#पुरुष प्रजनन क्षमता पर प्रभाव
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allaboutivf · 3 months ago
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पुरुष बांझपन और निःसंतानता का इलाज: मेलाटोनिन हार्मोन का रोल
आजकल की व्यस्त जीवनशैली और बदलते खान-पान के कारण निःसंतानता की समस्या तेजी से बढ़ रही है। पुरुषों में बांझपन एक आम समस्या बन चुकी है, और इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे खराब जीवनशैली, तनाव, और हार्मोनल असंतुलन। इस लेख में, हम पुरुष बांझपन के पीछे छिपे कारणों और पुरुष बांझपन का इलाज में मेलाटोनिन हार्मोन की भूमिका पर चर्चा करेंगे।
मेलाटोनिन हार्मोन क्या है?
मेलाटोनिन हार्मोन को अक्सर "स्लीप हार्मोन" के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह नींद को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन हाल के शोधों में पता चला है कि मेलाटोनिन न केवल नींद के लिए जरूरी है, बल्कि यह पुरुषों की प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में भी सहायक होता है। मेलाटोनिन एक शक्तिशाली एंटीऑक्��ीडेंट के रूप में काम करता है जो शुक्राणुओं को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाता है, जिससे शुक्राणुओं की गुणवत्ता और संख्या में सुधार होता है।
पुरुष बांझपन और मेलाटोनिन का रोल
पुरुष बांझपन का एक प्रमुख कारण शुक्राणुओं की गुणवत्ता में कमी है। यहां मेलाटोनिन हार्मोन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेलाटोनिन शरीर में मौजूद फ्री रेडिकल्स को कम करता है जो शुक्राणुओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इससे शुक्राणुओं की गतिशीलता (मोबिलिटी) और जीवन क्षमता बढ़ती है, जिससे गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।
पुरुष बांझपन का इलाज
पुरुष बांझपन का इलाज के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं, जिनमें लाइफस्टाइल में बदलाव, स्वस्थ आहार, और दवाएं शामिल होती हैं। मेलाटोनिन सप्लीमेंट्स को इनफर्टिलिटी के उपचार में शामिल किया जा सकता है क्योंकि यह हार्मोनल संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है और शुक्राणुओं की गुणवत्ता में सुधार करता है।
इसके अलावा, नियमित व्यायाम और तनाव प्रबंधन तकनीकों को भी बांझपन के इलाज के रूप में प्रभावी माना जाता है। मेलाटोनिन का स्तर बढ़ाने के लिए नींद का सही शेड्यूल बनाए रखना जरूरी है, क्योंकि यह हार्मोन रात के समय सबसे ज्यादा उत्पन्न होता है।
निःसंतानता का इलाज और मेलाटोनिन
महिलाओं और पुरुषों दोनों में निःसंतानता का कारण हार्मोनल असंतुलन हो सकता है। मेलाटोनिन हार्मोन को सही स्तर पर बनाए रखने से प्रजनन प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। निःसंतानता का इलाज के रूप में मेलाटोनिन सप्लीमेंट्स का उपयोग प्रजनन उपचारों में किया जा सकता है, क्योंकि यह न केवल शुक्राणुओं की गुणवत्ता को बढ़ाता है बल्कि शरीर में तनाव के स्तर को भी कम करता है, जो निःसंतानता का एक प्रमुख कारण हो सकता है।
मेलाटोनिन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस
ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, शरीर में फ्री रेडिकल्स के अत्यधिक बनने से होता है और यह शुक्राणुओं को नुकसान पहुंचा सकता है। मेलाटोनिन इस स्ट्रेस को कम करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, जिससे शुक्राणुओं की डीएनए संरचना सुरक्षित रहती है और गर्भधारण की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसलिए, मेलाटोनिन को पुरुष प्रजनन क्षमता को सुधारने के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में देखा जा रहा है।
निष्कर्ष
मेलाटोनिन हार्मोन का पुरुष बांझपन और निःसंतानता के इलाज में महत्वपूर्ण योगदान है। यह न केवल नींद में सुधार करता है बल्कि शुक्राणुओं की गुणवत्ता और संख्या को भी बढ़ाता है। आज के युग में, जब बांझपन के कारणों का पता लगाना और उनका समाधान खोजना जरूरी हो गया है, मेलाटोनिन हार्मोन एक प्रभावी उपाय साबित हो सकता है। निःसंतानता का इलाज में इसका सही उपयोग करने से प्रजनन स्वास्थ्य को बेहतर किया जा सकता है, ��िससे दंपत्तियों के लिए माता-पिता बनने का सपना साकार हो सकता है।
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drsunildubeyclinic · 3 months ago
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Best Sexologist Patna, Bihar for Treament of SD due to Drinking | Dr. Sunil Dubey
अच्छे यौन स्वास्थ्य के लिए शराब के अत्यधिक सेवन से बचे:
आज के समय में शराब का सेवन (भारी या अत्यधिक) व्यक्ति के यौन जीवन में इसके विकार का एक प्रमुख मुद्दा बन गया है। एक सांख्यिकीय डेटा और सर्वेक्षण के अनुसार, यह पाया गया कि 15% पुरुष और 10% महिलाएं शराब के सेवन के कारण गुप्त व यौन रोग का अनुभव करती हैं। 20% जोड़े अत्यधिक शराब के सेवन के कारण कामेच्छा में कमी की रिपोर्ट करते हैं। नशीले पदार्थ उपयोग विकार वाले 30% व्यक्ति गुप्त व यौन रोग का अनुभव करते हैं।
“शराब कार्बनिक यौगिकों का एक वर्ग है जिसमें एक या अधिक हाइड्रॉक्सिल (―OH) समूह होते हैं जो एक एल्काइल समूह (हाइड्रोकार्बन श्रृंखला) के कार्बन परमाणु से जुड़े होते हैं। आम तौर पर, यह एक आसुत या किण्वित पेय होता है जो व्यक्ति को नशे में डाल सकते है।”
विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुनील दुबे जो पटना में शीर्ष-श्रेणी के सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट हैं, कहते हैं कि यौन स्वास्थ्य पर शराब का प्रभाव अल्पकालिक और दीर्घकालिक समयावधि पर आधारित है। यह पूरी तरह से व्यक्ति की खपत और प्रकृति पर निर्भर करता है कि वह इसका उपयोग कैसे करता है। सरल शब्दों में कहे तो, इसका यौन स्वास्थ्य या समग्र स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। आइये शराब के सेवन से यौन स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दोनों (अल्पकालिक और दीर्घकालिक ) प्रभावों के बारे में जानते है।
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शराब के सेवन का व्यक्ति पर अल्पकालिक प्रभाव:
पुरुषों के लिए-
शराब से पुरुषों में इरेक्टाइल डिसफंक्शन (ईडी) का जोखिम 60-80% तक बढ़ सकता है।
शराब से पुरुषों में शीघ्रपतन (पीई) का जोखिम 20-40% तक बढ़ सकता है।
शराब से पुरुषों में यौन इच्छा 20-30% तक कम हो सकता है।
शराब से शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता 10-20% तक कम हो सकता है।
महिलाओं के लिए-
शराब से महिलाओं में यौन इच्छा 20-30% तक कम हो सकती है
शराब से महिलाओं में योनि के सूखेपन का जोखिम 10-20% तक बढ़ सकती है।
शराब से महिलाओं में दर्दनाक संभोग का जोखिम 10-20% तक बढ़ सकती है।
शराब से महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी अनियमितताओं का जोखिम 10-20% तक बढ़ सकती है।
शराब के सेवन का व्यक्ति पर दीर्घकालिक प्रभाव:
पुरुषों के लिए-
शराब से पुरुषों में क्रॉनिक इरेक्टाइल डिसफंक्शन (ईडी) का जोखिम 40-60% तक बढ़ सकता है।
शराब से पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन कम होने का जोखिम 20-40% तक बढ़ सकता है।
शराब से पुरुषों में प्रजनन क्षमता 20-40% तक कम हो सकती है।
शराब से प्रोस्टेट संबंधी समस्याओं का जोखिम 10-20% तक बढ़ सकता है।
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महिलाओं के लिए-
शराब से महिलाओं में प्रजनन क्षमता 20-40% तक कम हो सकती है।
शराब से महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का जोखिम 10-20% तक बढ़ सकता है।
शराब से महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन का जोखिम 10-20% तक बढ़ सकता है।
शराब से महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी अनियमितता का जोखिम 20-40% तक बढ़ सकता है।
शराब के सेवन के तंत्र को समझना:
डॉ. सुनील दुबे जो कि बिहार के सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर है, कहते हैं कि शराब की लत न केवल यौन स्वास्थ्य बल्कि समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। चुकी, हम शराब के अत्यधिक सेवन से होने वाले यौन स्वास्थ्य पर प्रभाव पर चर्चा कर रहे हैं, तो हमें इसके तंत्र को समझना चाहिए कि यह हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करते है।
तंत्रिका संबंधी क्षति: यह तंत्रिका कार्य को बाधित करती है और संवेदनशीलता को क��� करती है।
हार्मोनल असंतुलन: यह टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन के स्तर को बाधित करता है।
संवहनी क्षति: यह जननांग क्षेत्र में रक्त के प्रवाह को कम करती है।
यकृत क्षति: यह हार्मोन विनियमन को बाधित करती है।
व्यसन से मुक्ति और शराब के सेवन की रोकथाम:
संयम और दृढ़ता।
पेशेवर परामर्श।
सहायता समूह।
स्वस्थ जीवनशैली। 
व्यायाम, पोषण, तनाव प्रबंधन।
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दुबे क्लिनिक में गुप्त व यौन समस्याओं के लिए आयुर्वेदिक उपचार:
यदि आप शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, जीवनशैली, चिकित्सा और अन्य कारकों के कारण किसी भी प्रकार के गुप्त व यौन समस्याओं का सामना कर रहे हैं; तो आपको व्यक्तिगत सहायता, उपचार और दवा के लिए हमेशा एक अनुभवी आयुर्वेदिक क्लिनिकल सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
 दुबे क्लिनिक सभी तरह के गुप्त व यौन रोगियों के चिकित्सा व उपचार के लिए सही जगह है जो आयुर्वेदिक दवाओं और स्वदेशी उपचारों के लिए समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है। पूरे भारत से विभिन्न प्रकार के गुप्त व यौन रोगी अपने बुनियादी और उन्नत यौन उपचार प्राप्त करने के लिए डॉ. सुनील दुबे से संपर्क करते हैं। वह दुबे क्लिनिक में हर दिन अपना व्यापक आयुर्वेदिक उपचार, यौन परामर्श और दवा सभी रोगियों को प्रदान करते हैं। फ़ोन पर अपॉइंटमेंट लें और अपना संपूर्ण यौन उपचार प्राप्त करें। अधिक जानकारी या अपॉइंटमेंट के लिए जरूरतमंद व्यक्ति हमें कॉल कर सकते हैं-
और अधिक जानकारी के लिए: -
दुबे क्लिनिक
भारत का प्रमाणित आयुर्वेदा व सेक्सोलोजी क्लिनिक
डॉ. सुनील दुबे, सीनियर सेक्सोलॉजिस्ट
हेल्पलाइन नंबर: +91 98350-92586
स्थान: दुबे मार्केट, लंगर ��ोली, चौराहा, पटना-04
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yashodaivffertilitycentre · 8 months ago
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पीसीओएस क्यों और कैसे होता है? जानिए विस्तार मै (PCOS kya hai in Hindi)
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पीसीओएस (Polycystic Ovary Syndrome) तब होता है जब आपके अंडाशय, आपके शरीर का वह हिस्सा जो अंडे बनाता है, बहुत अधिक हार्मोन द्वारा अवरुद्ध हो जाता है। सामान्य महिला हार्मोन के बजाय, आपका शरीर अधिक पुरुष हार्मोन (एण्ड्रोजन) बनाने लगता है, जिससे आपके अंडाशय में छोटे तरल पदार्थ से भरी थैली, जिन्हें सिस्ट कहा जाता है, बनने लगती हैं। इससे आपके हार्मोन का संतुलन गड़बड़ा जाता है और गर्भधारण करना मुश्किल हो सकता है। हालाँकि, पीसीओएस केवल अंडाशय के बारे में नहीं है; इसका चयापचय स्वास्थ्य, प्रजनन क्षमता और मनोवैज्ञानिक कल्याण पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है।
पीसीओएस का अर्थ (The Meaning of PCOS)
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) एक ऐसी स्थिति है जो एक महिला के हार्मोन के स्तर को प्रभावित करती है, जिससे मासिक धर्म चक्र में अनियमितताएं और डिम्बग्रंथि अल्सर सहित कई अन्य लक्षण हो सकते हैं। सटीक कारण अज्ञात है, लेकिन शीघ्र निदान और उपचार, साथ ही वजन घटाने से टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग जैसी दीर्घकालिक जटिलताओं के जोखिम को कम किया जा सकता है।
पीसीओएस अंडाशय और हार्मोन को कैसे प्रभावित करता है (How PCOS affects ovaries and hormones)
पीसीओएस क्या होता है ये तो अभी आपने जान ही लिया है तो अब इस स्थिति की विशेषता अंडाशय पर कई छोटे रोमों की वृद्धि है। यह हार्मोन असंतुलन का कारण बनता है, जिससे कई लक्षण हो सकते हैं, जैसे अनियमित मासिक धर्म, मुँहासा और हिर्सुटिज़्म (शरीर पर अत्यधिक बाल)।
पीसीओएस के लक्षण (Symptoms of PCOS)
पीसीओएस के लक्षण अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन सबसे आम लक्षणों में शामिल हैं:
•        मासिक धर्म की अनियमितता या अनुपस्थिति
•        ओव्यूलेशन की कमी या अनियमित ओव्यूलेशन के कारण गर्भवती होने में कठिनाई
•        चेहरे या शरीर पर अत्यधिक बाल उगना, जिसे हिर्सुटिज़्म कहा जाता है
•        वजन बढ़ना
•        बालों का पतला होना और सिर के बालों का झड़ना
•        मुँहासे और तैलीय त्वचा
•        अवसाद, चिंता और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
यदि आप इनमें से किसी भी लक्षण का अनुभव कर रहे हैं, तो चिकित्सकीय सलाह लेना महत्वपूर्ण है। किफायती उपचार विकल्पों के लिए नवी मुंबई के सर्वश्रेष्ठ आई���ीएफ केंद्र best IVF centre in Navi Mumbai पर जाएँ।
संभावित भावनात्मक लक्षण (Possible Emotional Symptoms)
पीसीओएस सिर्फ एक प्रजनन स्वास्थ्य समस्या नहीं है; यह किसी महिला की भावनात्मक भलाई पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। पीसीओएस से पीड़ित कई महिलाएं अवसाद, कम आत्मसम्मान, चिंता और खाने संबंधी विकारों का अनुभव करती हैं।
डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए? (When to See a Doctor)
आपको डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए? यदि आप ऐसे लक्षणों का अनुभव कर रहे हैं जो पीसीओएस का संकेत दे सकते हैं, तो चिकित्सा सलाह लेना महत्वपूर्ण है। शीघ्र निदान और इलाज कराने से लक्षणों को प्रबंधित करने और मधुमेह और हृदय रोग जैसी संभावित दीर्घकालिक समस्याओं से बचने में बड़ा अंतर आ सकता है। साथ ही जाने पीसीओडी क्या है और कैसे होता है। यदि अनियमित मासिक धर्म, बालों का अत्यधिक बढ़ना या गर्भधारण करने में कठिनाई जैसे लक्षण आपके दैनिक जीवन को प्रभावित कर रहे हैं, तो अपने डॉक्टर से मिलने में संकोच न करें। बेहतर उपचार विकल्पों के लिए, नवी मुंबई में हमारे विशेषज्ञ आईवीएफ विशेषज्ञों (IVF specialists in Navi Mumbai) से परामर्श करने पर विचार करें।
पीसीओएस के कारण (Causes of PCOS)
पीसीओएस का सटीक कारण अज्ञात है, लेकिन कई कारक इसमें भूमिका निभा सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
•        अतिरिक्त इंसुलिन: इंसुलिन वह हार्मोन है जो अग्न्याशय द्वारा स्रावित होता है और कोशिकाओं को ऊर्जा के लिए चीनी का उपयोग करने की अनुमति देता है; जाहिर तौर पर आपने यह पहले भी सुना होगा, लेकिन वास्तव में इसका मतलब क्या है? आनुवंशिकता: कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि शायद पीसीओएस का विकास आनुवंशिक कारकों पर आधारित है। जब इंसुलिन कोशिकाओं में ठीक से काम नहीं कर पाता है, तो रक्त शर्करा के साथ-साथ इंसुलिन का उत्पादन भी बढ़ सकता है। ��ंसुलिन का असामान्य उत्पादन तब एण्ड्रोजन का उत्पादन भी शुरू कर सकता है, जो संभवतः ओव्यूलेशन समस्या में योगदान दे सकता है।
•        निम्न-श्रेणी की सूजन: यह तब होता है जब श्वेत रक्त कोशिकाएं संक्रमण से लड़ने के लिए पदार्थों का उत्पादन करती हैं। यह सूजन एण्ड्रोजन के स्तर को बढ़ाने में योगदान कर सकती है।
•        आनुवंशिकता: अध्ययनों से पता चलता है कि कुछ विशेष जीन पीसीओएस का कारण बन सकते हैं।
पीसीओएस का निदान और उपचार (Diagnosis and treatment of PCOS)
पीसीओएस का निदान करने के लिए, डॉक्टरों को अन्य स्थितियों को बाहर करने की आवश्यकता होती है जो समान लक्षण पैदा कर सकती हैं। यह आमतौर पर मासिक धर्म चक्र और लक्षणों सहित एक विस्तृत चिकित्सा इतिहास लेने और पीसीओएस के लक्षणों, जैसे शरीर पर अतिरिक्त बाल और उच्च रक्तचाप, को देखने के लिए एक शारीरिक परीक्षा करके किया जाता है। तो, यदि आप नवी मुंबई में हैं और सर्वोत्तम देखभाल की तलाश में हैं, तो शहर में सर्वश्रेष्ठ आईवीएफ केंद्र की जांच करने पर विचार क्यों न करें? हमारा यशोदा आईवीएफ और फर्टिलिटी सेंटर बिल्कुल वही हो सकता है जिसकी आपको विशेषज्ञ मार्गदर्शन और सहायता के लिए आवश्यकता है।
सामान्य उपचार दृष्टिकोण (General Treatment Approach)
हालाँकि पीसीओएस (PCOS) का कोई इलाज नहीं है, लेकिन लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। उपचार व्यक्ति की चिंताओं के आधार पर भिन्न हो सकता है, जैसे कि बांझपन, बालों का झड़ना, मुँहासा, या मोटापा। सामान्य उपचारों में शामिल हैं:
•        मासिक धर्म को नियंत्रित करने के लिए उपयोग की जाने वाली दवाएं
•        एण्ड्रोजन स्तर को कम करने के लिए जन्म नियंत्रण गोलियाँ
•        त्वचा पर एण्ड्रोजन के प्रभाव को रोकने के लिए एंटी-एण्ड्रोजन दवाएं
•        इंसुलिन के स्तर को प्रबंधित करने के लिए मेटफॉर्मिन
•        यदि गर्भावस्था वांछित हो तो प्रजनन उपचार
•        आहार और व्यायाम सहित जीवनशैली में संशोधन
पीसीओएस के लिए प्रतिबंध रणनीतियाँ (Prevention Strategies for PCOS)
हालाँकि आप पीसीओएस को रोकने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, लेकिन आप पीसीओएस के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद के लिए कदम उठा सकते हैं। उदाहरण के लिए:
•        हृदय-स्वस्थ आहार लें
•        नियमित व्यायाम की आदत लगाए और स्वस्थ वजन पर स्थित रहे
•        धूम्रपान से बचें
•        अपने स्वास्थ्य पर नज़र रखने के लिए नियमित जांच कराते रहें
•        जोखिम कारकों को शीघ्र पहचानें और उनका उपचार करें
पीसीओएस के प्रकार (Types of PCOS)
पीसीओएस क्या है और पीसीओएस कई प्रकार के होते हैं, और ये विविधताएं लक्षणों और उपचार विकल्पों को प्रभावित कर सकती हैं। यह समझने से कि आपकी स्थिति किस प्रकार की हो सकती है, आपकी स्थिति को प्रबंधित करने के लिए अधिक अनुकूलित दृष्टिकोण में मदद मिल सकती है:
•        इंसुलिन प्रतिरोधी पीसीओएस
•        अधिवृक्क पीसीओएस
•        सूजन संबंधी पीसीओएस
पीसीओएस विविधताएँ लक्षणों को कैसे प्रभावित कर सकती हैं (How PCOS variations can affect traits)
पीसीओएस से पीड़ित कुछ महिलाओं में इस स्थिति का पारिव��रिक इतिहास होता है, जो आनुवंशिक प्रवृत्ति का संकेत देता है। कुछ लोगों में मेटाबॉलिक सिंड्रोम या इंसुलिन प्रतिरोध हो सकता है, जिससे अन्य स्थितियों के अलावा मधुमेह और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है।
पीसीओएस और आहार (PCOS and Diet)
अच्छा पोषण पीसीओएस के प्रबंधन में बड़ी भूमिका निभा सकता है। एक स्वस्थ आहार इंसुलिन के नियमन में सुधार कर सकता है और वजन को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। नियमित शारीरिक गतिविधि के साथ-साथ फलों, सब्जियों और दुबले प्रोटीन से भरपूर संतुलित आहार फायदेमंद होता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
निष्कर्ष में पीसीओएस (PCOS) सामान्य होने के साथ-साथ बहुत जटिल स्थिति है जो महिलाओं के जीवन पर भारी प्रभाव डाल सकती है। इस गाइड में साझा की गई जानकारी पीसीओएस को समझने और उससे प्रबंधन की शुरुआत मात्र है। यदि आपको लगता है कि आपको पीसीओएस हो सकता है, तो व्यक्तिगत योजना के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श करना महत्वपूर्ण है।
अतिरिक्त सहायता और संसाधनों के लिए, अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से संपर्क करें या पीसीओएस समुदाय से जुड़ें। याद रखें, आप इस यात्रा में अकेले नहीं हैं, और सही ज्ञान और समर्थन के साथ, पीसीओएस का प्रबंधन संभव है।
इसके अलावा, किफायती उपचार और विशेषज्ञ देखभाल चाहने वालों के लिए, नवी मुंबई में सर्वश्रेष्ठ आईवीएफ केंद्र (Best IVF centre in Navi Mumbai) के रूप में मान्यता प्राप्त यशोदा आईवीएफ सेंटर का दौरा करने पर विचार करें। डॉक्टरों की हमारी विशेष और अनुभवी टीम आपको पीसीओएस में चुनौतियों से उबरने और प्रजनन के संबंध में अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करेगी।
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अजूस्पर्मिया: पुरुषों के यौन स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण विषय
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यदि किसी पुरुष के शुक्राणुओं की संख्या या उनकी उत्पादन कम हो जाती है, तो उसे अजूस्पर्मिया कहा जा सकता है। यह एक महत्वपूर्ण विषय है जो पुरुषों के यौन स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है। अजूस्पर्मिया के कुछ मुख्य कारणों में शामिल हैं: शुक्राणुओं की उत्पादन में समस्या: कई मांसपेशियों में शुक्राणुओं की सही उत्पादन को प्रभावित करने वाली समस्याएं हो सकती हैं। इसमें हॉर्मोनल असंतुलन, विकारित गर्मी या ठंडक, दवाओं का उपयोग या अन्य स्वास्थ्य समस्याएं शामिल हो सकती हैं। योनि में ब्लॉकेज: शुक्राणुओं का पाठ योनि ��क रुकावट में आने से भी अजूस्पर्मिया हो सकती है। यह ब्लॉकेज योनि के वातावरण में बाधाएँ डालकर प्रोग्रेस कर सकती है, जिससे शुक्राणुओं की पहुंच पर प्रभाव पड़ता है। शुक्राणुओं के विकास में समस्या: कई लोगों में शुक्राणुओं के सही विकास में समस्याएं होती हैं, जो अजूस्पर्मिया का कारण बन सकती हैं। इतर विभिन्न कारण: यदि किसी पुरुष को गर्भाशय या शुक्राशय की शारीरिक समस्या होती है, तो यह भी अजूस्पर्मिया का कारण बन सकती है। इसके अलावा, ऐंठन या चोट के कारण भी शुक्राणुओं की पहुंच में बाधा हो सकती है।
अजूस्पर्मिया से पीड़ित? चिकित्सक से संपर्क करें और जांच कराएं!
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medtalksblog · 2 years ago
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क्या ट्राइडैक्स प्रोकम्बेन्स पुरुष प्रजनन समारोह की हानि को कम करता है?
पुरुषों में प्रजनन कार्य (male reproductive function) में कमी एक सामान्य चिकित्सा स्थिति है जो बांझपन, कम कामेच्छा (low libido), और स्तंभन दोष (erectile dysfunction) सहित कई मुद्दों का कारण बन सकती है। इन दोषों का यौन क्रिया और समग्र स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। हार्मोनल असंतुलन (hormonal imbalance), शारीरिक असामान्यताएं, और जीवनशैली पसंद, जैसे धूम्रपान और अत्यधिक शराब की खपत, सहित विभिन्न कारक इसमें शामिल हो सकते हैं। सौभाग्य से, पुरुषों को उनके प्रजनन कार्य को प्रबंधित करने और सुधारने में मदद करने के लिए कई उपचार उपलब्ध हैं।
शोधकर्ताओं द्वारा किए गए विभिन्न अध्ययनों ने पुष्टि की है कि ट्राइडैक्स प्रोकम्बेन्स के जलीय पत्ती के अर्क में प्रजनन कार्य की दुर्बलता को कम करने की क्षमता है। अर्क शुक्राणु (sperm) की गुणवत्ता में सुधार और ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने के लिए पाया गया था। इसके अलावा, जब मौखिक रूप से प्रशासित किया जाता है, तो अर्क हार्मोन को संतुलित करने, स्वस्थ ग्लूकोज के स्तर को बहाल करने, और यौन प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए सिद्ध हुआ है।
ट्राइडैक्स प्रोकम्बेन्स एस्टरेसिया (asteraceae) परिवार से संबंधित एक जंगली पौधे की प्रजाति है। यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है, खासकर भारत में। ट्राइडैक्स प्रोकम्बेन्स का उपयोग कई वर्षों से पारंपरिक आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है। ट्राइडैक्स प्रोकम्बेन्स की पत्तियों, तने, फूल, और जड़ों के अर्क में विभिन्न बायोएक्टिव यौगिकों, स्टेरॉयड, कैरोटीनॉयड, फ्लेवोनोइड्स, फैटी एसिड (fatty acid), फाइटोस्टेरॉल, टैनिन, और खनिजों से भरपूर पाए जाते हैं। इनका उपयोग मधुमेह, गठिया, और सूजन-संबंधी प्रतिक्रियाओं के इलाज के लिए किया जाता है और खुले घावों पर भी लगाया जाता है। कई प्रायोगिक अध्ययनों ने इसके एंटीऑक्सिडेंट (antioxidant), जीवाणुरोधी, सूजनरोधी, रोगाणुरोधी, और मच्छरनाशक गतिविधियों का भी प्रदर्शन किया है।
आजकल, पुरुषों में प्रजनन स्वास्थ्य और यौन प्रदर्शन पर इसके संभावित लाभकारी प्रभावों के कारण ट्राइडैक्स प्रोकम्बेन्स का जलीय पत���ती का अर्क बहुत अधिक ध्यान आकर्षित कर रहा है।
नैदानिक रूप से बोलना, एक स्वस्थ निर्माण के लिए लिंग में उचि�� रक्त परिसंचरण (proper blood circulation in the penis), उपयुक्त हार्मोन सांद्रता (hormone concentrations), एक कार्यात्मक तंत्रिका तंत्र और एक स्वस्थ मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। इन घटकों को अक्सर ख़तरे में डाल दिया जाता है जब किसी व्यक्ति को दीर्घकालिक चिकित्सा समस्याएं होती हैं, विशेष रूप से मधुमेह, उच्च रक्तचाप, असामान्य कोलेस्ट्रॉल का स्तर और मोटापा।
ट्राइडैक्स प्रोकम्बेन्स को शरीर पर विभिन्न सकारात्मक प्रभाव पाया गया है, जिसमें वासोडिलेशन और बेहतर रक्त परिसंचरण शामिल है, जो शिश्न के निर्माण में मदद करता है। इसमें रक्त वाहिकाओं को आराम देने, लिंग में रक्त के प्रवाह को बढ़ाने और एक निर्माण को मजबूत करने की क्षमता है, इस प्रकार स्तंभन दोष का प्रबंधन करता है। इसके अलावा, यह शुक्राणु उत्पादन को बढ़ाता है और सीरम टेस्टोस्टेरोन (testosterone concentration) एकाग्रता को बढ़ाता है, जो बदले में पुरुष यौन प्रदर्शन और सेक्स ड्राइव को बेहतर बनाने में मदद करता है। एक प्रायोगिक अध्ययन में, वियाग्रा की तुलना में, ट्राइडैक्स प्रोकुम्बेंस का पुरुष प्रजनन क्षमता पर समान प्रभाव पाया गया।
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srbachchan · 4 years ago
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DAY 4804(i)
Jalsa, Mumbai                Apr 24, 2021               Sat 1:49 am
What could not be accommodated in the previous is here now  .. and may the Hindi geniuses in the Ef help and assist in its translate or at least the pertinent relevant points .. 
प्रार्थना का अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूप
BY
BANDEY
SEPTEMBER 06, 2018
अनुक्रम
प्रार्थना की परिभाषा
प्रार्थना के स्वरूप
प्रार्थना का तात्त्विक विश्लेषण
प्रार्थना का प्रथम तत्त्व - विश्वास एवं श्रद्धा - ...  the first relevance belief and respect
प्रार्थना का द्वितीय तत्त्व - एकाग्रता  .. oneness
प्रार्थना का तृतीय तत्त्व - सृजनात्मक ध्यान contemplation
प्रार्थना का चतुर्थ तत्त्व - आत्म निवेदन  ... the offering respectful of the soul 
प्रार्थना मनुष्य की जन्मजात सहज प्रवृत्ति है। संस्कृत शब्द प्रार्थना तथा आंग्ल (इंग्लिश) भाषा के Prayer शब्द, इन दोनों में अर्थ का दृष्टि से पूरी तरह से समानता है - 1. संस्कृत में ‘‘प्रकर्षेण अर्धयते यस्यां सा प्रार्थना’’ अर्थात प्रकर्ष रूप से की जाने वाली अर्थना (चाहना अभ्यर्थना)  2. आंग्ल भाषा का Prayer यह शब्द Preier, precari, prex, prior इत्यादि धातुओं से बना है, जिनका अर्थ होता है चाहना या अभ्यर्थना।  इस प्रकार हम देखते हैं कि धर्म, भाषा, देश इत्यादि सीमाएँ प्रार्थना या Prayer के समान अर्थों को बदल नहीं पाई हैं। ‘‘प्रार्थना शब्द की रचना ‘अर्थ उपाया×आयाम’ धातु में ‘प्र’ उपसर्ग एवं ‘क्त’ प्रत्यय लगाकर शब्दशास्त्रीयों ने की है। इस अर्थ में अपने से विशिष्ट व्यक्ति से दीनतापूर्वक कुछ मांगने का नाम प्रार्थना है। वेद���ं में कहा गया है- ’’पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।’’त्रिपाद एवं एकपाद नाम से ब्रह्म के एश्वर्य का संकेत है। अत: जीव के लिये जितने भी आवश्यक पदार्थ हैं, सबकी याचना परमात्मा से ही करनी चाहिए, अन्य से नहीं।
प्रार्थना का तात्पर्य यदि सामान्य शब्दों में बताया जाए तो कह सकते है। कि प्रार्थना मनुष्य के मन की समस्त विश्रृंखलित एवं अनेक दिशाओं में बहकने वाली प्रवृत्तियों को एक केन्द्र पर एकाग्र करने वाले मानसिक व्यायाम का नाम है। चित्त की समग्र भावनाओं को मन के केन्द्र में एकत्र कर चित्त को दृढ़ करने की एक प्रणाली का नाम ‘प्रार्थना’ है। अपनी इच्छाओं के अनुरूप अभीश्ट लक्ष्य प्राप्त कर लेने की क्षमता मनुष्य को (प्रकृति की ओर से ) प्राप्त है। भगवतगीता 17/3 के अनुसार - यच्छ्रद्ध: स एव स:
अर्थात- जिसकी जैसी श्रद्धा होती है वह वैसा ही बन जाता है। ईसाई धर्मग्रंथ बाईबिल में कहा गया है -
जो माँगोगे वह आपको दे दिया जाऐगा।
जो खोजोगे वह तुम्हें प्राप्त हो जाएगा।
खटखटाओगे तो आपके लिए द्वार खुल जाएगा।।
स्पष्ट है कि प्रार्थना के द्वारा जन्मजात प्रसुप्त आध्यत्मिक शक्तियाँ मुखर की जा सकती है। इन शक्तियों को यदि सदाचार तथा सद्विचार का आधार प्राप्त हो तब व्यक्ति संतवृत्ति (साधुवृत्ति) का बन जाता है। इसके विरूद्ध इन्हीं शक्तियों का दुरूपयोग कर व्यक्ति दुश्ट वृत्ति का बन सकता हैं। शैतान और भगवान की संकल्पना इसीलिए तो रूढ़ है। मनुष्य में इतनी शक्ति है कि स्वयं का उद्धार स्वयं का सकता है। गीता 6/5 में भी यही कहा गया है -
‘‘उद्धरेत् आत्मना आत्मानम्’’
इस प्रकार यह स्वयमेव सिद्ध हो जाता है कि प्रार्थना भिक्षा नहीं, बल्कि शक्ति अर्जन का माध्यम है, प्रार्थना करने के लिए सबल सक्षम होना महत्व रखता है। प्रार्थना परमात्मा के प्रति की गई एक आर्तपुकार है। जब यह पुकार द्रौपदी, मीरा, एवं प्रहलाद के समान हृदय से उठती है तो भावमय भगवान दौड़े चले आते हैं। जब भी हम प्रार्थना करते हैं तब हर बार हमें अमृत की एक बूंद प्राप्त होती है जो हमारी आत्मा को तृप्त करती है। गाँधी जी ने जीवन में प्रार्थना को अपरिहार्य मानते हुए इसे आत्मा का खुराक कहा है। प्रार्थना ऐसा कवच या दुर्ग है जो प्रत्येक भय से हमारी रक्षा करता है। यही वह दिव्य रथ है जो हमें सत्य, ज्योति और अमृत की प्राप्ति कराने में समर्थ है।
हमारा जीवन हमारे विश्वासों का बना हुआ है। यह समस्त संसार हमारे मन का ही खेल है- ‘‘जैसा मन वैसा जीवन’’। प्रार्थना एक महान ईच्छा, आशा और विश्वास है। यह शरीर, मन व वाणी तीनों का संगम है। तीनों अपने आराध्य देव की सेवा में एकरूप होते हैं, प्रार्थना करने वालों का रोम-रोम प्रेम से पुलकित हो उठता है।
प्रार्थना की परिभाषा
हितोपदेश :- ‘‘स्वयं के दुगुर्णों का ��िंतन व परमात्मा के उपकारों का स्मरण ही प्रार्थना है। सत्य क्षमा, संतोष, ज्ञानधारण, शुद्ध मन और मधुर वचन एक श्रेष्ठ प्रार्थना है।’’
पैगम्बर हजरत मुहम्मद - ‘‘प्रार्थना (नमाज) धर्म का आधार व जन्नत की चाबी है।’’
श्री माँ - ‘‘प्रार्थना से क्रमश: जीवन का क्षितिज सुस्पष्ट होने लगता है, जीवन पथ आलोकित होने लगता है और हम अपनी असीम संभावनाओं व उज्ज्वल नियति के प्रति अधिकाधिक आश्वस्त होते जाते हैं।’’
महात्मा गांधी - ‘‘प्रार्थना हमारी दैनिक दुर्बलताओं की स्वीकृति ही नहीं, हमारे हृदय में सतत् चलने वाला अनुसंधान भी है। यह नम्रता की पुकार है, आत्मशुद्धि एवं आत्मनिरीक्षण का आह्वाहन है।’’
श्री अरविंद घोष - ‘‘यह एक ऐसी महान क्रिया है जो मनुष्य का सम्बन्ध शक्ति के स्त्रोत पराचेतना से जोड़ती है और इस आधार पर चलित जीवन की समस्वरता, सफलता एवं उत्कृष्टता वर्णनातीत होती है जिसे अलौकिक एवं दिव्य कहा जा सकता है।’’
सोलहवीं शताब्दी के स्पेन के संत टेरेसा के अनुसार प्रार्थना -’’प्रार्थना सबसे प्रिय सत्य (ईश्वर) के साथ पुनर्पुन: प्रेम के संवाद तथा मैत्री के घनिश्ठ सम्बन्ध हैं।’’
सुप्रसिद्ध विश्वकोष Brittanica के अनुसार प्रार्थना की परिभाषा - सबसे पवित्र सत्य (ईष्वर) से सम्बन्ध बनाने की इच्छा से किया जाने वाला आध्यात्मिक प्रस्फूटन (या आध्यात्मिक पुकार) प्रार्थना कहलाता है।
अत: कहा जा सकता है कि हृदय की उदात्त भावनाएँ जो परमात्मा को समर्पित हैं, उन्हीं का नाम प्रार्थना है। अपने सुख-सुविधा-साधन आदि के लिये ईश्वर से मांग करना याचना है प्रार्थना नहीं। बिना विचारों की गहनता, बिना भावों की उदात्तता, बिना हृदय की विशालता व बिना पवित्रता एंव परमार्थ भाव वाली याचना प्रार्थना नहीं की जा सकती।
वर्तमान में प्रार्थना को गलत समझा जा रहा है। व्यक्ति अपनी भौतिक सुविधओं व स्वयं को विकृत मानसिकता के कारण उत्पन्न हुए उलझावों से बिना किसी आत्म सुधार व प्रयास के ईश्वर से अनुरोध करता है। इसी ��ाव को वह प्रार्थना समझता है जो कि एक छल है, भ्रम है अपने प्रति भी व परमात्म सत्ता के लिये भी। अत: स्वार्थ नहीं परमार्थ, समस्याओं से छुटकारा नहीं उनका सामना करने का सामथ्र्य, बुद्धि नहीं हृदय की पुकार, उथली नहीं गहन संवेदना के साथ जब उस परमपिता परमात्मा को उसका साथ पाने के लिए आवाज लगायी जाती है उस स्वर का नाम प्रार्थना है।
गांधी जी कहते थे -
‘‘हम प्रभु से प्रार्थना करें- करुणापूर्ण भावना के साथ और उसने एक ही याचना करें कि हमारी अन्तरात्मा में उस करुणा का एक छोटा सा झरना प्रस्फुटित करें जिसमें वे प्राणिमात्र को स्नान कराके उन्हें निरंतर सुखी, समृद्ध और सुविकसित बनाते रहते हैं।’’
प्रार्थना के स्वरूप
प्रार्थना ईश्वर के बहाने अपने आप से ही की जाती है। ईश्वर सर्वव्यापी और परमदयालु है, उस हर किसी की आवश्यकता तथा इच्छा की जानकारी है। वह परमपिता और परमदयालु होने के नाते हमारे मनोरथ पूरे भी करना चाहता है। कोई सामान्य स्तर का सामान्य दयालु पिता भी अपने बच्चों की इच्छा आवश्यकता पूरी करने के लिए उत्सुक एवं तत्पर रहता है। फिर परमपिता और परमदयालु होने पर वह क्यों हमारी आवश्यकता को जानेगा नहीं। वह कहने पर भी हमारी बात जाने और प्रार्थना करने पर ही कठिनाई को समझें, यह तो ईश्वर के स्तर को गिराने वाली बात हुई। जब वह कीड़े-मकोड़ों और पशु-पक्षियों का अयाचित आवश्यकता भी पूरी करता है। तब अपने परमप्रिय युवराज मनुष्य का ध्यान क्यों न रखेगा ? वस्तुत: प्रार्थना का अर्थ याचना ही नहीं। याचना अपने आप में हेय है क्योंकि वही दीनता, असमर्थता और परावलम्बन की प्रवृत्ति उसमें जुड़ी हुई है जो आत्मा का गौरव बढ़ाती नहीं घटाती ही है।चाहे व्यक्ति के सामने हाथ पसारा जाय या भगवान के सामने झोली फैलाई जाय, बात एक ही है। चाहे चोरी किसी मनुष्य के घर में की जाय, चाहे भगवान के घर मन्दिर में, बुरी बात तो बुरी ही रहेगी। स्वावलम्बन और स्वाभिमान को आघात पहुँचाने वाली प्रक्रिया चाहे उसका नाम प्रार्थना ही क्यों न हो मनुष्य जैसे समर्थ तत्व के लिए शोभा नहीं देती।
वस्तुत: प्रार्थना का प्रयोजन आत्मा को ही परमात्मा का प्रतीक मानकर स्वयं को समझना है कि वह इसका पात्र बन कि आवश्यक विभूतियाँ उसे उसकी योग्यता के अनुरूप ही मिल सकें। यह अपने मन की खुषामद है। मन को मनाना है। आपे को बुहारना है। आत्म-जागरण है आत्मा से प्रार्थना द्वारा कहा जाता है, कि हे शक्ति-पुंज तू जागृत क्यों नहीं होता। अपने गुण कर्म स्वाभाव को प्रगति के पथ पर अग्रसर क्यों नहीं करता। तू संभल जाय तो सारी दुनिया संभल जाय। तू निर्मल बने तो सारे संसार की निर्बलता खिंचती हुई अपने पास चली जाए। अपनी सामथ्र्य का विकास करने में तत्पर और उपलब्धियों का सदुपयोग करने में संलग्न हो जाए, तो दीन-हीन, अभावग्रस्तों को पंक्ति में क्यों बैठना पड़े। फिर समर्थ और दानी देवताओं से अपना स्थान नीचा क्यों रहें।
प्रार्थना के माध्यम से हम विश्वव्यापी महानता के साथ अपना घनिश्ठ सम्पर्क स्थापित करने हैं। आदर्षों को भगवान की दिव्य अभिव्यक्ति के रूप में अनुभव करते हैं और उसके साथ जुड़ जाने की भाव-विव्हलता को सजग करते हैं। तमसाच्छन्न मनोभूमि में अज्ञान और आलस्य ने जड़ जमा ली है। आत्म विस्मृति ने अपने स्वरूप एवं स्तर ही बना लिया है। जीवन में संव्याप्त इस कुत्सा और कुण्ठा का निराकरण करने के लिए अपने प्रसुप्त अन्त:करण से प्रार्थना की जाय, कि यदि तन्द्रा और मूर्छा छोड़कर तू सजग हो जाय, और मनुष्य को जो सोचना चाहिए वह सोचने लगे, जो करना चाहिए सो करने लगे तो अपना बेड़ा ही पार हो जाए। अन्त:ज्योति की एक किरण उग पड़े तो पग-पग पर कठोर लगने के निमित्त बने हुए इस अन्धकार से छुटकारा ही मिल जाए जिसने शोक-संताप की बिडम्बनाओं को सब ओर से आवृत्त कर रखा है।
परमेष्वर यों साक्षी, दृश्टा, नियामक, उत्पादक,संचालक सब कुछ है। पर उसक जिस अंश की हम उपासना प्रार्थना करते हैं वह सर्वात्मा एवं पवित्रात्मा ही समझा जाना चाहिए। व्यक्तिगत परिधि को संकीर्ण रखने और पेट तथा प्रजनन के लिए ही सीमाबद्ध रखने वाली वासना, तृष्णा भरी मूढ़ता को ही माया कहते हैं। इस भव बन्धन से मोह, ममता से छुड़ाकर आत्म-विस्तार के क्षेत्र को व्यापक बना लेना यही आत्मोद्धार है। इसी को आत्म-साक्षात्कार कहते हैं। प्रार्थना में अपने उच्च आत्म स्तर से परमात्मा से यह प्रार्थना की जाती है कि वह अनुग्रह करे और प्रकाश की ऐसी किरण प्रदान करे जिससे सर्वत्र दीख पड़ने वाला अन्धकार -दिव्य प्रकाश के रूप में परिणत हो सके।
लघुता को विशालता में, तुच्छता को महानता में समर्पित कर देने की उत्कण्ठा का नाम प्रार्थना है। नर को नारायण-पुरुष को पुरुशोत्तम बनाने का संकल्प प्रार्थना कहलाता है। आत्मा को आबद्ध करने वाली संकीर्णता जब विषाल व्यापक बनकर परमात्मा के रूप में प्रकट होती है तब समझना चाहिए प्रार्थना का प्रभाव दीख पड़ा, नर-पशु के स्तर से नीचा उठकर, जब मनुष्य देवत्व की ओर अग्रसर होने लगे तो प्रार्थना की गहराई का प्रतीक और चमत्कार माना जा सकता है। आत्म समर्पण को प्रार्थना का आवश्यक अं�� माना गया है। किसी के होकर ही हम किसी से कुछ प्राप्त कर सकते हैं। अपने को समर्पण करना ही हम ईश्वर के हमार प्रति समर्पित होने की विवशता का एक मात्र तरीका है। ‘शरणागति’ भक्ति का प्रधान लक्षण माना गया है। गीता में भगवान ने आश्वासन दिया है कि जो सच्चे मन से मेरी शरणा में आता है, उनके योग क्षेम की सुख-शान्ति और प्र्रगति की जिम्मेदारी मैं उठाता हूँ। सच्चे मन और झूठे मन की शरणागति का अन्तर स्पष्ट है। प्रार्थना के समय तन-मन-धन सब कुछ भगवान के चरणों में समर्पित करने की लच्छेदार भाषा का उपयोग करना और जब वैसा करने का अवसर आवे तो पल्ला झाड़कर अलग हो जाना झूठे मन की प्रार्थना है आज इसी का फैशन है।
महात्मा गाँधी ने अपने एक मित्र को लिखा था -’’राम नाम मेरे लिए जीवन अवलम्बन है जो हर विपत्ति से पार करता है।’’ जब तुम्हारी वासनाएँ तुम पर सवार हो रही हों तो नम्रतापूर्वक भगवान को सहायता के लिए पुकारो, तुम्हें सहायता मिलेगी।
भगवान को आत्मसमर्पण करने की स्थिति में जीव कहता है- तस्यैवाहम् (मैं उसी का हूँ) तवैवाहम् (मैं तो तेरा ही हूँ) यह कहने पर उसी में इतना तन्मय हो जाता है - इतना घूल-मिल जाता है कि अपने आपको विसर्जन, विस्मरण ही कर बैठता है औ अपने को परमात्मा का स्वरूप ही समझने लगता है। त बवह कहता है - त्वमेवाहम् (मैं ही तू हूँ) षिवोहम् (मैं ही शिव हूँ) ब्रह्माऽस्मि (मैं ही ब्रह्मा हूँ)।
भगवान को अपने में और अपने को भगवान में समाया होने की अनुभूति की, जब इतनी प्रबलता उत्पन्न हो जाए कि उसे कार्य रूप में परिणित किए बिना रहा ही न जा सके तो समझना चाहिए कि समर्पण का भाव सचमुच सजग हो उठा। ऐसे शरणागति व्यक्ति को प्रार्थना द्रुतगति से देवत्व की ओर अग्रसर करती हैै और यह गतिषीलता इतनी प्रभावकारी होती है कि भगवान को अपनी समस्त दिव्यता समेत भक्त के चरणों में शरणागत होना पड़ता है। यों बड़ा तो भगवान ही है पर जहाँ प्रार्थना, समर्पण और शरणागति की साधनात्मक प्रक्रिया का सम्बन्ध है, इस क्षेत्र में भक्त को बड़ा और भगवान को छोटा माना जायगा क्योंकि अक्सर भक्त के संकेतों पर भगवान को चलते हुए देखा गया है। हमें सदैव पुरुषार्थ और सफलता के विचार करने चाहिए, समृद्धि और दयालुता का आदर्श अपने सम्म्मुख रखना चाहिये। किसी भी रूप में प्रार्थना का अर्थ अकर्मण्यता नहीं है। जो कार्य शरीर और मस्तिष्क के करने के हैं उनको पूरे उत्साह और पूरी शक्ति के साथ करना चाहिये। ईश्वर आटा गूंथने, न आयेगा पर हम प्रार्थना करेंगे तो वह हमारी उस योग्यता को जागृत कर देगा। वस्तुत: प्रार्थना का प्रयोजन आत्मा को ही परमात्मा का प्रतीक मानकर स्वयं को समझना है। इसे ‘आत्म साक्षात्कार’ भी कह सकते है। लघुता को विशालता में, तुच्छता को महानता में समर्पित कर देने की उत्कण्ठा का नाम प्रार्थना है। मनोविज्ञानवेत्ता डॉ. ��मेली केडी ने लिखा है- ‘अहंकार को खोकर समर्पण की नम्रता स्वीकार करना और उद्धत मनोविकारों को ठुकराकर परमेश्वर का नेतृत्व स्वीकार करने का नाम प्रार्थना है।’
अंग्रेज कवि टैनीसन ने कहा है कि ‘‘बिना प्रार्थना मनुष्य का जीवन पशु-पक्षियों जैसा निर्बोध है। प्रार्थना जैसी महाशक्ति जैसी महाशक्ति से कार्य न लेकर और अपनी थोथी शान में रहकर सचमुच हम बड़ी मूर्खता करते हैं। यही हमारी अंधता है।’’
प्रभु के द्वार में की गई आन्तरिक प्रार्थना तत्काल फलवती होती है। महात्मा तुकाराम, स्वामी रामदास, मीराबाई, सूरदास, तुलसीदास आदि भक्त संतों एवं महांत्माओं की प्रार्थनाएँ जगत्प्रसिद्ध हैं। इन महात्माओं की आत्माएँ उस परम तत्व में विलीन होकर उस देवी अवस्था में पहुँच जाती थीं जिसे ज्ञान की सर्वोच्च भूमिका कहते हैं। उनका मन उस पराशक्ति से तदाकार हो जाता था। जो समस्त सिद्धियों एवं चमत्कारों का भण्डार है। उस दैवी जगत में प्रवेश कर आत्म श्रद्धा द्वारा वे मनोनीत तत्व आकर्शित कर लेते थे। चेतन तत्व से तादात्म्य स्थापित कर लेने के ही कारण वे प्रार्थना द्वारा समस्त रोग, शोक, भय व्याधियाँ दूर कर लिया करते थे। भगवत् चिन्तन में एक मात्र सहायक हृदय से उद्वेलित सच्ची प्रार्थना ही है। हृदय में जब परम प्रभु का पवित्र प्रेम भर जाता है, तो मानव-जीवन के समस्त व्यापार, कार्य-चिन्तन इत्यादि प्रार्थनामय हो जाता है। सच्ची प्रार्थना में मानव हृदय का संभाशण दैवी आत्मा से होता है। प्रार्थना श्रद्धा, शरणागति तथा आत्म समर्पण का ही रूपान्तर है।
यह परमेश्वर से वार्तालाप करने की एक आध्यात्मिक प्रणाली है। जिसमें हृदय बोलता व विश्व हृदय सुनता है। यह वह अस्त्र है जिसके बल का कोई पारावार नहीं है। जिस महाशक्ति से यह अनन्त ब्रह्माण्ड उत्पन्न लालित-पालित हो रहा है, उससे संबंध स्थापित करने का एक रूप हमारी प्रार्थना ही है। प्रार्थना करन जिसे आता है उसे बिना जप, तप, मन्त्रजप आदि साधन किए ही पराशक्ति से तदाकार हो सकता है। अपने कर्तव्य को पूरा करना प्रार्थना की पहली सीढ़ी है। दूसरी सीढ़ी जो विपत्तियाँ सामने आएँ उनसे कायरों की भांति न तो डरें, न घबराएँ वरन् प्रभु से प्रार्थना करें कि वह हमें सबका सामना करने का साहस व धैर्य दें। तीसरा दर्जा प्रेम का है। जैसे-जैसे आत्मा प्रेमपूर्वक भावों द्वारा परमात्मा के निकट पहुँच जाती है वैसे ही वैसे आनंद का अविरल स्त्रोत प्राप्त होता है। प्रेम में समर्पण व विनम्रता निहित हैं। राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त कहते हैं-
‘‘हृदय नम्र होता है नहीं जिस नमाज के साथ।
��्रहण नहीं करता कभी उसको त्रिभुवन नाथ।।’’
गीता का महा-गीत, वह सर्वश्रेष्ठ गीत प्रार्थना भक्ति का ही संगीत है। भक्त परमानन्द स्वरूप परमात्मा से प्रार्थना के सुकोमल तारों से ही संबंध जोड़ता है। इन संतों की प्रार्थनाओं में भक्ति का ही संगीत है। जरा महाप्रभु चैतन्य के हृदय को टटोलो, मीराबाई अपने हृदयाधार श्रीकृष्ण के नामोच्चारण से ही अश्रु धारा बहा देते थे, प्रार्थना से मनुष्य ईश्वर के निकट से निकटतम पहुँच जाता है। संसार की अतुलित सम्पत्ति में भी वह आनन्द प्राप्त नहीं हो सकता। सच्चे भावुक प्रार्थी को, जब वह अपना अस्तित्व विस्मृत कर केवल आत्मस्वरूप में ही लीन हो जाता है, उस क्षण जो आनन्द आता है उसका अस्तित्व एक भुक्तभोगी को ही हो सकता है।
प्रार्थना विश्वास की प्रतिध्वनि है। रथ के पहियों में जितना अधिक भार होता है, उतना ही गहरा निशान वे धरती में बना देते हैं। प्रार्थना की रेखाएँ लक्ष्य तक दौड़ी जाती हैं, और मनोवांछित सफलता खींच लाती हैं। विश्वास जितना उत्कृष्ट होगा परिणाम भी उतने ही प्रभावषाली होंगे। प्रार्थना आत्मा की आध्यात्मिक भूख है। शरीर की भूख अन्न से मिटती है, इससे शरीर को शक्ति मिलती है। उसी तरह आत्मा की आकुलता को मिटाने और उसमें बल भरने की सत् साधना परमात्मा की ध्यान-आराधना ही है। इससे अपनी आत्मा में परमात्मा का सूक्ष्म दिव्यत्व झलकने लगता है और अपूर्व शक्ति का सदुपयोग आत्मबल सम्पन्न व्यक्ति कर सकते हैं। निष्ठापूर्वक की गई प्रार्थना कभी असफल नहीं हो सकती।
प्रार्थना प्रयत्न और ईश्वरत्व का सुन्दर समन्वय है। मानवीय प्रयत्न अपने आप में अधूरे हैं क्योंकि पुरुशार्थ के साथ संयोग भी अपेक्षित है। यदि संयोग सिद्ध न हुए तो कामनाएँ अपूर्ण ही रहती है। इसी तरह संयोग मिले और प्रयत्न न करे तो भी काम नहीं चलता। प्रार्थना से इन दोनों में मेल पैदा होता है। सुखी और समुन्नत जीवन का यही आधार है कि हम क्रियाषील भी रहें और दैवी ���िधान से सुसम्बद्ध रहने का भी प्रयास करें। धन की आकांक्षा हो तो व्यवसाय और उद्यम करना होता है साथ ही इसके लिए अनुकूल परिस्थितियाँ भी चाहिए ही। जगह का मिलना, पूँजी लगाना, स्वामिभक्त और ईमानदार, नौकर, कारोबार की सफलता के लिए चाहिए ही। यह सारी बातें संयोग पर अवलम्बित हैं। प्रयत्न और संयोग का जहाँ मिलाप हुआ वहीं सुख होगा, वहीं सफलता भी होगी।
आत्मा-शुद्धि का आवाहन भी प्रार्थना ही है। इससे मनुष्य के अन्त:करण में देवत्व का विकास होता है। विनम्रता आती है और सद्गुणों के प्रकाश में व्याकुल आत्मा का भय दूर होकर साहस बढ़ने लगता है। ऐसा महसूस होने लगता है, जैसे ��ोई असाधारण शक्ति सदैव हमारे साथ रहती है। हम जब उससे अपनी रक्षा की याचना, दु:खों से परित्राण और अभावों की पूर्ति के लिए अपनी विनय प्रकट करते हैं तो सद्व प्रभाव दिखलाई देता है और आत्म-संतोष का भाव पैदा होता है।
असंतोष और दु:ख का भाव जीव को तब परेषान करता है, जब तक वह क्षुद्र और संकीर्णता में ग्रस्त है। मतभेदों की नीति ही सम्पूर्ण अनर्थों की जड़ है। प्रार्थना इन परेषानियों से बचने की रामबाण औषधि है। भगवान की प्रार्थना में सारे भेदों को भूल जाने का अभ्यास हो जाता है। सृष्टि के सारे जीवों के प्रति ममता आती है इससे पाप की भावना का लोप होता है। जब अपनी असमर्थता समझ लेते है और अपने जीवन के अधिकार परमात्मा को सौंप देते हैं तो यही समर्पण का भाव प्रार्थना बन जाता है। दुर्गुणों का चिन्तन और परमात्मा के उपकारों का स्मरण रखना ही मनुष्य की सच्ची प्रार्थना है। महात्मा गाँधी कहा करते थे - मैं कोई काम बिना प्रार्थना के नहीं करता। मेरी आत्मा के लिए प्रार्थना उतनी ही अनिवार्य है, जितना शरीर के लिए भोजन। प्रार्थना एक उच्चस्तरीय आध्यात्मिक क्रिया है जिसमें सही भाव के साथ क्रम होना चाहिए। इसे पाँच चरणों में समझा जा सकता है-
विनम्रता
आत्मसजगता
कल्पना का उपयोग
परमार्थ का भाव
उत्साह एवं आनंद।
स्वामी रामतीर्थ के अनुसार प्रतिदिन प्रार्थना करने से अंत:करण पवित्र बनता है। स्वभाव में परिवर्तन आता है। हताशा व निराशा समाप्त हो उत्साह भर जाता है और जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। प्रार्थना आत्मविश्वास को जगाने का अचूक उपाय है।
अंत: की अकुलाहट को विश्वव्यापी सत्ता के समक्ष प्रकट कर देना ही तो प्रार्थना है। शब्दों की इस बाह्य स्थूल जगत में आवश्यकता होती है, परमात्मा से जुड़ना हो तो भाव चाहिये। प्रार्थना में हृदय बोलता है, शब्दो की महत्ता गौंण है। इसी कारण लूथर ने कहा था- ‘‘जिस प्रार्थना में बहुत अल्प शब्दा हों, वही सर्वोत्तम प्रार्थना है।’’
प्रार्थना उस व्यक्ति की ही फलित होती है जिसका अंत:करण शुद्ध है और जो सदाचारी है। इसी कारण संत मैकेरियस ने ठीक ही कहा है- ‘‘जिसकी आत्मा शुद्ध व पवित्र है, वही प्रार्थना कर सकता है क्योंकि अशु़़़द्ध हृदय से वह पुकार ही नहीं उठेगी जो परमात्मा तक पहुँच सके। ऐसे में केवल जिह्वा बोलती है और हृदय कुछ कह ही नहीं पाता।’’ जब एक साधारण व्यक्ति नाम मात्र की भिक्षा देते हुए, भिक्षापात्र की सफाई देख लेता है तो वह ईश्वर तो दिव्य अनुदान देने वाला है। वह भी देखेगा कि याचक उसके आदर्शों पर चलने वाला है या नहीं। सुप्रसिद्ध कवि होमर के शब्दों में - ‘‘जो ईश्वर की बात मानता है, ईश्वर भी उनकी ही सुनता है।’’
अत: प्रार्थना में एकाग्रता, निर्मलता, शांत मन:स्थिति, श्रद्धा-विश्वास और समर्पण का भाव होना चाहिये। यह परमात्म सत्ता से जुड़ने का एक भावनात्मक माध्यम है। पैगम्बर हजरत मुहम्मद के अनुसार- ‘‘प्रार्थना (नमाज) धर्म का आधार व जन्नत की चाबी है।’’
प्रार्थना का तात्त्विक विश्लेषण
प्रार्थना का निर्माण करने वाले कौन-कौन पृथक्-पृथक् तत्व हैं ? किन-किन वस्तुओं से प्रार्थना विनिर्मित होती है ? यह प्रश्न अनायास ही मन में उत्पन्न होता है।
प्रार्थना का प्रथम तत्त्व - विश्वास एवं श्रद्धा -प्रार्थना की आत्मा उच्चतर सत्ता में अखण्ड विश्वास है। छान्दोग्योपनिशद् में निर्देश किया गया है श्यदैक श्रद्धयाजुहोति तदेव वीर्यवत्तरं भवेति, अर्थात् श्रद्धापूर्वक की गई प्रार्थना ही फलवती होती है। प्रार्थना में साधक का जीता-जागता विश्वास होना अनिवार्य है। ‘‘सारा संसार ब्रह्ममय है तथा उस ब्रह्म का केन्द्र मेरे मन अन्त:करण में वर्तमान् है। मैं विश्वव्याप्त परमात्मा में सम्बन्ध रखता हूँ और प्रार्थना द्वारा उस संबंध को अधिक चमका देता हूँ’’ - ऐसा विश्वास रखकर हमें प्रार्थना में प्रवृत्ति करनी चाहिए। प्रार्थना स्वत: कोई शक्ति नहीं होती किन्तु विश्वास में वह महान शक्तिशालिनी मनोनीति फल प्रदान करने वाली बनती है। पहले अदृश्य शक्ति, परमात्मा की अपार शक्ति में भरोसा करो, पूर्ण विश्वास करो तब प्रार्थना फलीभूत होती है। प्रार्थना की शक्ति विश्वास से उत्तेजित हो उठती है। मन, वचन तथा कर्म तीनों ही आत्मश्रद्धा से परिपूर्ण हो उठें, प्रत्येक अणु-अणु साधक के विश्वास से रंजित हो उठें, तब ही उसे अभीश्ठ फल की प्राप्ति होती है।
प्रार्थना का मर्म है - विश्वास, जीता-जागता विश्वास, प्रार्थना में श्रद्धा सबसे मूल्यवान तथ्य है। श्रद्धा की अखण्ड धारा रोम-रोम में, कण-कण में, अणु-अणु में भ लो, तब प्रार्थना आरम्भ करो। श्रद्धा प्रत्येक वस्तु को असीम, आंतरिक शक्ति प्रचुरता से अनुप्राणित करती हुई अग्रसर होती है। श्रद्धाभाव के बिना समस्त वस्तुएँ प्राणहीन, जीवनहीन, निरर्थक एवं व्यर्थ हैं। श्रद्धा से युक्त प्रार्थना बुद्धि को प्रधानता नहीं देती प्रत्युति इसे उच्चतर धारणा शक्ति की ओर बढ़ाती है जिससे हमारा मनोराज्य विचार और प्राण के अनन्त साम्राज्य के साथ एकाकार हो जाता है। इस गुण से प्रत्येक प्रार्थी की बुद्धि में अभिनव शक्ति एवं सौन्दर्य आ जाते हैं तथा उसकी चेतना उस अनन्त ऐश्वर्य की ओर उन्मुक्त हो जाती है, जो वान्छां कल्पतरु’ है तथा जिसके बल पर मनुष्य मनोवांछित फल पा सकता है। स्वास्थ्य, सुख, उन्नति, आयु जो कुछ भी हम प्राप्त करना चाहे वह श्रद्धा के द्वारा ही मिल सकते हैं। श्रद्धा उस अलौकिक साम्राज्य का राजमार्ग है। श्रद्धा से ही प्रार्थना में उत्पादक शक्ति, रचनात्मक बल का संचार होता है।
प्रार्थना का द्वितीय तत्त्व - एकाग्रताप्रार्थना एक प्रकार का मानसिक व्यायाम है। यह एकाग्रता तथा ध्यान के नियम��ं पर कार्य करता है। जितनी ही प्रार्थना में एकाग्रता होगी, निष्ठा होगी और जितन एक रसता से ध्यान लगाया जाएगा, उतनी ही लाभ की आशा करनी चाहिए। एकाग्रता पर ऐसी अद्भूत मौन-शक्ति है जो मन की समस्त शक्तियों को एक मध्यबिन्दु पर केन्द्रित कर देती है। सूर्य रश्मियाँ छिन्न-भिन्न रहकर कुछ गर्मी उत्पन्न नहीें करतीं किन्तु शीशे द्वारा उन रश्मियों को जब एक केन्द्र पर डाला जाता है, तो उनमें अद्भूत शक्ति का संचार होता है। इसी प्रकार एकाग्र प्रार्थना से मन की समस्त बिखरी हुर्इं शक्तियाँ एक केन्द्र बिन्दु पर एकाग्र होती है।
प्रार्थना का रहस्य मन की एकाग्रता पर है। प्रार्थना पर, प्रार्थना के लक्ष्य पर, मन की समस्त चित्तवृत्तियों को लगा देना, इधर-उधर विचलित न होने देना, निरन्तर उसी स्थान पर दृढतापूर्वक लगाये रखने की एकाग्रता है। जहाँ साधारण व्यक्ति किंकर्त्तव्यविमूढ़ से खड़े रह जाते हैं, वहाँ एकाग्रचित वाला साधक थोड़ी सी ���्रार्थना के बल पर अद्भूत चमत्कारों का प्रदर्शन करता है।
प्रार्थना का तृतीय तत्त्व - सृजनात्मक ध्यानप्रार्थना का तृतीय तत्व सृजनात्मक ध्यान है। एकाग्रता में ध्यान शक्ति की अभिवृद्धि होती है। महान पुरुष का निश्चित लक्षण उत्तम साधन ही है। ध्यान वह तत्व है जिससे स्मृति का ताना-बाना विनिर्मित होता है। सर आइजक न्यूटन ने तो यहाँ तक निर्देश किया है यदि विज्ञान की उन्नति का कोई रहस्य है, तो वह गंभीर ध्यान ही है। डॉ. लेटसन लिखते हैं कि ‘‘ध्यान ही एकाग्रता शक्ति की प्रधान कुंजी है। ध्यान के अभाव में प्रार्थना द्वारा कोई भी महान् कार्य सम्पादन नहीं किया जा सकता। अत्यन्त पूर्ण इन्द्रिय बोध, उत्तम धारणा शक्ति, सृजनात्मक कल्पना बिना गंभीर ध्यान के कुछ भी सम्पादन नहीें कर सकते।
ध्यान अन्त:करण की मानसिक क्रिया है। इसमें केवल मन:शान्ति की आवश्यकता है। यहाँ बाह्य मिथ्याडम्बरों की आवश्यकता नहीं। ध्यान तो अन्तर की वस्तु है-करने की चीज है, इसमें दिखावा कैसा ? चुपचाप ध्यान में संलग्न हो जाइए, दिन-रात परमप्रभु का आलिंगन करते रहो। भगवान के दिव्य मूर्ति को अन्त:करण के कमरे में बन्द कर लो, तथा बाह्य जगत को विस्मृत कर दो। वस्तुत: ऐसे दिव्य साक्षात्कार के समक्ष बाह्य जगत् की स्मृति आती ही किसे है ? ऐसा ध्यान अमर शान्ति प्रसार करने वाला है।
ध्यान करते समय नेत्र बन्द करना आवश्यक है। नेत्र मूँदने से यह प्रपंचमय विश्व अदृश्य हो जाता है। विश्व को दूर हटा देना और ध्येय पर सब मन:शक्तियों को केन्द्रित कर देना ही ध्याान का प्रधान उद्देश्य है, परन्तु केवल बाहर का दृश्य अदृश्य होने से पूर्ण नहीं होता जब तक हमारा मन भीतर नवीन दृश्य निर्माण करता रहे। अत: भीतर के नेत्र भी बन्द कीजिए। इस प्रकार जब स्थूल और सूक्ष्म दोनों जगत् अदृश्य हो जाते हैं, तभी तत्काल और तत्क्षण एकाग्रता हो जाती हैै। ध्यान करने की विधि का उल्लेख सांख्य तथा येाग दोनों ने ही बताया है पर सांख्य का ‘ध्यानं निर्विशयं मन:’ अर्थात मन को निर्विशय बनाना, ब्लैंक बनाना महा कठिन है, परन्तु योग का ध्यान सबकी पहुँच के भीतर है। किसी वस्तु या मनुष्य का मानस-चित्र निर्माण कर उसके प्रति एकता, एकाग्रता करना व उसके साथ पूर्ण तदाकार हो जाना इसी का नाम योग शास्त्र का ध्यान है। ऐसे ही ध्यान के अभ्यास से प्रार्थना में शक्ति का संचार होता है।
प्रार्थना का चतुर्थ तत्त्व - आत्म निवेदनयह प्रार्थना का अंतिम तत्त्व है। अत्यन्त श्रद्धा पूर्वक प्रेम से आप अपना निवेदन प्रभु के दरबार में कीजिए। आपकी समस्त कामनाएँ पूर्ण होंगी। जहाँ कहीं भक्तों ने दीनता से प्रार्थना की है उस समय उनका अन्त:करण उनका चित्त प्रभु प्रेम में सराबोर हो गया है, उस प्रशान्त स्थिति में गद्गद् होकर उन्हें आत्मसुख की उपलब्धि हुई है। एक भक्त का आत्म निवेदन देखिए। वह कहता है, हे दयामय प्रभु ! मैं संसार में अत्यन्त त्रसित हूँ, अत्यन्त भयाकुल हो रहा हूँ। आपकी अपार दया से ही मेरे विचार आपके चरणों में खिंचे हैं। मैं अत्यन्त निर्बल हूँ- आप मुझे सब प्रकार का बल दीजिए और भक्ति में लगा दीजिए। गिड़गिड़ा कर प्रभु के प्रेम के लिए, भक्ति के लिए आत्म-निवेदन करना सर्वोत्तम है।
आपका आत्म-निवेदन आशा से भरा हो, उसमें उत्साह की उत्तेजना हो, आप यह समझे कि जो कुछ हम निवेदन कर रहे हैं वह हमें अवश्य प्राप्त होगा। आप जो कुछ निवेदन करें वह अत्यन्त प्रेमभाव से होना चाहिए। उत्तम तो यह है कि जो निवेदन किया गया हो वह सब प्राणियों के लिए हो, केवल अपने लिए नहीं।
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अमिताभ बच्चन 
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justmyhindi · 4 years ago
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Pregnant कैसे करे? गर्भधारण करने का सही तरीका
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कुछ शोध करने के बाद मुझे यही पता चला। "मैं गर्भवती क��से हो सकती हूँ?" "भारत का नंबर एक सर्च इंजन" यह "कैसे करें" प्रश्न है। इसका मतलब यह है कि भारत, जो जनसंख्या में दूसरे स्थान पर है, में लाखों लोग हैं जो यह नहीं जानते कि जन्म देते समय क्या करना चाहिए। यह आंशिक रूप से इस तथ्य के कारण है कि हमारे समाज में इस विषय के बारे में बात करना और सुनना स्वीकार्य नहीं है। सेक्स का भी इससे संबंध है। सही जानकारी नहीं होने के कारण लोगों को अक्सर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। गर्भावस्था के बारे में अच्छे लेख खोजने के बजाय, जब मैंने इस विषय पर खोज की तो मुझे हिंदी सेक्स कहानियां मिलीं। तो आज मैं साझा कर रहा हूँ "गर्भवती कैसे प्राप्त करें खोजकर्ता Justmyhindi.com पर "हिंदी में" खोज कर अच्छी जानकारी पा सकते हैं। दोस्तों, मैंने यहां जो जानकारी इकट्ठी की है, वह विभिन्न वेबसाइटों से एकत्र की गई है, जहां विशेषज्ञ डॉक्टर गर्भावस्था के बारे में जानकारी साझा करते हैं। हालांकि मुझे लगता है कि यह जानकारी आपके लिए उपयुक्त है, लेकिन उपरोक्त में से किसी को भी लागू करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करना एक अच्छा विचार होगा।
How to get pregnant in hindi? 
Pregnant कैसे करे आइए सबसे पहले आपको प्रेग्नेंसी के बारे में कुछ फैक्ट्स बताते हैं। बच्चे पैदा करने की इच्छा रखने वाले सभी लोगों में से लगभग 85% एक वर्ष के भीतर सफल हो जाते हैं। पहले महीने में सफल होने वालों में से केवल 22% ही माता-पिता बन पाते हैं। एक साल से अधिक समय तक प्रयास करने के बाद बच्चा पैदा करना मुश्किल हो सकता है। ऐसे जोड़ों को बांझ माना जाता है। बच्चे को जन्म देने के लिए पार्टनर के बीच सेक्स करना जरूरी है। पुरुष का लिंग (लिंग), महिला की योनि (��ोनि) में डाला जाना चाहिए। फिर उसे यह सुनिश्चित करने के लिए शुक्राणु को उसकी योनि में छोड़ना होगा कि शुक्राणु गर्भाशय (गर्भाशय) के पास एकत्र न हो। यह सेक्स के दौरान अपने आप होता है इसलिए आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। गर्भाधान के समय के आसपास संभोग करना चाहिए। ओव्यूलेशन उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसके द्वारा एक महिला के अंडे से एक अंडा लिया जाता है। ओव्यूलेशन (एमसी) मासिक धर्म चक्र का एक हिस्सा है। यह एमसी के 14वें दिन से शुरू होता है जब रक्तस्राव शुरू होता है। होता है। महिलाओं को बच्चे पैदा करने के लिए अपने पार्टनर के साथ सेक्स पर जाने की जरूरत नहीं है। डॉक्टरों का मानना ​​है कि अंडाशय से अंडे को गर्भाशय में ले जाने के लिए फैलोपियन ट्यूब जिम्मेदार है। यह शुक्राणु को अपने आप खींच लेता है और अंडे के साथ मिलाने का प्रयास करता है। महिलाओं के लिए तृप्ति वैकल्पिक है।
प्रेग्नेंट होने के तरीके हिंदी में
1) तनाव मुक्त रहने का प्रयास करके Pregnant कैसे करे इसमें कोई शक नहीं कि अत्यधिक तनाव आपके प्रजनन कार्य में बाधा डालेगा। तनाव कामेच्छा को नष्ट कर सकता है, और चरम स्थितियों में महिलाओं में मासिक धर्म की प्रक्रिया को बाधित कर सकता है। शांत मन का आपके शरीर पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और आपके गर्भवती होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके लिए आप नियमित श्वास-व्यायाम और विश्राम तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं। 2) अपने डॉक्टर से सलाह लेके Pregnant कैसे करे बच्चा पैदा करने की योजना बनाने से पहले डॉक्टर से सलाह लें। यह पुष्टि करेगा कि आप स्वस्थ हैं और किसी बीमारी या अन्य शारीरिक समस्याओं से पीड़ित नहीं हैं। इससे आपके यौन संचारित रोगों के होने की संभावना कम हो जाएगी। आपको फाइब्रॉएड, ओवेरियन सिस्ट और एंडोमेट्रियोसिस जैसी समस्याओं के लिए भी जांच कराने की आवश्यकता होगी। 3) सेक्स के बाद थोड़ा आराम करें सेक्स के बाद कुछ देर लेटने से महिलाओं की योनि से शुक्राणु निकलने की संभावना नहीं रहती है। इसलिए बेहतर है कि सेक्स के बाद 15-20 मिनट तक लेट जाएं। 4) किसी भी प्रकार का नशा न करें ड्रग्स, ड्रग्स, सिगरेट या शराब का सेवन पुरुष और महिला दोनों के हार्मोन के संतुलन को बिगाड़ सकता है। और आपकी प्रजनन क्षमता को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। और बच्चों में जन्मजात विसंगतियाँ भी हो सकती हैं। 5) दवाओं का प्रयोग कम से कम करें कई दवाएं, यहां तक ​​कि सामान्य दवाएं जो आसानी से उपलब्ध होती हैं, आपकी प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव डाल सकती हैं। कई चीजें ओव्यूलेशन को रोक सकती हैं, इसलिए कम से कम दवाओं का इस्तेमाल करें। बेहतर होगा कि आप कोई भी दावा लेने ��ा छोड़ने से पहले डॉक्टर से सलाह लें। स्व-उपचार घातक हो सकता है, ऐसा जोखिम न लें। 6) स्नेहक (Lubricants)  से बचें योनि को चिकनाई देने के लिए उपयोग किए जाने वाले कुछ जैल, तरल पदार्थ आदि शुक्राणु को महिला प्रजनन पथ से यात्रा करने से रोक सकते हैं। इसलिए डॉक्टर से पूछकर ही इनका इस्तेमाल करें। वैसे, किसी कृत्रिम स्नेहक का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि संभोग के दौरान शरीर स्वयं पर्याप्त मात्रा में तरल का उत्पादन करता है जो शुक्राणु और डिंब दोनों के लिए स्वस्थ होता है। 7) ओव्यूलेशन के समय के आसपास सेक्स करके Pregnant कैसे करे स्त्री रोग विशेषज्ञों का मानना ​​है कि एक महिला को अपने अंडाशय से बाहर आने के 24 घंटे के भीतर अपने अंडे निषेचित कर लेने चाहिए। एक पुरुष का शुक्राणु एक महिला के प्रजनन तंत्र में केवल 48 से 72 घंटों के बीच ही जीवित रह सकता है। अंडे और शुक्राणु से बच्चा पैदा करने के लिए जिस भ्रूण की आवश्यकता होती है, वह बनता है। जोड़े को हर 72 घंटे में कम से कम एक बार सेक्स करना चाहिए। इस दौरान पुरुष को महिला के शीर्ष पर होना चाहिए ताकि शुक्राणु के रिसाव की संभावना कम हो। पुरुषों को यह भी याद रखना चाहिए कि 48 घंटे से अधिक समय तक स्खलन नहीं करना चाहिए। इससे उनके शुक्राणुओं की संख्या में गिरावट आ सकती है, जिससे अंडे को निषेचित करना मुश्किल हो सकता है। आपको कैसे पता चलेगा कि ओव्यूलेशन कब हो रहा है? ओव्यूलेशन का समय जानने से पता चलता है कि अंडा कब फर्टिलाइज करने के लिए तैयार है। यह आपके मासिक धर्म चक्र को जानकर किया जा सकता है। इसमें 24 से 40 दिन तक का समय लग सकता है। एक बार जब आपको पता चल जाए कि आपकी अगली माहवारी कब आएगी, तो 12-16 दिन पहले का पता लगाएं। यह आपके ओवुलेशन का समय है। उदाहरण के लिए: यदि मासिक धर्म 30 तारीख से शुरू होता है, तो 14 से 18 के बीच का समय ओव्यूलेशन होने का समय होगा। आप अपने बच्चे को जन्म देने का सबसे अच्छा समय निर्धारित करने के लिए भी इस विधि का उपयोग कर सकती हैं। अब आप योनि से तरल पदार्थ को अपनी उंगली पर डालकर अपने बच्चे के साथ यौन संबंध बना सकती हैं। 8) स्वस्थ जीवन जिएं बच्चे पैदा करने की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए जीवनसाथी और पति के लिए स्वस्थ जीवन शैली का होना जरूरी है। इससे बच्चे की जिंदगी आसान हो जाएगी। सुनिश्चित करें कि आप पर्याप्त फल और सब्जियां खाएं। महिला और पुरुष दोनों ही विटामिन की सही मात्रा लेकर अपनी प्रजनन क्षमता को बढ़ा सकते हैं। रोजाना व्यायाम करने से भी होता है फायदा सिगरेट पीने वाली महिलाओं में बच्चे पैदा करने की संभावना 40% कम होती है। 9) अंडकोष (अंडकोष) को अत्यधिक गर्मी से बचाएं यदि शुक्राणु उच्च तापमान के संपर्क में आते हैं, तो वे मृत हो सकते हैं। इसलिए अंडकोष (जहां शुक्राणु बनते हैं) शरीर के बाहर होते हैं ताकि वे ठंडे रह सकें। वाहन चलाते समय ��सी मनके वाली सीट का प्रयोग करें जिससे कुछ हवा निकल सके। और इस हिस्से को ज्यादा गर्म पानी से न धोएं। वैसे तो आमतौर पर इतनी सावधानी बरतने की जरूरत नहीं होती है, लेकिन जो लो��� आग की भट्टी या किसी गर्म स्थान पर लंबे समय तक काम करते हैं, उन्हें सावधान रहने की जरूरत है। एक्स-रे तकनीशियनों को हमेशा लेड कोट पहनकर काम करना चाहिए अन्यथा बच्चे में जन्मजात विसंगतियां हो सकती हैं। FAQ’S प्रेग्नेंट होने के लिए कब सम्बन्ध बनाना चाहिए? पीरियड्स खत्म होने के बाद आप प्रेग्नेंट हो सकती हैं। वास्तव में, गर्भवती होने में आपकी अवधि के बाद के 5 दिन और ओव्यूलेशन का दिन शामिल होता है। अगर आप गर्भधारण करने की योजना बना रही हैं तो आपको सप्ताह में दो या तीन बार सेक्स करने की सलाह दी जाती है। क्या खाने से जल्दी प्रेग्नेंट होते हैं? हरी पत्तेदार सब्जियों, साबुत अनाज और अंडे के साथ-साथ मांस में भी विटामिन बी विटामिन अच्छी मात्रा में पाया जाता है। फोलिक एसिड भ्रूण के विकास और वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है। यह प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है। फोलिक एसिड सोयाबीन, आलू, गेहूं, चुकंदर, केला और ब्रोकोली सहित कई खाद्य पदार्थों में पाया जा सकता है। गर्भ ठहराने के लिए क्या करे? संभोग के दौरान वैसलीन, जेली और तेल को बंद कर देना चाहिए क्योंकि यह शुक्राणुओं की गति को कम कर सकता है। संभोग के तुरंत बाद अपनी पत्नी को अपने घुटनों को छाती से लगाने के लिए कहें। 10 से 15 मिनट तक आप इस पोजीशन में रह सकते हैं। यह आसन आपके गर्भधारण की संभावना को बढ़ाता है। जल्दी बच्चा पैदा कैसे करें? फर्टाइल पीरियड्स के दौरान हर दूसरे दिन सेक्स करें उपजाऊ खिड़की ओव्यूलेशन से 5 दिन पहले, और उसके दिन तक 6 दिनों तक चलती है। हर महीने में ये वो दिन होते हैं जब एक महिला के सेक्स के जरिए गर्भवती होने की सबसे अधिक संभावना होती है। गर्भ ठहरने का सही समय कब होता है? 22 से 28 की उम्र के बीच गर्भधारण करना सबसे अच्छा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस उम्र में महिला मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होती है। गर्भवती होने के लिए, संभोग एक महत्वपूर्ण कारक है। अगर महिला के रिश्ते में ऑर्गेज्म है तो गर्भवती होने की संभावना बढ़ जाती है। अन्य पढ़े : भारत की प्रथम महिला आईपीएस कौन थी उनका जीवन परिचय Jio Phone से ऑनलाइन पैसे कैसे कमाए? 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drvinodrainablog · 4 years ago
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बेस्ट इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट इन दिल्ली ( डॉ विनोद रैना ) 
हमें कॉल करें :- 7687878787, 9871605858
इनफर्टिलिटी का मतलब है बच्चा पैदा करने की क्षमता न होना। इनफर्टिलिटी महिला और पुरुष, दोनों में हो सकती है। आमतौर पर महिलाओं में 20 से 35 साल की उम्र को रिप्रोडक्टिव एज यानी प्रजनन की उम्र माना जाता है। इसमें भी 23 से 28 साल की उम्र को गर्भधारण के लिहाज से बेहतरीन माना जाता है। 35 साल की उम्र के बाद गर्भधारण करने पर कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, मसलन बच्चे का वजन कम होना, बच्चे में जन्मजात बीमारी होना, जल्दी डिलिवरी होना आदि। शादी के एक-डेढ़ साल तक किसी गर्भनिरोधक का इस्तेमाल न करने के बावजूद अगर महिला गर्भधारण नहीं कर पाती है तो उसे इनफर्टिलिटी कहा जाता है। बच्चा न होने की वजह मोटे तौर पर 30 फीसदी मामलों में महिला में कमी, 30 फीसदी मामलों में पुरुष में कमी और 40 फीसदी मामलों में दोनों में कमी बच्चा न होने की वजह बनती है।बांझपन तब होता है जब एक जोड़ा नियमित रूप से असुरक्षित यौन संबंध रखने के बाद गर्भ धारण नहीं कर सकता है।
इनफर्टिलिटी के कारण:-
पुरूष के कारण हैं :-  पुरूष के सम्पूर्ण स्वास्थ्य एवं जीवन शैली का प्रभाव शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है। जिन चीज़ों से शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता घटती है उस में शामिल हैं - मदिरा एवं ड्रग्स, वातावरण का विषैलापन जैसे कीटनाशक दवाएं, धूम्रपान, मम्पस का इतिहास, कुछ विशिष्ट दवाँएं तथा कैंसर के कारण रेडिएशन।
औरतों में अनुर्वरता के कारण हैं - अण्डा देने में कठिनाई, बन्�� अण्डवाही ट्यूबें, गर्भाशय की स्थिति की समस्या, युटरीन फाइवरॉयड कहलाने वाले गर्भाशय के लम्पस। बच्चें को जन्म देने में बहुत सी चीजें प्रभाव डाल सकती हैं। इनमें शामिल हैं, बढ़ती उम्र, दबाव, पोष��� की कमी, अधिक वजन या कम वजन, धूम्रपान, मदिरा, यौन संक्रमिक रोग, हॉरमोन्स में बदलाव लाने वाली स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं।
डॉ। रैना सेफ हैंड्स क्लिनिक चिकित्सा उद्योग में 21 साल के अनुभव के साथ दिल्ली में सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट क्लिनिक हैं, हमने दुनिया भर के 1.5 लाख से अधिक रोगियों  का सफलइलाज किया है | मैं आपको सुझाव दूंगा अगर आप इनफर्टिलिटी  जैसी समस्या का सामना कर रहे हैं तो आप  डॉ। रैना सेफ हैंड्स क्लिनिक से संपर्क कर सकते है | दिल्लीमें डॉ। विनोद रैना सबसे अच्छे सेक्सोलॉजिस्ट हैं | आप डॉ विनोद रैना सेक्सोलॉजिस्ट  के पास आये और अपनी इनफर्टिलिटी जैसी गंभीर समस्या का जड़ से इलाज करवाएं | इस प्रकार की समस्याएं आपके रिश्ते के लिए खतरनाक हैं। ऐसी समस्या के कारण आपको बहुत नुकसान हो सकता है। इनफर्टिलिटी के इलाज के लिए आप इस नंबर पर कॉल करे :- 7687878787, 9871605858.
इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट डॉ विनोद रैना के द्वारा डॉ। रैना सेफ हैंड्स सेक्सोलॉजिस्ट क्लिनिक बेस्ट सेक्सोलॉजिस्ट  डॉ विनोद रैना हमें -7687878787, 9871605858 पर कॉल करेंक्लिनिक पता: - E-34,साकेत एकता अपार्टमेंट नीयर मालवीय नगर मेट्रो स्टेशन गेट नंबर -4 के पास नई दिल्ली -110017
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kisansatta · 4 years ago
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पुरुषों में वीर्य की कमी होने के लक्षण,जानें इसके उपाय
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वीर्य की कमी से शुक्राणुओं की संख्या में कमी भी कहा जाता है। वीर्य में शुक्राणु के पूर्ण उन्मूलन को एडुपर्मिया कहा जाता है, शुक्राणु की कमी के कारण स्त्रीयों में गर्भ धारण करने की संभावना बहुत कम हैं। इसके बावजूद, बहुत से पुरुष जिनके शुक्राणु कम हैं, वे बच्चे पैदा करने में सक्षम हैं।
आसान शब्दों में कहे तो, पुरुष में उत्तेजना और स्खलन के दौरान मूत्रमार्ग से निकलने वाले द्रव को वीर्य कहा जाता है। सामान्य शुक्राणु की संख्या कितनी होती है. एक पुरुष के वीर्य में शुक्राणु की संख्या सामान्य रूप से 15 मिलियन शुक्राणु से 200 मिलियन से अधिक शुक्राणु प्रति मिलीलीटर (एमएल) तक होती है। यदि एक मिलीलीटर वीर्य में पुरुष वीर्य में 15 मिलियन से कम शुक्राणु होते हैं, तो उन्हें शुक्राणु की समस्या कम होती है।
शुक्राणु की कमी के कारण
शुक्राणु गठन एक बहुत ही दुर्लभ प्रक्रिया है, इसके लिए, हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी ग्रंथि को भी वृषण के साथ काम करना पड़ता है।
भारी धातुओं के संपर्क में – सीसा या अन्य भारी धातुओं के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है।
वृषण अधिक गरम होना – यह आपके शुक्राणुओं की संख्या को भी प्रभावित करता है।
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मोटापा – मोटापा शरीर में हार्मोनल परिवर्तन का कारण बन सकता है, जिसके परिणामस्वरूप पुरुषों की प्रजनन क्षमता कमजोर हो जाती है।
अत्य���िक दवा का सेवन – यह समस्या अक्सर उन लोगों में देखी जाती है जो अत्यधिक मात्रा में शराब, धूम्रपान का सेवन करते हैं।
संक्रमण – कुछ संक्रमण शुक्राणु और स्वस्थ लोगों के उत्पादन को प्रभावित करते हैं जैसे कि कुछ यौन संचारित रोग।
तनाव – लंबे समय तक तनाव के कारण, शुक्राणु पैदा करने वाले कुछ आवश्यक हार्मोन असंतुलित होते हैं।
शुक्राणु की कमी से बचाव
धूम्रपान नहीं करना चाहिए सीमित मात्रा में शराब पीना या पूरी तरह से बंद कर देना दवाओं से परहेज करें वजन कम करना
वीर्य की कमी के लक्षण
यौन गतिविधि की समस्याएं – स्तंभन को बनाए रखने में कामेच्छा में कमी या कठिनाई। चेहरे या शरीर के बाल या क्र��मोसोमल या हार्मोन असामान्यता के अन्य लक्षणों का नुकसान यदि आप नियमित और बिना कंडोम संभोग के एक साल बाद भी अपने यौन साथी को गर्भ धारण करने में असमर्थ हैं। यौन गतिविधि से संबंधित समस्याएं, जैसे लिंग का सख्त होना, स्खलन की समस्या, यौन रुचि की घटनाएं या अन्य यौन गतिविधि की समस्याएं। दर्द, वृषण क्षेत्र में असुविधा, गांठ या सूजन। वृषण, प्रोस्टेट या यौन समस्याओं का इतिहास वृषण, प्रोस्टेट या यौन समस्याओं से पहले हो सकता है। कमर (पेट और जांघ का हिस्सा), वृषण, लिंग या अंडकोष की सर्जरी की गई है।
  शुक्राणु की जांच
ऑलिगॉस्पर्मिया के अधिकांश मामलों का पता तब चलता है जब एक बार एक पुरुष पिता बनने की कोशिश करता है, और जब प्राकृतिक असुरक्षित संभोग के एक साल बाद गर्भावस्था नहीं होती है, तो प्रजनन स्थिति के लिए पुरुष और महिला दोनों साथी का परीक्षण किया जाता है।
एक स्त्री रोग विशेषज्ञ या बांझपन सलाहकार वीर्य विश्लेषण परीक्षण यानी स्पर्म काउंट टेस्ट से करवाते है। शुक्राणु की कमी या ओलिगोस्पर्मिया का निदान वीर्य विश्लेषण परीक्षण में पाए गए कम शुक्राणुओं की संख्या पर आधारित होता है।
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वीर्य की कमी को दूर करने के उपाय
पर्याप्त व्यायाम और नींद लें
कई अध्ययनों से पता चलता है कि अधिक वजन वाले लोग अपना वजन कम करते हैं और व्यायाम से शुक्राणुओं की संख्या बढ़ जाती है और उनकी गुणवत्ता में सुधार होता है। इसलिए पर्याप्त नींद लें और शुक्राणु की मात्रा में सुधार के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें।
धूम्रपान छोड़ने
आप नहीं जानते होंगे, लेकिन तंबाकू और धूम्रपान शुक्राणु की गुणवत्ता को कम करते हैं। 2016 में किए गए एक अध्ययन से यह भी प���ा चला है कि धूम्रपान और शुक्राणु का निकट संबंध है। तो शुक्राणु की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए, आज धूम्रपान छोड़ दें। धूम्रपान के अलावा आपको शराब और ड्रग्स से भी दूर रहना चाहिए।
दवाओं का उपयोग
कुछ प्रकार की दवाओं का सेवन भी संभावित रूप से एक पुरुष के शुक्राणु उत्पादन को कम कर सकता है। एक बार जब कोई व्यक्ति दवा लेना बंद कर देता है, तो उसके शुक्राणुओं की संख्या फिर से बढ़ जाती है। इन दवाओं में एंटीबायोटिक्स, एंटी-एण्ड्रोजन, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-डिप्रेसेंट आदि शामिल हैं।
मेंथी
स्पर्म काउंट बढ़ाने और सुधारने में मेथी बहुत फायदेमंद है। इसके लिए आपको अपने आहार में मेथी को शामिल करना चाहिए। इसके अलावा, मेथी वाले उत्पादों को अपने आहार का हिस्सा बनाएं।
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पर्याप्त विटामिन डी
2019 में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि विटामिन डी और कैल्शियम का पर्याप्त स्तर शुक्राणु स्वास्थ्य में सुधार करता है। शोध बताते हैं कि कैल्शियम की कमी शुक्राणुओं की संख्या पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। इसलिए कैल्शियम और विटामिन डी युक्त चीजों को अपने आहार का हिस्सा बनाएं।
अश्वगंधा
अश्वगंधा, जिसे भारतीय जिनसेंग के रूप में भी जाना जाता है, कई प्रकार के यौन रोगों को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्पर्म काउंट बढ़ाने के लिए आप अश्वगंधा का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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onlinekhabarapp · 5 years ago
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किन हुन्छ यौन समस्या ?
मानिसको यौन जीवन उसको जीवनशैलीमा निर्भर गरेको हुन्छ । जीवनशैली परिवर्तन गर्ने वित्तिकै पहिलो प्रभाव उसको यौन जीवनमा पर���को हुन्छ ।
आधुनिक जीवनशैली वा सुविधासम्पन्न जीवन, दिनानुदिन मध्यरातसम्मको व्यस्तता, शारीरिक श्रमको कमी, जंक फास्टफूड खाना र रातीसम्म पार्टि धुमपान र मद्यपानको सेवनले मानिसको यौन जीवनमा नकारात्मक प्रभाव पारेको हुन्छ र यौन रोग जस्ता समस्या उत्पन्न हुन सक्छ ।
जति तीव्र गतिमा विज्ञानले सुख सुविधा दिएको छ त्यति नै मानिसमा एकोहोरोपन, तनाव, मोटोपन, उच्च रक्तचाप, माइग्रेन, मधुमेह र हृदय रोग जस्ता मानसिक र शारीरिक रोगहरु पनि बढ्दै गएको छ ।
जीवनशैली र प्रजनन क्षमता
आधुनिक जीवनशैलीले मानिसको स्वास्थ्यमा असर पार्नुको साथै यसले प्रजनन क्षमतामा पनि नकारात्मक रुपमा प्रभावित पारेको हुन्छ । बेलायतमा भएको एक अध्ययन अनुसार ५० वर्ष अघि १ मिलिलिटर वीर्यमा शुक्राणुको संख्या ११ करोड ३० लाख थियो भने आज यो घटेर ४ करोड ७० लाख पुगेको छ । शुक्राणुको संख्या घट्नुका साथै यसमा पाईने गुणमा पनि कमी आएको छ । परिवर्तनशील जीवनशैलीको कारण मानिसमा प्रजनन क्षमतामा पनि कमी आएको छ । यदि पुरुषले धुमपान वा अन्य नशालु पदार्थको प्रयोगमा कम गरेको खण्डमा वा मोबाइलको कम प्रयोग गरेमा शुक्राणुमा हुने समस्याबाट मुक्त हुन सकिने जानकारीहरु बताउँछन् ।
विवाहपुर्व यौन सम्बन्ध
समाज विकशित भएसँगै मानिसमा यौन सम्बन्धलाई हेर्ने दृष्टिकोणमा पनि परिवर्तन आएको छ । विवाह पुर्व नै यौन सम्बन्ध राख्नु साधारण कुरा भएको छ । असुरक्षित यौन सम्बन्धले महिलामा यौन रोग जस्तै सिफलिस, गोनोरिया र पुरुषमा एचआईभी एड्स जस्ता गम्भीर रोग लाग्ने खतरा पनि बढ्दै गएको छ । यदि महिलालाई यस्ता कुनै पनि यौन लागेको खण्डमा पछि गर्भ टुहिने जस्ता समस्या उत्पन्न हुन सक्छ ।
धुमपान र नशालु पदार्थको प्रयोग
मध्यरात सम्म पार्टिमा धुमपान र मद्यपानको प्रयोगले पनि सेक्स लाइफमा प्रभाव पारेको हुन्छ । धुमपान गर्ने पुरुषमा नपुंसक हुने सम्भावना धेरै पाएको छ । धुमपान गर्ने पुरुषमा शुक्राणुको संख्या र त्यसको गतिशिलतामा पनि कमी आउँछ । धुमपान गर्ने महिलामा मेनोपौज हुने सम्भावना हुन्छ जसले इस्ट्रोजनको स्तर घट्छ र मासिक धर्मसँग सम्बन्धित समस्या उत्पन्न हुन्छ ।
शारीरिक श्रमको अभाव
व्यस्त जीवनशैलीले गर्दा मानिसमा शारीरिक व्यायाम गर्ने फुर्सद पाउँदैन । शारीरिक र मानसिक तनावबाट मुक्त हुनको लागि कम्तिमा पनि विहानको समयमा १ घण्टा शारीरिक व्यायाम गर्नु पर्छ । यसले मानिसको डिप्रेसन, पाचन प्रणाली, मधुमेह र उच्च रक्तचाप जस्ता समस्याबाट मुक्त हुन सकिन्छ । तर अहिलेको जीवनशैलीले मानिसमा अल्छीपना उत्पन्न गरेको छ । शारीरिक व्यायामको अभावले पनि सेक्स लाइफमा प्रभाव पारेको हुन्छ ।
एउटा गैरसरकारी संस्थाले आधुनिक जीवनशैलीले ग्रसित १ हजार महिला, पुरुष र बालबच्चामा गरेको अनुसन्धानमा ७७ प्रतिशत पुरुष, ६३ प्रतिशत महिला र ७५ प्रतिशत बच्चाहरु दिनमा ३० मिनेट पनि शारीरिक व्यायाम नगरेको पाइएको छ ।
खानपान र निद्रा
विहान ओछ्यानबाट उठ्ने वित्तिकै चिया पिउनुपर्ने र अफिसको लागि दौडिहाल्ने वानीले गर्दा पनि स्वास्थ्यमा प्रभावित पारेको हुन्छ । शरीरको लागि आवश्यक पौष्टिक तत्वको अभावले डायविटिज, क्यान्सर, मोटोपन जस्तो रोग निम्त्याउने गर्दछ । पौष्टिक तत्वको अभावले प्रतिरोधक क्षमता र शरीरको उर्जा पनि कमी देखाउँछ । स्वस्थ पौष्टिक आहार र राम्रो निद्राले मानिसमा रोगसँग लड्ने क्षमतामा वृद्धि गर्दछ ।
विशेषज्ञको सल्लाह
आधुनिक जीवनशैलीलाई ध्यानमा राखेर यौन सम्बन्धसँग सम्बन्धित कुरा मनोविज्ञान डाक्टर के आर धरले भनेका छन् कि, ‘‘परिवर्तनशिल जीवनशैलीमा कामको व्यस्तताले सेक्स जस्तो महत्वपूर्ण क्रियासँग पर भाग्दै गएको छ । उनीहरुमा यौन सम्बन्धको इच्छामा कमी आउको छ । दम्पतीमा शारीरिक आकर्षणको अभावले सेक्स सम्बन्धि समस्या निम्त्याएको छ ।
केही दम्पती आफ्नो सेक्सुअल लाइफ आफ्नो स्तरमा संतुष्ट बनाउनको लागि पोर्न भिडियो वा सेक्स टोयको प्रयोग गर्दछ तर यो तरिका एकदम गलत हो । स्वस्थ सेक्सको अभावले अनेक शारीरिक समस्या उत्पन्न गरेको हुन्छ । यौन शिक्षाको अभाव र समाजमा यौनसँग सम्बन्धी केही पनि कुरा खुलेर कुरा गर्न हिचकिच्याएको हुन्छ । यस्तो परिस्थितिमा यौन विशेषज्ञको सरसल्लाह लिनु उपयुक्त हुन्छ ।
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drsunildubeyclinic · 3 months ago
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Best Sexologist in Patna for SD Treatment due to Smoking | Dr. Sunil Dubey
अच्छे यौन स्वास्थ्य के लिए धूम्रपान का त्याग करे: -
अगर आप धूम्रपान के आदी हैं तो सावधान हो जाइए, क्योंकि यह आपके यौन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है...
अगर आप धूम्रपान के आदी या शौकीन हैं तो अपने यौन स्वास्थ्य को लेकर सावधान हो जाइए। आमतौर पर हर उम्र के लोग सड़क किनारे या निजी जगहों पर धूम्रपान करते हुए आसानी से देखे जा सकते हैं। इनमें से कुछ लोग धूम्रपान के आदी होते हैं, जबकि कुछ युवा इसका सेवन सिर्फ मनोरंजन या मौज-मस्ती के लिए करते हैं। भारत में करीब 28.5% लोग तंबाकू का सेवन करते हैं, जिनमें से 42% पुरुष और 14% महिलाएं किसी न किसी रूप में तंबाकू या धूम्रपान का सेवन करती हैं।
मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय भारत के ऐसे राज्य हैं जहां तंबाकू के सेवन की दर बहुत ज्यादा है, जहां पुरुष और महिलाएं दोनों ही इसका खुलेआम सेवन करते हैं। दरअसल, यह डेटा सिर्फ जानकारी के लिए है, यहां हम गुप्त व यौन समस्याओं के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं जहां धूम्रपान पुरुष और महिला के यौन स्वास्थ्य में गड़बड़ी का एक बड़ा कारण है। विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुनील दुबे, जो पटना में सबसे अच्छे क्लिनिकल सेक्सोलॉजिस्ट हैं, कहते हैं कि आमतौर पर पूरे भारत से गुप्त व यौन रोगी अपने इलाज के लिए उनसे सलाह लेते हैं और वे सभी का इलाज करते हैं। अपने चिकित्सा व उपचार में उन्होंने पाया कि धूम्रपान और शराब पीना जैसे जीवनशैली कारक बहुत सारे लोगो के गुप्त व यौन समस्याओं का एक प्रमुख कारण हैं।
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धूम्रपान व्यक्ति के यौन स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है:
धूम्रपान एक जोखिम कारक है जो पुरुष और महिला के यौन स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। आइए जानते हैं धूम्रपान के कारण यौन स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में-
पुरुष-
धूम्रपान करने से पुरुषों में इरेक्टाइल डिसफंक्शन (ईडी) का जोखिम 50-60% तक बढ़ सकता है।
धूम्रपान करने से पुरुषों में शीघ्रपतन (पीई) का जोखिम 20-30% तक बढ़ सकता है।
धूम्रपान करने से पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का स्तर 10-20% तक कम हो सकता है।
धूम्रपान करने से पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता 10-20% तक कम हो सकती है।
धूम्रपान करने से पुरुषों में यौन इच्छा 20-30% तक कम हो सकती है।
महिला-
धूम्रपान करने से महिलाओं में यौन इच्छा 20-30% तक कम हो सकती है।
धूम्रपान करने से महिलाओं में योनि के सूखेपन का जोखिम 10-20% तक बढ़ सकती है।
धूम्रपान करने से महिलाओं में दर्दनाक संभोग का जोखिम 10-20% तक बढ़ सकती है।
धूम्रपान करने से महिलाओं में प्रजनन क्षमता 10-20% तक कम हो सकती है।
धूम्रपान करने से मासिक धर्म संबंधी अनियमितताओं का जोखिम बढ़ सकती है, महिलाओं में 10-20% तक की संभवना होती है।
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धूम्रपान के तंत्र को समझना:
डॉ सुनील दुबे, बिहार के सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर कहते हैं कि धूम्रपान के तंत्र और यह यौन स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है, इसके बारे में सभी को पता होना चाहिए। यह एक जीवनशैली कारक का समूह है जो किसी व्यक्ति के यौन स्वास्थ्य को पूरी तरह प्रभावित करता है। उनका कहना है कि अच्छी आदतें, स्वस्थ आहार और संतुलित दैनिक जीवन हमेशा स्वस्थ दिमाग और शरीर की ओर व्यक्ति को अग्रसर करता है, जहाँ व्यक्ति अपने यौन, वैवाहिक और पारिवारिक जीवन का आनंद लेता है। इसलिए, हमें स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को हमेशा के लिए त्याग करना चाहिए जो हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते है। अत्यधिक धूम्रपान व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
संवहनी क्षति: जननांग क्षेत्र में रक्त प्रवाह में कमी का होना।
हार्मोन असंतुलन: टेस्टोस्टेरोन, एस्ट्रोजन के स्तर में गड़बड़ी या कमी होना।
तंत्रिका संबंधी क्षति: तंत्रिका कार्य में कमी और संवेदनशीलता में कमी होना।
सूजन: ऑक्सीडेटिव तनाव में वृद्धि, ऊतक क्षति का होना।
धूम्रपान छोड़ने के फायदे:
डॉ. सुनील दुबे कहते हैं कि धूम्रपान छोड़ने से यौन स्वास्थ्य के लिए कई लाभ होते हैं। सबसे पहले तो यह 2 से 4 सप्ताह में स्तंभन दोष में सुधार करता है, 2-6 महीनों में टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बढ़ाता है, 6-12 महीनों में प्रजनन क्षमता, कामेच्छा और उत्तेजना को बढ़ाता है और यौन रोग और बांझपन के जोखिम के कारक को कम करता है।
https://dubeyclinic.com/
स्थायी गुप्त व यौन रोग समाधान के लिए दुबे क्लिनिक में अपॉइंटमेंट:
डॉ. सुनील दुबे कहते हैं कि भारत में करीबन 40% पुरुष धूम्रपान के कारण स्तंभन दोष का अनुभव करते हैं, जबकि 25% महिलाएं धूम्रपान के कारण कम कामेच्छा का अनुभव करती हैं। भारत में धूम्रपान बंद करने के कार्यक्रमों की सफलता दर 50-70% रही है। खैर, हमें हमेशा सभी लोगो को अच्छे कार्य को करने के लिए प्रेरित करना व अच्छी आदतों  को अपनाने के लिए सलाह देना चाहिए।
यदि आप गुप्त व यौन रोगी (पुरुष या महिला) हैं और धूम्रपान के आदी हैं और अपने यौन जीवन में स्तंभन दोष, शीघ्रपतन, बांझपन, कम कामेच्छा या किसी भी यौन विकार जैसी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं; तो आपको दुबे क्लिनिक से अवश्य जुड़ना चाहिए। दुबे क्लिनिक पटना में स्थित एक प्रमाणित आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान क्लिनिक है, जहाँ पूरे भारत से लोग अपने यौन स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए इस क्लिनिक से ऑनलाइन और ऑफलाइन जुड़ते हैं। जरूरतमंद लोग हर दिन सुबह 8 बजे से शाम 8 बजे तक फ़ोन पर अपॉइंटमेंट उपलब्ध हैं। बस इसे बुक करें और आयुर्वेद के तहत अपना संपूर्ण गुप्त व यौन उपचार पाएँ। दुबे क्लिनिक से अब तक 7.65 लाख से ज़्यादा गुप्त व यौन रोगी लाभान्वित हो चुके हैं।
और अधिक जानकारी के लिए: -
दुबे क्लिनिक
भारत का प्रमाणित आयुर्वेदा व सेक्सोलोजी क्लिनिक
डॉ. सुनील दुबे, सीनियर सेक्सोलॉजिस्ट
हेल्पलाइन नंबर: +91 98350-92586
स्थान: दुबे मार्केट, लंगर टोली, चौराहा, पटना-04
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hindijankari · 5 years ago
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पुरुषो का वीर्य पीने के ये फायदे, जानकर आपके उड़ जायेगें होश. || Hindi Jankari
महिलाएं वीर्यपान करती हैं उनमें अन्‍य महिलाओं की अपेक्षा तनाव और अवसाद की कमी देखी गई है। क्‍योंकि वीर्य में शक्तिशाली एंटीड्रिप्रेसेंट और संज्ञानात्‍मक क्षमता को बढ़ाने वाले प्रभाव होते हैं
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पुरुषो का वीर्य पीने के ये फायदे, जानकर आपके उड़ जायेगें होश
वीर्य के फायदे आप जानते हैं कि वीर्य प्रजनन प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का एक मात्र विकल्‍प होता है। इसलिए यह मानव समाज के लिए बहुत ही आवश्यक होता है। लेकिन क्या वीर्य का सेवन आपके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए भी फायदेमंद होता है। इसमें कुछ विरोधाभास भी है लेकिन इसमें उपस्थिति हार्मोन और पोषक तत्‍वों के कारण यह मानव स्‍वास्‍थ्‍य के लिए फायदेमंद माना जाता है। आइए जानते हैं वीर्य के फायदे क्‍या हैं। जानकारों का कहना है कि जब महिलाओं को कामोत्तेजना (orgasm) होती है तो लव हार्मोन ऑक्‍सीटॉसिन का स्राव करते है जिससे महिलाओं के मूड को ऊपर उठाने में मदद मिलती है। कुछ सेक्‍सोलॉजिस्‍ट कहते हैं कि पुरुषों के लिए तृप्ति अवसाद को कम कर सकती है क्‍योंकि जिस समय व्‍यक्ति स्‍खलित होता है उसे जबरदस्‍त खुशी मिलती है जो सभी चिंताओं और समस्‍याओं से छुटाकारा दिलाने में मदद करती है। ओरल सेक्स के दौरान वीर्य दोनों के लिए फायदेमंद होता है। अध्‍ययनों से पता चलता है कि जब कोई महिला वीर्यपान करती है या सेक्‍स के दौरान वीर्य उनकी योनि से होता हुआ रक्‍त प्रवाह में मिलता है तो इससे बेहतर नींद प्राप्‍त करने में मदद मिलती है क्‍योंकि इसमें रासायनिक मेलाटोनिन (chemical melatonin) होता है। शरीर में मेलाटोनिन की उपस्थिति के कारण यह व्‍यक्ति को आराम दिलाने और अच्‍छी नींद लाने में मदद करता हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि वीर्य निगलने से अच्‍छी नींद प्राप्‍त नहीं होती है बल्कि संभोग के दौरान सिर्फ संतुष्टि ही प्राप्‍त होती है और कुछ नहीं। लेकिन जब संभोग संतुष्टि प्राप्‍त होती है तो इस दौरान शरीर में ऑक्‍सीटॉसिन हार्मोन उत्‍पन्‍न होता है जिससे शरीर में दर्द उत्‍तेजना कम होती है और शरीर को आराम मिलता है। इस कारण आपको अच्‍छी नींद प्राप्‍त होती है। महिलाएं वीर्यपान करती हैं उनमें अन्‍य महिलाओं की अपेक्षा तनाव और अवसाद की कमी देखी गई है। क्‍योंकि वीर्य में शक्तिशाली एंटीड्रिप्रेसेंट और संज्ञानात्‍मक क्षमता को बढ़ाने वाले प्रभाव होते हैं। इसके अलावा वीर्य में ऑक्‍सीटोसिन (oxytocin), प्रोजेस्‍टेरोन, एंडोर्फिन (endorphins), प्रोलैक्टिन, टीआरएच और सेरोटोनिन (serotonin) जैसे मूड बढ़ाने वाले घटक मौजूद रहते हैं। जो महिलाएं वीर्यपान करती हैं उनका मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य अच्‍छा होता है। जो यह दर्शाता है कि वीर्य के फायदे महिलाओं के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अच्‍छा है। आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि वीर्य का उपयोग आपके बालों को झड़ने से बचा सकता है। अगर अब तक आपको इसकी जानकारी नहीं थी तो जान लें। बालों के विकास के लिए वीर्य पर परिक्षण किये गए जिसमें पाया गया कि स्‍पर्मिडाइन बालों की लंबाई को प्रोत्‍साहित करने और बालों के विकास को बढ़ाने में मदद करता है। स्‍पर्मिडाइन स्‍टेम कोशिकाओं को भी बढ़ाता है जो आप���े बालों के विकास में मदद करते हैं। आप इसे सचमुच उपयोग कर सकते हैं। विदेशों में सेलिब्रिटी क्‍लाइंट को चमकदार और सुंदर बालों के लिए सैलूनों में कई तरह के वीर्य का उपयोग किया जाता है। जानकारों के अनुसार चेहरे पर वीर्य लगाने से यह किसी एंटी-एजिंग (Anti-aging) उत्‍पाद की तरह काम करता है। परिक्षण के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि वीर्य में एंटीऑक्‍सीडेंट गुण मौजूद रहते हैं जो त्‍वचा की झुर्री और त्‍वचा के लचीनेपन जैसे विकारों को दूर करने में मदद करता है। चेहरे के लिए स्‍पर्म फायदेमंद होता है इसलिए इसे आजकल प्रयोगशालाओं में संश्‍लेषित (Synthesized) किया जाता है और अंतरराष्‍ट्रीय कंपनियों द्वारा बेचा जा रहा है। वीर्य का सेवन करने से यह आपकी सेक्‍स ड्राइव को बढ़ा सकता है। क्‍योंकि वीर्य में टेस्‍टोस्‍टेरोन होता है। टेस्‍टोस्‍टेरोन पुरुषों और महिलाओं दोनों में कामेच्‍छा बढ़ाता है। यौन संबंध बनाने के दौरान महिला की योनि दीवारों के माध्‍यम से और यहां तक की वीर्य निगलने के माध्‍यम से टेस्‍टोस्‍टेरान (Testosterone) को अवशोषित किया जा सकता है। जो कि सेक्‍स ड्राइव को बढ़ाने में मदद करता है। इसके परिणाम अलग-अलग लोगों में भिन्न हो सकते हैं। वीर्य में एंटी-इंफैमेटोरेटरीज और इम्‍यूनोस्‍पेप्रेसेंट्स गुण होते हैं जो महिला के शरीर में प्रवेश करने पर किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाते हैं। वीर्य का सेवन करने से तंत्रिका विकास फैक्‍टर, ऑक्‍सीटोसिन, प्रोजेस्‍टेरोन, टेस्‍टोस्‍टेरोन, कोर्टिसोल और कुछ प्रोस्‍टाग्‍लैंडिन (prostaglandins) जैसे इंफ्लेमेटरी गुण प्राप्‍त होते हैं। वीर्य आपके शरीर में मौजूद टीजीएफ-बीटा प्रोटीन की सहनशीलता को बढ़ाने में मदद करता है। कुछ लोगों का मानना है कि चिंता का प्रमुख कारण ऑक्‍सीडेएटिव तनाव होता है जो कि ब्रेन फॉग (brain fog) और थकान आदि का कारण बनता है। लेकिन ऑक्‍सीडेटिव तनाव को कम करने के लिए वीर्य में बहुत से एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidant) मौजूद होते हैं जो आसानी से चिंता और तनाव को दूर करने में मदद कर सकते हैं।
क्या वीर्यपान किया जा सकता है
अक्सर लोगों के मन में यह सवाल होता है की क्या वीर्य को निगला जा सकता है? या वीर्यपान किया जा सकता है तो इसका जवाब है जी हां। क्योकि यह प्रोटीन और विटामिन से भरपूर होता है। यह आप पर निर्भर करता है की अब आप इसे पीने के लिए तैयार हैं या नहीं इसका निर्णय आपको या आपकी साथी को खुद लेना है। लेकिन अगर आप चाहते हैं कि आपका स्पर्म स्वादिष्ट हो जाए तो यह भी संभव है। क्योकि वीर्य का मीठा या खट्टा होना इस बात पर निर्भर करता है की आपने आज क्या खाया है । आपको बता दें की वीर्य पीने से लड़की प्रेग्नेंट नहीं होती लेकिन अगर वीर्य योनि में छोड़ा गया हो तो लड़की प्रेग्नेंट हो सकती है योनी में वीर्य छोड़ने से ही प्रेगनेंसी कि संभावना होती है ओरल सेक्स करते समय वीर्य पीने से गर्भधारण के चांस नहीं हो सकते हैं। स्‍पर्म पीने के नुकसान  जब वीर्य सेवन की बात आती है तो विशेष सावधानी रखने की आवश्‍यकता होती है। क्‍योंकि वीर्य में वायरस हो सकते हैं जिसका सेवन करने पर यह वीर्य सेवन करने वाले को प्रभावित कर सकता हैं। सेक्‍सोलॉजिस्‍ट बताते हैं कि मुंह की समस्‍याओं जैसे कि मसूड़ों की सूजन और उनसे खून आने की स्थिति में मौखिक सेक्‍स करने पर एसआइटी संक्रमण जैसे हेपेटाइटिस बी और सी (Hepatitis B and C), हर्पीस और क्‍लैमिडिया (Chlamydia) हो सकता है। वीर्य का सेवन करने पर किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता है लेकिन कुछ लोगों का मानना है की इससे किसी प्रकार का फायदा भी नहीं होता है। वीर्य को यदि पुरुषों के द्वारा बाहर नहीं निकाला जाता है या रोका जाता है तो इसके भी किसी प्रकार के फायदे नहीं होते हैं क्‍योंकि वीर्य की अपनी निश्चित उम्र होती है और वह स्‍वयं ही निष्क्रिय हो जाता है। यौन साथी को लाभ या जीवन शक्ति (vitality) दिलाने के लिए वीर्य की मात्रा बहुत ही कम होती है जो कि पर्याप्‍त नहीं है। नैदानिक पोषण विशेषज्ञों का कहना है कि इस बात के कोई सबूत नहीं है कि वीर्य में मल्‍टीविटामिन और एंटी अवसाद गुण होते हैं जो कि आपके लिए फायदेमंद होते हैं। वीर्य या semen का पोषण क्या होता है? कुछ लूग वीर्य पीने के फायदे नुक्सान जानना चाहते हैं लेकिन आपको एक बात बता दें की वीर्य पीने के कई फायदे होते हैं क्योंकि वीर्य में बहुत कमाल के हॉर्मोन और दुसरे पोषक तत्व जैसे एमिनो एसिड,  पोटेशियम, एस्‍कॉर्बिक एसिड, calcium, magnesium, विटामिन बी12, sodium , विटामिन सी,  zinc और प्रोटीन जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं| रिसर्च भी ये मानती है की वीर्य या semen पीने या निगलने के कई लाभ आपको मिलते हैं| चलिए जानते हैं को पीने अच्छा होता है या बुरा यानि क्या semen या स्पर्म पीना सही है या गलत? क्या वीर्य पीना चाहिए या नही? semen पीना सही है या गलत रिसर्च में पाया गया है की यदि आप ओरल सेक्स करते हैं तो आप और आपका पार्टनर कोई भी वीर्य का सेवन कर सकता है जब तक की आप दोनों स्वस्थ हों| वीर्य पिने से कई लाभ मिलते हैं उनमें से कुछ निचे बताये गए हैं| वीर्य में ख़ास केमिकल पाया जाता है जिसके सेवन से व्यक्ति का मानसिक तनाव दूर होता है और यदि अनिद्रा या नींद ना आने की प्रॉब्लम है तो वो विर्यपान से दूर हो जाती है| वीर्यपान के फायदे – डिप्रेशन दूर होती है   रिसर्च में ऐसा पाया गया है की semen यानि वीर्य का सेवन करने वाली महिलाओं को डिप्रेशन की शिकायत नहीं हो पाती| वीर्य में एक शक्तिशाली एंटीड्रिप्रेसेंट यानि डिप्रेशन दूर करने वाला केमिकल पाया जाता है इसके अलावा ऐसे हॉर्मोन पाए जाते हैं तो की वीर्य पिने वाले के मूड को अच्छा बनाने में मदद करते हैं| कुल मिलाकर आप डिप्रेशन और मूड डिसऑर्डर को दूर कर सकते हैं| वीर्य को बाल पर लगाने के फायदे वीर्य को बाल पर लगाने से बाल झड़ना और बालों से जुड़े रोग दूर करने में मदद मिलती है| वीर्य में उपस्थित स्‍पर्मिडाइन बालों की लंबाई के झड़ने को रोकता है और बालों की लम्बाई बढाने में मदद करता है| semen को चेहरे पर लगाने के फायदे – वीर्य को फेस पर लगाने के फायदे रिसर्च के अनुसार वीर्य में कमाल के एंटी-एजिंग गुण पाए जाते हैं जो आपकी स्किन से जुड़े कई रोग दूर करने में मदद करते हैं जैसे त्वचा का जल्दी बुढा हो जाना, त्वचा पर झुर्रियां पड़ना आदि| स्‍पर्म पीने के फायदे – वीर्य पिने से सेक्स power बढती है वीर्य पिने का एक और लाभ या फायदा ये है की यह आपकी सेक्स power को बढाने में मदद करता है क्योंकि स्पर्म या semen यानि वीर्य में टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन होता है जो पुरुषों और महिलाओं दोनों में सेक्स ड्राइव को बढाने में मदद करता है| वीर्य पिने का फायदा है – टेंशन से मुक्��ि | स्पर्म पिने से टेंशन नहीं होती रिसर्च यह मानती है की वीर्य के एंटीऑक्सिडेंट आपके दिमाग को सेहतमंद रखने में मदद करते हैं जिससे वीर्य पिने वाले को मानसिक तनाव या डिप्रेशन और एंग्जायटी से छुटकारा मिलता है| क्या है वीर्यपान के लाभ?  जी हाँ आप वीर्य पि सकते हैं इससे आपको बहुत सारे पोषक तत्व जैसे प्रोटीन और विटामिन मिलते हैं इसलिए वीर्य पीना गलत या बुरा नहीं होता| स्‍पर्म पीने के नुकसान – Sperm Peene Ke Nuksan या  virya pine ke side effect in Hindi आपको स्पर्म का सेवन करने से पहले ये याद रखना चाहिए की जो लड़की स्पर्म पीती है उसे कोई मुह या मसूड़ों का रोग ना हो| इसके अलावा यदि आप ओरल सेक्स करते हैं तो आपको किसी प्रकार का कोई यौन रोग ना हो| यदि आप और आपकी पार्टनर स्वस्थ हैं तो आप निसंकोच वीर्य का सेवन कर सकते हैं| वीर्य पीने के नुकसान या खतरे ���्या होते हैं  देखिये वीर्य पिने के नुकसान या साइड इफ़ेक्ट की बात करें तो वीर्य या शुक्राणु का सेवन करने से नुकसान नहीं होता यदि पुरुष स्वस्थ है और उसे कोई यौन रोग यानि सेक्सुअल बीमारी नहीं है| किसी भी परकार की बीमारी या गुप्तरोग होने पर वीर्य का सेवन नहीं करना चाहिए|
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yashodaivffertilitycentre · 9 months ago
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पीसीओडी क्या होता है जानिये कारण, लक्षण, इलाज और प्रबंधन
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पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज या (PCOD) पीसीओडी क्या होता है, जैसा कि इसे भारत में कहा जाता है, एक जटिल स्थिति है जिसमें महिलाओं को प्रभावित करने वाले कई लक्षण शामिल होते हैं। जबकि पीसीओडी को सबसे आम हार्मोनल बीमारी के रूप में पहचाना जाता है, यह प्रजनन क्षमता, चयापचय स्वास्थ्य और यहां तक ​​कि मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य सहित महिलाओं के स्वास्थ्य के कई पहलुओं के लिए चुनौती पैदा कर सकता है। यह मार्गदर्शिका पीसीओडी को सरल बनाने, इसके निदान के लिए स्पष्टीकरण प्रदान करने और महिलाओं को उनके जीवन में इस स्थिति के प्रबंधन के बारे में शिक्षित करने के लिए तैयार की गई है। उन्नत उपचार विकल्पों और विशेषज्ञ देखभाल के लिए, नवी मुंबई में सर्वश्रेष्ठ आईवीएफ केंद्र (Best IVF Centre in Navi Mumbai) के रूप में प्रसिद्ध यशोदा आईवीएफ सेंटर पर जाने पर विचार करें।
पीसीओडी क्या होता है : मूल बातें समझिए
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, या पीसीओडी, एक हार्मोनल विकार है जो दो तीन प्रमुख विशेषताओं द्वारा चिह्नित है:
•        अनियमित पीरियड्स (मासिक धर्म संबंधी विकार)
•        पुरुष हार्मोन के उच्च स्तर के परिणामस्वरूप अत्यधिक बाल बढ़ना (अतिरोमण), मुँहासे, और पुरुष-पैटर्न गंजापन जैसे शारीरिक लक्षण हो सकते हैं
•        पॉलीसिस्टिक अंडाशय - बढ़े हुए अंडाशय जिनमें बाहरी किनारे पर स्थित कई छोटे सिस्ट होते हैं
पीसीओडी के कारण वजन बढ़ना, मुंहासे और गर्भवती होने में कठिनाई सहित कई लक्षण हो सकते हैं। यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि पीसीओडी का कारण क्या है, लेकिन यह संभवतः आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों का एक संयोजन है।
पीसीओडी और इसके प्रभाव को समझिए
पीसीओडी एक डिम्बग्रंथि विकार है जो एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के उत्पादन के लिए जिम्मेदार महिला प्रजनन प्रणाली में हस्तक्षेप करता है जो उन्हें मासिक धर्म चक्र को विनियमित करने में सहायता करता है। अंडाशय इन महिला-विशिष्ट हार्मोनों और कुछ पुरुष हार्मोनों का भी उत्पादन करते हैं, जिन्हें एण्ड्रोजन कहा जाता है।
जिन महिलाओं को पीसीओडी है, उनमें टेस्टोस्टेरोन सामान्य से अधिक बढ़ जाता है। यह इस प्रतिकूल और अक्सर अस्थिर हार्मोनल सं��ुलन के कारण है कि मासिक धर्म चक्र में अधिक अनियमितताएं आम हैं, और इस प्रकार महिलाओं को गर्भवती होने में कठिनाई होती है। इसके अतिरिक्त, सबसे आम चिंता पीसीओडी से पीड़ित महिलाओं में उच्च-इंसुलिन प्रतिरोध है, जिसमें शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति सामान्य रूप से प्रतिक्रिया नहीं करती हैं और परिणामस्वरूप, रक्त शर्करा बढ़ जाती है। यह एण्ड्रोजन उत्पादन को ट्रिगर कर सकता है और परिणामस्वरूप, पीसीओडी के लक्षणों को फिर से मजबूत कर सकता है।
पीसीओडी के लक्षणों को पहचानिये
पीसीओडी के लक्षण और पीसीओडी क्या होता है ये हर महिला में काफी भिन्न हो सकते हैं। कुछ को हल्के लक्षणों का अनुभव हो सकता है, जबकि अन्य के जीवन की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:
•        अनियमित मासिक धर्म
•        मासिक धर्म के दौरान भारी रक्तस्राव
•        लंबे समय तक मासिक धर्म चक्र 35 दिनों से अधिक, या एक वर्ष में आठ मासिक धर्म चक्र से कम
•        पुरुष हार्मोन के ऊंचे स्तर के परिणामस्वरूप अत्यधिक बाल बढ़ना, मुँहासे और पुरुष-पैटर्न गंजापन जैसे शारीरिक लक्षण हो सकते हैं
•        अल्ट्रासाउंड में पॉलीसिस्टिक अंडाशय का पता चला
•        सिर पर बालों का पतला होना
•        वजन बढ़ना या वजन कम करने में कठिनाई होना
•        त्वचा का काला पड़ना, त्वचा संबंधी समस्याएं, जिनमें त्वचा टैग, और मुँहासे शामिल हैं
•        •मनोदशा में बदलाव
पीसीओडी के कारण
वास्तविक में पीसीओडी क्या होता है या फीर उसका सटीक कारण अज्ञात है, लेकिन कई कारक इसके विकास को प्रभावित कर सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
•        अतिरिक्त इंसुलिन: पीसीओडी से पीड़ित कई महिलाओं में इंसुलिन प्रतिरोध होता है, विशेष रूप से वे जो अधिक वजन वाली या मोटापे से ग्रस्त हैं, अस्वास्थ्यकर आहार लेती हैं, पर्याप्त शारीरिक गतिविधि नहीं करती हैं और मधुमेह का पारिवारिक इतिहास रखती हैं।
•        निम्न-श्रेणी की सूजन: पीसीओडी से पीड़ित महिलाओं में भी अक्सर एक प्रकार की निम्न-श्रेणी की सूजन होती है जो पॉलीसिस्टिक अंडाशय को एण्ड्रोजन का उत्पादन करने के लिए उत्तेजित करती है।
•        आनुवंशिकता: हालाँकि, अध्ययनों से पता चला है कि कुछ जीन पीसीओडी से जुड़े हो सकते हैं।
पीसीओडी का इलाज/निदान
पीसीओडी क्या होता है ये तो आपने समझ लिया हैं तो अब जानिए की पीसीओडी का निदान करना कुछ जटिल हो सकता है और इसमें अक्सर कई चरण शामिल होते हैं:
•        रोगी के व्यक्तिगत लक्षणों को समझने के लिए चिकित्सा इतिहास का विश्लेषण।
•        शारीरिक परीक्षण जिसमें शरीर पर अतिरिक्त बाल, रक्तचाप और बॉडी मास इंडेक्स (BMI) जैसे संकेतों की जांच शामिल है।
•        हार्मोन स्तर, ग्लूकोज, कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स की जांच के लिए रक्त परीक्षण।
•        अंडाशय की स्थिति और आकार को देखने के लिए अल्ट्रासाउंड, यह देखने के लिए कि क्या वे बढ़े हुए हैं या उनमें सिस्ट हैं।
पीसीओडी का निदान हल्के में नहीं लिया जाता है और इसमें अन्य संभावित बीमारियों का बहिष्कार शामिल होता है जो पीसीओडी के लक्षणों की नकल कर सकते हैं।
पीसीओडी के उपचार और प्रबंधन के दृष्टिकोण
हालाँकि पीसीओडी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन कई उपचार लक्षणों और जटिलताओं को प्रबंधित करने में मदद कर सकते हैं। किसी महिला की प्राथमिकताएं क्या हैं, इसके आधार पर उपचार के विकल्प अलग-अलग हो सकते हैं, चाहे वह गर्भवती हो रही हो या बालों के बढ़ने जैसे किसी विशिष्ट लक्षण का प्रबंधन कर रही हो।
·         जीवन शैली में परिवर्तन: पीसीओडी के लक्षणों को सही सावधान आदतों के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है। महत्वपूर्ण उपायों में नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और उचित वजन प्रबंधन शामिल है।
·         पीसीओडी के लिए दवाएं: मासिक धर्म चक्र को विनियमित करने, अत्यधिक बालों के विकास को कम करने और मुँहासे का इलाज करने के लिए विभिन्न दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। इनमें संयोजन जन्म नियंत्रण गोलियाँ, प्रोजेस्टिन थेरेपी, एंटी-एंड्रोजन दवाएं और बहुत कुछ शामिल हो सकते हैं।
·         प्रजनन उपचार: यदि गर्भावस्था वांछित है, तो कुछ दवाएं ओव्यूलेशन को प्रेरित करने में मदद कर सकती हैं। अधिक जटिल मामलों में, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन जैसी सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) की सिफारिश की जा सकती है।
पीसीओडी को प्रजनन क्षमता को मात देने वाली बीमारी के रूप में समझिए
पीसीओडी, महिला बांझपन के सबसे अधिक पहचाने जाने वाले कारणों में से एक है, जो महिलाओं की भलाई के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है। इस हार्मोन असंतुलन के कारण अंडाशय पर छोटे फूलों की थैली का निर्माण होता है जो परिपक्व अंडे को बाहर निकलने से रोकता है। ऑलिगोमेनोरिया के साथ भी गर्भावस्था आगे बढ़ सकती है, लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान चिकित्सा सहायता की आवश्यकता हो सकती है। Yashoda IVF में IVF (In vitro fertilization) उपचार एक विशेषता है जो महिलाओं को इस समस्या से निपटने में मदद करता है।
पीसीओडी में प्रजनन उपचार को समझना
पीसीओडी से पीड़ित महिलाएं जो गर्भधारण करना चाहती हैं, उनके लिए सबसे आम थेरेपी ओव्यूलेशन इंडक्शन है, जो एक प्रजनन उपचार है जिसमें अंडाशय को केवल एक अंडा देने के लिए उत्तेजित करने के लिए दवाओं का उपयोग शामिल है। पीसीओडी से पीड़ित महिलाओं को कभी-कभी अपने प्रजनन प्रयासों में सहायता के लिए अतिरिक्त प्रजनन उपचार की आवश्यकता होगी। इस प्रक्रिया में चिकित्सा सहायता के लिए Yashoda IVF Centre का आवश्यक सहयोग प्राप्त करें।
पीसीओडी में आहार एवं व्यायाम
पीसीओडी के संदर्भ में, दैनिक कसरत के साथ-साथ स्वस्थ आहार आदतों का पालन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण पहलू है। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के मिश्रण के साथ संतुलित आहार के मामले में, इसका लक्ष्य रखें। भोजन पिरामिड में चीनी और परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट की कमी इंसुलिन प्रतिरोध की प्रगति में सहायता कर सकती है।
वज़न प्रबंधन
स्वस्थ संतुलित वजन प्राप्त करके अपने पीसीओडी लक्षणों को नियंत्रित रखने में सक्षम होने से उनकी गंभीरता काफी कम हो जाएगी। यहां तक ​​कि वजन में कुछ मामूली कमी के परिणामस्वरूप भी खुशहाल स्थिति आती है।
तनाव में कमी
आराम की तकनीकों और सही नींद के माध्यम से तनाव पर काम करने से लक्षणों को लाभदायक तरीके से राहत देने में मदद मिलती है।
मुख्य तथ्य और निष्कर्ष
पीसीओडी क्या होता है का मतलब जो की पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज है और यह व्यापक है। हालांकि, लक्षण इतने गंभीर और जटिल हो सकते हैं कि किसी महिला की सामान्य जीवनशैली जैसे स्वास्थ्य और खुशी को प्रभावित कर सकते हैं। महिला द्वारा शीघ्र निदान के माध्यम से पीसीओडी को दूर करना बधाई की बात है क्योंकि महिला को शरीर के संकेतों को पहचानना चाहिए और अगर उसे लगता है कि वह इस स्थिति से जूझ रही है तो डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। यशोदा आईवीएफ सेंटर उन महिलाओं के सहारे है जो पीसीओडी की इस चुनौती से निपट रही हैं और स्वस्थ जीवन की दिशा में कदम बढ़ाना चाहती हैं।
पशु अध्ययनों से पता चला है कि कुछ पौधों में एंटीऑक्सीडेंट और सुरक्षात्मक गुण होते हैं जो गर्भधारण करने की इच्छुक महिलाओं की मदद कर सकते हैं। हालांकि इस बात के प्रमाण अनिर्णायक हैं कि क्या इन खाद्य पदार्थों के सेवन से गर्भधारण में मदद मिलेगी, लेकिन इन्हें संतुलित आहार में शामिल करने से कोई नुकसान नहीं होता है। इन तरीकों से, ज्ञान और उचित नियंत्रण आपको पीसीओडी के साथ रहते हुए भी एक पूर्ण, पूर्ण जीवन जीने में सक्षम बनाएगा।
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amazingsubahu · 5 years ago
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क्या बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाये जीवन व्यतीत करना संभव है?
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क्या बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाये जीवन व्यतीत करना संभव है?
क्या बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाये जीवन व्यतीत करना संभव है? यह सवाल मुझसे एक Quora मित्र ने पूछा है। हाँ, बिल्कुल संभव है, यह नेक काम मैं कर रहा हूँ, इतने वर्षों से, प्रकृति ने हमें प्रजनन की शक्ति प्रदान की है, इसके लिए अंग और शारीरिक व्यवस्था प्रदान की है, यह क्षमता और प्रवृत्ति हम मे और सभी जीवधारियों में एक समान है। सभी अन्य जीव और अधिकांश मनुष्य इसे अपनी प्रकृति प्रदत्त प्रवृत्ति के आधीन यंत्रवत कार्य करते हैं, उनका इस पर कोई भी जोर नहीं है, एक उम्र और समय विशेष में उनके अंदर कामवासना का संचार होता है और वो अपने नर या मादा साथी के साथ शारीरिक रूप से संयुक्त होते हैं और प्रजनन करते हैं, यह एक अनिवार्य घटक के रूप में सभी जीवधारियों में संपन्न किया जाता है, अपनी प्रजाति को निरंतर बनाये रखने और इसमें वृद्धि करने के लिए यह प्रकृति प्रदत्त विधान है और मनुष्य सहित सभी जीवधारी इसके आधीन है। मनुष्यों और अन्य जीवधारियों में एक बुनियादी भेद हैं इस सम्बन्ध में, मनुष्य इस प्रकृति प्रदत्त प्रवृत्ति के आधीन रहने को बाध्य नहीं है वह विशिष्ट साधनाओं और योगिक प्रक्रियाओं का उपयोग करके इस शारीरिक बाध्यता/आवश्यकता से परे जा सकता है इससे मुक्त हो सकता है, लेकिन यह सभी के लिए साधारण रूप से साध्य नहीं है, उनकी कमज़ोर इच्छा शक्ति और विशिष्ट मार्ग पर चलने के प्रति अनिच्छा के कारण, लेकिन यह हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाता है।
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विवाह और गहरी आत्मीयता पूर्ण सम्बन्ध  प्रश्नकर्ता के प्रश्न का उत्तर यह है की मनुष्यों द्वारा इसे साधने या इससे मुक्त होने के दो ही तरीके हैं - पहला जो लगभग सभी लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, विवाह, एक उम्र के बाद जब आप के अंदर काम वासना प्रबल हो जाये और आप इसके वेग सम्हालने में समर्थ न हो पायें आप एक प्रेमपूर्ण बंधन में विवाह में संयुक्त हो जाइये और इस उर्जा का वैधानिक और युक्तियुक्त तरीके के नियोजन, नियमन और विसर्जन कर लें, अब आप कहेंगे इसमें तो बंधन और शारीरिक सम्बन्ध दोनों से गुजरना पड़ेगा। विवाह संस्था का अविष्कार मनुष्य की इसी आवश्यकता के नियमन और और उसे एक व्यवस्थित और विधायक रूप प्रदान करने के लिए ही किया गया था, जो आज भी सबसे बेहतर व्यवस्था और उपाय है, प्रकृति प्रदत्त बाध्यता और शक्ति के नियमन, नियोजन और व्यस्थापन का, यह सार्वभोमिक और सर्व स्वीकृत व्यवस्था है पूरे विश्व में और सभी संस्कृतियों में। निश्चित ही आपको इससे गुजरना पड़ेगा, लेकिन यदि आप अपने साथी के साथ एक बेहद मित्रतापूर्ण और आत्मीय सम्बन्ध निर्मित कर लें तो यह काम के विसर्जन में बेहद सहायक हो सकता है स्त्री और पुरुष दोनों के लिए, वो इसे एक दुसरे के प्रति बेहद आदर और प्रेम के साथ एक गहरी मित्रता में रूपांतरित कर सकते हैं जहाँ काम का प्रभाव और प्रबलता न्तयूनम हो जायेगी। इस तरह एक समय के पश्चात् शारीरिक सम्बन्धों के प्रति बहुत आकर्षण और प्रबलता नहीं रहेगी, यदि उनके मध्य गहरे आत्मीय और भावनात्मक प्रगाढ़ता विकसित हो जाये ,और वो एक दुसरे को महज लिंग के आधार पर नहीं एक व्यक्ति के रूप में प्रेम और मित्रता पूर्ण सम्बन्ध विकसित कर सकने में सफल हो जाएँ, यह बेहद आसान और सबसे सुविधाजनक तरीका है, इस धरती पर बहुसंख्यक लोगों के लिए, संतान की प्राप्ति और उनके पालन पोषण की व्यस्तता भी उनके अंदर कामवासना की प्रबलता को क्षीण कर देती है। बहुत सारे दम्पत्तियों में संतान के जन्म के पश्चात् जब वो माता और पिता बन जाते हैं, काम में रस और उसकी प्रबलता क्षीण हो जाते हैं, और यदि पुरुष स्त्री में मातृत्व को गहराई से देखने लगे तो उसकी काम में रूचि विलीन हो जाती है और वह स्त्री मात्र में माँ को देखता है, अपनी पत्नी और सभी स्त्रियों में, यह संभव है यदि आप आत्मीय, भावनात्मक और वैचारिक रूप से परिपक्व और गहरे हो जाएँ तो यह सहजता से घटित होता है। चुनौतियाँ और उपाय  यह बहुत लोगों का सवाल और समस्या है, लेकिन शरीर का अपना नियम है, वह पुनरुत्पादन करना चाहता है, प्रकृति अपना काम करती है,  शरीर के हॉर्मोन तो जोर मारते ही रहेंगे और आपको उसके लिए प्रेरित और बाध्य करते रहेंगे, काम सर्वाधिक शक्तिशाली ऊर्जा है और इसका वेग अनियंत्रित और असाधारण होता है, इसका दमन उचित नहीं है। काम को दबाना संभव नहीं है और यह स्वस्थ बात भी नहीं है, और ऐसा करने पर यह 24 घंटे आप पर हावी होकर आपसे कोई भी अनर्थ करवा सकता है, पुरुषों के लिए यह बेहद मुश्किल है, क्योंकि उनका काम आक्रामक होता है, वह हिंसा, क्रोध, और अन्य ज्यादा बुरे तरीकों से अभिव्यक्ति और विसर्जन के मार्ग खोजेगा। स्त्रियों के लिए ये आसान होता है, पुरुषों के लिए बहुत मुश्किल होता है, बेहतर है आप किसी के साथ स्वस्थ, प्रेमपूर्ण संबंध और एक संतुलित और वैधानिक रिश्ते में हों, तो इसका नियमन बेहद सरल और सुविधा जनक हो सकता है। अधिकांश लोगों के लिए साथ या विवाह करना ज्यादा आसान होता है, क्योंकि यह विपरीत ऊर्जाओं के मध्य संतुलन स्थापित करने में और विसर्जन करने एवं उचित नियोजन में सहयोगी होता है। यदि आप इसे देख , समझ और नियमित कर सकते हैं तो अच्छा है वरना यह आपको मानसिक , शारीरिक रूप से विकृत, कुंठित और बीमार बना सकता है। हमारी संस्कृति में इसके लिए विवाह का विधान कर रखा है, आप विवाह और आत्मीय प्रेम संबंधों द्वारा इसे बेहद सरलता और सहजता से नियमित कर सकते हैं। विवाह और स्त्रियों का स्नेह और प्रेम इसमें ��ददगार है  यह समस्या पुरुषों के साथ ज्यादा होती है, क्यूंकि स्त्रियाँ आसानी से जीवन भर बिना शारीरक सम्बन्ध बनाये रह सकती हैं, बिना कुंठा और विकार के, उनकी प्रकृति ग्राहक है और पुरुषों की आक्रामक, अतः यह उनके लिए ही सबसे बड़ी समस्या है या उन स्त्रियों में जिनके पास शरीर तो स्त्रियों का है लेकिन वो पुरुषों की तरह आक्रामक और बेहद महत्वकांक्षी हैं, दुसरे अर्थों में पुरुष प्रधान प्रवृत्तियों के आधीन हैं और शासन करने की प्रवृत्ति रखती हैं। पुरुषों के लिए इस सम्बन्ध में स्त्रियों का प्रेमपूर्ण और स्नेहपूर्ण साथ भी आपको अपनी काम उर्जा को नियमित और संतुलित रखने में सर्वाधिक उपयोगी होता है, मुझे काम कभी भी नहीं सताता जब मैं स्त्रियों के मध्य होता हूँ या उनके संपर्क में रहता हूँ, स्त्रियों का साथ और स्नेह आपकी उर्जा के वर्तुल को पूर्ण कर देता है और आप शांत और स्थिर महसूस करते हैं। मेरी ढेरों बहने, बेटियां और महिलाएं मित्र है, जिन्हें मैं अपने परिवार की सदस्य की तरह प्रेम और स्नेह पाता और प्रदान करता हूँ, यह भी इसमें बेहद मददगार है, उनका पवित्र स्नेह आपके सभी विकारों को नियमित और संतुलित करने में सहयोगी है। स्त्रियां प्रेम और आत्मीय संबंध ज्यादा पसंद करती हैं, बनिस्पत शारीरिक संबंधों के, जब तक उन्हें संतानोत्पत्ति की चाहत या अपने से जुड़े पुरुष को खुश और सन्तुष्ट करने की बाध्यता और आवश्यकता न हो, उनका प्रेम और सहयोग पाते रहने के लिए। अतः मेरा अनुभव यह है की उनका साथ और उनके प्रति स्नेहपूर्ण और पवित्र सोच ही आपके लिए इसे बेहद आसान बना देती है, उनके लिए कामवासना कभी भी प्राथमिक बात नहीं होती, वे मित्रतापूर्ण दुलार, देखभाल, सुरक्षा और आत्मीयता की तलाश में होती हैं, इसमें, प्रेम और पवित्रता ही सब कुछ संभव कर सकते हैं। विवाह एक अच्छा तरीका है इसे नियमित और संयोजित करने का, कोई भी गहरा प्रेमपूर्ण सम्बन्ध व्यक्तियों या सम्पूर्ण अस्तित्व से आपको इसमें मददगार हो सकता है।
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प्रेम और गहन आत्मिक प्रेम सबसे शक्तिशाली उपाय है इस सम्बन्ध में  सिर्फ गहन प्रेम ही आपको काम से मुक्त कर सकता है, और कोई भी तरीका नहीं है, अब यह प्रेम किसी व्यक्ति से हो अपनी कला, या काम से या सम्पूर्ण जगत के पालनहार के प्रति, प्रेम सबसे बड़ी कीमिया है, आत्मरूपान्तरण के लिए। गौर कीजिए , आप अपनी मां, बहन और बेटी, यहाँ तक कि जब आप अपनी पत्नी के भी मातृ स्वरूप को उसके स्त्री शरीर होने से ज्यादा मूल्य देने लगते हैं, तब आप की कामुकता विलीन हो जाती है, यही सभी स्त्रियों के लिए काम करता है, आपको सिर्फ अपनी अप्रोच और दृष्टि बदलनी है। उनके साथ यह सवाल क्यों खड़ा नहीं होता, क्योंकि आपका उनसे जुड़ाव बेहद भावनात्मक और हार्दिक है, वह शरीर के तल पर नहीं है, आप उन्हें गले भी लगाते हैं, उनका माथा भी चूमते हैं, उन्हें अपनी गोदी में भी बिठाते हैं, उनकी सेवा करते हैं, क्या यह सब किसी तरह बाधक है, आपके जीवन में और काममुक्त जीवन जीने में? गहरी आत्मीयता और प्रेम आपको उदात्त बनाता है और विकार मुक्त करता है, फिर आपकी बायोलॉजी आपके दिल, दिमाग और शरीर का संचालन नहीं कर पाती है, आपके लिए अपने आपको सम्हालना बहुत आसान हो जाता है। क्योंकि आपकी भावना उनके प्रति कामना मुक्त है, आप उन्हें विपरीत लिंग के होने के बावजूद उनकी मौजूदगी में उनके साथ बिना विकार के रहते हैं, यह आप समस्त स्त्री, पुरुषों के लिए विकसित कर सकते हैं, फिर कोई भी समस्या नहीं रहेगी, न आपको न उन्हें। प्रेम और आत्मीयता से भरे व्यक्ति में काम का वेग, करुणा और प्रेम के रूप में रूपांतरित होता रहता है, बहुत रचनात्मक कार्यों में लगे व्यक्तियों की काम ऊर्जा भी उनके रचनात्मक कार्यों के माध्यम से विसर्जित हो जाती है। सभी को ऐसा एक द्वार निर्मित करना ही होगा, जिससे वो बिना किसी को हानि पहुंचाए गुणात्मक प्रभाव उत्पन्न करने का जरिया बन जाये, इसके लिए आपको उसे समझना और रूपांतरित करना सीखना होगा, उसका सही नियोजन सीखना होगा। हमारी समस्त ऊर्जा काम की ऊर्जा ही है, इससे जो चाहे उत्पन्न करवा लो, बच्चे या इस दुनिया के श्रेष्ठतम रचनाएं, कला, अविष्कार, उपलब्धियां सब कुछ काम ऊर्जा का ही सकारात्मक और रचनात्मक प्रतिफलन और नियोजन है।
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काम और आध्यात्मिक प्रक्रियायें, साधनाएं, योग और ध्यान  आध्यात्मिक साधनाएं आपको इसे नियमित और संतुलित करने में सहयोगी हो सकती है, इसके अलावा आपको पर्याप्त शारीरिक श्रम, खेल आदि का सहयोग लेना होगा अपनी ऊर्जा को दिशा देने के लिए, वरना दमित काम आपको विकृत और नष्ट कर देगा। योग साधनाएं इसमें बेहद सहयोगी हैं, प्राणायाम और स्वांस संबंधी योगिक क्रियाएं ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन में सहयोगी होती है, काम सबसे निचले तल पर कार्य करता है, और प्रेम और करुणा ऊंचे तलों पर, बस इसे नीचे से ऊपर ले जाना है। योग्य गुरु के सहयोग से इसे सीखा जा सकता है, और काम ऊर्जा के उपद्रवों को नियमित किया जा सकता है, उसके सर्वाधिक कल्याणकारी उपयोग के लिए। इससे आप एक आंतरिक स्वतंत्रता और विजय अपने मनोशारीरिक सिस्टम पर पा लेते हैं, और वहां फिर सबकुछ आपकी मर्जी से संचालित होता है, आपके मन और शरीर आपके निर्देशों का पालन करते है, आप उनके द्वारा उत्पन्न उद्वेगों और आवेगों का अनुकरण करने के लिए बाध्य नहीं होते हैं, आप उनके प्रभाव से मुक्त होते हैं। काम उर्जा के दमन के दुष्परिणाम  काम की निंदा और दमन के कारण सारे तथाकथित महात्मा, मौलवी, पादरी और सामान्य जन इसके कारण पथभ्रष्ट, व्यभिचारी हो जाते हैं और अपनी अनियंत्रित कामुकता के कारण अमानवीय एवं नृशंसतम आपराधिक कार्यों को करने के लिए बाध्य होते हैं। आप सभी रोज़ अखबार और टीवी में समाचार सुनते और देखते होंगे बलात्कार, छेड़छाड़, यौन  हिंसा से सम्बंधित ख़बरों की, यह सब काम के दमन और उसके उचित तरीके से विसर्जन और नियोजन की शक्ति न होने का परिणाम है। आज हजारों तरीके से लोगों की उत्तेजना और कामुकता को भड़काने वाली बातें, चित्र, किताबें, चलचित्र और तमाम किस्म के उपाय सभी संचार और सूचना माध्यमों पर उपलब्ध हैं , इसलिए लोगों के लिए बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाये या बिना सेक्स में उतरे स्वस्थ और शांत रहना संभव नहीं हो पाता है।  आप सभी तो जानते ही होंगे हमारे महात्मा गांधी ने इसे साधने के लिए क्या क्या उपाय किये और बेहद निंदा के पात्र बने, यह इसमें कितने सफल हुए यह तो उनको ही पता होगा और ऐसा हमारे सभी तथाकथित महात्माओं, मौलवियों और पादरियों के साथ हो रहा है। इन्द्रियां और शरीर के हार्मोन किसी भी प्रवचन या धार्मिक किताब की नहीं सुनते वो बस अपना काम करते हैं, यदि आपने स्वयं को अपनी पशु प्रवृत्तियों से ऊपर उठाने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया है तो यह आपसे अन��्थ करवा के रहेंगी या फिर आप इससे बेहद पीड़ित और प्रताड़ित रहेंगे, इसके अप्राकृतिक दमन के कारण। काम का दमन आपको कुंठित, विकृत और व्यभिचारी और परवर्ट बना देगी, इसका नियमन सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य है और प्रेम पूर्ण संबंध निर्मित करना इसका सबसे आसान रास्ता है।
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अंतिम सुझाव  यदि आप पुरुष हैं तो समस्त स्त्रियों में मातृत्व और मातृ शक्तियों को देखिए, उनके साथ मित्रतापूर्ण संबंध निर्मित कीजिये, खुद को और उनको सिर्फ यौन की दृष्टि से मत देखिए और सोचिए। अपना आहार विहार और दिनचर्या ऐसी रखिये जो उत्तेजना पैदा करनेवाली वस्तुओं, भोजन और व्यक्तियों और अन्य सूचना और सामग्री से मुक्त हो, और आपको अपने शरीर और मन के परे के आयामों की खोज में प्रवृत करनेवाले हों। हम सभी सिर्फ हमारे यौनांग नहीं है, हम इससे परे एक बृहत्तर आयाम और अस्तित्व हैं, इसकी खोज और अनुभूति की दिशा में कार्य कीजिये, नियमित, प्राणायाम और शारीरिक श्रम कीजिये, बच्चों के साथ खेलिए और अपने मन और शरीर को निर्दोष रखिये। देखिये आपके लिए क्या सुविधाजनक और सहयोगी हो सकता है, काम का उचित नियमन और नियोजन संभव है, दमन नहीं, यह आपको बेहद मुश्किलों में डाल देगा, सिर्फ गहरे आत्मीय और भावनात्मक संबंध निर्मित करके आप, बिना शारीरिक संबंध बनाए स्वस्थ और प्रसन्न जीवन जी सकते हैं। धन्यवाद Quora पर 133000 से अधिक बार पढ़ा गया एवं 1000 से अधिक अपवोट प्राप्त किये हैं ----यह जारी है  Read the full article
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lifeatexp · 5 years ago
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पुरुषों के शीघ्रपतन का कारण क्या है?  शीघ्रपतन यौन रोग का एक रोग है, जो पुरुषों के आत्मविश्वास और जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।  भविष्य में पुरुषों को यौन जीवन के लिए, शीघ्रपतन की समस्या का इलाज करना आवश्यक है। तो, पुरुषों में शीघ्रपतन का कारण क्या है?  अगला, आइए पुरुषों के शीघ्रपतन के बारे में प्रासंगिक ज्ञान पर एक नज़र डालें।  शीघ्रपतन के कारण क्या हैं?  सन यात-सेन यूनिवर्सिटी के तीसरे संबद्ध अस्पताल के बांझपन और यौन चिकित्सा विभाग के मुख्य चिकित्सक झांग बिन ने कहा कि शीघ्रपतन के कारण विविध हैं और व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न हैं। अब हम आम लोगों की सूची बनाते हैं:  1. आत्म-धार्मिकता: कुछ लोग अपने जीवन को संजोते हैं और सोचते हैं कि "सार की एक बूंद, रक्त की दस बूंदें", यह चिंता करने से कि शरीर को नुकसान होगा।  इससे शुक्राणु धारण करने जैसी बुरी आदतें होती हैं, जिससे शीघ्रपतन हो सकता है।  इसके विपरीत, अत्यधिक भोग भी यौन रोग का कारण बनता है और शीघ्रपतन भी हो सकता है।  2. कुछ विषमलैंगिक बातचीत और यौन ज्ञान की कमी हैं: कुछ विषमलैंगिक मित्र हैं, महिलाओं के साथ भी प्रतिबंधात्मक और शर्मीली हैं। कुछ लोगों में यौन ज्ञान की कमी होती है और यौन अंगों की रहस्यमय भावना होती है, जो घबराहट और शीघ्रपतन का कारण बनता है।  या विफलता के अनुभव के कारण, गंभीर मनोवैज्ञानिक शीघ्रपतन के लिए अग्रणी।  3. अत्यधिक हस्तमैथुन का एक इतिहास है: हालाँकि हस्तमैथुन स्वयं में सीधे तौर पर शीघ्रपतन का कारण नहीं होता है, लेकिन क्योंकि लंबे समय तक हस्तमैथुन करने से स्खलन करने की आदत विकसित करने में आसानी होती है, कुछ लोग बार-बार हस्तमैथुन करते हैं, जिससे जननांगों का लंबे समय तक जमाव होता है, जिससे समय के साथ शीघ्रपतन होता है।  और हस्तमैथुन की प्रक्रिया में, यह कम या ज्यादा लिंग को नुकसान पहुंचाता है, जिससे कार्बनिक समय से पहले स्खलन और दर्दनाक शीघ्रपतन होता है।  4. पति और पत्नी के बीच का संबंध सामंजस्यपूर्ण नहीं है: पत्नी का अत्यधिक भय, अत्यधिक पूजा, मजबूत हीन भावना या पत्नी के प्रति संभावित शत्रुता, यह सब शीघ्रपतन का कारण होगा।  5. संभोग की संख्या बहुत कम है: कुछ लोग काम और अध्ययन के कारण घबरा जाते हैं, या पति-पत्नी अलग हो जाते हैं, या पति-पत्नी एक लंबी अवधि की व्यावसायिक यात्रा पर होते हैं। क्योंकि लंबे समय तक संभोग नहीं हुआ है, यौन आवश्यकताएं बहुत मजबूत हैं और शीघ्रपतन आसान है।  यह भी युवा लोगों के शीघ्रपतन का एक बड़ा कारण है, जिसे समय पर उपचार या कंडीशनिंग की आवश्यकता होती है।  6. अत्यधिक संवेदनशील नसें: यह सुझाव दिया गया है कि शीघ्रपतन वाले कुछ लोग हैं, क्योंकि लिंग के पृष्ठीय तंत्रिका सामान्य लोगों की तुलना में अधिक संवेदनशील होते हैं।  7. फोरस्किन बहुत लंबा है: क्योंकि ग्लान्स म्यूकोसा आमतौर पर फोर्स्किन के नीचे छिपा होता है, ग्लान्स म्यूकोसा आमतौर पर कम घर्षण और जलन के अधीन होता है, जिससे ग्लान्स म्यूकोसा तंत्रिका बहुत संवेदनशील महसूस होता है।  यौन जीवन के दौरान, इरेक्शन के बाद ग्रंथियों को उजागर किया जाता है। जब ग्रंथियों और महिला के निचले शरीर को रगड़ा और उत्तेजित किया जाता है, तो ग्लान्स म्यूकोसा तंत्रिका बहुत नाजुक और संवेदनशील होती है, और शीघ्रपतन होता है, जिससे शीघ्रपतन होता है।  8. प्रोस्टेटाइटिस: पुरुषों में जीवन और काम का बहुत दबाव होता है, सामाजिकता से थक जाते हैं, तंबाकू और शराब जैसी बुरी आदतों, जो आसानी से प्रोस्टेट स��जन का कारण बन सकती हैं।  प्रोस्टेट की सूजन के मुख्य खतरों में से एक है शीघ्रपतन।  9. मूत्र प्रणाली में संक्रमण: मूत्रजननांगी संक्रमण से अक्सर ऑर्काइटिस, एपिडीडिमाइटिस, सेमिनल वेसिक्युलिटिस, मूत्रमार्गशोथ आदि होते हैं, जो प्रजनन अंगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और शीघ्रपतन को ट्रिगर करते हैं।  शीघ्रपतन के प्रकार क्या हैं?  1. समयपूर्व स्खलन: उन लोगों को संदर्भित करता है जिनके पास समय से पहले स्खलन होता है और सामान्य यौन फिजियोलॉजी, मजबूत शिश्न निर्माण, मजबूत यौन इच्छा, मजबूत शिश्न निर्माण, और मैथुन का इंतजार नहीं कर सकते, उनमें से अधिकांश युवा और मध्यम आयु वर्ग के लोगों में पाए जाते हैं;  2. जराचिकित्सा समय से पहले स्खलन: मुख्य रूप से यौन रोग के कारण होता है: स्खलन का समय जो मध्यम आयु या बुजुर्गों के बाद धीरे-धीरे होता है, अक्सर उन्नत कामेच्छा और कमजोर शिश्न निर्माण के साथ होता है;  3. समसामयिक समय से पहले स्खलन: यह स्थिति ज्यादातर तब होती है जब शरीर और मन थक जाते हैं और मूड में उतार-चढ़ाव होता है।  समय से पहले स्खलन नहीं था, समय से पहले स्खलन जो एक निश्चित मानसिक या शारीरिक तनाव की स्थिति के बाद तीव्र होता है, अक्सर स्तंभन दोष के साथ होता है।  शीघ्रपतन को कैसे रोक सकते हैं?  स्टॉप-रिइमुलेशन विधि, लंबे समय तक हस्तमैथुन करने से तेजी से स्खलन हो सकता है, यह कानून इसके विपरीत करता है।  यौन जीवन के दौरान, महिला को श्रेष्ठ लें, उत्तेजना को रोकें जब पुरुष स्खलन महसूस करता है, और फिर स्खलन पलटा गायब होने पर उत्तेजित करता है, इसलिए स्खलन के नियंत्रण को प्राप्त करने के लिए दोहराया प्रशिक्षण।  निचोड़ विधि, यौन जीवन महिला को श्रेष्ठ बनाता है, जब रोगी स्खलन के करीब महसूस करता है, उत्तेजना को रोक देता है, महिला लिंग के अंगूठे को निचोड़ती है, समय 3 सेकंड -4 सेकंड है, आधे मिनट के बाद, स्खलन पलटा गायब हो जाता है, आप  फिर संभोग या निचोड़ विधि का अभ्यास करना जारी रखें, दिन में 4-5 बार अभ्यास करें, स्खलन की सीमा को बढ़ा सकते हैं, शीघ्रपतन के इलाज के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए।  विचलित करने की विधि, यौन जीवन के दौरान, जब स्खलन होने वाला होता है, संभोग करना बंद कर देते हैं और उद्देश्यपूर्ण तरीके से उन चीजों के बारे में सोचते हैं, जो संभोग ��े संबंधित नहीं हैं, ताकि यौन उत्तेजना कम हो और स्खलन में देरी हो।  कुछ लोगों ने चुपचाप खुद को "रोक" चिल्लाया। अचानक तनाव के कारण, उत्तेजना शिफ्ट हो गई, और स्खलन में देरी करने का उद्देश्य हासिल किया जा सकता था।  अंडकोश को नीचे खींचते हुए, पुरुष अंडकोश को यौन उत्तेजना के दौरान अनुबंधित किया जाता है, अर्थात् अंडकोष स्पष्ट रूप से लिंग की जड़ के करीब उठाया जाता है। यौन उत्तेजना को कम करने और स्खलन में देरी करने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, आप सक्रिय रूप से अंडकोश को नीचे खींच सकते हैं।  नीचे खींचो, इससे स्खलन में देरी होगी।  कंडोम का उपयोग करें। कंडोम एक अवरोध है। कंडोम का उपयोग करने से पुरुष की यौन उत्तेजना कम हो जाती है।  ज्यादातर लोग लिंग की संवेदनशीलता को कम करने के लिए कंडोम का उपयोग करते हैं, लेकिन उत्तेजना कम करने के लिए हर कोई कंडोम का उपयोग नहीं कर सकता है।  वर्तमान में, कुछ कंडोम में संवेदनाहारी तरल या औषधीय क्रीम मिलाया गया है, जो स्खलन में देरी का एक महत्वपूर्ण प्रभाव है।  पबिस और कोक्सीक्स मांसपेशी प्रशिक्षण, पबिस और कोक्सीक्स की मांसपेशियों की स्खलन के नियंत्रण में एक निश्चित भूमिका होती है, अगर पुरुष और योनी की मांसपेशियां कमजोर होती हैं, तो स्खलन का नियंत्रण खो देगा, इसलिए इस मांसपेशी के व्यायाम को मजबूत करना है।  विशिष्ट विधि पेशाब के दौरान आधे रास्ते को सक्रिय रूप से रोकना है, और फिर पेशाब करना जारी रखें।  पेशाब में रुकावट की इस विधि में पबोकॉसीगेस मांसपेशी का उपयोग किया जाता है।  आप बैले डांसर की तरह अपने पैर की उंगलियों पर भी खड़े हो सकते हैं, और एक ही समय में अपने पैरों, नितंबों और मूत्र की मांसपेशियों को कस सकते हैं। आप एक समय में एक दर्जन बार कूद सकते हैं, दिन में तीन से पांच बार व्यायाम कर सकते हैं और धीरे-धीरे स्खलन को नियंत्रित करने की अपनी क्षमता में सुधार कर सकते हैं।  ।
http://www.lifeatexp.site/2020/06/Shighrapatan-upay.html
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gethealthy18-blog · 5 years ago
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पीसीओएस (पीसीओडी) के कारण, लक्षण और घरेलू इलाज – Polycystic Ovary Syndrome (PCOS/PCOD) in hindi
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पीसीओएस (पीसीओडी) के कारण, लक्षण और घरेलू इलाज – Polycystic Ovary Syndrome (PCOS/PCOD) in hindi
महिलाओं के हार्मोनल स्तर में बदलाव होना सामान्य है। ऐसे में हार्मोनल परिवर्तन से संबंधित कई जोखिम भी उत्पन्न हो सकते हैं। उनमें से एक पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) भी है। इसे पॉलिसिस्टिक ओवरी डिजीज (पीसीओडी) के नाम से भी जाना जाता है। एक मेडिकल रिसर्च की माने, तो महिला जनसंख्या में से 6-10 प्रतिशत महिलाएं इस समस्या का शिकार होती हैं (1)। अगर किसी महिला को यह समस्या है, तो उन्हें बिना किसी झिझक के इस बारे में डॉक्टर से बात करनी चाहिए। स्टाइलक्रेज का यह आर्टिकल आपको पीसीओएस से जुड़ी हर तरह की जानकारी देगा। हम बताएंगे कि पीसीओडी के कारण क्या हो सकते हैं और पीसीओएस के लक्षण किस तरह से नजर आ सकते हैं। इसके अलावा, पीसीओएस के लिए घरेलू उपाय पर विस्तारपूर्वक जानकारी देंगे।
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इस आर्टिकल में सबसे पहले पीसीओएस क्या है, इसकी जानकारी दी जा रही हैं।
विषय सूची
पीसीओएस क्या है? – What is PCOS in Hindi
यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब हार्मोंस असंतुलित हो जाएं व मेटाबॉलिज्म की समस्या होने लगे। हार्मोंस असंतुलित होने से मासिक धर्म चक्र पर असर पड़ता है। आमतौर पर प्रति माह मासिक धर्म चक्र में ओवरी (अंडाशय) में अंडाणु बनते हैं और बाहर निकलते हैं, लेकिन पीसीओएस होने पर अंडाणु विकसित नहीं हो पाते हैं। साथ ही बाहर नहीं निकल पाते हैं (2)।
इसके अलावा, महिलाओं के शरीर में पुरुष हार्मोन (एंड्रोजन) का विकास होने पर भी पीसीओएस की समस्या उत्पन्न हो सकती है। महिलाओं में इस हार्मोन की वृद्धि के परिणामस्वरूप कई समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं, जिनमें मासिक धर्म की अनियमितता, बांझपन (Infertility) और त्वचा की समस्याएं जैसे मुंहासे और बालों का बढ़ना शामिल हैं (3)। आगे हम आपको बताएंगे कि महिलाओं के शरीर में किन कारणों से पीसीओएस को बढ़ावा मिल सकता है।
पीसीओएस क्या है, यह जानने के बाद अब पीसीओएस के कारण पर चर्चा करते हैं।
पीसीओएस के कारण – Causes of PCOS in Hindi
पीसीओएस का मुख्य कारण हार्मोन के स्तर में परिवर्तन होना है, जिस कारण ओवरी में अंडाणु पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाते और उनका ओवरी से बाहर निकलना भी कठिन हो जाता है। हालांकि, वैज्ञानिक तौर पर सटीक रूप से यह कहना मुश्किल है कि पीसीओएस किस कारण से होता है, लेकिन इसे लेकर आम धारणाएं इस प्रकार हैं (3):
आनुवंशिक कारण: कुछ महिलाओं में पीसीओएस की समस्या आनुवंशिक हो सकती है। यह समस्या एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी की महिला को हो सकती है। हालांकि, इस संबंध में वैज्ञानिक शोध का अभाव है, लेकिन जिनकी मां को यह समस्या रही हो, उन्हें अधिक सावधानी बरतनी चाहिए (4)।
पुरुष हार्मोन की वृद्धि: कई बार महिलाओं की ओवरी अधिक मात्रा में पुरुष हार्मोन (एंड्रोजन) का उत्पादन करने लगती है। पुरुष हार्मोन के ज्यादा मात्रा में उत्पादन होने पर ओव्यूलेशन प्रक्रिया के समय अंडाणु को बाहर निकलने में मुश्किल होती है। इस अवस्था को मेडिकल भाषा में हाइपरएंड्रोजनिसम कहा जाता है (5)।
इंसुलिन असंतुलन: शरीर में पाया जाने वाला इंसुलिन हार्मोन भी पीसीओएस कारण बन सकता है। दरअसल, हार्मोन आहार में पाए जाने वाले शुगर और स्टार्च को ऊर्जा में बदलने का काम करते हैं। वहीं, जब इंसुलिन का संतुलन बिगड़ जाता है, तो एंड्रोजन हार्मोन की वृद्धि होने लगती है। इससे ओव्यूलेशन प्रक्रिया पर प्रभाव पढ़ने लगता है और महिलाओं में पीसीओएस की समस्या उत्पन्न हो जाती है (6)।
खराब जीवनशैली : खराब जीवनशैली के कारण भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है। जंक फूड का सेवन ज्यादा करने से शरीर को पर्याप्त पौष्टिक तत्व नहीं मिल पाते हैं। साथ ही नशीले पदार्थों और सिगरेट का सेवन करना भी इस बीमारी का एक कारण है।
ऊपर आपने पीसीओएस के कारण पढ़े, आगे हम पीसीओएस के लक्षण बता रहे हैं।
पीसीओएस के लक्षण – Symptoms of PCOS in Hindi
पीसीओएस का सबसे प्रमुख लक्षण मासिक धर्म चक्र में परिवर्तन शामिल है, इसके अलावा अन्य लक्षण इस प्रकार हैं (3):
युवावस्था के दौरान सामान्य रूप से पीरियड शुरू होने के बाद उनका बंद हो जाना। इसे सेकंडरी एमेनोरिया कहा जाता है।
अनियमित पीरियड का आना और बंद हो जाना।
पीसीओएस के अन्य लक्षणों में शामिल हैं:
शरीर के कई हिस्सों में बालों का उगना, जैसे छाती, पेट, चेहरे व निपल्स।
चेहरे, छाती या पीठ पर मुंहासे होना।
त्वचा में परिवर्तन, जैसे कि त्वचा पर काले निशान नजर आना। खासकर बगल, कमर, गर्दन और स्तनों के आसपास।
पीसीओएस के कारण और लक्षण की जानकारी देने के बाद, अब हम पीसीओएस के लिए घरेलू उपाय बता रहे हैं।
पॉलीसायस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) के लिए घरेलू उपाय – Home Remedies for Polycystic Ovary Syndrome (PCOS) in Hindi
पॉलीसायस्टिक ओवरी सिंड्रोम एक ऐसी समस्या है, जिसे घरेलू उपचार के मदद से दूर करना पूरी तरह संभव नहीं है, लेकिन घरेलू उपचार की मदद से इसके लक्षणों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। आइए, इन घरेलू उपचारों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
1. विटामिन डी
सामग्री:
विटामिन-डी कैप्सूल
उपयोग करने का तरीका:
इसे सीधे सेवन किया जा सकता है।
इसे डॉक्टर की सलाह पर ही लेना चाहिए।
कैप्सूल की जगह विटामिन-डी से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे टूना, सैल्मन, मैकेरल मछली, पनीर, अंडे का पीला भाग और मशरूम भी लिए जा सकते हैं (7)।
कैसे है लाभदायक:
एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में बताया गया है कि विटामिन डी का उपयोग पीसीओएस से राहत पाने में सहायक हो सकता है। इस शोध के मुताबिक विटामिन-डी असामान्य रूप से बढ़ रहे सीरम एंटी-मुलरियन हार्मोन (एएमएच) के स्तर को कम करने का काम कर सकता है। एएमएच एक तरह का हार्मोन है, जिसके बढ़ने पर पीसीओएस की समस्या हो सकती है। इसके अलावा, पीसीओएस वाली महिलाओं में मेटफार्मिन थेरेपी (मधुमेह के इलाज लिए अपनाई जाने वाली थेरेपी) के साथ-साथ विटामिन-डी और कैल्शियम की खुराक देने पर मासिक धर्म को नियमित करना और ओव्यूलेशन प्रक्रिया को सही करने में मदद मिलती है। ऐसे में कहा जा सकता है कि विटामिन-डी के सेवन से पीसीओएस के लक्षणों को दूर किया जा सकता है (8)।
2. सेब का सिरका
सामग्री:
दो चम्मच सेब का सिरका
एक गिलास पानी
उपयोग करने का तरीका:
सबसे पहले पानी को हल्का गर्म कर लें।
फिर उसमें सेब के सिरके डाल लें और अच्छे से मिक्स करें।
फिर इसे पी लें।
कैसे है लाभदायक:
सेब के सिरके का सेवन पीसीओएस से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। इस विषय पर एक शोध किया गया है। शोध के तहत पीसीओएस में हार्मोनल और ओव्यूलेटरी फंक्शन पर सिरके के प्रभाव जानने के लिए सात रोगियों को 90-110 दिन तक रोजाना 15 ग्राम सेब के सिरका दिया गया। इससे यह साबित हुआ कि सेब के सिरके के सेवन से इस समस्या के इलाज में कुछ हद मदद मिल सकती हैं। शोध के अनुसार ऐसा इसलिए संभव है, क्योंकि सिरके के सेवन से पीसीओएस से प्रभावित रोगी में इंसुलिन संवेदनशीलता बेहतर होती है (9)।
3. नारियल तेल
सामग्री:
एक चम्मच नारियल तेल
उपयोग करने का तरीका:
नारियल तेल का सीधे सेवन किया जा सकता है या इसे स्मूदी में मिलाकर पिया जा सकता है।
कैसे है लाभदायक:
नारियल के तेल का उपयोग करने पर पीसीओएस के उपचार में मदद मिल सकती है। इस संबंध में किए गए एक वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि डेकोनिक एसिड युक्त आहार के सेवन से एंड्रोजन के उत्पादन को कम करके पीसीओएस की समस्या को कुछ कम किया जा सकता है। डेकोनिक एसिड एक तरह का नॉन-टॉक्सिक फैटी एसिड होता है, जिसमें 10 कार्बन अणु होते हैं। वहीं, नारियल तेल में डेकोनिक एसिड प्राकृतिक रूप से पाया जाता है (10)। फिलहाल, इस पर और शोध किए जाने की जरूरत है, ताकि पता चल सके कि यह किस तरह काम करता है।
4. इवनिंग प्रिमरोज ऑयल
सामग्री:
ईवनिंग प्रिमरोज ऑयल कैप्सूल
उपयोग करने का तरीका:
इस कैप्सूल को सीधे सेवन किया जा सकता है।
प्रतिदिन एक कैप्सूल लिया जा सकता है।
कैसे है लाभदायक:
एनसीबीआई में पब्लिश एक शोध के मुताबिक ईवनिंग प्रिमरोज ऑयल के उपयोग से पीसीओएस के इलाज में मदद मिल सकती है। इस शोध में कुछ महिलाओं को 12 हफ्ते तक विटामिन-डी और ईवनिंग प्रिमरोज ऑयल दिया गया। इससे उनमें ट्राइग्लीसेराइड (एक तरह का फैट), वेरी लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल (वीएलडीएल) के स्तर में सुधार पाया गया। साथ ही ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस में भी कमी आई, जिस कारण मरीज को पीसीओएस के लक्षणों से कुछ राहत मिली (11)।
5. ग्रीन टी
सामग्री:
एक चम्मच ग्रीन टी पाउडर
एक कप पानी
एक चम्मच शहद
उपयोग करने का तरीका:
सबसे पहले पानी में ग्रीन टी पाउडर को मिलाएं और कुछ देर तक गर्म करें।
कुछ मिनट गर्म होने के बाद इस चाय को छान कर कप में डाल लें।
फिर ऊपर से शहद डाल लें और चाय के स्वाद का आनंद लें।
इसे दिन में दो से तीन बार तक पी सकते हैं।
कैसे है लाभदायक:
एक अध्ययन के अनुसार, ग्���ीन टी के सेवन से शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को कम किया जा सकता है, जिससे पीसीओएस के लक्षण को दूर किया जा सकता है। यह इंसुलिन को भी कम करने में मदद कर सकता है। जैसा कि ऊपर लेख में बताया गया है कि इंसुलिन की असंतुलित मात्रा पीसीओएस का कारण बन सकती है। ऐसे में कहा जा सकता है कि पीसीओएस में ग्रीन टी का उपयोग सहायक हो सकता है। यह जानकारी एनसीबीआई की वेबसाइट में प्रकाशित एक वैज्ञानिक शोध में दी गई है (12)।
6. रॉयल जेली
सामग्री:
दो चम्मच रॉयल जेली
उपयोग करने का तरीका:
इसे सामान्य तरीके से सेवन किया जाता है।
प्रतिदिन सुबह कुछ मात्रा में लिया जा सकता है।
कैसे है लाभदायक:
रॉयल जेली एक तरह का शहद होती है। वहीं, पीसीओएस एक हार्मोन से संबंधित समस्या होती है, जिसके इलाज में रॉयल जेली के सेवन की सलाह दी जा सकती है। एक वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर रॉयल जेली के 200 से 400 मिलीग्राम के सेवन से सीरम एस्ट्राडियोल (फीमेल हार्मोन) के स्तर में वृद्धि हो सकती है। यह मासिक धर्म चक्र को रेगुलेट करने का काम करता है। साथ ही रॉयल जेली सीरम प्रोजेस्टेरोन (महिलाओं से संबंधित एक तरह का हार्मोन) के स्तर में वृद्धि कर सकता है। प्रोजेस्टेरोन में वृद्धि होने से मासिक धर्म चक्र नियमित हो सकता है, जिससे पीसीओएस के उपचार में मदद मिल सकती है। यह सब रॉयल जेली में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट और एस्ट्रोजेनिक प्रभाव के कारण होता है, जिसका प्रभाव प्रजनन प्र��ाली (रिप्रोडक्टिव सिस्टम) पर होता है (13)।
7. एलोवेरा जूस
सामग्री:
एक गिलास एलोवेरा जूस
उपयोग करने का तरीका:
ताजा एलोवेरा जूस को सुबह खाली पेट पिएं।
इसे प्रत्येक सुबह पिया जा सकता है।
कैसे है लाभदायक:
पीसीओएस के इलाज में एलोवेरा जूस का उपयोग किया जा सकता है। एक वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि एलोवेरा जेल में पीसीओएस से बचाने की क्षमता होती है। इस अध्ययन के अनुसार, एलोवेरा जेल पीसीओएस से जूझ रही महिलाओं में हाइपरग्लाइसेमिक (उच्च रक्त शुगर) स्थिति को सामान्य करने में मदद कर सकता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि एलोवेरा जेल में हाइपोग्लाइसेमिक यानी रक्तचाप को कम करने का प्रभाव होता है। साथ ही एलोवेरा में फाइटोस्टेरॉल (एक तरह का प्लांट स्टेरॉल) और फाइटो-फिनोल होता है। यह जानकारी एनसीबीआई की वेबसाइट पर मौजूद है (14)।
8. आंवला जूस
सामग्री:
एक चम्मच आंवले का रस
एक कप पानी
उपयोग करने का तरीका:
आंवले के रस को पानी में अच्छे से घोल लें।
फिर इस मिश्रण को पी लें।
इसे दिन में एक बार पी सकते हैं।
कैसे है लाभदायक:
पीसीओएस के मरीज को कई खाद्य पदार्थ से दूर रखा जाता है और कई खाद्य पदार्थ उनके आहार में शामिल करने की सलाह दी जाती है। जिन खाद्य पदार्थों को आहार में शामिल किया जाता है, वो पीसीओएस के लक्षण को कम करने में मदद कर सकते हैं। ऐसे में जिन खाद्य पदार्थ को पीसीओएस के मरीज की दिनचर्या में शामिल किया जा सकता है, उनमें आंवला का जूस भी शामिल है (15)। अभी इस संबंध में और वैज्ञानिक शोध की आवश्यकता है कि यह किस गुण के कारण पीसीओएस में लाभदायक होता है।
9. जीरा पानी
सामग्री:
आधा चम्मच जीरा पाउडर
एक कप पानी
उपयोग करने का तरीका:
सबसे पहले पानी को हल्का गर्म करें।
फिर उसमें जीरा पाउडर को मिलाएं और कुछ देर तक गुनगुना होने दें।
पानी के गुनगुना होने पर इसे कप में निकाल कर पिएं।
इसे दिन में दो बार पिया जा सकता है।
कैसे है लाभदायक:
कई समस्याओं से निपटने के लिए हर्बल उपचारों का सहारा लिया जाता है। वैसे ही पीसीओएस के इलाज में जीरा का उपयोग किया जा सकता है। यह शरीर में हार्मोन के स्तर को सामान्य बनाने का काम कर सकता है और वजन कम करने में भी सहायता कर सकता है। इससे मासिक चक्र के अनियमित होने की समस्या कम हो सकती है। इसके अलावा, जीरे में हाइपोग्लाइसेमिक और एंटी-ओबेसिटी गतिविधि भी होती हैं, जो ब्लड शुगर और मोटापे को सामान्य करने का काम कर सकती है (16)। ध्यान रहे कि कम रक्त शुगर वाले इसका अधिक मात्रा में सेवन न करें, इसमें हाइपोग्लाइसेमिक प्रभाव होता है, जो रक्त में शुगर की मात्रा को जरूरत से ज्याद कम कर सकता है।
10. सीड्स
कलौंजी के बीज
सामग्री:
एक चम्मच कलौंजी के बीज
एक चम्मच शहद
उपयोग करने का तरीका:
दोनों सामग्रियों को मिलाएं और इस मिश्रण का सेवन करें।
इसे प्रतिदिन सुबह खाया जा सकता है।
कैसे है लाभदायक:
एनसीबीआई की ओर से प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, कलौंजी के अर्क का उपयोग टाइप-2 मधुमेह रोगियों पर हाइपोग्लाइसेमिक प्रभाव के लिए किया जाता है। इसमें एंटी-डायबिटिक गतिविधि होती है। इसके अलावा, यह प्रजनन प्रणाली (रिप्रोडक्टिव सिस्टम) पर भी सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। साथ ही कलौंजी में थाइमोक्विनोन (एक तरह का यौगिक) पाया जाता है, जो पीसीओएस से संबंधित लक्षणों को रोकने के साथ-साथ कम करने और ओव्यूलेशन प्रक्रिया को बेहतर करने का काम कर सकता है (17)।
चिया बीज
सामग्री:
आधा चम्मच चिया बीज
एक गिलास दूध
उपयोग करने का तरीका:
दूध को हल्का गर्म करें और उसमें चिया बीज को मिलाएं।
फिर इस मिश्रण का सेवन कर लें।
कैसे है लाभदायक:
चिया बीज के सेवन से पीसीओएस की समस्या को दूर रखा जा सकता है। दरअसल, यह हार्मोन को संतुलित रखने का काम कर सकता है। साथ ही इसके इस्तेमाल से वजन भी घट सकता है, जिससे मासिक चक्र को सामान्य बनाए रखने में मदद मिल सकती है। इससे पीसीओएस की समस्या कुछ कम हो सकती है (16)। अभी इस संबंध में और वैज्ञानिक शोध की जरूरत है, जिससे कि पीसीओएस पर इसका असर पूरी तरह से स्पष्ट हो सके।
मेथी के बीज
सामग्री:
दो चम्मच मेथी बीज
आधा कप पानी
एक चम्मच शहद
उपयोग करने का तरीका:
मेथी के बीज को रात भर पानी में भिगोकर रखें।
फिर भीगे हुए मेथी के बीज को शहद में मिलाकर खाएं।
इसका सेवन रोज सुबह किया जा सकता है।
कैसे है लाभदायक:
मेथी के बीज को लेकर एक वैज्ञानिक शोध किया गया, जिसका उद्देश्य पीसीओएस पर मेथी का प्रभाव जानना था। इस शोध में 50 पूर्व-रजोनिवृत्त (प्रीमीनोपॉज) महिलाओं को लिया गया है, जिनकी उम्र 18 से 45 वर्ष थी। इनमें से 42 महिलाओं को पीसीओएस की समस्या थी। शोध से प्राप्त हुए परिणामों से पता चला है कि मेथी के बीज का अर्क ओवेरियन वॉल्यूम यानी साइज में कमी ला सकता है। कुछ हद तक डॉक्टर पीसीओएस का निदान ओवेरियन वॉल्यूम से ही करते हैं। इसके अलावा, यह लुटेइनीजिंग हार्मोन और फॉलिकल-स्टिमुलेटिंग हार्मोन (महिलाओं से संबंधित हार्मोन) के स्तर को भी बढ़ा सकता है। साथ ही मेथी के बीज का अर्क पीसीओएस के लक्षणों को कम करने के लिए प्रभावी हो सकता है (18) (19)।
सामग्री:
एक चम्मच तिल
एक गिलास पानी
गुड़ का छोटा टुकड़ा
उपयोग करने का तरीका:
सबसे पहले पानी में तिल के बीज को मिलाएं और कुछ देर तक उबालें।
फिर इसमें स्वाद के लिए गुड़ को मिलाएं और कप में निकाल लें।
अब इस काढ़े का सेवन कर लें।
इसे प्रतिदिन एक से दो कप तक पी सकते हैं।
कैसे है लाभदायक:
तिल के बीज के सेवन से पीसीओएस को दूर रख सकता है। दरअसल, तिल के बीज के उपयोग से ओलिगोमेनोरिया का इलाज किया जा सकता है। ओलिगोमेनोरिया ऐसी स्थिति है, जिसमें मासिक धर्म प्रवाह में कमी आ जाती है (20)। इसलिए, ओलिगोमेनोरिया की समस्या में अक्सर पीसीओएस का जोखिम उत्पन्न हो जाता है (21)। ऐसे में ओलिगोमेनोरिया का इलाज होने पर पीसीओएस के जोखिम से बचा जा सकता है।
सौंफ
सामग्री:
दो चम्मच सौंफ
एक गिलास पानी
उपयोग करने का तरीका:
सौंफ को रातभर आधा गिलास पानी में भिगोकर रखें।
फिर सुबह इसमें आधा गिलास पानी और डालें।
उसके बाद इसे लगभग 5 मिनट के लिए गर्म करें।
फिर इसे छानकर पी लें।
इसे प्रतिदिन सुबह खाली पेट पिया जा सकता है।
कैसे है लाभदायक:
सौंफ के उपयोग से पीसीओएस की समस्या में कुछ हद तक सुधार हो सकता है। दरअसल, सौंफ में रीनोप्रोटेक्टिव प्रभाव पाए जाते हैं, जो पीसीओएस के इलाज में मदद कर सकते हैं। पीसीओएस की समस्या को कम करने के लिए सौंफ का सेवन करने से इस समस्या में कुछ हद तक सुधार हो सकता है (18)।
कद्दू के बीज
सामग्री:
5 से 10 कद्दू के बीज
उपयोग करने का तरीका:
कद्दू के बीज को छिल लें और इसका सेवन कर लें।
इसे कुछ ड्राई फ्रूट के साथ मिलाकर भी खाया जा सकता है।
प्रतिदिन कद्दू के कुछ बीज लिए जा सकते हैं।
कैसे है लाभदायक:
कद्दू के बीज में एसेंशियल फैटी एसिड (EFA) पाया जाता है, जो शरीर के लिए जरूरी होते हैं। ईएफए हार्मोन की प्रक्रिया को संतुलित करने में मदद कर सकता है। साथ ही यह इंसुलिन के नियंत्रित करके रक्त शर्करा को संतुलित करता है और पीरियड्स को नियमित कर सकता है (22)। इससे पीसीओएस जैसी समस्या को दूर रखा जा सकता है।
11. दालचीनी
सामग्री:
एक चम्मच दालचीनी पाउडर
एक चम्मच शहद
उपयोग करने का तरीका:
सबसे पहले दोनों सामग्रिया को आपस में अच्छी तरह से मिला लें।
फिर इसका सेवन कर लें।
इसका दिन में एक बार सेवन किया जा सकता है।
कैसे है लाभदायक:
एक वैज्ञानिक रिसर्च के मुताबिक दालचीनी के उपयोग से शरीर में इंसुलिन के स्तर को कम किया जा सकता है। वहीं, 40 दिन तक दालचीनी का प्रतिदिन सेवन करने पर मधुमेह के रोगियों में रक्त शर्करा के स्तर को भी कम किया जा सकता है। दालचीनी को 8 हफ्ते तक रोज उपयोग करने से पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में इंसुलिन प्रतिरोध कम हो जाता है। साथ ही पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में पीरियड्स को नियमित रूप से बनाए रखने में भी मदद मिल सकती है (23)।
12. मुलेठी की जड़
सामग्री:
एक चम्मच मुलेठी की जड़ का पाउडर
एक कप पानी
उपयोग करने का तरीका:
सबसे पहले पानी को गर्म करें और उसमें मुलेठी पाउडर को डालें।
कुछ देर तक पानी को गर्म होने दें।
फिर इसे छान कर एक कप में डाल लें।
इसे ताजा ही पिएं।
इसे दिन में दो बार पी सकते हैं।
कैसे है लाभदायक:
मुलेठी के उपयोग से भी पीसीओएस की समस्या को कम किया जा सकता है। इस संबंध में प्रकाशित एक मेडिकल शोध में बताया गया है कि मुलेठी के अर्क असंतुलित हार्मोनल स्तर और अनियमित ओवेरियन फॉलिकल को रेगुलेट करते हैं, जिससे पीसीओएस के लक्षणों को दूर किया जा सकता है (24)। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि पीसीओडी के लिए घरेलू उपाय में मुलेठी को भी शामिल किया जा सकता है।
13. चेस्टबेरी
सामग्री:
चेस्टबेरी सप्लीमेंट
उपयोग करने का तरीका:
डॉक्टर की सलाह पर इसका सेवन करें।
कैसे है लाभदायक:
एक क्लिनिकल शोध में बताया गया है कि चेस्टबेरी के इस्तेमाल से प्रोलैक्टिन (एक तरह का ��ार्मोन) कम हो सकता है। प्रोलैक्टिन का स्तर ज्यादा होने से मासिक धर्म व प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है। इसके अलावा, चेस्टबेरी से मासिक धर्म की अनियमितता और बांझपन में भी सुधार हो सकता है (25)। इससे पीसीओएस की समस्या को पनपने से रोका जा सकता है।
और जानकारी के लिए लेख को पढ़ते रहें
चलिए, अब जानते हैं कि पीसीओएस का इलाज कैसे किया जा सकता है।
पीसीओएस का इलाज – Treatment of PCOS in Hindi
पीसीओएस का संपूर्ण इलाज संभव नहीं है। दवाइयों के माध्यम से सिर्फ इसके लक्षणों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। इसके लक्षणों को दूर करने के लिए डॉक्टर नीचे बताए जा रही दवाइयां दे सकते हैं (2): 
हार्मोनल बर्थ कंट्रोल (जो गर्भवती नहीं होना चाहती):
यह मासिक धर्म को नियमित कर सकता है।
एंडोमेट्रियल कैंसर के जोखिम को कम करने में मददगार हो सकता है।
मुंहासे में सुधार कर सकता है और चेहरे व शरीर के अन्य अंगों पर आए अतिरिक्त बालों को कम करने में मदद कर सकता है।
एंटी-एंड्रोजन दवाई: यह दवाई एंड्रोजन के प्रभाव को कम करती है, जिससे सिर के बाल झड़ने की समस्या कम हो सकती है और चेहरे व शरीर के बालों के विकास में कमी आ सकती है। साथ ही मुंहासे को कम करने में भी मदद मिल सकती हैं। फिलहाल, फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने दवा को अनुमति नहीं दी है, क्योंकि यह दवाई गर्भावस्था के दौरान समस्या पैदा कर सकती हैं।
मेटफॉर्मिन: इस दवाई का उपयोग टाइप 2 मधुमेह के इलाज और कुछ महिलाओं में पीसीओएस के लक्षणों को दूर करने में किया जाता है। यह दवाई इंसुलिन में सुधार कर रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) को कम कर सकती है। साथ ही यह इंसुलिन और एंड्रोजन दोनों के स्तर को भी कम कर सकती है, जिससे पीसीओएस की समस्या दूर हो सकती है।
अन्य जानकारी के लिए पढ़ें नीचे
इस लेख के अगले भाग में हम पीसीओएस से बचने के उपाय बता रहे हैं।
पीसीओएस से बचने के उपाय – Prevention Tips for PCOS in Hindi
पीसीओएस की समस्या आनुवंशिक भी हो सकती है। ऐसे में इस समस्या से बचना आसान नहीं है, लेकिन इन सावधानियों को ध्यान में रखने से इस समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है।
नियमित रूप से योग व्यायाम करने पर शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखा जा सकता है, जिससे कई समस्याएं दूर रह सकती हैं।
नियमित रूप से डॉक्टरी चेकअप कराएं, ताकि किसी भी समस्या का समय रहते पता चल सके और उसका इलाज किया जा सके। इससे पीसीओएस की समस्या को उत्पन्न होने से रोकने में मदद मिल सकती है।
कई बार वजन का अधिक बढ़ना या कम होने पर कुछ समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। ऐसे में वजन को नियंत्रित रख कर उन समस्याओं को उत्पन्न होने से रोका जा सकता है।
अगर किसी के पीरियड्स लंबे समय से नियमित समय पर नहीं आ रहे हैं, तो ऐसे में उन्हें इस बारे में डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
अगर किसी को अधिक तनाव की समस्या है, तो इससे भी पीसीओएस की समस्या हो सकती है। ऐसे में तनाव मुक्त रहने पर कई समस्याओं से बचा जा सकता है।
यह बात भलीभांती समझ आ गई कि पीसीओएस किस तरह की समस्या है। अगर किसी महिला में ऊपर बताए गए कोई भी लक्षण दिखाई दे रहे हैं, तो वो एक बार इस बारे में डॉक्टर से सलाह जरूर करें। इसके लक्षण को अनदेखा करना गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है। आप इस आर्टिकल को अपने परिवार व अन्य महिलाओं के साथ शेयर कर सकते हैं, ताकि वो भी इस बीमारी के प्रति जागरूक हो सकें। हम उम्मीद करते हैं कि इस आर्टिकल में दिए गए जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
लंबे समय तक अनुपचारित पीसीओएस का प्रभाव?
लंबे समय तक पीसीओएस का इलाज नहीं करने पर एंडोमेट्रियल कैंसर का जोखिम उत्पन्न हो सकता है (26)।
अगर मुझे पीसीओएस है, तो मुझे क्या खाना चाहिए?
अगर आपको पीसीओएस की समस्या है, तो आप इन्हें आहार में शामिल कर सकती हैं (15):
कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले अनाज
कम कैलोरी वाले भोजन
साबुत अनाज
फलियां (legumes)
पीसीओएस गर्भावस्था क्या है और पीसीओएस गर्भावस्था को कैसे प्रभावित करता है?
पीसीओएस के कारण महिलाओं के शरीर में कई बदलाव हाेते हैं। इस कारण गर्भधारण करने में समस्या आती है, लेकिन कुछ उपचार की मदद से गर्भधारण किया जा सकता है। इसके बावजूद पीसीओएस के चलते गर्भावस्था में कई समस्याएं हो सकती है, जिनमें गर्भपात, गर्भावधि मधुमेह और गर्भवस्था में उच्च रक्तचाप (pre-eclampsia) आदि शामिल है। यहां तक कि इसके कारण सी-सेक्शन यानी सिजेरियन डिलीवरी की आशंका पैदा हो सकती है (2)।
क्या पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम खतरनाक है?
वैसे तो पीसीओएस सामान्य स्थिति में खतरनाक नहीं होता है, लंबे समय तक इलाज न करवाने पर गंभीर रूप जरूर ले सकता है।
आप कैसे जान सकते हैं कि आपको पीसीओएस है या नहीं?
पीसीओएस की समस्या को जानना आसान हो सकता है। इसके लिए आपको इसके लक्षण का पता होना जरूरी है। हमने ऊपर लेख में इसके लक्षण बताए हैं, जो पीसीओएस के बारे में अंदाजा लगाने में मदद कर सकते हैं।
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भूपेंद्र वर्मा ने सेंट थॉमस कॉलेज से बीजेएमसी और एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी से एमजेएमसी किया है। भूपेंद्र को लेखक के तौर पर फ्रीलांसिंग में काम करते 2 साल हो गए हैं। इनकी लिखी हुई कविताएं, गाने और रैप हर किसी को पसंद आते हैं। यह अपने लेखन और रैप करने के अनोखे स्टाइल की वजह से जाने जाते हैं। इन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्म की स्टोरी और डायलॉग्स भी लिखे हैं। इन्हें संगीत सुनना, फिल्में देखना और घूमना पसंद है।
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