#फलों के नाम
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vidyaratna · 2 years ago
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Fruits Name in English and Hindi
Fruits Name in English and Hindi
फलों के नाम अंग्रेजी और हिन्दी में
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jaiminiofficial · 11 months ago
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Fruits Name In Hindi And English | फलों के नाम | फलों के प्रकार
Fruits Name In Hindi And English | फलों के नाम | फलों के प्रकार Fruits name in hindi and english ( फलों के नाम हिंदी और इंग्लिश ) – हम आपको सभी फलो की महत्वपूर्ण जानकारी देंगे हम आपको सभी फलों के नाम हिंदी व् अंग्रेजी ( Fruits name in hindi and english ) में बतायेँगे उन फलों के खाने योग्य भाग उनकी परिभाषा, प्रकार व् कुछ फलों के खाने के फायदे भी बतायंगे | सवर्प्रथम हमने सभी फलों के नाम हिंदी और…
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jagat337 · 1 month ago
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सत्य क्या है?
डॉ. जाकिर नाइक कहते हैं कि भगवान ने मनुष्यों को जानवरों का भोजन करने का आदेश दिया है, लेकिन संत रामपाल जी महाराज पवित्र कुरान और बाइबल के आधार पर बताते हैं कि बीज वाले पौधों और फलों का सेवन करने का आदेश है। जानें सत्य और अपनाएं सही जीवनशैली।
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kiran-dasi-12 · 1 month ago
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क्या आप जानते हैं कि भगवान ने हमें क्या खाने का आदेश दिया है? डॉ. जाकिर नाइक के विचारों से अलग, संत रामपाल जी महाराज पवित्र कुरान और बाइबल के आधार पर बताते हैं कि बीज वाले पौधों और फलों का सेवन करना चाहिए।
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balramyadav · 1 month ago
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डॉ. जाकिर नाइक के विचारों के अनुसार, भगवान ने मनुष्यों को जानवरों का भोजन करने का आदेश दिया है। लेकिन संत रामपाल जी महाराज स्पष्ट करते हैं कि ��वित्र कुरान और बाइबल में बीज वाले पौधों और फलों का सेवन करने का आदेश प्राप्त है। होली बाइबल उत्पत्ति ग्रंथ 1 छंद 27-29 में इसका प्रमाण है। जानवरों को मारकर खाने का आदेश कुरआन ज्ञानदाता का है, न कि अल्लाहु अकबर (कादिर अल्लाह) का। जैसा कि पवित्र कुरान सूरह-अल-माइदा 5 आयत 1, 3 और सूरह-अल-मुएमिन 40 आयत 79 में उल्लेख किया गया है।
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the-sound-ofrain · 2 years ago
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इतने फलों के तो नाम भी मुझे पता नही थे //
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astrovastukosh · 1 year ago
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Dev Diwali - Kartik Purnima 2023: देव दिवाली पर शिव योग का होगा निर्माण इसका शिव से है गहरा संबंध होगा हर समस्या का समाधान
Dev Deepawali 2023: कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली मनाई जाती है. ये दिवाली देवताओं को समर्पित है, इसका शिव जी से गहरा संबंध है. इस दिन धरती पर आते हैं देवतागण कार्तिक पूर्णिमा का दिन कार्तिक माह का आखिरी दिन होता है. इसी दिन देशभर में देव देवाली भी मनाई जाती है लेकिन इस बार पंचांग के भेद के कारण देव दिवाली 26 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी और कार्तिक पूर्णिमा का व्रत, स्नान 27 नवंबर 2023 को है. देव दिवाली यानी देवता की दीपावली. इस दिन सुबह गंगा स्नान और शाम को घाट पर दीपदान किया जाता है. कार्तिक पूर्णिमा पर 'शिव' योग का हो रहा है निर्माण, हर समस्या का होगा समाधान |
देव दिवाली तिथि और समय
पूर्णिमा तिथि आरंभ - 26 नवंबर 2023 - 03:53
पूर्णिमा तिथि समापन - 27 नवंबर, 2023 - 02:45
देव दीपावली मुहूर्त - शाम 05:08 बजे से शाम 07:47 बजे तक
पूजन अवधि - 02 घण्टे 39 मिनट्स
शिव मंत्र
ॐ नमः शिवाय
ॐ शंकराय नमः
ॐ महादेवाय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ श्री रुद्राय नमः
ॐ नील कंठाय नमः
देव दिवाली का महत्व
देव दिवाली का सनातन धर्म में बेहद महत्व है। इस पर्व को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप मनाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने इस दिन राक्षस त्रिपुरासुर को हराया था। शिव जी की जीत का जश्न मनाने के लिए सभी देवी-देवता तीर्थ स्थल वाराणसी पहुंचे थे, जहां उन्होंने लाखों मिट्टी के दीपक जलाएं, इसलिए इस त्योहार को रोशनी के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है।
इस शुभ दिन पर, गंगा घाटों पर उत्सव मनाया जाता है और बड़ी संख्या में तीर्थयात्री देव दिवाली मनाने के लिए इस स्थान पर आते हैं और एक दीया जलाकर गंगा नदी में छोड़ देते हैं। इस दिन प्रदोष काल में देव दीपावली मनाई जाती है. इस दिन वाराणसी में गंगा नदी के घाट और मंदिर दीयों की रोशनी से जगमग होते हैं. काशी में देव दिवाली की रौनक खास होती है.
Dev diwali Katha : देव दिवाली की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया था. पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए तारकासुर के तीनों बेटे तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने प्रण लिया. इन तीनों को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था. तीनों ने कठोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्म देव ने उन्हें यह वरदान देने से इनकार कर दिया.
ब्रह्मा जी ने त्रिपुरासुर को वरदान दिया कि जब निर्मित तीन पुरियां जब अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में में होगी और असंभव रथ पर सवार असंभव बाण से मारना चाहे, तब ही उनकी मृत्यु होगी. इसके बाद त्रिपुरासुर का आतंक बढ़ गया. इसके बाद स्वंय शंभू ने त्रिपुरासुर का संहार करने का संकल्प लिया.
काशी से देव दिवाली का संबंध एवं त्रिपुरासुर का वध:
शास्त्रों के अनुसार, एक त्रिपुरासुर नाम के राक्षस ने आतंक मचा रखा था, जिससे ऋषि-मुनियों के साथ देवता भी काफी परेशान हो गए थे। ऐसे में सभी देवतागण भगवान शिव की शरण में पहुंचे और उनसे इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा। पृथ्वी को ही भगवान ने रथ बनाया, सूर्य-चंद्रमा पहिए बन गए, सृष्टा सारथी बने, भगवान विष्णु बाण, वासुकी धनुष की डोर और मेरूपर्वत धनुष बने. फिर भगवान शिव उस असंभव रथ पर सवार होकर असंभव धनुष पर बाण चढ़ा लिया त्रिपुरासुर पर आक्रमण कर दिया. इसके बाद भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर का वध कर दिया था और फिर सभी देवी-देवता खुशी होकर काशी पहुंचे थे। तभी से शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है. जहां जाकर उन्होंने दीप प्रज्वलित करके खुशी मनाई थी। इसकी प्रसन्नता में सभी देवता भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचे. फिर गंगा स्नान के बाद दीप दान कर खुशियां मनाई. इसी दिन से पृथ्वी पर देव दिवाली मनाई जाती है.
पूजन विधि
देव दीपावली की शाम को प्रदोष काल में 5, 11, 21, 51 या फिर 108 दीपकों में घी या फिर सरसों के भर दें। इसके बाद नदी के घाट में जाकर देवी-देवताओं का स्मरण करें। फिर दीपक में सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, हल्दी, फूल, मिठाई आदि चढ़ाने के बाद दीपक जला दें। इसके बाद आप चाहे, तो नदी में भी प्रवाहित कर सकते हैं।
देव दीपावली के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें। हो सके,तो गंगा स्नान करें। अगर आप गंगा स्नान के लिए नहीं जा पा रहे हैं, तो स्नान के पानी में थोड़ा सा गंगाजल डाल लें। ऐसा करने से गंगा स्नान करने के बराबर फलों की प्राप्ति होगी। इसके बाद सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल, सिंदूर, अक्षत, लाल फूल डालकर अर्घ्य दें। फिर भगवान शिव के साथ अन्य देवी देवता पूजा करें। भगवान शिव को फूल, माला, सफेद चंदन, धतूरा, आक का फूल, बेलपत्र चढ़ाने के साथ भोग लाएं। अंत में घी का दीपक और धूर जलाकर चालीसा, स्तुत, मंत्र का पाठ कर��े विधिवत आरती कर लें।
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iskconchd · 2 years ago
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श्रीमद्‌ भगवद्‌गीता यथारूप 2.51 https://srimadbhagavadgita.in/2/51 कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः । जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥ २.५१ ॥ TRANSLATION इस तरह भगवद्भक्ति में लगे रहकर बड़े-बड़े ऋषि, मुनि अथवा भक्तगण अपने आपको इस भौतिक संसार में कर्म के फलों से मुक्त कर लेते हैं । इस प्रकार वे जन्म-मृत्यु के चक्र से छूट जाते हैं और भगवान् के पास जाकर उस अवस्था को प्राप्त करते हैं, जो समस्त दुखों से परे है । PURPORT मुक्त जीवों का सम्बन्ध उस स्थान से होता है जहाँ भौतिक कष्ट नहीं होते । भागवत में (१०.१४.५८) कहा गया है – समाश्रिता से पदपल्लवप्लवं महत्पदं पुण्ययशो मुरारेः । भवाम्बुधिर्वत्सपदं परं पदं पदं पदं यद्विपदां न तेषाम् ॥ “जिसने उन भगवान् के चरणकमल रूपी नाव को ग्रहण कर लिया है, जो दृश्य जगत् के आश्रय हैं और मुकुंद नाम से विख्यात हैं अर्थात् मुक्ति के दाता हैं, उसके लिए यह भवसागर गोखुर में समाये जल के समान है । उसका लक्ष्य परं पदम् है अर्थात् वह स्थान जहाँ भौतिक कष्ट नहीं है या कि वैकुण्ठ है; वह स्थान नहीं जहाँ पद-पद पर संकट हो ।” अज्ञानवश मनुष्य यह नहीं समझ पाता कि यह भौतिक जगत् ऐसा दुखमय स्थान है जहाँ पद-पद पर संकट हैं । केवल अज्ञानवश अल्पज्ञानी पुरुष यह सोच कर कि कर्मों से वे सुखी रह सकेंगे सकाम कर्म करते हुए स्थिति को सहन करते हैं । उन्हें यह ज्ञात नहीं है कि इस संसार में कहीं भी कोई शरीर दुखों से रहित नहीं है । संसार में सर्वत्र जीवन के दुख-जन्म, मृत्यु, जरा तथा व्याधि – विद्यमान हैं । किन्तु जो अपने वास्तविक स्वरूप को समझ लेता है और इस प्रकार भगवान् की स्थिति को समझ लेता है , वही भगवान् की प्रेमा-भक्ति में लगता है । फलस्वरूप वह वैकुण्ठलोक जाने का अधिकारी बन जाता है जहाँ न तो भौतिक कष्टमय जीवन है न ही काल का प्रभाव तथा मृत्यु है । अपने स्वरूप को जानने का अर्थ है भगवान् की अलौकिक स्थिति को भी जान लेना । जो भ्रमवश यह सोचता है कि जीव की स्थिति तथा भगवान् की स्थिति एकसमान हैं उसे समझो कि वह अंधकार ��ें है और स्वयं भगवद्भक्ति करने में असमर्थ है । वह अपनेआपको प्रभु मान लेता है और इस तरह जन्म-मृत्यु की पुनरावृत्ति का पथ चुन लेता है । किन्तु जो यह समझते हुए कि उसकी स्थिति सेवक की है अपने को भगवान् की सेवा में लगा देता है वह तुरन्त ही वैकुण्ठलोक जाने का अधिकारी बन जाता है । भगवान् की सेवा कर्मयोग या बुद्धियोग कहलाती है, जिसे स्पष्ट शब्दों में भगवद्भक्ति कहते हैं । ----- Srimad Bhagavad Gita As It Is 2.51 karma-jaṁ buddhi-yuktā hi phalaṁ tyaktvā manīṣiṇaḥ janma-bandha-vinirmuktāḥ padaṁ gacchanty anāmayam TRANSLATION By thus engaging in devotional service to the Lord, great sages or devotees free themselves from the results of work in the material world. In this way they become free from the cycle of birth and death and attain the state beyond all miseries [by going back to Godhead]. PURPORT The liberated living entities belong to that place where there are no material miseries. The Bhāgavatam (10.14.58) says: samāṣritā ye pada-pallava-plavaṁ mahat-padaṁ puṇya-yaśo murāreḥ bhavāmbudhir vatsa-padaṁ paraṁ padaṁ padaṁ padaṁ yad vipadāṁ na teṣām “For one who has accepted the boat of the lotus feet of the Lord, who is the shelter of the cosmic manifestation and is famous as Mukunda, or the giver of mukti, the ocean of the material world is like the water contained in a calf’s footprint. Paraṁ padam, or the place where there are no material miseries, or Vaikuṇṭha, is his goal, not the place where there is danger in every step of life.” Owing to ignorance, one does not know that this material world is a miserable place where there are dangers at every step. Out of ignorance only, less intelligent persons try to adjust to the situation by fruitive activities, thinking that the resultant actions will make them happy. They do not know that no kind of material body anywhere within the universe can give life without miseries. The miseries of life, namely birth, death, old age and diseases, are present everywhere within the material world. But one who understands his real constitutional position as the eternal servitor of the Lord, and thus knows the position of the Personality of Godhead, engages himself in the transcendental loving service of the Lord. Consequently he becomes qualified to enter into the Vaikuṇṭha planets, where there is neither material, miserable life nor the influence of time and death. To know one’s constitutional position means to know also the sublime position of the Lord. One who wrongly thinks that the living entity’s position and the Lord’s position are on the same level is to be understood to be in darkness and therefore unable to engage himself in the devotional service of the Lord. He becomes a lord himself and thus paves the way for the repetition of birth and death. But one who, understanding that his position is to serve, transfers himself to the service of the Lord, at once becomes eligible for Vaikuṇṭha-loka. Service for the cause of the Lord is called karma-yoga or buddhi-yoga, or in plain words, devotional service to the Lord. ----- #krishna #iskconphotos #motivation #success #love #bhagavatamin #india #creativity #inspiration #life #spdailyquotes #devotion
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amitkumar00 · 1 month ago
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डॉ. जाकिर नाइक के विचारों से अलग, संत रामपाल जी महाराज पवित्र कुरान और बाइबल के आधार पर बताते हैं कि भगवान ने हमें बीज वाले पौधों और फलों का सेवन करने का आदेश दिया है। जानें सत्य और अपनाएं सही जीवनशैली।
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vipulmangla0 · 1 month ago
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क्या आप जानते हैं कि भगवान ने हमें क्या खाने का आदेश दिया है? डॉ. जाकिर नाइक के विचारों से अलग, संत रामपाल जी महाराज पवित्र कुरान और बाइबल के आधार पर बताते हैं कि बीज वाले पौधों और फलों का सेवन करना चाहिए।
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rakesh-kumars-posts · 1 month ago
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क्या आप जानते हैं कि भगवान ने हमें क्या खाने का आदेश दिया है? डॉ. जाकिर नाइक के विचारों से अलग, संत रामपाल जी महाराज पवित्र कुरान और बाइबल के आधार पर बताते हैं कि बीज वाले पौधों और फलों का सेवन करना चाहिए।
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jaiminiofficial · 2 years ago
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madanlal123 · 1 month ago
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क्या आप जानते हैं कि भगवान ने हमें क्या खाने का आदेश दिया है? डॉ. जाकिर नाइक के विचारों से अलग, संत रामपाल जी महाराज पवित्र कुरान और बाइबल के आधार पर बताते हैं कि बीज वाले पौधों और फलों का सेवन करना चाहिए।
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kiran-dasi-12 · 1 month ago
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डॉ. जाकिर नाइक के विचारों से अलग, संत रामपाल जी महाराज पवित्र कुरान और बाइबल के आधार पर बताते हैं कि भगवान ने हमें बीज वाले पौधों और फलों का सेवन करने का आदेश दिया है। जानें सत्य और अपनाएं सही जीवनशैली।
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decadentcollectionharmony · 1 month ago
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क्या आप जानते हैं कि भगवान ने हमें क्या खाने का आदेश दिया है? डॉ. जाकिर नाइक के विचारों से अलग, संत रामपाल जी महाराज पवित्र कुरान और बाइबल के आधार पर बताते हैं कि बीज वाले पौधों और फलों का सेवन करना चाहिए।
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sadanand-patel · 1 month ago
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डॉ. जाकिर नाइक के विचारों के अनुसार, भगवान ने मनुष्यों को जानवरों का भोजन करने का आदेश दिया है। लेकिन संत रामपाल जी महाराज स्पष्ट करते हैं कि पवित्र कुरान और बाइबल में बीज वाले पौधों और फलों का सेवन करने का आदेश प्राप्त है।
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