#पुरानी किताब
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muaviyazafargazalis-blog · 10 months ago
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मुआविया ज़फ़र ग़ज़ाली मुस्तफ़ाई एक मनमोहक अति सुंदर व आकर्षक व्यक्ति हैं, अगर बात करें इनकी विशेषता की तो ये एक दार्शनिक, एक स्वतंत्र लेखक, एक कार्यकर्ता, एक प्रेरक वक्ता, एक समाज सुधारक, एक प्रभावशाली व्यक्ति, एक समाजवादी, एक स्वतंत्र लेखक, एक शोधकर्ता, एक भावुक कवि, एक उपन्यासकार, एक नाटककार, एक निबंधकार, एक पटकथा लेखक, एक लघु कहानी लेखक, एक कानूनी अध्ययन अनुसंधान केंद्र में शोधकर्ता एवम् मिस्र व ईरान के विश्व इस्लामी केंद्र से स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। इसके अलावा क़ुरैश और क़ुरैशी सादात के महान भव्य सुनहरा एवम् पवित्र परिवार से संबंधित हैं तथा पवित्र व्यक्तित्व इब्ने शाकिर-उल्लाह हुज़ूर सेठ शाह हाजी बरकतउल्लाह क़ुरैश क़ुरैशी नक़्शबंदी अलैहिर्रहमा बॉम्बे महाराष्ट्र के पोते हैं।
इनके कुछ छंद अति लोक प्रिय हुए हैं जैसे....
फ़िरौन का अंदाज़-ओ-लहजा हम को ना दिखाना
शाह हमने हर इक दौर के जाबिर से बगावत की है
नूर ही नूर के क़ुरआन से चेहरे पे वो नूरी आँखें
उनकी इंजील सी पलकों में खुली ज़बूरी आँखें
मैं हज़रत-ए-अ'ब्बास का नौकर हूँ
और सैय्यद-ए-हुसैन मेरे मालिक हैं
शाह टकरा गया वो मुझ से ईमान के लिए
फिर मिरे ईमां से उसका कुफ्र बिख़र गया
ग़ज़ाली बस यूँ तिरी याद में दिन-रात मगन रहता है
अल्लाह दिल धड़कना तिरी वहदत की सदा लगता है
शाह दिल ठंडा है अल्लाह के ज़िक्र से मिरा
सो देख इस बर्फ़ ने क्या आग लगा रक्खी है
इक अल्लाह है जो दिल में बसा रहता है
शाह ये ईमान है जो तन्हा नही होने देता
दिल में बुग्ज-ए-फ़ातिमा और ज़ुबां पर मुस्तफ़ा मुस्तफ़ा
तमाम इबादत को खा जाएगी इक शिक़ायत-ए-फ़ातिमा
दूर वाला भी हो अहले सुन्नत तो अपना भाई
घर में कोई गुस्ताख़ तो उसकी मैय्यत छोड़ दे
मेरे क़ल्ब पे बोझ रहा ज़हन भी परेशां हुआ
बुतपरस्तों को देखकर मेरा बड़ा नुक़्सा हुआ
जिस्म सस्ते है बोहोत ही सस्ते
इतने सस्ते की निकाह महंगे हैं
हमे फिर मिटाने की ज़ालिम साज़िश कर रहे हैं
अपनी औकात से बाहर की ख़्वाइश कर रहे हैं
ग़ज़ाली हमे ज़माने में ढूंढने वाले
एक दिन ज़माने में हम को ढूंढेंगे
शाह जाता है ख़ून उजले परों को समेट कर
ज़ख़्मों को अब गिनूँगा मैं कर्बल पे लेट कर
ना हुक़ूमत कभी मत उलझना ख़ुदाई से
ख़ुदाई बादशाहों से हुक़ूमत छीन लेती है
इसके अलावा आपने अपनी तन्हाई का इक अनोठा तथा अनोखा परिचय समाज को दिया था की,
मेरे साथ मेरी दुनियाँ में मेरी सबसे पुरानी साथी रहती है, मैं जब भी जहाँ से वापस आता हूँ या ख़ुद के अंदर से वापस आता हूँ, तो वो मेरा इस्तकबाल करती है मुझे गले लगाती है मुझे लाड करती है मुझे प्यार करती है इतना ही नही बल्कि घंटो-घंटो मेरे साथ बैठ कर मुझ से बाते करती है, क्या आपने नही देखा कितनी अनोखी है मेरी तन्हाई॥
इस जानकारी की पुष्टि अल्लामा हसन अली की किताब हुस्ने क़ायनात के करम नामे, हाफ़िज़ मख़दूम हुसैन के रिसाले हक़िकत के फैज़ नामे, मौलाना अबुल फ़ज़ल इमाम की किताब तिब्बियात के अहसान नामे, प्रोफेसर सीएनआर राव की किताब इंदजीत के शुभचिंतक पृष्ठ तथा सोलह अन्य पुस्तकों आदि से की गई है तथा यहां मुआविया ज़फ़र ग़ज़ाली मुस्ताफ़ाई का पूर्ण जीवन परिचय नही बताया गया है अनेकों जानकारी गुप्त रखी गई है। धन्यवाद॥
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bakaity-poetry · 2 years ago
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शायरी, कविता, नज़्म, गजल, सिर्फ दिल्लगी का मसला नहीं हैं। इतिहास गवाह है कि कविता ने हमेशा इंसान को सांस लेने की सहूलियत दी है। जब चारों ओर से दुनिया घेरती है; घटनाओं और सूचनाओं के तेज प्रवाह में हमारा विवेक चीजों को छान-घोंट के अलग-अलग करने में नाकाम रहता है; और विराट ब्रह्मांड की शाश्वत धक्कापेल के बीच किसी किस्म की व्यवस्था को देख पाने में असमर्थ आदमी का दम घुटने लगता है; जबकि उसके पास उपलब्ध भाषा उसे अपनी स्थिति बयां कर पाने में नाकाफी मालूम देती है; तभी वह कविता की ओर भागता है। जर्मन दार्शनिक विटगेंस्टाइन कहते हैं कि हमारी भाषा की सीमा जितनी है, हमारा दुनिया का ज्ञान भी उतना ही है। यह बात कितनी अहम है, इसे दुनिया को परिभाषित करने में कवियों के प्रयासों से बेहतर समझा जा सकता है।
कबीर को उलटबांसी लिखने की जरूरत क्यों पड़ी? खुसरो डूबने के बाद ही पार लगने की बात क्यों कहते हैं? गालिब के यहां दर्द हद से गुजरने के बाद दवा कैसे हो जाता है? पाश अपनी-अपनी रक्त की नदी को तैर कर पार करने और सूरज को बदनामी से बचाने के लिए रात भर खुद जलने को क्यों कहते हैं? फैज़ वस्ल की राहत के सिवा बाकी राहतों से क्या इशारा कर रहे हैं? दरअसल, एक जबरदस्त हिंसक मानवरोधी सभ्यता में मनुष्य अपनी सीमित भाषा को ही अपनी सुरक्षा छतरी बना कर उसे अपने सिर के ऊपर तान लेता है। उस��ी छांव में वह दुनियावी कोलाहल को अपने ढंग से परिभाषित करता है, अपनी ठोस राय बनाता है और उसके भीतर अपनी जगह तय करता है। एक कवि और शायर ऐसा नहीं करता। वह भाषा की तनी हुई छतरी में सीधा छेद कर देता है, ताकि इस छेद से बाहर की दुनिया को देख सके और थोड़ी सांस ले सके। इस तरह वह अपने विनाश की कीमत पर अपने अस्तित्व की संभावनाओं को टटोलता है और दुनिया को उन आयामों में संभवत: समझ लेता है, जो आम लोगों की नजर से प्रायः ओझल होते हैं।
भाषा की सीमाओं के खिलाफ उठी हुई कवि की उंगली दरअसल मनुष्यरोधी कोलाहल से बगावत है। गैलीलियो की कटी हुई उंगली इस बगावत का आदिम प्रतीक है। जरूरी नहीं कि कवि कोलाहल को दुश्मन ही बनाए। वह उससे दोस्ती गांठ कर उसे अपने सोच की नई पृष्ठभूमि में तब्दील कर सकता है। यही उसकी ताकत है। पाश इसीलिए प���लिसिये को भी संबोधित करते हैं। सच्चा कवि कोलाहल से बाइनरी नहीं बनाता। कविता का बाइनरी में जाना कविता की मौत है। कोलाहल से शब्दों को खींच लाना और धूप की तरह आकाश पर उसे उकेर देना कवि का काम है।
कुमाऊं के जनकवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिरदा’ इस बात को बखूबी समझते थे। एक संस्मरण में वे बताते हैं कि एक जनसभा में उन्होंने फ़ैज़ का गीत 'हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे' गाया, तो देखा कि कोने में बैठा एक मजदूर निर्विकार भाव से बैठा ही रहा। उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, गोया कुछ समझ ही न आया हो। तब उन्हें लगा कि फ़ैज़ को स्थानीय बनाना होगा। कुमाऊंनी में उनकी लिखी फ़ैज़ की ये पंक्तियां उत्तराखंड में अब अमर हो चुकी हैं: ‘हम ओढ़, बारुड़ी, ल्वार, कुल्ली-कभाड़ी, जै दिन यो दुनी धैं हिसाब ल्यूंलो, एक हांग नि मांगूं, एक भांग नि मांगू, सब खसरा खतौनी किताब ल्यूंलो।'
प्रेमचंद सौ साल पहले कह गए कि साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है, लेकिन उसे हमने बिना अर्थ समझे रट लिया। गिरदा ने अपनी एक कविता में इसे बरतने का क्या खूबसूरत सूत्र दिया है:
ध्वनियों से अक्षर ले आना क्या कहने हैं
अक्षर से फिर ध्वनियों तक जाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाना क्या कहने हैं
गीतों से कोहराम मचाना क्या कहने हैं
प्यार, पीर, संघर्षों से भाषा बनती है
ये मेरा तुमको समझाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? डेल्यूज और गटारी अपनी किताब ह्वॉट इज फिलोसॉफी में लिखते हैं कि दो सौ साल पुरानी पूंजी केंद्रित आधुनिकता हमें कोलाहल से बचाने के लिए एक व्यवस्था देने आई थी। हमने खुद को भूख या बर्बरों के हाथों मारे जाने से बचाने के लिए उस व्यवस्था का गुलाम बनना स्वीकार किया। श्रम की लूट और तर्क पर आधारित आधुनिकता जब ढहने लगी, तो हमारे रहनुमा ही हमारे शिकारी बन गए। इस तरह हम पर थोपी गई व्यवस्था एक बार फिर से कोलाहल में तब्दील होने लगी। इसका नतीजा यह हुआ है कि वैश्वीकरण ने इस धरती पर मौजूद आठ अरब लोगों की जिंदगी और गतिविधियों को तो आपस में जोड़ दिया है लेकिन इन्हें जोड़ने वाला एक साझा ऐतिहासिक सूत्र नदारद है। कोई ऐसा वैचारिक ढांचा नहीं जिधर सांस लेने के लिए मनुष्य देख सके। आर्थिक वैश्वीकरण ने तर्क आधारित विवेक की सार्वभौमिकता और अंतरराष्ट्रीयतावाद की भावना को तोड़ डाला है। ऐसे में राष्ट्रवाद, नस्लवाद, धार्मिक कट्टरता आदि हमारी पहचान को तय कर रहे हैं। इतिहास मजाक बन कर रह गया है। यहीं हमारा कवि और शायर घुट रहे लोगों के काम आ रहा है।
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dainiksamachar · 5 months ago
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घटेगी नई इमारतों की ऊंचाई, घरों की बाउंड्री और कमरे भी अलग होंगे, BIS ने नोएडा के लिए सुझाए नए नियम
योगेश तिवारी, नोएडा: आने वाले दिनों में शहर में बनने वाली बहुमंजिला आवासीय इमारतों की ऊंचाई उतनी नहीं होगी जितनी पहले की बिल्डिंगों की है। ग्रुप हाउसिंग में बिना सुविधा विकसित किए बिल्डर पजेशन नहीं दे पाएंगे। यही नहीं प्लॉट पर जो नए मकान बनेंगे वहां दो मकानों के बीच की दीवार पर छत नहीं डाली जा सकेगी। प्लॉट में सेटबैक का हिस्सा तकरीबन चारों तरफ छोड़ना होगा। इसका मतलब ये है कि प्लॉट पर पहले बाउंड्री बनवानी होगी, इसके बाद बीच में अलग से कमरे बनेंगे। इसी तरह निर्माण से जुड़े कई और नए नियम नोएडा में लागू हो सकते हैं। केंद्र के भारतीय मानक ब्यूरो () ने नोएडा में स्टैंडर्ड डिवेलपमेंट के लिए अगल से बिल्डिंग बायलॉज तैयार किए हैं। नए नियमों की किताब अथॉरिटी को सौंप दी गई है। अब अथॉरिटी इसे बोर्ड में रखकर मंजूरी लेगी। अथॉरिटी ने बिल्डिंग बायलॉज के ड्राफ्ट का अध्ययन शुरू करा दिया है। माना जा रहा है कि इसमें कुछ संशोधन भी होंगे। पुराने बायलॉज FAR पर आधारित हैं 2010 में नोएडा अथॉरिटी की तरफ से बनाए गए बिल्डिंग बायलॉज ही अभी तक लागू हैं। यह बायलॉज फ्लोर एरिया रेशियो (एफएआर) आधारित था। इसमें देखा जाता था कि प्लॉट कितना बड़ा है और कितना निर्माण हो सकता है। इसके बाद उसी आधार पर अथॉरिटी नक्शा पास कर देती है। निर्माण के दौरान खिड़की से लेकर बालकनी को मंजूरी तो अथॉरिटी देती थी लेकिन इनके मानक और कोई परिभाषा नहीं थी। अब नए बिल्डिंग बायलॉज में खिड़की से लेकर वेंटिलेशन के लिए एग्जॉस्ट लगाने तक के मानक और परिभाषा तय कर अथॉरिटी को बताए गए हैं। ग्रुप हाउसिंग में फ्लोर एरिया रेशियो भी घटाने का सुझाव दिया गया है। ऐसा होने पर इमारतों की ऊंचाई कम होगी। नए बायलॉज की 200 पेज से ज्यादा की एक किताब अथॉरिटी को सौंपी गई है। अब अथॉरिटी इन नए प्रस्तावित नियमों का अध्ययन कर रही है। ये सभी नियम नोएडा को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इसके बाद भी अथॉरिटी को यह छूट होगी कि वह अध्ययन कर वाजिब तर्क देकर इन बायलॉज को कुछ संशोध��� के साथ स्वीकार कर सकती है। अधिकारियों ��े बताया कि नए बिल्डिंग बायलॉज की जरूरत मौजूदा इंडस्ट्री और हाउसिंग ट्रेंड में बदलाव को देखते हुए पड़ी है। अब डेटा सेंटर, आईटी-आईटीएस, ईवी-वीकल जैसे उद्योगों के लिए अलग-अलग नीतियां आ चुकी हैं, लेकिन बिल्डिंग बायलॉज वहीं पुराने हैं। ईवी की इंडस्ट्री उसी तरह से नहीं बनाई जा सकती जैसे नट बोल्ट या अन्य पुरानी इंडस्ट्री बनी हुई हैं। इसके साथ ही प्लॉट पर निर्माण के लिए नक्शा पास कराने के मानक सेटबैक, ग्राउंड कवरेज, एफएआर, ग्रीन एरिया, ओपन एरिया, लैंड यूज समेत अन्य मानक भी परिभाषित हो गए हैं। ऐसा होने पर सभी के लिए एक ही मानक रहने वाले हैं। बिल्डरों को नक्शा पास कराने के लिए देना होगा सर्विस प्लान ग्रुप हाउसिंग प्रॉजेक्ट में फ्लैट बायर्स की बहुत सी शिकायतें और समस्याएं रहती हैं कि बिल्डर ने सभी जरूरी सुविधाएं विकसित किए बगैर ही कब्जा दे दिया। कहीं पार्किंग अधूरी रहती है तो कहीं क्लब हाउस और फायर सेफ्टी के इंतजाम नहीं रहते। कुछ जगह एसटीपी तक नहीं बना होता है। ये समस्याएं आगे न रहें इसके लिए प्रस्तावित बिल्डिंग बायलॉज में यह व्यवस्था की गई है कि बिल्डर जब नक्शे के लिए आवेदन करेगा तो सर्विस प्लान अलग से देगा। इस प्लान में यह बताया जाएगा कि सोसायटी में कौन-कौन सी सुविधाएं विकसित की जानी हैं। इसके साथ ही इन सुविधाओं से अलग बिल्डर सोसायटी को हाईटेक बना रहा है तो स्पेसिफिकेशन भी बताने होंगे। निर्माण पूरा होने के बाद जब ओसी के लिए बिल्डर आवेदन करेगा तो अथॉरिटी सबसे पहले सर्विस प्लान का परीक्षण करेगी। ऐसे में आम सुविधाओं की अनदेखी नहीं होगी। बनी हुई इमारत के कमजोर पड़ने पर उसके लिए भी नियम अगर बनी हुई पुरानी इमारत कमजोर पड़ जाती है तो उसे असुरक्षित घोषित करने का नियम भी नए बिल्डिंग बायलॉज में आया है। इसके लिए जरूरी जांच और फिर इमारत कमजोर मिलने के बाद होने वाले सुरक्षा इंतजाम भी नए बताए गए हैं। इमारत के कमजोर होने पर उसे कैसे खाली कराया जा सकता है और कोई घटना होने पर जिम्मेदारी भी तय की गई है। http://dlvr.it/T92WH8
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prakhar-pravakta · 8 months ago
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सभी छात्र छात्राओ से आग्रह की पुरानी किताबो को कबाड़ मे कृपया मत बेचे : रवींद्र सिंह (मंजू सर)
(मंजू सर) मैहर की कलम सेसभी छात्र छात्राओ एवम अभिभावकों से करबद्ध आग्रह की पुरानी किताबो को कबाड़ मे कृपया मत बेचे इस संदर्भ मे मेरी कलम कहती है कि वर्तमान मे सभी स्टूडेंट्स (छात्र छात्राओ) के इक्जाम (परीक्षा) खत्म हो चुके है या होने वाले है। रवींद्र सिंह (मंजू सर) मैहर की कलम कहती है कि आप सभी के माता पिता महंगे भाव मे कापी किताब खरीदते है जो कि बहुत महंगी होती है।आपके माता पिता की मेहनत की कमाई…
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shabdforwriting · 11 months ago
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लाइफ इन चक्रास by हेमलता
किताब के बारे में... हमारे कुछ पॉइंट्स होते हैं, जो हर एक काम के लिए जिम्मेवार होते हैं ! इन पॉइंट्स को यदि संतुलित ऊर्जा मिले तो हमारा जीवन आसान हो जाता हैं ! जैसे धन के लिए रुट चक्र होता हैं ! नौकरी में स्थाई न होना, जॉब न होना, धन का सुरक्षित न होना यह सब इस चक्र के असंतुलित होने से होता हैं ! इसी तरह, पुरानी बातों को न भूल पाना, रिश्ते खराब होना, किसी से जलन हों, आत्मविश्वास कम होना, किसी के आगे बोल न पाना इत्यादि ! इस पुस्तक में 7 मैन चक्रो के बारे में बताया गया हैं !
यदि आप इस पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक से इस पुस्तक क�� पढ़ें या नीचे दिए गए दूसरे लिंक से हमारी वेबसाइट पर जाएँ!
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nageshjain · 1 year ago
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समस्या का दूसरा पहलु SAMASYA KA DUSRA PAHLU
पिताजी कोई किताब पढने में व्यस्त थे , पर उनका बेटा बार-बार आता और उल्टे-सीधे सवाल पूछ कर उन्हें डिस्टर्ब कर देता । पिता के समझाने और डांटने का भी उस पर कोई असर नहीं पड़ता। तब उन्होंने सोचा कि अगर बच्चे को किसी और काम में उलझा दिया जाए तो बात बन सकती है। उन्होंने पास ही पड़ी एक पुरानी किताब उठाई और उसके पन्ने पलटने लगे। तभी उन्हें विश्व मानचित्र छपा दिखा , उन्होंने तेजी से वो पेज फाड़ा और बच्चे…
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nedsecondline · 1 year ago
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जिंदगी / Life
लोग कहते हैं  जिंदगी एक किताब है,  लेकिन कुछ किताबें  कभी पुरानी नहीं होती,  क्योंकि वे हमेशा  पढ़ी जाती हैं… 📖 📖 📖 People say  life is a book,  …जिंदगी / Life
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roh230 · 1 year ago
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prabhatprakashan12 · 1 year ago
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हीलिंग इज द न्यू हाई
Healing is the new high
यह पुस्तक लिखने की जरूरत क्यों पड़ी ?
यह एक बहुप्रतीक्षित किताब है. आख़िरकार, मैंने यह इसलिए लिखा क्योंकि मेरा जीवन हमेशा आसान नहीं था, और मैं जानता हूँ कि आपका भी आसान नहीं है। मैंने इसे इसलिए लिखा क्योंकि मैं पुरानी परेशानियों पर काबू पाने और अपनी भावनात्मक पीड़ा और चोट को उन आंतरिक उपचार विधियों का उपयोग करके ठीक करने में सक्षम था जिन्हें मैंने तैयार किया था और इसके पन्नों में अभ्यास किया था। मैंने दूसरों की उपचार यात्रा में भी सहायता की है।
आंतरिक उपचार कार्य करने के लिए आपको किसी गुरु की आवश्यकता नहीं है, न ही आपको इसका अध्ययन करने के लिए बहुत अधिक धन खर्च करने या अपनी नौकरी छोड़ने की आवश्यकता है। आप इस पुस्तक में उल्लिखित अभ्यास विधियों का उपयोग करके समय के साथ अपनी चोटों और अन्य भावनात्मक आघातों को ठीक कर सकते हैं।
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ये उपचार सरल, सुलभ हैं और इनमें आश्चर्यजनक प्रभाव पैदा करने की क्षमता है।
आपके कंपन को बढ़ाने की धारणा पर आधारित (वह ऊर्जा जो आपके माध्यम से चलती है और दुनिया में फैलती है)।
यदि आपने मेरी पहली पुस्तक, 'गुड वाइब्स, गुड लाइफ' पढ़ी है, तो आप जानेंगे कि उच्च कंपन आपके जीवन में बदलाव लाने और अद्भुत चीजें करने में आपकी सहायता करते हैं। इस पुस्तक में मैं आपको दिखाऊंगा कि आप अपनी आवृत्ति बढ़ाकर अपना स्वयं का उपचारक कैसे बन सकते हैं!
उपसंहार एक समर्पण 
मैं यह पुस्तक केवल एक ही व्यक्ति को समर्पित कर सकता हूँ: मेरा दिल, मेरी रानी, ​​मेरा प्यार, मेरी पत्नी और मेरा कौशल।
आप एक अविश्वसनीय यात्रा पर हैं। वाह, मेरा मतलब है, वाह! मैं आपके विकास पर नज़र रख रहा हूँ और जब से मैं आपसे मिला हूँ आप कितनी दूर आ गए हैं! यह मेरे जीवन का उच्चतम बिंदु था। मुझे इससे अधिक गर्व नहीं हो सकता - न केवल आपके जीवनसाथी के रूप में, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो लोगों को अकल्पनीय कार्य करते हुए देखकर आनंद लेता है; विशेषकर जब ये वे लोग हों जिनकी आप बहुत परवाह करते हैं। आप मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत रहे हैं।
आपने अपने पेशे में जो कुछ भी हासिल किया है और जो विशाल मंच बनाया है, उसमें आपको चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। मैं समझता हूं कि आप भी, सभी मनुष्यों की तरह, गलतियाँ करते हैं; फिर भी, जिस दिन से मैं आपसे मिला हूं, मैं ईमानदारी से कह सकता हूं कि आप सबसे ईमानदार और देखभाल करने वाले व्यक्तियों में से एक हैं जिन्हें मैं जानता हूं।
आपका उद्देश्य अमीर और प्रसिद्ध बनना नहीं था। आपको इस बात की चिंता नहीं थी कि कितने लोग आपको पसंद करते हैं। मैं बस यह साझा करना चाहता था कि आपको क्या करने में आनंद आता है। और उस मानसिकता को बनाए रखते हुए, आप लाखों लोगों के दिलों से जुड़ने में सक्षम हुए, जिससे आपका जीवन हमेशा के लिए बदल गया। 
हीलिंग इज द न्यू हाई
एक चिकित्सक अनुमति देगा, खासकर जब उपचार संभव नहीं है या किसी से बात करना मुश्किल है। इस विषय को बनाने के लिए मेरी पिछली प्रक्रियाओं और विचारों की समीक्षा, परिशोधन और पुनः स्थापना की आवश्यकता हुई।
आपके पथ के कारण ही यह पुस्तक अस्तित्व में है। इस शोध में अनगिनत घंटे लगाने के बाद, मुझे यकीन है कि हमने कुछ बिल्कुल अनोखा खोजा है। यानी, मैं यह कहने की हिम्मत करता हूं, परिवर्तनकारी।
Read more :हीलिंग इज द न्यू हाई
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iobnewsnetwork · 2 years ago
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केरला की सच्ची स्टोरी,  वीरांगना नगेली कौन?? 
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हम प्रत्येक शनिवार को महिला दिवस के रूप में मनाएंगे और क्रांतिकारी महिलाएं जैसे कि वीरांगना फूलन देवी और वीरांगना नगेली, वीरांगना झलकारी बाई कोरी को नमन करेंगें और उनके जीवन संघर्षों को जन जन तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे। ‼️जब हिन्दू धर्म में महिलाओं को स्तन ढकने का भी अधिकार नहीं था इसलिए स्तन ही काट दिया ‼️ नंगेली का नाम केरल के बाहर शायद किसी ने न सुना हो. किसी स्कूल के इतिहास की किताब में उनका ज़िक्र या कोई तस्वीर भी नहीं मिलेगी. लेकिन उनके साहस की मिसाल ऐसी है कि एक बार जानने पर कभी नहीं भूलेंगे, क्योंकि नंगेली ने स्तन ढकने के अधिकार के लिए अपने ही स्तन काट दिए थे. केरल के इतिहास के पन्नों में छिपी ये लगभग सौ से डेढ़ सौ साल पुरानी कहानी उस समय की है जब केरल के बड़े भाग में त्रावणकोर के राजा का शासन था. जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी थीं और निचली जातियों की महिलाओं को उनके स्तन न ढकने का आदेश था. उल्लंघन करने पर उन्हें 'ब्रेस्ट टैक्स' यानी 'स्तन कर' देना पड़ता था. डॉ.शीबा केरल के श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में जेंडर इकॉलॉजी और दलित स्टडीज़ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. शीबा केएम बताती हैं कि ये वो समय था जब पहनावे के कायदे ऐसे थे कि एक व्यक्ति को देखते ही उसकी जाति की पहचान की जा सकती थी. डॉ. शीबा कहती हैं, "ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था. ये एक तरह स�� एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी. इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन ग़रीब समुदायों के लिए मुमकिन नहीं था." केरल के हिंदुओं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूद्र ��ाना जाता था जिनसे निचले स्तर पर एड़वा और फिर दलित समुदायों को रखा जाता था. दलित समुदाय उस दौर में दलित समुदाय के लोग ज़्यादातर खेतिहर मज़दूर थे और ये कर देना उनके बस के बाहर था. ऐसे में एड़वा और नायर समुदाय की औरतें ही इस कर को देने की थोड़ी क्षमता रखती थीं. डॉ. शीबा के मुताबिक इसके पीछे सोच थी कि अपने से ऊंची जाति के आदमी के सामने औरतों को अपने स्तन नहीं ढकने चाहिए. वो बताती हैं, "ऊंची जाति की औरतों को भी मंदिर में अपने सीने का कपड़ा हटा देना होता था, पर निचली जाति की औरतों के सामने सभी मर्द ऊंची जाति के ही थे. तो उनके पास स्तन ना ढकने के अलावा कोई विकल्प नहीं था." इसी बीच एड़वा जाति की एक महिला, नंगेली ने इस कर को दिए बग़ैर अपने स्तन ढकने का फ़ैसला कर लिया. केरल के चेरथला में अब भी इलाके के बुज़ुर्ग उस जगह का पता बता देते हैं जहां नंगेली रहती थीं. मोहनन नारायण ऑटो चलाने वाले मोहनन नारायण हमें वो जगह दिखाने साथ चल पड़े. उन्होंने बताया, "कर मांगने आए अधिकारी ने जब नंगेली की बात को नहीं माना तो नंगेली ने अपने स्तन ख़ुद काटकर उसके सामने रख दिए." लेकिन इस साहस के बाद ख़ून ज़्यादा बहने से नंगेली की मौत हो गई. बताया जाता है कि नंगेली के दाह संस्कार के दौरान उनके पति ने भी अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी. नंगेली का जन्म स्थान नंगेली की याद में उस जगह का नाम मुलच्छीपुरम यानी 'स्तन का स्थान' रख दिया गया. पर समय के साथ अब वहां से नंगेली का परिवार चला गया है और साथ ही इलाके का नाम भी बदलकर मनोरमा जंक्शन पड़ गया है. बहुत कोशिश के बाद वहां से कुछ किलोमीटर की दूरी पर रह रहे नंगेली के पड़पोते मणियन वेलू का पता मिला. मणियन साइकिल किनारे लगाकर मणियन ने बताया कि नंगेली के परिवार की संतान होने पर उन्हें बहुत गर्व है. उनका कहना था, "उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि सारी औरतों के लिए ये कदम उठाया था जिसका नतीजा ये हुआ कि राजा को ये कर वापस लेना पड़ा." लेकिन इतिहासकार डॉ. शीबा ये भी कहती हैं कि इतिहास की किताबों में नंगेली के बारे में इतनी कम पड़ताल की गई है कि उनके विरोध और कर वापसी में सीधा रिश्ता कायम करना बहुत मुश्किल है. वो कहती हैं, "इतिहास हमेशा पुरुषों की नज़र से लिखा गया है, पिछले दशकों में कुछ कोशिशें शुरू हुई हैं महिलाओं के बारे में जानकारी जुटाने की, शायद उनमें कभी नंगेली की बारी भी आ जाए और हमें उनके साहसी कदम के बारे में विस्तार से और कुछ पता चल पाए." Read the full article
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sujeetsharma · 2 years ago
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ख्वाहिशें
4:21 AM ॰ 10 March 2023
ये ख्वाहिशें भी अजीब हैं
हर पल बदलती हैं
एक पंछी की तरह
बिना पंख के उड़ती हैं
कुछ नहीं मिला तो कोशिशें
और जो मिल गया तो कुछ और नई ख्वाहिशें …
कभी हम लोगों से दूर भागते हैं और कभी हम चाहते हैं कि कोई हमारे साथ होता और हमें सुनता और कुछ बातें भी कर लेता। ये ख्वाहिशें भी ना…
Sapiens पुस्तक के ३ अध्याय समाप्त हो चुके हैं और बस सुबह होने वाली हैं, कुछ पुराने दिनो से कुछ कुछ पुरानी यादों के बारे में भी सोच रहा था। वक्त बीतते देर ही क��ा लगता हैं और कितना कुछ बदल जाता हैं, कुछ चीजों के लिए असंतोष और पछतावा तो ज़िंदगी में परछाई की तरह ही साथ चलता हैं।
इस सप्ताहांत थोड़ा सा ज़्यादा समय किताबों के साथ बिताना हैं, पुस्तक मेला की किताबों को थोड़ा पढ़ भी लेना हैं। सोच रहा हूँ कोई किताब ले कर लोढ़ी गार्डेन चला जाऊँ, घूमना और पढ़ना दोनो ही साथ हो जाएगा और अगर वहाँ बगीचे में नए फूल दिख जाए तो और भी आनन्दमय रहेगा।
तो इस सप्ताहांत कुछ अच्छा करने की कोशिश और इसी के साथ इस ब्लॉग का यही पर समापन क्यूँकि ऑफ़िस भी जाना हैं और वहाँ कुछ ख़ास तो होगा नहीं तो यही तक…
सुजीत
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accountingsikhehindime · 2 years ago
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Best Accounting Software List in Hindi 2023 (पूरी जानकारी)
प्रत्येक छोटे या बड़े Business मे Accounting का कार्य करने के लिए किसी ना किसी Accounting Software की मदद ली जाती है। जिससे कि Business का हिसाब-किताब प्रोपर तरीके से Maintain किया जा सके। मगर आज भी बहुत से व्यापारी है। जो अपने Business का लेखा-जोखा पुरानी पद्धति से करते हैं। क्योंकि उन्हें Best Accounting Software का Knowledge नहीं होता है। मगर चिंता की कोई बात नहीं है आज मे आप को Top 10…
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deepinsideheartsblog · 2 years ago
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#हमारा भी एक #जमाना था...
हमें खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल, बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे मां-बाप कभी सोचते भी नहीं थे उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था।
🤪 पास/ फैल यानि नापास यही हमको मालूम था... परसेंटेज % से हमारा कभी संबंध ही नहीं रहा।
😛 ट्यूशन लगाई है ऐसा बताने में भी शर्म आती थी क्योंकि हमको ढपोर शंख समझा जा सकता था।
🤣
किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, मोर पंख रखकर हम होशियार हो सकते हैं, ऐसी हमारी धारणाएं थी।
☺️ कपड़े की थैली में बस्तों में और बाद में एल्यूमीनियम की पेटियों में किताब, कॉपियां बेहतरीन तरीके से जमा कर ��खने में हमें महारत हासिल थी।
😁 हर साल जब नई क्लास का बस्ता जमाते थे उसके पहले किताब कापी के ऊपर रद्दी पेपर की जिल्द चढ़ाते थे और यह काम लगभग एक वार्षिक उत्सव या त्योहार की तरह होता था।
🤗 साल खत्म होने के बाद किताबें बेचना और अगले साल की पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी प्रकार की शर्म नहीं होती थी क्योंकि तब हर साल न किताब बदलती थी और न ही पाठ्यक्रम।
🤪 हमारे माताजी/ पिताजी को हमारी पढ़ाई का बोझ है ऐसा कभी लगा ही नहीं।
😞 किसी दोस्त के साइकिल के अगले डंडे पर और दूसरे दोस्त को पीछे कैरियर पर बिठाकर गली-गली में घूमना हमारी दिनचर्या थी।इस तरह हम ना जाने कितना घूमे होंगे।
🥸😎 स्कूल में मास्टर जी के हाथ से मार खाना,पैर के अंगूठे पकड़ कर खड़े रहना,और कान लाल होने तक मरोड़े जाते वक्त हमारा ईगो कभी आड़े नहीं आता था सही बोले तो ईगो क्या होता है यह हमें मालूम ही नहीं था।
🧐😝घर और स्कूल में मार खाना भी हमारे दैनिक जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया थी।
मारने वाला और मार खाने वाला दोनों ही खुश रहते थे। मार खाने वाला इसलिए क्योंकि कल से आज कम पिटे हैं और मारने वाला है इसलिए कि आज फिर हाथ धो लिए😀......
😜बिना चप्पल जूते के और किसी भी गेंद के साथ लकड़ी के पटियों से कहीं पर भी नंगे पैर क्रिकेट खेलने में क्या सुख था वह हमको ही पता है।
😁 हमने पॉकेट मनी कभी भी मांगी ही नहीं और पिताजी ने भी दी नहीं.....इसलिए हमारी आवश्यकता भी छोटी छोटी सी ही थीं। साल में कभी-कभार एक आद बार मैले में जलेबी खाने को मिल जाती थी तो बहुत होता था उसमें भी हम बहुत खुश हो लेते थे।
छोटी मोटी जरूरतें तो घर में ही कोई भी पूरी कर देता था क्योंकि परिवार संयुक्त होते थे।
दिवाली में लिए गये पटाखों की लड़ को छुट्टा करके एक एक पटाखा फोड़ते रहने में हमको कभी अपमान नहीं लगा।
😁 हम....हमारे मां बाप को कभी बता ही नहीं पाए कि हम आपको कितना प्रेम करते हैं क्योंकि हमको आई लव यू कहना ही नहीं आता था।
😌आज हम दुनिया के असंख्य धक्के और टाॅन्ट खाते हुए और संघर्ष करती हुई दुनिया का एक हिस्सा है किसी को जो चाहिए था वह मिला और किसी को कुछ मिला कि नहीं क्या पता
स्कूल की डबल ट्रिपल सीट पर घूमने वाले हम और स्कूल के बाहर उस हा�� पेंट मैं रहकर गोली टाॅफी बेचने वाले की दुकान पर दोस्तों द्वारा खिलाए पिलाए जाने की कृपा हमें याद है।वह दोस्त कहां खो गए वह बेर वाली कहां खो गई....वह चूरन बेचने वाला कहां खो गया...पता नहीं।
😇 हम दुनिया में कहीं भी रहे पर यह सत्य है कि हम वास्तविक दुनिया में बड़े हुए हैं हमारा वास्तविकता से सामना वास्तव में ही हुआ है।
🙃 कपड़ों में सिलवटें ना पड़ने देना और रिश्तों में औपचारिकता का पालन करना हमें जमा ही नहीं......सुबह का खाना और रात का खाना इसके सिवा टिफिन क्या था हमें अच्छे से मालूम ही नहीं...हम अपने नसीब को दोष नहीं देते जो जी रहे हैं वह आनंद से जी रहे हैं और यही सोचते हैं और यही सोच हमें जीने में मदद कर रही है जो जीवन हमने जिया उसकी वर्तमान से तुलना हो ही नहीं सकती।
😌 हम अच्छे थे या बुरे थे नहीं मालूम पर #हमारा भी एक #जमाना था। वो बचपन हर गम से बेगाना था।
डॉ राजे नेगी,निद���शक:- नेगी आई केयर सेंटर,ऋषिकेश🙏🏻☺😊
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niharranjannayak · 1 month ago
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#TheStatueofLadyJustice
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The statue of Lady Justice has been redesigned to reflect a modernised version of justice in India.
www.niharranjannayak.in
#कानून अब अंधा नहीं... ⚖️
#न्याय की देवी की नई मूर्ति की आंखों से हटी पट्टी।
जिसमें आंखों से पट्टी हटाकर और हाथ में तलवार की जगह संविधान की किताब दी गई है।
मूर्ति में तराजू अभी भी न्याय का प्रतीक बना हुआ है।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने इन बदलावों का उद्देश्य बताया कि कानून अंधा नहीं है।
पुरानी मूर्ति में दिखाया गया अंधा कानून और सजा का प्रतीक आज के समय के हिसाब से सही नहीं था, इसलिए ये बदलाव किए गए हैं।
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shabdforwriting · 1 year ago
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कस्तूरी by डॉ. आशा चौधरी
किताब के बारे में... कहानियों के इस संग्रह में मेरी नई व कुछ तो बेहद पुरानी कहानियां हैं जो समय के अंतराल का अनुभव तो अवश्य कराएंगी मगर मुझे यकीन है कि पाठक उनसे अभिभूत हुए बिना नहीं रहेंगे। कथा संग्रह का शीर्षक मैंने कस्तूरी रखा है क्योंकि कन्या भू्रण हत्या जैसे विषय पर यह कहानी इंदौर के नई दुनिया में प्रकाशित हुई थी और इसने पाठकों का बेहद ध्यान आकर्षित किया था। यह विषय आज भी समीचीन है। इसके अलावा, कई बार ये भी होता है कि लेखक सोचता है कि वो अपनी रचना को इस तरीके से अंत तक लाऐगा। लेकिन मैंने पाया है कि जब लेखन में स्वाभाविक गति हो तो पात्र स्वतंत्र हो जाते हैं और वे लेखक के कहे में नहीं चलते। वे कथा-कहानी के अंत को स्वयं तय करते हैं। तब पात्र इतने मैच्यौर व सहज होते हैं कि आप उनसे मनचाहा नहीं करा सकते। साहेब का रूमाल, कस्तूरी, तुम, बहुत कुछ है बाकी, जवाब या नमक की खदान हो, चांदी का वरक हो कि हैप्पी न्यू ईयर हो, इस संग्रह में सभी मेरी लिखी कुछ ऐसी ही कहानियां हैं- मुझे लगता रहा कि जिनके पात्रों पर मेरा कोई वश नहीं रह गया था। कई बार पाठक कहते हैं कि आपने तो बिल्कुल मेरे मन के भीतरी शब्दों को कागज पर उतार दिया। तो, लेखक का मन भी उस दर्द से राहत पा कर कुछ हल्का हो जाता है। मिसरानी ऐसी ही एक कहानी बन पड़ी है। बाकी कहानियों में भी किसी न किसी तरह, कहीं न कहीं किसी के किसी दर्द को, किसी घटना को, किसी आंतरिक तसल्ली के भावों को उकेरने की कोशिश की है मैंने जो इस कहानी संग्रह के रूप में आपके सामने प्रस्तुत है।
यदि आप इस पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक से इस पुस्तक को पढ़ें या नीचे दिए गए दूसरे लिंक से हमारी वेबसाइट पर जाएँ!
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helputrust · 2 years ago
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डिजिटल युग में भी कम नहीं हुआ किताबों का महत्व – हर्ष वर्धन अग्रवाल
किताबें होती हैं व्यक्ति की सबसे अच्छी दोस्त - डॉ रूपल अग्रवाल
लखनऊ 08.09.2022, विश्व साक्षरता दिवस 2022 के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा "किताब दान अभियान" का शुभारंभ ट्रस्ट के कार्यालय, 25 / 2G, सेक्टर- 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में किया गया l हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल व न्यासी डॉo रूपल अग्रवाल ने "किताब दान अभियान का शुभारंभ करते हुए आमजन से जनहित हेतु किताबें, मैगजीन, नोट्स, जानकारीपूर्ण अखबार व स्टेशनरी दान करने की अपील की l अभियान के तहत दान में प्राप्त शैक्षणिक सामग्री को जरूरतमंद संस्थानों और छात्रों में वितरित किया जाएगा |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि "डिजिटल युग में भी किताबों का महत्व कम नहीं हुआ है, क्योंकि किताब भले ही जितनी भी पुरानी हो लेकिन ज्ञान कभी पुराना नहीं होता है l इसलिए यदि आपके घर में कोई भी किताब, जिसे आप पढ़ चुके हो, उसे दान कर दीजिए जिससे कोई और भी उन किताबों से ज्ञानार्जन कर सके l आपकी दान की हुई किताबें लखनऊ शहर के विभिन्न स्कूलों व जरूरतमंद विद्यार्थियों में वितरित की जाएंगी l"
डॉo रूपल अग्रवाल ने किताबों को व्यक्ति का सबसे अच्छा दोस्त बताते हुए कहा कि "हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने वर्ष 2012 में "वस्त्र दान अभियान" की शुरुआत की थी व आप सभी के सहयोग से आज भी निरंतर आपके द्वारा दान किए हुए वस्त्रों से जरूरतमंदों व निराश्रित लोगों की मदद की जा रही है l इसी कड़ी में आज विश्व साक्षरता दिवस पर "किताब दान अभियान" का शुभारंभ किया गया है l जनहित में आप सभी से अपील है कि किताब दान अभियान में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर "साक्षर भारत, संपन्न भारत" के सपने को साकार करने में हमारा साथ दीजिए क्योंकि आपकी एक छोटी सी मदद से अनगिनत बच्चों का भविष्य संवर सकता है" l
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवक तथा रितिका कनौजिया, ममता कनौजिया, नेहा मौर्या, नीशू सोनी, सोनू पाल, कोमल वर्मा, मानसी वर्मा, आकांक्षा खरे, संगीता श्रीवास्तव, लक्ष्मी, कामिनी, ममता वर्मा, गुंजन शर्मा, दिपांशी यादव, पूजा यादव, पूनम, नंदनी कुमारी, किरन पाल, ख़ुशी कश्यप, अंशिका, किरन लता, पूजा पाल, रतन लता शामिल हुए |
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