#नैतिक अधःपतन
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smdave1940 · 5 years ago
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सत्ताके अभावमें कोंगी पक्ष पगला गया है
सत्ताके अभावमें कोंगी पक्ष पगला गया है
सत्ताके अभावमें कोंगी पक्ष पगला गया है
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जब हम “कोंगी” बोलते है तो जिनका अभी तक कोंगीके प्रति भ्रम निरसन नहीं हुआ है और अभी भी उसको स्वातंत्र्यके युद्धमें योगदान देनेवाली कोंग्रेस  ही समज़ते, उनके द्वारा प्रचलित “कोंग्रेस” समज़ना है. जो लोग सत्यकी अवहेलना नही कर सकते और लोकतंत्रकी आत्माके अनुसार शब्दकी परिभाषामे मानते है उनके लिये यह कोंग्रेस पक्ष,  “इन्दिरा नहेरु कोंग्रेस” [कोंग्रेस (आई) = कोंगी =…
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roh230 · 6 years ago
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ईपीडब्ल्यू के इतिहास में पहले कभी भी इस तरह का नैतिक व विचारधारात्मक अधःपतन नहीं घटा है. जिस तरह यूएपीए के जरिए आनन्द को भीमा-कोरेगांव मामले में झूठे आरोप लगाकर अभियुक्त बनाया गया है, इससे यह बात खुलकर सामने आ गयी है कि आनन्द की कठोर आलोचनात्मक कलम से राज्य-मशीनरी और सरकार वस्तुतः काफी असंतुष्ट है. साथ ही जिस तरह उनकी कलम और उनके क्रियाकलाप धारावाहिक रूप से जनविरोधी भारतीय राज्य के वास्तविक चरित्र को उद्घाटित करते आये हैं, उससे साफ-साफ समझा जा सकता है कि राज्य का उनके प्रति यह आचरण असल में प्रतिरोधमूलक है. पर सवाल है ईपीडब्ल्यू को क्यों शासकों के चरण-चिन्हों क��� अनुसरण करना होगा ?
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bhagavadgitamultilingual · 7 years ago
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--कृपया पूरा श्लोक पढ़ें -- आज का श्लोक : श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -- १६.२३ अध्याय सोलह : दैवी और आसुरी स्वभाव . . यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः | न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् || २३ || . . यः - जो; शस्त्र-विधिम् - शास्त्रों की विधियों को; उत्सृज्य - त्याग कर; वर्तते - करता रहता है; काम-कारतः - काम के वशीभूत होकर मनमाने ढंग से; न - कभी नहीं; सः - वह; सिद्धिम् - ��िद्धि को; अवाप्नोति - प्राप्त करता है; न - कभी नहीं; सुखम् - सुख को;न - कभी नहीं;पराम् - परम;गतिम् - सिद्ध अवस्था को | . . जो शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करता है और मनमाने ढंग से कार्य करता है, उसे न तो सिद्धि, न सुख, न ही परमगति की प्राप्ति हो पाती है । . . तात्पर्य : जैसा कि पहले कहा जा चुका है मानव समाज के विभिन्न आश्रमों तथा वर्णों के लिए शास्त्रविधि दी गयी है । प्रत्येक व्यक्ति को इन विधि-विधानों का पालन करना होता है । यदि कोई इनका पालन न करके काम, क्रोध और लोभवश स्वेच्छा से कार्य करता है, तो उसे जीवन में कभी सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती | दूसरे शब्दों में, भले ही मनुष्य ये सारी बातें सिद्धान्त के रूप में जानता रहे, लेकिन यदि वह इन्हें अपने जीवन में नहीं उतार पाता, तो वह अधम जाना जाता है । मनुष्ययोनि में जीव से आशा की जाती है कि वह बुद्धिमान बने और सर्वोच्च पद तक जीवन को ले जाने वाले विधानों का पालन करे । किन्तु यदि वह इनका पालन नहीं करता, तो उसका अधःपतन हो जाता है । लेकिन फिर भी जो विधि-विधानों तथा नैतिक सिद्धान्तों का पालन करता है, किन्तु अन्ततोगत्वा परमेश्र्वर को समझ नहीं पाता, तो उसका सारा ज्ञान व्यर्थ जाता है । और यदि वह ईश्र्वर के अस्तित्व को मान भी ले, किन्तु यदि भगवान् की सेवा नहीं करता, तो भी उसके सारे प्रयास निष्फल हो जाते हैं । अतएव मनुष्य को चाहिए कि अपने आप को कृष्णभावनामृत तथा भक्ति के पद तक ऊपर ले जाये । तभी वह परम सिद्धावस्था को प्राप्त कर सकता है, अन्यथा नहीं । . काम-कारतः शब्द अत्यन्त सार्थक है । जो व्यक्ति जान बूझ का नियमों का अतिक्रमण करता है, वह काम के वश में होकर कर्म करता है । वह जानता है कि ऐसा करना मना है, लेकिन फिर भी वह ऐसा करता है । इसी को स्वेच्छाचार कहते हैं । यह जानते हुए भी कि अमुक काम करना चाहिए, फिर भी वह उसे नहीं करता है, इसीलिए उसे स्वेच्छा कारी कहा जाता है । ऐसे व्यक्ति अवश्य ही भगवान् द्वारा दंडित होते हैं । ऐसे व्यक्तियों को मनुष्य जीवन की सिद्धि प्राप्त नहीं हो पाती । मनुष्य जीवन तो अपने आपको शुद्ध बनाने के लिए है, किन्तु जो व्यक्ति विधि-विधानों का पालन नहीं करता, वह अपने को न तो शुद्ध बना सकता है, न ही वास्तविक सुख प्राप्त कर सकता है | . प्रश्न १ : काम-कारतः शब्द अत्यन्त सार्थक क्यों है ? . प्रश्न २ : मनुष्य योनि में जीव से आशा की जाती है कि वह बुद्धिमान बने और ____ तक जीवन को ले जाने वाले ___ का पालन करे । किन्तु यदि वह इनका पालन नहीं करता, तो उसका ____ हो जाता है ।
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