#प्राय: हिन्दू
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तुलसी और मनी प्लांट किस दिशा में लगाना चाहिए - शास्त्रों के अनुसार जाने
तुलसी और मनी प्लांट किस दिशा में लगाना चाहिए – शास्त्रों के अनुसार जाने – हिन्दू धर्म में तुलसी और मनी प्लांट का पौधा सबसे पवित्र पौधों में से हैं। इन पौधों का सही जगह पर आपके आसपास होना बेहद शुभ माना जाता हैं। प्राय: तुलसी दो तरह के होते हैं जिसे राम और श्याम के नाम से जाना जाता हैं। प्रतिदिन तुलसी की पूजा से माता लक्ष्मी और श्री हरी प्रसन्न होते हैं। मनी प्लांट एक लत्ती वाला पौधा हैं। जिसे…
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ईशान किशन और सूर्यकुमार के तूफानी अर्धशतक, मुंबई ने हैदराबाद को दिया 236 रनों का लक्ष्य
ईशान किशन और सूर्यकुमार के तूफानी अर्धशतक, मुंबई ने हैदराबाद को दिया 236 रनों का लक्ष्य
हैदराबाद बनाम मुंबई: ईशानी किशन और सूर्यकुमार यादव के तूफानी अर्धशतकों की सुंदरता में मंड ने 2021 के करो या मरो के सनर में सनर चेंज के लिए गलत स्थिति में बदल दिया है। ईशान ने 32 गेंद में 84 सूर्यकुमार ने 40 गेंद में 82 को मैनेज किया, जहां मेन नें 2021 का मेने रखा। ईशान ने 11 चौके और चाछेचेस पर सूर्यकुमार ने 13 चौके और तीन शक्के जड़े। मुंबई का पहली बार जहर पर हमला करने के बाद 223 सड़क पर चलने वाले…
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#2021#आईपीएल 2021#इंडियन प्रीमियर लीग#ईशान किशन#जेसन रॉय#प्राय: हिन्दू#मनीष पांडे#मुंबई#मुंबई इंडियंस#राय रॉय#शिखर सम्मेलन#सनर फ़्रांसीसी सिकंदरा��ाद#सनराइजर्स हैदराबाद#सिकंदराबाद#सिकंदराबाद मुंबई#सूर्यकुमार यादव#हैदराबाद बनाम मुंबई#हैदराबाद बनाम मुंबई स्कोर
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🚩 क्या इसे हम बॉलीवुड जिहाद कहे तो कैसा रहेगा ? 4 August 2022
🚩अभी एक फ़िल्म आई जिसमे खलनायक त्रिपुण्ड (तिलक) लगाए हुए है। यह फ़िल्म सुपर फ्लॉप हो गई है। यह हिन्दू जागृति का शुभ संकेत है।
🚩अधिकाँश लोग मानते हैं कि परदे पर दिखाई देने वाला अभिनेता सच में भी इतना अधिक शक्तिशाली होगा जैसा वह फिल्म में दिखाया जाता है,उनका मानना है कि फिल्म के हीरो हिरोइन सच में उतने ही इमानदार/ दयालु/ बुद्धिमान व चरित्रवान होते हैं, जितने कि उन्हें परदे पर दिखाया गया है।
🚩परन्तु सत्य इससे अलग है। फिल्मो के सितारे निजी जिन्दगी में हीरो नहीं होते,अमरीशपुरी, प्रेम चोपड़ा या शक्ति कपूर वास्तविक जीवन मे अपराधी नहीं हैं। परन्तु सामान्य व्यक्ति यही मानता है। इसलिए कभी किसी खलनायक को विज्ञापन में नहीं लिया जाता हैं ।
🚩पद्म श्री से सम्मानित फिल्मी हीरो यह बताने के 5 से 10 करोड़ रूपए लेता है कि आपके 10 रूपए के विमल पान मसाला मे 3 लाख रूपए किलो का केसर है। मैगी का सैम्पल फेल होने पर एक हीरोइन ने कहा कि हमारे घर में कोई लैब नही लगी है। सच यह है कि आपको उल्लू बना हैं। फेयर एंड लवली से कोई गोरा नहीं हुआ। गोरेपन की क्रीम में कभी काली हीरोइन नहीं ली जाती। होर्लिक्स और कोम्प्लान आदि से कोई लम्बा नहीं होता। थम्सअप (Thums UP) में कोई तूफ़ान नहीं होता जैसा सलमान खान बताता है, ड्यू पीने से डर नहीं भागता,स्प्राईट पीने से कोई स्मार्ट नहीं होता मे��्टोस से दिमाग की बत्ती नहीं जलती।
🚩सलीम जावेद लिखित फिल्म में शोले फिल्म में वृद्ध मुसलमान (ए के हंगल) को बेटे की मौत पर नमाज के लिए जाते दिखाते हैं तो नायक वीरू (धर्मेन्द्र) को शिव मन्दिर में लडकी छेड़ते हुए दिखाना।
🚩बालीवुड और टीवी सीरियल के नजरिए से हिन्दू को कैसे देखा जाता है एक झलक:----
ब्राह्मण - ढोंगी पंडित, लुटेरा,
राजपूत - अक्खड़, मुच्छड़, क्रूर, बलात्कारी
वैश्य या साहूकार - लोभी, कंजूस,
गरीब हिन्दू - कुछ पैसो या शराब की लालच में बेटी को बेच देने वाला चाचा या झूठी गवाही देने वाला
🚩जबकि दूसरी तरफ मुस्लिम- अल्लाह का नेक बन्दा, नमाजी, साहसी, वचनबद्ध, हीरो-हीरोइन की मदद करने वाला टिपिकल रहीम चाचा या पठान।
ईसाई - जीसस जैसा प्रेम, अपनत्व, हर बात पर क्रॉस बना कर प्रार्थना करते रहना।
🚩ये बॉलीवुड इंडस्ट्री, सिर्फ हमारे हिन्दू धर्म, समाज और भारतीय संस्कृति पर घात करने का सुनियोजित षड्यंत्र करते रहते है और वह भी हमारे ही ( पैसों) धन से । सलीम - जावेद की जोड़ी की लिखी हुई फिल्मो को देखे, तो उसमे आपको अक्सर बहुत ही चालाकी से हिन्दू धर्म का मजाक तथा मुस्लिम / इसाई को महान दिखाया जाता मिलेगा।
🚩इनकी लगभग हर फिल्म में एक महान मुस्लिम चरित्र अवश्य होता है और हिन्दू मंदिर का मजाक तथा हिन्दू संत के रूप में पाखंडी ठग देखने को मिलते है।
🚩"दीवार" का अमिताभ बच्चन नास्तिक है और वो भगवान् का प्रसाद तक नहीं खाना चाहता है, लेकिन 786 लिखे हुए बिल्ले को हमेशा अपनी जेब में रखता है और वो बिल्ला भी बार बार अमिताभ बच्चन की जान बचाता है,जंजीर" में भी अमिताभ नास्तिक है और जया भगवान से नाराज होकर गाना गाती है लेकिन शेरखान एक सच्चा इंसान है,फिल्म "शान" में अमिताभ बच्चन और शशिकपूर साधू के वेश में जनता को ठगते है लेकिन इसी फिल्म में "अब्दुल" जैसा सच्चा इंसान है,जो सच्चाई के लिए जान दे देता है।
🚩क्या आपको बालीवुड की वे फिल्मे याद हैं,जिनमे फादर को दया और प्रेम का मूर्तिमान स्वरूप दिखाया जाता था, तो हिन्दू संतो,सन्यासियों को अपराधी। जो मिडिया हिन्दू संतो पर दिनरात गलत खबरें दिखाने में पागल हो गया था,वह आज चुप है, बॉलीवुड प्राय: सदा फिल्मों में हिन्दू पात्रों के नाम वाले कलाकारों को किसी इस्लामिक मज़ार या चर्च में प्रार्थना करते दिखाता हैं।
🚩किसी मुस्लिम या ईसाई पात्र को कभी किसी हिन्दू मंदिर में जाकर प्रार्थना करता दिखाना तो बहुत दूर की बात हैं। इसके विपरीत वह सदा हिन्दू मान्यताओं का परिहास उड़ाते हुए बताया जाता है, जैसे पंडित को या भगवान की मूर्ति को रिश्वत देना, शादी के फेरे जल्दी जल्दी करवाना, मंदिर में लड़कियाँ छेड़ना, हनुमान जी अथवा श्री कृष्णा जैसे महान पात्रों के नाम पर चुटकुले छोड़ना आदि आदि दिखाता हैं। परिणाम यह निकलता है कि हिन्दुओं के लड़के लड़कियां हिन्दू धर्म को ही कभी गंभीरता से लेना बंद कर देते है।
🚩यहाँ हम सिनेमा विज्ञापन के इतिहास की एक रोचक जानकारी देते हैं ,सिनेमा हाल के शुरूआती दिनों में योरूप के सिनेमा में सिगरेट का विज्ञापन दिखाया जाता, उस विज्ञापन में एक घुड़सवार घोड़े पर पर बैठा है,घोड़ा भी बहुत मन्द मन्द चल रहा है और सवार भी सुस्त दिखाई देता है,तभी घुड़सवार सिगरेट जलाता है, सिगरेट का कश लगाते ही घुड़सवार तन कर बैठ जाता है और घोड़ा तेजी से दौड़ने लगता है, इस विज्ञापन ने रातों रात सिगरेट की बिक्री कई गुना बढ़ गई।
🚩25 साल पहले गुलशन कुमार को सरे आम गोलियों से मार दिया गया, क्योंकि गुलशन कुमार ने दाऊद जैसे गुण्डो के आगे झुकने से मना कर दिया था।
🚩 ये बॉलीवुड के इस्लामी करण में बहुत बड़ी बाधा थे। यह वह हिन्दू व्यापारी था,जो अपना आयकर भरता था। कुछ वर्ष तक भारत का सबसे बड़ा आयकर देने वाला व्यक्ति रहा । क्योकि इसने दाऊद के आगे घुटने टेकने से इंकार कर दिया था, इसलिए इसे जान से मार दिया गया। परंतु न तो भारत सरकार इसके कत्ल के आरोपी नदीम को भारत ला पाई और न ही इसके परिवार को न्याय मिला।
🚩हिन्दुओं की संतानों की स्थिति अर्ध नास्तिक जैसी हो जाती है। जो केवल नाममात्र का हिन्दू बचता है। परन्तु उसका हिन्दू समाज की मान्यताओं एवं धर्मग्रंथों में कोई श्रद्धा नहीं रहती। ऐसी ही संतानें लव जिहाद और ईसाई धर्मान्तरण का शिकार बनती हैं।
🚩क्या इसे हम बॉलीवुड जिहाद कहे तो कैसा रहेगा?
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मिथिला हाउस: मिथिला कलाको दायरा विस्तार गर्नका लागि एउटा उद्यम news online blog
मिथिला हाउस: मिथिला कलाको दायरा विस्तार गर्नका लागि एउटा उद्यम news online blog
जब मानिसहरूले रामायणको बारेमा कुरा गर्छन्, जुन एक महान ��िन्दू महाकाव्य हो, प्राय जसो तपाईंले सुन्नुहुनेछ अन्य चीजहरूको बीचमा, राम र सीताको विवाह। व्यक्तिहरू उनीहरूको भव्य विवाहको बारेमा विस्तृत रूपमा कुरा गर्छन्, तर विवाह समारोहको एक अंश सधैं श्रोताको बीचमा कुनै सराहना गर्न कम हुन्छ। भनिन्छ कि पवित्र विवाहको लागि, राजा जनक, सीताका जनक र जनकपुरका शासक थिए [Nepal], जनकपुरबाट अयोध्यासम्म फैलिएको…
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हिंदी का गौरवमयी इतिहास।
हिंदी हमारी मातृभाषा यानी 'भारत' की संवैधानिक रूप से पहली राष्ट्रीय भाषा है| यह 'चीनी' अर्थात 'मैंडेरिन' के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा भी है | इसकी तुलना आर्थिक रूप से विश्व की १० सबसे शक्तिशाली भाषाओँ में होती है | तो आइये आज हम अपनी हमसब की प्यारी हिंदी के गौरवमयी इतिहास को संछेप में जानते हैं |
आज हम हिंदी भाषा के रूप में जिस भाषा का उपयोग करते हैं उसे खड़ी हिंदी या आधुनिक हिंदी भी कहते हैं | आधुनिक हिंदी का विकास प्राचीन काल से निम्न चरणों से गुजरते हुए हुआ है :
वैदिक संस्कृत लौकिक संस्कृत पाली प्राकृत अपभ्रंश तथा अव्ह्त्त हिंदी का आदिकाल हिंदी का मध्यकाल हिंदी का आधुनिक काल हिंदी शब्द की उत्पति 'सिन्धु' से जुडी है। 'सिन्धु' 'सिंध' नदी को कहते है। सिन्धु नदी के आस-पास का क्षेत्र सिन्धु प्रदेश कहलाता है। संस्कृत शब्द 'सिन्धु' ईरानियों के सम्पर्क में आकर हिन्दू या हिंद हो गया।ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में 'स्' ध्वनि नहीं बोली जाती थी। 'स्' को 'ह्' रूप में बोला जाता था। ईरानियों द्वारा उच्चारित किया गए इस हिंद शब्द में ईरानी भाषा का 'एक' प्रत्यय लगने से 'हिन्दीक' शब्द बना है जिसका अर्थ है 'हिंद का'। यूनानी शब्द 'इंडिका' या अंग्रेजी शब्द 'इंडिया' इसी 'हिन्दीक' के ही विकसित रूप है।
हिंदी का साहित्य 1000 ईसवी से प्राप्त होता है। इससे पूर्व प्राप्त साहित्य अपभ्रंश में है इसे हिंदी की पूर्व पीठिका माना जा सकता है। आधुनिक भाषाओं का जन्म अपभ्रंश के विभिन्न रूपों से इस प्रकार हुआ है : अपभ्रंश - आधुनिक भाषाए�� शौरसेनी - पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, पहाड़ी , गुजराती पैशाची - लहंदा, पंजाबी ब्राचड - सिंधी महाराष्ट्री - मराठी मगधी - बिहारी, बंगला, उड़िया, असमिया पश्चिमी हिंदी - खड़ी बोली या कौरवी, ब्रिज, हरियाणवी, बुन्देल, कन्नौजी पूर्वी हिंदी - अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी राजस्थानी - पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी) पूर्वी राजस्थानी पहाड़ी - पश्चिमी पहाड़ी, मध्यवर्ती पहाड़ी (कुमाऊंनी-गढ़वाली) बिहारी - भोजपुरी, मागधी, मैथिली आदिकाल - (1000-1500)
अपने प्रारंभिक दौर में हिंदी सभी बातों में अपभ्रंश के बहुत निकट थी इसी अपभ्रंश से हिंदी का जन्म हुआ है। आदि अपभ्रंश में अ, आ, ई, उ, उ ऊ, ऐ, औ केवल यही आठ स्वर थे।ऋ ई, औ, स्वर इसी अवधि में हिंदी में जुड़े । प्रारंभिक, 1000 से 1100 ईसवी के आस-पास तक हिंदी अपभ्रंश के समीप ही थी। इसका व्याकरण भी अपभ्रंश के सामान काम कर रहा था। धीरे-धीरे परिवर्तन होते हुए और 1500 ईसवी आते-आते हिंदी स्वतंत्र रूप से खड़ी हुई। 1460 के आस-पास देश भाषा में साहित्य सर्जन प्रारंभ हो चुका हो चुका था। इस अवधि में दोहा, चौपाई ,छप्पय दोहा, गाथा आदि छंदों में रचनाएं हुई है। इस समय के प्रमुख रचनाकार गोरखनाथ, विद्यापति, नरपति नालह, चंदवरदाई, कबीर आदि है।
मध्यकाल -(1500-1800 तक) इस अवधि में हिंदी में बहुत परिवर्तन हुए। देश पर मुगलों का शासन होने के कारन उनकी भाषा का प्रभाव हिंदी पर पड़ा। परिणाम यह हुआ की फारसी के लगभग 3500 शब्द, अरबी के 2500 शब्द, पश्तों से 50 शब्द, तुर्की के 125 शब्द हिंदी की शब्दावली में शामिल हो गए। यूरोप के साथ व्यापार आदि से संपर्क बढ़ रहा था। परिणाम स्वरूप पुर्तगाली, स्पेनी, फ्रांसीसी और अंग्रेजी के शब्दों का समावेश हिंदी में हुआ। मुगलों के आधिपत्य का प्रभाव भाषा पर दिखाई पड़ने लगा था। मुगल दरबार में फारसी पढ़े-लिखे विद्वानों को नौकरियां मिली थी परिणामस्वरूप पढ़े-लिखे लोग हिंदी की वाक्य रचना फारसी की तरह करने लगे। इस अवधि तक आते-आते अपभ्रंश का पूरा प्रभाव हिंदी से समाप्त हो गया जो आंशिक रूप में जहां कहीं शेष था वह भी हिंदी की प्रकृति के अनुसार ढलकर हिंदी का हिस्सा बन रहा था। इस अवधि में हिंदी के स्वर्णिम साहित्य का सृजन हुआ। भक्ति आंदोलन ने देश की जनता की मनोभावना को प्रभावित किया। भक्ति कवियों में अनेक विद्वान थे जो तत्सम मुक्त भाषा का प्रयोग कर रहे थे। राम और कृष्ण जन्म स्थान की ब्रज भाषा में काव्य रचना की गई, जो इस ��ाल के साहित्य की मुख्यधारा मानी जाती हैं। इसी अवधि में दखिनी हिंदी का रूप सामने आया। पिंगल, मैथिली और खड़ी बोली में भी रचनाएं लिखी जा रही थी। इस काल के मुख्य कवियों में महाकवि तुलसीदास, संत सूरदास, संत मीराबाई, मलिक मोहम्मद जायसी, बिहारी, भूषण हैं। इसी कालखंड में रचा गया 'रामचरितमानस' जैसा ग्रन्थ विश्व में विख्यात हुआ। हिंदी में क, ख, ��, ज, फ, ये पांच नई ध्वनियां, जिनके उच्चारण प्रायः फारसी पढ़े-लिखे लोग ही करते थे। इस काल के भक्त निर्गुण और सगुन उपासक थे। कवियों को रामाश्रयी और कृष्णाश्रयी शाखाओं में बांटा गया। इसी अवधि में रीतिकालीन काव्य भी लिखा गया। आधुनिक काल (1800 से अब तक ) हिंदी का आधुनिक काल देश में हुए अनेक परिवर्तनों का साक्षी है। परतंत्र में रहते हुए देशवासी इसके विरुद्ध खड़े होने का प्रयास कर रहे थे। अंग्रेजी का प्रभाव देश की भाषा और संस्कृति पर दिखाई पड़ने लगा। अंग्रेजी शब्दों का प्रचलन हिंदी के साथ बढ़ने लगा। मुगलकालीन व्यवस्था समाप्त होने से अरबी, फारसी के शब्दों के प्रचलन में गिरावट आई। फारसी से स्वीकार क, ख, ग, ज, फ ध्वनियों का प्रचलन हिंदी में समाप्त हुआ। अपवादस्वरूप कहीं-कहीं ज और फ ध्वनि शेष बची। क, ख, ग ध्वनियां क, ख, ग में बदल गई। इस पूरे कालखंड को 1800 से 1850 तक और फिर 1850 से 1900 तक तथा 1900 का 1910 तक और 1950 से 2000 तक विभाजित किया जा सकता है। संवत 1830 में जन्मे मुंशी सदासुख लाल नियाज ने हिंदी खड़ी बोली को प्रयोग में लिया। खड़ी बोली उस समय भी अस्तित्व में थी। खड़ी बोली या कौरवी का उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश के उत्तरी रूप से हुआ है। इसका क्षेत्र देहरादून का मैदानी भाग, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरुत , दिल्ली बिजनौर ,रामपुर ,मुरादाबाद है। इस बोली में पर्याप्त लोक गीत और लोक कथाएं मौजूद हैं। खड़ी बोली पर ही उर्दू, हिन्दुस्तानी और दक्खनी हिंदी निर्भर करती है। मुंशी सदा सुखलाल नियाज के आलावा इंशा अल्लाह खान इसी अवधि के लेखक है। इनकी रानी केतकी की कहानी पुस्तक प्रसिद्ध है। लल्लूलाल, इस काल खंड के एक और प्रसिद्ध लेखक हैं। इनका जन्म संवत 1820 में हुआ था कोलकाता के फोर्ट विलियम कॉलेज के अध्यापक जॉन गिलक्रिस्ट के अनुरोध पर लल्लूलाल जी ने पुस्तक 'प्रेम सागर' खड़ी बोली में लिखी थी। प्रेम सागर के आलावा सिंहासन बत्तीसी, बेताल पचीसी, शकुंतला नाटक भी इनकी पुस्तकें हैं जो खड़ी बोली में, ब्रज और उर्दू के मिश्रित रूप में हैं। इसी कालखंड के एक और लेखक सदल मिश्र हैं। इनकी नचिकेतोपाख्यान पुस्तक प्रसिद्ध है। सदल मिश्र ने अरबी और फारसी के शब्दों का प्रयोग न के बराबर किया है। खड़ी बोली में लिखी गई इस पुस्तक ��ें संस्कृत के शब्द अधिक हैं। संवत 1860 से 1914 के बीच के समय में कालजयी कृतियां प्राय: नहीं मिलती। 1860 के आसपास तक हिंदी गद्य प्राय: अपना निश्चित स्वरुप
ग्रहण कर चुका था।
इसका लाभ लेने के लिए अंग्रेजी पादरियों ने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए बाईबल का अनुवाद खड़ी बोली में किया यद्यपि इनका लक्ष्य अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करना था। तथापि इसका लाभ हिंदी को मिला देश की साधारण जनता अरबी-फारसी मिश्रित भाषा में अपने पौराणिक आख्यानों को कहती और सुनती थी। इन पादरियों ने भी भाषा के इसी मिश्रित रूप का प्रयोग किया। अब तक 1857 का पहला स्वतंत्रता युद्ध लड़ा जा चुका था अतः अंगरेजी शासकों की कूटनीति के सहारे हिंदी के माध्यम से बाइबिल के धर्म उपदेशों का प्रचार-प्रसार खूब हो रहा था। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी नवजागरण की नींव रखी। उन्होंने अपनें नाटकों, कविताओं, कहावतों और किस्सागोई के माध्यम से हिंदी भाषा के उत्थान के लिए खूब काम किया। अपने पत्र 'कविवचनसुधा' के माध्यम से हिंदी का प्रचार-प्रसार किया। गद्य में सदल मिश्र, सदासुखलाल,लल्लू लाल आदि लेखकों ने हिंदी खड़ीबोली को स्थापित करने का काम किया। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कविता को ब्रज भाषा से मुक्त किया उसे जीवन के यथार्थ से जोड़ा। सन 1866 की अवधि के लेखकों में पंडित बद्रीनारायण चौधरी, पंडित प्रताप नारायण मिश्रल बाबू तोता राम, ठाकुर जगमोहन सिंह, पंडित बाल कृष्ण भट्ट, पंडित केशवदास भट्ट ,पंडित अम्बिकादत्त व्यास, पंडित राधारमण गोस्वामी आदि आते हैं। हिंदी भाषा और साहित्य को परमार्जित करने के उद्देश्य से इस कालखंड में अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इनमें हरिश्चन्द्रचन्द्रिका, हिन्दी बंगभाषी, उचितवक्ता, भारत मित्र, सरस्वती, दिनकर प्रकाश आदि।
विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में भारतीय संस्कृति मानी जाती है। इसकी प्राचीनता का एक प्रमाण यहां की भाषाएं भी है। भाषाओं की दृष्टि से कालखंड का विभाजन निम्नानुसार किया जाता है –
1900 वीं सदी का आरंभ हिन्दी भाषा के विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इस समय देश में स्वतंत्रता आंदोलन प्रारंभ हुआ था। राष्ट्र में कई तरह के आंदोलन चल रहे थे। इनमें कुछ गुप्त और कुछ प्रकट थे पर इनका माध्यम हिंदी ही थी अब हिंदी केवल उत्तर भारत तक ही सीमित नहीं रह गई थी। हिंदी अब तक पूरे भारतीय आन्दोलन की भाषा बन चुकी थी। साहित्य की दृष्टि से बांग्ला, मराठी हिन्दी से आगे थीं परन्तु बोलने वालों के लिहाज से हिन्दी सबसे आगे थी। इसीलिए हिन्दी को र��जभाषा बनाने की पहल गांधीजी समेत देश के कई अन्य नेता भी कर रहे थे। सन 1918 में हिंदी साहित्य सम्मलेन की अध्यक्षता करते हुए गांधी जी ने कहा था की हिंदी ही देश की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। सन 1900 से लेकर 1950 क हिंदी के अनेक रचनाकारों ने इसके विकास में योगदान दिया इनमे मुंशी प्रेमचंद ,जयशंकर प्रसाद, माखनलाल चतुर्वेदी , मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्राकुमारी चौहान, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पन्त, महादेवी वर्मा आदि।
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भारत हल्लाइरहेकी एक विद्रोही नायिका कंगना
२७ भदौ, काठमाडौं । ‘उद्धव ठाकरे ! आज मेरो घर तोडियो, भोलि तेरो घमण्ड तोडिनेछ ।’
बलिउड नायिका कंगना रनौटले फिल्मी स्टाइलमा बोलेको यो ‘डाइलग’ भारतीय मिडियामा निकै चर्चित बनेको छ । महाराष्ट्रका मुख्यमन्त्री तथा हिन्दू कट्टरपन्थी शिवसेनाका प्रमुख उद्धव ठाकरेलाई उनले यसरी लल्कारेकी थिइन् ।
शिवसेना यस्तो अतिवादी पार्टी हो, जोसित प्राय बलिउडकर्मी थर्कमान हुन्छन् । कोही पनि यो समुहसँग पंगा लिन खोज्दैनन् । त्यसमाथि उद्धव ठाकरे मुख्यमन्त्रीजस्तो शक्तिशाली पदमा समेत छन् । तर, कंगनाले उनलाई सिधै ‘तँ’ भनेर सम्वोधन गरिन् । आफ्नो करिअरलाई नै दाउमा राखेर गरेको यो लल्कारले कंगनाको समग्र चरित्र चित्रण गर्छ । यही आक्रामक स्वाभा�� र गतिले गर्दा उनको छवि अन्य बलिउड नायिकाभन्दा पृथक छ । उनी कलाकारिताभन्दा माथि उठेकी छन् ।
गत बुधबार बीएमसी -बि्रहनमुम्बई मुनिसिपल कर्पोरेसन) ले महाराष्ट्र सरकारको निर्देशनमा कंगनाको मुम्बईस्थित कार्यालयमा बुल्डोजर चलाएको थियो । त्यसको प्रतिकार गर्दै उनले आगो ओकलेकी हुन् ।
कंगना र शिवसेनाको विवाद अहिले अदालतमा पुगेको छ । भारतीय जनता र त्यहाँका मिडिया कंगनाको पक्ष र विपक्षमा बाँडिएका छन् ।
शिवसेना र कंगनाबीचको बिवाद बुझ्न धेरै पछाडि फर्किनुपर्दैन । विगत ९ दिनदेखि उनीहरु आमने-सामने भएका हुन् । यो विवाद बलिउड अभिनेता सुशान्तसिंह राजपुतको ‘आत्महत्या’ प्रकरणसँग जोडिएको छ ।
गत १४ जूनमा सुशान्त बान्द्रास्थित आफ्नै घरमा मृत अवस्थामा भेटिए । उनले आत्महत्या गरेको भनेर प्रहरीले प्रारम्भिक वयान दियो । तर, कंगनाले भिडियो सम्वोधनमार्फत सुशान्तको हत्या भएको आशंका व्यक्त गरिन् । यसलाई बलिउडमा व्याप्त नेपोटिप्जम -नातावाद) सँग जोडेर छानविनको माग गरिन् । त्यसयता उनले घटनाको वास्तविकतालाई मुम्बई प्रहरीले ढाकछोप गर्न खोजेको भनेर आवाज उठाइरहेकी थिइन् ।
यही सिलसिलामा गत ३ सेप्टेम्बरमा कंगनाले गरेको एउटा टि्वटले आगो बाल्यो । शिवसेनासँग कंगनाको लडाईंको प्रस्थानविन्दू त्यही टि्वट थियो, जसमा उनले सुशान्तको ‘हत्या’पछि आफूले असुरक्षित महसुस गरिरहेको बताएकी थिइन् । साथै, मुम्बईलाई पाकिस्तान नियन्त्रित काश्मिरसँग तुलना गरेकी थिइन् ।
कंगनाले लेखेकी थिइन्, ‘शिवसेनाका नेता सञ्जय राउतले मलाई खुल्ला धम्की दिएका छन् र मुम्बई नफर्किन भनेका छन् । किन मलाई मुम्बई पाकिस्तान नियन्त्रित काश्मिरजस्तो महसुस भइरहेको छ ?’
कंगनाको ��ि्वटले शिवसेनालाई स्वभावत उत्तेजित तुल्यायो । एउटा अन्तरवार्तामा त्यसको जवाफ दिँदै शिवसेनाका नेता सञ्जय राउतले कंगनालाई ‘हरामखोर लड्की’ भनिदिए । शिवसेनाका केही महिलाहरु सडकमै ओर्लिए । उनीहरुले कंगनाको पोष्टरमा आफ्नो जुत्ता/चप्पलले प्रहार गर्दै आक्रोश पोखे ।
त्यसपछि कंगनाको अर्को टि्वट आयो । उनले लेखिन्, ‘सन् २००८ मा मलाई मुभी माफियाले मानसिकरोगी करार गरेको थियो । उनीहरुले नै २०१६ मा मलाई वोक्सीको संज्ञा दिए । २०२० मा महाराष्ट्रका मन्त्रीले मलाई हरामखोर लड्की भनेका छन् । मैले यति मात्रै भनेकी थिएँ कि म आफूलाई मुम्बईमा असुरक्षित महसुस गरिहेकी छु । असहनशीलताको बहस छेड्ने योद्धाहरु कता छन् ?’
त्यसपछि उनले आफू सेप्टेम्बर ९ तारिखमा मुम्बई आउने घोषणा सामाजिक सञ्ज्ाालबाटै गरिन् । त्यसबेला उनी हिमाञ्चल प्रदेशस्थित आफ्नो घरमै थिइन् । यहीबीचमा केन्द्र सरकारले उनलाई वाइ-प्लस सेक्युरिटी उपलब्ध गरायो ।
यता शिवसेनाको नेतृत्वमा रहेको बीएमसीका कर्मचारी अचानक मुम्बईको बान्द्रास्थित कंगनाको कार्यालय मणिकणिर्का फिल्समा पुगे । उनीहरुले त्यहाँ एउटा सूचना टाँसेर फर्किए । उक्त कार्यालय भवन अवैधरुपमा निर्माण भएको भन्दै तत्काल भत्काउन सूचनामा लेखिएको थियो । त्यसको भोलिपल्ट बुधबार कंगनाको कार्यालयमा बुल्डोजर लगेर ध्वंस गरियो । करिब ५० करोड रुपैयाँको भवनमा २ करोडको क्षति भएको बताइएको छ ।
कंगनाले महाराष्ट्र सरकार र शिवसेनाविरुद्ध बम्बे हाइ कोर्टमा पनि अपिल गरिन् । उक्त अदालतले बीएमसीको कारवाही तत्काल रोक्न आदेश दिएको छ, जसले कंगनालाई राहत मिलेको छ । बीएमसीको सोही एक्सनपछि कंगनाले मुख्यमन्त्रीलाई लल्कारेकी थिइन् ।
शिवसेना रक्षात्मक
भारतमा शिवसेना पार्टी उग्रताका लागि चिनिन्छ । आफ्नो थोरै मात्रै आलोचना गर्नेहरुमाथि शिवसेनाका नेता-कार्यकर्ता बाघले शिकार झम्टेझैं झम्टिन्छन् । भगवान शिवको नाम बेचिरहेको हुनाले जति उग्र भए पनि हिन्दू धर्म मान्ने भारतीयमा यो पार्टीप्रति सहानुभूति छ । बलिउड कलाकारहरु शिवसेनासँग आतंकत हुने कारण यही हो ।
तर, अहिले अस्वभाविक रुपमा कंगनाले शिवसेनालाई रक्षात्मक अवस्थामा पुर्याएकी छिन् । आजभन्दा अ���ाडि सायदै भारतका कुनै मुख्यमन्त्रीलाई एक सेलिबि्रटीले यसरी ‘तँ’ भनेर सम्वोधन गरेका थिए । यसले उद्धव ठाकरेलाई एकदमै उत्तेजित तुल्याउने अनुमान थियो । उनले अर्को कडा कदम चाल्ने ठानिएको थियो । तर, अहिलेसम्म त्यस्तो केही भएको छैन । ठाकरे मौन छन् ।
सञ्जय राउतले एक अन्तरवार्तामा निकै नम्र अभिव्यक्ति दिएका छन् । बीएमसीले गरेको कारवाहीमा आफ्नो पार्टीको हात नरहेको भन्दै उनले कंगनासँग थप लफडा गर्न नचाहेको बताए । उनले भने, ‘मेरो तर्फबाट यो प्रकरण सकिएको छ । कंगनालाई मुम्बईर्मा बस्न कुनै अवरोध हुनेछैन,’ उनले भनेका छन् ।
सत्ता र शक्ति आफ्नो हातमा हुँदाहुँदै शिवसेना किन कंगनासँग रक्षात्मक भयो त ? एकथरि विश्लेषकहरु शिवसेना अब पहिलेजस्तो आक्रामक नरहेको बताउँछन्, जस्तो बाल ठाकरेको पालामा थियो । उद्धव ठाकरेमा नेतृत्व हस्तान्तरणपछि यो पार्टीमा राजनीतिक चरित्र बढेको उनीहरुको विश्लेषण छ ।
‘बाल ठाकरे यस्ता थिए कि उनको विरोधमा कसैले चुइक्क बोल्यो कि तुरुन्तै आफ्ना कार्यकर्ता सडकमा उतार्थे, उस्तै परे भौतिक आक्रमण गर्न पनि पछि पर्दैनथे,’ एक विश्लेषक भन्छन्, ‘तर, उद्धव ठाकेर अपेक्षाकृत नरम एवं शान्त छन् ।’ उनको भनाइमा अब कंगनासँग पैंठेजोरी खेल्दाभन्दा मौन बस्दा नै पार्टीलाई फाइदा हुने निस्कर्षमा ठाकरे पुगेको हुन सक्छ । कंगनाले मुम्बईलाई पाकिस्तान नियन्त्रित काश्मिरको संज्ञा दिँदा त्यहाँका जनताको सहानुभूति आफूलाई आउने ठाकरेले आशा गरेका छन् । यसले मुम्बईमा चाँडै हुने महानगरको चुनावमा फाग्दा पुग्ने शिवसेनाको आँकलन छ ।
द्वन्द्वको राजनीतीकरण
जानकारहरु यो प्रकरण पूर्णरुपमा राजनीतिकरण भइसकेको बताउँछन् । उनीहरुको भनाइमा कंगनालाई अहिले भारतीय जनता पार्टी -बीजेपी) को आडभरोसा प्राप्त छ । कतिले त कंगनाको काँधमा राखेर वीजेपीले बन्दूक चलाइरहेको दाबीसमेत गरेका छन् ।
महाराष्ट्रको सरकार अलोकपि्रय बनेको खण्डमा त्यसको राजनीतिक लाभ आफूलाई मिल्न सक्ने लोभले बीजेपीले कंगनालाई बोकिरहेको विश्लेषण गरिएको छ । फेरि, आफ्ना प्रतिस्पर्धी दलहरुलाई कुनै प्रभावशाली व्यक्ति वा समुहले निशाना बनाउँछ भने त्यसलाई काँधमा बोक्नु राजनीतिक दलहरुको स्वभाव नै हो । त्यसैले बीजेपीका केही नेताले खुलेरै कंगनाको समर्थन गरिरहेका छन् ।
बरिष्ठ पत्रकार हेमन्त देसाईको भनाइमा अहिलेको प्रकरणले वीजेपी र शिवसेना दुवैलाई राजनीतिक फाइदा हुन सक्छ । उनी भन्छन्, ‘राज्यमा कोरोना महामारीको फैलावटका कारण तीव्र आलोचना खेपिरहेको महाराष्ट्र सरकार र शिवसेनालाई अहिले भएको विषयान्तरले राहत मिलेको छ । अर्कोतर्फ उत्तर भारतीय राज्यहरुमा बीजेपीलाई फाइदा भएको छ । त्यसैले यी दुवै दल यो प्रकरणबाट सन्तुष्ट छन् ।’
अर्कोतर्फ शिवसेनाको साथमा कांग्रेस आई छ । महाराष्ट्रमा शिवसेना, कांग्रेस र एनसीपीको गठवन्धन सरकार छ । आफू सम्मिलित सरकारविरुद्ध कंगनाले जेहाद छेडेकी हुनाले शिवसेनालाई साथ दिनु कांग्रेसको वाध्यता पनि हो । कंगानाले पछिल्लोपटक आफ्नो निशाना कांग्रेस आईतिर पनि सोझ्याएकी छन् । उनले आफ्नो एक टि्वटमा शिवसेनालाई सोनिया सेनाको संज्ञा दिइन् । यसबाट कंगना स्वयम् पनि यो मुद्दालाई राजनीतिकरण गर्न नै चम्किएकी छन् भन्ने निस्कर्षमा पुग्न सकिन्छ । कंगनाको यो अभिव्यक्तिपछि कांग्रेस आई अब खुलेर उनको विरुद्धमा उभिने छ ।
संवेदनाको खेती गर्दै
यो पूरा प्रकरणमा कंगनाले एकदमै चतुरतापूर्वक संवेदनाको खेती गरेकी छन् । उनले धर्म र राष्ट्रियताको आड लिएर भारतीय जनताको मात्र होइन, सत्तारुढ वीजेपीको पनि समर्थन पाउन सफल भएकी छन् । बीजेपी नेतृत्वको केन्द्र सरकारले उनलाई उच्च सुरक्षासमेत उपलब्ध गराएको छ ।
कंगनाले सुरुमा सुशान्तको मृत्युलाई शंकास्पद भन्दै आम भारतीयको भावनालाई प्रतिनिधित्व गरिन् । त्यससँगै नेपोटिज्मको बहस छेडेर आफूलाई थप लोकपि्रय बनाइन् । अहिले चाहिँ उनले धर्म र राष्ट्रियताको सहारासमेत लिएकी छन् । मुम्बईलाई पाकिस्तान समर्थित काश्मिरको संज्ञा दिएर उनले पाकिस्तानविरोधि जनमतलाई पनि आकृष्ट गर्न सफल भइन् । अहिले उनले आफ्नो कार्यालयलाई राम मन्दिरसँग तुलना गरेकी छन् ।
कंगनाले भनेकी छन्, ‘मणिकणिर्का फिल्म्सले पहिलो फिल्मको रुपमा अयोध्या निर्माण गर्ने घोषणा गरेको थियो, त्यसैले यो भवन मेरो लागि राम मन्दिर बराबर छ । यो मन्दिर फेरि ठडिने छ । जय श्री राम, जय श्री राम, जय श्री राम ।’ प्रष्ट छ, कंगना यो विवादलाई धर्मसँग जोड्न र मोड्न चाहन्छिन् । भारतीयहरु धर्मका आधारमा कसरी विभाजित छन् र हिन्दू धर्मको राजनीति गर्नेहरुको भारतमा कसरी फस्टाएका छन् उनले बुझेकी छन् । त्यही भएर उनले आफ्नो अभिव्यक्तिमा भगवान रामलाई प्रवेश गराएकी हुन् । उनले अयोध्यामाथि मात्र होइन, पाकिस्तान नियन्त्रित काश्मिरमाथि पनि फिल्म बनाउने घोषणा गरेकी छन् ।
धर्म र राष्ट्रियताकै आडमा राजनीति गरिरहेको शिवसेनालाई धर्म र राष्ट्रियताकै आड लिएर आक्रमण गर्नु कंगनाको भयानक चतुरता हो । उनले यसो नगरेको भए जनसमर्थन शिवसेनालाई जान सक्थ्यो । यो रणनीतिबाट उनले मुलधारका भारतीय मिडियाहरुलाई पनि आफ्नो पक्षमा पारेकी छिन् । धर्म र राष्ट्रियताको मामलामा भारतीय जनताभन्दा मिडिया अझै बढी अतिवादी मानिन्छन् ।
फिल्मबाट टाढिने सोच ?
१७ वर्षकै उमेरमा फिल्ममा प्रवेश गरेकी कंगनाले निकै संघर्ष गरेर आजको स्थान बनाएकी हुन् । सुरु-सुरुमा उनलाई मुख्य नायिकाको रुपमा लिन निर्माता-निर्देशक हच्किन्थे । तर, आजको दिनमा उनको स्टारडम कुनै हिरोको भन्दा कम छैन । उनले एक्लो बलबुतामा सुपरहिट फिल्महरु दिएकी छन् ।
सन् २००६ मा ‘गैंगस्टरबाट’ कंगनाको बलिउडमा प्रवेश भयो । पहिलो फिल्ममा लिड रोल गरेपछि त्यसपछि थुप्रै फिल्ममा उनले सहनायिका बनेर काम गरिन् ।
सन् २०११ मा आएको फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ फिल्म कंगनाको करिअरमा टर्निङ प्वाइन्ट बनेको थियो । यस्तै, सन् २०१३ मा आएको ‘क्वीन’ ले उनलाई नयाँ उचाइ दियो । उनी अरु नायिकाभन्दा विशेष मानिन थालिन् । यी दुवै फिल्मबाट कंगनालाई नेसनल अवार्ड प्राप्त भएको थियो ।
कलाकारिताभन्दा बाहिरका बौद्धिक बहसमा पनि कंगना सँधै अगाडि रहिन् । उनी कुनै पनि विषयवस्तुमा आक्रामक र निर्धक्क तरिकाले आफ्नो कुरा राख्ने गर्छिन् । कोही रिसाउलान् कि भन्ने परवाह गर्दिनन् । यो स्वभावले गर्दा उनको फिल्म क्षेत्रभन्दा बाहिर प्रतिष्ठा बढेको छ । तर, फिल्म इन्डष्ट्रभित्र टन्नै सत्रु कमाएकी छिन् ।
जस्तो कंगनाले केही दिन अगाडि एउटा टि्वटमा लेखिन्, ‘म रणवीर सिंह, रणवीर कपुर, अयान मुखर्जी, विक्की कौशिकसँग प्रार्थना गर्छु कि उनीहरुले ड्रग टेस्टका लागि आफ्नो ब्लड स्याम्पल दिउन् । अफवाह फैलिएको छ कि उनीहरु कोकिनका अम्मली हुन् ।’ यसरी एकैपटक उनले चारजना स्टारहरुलाई घुमाउरो तवरले ड्रग्स युजर्सको संज्ञा दिइन् ।
बलिउडमा ब्याप्त नेपोटिज्मको विषयलाई मुलधारको बहसमा ल्याउने श्रेय कंगनालाई जान्छ । उनले यस्ता कुराहरु बोल्दा धेरै स्टारहरु उनीसँग रुष्ट छन् । धेरैसँग उनको सम्बन्ध बिग्रेको छ । धेरै फिल्म उनले गुमाएकी पनि छन् । तर, पनि उनी आफ्नो शैली फेर्ने चेष्टामा छैनन् ।
आफ्नो यस्तो ‘बोल्ड’ स्वभावले फिल्म करिअर धरापमा पर्न सक्छ भन्ने कंगनाले नबुझेकी अवश्य होइनन् । भविष्यमा उनलाई फिल्म खेलाउन धेरै निर्माता-निर्देशकहरु पछि हट्न सक्छन् । तर, विश्लेषकहरुको आँकलन छ कि कंगना अब फिल्मबाट राजनीतिमा हाम्फाल्नेछिन् । फिल्म समीक्षक तनुल ठाकुरको भनाइमा कंगनाले फिल्म इन्डष्ट्रीमा आफ्नो करिअरलाई महत्व दिन छोडिसकेकी छन् ।
बीबीसीसँग उनी भन्छन्, ‘उनी एक महान कलाकार हुन् । तर, एउटा व्यक्तिको रुपमा उनका धेरै कमजोरी छन् । उनले अब आफ्नो फिल्मी करिअरलाई अगाडि नबढाउन सक्छिन् । सम्भवतः उनले अब राजनीतिमा प्रवेश गर्ने बाटो खोल्न चाहिरहेकी छन् ।’
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किसान करें पान की खेती जानें औषधीय महत्व
श्रेणी : औषधीय, समूह : कृषि योग्य, वनस्पति का प्रकार : लता, वैज्ञानिक नाम : पीपर बेतले, सामान्य नाम : पान
पौधे की जानकारी
उपयोग : पान की पत्तियों का उपयोग परंपरागत रोगो के उपचार, पेट की बीमारियों और संक्रमण के उपचार में किया जाता है। पान के पत्तों में प्रतिरक्षा के गुण को बढ़ाने के साथ – साथ कैंसर विरोधी गुण पाये जाते है। यह मुंह विकार और अपच के उपचार में उपयोग किया जाता हैं। यह गले से संबंधित समस्याओं और सांस की समस्याओं में भी मद्दगार होता है। यह हृदय और हृदय प्रणाली को मजबूत शक्ति प्रदान करता है। कई परंपरागत हिन्दू समारोहों में पान का उपयोग किया जाता है।
उत्पति और वितरण: यह मूल रूप से भारत का पौधा है। संपूर्ण भारत में इसकी खेती की जाती है। भारत में यह बिहार, बंगाल, ओडि़शा, दक्षिण भारत और कर्नाटक में पाया जाता है। यह श्रीलंका में भी पाया जाता है। मध्य प्रदेश में यह सागर, टीकमगढ़ और छतरपुर जिलों में पाया जाता है।
वितरण : पान एक सदाबहार व्यापक रूप से बढऩे वाली लता है। इसका वाणिज्यिक उत्पाद पत्तियां है जो मुख्य रूप से सुपारी, बुझे चूने, तंबाकू और कुछ अन्य साम्रगी के साथ चबाने के लिए उपयोग की जाती है। पान चबाने की आदत 340 ई.पू. पुरानी है। और उस समय पान एक प्रतिष्ठित देश के प्रतिष्ठित समाज के द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तु थी। वर्तमान में पान स्थानीय खपत और निर्यात के लिए पैदा किया जा रहा है। पान के प्रमुख उत्पादक देश भारत, श्रीलंका, थाईलैंड और बांग्लादेश है। पाकिस्तान पान का प्रमुख आयातक है।
वर्गीकरण विज्ञान
कुल : पिपरऐसी, आर्डर : पिपरलेसी
प्रजातियां : पी. बीटल
वितरण : पान एक सदाबहार व्यापक रूप से बढऩे वाली लता है। इसका वाणिज्यिक उत्पाद पत्तियां है जो मुख्य रूप से सुपारी, बुझे चूने, तंबाकू और कुछ अन्य साम्रगी के साथ चबाने के लिए उपयोग की जाती है। पान चबाने की आदत 340 ई.पू. पुरानी है। और उस समय पान एक प्रतिष्ठित देश के प्रतिष्ठित समाज के द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तु थी। वर्तमान में पान स्थानीय खपत और निर्यात के लिए पैदा किया जा रहा है। पान के प्रमुख उत्पादक देश भारत, श्रीलंका, थाईलैंड और बांग्लादेश है। पाकिस्तान पान का प्रमुख आयातक है।
वाह्य स्वरूप
स्वरूप : पान एक सदाबहार और बारहमासी लता है। इसका तना अद्र्ध लकड़ीदार होता है।
पत्तिंया : पत्तियां साधारण एक दूसरे की ओर, ह्दयाकार और चमकीले हरे रंग की होती है। पत्तियां 4 से 9 इंच लंबी और 2 से 4 इंच चौड़ी होती है।
फूल : नर फूल डंठल 3 से 6 इंच लंबे और मादा फूल डंठल 0.7 से 31/2 इंच लंबे होते है।
फल : फल डंठल 1 से 5 इंच लंबे होते है।
परिपक्व ऊंचाई : यह लता 10-15 फीट तक की ऊंचाई तक बढ़ती है।
बुवाई का समय
जलवायु : पान को उच्च वातावरण में नमी के साथ उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है लेकिन यह सूखी की स्थिति को भी सहन कर सकता है। इसकी खेती ऊपरी भूभाग के साथ – साथ अद्र्ध भागों में भी की जा सकती है। 200 से 450 से.मी. तक वार्षिक वर्षा आदर्श मानी जाती है। फसल कम से कम 10 डिग्री सेल्सियस का त��पमान और 40 डिग्री सेल्सियस से अधिकतम तापमान को भी सहन कर सकती है।
भूमि : पान को उच्च भूमि की आवश्यकता होती है और विशेष रूप से अच्छी तरह से सूखी मिट्टी पर सर्वोत्तम होती है। इसकी पैदावार लेटरिक मिट्टी में भी अच्छी तरह होती है। पान को लगातार नम मिट्टी की जरूरत होती है लेकिन मिट्टी में अत्यधिक नमी नहीं होना चाहिए। जल भराव, खारी और क्षारीय मिट्टी इसकी खेती के लिए अनुपयुक्त होती है।
मौसम: मई – जून माह में इसे लगाया जाता है।
बुवाई-विधि
भूमि की तैयारी :- खेत को बांस की लकडिय़ों और नारियल के पत्तों के साथ घेराबंदी की जाती है। भूमि को अच्छी तरह से खोदा जाता है। मिट्टी में हल से 1000 से 1500 से.मी. लंबाई, 75 से.मी. चौड़ाई और 75 से.मी. गहराई की लकीरें खीची जाती है। खली, खाद और पत्तियां को ऊपरी मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर लकीरों के ऊपर डाला जाता है। लता कलमों को मई और जून माह में लगाया जाता है। पौधों को लगभग दो फीट की दूरी पर समानांतर पंक्तियों में लगाया जाता है।
फसल पद्धति विवरण
परिपक्व लताओं (2-3 साल की) के शीर्ष भाग का उपयोग रोपण के लिए किया जाता है। तीन नोड्रस वाली लगभग 1 मी. लंबी स्वस्थ्य कलमों का उपयोग रोपण के लिए किया जाता है। एक हेक्टेयर में रोपण के लिए 20,000 – 25,000 कलमों की आवश्यकता होती है। रोपण के दौरान एक नोड मिट्टी के अंदर होना चाहिए और दूसरा नोड जमीनी स्तर पर होना चाहिए। शीघ्र अंकुरण को प्रोत्साहित करने के लिए रोपित कलम के चारों ओर मिट्टी को दृढ़ता से दवा देना चाहिए। अतिरिक्त नमी को रोकने के लिए मिट्टी में प्रारंभिक दौर में हाथ से पानी के छीटें डालना चाहिए। बारिश की अनुपस्थिति में पूर्ण स्थापन तक पौधों की हल्की सिंचाई और प्रतिदिन चार बार सिंचाई करना चाहिए।
पौधशाला
नर्सरी बिछौना-तैयारी: प्राय: पान को जलमग्न क्यारियों में बोया जाता है। क्षेत्र समतल, अच्छी जल निकसी और अच्छी रोशनी के साथ होना चाहिए। क्षेत्र कम से कम 2 साल से बैक्टीरिया, पर्ण अंगमारी रोग से संक्रमित नहीं होना चाहिए। भूमि की तैयारी के बाद 1.2 – 7.5 मी. की क्यारियां तैयार की जाती है। क्यारियों का आकार स्थान की उपलब्धता के साथ बढ़ाया जा सकता है। क्यारियों में खूंटी 45-45 से.मी. की दूरी में सहारा देने के लिए लगाई जाती है। एक खूंटी (छड़ी) के समीप दो कलमों को लगाया जाता है। क्यारियों की दिन में एक या दो बार सिंचाई की जाती है।
कीट प्रबंधन
कीट : लेपीडोसोपल और सुडोकोकस (फुसपुसा कीड़ा)
पहचान : यह कीड़ा तने में लगता है।
नियंत्रण : इसे 0.25′ कुनालफास का छिड़काव करके नियंत्रित किया जा सकता है।
रोग प्रबंधन
रोग : – (पर्ण चित्ती)
लक्षण :- प्रारंभिक लक्षण पान में छोटे – छोटे पानी में भीगे धब्बे के रूप में दिखाई देते है, जो बाद में बढ़कर गहरे भूरे रंग के हो जाते एंव केन्द्र में पीले आभा मंडल जैसे दिखते हैं।
कारणात्मक जीव : जेन्थोमोनस बेटलीकोला
नियंत्रण : इसे नियंत्रित करने के लिए 1′ बेर्डेकस के मिश्रण का छिड़काव किया जाता है।
उत्पादन प्रौद्योगिकी खेती
खाद : प्रत्येक तुड़ाई के बाद खाद देना चाहिए। पाक्षिक अंतराल में सूखी पत्तियों और लकड़ी की राख क्यारियों में डालना चाहिए एवं गोबर के घोल का छिड़काव करना चाहिए। इस प्रक्रिया को चार महीने तक दोहराया जाता है जब तक फसल कटाई के लिए तैयार न हो जाये। 195 ग्रा. यूरिया, 65 ग्रा. ट्रिपल सुपर फास्फेट और 100 ग्रा. पोटाश के दाने देना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन : इस फसल की सफल खेती के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है। सिंचाई नित्य और हल्की की जाती है और क्यारियों में आधे घंटे से ज्यादा पानी का जमाव नहीं होना चाहिए। गर्म महीनों के समय में पौधों की नियमित रूप से सिंचाई करना चाहिए। यदि भारी बारिश या अतिरिक्त सिंचाई द्वारा पानी प्रवेश होता है तो तुरंत जल निकासी की व्यवस्था करना चाहिए। सिंचाई के लिए सबसे अच्छा समय सुबह या शाम होता है।
घसपात नियंत्रण प्रबंधन: खरपतवार की निंदाई करके स्थान को स्वच्छ रखना चाहिए।
संरक्षित-खेती
कटाई: एक वर्ष के बाद पत्तियां तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। प्रारंभ में मुख्य तने के निचले भाग से परिपक्व पत्तियों को तोड़ा जाता है। बाद में मुख्य तने और पाववीय तने से पत्तियों की तुड़ाई की जाती है। एक बार जब तुड़ाई शुरू हो जाती है तो सामान्यत: प्रत्येक दिन या प्रत्येक सप्ताह चालू रहती है।
फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन
पैकिंग : बाजार भेजने के पहले तोड़े गये पान के पत्तों की गड्डी बनायी जाती है, प्रत्येक गड्डी में 40 पत्तियां होती है। गड्डियों को निर्यात बाजार के लिए विशेष रूप से तैयार बांस की टोकरीयों में पैक किया जाता है।
भडांरण: पान को शुष्क स्थानों में संग्रहित करना चाहिए। गोदाम भंडारण के लिए आदर्श होते है। शीत भंडारण पान के लिए अच्छे होते है।
परिवहन : सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को ��ैलगाड़ी या टै्रक्टर से बाजार तक पहुंचता हैं। दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लांरियों के द्वारा बाजार तक पहुंचाया जाता हैं। परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।
अन्य-मूल्य परिवर्धन: तेल, पान मासाला, मुख शुद्धि
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आज साउनकाे पहिलाे सोमबार : यसरी गर्नुहोस् शिव भगवानको आरती, चाडै फल प्राप्त हुनेछ
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आज साउनको पहिलो सोमबार, यस्तो छ धार्मिक महत्व
काठमाडौं : आज यस वर्षको साउन महिनाको पहिलो सोमबार । हिन्दू नेपाली नारीहरुका लागि आजको दिनलाई विशेष रुपमा लिइन्छ ।
साउने सोमबारका दिन शिवालयहरुमा भक्तजनको भिड लाग्ने गरेको भएपनि यसपटक कोरोना भाइरसको महामारीका कारण अधिकांश शिवालयहरुमा दर्शनार्थीको उपस्थिति न्यून रहेको छ ।
सरकारले २५ जना भन्दा जना एक स्थानमा भेला नहुन भनेको छ भने मन्दिरहरु पनि प्राय बन्द…
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नागा साधु(सम्पूर्ण जानकारी)-Amazing Facts about Naga Sadhus
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नागा साधु या नागा बाबा
आपने बहुत सारे साधु-संतों के बारे में सुना होगा। लेकिन इन सब में से नागा साधु सबसे अलग होते हैं। इन्हें नागा बाबा भी कहा जाता है। इन्हें नागा साधु इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह प्राय नग्न रहते हैं। नागा साधु अखाड़ा में रहते हैं और युद्ध कला में माहिर होते हैं। नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं ।
नागा साधुओं का इतिहास
भारतीय सनातन धर्म में आदि गुरु शंकराचार्यका बहुत…
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"कुत्ती" "कमीनी" "वेश्या" "कुलटा बोल इस भगवा में किसकी रखैल है ?" "अब तक कितनों के बिस्तर पर गई है?" "किसके इशारे पर सब कर रही है ?" "जिंदगी प्यारी है तो जो मैं कहता हूँ कबुल ले बाकी जिंदगी आराम से कटेगी" यह शब्द सुनकर आपकी त्योरियां जरुर चढ़ गई होगी मेरी भी चढ़ गई थी। ऐसे घृणित शब्दों से किसी और को नहीं बल्कि भगवा वस्त्र धारिणी निष्कलंक साध्वी प्रज्ञा को कलंकित "कांग्रेस" के इशारे पर कांग्रेस का दल्ला मुम्बई ATS हेमंत करकरे के सामने मुम्बई पुलिस व ATS के दोगलों ने कहलवाया था. ....... जिस करकरे को आज शहीद मान कर सम्मान दिया जाता है एक नम्बर का नीच आदमी था.... मैं साध्वी जी का एक साक्षात्कार देख रहा था। ऐसे घृणित शब्दों को इशारे में बताया। बताते हुए उनके नेत्र सजल हो गये. साक्षात्कार देखते हुए क्रोधाग्नि से धधक रहे मेरे आँखो से भी अश्रु की धारा फूट पड़ी। "साध्वी दीदी" ने मर्माहत शब्दों में वृत्तान्त सुनाया कि मेरे शरीर का कोई ऐसा अंग नही जिसे चोटिल ना किया गया हो। जब पत्रकार ने पुछा कि मारने के कारण ही आपके रीढ़ की हट्टी टूट गई थी ?? साध्वी दीदी ने कहा, "नहीं, मारने से नहीं, एक जन हमारा हाथ पकड़ते थे एक जन पांव और झूलाकर दीवार की तरफ फेंक देते थे, ऐसा प्राय: रोजाना होता था दीवार से सर टकराकर सुन्न हो जाता था। कमर में भयानक दर्द होता था। ऐसा करते करते एक दिन रीढ़ की हड्डी टूट गई तब अस्पताल में भर्ती कराया गया।" साध्वी दीदी ने बताया, "एक दिन तो ऐसा हुआ कि मारते ��ारते एक पुलिस वाला थक गया तो दुसरा मारने लगा। उस दौरान मेरे फेफड़े की झिल्ली फट गई फिर भी विधर्मी निर्दयता से मारता रहा."..... साध्वी दीदी ने बताया, "रीढ़ की हड्डी टूटने के बाद मैं बेहोश हो गई थी। ��ब होश आया तो देखा कि मेरे शरीर से सारा भगवा वस्त्र उतार लिया गया गया था. मुझे एक फ्राक पहनाया गया था।" साध्वी दीदी ने बताया, "मेरे साथ मेरे एक शिष्य को भी गिरफ्तार किया गया था । उसे मेरे सामने लाकर उसे चौड़ा वाला बेल्ट दिया और कहा मार!! अपने गुरु को इस साली को!!" ..... .."शिष्य, सकुचाने लगा तो मैं बोली मारो मुझे !! शिष्य ने मजबुरी में मारा तो जरुर मुझे लेकिन नरमी से। तब एक पुलिस वाले ने शिष्य से बेल्ट छीन कर शिष्य को बुरी तरह पीटने लगा और बोला ऐसे मारा जाता है. "साध्वी दीदी ने बताया कि एक दिन कुछ पुरुष कैदियों के साथ मुझे खड़ी करके अश्लील आडियो सुनाया जा रहा था. मेरे शरीर पर इतनी मार पड़ी थी कि मेरे लिए खड़ी रहना मुश्किल था. मैं बोली कि बैठ जाऊँ वो बोले साली शादी मे आई है क्या कि बैठ जायेगी!! मेरी आँख बंद होने लगी मैं अचेत हो गई। साध्वी दीदी ने बताया, "मेरे दोनों हाथों को सामने फैलवाकर एक चौड़े बेल्ट से मारते थे, मेरा दोनो हाथ सूज जाता था। अँगुलियां भी काम नही करती थी, तब गुनगुना पानी लाया जाता था। मैं अपने हाथ उसमें डालती, कुछ आराम होता तब अंगलुियां हिलने डुलने लगती थी, तो फिर से वही क्रिया मेरे पर मार पड़ती थी। साध्वी जी ने बताया कि मुझे तोड़ने के लिए मेरे चरित्र पर लांछन लगाया। क्योंकि लोग जानते हैं कि किसी औरत को तोड़ना है तो उसके चरित्र पर दाग लगाओ ! मेरे जेल जाने के बाद यह सदमा मेरे पिताजी बर्दास्त नहीं कर पाये और इस दुनियां से चल बसे. साध्वी जी राहत की सांस लेते हुए कहती हैं मेरे अन्दर रहते ही, एक दुर्बुद्धि दुराचारी हेमंत करकरे को तो सजा मिल गई मिल गई अभी बहुत लोग बाकी है। साध्वी दीदी ने बताया, "नौ साल जेल में थी, सिर्फ एक दिन एक महिला ने एक डंडा मारा था, बाकी हर रोज पुरुष ही निर्दयता से हमें पीटते थे." पत्रकार ने पूछा, "आपको समझ में तो आ गया होगा कि क्यों आपको इतने बेरहमी से तड़पाया जा रहा था?" साध्वी जी ने कहा, "हां, भगवा के प्रति उनका द्वेश था। फूटी आंख भी भगवा को नही देखना चाहते थे। भगवा को बदनाम करने का कांग्रेस ने एक सुनियोजित षडयंत्र तैयार किया था." साध्वी जी ने बताया कि एक बार कांग्रेस का गुलाम, स्वामी अग्निवेष मुझसे मिलने जेल में आया और बोला, "आप सब कबुल कर लो कि हां! यह सब RSS के कहने पर हुआ है। सरकारी गवाह बन जाओ। चिदम्बरम और दिग्विजय हमारे मित्र हैं। मै आपको छुड़वा दुंगा" साध्वी जी ने कहा, "अगर आपकी उनसे घनिष्ठता है और सच में हमें छुड़ाना चाहते हो, तो चिदम्बरम से जाकर बोलो की इमानदारी से जांच करवा ले, क्योंकि मैंने ऐसा कुछ किया ही नही है ।" हिन्दुओं इसके आगे आपको सोचना है कि काँग्रेसियों के मन मे हिन्दुओं के लिए कितना प्रेम है। काँग्रेस का चुनाव घोषणा पत्र आपने पढ लिया होगा। अब आपको निर्णय करना है कि आपको कैसा भारत चाहिए। हिन्दू युक्त या हिन्दु मुक्त :-
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आकाश चोपड़ा बोले- अगर तीसरे वनडे में मनीष पांडे ने किया ऐसा, तो टीम में जगह हो जाएगी पक्की
आकाश चोपड़ा बोले- अगर तीसरे वनडे में मनीष पांडे ने किया ऐसा, तो टीम में जगह हो जाएगी पक्की
भारत बनाम श्रीलंका: बेहतर होने के साथ-साथ ख़राब होने वाले उत्पाद भी बेहतर क्वालिटी के उत्पाद हैं, जो टीम के साथ मिलकर ख़रीदने वाले होते हैं।. स्थिरांक एक मनीष इस तरह के मैच में वे मेल खाते में मेल खाते हैं. ही बोलोलोकेशन️ पूर्व️ पूर्व️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️I वक्त I इस तरह की टीम के साथ तेज़ गति के लिए तेज़ गेंदबाज़ तेज़ गति में तेज़ हो जाएगा। तारीफ अश्वगंधा मुकाबलों में पुदीना…
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🚩 वामपंथियों ने सुभाषचंद्र बोस को भी नहीं छोड़ा, किया 'गाली-गलौच' वाली भाषा का इस्तेमाल - 23 जनवरी 2022
🚩लगभग आरंभ से ही कम्युनिस्टों को अपनी वैज्ञानिक विचारधारा और प्रगतिशील दृष्टि का घोर अहंकार रहा है लेकिन अनोखी बात यह है कि इतिहास व भविष्य ही नहीं, ठीक वर्तमान यानी आंखों के सामने की घटना-परिघटना पर भी उनके मूल्यांकन, टीका-टिप्पणी, नीति, प्रस्ताव आदि प्राय: मूढ़ता की पराकाष्ठा साबित होते रहे हैं। यह न तो एक बार की घटना है, न एक देश की। सारी दुनिया में कम्युनिस्टों का यही रिकॉर्ड है। इसके निहितार्थ समझने से पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कम्युनिस्ट मूल्यांकन को उदाहरण के लिए देखें।
🚩1940 में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी पुस्तिका 'बेनकाब दल व राजनीति' में नेताजी को 'अंधा मसीहा' कहा गया। फिर उनके कामों को कहा गया- 'सिद्धांतहीन अवसरवाद", जिसकी मिसाल मिलनी कठिन है। यह सब तो नरम मूल्यांकन था। धीरे-धीरे नेताजी के प्रति कम्युनिस्ट शब्दावली हिंसक और गाली-गलौज से भरती गई। जैसे, 'काला गिर��ह', 'गद्दार बोस', 'दुश्मन के जरखरीद एजेंट', 'तोजो (जापानी तानाशाह) और हिटलर के अगुआ दस्ते', 'राजनीतिक कीड़े', 'सड़ा हुआ अंग जिसे काटकर फेंकना है', आदि। ये सब विशेषण सुभाष बोस और उनकी सेना आई. एन. ए (इंडियन नेशनल आर्मी) के लिए थे। तब कम्युनिस्ट मुखपत्रों, पत्रिकाओं में नेताजी के कई कार्टून छपे थे, जिससे कम्युनिस्टों की घोर अंधविश्वासी मानसिकता की झलक मिलती है (उनपर सधी नजर रखने वाले इतिहासकार स्व. सीताराम गोयल के सौजन्य से वे कार्टून उपलब्ध हैं)। अधिकांश कार्टूनों में सुभाष बाबू को 'जापानी, जर्मन फासिस्टों के कुत्ते या बिल्ली' जैसा दिखाया गया है, जिससे उसका मालिक जैसे चाहे खेलता है।
एक कार्टून में बोस को तोजो का मुखौटा, तो अन्य में भारतवासियों पर जापानी बम गिराने वाला दिखाया गया है। एक में बोस को 'गांधीजी की बकरी छीनने वाला' दिखाया गया। एक कार्टून में तोजो एक गधे के गले में रस्सी डाले सवारी कर रहा है, उस गधे का मुंह बोस जैसा बना था तो दूसरे में बोस को 'तोजो का पालतू क्षुद्र बौना' दिखाया।
🚩कम्युनिस्ट अखबार पीपुल्स डेली (10 जनवरी 1943) में तब कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वोच्च नेता रणदिवे ने अपने लेख में बोस को 'जापानी साम्राज्यवाद का गुंडा' तथा उनकी सेना को 'भारतीय भूमि पर लूट, डाका, विध्वंस मचाने वाला भड़ैत' बताया। लेकिन रोचक बात यह है कि यह सब कहने के बाद, समय बदलते ही, जब आई. एन. ए. की लोकप्रियता देशभर में बढ़ने लगी, तो कम्युनिस्टों ने उसके बंदी सिपाहियों के पक्ष में लफ्फाजी शुरू कर दी!
🚩उपर्युक्त इतिहास के संदर्भ में स्मरण रखने की पहली बात है कि यह सब न अपवाद था, न अनायास। दूसरी बात, जो बुद्धि अपने सामने हो रही घटना, व्यक्तित्व का ऐसा मूढ़ मूल्याकंन करती रही, वह दूसरे लोगों, घटनाओं, सत्ताओं का मूल्यांकन भी वैसे ही करती है यानी जड़-विश्वासयुक्त, घोर मतिहीन। सभी मूल्यांकनों का स्रोत एक बनी-बनाई विचारधारा में अंधविश्वास ही था और है, जो तथ्यों को यथावत देखने की बजाए एक और खास एक ही तरह से देखने को मजबूर करता था। यह बंदी मानसिकता देश और समाज के लिए कितनी घ��तक रही है, हमें इसे ठीक से समझना चाहिए। तीसरी बात यह है कि नेताजी सुभाष, जय प्रकाश नारायण, गांधीजी आदि के अपमानजनक और जड़मति मूल्यांकनों की क्षमा मांग लेने के बाद भी इस देश में कम्युनिस्ट वही काम ��ार-बार करते रहे हैं। उनकी देश-समाज-विरोधी प्रवृत्ति नहीं बदली है।
🚩आज भी अयोध्या, कश्मीर, गोधरा, इस्लामी आतंकवाद आदि गंभीर मुद्दों तथा अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी या नरेन्द्र मोदी जैसे शीर्ष नेताओं के मूल्यांकन और तद्नुरूप कम्युनिस्ट अभियान चलाने में ठीक उसी मूढ़ता और देशघाती जिद की अक्षुण्ण परंपरा है। यह काम कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ-साथ तमाम मार्क्सवादी प्रोफेसर, लेखक, पत्रकार, बुद्धिजीवी भी करते रहे हैं। चूंकि ये लोग कम्युनिस्ट पार्टी से सीधे जुड़े हुए नहीं हैं तथा बड़े-बड़े अकादमिक या मीडिया पदों पर रहे हैं, इससे इनका वास्तविक चरित्र पहचानने में गलती नहीं करनी चाहिए।
🚩इस प्रकार, नेताजी व आई. एन. ए. को 'तोजो का कुत्ता' और राष्ट्रीय स्वयंयेवक संघ को 'तालिबान, अलकायदा सा आतंकवादी' बताने में एक सी भयंकर मूढ़ता और हानिकारक क्षमता है, यह हमें देखना, समझना चाहिए। कभी भगवाकरण, तो कभी असहिष्णुता के बहाने चल रहे अभियान उसी घातक अंधविश्वास व हिन्दू-विरोध से परिचालित हैं। इससे देश-समाज बंटता है, जो कम्युनिस्ट 1947 में एक बार सफलतापूर्वक करवा चुके हैं। आज भी प्रगतिशील, सेक्युलर, लिबरल आदि विशेषणों की आड़ में वही भारत-विरोधी और हिन्दू-द्वेषी राजनीति थोपी जाती है क्योंकि घटनाओं, स्थितियों, व्यक्तियों, समुदायों की माप-तौल के पैमाने, बाट, इंच-टेप वही हैं।
🚩लंबे नेहरूवादी-कम्युनिस्ट गठजोड़ के कारण वही पैमाने हमारे बुद्धिजीवियों की मानसिकता में अनायास जमा दिए गए हैं। इससे जो हानि होती है, उससे युवाओं को पूरी तरह अवगत होना चाहिए। नेताजी के कम्युनिस्ट मूल्यांकन का यही जरूरी सबक है।
लेखक : डॉ. शंकर शरण
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विचार मंथन : अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को- महाकवि महादेवी वर्मा
नारी-चेतना की ‘अद्वितीय विचारक’ महाकवि महादेवी वर्मा
गृहिणी का कर्त्तव्य कम महत्वपूर्ण नहीं है, यदि स्वेच्छा से स्वीकृत हो । प्रत्येक विज्ञान में क्रियात्मक कला का कुछ अंश अवश्य होता है । एक निर्दोष के प्राण बचानेवाला असत्य उसकी अहिंसा का कारण बनने वाले सत्य से श्रेष्ठ होता है । विज्ञान एक क्रियात्मक प्रयोग है । आज हिन्दू –स्त्री भी शव के समान निःस्पंद है । क्या हमारा जीवन सबका संकट सहने के लिए है? कला का सत्य जीवन की परिधि में, सौंदर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखंड सत्य है ।
अपने विषय में कुछ कहना पड़े : बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को । वे म���स्कुराते फूल, नहीं जिनको आता है मुरझाना, वे तारों के दीप, नहीं जिनको भाता है बुझ जाना । मैं किसी कर्मकांड में विश्वास नहीं करती. …मैं मुक्��ि को नहीं, इस धूल को अधिक चाहती हूँ । प्रत्येक गृहस्वामी अपने गृह का राजा और उसकी पत्नी रानी है, कोई गुप्तचर, चाहे देश के राजा का ही क्यों न हो, यदि उसके निजी वार्ता को सार्वजनिक घटना के रूप में प्रचारित कर दे, तो उसे गुप्तचर का अनधिकार, दुष्टाचरण ही कहा जाएगा ।
एक पुरुष के प्रति अन्याय की कल्पना से ही सारा पुरुष-समाज उस स्त्री से प्रतिशोध लेने को उतारू हो जाता है और एक स्त्री के साथ क्रूरतम अन्याय का प्रमाण पाकर भी सब स्त्रियाँ उसके अकारण दंड को अधिक भारी बनाए बिना नहीं रहती । इस तरह पग-पग पर पुरुष से सहायता की याचना न करने वाली स्त्री की स्थिति कुछ विचित्र सी है । वह जितनी ही पहुंच के बाहर होती है, पुरुष उतना ही झुंझलाता है और प्राय: यह झुनझुलाहत मिथ्या अभियोगों के रूप में परिवर्तित हो जाती है ।
मैं नीर भरी दुःख की बदली ! विस्तृत नभ का कोना कोना, मेरा कभी न अपना होना, परिचय इतना इतिहास यही, उमड़ी थी कल मिट आज चली ।।
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किन मनाइन्छ विश्वकर्मा पूजा ?
विश्वका आदि शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा पूजा असोज १ गते बुधबार मनाइदैछ । उक्त दिन भगवान विश्वकर्माको जन्म भएको धार्मिक विश्वास छ । विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रान्तिको दिन मनाउने गरिन्छ । विश्वकर्मा पूजाको दिन उद्योग, कलकारखाना र हरेक किसिमका मेसिनहरुको पूजाआजा गरिन्छ । यो पूजा सबै कलाकार, शिल्पकार र औद्योगिक घराना, व्यापारी र मजदुरहरुले गर्छन् ।
यो दिन धेरैजसो कलकारखाना बन्द रहन्छ र मानिसहरुले हर्षोल्लासको साथमा भगवान विश्वकर्माको पूजा गर्छन् । भगवान विश्वकर्माले नै देवताहरुका लागि अस्त्रहरु, भवनहरु तथा मन्दिरहरुको निर्माण गरेका थिए । उनले सृष्टिको रचनामा भगवान ब्रम्हालाई सहयोग गरेका थिए । उनलाई विश्वकै पहिलो शिल्पकार समेत मानिन्छ । शिल्पकार खासगरी ईन्जिनियरिङ काममा सक्रिय व्यक्तिहरुले उनलाई आफ्ना आराध्य देव मान्दछन् र उनको विशेष पूजा गर्छन् ।
विश्वकर्मा भगवान को हुन् ?
भगवान महादेवले ब्रहृमा र विष्णुलाई सृष्टिको सृजना र पालनको छुटाछुटै जिम्मेवारी दिएका थिए । सृष्टिको सृजना गर्ने आफ्नो जिम्मेवारी निभाउन ब्रहृमाले आफ्नो वंशजदेव शिल्पी विश्वकर्मालाई आदेश दिए ।
विश्वकर्मालाई विश्वकै सबैभन्दा पहिलो इन्जिनियर र वास्तुकार पनि मानिन्छ । उनले पाताल, मध्यलोक र स्वर्गलोक गरी तीनै लोकको निर्माण गरे । भगवान विश्वकर्माको महत्व यो कुराले पनि सम्झिन सकिन्छ कि उनको महत्वको वर्णन ऋग्वेदमा ११ ऋचाहरु लेखेर गरिएको छ ।
उनको अनन्त र अनुपम कृतिमा सत्ययुगमा स्वर्गलोक, त्रेतायुगमा लंका, द्वापयुगमा द्वारिका र कलियुगमा जगन्नाथ मन्दिरको विशाल मुर्ती आदि रहेका छन् ।
विश्वकर्मा पूजाको आध्यात्मिक महत्व
जसको सम्पूर्ण सृष्टि र कर्म व्यापार हो उनीहरु विश्वकर्मा हुन् । सजिलो भाषामा भन्ने हो भने सम्पूर्ण सृष्टिमा जुन पनि कर्म सृजनात्मक हो जुन कामले जीवको जीवन सञ्चालित हुन्छ । उनीहरु सबैको मुल विश्वकर्मा हो । त्यसैले उनको पूजनले प्रत्येक व्यक्तिलाई प्राकृतिक उर्जा दिन्छ र काममा आउने सबै बाधा अड्चनहरुलाई तोडिदिन्छ भन्ने विश्वास रहेको छ ।
विश्वकर्मा पूजा विधि
बिहान नुहाएपछि चोखो कपडा लगाएर भगवानमा विश्वकर्माको मूर्ति अथवा तस्बिरको अघिल्तिर बस्नु पर्छ । भगवान विश्वकर्माको पूजा-आरती गरेपछि पूजा सामग्रीहरु जस्तै, अक्षता, बेसार, फूल, पान, ल्वाङ, सुपारी, मिठाइ, फल, धूपबत्ति तथा रक्षासूत्र आदिले विधिपूर्वक पूजा गर्नु पर्छ ।
भगवान विश्वकर्माको पूजा गरेपछि सबै हातहतियारलाई बेसार-अक्षता दल्नु पर्छ । त्यसपछि कलशलाई पनि बेसार, अक्षता र रक्षासूत्र चढाउने । त्यसपछि पूजा मन्त्रहरुको उच्चारण गर्ने । पूजा सम्पन्न भएपछि आफ्ना सहकर्मी, छरछिमेक तथा नातेदारहरुलाई पूजाको प्रसादी वितरण गर्नु पर्छ ।
विश्वकर्मा पूजाको महत्व
हरेक वर्ष मेसिन, हात हतियार तथा सवारीसाधनको पूजा गर्नाले तीनिहरु चाँडै बिग्रदैनन् । मेशिन पनि सुचारु रुपमा सञ्चालन हुन्छ, किनभने भगवान विश्वकर्माको त्यसमाथि कृपा बनिरहेको हुन्छ ।
नेपालमा काठमाडौंसहित तराईको प्राय सबै जिल्लाहरुमा विश्वकर्मा पूजा धुमधामका साथ मनाउने गरिन्छ ।
शास्त्रहरु तथा पुराणहरुमा भगवान विश्वकर्मालाई वास्तु शास्त्र तथा यन्त्रहरुको देवता मानिएको छ । हिन्दू परम्परा अनुसार उनको पूजा तथा यज्ञ सम्पूर्ण विधि-विधन अनुसार गरिन्छ । भगवान विश्वकर्माको कृपा पाउनका लागि उनका १ सय ८ नामहरुको पाठक गर्नु निकै नै फलदायी समेत मानिन्छ ।
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विचार मंथन : अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को- महाकवि महादेवी वर्मा
नारी-चेतना की ‘अद्वितीय विचारक’ महाकवि महादेवी वर्मा
गृहिणी का कर्त्तव्य कम महत्वपूर्ण नहीं है, यदि स्वेच्छा से स्वीकृत हो । प्रत्येक विज्ञान में क्रियात्मक कला का कुछ अंश अवश्य होता है । एक निर्दोष के प्राण बचानेवाला असत्य उसकी अहिंसा का कारण बनने वाले सत्य से श्रेष्ठ होता है । विज्ञान एक क्रियात्मक प्रयोग है । आज हिन्दू –स्त्री भी शव के समान निःस्पंद है । क्या हमारा जीवन सबका संकट सहने के लिए है? कला का सत्य जीवन की परिधि में, सौंदर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखंड सत्य है ।
अपने विषय में कुछ कहना पड़े : बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को । वे मुस्कुराते फूल, नहीं जिनको आता है मुरझाना, वे तारों के दीप, नहीं जिनको भाता है बुझ जाना । मैं किसी कर्मकांड में विश्वास नहीं करती. …मैं मुक्ति को नहीं, इस धूल को अधिक चाहती हूँ । प्रत्येक गृहस्वामी अपने गृह का राजा और उसकी पत्नी रानी है, कोई गुप्तचर, चाहे देश के राजा का ही क्यों न हो, यदि उसके निजी वार्ता को सार्वजनिक घटना के रूप में प्रचारित कर दे, तो उसे गुप्तचर का अनधिकार, दुष्टाचरण ही कहा जाएगा ।
एक पुरुष के प्रति अन्याय की कल्पना से ही सारा पुरुष-समाज उस स्त्री से प्रतिशोध लेने को उतारू हो जाता है और एक स्त्री के साथ क्रूरतम अन्याय का प्रमाण पाकर भी सब स्त्रियाँ उसके अकारण दंड को अधिक भारी बनाए बिना नहीं रहती । इस तरह पग-पग पर पुरुष से सहायता की याचना न करने वाली स्त्री की स्थिति कुछ विचित्र सी है । वह जितनी ही पहुंच के बाहर होती है, पुरुष उतना ही झुंझलाता है और प्राय: यह झुनझुलाहत मिथ्या अभियोगों के रूप में परिवर्तित हो जाती है ।
मैं नीर भरी दुःख की बदली ! विस्तृत नभ का कोना कोना, मेरा कभी न अपना होना, परिचय इतना इतिहास यही, उमड़ी थी कल मिट आज चली ।।
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*पवित्र शंख के चमत्कारिक रहस्य...* *क्या शंख हमारे सभी प्रकार के कष्ट दूर कर सकता है? भूत-प्रेत और राक्षस भगा सकता है? क्या शंख में ऐसी शक्ति है कि वह हमें धनवान बना सकता है? क्या शंख हमें शक्तिशाली व्यक्ति बना सकता है?* *पुराण कहते हैं कि सिर्फ एकमात्र शंख से यह संभव है। शंख की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन के दौरान हुई थी।* शिव को छोड़कर सभी देवताओं पर शंख से जल अर्पित किया जा सकता है। शिव ने शंखचूड़ नामक दैत्य का वध किया था अत: शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है। शंख के नाम से कई बातें विख्यात है जैसे योग में शंख प्रक्षालन और शंख मुद्रा होती है, तो आयुर्वेद में शंख पुष्पी और शंख भस्म का प्रयोग किया जाता है। प्र��चीनकाल में शंक लिपि भी हुआ करती थी। विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है। शंख से वास्तुदोष ही दूर नहीं होता इससे आरोग्य वृद्धि, आयुष्य प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, पितृ-दोष शांति, विवाह आदि की रुकावट भी दूर होती है। इसके अलावा शंख कई चमत्कारिक लाभ के लिए भी जाना जाता है। उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख कैलाश मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका एवं भारत में पाये जाते हैं। *त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृत: करे।* *नमित: सर्वदेवैश्य पाञ्चजन्य नमो स्तुते।।* वर्तमान समय में शंख का प्रयोग प्राय: पूजा-पाठ में किया जाता है। अत: पूजारंभ में शंखमुद्रा से शंख की प्रार्थना की जाती है। शंख को हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण और पवित्र माना गया माना गया है। शंख कई प्रकार के होते हैं। शंख के चमत्कारों और रहस्य के बारे में पुराणों में विस्तार से लिखा गया है। *शंख और शंख ध्वनि के रहस्य..* पहला रहस्य👉 शंख के प्रकार : शंख के प्रमुख 3 प्रकार होते हैं:- दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। इन शंखों के कई उप प्रकार होते हैं। शंखों की शक्ति का वर्णन महाभारत और पुराणों में मिलता है। यह प्रकार इस तरह भी है- वामावर्ती, दक्षिणावर्ती #astrologer #astrology #vedicastrologer #vedicastrology #spiritualhealer #spiritualawakening #spiritualhealing #mua #lifestyle #indianblogger #bestastrologer #lostlove #celebrityastrologer #mumbai #ludhiana #punjab #delhi #chandigarh #blogger #peaceofmind #spirituality #numerology #ludhiana #jalandhar #mantra #mantras #tantra #meditation #healersofinstagram #discipline #karmaastro (at Mumbai, Maharashtra) https://www.instagram.com/p/BzTUajphsmq/?igshid=7jec8jvc40rb
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