#पर्यावरण दिवस और हमारा भारत
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13.09.2022, लखनऊ | "हिन्दी दिवस-2022" की पूर्व संध्या पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा ऑनलाइन संगोष्ठी विषयक: "हिन्दी हैं हम" का आयोजन ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में किया गया | संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप मे डॉ. अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, डॉ. अलका पांडेय, प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, श्रीमती ज्योति किरन सिन्हा, कवियित्री एवं समाजसेविका, लखनऊ उपस्थित थीं | संगोष्ठी का संचालन डॉ अल्का निवेदन, प्राचार्या, भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, लखनऊ ने किया | कार्यक्रम का सीधा प्रसारण हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के फेसबुक पेज लिंक https://www.facebook.com/HelpUEducationalAndCharitableTrust पर किया गया |
इस अवसर पर डॉ. अमिता दुबे ने कहा कि, हम भारतवर्ष में रहते हैं तो हमारे मन में हमारी मातृभाषा, राजभाषा का एक सम्मानीय स्थान होना चाहिए | लेकिन हम अपनी मातृभाषा को अपनाने के लिए भी सरकार की तरफ देखते हैं l हम रोजमर्रा की जिंदगी में भी बच्चों को Banana, Apple, Dal-Rice यह शब्द सिखा रहे हैं ना कि केला, सेब, दाल चावल l भारत देश विविधता पूर्ण देश है जहां रहन-सहन, पर्यावरण, जलवायु की विविधता के साथ भाषा की भी विविधता है लेकिन फिर भी विविधता में एकता है l हिंदी अपने आप में एक समृद्ध भाषा है l हम किसी भी राज्य के हो सकते हैं, हम तमिल, मराठी, तेलुगू, कन्नड़ कोई भी भाषा बोल सकते हैं लेकिन जहां हम अपने देश भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं वहां भाषा के रूप में हिंदी की ही बात होती है l महात्मा गांधी जी ने भी कहा था कि "कह दो दुनिया से गांधी अंग्रेजी नहीं जानता, सिर्फ हिंदी जानता है | मैं सिर्फ इतना कहूँगी कि विश्व भर में जहां जहां भारतीय हैं वहां वहां हिंदी है और हमेशा रहेगीl" मैं देश के बच्चों से भी कहना चाहूंगी कि जिस भाषा में सोचो, उसी भाषा में लिखो l अंग्रेजी में सोचकर हिंदी में मत लिखो | हमें अपनी पुस्तके हिंदी में मिलनी चाहिए | कुछ भी बने, हिंदी के प्रति गर्व का अनुभव रखे | हिंदी में सोच कर हिंदी में लिखोl" मैं हरिवंश राय बच्चन जी की 2 लाइनें कहूंगी कि "पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले" अर्थात अपने जीवन में आगे बढ़ने से पहले अपनी राजभाषा को आत्मसात कर ले तभी तेरा और हमारे देश का भविष्य उज्जवल है |
डॉ अलका पांडे जी ने हिंदी दिवस के बारे में बताते हुए कहा कि हिंदी दिवस को अगर राजभाषा दिवस कहा जाए तो अधिक अच्छा होगा क्योंकि शासन- प्रशासन में जिस भाषा में पत्राचार होता है वह हमारी हिंदी ही है l 14 सितंबर 1949 को हमारे संविधान ने हिंदी को मान्यता दी थी तथा संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक सारे अनुच्छेद हिंदी भाषा से ही संबंधित है जिसे "मुंशी आयंगर समिति" के नाम से भी जाना जाता है l इस में यह कहा गया है कि जो राजभाषा हिंदी है, वह देवनागरी लिपि में होगी, व आने वाले 15 वर्षों तक हिंदी अंग्रेजी भाषा के साथ चलेगी व 15 वर्षों के बाद हिंदी भाषा अंग्रेजी भाषा की जगह ले लेगी l लेकिन यह हमारा दुर्भाग्�� है कि वह 15 वर्ष पता नहीं कब बीतेंगे और कब हिंदी भाषा राजभाषा की जगह राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त करेगी l क्योंकि राष्ट्रभाषा के बिना कोई भी राष्ट्र अधूरा है l 1965 में पुनः यह प्रयास किया गया कि अब हिंदी पूरी तरह आ जाएगी लेकिन तमिलनाडु में इसका विरोध हुआ l 1963 का भाषा अधिनियम जो 1965 में संशोधित होकर आया उसमें यह कहा गया कि अंग्रेजी का प्रभुत्व पूरी तरह समाप्त होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ l इसलिए आज हमें हिंदी दिवस मनाने की आवश्यकता पड़ रही है यह बहुत सोचने की बात है l हम प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी भाषा को बहुत महत्त्व नहीं देते l जब तक हम हिंदी भाषा को रोजी-रोटी की भाषा से नहीं जोड़ेंगे तब तक आज का युवा वर्ग हिंदी के महत्व को नहीं समझ पाएगा l हमें 3 स्व को नहीं भूलना चाहिए- स्वराज, स्वदेशी व स्वभाषा l इन तीनों को साथ में लेकर ही हम विश्व गुरु बन सकते हैं l अंत में मैं पदम भूषण श्री गोपालदास नीरज जी की चार लाइने कहना चाहूंगी : "बंगाली को बंगला प्यारी, तामिल चाहे मद्रासी, पंजाबी गोमुखी ऊंचारे, हिंदी दिल्ली की दासी l इसकी शहजादी अंग्रेजी, उसकी पटरानी संस्कृत, मगर प्रेम की भाषा अब तक, हाय बनी है बनवासी"
श्रीमती ज्योति किरण सिन्हा ने अपनी कविता सुनाते हुए कहा "जैसे भारत का चरित्र है वसुधैव कुटुंबकम वैसे ही हिंदी भाषा का भी चरित्र है, बहुत सरल, सहज और बहुत मधुर l हम सबको लेकर चलते हैं l हिंदी भाषा भारतीय संस्कृति से निकली हुई एक सरल धारा है जो जब बहती है तो अपने चारों तरफ हरियाली ही लेकर आती है l भारतेंदु हरीशचंद्र जी की यह पंक्तियां यहां कहना चाहूंगी निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल l कोई भी भाषा बुरी नहीं होती आप सभी भाषाओं को सीखिए लेकिन अपनी भाषा का भी सम्मान करिए क्योंकि भाषा अभिव्यक्ति का सबसे अच्छा साधन है l हिंदी पर एक कविता मैं यहां सुनाना चाहूंगी कोने कोने घर आंगन, हिंदी की अलख जगानी है l विश्व के माथे पर बिंदी, हिंदी की लगानी है | हिंदी है संतों की बानी, संस्कृति की रसधार सुहानी | वेद विज्ञान, धर्म की सरिता, भारत की समृद्ध कहानी | मातृभाषा का सम्मान करे जो, वही तो बस ज्ञानी है | जन मानस के जिव्हा में बसती, संस्कृत की जो गोद में पलती, सबसे समृद्ध वर्णों की माला, हर भाव हर रस में घुलती | अज्ञानता के तिमिर में, हिंदी की ज्योत जलानी है |"
अलका निवेदन जी ने सभी सम्मानित वक्ता गणों का स्वागत किया व कहा कि आज जीवन के हर क्षेत्र में ह��ंदी का प्रादुर्भाव हो चुका है l आज भारत को उभरती हुई शक्ति के रूप में दुनिया में माना जा रहा है l हम माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहेंगे l एक सच्चा भारतीय होने के नाते हमें हिंदी भाषा को हर क्षेत्र में वरीयता देनी चाहिए व पूरे विश्व में हिंदी का प्रभुत्व कायम करना चाहिए l
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 14 September 1949 को संविधान सभा में तीन बातें कहीं थी :
1. किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता |
2. कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती |
3. भारत के हित में, भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसे आत्मविश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिंदी को अपनाना चाहिए |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल व स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थित रहीं |
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Environment Day and Our India in Hindi
Environment Day and Our India in Hindi
Kmsraj51 ���ी कलम से…..
ϒ पर्यावरण दिवस और हमारा भारत। ϒ
पिछले दिनो हमनें विश्व पर्यावरण दिवस (५ जून) को मनाया। अगर मीडिया की तरफ देखें तो हमने यह पर्यावरण दिवस बहुत ही रुचि, सार्थकता, कर्तव्यपरायणता के साथ सम्पन्न किया। परंतु क्या वास्तव में ही ऐसा हो पाया है ? हम सब में से कितने ही लोग ऐसे हैं जो सब कुछ जानते हुए भी पर्यावरण संरक्षण की तरफ ध्यान नहीं देते। जो लोग इन सबसे अनभिज्ञ हैं शायद वो…
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Plastic Tiranga: प्लास्टिक तिरंगे के खिलाफ चल रही मुहिम, लोगों ने ली प्लास्टिक का तिरंगा उपयोग ना करने की शपथ Divya Sandesh
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Plastic Tiranga: प्लास्टिक तिरंगे के खिलाफ चल रही मुहिम, लोगों ने ली प्लास्टिक का तिरंगा उपयोग ना करने की शपथ
नई दिल्ली () बनाना किसी के लिए भले ही कारोबार है, लेकिन अब इसके खिलाफ जन समर्थन बन रहा है। तभी तो प्लास्टिक तिरंगा बंद करने के लिए देश भर में जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। प्लास्टिक तिरंगे को लेकर Koo App पर इन दिनों चल रही मुहिम को देश भर से जोरदार समर्थन मिल रहा है। कई राज्यों के मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री, बड़े नेता, खिलाड़ी और सेलेब्रिटीज ने इस पर प्लास्टिक का तिरंगा प्रयोग ना करने की शपथ ली। साथ ही, इन्होंने जनता से भी कपड़े और कागज के तिरंगे इस्तेमाल करने की अपील की है।
देश भर के बड़े नेताओं, मुख्यमंत्रियों से मिला समर्थन प्रकृति को स्वच्छ बनाए रखने और अपने तिरंगे की शान को बढ़ाने के लिए शुरू की गई इस मुहिम को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ का भी साथ मिला। योगी आदित्यनाथ ने अपने ऑफिशियल Koo अकाउंट से अपने समर्थकों और आम जनता से अपील की कि वो कभी भी प्लास्टिक के तिरंगे का इस्तेमाल ना करें। इस मुहिम में हिस्सा लेते हुए श्री योगी आदित्यनाथ ने लिखा, “ देश की एकता, ��खंडता एवं संप्रभुता का प्रतीक हमारा राष्ट्रध्वज सभी भारतवासियों का गौरव है। आइए, हम सभी तिरंगे के सम्मान, पर्यावरण की रक्षा तथा राष्ट्र हित में प्लास्टिक के तिरंगे का प्रयोग कभी न करने की शपथ लें। जय हिंद-जय भारत!”
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस मुहिम में हिस्सा लेते हुए अपील की, “75वें #स्वतंत्रता_दिवस पर मैं प्रदेश के सभी भाई-बहनों व युवाओं से अनुरोध करता हूं कि आप कागज या कपड़े से बने तिरंगे को गर्व और शान से फहरायें। आइये, आज हम सब के इस पुनीत अवसर पर स्वच्छ और गौरवशाली भारतवर्ष बनाने की शपथ लें।”
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के कार्यालय ने भी इस मुहिम में हिस्सा लिया और अपने ऑफिशियल अकाउंट से लिखा कि, “75वें स्वतंत्रता दिवस पर प्लास्टिक तिरंगे का इस्तेमाल ना करें और देश को स्वच्छ बनाएं”
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हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंंत्री श्री जयराम ठाकुर ने भी प्लास्टिक तिरंगे के पर्यावरण पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव के बारे में बताते हुए लिखा, “तिरंगे की शान का प्लास्टिक से अपमान ना करें। इस स्वतंत्रता दिवस पर मैं शपथ लेता हूं कि प्लास्टिक तिरंगे का उपयोग नहीं करूंगा और अपने राज्य के नागरिकों से भी अनुरोध करूंगा की वो भी ये शपथ लेकर तिरंगे का मान बढ़ाएं।”
पूर्वोत्तर राज्यों से असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा ने फ्लैग कोड 2002 की याद दिलाते हुए लोगों से सिर्फ कागज वाले तिरंगे का प्रयोग करने की अपील की। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने लोगों से तिरंगे को उचित सम्मान देने के लिए प्लास्टिक तिरंगे का इस्तेमाल ना करने की अपील की। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने भी लोगों से अपील की और कहा कि प्लास्टिक के तिरंगे को ना कहिए और अपने तिरंगे की शान बढ़ाइए।
केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी इस मुहिम में हिस्सा लिया और लिखा, “प्लास्टिक के अंधाधुंध इस्तेमाल ने बीते कुछ सालों में हमारी नदियों और देश को प्रदूषित किया है। इसलिए, इस स्वतंत्रता दिवस पर मेरा अनुरोध है कि आप मेरे साथ मिलकर शपथ लें कि प्लास्टिक के तिरंगे झंडे का इस्तेमाल नहीं करेंगे और तिरंगे की शान बढ़ाएंगे। जय हिंद।”
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छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने भी लोगों से अपील की और लिखा, “पर्यावरण की सुरक्षा ही हमारी सुरक्षा है! 15 अगस्त को आज़ादी के पर्व पर हम सब भी संकल्प लें प्लास्टिक से आज़ादी की। इस पवित्र दिन प्लास्टिक के तिरंगे का उपयोग न करें, न ही किसी को प्रेरित करें। यह छोटा सा प्रयास ही धीरे-धीरे जागरूकता लाएगा और हम पर्यावरण की सुरक्षा के लिए प्लास्टिक मुक्त राष्ट्र बना पाएंगे।”
राजस्थान के पर्यावरण मंत्री और कांग्रेस नेता सुखराम बिश्नोई ने लिखा, “प्लास्टिक का तिरंगा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है. इसलिए इस स्वतंत्रता दिवस पर मैं शपथ लेता हूं कि प्लास्टिक के तिरंगे का इस्तेमाल नहीं करूंगा, साथ ही साथियों से भी अनुरोध करूंगा कि वो भी प्लास्टिक के तिरंगे से दूरी बनाकर पर्यावरण की रक्षा करें.”
लोक जनशक्ति पा��्टी के नेता चिराग पासवान ने लिखा, “प्लास्टिक का तिरंगा केवल हमारे पर्यावरण के लिए ही नहीं बल्कि हमारे देश की शान हमारे तिरंगे के लिए भी अपमानजनक है। तो आइए इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हम सभी मिलकर शपथ ले कि इस स्वतंत्रता दिवस पर हम केवल कपड़े या फिर कागज के ही तिरंगे का इस्तेमाल करेंगे।”
सेलिब्रिटीज और कई भारतीय खिलाड़ी भी मुहिम से जुड़े ओलिंपिक में शानदार प्रदर्शन करने और भारत को इस बार टोक्यो ओलंपिक्स में रजत पदक दिलाने वाले रवि कुमार दहिया ने भी शपथ लेते हुए लिखा कि बिना प्लास्टिक के इस्तेमाल नहीं कर के हम दुनिया को और भी खूबसूरत बना सकते हैं |
भारत को 2008 में ओलिंपिक में पहला गोल्ड मेडल दिलाने वाले अभिनव बिंद्रा भी शपथ लेते हैं कि वह प्लास्टिक तिरंगे का इस्तेमाल नहीं करेंगे और अपने राष्ट्रीय ध्वज को पूरा सम्मान देंगे |
इस साल देश को टोक्यो ओलंपिक्स में फ्रीस्टाइल रेसलिंग में कांस्य पदक जीतने वाले दीपक पुनिया भी लोगों से अपील करते हुए लिखा कि, “अगर किसी वस्तु को रीसाइकिल कर के दोबारा उपयोग नहीं कर सकते है तो बेहतर है आप उसका इस्तेमाल करना बंद कर दीजिए. प्लास्टिक के तिरंगे को ना कहिए.”
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क्यों प्लास्टिक तिरंगे को कहें ना? हर साल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर कई समारोह के दौरान लोग प्लास्टिक के तिरंगे का इस्तेमाल करते हैं, लोग अपने बच्चों को भी प्लास्टिक के तिरंगे दे देते हैं। समारोह के बाद इन तिरंगों पर किसी का ध्यान नहीं जाता है और जाने अनजाने में लोग तिरंगे का अपमान कर बैठते हैं। प्लास्टिक के तिरंगे का विघटन भी मुश्किल होता है जो हमारे पर्यावरण के लिए काफी हानिकारक है इसलिए प्लास्टिक के तिरंगे का प्रयोग ना कर के हम पर्यावरण को तो बचाते ही हैं साथ में तिरंगे की शान को भी बढ़ाते हैं।
गृह मंत्रालय ने भी दिए निर्देश गृह मंत्रालय ने भी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक पत्र में कहा है कि प्लास्टिक से बने तिरंगों को ठीक से डिस्पोज करना एक समस्या है। राष्ट्रीय ध्वज को लेकर केंद्र सरकार ने कहा है कि प्लास्टिक के तिरंगे प्रयोग ना किए जाएं। राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और खेल आयोजनों पर कागज के बने तिरंगे की जगह कई बार प्लास्टिक से बने तिरंगे का उपयोग किया जाता है। गृह मंत्रालय की ओर से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि ऐसे आयोजनों पर केवल कागज के बने तिरंगे का उपयोग होना चाहिए।
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विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस : प्रदूषण कम कर रहा आपकी सांसें, हो जाइए सावधान, अपनी प्रकृति को बचाएं
चैतन्य भारत न्यूज प्रकृति के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। हवा, पानी, भोजन, धूप सब कुछ हमें प्रकृति से ही मिलता है। यदि प्रकृति की सेहत बिगड़ने लगी तो हम सभी की जान भी खतरे में पड़ सकती है। पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने एवं लोगो को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 28 जुलाई को 'विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस' मनाया जाता है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); पर्यावरण के बिना असंभव है जीवन पिछले तीन दशकों से यह महसूस किया जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी समस्या पर्यावरण से ही जुड़ी हुई है। प्रकृति ने मनुष्य को कई प्रकार की सौगात दी है जिसमें सबसे बड़ी सौगात पर्यावरण की है। यदि पर्यावरण न होता तो जीवन संभव ही नहीं होता। इसके बिना कोई भी जीव-जंतु जिंदा नहीं रह पाता। जंगल पृथ्वी के फेफड़े कहे जाते हैं। जंगल से ही हमें सबसे ज्यादा शुद्ध वायु और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। प्रदूषण पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन पूरा विश्व आज पर्यावरण को लेकर चिंतित है। बता दें पर्यावरण वायु, जल, मिट्टी, मानव और वृक्षों से मिलकर बना है। इनमें से किसी भी एक के असंतुलित होने पर पर्यावरण प्रक्रिया असहज हो जाती है जिसका सीधा असर मानव जीवन पर पड़ता है। साथ ही इन दिनों प्रदूषण भी पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है। प्रदूषण मानव जीवन के साथ ही पेड़, पौधे और जलवायु को भी प्रभावित करता है। देखा जाए तो विश्व ने जैसे-जैसे विकास और प्रगति हासिल की है वैसे-वैसे पर्यावरण असंतुलित होता गया है। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों का निर्माण होना, कल-कारखाने, फैक्ट्रियों से निकलते धुंए, वाहनों से निकलने वाले धुएं, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदी और तालाबों का प्रदूषित होना, बड़ी-बड़ी इमारतें बनना आदि के जरिए कहीं न कहीं पर्यावरण के साथ खिलवाड़ हो रहा है। प्रदूषण के कारण सांस लेना भी दूभर हुआ इन दिनों प्रदूषण ने विकराल रूप धारण कर लिया है। खासकर अगर भारत की ही बात की जाए तो महानगरों में वायु प्रदूषण अधिक फैला है। चैबीसों घंटे कल-कारखानों और वाहनों से निकलने वाला विषैला धुआं इस तरह वातावरण में फैल गया है कि सांस लेना तक दूभर हो गया है। इसके कारण लोगों में अनेकों बीमारियां फैलती जा रही हैं। एक ताजा सर्वे के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 4 सालों में चार करोड़ से भी ज्यादा लोग तेज सांस के संक्रमण के शिकार हो रहे हैं। ��स अवधि में 12 हजार 200 लोग वायु प्रदूषण से जूझते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए। एक अनुमान के मुताबिक, हर साल भारत में प्रदूषण के कारण ही 150 लोगों की जान चली जाती है और हजारों लोग फेफड़े और हृदय की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। पेड़ों की अंधाधुन कटाई के कारण भी पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर साल विश्व में एक करोड़ हैक्टेयर से अधिक और भारत में 10 लाख हैक्टेयर वन काटे जा रहे हैं। ऐसे में वन्यजीव भी धीरे-धीरे लुप्त होते जा र��ा है। आने वाली पीढ़ी के लिए अंधकारमय हो सकता है जीवन मानव जीवन के लिए पर्यावरण का अनुकूल और संतुलित होना बेहद महत्वपूर्ण है। यदि हमने आज, अभी और इसी वक्त से पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाली पीढ़ी के लिए जीवन अंधकारमय हो सकता है। पर्यावरण को सदैव स्वस्थ रखने के लिए हर व्यक्ति को अपने आस-पास अधिक से अधिक संख्या में पेड़ लगाना चाहिए, पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर रखना चाहिए, तब जाकर हमारे सुखमय जीवन को भी संरक्षित रखा जा सकता है। यदि हमारी प्रकृति स्वस्थ रहेगी तो हम भी स्वस्थ रहेंगे। Read the full article
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मेड इन इंडिया टीका भारत की आत्मनिर्भरता का प्रतीक है: मन की बात के दौरान पीएम मोदी.
मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। जब मैं मन की बात व्यक्त करता हूं, तो ऐसा महसूस होता है कि मैं आपके परिवार के सदस्य के रूप में आपके बीच मौजूद हूं। छोटे मामलों का आदान-प्रदान हुआ जो एक दूसरे को सिखाते हैं; कड़वा- मीठा जीवन अनुभव जो एक शानदार जीवन जीने के लिए एक प्रेरणा बन जाता है ... और बस यही मन की बात है! जनवरी २०२१ का आज अंतिम दिन है। क्या आप भी सोच रहे हैं, जिस तरह से मैं २०२१ कुछ दिन पहले शुरू हुआ था? यह सिर्फ महसूस नहीं करता है कि जनवरी का पूरा महीना बीत च��का है! इसे ही समय की गति कहा जाता है। ऐसा लगता है कि कुछ दिनों पहले की बात है जब हम एक दूसरे के साथ शुभकामनाएँ दे रहे थे! फिर हमने लोहड़ी, मकर संक्रांति, पोंगल और बिहू मनाया। यह देश के विभिन्न हिस्सों में त्योहार का समय था। हमने 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को PARAKRAM DIWAS के रूप में मनाया और 26 जनवरी को भव्य गणतंत्र दिवस परेड भी देखी। राष्ट्रपति जी द्वारा संयुक्त सत्र को संबोधित करने के बाद, बजट सत्र भी शुरू हो गया है। इस सब के बीच, एक और घटना हो रही थी जिसका हम सभी को बेसब्री से इंतजार है - वह है पद्म पुरस्कारों की घोषणा। राष्ट्र ने असाधारण काम करने वाले लोगों को सम्मानित किया; उनकी उपलब्धियों और मानवता के लिए योगदान के लिए। इस वर्ष भी, प्राप्तकर्ता में वे लोग शामिल हैं जिन्होंने असंख्य क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य किया है; अपने प्रयास के माध्यम से, उन्होंने देश को आगे ले जाते हुए, किसी के जीवन को बदल दिया है। इस प्रकार, कुछ साल पहले शुरू हुए अनसंग नायकों पर पद्म सम्मान देने की परंपरा इस बार भी कायम है। मैं आप सभी से इन लोगों और उनके योगदान के बारे में और जानने का आग्रह करता हूं ... परिवार के बीच इसकी चर्चा करें। आप देखेंगे कि यह कैसे सभी को प्रेरित करता है! इस महीने क्रिकेट पिच से भी बहुत अच्छी खबर आई है। हमारी क्रिकेट टीम ने शुरुआती असफलताओं के बाद ऑस्ट्रेलिया में श्रृंखला जीतकर शानदार वापसी की। हमारे खिलाड़ियों की कड़ी मेहनत और टीम वर्क प्रेरणादायक है। इस सब के बीच, 26 जनवरी को दिल्ली में तिरंगे के अपमान से देश दुखी था। हमें नई आशा और नवीनता के साथ आने के लिए कई बार इंकार करना होगा। पिछले साल, हमने अनुकरणीय धैर्य और साहस प्रदर्शित किया। इस वर्ष भी हमें अपने संकल्पों को पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। हमें अपने देश को तेज गति से आगे ले जाना है। मेरे प्यारे देशवासियो, इस साल की शुरुआत में कोरोना के खिलाफ हमारी लड़ाई के लगभग एक साल पूरे होने के अवसर हैं। जिस तरह कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई एक उदाहरण बन गई, हमारा टीकाकरण कार्यक्रम भी दुनिया के लिए अनुकरणीय बन गया है। आज, भारत दुनिया का सबसे बड़ा कोविद वैक्सीन कार्यक्रम चला रहा है। क्या आप जानते हैं कि अधिक गर्व की बात क्या है? सबसे बड़े वैक्सीन कार्यक्रम के साथ, हम अपने नागरिकों को दुनिया में कहीं भी तेजी से टीकाकरण कर रहे हैं। केवल 15 दिनों में, भारत ने 30 लाख से अधिक कोरोना वार��यर्स का टीकाकरण किया है, जबकि अमेरिका जैसे उन्नत देश को ऐसा करने में 18 दिन लगे; ब्रिटेन 36 दिन! दोस्तों, आज, मेड इन इंडिया वैक्सीन, निश्चित रूप से, भारत की आत्मनिर्भरता का प्रतीक है; यह उसके आत्म-गौरव का प्रतीक भी है। नमोऐप पर, यूपी के भाई हिमांशु यादव ने लिखा है कि मेड इन इंडिया वैक्सीन ने एक नया आत्मविश्वास पैदा किया है। कीर्ति जी मदुरै से लिखती हैं कि उनके कई विदेशी मित्र भारत को धन्यवाद देते हुए संदेश दे रहे हैं। कीर्ति जी के दोस्तों ने उन्हें लिखा है कि जिस तरह से कोरोना के खिलाफ लड़ाई में भारत ने दुनिया की मदद की है, उससे उनके दिल में भारत के लिए सम्मान बढ़ा है। देश के लिए गौरव के इन नोटों को सुनना कीर्ति जी, मान की बात के श्रोताओं को भी गर्व से भर देता है। इन दिनों, मुझे भी दुनिया के विभिन्न देशों के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों से भारत के लिए इसी तरह के संदेश मिलते हैं। आपने हाल ही में देखा होगा कि कैसे ब्राजील के राष्ट्रपति ने भारत को धन्यवाद देते हुए एक ट्वीट में कहा था - उस पर हर भारतीय को खुशी हुई। दुनिया के दूरदराज के कोनों में हजारों किलोमीटर दूर रहने वाले लोग रामायण में उस संदर्भ से गहराई से अवगत हैं; वे तीव्रता से इससे प्रभावित हैं। यह हमारी संस्कृति की एक विशेषता है। दोस्तों, इस टीकाकरण कार्यक्रम में, आपने कुछ और ध्यान दिया होगा! संकट के क्षण के दौरान, भारत आज दुनिया की सेवा करने में सक्षम है, क्योंकि वह दवाओं, टीकों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर है। यही विचार आत्मानबीर भारत अभियान को रेखांकित करता है। जितना अधिक भारत सक्षम है, उतना ही वह मानवता की सेवा करेगा; तदनुसार, दुनिया को अधिक लाभ होगा!मेरे प्यारे देशवासियों, हर बार, आपके बहुत सारे पत्र प्राप्त होते हैं; नमो ऐप और MyGov और फोन कॉल पर आपके संदेशों के माध्यम से आपके विचारों के बारे में पता चलता है। इन संदेशों में से एक ने मेरा ध्यान आकर्षित किया - यह बहन प्रियंका पांडे जी का है। 23 वर्षीय बेटी प्रियंका जी हिंदी साहित्य की छात्रा हैं और बिहार के सिवान की रहने वाली हैं। प्रियंका जी ने नमो ऐप पर लिखा है कि वह देश के 15 घरेलू पर्यटन स्थलों पर जाने के मेरे सुझाव से बहुत प्रेरित थीं और इसलिए 1 जनवरी को, उन्होंने एक गंतव्य के लिए शुरुआत की जो बहुत खास थी। वह स्थान उसके घर से 15 किलोमीटर दूर था - यह देश के पहले राष्ट्रपति डॉ। राजेंद्र प्रसाद जी का पैतृक निवास था। प्रियंका जी ने खूबसूरती से उल्लेख किया है कि यह देश के महान प्रकाशकों के साथ खुद को परिचित कराने के क्षेत्र में उनका पहला कदम था। वहाँ, प्रियंका जी को डॉ। राजेंद्र प्रसाद द्वारा लि��ित कई किताबें और साथ ही कई ऐतिहासिक तस्वीरें भी मिलीं। वाकई प्रियंका जी, आपका यह अनुभव दूसरों को भी प्रेरित करेगा। दोस्तों, इस वर्ष, भारत अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने का उत्सव शुरू करने जा रहा है - अमृत महोत्सव। इस संदर्भ में, यह उन नायकों से जुड़े स्थानों का पता लगाने का एक उत्कृष्ट समय है, जिनके आधार पर हमने स्वतंत्रता प्राप्त की। दोस्तों, जैसा कि हम स्वतंत्रता आंदोलन और बिहार का उल्लेख करते हैं, मैं नमो ऐप पर की गई एक अन्य टिप्पणी को छूना चाहूंगा। मुंगेर निवासी जय राम विप्लव ने मुझे तारापुर शहीद दिवस के बारे में लिखा है। 15 फरवरी 1932 को, अंग्रेजों ने निर्दयता से युवा देशभक्तों के एक समूह को मार डाला था। उनका एकमात्र अपराध यह था कि वे ram वंदे मातरम ’और was भारत माता की जय’ के नारे लगा रहे थे। मैं उन शहीदों को नमन करता हूं और श्रद्धा के साथ उनके साहस को याद करता हूं। मैं जय राम विप्लव जी को धन्यवाद देना चाहता हूं। उन्होंने देश के सामने एक ऐसी घटना लाई है जिसके बारे में उतनी चर्चा नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी।मेरे प्यारे देशवासियो, आजादी की लड़ाई भारत के हर हिस्से, हर शहर, हर शहर और गाँव में पूरी ताकत से लड़ी गई थी। इस भूमि के प्रत्येक कोने में, भारतभूमि, महान पुत्र और बहादुर बेटियाँ पैदा हुईं जिन्होंने राष्ट्र के लिए अपना जीवन त्याग दिया। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम अपने संघर्ष और उनकी यादों के लिए उनके संघर्षों की गाथा को संरक्षित करें और इसके लिए हम आने वाली पीढ़ियों के लिए उनकी यादों को जीवित रखने के लिए उनके बारे में लिख सकते हैं। मैं सभी देशवासियों, विशेषकर युवा मित्रों से अपील करता हूं कि वे स्वतंत्रता सेनानियों, स्वतंत्रता से जुड़ी घटनाओं के बारे में लिखें। अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम की अवधि के दौरान वीरता की गाथा के बारे में किताबें लिखें। अब, जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष मनाएगा, तो आपकी लेखनी हमारी स्वतंत्रता के उन नायकों को सर्वश्रेष्ठ श्रद्धांजलि होगी। भारत सत्तर-पाँच के उद्देश्य से यंग राइटर्स के लिए एक पहल की गई है। यह सभी राज्यों और सभी भाषाओं के युवा लेखकों को प्रोत्साहित करेगा। ऐसे विषयों पर लिखने वाले लेखक, जिन्होंने गहरी भारतीय विरासत और संस्कृति का अध्ययन किया है, देश में बड़ी संख्या में सामने आएंगे। हमें ऐसी उभरती प्रतिभाओं की पूरी मदद करनी होगी। यह विचारशील नेताओं की एक श्रेणी भी तैयार करेगा जो भविष्य का पाठ्यक्रम तय करेगा। मैं अपने युवा मित्रों को इस पहल का हिस्सा बनने और अपने साहित्यिक कौशल का अधिक से अधिक उपयोग करने ��े लिए आमंत्रित करता हूं। इस बारे में जानकारी शिक्षा मंत्रालय की वेबसाइट से प्राप्त की जा सकती है। मेरे प्यारे देशवासियो, Ba मन की बात ’के श्रोताओं को क्या पसंद है, केवल आप ही बेहतर जानते हैं। लेकिन मेरे लिए Ba मन की बात ’में सबसे अच्छी बात यह है कि मुझे बहुत कुछ सीखने और पढ़ने को मिलता है। एक तरह से, अप्रत्यक्ष रूप से, मुझे आप सभी से जुड़ने का अवसर मिलता है। किसी का प्रयास, किसी का उत्साह, किसी का देश के लिए कुछ हासिल करने का जुनून - यह सब मुझे बहुत प्रेरित करता है, मुझे ऊर्जा से भर देता है।हैदराबाद के बोनीपल्ली में एक स्थानीय सब्जी बाजार अपनी जिम्मेदारी कैसे निभा रहा है, इस बारे में पढ़कर मुझे बहुत खुशी हुई। हम सभी ने देखा है कि सब्जियों के बाज़ारों में बहुत सारी उपज कई कारणों से खराब हो जाती है। सब्जियां चारों ओर फैलती हैं, यह गंदगी भी फैलाती है, लेकिन बोनीपल्ली के सब्जी बाजार ने फैसला किया कि यह बचे हुए सब्जियों को वैसे ही फेंक नहीं देगा। सब्जी मंडी से जुड़े लोगों ने तय किया कि वे इससे बिजली बनाएंगे। आपने बेकार सब्जियों से बिजली पैदा करने के बारे में शायद ही सुना हो - यह नवाचार की शक्ति है। आज बोनीपल्ली सब्जी मंडी में जो कभी बर्बादी थी, उसी से धन पैदा हो रहा है - यह कचरे से धन सृजन की यात्रा है। लगभग 10 टन कचरा प्रतिदिन वहां उत्पन्न होता है, जिसे एक संयंत्र में एकत्र किया जाता है। इस संयंत्र में प्रतिदिन 500-यूनिट बिजली पैदा होती है, और लगभग 30 किलो जैव ईंधन भी उत्पन्न होता है। इस बिजली के माध्यम से सब्जी बाजार को रोशन किया जाता है और जो जैव ईंधन उत्पन्न होता है उसका उपयोग बाजार की कैंटीन में खाना बनाने के लिए किया जाता है - क्या यह एक अद्भुत प्रयास नहीं है! हरियाणा के पंचकुला के बडौत ग्राम पंचायत ने एक ऐसा ही अद्भुत कारनामा हासिल किया है। इस पंचायत को पानी निकासी की समस्या का सामना करना पड़ा। इस वजह से गंदा पानी इधर-उधर फैल रहा था, बीमारी फैल रही थी, लेकिन, बडौत के लोगों ने फैसला किया कि वे इस पानी की बर्बादी से भी धन पैदा करेंगे। ग्राम पंचायत ने एक स्थान पर एकत्रित होने के बाद गाँव से आने वाले गंदे पानी को छानना शुरू कर दिया, और इस फ़िल्टर्ड पानी का उपयोग अब गाँव के किसानों द्वारा सिंचाई के लिए किया जा रहा है, जिससे वे प्रदूषण, गंदगी और बीमारी से मुक्त होते हैं और खेतों की सिंचाई करते हैं भी। मित्रों, पर्यावरण की सुरक्षा कैसे आय का मार्ग खोल सकती है इसका एक उदाहरण अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भी देखा गया था। सदियों से अरुणाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में 'मोन शुगु' नामक एक प्रकार का कागज बनाया जाता है। यहां के स्थानीय लोग इस पेपर को शुगु शेंग नामक पौधे की छाल से बनाते हैं, इसलिए इस पेपर को बनाने के लिए पेड़ों को काटना नहीं पड़ता है। इसके अलावा, इस कागज को बनाने में किसी भी रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है, इस प्रकार, यह कागज पर्यावरण के लिए और स्वास्थ्य के लिए भी सुरक्षित है। एक समय था जब इस कागज का निर्यात किया गया था लेकिन आधुनिक तकनीकों के साथ, बड़ी मात्रा में कागज बनने लगे और इस स्थानीय कला को बंद होने के कगार पर पहुंचा दिया गया। अब एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता गोम्बू ने इस कला को फिर से जीवंत करने का प्रयास किया है, इससे वहां के आदिवासी भाई-बहनों को भी रोजगार मिल रहा है।मैंने केरल से एक और समाचार देखा है जो हमें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराता है। केरल के कोट्टायम में एक बुजुर्ग दिव्यांग हैं, एन.एस. राजप्पन साहब। पक्षाघात के कारण, राजप्पन चलने में असमर्थ हैं, लेकिन इससे स्वच्छता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता प्रभावित नहीं हुई है। पिछले कई सालों से वे वेम���बनाड झील में नाव से जा रहे हैं और झील में फेंकी गई प्लास्टिक की बोतलों को निकाल रहे हैं। सोचो, राजप्पन जी का विचार कितना महान है! राजप्पन जी से प्रेरणा लेते हुए, हमें भी, जहाँ भी संभव हो, स्वच्छता के लिए अपना योगदान देना चाहिए। मेरे प्यारे देशवासियो, आपने कुछ दिन पहले देखा होगा कि भारत की चार महिला पायलटों ने सैन फ्रांसिस्को, अमेरिका से बैंगलोर के लिए नॉन-स्टॉप उड़ान की कमान संभाली थी। दस हजार किलोमीटर से अधिक की यात्रा करने वाले इस विमान ने भारत में दो सौ से अधिक यात्रियों को उतारा। आपने इस बार 26 जनवरी की परेड में भी देखा होगा, जहाँ भारतीय वायु सेना की दो महिला अधिकारियों ने नया इतिहास रचा था। जो भी क्षेत्र हो, देश की महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है, लेकिन, अक्सर हम देखते हैं कि, देश के गांवों में होने वाले समान परिवर्तनों की बहुत चर्चा नहीं है, इसलिए, जब मुझे यह खबर मिली मध्य प्रदेश के जबलपुर में मुझे लगा कि मुझे 'मन की बात' में इसका उल्लेख करना चाहिए। यह खबर बहुत ही प्रेरणादायक है। जबलपुर के चिचगाँव में कुछ आदिवासी महिलाएँ एक राइस मिल में दिहाड़ी पर काम कर रही थीं। जिस तरह कोरोना महामारी ने दुनिया के हर व्यक्ति को प्रभावित किया, उसी तरह ये महिलाएं भी प्रभावित हुईं। उनके राइस मिल में काम बंद हो गया। स्वाभाविक रूप से, उनकी आय भी प्रभावित हुई, लेकिन वे निराश नहीं हुए; उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने फैसला किया कि सामूहिक रूप से वे अपनी चावल मिल शुरू करेंगे। जिस मिल में वे काम करते थे, वह उसकी मशीन भी बेचना चाहती थी। इन महिलाओं में से एक, मीना ��ाहंगडाले जी ने सभी ��हिलाओं को जोड़कर एक 'स्वयं सहायता समूह' का गठन किया और उन सभी ने अपनी बचत से पूंजी जुटाई। जो भी धनराशि कम थी, उसे बैंक से ऋण के रूप में अजीविका मिशन के तत्वावधान में खट्टा कर दिया गया था, और अब देखिए, इन आदिवासी बहनों ने वही चावल मिल खरीदे जिसमें उन्होंने एक बार काम किया था! आज वे अपना राइस मिल चला रहे हैं। इस अवधि के भीतर, इस मिल ने भी लगभग तीन लाख रुपये का लाभ कमाया है। इस लाभ के साथ, मीना जी, और उनके सहयोगी, बैंक ऋण चुकाने की व्यवस्था कर रहे हैं और फिर अपने व्यवसाय के विस्तार के लिए रास्ते तलाश रहे हैं। कोरोना ने जो भी परिस्थितियां बनाईं, उनका मुकाबला करने के लिए देश के हर कोने में इस तरह के अद्भुत प्रयास हुए हैं।मेरे प्यारे देशवासियों, अगर मैं आपसे बुंदेलखंड का जिक्र करूं तो आपके दिमाग में क्या-क्या चीजें आएंगी? इतिहास में रुचि रखने वाले इस क्षेत्र को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से जोड़ेंगे। वहीं, कुछ लोग सुंदर और निर्मल ओरछा के बारे में सोचेंगे। और कुछ लोगों को इस क्षेत्र की अत्यधिक गर्मी की स्थिति भी याद होगी, लेकिन, इन दिनों यहां कुछ अलग हो रहा है जो काफी दिलकश है, और जिसके बारे में हमें पता होना चाहिए। हाल ही में, झाँसी में एक महीने का 'स्ट्रॉबेरी फेस्टिवल' शुरू हुआ। हर कोई हैरान है - स्ट्राबेरी और बुंदेलखंड! लेकिन, यह सच्चाई है। अब, बुंदेलखंड में स्ट्रॉबेरी की खेती को लेकर उत्साह बढ़ रहा है, और झांसी की बेटियों में से एक - गुरलीन चावला ने इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभाई है! एक लॉ स्टूडेंट गुरलीन ने स्ट्रॉबेरी की खेती को सफलतापूर्वक अपने घर पर किया और फिर अपने खेत में यह उम्मीद जगाई कि झांसी में भी यह संभव है। झाँसी का स्ट्राबेरी उत्सव 'स्टे एट होम' की अवधारणा पर जोर देता है। इस त्यौहार के माध्यम से, किसानों और युवाओं को अपने घर के पीछे, या टैरेस गार्डन में खाली जगहों पर बागवानी करने और स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। नई तकनीक की मदद से, देश के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह के प्रयास किए जा रहे हैं, स्ट्रॉबेरी जो कभी पहाड़ियों से पहचानी जाती थी, अब कच्छ के रेतीली मिट्टी में भी खेती की जा रही है, जिससे किसानों की आय बढ़ेगी। दोस्तों, स्ट्रॉबेरी फेस्टिवल जैसे प्रयोग न केवल इनोवेशन की भावना को प्रदर्शित करते हैं; वे हमारे देश के कृषि क्षेत्र में नई तकनीकों को अपना रहे हैं। मित्रों, सरकार कृषि को आधुनिक बनाने के लिए प्रतिबद्ध है और उस दिशा में कई कदम भी उठा रही है। सरकार के प्रयास भविष्य में भी जारी रहेंगे।मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ दिन पहले मैंने एक वीडियो देखा। वह वीडियो पश्चिम बं��ाल के पश्चिम मिदनापुर के नाया पिंगला गाँव के चित्रकार सरमुद्दीन का था। वह खुशी जाहिर कर रहे थे कि रामायण पर आधारित उनकी पेंटिंग दो लाख रुपये में बिकी थी। इससे उनके साथी ग्रामीणों को भी बहुत खुशी हुई। इस वीडियो को देखने के बाद, मैं इसके बारे में और जानने के लिए उत्सुक था। इस संदर्भ में, मुझे पश्चिम बंगाल से संबंधित एक बहुत अच्छी पहल के बारे में पता चला, जिसे मैं आपके साथ साझा करना चाहूंगा। पर्यटन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय ने महीने की शुरुआत में बंगाल के गांवों में एक 'अतुल्य भारत सप्ताहांत भगदड़' शुरू की। पश्चिम मिदनापुर, बांकुरा, बीरभूम, पुरुलिया, पूर्वी बर्धमान के हस्तशिल्प कारीगरों ने आगंतुकों के लिए हस्तशिल्प कार्यशाला का आयोजन किया। मुझे यह भी बताया गया कि इनक्रेडिबल इंडिया वीकेंड गेटवे के दौरान हस्तशिल्प की कुल बिक्री हस्तशिल्प कारीगरों के लिए बहुत उत्साहजनक है। लोग हमारे कला रूपों को देश भर में रोजगार के नए तरीकों को लोकप्रिय बना रहे हैं। राउरकेला, ओडिशा के भाग्यश्री साहू को देखें। हालाँकि वह इंजीनियरिंग की छात्रा है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में उसने पेटचिट्रा की कला सीखना शुरू कर दिया और उसे इसमें महारत हासिल है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि उसने कहाँ से पेंटिंग शुरू की है - सॉफ्ट स्टोन्स, सॉफ्ट स्टोन्स पर। कॉलेज के रास्ते में, भाग्यश्री को ये सॉफ्ट स्टोन्स मिले, उन्होंने उन्हें इकट्ठा किया और उन्हें साफ किया। बाद में, उसने इन पत्थरों को हर दिन दो घंटे के लिए पट्टचित्र शैली में चित्रित किया। इन पत्थरों को पेंट करने के बाद, उसने उन्हें अपने दोस्तों को सौंपना शुरू कर दिया। लॉकडाउन के दौरान, उसने बोतलों पर पेंटिंग करना भी शुरू कर दिया। और अब, वह भी इस कला के रूप में कार्यशालाओं का आयोजन करती है। कुछ दिनों पहले, सुभाष बाबू की जयंती पर, भाग्यश्री ने उन्हें पत्थर पर की गई अनूठी श्रद्धांजलि दी। मैं उनके भविष्य के प्रयासों के लिए उन्हें शुभकामनाएं देता हूं। आर्ट और कलर्स के माध्यम से बहुत कुछ नया सीखा और किया जा सकता है। मुझे झारखंड के दुमका में इसी तरह की एक उपन्यास पहल के बारे में बताया गया था। वहां के एक मिडिल स्कूल के एक प्रिंसिपल ने बच्चों को सीखने और सिखाने में मदद करने के लिए गाँव की दीवारों को अंग्रेजी और हिंदी वर्णमाला के अक्षरों से रंग दिया; साथ में विभिन्न चित्र भी चित्रित किए गए हैं जो गाँव के बच्चों की बहुत मदद कर रहे हैं। मैं ऐसे सभी व्यक्तियों को अपनी शुभकामनाएं देता हूं जो इस तरह की पहल में शामिल हैं।मेरे प्यारे देशवासियों, भारत से हजारों किलोमीटर दूर, कई महासागरों और महाद्वीपों में, एक देश है - चिली। भारत से चिली पहुंचने में बहुत समय लगता है। हालाँकि, भारतीय सं��्कृति की सुगंध लंबे समय से है। एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि योग वहां बेहद लोकप्रिय है। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि चिली की राजधानी सैंटियागो में 30 से अधिक योग विद्यालय हैं। चिली में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को भी धूमधाम से मनाया जाता है। मुझे बताया गया है कि योग दिवस के लिए हाउस ऑफ डेप्युटी उत्साह से भरी है। कोरोना के इन समय में, योग की शक्ति के माध्यम से प्रतिरक्षा और इसे मजबूत करने के तरीकों पर एक ���नाव के साथ, अब वे योग को अधिक महत्व दे रहे हैं। चिली कांग्रेस, जो कि उनकी संसद है, ने एक प्रस्ताव पारित किया है। वहां, 4 नवंबर को राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया गया है। अब, आप सोच रहे होंगे कि, ४ नवंबर का दिन क्या खास है! 4 नवंबर 1962 को जोस राफेल एस्ट्राडा द्वारा चिली में पहला योग संस्थान स्थापित किया गया था। इस दिन को राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित करके, एस्ट्राडा जी को श्रद्धांजलि अर्पित की गई है। चिली की संसद द्वारा यह एक विशेष सम्मान है, जिस पर हर भारतीय गर्व करता है। वैसे, चिली की संसद के बारे में एक और पहलू है, जो आपको दिलचस्पी देगा। चिली सीनेट के उपाध्यक्ष का नाम रबींद्रनाथ क्विनटोस है। उनका नाम विश्व कवि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से प्रेरित होकर रखा गया है। मेरे प्यारे देशवासियों, मेरा अनुरोध है कि जालौन, महाराष्ट्र के डॉ। स्वप्निल मन्त्री और पालकोट के केरल से प्रह्लाद राजगोपालन, MyGov पर केरल में मान की बात में 'सड़क सुरक्षा' पर बात करें। यह बहुत ही महीना है, 18 जनवरी से 17 फरवरी तक, हमारा देश सड़क सुरक्षा माह का पालन कर रहा है। न सिर्फ हमारे देश में बल्कि दुनिया भर में सड़क दुर्घटनाएं चिंता का विषय हैं। आज, भारत में, सरकार के साथ-साथ व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर सड़क सुरक्षा के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। हम सभी को जीवन बचाने के इन प्रयासों में सक्रिय हितधारक बनना चाहिए। दोस्तो, आपने देखा होगा कि बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन जिन रास्तों से गुजरता है, वहां कई नए नारे देखने को मिलते हैं। सड़कों पर सावधान रहने के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए is यह हाईवे नहीं रनवे है या ‘लेट मिस्टर लेट मिस्टर’ जैसे नारे काफी प्रभावी हैं। अब आप ऐसे नवीन नारे भी भेज सकते हैं या MyGov पर वाक्यांशों को पकड़ सकते हैं। इस अभियान में आप से भी अच्छे नारे लगवाए जाएंगे।दोस्तों, सड़क सुरक्षा के बारे में बोलते हुए, मैं कोलकाता के अपर्णा दास जी से NaMo ऐप पर प्राप्त एक पोस्ट का उल्लेख करना चाहूंगा। अपर्णा जी ने मुझे 'फस्टैग प्रोग्राम' पर बोलने के लिए कहा है। वह कहती हैं कि 'फस्टैग' के साथ यात्रा का अनुभव बदल गया है। यह न केवल यात्रा समय बचाता है; टोल प्लाजा पर रुकने, नकद भुगतान की चिंता जैसी समस्याएं भी खत्म हो गई हैं। अपर्णा जी भी सही हैं! पहले हमारे टोल प्लाजा को पार करने में एक वाहन को औसतन 7 से 8 मिनट लगते थे। हालाँकि, ag FASTag ’के उद्भव के बाद से, यह समय औसतन लगभग डेढ़ मिनट से 2 मिनट तक कम हो गया है। टोल प्लाजा पर इस कम प्रतीक्षा समय के कारण, ईंधन की भी बचत हो रही है। अनुमान है कि इससे हमारे देशवासियों के लगभग 21 हजार करोड़ रुपये बचेंगे। जिससे समय के साथ-साथ पैसे की भी बचत हो रही है। मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि सभी दिशा-निर्देशों का पालन करें, अपना ख्याल रखें और दूसरों की जिंदगी भी बचाएं। दोस्तों, यह यहाँ कहा गया है- "जलबिंदु निपातेन क्रमशः पूर्यते घटः", जिसका अर्थ है कि बूंद से गिरा, बर्तन भर गया। हमारे हर एक प्रयास से हमारे संकल्प की प्राप्ति होती है। इसलिए, जिन लक्ष्यों के साथ हमने 2021 में शुरुआत की थी, हम सभी को मिलकर उन्हें पूरा करना होगा। आइए, इस वर्ष को सार्थक बनाने के लिए हम सब मिलकर काम करें। अपने संदेश, अपने विचार भेजते रहें। हम अगले महीने फिर मिलेंगे। इति विदा पञ्चमिलनाय।
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tumblr -03
Varanasi
फूल नहीं रहे तो फल भी ना
मिलेंगे
01 july 2020
#कामिनी मोहन।
छायाचित्र- कामिनी मोहन
प्रकृति एक ही तरह के फूल को कई रंगों में बांट कर उनकी कई उपजातियां हमारे सामने प्रस्तुत करती है। फूलों की हजारों प्रजातियों की भीनी-भीनी सुगंध तितलियों, कीट-पतंगों को उनके इर्द-गिर्द मंडराने को आकर्षित करती है। रंग-बिरंगी तितलियों को फूलों के इर्द-गिर्द देखना अत्यंत मोहक है। फूलों के साथ-साथ दुर्लभ रंग-बिरंगे पक्षी भी फूलों के क्षेत्रों में अपना आवास बना लेते हैं। शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए पुष्प और उनके आसपास के क्षेत्र अत्यंत ही लाभकारी होते हैं। टेसू के फूलों के रंग से होली खेलने की परंपरा अति प्राचीन रही है। अभी भी फूलों से होली खेली जाती है। मंदिरों के श्रृंगार का सबसे बड़ा ��ाधन फूल ही हैं। दुर्लभ प्रजातियों के सुंदर फूलों को संरक्षित करना पूरी ज��व विविधता के लिए उपयोगी है। पेड़, पाैधों में फूलों का रंग आनुवांशिक विविधता की वजह से बदलता है। पौधों में फूलों का रंग वर्णकों की वजह से होता है। यह हर प्रजाति में विविधता को दर्शाता है।
चैत्र मास में पलाश खिलता है। इसके गहरे लाल, हल्के लाल और पीले फूल देखे जाते हैं। पलाश के सफेद फूल अब लुप्त हो चुके हैं। पहले लोग पलाश के पेड़ों के नीचे सूखे गिरे फूलों को घर पर ले जाते थे। मांगलिक कार्यों के लिए रंग बनाने में इनको प्रयुक्त किया जाता था।
भारत में विश्व का लगभग 2.4% भू-भाग है। यह संसार की जैव विविधता का लगभग 8% है भारत में वनस्पतियों की लगभग 46 हजार प्रजातियों की पहचान हो चुकी है। भारत विश्व में जैव विविधता के स्तर पर 12वें स्थान पर है। 22 मई दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस को मनाने की शुरुआत 20 दिसंबर, 2000 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव द्वारा की गई थी। 22 मई, 1992 को नैरोबी में जैव विविधता संधि (Convention on Biological Diversity- CBD) पर हस्ताक्षर के बाद इसे स्वीकार किया गया था।
जैवविविधता अधिनियम, 2002 भारत में जैवविविधता के संरक्षण के लिए संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है। यह कानून परंपरागत जैविक संसाधनों और ज्ञान के उपयोग से होने वाले लाभों के समान वितरण के लिए एक तंत्र प्रदान करता है। ध्यातव्य है कि भारत में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) की स्थापना 2003 में जैव विविधता अधिनियम, 2002 को लागू करने के लिए की गई थी।
मौसम परिवर्तन के कारण पूरी प्रकृति के जीव जंतु संकट में है इनमें फूलों पर खतरे मंडरा रहे हैं। कीटनाशकों के इस्तेमाल से कीट पतंग मधुमक्खियां तितलियां खत्म हो जाने के कारण पराग का निषेचन नहीं हो पा रहा है, जिससे फूलों की प्रजातियां लगातार नष्ट हो रही हैं। यदि फूल नहीं रहे तो फल भी नहीं मिलेंगे। हम सब ने देखा है दुनिया की कोई भी सब्जी हो या कोई भी फल हो उनमें पहले फूल खिलते हैं उसके बाद ही हमें फल मिलता है। कीट पतंग, भंवरे, तितलियों के घटने का अर्थ है फूलों का पराग निषेचन बिल्कुल नहीं होगा। निषेचन न होने पर कोई भी फसल अच्छे से नहीं होने वाली है।
कार्बन उत्सर्जन में भारत जैसे विकासशील देशों की भूमिका बेहद कम है। भारत में यदि फूल और तितलियों की प्रजातियां बची हुई हैं तो इसलिए कि भारत में अब भी प्रकृति में परमात्मा का साक्षात्कार करने की दृष्टि है। परमात्मा द्वारा सृजित अपर�� प्रकृति के हर कण में परमात्मा का दर्शन आज भी ज्ञानी, ध्यानी से लेकर सामान्य जन तक करते हैं। धरती, पानी, अग्नि, आकाश और हवा मिलकर हमारे परिवेश का निर्माण करते हैं। पंच महाभूतों से हमारे शरीर का भी निर्माण हुआ है। वर्तमान में पंच महाभूतों पर संकट हैं। हमारा पर्यावरण संकट में है। यह संकट खतरे की हद तक पहुंच चुका है। इसमें कोई संदेह नहीं की पर्यावरण के प्रति राज, समाज की आस्था कमजोर हो गई है। इसी कारण पारिस्थितिकी, जैव विविधता पर संकट है।
हम सभी प्रकृति प्रेमियों से अनुरोध करना चाहेंगे। जहां तक संभव हो सके गमले में ही सही कुछ ना कुछ फूलों को अपने घर के आंगन, अपनी बालकनी में जरूर लगाएं। यह उनकी तरफ से पर्यावरण की रक्षा में उठाया गया एक बहुत बड़ा कदम होगा। नीचे हम कुछ ऐसे ही पौधों के बारे में जानकारियां दे रहे हैं जो अद्भुत हैं। इनमें से सभी को घर में धन- धान्य के लिए शुभ संकेत माना जाता है।
#Sun Rose, Rose moss, Nine o'clock, Portulaca Grandiflora
यह पौधा Sun Rose या Moss Rose के नाम से जाना जाता है। पोर्टुलाका को हम भारत में नौ बजिया 9 o’clock flower कहते है क्योंकि यह सूर्योदय के बाद सुबह 9:00 बजे के लगभग पूरी तरह से खिल जाता है। इसका बोटैनिकल नाम Portulaca Grandiflora है।
इसके फूल कई रंगों लाल, बैंगनी, सफ़ेद, पीला, गुलाबी आदि चटकदार रंगों में खिलते हैं। दिन ढलने के साथ ये मुरझा जाते हैं। पौधों की लम्बाई एक फीट तक होती है। इसकी पत्तियाँ मोटी होती हैं।
4-5- light pink hibiscus- गुलाबी गुड़हल
6- मोगरा वानस्पतिक नाम : Jasminum sambac अरेबियन जैस्मिन
मोगरा का वानस्पतिक नाम : Jasminum sambac एक फूल देने वाला पौधा है। जो दक्षिण एशिया तथा दक्षिण-पूर्व एशिया का है। यह फिलिपिंस का राष्ट्रीय पुष्प है। इसे संस्कृत में 'मालती' तथा 'मल्लिका' भी कहते हैं। मोगरा एक भारतीय पुष्प है। मोगरे का लैटिन नाम जेसमिनम है। मोगरे का फूल बहुत सुगन्धित होता है। मोगरा के फूल से सुगन्धित फूलों की माला और गजरे तैयार किये जाते हैं।
7- Eremurus Pinocchio
एरेमुरस पिनोचियो
Fox tail Lily
फॉक्सटेल लिली - (ईरेमुरस)
इस पौधे का सामान्य नाम, फोक्सटेल लिली या रेगिस्तानी मोमबत्तियाँ या जानवरों की पूंछ है। इन नामों को वानस्पतिक, एरेमुरस की तुलना में अधिक आसानी से बोल कर इन्हें पुकारा जाता है। ये गर्म मौसम वाले बागानों के लिए उत्कृष्ट पौधे हैं। भारत में यह पीले, चटक गुलाबी, हल्के भूरे और चमकीले पीले रंगों में बहुतायत में पाए जाते हैं।
8-Garden roses गुलाब का फूल
# Nature
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बेपानी हुए क्षेत्र को जिन्होंने पानीदार बनाया
विश्व जल दिवस पर विशेष: जल पुरूष राजेन्द्र सिंह से बातचीत नवनीत कुमार गुप्ता न्यूजवेव @ नईदिल्ली आज देश के कुछ राज��यों में पानी की कमी वाले गांवों में लड़कों की शादियां नहीं हो रही है। कोई ��ेटी देना पसंद नहीं करता। क्योंकि ‘जल बिन सब सून’ आज एक चुनौती है। लेकिन ऐसे विपरीत हालात में भी कुछ शख्स ऐसे है जो जल संरक्षण के लिये जागरूकता पैदा करने के लिये अनवरत संघर्षरत हैं। ऐसे ही अग्रणी जल पुरूष राजेन्द्र सिंह से एक बातचीत-
आपने चिकित्सक जैसे क्षेत्र को छोड़कर जल संरक्षण के क्षेत्र में कैसे काम आरंभ किया ? जब मैंने देखा कि बादल तो आते है लेकिन मेरे गांव में बरसते नहीं है। तो तय किया कि बादलों को बरसाना है मेरे गांव में। इसके लिए पानी का विज्ञान मुझे किसी विद्वान ने नहीं मेरे ही आसपास के लोगों ने समझाया। जिनसे समझा कि सूर्य की गर्मी से समुद्र के पानी से बने बादल गांव से होकर गुजर जाते हैं लेकिन बरसते नहीं। बादल वहां बरसते है, जहां हरियाली होती है। क्योंकि वहां हवा का दबाव कम होता है। फिर हमनें बांध बनाए। पूरे समाज ने मिलकर 11800 बांध बनाए। इनके बनने से हरियाली बढ़ने लगी। बेपानी हुए क्षेत्र को किस तरह पानीदार बनाया यदि हम पानी का उत्पादन समझना चाहते हैं तो पहले पानी की ताकत समझनी बारिश के बाद मिट्टी से अंकुर फुटने लगते हैं। पानी जब मिट्टी से मिलता है तो जीवन उत्पन्न होता है। जो मिट्टी निर्जीव है उसमें पानी मिलने से छोटी-छोटी वनस्पतियां उत्पन्न होने लगती हैं। हमारा क्षेत्र रेन शेडो क्षेत्र था। बादल तो आते थे हर साल मेरे गांव में, पर रूठकर चले जाते थे, मुझे ना मालुम था वो जाते थे कहां। हमनें विचार किया कि हम वाष्पोर्जन को कैसे रोक सकते हैं। हम कैसे बेपानी से पानी कृपानी हो सकते हैं। बादल जब आए और बरसने लगे तो वह दौड़कर न चले उसे चलना सीखा दो। हमने सोचा कि हम सूर्य की नजर हमारे पानी भंडारों को नहीं लगने देंगे। हमनें ढलान पर बांध बनाए जहां से पानी रिचार्च होने लगा। लेकिन हमने परंपरागत ज्ञान से छोटेकृछोटे बांध बनाए। बांधों में बारिश का पानी आने लगा और उस पानी से भूमिगत जल स्तर में भी वृद्धि होने लगी। हमारे आसपास के 12 सौ गांवों में ढाई लाख कुओं में पानी आ गया। अगर दो-तीन साल बारिश कम भी हो तो इनमें पानी रहता है। इसके अलावा हमनें अपनी फसल पैटर्न को रेन पैटर्न से जोड़ने की कोशिश की। कम पानी से ज्यादा फसल लेने का प्रयास किया। समाज के प्रयासों से बेपानी हुआ क्षेत्र जिसे पहले डार्क जोन कहते थे अब पानीदार यानी व्हाईट जोन ��ें बदला। इस बदलाव से वहां की जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ा पानी की उपस्थिति खुशहाली लाती है। जब हमने 1980 के दशक में काम आरंभ किया था तो हमारे क्षेत्र में केवल दो प्रतिशत हरियाली थी लेकिन अब हमारे यहां 48 प्रतिशत हरियाली है। 48 प्रतिशत जमीन पर पेड़-पौधे हैं। पानी आने से जो हरियाली बढ़ी उससे कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों का भी बड़ी मात्रा में अवशोषण हुआ। हमारे इलाके में जहां मई में तापमान 49 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता था। अब तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक ही जाता है। धरती पर हरियाली बड़ी तो हमारी आमदनी भी बड़ी। पहले हमारे गांव के लोग जयपुर आदि शहरों में काम करते थे आज वो खेतों में सब्जियां उगा कर शहरों के लोगों को रोजगार दे रहे हैं। बेपानी हुए क्षेत्रों से जब लोग दिल्ली गए थे तो उनके जीवन में लाचारी, गरीबी और बीमारी थी लेकिन जब पानी आने से ऐसे लोग वापिस गांव आए तो उनके जीवन में खुशहाली आई। जो सूरत, दिल्ली और मुम्बई गए थे वो वापिस आए। लगभग ढाई लाख वापस गांवों में आए। उन्हें गांव में स्वच्छ हवा मिलने लगी। तरूण भारत संघ के प्रणेता- जल पुरूष राजेंद्र सिंह ‘पानी के लिए नोबेल‘ के नाम से विख्यात स्टॉकहोम जल पुरस्कार और मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित डा. राजेन्द्र सिंह देश में जल संरक्षण से जुड़ी मुहिम के अगुआ हैं। आज उनकी पहचान जल पुरूष एवं पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में हैं। आज पूरी दुनिया उन्हें जल संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनिय कार्य के लिए जानती है। उन्हें सामुदायिक नेतृत्व के लिए 2011 में रेमन मैगसेसे पुरस्कार दिया गया था। राजेन्द्र सिंह का जन्म 6 अगस्त 1959 को, उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के डौला गाँव में हुआ। हाई स्कूल पास करने के बाद उन्होंने भारतीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक महाविद्यालय से आयुर्विज्ञान में डिग्री हासिल की। फिर उन्होंने जनता की सेवा के भाव से गाँव में प्रेक्टिस करने का इरादा किया। कुछ महीनों बाद वह जयप्रकाश नारायण की पुकार पर छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के साथ जुड़ गए। इसके लिए उन्होंने छात्र बनने के लिए इलाहाबाद विश्��विद्यालय से सम्बद्ध एक कॉलेज में एम.ए. हिन्दी में प्रवेश ले लिया। 1981 में उनका विवाह हुए बस डेढ़ बरस हुआ था, उन्होंने नौकरी छोड़ी, घर का सारा सामान बेचा। कुल 2300 रुपए की पूँजी लेकर अपने कार्यक्षेत्र में उतर गए। उन्होंने ठान लिया कि वह पानी की समस्या का कुछ हल निकलेंगे। 8000 रुपये बैंक में डालकर शेष पैसा उनके हाथ में इस काम के ��िए था।राजेन्द्र सिंह के साथ चार और साथी आ जुटे थे, यह थे नरेन्द्र, सतेन्द्र, केदार तथा हनुमान। इन पाँचों लोगों ने तरुण भारत संघ के नाम से एक संस्था बनाई जिसे एक गैर-सरकारी संगठन का रूप दिया। दरअसल यह संस्था 1978 में जयपुर यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई थी। राजेन्द्र सिंह ने उसे जिन्दा किया और अपना लिया। इस तरह तरुण भारत संघ उनकी संस्था हो गई। Read the full article
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हिमालय और पर्यावरण को सुरक्षित रखना हम सब की जिम्मेदारी : मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र
हिमालय और पर्यावरण को सुरक्षित रखना हम सब की जिम्मेदारी : मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र
हिमालय दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री ने जारी किया संदेश देवभूमि मीडिया ब्यूरो देहरादून ।श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने हिमालय दिवस के अवसर पर जारी अपने संदेश में कहा कि हिमालय न केवल भारत बल्कि विश्व की बहुत बड़ी आबादी को प्रभावित करता है। यह हमारा भविष्य एवं विरासत दोनों है, हिमालय के सुरक्षित रहने पर ही इससे निकलने वाली सदानीरा नदियां भी सुरक्षित रह पायेंगी, हिमालय की इन पावन नदियों का जल एवं…
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पैरिस। फ्रांस ने भारत को आज पहला राफेल फाइटर जेट सौंप दिया। राफेल को रिसीव करने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और वाइस चीफ मार्शल हरजित सिंह अरोड़ा फ्रांस के बोर्डोक्स स्थित एयरबेस पहुंचे हैं जहां ‘हैंडओवर कार्यक्रम’ के तहत उन्हें पहला राफेल जेट सौंपा गया। बार्डोक्स पहुचंने पर राफेल का निर्माण करने वाली कंपनी डसॉ एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने उनका स्वागत किया।
हैंडओवर कार्यक्रम को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संबोधित भी किया, जिस दौरान उन्होंने पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति जैकी शिराज को श्रद्धांजलि दी जिनका हाल ही में निधन हो गया है। उन्होंने कहा, ‘मैं भारत सरकार और देश जनता की तरफ पूर्व राष्ट्रपति जैकी सिराज को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। उन्होंने भारत-फ्रांस के बीच रणनीतिक संबंध स्थापित करने में हमारे पूर्व पीएम अटलजी के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।’
राजनाथ ने आगे कहा, ‘आज ऐतिहासिक दिन है। आज भारत में दशहरा मनाया जा रहा है जिसे हम बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाते हैं। आज वायु सेना दिवस भी है। आज का दिन कई मायनों में प्रतीकात्मक है। भारत फ्रांस के साथ 23 सितंबर 2016 पर अंतर सरकारी समझौता हुआ था। मुझे यह जानकर खुशी है कि इसकी डिलिवरी सही समय पर हो रही है और हमारी वायु सेना की क्षमता में वृद्धि लाएगा। हमारा फोकस हमारी वायु सेना की क्षमता बढ़ाने पर है।’
रक्षा मंत्री ने कहा, ‘मुझे खुशी है कि इस वक्त बड़ी संख्या में वायु सेना एयरमैन फ्रांस में फ्लाइंग, मेंटिनेंस और लॉजिस्टिक्स की क्षेत्र में ट्रेनिंग ले रहे हैं। उम्मीद है इस ट्रेनिंग से उन्हें भारत में मदद मिलेगी।’
रक्षा मंत्री ने साथ ही डिफेंस के अलावा अन्य मुद्दों पर फ्रांस द्वारा समर्थन जताए जाने पर आभार जताया। उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि दो बड़े लोकतंत्र आगे भी शांति, पर्यावरण स्थिरता सहित अन्य मसलों पर काम करते रहेंगे। राफेल में उड़ान भरना मेरे लिए सम्मान की बात है। राफेल रिसीव करने के बाद रक्षा मंत्री दशहरा पर होने वाली पारंपरिक शस्त्र पूजा करेंगे और फिर राफेल में उड़ान भरेंगे। शस्त्र पूजा के लिए एयरबेस पर प्रबंध किया गया था ।
बता दें कि भारत ने करीब 59 हजार करोड़ रुपये मूल्य पर 36 राफेल लड़ाकू जेट विमान खरीदने के लिए सितंबर, 2016 में फ्रांस के साथ इंटर-गवर्नमेंटल अग्रीमेंट किया था। उल्लेखनीय है कि राफेल जेट भारत को उस दिन सौंपा जा रहा है जब भारतीय वायु सेना अपना स्थापना दिवस मना रही है।
भारत को पहला फाइटर जेट राफेल आज प्राप्त हुआ है लेकिन पहली खेप अगले वर्ष मई में मिलेगी, क्योंकि इसे रखने और संचालन के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे को तैयार किया जा रहा है। वहीं, राफेल को रिसीव करने से पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युएल मैक्रों से मुलाकात की। बैठक आधे घंटे चली जिसमें महत्वपूर्ण मसलों पर व्यापक चर्चा हुई।
क्या है राफेल का महत्व राफेल विमान के भारत आने के साथ ही वायुक्षेत्र में भारत के दबदबे का दौर शुरू होगा। माना जा रहा है कि राफेल से भारत को नई सामरिक क्षमता मिलेगी। राफेल कई लो लैंड जैमर, 10 घंटे तक की डेटा रिकॉर्डिंग, इजरायली हेलमेट वाले डिस्प्ले, कई खूबियों वाला रेडार वॉर्निंग रिसीवर , इन्फ्रारेड सर्च और ट्रैकिंग सिस्टम जैसी क्षमताओं से लैस है।
27 फरवरी की डॉग फाइट में भारत के मिग-बाइसन द्वारा पाकिस्तान के एफ-16 फाइटर जेट को मार गिराया गया था। यह जेट पाक ने अमेरिका से खरीदा है। अगर राफेल और एफ-16 की तुलना करें तो राफेल उसके मुकाबले कई मायनों में ज्यादा शक्तिशाली है।
राफेल का रेडार सिस्टम एफ-16 से ज्यादा मजबूत है। एफ-16 का रेडार सिस्टम 84 किलोमीटर के दायरे में 20 टारगेट की पहचान करता है, जबकि राफेल का 100 किलोमीटर के दायरे में 40 टारगेट चिह्नित कर लेता है। राफेल स्काल्प मिसाइलों के साथ उड़ान भर सकता है जो कि करीब 300 किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्य को भेद सकता है जबकि एफ-16 की ज्यादा से ज्यादा 100 किलोमीटर तक लक्ष्य पर निशाना साध सकता है।
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बापू आखिरी आदमी के लिए फैसले की बात करते थे : पीएम मोदी
पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारी सरकार ने महात्मा गांधी के सपनों को साकार करने की ओर कदम बढ़ाए हैं । पीएम मोदी ने कहा कि हमने ऐसी व्यवस्था को बनाने की कोशिश की है, जैसी महात्मा गांधी चाहते थे । उन्होंने कहा, बापू आखिरी आदमी के लिए फैसले की बात करते थे । हमने उज्जवला योजना, सौभाग्य योजना और स्वच्छता योजना से इसे व्यवस्था का हिस्सा बना दिया है । पीएम मोदी ने कहा कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत ६० महीने में ६० करोड़ लोगों के लिए शौचालय तैयार किए गए । ११ करोड़ शौचालयों के निर्माण की बात सुनकर विश्व अचंभित है । स्वच्छता के चलते गरीब का इलाज पर होने वाला खर्च कम हुआ है । इस अभियान ने ग्रामीण इलाकों और आदिवासी अंचलों में रोजगार के नए अवसर दिए हैं । महात्मा गांधी की १५०वीं जयंती के मौके पर पीएम मोदी ने कहा, ग्रामीण भारत के लोगों ने खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया । स्वेच्छा और जनभागीदारी से चल रहे इस मिशन की यह शक्ति भी है और सफलता का स्रोत भी । उन्होंने कहा कि जिस तरह देश की आजादी के लिए बापू के एक आह्वान पर लाखों लोग निकल पड़े थे, उसी तरह स्वच्छाग्रह के लिए भी करोड़ों देशवासियों ने खुले मन से सहयोग किया । पीएम मोदी ने कहा, ५ साल पहले मैंने जब लोगों को पुकारा था तो हमारे पास सिर्फ विश्वास और गांधी जी का अमर संदेश था । वह कहते थे कि हमें खुद में बदलाव लाना होगा । इसी संदेश के तहत हमने झाड़ू उठाई और निकल पड़े । स्वच्छता, गरिमा और सम्मान के इस यज्ञ में सबने योगदान दिया । पीएम मोदी ने कहा कि इसी साबरमती के किनारे महात्मा गांधी ने सत्य के प्रयोग किए थे । साबरमती रिवरफ्रंट पर इस कार्यक्रम का आयोजन होना दोहरी खुशी का विषय है । स्वच्छता मिशन की सफलता का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा,किसी बेटी ने शादी के लिए शौचालय की शर्त रख दी तो कहीं इसे इज्जत घर का दर्जा मिला । जिसे लेकर कभी हिचक होती थी, आज वह चर्चा का विषय बन गया है । उन्होंने कहा कि यह अभियान जीवन रक्षक भी सिद्ध हो रहा है और जीवन स्तर को बढ़ाने का भी काम कर रहा है । इससे देश में बहनों और बेटियों की सुरक्षा और सशक्तिकरण की स्थिति में अद्भूत बदलाव आया है । यही मॉडल तो महात्मा गांधी चाहते थे । अब सवाल यह है कि क्या हमने जो हासिल कर लिया है, वह काफी है क्या? इसका जवाब सीधा और स्पष्ट है, वह सिर्फ और सिर्फ एक पड़ाव है । स्वच्छ भारत के लिए हमारा सफर निरंतर जारी है । अभी हमने शौचालयों का निर्माण किया है । जो लोग अब भी इससे छूटे हुए हैं, उन्हें भी इस सुविधा से जोड़ना है । पीएम मोदी ने कहा कि सरकार ने जो जल-जीवन मिशन शुरू किया है, उससे भी महात्मा गांधी के सपनों को साकार करने में मदद मिलने वाली है । हम वॉटर रिचार्ज के लिए जो भी प्रयास कर सकते हैं, वो करने चाहिए । सरकार ने जल-जीवन मिशन पर साढ़ें तीन लाख रुपये खर्च करने का फैसला लिया है । लेकिन देशवासियों की भागीदारी के बिना इस विराट कार्य को पूरा करना मुश्किल है । सिंगल यूज प्लास्टिक पर्यावरण के लिए खतरा है । २०२२ तक हमें इससे मुक्त होना है । उन्होंने कहा कि स्वच्छता ही सेवा मिशन के तहत पूरे देश ने इस मिशन को गति है । इस दौरान यह भी दिखा कि प्लास्टिक के कैरी बैग का प्रयोग तेजी से घट रहा है । मुझे यह भी जानकारी है कि करोड़ों लोगों ने सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग न करने का फैसला लिया है । पीएम मोदी ने गुजरात को चक्र ��ारी मोहन और चरखा धारी मोहन की भूमि बताते हुए मौके पर मौजूद सरपंचों और लोगों को प्रणाम किया । साबरमती रिवर फ्रंट पर आयोजित स्वच्छ भारत दिवस के मौके पर उन्होंने स्मारक डाक टिकटों का भी विमोचन किया गया । पहली बार अष्टकोणीय डाक टिकटों को जारी किया । इनमें महात्मा गांधी के जीवन और आंदोलनों का चित्रण किया गया है । इसके अलावा पीएम मोदी ने महात्मा गांधी की १५०वीं जयंती पर स्मारक सिक्का भी जारी किया । १५० रुपये का यह स्मारक सिक्का ४० ग्राम चांदी से तैयार किया गया है । Read the full article
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#Innovative_Memories #glimpse #INNOVATIVE_CLASSES_GONDA #ECO_YARDS_CLUB_OF_INDIA #EcoYardsClub #YesWeAreTheChange #BeatPlasticPollution #WED2018 #WorldEnvironmentDay2018 World Environment Day(5 June):Visit To Library: Smile Donation Drive-2. विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर Innovative Classes के बच्चों ने राजकीय जिला पुस्तकालय,गोंडा में लगे पर्यावरण मेला व पर्यावरण पुस्तक प्रदर्शनी के प्रोग्राम में प्रतिभाग किया।इस अवसर पर Innovative Classes के टीचर और Eco Yards Club Of India के संस्थापक ब्रजेंद्र मणि त्रिपाठी ने लाइब्रेरियन श्री संजय साह सर् को बरगद का पौधा भेंट कर विश्व पर्यावरण दिवस की बधाई दी। दोस्तो जैसा कि आप जानते ही होंगे कि इस बार विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी हमारा देश भारत कर रहा है और इस बार की थीम है #BeatPlasticPolution मतलब प्लास्टिक प्रदूषण को हराना है।विश्व पर्यावरण दिवस यूनाइटेड नेशन का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण दिन है क्योकि आज के दिन वैश्विक स्तर पर धरती को बचाने,लोगों को जागरूक करने और पर्यावरण के heros का हौसला बढ़ाया जाता है।हम प्रत्येक वर्ष 5 जून और 14 नवंबर को Eco Yards Club Of India की सहायता से बड़ी संख्या में वृक्षारोपण कर अपने बच्चों के नाम से पेड़ लगाते हैं,ये हमारे सामाजिक जिम्मेदारी में शामिल है, लेकिन इस बार हमने कुछ अलग सोचा।की अगर धरती,जल,पर्यावरण आदि के संरक्षण के बारे में बच्चों को बेहतर और कारगर तरीके से समझना है तो उन्हें पढ़ाई, ज्ञान और किताबों से जोड़ना होगा।हालांकि सभी स्कूलों और कॉलेजों ��ें पर्यावरण की शिक्षा अनिवार्य रूप से पाठ्क्रम में शामिल है लेकिन अफसोस उसको सिर्फ एग्जाम में पास होने के लिए पढ़ाया जाता है,अच्छा होता कि शिक्षक बंधु उसको मानव जीवन और उसपर पड़ने वाले असर से जोड़कर पढ़ाते। हम हृदय से आभार व्यक्त करते हैं राजकीय जिला पुस्तकालय के अध्यक्ष व लाइब्रेरियन श्री Sanjay Sah और Nature Club के Abhishek Dubey जी का की उन्होंने बच्चों को ज्ञानवर्धक जानकारियां दी और उनका हौसला बढ़ाया। भारत पर्यावरण की विभिन्न समस्याओं से पहले से ग्रस्त है,हालांकि कुछ सरकारी और ज्यादातर स्वयंसेवियों की वजह से सकारात्मक परिवर्तन आना शुरू हो गए हैं, लेकिन मंजिल अभी कोसों दूर है।ज्यादातर सामाजिक कार्यकर्ताओं से तो दुनिया वाकिफ ही नही है,और मजे की बात यह है कि इन अजीब और पागल कहे जाने वाले लोगों को इसकी परवाह भी नहीं है। पूरा लेख पढ़ने के लिए हमारा पेज लाइक करें Bit.ly/ICGD_FB . #VISITtoLibrary #InnovativeSmileDonationDrive (at Innovative Classes)
#yeswearethechange#wed2018#beatplasticpolution#eco_yards_club_of_india#ecoyardsclub#glimpse#innovative_classes_gonda#worldenvironmentday2018#visittolibrary#beatplasticpollution#innovative_memories#innovativesmiledonationdrive
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विश्व पर्यावरण दिवस: ये हैं 5 अहम चुनौतियां
आज विश्व पर्यावरण दिवस है। भारत समेत पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई तरह की मुहिम चल रही हैं। पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा के स्रोत अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। मौसम में आए बदलाव और घटते वनक्षेत्र चिंता का सबब बनते जा रहे हैं। हमारा समाज आज इसके विनाशकारी नतीजों का सामना भी कर रहा है। ऐसे में आइए जानते हैं कि पर्यावरण के लिए 5 सबसे बड़ी चुनौतियां क्या हैं: http://dlvr.it/QWC9Xq
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विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस : प्रदूषण कम कर रहा आपकी सांसें, हो जाइए सावधान, अपनी प्रकृति को बचाएं
चैतन्य भारत न्यूज प्रकृति के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। हवा, पानी, भोजन, धूप सब कुछ हमें प्रकृति से ही मिलता है। यदि प्रकृति की सेहत बिगड़ने लगी तो हम सभी की जान भी खतरे में पड़ सकती है। पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने एवं लोगो को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 28 जुलाई को 'विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस' मनाया जाता है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); पर्यावरण के बिना असंभव है जीवन पिछले तीन दशकों से यह महसूस किया जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी समस्या पर्यावरण से ही जुड़ी हुई है। प्रकृति ने मनुष्य को कई प्रकार की सौगात दी है जिसमें सबसे बड़ी सौगात पर्यावरण की है। यदि पर्यावरण न होता तो जीवन संभव ही नहीं होता। इसके बिना कोई भी जीव-जंतु जिंदा नहीं रह पाता। जंगल पृथ्वी के फेफड़े कहे जाते हैं। जंगल से ही हमें सबसे ज्यादा शुद्ध वायु और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। प्रदूषण पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन पूरा विश्व आज पर्यावरण को लेकर चिंतित है। बता दें पर्यावरण वायु, जल, मिट्टी, मानव और वृक्षों से मिलकर बना है। इनमें से किसी भी एक के असंतुलित होने पर पर्यावरण प्रक्रिया असहज हो जाती है जिसका सीधा असर मानव जीवन पर पड़ता है। साथ ही इन दिनों प्रदूषण भी पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है। प्रदूषण मानव जीवन के साथ ही पेड़, पौधे और जलवायु को भी प्रभावित करता है। देखा जाए तो विश्व ने जैसे-जैसे विकास और प्रगति हासिल की है वैसे-वैसे पर्यावरण असंतुलित होता गया है। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों का निर्माण होना, कल-कारखाने, फैक्ट्रियों से निकलते धुंए, वाहनों से निकलने वाले धुएं, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदी और तालाबों का प्रदूषित होना, बड़ी-बड़ी इमारतें बनना आदि के जरिए कहीं न कहीं पर्यावरण के साथ खिलवाड़ हो रहा है। प्रदूषण के कारण सांस लेना भी दूभर हुआ इन दिनों प्रदूषण ने विकराल रूप धारण कर लिया है। खासकर अगर भारत की ही बात की जाए तो महानगरों में वायु प्रदूषण अधिक फैला है। चैबीसों घंटे कल-कारखानों और वाहनों से निकलने वाला विषैला धुआं इस तरह वातावरण में फैल गया है कि सांस लेना तक दूभर हो गया है। इसके कारण लोगों में अनेकों बीमारियां फैलती जा रही हैं। एक ताजा सर्वे के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 4 सालों में चार करोड़ से भी ज्यादा लोग तेज सांस के संक्रमण के शिकार हो रहे हैं। इस अवधि में 12 हजार 200 लोग वायु प्रदूषण से जूझते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए। एक अनुमान के मुताबिक, हर साल भारत में प्रदूषण के कारण ही 150 लोगों की जान चली जाती है और हजारों लोग फेफड़े और हृदय की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। पेड़ों की अंधाधुन कटाई के कारण भी पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर साल विश्व में एक करोड़ हैक्टेयर से अधिक और भारत में 10 लाख हैक्टेयर वन काटे जा रहे हैं। ऐसे में वन्यजीव भी धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहा है। आने वाली पीढ़ी के लिए अंधकारमय हो सकता है जीवन मानव जीवन के लिए पर्यावरण का अनुकूल और संतुलित होना बेहद महत्वपूर्ण है। यदि हमने आज, अभी और इसी वक्त से पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाली पीढ़ी के लिए जीवन अंधकारमय हो सकता है। पर्यावरण को सदैव स्वस्थ रखने के लिए हर व्यक्ति को अपने आस-पास अधिक से अधिक संख्या में पेड़ लगाना चाहिए, पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर रखना चाहिए, तब जाकर हमारे सुखमय जीवन को भी संरक्षित रखा जा सकता है। यदि हमारी प्रकृति स्वस्थ रहेगी तो हम भी स्वस्थ रहेंगे। Read the full article
#WorldNatureConservationDay2020#WorldNatureConservationDayhistory#WorldNatureConservationDayimportance#पर्यावरण#प्रदूषणपर्यावरण#विश्वप्रक���तिसंरक्षणदिवस
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विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस : प्रदूषण कम कर रहा आपकी सांसें, हो जाइए सावधान, अपनी प्रकृति को बचाएं
चैतन्य भारत न्यूज प्रकृति के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। हवा, पानी, भोजन, धूप सब कुछ हमें प्रकृति से ही मिलता है। यदि प्रकृति की सेहत बिगड़ने लगी तो हम सभी की जान भी खतरे में पड़ सकती है। पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने एवं लोगो को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 26 नवंबर को 'विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस' मनाया जाता है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); पर्यावरण के बिना असंभव है जीवन पिछले तीन दशकों से यह महसूस किया जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी समस्या पर्यावरण से ही जुड़ी हुई है। प्रकृति ने मनुष्य को कई प्रकार की सौगात दी है जिसमें सबसे बड़ी सौगात पर्यावरण की है। यदि पर्यावरण न होता तो जीवन संभव ही नहीं होता। इसके बिना कोई भी जीव-जंतु जिंदा नहीं रह पाता। जंगल पृथ्वी के फेफड़े कहे जाते हैं। जंगल से ही हमें सबसे ज्यादा शुद्ध वायु और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। प्रदूषण पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन पूरा विश्व आज पर्यावरण को लेकर चिंतित है। बता दें पर्यावरण वायु, जल, मिट्टी, मानव और वृक्षों से मिलकर बना है। इनमें से किसी भी एक के असंतुलित होने पर पर्यावरण प्रक्रिया असहज हो जाती है जिसका सीधा असर मानव जीवन पर पड़ता है। साथ ही इन दिनों प्रदूषण भी पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है। प्रदूषण मानव जीवन के साथ ही पेड़, पौधे और जलवायु को भी प्रभावित करता है। देखा जाए तो विश्व ने जैसे-जैसे विकास और प्रगति हासिल की है वैसे-वैसे पर्यावरण असंतुलित होता गया है। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों का निर्माण होना, कल-कारखाने, फैक्ट्रियों से निकलते धुंए, वाहनों से निकलने वाले धुएं, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदी और तालाबों का प्रदूषित होना, बड़ी-बड़ी इमारतें बनना आदि के जरिए कहीं न कहीं पर्यावरण के साथ खिलवाड़ हो रहा है। प्रदूषण के कारण सांस लेना भी दूभर हुआ इन दिनों प्रदूषण ने विकराल रूप धारण कर लिया है। खासकर अगर भारत की ही बात की जाए तो महानगरों में वायु प्रदूषण अधिक फैला है। चैबीसों घंटे कल-कारखानों और वाहनों से निकलने वाला विषैला धुआं इस तरह वातावरण में फैल गया है कि सांस लेना तक दूभर हो गया है। इसके कारण लोगों में अनेकों बीमारियां फैलती जा रही हैं। एक ताजा सर्वे के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 4 सालों में चार करोड़ से भी ज्यादा लोग तेज सांस के संक्रमण के शिकार हो रहे हैं। इस अवधि में 12 हजार 200 लोग वायु प्रदूषण से जूझते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए। एक अनुमान के मुताबिक, हर साल भारत में प्रदूषण के कारण ही 150 लोगों की जान चली जाती है और हजारों लोग फेफड़े और हृदय की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। पेड़ों की अंधाधुन कटाई के कारण भी पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर साल विश्व में एक करोड़ हैक्टेयर से अधिक और भारत में 10 लाख हैक्टेयर वन काटे जा रहे हैं। ऐसे में वन्यजीव भी धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहा है। आने वाली पीढ़ी के लिए अंधकारमय हो सकता है जीवन मानव जीवन के लिए पर्यावरण का अनुकूल और संतुलित होना बेहद महत्वपूर्ण है। यदि हमने आज, अभी और इसी वक्त से पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाली पीढ़ी के लिए जीवन अंधकारमय हो सकता है। पर्यावरण को सदैव स्वस्थ रखने के लिए हर व्यक्ति को अपने आस-पास अधिक से अधिक संख्या में पेड़ लगाना चाहिए, पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर रखना चाहिए, तब जाकर हमारे सुखमय जीवन को भी संरक्षित रखा जा सकता है। Read the full article
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विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस : प्रदूषण कम कर रहा आपकी सांसें, हो जाइए सावधान, अपनी प्रकृति को बचाएं
चैतन्य भारत न्यूज प्रकृति के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। हवा, पानी, भोजन, धूप सब कुछ हमें प्रकृति से ही मिलता है। यदि प्रकृति की सेहत बिगड़ने लगी तो हम सभी की जान भी खतरे में पड़ सकती है। पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने एवं लोगो को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 26 नवंबर को 'विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस' मनाया जाता है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); पर्यावरण के बिना असंभव है जीवन पिछले तीन दशकों से यह महसूस किया जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी समस्या पर्यावरण से ही जुड़ी हुई है। प्रकृति ने मनुष्य को कई प्रकार की सौगात दी है जिसमें सबसे बड़ी सौगात पर्यावरण की है। यदि पर्यावरण न होता तो जीवन संभव ही नहीं होता। इसके बिना कोई भी जीव-जंतु जिंदा नहीं रह पाता। जंगल पृथ्वी के फेफड़े कहे जाते हैं। जंगल से ही हमें सबसे ज्यादा शुद्ध वायु और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। प्रदूषण पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन पूरा विश्व आज पर्यावरण को लेकर चिंतित है। बता दें पर्यावरण वायु, जल, मिट्टी, मानव और वृक्षों से मिलकर बना है। इनमें से किसी भी एक के असंतुलित होने पर पर्यावरण प्रक्रिया असहज हो जाती है जिसका सीधा असर मानव जीवन पर पड़ता है। साथ ही इन दिनों प्रदूषण भी पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है। प्रदूषण मानव जीवन के साथ ही पेड़, पौधे और जलवायु को भी प्रभावित करता है। देखा जाए तो विश्व ने जैसे-जैसे विकास और प्रगति हासिल की है वैसे-वैसे पर्यावरण असंतुलित होता गया है। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों का निर्माण होना, कल-कारखाने, फैक्ट्रियों से निकलते धुंए, वाहनों से निकलने वाले धुएं, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदी और तालाबों का प्रदूषित होना, बड़ी-बड़ी इमारतें बनना आदि के जरिए कहीं न कहीं पर्यावरण के साथ खिलवाड़ हो रहा है। प्रदूषण के कारण सांस लेना भी दूभर हुआ इन दिनों प्रदूषण ने विकराल रूप धारण कर लिया है। खासकर अगर भारत की ही बात की जाए तो महानगरों में वायु प्रदूषण अधिक फैला है। चैबीसों घंटे कल-कारखानों और वाहनों से निकलने वाला विषैला धुआं इस तरह वातावरण में फैल गया है कि सांस लेना तक दूभर हो गया है। इसके कारण लोगों में अनेकों बीमारियां फैलती जा रही हैं। एक ताजा सर्वे के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 4 सालों में चार करोड़ से भी ज्यादा लोग तेज सांस के संक्रमण के शिकार हो रहे हैं। इस अवधि में 12 हजार 200 लोग वायु प्रदूषण से जूझते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए। एक अनुमान के मुताबिक, हर साल भारत में प्रदूषण के कारण ही 150 लोगों की जान चली जाती है और हजारों लोग फेफड़े और हृदय की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। पेड़ों की अंधाधुन कटाई के कारण भी पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर साल विश्व में एक करोड़ हैक्टेयर से अधिक और भारत में 10 लाख हैक्टेयर वन काटे जा रहे हैं। ऐसे में वन्यजीव भी धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहा है। आने वाली पीढ़ी के लिए अंधकारमय हो सकता है जीवन मानव जीवन के लिए पर्यावरण का अनुकूल और संतुलित होना बेहद महत्वपूर्ण है। यदि हमने आज, अभी और इसी वक्त से पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाली पीढ़ी के लिए जीवन अंधकारमय हो सकता है। पर्यावरण को सदैव स्वस्थ रखने के लिए हर व्यक्ति को अपने आस-पास अधिक से अधिक संख्या में पेड़ लगाना चाहिए, पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर रखना चाहिए, तब जाकर हमारे सुखमय जीवन को भी संरक्षित रखा जा सकता है। Read the full article
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जन्म दिन पर बोले प्रधानमंत्री मोदी- नर्मदा का पानी सिर्फ पानी नहीं सोना है
प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी आज गृहराज्य गुजरात के दौरे पर है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 69वा जन्मदिन भी है। इस मौके पर पीएम मोदी ने केवड़िया से लोगो को संबोधित करते हुए कहा की नर्मदा का पानी सिर्फ पानी नहीं लेकिन सोना है। पीएम ने आगे कहा की, आजादी के दौरान जो काम अधूरे रह गए थे, उनको पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। अपने 69वें जन्मदिन पर सरदार सरोवर बांध के किनारे नर्मदा महोत्सव में शामिल हुए पीएम ने आज एक जनसभा में हैदराबाद मुक्ति दिवस और सरदार पटेल का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कल्पना कीजिए, अगर सरदार पटेल की वो दूरदर्शिता ना रहती तो आज भारत का नक्शा कैसा होता और भारत की समस्याएं कितनी अधिक होतीं। पीएम ने कहा कि सरदार साहब की प्रेरणा से एक महत्वपूर्ण फैसला देश ने लिया है। दशकों पुरानी समस्या के समाधान के लिए नए रास्ते पर चलने का निर्णय लिया गया है। मुझे पूरा विश्वास है कि जम्मू कश्मीर, लद्दाख और करगिल के लाखों साथियों के सक्रिय सहयोग से हम विकास और विश्वास की नई धारा बहाने में सफल होंगे। नर्मदा जिले के केवडिया में जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आजादी के दौरान जो काम अधूरे रह गए थे, उनको पूरा करने का प्रयास आज देश कर रहा है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों को 70 साल तक भेदभाव का सामना करना पड़ा है। इसका दुष्परिणाम, हिंसा और अलगाव के रूप में, अधूरी आशाओं और आकांक्षाओं के रूप में पूरे देश ने भुगता है। पीएम ने कहा कि 17 सितंबर का दिन सरदार साहब और भारत की एकता के लिए किए गए उनके प्रयासों का स्वर्णिम पृष्ठ है। मोदी ने कहा कि आज हैदराबाद मुक्ति दिवस भी है। आज के ही दिन 1948 में हैदराबाद का विलय भारत में हुआ था और आज हैदराबाद देश की उन्नति और प्रगति में पूरी मजबूती से योगदान दे रहा है। उन्होंने कहा कि कल्पना कीजिए, अगर सरदार पटेल की वो दूरदर्शिता तब ना रहती तो आज भारत का नक्शा कैसा होता और भारत की समस्याएं कितनी अधिक होतीं। PM ने कहा कि भारत की एकता और श्रेष्ठता के लिए आपका यह सेवक पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, बीते 100 दिनों में अपनी इस प्रतिबद्धता को हमने ��र मजबूत किया है। मैंने चुनाव के दौरान भी आपसे कहा था, आज फिर कह रहा हूं। हमारी नई सरकार, पहले से भी तेज गति से काम करे���ी, पहले से भी ज्यादा बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गुजरात ही नहीं मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के किसानों और जनता को सरदार सरोवर योजना का लाभ मिल रहा। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में हमेशा माना गया है कि पर्यावरण की रक्षा करते हुए भी विकास हो सकता है। प्रकृति हमारे लिए आराध्य, हमारा गहना है। पर्यावरण को संरक्षित करते हुए कैसे विकास किया जा सकता है, इसका जीवंत उदाहरण केवडिया में देखने को मिल रहा है। पीएम ने कहा कि टूरिज्म की बात जब आती है तो स्टेच्यु ऑफ यूनिटी की चर्चा स्वभाविक है। इसके कारण केवडिया और गुजरात पूरे विश्व के टूरिज्म मैप पर प्रमुखता से आ गया है। Read the full article
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