Tumgik
#दूसरी लहर
newswave-kota · 4 months
Text
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने लगाई जीत की हेट्रिक
Tumblr media
लोकसभा चुनाव-2024 : हाडौती संभाग में खिला कमल, कोटा-बूंदी व झालावाड-बारां दोनों सीटों पर भाजपा का वर्चस्व न्यूजवेव @कोटा  राजस्थान में कोटा-बूंदी संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने लगातार तीसरी जीत हासिल की। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी प्रहलाद गुंजल को 41,974 मतों से हराया। दो जिलों की आठ विधानसभा क्षेत्रों वाली इस सीट पर कुल 15 लाख 959 मतदाताओं में से बिरला को 7,50,496 मत ( 50.00 %) प्राप्त हुये जबकि गुंजल को 7,08,522 (47.20 %) मत प्राप्त हुये। कुल 10,261 ने नोटा पर वोट दिया। इसमें 14,87,901 ( 71.26 %) ने 26 अप्रैल को ईवीएम पर मतदान किया था जबकि 13058 डाक मतपत्र रहे। इस चुनाव में कुल 15 प्रत्याशी मैदान में रहे।
Tumblr media
कोटा-बूंदी संसदीय सीट की आठ में से पांच विधानसभा सीटों कोटा दक्षिण, रामगंजमंडी, सांगोद, लाडपुरा, बूंदी पर भाजपा प्रत्याशी बिरला को एवं तीन क्षेत्रों कोटा उत्तर, पीपल्दा व केशवराय पाटन में कांग्रेस प्रत्याशी गुंजल को बढत मिली है। जिला निर्वाचन अधिकारी डॉ.रविन्द्र गोस्वामी ने मंगलवार शाम विजयी प्रत्याशी ओम बिरला को जीत का निर्वाचन पत्र सौंपा। उनके साथ शिक्षा मंत्री मदन दिलावर भी मौजूद रहे। याद दिला दें कि वरिष्ठ भाजपा नेता ओम बिरला 2014 से पहले तीन बार राजस्थान विधानसभा में कोटा से विधायक रह चुके हैं। वर्ष 2019 में सांसद बिरला ने रिकॉर्ड 2.79 लाख वोटों से जीत दर्ज की थी। भाजपा ने मनाया विजयी जश्न
Tumblr media
मंगलवार शाम को परिणाम घोषित होने पर भाजपा प्रत्याशी ओम बिरला मतगणना स्थल जेडीबी कॉलेज पहुंचे, जहां भाजपा कार्यकर्ताओं ने उन्हें जीत की बधाई देते हुये विजयी जश्न मनाया। बिरला ने कहा कि यह जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की जीत है। जनता ने जो विश्वास जताया है, उस पर वे खरा उतरने का प्रयास करेंगे। रात्रि में शक्ति नगर स्थित उनके आवास पर कार्यकर्ताओं की टीमें विजयी जश्न मनाती रही। जिले में 6 जून तक धारा 144 लागू होने से ओम बिरला का विजय जुलूस बाद में निकाला जायेगा। दुष्यंत सिंह ने बनाया पांचवी जीत का कीर्तिमान
Tumblr media
हाडौती संभाग की झालावाड़-बारां सीट पर भाजपा प्रत्याशी दुष्यंत सिंह ने लगातार पांचवी बडी जीत दर्ज कर नया कीर्तिमान बनाया है। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी उर्मिला जैन भाया को 3 लाख 71 हजार मतों से हराया। इस सीट पर कुल 14 लाख 15 हजार 420 मतदाताओं ने भाग लिया। जिसमें से दुष्यंत सिंह को 8,08,692 मत एवं कांग्रेस प्रत्याशी को 4,66,988 मत मिले हैं। इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इस सीट से पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। दुष्यंत सिंह की इतने अधिक मतों से जीत भाजपा के लिये प्रदेश में दूसरी बडी जीत है। झालावाड में भाजपा कार्यालय पर कार्यकर्ताओं ने मिठाइयां बांटकर जीत का जश्न मनाया। याद दिला दें कि वसुंधरा राजे को इस चुनाव में स्टार प्रचारक की जिम्मेदारी नहीं मिलने पर वे पूरे समय इसी संसदीय क्षेत्र में सघन जनसपंर्क पर रही। हाडौती संभाग की दोनों सीटों पर भाजपा की जीत से पार्टी में खुशी की लहर दौड गई। Read the full article
0 notes
jkstvnews · 4 months
Text
कुरुक्षेत्र:- PM मोदी के विकसित भारत का दावा, बनाम राहुल गांधी के पांच न्याय’ का चुनाव
लोकसभा चुनावों के तीन चरण पूरे हो चुके हैं और अब चुनाव अपने चौथे चरण की ओर है।तीन चरणों के मतदान को लेकर चुनाव आयोग के शुरुआती आंकड़े बदलने के बावजूद पिछले चुनावों से मतदान का प्रतिशत कम रहा है। जमीन पर भी चुनाव बेहद ठंडा और अनपेक्षित सा दिख रहा है। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र को मुस्लिम लीग का बताने से लेकर आर्थिक सर्वेक्षण को लेकर महिलाओं के मंगलसूत्र, संपत्ति और पिछड़ों दलितों का आरक्षण छीनकर उसे मुसलमानों में बांट देने का आरोप लगाते हुए चुनाव को गरमाने की पूरी कोशिश की है और अब तो खुद प्रधानमंत्री मोदी ने तेलंगाना की चुनावी सभा में आरोप लगाया कि जो राहुल गांधी पिछले पांच साल से रोज अंबानी अदाणी के नाम की माला जपते थे, अब उनका नाम क्यों नहीं ले रहे हैं। क्या उनके साथ कोई डील हो गई है और क्या बोरों में भरकर टेंपों में लाद कर काला धन उनके पास आ गया है। 
इसी दिन प्रधानमंत्री ने कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा के भारत की विवधता को लेकर रंग और चेहरों पर दिए गए एक बयान को निशाना बनाते हुए भी कांग्रेस पर हमला करते हुए देश को रंग और नस्ल के आधार पर बांटने का आरोप लगाया है।अपने नेता के इस चुनावी राग में गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत सभी भाजपा नेताओं ने अपनी आवाज़ उठाकर इन मुद्दों को लगतार उठाया है।
कुरुक्षेत्र:- PM मोदी के विकसित भारत का दावा, बनाम राहुल गांधी के पांच न्याय’ का चुनावउधर कांग्रेस नेता राहुल गांधी भाजपा के जीतने पर संविधान बदलने ,लोकतंत्र खत्म करने और पिछड़ों दलितों वंचितों और गरीब सवर्णों के अधिकार छीनकर सब कुछ चंद उद्योगपति मित्रों को देने का आरोप भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार लगा रहे हैं। भले ही मोदी ने राहुल पर अंबानी-अदाणी का नाम लेने की बात कही हो, लेकिन राहुल न सिर्फ अदाणी का नाम ले रहे, बल्कि मोदी के आरोप का जवाब देते हुए भी अंबानी-अदाणी का नाम लेते हुए उनके यहां ईडी सीबीआई भेजने की बात कही है। राहुल के इस चुनावी नाद में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, महासचिव प्रियंका गांधी समेत सभी कांग्रेस नेता अपनी आवाज दे रहे हैं।
Tumblr media
सवाल है कि चुनाव किस ओर जा रहा है। क्या हर चुनाव में अपना विमर्श चलाकर माहौलबंदी करने वाले PM नरेंद्र मोदी इस चुनाव को भी हिंदुत्व और धार्मिक ध्रुवीकरण के अपने पुराने बहु परीक्षित सियासी एजेंडे को लेकर उसे केंद्रित करने में कामयाब हो रहे हैं या फिर चुनाव पूरी तरह से विकेंद्रित होकर स्थानीय समीकरणों, मुद्दों और राहुल गांधी द्वारा उठाए जा रहे जातीय जनगणना, पांच न्याय जैसे वादों
चुनाव प्रचार प्रसार रैलियों और रोड शो में सारे दल एक से बढ़कर एक दिखाई दे रहे है , लेकिन दूसरी तरफ पिछले दो चरणों में मतदाता उदासीन दिख रहे है । जमीन पर भी चुनावों में इस बार वैसी लहर नजर नहीं आ रही है जो 2014 और 2019 में साफ दिखाई देती थी और जिस पर सवार होकर BJP व नरेंद्र मोदी ने दो बार सरकार बनाई है । जहां पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में बदलाव, राष्ट्रीय सुरक्षा, हिंदुत्व की चाशनी में राष्ट्रवाद की घुट्टी और हिंदू मुस्लिम ध्रुवण जैसे राष्ट्रीय विमर्श और केंद्रीय मुद्दों पर जोर रहा। उन दोनों चुनावों में मतदाताओं ने न जाति देखी न दल सिर्फ देखा तो नरेंद्र मोदी का चेहरा और भरोसा किया तो उनके वादों पर, लेकिन इस बार का चुनाव किसी एक या दो राष्ट्रीय मुद्दों पर न होकर पूरी तरह फ़ैल गया है। हर राज्य हर लोकसभा क्षेत्र में अलग अलग मुद्दे अलग अलग समीकरण और परिस्थितियों का पूरा जोर है। कहीं सांसदों के खिलाफ गुस्सा है तो कहीं जातीय समीकरण भारी हैं।
यह भी पड़े :- शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा | इनकी सही जगह भारत नहीं, इटली है
यह भी पड़े :- ईवीएम: सुरक्षित, विश्वसनीय और छेड़छाड़ बाधक, चुनाव आयोग का सुप्रीम कोर्ट में स्‍पष्‍ट जवाब
0 notes
dainiksamachar · 6 months
Text
महाराष्ट्र की किन सीटों पर बीजेपी, शिवसेना, एनसीपी में खींचतान? अमित शाह ही निकालेंगे सलूशन
मुंबई: बीजेपी और एकनाथ शिंदे शिवसेना के बीच ठाणे, पालघर, रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग, नासिक, ���ंभाजीनगर और धाराशिव सहित छह लोकसभा सीटों को लेकर गतिरोध जारी है। समस्या को सुलझाने के लिए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के बीच अब तक तीन दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई सहमति नहीं बन पाई है। दोनों ही दल इन सीटों पर जीत की संभावना का दावा करते हुए अपने रुख पर अडिग हैं। दोनों दलों के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि सीएम शिंदे और डिप्टी सीएम फडणवीस ने संकेत दिया है कि अब इसका समाधान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद ही निकल पाएगा।छह सीटें कौन सी?इन छह सीटों में से जून 2022 में विभाजन के बाद ठाणे पर शिवसेना यूबीटी का, पालघर पर शिवसेना (एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में) का, रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग पर शिवसेना यूबीटी का, नासिक पर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना का, हाल तक उस्मानाबाद कहे जाने वाले धाराशिव पर शिवसेना यूबीटी और संभाजीनगर पर एआईएमआईएम का कब्जा है।ठाणे सीट छोड़ने को तैयार नहीं शिंदेबीजेपी ने ठाणे, पालघर, रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग, संभाजीनगर और नासिक पर दावा किया है, जबकि शिंदे गुट भी इन सीटों पर अपना दावा ठोक रहा है। दोनों ही दल मोदी लहर और मोदी की गारंटी पर सवार होकर अपनी जीत की संभावनाओं का दावा करते हैं। सीएम शिंदे प्रतिष्ठा का सवाल मानकर ठाणे सीट छोड़ने को तैयार नहीं हैं। ठाणे सीएम शिंदे का गृह क्षेत्र है। दूसरी ओर बीजेपी का कहना है कि शिवसेना में विभाजन के बाद शिंदे गुट के पास शिवसेना यूबीटी के वर्तमान सांसद राजन विचारे को टक्कर देने के लिए कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं है।रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग को लेकर शिंदे पर भारी दबावउद्योग मंत्री उदय सामंत और उनके भाई किरण सामंत का रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग सीट बीजेपी के लिए न छोड़ने को लेकर सीएम शिंदे पर भारी दबाव है। उनका कहना है कि इस सीट पर अपनी पार्टी का उम्मीदवार खड़ा करना चाहिए। लेकिन बीजेपी के पूर्व केंद्रीय मंत्री नारायण राणे खुद इस सीट से उम्मीदवार बनने को इच्छुक हैं। उन्हें उम्मीद है कि वह यह सीट शिवसेना यूबीटी से छीन सकते हैं।पालघर-औरंगाबाद में भी यही हाल पालघर में भी बीजेपी अपनी बढ़ती उपस्थिति के साथ-साथ आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों के काम के कारण जीतने को लेकर आश्वस्त है। बीजेपी को पालघर में हितेंद्र ठाकुर के नेतृत्व वाली बहुजन विकास अघाड़ी से समर्थन की उम्मीद है। इसी तरह हाल तक औरंगाबाद कहे जाने वाले संभाजीनगर में शिंदे गुट ने पार्टी के मंत्री संदीपन भामरे या मराठा आरक्षण आंदोलन के कार्यकर्ता विनोद पाटिल को उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रहा है। बीजेपी को जीत का भरोसादूसरी ओर बीजेपी भी इस सीट पर अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। पार्टी का मानना है कि वह विभाजित विपक्ष और शिवसेना यूबीटी की गुटबाजी का फायदा उठा सकती है। केंद्रीय मंत्री भागवत कराड संभाजीनगर में भाजपा के संभावित उम्मीदवार हैं। शिवसेना यूबीटी ने पूर्व सांसद चंद्रकांत खैरे को अपना उम्मीदवार बनाने की घोषणा की है।एनसीपी के नासिक पर दावे से टेंशन और बढ़ीइसके अलावा अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के नासिक पर दावे ने सीट-बंटवारे की प्रक्रिया को और अधिक जटिल बना दिया है। एनसीपी मंत्री और समता परिषद के संस्थापक छगन भुजबल ने दावा किया है कि उनकी उम्मीदवारी का प्रस्ताव किसी और ने नहीं, बल्कि बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने किया है। मौजूदा सांसद हेमंत गोडसे ने सीट-बंटवारे की प्रतीक्षा किए बिना अपना अभियान शुरू कर दिया है, जबकि भुजबल को अपनी पार्टी से टिकट मिलने का भरोसा है। भुजबल ने साफ कर दिया है कि वह नासिक सीट पर बीजेपी के कमल पर नहीं, बल्कि अपनी पार्टी के घड़ी चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ेंगे। लेकिन बीजेपी उनका समर्थन नहीं कर रही।धाराशिव सीट का क्या पेच?जहां तक धाराशिव सीट का सवाल है, शिवसेना यूबीटी ने पहले ही मौजूदा सांसद ओमराजे निंबालकर को अपना उम्मीदवार बनाया है। उन्होंने चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया है। यहां से बीजेपी की ओर से पार्टी विधायक और पूर्व मंत्री राणा पाटिल के मैदान में उतरने की संभावना है। जबकि शिंदे गुट को एक उपयुक्त उम्मीदवार ढूंढना मुश्किल हो रहा है, जो ओम राजे निंबालकर को टक्कर दे सके। अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा को धाराशिव सीट मिलने की उम्मीद है। इसके लिए पार्टी ने पहले ही तीन नामों को शॉर्टलिस्ट कर लिया है। इनमें पार्टी विधायक सतीश चव्हाण और विक्रम काले व जिला पदाधिकारी सुरेश बिराजदार शामिल हैं। http://dlvr.it/T4w80T
0 notes
sharpbharat · 6 months
Text
jharkhand politics- केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के लिए खूंटी की डगर आसान नहीं, 2019 के चुनाव में महज 1445 मतों से मिली थी जीत, 6 विधानसभा क्षेत्रों में से 4 इंडी गठबंधन के कब्जे में मात्र 2 पर भाजपा का कब्जा
संतोष कुमार की रिपोर्टसरायकेला: लोकसभा चुनाव 2024 में झारखंड के कई नेताओं का भविष्य दांव पर रहेगा. मगर राज्य का सबसे ज्यादा हॉट सीट खूंटी रहेगा. चुंकि यहां से केंद्रीय मंत्री और झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा भाजपा के टिकट से दूसरी बार चुनावी मैदान में हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड मोदी लहर में जहां भाजपा के उम्मीदवार लाखों के अंतर से अपने विरोधियों को पछाड़कर संसद पहुंचे…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
prakhar-pravakta · 11 months
Text
कुम्भकरण, मेघनाद और अहिरावण का किया वध
सतना श्री बिहारी रामलीला समाज द्वारा 127 वें वर्ष की रामलीला सुभाष पार्क मैदान में कुम्भकरण, मेघनाद और अहिरावण वध का मंचन किया गया। श्री बिहारी रामलीला समाज के निर्देशन में वीर रस पूर्ण चौपाइयों ने कलाकारों के अभिनय को और निखार दिया।कुम्भकरण समझाता है पर रावण नहीं मानतालक्ष्मण की मूर्छा टूटने के बाद वानर सेना में खुशी की लहर है तो दूसरी तरफ लंका में रावण महाकाय कुम्भकरण को श्रीराम से युद्ध करने…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
prabudhajanata · 1 year
Text
गुजरात में सूरत की निचली अदालत ने राहुल गांधी को, चार साल पुराने एक मामले में आपराधिक मानहानि के लिए दो साल की सजा सुना दी। इसे संयोग मानने के लिए राजनीतिक रूप से बहुत भोला होना जरूरी है कि उन्हें जिला अदालत ने, आपराधिक मानहानि के अपराध के लिए दी जाने वाली अधिकतम सजा सुनाई है और यह ठीक उतनी ही सजा है, जितनी किसी निर्वाचित सांसद-विधायक को ''अयोग्य'' करार देकर, उसकी सदस्यता खत्म करने के लिए न्यूनतम आवश्यक सजा है! खैर! अब यहां से आगे घटनाक्रम ठीक-ठीक क्या रूप लेगा? राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता ताबड़तोड़ खत्म कर दिए जाने के बाद, क्या चुनाव आयोग उनकी वायनाड की लोकसभाई सीट खाली घोषित कर, उसके लिए चुनाव कराने की प्रक्रिया शुरू कर देगा? क्या उच्चतर अपीलीय न्यायालयों द्वारा राहुल गांधी की सजा को भी, खासतौर पर इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए रोक दिया जाएगा कि यह भारत में आपराधिक मानहानि कानून के करीब पौने दो सौ साल के इतिहास में, किसी को इस कानून के अंतर्गत सजा दिए जाने का पहला ही मामला है, या सदस्यता तत्काल खत्म करने के बाद, राहुल गांधी को आठ साल तक चुनाव लड़ने से भी रोक दिया जाएगा और ऐसा हुआ, तो इसके नतीजे क्या होंगे, इस सब के स्पष्ट होने के लिए अभी इंतजार करना पड़ेगा। लेकिन, इस पूरे प्रकरण का एक नतीजा तत्काल साफ-साफ दिखाई दे रहा है। कर्नाटक में एक चुनावी सभा में दिए गए भाषण के एक अंश के लिए, राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाए जाने को, उन्हें संसद से ही दूर करने की कोशिश के रूप में लेकर, इस फैसले का खुलकर सबसे पहले विरोध करने वालों में, एक आवाज आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो, अरविंद केजरीवाल की थी। और समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने भी कम-से-कम इस मामले में विपक्ष के साथ आवाज मिलाने में कमोबेश ऐसी ही तत्परता दिखाई है। लेकिन, वह तो शुरूआत थी। इस सत्ता-प्रायोजित तानाशाहीपूर्ण मनमानी के खिलाफ देश भर में उठी नाराजगी की लहर के दबाव मेें भारत राष्ट्र ��मिति के शीर्ष नेता केसीआर ही नहीं, चुनावों के ताजा चक्र के बाद से कांग्रेस से बढ़कर राहुल गांधी के खिलाफ खासतौर पर हमलावर ममता बैनर्जी और काफी किंतु-परंतु के साथ ही सही, बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी, विरोध की आवाज उठाई है। यहां तक कि सप्ताहांत के बाद, सोमवार को संसद बैठने पर विपक्षी पार्टियों के सांसदों नेे काले कपड़ों के साथ जो विरोध प्रदर्शन निकाला, उसमें बजट सत्र का उत्तरार्द्घ शुरू होने के बाद, पहली बार तृणमूल कांग्रेस और बीआरएस के सांसद भी शामिल हुए। जाहिर है कि संसद में और संसद के बाहर भी, अडानी प्रकरण समेत मौजूदा निजाम के विरोध के मुद्दों पर अक्सर साथ दिखाई देने वाली चौदह-पंद्रह विपक्षी पार्टियां तो इस ''सजा'' को, विपक्ष की आवाज दबाने के लिए, मोदी निजाम के एक और हमले की ही तरह देखती ही हैं। बहरहाल, उनके अलावा ममता बैनर्जी तथा केसीआर जैसे नेताओं का इस मुद्दे पर खुलकर विरोध की आवाज उठाना, इसलिए खास महत्व रखता है कि पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में इसी फरवरी में हुए विधानसभाई चुनाव के नतीजों के बाद गुजरे हफ्तों में, इन पार्टियों के ही कदमों से और उससे बढ़कर उनके बयानों से, 2024 के आम चुनाव के लिए विपक्ष की एकजुटता के नामुमकिन होने के दावों को काफी बढ़ावा मिल रहा था। कांग्रेस तो खैर, आर-पार की लड़ाई का बिगुल फूंकने के मूड में नजर आ ही रही है। जाहिर है कि यह ताजा घटना विकास, इसकी ओर इशारा करता है कि अगले आम चुनाव में विपक्ष की एकजुटता-विभाजन का मामला, जोड़-घटाव का सरल प्रश्न नहीं, रासायनिक क्रिया का कहीं जटिल मामला होने जा रहा है। ममता बैनर्जी का ही नहीं, तेलंगाना के मुख्यमंत्री तथा बीआरएस सुप्रीमो चंद्रशेखर राव और ओडिशा के मुख्यमंत्री तथा बीजद सुप्रीमो नवीन पटनायक का भी आम तौर पर वर्तमान निजाम के खिलाफ विपक्ष के एकजुट कदमों से अलग-अलग हद तक दूसरी बनाए रखना, विपक्षी एकता के सवाल की उस जटिलता में ही इजाफा करता है। फिर भी इस प्रकरण से एक बात एकदम साफ है, जनतंत्र और विपक्ष मात्र के साथ मोदी राज का सलूक, अपने तमाम राजनीतिक-विचारधारात्मक मतभेदों और हितों के टकरावों के बावजूद, विपक्ष को ज्यादा-से-ज्यादा एक स्वर में बोलने की ओर ले जा रहा है। इसी का एक और साक्ष्य है 14 विपक्षी पार्टियों का सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिका दायर कर, केंद्र सरकार द्वारा सीबीआई, ईडी आदि केंद्रीय जांच एजेंसियों का विपक्ष को कुचलने के लिए दुरुपयोग का आरोप लगाना। इस मामले में आम आदमी पार्टी और बीआरएस जैसी पार्टियां भी, कांग्रेस के साथ एक मंच पर खड़ी देखी जा सकती हैं। ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री, मनीष सिसोदिया की दो अलग-अलग मामलों में सीबीआई तथा ईडी द्वारा गिरफ्तारी और बीआरएस विधान परिषद सदस्य
व चंद्रशेखर राव की पुत्री, सुश्री कविता से ईडी की लगातार जारी पूछताछ ने, इस मुद्दे पर विपक्ष की एकजुटता के दायरे को बढ़ाने का काम किया है। लेकिन, 2024 के आम चुनाव के संदर्भ में विपक्षी एकता की चर्चा में अक्सर, खुद को संघ-भाजपा राज के विरोध में बताने वाली पार्टियों के कई मुद्दों पर अलग-अलग बोलने तथा अलग-अलग चुनाव लड़ने को तो दर्ज किया जाता है, लेकिन विपक्षी स्वरों की बढ़ती एकता की ओर से आंखें ही मूंद ली जाती हैं। बहरहाल, विपक्षी एकता की यह समझ अधूरी है और इसलिए भ्रामक भी। यह समझ विपक्षी एकता को, सत्ताधारी गठजोड़ से बाहर की सभी राजनीतिक पार्टियों के पूरी तरह से एक होकर, सत्ताधारी गठजोड़ के हरेक उम्मीदवार के खिलाफ विपक्ष का एक ही उम्मीदवार उतारने की हद तक एकता में घटा देती है। जाहिर है कि भारत की वास्तविक राजनीतिक परिस्थितियों में, जिसमें क्षेत्रीय राजनीतिक विविधताएं बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, यह एक असंभव-सी मांग है। और इसी मांग के पूरा न होने के आधार पर विपक्षी एकता होने, न होने को लेकर नकारात्मक फैसले सुनाना, सत्ताधारी गठबंधन की तथाकथित अजेयता के पक्ष में हवा बनाने में मदद तो कर सकता है, लेकिन भारतीय राजनीति की वास्तविक दशा-दिशा को समझने के लिए उससे कोई मदद नहीं मिल सकती है। जाहिर है कि स्वतंत्र भारत की राजनीति का वास्तविक अनुभव, विपक्षी एकता की ऐसी परिभाषा से मेल नहीं खाता है। स्वतंत्रता के बाद के पहले बीस साल में, कांग्रेस की सत्ता पर लगभग इजारेदारी के अनेक राज्यों के टूटने की जब 1967 में शुरूआत हुई थी, कई राज्यों में गठबंधनों ने तथा कुछ राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों ने सत्ता संभाली थी। यह प्रक्रिया, इमरजेंसी के बाद, 1977 के आरंभ में हुए आम चुनाव में नई ऊंचाई पर पहुंची, जब पहली बार केंद्र में सत्ता से कांग्रेस पार्टी की विदाई हुई। वास्तव में इमरजेंसी का उदाहरण ही, भारत में संभव तथा इसलिए भारत के लिए वास्तविक, विपक्षी एकता की संकल्पना का ज्यादा उपयुक्त उदाहरण है। इमरजेंसी के अनुभव के बाद, चंद अपवादों को छोड़कर, लगभग सभी गैर-कांग्रेसी पार्टियां, इमरजेंसी निजाम और उसके लिए जिम्मेदार कांग्रेस का विरोध करने पर एकमत थीं। लेकिन, यह एकता किसी भी प्रकार से, एक के मुकाबले एक उम्मीदवार की, मुकम्मल चुनावी एकता नहीं थी। इसके बावजूद, इस चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को अभूतपूर्व हार का सामना करना पड़ा था। आगे चलकर, कांग्रेस के शासन के लगभग दो कार्यकालों के बाद, यही 1988 में, बोफोर्स प्रकरण पर केंद्रित भ्रष्टाचार के आरोपों की पृष्ठभूमि में हुए आम चुनाव में भी, कांग्रेस की हार के रूप में दोहराया गया था। और फिर, 2004 में बेशक काफी भिन्न संदर्भ में, सत्ताधारी भाजपाई गठजोड़ की हार के रूप में। साफ है कि विपक्षी एकता या एकजुटता और विपक्ष का एक के मुकाबले एक उम्मीदवार का मुकाबला सुनिश्चित करने की हद तक एकजुट होना, काफी हद तक अलग-अलग चीजें हैं। वैसे भी एक के मुकाबले एक उम्मीदवार की हद तक विपक्षी एकता, एक ऐसे सत्ताधारी गठजोड़ को हराने की आवश्यक पूर्व-शर्त तो हर्गिज नहीं है, जिसको ऐतिहासिक रूप से अब तक वास्तव में 40 फीसद से ज्यादा वोट नहीं मिला है। फिर भी, दो चीजें हैं, जो सत्ताधारी गठजोड़ को चुनावी मुकाबले में हराने के लिए जरूरी हैं। पहली, एक वृहत्तर राजनीतिक मुद्दा, को सिर्फ विपक्षी पार्टियों को ही नहीं, आम जनता के उल्लेखनीय रूप से बड़े हिस्सों को भी जोड़ सकता हो। 1977 में इमरजेंसी, तो 1988 में बोफोर्स व आम तौर पर भ्रष्टाचार, ऐसे ही मुद्दे थे। पुन: 2004 में शासन का बढ़ता सांप्रदायीकरण, खासतौर पर 2002 के गुजरात के खून-खराबे की पृष्ठभूमि में ऐसा ही मुद्दा था, जिसने भाजपाई गठजोड़ को, केंद्र में सत्ता से बाहर किया था। 2024 के चुनाव में मोदी राज की बढ़ती अघोषित तानाशाही और जनविरोधी कार्पोरेटपरस्ती, बखूबी ऐसा ही निर्णायक मुद्दा बन सकती है। राहुल गांधी की सदस्यता खत्म कराने के जरिए मौजूदा निजाम ने जाहिर है कि इस प्रक्रिया को और गति दे दी है। लेकिन, इसका अर्थ यह हर्गिज नहीं है कि विपक्षी कतारों के चुनाव के पहले और चुनाव के लिए भी, एकजुट होने की कोई भी जरूरत या सार्थकता ही नहीं है। 1977, 1988 और 2004 -- तीनों चुनावों का अनुभव बताता है कि विपक्ष की मुकम्मल एकता भले संभव न हो और देश के एक अच्छे-खासे हिस्से में यानी कई राज्यों में केंद्र की सत्ताधारी पार्टी का असली मुकाबला, राज्य के स्तर पर मजबूत क्षेत्रीय पार्टियों से या उनके नेतृत्व वाले राज्यस्तरीय गठबंधनों/ मोर्चों से ही होने जा रहा हो, फिर भी विपक्ष की राजनीतिक निशाने की एकता के साथ ही साथ, चुनाव से पहले और चुनाव में भी, उसके एक हद तक एकजुट होने की भी जरूरत होती है, ताकि जनता के बीच
आम तौर पर इसका भरोसा पैदा हो सके कि सत्ताधारियों को, हराने में समर्थ ताकतें सचमुच मौजूद हैं, कि उन्हें सचमुच हराया जा सकता है। मोदी राज के दुर्भाग्य से, उसकी तमाम तिकड़मों और हथकंडों के बावजूद, हालात उसे हराने की दोनों शर्तें पूरी होने की ओर ही बढ़तेे नजर आते हैं। राहुल गांधी के खिलाफ नवीनतम कानूनी प्रहार ने इस प्रक्रिया को और भी तेज कर दिया है।
0 notes
nationalnewsindia · 2 years
Text
0 notes
cryptoguys657 · 2 years
Text
सर्दी के मौसम में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर से इनकार नहीं किया जा सकता : पॉल
देश में पिछले तीन सप्ताह में कोरोना वायरस संक्रमण के नए मामलों और इससे होने वाली मौतों में कमी आई है और अधिकतर राज्यों में संक्रमण का प्रसार स्थिर हुआ है। नीति आयोग के सदस्य वी के पॉल ने रविवार को यह… #सरद #क #मसम #म #करन #वयरस #सकरमण #क #दसर #लहर #स #इनकर #नह #कय #ज #सकत #पल
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
gamekai · 2 years
Text
सर्दी के मौसम में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर से इनकार नहीं किया जा सकता : पॉल
देश में पिछले तीन सप्ताह में कोरोना वायरस संक्रमण के नए मामलों और इससे होने वाली मौतों में कमी आई है और अधिकतर राज्यों में संक्रमण का प्रसार स्थिर हुआ है। नीति आयोग के सदस्य वी के पॉल ने रविवार को यह… “title_words_as_hashtags
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
cryptoking009 · 2 years
Text
सर्दी के मौसम में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर से इनकार नहीं किया जा सकता : पॉल
देश में पिछले तीन सप्ताह में कोरोना वायरस संक्रमण के नए मामलों और इससे होने वाली मौतों में कमी आई है और अधिकतर राज्यों में संक्रमण का प्रसार स्थिर हुआ है। नीति आयोग के सदस्य वी के पॉल ने रविवार को यह… #सरद #क #मसम #म #करन #वयरस #सकरमण #क #दसर #लहर #स #इनकर #नह #कय #ज #सकत #पल
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
cryptosecrets · 2 years
Text
सर्दी के मौसम में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर से इनकार नहीं किया जा सकता : पॉल
देश में पिछले तीन सप्ताह में कोरोना वायरस संक्रमण के नए मामलों और इससे होने वाली मौतों में कमी आई है और अधिकतर राज्यों में संक्रमण का प्रसार स्थिर हुआ है। नीति आयोग के सदस्य वी के पॉल ने रविवार को यह… #सरद #क #मसम #म #करन #वयरस #सकरमण #क #दसर #लहर #स #इनकर #नह #कय #ज #सकत #पल
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
marketingstrategy1 · 2 years
Text
पीडब्ल्यूडी विभाग :पहले से कार्ययोजना न बनने से बजट का नहीं हो पा रहा इस्तेमाल, सरेंडर करने पड़े 6772 करोड़ - Pwd Did Not Have The Work Plan, So It Could Not Use The Whole Budget.
पीडब्ल्यूडी विभाग :पहले से कार्ययोजना न बनने से बजट का नहीं हो पा रहा इस्तेमाल, सरेंडर करने पड़े 6772 करोड़ – Pwd Did Not Have The Work Plan, So It Could Not Use The Whole Budget.
लोकनिर्माण विभाग के मंत्री जितिन प्रसाद। – फोटो : amar ujala ख़बर सुनें ख़बर सुनें पीडब्ल्यूडी में पहले से कार्ययोजना न बनने से पूरे बजट का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। वित्त वर्ष 2021-22 में भी 6772 करोड़ रुपये सरेंडर करने पड़े थे। हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि कोविड की दूसरी लहर के कारण पिछले वित्त वर्ष में पूरे बजट का इस्तेमाल नहीं हो पाया। लेकिन, इस साल तो वैसी कोई लहर नहीं, फिर भी नए…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
ashokgehlotofficial · 2 years
Text
राजस्थान में भारत जोड़ो यात्रा 21 दिसंबर की सुबह पूरी हो गई पर यहां उमड़ी भारी भीड़ से भाजपा एवं मोदी सरकार इतनी घबरा गई है कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री 20 दिसंबर को श्री राहुल गांधी को राजस्थान में कोविड प्रोटोकॉल की पालना करने हेतु पत्र लिख रहे हैं।
यह स्पष्ट दिखाता है कि भाजपा का उद्देश्य बढ़ते जनसमर्थन से घबराकर भारत जोड़ो यात्रा को डिस्टर्ब करने का है।
दो दिन पहले प्रधानमंत्री जी ने त्रिपुरा में रैली की थी जहां किसी भी कोविड प्रोटोकॉल की पालना नहीं हुई। कोविड की दूसरी लहर में पीएम ने बंगाल में बड़ी रैलियां की थीं‌। अगर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री का उद्देश्य राजनीतिक ना होकर उनकी चिंता जायज है तो उन्हें सबसे पहला पत्र प्रधानमंत्री को लिखना चाहिए था।
0 notes
dainiksamachar · 8 months
Text
चुनाव से पहले कोई लोक लुभावन घोषणा नहीं, इतना कॉन्फिडेंस कहां से लाए पीएम मोदी?
नई दिल्ली: कल के बजट में एक बाद कॉमन थी। बजट सत्र से पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार ही पूर्ण बजट पेश करेगी। दूसरी तरफ बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जोर देकर कहा कि जब जुलाई हमारी सरकार पूर्ण बजट पेश करेगी तो विकासित भारत का विस्तृत रोडमैप पेश किया जाएगा। यही नहीं, अंतरिम बजट में मोदी सरकार ने कोई लोकलुभावन घोषणा भी नहीं की। तो बड़ा सवाल है कि आखिर केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), जिसे कुछ ही दिनों में आम चुनाव में जाना है, इतना भरोसे में कैसे है? दरअसल, इस भरोसा के पीछे तमाम वजहें हैं लेकिन एक जो सबसे अहम है वो है बिखरा विपक्ष। इसके अलावा सरकार के तमाम वो सुधार जिससे उसे भरोसा है कि देश की जनता लगातार तीसरी बार उसे ही चुनेगी। मोदी के कॉन्फिडेंस का राज क्या? पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी दोनों ही 2024 के चुनाव के लिए मजबूत दावे कर रहे हैं। इसके पीछे जो सबसे कारण है वो है राम मंदिर का निर्माण। भगवा दल का सबसे अहम चुनावी मुद्दा 22 जनवरी को अयोध्या में पूरा हो चुका है। खुद पीएम मोदी मुख्य यजमान बनकर राम मंदिर में बाल राम की प्राण प्रतिष्ठा कर चुके हैं। राम के लहर पर बीजेपी उत्तर भारत में विपक्ष पर बड़ी बढ़त की तैयारी में है। पार्टी इसके लिए कोशिश भी शुरू कर चुकी है। कई राज्यों से आम लोगों को राम मंदिर के दर्शन के लिए लाया जा रहा है। विपक्ष भी दबी जुबान में ये मान रहा है कि भगवा दल को इसका फायदा हो सकता है। बिखरे विपक्ष भी कर रहा है काम आसान पीएम मोदी का सामना करने के लिए इंडिया गठबंधन बनाया गया था। लेकिन चुनाव आते-आते इसके मुख्य कर्ता-धर्ता ही बीजेपी में शामिल हो गए। बिहार में नीतीश के बीजेपी में शामिल होने के बाद राज्य में भगवा दल को बढ़त हासिल हो गई है। दूसरी तरफ ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस का हाथ बंगाल में छोड़ दिया है। यानी एक वक्त जो लग रहा था कि इसबार पीएम मोदी को तगड़ी टक्कर मिल सकती है। उसकी सूरत फिलहाल तो नजर नहीं आ रही है। यही नहीं, विपक्ष तो अभी कई राज्यों में सीट शेयरिंग पर भी अटका है। दूसरी तरफ बीजेपी को कुछ राज्यों में छोड़ दें ज्यादातर जगहों पर अकेले ही लड़ना है। ऐसे में कमजोर और बिखरे विपक्ष के कारण उसे ज्यादा परेशानी नहीं होगी। राम लगाएंगे बेड़ा पार इसके अलावा बीजेपी को राम मंदिर निर्माण का बड़ा फायदा मिलने वाला है। पार्टी के घोषणापत्र में हर बार राम मंदिर का मुद्दा रहता था। विपक्ष तो बीजेपी एक समय तंज कसता था कि मंदिर वही बनाएंगे लेकिन तारीख नहीं बताएंगे। अब 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद बीजेपी काफी जोश में है। पार्टी को इसका फायदा पूरे उत्तर भारत में मिलने की उम्मीद है। पार्टी इसके अलावा आर्टिकल 370 का भी जमकर जिक्र करती है। यानी राम के जरिए भगवा दल को जीत की आस दिख गई है। शायद इसीलिए बजट में को लोकलुभावन योजना भी नहीं दिखी। लाभार्थी योजना का बीजेपी उठाएगी लाभ पीएम नरेंद्र मोदी अपने लगभग हर कार्यक्रम और सभा में इसका जिक्र जरूर करते हैं। कोरोना के काल से 80 करोड़ों लोगों को केंद्र सरकार मुफ्त अनाज मुहैया करा रही है। यही लाभार्थी हैं जो बीजेपी के कोर वोटर भी बन गए हैं। इसी की बदौलत बीजेपी ने कई राज्यों में चुनावी बिसात बिछाई और उसे कामयाबी भी मिली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी अपने बजट भाषण में इसका जिक्र किया था। बीजेपी ऐसे लाभार्थियों के जरिए मजबूती के साथ आगे बढ़ने का तरीका ढूंढ चुकी है। गर्वनेंस मॉडल से मिलेगी जीत पीएम मोदी सरकारी योजनाओं को लागू करने में बिचौलियों के नहीं रहने की बात अक्सर करते हैं। यानी सरकारी लाभ सीधे जरूरतमंदों के खाते में जाता है। बिचौलिया गायब। चाहे किसान सम्मान निधि की बात हो या अन्य मदों में डायरेक्ट ट्रांसफर। सरकार अपने बेहतर गर्वनेंस मॉडल के जरिए भ्रष्टाचार रोकने का दावा करती है। इसके अलावा बीजेपी भाई-भतीजावाद से खुद को दूर रखने का वादा करती है। पार्टी सामाजिक न्याय के जरिए जीत का रास्ता सुनिश्चित करने के लिए जोर लगा रही है। निर्मला ने अपने बजट भाषण में कहा कि हमारे शासन में पारदर्शिता है, इस बात का भरोसा है कि पात्र लोगों तक फायदे पहुंचाए जा रहे हैं। संसाधनों का उचित वितरण होता है। समाज में चाहे किसी का भी दर्जा हो, सभी को अवसर मिलते हैं। हम व्यवस्थागत असमानताओं को दूर कर रहे हैं... हम केवल खर्च पर ध्यान नहीं देते, बल्कि परिणामों पर जोर देते हैं, ताकि सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाया जा सके। पीएम मोदी के वो चार स्तंभ पीएम मोदी ने ओबीसी जाति जनगणना की काट ढूंढने के लिए चार जातियों का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था गरीब, महिलाएं, युवा और किसान उनके चार जातियां हैं। इस बार के बजट में भी इन चारों जातियों के लिए निर्मला ने कुछ न कुछ जरूर दिया है। यानी बीजेपी ने 2024 के लिए अपने वोटर वाला… http://dlvr.it/T2CCVS
0 notes
sharpbharat · 1 year
Text
jamshedpur vishwakarma samaj sad news - विश्वकर्मा पूजा के दिन विश्वकर्मा समाज में शोक की लहर, कोषाध्यक्ष की पत्नी का निधन, सचिव के पिता भी नहीं रहे
आदित्यपुर: एक तरफ जहां देश में विश्वकर्मा पूजा के मौके पर विश्वकर्मा समाज में उत्साह का माहौल है वहीं दूसरी तरफ जमशेदपुर से लेकर आदित्यपुर तक विश्वकर्मा समाज में शोक की लहर दौड़ पड़ी है. जहां समाज को दोहरा सदमा लगा है. बता दें कि जमशेदपुर विश्वकर्मा समाज के कोषाध्यक्ष अशोक शर्मा की धर्मपत्नी उर्मिला शर्मा का आज दोपहर करीब 12:00 हृदय गति रुकने से मौत हो गया है. वे 62 वर्ष की थीं. वे अपने पीछे पति,…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
telnews-in · 2 years
Text
दो शुरुआती और पहले से ही बहुत जहरीली महामारियां
दो शुरुआती और पहले से ही बहुत जहरीली महामारियां
दो सर्दियां हो चुकी थीं क्योंकि कोविड-19 के कारण ब्रोंकियोलाइटिस और इन्फ्लूएंजा की सर्दी की महामारी असामान्य और सामान्य से कम गंभीर थी। दूसरी ओर, 2022 की सर्दियों की शुरुआत में, स्थिति काफी अलग है: स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा इन दो बीमारियों की निगरानी के लिए उपयोग किए जाने वाले संकेतक प्रमुखता और विषमता के साथ बढ़े हैं, जिससे कोरोनोवायरस महामारी की नौवीं लहर के बारे में चिंता बढ़ गई है।…
View On WordPress
0 notes