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helputrust · 2 years ago
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होम्योपैथिक इलाज समय पर कराने से अत्यधिक कारगर होता है - हर्ष वर्धन अग्रवाल
होम्योपैथिक शिविर में 109 रोगियों को निःशुल्क परामर्श और दवाएं प्रदान की गयीं
लखनऊ, 18.12.2022 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में योग्य मान्यता प्राप्त चिकित्सक द्वारा "निःशुल्क होम्योपैथिक परामर्श, निदान एवं दवा वितरण शिविर" का आयोजन ट्रस्ट के इंदिरा नगर सेक्टर - 25 स्थित कार्यालय में हुआ l शिविर का शुभारंभ ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्षवर्धन अग्रवाल तथा शिविर के परामर्शदाता चिकित्सक डॉ संजय कुमार राणा ने दीप प्रज्वलन कर किया |
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने बताया कि होम्योपैथिक शिविर आयोजित करने की प्रेरणा माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के मंत्र - सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास से मिली है श्री अग्रवाल ने कहा कि, होम्योपैथिक इलाज समय पर कराने से अत्यधिक कारगर होता है l यह प्रतिरक्षा प्रणाली और शरीर के प्राकृतिक रक्षा तंत्र को मजबूत करने का काम करती है, जिससे शरीर को संक्रमण से स्वयं लडऩे में मदद मिलती है । एलोपैथी की तुलना में होम्योपैथी बहुत अधिक प्रभावी है, क्योंकि यह केवल लक्षणों का उपचार करने के बजाय बीमारी को जड़ से खत्म करती है । लोगों को अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए और किसी प्रकार की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या होने पर तत्काल अपने डॉक्टर से सलाह लेकर उपचार करवाना चाहिए l जिससे बीमारी बढे न और जटिलता से बचा जा सके l जनहित में नियमित स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया जाएगा l
डॉ० संजय कुमार राणा ने कहा कि, होम्योपैथी उच्च सामर्थ्यवान (Potentised) तत्वों की बेहद छोटी खुराकों की मदद से शरीर द्वारा स्वयं को ठीक करने की शक्ति बढ़ाने का काम करती है l होम्योपैथी की सही औषधि शरीर की स्वाभाविक उपचार प्रवृत्ति को बेहद धीमे-धीमे प्रोत्साहित करती है l होम्योपैथी के ज़रिए कोई व्यक्ति धीरे-धीरे और स्थायी रूप से दीर्घकालिक या जीवन भर चलने वाली शारीरिक, मनोवैज्ञानिक परेशानियों के साथ-साथ उन बाधाओं को भी दूर कर सकता है जो किसी अन्य उपचारात्मक पद्धति से दूर नहीं हो पाई हैं l इस तरह, होम्योपैथी चिकित्सीय प्रयास में सिर्फ एक सहायक या स्थानापन्न से कहीं ज्यादा है l
होम्योपैथी शिविर में विभिन्न बीमारियों जैसे कि, सीने में दर्द होना, भूख न लगना, सांस फूलना, ह्रदय व गुर्दे की बीमारी, मधुमेह (Diabetes / Sugar), रक्तचाप (Blood Pressure), उलझन या घबराहट होना, पेट में दर्द होना, गले में दर्द होना, थकावट होना, पीलिया (Jaundice), थाइरोइड (Thyroid), बालों का झड़ना (Hair Fall) आदि से पीड़ित 109 रोगियों का वजन, रक्तचाप (Blood Pressure) तथा मधुमेह (Sugar-Random) की जांच की गयी l डॉ० संजय कुमार राणा ने परामर्श प्रदान किया l सभी को डॉ० संजय कुमार राणा ने निःशुल्क होम्योपैथी दवा प्रदान की l महिलाएं, पुरुष, बुजुर्गों तथा बच्चों सभी उम्र के लोगों ने होम्योपैथी परामर्श लिया l
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के स्वयंसेवकों तथा डॉ० संजय कुमार राणा की टीम के सदस्य राहुल राणा तथा दिनकर दुबे की उपस्थिति रही l
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oraal01 · 21 days ago
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कैंसर कितने समय में फैलता है? शुरुआती लक्षणों से पहचान कैसे करें
कैंसर एक गंभीर बीमारी है जो शरीर में असामान्य कोशिकाओं के अनियंत्रित रूप से बढ़ने के कारण होती है। यह कोशिकाएँ आसपास के टिश्यूज़ (ऊतकों) और अंगों में फैल सकती हैं और शरीर के विभिन्न हिस्सों में मेटास्टेसिस के माध्यम से संक्रमण कर सकती हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैंसर कितने दिन में फैलता है और शुरुआती लक्षणों से इसे कैसे पहचाना जा सकता है, ताकि इसका समय पर उपचार हो सके।
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कैंसर की वृद्धि और फैलाव की गति को प्रभावित करने वाले कारक
कैंसर के फैलने की गति को कई कारक प्रभावित करते हैं। ये कारक कैंसर के प्रकार, व्यक्ति की उम्र, जीवनशैली, आनुवंशिकता, और इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा तंत्र) की ताकत पर निर्भर करते हैं।
कैंसर का प्रकार: सभी कैंसर एक ही गति से नहीं फैलते। कुछ प्रकार के कैंसर, जैसे लंग कैंसर (फेफड़ों का कैंसर) और पैंक्रियाटिक कैंसर (अग्नाशय का कैंसर), तेजी से फैलते हैं। दूसरी ओर, कुछ कैंसर जैसे प्रोस्टेट कैंसर अपेक्षाकृत धीमी गति से बढ़ते हैं।
जीवनशैली और पर्यावरणीय कारक: धूम्रपान, शराब का सेवन, अनियमित खानपान, और प्रदूषित वातावरण भी कैंसर की वृद्धि को तेज़ी से बढ़ा सकते हैं।
आनुवंशिकता: अगर परिवार में किसी को कैंसर हुआ हो, तो अन्य सदस्यों में इसके फैलने की संभावना बढ़ सकती है। आनुवंशिकता भी कैंसर की प्रवृत्ति और गति को प्रभावित कर सकती है।
प्रतिरक्षा तंत्र: इम्यून सिस्टम जितना मजबूत होगा, कैंसर कोशिकाओं के फैलने की संभावना उतनी ही कम होगी। कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र के कारण कैंसर का विकास तेजी से हो सकता है।
कैंसर कितने समय में फैलता है?
कैंसर के फैलने का समय और उसकी गति कैंसर के प्रकार और व्यक्ति की शारीरिक स्थिति पर निर्भर करती है। आमतौर पर, कैंसर को फैलने और मेटास्टेसिस करने में महीनों से लेकर सालों तक का समय लग सकता है। कुछ मामलों में, मुंह का कैंसर कितने दिन में फैलता है और शुरुआती अवस्था में इसका पता चलने पर इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है।
शुरुआती लक्षणों से कैंसर की पहचान कैसे करें?
कैंसर के लक्षण विभिन्न प्रकारों और शरीर के प्रभावित हिस्सों के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं। हालांकि, कुछ सामान्य लक्षण होते हैं जिन्हें पहचानकर कैंसर का प्रारंभिक चरण में निदान किया जा सकता है।
1. असामान्य गांठ का उभरना
शरीर के किसी हिस्से में गांठ का महसूस होना कैंसर का एक महत्वपूर्ण लक्षण हो सकता है। यह गांठ अक्सर बिना दर्द के होती है और समय के साथ बढ़ सकती है। अगर आप��ो किसी गांठ का पता चलता है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
2. अचानक वजन में कमी
बिना किसी कारण के तेजी से वजन घटने को नजरअंदाज न करें। वजन में अचानक गिरावट कई तरह के कैंसर का संकेत हो सकती है, जैसे पेट, लिवर या पैंक्रियास का कैंसर।
3. लगातार खांसी या सांस लेने में कठिनाई
अगर किसी व्यक्ति को लंबे समय तक खांसी या सांस लेने में कठिनाई होती है और इलाज के बाद भी यह ठीक नहीं हो रही है, तो यह फेफड़ों के कैंसर का लक्षण हो सकता है। इस स्थिति में समय पर चिकित्सा सलाह लेना बहुत जरूरी है।
4. त्वचा में असामान्य परिवर्तन
त्वचा पर अचानक किसी तिल या मस्से का बढ़ना, रंग बदलना, या असामान्य रूप से खून बहना भी कैंसर का प्रारंभिक संकेत हो सकता है। त्वचा कैंसर के मामलों में इस तरह के लक्षण आम होते हैं।
5. अत्यधिक थकान
अगर किसी को बिना शारीरिक गतिविधि के ही लगातार थकान महसूस होती है, तो यह कैंसर का संकेत हो सकता है। अत्यधिक थकान खून की कमी (एनीमिया) के कारण भी हो सकती है, जो कुछ कैंसर के प्रकारों से जुड़ी होती है।
6. पेट की समस्याएँ
कैंसर के शुरुआती लक्षणों में पेट में दर्द, एसिडिटी, कब्ज, या दस्त जैसे लक्षण भी शामिल हो सकते हैं। अगर ये लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं, तो यह पेट या आंतों के कैंसर का संकेत हो सकते हैं।
7. लगातार बुखार या संक्रमण
यदि किसी व्यक्ति को लंबे समय तक हल्का बुखार या बार-बार संक्रमण हो रहा है, तो इसका मतलब हो सकता है कि उसके शरीर में कैंसर कोशिकाएँ इम्यून सिस्टम को कमजोर कर रही हैं।
8. मूत्र में बदलाव
मूत्र में खून का आना, मूत्र प्रवाह में बदलाव या दर्द भी कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। यह प्रोस्टेट या मूत्राशय के कैंसर का संकेत हो सकता है।
समय पर जांच और उपचार का महत्व
कैंसर का समय पर पता चलना और इसका इलाज शुरू करना इसे फैलने से रोक सकता है। नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच, विशेषकर अगर आपको कैंसर के खतरे का अनुमान है, तो बहुत जरूरी है। कुछ सामान्य टेस्ट जैसे कि ब्लड टेस्ट, एमआरआई, सीटी स्कैन, और बायोप्सी के माध्यम से कैंसर का निदान किया जा सकता है।
निष्कर्ष
कैंसर कितनी जल्दी फैलता है यह कई कारकों पर निर्भर करता है, परंतु इसके शुरुआती लक्षणों की पहचान करके इसे रोका जा सकता है। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें, नियमित जांच कराएं, और स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। शुरुआती स्तर पर कैंसर की पहचान इसे नियंत्रित करने में सहायक हो सकती है और सही समय पर उपचार की दिशा में एक बड़ा कदम है।
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vedikroots-1211 · 22 days ago
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गोखरू पाउडर के राज़: सच्चाई जानें तुरंत!
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गोखरू खाने के फायदे
गोखरू एक आयुर्वेदिक औषधि है, जो शरीर की कई समस्याओं के इलाज के लिए इस्तेमाल होती है। यह खासतौर पर पाचन तंत्र, मूत्र तंत्र, और किडनी से जुड़ी समस्याओं को ठीक करने के लिए फायदेमंद है। इस ब्लॉग में हम गोखरू खाने के फायदे और गोखरू काढ़ा के फायदे के बारे में आसान शब्दों में जानेंगे, ताकि आप इसे अपने दैनिक जीवन में शामिल कर सकें।
गोखरू खाने के फायदे
किडनी और मूत्र तंत्र के लिए फायदेमंद: गोखरू मूत्रवर्धक है, यानी यह मूत्र उत्पादन को बढ़ाता है और किडनी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। यह किडनी की पथरी को टुकड़ों में तोड़ने और मूत्राशय से विषाक्त पदार्थ बाहर निकालने में मदद करता है।
पाचन में सुधार: गोखरू का सेवन पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है। यह गैस, सूजन, और अपच की समस्या को कम करता है। पेट की सफाई करने में मदद करता है और कब्ज को दूर करता है।
उर्जा और सहनशक्ति बढ़ाता है: गोखरू शारीरिक ऊर्जा को बढ़ाता है और थकान कम करता है। यह शारीरिक सहनशक्ति को भी बढ़ाता है, जिससे आप अधिक सक्रिय और ऊर्जावान महसूस करते हैं।
हार्मोनल बैलेंस को बनाए रखता है: गोखरू शरीर में हार्मोनल संतुलन को सुधारता है, खासकर पुरुषों में। यह टेस्टोस्टेरोन (पुरुष हार्मोन) के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है, जिससे यौन स्वास्थ्य और ताकत में सुधार होता है।
प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है: गोखरू में एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं, जो शरीर को बीमारियों से बचाने और इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में मदद करते हैं। यह शरीर को प्राकृतिक तरीके से स्वस्थ रखने का काम करता है।
गोखरू काढ़ा के फायदे
गोखरू काढ़ा एक आयुर्वेदिक उपाय है जो गोखरू के तत्वों को पूरी तरह से अवशोषित करता है। इसके सेवन से निम्नलिखित फायदे होते हैं:
किडनी की सफाई: गोखरू काढ़ा किडनी की पथरी को बाहर निकालने में मदद करता है। यह मूत्राशय से विषाक्त पदार्थों को निकालता है और किडनी की सफाई करता है।
शारीरिक थकान में कमी: गोखरू काढ़ा शरीर की थकान को कम करता है और आपको ताजगी का अहसास कराता है। यह शरीर को आराम देता है और मानसिक स्थिति को बेहतर बनाता है।
हृद��� स्वास्थ्य में सुधार: गोखरू काढ़ा रक्त परिसंचरण को बेहतर बनाता है, जिससे दिल के स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।
गोखरू पाउडर के फायदे
गोखरू पाउडर भी एक बहुत प्रभावी आयुर्वेदिक उपचार है, जो निम्नलिखित फायदों के लिए जाना जाता है:
ऊर्जा और सहनशक्ति बढ़ाता है: गोखरू पाउडर शरीर में ऊर्जा और ताकत बढ़ाने के लिए बहुत उपयोगी है। यह शारीरिक थकान और कमजोरी को दूर करता है।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए: गोखरू पाउडर मानसिक तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है। यह मानसिक स्थिति को बेहतर बनाता है और चिंता को शांत करता है।
त्वचा की समस्याओं में मदद करता है: गोखरू पाउडर का सेवन त्वचा के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। यह मुंहासे और अन्य त्वचा समस्याओं से राहत दिलाता है।
FAQ: पथरी तोड़ने की दवा आयुर्वेदिक
पथरी तोड़ने के लिए आयुर्वेदिक उपाय में गोखरू एक असरदार इलाज है। गोखरू किडनी की पथरी को छोटे टुकड़ों में तोड़ने में मदद करता है और उसे शरीर से बाहर निकालता है। गोखरू काढ़ा और गोखरू पाउडर दोनों ही पथरी को नष्ट करने के लिए प्रभावी उपाय हैं। इसके अलावा, कई आयुर्वेदिक दवाएं हैं जो पथरी के इलाज में सहायक हो सकती हैं। हालांकि, किसी भी आयुर्वेदिक दवा का सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।
निष्कर्ष
गोखरू एक प्राकृतिक और असरदार आयुर्वेदिक औषधि है, जो कई स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज करती है। इसका सेवन गोखरू काढ़ा और गोखरू पाउडर के रूप में किया जा सकता है, और यह किडनी, पाचन, ऊर्जा, और हार्मोनल बैलेंस को बेहतर बनाने में मदद करता है। यदि आप पथरी या मूत्र तंत्र संबंधित समस्याओं से परेशान हैं, तो गोखरू एक बेहतरीन उपाय हो सकता है। हालांकि, किसी भी आयुर्वेदिक दवा का उपयोग करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना हमेशा बेहतर होता है।
गोखरू के फायदों को समझकर और इसे सही तरीके से सेवन करके आप अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं।
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drsunildubeyclinic · 2 months ago
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Best Sexologist in Patna, Bihar for SDT due to Kidney Disease | Dr. Sunil Dubey
गुर्दे की बीमारी यौन स्वास्थ्य को प्रभावित करती है:
मानव शरीर में किडनी का महत्व:
किडनी पीठ के निचले हिस्से में स्थित और पसलियों और पीठ की मांसपेशियों द्वारा सुरक्षित मानव अंग है। मानव शरीर में, किडनी समग्र स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। किडनी के कई कार्य हैं जैसे प्राथमिक, द्वितीयक और दैनिक जो हमारे अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं और इसके प्रबंधन करते है।
 किडनी के प्राथमिक कार्य अपशिष्ट निष्कासन, इलेक्ट्रोलाइट संतुलन, द्रव संतुलन, एसिड-बेस संतुलन, हार्मोन विनियमन और रक्तचाप नियंत्रण हैं। द्वितीयक कार्य के तहत, यह हमारे शरीर को ग्लूकोज विनियमन, विटामिन डी विनियमन, कैल्शियम विनियमन, विषहरण और प्रतिरक्षा प्रणाली सहायता प्रदान करता है। अगर हम दैनिक किडनी फ़ंक्शन के बारे में बात करें, तो यह निम्नलिखित कार्य करता है- 120-130 मिली/मिनट रक्त को फ़िल्टर करना, प्रतिदिन 1-2 लीटर अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ निकालना, प्रतिदिन 1500-2000 मिली रक्त की मात्रा को विनियमित करना, प्रतिदिन 1-2 लीटर मूत्र का उत्पादन करना और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखना। आशा है, आप सभी लोग शरीर में किडनी के महत्व को समझे होंगे।
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किडनी रोग और हमारा यौन स्वास्थ्य:
डॉ. सुनील दुबे जो कि विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य हैं व आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञ हैं, उनका कहना है कि किडनी रोग से सम्बंधित कई तरह की बीमारियाँ हैं जैसे कि - क्रोनिक किडनी रोग, एक्यूट किडनी रोग, जेनेटिक किडनी रोग और अन्य किडनी रोग जो यौन स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। वास्तव में, यह मायने नहीं रखता कि बीमारी क्यों है, मायने यह रखता है कि हम इसका इलाज कैसे करते हैं।
सामान्य रूप से देखा जाय तो ब्लड प्रेशर, संक्रमण, सूजन, दर्द, वायरल और कीमोथेरेपी के उपचार के दौरान कुछ ऐसी दवाएँ होती हैं जिनका किडनी पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इसलिए, रोगी के लिए सही डॉक्टर व दवा का चयन करना बहुत ज़रूरी है, ताकि शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों से बचा जा सके। डॉ. सुनील दुबे जो पटना के सबसे अच्छे सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर भी हैं, का कहना है कि किडनी की बीमारी यौन स्वास्थ्य को लगभग प्रभावित करती है। इस समस्या के कारण व्यक्ति को अपने इरेक्शन, कामेच्छा, संतुष्टि और प्रजनन क्षमता में परेशानी होती है। आइए जानते हैं किडनी की बीमारी का यौन स्वास्थ्य पर क्या-क्या प्रभाव पड़ता है।
इरेक्टाइल डिसफंक्शन (ईडी): रक्त प्रवाह में कमी और हार्मोन असंतुलन का होना।
कामेच्छा में कमी: हार्मोनल परिवर्तन, थकान और चिंता का होना।
यौन संतुष्टि में कमी: दर्द, बेचैनी और असंतुलित यौन संतुष्टि का होना।
बांझपन: हार्मोन असंतुलन और प्रजनन अंग क्षति होना।
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गुर्दे (किडनी) की बीमारी के तंत्र को समझना:
हार्मोन असंतुलन: टेस्टोस्टेरोन, एस्ट्रोजन और प्रोलैक्टिन के स्तर में व्यवधान पड़ना।
द्रव का अधिक होना: कंजेस्टिव हार्ट फेलियर और एडिमा का होना।
इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन: असामान्य पोटेशियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम का स्तर होना।
एनीमिया: जननांग ऊतक में ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी होना।
तंत्रिका क्षति: परिधीय न्यूरोपैथी, स्वायत्त शिथिलता होना।
डायलिसिस और यौन स्वास्थ्य:
हेमोडायलिसिस: द्रव में बदलाव, इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन।
पेरिटोनियल डायलिसिस: पेट में दबाव, बेचैनी।
गुर्दे की बीमारी के साथ यौन स्वास्थ्य का प्रबंधन:
स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श करना।
गुर्दे के कार्य की निगरानी और प्रबंधन करना।
हार्मोनल असंतुलन को दूर करना।
एनीमिया और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन को नियंत्रित करना।
नियमित व्यायाम करना।
आयुर्वेदिक उपचार और हर्बल उपचार का उपयोग करना।
डॉ. सुनील दुबे, जो बिहार के सर्वश्रेष्ठ क्लिनिकल सेक्सोलॉजिस्ट भी हैं, कहते हैं कि किडनी (गुर्दे) की बीमारी से पीड़ित 50-70% पुरुषों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (स्तंभन दोष) होता है, जबकि किडनी की बीमारी से पीड़ित 40-60% महिलाओं में यौन जीवन में कामेच्छा में कमी देखी जाती है। किडनी की बीमारी से पीड़ित 20-30% व्यक्तियों में प्रजनन क्षमता में कमी देखी जाती है, जो वास्तव में उनके भावी जीवन ��े लिए चिंता का विषय है।
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भारत का विश्वसनीय आयुर्वेद व सेक्सोलॉजी मेडिकल साइंस क्लिनिक- दुबे क्लिनिक सभी गुप्त व यौन उपचार के लिए ऑन कॉल व इन क्लिनिक पटना के लंगर टोली, चौराहा, में स्थित है। अगर आप किडनी की बीमारी के कारण अपने यौन स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं, तो दुबे क्लिनिक से परामर्श लें। यह एक प्रमाणित और गुणवत्ता-सिद्ध आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी क्लिनिक है जो भारत के समस्त लोगो को सेवा प्रदान करता है। पूरे भारत से गुप्त व यौन रोगी आयुर्वेद और हर्बल उपचार के तहत अपने यौन उपचार और दवा प्राप्त करने के लिए फोन पर इस क्लिनिक से संपर्क करते हैं। डॉ. सुनील दुबे गोल्ड मेडलिस्ट और शीर्ष रैंक के सीनियर क्लिनिकल गुप्त व यौन स्वास्थ्य चिकित्सक हैं जो सभी प्रकार के गुप्त व यौन रोगियों को उनकी समस्याओं का वास्तविक कारण जानने में मदद करते हैं।
उसके बाद, वह सभी गुप्त व यौन रोगियों को उनकी समस्याओं के अनुसार अपना व्यापक आयुर्वेदिक चिकित्सा व उपचार प्रदान करते हैं। उन्होंने स्तंभन दोष, कामेच्छा में कमी, यौन विकार, शीघ्रपतन, बांझपन, संक्रामक मुद्दे और अन्य यौन विकारों के लिए आयुर्वेदिक उपचार और दवाओं की सफलतापूर्वक खोज की है। आज, चालीस से अधिक गुप्त व यौन रोगी हर दिन अपनी गुप्त व यौन समस्याओं को सुधारने के लिए दुबे क्लिनिक में आते हैं। भारत के विभिन्न शहरों से अब तक 7.6 लाख से अधिक यौन रोगी दुबे क्लिनिक से लाभान्वित हो चुके हैं।
यदि आप किसी क्लिनिकल सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर से मिलने की योजना बना रहे हैं तो प्रतीक्षा न करें और अपना समय बर्बाद न करें। बस फोन पर दुबे क्लिनिक के साथ अपॉइंटमेंट बुक करें और समय पर क्लिनिक जाएँ। सही निर्णय लेने से हमेशा आपका सुरक्षित उपचार, स्वस्थ जीवन और खुशहाल यौन स्वास्थ्य सुनिश्च���त होता है।
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दुबे क्लिनिक
भारत का प्रमाणित आयुर्वेदा व सेक्सोलोजी क्लिनिक
डॉ. सुनील दुबे, सीनियर सेक्सोलॉजिस्ट
हेल्पलाइन नंबर: +91 98350-92586
स्थान: दुबे मार्केट, लंगर टोली, चौराहा, पटना-04
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fytikahealthcareproduct · 3 months ago
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पाचन समस्याओं से छुटकारा पाएं, इन आहारों को शामिल करें रोजाना डाइट में
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पाचन समस्याएं आजकल बहुत सामान्य हो गई हैं, जो आपके खाने के नियंत्रण में बदलाव लाती हैं और आपको पेट की खराबी से गुजरना पड़ता है। इसलिए, अच्छी पाचन शक्ति रखना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। अगर हम बहुत अधिक तैलीय, मसालेदार या जंक फूड खाते हैं, तो हमारा पाचन कम होने लगेगा। इससे सीने में जलन, अपच, भूख न लगना और अपच जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
पाचन में सुधार करने का एक तरीका अधिक आसानी से पचने योग्य खाद्य पदार्थ खाना है। यह आमतौर पर उन लोगों के लिए मुश्किल होता है जो बहुत अधिक तैलीय, मसालेदार या जंक फूड खाते हैं। हालाँकि, कुछ सरल घरेलू उपचार हैं जो मदद कर सकते हैं। लेकिन कुछ खाद्य पदार्थ इस प्रकार होते हैं जो आपकी पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। आज हम आपको ऐसे  खाद्य पदार्थों के बारे में बताएंगे जो आपको अच्छी पाचन शक्ति देने में मदद कर सकते हैं।
दही दही खाने से आपको पेट संबंधी समस्याओं से निजात मिलती है। दही में प्रोबायोटिक बैक्टीरिया होते हैं, जो आपकी पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करते हैं। पेट में जलन होने पर दही का सेवन लस्सी या सादी दही के रूप में कर सकते हैं। आप दही के साथ कुछ नमक और काली मिर्च मिलाकर खा सकते हैं। यह पाचन क्रिया को सुचारू कर पेट से जुड़ी कई समस्याओं को दूर करता है।
अदरक अदरक एक स्वस्थवर्धक  जड़ी बूटी है जिसका उपयोग वजन कम करने, अल्जाइमर रोग को रोकने और आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार करने में मदद के लिए किया जा सकता है। यह छोटी और बड़ी आंतों को मजबूत करके आपके पाचन में मदद करता है, जिससे पेट की समस्याओं से बचने में मदद मिलती है और आपका स्वास्थ्य ठीक रहता है। अदरक उन नुकसानदायक बैक्टीरिया को भी नहीं बनने देता, जो एसिड के बनने की वज�� होते हैं।
हींग हींग एक ऐसा मसाला है जो पेट की कई समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो अपच और पेट खराब होने जैसी समस्याओं का इलाज कर सकते हैं। दाल का स्वाद अच्छा करने के लिए और पाचन भी बेहतर करने के लिए आप इसमें हींग मिला सकते हैं।
पपीता पपीता आपके पाचन के लिए अच्छा है क्योंकि यह विटामिन ए, बी और सी से भरपूर होता है, इसमें ढेर सारा फाइबर और प्रोटीन होता है, और यह आपके शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। नियमित रूप से पपीता खाने से अपच और कब्ज जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है।
सौंफ  जब आपका पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं कर रहा होता है, तो यह आपके पेट में कब्ज, बेचैनी और भारीपन की भावना जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है। सौंफ चबाने से आपके पाचन तंत्र को बेहतर बनाने और इन समस्याओं से बचने में मदद मिल सकती है।
जीरा जीरे में एंटीमाइक्रोबियल, एंटी-डायबिटिक और एंटीकार्सिनोजेनिक गुण होते हैं, जो आपकी सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं और  जो आपकी पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करते हैं। आप इसे अपनी सब्जी में मिला सकते हैं या फिर उसे पाउडर के रूप में भी खा सकते हैं।
सेब  सेब एक ऐसा फल है जो आपके पाचन के लिए अच्छा होता है। यह फाइबर, विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है, जो प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद करता है। सेब खाने से अच्छे बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा मिलता है, जिससे पाचन क्रिया सुचारू हो जाती है। आप सेब के रस को अपने आहार के हिस्से के रूप में, या नाश्ते के रूप में ले सकते हैं।
चिया सीड चिया बीज प्रोटीन और फाइबर का अच्छा स्रोत हैं। इन्हें अपने आहार में शामिल करने से आपके पाचन तंत्र को मजबूत रखने में मदद मिल सकती है। ये वजन कम करने में भी मददगार होते हैं, इसलिए इन्हें अपनी पसंदीदा रेसिपी में ट्राई करें।
इन खाद्य पदार्थों को रोजाना अपनी डाइट में शामिल करने से आपकी पाचन शक्ति बढ़ेगी और आपको पेट संबंधी समस्याओं से निजात मिलेगी। इसके अलावा, आपको अपने शरीर के लिए अन्य प्रकार के भोजन भी शामिल करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए, आप फल, सब्जियां, दाल, अंकुरित अनाज जैसे प्राकृतिक आहार को शामिल कर सकते हैं।फल और सब्जियां आपको विटामिन, मिनरल, फाइबर और अन्य न्यूट्रिएंट्स प्रदान करते हैं। ये आपके शरीर को संतुलित रखने में मदद करते हैं और आपको अधिक ऊर्जा प्रदान करते हैं। अपने शरीर को हाइड्रेटेड रखने और भोजन को पचाने में मदद करने के लिए हर दिन ढेर सारा पानी पिएं।
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vedikrootsblog · 4 months ago
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अश्वगंधा और शिलाजीत के फायदे
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अश्वगंधा और शिलाजीत, दोनों ही आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ हैं जिनके कई स्वास्थ्य लाभ हैं। ये दोनों प्राकृतिक तत्व मिलकर शरीर और मन को मजबूत बनाते हैं। इस ब्लॉग में, हम अश्वगंधा और शिलाजीत के फायदे के बारे में चर्चा करेंगे और अश्वगंधा शिलाजीत कैप्सूल के फायदे भी बताएंगे।
अश्वगंधा के फायदे
तनाव और चिंता को कम करता है: अश्वगंधा एक शक्तिशाली उपाय है जो तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है। यह दिमाग को शांत करता है और मानसिक स्थिति को बेहतर बनाता है।
शारीरिक ताकत बढ़ाता है: यह मांसपेशियों और हड्डियों को मजबूत करता है, जिससे शारीरिक ताकत और सहनशक्ति में सुधार होता है।
प्रतिरक्षा प्रणाली को सशक्त बनाता है: अश्वगंधा आपके इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है, जिससे आप बीमारियों से बच सकते हैं।
ऊर्जा स्तर बढ़ाता है: यह थकावट को कम करता है और आपकी ऊर्जा को बढ़ाता है, जिससे आप पूरे दिन सक्रिय और ऊर्जावान रहते हैं।
हार्मोन संतुलित करता है: अश्वगंधा हार्मोनल असंतुलन को ठीक करता है और आपके शरीर की सामान्य कार्यप्रणाली को सुधारता है।
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शिलाजीत के फायदे
ऊर्जा और ताकत में वृद्धि: शिलाजीत शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा और ताकत प्रदान करता है, जिससे थकावट और कमजोरी दूर होती है।
मानसिक स्वास्थ्य को सुधारता है: यह दिमाग की स्पष्टता और ध्यान को बढ़ाता है, और मानसिक थकावट और तनाव को कम करता है।
उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है: शिलाजीत उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है और दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
पाचन में सुधार: शिलाजीत पाचन तंत्र को ठीक करता है और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है।
प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है: यह आपके इम्यून सिस्टम को सशक्त करता है, जिससे बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
अश्वगंधा और शिलाजीत कैप्सूल के फायदे
अश्वगंधा शिलाजीत कैप्सूल के फायदे भी महत्वपूर्ण हैं। इन कैप्सूल्स में अश्वगंधा और शिलाजीत दोनों के गुण होते हैं, जो मिलकर आपको कई लाभ पहुंचाते हैं:
संपूर्ण स्वास्थ्य में सुधार: ये कैप्सूल्स आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारते हैं, जिससे आप बेहतर महसूस करते हैं।
तनाव और ऊर्जा में संतुलन: ये कैप्सूल्स तनाव को कम करते हैं और ऊर्जा के स्तर को बढ़ाते हैं, जिससे आप दिनभर ताजगी और सक्रियता महसूस करते हैं।
हार्मोनल बैलेंस: अश्वगंधा और शिलाजीत मिलकर हार्मोनल असंतुलन को सुधारते हैं और आपकी सेहत को बेहतर बनाते हैं।
प्रतिरक्षा और पाचन स्वास्थ्य: ये कैप्सूल्स आपके इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं और पाचन तंत्र को सुधारते हैं, जिससे आप स्वस्थ और संतुलित महसूस करते हैं।
निष्कर्ष
अश्वगंधा और शिलाजीत के फायदे आपके शरीर और मन के लिए बहुत अच्छे हैं। जब आप अश्वगंधा शिलाजीत कैप्सूल के फायदे का उपयोग करते हैं, तो आपको कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। इन कैप्सूल्स को अपने दिनचर्या में शामिल करने से आप तनाव कम कर सकते हैं, ऊर्जा बढ़ा सकते हैं, और अपने हार्मोनल संतुलन को सुधार सकते हैं। इन्हें सही तरीके से उपयोग करके आप अपने स्वास्थ्य में बड़ा सुधार देख सकते हैं।
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holydivinehealthcare1 · 4 months ago
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आयुर्वेदिक और एलोपैथिक में अंतर और कौन  अधिक प्रभावशाली उत्पाद है?
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एलोपैथिक और आयुर्वेदिक दोनों ही प्राचीन चिकित्सा पद्धतियाँ हैं, लेकिन इनमें कई विभिन्नताएँ हैं। एलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान कोई नई चिकित्सा पद्धति नहीं है, जबकि आयुर्वेद अत्यंत प्राचीन है और भारतीय साहित्य में विस्तृत विवरण मिलता है।
यद्यपि एलोपैथिक चिकित्सा को विज्ञान का नवीनतम और अधिक प्रभावी रूप माना जाता है, लेकिन आयुर्वेदिक चिकित्सा भी अपनी अहमियत बनाए हुए है। दोनों पद्धतियों की अपनी विशेषता है, और यह व्यक्ति की स्थिति, बीमारी का प्रकार और उसकी शारीरिक-मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है।
एलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान आधुनिकतम पद्धति का उपयोग करती है, जिसमें वैज्ञानिक शोध, प्रयोग और विकास के आधार पर नई दवाएं तैयार की जाती हैं। यह आमतौर पर बीमारी के लक्षणों को निर्धारित करके उसका सीधा उपचार करती है। विपरीत आयुर्वेदिक चिकित्सा प्राचीनतम है और प्राकृतिक उपचार पद्धति पर आधारित है। यह शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को बनाए रखने के लिए विभिन्न प्राकृतिक उपायों का उपयोग करती है। यह विभिन्न औषधियों, आहार और व्यायाम के माध्यम से संतुलित जीवनशैली को प्रोत्साहित करती है।
एलोपैथिक चिकित्सा भी कई रोगों के उपचार में प्रभावी है, लेकिन वह केवल रोग के लक्षणों को हटाने पर ही केंद्रित है, जबकि आयुर्वेद स्वास्थ्य के प्रत्येक पहलु को संतुलित करने पर ध्यान केंद्रित करता है। इसलिए, किसी भी चिकित्सा पद्धति को सबसे अधिक प्रभावी मानना यह निर्भर करता है कि व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति, उसकी प्राकृतिक प्रवृत्ति, और उसके रोग की प्रकृति क्या है।
एलोपैथिक चिकित्सा तत्कालीन परिणाम दिखा सकती है, लेकिन इसमें कई बार दुष्प्रभाव भी होते हैं। यह अक्सर दवाओं के निरंतर उपयोग से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकता है और दुष्प्रभाव पैदा कर सकता है। 
आयुर्वेदिक चिकित्सा धीरे-धीरे परिणाम दिखाती है, लेकिन इसके कोई दुष्प्रभाव नहीं होते। यह शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य को संतुलित बनाए रखने के लिए प्राकृतिक उपायों का प्रयोग करती है।आयुर्वेद के अनुसार, हर व्यक्ति का शरीर अलग होता है और उसकी आवश्यकताएँ भी अलग होती है। इसलिए, इस चिकित्सा पद्धति में ‘प्रकृति’ का विशेष महत्व होता है। यह शरीर की प्रकृति के अनुसार उपचार करती है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करती है।आयुर्वेद के अनुसार, हर व्यक्ति की प्रकृति और उसकी स्वास्थ्य स्थिति अद्वितीय ��ोती है, इसलिए उसका उपचार भी अलग-अलग होता है। यहां कुछ मुख्य आयुर्वेदिक उपचार तंत्र हैं:
आहार और पोषण: आयुर्वेद में आहार का बहुत महत्व है। व्यक्ति की प्रकृति और रोग के अनुसार विभिन्न प्रकार के आहार का सेवन किया जाता है।
औषधि चिकित्सा: आयुर्वेद में बहुत से प्राकृतिक औषधियों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि जड़ी-बूटियाँ, रस, चूर्ण आदि।
योग और प्राणायाम: योग और प्राणायाम की अभ्यास करने से शारीरिक और मानसिक संतुलन बना रहता है और विभिन्न रोगों का उपचार होता है।
पंचकर्म चिकित्सा: यह आयुर्वेद का एक प्रमुख उपचार तंत्र है जिसमें शोधन, स्नेहन, स्वेदन, वमन और बस्ति की विभिन्न प्रक्रियाएं शामिल हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सा के लाभों में शामिल हैं:
प्राकृतिक और सुरक्षित: आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियाँ और औषधियाँ प्राकृतिक होती हैं और इसलिए सुरक्षित होती हैं।
सम्पूर्ण उपचार: आयुर्वेद में रोग के लक्षणों को देखने के साथ-साथ उसके कारणों का भी संदर्भ देखा जाता है, जिससे कि रोग का पूरी तरह से उपचार हो सके।
व्यक्तिगत उपचार: आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्रत्येक व्यक्ति का उपचार उसकी प्रकृति के आधार पर किया जाता है, जिससे कि उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में सहायता मिलती है।
दीर्घकालिक प्रभाव: आयुर्वेदिक चिकित्सा रोग को मूल से हटाने के साथ-साथ उसके पुनर्जन्म को भी रोकती है, जिससे कि व्यक्ति को लंबे समय तक स्वस्थ रहने 
में मदद मिलती है।
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निष्कर्ष
दोनों चिकित्सा पद्धतियों में लाभ हैं, लेकिन आयुर्वेद एक संपूर्ण दृष्टिकोण देता है और रोग के लक्षणों के कारणों का निर्धारण करता है। यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य का संरक्षण करता है और व्यक्ति को संतुलित जीवनशैली सिखाता है। इसलिए, आयुर्वेद न केवल रोग का उपचार करता है, बल्कि स्वास्थ्य को पूर्णता की दिशा में ले जाता है।
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dainiksamachar · 6 months ago
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टैटू का शौक है तो पढ़ लीजिए यह रिपोर्ट, 20,000 करोड़ का धंधा हो सकता है चौपट
नई दिल्ली: इसे (Tattoo) बोलिए या गोदना या गुदना। भारत में यह काफी पुराना है। हालांकि इस बारे में कोई अभिलेख तो नहीं है, लेकिन आदिवासियों में गोदना गुदवाने की परंपरा सदियों पुरानी है। इस ���मय यह फिर से लौट आया है। युवाओं में तो टैटू को लेकर खास ही क्रेज है। चाहे क्रिकेट खिलाड़ी हों या फिल्मी सितारे, कोई भी इससे अछूते नहीं है। तभी तो अनुमान लगाया गया है कि भारत में टैटू उद्योग (Tatoo Industry) हर साल 20,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का रेवेन्यू जेनेरेट करता है। लेकिन एक रिपोर्ट ने टैटू इंडस्ट्री के विकास पर ग्रहण लगा दिया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन व्यक्ति के शरीर पर टैटू बना होता है, उनमें कैंसर होने का खतरा 21 फीसदी ज्यादा होता है। हर जगह दिखेगा टैटू बनाने वाले भारत ��ा टैटू उद्योग कितनी तेजी से बढ़ रहा है, इसका अनुमान इसी बात से लगता है कि आपको हर जगह टैटू बनाने वाले मिल जाएंगे। आप चाहे गोवा के समुद्र तट जाएं, उत्तराखंड में हरिद्वार-ऋषिकेश जाएं, दिल्ली का कनॉट प्लेस इलाका हो या गुड़गांव का डीएलएफ मॉल, या नोएडा का डीएलएफ मॉल, सब जगह आपको टैटू आर्टिस्ट या टैटू पार्लर मिल जाएगा। अनुमान है कि इससे हर साल करीब 20,000 करोड़ रुपये का योगदान अर्थव्यवस्था में होता है। टैटू वाले व्यक्तियों को कैंसर का खतरा? स्वीडन में एक विश्व प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी है स्वीडन में लुंड विश्वविद्यालय (Lund University)। इसी यूनिवर्सिटी की एक हालिया अध्ययन में एक आश्चर्यजनक खोज की गई है। इसमें बताया गया है कि टैटू वाले व्यक्तियों में लिंफोमा (Lymphoma) विकसित होने का खतरा 21 फीसदी अधिक होता है। यह बढ़ा हुआ जोखिम टैटू के आकार की परवाह किए बिना लागू होता है। मतलब कि यह नहीं कह सकते हैं कि हमने छोटा टैटू बनवाया है तो कैंसर होगा। फलाने ने बड़ा सा टैटू बनवाया है तो उसे ही कैंसर होगा। यह दर्शाता है कि छोटे टैटू भी इस प्रकार के कैंसर के विकास की संभावना में योगदान कर सकते हैं। क्या है लिम्फोमा फॉक्स की रिपोर्ट के अनुसार, लिम्फोमा कैंसर का एक रूप है जो लसीका प्रणाली (Lymphatic system) को निशाना बनाता है। यह शरीर की प्रतिरक्षा रक्षा तंत्र (Immune defense mechanisms) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फॉक्स ने इस स्टडी के हवाले से बताया है कि टैटू वाले व्यक्तियों में सबसे अधिक प्रचलित कैंसर बड़े बी-सेल गैर-हॉजकिन लिंफोमा (Diffuse large B-cell non-Hodgkin lymphoma) और कूपिक गैर-हॉजकिन लिंफोमा (Follicular non-Hodgkin lymphoma) थे। कैंसर के अलावा अन्य रोग भी हो सकते हैं आपको टैटू बनवाना पसंद है? दिल्ली में हिंदूराव अस्पताल के रिटायर्ड सीएमओ डॉक्टर नागेंद्र कुमार सिन्हा का कहना है कि टैटू बनवाते समय सावधान रहें। किसी दूसरे व्यक्ति के शरीद पर टैटू बनाने के लिए इस्तेमाल की गई स्याही और सुई से आपको हेपेटाइटिस बी, सी, एचआईवी और यहां तक कि लीवर और रक्त के कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। इनमें खतरा अधिक स्वीडन में लुंड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा 11,905 व्यक्तियों पर किए गए हालिया अध्ययन में पाया गया कि टैटू गुदवाने वाले व्यक्तियों में लिंफोमा का खतरा अधिक होता है। लिंफोमा का खतरा उन व्यक्तियों में सबसे अधिक था, जिन्होंने अपना पहला टैटू दो साल से कम समय में बनवाया था। उल्लेखनीय है कि इस समय भारत ही नहीं, दुनिया भर में टैटू शारीरिक ��ला के एक रूप और अपने विचारों या जुनून को व्यक्त करने के साधन के रूप में, विशेष रूप से युवाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए हैं। http://dlvr.it/T7jcnd
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doctorforcervical1 · 6 months ago
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कपिंग थेरेपी के 10 विशेष उपयोगी तरीके
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कपिंग थेरेपी एक प्राचीन चीनी चिकित्सा पद्धति है जिसमें त्वचा पर ग्लास या सिलिकॉन के कप लगाकर रक्त प्रवाह को बढ़ावा दिया जाता है। इस चिकित्सा विधि में ग्लास कप को शरीर की चुनी हुई स्थानों पर लगाकर विशिष्ट तरीके से उसमें हवा को बाहर निकाला जाता है, जिससे त्वचा के नीचे रक्त प्रवाह को बढ़ाया जाता है। इस प्रक्रिया से शरीर की ऊर्जा का संतुलन सुधारता है और शारीरिक दर्द, सूजन, और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं में राहत मिल सकती है।
कपिंग थेरेपी का माना जाता है कि यह रक्त संचार को बढ़ाने से त्वचा के अंदर के विभिन्न अंगों और ऊतकों को पोषण प्राप्त होता है और इससे त्वचा के रोगों जैसे की मामले में लाभ हो सकता है। इसके अलावा, कपिंग थेरेपी से तंत्रिकाओं की संतुलन और शारीरिक ऊर्जा के बारे में भी सुधार हो सकती है। यह चिकित्सा पद्धति विशेष तौर पर अर्थराइटिस, मांसपेशियों के दर्द, मांसपेशियों में तनाव, और मस्तिष्क के संबंधित समस्याओं में सुधार के लिए इस्तेमाल की जाती है।
कपिंग थेरेपी के 10 विशेष उपयोगी तरीके:
दर्द से राहत:कपिंग थेरेपी मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द, सिरदर्द, माइग्रेन, और मासिक धर्म ऐंठन जैसे विभिन्न प्रकार के दर्द से राहत प्रदान करने में प्रभावी हो सकती है। यह थेरेपी रक्त संचार को बढ़ावा देती है, शरीर में ऊर्जा संतुलन को सुधारती है, और दर्द को कम करने में मदद करती है।
सूजन कम करना: कपिंग थेरेपी सूजन को कम करने में मदद कर सकती है, जो दर्द और गतिशीलता में कमी का कारण बन सकती है। यह गठिया, चोटों और संक्रमण जैसी स्थितियों में फ���यदेमंद हो सकता है।
रक्त प्रवाह में सुधार: कपिंग थेरेपी त्वचा में रक्त प्रवाह को बढ़ावा दे सकती है, जिससे ऊतकों को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति में सुधार होता है। यह घाव भरने और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
तनाव और चिंता कम करना: कपिंग थेरेपी तनाव और चिंता को कम करने में मदद कर सकती है। इस चिकित्सा विधि में बने बड़े बर्तनों को शरीर पर रखकर उनमें हवा को बाहर निकालने से अंदरूनी दबाव कम होता है और एंडोर्फिन की रिहाई को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे मूड में सुधार हो सकता है।
त्वचा स्वास्थ्य में सुधार: कपिंग थेरेपी त्वचा के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है। यह मुंहासे, एक्जिमा और सोरायसिस जैसी स्थितियों के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है।
पाचन तंत्र में सुधार: कपिंग थेरेपी पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है। यह कब्ज, अपच, और सूजन जैसी स्थितियों के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती है। इस चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किए गए विशेष बर्तनों को शरीर पर रखकर उनमें हवा को बाहर निकालने से शरीर का अपशिष्ट, विषाक्त रक्त, और दूषित धातुओं से मुक्ति होती है, जिससे पाचन तंत्र की क्रिया सुधारती है।
प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना: कपिंग थेरेपी पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है। यह कब्ज, अपच, और सूजन जैसी स्थितियों के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती है। इस चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किए गए विशेष बर्तनों को शरीर पर रखकर उनमें हवा को बाहर निकालने से शरीर का अपशिष्ट, विषाक्त रक्त, और दूषित धातुओं से मुक्ति होती है, जिससे पाचन तंत्र की क्रिया सुधारती है।
वजन घटाने में सहायता: कपिंग थेरेपी वजन घटाने में सहायक हो सकती है। इस थेरेपी से चयापचय को बढ़ावा मिलता है और शरीर की वसा को जलाने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, कपिंग थेरेपी से शरीर का अच्छा रक्त संचार होता है जो स्वस्थ वजन प्राप्त करने में सहायक होता है।
डिमेंशिया का इलाज: कुछ अध्ययनों से पता चला है कि कपिंग थेरेपी डिमेंशिया के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती है। इस चिकित्सा पद्धति में रक्त संचार को बढ़ावा देने से मस्तिष्क की स्वस्थता में सुधार हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप डिमेंशिया जैसी समस्याओं के लक्षणों में कमी आ सकती है।
कैंसर का इलाज: कुछ अध्ययनों से पता चला है कि कपिंग थेरेपी कैंसर के इलाज में सहायक हो सकती है। यह कैंसर कोशिकाओं को मारने और कैंसर के उपचार के दुष्प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है।
कपिंग थेरेपी के कुछ संभावित दुष्प्रभाव:
त्वचा पर चोट या घाव
चक्कर आना या मतली
थकान
सिरदर्द
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कपिंग थेरेपी हर किसी के लिए उपयुक्त नहीं है। गर्भवती महिलाओं, रक्तस्राव विकारों वाले लोगों, और त्वचा की स्थिति वाले लोगों को कपिंग थेरेपी से बचना चाहिए। यदि आप कपिंग थेरेपी पर विचार कर रहे हैं, तो किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लेना महत्वपूर्ण है।
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bestsexologistinindiasblog · 6 months ago
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HIV Doctor in Delhi
Secondary Diseases in HIV/Aids
एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) संक्रमण की एक प्रगति होती है, जो धीरे-धीरे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है। यदि एचआईवी का इलाज न किया जाए, तो यह एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम) में बदल सकता है। एचआईवी से एड्स में बदलने की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं:
प्रारंभिक संक्रमण (एक्यूट एचआईवी संक्रमण):
एचआईवी के संपर्क में आने के कुछ हफ्तों के भीतर, व्यक्ति को फ्लू जैसे लक्षण हो सकते हैं, जैसे बुखार, सिरदर्द, थकान, और गले में खराश। यह चरण 2-4 सप्ताह तक चल सकता है।
इस चरण में वायरस तेजी से बढ़ता है और रक्त में एचआईवी की मात्रा (वायरल लोड) बहुत अधिक होती है।
अस्पष्ट संक्रमण (क्लिनिकल लेटेंसी):
इस चरण को "क्रॉनिक एचआईवी" भी कहा जाता है। यह चरण कई वर्षों तक (औसतन 10 साल तक) चल सकता है, जिसमें कोई या बहुत कम लक्षण होते हैं।
एचआईवी धीरे-धीरे प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता रहता है। यदि एंटीरेट्रोवायरल थैरेपी (ART) शुरू की जाती है, तो यह चरण लंबे समय तक रह सकता है और व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है।
एड्स (AIDS):
एड्स वह स्थिति है, जब एचआईवी संक्रमण के कारण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इतनी कमजोर हो जाती है कि वह सामान्य संक्रमणों और बीमारियों से लड़ने में सक्षम नहीं रह जाती।
एड्स की पहचान आमतौर पर तब होती है जब व्यक्ति की CD4 T-सेल गिनती 200 कोशिकाएं/मिलीमीटर से कम हो जाती है या उसे एचआईवी से संबंधित विशिष्ट बीमारियां हो जाती हैं, जैसे कि कापोसी सारकोमा, तपेदिक, न्यूमोनिया, आदि।
Secondary Diseases
एचआईवी/एड्स के कारण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है, जिससे व्यक्ति विभिन्न प्रकार की सेकेंडरी (द्वितीयक) बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो जाता है। इनमें से कुछ प्रमुख बीमारियां और संक्रमण निम्नलिखित हैं:
तपेदिक (टीबी): एचआईवी से संक्रमित व्यक्तियों में तपेदिक होने की संभावना अधिक होती है। यह एक गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण है जो फेफड़ों को प्रभावित करता है।
न्यूमोनिया: यह फेफड़ों का एक संक्रमण है, जो एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों में सामान्यतः पाया जाता है।
कैंसर: एचआईवी/एड्स के मरीजों में कुछ प्रकार के कैंसर जैसे कापोसी सारकोमा और नॉन-हॉजकिन्स लिम्फोमा अधिक होते हैं।
क्रिप्टोस्पोरिडियोसिस: यह एक परजीवी संक्रमण है जो आंतों को प्रभावित करता है और डायरिया का कारण बनता है।
टोक्सोप्लाजमोसिस: यह एक परजीवी संक्रमण है जो मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है।
कैंडिडिआसिस: यह यीस्ट संक्रमण है जो मुख, गला, या योनि को प्रभावित करता है।
क्रिप्टोकोकस नियोफॉर्मन्स: यह फंगल संक्रमण है जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित कर सकता है।
साइटोमेगालोवायरस (CMV) संक्रमण: यह वायरस आंखों, फेफड़ों, पाचन तंत्र और अन्य अंगों को प्रभावित कर सकता है।
हर्पीस सिंप्लेक्स वायरस (HSV) संक्रमण: यह त्वचा, मुंह और जननांगों पर छाले और घाव कर सकता है।
मायकोबैक्टीरियम एवियम कॉम्प्लेक्स (MAC) संक्रमण: यह बैक्टीरिया का एक समूह है जो शरीर के विभिन्न हिस्सों में संक्रमण कर सकता है।
एचआईवी से एड्स के संक्रमण की प्रक्रिया को रोकने के उपाय:
एंटीरेट्रोवायरल थैरेपी (ART): यह एचआईवी का प्रमुख उपचार है, जो वायरस को दबाने में मदद करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाए रखता है। नियमित ART लेने से एचआईवी संक्रमण को एड्स में बदलने से रोका जा सकता है।
स्वास्थ्य निगरानी: नियमित चिकित्सा जांच और परीक्षण से एचआईवी की प्रगति को मॉनिटर करना और समय पर हस्तक्षेप करना संभव होता है।
स्वस्थ जीवनशैली: संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, और तनाव प्रबंधन से प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाए रखा जा सकता है।
संक्रमण से बचाव: अन्य संक्रमणों से बचने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए, जैसे कि स्वच्छता का ध्यान रखना और टीकाकरण।
एचआईवी / एड्स संक्रमित या संक्रमण का खतरा महसूस कर रहे है तोह आज ही दिल्ली के सर्वोत्तम एचआईवी स्पेशलिस्ट (HIV Specialist in Delhi) डॉ विनोद रैना से संपर्क करें।
डॉ. विनोद रैना, एचआईवी स्पेशलिस्ट
पता: इ-34 एकता अपार्टमेंट साकेत, नई दिल्ली – 110017
फ़ोन नंबर: 9873322916, 9667987682
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stressmanagement01 · 7 months ago
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एलोपैथिक और आयुर्वेदिक - इसमें अंतर क्या है और कौन है ज्‍यादा असरद
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एलोपैथिक और आयुर्वेदिक दोनों ही प्राचीन चिकित्सा पद्धतियाँ हैं, लेकिन इनमें कई विभिन्नताएँ हैं। एलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान कोई नई चिकित्सा पद्धति नहीं है, जबकि आयुर्वेद अत्यंत प्राचीन है और भारतीय साहित्य में विस्तृत विवरण मिलता है।
यद्यपि एलोपैथिक चिकित्सा को विज्ञान का नवीनतम और अधिक प्रभावी रूप माना जाता है, लेकिन आयुर्वेदिक चिकित्सा भी अपनी अहमियत बनाए हुए है। दोनों पद्धतियों की अपनी विशेषता है, और यह व्यक्ति की स्थिति, बीमारी का प्रकार और उसकी शारीरिक-मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है।
एलोपैथिक और आयुर्वेदिक
प्रकार
एलोपैथिक
आयुर्वेदिक
उपयोग
विज्ञानिक दवाओं और साधारण चिकित्सा
प्राकृतिक औषधियाँ और प्रथमिक चिकित्सा
प्रामाणिकता
विज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित
प्राचीन शास्त्रों और अनुभव पर आधारित
उपचार काल
तत्कालीन उपचार
दीर्घकालिक उपचार
उपचार का लक्ष्य
लक्षित बीमारी का सीधा उपचार
शारीरिक संतुलनऔर मानसिक स्थिति को बनाए रखना
परिणाम
कई बार शीघ्र परिणाम, लेकिन दुष्प्रभाव भी
धीरे-धीरे परिणाम, पर उनके कोई दुष्प्रभाव नहीं
एलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान आधुनिकतम पद्धति का उपयोग करती है, जिसमें विज्ञानिक शोध, प्रयोग और विकास के आधार पर नई दवाएं तैयार की जाती हैं। यह आमतौर पर बीमारी के लक्षणों को निर्धारित करके उसका सीधा उपचार करती है। विपरीत आयुर्वेदिक चिकित्सा प्राचीनतम है और प्राकृतिक उपचार पद्धति पर आधारित है। यह शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को बनाए रखने के लिए विभिन्न प्राकृतिक उपायों का उपयोग करती है। यह विभिन्न औषधियों, आहार और व्यायाम के माध्यम से संतुलित जीवनशैली को प्रोत्साहित करती है।
एलोपैथिक चिकित्सा भी कई रोगों के उपचार में प्रभावी है, लेकिन वह केवल रोग के लक्षणों को हटाने पर ही केंद्रित है, जबकि आयुर्वेद स्वास्थ्य के प्रत्येक पहलु को संतुल���त करने पर ध्यान केंद्रित करता है। इसलिए, किसी भी चिकित्सा पद्धति को सबसे अधिक प्रभावी मानना यह निर्भर करता है कि व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति, उसकी प्राकृतिक प्रवृत्ति, और उसके रोग की प्रकृति क्या है।
एलोपैथिक चिकित्सा तत्कालीन परिणाम दिखा सकती है, लेकिन इसमें कई बार दुष्प्रभाव भी होते हैं। यह अक्सर दवाओं के निरंतर उपयोग से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकता है और दुष्प्रभाव पैदा कर सकता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा धीरे-धीरे परिणाम दिखाती है, लेकिन इसके कोई दुष्प्रभाव नहीं होते। यह शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य को संतुलित बनाए रखने के लिए प्राकृतिक उपायों का प्रयोग करती है। आयुर्वेद के अनुसार, हर व्यक्ति का शरीर अलग होता है और उसकी आवश्यकताएँ भी अलग होती है। इसलिए, इस चिकित्सा पद्धति में 'प्रकृति' का विशेष महत्व होता है। यह शरीर की प्रकृति के अनुसार उपचार करती है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करती है।
आयुर्वेद के अनुसार, हर व्यक्ति की प्रकृति और उसकी स्वास्थ्य स्थिति अद्वितीय होती है, इसलिए उसका उपचार भी अलग-अलग होता है। यहां कुछ मुख्य आयुर्वेदिक उपचार तंत्र हैं:
आहार और पोषण: आयुर्वेद में आहार का बहुत महत्व है। व्यक्ति की प्रकृति और रोग के अनुसार विभिन्न प्रकार के आहार का सेवन किया जाता है।
औषधि चिकित्सा: आयुर्वेद में बहुत से प्राकृतिक औषधियों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि जड़ी-बूटियाँ, रस, चूर्ण आदि।
योग और प्राणायाम: योग और प्राणायाम की अभ्यास करने से शारीरिक और मानसिक संतुलन बना रहता है और विभिन्न रोगों का उपचार होता है।
पंचकर्म चिकित्सा: यह आयुर्वेद का एक प्रमुख उपचार तंत्र है जिसमें शोधन, स्नेहन, स्वेदन, वमन और बस्ति की विभिन्न प्रक्रियाएं शामिल हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सा के लाभों में शामिल हैं:
प्राकृतिक और सुरक्षित: आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियाँ और औषधियाँ प्राकृतिक होती हैं और इसलिए सुरक्षित होती हैं।
सम्पूर्ण उपचार: आयुर्वेद में रोग के लक्षणों को देखने के साथ-साथ उसके कारणों का भी संदर्भ देखा जाता है, जिससे कि रोग का पूरी तरह से उपचार हो सके।
व्यक्तिगत उपचार: आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्रत्येक व्यक्ति का उपचार उसकी प्रकृति के आधार पर किया जाता है, जिससे कि उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में सहायता मिलती है।
दीर्घकालिक प्रभाव: आयुर्वेदिक चिकित्सा रोग को मूल से हटाने के साथ-साथ उसके पुनर्जन्म को भी रोकती है, जिससे कि व्यक्ति को लंबे समय तक स्वस्थ रहने में मदद मिलती है।
निष्कर्ष
दोनों चिकित्सा पद्धतियों में लाभ हैं, लेकिन आयुर्वेद एक संपूर्ण दृष्टिकोण देता है और रोग के लक्षणों के कारणों का निर्धारण करता है। यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य का संरक्षण करता है और व्यक्ति को संतुलित जीवनशैली सिखाता है। इसलिए, आयुर्वेद न केवल रोग का उपचार करता है, बल्कि स्वास्थ्य को पूर्णता की दिशा में ले जाता है।
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gofordigitalindia · 10 months ago
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Exploring the Benefits of Amritarishta Syrup: A Herbal Elixir for Holistic Wellness
In the world of traditional Ayurvedic medicine, Amritarishta syrup has emerged as a revered elixir known for its numerous health benefits. This herbal concoction, derived from a combination of potent herbs and natural ingredients, has been a staple in Ayurvedic practices for centuries. Let's delve into the rich history, ingredients, and the myriad health benefits that Amritarishta syrup brings to those seeking holistic wellness.
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History and Ayurvedic Roots:
Amritarishta, also known as Amrutharishtam, has its roots deeply embedded in Ayurveda, the ancient system of medicine that originated in India. Ayurveda emphasizes a holistic approach to health, focusing on maintaining a balance between the mind, body, and spirit. Amritarishta has been a key component of Ayurvedic healing, trusted for its ability to promote overall well-being.
Ingredients:
The key to Amritarishta's efficacy lies in its carefully curated blend of herbs and natural ingredients. While formulations may vary slightly among different Ayurvedic brands, some common components include:
Guduchi (Tinospora cordifolia): Known for its immune-boosting properties, Guduchi is a vital ingredient in Amritarishta, aiding the body in fighting infections and promoting overall vitality.
Dashmool (a combination of ten herbs): Dashmool, a blend of ten medicinal herbs, contributes to the syrup's anti-inflammatory and analgesic properties. It is particularly beneficial for joint and muscle health.
Giloy (Tinospora sinensis): Similar to Guduchi, Giloy is another powerful herb renowned for its immune-boosting qualities. It aids in detoxification and supports the body's natural defenses.
Haritaki (Terminalia chebula): Known for its digestive benefits, Haritaki helps in maintaining a healthy gastrointestinal system, promoting proper digestion and absorption of nutrients.
Draksha (Vitis vinifera): Also known as grapes, Draksha adds a natural sweetness to the syrup and is a rich source of antioxidants, supporting overall health.
Health Benefits:
Immune System Support: The combination of immune-boosting herbs like Guduchi and Giloy makes Amritarishta an excellent tonic for strengthening the body's defense mechanisms.
Anti-inflammatory Properties: The presence of Dashmool in the syrup imparts anti-inflammatory and analgesic effects, making it beneficial for conditions involving joint and muscle pain.
Digestive Health: Haritaki contributes to improved digestion and helps maintain a healthy gastrointestinal tract, reducing issues like bloating and indigestion.
Detoxification: The herbs in Amritarishta aid in detoxifying the body, supporting the elimination of toxins and promoting overall well-being.
Rejuvenation and Vitality: Regular consumption of Amritarishta is believed to rejuvenate the body and enhance vitality, helping individuals feel more energetic and resilient.
Usage and Dosage:
Amritarishta syrup is typically consumed after meals. The recommended dosage may vary, and it is advisable to consult with an Ayurvedic practitioner or healthcare professional to determine the appropriate amount based on individual health needs.
अमृतारिष्ट सिरप का उपयोग (Amritarishta Syrup Uses in Hindi):
बल सुरक्षा (Immune System Support):
Amritarishta सिरप का एक मुख्य उपयोग है शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूती देना। गुडूची और गिलोय जैसे प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले जड़ी-बूटियों के समृद्धि से, यह सिरप वायरस और संक्रमण से लड़ने में मदद कर सकता है।
प्रदुषणमुक्ति (Detoxification):
अमृतारिष्ट सिरप में मौजूद जड़ी-बूटियां शरीर को शोधित करने में मदद कर सकती हैं, जिससे विषाक्ति की प्रक्रिया को संजीवनी बूटी के रूप में देखा जा सकता है।
शोथ और मांसपेशियों के दर्द की समस्या (Anti-inflammatory Properties):
सिरप में मौजूद दशमूल के सामरिक गुणों के कारण, यह शरीर में शोथ और मांसपेशियों के दर्द की समस्या में मदद कर सकता है।
पाचन स्वास्थ्य (Digestive Health):
हरितकी जैसी जड़ी-बूटियां अच्छे पाचन को समर्थन कर सकती हैं और स्वस्थ पाचन तंत्र की रक्षा करके ब्लोटिंग और अजीर्ण से राहत प्रदान कर सकती हैं।
जीवनशक्ति और पुनर्जीवन (Rejuvenation and Vitality):
अमृतारिष्ट सिरप का नियमित सेवन शरीर को पुनर्जीवन और ऊर्जा में सुधार करने में मदद कर सकता है, जिससे व्यक्ति अधिक ऊर्जाशील और सजीव अनुभव कर सकता है।
उपयोग और मात्रा (Usage and Dosage):
अमृतारिष्ट सिरप को सामान्यत: भोजन के बाद सेवन किया जाता है। यह सिरप की सिफारिश की जाने वाली मात्रा अलग-अलग हो सकती है, और यह सलाह दी जाती है कि एक आयुर्वेदिक वैद्य या स्वास्थ्य पेशेवर से संपर्क करें, ताकि व्यक्तिगत स्वास्थ्य आवश्यकताओं के आधार पर उपयुक्त मात्रा तय की जा सके।
Conclusion:
Amritarishta syrup stands as a testament to the timeless wisdom of Ayurveda, offering a holistic approach to health and well-being. Its carefully selected blend of herbs provides a myriad of benefits, from immune system support to digestive health and overall vitality. As with any herbal supplement, it is essential to use Amritarishta under guidance and supervision, ensuring a personalized and safe approach to holistic wellness. Embrace the ancient wisdom of Ayurveda with Amritarishta syrup and embark on a journey towards a healthier and more balanced life.
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historyinindia · 1 year ago
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Guduchi benefits in hindi
गुडूची, जिसे अंग्रेज़ी में Tinospora Cordifolia के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है जो भारतीय चिकित्सा प्रणाली में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह एक लता होती है जो वृक्षों पर फैलती है और उसकी भूरी और चमकदार डालीदार बेल जैसी पत्तियाँ होती हैं।
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गुडूची के बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ होते हैं, जैसे कि:
इम्यून सिस्टम को मजबूत क��ना: यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करके विभिन्न संक्रमणों और रोगों से लड़ने में सहायता करता है।
शारीरिक और मानसिक ताकत को बढ़ाना: इसे शारीरिक और मानसिक तनाव को कम करने, ताकत बढ़ाने, और ऊर्जा को बढ़ाने के लिए जाना जाता है।
पाचन तंत्र को सुधारना: यह पाचन तंत्र को सुधारने में मदद करता है और सेहतमंद जीवन जीने में सहायता प्रदान करता है।
गुडूची को ताजा पत्तियों के रूप में, पाउडर, अर्क, चूर्ण और कैप्सूल्स के रूप में उपलब्ध किया जाता है। यह सेहत संबंधित समस्याओं में सहायता प्रदान करने के लिए लिया जाता है, लेकिन सभी के शरीर की अद्भुतता और रिएक्टिविटी अलग होती है, इसलिए सभी को अपने चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए पहले गुडूची का उपयोग करने से पहले।
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drsunildubeyclinic · 2 months ago
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CVD and SD: Best Sexologist in Patna, Bihar | Dr. Sunil Dubey
हृदय रोग (सीवीडी) और यौन स्वास्थ्य: -
कार्डियोवैस्कुलर की समस्या हृदय रोग से जुड़ा हुआ है, हृदय की एक ऐसी स्थिति जिसमें रोगग्रस्त वाहिकाएँ, संरचनात्मक समस्याएँ और रक्त के थक्के शामिल होते हैं। हृदय रोग के सबसे आम प्रकार में कोरोनरी धमनी रोग, उच्च रक्तचाप, हृदय गति रुकना, कंजेस्टिव हार्ट फेलियर, अतालता, परिधीय हृदय रोग, स्ट्रोक और जन्मजात हृदय रोग शामिल हैं।
आज के यह सत्र हृदय रोग के कारण होने वाली यौन स्वास्थ्य समस्याओं से संबंधित है। हृदय रोग के कारण व्यक्ति के उसके यौन जीवन में क्या-क्या परेशानियां होती है। विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुनील दुबे, जो पटना में सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर भी हैं, कहते हैं कि हृदय, किडनी और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए दवाएँ लेते समय व्यक्ति को हमेशा सावधान रहना चाहिए, क्योंकि कुछ दवाओं का शरीर पर दुष्प्रभाव भी होता है। अतः अनुभवी डॉक्टर की देख-रेख में ही हृदय सम्बन्धी दवाओं का सेवन करे।
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सी.वी.डी. (हृदय रोग) के कारण यौन स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभाव:
डॉ. सुनील दुबे आयुर्वेदिक चिकित्सा अनुसंधान, सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान, यौन स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर के विशेषज्ञ हैं जो पटना, बिहार के दुबे क्लिनिक में एक सीनियर क्लिनिकल सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर के रूप में काम करते हैं। उनका कहना है कि हृदय रोग हमेशा व्यक्ति के यौन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और इस समस्या के कारण व्यक्ति कई तरह के गुप्त व यौन रोगों से पीड़ित हो सकता है ज��से-
इरेक्टाइल डिसफंक्शन (ईडी): हृदय रोग हमेशा लिंग क्षेत्र में रक्त के प्रवाह को कम करता है।
कामेच्छा में कमी (डीएल): हार्मोन असंतुलन, तनाव और चिंता हृदय रोग के जोखिम को बढ़ाते हैं।
यौन संतुष्टि में कमी: हृदय की समस्याओं के कारण दर्द, थकान और सांस की तकलीफ बढ़ सकती है और व्यक्ति को यौन संतुष्टि में कमी का अनुभव हो सकता है।
एसटीआई का जोखिम बढ़ जाता है: हृदय रोग पुरुषों में प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है और यौन संचारित संक्रमणों के जोखिम को बढ़ाता है।
कार्डियोवैस्कुलर के तंत्र को समझना:
एथेरोस्क्लेरोसिस: रक्त वाहिकाओं का संकुचित होना, रक्त प्रवाह को कम करना।
एंडोथेलियल डिसफंक्शन: बिगड़ा हुआ रक्त वाहिका कार्य।
हार्मोनल असंतुलन: कम टेस्टोस्टेरोन और बढ़ा हुआ कोर्टिसोल।
सूजन: बढ़ा हुआ ऑक्सीडेटिव तनाव।
हृदय रोग के जोखिम कारक जो यौन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं:
डॉ. सुनील दुबे, बिहार के सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट जो भारत के सबसे सफल आयुर्वेदिक चिकित्सा शोधकर्ता रहे हैं, जिन्होंने पुरुषों के विभिन्न गुप्त व यौन विकारों जैसे इरेक्टाइल डिस्फंक्शन, शीघ्रपतन, कम कामेच्छा और संक्रामक यौन समस्याओं पर अपना सफल शोध किया है। उनका कहना है कि हृदय रोग न केवल यौन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि समग्र स्वास्थ्य स्थिति को भी प्रभावित करता है। यहाँ, दैनिक जीवनशैली हमेशा व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए मायने रखती है। आइए उन सभी हृदय रोग जोखिम कारकों पर एक नज़र डालते हैं जो यौन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
उच्च रक्तचाप: उच्च रक्तचाप रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाते है।
मधुमेह: तंत्रिका क्षति और रक्त प्रवाह में कमी का होना।
हाइपरलिपिडिमिया: उच्च कोलेस्ट्रॉल और एथेरोस्क्लेरोसिस का होना।
धूम्रपान: संवहनी क्षति और रक्त प्रवाह में कमी का होना।
मोटापा: सूजन और हार्मोनल असंतुलन का होना।
सी.वी.डी. उपचार के यौन स्वास्थ्य परिणाम:
दवाओं के दुष्प्रभाव: ईडी और कामेच्छा में कमी का होना।
सर्जरी जटिलताएँ: ईडी और मूत्र असंयम का होना।
जीवनशैली में बदलाव: शारीरिक गतिविधि में कमी का होना।
सी.वी.डी. (हृदय रोग) के साथ यौन स्वास्थ्य का प्रबंधन कैसे करें:
भारत में, हृदय रोग लोगो के बीच एक बड़ी चिंता का विषय है, खासकर पुरुषों में। इंडियन हार्ट एसोसिएशन (आई.एच.ए.) के अनुसार, भारतीय पुरुषों में होने वाले सभी दिल के दौरे में से 50% 50 वर्ष से कम आयु के होते हैं और 25% 40 वर्ष से कम आयु के होते हैं। वैश्विक औसत को देखते हुए भारतीय लोगों के लिए यह चिंताजनक स्थिति है।
किसी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श लें।
सी.वी.डी. जोखिम कारकों की निगरानी करें और उनका प्रबंधन करना।
स्तंभन दोष और कम कामेच्छा का समाधान करना।
नियमित व्यायाम करना।
तनाव कम करने वाली तकनीकों का अभ्यास करना।
आयुर्वेदिक उपचार और हर्बल उपचार का उपयोग करना।
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आयुर्वेदिक चिकित्सा-उपचार के लिए दुबे क्लिनिक से अपॉइंटमेंट लें:
डॉ. सुनील दुबे बताते हैं कि आयुर्वेदिक उपचार और दवा किसी भी गुप्त व यौन समस्या के समाधान की सबसे सुरक्षित, सबसे अच्छी और सबसे विश्वसनीय प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली है। इस आयुर्वेदिक दवा का शरीर पर कोई साइड इफेक्ट नहीं है और मधुमेह, हृदय रोगी या कोई भी रोगी अपने-अपने गुप्त व यौन समस्याओं को सुधारने के लिए इसका उपयोग कर सकते है। यह आयुर्वेदिक दवा समस्त गुप्त व यौन समस्याओं से मरीज को पूरी तरह राहत दिलाती है।
वे दुबे क्लिनिक में हर दिन प्रैक्टिस करते हैं, जहाँ विभिन्न प्रकार के गुप्त व यौन रोगी अपना इलाज, दवा और परामर्श लेने आते हैं। वह उन सभी को उनकी गुप्त व यौन समस्याओं के वास्तविक कारणों का पता लगाने और आयुर्वेदिक उपचार प्रदान करने में मदद करते हैं। अपने आयुर्वेदा व सेक्सोलॉजी मेडिसिन करियर में, अब तक उन्होंने भारत के 4.58 लाख से अधिक गुप्त व यौन रोगियों का सफलतापूर्वक इलाज किया है। दुबे क्लिनिक के साथ फ़ोन पर अपॉइंटमेंट बुक करें और अपनी सभी गुप्त व यौन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए निदान और उपचार प्राप्त करने के लिए क्लिनिक पर जाएँ। सही निर्णय लेना और आयुर्वेद का उपयोग करना स्वस्थ यौन जीवन की 100% गारंटी है।
और अधिक जानकारी के लिए: -
दुबे क्लिनिक
भारत का प्रमाणित आयुर्वेदा व सेक्सोलोजी क्लिनिक
डॉ. सुनील दुबे, सीनियर सेक्सोलॉजिस्ट
हेल्पलाइन नंबर: +91 98350-92586
स्थान: दुबे मार्केट, लंगर टोली, चौराहा, पटना-04
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healthnews69 · 1 year ago
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Belight Capsule For Weight Loss
BeLight is a brand-new, cutting-edge weight-loss supplement that is reasonably priced in India . The Capsule are composed of just natural ingredients to guarantee a hassle-free, healthy weight loss without yo-yo effects. Based on actual customer reviews, this product works quickly and effectively without requiring you to restrict the type or quantity of products you eat on a regular basis. We’ll provide you more details about this solution in our in-depth BeLight review today so you can decide for yourself whether or not it could be the best option to achieve a gorgeous body shape.
What is BeLight Capsule — food supplement or medicine?
BeLight is a cutting-edge dietary supplement made to help you lose weight safely. Not only does this mixture have a quick effect, but it also produces results that clients have never seen before — at least 10 kg each month — according to their testimonies. This product’s amazing array of health advantages makes it unique as well. The most typical adverse effects of the regular weight-loss tablets you will find in the pharmacy are drunkenness, damage to the nervous system, and cardiovascular damage. The natural capsules promise that none of these things will happen to your body.
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BeLight helps you strengthen your immune system and is safe. The goal of the capsules is to rid the body of harmful substances and necessary stress. First week: the extra liquids are drained off. The toxins are removed from the cells during the second week of use, and your metabolism is fully stimulated during the third week. And over the past week, you’ve realised that your figure has completely changed and it’s time to update your wardrobe!
BeLight एक बिल्कुल नया, अत्याधुनिक वजन घटाने वाला पूरक है जिसकी भारत में उचित कीमत है। यो-यो प्रभाव के बिना परेशानी मुक्त, स्वस्थ वजन घटाने की गारंटी देने के लिए गोलियां सिर्फ प्राकृतिक अवयवों से बनी हैं। वास्तविक ग्राहक समीक्षाओं के आधार पर, यह उत्पाद आपके द्वारा नियमित आधार पर खाए जाने वाले उत्पादों के प्रकार या मात्रा को प्रतिबंधित किए बिना तेजी से और प्रभावी ढंग से काम करता है। हम आज अपनी गहन BeLight समीक्षा में आपको इस समाधान के बारे में अधिक जानकारी प्रदान करेंगे ताकि आप स्वयं निर्णय ले सकें कि एक खूबसूरत शारीरिक आकार प्राप्त करने के लिए यह सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है या नहीं।
BeLight Capsule क्या है — खाद्य अनुपूरक या दवा?
BeLight एक अत्याधुनिक आहार अनुपूरक है जो आपको सुरक्षित रूप से वजन कम करने में मदद करने के लिए ��नाया गया है। इस मिश्रण का न केवल त्वरित प्रभाव पड़ता है, बल्कि यह ऐसे परिणाम भी देता है जो ग्राहकों ने पहले कभी नहीं देखे हैं — उनकी गवाही के अनुसार हर महीने कम से कम 10 किलो। इस उत्पाद के अद्भुत स्वास्थ्य लाभों की श्रृंखला इसे अद्वितीय भी बनाती है। नियमित वजन घटाने वाली गोलियों के सबसे विशिष्ट प्रतिकूल प्रभाव जो आपको फार्मेसी में मिलेंगे, वे हैं नशे में धुत होना, तंत्रिका तंत्र को नुकसान और हृदय संबंधी क्षति। प्राकृतिक कैप्सूल वादा करते हैं कि इनमें से कोई भी चीज़ आपके शरीर पर घटित नहीं होगी।
BeLight आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करता है और सुरक्षित है। कैप्सूल का लक्ष्य शरीर को हानिकारक पदार्थों और आवश्यक तनाव से छुटकारा दिलाना है। पहला सप्ताह: अतिरिक्त तरल पदार्थ निकल जाता है। उपयोग के दूसरे सप्ताह के दौरान कोशिकाओं से विषाक्त पदार्थ निकल जाते हैं, और तीसरे सप्ताह के दौरान आपका चयापचय पूरी तरह से उत्तेजित हो जाता है। और पिछले सप्ताह में, आपने महसूस किया है कि आपका फिगर पूरी तरह से बदल गया है और अब आपकी अलमारी को अपडेट करने का समय आ गया है!
Does it Really Work?
BeLight has undergone testing in India. The medicine has demonstrated remarkable efficacy in several patient categories throughout clinical studies, including the diagnosis of the final phase of obesity. The majority of subjects in these research are obese. 98% of the patients lost 12 kg in 30 days, and the remaining patients achieved the incredible feat of losing 15 kg in 30 days. The results of BeLight’s laboratory testing point to a clear conclusion: rather than endangering the body, this product rids it of harmful chemicals and substances that impede weight loss efforts. The product possesses an official quality certificate and has been approved by physicians from India .
BeLight Capsule ingredients and content. What’s the secret to this formula?
The superb BeLight solution is composed of natural nutrients and substances that increase metabolism. The product was designed to encourage a healthy lifestyle and a risk-free fitness programme; it will not harm you or expose you to any chronic diseases to which you may be predisposed. BeLight’s unique blend of vitamins and minerals promotes cellular renewal, which not only helps eliminate cellulite but also minimises the unsightly side effects of sagging skin following weight loss.
This blend, which is rich in plant extracts and herbs, is free of allergies, colouring chemicals, preservatives, and GMOs. But the excellent, uncommon ingredient known as Cognac rhizome holds the key to this creative recipe. It affects body weight in a special way via a number of “channels.” This ingredient burns fat, speeds up metabolic processes, and reduces hunger pangs — even when you’re sleeping or relaxing in your cosy home couch.
Instructions for use and dosage. Side effects and contraindications? How to take?
BeLight is a medication that has no negative effects on your health and no known contraindications. During the clinical studies, the substance was mostly indicated for women over the age of thirty, however patients under that age as well as men experienced remarkable outcomes at the end of the course. However, closely adhering to the step-by-step instructions in the handbook is imperative. In India, it can be found in the product box. You can find specific advice regarding using the capsules to lose weight without following a diet or engaging in physical activity in this leaflet.
The daily dosage and instructions for using BeLight capsules are as follows:
The capsules are intended only to be taken orally.
Exceeding the daily dosage is not acceptable. If you want quicker results, use the product in conjunction with a healthy diet and exercise regimen.
Dosage each day: two Capsule
Take one capsule first thing in the morning and one last thing at night.
Utilise regular tap water to take the Capsule.
Take medications with meals at all times.
The course must last at least one month.
After this time, you can keep taking the capsules if you wish to see even better effects.
No prescription or initial contact with a professional is required.
Side effects of BeLight are 0%
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vedikrootsblog · 4 months ago
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शिलाजीत के फायदे?
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क्या आप जानना चाहती हैं कि शिलाजीत के फायदे क्या हैं और यह आपकी सेहत को कैसे सुधार सकता है? खासकर महिलाओं के लिए, शिलाजीत एक बेहद फायदेमंद प्राकृतिक पदार्थ है। इस ब्लॉग में हम शिलाजीत के फायदे हिंदी में विस्तार से जानेंगे और यह जानेंगे कि महिलाओं के लिए इसके क्या विश���ष लाभ हैं।
शिलाजीत क्या है?
शिलाजीत एक प्राकृतिक रेजिन है, जो खासतौर पर पहाड़ों की चट्टानों में पाया जाता है। यह लंबे समय तक प्लांट्स और अन्य जैविक पदार्थों के मिलकर बनने वाला एक प्राकृतिक पदार्थ है। शिलाजीत में कई महत्वपूर्ण खनिज, विटामिन और अमीनो एसिड होते हैं, जो आपके स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं।
शिलाजीत के फायदे
शिलाजीत के फायदे हिंदी में जानना बहुत दिलचस्प है। यहां कुछ प्रमुख लाभ दिए गए हैं:
ऊर्जा और सहनशक्ति में वृद्धि:
शिलाजीत के फायदे में सबसे प्रमुख लाभ यह है कि यह आपके शरीर को ऊर्जा और ताकत प्रदान करता है। इससे आप दिनभर ताजगी और सक्रियता महसूस कर सकते हैं।
इम्यून सिस्टम को मजबूत करना:
शिलाजीत में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते हैं। इससे आपकी शरीर की रक्षा प्रणाली बेहतर होती है और आप बीमारियों से दूर रहते हैं।
त्वचा की सेहत:
महिलाओं के लिए शिलाजीत के फायदे में त्वचा की देखभाल भी शामिल है। शिलाजीत त्वचा को निखारने और उम्र बढ़ने के संकेतों को कम करने में मदद करता है।
हार्मोनल संतुलन:
शिलाजीत के फायदे हिंदी महिलाओं के लिए में हार्मोनल संतुलन बनाए रखना भी शामिल है। यह हार्मोनल असंतुलन को ठीक करने में मदद करता है और मासिक धर्म की समस्याओं को कम करता है।
मानसिक स्वास्थ्य:
शिलाजीत का उपयोग मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी मदद करता है। यह तनाव और चिंता को कम करने में सहायक होता है और आपको मानसिक रूप से संतुलित बनाता है।
पाचन तंत्र को सुधारना:
शिलाजीत के फायदे हिंदी में पाचन तंत्र की समस्याओं को दूर करना भी शामिल है। यह पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है और गैस, कब्ज जैसी समस्याओं से राहत प्रदान करता है।
महिलाओं के लिए शिलाजीत का उपयोग कैसे करें?
शिलाजीत के फायदे हिंदी महिलाओं के लिए को समझने के बाद, यह जानना जरूरी है कि इसका सही तरीके से उपयोग कैसे किया जाए:
खुराक:
सामान्यत: शिलाजीत की खुराक 300 से 500 मिलीग्राम प्रति दिन सुरक्षित मानी जाती है।
प्रस्तुतिकरण:
शिलाजीत को पानी, दूध या अन्य तरल पदार्थों में मिलाकर लिया जा सकता है। इसे सुबह खाली पेट लेना फायदेमंद हो सकता है।
सतत उपयोग:
इसके लाभों को देखने के लिए शिलाजीत का नियमित उपयोग करें। इससे आपको लंबे समय में अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।
शिलाजीत के संभावित दुष्प्रभाव
हालांकि शिलाजीत के फायदे बहुत हैं, लेकिन कुछ संभावित दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं:
पाचन समस्याएं:
बहुत अधिक मात्रा में सेवन करने पर कुछ लोगों को पाचन समस्याएं हो सकती हैं। सही खुराक का पालन करें और किसी भी असुविधा की स्थिति में उपयोग बंद कर दें।
अलर्जी प्रतिक्रियाएँ:
कभी-कभी शिलाजीत से एलर्जी की प्रतिक्रिया हो सकती है, जैसे त्वचा पर चकत्ते या खुजली। अगर ऐसा हो, तो इसका उपयोग बंद कर दें और डॉक्टर से सलाह लें।
मेडिकल इंटरएक्शन:
यदि आप किसी दवा का सेवन कर रही हैं, तो शिलाजीत के साथ संभावित इंटरएक्शन के बारे में अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
निष्कर्ष
शिलाजीत के फायदे बहुत प्रभावशाली हैं। खासकर महिलाओं के लिए, यह ऊर्जा बढ़ाने, इम्यून सिस्टम को मजबूत करने, और त्वचा और हार्मोनल संतुलन में सुधार करने में सहायक है। शिलाजीत के फायदे हिंदी में जानकर, आप इस प्राकृतिक पदार्थ का सही तरीके से उपयोग कर सकती हैं और इसके स्वास्थ्य लाभों का पूरा फायदा उठा सकती हैं।
स्वस्थ और खुशहाल जीवन के लिए शिलाजीत को अपनी दिनचर्या में शामिल करें और इसके लाभों का आनंद लें। किसी भी नए सप्लीमेंट को शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह लेना हमेशा सबसे अच्छा होता है।
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