#नरम प्रसाद
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loveproblemsolutionguruu · 2 years ago
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Today's Horoscope-
गुरुवार को कन्या राशि के नौकरीपेशा लोगों को मेहनत के अनुरूप पूरा फल मिलता नजर नहीं आ रहा है, जिसे लेकर वह तनाव में आ सकते हैं . वहीं मीन राशि के जिन लोगों ने नया बिजनेस स्टार्ट किया है उनको बहुत ही सावधानी रखनी चाहिए.
मेष - इस राशि के लोगों को ऑफिस के कार्यों को पूरा करने के लिए खुद को मल्टी टास्किंग बनाना होगा, तभी आप ऑफिस की ओर से मिले टारगेट को पूरे करने में सफल होंगे. व्यापारी वर्ग वर्तमान की स्थिति को देखकर परेशान न हो, बल्कि धैर्य रखते हुए कारोबार के लिए बेहतर प्लानिंग करें जिससे व्यापार का विस्तार जल्दी हो सके. युवाओं के मन में यदि किसी बात को लेकर उलझन है तो उसे मित्रों के साथ साझा कर सकते हैं, उनसे बात करके अच्छा महसूस होगा. जीवन साथी यदि करियर के क्षेत्र में एक्टिव है तो, उन्हें यदि इससे संबंधित अच्छी खबर सुनने को मिलेगी. जिन लोगों को लंबे समय से स्वास्थ्य से संबंधित दिक्कत है उन लोगों को इलाज शुरू करने में देर नहीं करनी चाहिए.
वृष - वृष राशि के लोग वर्कलोड अधिक होने पर परेशान न हो बल्कि मनोबल मजबूत रखें और मन लगाकर ऑफिस के काम करें. व्यापारी वर्ग अपनी शक्ति और क्षमता को पहचान कर बड़ी प्रोजेक्ट में निवेश कर सकते हैं. आज दिन की शुरुआत से ही युवा वर्ग ऊर्जा से भरपूर रहेंगे, साथ ही आत्मविश्वास भी चरम सीमा पर होगा, जिसके चलते किये गए कामों में सफलता मिलेगी. आज परिवार संग मिलकर संध्याकाल में देवी पूजन करें और खीर का भोग लगाएं उसके उपरांत पूरे परिवार के साथ प्रसाद के तौर पर ग्रहण करें. जितना हो सके, खुद को मानसिक तनाव से दूर रखें अन्यथा सिर में दर्द उठ सकता है.
मिथुन - इस राशि के लोगों के लिए करियर को लेकर प्रगति के अच्छे अवसर बन रहे हैं, जिसके लिए परिश्रम और लगन को भी बढ़ाना होगा. कारोबारियों को नए सम्पर्कों से जुड़ने का प्रयास करना होगा, इसके साथ ही पुराने संपर्कों को भी एक्टिव रखें. विद्यार्थी वर्ग के लिए आज का दिन सामान्य है, आज का दिन उनके लिए मिश्रित परिणाम लेकर आया है. पारिवारिक स्थिति की बात करे तो आज पैतृक संपत्ति प्राप्त होने की संभावना है. मां की सेहत को लेकर चिंता हो सकती है, इसलिए स्वास्थ्य को लेकर सचेत रहें और उनका अच्छे से ध्यान रखें.
कर्क - कर्क राशि के लोगों को अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना होगा, अन्यथा कार्यस्थल पर आपका क्रोध मनमुटाव की बड़ी वजह बन सकता है. ग्रहों की स्थिति व्यापारी वर्ग के लिए शुभ संकेत लेकर आई है, जो लोग लग्जरी वस्तुओं का कारोबार करते है उनको अच्छा मुनाफा होने की संभावना है. युवा वर्ग को अपने स्वभाव और गुस्से पर नियंत्रण रखना होगा, अन्यथा आपके कई करीबी आपसे नाराज हो सकते हैं. संतान का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता नजर आ रहा है, जिसको लेकर अभिभावक कुछ परेशान हो सकते हैं, जो लोग एक साथ कई बीमारियों से परेशान है, आज के दिन उनका स्वास्थ्य कुछ नरम हो सकता है.
सिंह - इस राशि के लोग ऑफिस में योग्यता का सक्षम प्रदर्शन देने में सफल होंगे, जिससे उनका जल्दी प्रमोशन होगा. मेडिकल लाइन से जुड़े कारोबारियों के लिए समय ठीक नहीं है, कोई भी सौदा बहुत सोच समझ���र करना होगा. युवा वर्ग को समय का सदुपयोग उठाते हुए अपनी कल्पनाओं को पंख देना होगा. आज अपना समय परिवार और दोस्तों के साथ वक्त बिताएं, जिसके लिए आप कोई छोटी सी ट्रिप प्लान कर सकते हैं. स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो किसी ऊंची जगह पर काम कर रहे हैं तो सावधानी बरतें क्योंकि गिरने से गंभीर चोट लगने की आशंका है.
कन्या - कन्या राशि के नौकरीपेशा लोगों को मेहनत के अनुरूप पूरा फल मिलता नजर नहीं आ रहा है, जिसे लेकर वह तनाव में आ सकते हैं. ग्रहों की स्थिति को देखते हुए आज व्यवसाय में बदलाव की भी संभावनाएं बन रही है, जिसको लेकर अपना मन पहले से ही तैयार कर लें. युवाओं को खेल और कला के क्षेत्र में जाने के अवसर प्राप्त होंगे. जीवनसाथी का वजन अधिक है तो उन्हें कम करने की सलाह देनी चाहिए, और यदि संभव हो तो जिम या वॉक पर साथ जाए. मादक पदार्थ का सेवन करने वाले लोगों को अब सचेत हो जाना चाहिए, क्योंकि उन्हें लीवर से संबंधित कोई बड़ी बीमारी हो सकती है.
तुला - इस राशि के नौकरीपेशा लोगों को सहकर्मियों का बर्ताव दिन के अंत तक परेशान कर सकता है, सहकर्मियों का बदला रवैया देखकर बिल्कुल भी घबराए नहीं बल्कि डटकर उनका सामना करें. व्यापारी वर्ग को लेनदेन के मामले में भी पारदर्शिता अनिवार्य है, अन्यथा क्लाइंट के साथ मतभेद हो सकते हैं. युवा वर्ग दिन की शुरुआत गणपति जी की आराधना से करें, भगवान की कृपा से आपसे ईर्ष्या वालों को आपका सहयोगी बना देंगे. परिवार में मां के साथ समय व्यतीत करें, उनके सानिध्य में रहने से आपकी कई मुश्किलों का निराकरण होगा. सेहत की बात करें तो डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति और गर्भवती महिलाओं को सचेत रहने की जरूरत है.
वृश्चिक - वृश्चिक राशि के लोगों को कार्यालय में विरोधियों की साजिश के प्रति सतर्क रहना होगा, क्योंकि वह ऐसा करके आपकी पद प्रतिष्ठा को छीनने का प्रयास कर सकते हैं. व्यापारियों को उधार लिए उत्पाद का भुगतान करते वक्त लेन-देन साफ रखने की जरूरत है. विद्यार्थियों के लिए आज का दिन अच्छा है, खासतौर पर गणित के विद्यार्थी निरंतर अभ्यास करें. घर की महिलाओं को परिवार से प्यार और सम्मान मिलेगा, जिसे देखकर उनकी खुशी आंसू के रूप में छलक उठेगी. जिन लोगों को पहले से ही माइग्रेन की समस्या है, वह लोग आज सारा दिन दर्द से परेशान हो सकते हैं.
धनु - इस राशि के लोगों को करियर की प्लानिंग करने पर फोकस करना होगा, जिसके लिए आज का दिन उत्तम है. व्यापारी वर्ग को किसी पर भी विश्वास करने से बचना होगा, क्योंकि आज विश्वसनीय लोगों से निराशा हाथ लग सकती है. विद्यार्थियों को आगे बढ़कर शिक्षा प्रतियोगिता में भाग लेना चाहिए, जिसमें उन्हें सफलता जरूर मिलेगी. घर में किसी को आकस्मिक धन लाभ हो सकता है, धन लाभ होने से परिवार की आर्थिक स्थिति ��ें सुधार होगा. अपने घर के आस-पास कोई भी कचरा या गंदगी न इ��ट्ठा होने दें, गंदगी के चलते बीमारी होने की आशंका है.
मकर - मकर राशि के नौकरीपेशा लोगों को अपनी क्षमताओं को बढ़ाते हुए बड़े जिम्मेदारियों को लेने का और उन्हें निभाने के लिए आगे बढ़ना चाहिए. ट्रांसपोर्ट का कारोबार करने वाले लोगों के लिए विशेष लाभ का दिन है. युवाओं का यदि आज जन्मदिन है तो उन्हें अपनों से उपहार स्वरूप पसंदीदा सामान मिलने की प्रबल संभावना है. घर की महिलाओं का यदि आज जन्मदिन या कोई विशेष दिन है तो उन्हें उपहार जरूर दें, क्योंकि उनकी प्रसन्नता और आशीर्वाद आपके लिए महत्वपूर्ण है. गर्भवती महिलाएं अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें, डॉक्टर के बताए सभी एहतियात का पालन करें.
कुंभ - इस राशि के लोगों को कार्यस्थल पर विरोधियों से सचेत रहना होगा, इसलिए सबके साथ अच्छा व्यवहार करके लोगों का दिल जीतने का प्रयास करें. ग्रहों की स्थिति को देखते हुए व्यापारी वर्ग के लिए यात्रा की संभावना बन रही है, यात्रा के दौरान अपनी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें. साहित्य की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों को अध्ययन के साथ-साथ अध्यापन के कार्य के लिए ऑफर मिल सकता है. घर में पूजा पाठ करते हुए देवी मां की आराधना करें और घर में मीठा बनाकर उन्हें भोग लगाएं. वर्तमान समय में मौसम को देखते हुए अपना ख्याल रखना होगा, अन्यथा फीवर जैसी समस्या से परेशान हो सकते हैं.
मीन - मीन राशि के लोगों के पास यदि नौकरी से जुड़ा कोई भी काम हाथ में है तो उसे किसी कीमत पर न छोड़ें. जिन लोगों ने नया बिजनेस स्टार्ट किया है उनको बहुत ही सावधानी रखनी चाहिए. ग्रहों की स्थिति को समझते हुए युवा वर्ग को करियर से संबंधित फैसले बहुत सोच समझकर लेने होंगे. अपने सहयोग से परिवार का माहौल सुखद बनाए रखने का प्रयास करें, इसके साथ ही परिवार के सभी लोगों की जरूरतों का ख्याल भी रखें. हेल्थ में खानपान और रहन-सहन में अचानक कोई बदलाव करने से बचना चाहिए अन्यथा स्वास्थ्य में गिरावट आने की आशंका है.
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studycarewithgsbrar · 2 years ago
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'HIT2' एक्ट्रेस कोमली प्रसाद की 10 दिल दहला देने वाली तस्वीरें
‘HIT2’ एक्ट्रेस कोमली प्रसाद की 10 दिल दहला देने वाली तस्वीरें
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countryinsidenews · 3 years ago
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पटना /लालू-राबड़ी मिलने आये तो पिता का दूध से पैर धोया,तेजप्रताप यादव का लेट नाइट पोलिटिकल ड्रामा
पटना /लालू-राबड़ी मिलने आये तो पिता का दूध से पैर धोया,तेजप्रताप यादव का लेट नाइट पोलिटिकल ड्रामा
कौशलेन्द्र पाराशर की रिपोर्ट पटना से .प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह पर तेजप्रताप ने गंभीर आरोप लगाया.विधान परिषद सदस्य सुनील सिंह, पोलिटिकल सलाहकार संजय यादव पर नाराज हो गये तेजप्रताप यादव.लालू प्रसाद यादव के परिवार में जारी उठापटक और टशन के बीच तेजप्रताप यादव  के तेवर नरम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. रविवार को लगभग तीन साल के लंबे अंतराल के बाद जैसे ही उनके पिता लालू प्रसाद यादव पटना पहुंचे…
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uttranews · 5 years ago
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ऋतु परिवर्तन का प्रतीक खतड़ुवा त्यौहार
ऋतु परिवर्तन का प्रतीक खतड़ुवा त्यौहार
ईश्वरी प्रसाद पाठक
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खतड़ुवा उत्तराखंड में पीढ़ियों से मनाया जाने वाला पशुओं व फल-सब्जियों से जुड़ा लोक पर्व है। हिंदू कलेंडर के अनुसार भादों मास के अंतिम दिन गोशाला को साफ कर उसमें नरम सुतर(बिछावन) फैलाई जाती है। पशुओं को ताजा हरी घास खिलाई जाती है। यह त्यौहार कुमाऊं, के अलावा नेपाल के कुछ क्षेत्रों में भी मनाया जाता है। इस मौके पर पशुओं के स्वस्थ रहने और ककड़ी , दाड़िम आदि फलों के खूब फलने फूलने…
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onlinekhabarapp · 6 years ago
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भुटानको १७ प्रतिशत जनसंख्या किन जिम्मा लियो अमेरिकाले ?
चौथो राजा थिम्पुमा जन्मनुभन्दा तीन वर्षअघि चिराङमा मेरा पिताजी जन्मनुभयो । यी दुई ठाउँको दूरी करिब १०० किलोमिटर छ । त्यही साल दोश्रो राजाको मृत्यु भयो र तेस्रो राजाको गद्दीआरोहण भयो । भूटानी नागरिकहरुले सरकारविरुद्ध आवाज उठाउन थालेका थिए । उनीहरुले आफूलाई भुटानी नभनेर गोर्खाली भन्न थालेका थिए ।
मेरा बुबा पाँच वर्षको हुँदा नेपालमा चार महिनाका लागि कुँवर ईन्द्रजीत सिंह (केआइ सिंह) प्रधानमन्त्री बने । सिंहले सन् १९३२÷३�� तिर भारत र जापान अधीनस्त बर्मामा काम गरेका थिए । उनले सन् १९५० को सुरुतिर जनतालाई जमीन बाँड्ने निकै ठूलो अभियान सुरु गरेका थिए । उनले नेपालको प्रधानमन्त्री बनेपछि भारत, सिक्किम, भुटान र बर्मामा बस्ने नेपालीको समस्यालाई सम्बोधन गर्न परराष्ट्र मन्त्रालयमा छुट्टै संयन्त्र स्थापना गरे ।
नेपाल सरकारले मुलुकबाहिर बसेकालाई नेपाल फर्केर देश निर्माणमा सहयोग पुर्‍याउन अनुरोध ग‍र्‍यो । डुक्पा शासकसित बैरभाव राखेर आफूलाई गोर्खाली मान्ने भुटानीलाई नेपाल फर्कने यो एउटा विकल्प थियो ।
त्यसबेला चीनले तिब्बत कब्जा गरिसकेको थियो र भुटानलाई हेरेर थुक निल्दै थियो । पण्डित नेहरुको कठपुतली भुटान स्टेट कांग्रेस भुटानमा प्रतिवन्धित भयो । नेहरुले भुटानको भ्रमण गरे । भुटान सरकारले भुटानमा बस्ने सबैलाई नागरिकता बाँड्यो र गोर्खा राजालाई नमान्नु भन्ने आदेश गर्‍यो ।
अमेरिकाले कुनै एउटा देशको झण्डै १७ प्रतिशत जनसंख्या किन आफ्नो जिम्मा लिने त्यत्रो ठूलो हिम्मत गर्‍यो भनेर मूल्यांकन गर्ने बेला आएको छ
पाँचौं राजा जन्मनुभन्दा केही वर्षअघि जन्मेको हुँ म । म भुटानमा जन्में । तर, राजा भने नेपालको पाटनमा जन्मे । मेरो नियती राजपरिवारको इच्छामा निर्भर थियो । सन् ८० र ९० का दशकहरूमा चौथो राजा र तिनका आज्ञाकारी मन्त्रीहरुले भारतको रणनीतिक तथा आर्थिक सहयोगमा ३ बर्षको अन्तरालमा एक लाखभन्दा बढी भुटानी नागरिकलाई देश निकाला गरे ।
यसका मुख्य योजनाकार भारतीय प्रधानमन्त्री राजीव गान्धीको १९९१ मई २१ मा हत्या भयो । अभियुक्त थेनमोजी राजारत्नम धनु भुटानीहरुका लागि अप्रत्यक्ष बरदान नै बनिन् ।
सन् १९९३ जुलाई ३० मा अमेरिकाको तल्लो सदनको मानव अधिकार सम्बन्धी संसदीय समितिले भुटानमा जारी नागरिकलाई देशनिकालाको घटनाबारे चिन्ता व्यक्त गर्दै चौथो राजालाई पत्र लेख्यो । उसले राजालाई जनतालाई लखेट्न बन्द गर्न, नेपालसित मिलेर लखेटिएकालाई स्वदेश फर्काउन, सबै प्रकारका भेदभावको अन्त्य गर्न र थुनामा रहेका बन्दीमाथि दुर्व्यवहार बन्द गर्न भन्यो ।
त्यसबेला सम्म (नेपाली भाषी) भुटानीहरूको संख्या ५० प्रतिशतबाट झरेर २५ प्रतिशतमा पुगेको थियो । सन् १९९३ मा नेपाली प्रधानमन्त्री गिरिजा प्रसाद कोइराला भुटानी राजालाई वार्ताको टेबुलमा ल्याउन सफल बने । त्यसपछिको एक दशकमा १५ पटक मन्त्रिस्तरीय बैठक बसे । यी बैठकमा भाग लिने मध्येका एक तत्कालीन नेकपा (एमाले) का नेता माधवकुमार नेपालले भनेका थिए, भुटानका राजाले युएनएचसीआरले दिएको शरणार्थी सम्बन्धी तथ्यांक भ्रामक भएको र शिविरमा बस्ने मानिसहरु खासमा भारतीय भएको आरोप लगाए ।
युरोपियन युनियनको एक प्रतिनिधिमण्डलले शरणार्थी शिविरको भ्रमण गर्‍यो र भुटान तथा नेपालका सरकारलाई प्रमाणीकरण र स्वदेश फिर्ती अभियानलाई प्राथमिकतामा राख्न अनुरोध गर्‍यो । यता नेपालसितको वार्ता अन्योलमा परेका बेला भुटान सरकारले लखेटिएका नागरिकको जमिनमा उत्तरबाट भोटेहरु ल्याएर राख्ने काम गर्‍यो । यो सन् २००२ को कुरा हो ।
सन् २००२ नोभेम्बर २६ मा बसेको दाताहरुको बैठकमा संयुक्त राष्ट्रसंघीय शरणार्थीसम्बन्धी उच्चायोगको एशिया–प्यासिफिक प्रमुख जीन म्यारी फखउरीले घोषणा गरे कि द्वीपक्षीय प्रयासबाट शरणार्थी समस्या समाधान हुने सम्भावना सकियो । र, युएनएचसीआर २००३ देखि बहुपक्षीय समाधानको प्रयासमा लाग्नेछ । उनले भने, भुटानसित मित्रवत सम्बन्ध रहेका देशका राजदुतहरुले बहुपक्षीय समाधानका निम्ति छलफल सुरु गरिसकेका छन् । उनले यो पनि भने, एक लाख शरणार्थीलाई भुटान फर्काउन वा नेपालमै राख्न सम्भव छैन । यी दुई देशलाई सहयोग गर्नका लागि तेस्रो मुलुकमा पुनर्वासको विकल्प उपयुक्त हुन सक्छ ।
नेपालका परराष्ट्रमन्त्री नरेन्द्र विक्रम शाहले सन् २००३ जनवरीमा भुटानको भ्रमण गरे र भुटानका चौथा राजासित भएको छलफलबारे ती राजदुतहरुलाई जानकारी दिए । उनका अनुसार राजाले प्रमाणीकरणमा पहिलो वर्गमा परेका भुटानीलाई जबर्जस्ती खेदाएको स्वीकार गर्दै स्वदेश फर्काउन तयार रहेको वचन दिएका थिए ।
दोस्रो वर्गमा परेका वा स्वेच्छाले देश छाडेकाहरुले भुटानी कानुनअनुसार नागरिकता गुमाएका छन्, उनका लागि मन्त्रीहरुको विरोधको बाबजुद राजाले आफ्नो सरकारलाई नागरिकता कानुनलाई नरम रुपमा व्याख्या गर्न अनुरोध गर्ने वचन दिए । यसको बदलामा नेपाल सरकारबाट पनि भुटानले यस्तै प्रतिवद्धता माग्यो ।
‘उक्त वर्गमा परेकाले भुटान फर्कन र भुटानी नागरिकताका लागि निवेदन दिनुपर्ने र त्यसो गर्न नचाहनेहरुलाई नेपाल सरकारले जिम्मा लिनुपर्छ । आपराधिक सुचिमा रहेका मानिसले भुटान फर्केर त्यहाँको अदालतमा मुद्दा खेप्नु पर्नेछ । अभुटानी ठहरिएकाहरु आफ्नो देश फर्कनुपर्नेछ,’ भुटानका राजाको सन्देश थियो ।
सन् २००३ फेब्रुअरी १४ मा काठमाडौंमा बस्ने तय भएको नेपाल–भुटान द्वीपक्षीय वार्तामा बस्न भुटान तयार रहेको राजाले जानकारी दिए । फेब्रुअरी १७ मा दाताहरुको बैठक बस्न लागेको कारण पनि भुटान द्वीपक्षीय वार्ता��ा लागि राजी भएको थियो । त्यसबेला सम्ममा अमेरिकाले पुनर्वासका लागि प्रस्ताव अघि बढाईसकेको थियो । चौथो राजाको द्विपक्षीय रुपमा समस्याको समाधान गर्नु पर्ने चाहना अमेरिकाको पुनर्वास प्रस्तावलाई तुहाउनु पनि थियो । चौथो राजालाई थाहा थियो अमेरिकामा हुने पुनर्वास दिगो समाधान हैन । पुनर्वासित मानिसलाई वातावरण मिलेको समयमा आफ्नो देश फर्कने विकल्प रहन्छ ।
सन् २००३ अप्रिल ११ मा विदेश मामिला तथा अन्तराष्ट्रिय व्यापार हेर्ने ल्युक सुकोसेफले क्यानाडा सरकारको धारणा बाहिर ल्याए– भुटानले नेपालसितको छलफल टुंग्याउनुपर्छ र स्वदेश फिर्ती र समायोजनका लागि युएनएचसीआर सित मिलेर तुरुन्त काम अघि बढाउनुपर्छ । उनले क्यानडा पनि पुनर्वास प्रकृयामा सहभागी हुन इच्छुक रहेको खुलासा गरे ।
क्यानडा भुटानसित द्वैत्य सम्बन्ध स्थापना गर्ने प्रयासमा थियो । २००३ अप्रिल २२ मा कम्युनिष्ट पार्टी अफ भुटान (मालेमा) स्थापनाको घोषणा भयो । अनि भुटान सरकारले कम्युनिस्टहरुबाट उत्पन्न आफ्नो डरबारे पश्चिमा सरकारहरुसित सहयोग माग्ने क्रम ह्वात्तै बढायो ।
सन् २००३ डिसेम्बरमा नेपाल र भुटान मामिला पनि हेर्ने जिम्मा पाएका दिल्लीस्थित स्वीस राजदुत वाल्टर गिगर र अष्ट्रियन राजदुत जुट्टा स्टेफन ब्यासल थिम्पु पुगे । भुटानका पाँच मित्र राष्ट्रहरुका तर्फबाट उनीहरुले भुटानलाई स्वदेश फिर्ती प्रकृया पारदर्शी पार्न, रहल शिविरको प्रमाणीकरण छिटो सक्न र सो प्रकृयामा तेस्रो पक्षलाई संलग्न गराउन अनुरोध गरे ।
प्रमाणीकरण प्रकृया छिटो सक्न भुटान राजी भयो र खुदुनाबारी शिविरमै रहेको प्रमाणीकरण टोलीले प्रमाणीकरणको नतिजाबारे शरणार्थीलाई जानकारी दिने तय भयो । ती दुई राजदुत युएनएचसीआरले नेपाली प्रमाणीकरण टोलीलाई दिँदै आएको सहयोग बन्द गरेको प्रति असन्तुष्ट थिए ।
सन् २००३ नोभेम्बर २८ मा युएनएचसीआरले लिखितरुपमा नेपालको गृह मन्त्रालयलाई सहयोग रोक्ने आफ्नो निर्णयबारे जानकारी गराएको थियो । उसले नेपाली प्रमाणीकरण टोलीलाई अन्तिमपटक ४० हजार अमेरिकी डलर दिएर अन्य विकल्पहरु खोज्न अनुरोध गर्‍यो ।
स्टेफन ब्यासलको त्यो चौथो थिम्पु भ्रमण थियो । यस भ्रमणमा उनले शरणार्थी र भुटानी राजाको धारणा बदलिएको पाइन । उनले भुटानलाई विश्वास गर्न अनुरोध गरिन र पर्यवेक्षकको रुपमा तेस्रो पक्षको संलग्नता रहने संकेत गरिन् ।
युएनएचसीआरका एशिया निर्देशक मिल्टोन मोरेनोले ब्यासलले भनेको तेस्रो पक्ष अन्तराष्ट्रिय आप्रवासी संगठन (आइओएम) हुन सक्ने शंका गरे । अष्ट्रेलियामा आउने शरणार्थीलाई नराम्रो व्यावहार गरेका कारण बदनामी कमाएको कारण आइओएमको नाम सो बेला उल्लेख नभएको हुन सक्छ । ६ पटक थिम्पु भ्रमण गरेका युरोपियन युनियनका एक आयुक्तले भने, ‘भुटान सरकार सारै चतुर छ ।’
शरणार्थी सम्बन्धी मामलामा छलफल गर्न आउने जुनसुकै पाहुनालाई सारै आत्मीय सत्कार गर्ने र प्रतिबद्धता जनाउने तर ती प्रतिबद्धतालाई कार्यन्वयन नगर्न भुटान सफल थियो । उनले आफू ६ वर्षदेखि शरणार्थी मामिलामा काम गरिरहेको भएकाले भुटानले दिएका नयाँ प्रतिवद्धतामा प्रश्न गर्नुपर्ने बताए ।
उनले स्वीस राजदुतलाई शरणार्थीको मुख्य मागका रुपमा रहेको आफ्नै पुरानो थातथलोमा जान पाउनुपर्नेमा भुटानसरकारले प्रतिवद्धता जनायो भनी प्रश्न गरे ।
गिगरले उत्तर दिए, ‘अहँ’ ।
गिगरले थपे, भुटान फर्किएकालाई जागिर दिने, निस्शुल्क शिक्षा र स्वास्थ्य सेवा अनि अस्थाई बसोबासका लागि प्रमाणपत्र दिन राजी भएको छ । तर, भुटानले लिखितमा कुनै पनि प्रतिवद्धता जनाएको थिएन । त्यस्तै भुटानले फर्किएकाहरुलाई उनीहरुको योग्यता अनुसारको जागिर दिने कि निर्माण तथा जलविद्युत आयोजनाहरुमा मजदुरका रुपमा काम लाउने भन्ने स्पष्ट पारेको थिएन । दक्षिणमा रहेका भुटानीमाथि सरकारले विभेद गरिरहेका बारे भुटानी प्रमाणीकरण टोलीलाई प्रश्न गर्ने उनीहरुले निर्णय गरे । यदी फर्किएकाहरुलाई भेदभाव गरिँदैन भन्ने स्पष्ट जवाफ आएको खण्डमा कुनै तेस्रो पक्षको संलग्नताविना नै प्रकृया अघि बढाउन अमेरिकी सहयोग लिने निर्णय गरे ।
माथिका घटनाक्रमहरु हुँदै गर्दा चौथा राजा भने आफ्नो फौजसहित ‘अपरेसन अल क्लियर’ युद्धमा व्यस्त थिए । त्यसै बेला खुदुनाबारी शिविरमा भएको घटनाले प्रमाणीकरण प्रकृयाको अन्त गर्‍यो । त्यसपछि नेपालले भुटानी टोलीलाई वार्तामा ल्याउन पनि सकेन अनि सो घटनाबारे अन्तराष्ट्रिय समुदायलाई जानकारी दिन समेत सकेन । सो घटनाको केही समय अघि मात्र युएनएचसीआरले नेपाली प्रमाणीकरण टोलीलाई दिँदै आएको आर्थिक सहयोग बन्द गरेर नेपाल सरकारलाई असहज पारिसकेको थियो ।
सन् २००४ अक्टोबर १९ मा अमेरिकाका शरणार्थी र आप्रवासीसम्बन्धी सहायक मन्त्री अर्थर ई ‘जीन’ डेवेले बेलडाँगी शिविरको भ्रमण गरे । एक सातापछि उनी थिम्पु पुगे र चौथा राजासित एक ऐतिहासिक सम्झौता गरे, जसलाई ‘डेवे–वाङ्छुक सम्झौता’ भन्ने गरिन्छ । यो नै भुटान र अमेरिकावीचको औपचारिक सम्बन्धको सुरुवात हो । उनीहरु भुटानी शरणार्थी समस्या चाँडै समाधान गर्नुपर्नेमा सहमत भए । सम्झौताअनुसार भुटानले केही शरणार्थीलाई स्वदेश फर्काउने भयो ।
डेवेले चौथा राजालाई जारी अन्योलतालाई चिरेर खुदुनाबारी प्रमाणीकरणमा पहिलो वर्गमा परेका शरणार्थीलाई भुटान फर्काउन अनुरोध गरे । चौथा राजाले यो अनुरोधलाई स्वीकारे र नेपालसित प्रकृयाका सम्बन्धमा छलफल गर्ने बताए । उनले दिल्लीमा रहेका नेपालका लागि भुटानी राजदुतलाई दिल्लीमै रहेका भुटानका लागि नेपाली राजदुतसित कुरा अघि बढाउन निर्देशन दिए । राजाले खासगरी यो प्रकृया कुनै तेस्रो पक्षको संलग्नतामा हैन द्वीपक्षीय छलफलबाट टुंगिएको देखाउन चाहिरहेका थिए । उनले यो नयाँ सम्झौताबारे भारतलाई जानकारी दिन चाहे र डेवेलाई राजदुत मुलफर्डमार्फत भारतको विदेश मन्त्रालयमा जानकारी गराउन अनुरोध गरे ।
त्यस्तै राजाले राजदुत मोरिआर्टी मार्फत नेपालका परराष्ट्र मन्त्री रामशरण महतलाई जानकारी दिन र सहयोग पुर्‍याउन अनुरोध गरे । राजाले नेपालसित हुने सम्झौतामा काम गर्न विदेश मन्त्री खाण्डु वाङ्छुकलाई अराए । डेवेको टोली भुटानको सबै भन्दै ठूलो दाता भारतको यस सम्झौतामा सहयोग जुटाउन दिल्ली पुग्यो ।
शिविर बाहिर जान शरणार्थीले अनुमतिपत्र लिनुपर्ने युएनएचसीआरको नीतिको चौथा राजा आलोचक थिए । यसले नेपाल र भारतविच शरणार्थीको खुल्ला आवत–जावत रोकिएको थियो । उनले भनेका थिए, ‘यी मानिसहरुलाई उनीहरुले चाहेको ठाउँमा यात्रा गर्न र काम गर्न दिनुपर्छ किनकि तीनै देशको आप्रवाससम्बन्धी कानुनमा यस्तो प्रवाधान छ’ ।
राजाको नियत शरणार्थीलाई नेपाल र भारतमा विलय हुन वाध्य गराउनुथियो । राजाले नेपालको जनसंख्या नीतिमा पनि प्रभाव पारेको देखिन्छ । नेपाली नेताहरुसितको छलफलमा उनले खुल्ला भन्ने गर्थे कि शरणार्थीहरु नेपाली जाति हुन् र उनीहरु नेपालमै रहँदा नेपाललाई खासै समस्या हुँदैन ।
शिविर वरिपरि २०/३० लाख बिहारी मूलका मानिसहरु छन् र शरणार्थीहरु त्यही विलय भए मुलबासी नेपालीको जनघनत्व बढ्न सक्छ । तर, नेपाल सरकारले यो कदम राजनीतिकरुपमा जोखिमपूर्ण हुने ठान्यो र यस्तो कदम चाल्न नेपालका कुनै पनि राजनीतिक दलरु तयार थिएनन् । शरणार्थीलाई बासस्थानका लागि दिएको सहयोग बारे नेपालको प्रशंसा हुदा भुटानका राजा भने नेपालले शरणार्थीलाई सहयोग नगरेको भन्दै आलोचना गर्थे ।
राजाले नेपाल र युएनएचसीआरले सहयोग जुटाउनका लागि शरणार्थीको संख्या ६ हजारदेखि बढाएर एक लाख पुर्‍याएको भन्दै आलोचना गरेका थिए । युएनएचसीआरले शिविरमा हुनेको सही छानविन नगरी सबैलाई भुटानी शरणार्थी भनेर समस्यालाई अझ जटिल बनाएको राजाको आरोप थियो । उनले युएनएचसीआरको तटस्थतामा पनि शंका गरेका थिए ।
राजाका लागी तेस्रो मुलुक पुनर्वासको प्रस्ताव काल्पनिक समाधान थियो । उनको विचारमा शरणार्थी समस्या ‘फरक तर सरल’ थियो । शरणार्थीहरु सबै नेपाल, भुटान वा भारतका हुन् र समस्या समाधानमा यीनै तीन मुलुकको संलग्नता मात्र आवश्याक छ ।
उनलाई डर थियो, शिक्षित शरणार्थीहरुले तेस्रो मुलुक पुनर्वासपछि कूटनीतिक समस्या पैदा गर्न सक्छन् । उनले भरसक यिनीहरुलाई सामान्य कामदार र गरिब भएरै बाचेको हेर्न चाहेका थिए ।
राजाले भनेका थिए, ‘शरणार्थीहरु तीन देशबाट आएका हुन् । तेस्रो देश पुनर्वासमा लाने निर्णय गर्नु भनेको उनीहरुलाई राज्यविहीन बनाउनु हो’ । उनले तेस्रो देश पुनर्वासको प्रस्तावलाई अनावश्यक विकल्पका रुपमा स्वीकारेका थिए ।
राजाले डेवेलाई वर्ग एकमा परेका शरणार्थीको स्वदेश फिर्ती हुने विश्वास दिलाएका थिए । उनले भनेका थिए, तिनलाई भुटानी नागरिकको दर्जा र स��रक्षा प्रदान गरिने छस भुटानी नागरिक भएको प्रमाणित गरेको खण्डमा कति शरणार्थी भुटानले लाने भन्नेमा संख्याले समस्या पार्ने छैन । डिसेम्बर २००३ मा खुदुनाबारी घटना हुनुअघि सम्म नेपाल सरकार र युएनएचसीआरलाई दिएको स्वदेश फिर्तीका यी प्रतिबद्धतामा राजा दृढ देखिन्थे । राजाले जमिन बाँड्नुपर्ने भए त्यो भुटानको कानुन अनुसार गरिने भनेका थिए । राजाले भनेका थिएस्
‘यदि कुनै व्यक्तिले भुटान छोड्नुअघि आफ्नो जमीन बेचेको थियो भने सो जमीन उसले पाउने छैन र सरकारले पनि उसलाई जमीन दिने छैन । तर, जबर्जस्ती खेदाइएकाहरुलाई भने आफ्नो सम्पत्ति फिर्ताको अधिकार रहनेछ’ ।
उनले थपेका थिए वर्ग १ मा रहेका देश फर्कने केहीले सम्पत्ति पाउनका लागि मुद्दा समेत हाल्ने सम्भावना रहन्छ ।
नेपाल र भुटान सरकारले वर्ग १ र ४ मा पारेका शरणार्थीलाई चाँडो स्वदेश फर्काउन भारतले सहयोग पुर्‍याउने अमेरिकी सरकारको विचार रहेको टेरी रस्चले प्रष्ट पारिन् । उनले अमेरिका अधिकांश भुटानीलाई लिन तयार रहेको जानकारी पनि दिइन् । नेपाल सरकारले सहयोग नगरे वा नेपालमा अस्थिर राजनीति रहे भारतबाट यो प्रकृया अघि बढाउनका लागि उनले भारत सरकारको सहयोग समेत मागिन् । श्याम शरणले यो प्रस्तावमा समर्थन जनाएनन् । उनले यो मुद्दा गृह र विदेश मन्त्रालय वीचको बताएर पन्छिए ।
नयाँ दिल्लीमा भुटानी राजदुत दागो छिरिङसितको भेटमा भुटान शरणार्थीलाई फिर्ता लिने आफ्नो प्रतिबद्धताबाट पछि हटेको भनेर उनले आलोचना गरिन् । उनले भविश्यमा तिब्बती शरणार्थीलाई पुनर्वासका लागि सोही प्रकारको प्रस्ताव ल्याउने खुलासा पनि गरिन् । युएनएचसीआरले राखेको स्वदेश फर्किएका शरणार्थीहरुको वृहत निगरानी गर्नुपर्ने प्रस्तावले भुटानलाई आफ्नो निर्णयबाट पछि हट्न बाध्य बनाएको श्याम शरणले रस्चलाई जानकारी दिए । शरणले भने स्वदेश फर्किएका शरणार्थीलाइ गरिने व्यावहार राज्यले छुपाउन सक्दैन किनकि यस्ता घटनाहरु मिडियाले बाहिर ल्याउनेछन् । रस्चले जवाफमा भने स्वदेश फर्काइएका शरणार्थीको निगरानी गर्नु अन्तराष्ट्रिय मान्यता रहेकाले यसमा रेडक्रसको अन्तराष्ट्रिय समिति संलग्न हुन सक्छ ।
भुटानको पक्ष लिँदै शरणले रस्चलाई जानकारी दिए । उनले आफ्ना समकक्षी भुटानी विदेशमन्त्री खाण्डु वाङ्छुकसित यसबारे छलफल गरका छन्े र भुटान आफ्नो प्रतिवद्धताबाट पछि हट्दैन, भारतले भुटानलाई सम्हाल्छ, उनले भने । यसपछि अमेरिका र भारतले आफ्नो प्रतिबद्धता पूरा गर्न नेपाललाई दबाव दिए । शरणले भने भुटानबाट खेदिएका धेरै मानिस भारतमा बसेका छन, कामको सिलसिलामा क्याम्पबाट धेरै भारत पसेका छन र भारत सरकारको विचारमा समस्याको अन्तिम निर्क्योल हुँदासम्म धेरै शरणार्थीहरु भारतमा विलय हुनेछन् । शरणले विश्वास दिलाए कि औपचारिकताका लागि भुटानले केही मानिस लानुपर्छ ।
कतिपय अन्तरराष्ट्रिय मुद्दाहरुमा अमेरिकालाई भुटानको भोट चाहिएको थियो । यसकारण पनि उ शरणार्थीलाई लिएर भुटानको समर्थन प्राप्त गर्न खोजिरहेको थियो ।
सन् २००४ अप्रिल १५ मा संयुक्त राष्ट्र संघीय मानव अधिकार उच्चायोगले हन्डुरसको प्रस्ताव पारित गर्दै क्युवाको कम्युनिष्ट सरकारले गरेको मानव अधिकार उलंघनका घटनाको विरोध गर्‍यो अनि राष्ट्र संघका प्रतिनिधि छानविनका लागि त्यहाँ पठाउन माग गर्‍यो । यो प्रस्तावको पक्षमा २२ देश उभिए, २१ ले विरोध गरे र १० अनुपस्थित रहे । क्युबाका फिडेल क्यास्ट्रो र भुटानका चौथा राजा सन् १९७० मा निकट मित्र रहेका थिए । भुटानसरकारले सदाझै क्युबाको पक्षमा मत दिने अपेक्षा थियो तर उ अनुपस्थित रह्यो । भुटानले एउटा मित्र गुमायो र मित्रका मित्रहरु गुमायो ।
भोटको केही समय अघिमात्र वासिंटनको प्रतिनिधि मण्डलले भुटानी विदेश मन्त्रीलाई भेटेको थियो र भुटानलाई अनुपस्थित हुन दबाव दिएको थियो । मार्च २००५ पनि अमेरिकाले भुटानलाई यसरी नै क्युबाको विपक्षमा उभिन सन्देश पठायो । भुटानले सम्झौताको प्रस्ताव गर्‍यो । सम्झौता अनुसार भुटानले क्युबाविरुद्ध र अन्य अन्तराष्ट्रिय मञ्चहरुमा अमेरिकालाई सहयोग गर्नेछ, जसको बदलमा अमेरिकाले भुटानको प्रमाणीकरणमा वर्ग एकमा परेका शरणार्थीलाई मात्र स्वदेश फर्काउने अडानलाई सहयोग गर्नेछ र रहेका शरणार्थीलाई अन्यतिर विलय गराएर शिविर खाली गराउन सहयोग गर्नेछ ।
सन् २००५ मई २ मा शरणार्थीको विषयलाई लिएर अमेरिका र भारतको अर्को बैठक बस्यो । त्यहाँ युएनएचसीआरले तोके अनुसार जोखिममा रहेका शरणार्थीहरु समेत गरेर ठूलो हिस्सा अमेरिकाले लिने विषयमा छलफल भयो । भारतले भुटान र नेपालको विचार पनि बुझ्यो । नेपालको चासो सम्बोधन गरियो र युएनएचसीआरले शरणार्थीको जनगणना सुरु गर्‍यो । भारतका तत्कालीन विदेश मामिला सम्बन्धी उपसचिव रञ्जित रेले भने, वर्ग एकमा परेका शरणार्थीलाई स्वदेश फर्काउन ‘डेवे वाङ्छुक सम्झौता’ महत्वपूर्ण रह्यो ।
भुटानबाट १ लाख ३० हजार नागरिकले देश छाडे पनि शिविरमा १ लाख २५ हजार भन्दा कम शरणार्थी मात्रै छन् । रेका अनसार अन्य भारतमै बसेका छन् । उनले दाबी गरे, केही नागरिकलाई भुटानले लखेटे पनि अन्यले भने ‘ग्रेटर नेपाल’ को जातीय अभियानलाई साथ दिन आफैं देश छाडेका हुन् । यस कारण भारतले शिविरका सबै मानिस भुटानी हैनन भन्ने भुटानी राजाको दाबीलाई समर्थन गरेको हो । पुनर्वासमा लैजाँदा सकेसम्म परिवार विखण्डित नहोस भनेर भारतले अमेरिकालाई सुझायो ।
शिविरमा १४/१५ हजार परिवार थिए । भारतले तेस्रो मुलुक लैजाने प्रकृयामा ढिलाई गर्न प्रस्ताव राख्यो । पहिले भुटान जानेको संख्या निर्क्योल गर्नुपर्छ । नत्र धेरैले भुटानभन्दा तेस्रो मुलुक जान निवेदन दिनेछन् ।
भुटानी र नेपाली नागरिकहरूलाई भारत आवत–जावतमा रोकटोक नभए पनि अमेरिका लाने प्रकृया भारतमा गर्नुपर्ने भए अमेरिकाले भारत सरकारको अनुमति लिनुपर्ने थियो । रेले शिविरमा रहेका माओवादी समूह र तिनको नेपाल र उत्तर–पूर्वी भारतका माओवादीहरुसित रहेको सम्भावित सम्बन्धलाई लिएर चिन्ता व्याक्त गरे ।
यसलाई कसरी सम��हाल्ने भनेर पनि छलफल गर्नुपर्ने भयो । बंगलादेशमा सन् २००५ नोभेम्बर १२÷१३, मा भएको सार्क शिकर बैठकका बेला नेपालका राजा ज्ञानेन्द्र र भुटानका विदेश मन्त्री खाण्डु वाङ्छुकवीच भेटवार्ता भयो । उनीहरुवीच खुदुनाबारीमा वर्ग १ र ४ मा परेका शरणार्थीलाई स्वदेश फर्काउने र प्रमाणीकरण प्रकृया अघि बढाउने सहमति भयो ।
यो सहमति नोभेम्बर २२ मा भारतीय विदेश मामिला सम्बन्धी उपसचिव फेरिने क्रममा बाहिर आयो । नयाँ उपसचिव पंकज शरणले नेपालले तेस्रो मुलुक पुनर्वासको प्रस्तावलाई स्वीकार गरिसकेको बताए । भारतको चासो भनेको आसामको उल्फा बिद्रोहीलाई भुटानमा रहन नदिने थियो । यसका लागि भारतले नेपाल, भुटान र बांलादेशसितको सिमामा सुरक्षा बढाउन स्पेशल सेक्युरिटी ब्युरो खडा गरेको थियो ।
सन् २००७ मार्च १६ मा शरणार्थीबारे काम गरिरहेका सात देशका तर्फबाट अमेरिकी राजदुतावास काठमाडौंले एउटा वक्तव्य जारी गर्‍यो । यी सात देशले शरणार्थी समस्या समाधानमा भुटानले देखाएको तत्परताको स्वागत गरे । उनीहरुले भुटानलाई युएनएचसिआर र नेपाल सरकारसित मिलेर स्वदेश फर्कन तयार रहेका र भविष्यमा फर्कनेहरुका लागि आवश्यक शर्तहरु, सम्पत्तिको अधिकार अनि सम्झौता पालनको स्पष्ट खाका तयार पार्न अनुरोध गरे । उनीहरुले भविष्यमा भुटानबाट अरुले शरणार्थीको रुपमा देश छाड्नु नपर्ने वातावरण बनाउन पनि अनुरोध गरे ।
शिविरका बासिन्दा विभाजित भए । राजनीतिक दलहरु स्वदेश फिर्तीको पक्षमा थिए भने अमेरिकाले सहयोग गरेका शिविर सचिवहरु तेस्रो मुलुक पुनर्वासको पक्षमा । २००६ देखि २००८ को वीचमा पुनर्वासका लागि काम गर्ने संस्थाहरुले काम सुरु गरे । शरणार्थी नेतृत्वलाई लिखितरुपमा पुनर्वासको पक्षमा उभिन भनियो । नेपाली अधिकारीहरुलाई विश्वासमा लिइयो । शरणार्थीको एउटा हिस्सा, राजनीतिक नेतृत्व र कम्युनिष्ट पार्टी अफ भुटानको विरोधका बाबजुद शरणार्थीको भविष्य अमेरिकाको लागि शिलबन्दी गरियो । उनीहरुलाई शिविरबाट विकसित देशमा बसाइ सराइयो वा केहीको शब्दमा मानव तस्करी गरियो ।
अब अमेरिकाले कुनै एउटा देशको झण्डै १७ प्रतिशत जनसंख्या किन आफ्नो जिम्मा लिने त्यत्रो ठूलो हिम्मत गर्‍यो भनेर मूल्यांकन गर्ने बेला आएको छ ।
(भर्खरै प्रकाशित ‘अ परदेशी इन पाराडाइज’ पुस्तकका लेखक डा. गोविन्द रिजालले जापानबाट बालीनालीमा विद्यावारिधि गरेका छन् । रिजालको पुस्तकको यो अंश आइपी अधिकारीले नेपालीमा अनुवाद गरेका हुन् ।)
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its-axplore · 4 years ago
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लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार के राजनीतिक हालात को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है। इसमें उन्होंने कहा है कि बिहार के लोग राज्य सरकार के कार्यों से खुश नहीं हैं। इसका खामियाजा एनडीए को विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। हालांकि, चिराग का यह पत्र सार्वजनिक नहीं हुआ है। लेकिन, पार्टी सूत्रों का कहना है कि चिराग ने पत्र में सारी बातें लिख दी हैं।
उन्होंने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली, यहां के नौकरशाहों के रवैए को लेकर भी ��ीखी टिप्पणी की है। चिराग ने पत्र में कहा है कि वे पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद मिले फीडबैक को ही उनसे साझा कर रहे हैं। इस पत्र के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि चिराग के तेवर नरम नहीं पड़े हैं। चिराग लंबे समय से जदयू और राज्य सरकार से नाराज चल रहे हैं।
उन्होंने कई अवसरों पर राज्य सरकार को प्रदेश में व्याप्त गड़बड़ियों को लेकर आगाह भी किया है। इसके बाद दोनों में तल्खी और बढ़ गई है। पिछले दिनों तो पार्टी ने जदयू के खिलाफ उम्मीदवार तक उतारने की धमकी दे दी थी। संसदीय बोर्ड की बैठक के निर्णय के अनुसार लोजपा ने 143 विधानसभा सीटों पर अपनी तैयारी शुरू भी कर दी है।
जदयू अकेले चुनाव लड़
कर दिखाए : पप्पू यादव
जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पप्पू यादव ने रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि लालू प्रसाद ने उन्हें जितना सम्मान दिया, उनता कोई भी दल या व्यक्ति नहीं दे सकता है। जनता चाहती है कि इस बार सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़े। उन्होंने जदयू को भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने की चुनौती भी दी। कहा- यदि उनकी सरकार बनी तो वे किसानों को मनरेगा से जोड़ेंगे। उन्होंने बिहार की एनडीए सरकार को गरीबी, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि मामले में विफल बताया। पीएम ने पटना विवि को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की बात नहीं मानी।
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Chirag writes a letter to PM Modi about the political situation in Bihar - people of Bihar are not happy
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bhaskarhindinews · 6 years ago
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Ganesh Chaturthi 2018: Know here why Ganpati Bappa Loves Modak
जानिए क्यों प्रिय है गणपति बप्पा को मोदक
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डिजिटल डेस्क, भोपाल। भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। गणेश जी की पूजा में चाहे आप उनको कई प्रकार के भोग लगा दें किन्तु जब तक उन्हें मोदक का प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है क्योंकि यह इनका प्रिय भोग है। वैसे तो इन्हें लड्डू भी बहुत पसंद है किन्तु मोदक इन्हें सबसे अधिक प्रिय है। लेकिन शायद ही आपको मोदक के महत्व के बारे में पता होगा। आइये जानते हैं मोदक का महत्व...
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आनंद देने वाला
शास्त्रों के अनुसार मोदक का अर्थ होता हैं मोद (आनन्द) देने वाला, जिससे आनंद मिलता है। मोदक को ज्ञान का प्रतीक भी माना गया है। इसका गहरा अर्थ यह है कि तन का आहार हो या मन के विचार वह सात्विक और शुद्ध होना जरुरी हैं, तभी आप जीवन का वास्तविक आनंद पा सकते हैं। श्री गणेश को सबसे ज़्यादा खुश रहने वाला देवता माना गया है और मोदक उनकी बुद्धिमानी का भी परिचय देता है।
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होता है लक्ष्मी का वास
माना जाता है कि मोदक चढ़ाने से बप्पा प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-समृद्धि के साथ लक्ष्मी का भी वास होता है।
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शास्त्रों में वर्णित
शास्त्रों में वर्णित है कि मोदक जिस प्रकार बाहर से कड़ा व भीतर से नरम और मिठास से भरा होता है। उसी प्रकार मनुष्य खासकर परिवार के मुखिया को भीतर से नमर होना चाहिए। Source: Bhaskarhindi.com
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cinecaptain-blog · 7 years ago
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TV सेलेब्स के किस्से: इस वजह से रश्मि ने नहीं बांधी थी 5 भाईयों को राखी +10और स्लाइड देखें(R) रश्मि देसाई और रतन राजपूत(R)।एंटरटेनमेंट डेस्क। 7 अगस्त को दुनियाभर में 'रक्षाबंधन' मनाया जा रहा है। यह दिन आम लोगों के साथ-साथ टीवी के के पॉपुलर सेलिब्रिटीज के लिए भी बराबर मायने रखता हैं। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं उन टीवी सेलेब्स के बारे में, जिन्होंने अपने रक्षाबंधन से जुड़े एक्सपीरियंस के बारे में खुलकर बताया। इनमें रश्मि देसाई, रतन राजपूत, नकुल मेहता और जय भानुशाली जैसे कई सेलेब्स शामिल हैं। जब 'लाली' को भाई ने दिया Male Perfume...2009 में टेलिकास्ट हुए टीवी शो 'अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो' में लाली का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस रतन राजपूत हाल ही में अपना रक्षाबंधन से जुड़ा एक किस्सा शेयर किया। रतन बताती हैं, "हम भाई-बहन चूहे-बिल्ली जैसे हैं। कभी वह कांड करता है तो ��भी मैं करती हूं। बात दो-तीन साल पुरानी है। लेकिन इससे पहले बता दूं कि मेरी शादी को लेकर घरवाले बहुत दबाव डालते हैं। मैं कहती हूं कि सब्र रखो, जब करनी होगी तो बता दूंगी। यह इसलिए बता रही हूं कि रक्षाबंधन पर भाई ने सब बहनों को गर्ल परफ्यूम दिया, लेकिन मुझे मेल परफ्यूम गिफ्ट किया। मैंने पूछा कि अरे कमीने, ये नेल परफ्यूम मुझे क्यों दे रहा है? अभी तो मेरी शादी ही नहीं हुई है। तब भाई बोला- या तो तुम शादी कर लो, नहीं तो ये गिफ्ट मुझे वापस कर दो। मैं उसकी रग-रग से वाकिफ हूं, उसे पता था कि यह उसे रिटर्न गिफ्ट मिलेगा, मगर मैंने उसे रख लिया, क्योंकि वह मेरा रक्षाबंधन का गिफ्ट था। लेकिन अगर उसे ज्यादा दिन रखूंगी तो खराब हो जाता। इसलिए जब मेरे यहां दीदी के बेटे या भाई कभी आते हैं, तब उन्हें प्रसाद की तरह लगाने के लिए दे देती हूं। मेरे भाई का नाम शशांक शेखर है।"इस वजह से जब रश्मि ने नहीं बांधी पांचों भाई को राखी....रश्मि बताती हैं, "मेरे पांच भाई हैं वे मुझे बहुत मानते हैं। अब वे कमाऊ हो गए हैं तो उनसे रक्षाबंधन पर डिमांड करके लेती हूं। इस दिन क्या मिलेगा, यह सोचकर बड़ी एक्साइटेड रहती हूं। जब मेरा 19वां राखी बर्थडे था, तब भाइयों ने एक गुल्लक में 100-150 रुपए के चिल्लर जमा करके रखे थे। उसे रक्षाबंधन के दिन गिफ्ट के तौर मुझे पकड़ाते हुए बोले कि यह हमारी तरफ से है। इसमें तुम रोजाना 10 रुपए अपने आप से डालना और साल के अंत में हमारी तरफ से अपने लिए गिफ्ट खरीद लेना। यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने न तो का गिफ्ट लिया और न ही उन्हें राखी बांधी। उनका गिफ्ट वापस करके वहां से चुपचाप चली गई। एक ही दिन गिफ्ट लेना मेरा हक बनता है, पर बड़े होशियार बन रहे थे। अगले साल से सब ठिकाने पर आ गए।" +10और स्लाइड देखेंकनाडा से राखी सरप्राइज देने आई थी: रोहिताश्व गौड़"1986-89 की बात है, तब नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पढ़ता था। वहां से छुट्‌टी बहुत कम ही मिलती थी, इसलिए पैतृक शहर कालका (चंडीगढ़) जाना कम हो पाता था। खैर, 1987 में रक्षाबंधन पर घर गया, पर राखी बांधने के लिए बहन नहीं थी, क्योंकि वह कनाडा शिफ्ट हो गई थी। मम्मी ने कहा कि बेटा, तेरी बहन बाहर है, तुम जाकर पड़ोस में किसी से राखी बंधवा लो। मैंने कहा कि चलो, बहन नहीं है तो पड़ोस की बहनों के साथ ही रक्षाबंधन मना लेते हैं। लेकिन जैसे ही सीढ़ियों से उतर ही रहा था। देखा कि मेरी छोटी बहन देवयानी र��खी बांधने के लिए पूजा की थाली सजाए खड़ी है। उसे देखकर खुशी से मेरी आंखें नम हो गईं। वह खास रक्षाबंधन के लिए मुझे सरप्राइज देने के लिए आई थी। बहरहाल, राखी बंधवाई और खूब मौज-मस्ती की। बाहर जाकर खाना खाया। उन्हें मैक्सी बहुत पसंद थी, इसलिए उन्हें मैक्सी गिफ्ट किया। दो दिन की छुट्‌टी साथ बिताने के बाद वह वापस कनाडा चली गईं।" +10और स्लाइड देखेंरक्षाबंधन के दिन बहन बिफर पड़ी:शशांक व्यास"यह स्कूल टाइम की बात है, जब राखी के दिन स्कूल से छुट्‌टी होती थी। बचपन से मूवी देखने का शौक रहा है, इसके चलते राखी के दिन भी दोस्त शांतनु के साथ फिल्म देखने चला गया। मूवी देखकर घर तब लौटा, जब मुहूर्त निकले दो-ढाई घंटे बीत चुके थे। घर पहुंचते ही गुस्साई बहन सृष्टि व्यास मुझ पर बिफर पड़ी। उन्होंने कहा, अब मुझे राखी नहीं बांधनी है। तुम्हें मुहूर्त का समय ही नहीं पता। तुमको फिल्मों का शौक है, तुम फिल्म ही देखो। तुम्हें राखी क्यों बंधवानी है, यह तो बस, तुम्हारे लिए एक औपचारिकता वाली बात है। इसके बाद मम्मी ने भी अच्छी-खासी क्लास ली। फिलहाल, आखिर में मम्मी थोड़ा नरम होते हुए हिदायत दी कि पहले त्यौहार मनाओ, उसके बाद समय मिले तो फिल्म देखने जाया करो। यह बात 10 साल पुरानी है। फिल्म तो याद नहीं, पर वह सीख साथ में रह गई। हां, यह फिल्म अपने होमटाउन उज्जन के ‘स्वर्ग सुंदरम’ थिएटर में देखी थी। खैर, बहन शादी करके अब जोधपुर (राजस्थान) में रहने लगी है। इस बार रक्षाबंधन का त्यौहार 17 दिन पहले ही मनाकर यानी बहन से राखी बंधवाकर आ गया हूं। क्योंकि दोबारा जोधपुर जाना मुनासिब नहीं था।" +10और स्लाइड देखेंबचपन में 40 राखियां बंधवाता था: जय भानुशाली"मुझे बचपन की राखियां आज भी रोमांचित करती हैं। उस समय बड़ी-बड़ी चमकीली राखियां बहुत पसंद आती थीं। बचपन में कम से कम 40 राखियां बांधवाता था। दोनों हाथों में कलाई से लेकर बाजू तक हाथ भर जाता था, तब मेरी खुशी का ठिकाना नहीं होता था। मेरी यह ख्वाहिश मुझसे 6 साल बड़ी बहन हेतल पूरी करती थी, पर उसे गिफ्ट एक ही देता था। वह भी, जो मम्मी लाकर दे देती थीं। अब बड़ा हो गया हूं, सो अक्कल आ गई है। फिलहाल, बहन एक ही राखी बांधती है और एक ही बंधवाता हूं।" +10और स्लाइड देखेंजीजू को बांधती हूं राखी: रिद्धिमा पंडित"स्कूल में कंपल्सरी हुआ करता था कि अगर आपकी बेंच पर कोई लड़का बैठा है तो उसको राखी बांधनी होगी। मेरे पास बैठा मेरा एक फ्रेंड अनीश नायर था, उसको राखी बांध दी। राखी बांधने का यह सिलसिला ऐसा चला कि आज भी उसे राखी बांधती हूं। लेकिन कभी मजाक में वह कहते हैं कि तुम तो जबरदस्ती मेरी बहन बन ��ई। राखी बांधती हूं तो उसे मेरे लिए गिफ्ट भी लाना पड़ता है। अभी वह अमेरिका में रहते हैं तो उनके लिए राखी जरूर भिजवाती हूं। वे पूरे साल मुझे गिफ्ट भिजवाते रहते हैं। आज भी ऑन लाइन शॉपिंग करती हूं तो कभी-कभार उनसे ही पेमेंट करवाती हूं। उन्हें ही बोलती हूं कि दीवाली में आते समय एक साथ सारा सामान लेकर आना। मेरा मानना है कि जो बंधन जोड़ लिया, उसे तोड़ना नहीं चाहिए। मेरा सगा भाई नहीं है। लेकिन भाई से बढ़कर बड़ी बहन है। मैं अपने जीजू (जीजा) को राखी बांध देती हूं। चूंकि उनकी बहन दूर रहती हैं और वे राखी भिजवाती हैं। उन्हें बांधने के लिए कोई नहीं होता तो उन्हें राखी बांध देती हूं। वे मुझे छोटी बहन की तरह मानते हैं। मेरी बड़ी बहन रीमा पंडित ऐसी है कि मुझे भाई की कमी बिल्कुल नहीं खलती।" +10और स्लाइड देखें...जब बहन मुझे पकड़कर रोने लगी: शरद मल्होत्रा"अब तक का सबसे यादगार रक्षाबंधन तीन साल पहले का था, जब राखी के दिन अपने घर कोलकाता गया था। यह मेरी बहन को सरप्राइज था, क्योंकि 10 साल बाद घर गया था। किसी ने सोचा तक नहीं था कि घर आऊंगा। मैंने डोर वेल बजाई तो मेरी बहन ने दरवाजा खोला। मुझे देखते ही उसे दो मिनट तक विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं उसके सामने खड़ा हूं। उसके बाद तो वह मुझसे लिपटकर जोर-जोर से रोने लग गई। रोना सुनकर घर के सभी सदस्य आ गए, फिर तो माहौल ऐसा कि सबकी आंखें नम हो गई थीं। मेरी बहन मुझसे 7 साल बड़ी हैं, उनका नाम रीमा पावा है। वह कोलकाता की जानी-मानी फैशन डिजाइनर हैं। फिलहाल, इस साल रक्षाबंधन पर दो साल बाद कोलकाता जा रहा हूं, लेकिन अबकी बार मेरे जाने की खबर सबको है। हालांकि वह मुझसे बड़ी हैं, फिर भी उनकी पसंद की चीजें लेकर जाऊंगा।" +10और स्लाइड देखेंभाई को राखी भी बांधती और गिफ्ट भी देती हैं कीर्ति नागपुरे"भाई को राखी भी बांधती हूं और मुझे ही गिफ्ट देना पड़ता है। कभी कपड़े, फोन तो कभी घड़ी वगैरह उसके जरूरत की चीजें देती हूं। दरअसल, मेरा भाई अनिकेत नागपुरे मुझसे तीन साल और मेरी बड़ी बहन से छह साल छोटा है। हां, कभी-कभी हम दोनों बहनें आधा-आधा पैसे मि��ाकर भाई को गिफ्ट देते हैं। हाल ही में भाई एनिमेशन कोर्स कंपलीट कर जॉब पर लग गया है तो उम्मीद करती हूं कि इस बार वही कुछ अच्छा-सा चॉकलेट वगैरह गिफ्ट करेगा। मगर नया-नया जॉब पर लगा है तो इस बार भी हम बहनें ही उसे शॉपिंग करवाएंगे।" +10और स्लाइड देखें...जब दुबई से राखी बांधने आई बहन: जय सोनी"मेरी कोई रियल सिस्टर नहीं है। जब 10वीं में पढ़ता था, तब मेरी कजिन सिस्टर गीता सोनी दुबई से मुझे राखी बांधने आई थीं। उनका पूरा परिवार वहीं रहता है। यह मेरे लिए बहुत बड़ी सरप्राइज थी। वह मेरे लिए चॉकलेट, टी-शर्ट, राखी ढेर सारी चीजें लेकर आई थीं। मुझसे 5-6 साल बड़ी हैं। मुझे तो पता ही नहीं था कि वह आने वाली हैं। मम्मी ने कहा कि कुछ गिफ्ट देना चाहिए। तब अपनी पाकेट मनी से 101 रुपए गिफ्ट दिया था। अब तो वह आती-जाती रहती हैं। मैं भी जब दुबई जाता हूं तो उनसे जरूर मिलता हूं। आज भी जब वह रक्षाबंधन पर यहां नहीं आ पातीं तो राखी जरूर भिजवाती हैं।" +10और स्लाइड देखेंजब राखी कॉम्पटीशन जीते नकुल मेहता"मजेदार, यादगार राखी का त्यौहार तब का है, जब मैं 7 साल का था। रक्षाबंधन के दिन मेरा पूरा परिवार चाचा-चाची, काका, ताऊजी... सब दिल्ली में इकट्‌ठा हुए थे। हम 8-10 भाई थे, जिनकी कलाई पर राखी बांधने के लिए 12-13 बहनें थीं। हम सब एक लाइन में खड़े थे। हमारे बीच कंपटीशन लगा कि देखते हैं, किसके हाथ में सबसे ज्यादा राखी बांधी जाती है, राखी से किसका हाथ सबसे ज्यादा भरेगा। फनी बात यह कि बहनें तो उतनी ही थीं और वही सबके हाथ पर राखी बांधने वाली थीं। मुझे याद है, वह कंपटीशन मैं जीत गया था, क्योंकि सबसे छोटा मैं था, सो मेरा हाथ भी सबसे छोटा था। इसलिए मेरी कलाई ही नहीं, पूरा कंधा ही राखी से भर गया। मैं खुश इतना खुश हुआ कि मुझे देखकर सब हंस रहे थे कि सच में किसी ने राखी बंधवाई है।" +10और स्लाइड देखेंमेरा एक अकाउंट बहन के नाम पर चलता है: सार्दुल पंडित"मेरी बहन रुचिता पंडित (शादी के बाद वाधवानी) मुझसे छह साल छोटी है। जब वह पैदा होने वाली थी, तब मुझे बहन नहीं चाहिए था। पापा के साथ खजराना (इंदौर) मंदिर गया था तो वहां धागा बांधकर आया था कि मुझे भाई चाहिए। लेकिन अच्छा हुआ कि मेरी विश पूरी नहीं हुई, क्योंकि मेरी लाइफ में कोई ऐसा इंसान है, जिसे नहीं बदलना चाहूंगा तो वह मेरी बहन है। तीन साल दुबई में रहा। वहां से लौटने के बाद एक्टिंग करने का फैसला लिया, तब सिर्फ बहन ही मेरे साथ खड़ी थी। जिंदगी में जितने उतार-चढ़ाव आए, उसमें सिर्फ बहन ने ही साथ दिया। आज उससे पूछे बगैर कोई कदम नहीं उठाता हूं। रक्षाबंधन के दिन सारा काम छोड़कर उसके पास होता हूं। जब दुबई में रेडियो मिर्ची के लिए बतौर रेडियो जॉकी काम करता था। वहां पर रेडियो मिर्ची अवॉर्ड का पहला साल था, पर अवॉर्ड फंक्शन छोड़कर मैं एक महीने के लिए बहन की शादी में शामिल होने के लिए आ गया। वह मेरे लिए इतनी स्पेशल है। मेरी बहन दूसरी बहनों की तरह नहीं है। उसे महंगा गिफ्ट दूं तो वह गुस्सा हो जाती है। उसको जबर्दस्ती चीजें दिलानी पड़ती है, यहां तक कि लड़ाई करनी पड़ती है। वह इतनी लकी है कि मेरा एक बैंक एकाउंट बहन के नाम पर चलता है। वह कभी खाली नहीं होता है।" +10और स्लाइड देखेंभाई को चंदन वाली राखी बांधती हैं तेजस्वी प्रकाश"मैं अपने भाई को चंदन वाली स्पेशल राखी बांधती हूं। वह यूएएस में मास्टर्स की डिग्री ले रहे हैं। मुझसे डेढ़ साल छोटे हैं। यह पहला साल होगा, जब भाई को राखी नहीं बांध सकूंगी। मैं पिछले साल राखी बांधने ��ूएएस गई थी। वहां बड़े इंट्रेस्टिंग तरीके से रक्षाबंधन सेलिब्रेट किया था। वहां पर दीपक, हल्दी टीका, अक्षत, मिठाई आदि कुछ भी नहीं था। तब दीपक की जगह कैंडिल से आरती उतारी और मिठाई की जगह कैडबरी खिलाई थी। यहां रहते थे, तब बड़े विधि-विधान से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाती थी। खैर, वहां 11 दिन रही। उस समय धारावाहिक ‘स्वारागिनी’ कर रही थी।"
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capitalkhabar · 8 years ago
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यौवनको उन्माद : फुस्किएको कण्डम र गनोरिया काठमाडौं, बैशाख १२- आज कार्यालय समय सकेर आराम गर्दै थिएँ । शनिबारको दिन भएर होला काममा त्यति धेरै जाँगर लागेको थिएन । केही समयपछि होस आयो । करिब ६ महिना पहिले मैले एउटा सत्यकथा लेखेको थिएँ । कथाका पात्रको जीवनमा तीन महिनापछि नयाँ मोड आउँदै थियो । मैले पात्रो पल्टाएँ । दशैँको अष्टमीको दिन कहिले रहेछ भनेर हेर्न मन लाग्यो । ओहो ६ महिना बितिसकेछ । आज माघको २९ गते । मलाई उत्सुकता जाग्यो । रमेशको रिपोर्ट के आयो होला ? तत्काल उनलाई फोन लगाएँ । आवाज आयो – ‘हेलो’ मैले भने – ‘रमेश जी आराम हुनुहुन्छ ?’ ‘आराम छु तपाईँ को बोल्नुभयो ?’ – उतावाट आवाज आयो ।  ‘म शिब प्रसाद लामिछाने । चिन्नु भएन ।’ – मैले आफ्नो परिचय दोहोर्याएँ ।  ‘शि...ब । ए ए । शिब जी के छ खबर ।’ – थोरै हाँसेको सोरमा उताबाट आवाज आयो ।   ‘रमेश जी के छ नयाँ नौलो ?’ – सिधै प्रसंगमा छिर्न अफ्ठ्यारो मान्दै अनौपचारिक कुराकानी गर्न थालेँ ।  ‘ठिकै छ भन्नुपर्यो ।’  रमेश जीको उत्तर आयो ।  भन्नुपर्यो भन्ने शब्दले मलाई झस्कायो । अनि मैले सोधीहालेँ – ‘किन भन्नुपर्���ो मात्र ।’  उनी थोरै नरम हुँदै भन्नथाले – ‘सर उही त हो ।’ शिब जी बाट एक्कासी सर सम्बोधन भएपछि मलाई अचम्म लाग्यो । अनि यो प्रश्नपूर्ण वाक्यले मलाई थोरै डराउने पनि बनायो । भनेँ – ‘के भयो र ?’  मेरो प्रश्न सकिन नपाउँदै उनले भने – ‘सर मनमा डर भरिएर म त ब्लड चेक गराउन गएको छैन ।’  ‘किन ?’ मैले भनेँ  ‘यदि एचआईभी पोजेटिभ देखियो भने म के गर्छु होला भन्ने सोचेर नै धेरै डराइरहेको छु ।’ – उसको यो शब्दहरुमा पीडा भरिएको छ भन्ने म सजिलै अनुमान लगाउन सक्थेँ । ‘हेर रमेश यदि समयमा चेक गराएनौ भने झन तिमी चिन्ताले गल्दै जान्छौँ । तिम्रो मनमा हर समय एचआईभी छ कि भन्ने चिन्ता रहिरहन्छ ।’ – मैले केही सम्झाउने शैलीमा भनेँ ।  उ केही समय चुप बस्यो । केही बोलेन । फेरी मैले थपेँ – ‘रमेश जसरी भएपनि भोल�� नै चेक गराउन जाउ । म फोन गर्नेछु तिमिलाई सम्झाउनलाई ।’  उसले हस् भनेर फोन काट्यो ।  म साथीहरु माझबाट छुट्टिएर घर तिर लागेँ । साझ परिसकेको थियो । कोठामा पुगेर खाना पकाएँ खाएँ अनि ओछ्यानमा पल्टिएँ । मलाई निन्द्रा लागिरहेको थिएन । किन हो रमेशको ठाउँमा आफैँलाई राखेर सोच्न थालेँ – ‘यदि मलाई रमेशको जस्तो अवस्था आएको भए म के गर्थेँ होला ?’  लामो समय सोचेर बसेँ । १ बजेसम्म त निदाउन सकिन त्यसपछि खै कति बेला हो निदाएछु । झण्डै ६ दिनपछि म कार्यालयमा काम गर्दै थिएँ । रमेशले गरेको फोनले मोवाइलमा घण्टि बज्दै थियो । मिटिङमा भएकाले मैले फोन उठाउन सकिन । जिज्ञासाले मन भरिएर आयो । मिटिङ सक्न पाउँदा नपाउँदै रमेशलाई फाने गरेँ ।  हेलो, के छ आराम हुनुहुन्छ ?’ – उतावाट आवाज आयो ।  ‘ठिक छु । तपाईँलाई कस्तो छ ?’ – मैले प्रश्न तेस्र्याएँ । ‘शिब जी म साँच्चै खुसी छु ।’ – खुसी भरिएको शब्दहरु म सजिलै बुझ्न सक्थेँ । मैले करिब करिब बिषय बुझि सकेको थिएँ । तर पनि प्रश्न गरेँ – ‘के हो खुसीको खबर हामी पनि सुन्न पाउँछौँ ?’  ‘शिब जी धेरै धेरै धन्यवाद । सायद म चिन्ताले नै बिरामी पर्ने थिएँ होला यदि रक्त जाँच गराउन नगएको भए ।’ – उसले मलाई धन्यबाद दिँदै भन्यो ।  मसँग भन्ने शब्द भएनन् । – ‘ल आफ्नो स्वास्थ्यको ख्याल राख्नु । अब बाट धेरै ध्यान दिनुहोला । जोसमा होस नगुमाउनुहोला नी । मैले भने ।’  उसले हाँसोको फोहोरा छोड्दै भन्यो – ‘यति धेरै पीडामा बाँचेपछि म कसरी फेरी गल्ति गर्न सक्छु र । ल सर धन्यबाद एकपटक फेरी । कुराकानी गर्दै गरौँला ।’   हस् । बाई । – ‘मैले फोन राखेँ ।’ source; hamrodoctor.com
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googlesamachar · 8 years ago
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बस्ती के ग्रामीण करेंगे मतदान बहिष्कार - नवभारत टाइम्स
बस्ती के ग्रामीण करेंगे मतदान बहिष्कार नवभारत टाइम्स जिले के हर्रैया इलाके के हियारूपुर चौधरी पुरवा गांव ने मतदान बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। चुनाव में ताल ठोक रहे उम्मीदवारों की तमाम कोशिशों के बावजूद ग्रामीण अपने तेवर नरम करने को तैयार नहीं हैं। प्रदर्शन की अगुआई कर रहे हनुमान प्रसाद के मुताबिक गांव के 55 घरों में करीब 800 लोग रहते हैं। हर चुनाव में बिजली के आश्वासन पर वोटिंग में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं, लेकिन जीतने के बाद नेता गांव की तरफ रुख करना ही भूल जाते हैं। डाउनलोड करें Hindi News ऐप और रहें हर खबर से अपडेट। Web Title: poll boycott. (Hindi News from Navbharat Times , TIL Network). अपना कॉमेंट लिखें ... और अधिक » http://dlvr.it/NQVZwK
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pragatitimes2016-blog · 8 years ago
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उप्र चुनाव : चुनावी दंगल में जनता की चौखट पर राजघराने has been published on PRAGATI TIMES
उप्र चुनाव : चुनावी दंगल में जनता की चौखट पर राजघराने
लखनऊ , (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार राजघरानों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है।
यूं तो देश में अब रजवाड़े नहीं रह गए हैं, लेकिन कई राजघरानों के वारिस भी चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। अमेठी राजघराने के राजा संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह इस बार चुनावी मैदान में हैं। उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने टिकट दिया है। गरिमा सिंह राजमहल भूपति भवन पर कब्जे को लेकर विवादों में रही हैं। गरिमा सिंह को जिताने के लिए उनके बेटे-बेटी ने उनके प्रचार का जिम्मा संभाल रखा है। राजकुमारी महिमा सिंह के साथ कुंवर अनंत विक्रम सिंह इलाके के हर घर में दस्तक भी दे रहे हैं। उनकी कोशिश हर घर तक पहुंचने की है। अनंत विक्रम सिंह ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा कि इस बार ��मेठी की जनता इंसाफ करेगी। वह कहते हैं, “पिछले कई दशकों से यहां की जनता के साथ अन्याय होता आया है। राहुल जी यहां से सांसद हैं, लेकिन पिछले डेढ़ दशक में यहां न तो उद्योग-धंधों का विकास हुआ है और न ही रोजगार परक बुनियादी सुविधाएं युवाओं को मुहैया हो पाई हैं।” वह कहते हैं, “अमेठी विधानसभा की जनता को इस बार विकास के नाम पर वोट करेगी।” दिलचस्प बात यह है कि अमेठी विधानसभा से ही अखिलेश सरकार के स��से चर्चित मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार उन्हें इसी सीट से जीत हासिल हुई थी। इस बार वह समाजवादी पार्टी (सपा)-कांग्रेस गठबंधन के अधिकृत प्रत्याशी भी हैं। अमेठी राजघराने के बाद बात करते हैं, प्रतापगढ़ जिले के भदरी राजघराने की। यहां के राजा रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया हैं। इस इलाके में इनका खासा दबदबा माना जाता है। वर्ष 1993 से लागातार वह कुंडा से जीतते आ रहे हैं। कुंडा में आज भी उनकी ही तूती बोलती है। सपा सरकार में हालांकि उन्हें कम महत्व का विभाग देकर उनकी हनक कम करने की कोशिश की गई, लेकिन इलाके में उनका रुतबा पहले की तरह ही है। इलाके के युवाओं में राजा भैया का खासा क्रेज है। राजा भैया के निर्दलीय नामांकन से पहले ही लोग उनके नाम की माला जप रहे हैं। हालांकि अखिलेश सरकार के कार्यकाल के दौरान ही कुंडा में पुलिस अधिकारी की हत्या के बाद राजा भैया का नाम भी सामने आया था। इस वजह से अखिलेश सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। इस हत्याकांड के बाद से ही अखिलेश और राजा भैया के रिश्तों की डोर काफी नरम पड़ गई। रायबरेली की तिलोई रियासत की भी अपनी एक अलग पहचान है। इस सियासत के राजा मयंकेश्वर सिंह महल से निकलकर वर्ष 1993 में पहली बार जनता की चौखट पर वोट मांगने पहुंचे थे। तब से पांच बार इस विधानसभा चुनाव से वह चुनाव लड़ चुके हैं और जनता ने तीन बार उनको जीत का सेहरा पहनाकर विधानसभा तक पहुंचाया है। इस बार एक बार फिर वह चुनावी मैदान में हैं। भाजपा से सपा और फिर भाजपा में पहुंचने वाले मयंकेश्वर मैदान में हैं। उन्होंने इस बार एक नया नारा गढ़ा है। वह कहते हैं, “2017 में देखेगा जमाना, तिलोई में ऊपर चढ़ेगा खुशहाली का पैमाना।” मयंकेश्वर ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा, “जनता को विकास चाहिए। तिलोई की जनता इस बार विकास के नाम पर वोट करेगी। इलाके में सड़क, पानी और बिजली की स्थिति ठीक करने का काम किया जाएगा।” बहरहाल, राजघरानों के अलावा यदि उत्तर प्रदेश के कुछ नवाबों के परिवार पर नजर डालें, तो रामपुर के नवाब घराने का नाम पहले आता है। रामपुर का नूरमहल इस पुराने घराने की शान का प्रतीक माना जा��ा है। नवाबों का यह घराना दशकों से कांग्रेस से जुड़ा हुआ है। इसी घराने की नूर बानो जहां कांग्रेस के टिकट पर संसद पहुंच चुकी हैं, वहीं बेटे नवाब काजिम अली खान उर्फ नावेद मियां चार वर्षो से विधायक भी हैं। रामपुर के स्वार सीट से मैदान में उतरे नावेद के सामने इस बार चुनौती काफी कड़ी है। रामपुर के कद्दावर मंत्री आजम खां के पुत्र अब्दुल्ला आजम उनके सामने हैं। आजम ने भी अपने बेटे को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। वह अपनी विधानसभा से ज्यादा अपने बेटे का प्रचार करते नजर आ रहे हैं। आजम के बेटे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे नावेद कहते हैं, “सामने चाहे कोई भी हो, स्वार की जनता को पता है कि क्या करना है। सिर्फ चुनावी मौसम में स्वार आने से यहां का विकास नहीं हो जाता। आजम ने यहां की जनता के लिए किया क्या है?” पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आगरा के भदावर रियासत का भी बड़ा नाम रहा है। इस रियासत से जुड़े राजा महेंद्र अरिदमन सिंह 2007 में हुए विधानसभा चुनाव को छोड़कर 1989 से ही जीतते आ रहे हैं। अरिदमन सिंह इस बार साइकिल छोड़कर भाजपा में चले गए हैं। इस बार उन्होंने अपनी पत्नी रानी पक्षालिका सिंह को मैदान में उतारा है। पत्नी को जिताने के लिए इस बार अरिदमन सिंह ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
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kisansatta · 4 years ago
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छठ पूजा 2020:आसानी से ऐसे बनाएं छठ का प्रसाद ठेकुआ
छठ पूजा 2020: बड़े धूमधाम से छठ का पर्व मनाया जाता हैं इस बार पूजा की शुरूआती रवि योग से हो रही हैं ठेकुआ छठ पूजा का प्रमुख प्रसाद है. ठेकुआ से ही भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और प्रसाद के रूप में इसे बांटा जाता है.
सामाग्री- आटा- 1 किलो गुड़- 250 ग्राम नारियल घिसा हुआ- 25 ग्राम मूंगफली (कच्चा)- 8 से 10 दाना सौंफ- एक बड़ा चम्मा छुहारा – 4-5 छोटी इलायची- काली मिर्च – 2-4 लौंग- 2 -3 घी या सरसों का तेल- 500 ग्राम
नोट- (मूंगफली, सौंफ, छुहारा, छोटी इलायची, लौंग, काली मिर्च सबको अच्छे से कूट लें. ये सभी मसाले आटे में मिक्स किया जाएगा).
बनाने की विधि- छठ पूजा के लिए कुछ चीजों की जरुरत पड़ती हैं एक बर्तन में गुड़ डालकर उसमें एक मीडियम गिलास पानी डाल दें और दोनों को अच्छे से ��िक्स कर लें. अब इसमें घिसा हुआ नारियल और बाकि कूटे मसाले डाले दें. सबको अच्छे से मिलाकर इसमें आटा मिला दें. आटे को अच्छे से गूंथ लें न ज्यादा टाइट न ज्यादा नरम. अब आटे की छोटी-छोटी लोईं बना लें. इसके बाद बाद ठेकुआ बनाने वाले सांचे से आकार दे दें. अगर सांचा न हो तो थाली को उल्टा कर के उसपर हल्का तेल लगा के उसपर आटे की गोली रखकर हल्के हाथों से ठोक लें. अब एक गैस पर बड़ी सी कढ़ाही रखकर उसमें तेल या घी डाल दें. जब ये गर्म हो जाएं तो ठेकुआ को तल लें. अब आपका छठ का प्रसाद ठेकुआ तैयार है. इसे अल�� रख दें और छठ पूजा के समापन के बाद ही इसे ग्रहण करें. ध्यान रहे कि छठ पूजा से पहले ठेकुआ न खाएं |
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googlesamachar · 8 years ago
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बस्ती के ग्रामीण करेंगे मतदान बहिष्कार - नवभारत टाइम्स
आज तक बस्ती के ग्रामीण करेंगे मतदान बहिष्कार नवभारत टाइम्स जिले के हर्रैया इलाके के हियारूपुर चौधरी पुरवा गांव ने मतदान बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। चुनाव में ताल ठोक रहे उम्मीदवारों की तमाम कोशिशों के बावजूद ग्रामीण अपने तेवर नरम करने को तैयार नहीं हैं। प्रदर्शन की अगुआई कर रहे हनुमान प्रसाद के मुताबिक गांव के 55 घरों में करीब 800 लोग रहते हैं। हर चुनाव में बिजली के आश्वासन पर वोटिंग में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं, लेकिन जीतने के बाद नेता गांव की तरफ रुख करना ही भूल जाते हैं। डाउनलोड करें Hindi News ऐप और रहें हर खबर से अपडेट। Web Title: poll boycott. (Hindi News from Navbharat Times , TIL Network). अपना कॉमेंट लिखें ... गांव में विकास नहीं होने ��र ग्रामीणों ने किया मतदान का बहिष्कारDeshvani (कटूपहास) (प्रेस विज्ञप्ति) (पंजीकरण) (ब्लॉग) सभी ११ समाचार लेख » http://dlvr.it/NQV8BK
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pragatitimes2016-blog · 8 years ago
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उप्र चुनाव : चुनावी दंगल में जनता की चौखट पर राजघराने has been published on PRAGATI TIMES
उप्र चुनाव : चुनावी दंगल में जनता की चौखट पर राजघराने
लखनऊ , (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार राजघरानों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है।
यूं तो देश में अब रजवाड़े नहीं रह गए हैं, लेकिन कई राजघरानों के वारिस भी चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। अमेठी राजघराने के राजा संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह इस बार चुनावी मैदान में हैं। उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने टिकट दिया है। गरिमा सिंह राजमहल भूपति भवन पर कब्जे को लेकर विवादों में रही हैं। गरिमा सिंह को जिताने के लिए उनके बेटे-बेटी ने उनके प्रचार का जिम्मा संभाल रखा है। राजकुमारी महिमा सिंह के साथ कुंवर अनंत विक्रम सिंह इलाके के हर घर में दस्तक भी दे रहे हैं। उनकी कोशिश हर घर तक पहुंचने की है। अनंत विक्रम सिंह ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा कि इस बार अमेठी की जनता इंसाफ करेगी। वह कहते हैं, “पिछले कई दशकों से यहां की जनता के साथ अन्याय होता आया है। राहुल जी यहां से सांसद हैं, लेकिन पिछले डेढ़ दशक में यहां न तो उद्योग-धंधों का विकास हुआ है और न ही रोजगार परक बुनियादी सुविधाएं युवाओं को मुहैया हो पाई हैं।” वह कहते हैं, “अमेठी विधानसभा की जनता को इस बार विकास के नाम पर वोट करेगी।” दिलचस्प बात यह है कि अमेठी विधानसभा से ही अखिलेश सरकार के सबसे चर्चित मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार उन्हें इसी सीट से जीत हासिल हुई थी। इस बार वह समाजवादी पार्टी (सपा)-कांग्रेस गठबंधन के अधिकृत प्रत्याशी भी हैं। अमेठी राजघराने के बाद बात करते हैं, प्रतापगढ़ जिले के भदरी राजघराने की। यहां के राजा रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया हैं। इस इलाके में इनका खासा दबदबा माना जाता है। वर्ष 1993 से लागातार वह कुंडा से जीतते आ रहे हैं। कुंडा में आज भी उनकी ही तूती बोलती है। सपा सरकार में हालांकि उन्हें कम महत्व का विभाग देकर उनकी हनक कम करने की कोशिश की गई, लेकिन इलाके में उनका रुतबा पहले की तरह ही है। इलाके के युवाओं में राजा भैया का खासा क्रेज है। राजा भैया के निर्दलीय नामांकन से पहले ही लोग उनके नाम की माला जप रहे हैं। हालांकि अखिलेश सरकार के कार्यकाल के दौरान ही कुंडा में पुलिस अधिकारी की हत्या के बाद राजा भैया का नाम भी सामने आया था। इस वजह से अखिलेश सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। इस हत्याकांड के बाद से ही अखिलेश और राजा भैया के रिश्तों की डोर काफी नरम पड़ गई। रायबरेली की तिलोई रियासत की भी अपनी एक अलग पहचान है। इस सियासत के राजा मयंकेश्वर सिंह महल से निकलकर वर्ष 1993 में पहली बार जनता की चौखट पर वोट मांगने पहुंचे थे। तब से पांच बार इस विधानसभा चुनाव से वह चुनाव लड़ चुके हैं और जनता ने तीन बार उनको जीत का सेहरा पहनाकर विधानसभा तक पहुंचाया है। इस बार एक बार फिर वह चुनावी मैदान में हैं। भाजपा से सपा और फिर भाजपा में पहुंचने वाले मयंकेश्वर मैदान में हैं। उन्होंने इस बार एक नया नारा गढ़ा है। वह कहते हैं, “2017 में देखेगा जमाना, तिलोई में ऊपर चढ़ेगा खुशहाली का पैमाना।” मयंकेश्वर ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा, “जनता को विकास चाहिए। तिलोई की जनता इस बार विकास के नाम पर वोट करेगी। इलाके में सड़क, पानी और बिजली की स्थिति ठीक करने का काम किया जाएगा।” बहरहाल, राजघरानों के अलावा यदि उत्तर प्रदेश के कुछ नवाबों के परिवार पर नजर डालें, तो राम��ुर के नवाब घराने का नाम पहले आता है। रामपुर का नूरमहल इस पुराने घराने की शान का प्रतीक माना जाता है। नवाबों का यह घराना दशकों से कांग्रेस से जुड़ा हुआ है। इसी घराने की नूर बानो जहां कांग्रेस के टिकट पर संसद पहुंच चुकी हैं, वहीं बेटे नवाब काजिम अली खान उर्फ नावेद मियां चार वर्षो से विधायक भी हैं। रामपुर के स्वार सीट से मैदान में उतरे नावेद के सामने इस बार चुनौती काफी कड़ी है। रामपुर के कद्दावर मंत्री आजम खां के पुत्र अब्दुल्ला आजम उनके सामने हैं। आजम ने भी अपने बेटे को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। वह अपनी विधानसभा से ज्यादा अपने बेटे का प्रचार करते नजर आ रहे हैं। आजम के बेटे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे नावेद कहते हैं, “सामने चाहे कोई भी हो, स्वार की जनता को पता है कि क्या करना है। सिर्फ चुनावी मौसम में स्वार आने से यहां का विकास नहीं हो जाता। आजम ने यहां की जनता के लिए किया क्या है?” पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आगरा के भदावर रियासत का भी बड़ा नाम रहा है। इस रियासत से जुड़े राजा महेंद्र अरिदमन सिंह 2007 में हुए विधानसभा चुनाव को छोड़कर 1989 से ही जीतते आ रहे हैं। अरिदमन सिंह इस बार साइकिल छोड़कर भाजपा में चले गए हैं। इस बार उन्होंने अपनी पत्नी रानी पक्षालिका सिंह को मैदान में उतारा है। पत्नी को जिताने के लिए इस बार अरिदमन सिंह ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
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pragatitimes2016-blog · 8 years ago
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उप्र चुनाव : चुनावी दंगल में जनता की चौखट पर राजघराने has been published on PRAGATI TIMES
उप्र चुनाव : चुनावी दंगल में जनता की चौखट पर राजघराने
लखनऊ , (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार राजघरानों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है।
यूं तो देश में अब रजवाड़े नहीं रह गए हैं, लेकिन कई राजघरानों के वारिस भी चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। अमेठी राजघराने के राजा संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह इस बार चुनावी मैदान में हैं। उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने टिकट दिया है। गरिमा सिंह राजमहल भूपति भवन पर कब्जे को लेकर विवादों में रही हैं। गरिमा सिंह को जिताने के लिए उनके बेटे-बेटी ने उनके प्रचार का जिम्मा संभाल रखा है। राजकुमारी महिमा सिंह के साथ कुंवर अनंत विक्रम सिंह इलाके के हर घर में दस्तक भी दे रहे हैं। उनकी कोशिश हर घर तक पहुंचने की है। अनंत विक्रम सिंह ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा कि इस बार अमेठी की जनता इंसाफ करेगी। वह कहते हैं, “पिछले कई दशकों से यहां की जनता के साथ अन्याय होता आया है। राहुल जी यहां से सांसद हैं, लेकिन पिछले डेढ़ दशक में यहां न तो उद्योग-धंधों का विकास हुआ है और न ही रोजगार परक बुनियादी सुविधाएं युवाओं को मुहैया हो पाई हैं।” वह कहते हैं, “अमेठी विधानसभा की जनता को इस बार विकास के नाम पर वोट करेगी।” दिलचस्प बात यह है कि अमेठी विधानसभा से ही अखिलेश सरकार के सबसे चर्चित मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार उन्हें इसी सीट से जीत हासिल हुई थी। इस बार वह समाजवादी पार्टी (सपा)-कांग्रेस गठबंधन के अधिकृत प्रत्याशी भी हैं। अमेठी राजघराने के बाद बात करते हैं, प्रतापगढ़ जिले के भदरी राजघराने की। यहां के राजा रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया हैं। इस इलाके में इनका खासा दबदबा माना जाता है। वर्ष 1993 से लागातार वह कुंडा से जीतते आ रहे हैं। कुंडा में आज भी उनकी ही तूती बोलती है। सपा सरकार में हालांकि उन्हें कम महत्व का विभाग देकर उनकी हनक कम करने की कोशिश की गई, लेकिन इलाके में उनका रुतबा पहले की तरह ही है। इलाके के युवाओं में राजा भैया का खासा क्रेज है। राजा भैया के निर्दलीय नामांकन से पहले ही लोग उनके नाम की माला जप रहे हैं। हालांकि अखिलेश सरकार के कार्यकाल के दौरान ही कुंडा में पुलिस अधिकारी की हत्या के बाद राजा भैया का नाम भी सामने आया था। इस वजह से अखिलेश सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। इस हत्याकांड के बाद से ही अखिलेश और राजा भैया के रिश्तों की डोर काफी नरम पड़ गई। रायबरेली की तिलोई रियासत की भी अपनी एक अलग पहचान है। इस सियासत के राजा मयंकेश्वर सिंह महल से निकलकर वर्ष 1993 में पहली बार जनता की चौखट पर वोट मांगने पहुंचे थे। तब से पांच बार इस विधानसभा चुनाव से वह चुनाव लड़ चुके हैं और जनता ने तीन बार उनको जीत का सेहरा पहनाकर विधानसभा तक पहुंचाया है। इस बार एक बार फिर वह चुनावी मैदान में हैं। भाजपा से सपा और फिर भाजपा में पहुंचने वाले मयंकेश्वर मैदान में हैं। उन्होंने इस बार एक नया नारा गढ़ा है। वह कहते हैं, “2017 में देखेगा जमाना, तिलोई में ऊपर चढ़ेगा खुशहाली का पैमाना।” मयंकेश्वर ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा, “जनता को विकास चाहिए। तिलोई की जनता इस बार विकास के नाम पर वोट करेगी। इलाके में सड़क, पानी और बिजली की स्थिति ठीक करने का काम किया जाएगा।” बहरहाल, राजघरानों के अलावा यदि उत्तर प्रदेश के कुछ नवाबों के परिवार पर नजर डालें, तो रामपुर के नवाब घराने का नाम पहले आता है। रामपुर का नूरमहल इस पुराने घराने की शान का प्रतीक माना जाता है। नवाबों का यह घराना दशकों से कांग्रेस से जुड़ा हुआ है। इसी घराने की नूर बानो जहां कांग्रेस के टिकट पर संसद पहुंच चुकी हैं, वहीं बेटे नवाब काजिम अली खान उर्फ नावेद मियां चार वर्षो से विधायक भी हैं। रामपुर के स्वार सीट से मैदान में उतरे नावेद के सामने इस बार चुनौती काफी कड़ी है। रामपुर के कद्दावर मंत्री आजम खां के पुत्र अब्दुल्ला आजम उनके सामने हैं। आजम ने भी अपने बेटे को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। वह अपनी विधानसभा से ज्यादा अपने बेटे का प्रचार करते नजर आ रहे हैं। आजम के बेटे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे नावेद कहते हैं, “सामने चाहे कोई भी हो, स्वार की जनता को पता है कि क्या करना है। सिर्फ चुनावी मौसम में स्वार आने से यहां का विकास नहीं हो जाता। आजम ने यहां की जनता के लिए किया क्या है?” पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आगरा के भदावर रियासत का भी बड़ा नाम रहा है। इस रियासत से जुड़े राजा महेंद्र अरिदमन सिंह 2007 में हुए विधानसभा चुनाव को छोड़कर 1989 से ही जीतते आ रहे हैं। अर���दमन सिंह इस बार साइकिल छोड़कर भाजपा में चले गए हैं। इस बार उन्होंने अपनी पत्नी रानी पक्षालिका सिंह को मैदान में उतारा है। पत्नी को जिताने के लिए इस बार अरिदमन सिंह ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
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