#फांसी की सजा
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गोरखनाथ मंदिर पर हमले के आरोपी मुर्तजा को फांसी की सजा
गोरखपुर। गोरखनाथ मंदिर की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों पर जानलेवा हमले के दोषी अहमद मुर्तजा को फांसी की सजा सुनाई गयी है। एटीएस, एनआईए स्पेशल कोर्ट, लखनऊ ने अहमद मुर्तजा को फांसी की सजा सुनाई है। आरोपी अहमद मुर्तजा अब्बासी को एटीएस के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण पांडेय ने यह सजा सुनाई। अहमद मुर्तजा यूएपीए, देश के खिलाफ जंग छेड़ने, जानलेवा हमले में दोषी पाया गया था। उसके खिलाफ चल रहे मामले…
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हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (NCZCC) के संयुक्त तत्वावधान में "धरोहर” कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 07 मई, 2023, दिन रविवार, सायं 04:30 बजे से 06:00 बजे तक, स्थान: ऑडिटोरियम, शेरवुड अकैडमी, सेक्टर-25, इंदिरा नगर, लखनऊ में किया जा रहा है l
"धरोहर” कार्यक्रम के अंतर्गत भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित नाटक "काकोरी ट्रेन एक्शन" का मंचन किया जाएगा |
नाटक, काकोरी ट्रेन एक्शन की क्रांतिकारी घटना पर आधारित है । भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में काकोरी ट्रेन एक्शन एक महत्वपूर्ण घटना है, काकोरी ट्रेन एक्शन के बाद क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाए जाने के दौरान क्रांतिकारियों द्वारा अदालत में दिए गए बयानों से पूरा देश अंग्रेजों के विरुद्ध आक्रोश से उबल पड़ा था तथा इ���ी एक्शन से क्रांतिकारी आंदोलनों का पुनर्जागरण हुआ व देश में एक नए उत्साह का संचार हुआ और नव युवकों में देश के लिए मर मिटने की भावना जागृत हुई। बात उस समय की है जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, 5 फरवरी 1922 को चौरी चौरा गोरखपुर में शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली चलाने के कारण नाराज लोगों ने थाने में आग लगा दी थी, जिसमें कई पुलिसकर्मी मारे गए । हिंसा से क्षुब्ध गांधी जी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया, इसकी देशभर में व्यापक प्रतिक्रिया हुई, विशेषकर युवाओं की भावनाओं को अत्यधिक ठेस पहुंची और वे क्रांतिकारी आंदोलनों में से जुड़ने के लिए उतावले हो गए। तभी क्रांतिकारी दल हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन हुआ और देखते-देखते तमाम युवा इस दल में शामिल हो गए जिसमें चंद्रशेखर आजाद, मुकुंदी लाल, सुरेश चंद्र भट्टाचार्य, सचिंद्र नाथ बक्शी, राजेन्द्र नाथ लाहड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, सचिन दा प्रमुख थे। क्रांतिकारी युवा से भली-भांति समझ चुके थे कि अब हमें आजादी शांति के रास्ते पर नहीं मिल सकती , हमें सशस्त्र क्रांति करनी पड़ेगी, जिसके लिए शस्त्रों की आवश्यकता पड़ेगी और शस्त्र खरीदने के लिए धन की आवश्यकता है । इसी कार्य को पूरा करने के लिए क्रांतिकारियों ने एक योजना बनाई । शाहजहांपुर से लखनऊ जाने वाली 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन जिसमें की अंग्रेजी सरकार का खजाना जाता था, उसे लूटने की योजना बनाई और उसे 10 क्रांतिकारियों ने बिना किसी हिंसा के अंजाम दे दिया । इससे क्रांतिकारियों के दो प्रमुख उद्देश्य पूरे हुए, शासन को खुली चुनौती और जनता को संदेश, संस्था को मजबूती प्रदान करने हेतु लूटे गए धन से बड़े पैमाने पर आवश्यक वस्तुओं की खरीद।इस घटना से पूरे देश में सनसनी फैल जाना स्वभाविक था शासन ने तो कुछ समय तक हतभ्रम रह गया। अभियुक्त को पकड़ने के लिए रूपये 5000 इनाम की घोषणा की गई, इस घोषणा इस्तिहार टांग दिए गए । परंतु इससे उत्साहित जनता की क्रांतिकारियों के प्रति सहानभूति और गहरी हो गई । 26 सितंबर 1925 की रात को पूरे उत्तर भारत में लोगों के घर छापे डाले गए जिसमें अनेकों क्रांतिकारी पकड़े गए । उनका मुकदमा लखनऊ चला और फैसले में ठाकुर रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र नाथ लाहड़ी व अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई और अंततः 17 दिसंबर 1927 को क्रांतिवीर राजेंद्र नाथ लाहडी को गोंडा जेल में तथा 19 दिसंबर 1927 को शेष तीनों क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान एवं ठाकुर रोशन सिंह को क्रमशः गोरखपुर जिला जेल, फैजाबाद जिला जेल व इलाहाबाद जिला जेल में बड़ी दिलेरी के साथ हंसते-हंसते फांसी का वरण कर क्रांति इतिहास में सदा-सदा के अमर हो गए, और इस घटना के बाद से पूरे देश में क्रांतिकारी घटनाओं ने जोर पकड़ लिया ।
आप "धरोहर” कार्यक्रम में सपरिवार सादर आमंत्रित है |
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Shaheed Diwas 2023: 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए
Shaheed Diwas : 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश सरकार ने लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी थी
हर साल 23 मार्च को भारत शहादत दिवस मनाया जाता है। भारत के तीन वीर सपूतों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे । ये तीनों ही युवाओं के लिए आदर्श और प्रेरणा है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु भारत की आजादी के लिए अपनी जान देने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु नाम के तीन युवकों को ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी थी। वह 23 वर्ष के थे। इसलिए ,शहीदों को ��्रद्धांजलि के रूप में, भारत सरकार ने 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में घोषित किया। लेकिन क्या आपको पता है कि इन तीनों शहीदों की मौत भी अंग्रेजी हुकूमत की एक साजिश थी? भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सभी को 24 मार्च को फाँसी देनी तय हुई थी, लेकिन अंग्रेजों ने एक दिन पहले 23 मार्च को भारत के तीनों वीर पुत्रो को फांसी पर लटका दिया। आखिर इसकी वजह क्या थी? आखिर भगत सिंह और उनके साथियों ने ऐसा क्या अपराध किया था कि उन्हें फांसी की सजा दी गई। भगत सिंह की पुण्यतिथि पर जानिए उनके जीवन के बारे में कई दिलचस्प बातें।
देश की आजादी के लिए सेंट्रल असेंबली में बम फेंका गया।
8 अप्रैल, 1929 को दो क्रांतिकारियों, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका और ‘साइमन गो बैक’ नारे में भी संदर्भित किया गया था। जहां कुख्यात आयोग के प्रमुख सर जॉन साइमन मौजूद थे। साइमन कमीशन को भारत में व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा था। बम फेंकने के बाद दोनों ने भागने की कोशिश नहीं की और सभा में पर्चे फेंक कर आजादी के नारे लगाते रहे और अपनी गिरफ्तारी दी। जो पर्चे गिराए उनमें पहला शब्द “नोटिस” था। उसके बाद उनमें पहला वाक्य फ्रेंच शहीद अगस्त वैलां का था। ��ेकिन दोनों क्रांतिकारियों द्वारा दिया गया प्रमुख नारा ‘’इंकलाब जिंदाबाद’’ था । इस दौरान उन्हें करीब दो साल की सजा हुई।
करीब दो साल की मिली कैद
भगत सिंह करीब दो साल तक जेल में रहे। उन्होंने बहुत सारे क्रांतिकारी लेख लिखे, जिनमें से कुछ ब्रिटिश लोगों के बारे में थे, और अन्य पूंजीपतियों के बारे में थे। जिन्हें वह अपना और देश का दुश्मन मानते थे। उन्होंने कहा कि श्रमिकों का शोषण करने वाला कोई भी व्यक्ति उनका दुश्मन है, चाहे वह व्यक्ति भारतीय ही क्यों न हो।
जेल में भी जारी रखा विरोध
भगत सिंह बहुत बुद्धिमान थे और कई भाषाएँ जानते थे। वह हिंदी, पंजाबी, उर्दू, बांग्ला और अंग्रेजी आती जानते थे । उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से बंगाली भी सीखी थी। भगत सिंह अक्सर अपने लेखों में भारतीय समाज में लिपि, जाति और धर्म के कारण आई लोगों के बीच की दूरी के बारे में चिंता और दुख व्यक्त करते थे।
राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव की फांसी की तारीख तय की गई
दो साल तक कैद में रहने के बाद, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च, 1931 को फाँसी दी जानी थी। हालाँकि, उनकी फाँसी की ख़बर से देश में बहुत हंगामा हुआ और ब्रिटिश सरकार प्रतिक्रिया से डर गई। वह तीनों सपूतों की फांसी के विरोध में प्रदर्��न कर रहे थे। भारतीयों का आक्र��श और विरोध देख अंग्रेज सरकार डर गई थी।
डर गई अंग्रेज सरकार
ब्रिटिश सरकार को इस बात की चिंता थी कि भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु की फाँसी के दिन भारतीयों का गुस्सा उबलने की स्थिति में पहुँच जाएगा, और स्थिति और भी बदतर हो सकती है। इसलिए, उन्होंने उसकी फांसी की तारीख और समय को बदलने का फैसला किया।
तय समय से पहले दी भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी
ब्रिटिश सरकार ने जनता के विरोध को देखते हुए 24 मार्च जो फांसी का दिन था उसे 11 घंटे पहले 23 मार्च का दिन कर दिया। इसका पता भगत सिंह को नहीं था। 22 मार्च की रात सभी कैदी मैदान में बैठे थे। तभी वार्डन चरत सिंह आए और बंदियों को अपनी-अपनी कोठरियों में जाने को कहा। कुछ ही समय बाद नाई बरकत की बात कैदियों के कानों में पड़ी कि उस रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।
23 मार्च 1931 को शाम 7.30 बजे फांसी दे दी जायगी । कहते है कि जब भगत सिंह से उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन (Reminiscences of Leni) की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए। लेकिन जेल के अधिकारियों ने चलने को कहा तो उन्होंने किताब को हवा में उछाला और कहा – ’’ठीक है अब चलो।’’
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 बजकर 33 मिनट पर 23 मार्च 1931 को शाम में लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव एक दूसरे से मिले और उन्होंने एक-दूसरे का हाथ थामे आजादी का गीत गाया।
”मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे। मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग इे बसन्ती चोला।।’’
साथ ही ’इंक़लाब ज़िन्दाबाद’ और ’हिंदुस्तान आजाद हो’ का नारा लगये ।
उनके नारे सुनते ही जेल के कैदी भी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। कहा जाता है कि फांसी का फंदा पुराना था लेकिन जिसे फांसी दी गई वह काफी तंदुरुस्त था। मसीद जलाद को फाँसी के लिए लाहौर के पास शाहदरा से बुलाया गया था। भगतसिंह बीच में खङे थे और अगल-बगल में राजगुरु और सुखदेव खङे थे। जब मसीद जल्लाद ने पूछा कि, ’सबसे पहले कौन जाएगा?’
तब सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकाने की सहमति दी। मसीद जल्लाद ने सावधानी से एक-एक करके रस्सियों को खींचा और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मारकर हटा दिया। लगभग 1 घंटे तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे, उसके बाद उन्हें नीचे उतारा गया और लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट एनएस सोढ़ी द्वारा उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
तीन क्रांतिकारियों, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का अंतिम संस्कार
ब्रिटिश सरकार की योजना थी इन सबका अंतिम दाह संस्कार जेल में करने की योजना बनाई थी। हालांकि, अधिकारियों को चिंता हुई कि अगर जेल से दाह संस्कार की प्रक्रिया से निकलने वाले धुएं को देखा तो जनता नाराज हो जाएगी। इसलिए, उन्होंने जेल की दीवार को तोड़ने और कैदियों के शवों को जेल के बाहर ट्रकों पर फेंकने का फैसला किया।
इससे पहले ब्रिटिश सरकार ने तय किया था कि भगत सिंह राजगुरु सुखदेव का अंतिम संस्कार रावी नदी के तट पर किया जाएगा, लेकिन उस समय रावी में पानी नहीं था। इसलिए उनके शव को फिरोजपुर के पास सतलुज नदी के किनारे लाया गया। उनके शवों को आग लगाई गई। इसके बारे में जब आस-पास के गाँव के लोगों को पता चल गया, तब ब्रिटिश सैनिक शवों को वहीं छोङकर भाग गये। कहा जाता है कि सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया था।
अगले दिन जब तीनों क्रांतिकारियों की मौत की खबर फैली तो उनके सम्मान में तीन मील लंबा जुलूस निकाला था। इसको लेकर लोगों ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया ।
फांसी से पहले भगत सिंह ने अपने साथियों को एक पत्र लिखा था।
साथियों,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता।
मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है- इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए।
लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी।
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Aaj Ka Itihas, 15 November; आज के दिन महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को हुई थी फांसी, पढ़ें 15 नवंबर का इतिहास
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भाजपा सरकार लोहारीडीह के 167 लोगों को फांसी पर चढ़ाना चाहती है: भूपेश
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Anti Rape Bill: 10 दिन में फांसी की सजा देना मुमकिन है? Aparajita | Mama...
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kolkata Case : दुष्कर्म-विरोधी विधेयक बंगाल विधानसभा से सर्वसम्मति से पास
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'काठी वाला दादा'... बदलापुर कांड की पीड़ित बच्चियों ने आरोपी अक्षय शिंदे को पहचाना
मुंबई/ठाणे: महाराष्ट्र में ठाणे जिले के बदलापुर में दो बच्चियों के यौन शोषण के मामले में कल्याण कोर्ट में आरोपी की शिनाख्त परेड कराई गई। इस दौरान आरोपी को पंचों के सामने पेश किया गया। परेड के दौरान दोनों बच्चियों ने आरोपी की पहचान की है। दरसअल इस मामले में आरोपी अक्षय शिंदे को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। मामले में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) नियुक्त किया गया है। शुक्रवार को कोर्ट ने एसआईटी को आरोपी अक्षय शिंदे की पहचान परेड कराने की इजाजत दे दी थी। इसके तहत शनिवार को अक्षय शिंदे को तलोजा जेल से कल्याण कोर्ट लाया गया। इसके बाद पांच जजों के सामने उनकी परेड कराई गई।पहचान परेड में क्या हुआ?चूंकि जज और पीड़ित लड़कियां एक दूसरे को नहीं जानते थे। दोनों पीड़ित लड़कियों ने इन जजों के सामने 'काठी वाला दादा' कहकर आरोपी अक्षय शिंदे की पहचान की। इससे अक्षय शिंदे की गर्दन पर पुलिस का शिकंजा कस गया है। शिनाख्त परेड के बाद अब जांचकर्ता साक्ष्यों की दूसरी रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं, जिसके बाद एसआईटी टीम जल्द से जल्द चार्जशीट दाखिल करेगी, ताकि मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो सके। पहचान परेड के बाद आगे क्या?दूसरी तरफ, स्कूल के सेक्रेटरी और चेयरमैन ने यौन उत्पीड़न की सूचना स्थानीय पुलिस को न देने के मामले में पॉक्सो मामले में अग्रिम जमानत के लिए ��ल्याण सेशन कोर्ट में याचिका दायर की है। सूत्रों ने बताया कि इस मामले में एसआईटी ने कई गवाह और साक्ष्य जुटाए हैं, ताकि आरोपियों को सजा दिलाने में मदद मिल सके।बदलापुर के लोग गुस्से में बदलापुर में हुई इस घटना के बाद शहर के लोगों ने काफी आक्रोश व्यक्त किया था। पीड़ित लड़की के माता-पिता की ओर से पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद इस गंभीर मामले को संज्ञान में नहीं लिया गया। कोई कार्रवाई न होने पर लोगों ने हड़ताल कर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। 20 अगस्त को बदलापुर के लोग आरोपियों को फांसी देने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए। इसके अलावा बदलापुर स्टेशन पर आठ घंटे तक रेल सेवा ठप रही। इस तीव्र आंदोलन के बाद सरकार की नींद खुली। इस घटना की गूंज पूरे राज्य में हुई।आरोपी के लिए फांसी की सजा की मांगबच्चों के लिए आंदोलन के बाद सरकार ने संज्ञान लिया और उसके बाद आरोपी हत्यारे अक्षय शिंदे को गिरफ्तार कर लिया गया। आरोपी के लिए मौत की सजा देने की मांग की गई। सरकार पर दबाव बढ़ रहा था। इसलिए सरकार ने भी इस मामले में तुरंत कदम उठाया। अब पहचान परेड भी हो चुकी है। उम्मीद है कि जल्द ही आगे की कार्रवाई की जाएगी। http://dlvr.it/TCfcVq
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बदलापुर घटना के विरोध में जालना में महाविकास आघाड़ी का धरना प्रदर्शन
*दरिंदे आरोपी को फांसी की सजा दो, आंदोलनकारियों पर दर्ज मुकदमे वापस लो जालना : बदलापुर में मासूम बच्चियों पर हुए अत्याचार के विरोध में जालना जिला महाविकास आघाड़ी ने आज शनिवार को शहर के गांधी चमन में मुंह पर काली पट्टी बांधकर धरना प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने आरोपी को फांसी की सजा देने और आंदोलनकारियों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की मांग की.राज्य में महाविकास आघाड़ी ने बदलापुर की दुर्भाग्यपूर्ण…
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ममता बनर्जी ने बलात्कार-हत्या के दोषियों को मौत की सजा देने की मांग को लेकर रैली का नेतृत्व किया
रैली में सुश्री बनर्जी अपनी महिला सांसदों के साथ दिखीं, जिन्होंने “हमें मृत्युदंड चाहिए” के नारे लगाए। मुख्यमंत्री ने अस्पताल में हुई तोड़फोड़ के लिए भाजपा और सीपीएम को दोषी ठहराते हुए कहा, “मैं जनता के विरोध को सलाम करती हूं। उन्होंने सही काम किया।” इससे पहले उन्होंने सीबीआई को जांच पूरी करने और दोषियों को फांसी पर लटकाने के लिए रविवार को अल्टीमेटम दिया था। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ���ससे पहले…
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Kolkata Doctor Rape Case: कोलकाता की सड़कों पर दिखीं बंगाल की ममता, आरोपियों के लिए मांगा मौंत की सजा
कोलकाता में महिला डाॅक्टर से रेप- मर्डर केस के विरोध में पश्चिम बंगाल की मुख्यिमंत्री ममता बनर्जी अपने पार्टी ब्रिगेड़ के साथ महिला डाॅक्टर को न्याय दिलाने के लिए बंगाल की सड़कों कर हैं। ममता बनर्जी ने दोषियों को फांसी की सजा की मांग की है। उन्होंने ने दावा किया कि हम चाहते हैं कि दोषियों को फांसी की सजा सुनाई जाए। महिला डाॅक्टर का केश इस समय सीबीआई के पास है। सीबीआई इसकी तहकीकात कर रही है,…
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लव जिहादियों के लिए फांसी की सजा का हो प्रावधान – करणी सेना
लव जिहादियों के लिए फांसी की सजा का हो प्रावधान – करणी सेना
अखिल भारतीय करणी सेना के पदाधिकारियों ने प्रदेश अध्यक्ष ठा ज्ञानेंद्र सिंह चौहान के नेतृत्व में बरेली में लव जिहाद का शिकार हुई। नाबालिग हिंदू छात्रा की हत्या के विरोध में जिला मुख्यालय अलीगढ़ पर प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन एडीएम संजय मिश्रा को सौंपा। अखिल भारतीय करणी सेना के प्रदेश अध्यक्ष ठा ज्ञानेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि बरेली में फर��याद नामक जिहादी मुस्लिम युवक द्वारा एक नाबालिग हिंदू छात्रा को लव जिहाद का शिकार बनाकर धर्मांतरण का दबाव बनाया जा रहा था। छात्रा द्वारा धर्मांतरण से इनकार करने पर आरोपी फरियाद ने ट्रेन के सामने धक्का देकर हिंदू छात्रा की नृशंस हत्या कर दी। इसी संदर्भ में आज जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन कर ज्ञापन दिया गया है। तथा मांग की गई है। कि आरोपी फरियाद को तुरंत फांसी की सजा दी जाए। एवं लव जिहाद व धर्मांतरण जैसे गंभीर मुद्दों में सख्त कानून के तहत फांसी की सजा का प्रावधान किया जाए।
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सऊदी में टूटा फांसी का रिकॉर्ड! 100 से ज्यादा विदेशियों को सुनाई गई सजा, जानें कितने भारतीयों की हुई मौत
सऊदी अरब में 100 से ज्यादा विदेशियों को फांसी: सऊदी अरब में इस साल 100 से ज्यादा विदेशियों को फांसी दी गई है। एक समाचार एजेंसी ने मानवाधिकार संगठन के हवाले से यह जानकारी दी है. यह आंकड़ा पिछले तीन वर्षों की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक है। मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में नाज़रान के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में शनिवार को एक यमनी नागरिक को फांसी दे दी गई। इस साल मौत की सज़ा पाने वाले विदेशियों की…
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ईरान ने जर्मनी के नागरिक को दी फांसी की सजा, भड़के जर्मनी ने तीन दूतावास बंद करने का किया ऐलान
Iran Germany Conflict: इजरायल के साथ पहले ही तनाव झेल रहे ईरान ने अब यूरोपीय देश जर्मनी से पंगा ले लिया है। ईरान ने अपने यहां एक जर्मन कैदी को फांसी पर लटका दिया। नाराज जर्मनी ने अपने यहां सभी तीन ईरानी दूतावासों को बंद करने का आदेश दिया है। इससे दोनों देशों में तनाव बढ़ गया है। आरोप है कि उस शख्स को ईरानी सुरक्षा बलों ने दुबई से किडनैप किया था और आतंकवाद के आरोप में फांसी पर लटका दिया। जर्मनी…
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