्च 31.52 रुपए रहा। कागजी खर्च पर लोगों को भरोसा नहीं, सैंकड़ों गुना ज्यादा खर्च होने का अनुमान जो चुनाव खर्च बताया गया ��ै वह केवल प्रत्याशियों की ओर से दिए गए खर्च के ब्योरे के मुताबिक है। चूंकि चुनाव आयोग ने खर्च की सीमा तय कर रखी है। ऐसे में प्रत्याशियों की ओर से भले ही करोड़ों रुपए खर्च किए जाते होंगे लेकिन जब चुनाव आयोग में खर्च का ब्यौरा जमा कराया जाता है तो तय सीमा से कम ही बताया जाता है। उदाहरण के तौर पर हम देखते हैं कि विधानसभा चुनाव में खर्च की सीमा 40 लाख रुपए तय है। यानी एक प्रत्याशी अधिकतम 40 लाख रुपए से ज्यादा खर्च नहीं कर सकेंगे जबकि सब जानते हैं कि 40 लाख रुपए में चुनाव नहीं लड़ा जाता। कई प्रत्याशी तो चुनाव में 8 से 10 करोड़ रुपए तक खर्च करते हैं लेकिन चुनाव आयोग में जब खर्च का हिसाब जमा कराया जाता है तब तय सीमा के अंदर ही बताया जाता है। आयोग भी हर बार बढ़ता रही खर्च की सीमा महंगाई को देखते हुए चुनाव आयोग की ओर से भी समय समय पर खर्च की राशि बढाई जाती रही। पहले लोकसभा चुनाव यानी 1952 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने खर्च की सीमा 25 हजार रुपए तय की थी। वर्ष 1971 के चुनाव में इसे बढ़ाकर 35 हजार रुपए और वर्ष 1980 में इस राशि को और बढ़ाकर 1 लाख रुपए कर दिया गया। महंगाई को देखते हुए समय समय पर आयोग की ओर से खर्च की राशि में बढोतरी की गई। 1989 में खर्च की सीमा 1.5 लाख रुपए कर दी गई थी जिसे 1996 में बढाकर 4.5 लाख रुपए कर दी गई। वर्ष 1998 के चुनाव में 15 लाख, 2004 में 25 लाख, और 2014 के लोकसभा चुनाव में खर्च की सीमा बढाकर 70 लाख रुपए कर दी गई। इस साल हो रहे लोकसभा चुनाव में यह राशि बढाकर 95 लाख रुपए कर दी गई है। वर्ष प्रति व्यक्ति खर्च कुल खर्च (राशि लाखों में) 1952 0.67 51.12 1957 0.59 51.36 1962 0.46 47.91 1967 0.54 66.50 1971 0.59 78.64 1977 1.26 191.98 1980 1.7 309.29 1984 2.6 522.05 1989 3.89 1004.73 1991 5.48 1455.55 1996 7.41 2251.00 1998 8.62 2564.05 1999 8.05 2506.00 2004 7.21 2503.50 2009 17.26 6394.73 2014 32.24 15783.00 2019 31.52 15429.00 http://dlvr.it/T4wV9s
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IRFC देगा Dividend, जल्दी नोट कर लें रिकॉर्ड तारीख
आज हम बात करने जा रहे हैं IRFC कंपनी के बारे में, इस कंपनी ने लाभांश देने की घोषणा की है। कंपनी जुलाई और सितंबर की तिमाही रिपोर्ट भी पेश करती है
नमस्कार दोस्तों, आपका स्वागत है, आज हम बात करने जा रहे हैं भारतीय रेलवे कंपनी के बारे में, इस कंपनी ने लाभांश देने की घोषणा की है। कंपनी जुलाई और सितंबर की तिमाही रिपोर्ट भी पेश करती है, जिसमें कंपनी को भारी मुनाफा हुआ है, लेकिन इस बार कंपनी का शुद्ध मुनाफा 9% गिर गया है। यह कंपनी काफी मशहूर रेलवे कंपनी है और शेयर बाजार में भी इसका अपना दबदबा है। जब भी किसी रेलवे कंपनी में निवेश की बात आती है तो ज्यादातर लोग इसी कंपनी का सुझाव देते हैं।
Railway Dividend Stock
शेयर बाजार में पैसा कमाने के लिए डिविडेंड बहुत जरूरी हो गया है, क्योंकि इसके जरिए निवेशक अच्छी खासी रकम कमाते हैं। अगर आप लंबी अवधि के लिए शेयर बाजार से पैसा कमाना चाहते हैं तो डिविडेंड के तौर पर कमाई कर सकते हैं। कई रेलवे कंपनियां हर साल अच्छी खासी डिविडेंड देती हैं, उसी तरह आज हम जिस रेलवे कंपनी के बारे में बात करने जा रहे हैं उ���में भी आपको अच्छी खासी डिविडेंड मिलने वाली है, आइए जानते हैं इसके बारे में
कौन सी है कंपनी
यह कंपनी 2021 से लगातार डिविडेंड दे रही है, सितंबर में भी कंपनी ने 0.7 रुपये का डिविडेंड दिया था. इसके बाद कंपनी ने 2022 में डिविडेंड दिया और 2021 में कंपनी ने सबसे ज्यादा 1.01 रुपये का डिविडेंड दिया और अब यह कंपनी 10 नवंबर को अपने निवेशकों को डिविडेंड देने जा रही है. और आपको बता दें कि हम बात कर रहे हैं रेलवे क्षेत्र की जानी-मानी और लोकप्रिय कंपनी इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉर्प की। और डिविडेंड से पहले ही इस कंपनी में बंपर तेजी से निवेशक मालामाल हो गए हैं.
IRFC कंपनी ने डिविडेंड का ऐलान किया है लेकिन इस बार इसका शुद्ध मुनाफा 9% कम हो गया है, शुद्ध मुनाफा ₹1.554 करोड़ हुआ है जबकि पहले कंपनी को ₹1.714 करोड़ का मुनाफा हुआ था। हालांकि इस कंपनी के राजस्व में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन शुद्ध लाभ में गिरावट के बाद इस कंपनी के शेयर पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है। पिछले साल इस कंपनी के शेयर की कीमत ₹22 थी, और आज यह ₹73 तक पहुंच गई है। यह रेलवे कंपनी हल्की गति से अच्छा रिटर्न दे रही है।
IRFC कंपनी रेलवे के सभी वित्तीय कार्य देखती है जिससे कंपनी को हर साल अच्छा मुनाफा होता है क्योंकि इसके व्यवसाय में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। कंपनी का शेयर लगातार ऊपर की ओर बढ़ रहा है. पिछले एक साल में इस कंपनी के शेयर में 122% की बढ़ोतरी हुई है। कंपनी लंबी अवधि के लिए काफी अच्छी साबित हुई है. अगर आने वाले समय में आईआरएफसी कंपनी का शुद्ध मुनाफा बढ़ता है तो इस कंपनी का शेयर घोड़े की रफ्तार से भी दौड़ सकता है। इस रेलवे कंपनी में प्रमोटर ने सबसे ज्यादा दिलचस्पी दिखाई है.
Disclaimer
म्यूचुअल फंड और शेयर बाजार में निवेश करने से पहले कृपया अपने वित्तीय सलाहकार से परामर्श लें। यह लेख इंटरनेट पर उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर लिखा गया है। हमारा उद्देश्य आपको किसी शेयर में निवेश के लिए उत्सुक करना नहीं है, हमारा काम सिर्फ आपको शेयर बाजार में आने वाली खबरें देना है। हम सेबी पंजीकृत वित्तीय सलाहकार नहीं हैं, यदि आपको कोई नुकसान या लाभ होता है तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे।
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वास्तुशास्त्र: इस तरह की गलतियाँ करने पर पैसे की तंगी घर पर नहीं आती!
वास्तुशास्त्र: इस तरह की गलतियाँ करने पर पैसे की तंगी घर पर नहीं आती!
नकारात्मक ऊर्जा और वास्तु दोष … कई बार हम अच्छी कमाई करते हैं, लेकिन फिर कभी पैसे में टिकता नजर नहीं आता है। कई लोग अक्सर इस बात का अनुभव जरूर करते हैं कि अचानक मुश्किल से कमाया हुआ धन अधिक खर्च होने लगता है। यह फिजूल, किसी को उधार देने या फिर बीमारियों के इलाज होने पर बढ़ जाता है। इसके अलावा घर में शांति की जगह अशांति, लड़ाई-झगड़े और नकारात्मकता हावी होने लगती है। वहाँ बनते हुए काम तक बिगड़ने…
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Agriculture Business Ideas : खेती से जुड़े ये बिजनेस आइडिया बना देंगे आपको धनी
Agriculture Business Ideas : खेती से जुड़े ये बिजनेस आइडिया बना देंगे आपको धनी | भारत एक कृषि प्रधान देश (Agricultural Country) है! यहां की लगभग 70 फीसदी आबादी का जीवन यापन कृषि (Subsistence Agriculture) पर ही आधारित है, लेकिन जनसंख्या में होती बढ़ोतरी और कोरोना महामारी के बाद से बढ़ती बेरोजगारी (Unemployment) एक बड़ी समस्या बन चुकी है! ऐसे में ज्यादातर युवा सरकारी नौकरी के लिए मेहनत करते है, लेकिन बढ़ती जनसंख्या की वजह से हर क्षेत्र में जरुरत से ज्यादा कॉम्पिटिशन बढ़ता जा रहा है! Agriculture Business Ideas : खेती से जुड़े ये बिजनेस आइडिया बना देंगे आपको धनी Agriculture Business Ideas इसी वजह से हर किसी के लिए सरकारी नौकरी पाना काफी मुश्किल हो चुका है! ऐसे में बेरोजगारी को द���र करने के लिए छोटे इंडस्ट्री वाले बिजनेस (Small Industry Business) स्वरोजगार या खेती से जुड़े बिजनेस ( Agriculture Business Ideas ) को बढ़ावा दिया का सकता है! अगर बात केवल खेती के क्षेत्र की करें, तो कोरोना के बाद कृषि क्षेत्र में कई लोगों ने अपनी दिलचस्पी दिखाई है तो चलिए आपको खेती से जुड़े बिजनेस आइडिया के बारे में बताते हैं, जिसकी मदद से आप भी अच्छा मुनाफा (Earn Profit) कमा सकते हैं! एलोवेरा उत्पादन (Aloe Vera Production) अगर आप गांव में या किसी छोटे शहर में रहते हैं और खेती से जुड़ा कोई बिजनेस करना चाहते हैं तो एलोवेरा उत्पादन (Aloe Vera Production) एक बेहतर बिकल्प साबित हो सकता है! ये बात तो आप सभी अच्छे से जानते हैं कि एलोवेरा का इस्तेमाल आज मेडिकल और कई हेल्थ केयर प्रोडक्ट्स (Aloe Vera Use in Medical & Health Care Product) को बनाने के लिए किया जाता है! खास कर कोरोना महामारी के बाद लोगों ने अपने इम्यून सिस्टम को और भी मजबूत करने के लिए इन सब का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है! ऐसे में मल्टी नेशनल कम्पनीज (MNC) एलोवेरा के बिजनेस (Aloe Vera Business) में अपनी रुचि दिखा रही है! एलोवेरा का बिजनेस कम लागत (Low Investment) में अच्छा मुनाफा कमाने (Good Earning) का बेहतरीन तरीका है! दाल-आटा या चावल मिल (Rice Mill Business) इसके अलावा अगर आप ग्रामीण इलाके में रहते हैं और आपके पास काफी खाली जगह है तो आप दाल-आटा या चावल मिल (Rice Mill Business) लगा कर अच्छा पैसा (Good Earning) कमा सकते हैं! आटा और चावल इंसान की मूलभूत जरूरतों में से एक है! ये ऐसी चीजें होती हैं, जिनके बिना खाना अधूरा रहता है! ऐसे में इनकी बाजार में सदाबहार (Evergreen Business) मांग रहती है! अगर आप दाल, आटा या चावल मिल का छोटा बिजनेस (Small Business) की शुरूआत करते हैं तो इसमें मेहनत करके सफलता हासिल कर सकते हैं! बिजनेस को शुरू (Start Business) कर ने के लिए आपको एक खाली जगह पर मिल बनवाना होगा और फिर आप किसानों से कच्चा माल (कच्चीदाल, गेहूं ,धान) लेकर उसकी कुटाई पिसाई और पैकेजिंग करके बाजार में सेल कर सकते हैं! इस बिजनेस में आपको निवेश भी कम करना पड़ेगा और मुनाफा (Good Earning in Low Cost) भी अच्छा होगा! इस बिजनेस के लिए बैंक भी आपकी मदद करेगी लोन (Bank Loan for Business) देने में! मशरूम की खेती (Mushroom Farming) मशरूम को मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह के लोग खाना पसंद करते है! किसी भी फंक्शन में मशरूम की डिमांड काफी ज्यादा रहती है! मशरूम की खेती (Mushroom Farming) का बिजनेस कम लागत से शुरू होने वाला मॉर्डन खेती से जुड़ा बिजनेस आइडिया (Modern Agriculture Business Idea) है! ये बिजनेस आइडिया (Business Idea) आपके लिए मुनाफे भरा साबित हो सकता है! बस मशरूम की खेती शुरू करने से पहले इसका प्रशिक्षण लेले तो और भी बेहतर होगा! कृषि क��ंद्र (Agricultural Center) Small Business Idea अगर आप ऐसी जगह रहते है जहां पर ज्यादातर लोग खेती करते हैं तो आप कृषि केंद्र खोल (Open Agricultural Center) सकते है, क्योंकि खेती के लिए कीटनाशक दवाइयां, बीज, कृषि यंत्र आदि की जरूरत होती है! ऐसे में कृषि केंद्र खोलकर इन वस्तुओं को बेच सकते है! आपको कृषि से संबंधित अच्छी जानकारी है तो आप किसान (Farmers) के लिए Agriculture Advisor के रूप में भी काम कर सकते है! ये एक Low Investment Business Idea है जो अच्छा मुनाफा देता है! इसके लिए सारकर लोन की सुविधा भी मुहैया करवाती है! Read the full article
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ग्रहोंं की वाणी, साप्ताहिक राशिफल, (मिथुन,सिंह, तुला,मकर)राशि वालों के लिये 8 november से 15 november 2020
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ग्रहोंं की वाणी, साप्ताहिक राशिफल, (मिथुन,सिंह, तुला,मकर)राशि वालों के लिये 8 november से 15 november 2020
मिथुन राशि यह सप्ताह आपके करियर और अनुभव को उज्ज्वल करने वाला है। आप पिछले कार्य अनुभव का लाभ उठा सकते हैं। आपको अधिकारियों का सहयोग मिलेगा और अपने कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ना होगा। आर्थिक मामलों में भी यह सप्ताह आपके लिए अनुकूल रहेगा।काम मे लागत से तनाव हो सकता है, लेकिन जीवनसाथी के साथ प्यार और समर्थन बना रहेगा। छोटी यात्रा की भी संभावना रहेगी। इस सप्ताह आपको अपने क्रोध पर नियंत्रित करें।
सिंह राशि
वित्त के लिहाज से यह सप्ताह सिंह राशि के लोगों के लिए सुखद और फायदेमंद रहा है। जो लोग व्यापार करते हैं उन्हें अतिरिक्त लाभ मिल सकता है मित्रों और पड़ोसियों से सहयोग मिलेगा, लेकिन कोई रिश्तेदार निराश हो सकता है। रिश्तेदारों से बेहतर आपको खाने-पीने पर ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि पेट फूलने और पेट दर्द का खतरा हो सकता है। आपको अपने साथी और भाई-बहनों से जो सहयोग चाहिए, वह मिल सकता है। इस सप्ताह कुछ नए रिश्ते भी बनने वाले हैं। खतरनाक काम से बचने और लंबी दूरी तय करने पर विशेष ध्यान देना बेहतर है।
तुला राशि
दिवाली का यह सप्ताह आपको शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए प्रोत्साहित करता है। पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए आप आनंद लेंगे। भौतिक सुख की इच्छा अधिक होगी। खरीदारी पर पैसा खर्च होगा। घर की सजावट पर अपना ध्यान दें। कामकाजी महिलाओं के लिए सप्ताह बहुत थका देने वाला हो सकता है, लेकिन पूरा सप्ताह मेहनत करने और सप्ताहांत का आनंद लेने में व्यतीत हो सकता है।अपने विरोधियों और अपने व्यवहार और कार्यों की तारफ लापरवाही न करें। सामाजिक और पारिवारिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। व्यवसायी जातकों के लिए यह सप्ताह उपयोगी और सुखद रहेगा। अगर आपके करीबी लोग आपसे नाराज है तो मनाने का प्रयास हो सकता है। पारिवारिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। व्यवसायी जातकों के लिए यह सप्ताह उपयोगी और सुखद रहेगा। अगर आपके करीबी लोग आपसे नाराज हैं, तो आप उन्हें मना ले।
मकर राशि
आर्थिक मामलों में सावधानी बरतें। सहृदयता की भावना प्र��्फुटित होगी। आर्थिक स्थिति को लेकर सावधान रहें। अनावश्यक समस्याएं पहाड़ जैसी दिखेंगी। राजस्व को प्रभावित करेगा। पारिवारिक अपेक्षाएँ बढ़ने पर दबाव बढ़ा। नया अभी उद्यमों में शामिल न हों। बिना देखे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर न करें। माता का स्वास्थ्य नरम रहेगा। आस-पास के लोगों की पीड़ा आपको भावनात्मक रूप से प्रभावित करेगी। किसी की रणनीति से बहुत दर्द हो सकता है। साहस और शक्ति का विकास होगा। दोस्त सहयोग करेंगे और रिश्तेदार वास्तव में एक रिश्ता निभाएंगे। किसी नए सौदे से लाभ होगा। कर्ज लेने वालों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। सप्ताहांत करियर पर थोड़ा तनाव बढ़ता है। किसी के सहयोग से आवश्यक कार्य करेंगे।
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Petrol Diesel Price Hike/Latest OLD Video Updates; Narendra Modi, Rajnath Singh, Nitin Gadkari, Smriti Irani To Ravi Shankar Prasad | बीजेपी के जो नेता डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ने पर सड़कों पर उतर जाते थे, उन्हीं की सरकार डीजल पर 66% टैक्स वसूल रही है
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Petrol Diesel Price Hike/Latest OLD Video Updates; Narendra Modi, Rajnath Singh, Nitin Gadkari, Smriti Irani To Ravi Shankar Prasad | बीजेपी के जो नेता डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ने पर सड़कों पर उतर जाते थे, उन्हीं की सरकार डीजल पर 66% टैक्स वसूल रही है
प्रधानमंत्री मोदी समेत कई मंत्री यूपीए सरकार खिलाफ डीजल-पेट्रोल के मुद्दे पर आंदोलन कर चुके हैं
यूपीए सरकार डीजल पर 18% टैक्स वसूलती थी, जबकि मोदी सरकार ने इसे बढ़ाकर 66% कर दिया
दैनिक भास्कर
Jun 29, 2020, 08:10 PM IST
नई दिल्ली. देशभर में डीजल-पेट्रोल के ऊंचे दाम लोगों की जेब पर डाका डाल रहे हैं। लेकिन जो लोग आज केंद्र में सरकार चला रहे हैं, विपक्ष में रहते हुए वही डीजल-पेट्रोल के दाम में इजाफा होने पर प्रदर्शन करने निकल पड़ते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उनके कई मंत्री डीजल पेट्रोल की कीमतें बढ़ने पर कांग्रेस सरकार को जी भरकर कोसते थे। हम आपको दिखाते हैं कि साल 2010 से लेकर 2014 में सत्ता पर काबिज होने तक क्या कुछ कहते रहे हैं बीजेपी के नेता…
नरेंद्र मोदी
तारीख: 24 मई 2012 बयान: पेट्रोल-डीजल के दाम जिस तरह बढ़ाए गए थे, वो दिल्ली में बैठी सरकार की नाकामी का जीता-जागता सबूत है।
नितिन गडकरी
तारीख: 16 मई, 2010 बयान: जब दाम बढ़ते हैं, तो सरकार का टैक्स भी बढ़ता है। टैक्स में राहत देकर दाम कम किए जा सकते हैं।
राजनाथ सिंह
तारीख : 6 सितंबर, 2011 बयान: पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी मध्यमवर्गीय लोगों के लिए तो परेशानी है ही, इससे गरीबों के सामने जीने-मरने का सवाल खड़ा हो गया है।
प्रकाश जावड़ेकर
तारीख: 7 नवंबर, 2011 बयान: पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाने का कोई आधार नहीं है। जिस दिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम कम हुए, उसी दिन सरकार ने दाम बढ़ाए।
मुख्तार अब्बास नकवी
तारीख: 1 अप्रैल 2012 बयान: बाजार माफिया पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाकर मंहगाई में इजाफा कर रहा है और सरकार माफिया से मिली ��ुई है।
स्मृति ईरानी
तारीख: 20 सितंबर, 2012 बयान: मंहगाई कम करने की बात कही थी, लेकिन सरकार क्यों बार-बार पेट्रोल-डीजल की कीमत क्यों बढ़ाती है?
रविशंकर प्रसाद
तारीख: 20 सितंबर, 2012 बयान: सरकार ने डीजल की कीमतें फिर बढ़ा दी हैं। इसका असर गरीबों के खाने की कीमतों तक पर पड़ेगा।
डीजल की कीमत का 66% हिस्सा सरकार की जेब में
सोमवार को पेट्रोल 5 पैसे और डीजल 13 पैसे महंगा हुआ। इस बढ़ोतरी के साथ दिल्ली में डीजल का रेट 80.53 रुपए प्रति लीटर के नए स्तर पर पहुंच गया। दिल्ली में डीजल, पेट्रोल से भी महंगा चल रहा है। 7 जून से अब तक डीजल के रेट में 22 बार इजाफा हो चुका। इस दौरान डीजल 11.14 रुपए महंगा हुआ है। तेल कंपनियों ने 7 जून से रेट बढ़ाने शुरू किए थे। तब से अब तक पेट्रोल के रेट में 21 दिन इजाफा किया गया। इस दौरान पेट्रोल 9.17 रुपए महंगा हुआ है। अभी क्रूड ऑयल 40 डॉलर प्रति बैरल पर है। 16 जून के प्राइस ब्रेकअप के मुताबिक, दिल्ली में डीजल 75.19 रुपए पर था। इसमें बेस प्राइस, किराया भाड़ा और डीलर कमीशन 25.76 रुपया था। इसके ऊपर 50 रुपए सरकार टैक्स के तौर पर वसूल रही है। यानी एक लीटर डीजल के लिए आप जितना पैसा दे रहे हैं, उसका 66% हिस्सा सरकार टैक्स वसूल रही है।
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पेट्रोल-डीजल के आ गए अच्छे दिन! has been published on PRAGATI TIMES
पेट्रोल-डीजल के आ गए अच्छे दिन!
अब तक सभी यह मानते थे कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल की कीमतें घटती हैं तो असर भारत में भी दिखता है, लेकिन अब यह बीते दिनों की बात हो गई है।
फिलहाल ठीक उल्टा है। विश्व बाजार में दाम घट रहे हैं, हमारे यहां लगातार बढ़ रहे हैं। लोगों की चिंता वाजिब है। आखिर यह खेल है क्या? शायद यह हमारी नीयति है या राजनैतिक व्यवस्था का खामियाजा? जो भी कहें, सच्चाई यही है कि टैक्स बढ़ाकर सरकार अपना खजाना तो भर रही है, लेकिन बोझ आम आदमी के कंधों पर डाल रही है। लोकतांत्रिक सरकार और लोकतांत्रिक भगवान (मतदाता) के बीच इतना विरोधाभास क्यों और कब तक? यह सच है कि पेट्रोल-डीजल के दाम बीते तीन वर्षो की अधिकतम ऊंचाइयों पर हैं। लेकिन उससे भी बड़ा सच यह कि विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगभग आधी हैं। जून, 2014 में जो कच्चा तेल लगभग 115 डॉलर प्रति बैरल था, वही अब बहुत नीचे गिरकर 50-55 डालर के आस-पास स्थिर है। दाम घटने के बावजूद नवंबर, 2014 से लगातार 9 बार डीजल-पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई। उस समय पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.20 रुपए थी जो जनवरी 2017 तक बढ़कर 21.48 रुपये हो गई है। इसी तरह नवंबर 2014 में डीजल की एक्साइज ड्यूटी 3.46 रुपये, जनवरी 2017 तक 17.33 रुपये हो गई। 26 मई, 2014 को जब मोदी सरकार ने शपथ ग्रहण किया, तब कच्चे तेल की कीमत 6330.65 रुपये प्रति बैरल थी जो अभी पिछले हफ्ते ही आधी घटकर लगभग 3368.39 रुपये प्रति बैरल हो गई। 16 जून से पूरे देश में डायनामिक प्राइसिंग लागू होने से हर रोज सुबह 6 बजे पेट्रोल-डीजल के दाम बदल जाते हैं। सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि मौजू��ा सरकार के आने के बाद से डीजल पर लागू एक्साइज ड्यूटी में 380 प्रतिशत और पेट्रोल पर 120 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। कई राज्यों में पेट्रोल के दाम 80 रुपये के पार जा चुके हैं। 17 सितंबर को मुंबई में पेट्रोल 79.62 रुपये, डीजल 62.55 रुपये, दिल्ली में पेट्रोल 70.51 रुपये, डीजल 58.88 रुपये प्रति लीटर रहा। उपभोक्ता की दृष्टि से देखें तो विश्व बाजार की मौजूदा कीमतों की तुलना में यहां प्रति लीटर भुगतान की जाने वाली कीमत का लगभग आधा पैसा ऐसे टैक्सों के जरिए सरकार के खजाने में पहुंच रहा है। बढ़े दामों का 75 से 80 प्रतिशत फायदा सरकारी खजाने में, जबकि उपभोक्ताओं को केवल 20-25 प्रतिशत ही मिल पाया। अर्थशास्त्रियों के अनुमान पर जाएं, तो पिछले तीन साल में पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोतरी से सरकार के पास कम से कम 5 लाख करोड़ रुपये जमा हुए हैं। बड़ी विडंबना देखिए कि केंद्रीय पर्यटन मंत्री अल्फोंज कन्ननाथम पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर कहते हैं, “जो लोग पेट्रोल डीजल खरीद रहे हैं वे गरीब नहीं हैं और ना ही वे भूखे मर रहे हैं। पेट्रोल-डीजल खरीदने वाले कार और बाइक के मालिक हैं। उन्हें ज्यादा टैक्स देना ही पड़ेगा। सरकार को गरीबों का कल्याण करना है, और इसके लिए पैसे चाहिए, इसलिए अमीरों पर ज्यादा टैक्स लग रहा है। गरीबों का कल्याण कर हर गांव में बिजली देनी है, लोगों के लिए घर और टॉयलेट बनाना है। इन योजनाओं को अमली जामा पहनाने हैं, जिसके लिए काफी पैसा चाहिए, इसलिए हम उन लोगों पर टैक्स लगा रहे हैं जो चुकाने में सक्षम हैं।” इस अंकगणित को कौन झुठलाए कि आम आदमी की जेब पर केवल पेट्रोल और डीजल का खर्चा नहीं बढ़ता है, हर चीज महंगी होती है। परिवहन कर जो सामान एक-दूसरी जगह भेजा जाता है, महंगा होता है। इससे उसकी लागत बढ़ जाती है, मुद्रा स्फीति भी बढ़ती है, और थोक मूल्य सूचकांक में वृद्धि होती है। उन्मुक्त बाजार के नाम पर पेट्रोलियम की कीमतों में दखल न देकर उपभोक्ताओं का हिस्सा मारा जा रहा है। सरकार की कमाई बची रहे, इसलिए केंद्र और राज्यों की सरकारों ने इसे जीएसटी से भी बाहर रखा है। क्या राजस्व जुटाने के लिए मौजूदा सरकार के पास सिवाए पेट्रोलियम पर टैक्स वसूलने के दूसरा कोई रास्ता नहीं है? क्या पेट्रोलियम मंत्री के ट्वीट कि दुनिया के कई देशों में भारत से महंगा पेट्रोल-डीजल मिलता है, हम विकसित या विकासशील देशों के बराबर पहुंच जाएंगे? दूर नहीं, पड़ोस में ही देखें पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में पेट्रोल-डीजल के दाम हमसे कम हैं। क्या हम उनसे भी पीछे हैं? क्या उनको सरकारी खजाने में ज्यादा धन की जरूरत नहीं है, क्या उन्हें विकास और गरीबों के कल्याण की चिंता नहीं है? मई, 2008 में जब यूपीए सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दामों में चार साल बाद वृद्धि की थी, तब इसी भाजपा ने सरकार पर ‘आर्थिक आतंकवाद’ के आरोप मढ़े थे और आज खुद ही उससे भी आगे बढ़ गई है। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान की जीएसटी काउंसिल से पेट्रोलियम पदार्थो को जीएसटी के दायरे में लाने की अपील के अमल में आने के बाद देश भर में समान कीमतों पर एक्साइज का क्या असर होगा, इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। फिलहाल केंद्रीय मंत्री अल्फोंज के शब्दों की अनुगूंज ही काफी है, जिसमें वह कहते हैं, ‘जो लोग पेट्रोल-डीजल खरीद रहे हैं, वे गरीब नहीं हैं और ना ही वे भूखे मर रहे हैं। लोग एक-दूसरे से पूछते हैं, क्या यही अच्छे दिन हैं?
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Opinion: अमेरिका के सामने अभी बौना जरूर है लेकिन तेजी से तगड़ा हो रहा है भारत का शेयर बाजार
लेखक: रुचिर शर्माअधिकांश वैश्विक निवेशक दुनिया के सबसे शक्तिशाली बाजार अमेरिका में शेयर की कीमतों में बढ़ोतरी से परेशान हैं। लेकिन भारत का चढ़ता बाजार (बुल मार्केट) और भी अधिक गतिशील और मजबूत है। अमेरिका और भारत हाल ही में डॉलर के संदर्भ में सर्वकालिक उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं। सिर्फ ये ही दो प्रमुख हैं जो बाकी सभी बाजारों से आगे हैं। उनके बाजार अपेक्षाकृत मजबूत अर्थव्यवस्थाओं और आशावादी घरेलू निवेशकों के एक बड़े आधार से संचालित होते हैं। हालांकि, दोनों देखने में एक ही लगें, लेकिन वाकई में दोनों की मजबूती का राज अलग-अलग है। अमेरिकी अपवाद: अमेरिका एक ऐतिहासिक विसंगति है। इसकी विकास गाथा सिर्फ एक बड़े सेक्टर पर लिखी गई है। वह है टेक सेक्टर। इसके अंदर भी बहुत हद तक मुट्ठीभर की विशालकाय कंपनियों के कंधों पर ही दारोमदार है। टेक सेक्टर की उन विशाकाय अमेरिकी कंपनियों को हाल में शानदार सात (मेग्निफिशेंट सेवन) उपमा दी गई। ये कंपनियां पुरानी पड़ रही हैं, लेकिन बड़ी से बड़ी हो रही हैं। इस कारण बाकी सभी शेयरों का खून चूस रही हैं। पिछले वर्ष मैग्निफिसेंट सेवन में औसतन 80% की वृद्धि हुई है और उस दौरान की कुल बढ़त में आधे से अधिक का योगदान है। इस बीच, अमेरिका में सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाले 4,700 में से औसत स्टॉक में गिरावट आई है। यह हद से ज्यादा केंद्रित रिटर्न की कहानी है, जो एआई से जुड़े किसी भी स्टॉक के लिए बढ़ते उन्माद पर केंद्रित है और जिसे मुख्य रूप से सबसे बड़ी कंपनियों के लिए एक वरदान के रूप में देखा जाता है। स्मॉल कैप को परेशानी: यह कितना असामान्य है, इसका अंदाजा लगाने के लिए गौर करना होगा कि अतीत में बढ़ते अमेरिकी बाजारों के दौर में बड़े शेयर बमबम बोल रहे थे लेकिन छोटे शेयरों को नुकसान नहीं हुआ था। 1970 के दशक की शुरुआत में, फिर 90 के दशक के अंत में छोटे शेयरों ने दोहरे अंकों में वार्षिक रिटर्न दिया और बाकी उभरते बाजारों के साथ उनकी किस्मत भी चमक गई।अब, छोटे शेयर निचले पायदान पर और रेस से बाहर हैं। आमतौर पर संस्थागत निवेशकों की तुलना में खुदरा निवेशक बहुत ज्यादा जोखिम लेते हैं और बिल्कुल अलग पोर्टफोलियो रखते हैं। ��ीक तीन साल पहले महामारी के चरम पर होने के वक्त खुदरा निवेशकों ने खुला विद्रोह कर दिया था। वो हेज फंड किंगपिन की पॉजिशन के खिलाफ दांव लगाकर उन्हें गलत साबित करने की कोशिश कर रहे थे। आज हेज फंड और रॉबिनहुड पर डे ट्रेडर्स दोनों के लिए टॉप 10 होल्डिंग्स में मैग्निफिसेंट सेवन का दबदबा है।भारत की शानदार बढ़त: इसके विपरीत भारत का तेजी से बढ़ता बाजार बहुआयामी मजबूती पर आधारित है। शेयर बाजार में लाभ सभी क्षेत्रों में समान रूप से वितरित किया जाता है और किसी भी क्षेत्र ने पिछले वर्ष की तुलना में कुल रिटर्न का एक चौथाई भी नहीं दिया। ऐपल जैसी विशाल टेक कंपनियों ने अकेले अमेरिकी शेयर बाजार के लाभ का उतना हिस्सा अपने नाम कर लिया है जितना भारत में कोई एक इंडस्ट्री नहीं कर पाई।जबकि भारत में लार्ज कैप स्टॉक्स में बढ़त हो रही है, मध्यम और छोटे शेयरों में और भी अधिक बढ़त हुई है। 2023 की शुरुआत से जमीन खोने के बजाय औसत स्टॉक 40% से अधिक बढ़ गया है। उभरते बाजारों में अब मूल्य के हिसाब से सभी स्मॉल कैप शेयरों में भारत की हिस्सेदारी 25% है, जो ताइवान, दक्षिण कोरिया और चीन सहित किसी भी अन्य देश से अधिक है। बुलिश घरेलू निवेशक: ऐसी धारणा है कि चीन से पैसा निकलने से भारत को फायदा हो रहा है। दरअसल, विदेशी धन आ रहा है, लेकिन घरेलू धन जितनी मात्रा में नहीं। इस कारण, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के पास अब पब्लिक ट्रेडिंग के लिए उपलब्ध 40% से भी कम स्टॉक हैं, जो एक दशक पहले के 60% से कम थे।एआई निर्मित आशावाद के बजाय भारत को इक्विटी कल्चर के प्रसार से बढ़ावा मिल रहा है क्योंकि बढ़ती आय के साथ लोगों का रुझान शेयर बाजार में निवेश की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। भारतीयों का 'सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लांस' में रखा पैसा पिछले दो वर्षों में तीन गुना होकर लगभग 110 अरब डॉलर हो गया है।मजबूत विकास: ब्लूमबर्ग डेटा के मुताबिक, पिछले दो दशकों में भारत में शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों की संख्या लगभग पांच गुना बढ़कर 2,800 हो गई है जिनमें एक करोड़ डॉलर से कम मूल्य वाले माइक्रो कैप शामिल नहीं हैं। इस बीच, अमेरिका में यह संख्या एक चौथाई घटकर 4,700 रह गई, जहां कुलीनतंत्र ने केवल तकनीक ही नहीं, बल्कि अधिकांश उद्योगों पर मजबूत पकड़ बनानी शुरू कर दी।दूसरी तरफ, भारत में लगभग 180 कंपनियां इस दशक में कम से कम तीन गुना हो गई हैं और अब उनका मूल्य 1 अरब डॉलर या उससे अधिक है। यह किसी भी अन्य देश से काफी आगे है, जिसमें 160 से कम के साथ अमेरिका और 80 से कम के साथ चीन शामिल है।ज्यादातर शेयर बाजारों में समय की धारा से इतर वृद्धि देखी जाती… http://dlvr.it/T3TVXF
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पेट्रोल-डीजल के आ गए अच्छे दिन!
अब तक सभी यह मानते थे कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल की कीमतें घटती हैं तो असर भारत में भी दिखता है, लेकिन अब यह बीते दिनों की बात हो गई है।
फिलहाल ठीक उल्टा है। विश्व बाजार में दाम घट रहे हैं, हमारे यहां लगातार बढ़ रहे हैं। लोगों की चिंता वाजिब है। आखिर यह खेल है क्या? शायद यह हमारी नीयति है या राजनैतिक व्यवस्था का खामियाजा? जो भी कहें, सच्चाई यही है कि टैक्स बढ़ाकर सरकार अपना खजाना तो भर रही है, लेकिन बोझ आम आदमी के कंधों पर डाल रही है। लोकतांत्रिक सरकार और लोकतांत्रिक भगवान (मतदाता) के बीच इतना विरोधाभास क्यों और कब तक? यह सच है कि पेट्रोल-डीजल के दाम बीते तीन वर्षो की अधिकतम ऊंचाइयों पर हैं। लेकिन उससे भी बड़ा सच यह कि विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगभग आधी हैं। जून, 2014 में जो कच्चा तेल लगभग 115 डॉलर प्रति बैरल था, वही अब बहुत नीचे गिरकर 50-55 डालर के आस-पास स्थिर है। दाम घटने के बावजूद नवंबर, 2014 से लगातार 9 बार डीजल-पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई। उस समय पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.20 रुपए थी जो जनवरी 2017 तक बढ़कर 21.48 रुपये हो गई है। इसी तरह नवंबर 2014 में डीजल की एक्साइज ड्यूटी 3.46 रुपये, जनवरी 2017 तक 17.33 रुपये हो गई। 26 मई, 2014 को जब मोदी सरकार ने शपथ ग्रहण किया, तब कच्चे तेल की कीमत 6330.65 रुपये प्रति बैरल थी जो अभी पिछले हफ्ते ही आधी घटकर लगभग 3368.39 रुपये प्रति बैरल हो गई। 16 जून से पूरे देश में डायनामिक प्राइसिंग लागू होने से हर रोज सुबह 6 बजे पेट्रोल-डीजल के दाम बदल जाते हैं। सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि मौजूदा सरकार के आने के बाद से डीजल पर लागू एक्साइज ड्यूटी में 380 प्रतिशत और पेट्रोल पर 120 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। कई राज्यों में पेट्रोल के दाम 80 रुपये के पार जा चुके हैं। 17 सितंबर को मुंबई में पेट्रोल 79.62 रुपये, डीजल 62.55 रुपये, दिल्ली में पेट्रोल 70.51 रुपये, डीजल 58.88 रुपये प्रति लीटर रहा। उपभोक्ता की दृष्टि से देखें तो विश्व बाजार की मौजूदा कीमतों की तुलना में यहां प्रति लीटर भुगतान की जाने वाली कीमत का लगभग आधा पैसा ऐसे टैक्सों के जरिए सरकार के खजाने में पहुंच रहा है। बढ़े दामों का 75 से 80 प्रतिशत फायदा सरकारी खजाने में, जबकि उपभोक्ताओं को केवल 20-25 प्रतिशत ही मिल पाया। अर्थशास्त्रियों के अनुमान पर जाएं, तो पिछले तीन साल में पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोतरी से सरकार के पास कम से कम 5 लाख करोड़ रुपये जमा हुए हैं। बड़ी विडंबना देखिए कि केंद्रीय पर्यटन मंत्री अल्फोंज कन्ननाथम पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर कहते हैं, “जो लोग पेट्रोल डीजल खरीद रहे हैं वे गरीब नहीं हैं और ना ही वे भूखे मर रहे हैं। पेट्रोल-डीजल खरीदने वाले कार और बाइक के मालिक हैं। उन्हें ज्यादा टैक्स देना ही पड़ेगा। सरकार को गरीबों का कल्याण करना है, और इसके लिए पैसे चाहिए, इसलिए अमीरों पर ज्यादा टैक्स लग रहा है। गरीबों का कल्याण कर हर गांव में बिजली देनी है, लोगों के लिए घर और टॉयलेट बनाना है। इन योजनाओं को अमली जामा पहनाने हैं, जिसके लिए काफी पैसा चाहिए, इसलिए हम उन लोगों पर टैक्स लगा रहे हैं जो चुकाने में सक्षम हैं।” इस अंकगणित को कौन झुठलाए कि आम आदमी की जेब पर केवल पेट्रोल और डीजल का खर्चा नहीं बढ़ता है, हर चीज महंगी होती है। परिवहन कर जो सामान एक-दूसरी जगह भेजा जाता है, महंगा होता है। इससे उसकी लागत बढ़ जाती है, मुद्रा स्फीति भी बढ़ती है, और थोक मूल्य सूचकांक में वृद्धि होती है। उन्मुक्त बाजार के नाम पर पेट्रोलियम की कीमतों में दखल न देकर उपभोक्ताओं का हिस्सा मारा जा रहा है। सरकार की कमाई बची रहे, इसलिए केंद्र और राज्यों की सरकारों ने इसे जीएसटी से भी बाहर रखा है। क्या राजस्व जुटाने के लिए मौजूदा सरकार के पास सिवाए पेट्रोलियम पर टैक्स वसूलने के दूसरा कोई रास्ता नहीं है? क्या पेट्रोलियम मंत्री के ट्वीट कि दुनिया के कई देशों में भारत से महंगा पेट्रोल-डीजल मिलता है, हम विकसित या विकासशील देशों के बराबर पहुंच जाएंगे? दूर नहीं, पड़ोस में ही देखें पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में पेट्रोल-डीजल के दाम हमसे कम हैं। क्या हम उनसे भी पीछे हैं? क्या उनको सरकारी खजाने में ज्यादा धन की जरूरत नहीं है, क्या उन्हें विकास और गरीबों के कल्याण की चिंता नहीं है? मई, 2008 में जब यूपीए सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दामों में चार साल बाद वृद्धि की थी, तब इसी भाजपा ने सरकार पर ‘आर्थिक आतंकवाद’ के आरोप मढ़े थे और आज खुद ही उससे भी आगे बढ़ गई है। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान की जीएसटी काउंसिल से पेट्रोलियम पदार्थो को जीएसटी के दायरे में लाने की अपील के अमल में आने के बाद देश भर में समान कीमतों पर एक्साइज का क्या असर होगा, इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। फिलहाल केंद्रीय मंत्री अल्फोंज के शब्दों की अनुगूंज ही काफी है, जिसमें वह कहते हैं, ‘जो लोग पेट्रोल-डीजल खरीद रहे हैं, वे गरीब नहीं हैं और ना ही वे भूखे मर रहे हैं। लोग एक-दूसरे से पूछते हैं, क्या यही अच्छे दिन हैं?
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पेट्रोल-डीजल के आ गए अच्छे दिन!
अब तक सभी यह मानते थे कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल की कीमतें घटती हैं तो असर भारत में भी दिखता है, लेकिन अब यह बीते दिनों की बात हो गई है।
फिलहाल ठीक उल्टा है। विश्व बाजार में दाम घट रहे हैं, हमारे यहां लगातार बढ़ रहे हैं। लोगों की चिंता वाजिब है। आखिर यह खेल है क्या? शायद यह हमारी नीयति है या राजनैतिक व्यवस्था का खामियाजा? जो भी कहें, सच्चाई यही है कि टैक्स बढ़ाकर सरकार अपना खजाना तो भर रही है, लेकिन बोझ आम आदमी के कंधों पर डाल रही है। लोकतांत्रिक सरकार और लोकतांत्रिक भगवान (मतदाता) के बीच इतना विरोधाभास क्यों और कब तक? यह सच है कि पेट्रोल-डीजल के दाम बीते तीन वर्षो की अधिकतम ऊंचाइयों पर हैं। लेकिन उससे भी बड़ा सच यह कि विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगभग आधी हैं। जून, 2014 में जो कच्चा तेल लगभग 115 डॉलर प्रति बैरल था, वही अब बहुत नीचे गिरकर 50-55 डालर के आस-पास स्थिर है। दाम घटने के बावजूद नवंबर, 2014 से लगातार 9 बार डीजल-पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई। उस समय पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.20 रुपए थी जो जनवरी 2017 तक बढ़कर 21.48 रुपये हो गई है। इसी तरह नवंबर 2014 में डीजल की एक्साइज ड्यूटी 3.46 रुपये, जनवरी 2017 तक 17.33 रुपये हो गई। 26 मई, 2014 को जब मोदी सरकार ने शपथ ग्रहण किया, तब कच्चे तेल की कीमत 6330.65 रुपये प्रति बैरल थी जो अभी पिछले हफ्ते ही आधी घटकर लगभग 3368.39 रुपये प्रति बैरल हो गई। 16 जून से पूरे देश में डायनामिक प्राइसिंग लागू होने से हर रोज सुबह 6 बजे पेट्रोल-डीजल के दाम बदल जाते हैं। सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि मौजूदा सरकार के आने के बाद से डीजल पर लागू एक्साइज ड्यूटी में 380 प्रतिशत और पेट्रोल पर 120 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। कई राज्यों में पेट्रोल के दाम 80 रुपये के पार जा चुके हैं। 17 सितंबर को मुंबई में पेट्रोल 79.62 रुपये, डीजल 62.55 रुपये, दिल्ली में पेट्रोल 70.51 रुपये, डीजल 58.88 रुपये प्रति लीटर रहा। उपभोक्ता की दृष्टि से देखें तो विश्व बाजार की मौजूदा कीमतों की तुलना में यहां प्रति लीटर भुगतान की जाने वाली कीमत का लगभग आधा पैसा ऐसे टैक्सों के जरिए सरकार के खजाने में पहुंच रहा है। बढ़े दामों का 75 से 80 प्रतिशत फायदा सरकारी खजाने में, जबकि उपभोक्ताओं को केवल 20-25 प्रतिशत ही मिल पाया। अर्थशास्त्रियों के अनुमान पर जाएं, तो पिछले तीन साल में पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोतरी से सरकार के पास कम से कम 5 लाख करोड़ रुपये जमा हुए हैं। बड़ी विडंबना देखिए कि केंद्रीय पर्यटन मंत्री अल्फोंज कन्ननाथम पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर कहते हैं, “जो लोग पेट्रोल डीजल खरीद रहे हैं वे गरीब नहीं हैं और ना ही वे भूखे मर रहे हैं। पेट्रोल-डीजल खरीदने वाले कार और बाइक के मालिक हैं। उन्हें ज्यादा टैक्स देना ही पड़ेगा। सरकार को गरीबों का कल्याण करना है, और इसके लिए पैसे चाहिए, इसलिए अमीरों पर ज्यादा टैक्स लग रहा है। गरीबों का कल्याण कर हर गांव में बिजली देनी है, लोगों के लिए घर और टॉयलेट बनाना है। इन योजनाओं को अमली जामा पहनाने हैं, जिसके लिए काफी पैसा चाहिए, इसलिए हम उन लोगों पर टैक्स लगा रहे हैं जो चुकाने में सक्षम हैं।” इस अंकगणित को कौन झुठलाए कि आम आदमी की जेब पर केवल पेट्रोल और डीजल का खर्चा नहीं बढ़ता है, हर चीज महंगी होती है। परिवहन कर जो सामान एक-दूसरी जगह भेजा जाता है, महंगा होता है। इससे उसकी लागत बढ़ जाती है, मुद्रा स्फीति भी बढ़ती है, और थोक मूल्य सूचकांक में वृद्धि होती है। उन्मुक्त बाजार के नाम पर पेट्रोलियम की कीमतों में दखल न देकर उपभोक्ताओं का हिस्सा मारा जा रहा है। सरकार की कमाई बची रहे, इसलिए केंद्र और राज्यों की सरकारों ने इसे जीएसटी से भी बाहर रखा है। क्या राजस्व जुटाने के लिए मौजूदा सरकार के पास सिवाए पेट्रोलियम पर टैक्स वसूलने के दूसरा कोई रास्ता नहीं है? क्या पेट्रोलियम मंत्री के ट्वीट कि दुनिया के कई देशों में भारत से महंगा पेट्रोल-डीजल मिलता है, हम विकसित या विकासशील देशों के बराबर पहुंच जाएंगे? दूर नहीं, पड़ोस में ही देखें पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में पेट्रोल-डीजल के दाम हमसे कम हैं। क्या हम उनसे भी पीछे हैं? क्या उनको सरकारी खजाने में ज्यादा धन की जरूरत नहीं है, क्या उन्हें विकास और गरीबों के कल्याण की चिंता नहीं है? मई, 2008 में जब यूपीए सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दामों में चार साल बाद वृद्धि की थी, तब इसी भाजपा ने सरकार पर ‘आर्थिक आतंकवाद’ के आरोप मढ़े थे और आज खुद ही उससे भी आगे बढ़ गई है। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान की जीएसटी काउंसिल से पेट्रोलियम पदार्थो को जीएसटी के दायरे में लाने की अपील के अमल में आने के बाद देश भर में समान कीमतों पर एक्साइज का क्या असर होगा, इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। फिलहाल केंद्रीय मंत्री अल्फोंज के शब्दों की अनुगूंज ही काफी है, जिसमें वह कहते हैं, ‘जो लोग पेट्रोल-डीजल खरीद रहे हैं, वे गरीब नहीं हैं और ना ही वे भूखे मर रहे हैं। लोग एक-दूसरे से पूछते हैं, क्या यही अच्छे दिन हैं?
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