#नए साल के चुटकुले हिंदी में
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प्रेमिका ने पूछा नए साल पर क्या गिफ्ट दोगे ...
प्रेमिका ने पूछा नए साल पर क्या गिफ्ट दोगे …
प्रेमिका: नए साल पर क्या गिफ्ट दोगे??? . . . प्रेमी: कुछ खास दूंगा पक्का प्रेमिका : हीरे की अंगूठी दोगे क्या जानू प्रेमी: हट पगली मैं तो पिछले साल का कैलेंडर दूंगा.. अमित, लखनऊ Source link
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ऋषि कटियार नए साल के रेजॉलूशन कैसे लें? तो भाइयो और बहनो, एक बार फिर साल को वह मौसम आ गया है, जब आप रजाई में घुस के कुड़कुड़ाते और अलसाते हुए फोन पर अगले साल में मैराथन दौड़ने का रेजॉलूशन लेने वाले हैं। टीवी, दोस्त, फेसबुक, अख़बार पर लोग और एक्सपर्ट्स अगले कुछ दिन चरस बोते रहेंगे और आपको एक महान इंसान या इतिहास पुरुष/स्त्री बनाने में जान लगा देंगे।आप जोश-जोश में ढेर सारे रेजॉलूशन ले भी लेंगे, मगर कुछ ही दिनों में उनकी वैसे ही वाट लग जाएगी जैसी अब्दुल कलाम साहब के एक विकसित देश के विज़न 2020 की हमारे नेताओं ने लगाई है। मैं भी आपको नए साल पे कुछ रेजॉलूशन लेने के लिए कुछ टिप्स बता रहा हूं जिनसे आप एक महा पुरुष/स्त्री तो नहीं, पर इंसान बने रह सकते हैं। 1. रेजॉलूशन हमेशा हैसियत के हिसाब से लेने चाहिए। ऐसा नहीं कि आप कद्दू हैं, पर अगले साल तक ककड़ी होने का प्रण ले लें। इस प्रण में आपके प्राण चले जाएंगे पर होगा कुछ नहीं। आप ककड़ी, खीरा, भिंडी, मिर्ची कुछ भी हो सकते हैं, पर समय लगेगा। यह मत सोचिए कि अदनान सामी, आकाश अंबानी फटाफट कर सकते हैं तो आप भी कर लेंगे। भाई,आप अंबानी नहीं हो। आप के पास और भी काम हैं और सिर्फ यही करने बैठेंगे तो कुछ दिनों बाद भूखे मरने की नौबत आने पर वजन खुद-ब-खुद कम हो जाएगा। इनर्शिया में मास का रोल बहुत बड़ा होता है। आप मोटे हैं इसलिए चल नहीं पाते हैं और आप चल नहीं पाते हैं क्योंकि आप मोटे हैं और इस टाइप से कॉज-इफेक्ट की साइकल बन जाती है। इस साइकल से आपको साइकल ही बचा सकती है। अकसर लोग एक या दो किलोमीटर दूर जिम भी शा�� से कार/बाइक पर वहां जाते हैं, फिर वहां ट्रेड मिल/पार्क में हिलने डुलने का नाटक करते हैं और संतुष्ट होकर लौट आते हैं। भाई मेरे, अगर उतने रास्ते आप पैदल/साइकल से चले जाओ तो वहां ड्रामा करने की जरूरत ही नहीं। मगर ऐसे कैसे, जिम के हमने पैसे दिए हैं। (वह भी सालभर की मेंबरशिप), इस बार उन पैसों से एक मस्त साइकल ले लो। 2. दौड़ने/डेली जिम जाने वाला प्रण या जिम की मेंबरशिप लेने वाले हैं तो अभी मत लें। यह अच्छा समय नहीं है, होरोस्कोप से नहीं एक्स्पीरियंस से बता रहा हूं। मस्त ठंडा मौसम है, रजाई के अंदर जन्नत है तो कोई बाहर मरने क्यों जाएगा। हो सकता है प्रण लेने के बाद आप एक दो हफ्ते चले भी जाएं, पर यह महीने भर भी नहीं चलने वाला। इससे अच्छा है अभी आप जनवरी-फरवरी घर पर ही, बेड पर ही योग (शवासन, प्राणायाम, अनुलोम-विलोम इत्यादि) करने का प्रण लें और फिर मार्च से बाहर दौड़ने/भागने वाला प्रोग्राम बनाएं। इससे आप फ्रस्ट्रेट नहीं होंगे और कुछ हो भी जाएगा। अगर फिर भीआपने रेजॉलूशन ले ही लिया है तो फ्रस्ट्रेट न हों, साल में एक दो बार घर घूम आएं। चाहे भले ही आपका पेट आपसे दो कदम आगे चलकर गवाही दे रहा हो, ममी लोग हमेशा रटा-रटाया डॉयलोग ही देंगी 'बेटा, बहुत दुबले हो गए हो', और आप फील गुड कर सकते हैं। 3. अगर आप लंबा सोचते हैं, बहुत लंबा। लॉन्ग-लॉन्ग टर्म, नेताओं जैसे विज़न 2030, 2040 तक विकसित देश होने, नेट जीडीपी 10 ट्रिलियन करने, एनर्जी सफीसिएंट इत्यादि टाइप। तो आपको नमन है। याद रखिए पचास सालों में यह हो जाएग���, 100 सालों में दुनिया पलट जाएगी टाइप बकैती करने वाले महान विचारक और सुधारक बोल के अपने पॉइंट बनाकर, महान बनकर निकल लिए, इस टाइप के गोल्स में कोई खतरा भी नहीं है, हुआ तो आप महान। नहीं तो कौन आपकी पूंछ पकड़ लेगा। आप तो 'हुन आप्पा नी चलते हैंगे' कह के निकल लिए होंगे। 'डैडी फिंगर' के ज़िराफ के जैसे आप 'फार-फार वेरी फार, आई कैन सी ए डाइनोसोर', जैसे नहीं देख सकते। अगर आपकी आंखों का और रेजॉलूशन का विज़न 20-20 है, तो बस इतना ही बहुत है। 4. (अपने) बॉस और बीवी पर ध्यान केंद्रित करें, ये ऐसी चीजें जो आप बदल नहीं सकते, (कम से कम आसानी से तो नहीं) तो रोने गाने का फायदा नहीं। बस इतना करें कि इन्हें आपस में मिक्स न करें। मतलब बीवी का समय बॉस को और बॉस क��� समय बीवी को न दें। याद रखें, इस दुनिया, आपकी कंपनी के सिर्फ आप अकेले तारणहार नहीं हैं, तो जान देने की जरूरत नहीं है। आप अगर जान दे भी देंगे, तब भी आपके कॉफिन में प्लेस होने से पहले आपके केबिन में किसी और को रिप्लेस कर दिया जाएगा। तो अपने आपको को ज्यादा भाव देने की जरूरत नहीं। बस इतनी सी बात को हमेशा ज़ेहन में हमेशा रखें। समझो एक खुशहाल जीवन जीने की कृपा (कृपा भाभी/कृपाशंकर भैया) वहीं रुकी/रुके हैं। 5. अगर आप कुछ करने की सोच रहे हैं, जो भी सोच रहे हैं उसका ढिंढोरा पीट दें। ताकि अगर आप वह न पा सकें, तो दोस्त लोग आपकी बेइज्जती कर-कर के आपको याद दिलाते रहें। याद रखें, अगर आप दिल से कुछ चाहें तो भले ही पूरी कायनात आपको मिलाने की साजिश करे न करे, पर फेल होने पर आपके दोस्त, पड़ोसी आपकी इज्जत उतारने की साजिश जरूर करेंगे। और इस तरह से या तो आप मोटिवेट हो जाएंगे या फिर ऐसे लोगों से पीछा छुड़ा लेंगे। दोनों ही विन-विन टाइप केस हैं। बाकी के 5 पॉइंट अगले लेख में...
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रवि पारीक19 साल के विशाल ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सिर्फ कमरे को साफ-सुथरा रखने की आदत उसे लाखों-करोड़ के फ्लैट का मालिक बना देगाी। दरअसल विशाल पिछले कई सालों से PG में दो दोस्तों के साथ रहता था। वह काफी सफाई से रहता और रोज जल्दी उठकर पूजा करता। उसकी इस गंदी आदत से परेशान होकर रातभर PUBG खेलकर प्रात:काल 12 बजे उठने वाले दो रूममेट्स ने पीजी मालिक से शिकायत कर उसे बाहर करा दिया। इससे परेशान होकर विशाल ने कमरा किराए पर लेकर अकेले रहने का फैसला कर लिया। यही फैसला उसके लिए लकी साबित हुआ। नए कमरे पर भी उसने अपनी पीजी वाली आदतें नहीं छोड़ीं और रोज सफाई करने के बाद पूजा करता। दो-तीन दिन सोचकर परेशान हो गया। इससे पहले भी उसने ये कमरा कई लड़कों को किराए पर दिया था। वह हैरान था कि ��िस कमरे से मटन और चिकन के अलावा दूसरी खुश्बू नहीं आई हो, वहां से अगरबत्ती की खूश्बू कैसे आ रही है। जिस कमरे के बाहर हमेशा योयो हनी सिंह और रफ्तार सुनाई देता, उसके बाहर 'पवनसुत बिनती बारम्बार' सुनना मकान मालिक को झकझोर गया। जब बात हद से आगे बढ़ी तो एक दिन विशाल के कमरे पर गया। कमरा खुलते ही मकान मालिक ने होश फाख्ता हो गए। दीवारों पर जहां आलिया भट्ट और रणबीर कपूर की तस्वीरें होती थीं, वहां भगवान श्रीकृष्ण और मुरारी बापू की तस्वीरें लगी थीं। बर्तनों का सिंक एकदम साफ, बेड पर बेडशीट, कमरे में एक भी चींटी नहीं, जूते लाइन से लगे हुए और तो और उसने जब देखा कि कमोड यूज़ करने के बाद उसका ढक्कन भी नीचे किया हुआ है तो उससे रहा नहीं गया और उसने एक झटके में बगल में खड़े विशाल को गोद मे उठा लिया। हवाबाज़ी को मिली जानकारी के मुताबिक इसके बाद मकानमालिक घंटों विशाल के गले लगकर रोता रहा। उसके दो बच्चे थे। दोनों ही विदेश में सेटल थे। उसे भी अपने बड़े बेटे के पास हमेशा के लिए विदेश जाना था। ऐसे में जब उसने विशाल की ये साफ-सफाई देखी, तो उससे रहा नहीं गया। और उसने फौरन वकील को बुलाकर अपना मकान विशाल के नाम कर दिया। घटना की जानकारी मिलने के बाद इलाके के सभी पीजी लड़कों में भारी रोष है। उन्होंने कल शाम शहर के गांधी चौराहे पर विशाल का पुतला दहन किया। साथ ही कॉलेज प्रशासन से मांग की है कि विशाल ने अनुशासित जीवन जीकर जो अनुशासनहीनता दिखाई है इसके लिए उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
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इस साल का 4 से 12 जनवरी तक दिल्ली के प्रगति मैदान पर आयोजित किया गया। इसमें दुनियाभर के लेखकों की हजारों किताबें खरीदी और बेची गईं। रविवार को का आखिरी दिन था। यही सोचकर मैं भी शनिवार को वहां गया। गया तो था मैं एक रीडर बनकर लेकिन जब तक लौटा तो एक छोटा-मोटा लेखक मुझमें भी आ चुका था। कुल मिलाकर बुक फेयर मुझे कुछ ऐसा दिखा... - सबसे पहला तो आप वहां मेट्रो से ही जाएं. गलती से अगर अपने निजी वाहन से जा रहे हैं तो अगले बुक फेयर तक ही पहुंच पाएंगे। - हिंदी भाषी हैं तो अंग्रेजी हॉल में ना जाएं। अगर अंग्रेजी भाषी हैं तो भी इंग्लिश हॉल में ना जाएं। बहुत भीड़ होती है। किताबों की नहीं, लोगों की। - बुक फेयर में दिमाग सेट करके जाएं कि क्या खरीदना है वरना लौटते समय Astro की जगह Sextro और जियोग्राफी की जगह बायॉग्राफी की किताबें खरीद लाएंगे। - बुक फेयर आपको पता लगता है कि देश में इतने प्रकाशक हैं जितने कुल रीडर भी नहीं होंगे। अगर आप भी पब्लिशर बनना चाहते हैं तो कुछ ना करें। कोई भी नाम लें और आगे प्रकाशन या पब्लिकेशन लगा दें। जैसे- राव, उमराव, सदाशिव राव पब्लिकेशन। - अगर सोशल मीडिया के पोस्ट्स को कंपाइल करके किताब प्रकाशित करने वाला कोई लेखक मिल जाए तो उससे बात करें और उसके बारे में जानें। उससे समझें कि आखिर वह क्या चीज है जो उसे आगे किताब लिखने से रोक सकती है। - अगर कोई नया-नया यानी भ्रूण लेखक आया हुआ हो तो उसकी तरफ देखकर चाल में ना फंसें। अगर उसकी तरफ देख लें तो साथ में फोटो बिल्कुल ना खिंचवाएं। फोटो खिंचवाते समय उसके हाथों का ध्यान रखें। अगर नहीं रखेंगे तो हो सकता है कि फोटो खिंचने से पहले ही आपके हाथों में उसके साइन वाली बुक हो। सावधानी हटी, सौ-डेढ़ सौ की चपत लगी। - अगर आप वीकेंड में यहां जाने की सोच रहे हैं तो Book Fair आपके लिए Book Fear बन सकता है। - कोई जानकार मिले तो उसे ठीक वैसे ही इग्रोर करें जैसे वह आपको करेगा। - कितना ही थक जाएं, उल्टी करने का मन हो, सिर दर्द करे, हाथ-पैर टेढ़े हो जाएं लेकिन वहां अंदर चाय बेचने वालों से चाय ना खरीदें। - अगर नए-नए रीडर हैं तो किताबें खरीदकर उन पर डिस्काउंट ना करवाएं, डिस्काउंट देखकर किताबें खरीदें। - बाहर लोगों को देखकर कुछ खाने पीने का मन ना बनाएं। उनकी ओर देखें और फिर जो मुंह में पानी आए, उसी से काम चलाएं। - किसी प्रकाशन में कोई जानकार काम करता हो तो उसका पूरा लाभ उठाएं और अपने बाकी दोस्तों का भी फायदा कराएं। देखें: दिल्ली बुक फेयर में किताबों से ज्यादा बिके छोले भटूरे
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इस साल का 4 से 12 जनवरी तक दिल्ली के प्रगति मैदान पर आयोजित किया गया। इसमें दुनियाभर के लेखकों की हजारों किताबें खरीदी और बेची गईं। रविवार को का आखिरी दिन था। यही सोचकर मैं भी शनिवार को वहां गया। गया तो था मैं एक रीडर बनकर लेकिन जब तक लौटा तो एक छोटा-मोटा लेखक मुझमें भी आ चुका था। कुल मिलाकर बुक ���ेयर मुझे कुछ ऐसा दिखा... - सबसे पहला तो आप वहां मेट्रो से ही जाएं. गलती से अगर अपने निजी वाहन से जा रहे हैं तो अगले बुक फेयर तक ही पहुंच पाएंगे। - हिंदी भाषी हैं तो अंग्रेजी हॉल में ना जाएं। अगर अंग्रेजी भाषी हैं तो भी इंग्लिश हॉल में ना जाएं। बहुत भीड़ होती है। किताबों की नहीं, लोगों की। - बुक फेयर में दिमाग सेट करके जाएं कि क्या खरीदना है वरना लौटते समय Astro की जगह Sextro और जियोग्राफी की जगह बायॉग्राफी की किताबें खरीद लाएंगे। - बुक फेयर आपको पता लगता है कि देश में इतने प्रकाशक हैं जितने कुल रीडर भी नहीं होंगे। अगर आप भी पब्लिशर बनना चाहते हैं तो कुछ ना करें। कोई भी नाम लें और आगे प्रकाशन या पब्लिकेशन लगा दें। जैसे- राव, उमराव, सदाशिव राव पब्लिकेशन। - अगर सोशल मीडिया के पोस्ट्स को कंपाइल करके किताब प्रकाशित करने वाला कोई लेखक मिल जाए तो उससे बात करें और उसके बारे में जानें। उससे समझें कि आखिर वह क्या चीज है जो उसे आगे किताब लिखने से रोक सकती है। - अगर कोई नया-नया यानी भ्रूण लेखक आया हुआ हो तो उसकी तरफ देखकर चाल में ना फंसें। अगर उसकी तरफ देख लें तो साथ में फोटो बिल्कुल ना खिंचवाएं। फोटो खिंचवाते समय उसके हाथों का ध्यान रखें। अगर नहीं रखेंगे तो हो सकता है कि फोटो खिंचने से पहले ही आपके हाथों में उसके साइन वाली बुक हो। सावधानी हटी, सौ-डेढ़ सौ की चपत लगी। - अगर आप वीकेंड में यहां जाने की सोच रहे हैं तो Book Fair आपके लिए Book Fear बन सकता है। - कोई जानकार मिले तो उसे ठीक वैसे ही इग्रोर करें जैसे वह आपको करेगा। - कितना ही थक जाएं, उल्टी करने का मन हो, सिर दर्द करे, हाथ-पैर टेढ़े हो जाएं लेकिन वहां अंदर चाय बेचने वालों से चाय ना खरीदें। - अगर नए-नए रीडर हैं तो किताबें खरीदकर उन पर डिस्काउंट ना करवाएं, डिस्काउंट देखकर किताबें खरीदें। - बाहर लोगों को देखकर कुछ खाने पीने का मन ना बनाएं। उनकी ओर देखें और फिर जो मुंह में पानी आए, उसी से काम चलाएं। - किसी प्रकाशन में कोई जानकार काम करता हो तो उसका पूरा लाभ उठाएं और अपने बाकी दोस्तों का भी फायदा कराएं। देखें: दिल्ली बुक फेयर में किताबों से ज्यादा बिके छोले भटूरे
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ऋषि कटियार नए साल में आपने कई सारे रेजॉलूशन लिए होंगे और कुछ के लिए 'पहला दि�� था यार, कल से पक्का' भी शुरू हो चुका होगा। दिक्कत यह है कि सेल्फ, हेल्थ या वेल्थ इम्प्रूवमेंट वाले रेजॉलूशन सीधे बलिदान मांगते हैं। इसलिए एक-दो हफ्ते के बाद ही हम महान बनने की बजाय संसार की क्षणभंगुरता, नश्वरता और 'जीने के हैं चार दिन' आदि की फिलॉसफी अपनाकर इतिहास पुरुष बन किताबों में घुसने की बजाय रजाई में घुसना पसंद करते हैं। रेजॉलूशन कैसे लें, यह बहुत इम्पोर्टेन्ट है और यह मैं पहले बता चुका हूं। कुछ दिन से मोटिवेशनल मुहिम के तहत यूट्यूब पर पहले सुबह 3:30 बजे उठ सद्गुरु का लाइफ मैजिक पर विडियो देखा और सो गया। फिर 4 बजे उठकर क्या उखाड़ सकते हैं, इस पर किसी से कुछ सुना। फिर ऐसे ही बढ़ते-बढ़ते रोबिन शर्मा के 5 AM क्लब वाले विडियो तक आ गया। पर इस ठंड में जब रजाई के बाहर दुनिया हरजाई है और हर जगह दिखती सिर्फ रजाई है। यह सब बस का नहीं। पर उस विडियो में एक काम की बात नजर आई। 20-20-20 रूल, जिसके बारे में और भी कई लोगों ने बात की है। 20-20-20 रूल के मुताबिक पहले 20 मिनट आप एक्सरसाइज करें, अगले 20 मिनट अपने ऐनुअल और मंथली गोल्स का रिव्यू करें और अगले 20 मिनट कुछ लर्न करें, पढ़ें या मोटिवेशनल सुनें। अगर आप ये सब कर सकें तो इससे बढ़िया तो कुछ है ही नहीं। पर थिअरी के प्रैक्टिकल में मुश्किल है तो छोटे से शुरुआत करते हैं। खैर, 5 बजे उठने को तो नहीं कहूंगा। फिर भी जब भी आप जागते हों, उससे एक घंटा पहले जागने की कोशिश कीजिए। 10 की जगह 9 बजे या 9 की बजाय 8 बजे। मतलब एक घंटा पहले बस। जागने के बाद दिन की शुरुआत (आपके दिन की, पृथ्वी, सूरज वाला दिन जाए चूल्हे-भाड़ में) में अपने 60 मिनट को 20-20 के तीन भागों में बांट लीजिए (यहां पर मोटिवेशनल स्पीकर्स अक्सर शुरुआती नित्यकर्म वाले 15 मिनट काउंट नहीं करते, आप कर लेना और 20-20 वाले करम से पहले दो गिलास पानी या 1 सुट्टे के साथ या जैसे भी आप हल्के होते हों, हो जाएं। नहीं तो प्राणायाम करते वक्त नाक के दोनों छिद्र बंद करने के बाद भी हवा रास्ता ढूंढ लेगी।) पहली बात शुरू में 20-20-20 की बजाय 5-5-5 से फिर 10-10-10 से ग्रैजुएट करते हुए 20-20-20 तक आने का प्रयास करें, मतलब कि जनवरी में 15 मिनट से शुरू करके मार्च तक आप एक घंटा पहले जागने की आदत डाल लें (तब तक ठंड भी कम हो जाएगी) दूसरी, फिजिकल ए���्सरसाइज की बजाए शुरुआत रजाई में ही घुसे हुए (पर हल्के होने के बाद और मुंडी बाहर निकाल के) अनुलोम-विलोम प्राणायाम या मेडिटेशन से करें और एक बार जगने की आदत पड़ जाए तो आगे बात की जाए। तीसरी, अगले 5, 10 या 20 मिनट प्लान-रिव्यू करने से पहले सालभर का कुछ प्लान बना लें तो उसे रिव्यू करने में आसानी रहेगी तो जो भी करने में आपको मजा आता हो और उससे आप दो पै��े भी कमा सकते हों या कमाते हों, उसको इम्प्रूव करने और डबल करने का प्लान करें (सालभर में)। चौथी बात, किताबें नींद की सबसे अच्छी साथी हैं तो किताबें न हो पाएं तो यूट्यूब पर कोई एक मोटिवेशनल विडियो देखें या कोई डॉक्युमेंट्री देखें या कुछ इन्फॉर्मेटिव देखें (पर न्यूज़ ना देखें) और किसी एक दिशा में, एक चीज के बारे में ही देखें और मैक्सिमम 5, 10 या 20 मिनट ही देखें। अब जबकि आपने सुबह-सुबह 'सिर्फ अपने लिए' 15, 30 या 60 मिनट कमा लिए हैं और कुछ अचीव करने की फीलिंग पा ली है तो अब आप दिनभर फील गुड कर सकते हैं।
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ऋषि कटियार नया साल आने में कुछ ही दिन बाकी हैं। हर कोई नए साल को पिछले साल से बेहतर बनाने के बारे में सोच रहा है। इसकी शुरुआत होती है रेजॉलूशन लेने से, इससे पिछले लेख में मैंने आपको नए साल पर रेजॉलूशन लेने को लेकर 5 मजेदार और अनोखे तरीके बताए थे। इनमें रेजॉलूशन लेते वक्त किन-किन सावधानियों को बरतें, किस तरह का रेजॉलूशन लें और कौनसा रेजॉलूशन ना लें। इन सबके बारे में 5 टिप्स दी थीं। अब इस लेख में करते हैं आगे के तरीकों की बात, 6. दूसरों का उधार जो कुछ भी बैलेंस है, बाकी है, बर्तन-भांडे, सामान, प्यार, लड़ाई-झगड़ा, फीलिंग, जज्बात, जब्त न करें और नए साल से पहले लौटा दें। कुछ कैरी फॉरवर्ड ना करें, नए साल में नया होने के लिए पुराना त्यागना पड़ेगा (गीता में लिखा है)। आपको खाली होना पड़ेगा, दिल से, दिमाग से तभी उसमें कुछ नया भर सकते हैं। 2019 का कचरा ढोते जाओगे तो 2020 में खुशबू तो नहीं ही आएगी। किसी के होली दिवाली, ईद आदि में मिठाइयों, सेवइयों से भरे बर्तन जो आपने इसलिए नहीं लौटाए क्योंकि खाली बर्तन लौटाए नहीं जाते और बनाना आपको कुछ ढंग का आता नहीं, या आपको याद नहीं किसके घर से आया था तो जितने भी बर्तन है जिन पर आपको शक है कि वे आपके नहीं है। उन्होंने इकट्ठा करिए, फोटो लीजिए और सबको भेज दीजिए ताकि वो अपना देय क्लेम कर सकें। नए साल में ये याद रखें कि जिससे कोई ��ी चीज उधार ली है तो लौटाने की ज़िम्मेदारी आपकी बनती है, देने वाले की नहीं। इसे करने में आपको विल पावर की भी ज्यादा जरूरत नहीं है, कर डालिए। किसी के प्रेम की मन में बाती जलाए घूम रहे हैं। कह नहीं पाए, इससे पहले कोई आपके प्रेम की बत्ती बनाकर आपको लौटा दे। किसी से लड़ना है पर वीकेंड बहुत बिजी रहता है, पेंडिंग है तो मौका देख के बड़े दिन की छुट्टी में हिसाब बराबर कर लीजिए। कुछ भी करिए, बस इस साल का खाता और खता निपटाकर जाइए। 7. टीवी-न्यूज देखना बंद कर दीजिए: नए साल में बच्चों को कुछ भी एजुकेशनल जैसे लोक/राज्यसभा टीवी, हिंदी अंग्रेजी न्यूज़ देखने से बचाइए और उन्हें कार्टून देखने दीजिए और साथ में देखिए। न्यूज़ और संसद आदि देखकर आपके बच्चे के बिगड़ जाने के, पार्लियामेंट्री भाषा सीख जाने, हिंसक और बेवकूफ बन जाने के चांसेज बहुत ज्यादा हैं। उनका बचपन और खुद का बचपना बचाए रखने की ज़िम्मेदारी खुद की है। 8. फेसबुक और वॉट्सऐप ऐसी चरस है जिससे बचना नामुमकिन तो नहीं पर मुश्किल जरूर है। लगभग उतना ही जितना कठिन चंद्रकांता में महारानी कलावती का शिवदत्त के प्राण बचाने के लिए हाथ में जलता दिया रख के हज़ारों सीढ़ियों पर घिसटते हुए मंदिर पहुंचना था। इधर दिया बुझा और शिवदत्त का काम पैंतीस (और साथ में माचिस भी नहीं)। उससे लॉग आउट करने की बजाय आप अपनी किडनी देने को जल्दी राजी हो जाएंगे। आप दलील भी दे सकते हैं कि फेसबुक और वॉट्सऐप से लोगों से जुड़ने और सीखने को मिलता है। पर फेसबुक से उतना ही सीखा जाता है जितना कॉलेज में लड़के नए लैपटॉप पे C और C++ सीखते हैं। खैर जितने भो ऐसे ग्रुप हैं जहां से ज्ञान आता है, धर्म /देश/संस्कृति/सभ्यता जैसे शब्द इस्तेमाल होते हैं, उनसे तुरंत से पहले निकल लीजिए। परिवार/गोवा प्लान/ऑफिस टाइप ग्रुप जहां से भाग नहीं सकते, उन सब के नोटिफिकेशन म्यूट कर दीजिए और फिर हर हफ्ते बिना देखे उन पर आई हुई चरस डिलीट कर दीजिए। नए साल पर और हर त्योहार पर फॉर्वर्डेड फोटो चिपकाने से बचिए और बधाई देने के लिए नाम लिखकर बधाई दीजिए। लो स्पेस के जमाने में सबसे पहले बधाई पर गाली इसी पर पड़ती है। फेसबुक पर रिश्तेदार/स्कूल फ्रेंड/कलीग/बॉस (बॉस कभी फ्रेंड नहीं हो सकते, एक लड़का और लड़की सिर्फ अच्छे दोस्त हो सकते हैं, पर बॉस और सबऑर्डिनेट कभी नहीं), जो अब इंसान से ज्यादा हिंदू-मुस्लिम, भाजपाई-कांग्रेसी, या धर्म/राजनीति/इकॉनमिक्स के बहुत बड़े विद्वान हो गए हैं उनको अनफ्रेंड कर दीजिए और अगर किन्हीं कारणों से नहीं कर पा रहे तो फ्रेंड के बगल में एक अनफॉलो का बटन होता है। फेसबुक और वॉट्सऐप पर और लाइफ में ऐक्टिव बनें, रिऐक्टिव नहीं। बिना जाने कुछ भी शेयर ना करें। मठाधीश ना बनें। 9. खुद को स्वीकार कीजिए। आप जो भी हैं, जैसे भी हैं, मस्त हैं। जब तक आप को लगता है कि आप सही हैं तो आप सही हैं। आपको अपने काम को तेज आवाज़ में बोलने में और पब्लिक में करने से डर नहीं लगता, मतलब आप सही हैं। रंग-र��प, कद, जाति, परिवार, बच्चे जिन्हें आप बदल नहीं सकते, उन्हें स्वीकार करिए और उसे अपनी USP बनाइए। शिक्षा, नौकरी, ऐटिट्यूड, भविष्य जो भी आप बेहतर कर सकते हैं, उसके लिए प्रयास करिए। इस साल बदलो, आगे बढ़ो, सफल बनने का प्रयास करो पर सफलता की डेफिनेशन आप खुद तय करो। किसी और के हिसाब से सफल मत बनिए, अपने हिसाब से बनिए। जो भी आपको कहते हैं, 'रहना तू...है जैसा तू'। कभी बदलना नहीं, समझो आपको ज़िंदगी पर बेवकूफ बनाए रखने की साजिश कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि आप स्कूल/कॉलेज टाइम या प्यार में बावले जैसे ही ज़िंदगी भर बने रहें। सो डोंट बी सेम, बी बेटर! 10. यह सिर्फ रेजॉलूशन लेने के टिप्स भर हैं। रेजॉलूशन आपको खुद ही लेने हैं और सिर्फ अपनी जरुरत और हिसाब से लेने हैं। दूसरों को देखकर नाल ठुकाने के लिए पैर मत बढ़ाइए। ये बातें मैं दिसंबर में इसलिए बता रहा हूं कि अगले दो दिन आप रेजॉलूशन तय कीजिए। अपने रेजॉलूशन का 10 दिन का ट्रायल पैक लीजिए। अगर आप वह अगले 10 दिन लगातार नहीं कर पा रहे हैं, मज़ा नहीं आ रहा है तो समझ लीजिए वह आपके लिए ठीक नहीं है। तो उसे अगले साल भर का प्रण बनाने से अच्छा बदल लीजिए। पूरे साल की बजाय तो अगले सिर्फ 10 दिन फ्रस्ट्रेट हो और अगला साल मस्त बिताओ।
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वाशिंगटन, 21 नवंबर (भाषा) शोधकर्ताओं ने ब्रह्मांड में सबसे चमकीली विद्युत चुंबकीय घटना देखी है जिसे गामा किरणों का धमाका (जीआरबी) कहते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह रोशनी आंखों से दिखने वाली रोशनी से करीब एक हजार अरब गुना अधिक है। जर्नल ‘नेचर’ में प्रकाशित शोधपत्र में कहा गया कि इस तरह की रोशनी का पूर्वानुमान सैद्धांतिक अध्ययनों में व्यक्त किया गया था और माना जाता है कि इस तरह की रोशनी की उत्पत्ति तारे में विस्फोट या दो मरणासन्न तारों के मिलने से उत्पन्न होता है लेकिन अबतक इसे देखा नहीं गया था। अमेरिका स्थित जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों सहित शोधकर्ताओं ने इस विस्फोट को पहली बार 14 जनवरी को देखा और इसे जीआरबी 190114सी नाम दिया। यह खोज अंतरिक्ष के विभिन्न स्रोतों से हो रहे विकिरण का पता ��गाने की एकीकृत कोशिश के तहत हुई है। पूरी दुनिया में 20 से अधिक वेधशालाएं इस काम में लगी हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि यह विस्फोट पृथ्वी से करीब पांच अरब वर्ष दूर चमकीले आकाशगंगा के मध्य में सघन वातावरण में हुआ। जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में भौतिक शास्त्र के प्रोफेसर और शोधपत्र के सह लेखक क्रिस्सा कोवेलियोटौ ने कहा, ‘‘ करीब 45 साल से जीआरबी का अध्ययन करने के बाद हम उसकी उपस्थिति की पुष्टि कर सके हैं। हालांकि, इसमें मौजूद पदार्थों को लेकर अनभिज्ञ हैं, जिससे गामा किरणों के विस्फोट और उसके बाद नाटकीय तरीके से ऊर्जा में वृद्धि होती है।’’ शोधकर्ताओं ने कहा कि इस प्रकार के जीआरबी महज कुछ क्षण के लिए होते हैं और अत्यधिक ऊर्जा वाले किरणों का विस्फोट होता है। उन्होंने कहा, जीआरबी के विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम में निम्न ऊर्जा रेडियो तरंगे एक ओर होती हैं, बीच में दिखने वाली रोशनी होती है, उसके बाद गामा किरणें और उच्च ऊर्जा वाले हिस्से में एक्स रे होती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि विस्फोट के बाद एक्स रे का उत्सर्जन का पता लगाने के लिए दक्षिण अफ्रीका स्थित नए मीरकैट रेडियो दूरबीन का इस्तेमाल किया गया। मीरकैट नई रेडियो वेधशाला है जो बहुत संवेदनशील है।
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अर्चना चतुर्वेदी वैसे तो हर युग हर जमाने में चमचे हुए हैं पर वे जमाने और थे। तब कुछ खास लोगों के पास ही चमचे होते थे, जैसे- राजा महाराजा या किसी नेता या किसी रईस के पास अक्सर चमचे पाए जाते थे और जिसकी हैसियत अच्छी हो, वे ही एक से ज्यादा चमचे भी रखते थे। पर आजकल का युग तो चमचा युग है। आजकल चमचों की पैदावार इतनी बढ़ी है कि हर एक क्षेत्र में चमचों की भरमार है। एक व्यंग्यकार की रिसर्च के अनुसार 'सारे फरिश्ते भगवान के चमचे हैं और शैतानों ने चमचागिरी करने से मना कर दिया इसलिए उन्हें स्वर्ग से निकाल दिया गया।' ठीक उसी तर्ज पर जो लेखक अपने वरिष्ठ लेखक की या संपादक चमचागिरी नहीं करते। वे सिर्फ अपनी डायरी या कंप्यूटर में ही दर्ज होते हैं, क्योंकि बिन चमचागिरी छपने का चांस तो मिलेगा नहीं। जब से ये फेसबुक और वॉट्सऐप आए हैं, चमचागिरी चरम पर है। पहले ��फिस में प्रमोशन के लिए ��मचागिरी होती थी। आज किसी पत्रिका में छपने तक के लिए। लोग संपादक की घटिया से घटिया पोस्ट या कविता पर यूं कॉमेंट करते हैं मानो वही निराला या पंत है। महिलाएं भी इस कार्य में पीछे नहीं बल्कि कंधे से कंधा मिलाए अपनी बराबरी दर्ज करा रही हैं और 'क्या बढ़िया लिखा कविवर, दिलवर टाइप कॉमेंट भी कर रही हैं।' और कविवर गुब्बारे से फूल जाते हैं और उक्त महिला को हर जगह प्रमोट करने की जुगत लगा डालते हैं। यह बात और है कि दो-चार जगह छपने के बाद बाद में वह महिला ही कविवर को पहचानने से इनकार कर देती है। कई संपादक तो इस बात से नाराज हो जाते हैं कि आपने उस साक्षात्कार में हमारा नाम नहीं लिया। और तो और यह चमचागिरी का विषाणु साहित्यजगत में ऐसा फैला है कि किसी को नहीं बख्शता। छपने से लेकर पुरस्कार तक सब फिक्स है। जो लोग चमचागिरी में निपुण नहीं उन्हें कोई पुरस्कार कोई सम्मान तो क्या मंच तक नहीं मिलता भले ही वो शानदार लेखक हों। आज के जमाने में साहित्यजगत में कोई भी उठापटक या कोई भी चर्चा किसी पुस्तक की वजह से नहीं इन सो काल्ड चमचों की वजह से होती है। बड़े साहित्यकार नेता की तर्ज पर अपनी बात खुद नहीं कहते, क्यों? उनके चमचे हैं न बात पहुंचाने के लिए, और ये चमचे छपने के और कार्यक्रम में बुलाए जाने के लालच में इनसे बंधे रहते हैं। कभी-कभी मेहरबान होने पर चमचों को फ्री का खाना-पीना भी मिल जाता है। वैसे पीने का मतलब तो आप समझ ही गए होंगे। लेकिन चमचा बनना इतना आसान थोड़े ही है। एक उच्चकोटी के चमचे का निमार्ण होने में कभी-कभी कई साल तक लग जाते हैं। बाकी छोटे-मोटे चमचे तो बहुत मिलेंगे पर वफादार चमचा नहीं। वैसे कुछ लोगों को चमचे जल्दी-जल्दी बदलने की आदत भी होती है। पुराने चमचे को भुला, नए चमचे को दाना डालना इनका शौक होता है। ऐसे लोग वफादारी में नहीं बदलाव में विश्वास रखते हैं। भले ही चमचे इन्हें इस्तेमाल करके निकल लें। साहित्य में आजकल ऐसी बयार चली है कि आपमें चमचागिरी का गुण नहीं तो आप कितना भी अच्छा क्यों न लिखें, ये मठाधीश आपको उखाड़ने का हर संभव प्रयास कर डालेंगे। हर जगह आपकी बुराई करेंगे। आपके खिलाफ दूसरे संपादकों को पत्र तक लिख डालेंगे कि फलां लेखक को मत छापना टाइप। वैसे भी लिखने में तो इनका दिमाग चलता नहीं। एकता कपूर के नाटकों की वेंप यानी कमोलिका टाइप सिर्फ दूसरों का काम कैसे बिगाड़ें? यह सोचने से फुर्सत मिले तब तो कुछ लिखें। अरे ये तो इतने घाघ होते हैं कि चमचों की टीम बनाकर चलते हैं। सब कुछ आपस में ही बांटते रहते हैं फिर चाहे वो कोई अवॉर्ड हो या किसी प्रोग्राम में अतिथि बनना। जैसे करवा चौथ पर महिलाएं थाली फेरती हैं, उसी तर्ज पर थाली बार-बार घूमकर इनके पास आती रहती है। पर चमचों के मार्फत काम करवाते करवाने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि उनकी दुनिया छोटी होते होते सिर्फ चमचों तक सीमित हो गई है। जिस तरह नेता के चमचे आगे चलकर नेता बन जाते हैं या किसी और नेता के चमचे बन जाते हैं। उसी तरह ये चमचे भी एक दिन 'गुरु गुड़ रह गए और चेला चीनी हो गए' की तर्ज पर तरक्की की सीढ़ियां चढ़ जाएंगे और एक और साहित्यकार की नैया डुबोने का पुण्य प्राप्त करेंगे।
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