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Illegal sand mining: SC seeks response from Centre, CBI and 5 states
अवैध रेत खनन: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, CBI और पांच राज्यों से मांगा जवाब
हाईलाइट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र, सीबीआई और 5 राज्यों को अवैध रेत खनन की जांच की याचिका पर नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र, सीबीआई और पांच राज्यों को कथित अवैध बालू खनन की जांच की याचिका पर नोटिस जारी किया है। न्यायमूर्ति एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने पर्यावरण और वन मंत्रालय (एमओईएफ), खनन मंत्रालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), तमिलनाडु, पंजाब, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र से इस संबंध में जवाब मांगा हैं।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें – https://www.bhaskarhindi.com/news/illegal-sand-mining-sc-seeks-response-from-centre-cbi-and-5-states-74181
#सुप्रीम कोर्ट#सीबीआई#अवैध बा��ू खनन#न्यायमूर्ति एसए बोबडे#वन मंत्रालय#खनन मंत्रालय#केंद्रीय जांच ब्यूरो#Illegal sand mining#SC seeks response#CBI and 5 states#Supreme Court#petition seeking investigation#alleged illegal sand mining#BhaskarHindiNews
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CJI रमना ने न्यायपालिका के बारे में जानकारी के प्रसार में सहयोग के लिए मीडिया की सराहना की
CJI रमना ने न्यायपालिका के बारे में जानकारी के प्रसार में सहयोग के लिए मीडिया की सराहना की
द्वारा पीटीआई NEW DELHI: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमना ने शुक्रवार को न्यायपालिका के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लिए मीडिया की सराहना की और इसे न्यायिक प्रणाली को मजबूत करने की सहयोगी परियोजना में एक ‘सक्रिय भागीदार’ करार दिया। न्यायमूर्ति रमना, जो 24 अप्रैल, 2021 को सीजेआई के रूप में एसए बोबडे की जगह लेंगे, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) द्वारा शीर्ष अदालत के सभागार में…
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जस्टिस एनवी रमना ने भारत के नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली
जस्टिस एनवी रमना ने भारत के नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली
जस्टिस एनवी रमना ने राष्ट्रपति भवन में एक छ���टे से समारोह में शपथ ली। नई दिल्ली: न्यायमूर्ति एनवी रमना ने आज सुबह भारत के 48 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कोविंद के प्रतिबंधों के कारण एक छोटे से समारोह में दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में उन्हें शपथ दिलाई। न्यायमूर्ति एसए बोबडे की विदाई में, जो मुख्य न्यायाधीश के रूप में कल सेवानिवृत्त हुए, न्यायमूर्ति रमण ने…
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सुप्रीम कोर्ट की जज इंदु मल्होत्रा हुईं रिटायर, CJI बोले- 'उनसे बेहतर किसी न्यायाधीश को नहीं जानता'
सुप्रीम कोर्ट की जज इंदु मल्होत्रा हुईं रिटायर, CJI बोले- ‘उनसे बेहतर किसी न्यायाधीश को नहीं जानता’
नई दिल्ली। देश के सर्वोच्चतम न्यायालय की जस्टिस इंदु मल्होत्रा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद शनिवार को उन्हें सुप्रीम कोर्ट से विदाई दी गई। कोर्ट में अपने आखिरी दिन वह इतनी भावुक हो गईं कि अपना फेरवल स्पीच भी पूरा नहीं कर सकीं। इंदु मल्होत्रा को इमोशनल देख चीफ जस्टिस एसए बोबडे ��े माइक संभालते हुए कहा कि वह चाहेंगे कि जस्टिस मल्होत्रा किसी और मौके पर अपनी स्पीच पूरी करें। वह न्यायमूर्ति इंदु…
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SC की टिप्पणी: महिला के आरोप पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या लिव-इन कपल के बीच सेक्सुअल इंटिमेसी को दुष्कर्म कहा जा सकता है? [Source: दैनिक भास्कर हिंदी]
SC की टिप्पणी: महिला के आरोप पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या लिव-इन कपल के बीच सेक्सुअल इंटिमेसी को दुष्कर्म कहा जा सकता है? [Source: दैनिक भास्कर हिंदी]
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लिव इन में रहने वाले दंपति के बीच यौन संबंधों के लिए सहमति के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूछा कि क्या उनके बीच संभोग को दुष्कर्म कहा जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश एसए बोब��े और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यदि कोई दंपति एक साथ पति और पत्नी की तरह रह रहे हैं ..पति क्रूर हो सकता है, लेकिन जोड़े के बीच…
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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, Live-in Relationship के दौरान बने यौन संबंध को रेप कह सकते हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, Live-in Relationship के दौरान बने यौन संबंध को रेप कह सकते हैं?
नई दिल्ली: लिव-इन दंपति के बीच यौन संबंधों के लिए सहमति के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूछा कि क्या उनके बीच संभोग को दुष्कर्म कहा जा सकता है. मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायमूर्ति ए.एस.बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “यदि कोई दंपति एक साथ पति और पत्नी की तरह रह रहे हैं. पति क्रूर हो सकता है, लेकिन जोड़े के बीच संभोग को क्या दुष्कर्म करार…
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पत्नी पायल से जल्द तलाक चाहते हैं उमर अब्दुल्ला, सुप्रीम कोर्ट का खटखटाया दरवाजा
पत्नी पायल से जल्द तलाक चाहते हैं उमर अब्दुल्ला, सुप्रीम कोर्ट का खटखटाया दरवाजा
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमणियम की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।
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कोरोना वैक्सीन: जजों, वकीलों, उनके कर्मचारियों को प्राथमिकता देने की मांग, SC में सुनवाई Divya Sandesh
#Divyasandesh
कोरोना वैक्सीन: जजों, वकीलों, उनके कर्मचारियों को प्राथमिकता देने की मांग, SC में सुनवाई
नई दिल्ली कोविड-19 टीकाकरण अभियान में न्यायाधीश, न्यायिक कर्मचारियों को प्राथमिकता देने के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई के लिए मंगलवार को सहमत हो गया। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एसएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यम की पीठ ने वकील अरविंद सिंह द्वारा दायर याचिका को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
याचिका में कहा गया था कि केंद्र ने न्यायपालिका, न्यायिक कर्मचारियों, वकीलों और उनके कर्मचारियों के सदस्यों के कोविड-19 टीकाकरण में प्राथमिकता वाली श्रेणी में शामिल करने के उनके अनुरोध पर विचार नहीं किया है।
वकील ऋषि सहगल की जरिए दायर कराई गई याचिका में कहा गया, ‘‘ याचिका का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायाधीश, वकील, अदालत के कर्मचारी और वकीलों के कर्मचारी, जो न्यायिक प्रशासन के रूप में ‘आवश्यक सेवाओं’ से एक हैं, उन्हें कोविड-19 टीकाकरण में प्राथमिकता वाली श्रेणी में शामिल किया जाए।’’
उसने कहा, ‘‘टीकाकरण के लिए उनके साथ अन्य आवश्यक सेवाओं के कर्मचारियों की तरह ही व्यवहार किया जाना चाहिए।’’ जनहित याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने समूह की पहचान की है, जिन्हें पहले टीका लगाया जाएगा, लेकिन यह किसी भी निर्धारित मानदंड पर आधारित नहीं है और यह स्पष्ट रूप से मनमानी तथा बिना सोचे-समझे तैयार की गई है।
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अवमानना मामला: SC ने प्रशांत भूषण पर लगाया 1 रुपए का जुर्माना, नहीं भरने पर होगी तीन महीने की जेल
चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उनपर एक रुपए का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि वह जुर्माने को 15 सितंबर तक जमा नहीं करते हैं तो उन्हें तीन महीने की जेल और तीन साल तक प्रैक्टिस करने से रोक दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनाया। Supreme Court imposes a fine of Re 1 fine on Prashant Bhushan. In case of default, he will be barred from practising for 3 years & will be imprisoned of 3 months https://t.co/0lMbqiizBb — ANI (@ANI) August 31, 2020 25 अगस्त को अदालत ने सुरक्षित रख लिया था फैसला बता दें कोर्ट ने इससे पहले 25 अगस्त को भूषण की सजा पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। उन्हें सजा सुनाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से राय मांगी थी। इस पर वेणुगोपाल ने कहा था कि प्रशांत भूषण को चेतावनी देकर छोड़ देना चाहिए। गौरतलब है कि, प्रशांत भूषण ने न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक दो ट्वीट के लिए सर्वोच्च न्यायालय से माफी मांगने से इनकार कर दिया था। 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट प्रशांत भूषण से उनके द्वारा उच्चतम न्यायालय और न्यायाधीशों के बारे में की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों पर माफी मंगवाने में सफल नहीं हो सका था। जिसके बाद मंगलवार को कोर्ट ने अवमानना म���ं दोषी ठहराए गए भूषण की सजा पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए अफसोस जताया कि जजों की निंदा की जाती है। उनके परिवारवालों को अपमानित किया जाता है और वह बोल तक नहीं सकते। क्या है पूरा मामला 22 जून को वरिष्ठ वकील ने कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे और चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को लेकर टिप्पणी की थी। इसके बाद 27 जून के ट्वीट में प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के छह साल के कामकाज को लेकर टिप्पणी की थी। इन ट्वीट्स पर स्वत: संज्ञान लेते हुए अदालत ने उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की थी। Read the full article
#PrashantBhushan#PrashantBhushancase#PrashantBhushanfine#PrashantBhushannews#Supremecourt#प्रशांतभूषण#प्रशांतभूषणअवमाननामामला#सुप्रीमकोर्ट
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बीसीसीआई से जुड़े मुद्दों की याचिकाओं पर दो हफ्ते बाद सुनवाई करेगी सुप्रीम कोर्ट
बीसीसीआई से जुड़े मुद्दों की याचिकाओं पर दो हफ्ते बाद सुनवाई करेगी सुप्रीम कोर्ट
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सांकेतिक
नई दिल्ली भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) से जुड़े मुद्दों को उठाने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट दो सप्ताह बाद सुनवाई करेगी। यह मामला प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया था। तमिलनाडु क्रिकेट संघ (टीएनसीए) और हिमाचल प्रदेश क्रिकेट संघ (एचपीसीए) की ओर से पेश वकीलों ने पीठ को बताया कि उन्होंने इस मामले में याचिका दायर की है…
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#applications in BCCI matter#bcci#bcci cases in supreme court#bcci supreme court#indian cricket#supreme court bcci#tamilnadu cricket association#बीसीसीआई
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जस्टिस एनवी रमना ने राष्ट्रपति द्वारा भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की
जस्टिस एनवी रमना ने राष्ट्रपति द्वारा भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की
जस्टिस रमना का कार्यकाल 26 अगस्त, 2022 तक देश के शीर्ष न्यायाधीश के रूप में होगा। नई दिल्ली: राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा जस्टिस एनवी रमण को भारत का अगला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। वह 24 अप्रैल को शपथ लेंगे। पिछले महीने, भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जो 23 अप्रैल को सेवानिवृत्त होने वाले हैं, न्यायमूर्ति रमण को अपने उत्तराधिकारी के रूप में सिफारिश की थी। 27 अगस्त, 1957 को…
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SC की टिप्पणी: महिला के आरोप पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या लिव-इन कपल के बीच सेक्सुअल इंटिमेसी को दुष्कर्म कहा जा सकता है? [Source: दैनिक भास्कर हिंदी]
SC की टिप्पणी: महिला के आरोप पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या लिव-इन कपल के बीच सेक्सुअल इंटिमेसी को दुष्कर्म कहा जा सकता है? [Source: दैनिक भास्कर हिंदी]
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लिव इन में रहने वाले दंपति के बीच यौन संबंधों के लिए सहमति के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूछा कि क्या उनके बीच संभोग को दुष्कर्म कहा जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यदि कोई दंपति एक साथ पति और पत्नी की तरह रह रहे हैं ..पति क्रूर हो सकता है, लेकिन जोड़े के बीच…
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न्यायमूर्ति की मां से धोखाधड़ी: सीजेआई बोबडे की बीमार मां के साथ ढाई करोड़ की धोखाधड़ी; मैरिज गार्डन का काम देख रहा था आरोपी
न्यायमूर्ति की मां से धोखाधड़ी: सीजेआई बोबडे की बीमार मां के साथ ढाई करोड़ की धोखाधड़ी; मैरिज गार्डन का काम देख रहा था आरोपी
Hindi News National Two And A Half Crores Fraud With CJI Bobde’s Ailing Mother; The Accused Was Watching The Work Of Marriage Garden Ads से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप नागपुर31 मिनट पहले कॉपी लिंक एसआईटी कर रही मामले की जांच, आरोपी गिरफ्तार देश के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की मां की पारिवारिक संपत्ति की देखभाल करने वाले एक व्यक्ति काे ढाई करोड़ रुपए की…
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जजों, वकीलों, उनके कर्मचारियों को प्राथमिकता देने की मांग, SC में सुनवाई Divya Sandesh
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जजों, वकीलों, उनके कर्मचारियों को प्राथमिकता देने की मांग, SC में सुनवाई
नई दिल्ली कोविड-19 टीकाकरण अभियान में न्यायाधीश, न्यायिक कर्मचारियों को प्राथमिकता देने के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई के लिए मंगलवार को सहमत हो गया। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एसएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यम की पीठ ने वकील अरविंद सिंह द्वारा दायर याचिका को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
याचिका में कहा गया था कि केंद्र ने न्यायपालिका, न्यायिक कर्मचारियों, वकीलों और उनके कर्मचारियों के सदस्यों के कोविड-19 टीकाकरण में प्राथमिकता वाली श्रेणी में शामिल करने के उनके अनुरोध पर विचार नहीं किया है।
वकील ऋषि सहगल की जरिए दायर कराई गई याचिका में कहा गया, ‘‘ याचिका का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायाधीश, वकील, अदालत के कर्मचारी और वकीलों के कर्मचारी, जो न्यायिक प्रशासन के रूप में ‘आवश्यक सेवाओं’ से एक हैं, उन्हें कोविड-19 टीकाकरण में प्राथमिकता वाली श्रेणी में शामिल किया जाए।’’
उसने कहा, ‘‘टीकाकरण के लिए उनके साथ अन्य आवश्यक सेवाओं के कर्मचारियों की तरह ही व्यवहार किया जाना चाहिए।’’ जनहित याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने समूह की पहचान की है, जिन्हें पहले टीका लगाया जाएगा, लेकिन यह किसी भी निर्धारित मानदंड पर आधारित नहीं है और यह स्पष्ट रूप से मनमानी तथा बिना सोचे-समझे तैयार की गई है।
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पूर्व कानून मंत्री ने इंडिया का नाम बदलकर ‘भारत’ करने के विचार को बताया ‘मूर्खतापूर्ण’, कही यह बात
मनमोहन सिंह की सरकार के समय वीरप्पा मोइली भारत के कानून मंत्री थे
खास बातें
मोइली ने कहा, नाम बदलने के विचार से अशांति पैदा होगी
पूर्व सॉलिसिटर जनरल संतोष हेगड़े भी इस सुझाव के खिलाफ
कर्नाटक बीजेपी ने कहा, हमारी न ऐसी इच्छा, न तमन्ना
बेंगलुरू:
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने इंडिया का नाम बदलकर ‘भारत’ या ‘हिंदुस्तान’ करने के विचार को बृहस्पतिवार को ‘‘मूर्खतापूर्ण” बताया और कहा कि इसका कोई खास महत्व नहीं है. कर्नाटक भाजपा ने भी कहा है कि ऐसा प्रस्ताव ‘‘न तो पार्टी की तमन्ना और न ही उसकी इच्छा” है. भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एन संतोष हेगड़े ने भी नाम बदलने के सुझाव की आलोचना करते हुए आगाह किया कि इस कदम से देश में ‘‘अन्य समूहों के भीतर” अवांछित गलतफहमियां पैदा हो सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केन्द्र से कहा कि संविधान में संशोधन करके देश का नाम इंडिया से बदलकर ‘भारत’ या ‘हिन्दुस्तान’ करने के लिये दायर याचिका को प्रतिवेदन के रूप में ले.
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से इस मामले की सुनवाई करते हुये याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि संविधान में इंडिया को पहले ही ‘भारत’ बुलाया जाता है. यह याचिका दिल्ली में रहने वाले एक व्यक्ति ने दायर की थी और उसका दावा था कि औपनिवेशिक अतीत से पूरी तरह नागरिकों की मुक्ति सुनिश्चित करने के लिये यह संशोधन जरूरी है. याचिका में दावा किया गया था कि इंडिया के स्थान पर इसका नाम ‘भारत’ या ‘हिन्दुस्तान’ होने से यह देशवासियों के मन में अपनी राष्ट्रीयता के प्रति गौरव का संचार करेगा. पीठ की अनिच्छा को देखते हुये वकील ने इस संबंध में संबंधित प्राधिकारी को प्रतिवेदन देने की अनुमति मांगी. इस पर पीठ ने कहा कि याचिका को संबंधित प्राधिकारी को प्रतिवदेन के रूप में लेना चाहिए.
इस पर एक सवाल के जवाब में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री मोइली ने कहा, ‘‘मूर्खतापूर्ण. इसकी क्या जरूरत है? हम पहले ही कई वर्षों से अपने लोकतंत्र में ��ी रहे हैं. लोगों के मन में निश्चित तौर पर मौजूदा नाम के लिए भावनाएं हैं. नाम बदलने के विचार से केवल अशांति पैदा होगी. कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त हेगड़े ने कहा कि वह नाम बदलने के पक्ष में नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘‘अब महज कुछ भावनाओं के लिए नाम बदलना मुझे सही नहीं लगता.” कर्नाटक बीजेपी के प्रवक्ता जी मधुसुदन ने कहा कि इंडिया का नाम बदलना इस देश के ‘‘कई नागरिकों की पुरानी मांग” है. उन्होंने कहा, ‘‘हिंदुस्तान शब्द भी काफी पुराना है बल्कि हिंदुस्तान शब्द की जड़ें ‘विष्णुपुराण’ में मिली, इस देश को कई हजारों वर्षों से हिंदुस्तान कहा जाता है. ब्रिटिश लोग इसका उच्चारण नहीं कर पाते थे इसलिए यह इंडिया बना.” बीजेपी नेता ने कहा, ‘‘इसका नाम बदलना न तो उनकी पार्टी की तमन्ना है और न ही उसकी इच्छा है. एक तरफ जब हम कोविड-19, बेरोजगारी, विश्व संकट, जीडीपी और अर्थव्यवस्था से लड़ रहे तो भाजपा इन चीजों को लेकर गंभीर नहीं है. यह बीजेपी की प्राथमिकता नहीं है. भाजपा ने किसी भी मंच पर इस मुद्दे को उठाने का संकल्प नहीं लिया है.”
VIDEO: मजदूरों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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दिल्ली हिंसा पर CJI बोबडे ने कहा- कोर्ट भी शांति चाहता है, लेकिन हमारी भी कुछ सीमाएं हैं
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दिल्ली हिंसा पर CJI बोबडे ने कहा- कोर्ट भी शांति चाहता है, लेकिन हमारी भी कुछ सीमाएं हैं
नई दिल्ली. राष्ट्रीय राजधानी में सांप्रदायिक हिंसा (Delhi communal violence) थमने के बीच प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे (CJI SA Bobde) ने सोमवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) भी शांति की कामना करता है, लेकिन उसकी भी कुछ ‘सीमाएं’ हैं और वह ‘एहतियातन राहत’ नहीं दे सकता है. न्यायमूर्ति बोबडे ने यह टिप्पणी भाजपा नेताओं–अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur), प्रवेश वर्मा (Parvesh Verma), कपिल मिश्रा (Kapil Mishra) और अभय वर्मा (Abhay Verma) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर चार मार्च को सुनवाई करने पर सहमति जताने के बीच की.
भाजपा (BJP) के नेताओं पर नफरत फैलाने वाले भाषण देने का आरोप है जिसकी वजह से कथित तौर पर दिल्ली में हिंसा भड़की. नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर गत 23 फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम 42 लोगों की मौत हुई है और 200 से अधिक लोग घायल हुए हैं.
सांप्रदायिक हिंसा के 10 पीड़ितों द्वारा दायर याचिका का अविलंब सुनवाई के लिये प्रधान न्यायाधीश बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष उल्लेख किया गया, जिसने कहा कि इसपर बुधवार को सुनवाई होगी.
‘हम चीजों को होने से रोक नहीं सकते’जब याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने इन याचिकाओं को अविलंब सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “हम यह नहीं कह रहे हैं कि लोगों को मरना चाहिये. इस तरह के दबाव से निपटने के लिये हम सक्षम नहीं हैं. हम चीजों को होने से नहीं रोक सकते. हम एहतियाती राहत नहीं दे सकते. हम अपने ऊपर एक तरह का दबाव महसूस करते हैं.”
पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल हैं. पीठ ने कहा कि अदालत किसी स्थिति से कोई चीज होने के बाद निपट सकती है और उसे किसी चीज को रोकने की शक्ति प्रदान नहीं की गई है.
अदालत की स्थिति पर ये बोले सीजेआईजब गोंजाल्विस ने कहा कि अदालत स्थिति को और बिगड़ने से रोक सकती है तो सीजेआई ने कहा, “जिस तरह का हमपर दबाव है, आपको जानना चाहिये कि हम उससे नहीं निपट सकते हैं.” उन्होंने कहा, “हम भी समाचार पत्र पढ़ते हैं और टिप्पणियां ऐसे की जाती हैं, मानो अदालत ही जिम्मेदार है.” उन्होंने कहा, “हम भी शांति चाहेंगे, लेकिन आप जानते हैं कि कुछ सीमाएं हैं.”
जब पीठ ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय पहले ही दिल्ली हिंसा से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है तो इसपर गोंजाल्विस ने कहा कि उच्च न्यायालय ने करीब छह सप्ताह के लिये सुनवाई स्थगित कर दी है और यह नि��ाशाजनक है. उन्होंने शीर्ष अदालत से याचिका को मंगलवार को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करने का अनुरोध करते हुए कहा, “जब लोग अब भी मर रहे हैं, तो उच्च न्यायालय क्यों नहीं इसपर अविलंब सुनवाई कर सकता है.”
पीठ ने याचिका को बुधवार को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करने पर सहमति जताते हुए कहा, “हम देखेंगे कि हम क्या कर सकते हैं.”
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस से मांगी रिपोर्ट इसी से संबंधित मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस से हिंसा प्रभावित लोगों के उपचार और उनके पुनर्वास के लिये उठाए गए कदमों के बारे में उससे स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा.
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया कि वह अदालत के 26 फरवरी के आदेश के अनुपालन में उनकी तरफ से उठाए गए कदमों पर एक रिपोर्ट सौंपे. उस आदेश के जरिये उच्च न्यायालय ने पीड़ितों के पुनर्वास के लिये कुछ निर्देश दिये थे.
पीड़ितों की ओर से दायर याचिका में की गई ये मांग शीर्ष अदालत में पीड़ितों की ओर से दायर याचिका में दिल्ली के बाहर के अधिकारियों को लेकर एक विशेष जांच दल गठित करने और इसकी अगुवाई ऐसे ‘ईमानदार और प्रतिष्ठित’ अधिकारी को सौंपने का अनुरोध किया गया है, जो स्वतंत्र तरीके से काम करने में सक्षम हो. इस बीच, शीर्ष अदालत में सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना ने दंगों और खुफिया ब्यूरो के अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या की अदालत की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग करते हुए एक अलग याचिका दायर की है.
अधिवक्ता उत्सव सिंह बैंस के जरिये दायर या��िका में हिंसा रोकने में विफल रहे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की भी मांग की गई है.
ये भी पढ़ें- दिल्ली हिंसा पर चंद्रशेखर ने UN को लिखा पत्र, कहा- हो रहा मानवाधिकार उल्लंघन
ममता बनर्जी ने दिल्ली हिंसा को बताया नरसंहार, बाबुल सुप्रियो ने दिया ये जवाब
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