#दुर्लभ गिद्ध
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Raipur :बीजापुर का आईटीआर बना विलुप्त गिद्धों का बसेरा, इसलिए बढ़ी संख्या - Bijapur Itr Became The Abode Of Extinct Vultures
गिद्धों का बसेरा… – फोटो : अमर उजाला दुनियाभर में पाए जाने वाले गिद्धों की संख्या अब मात्र 1 प्रतिशत बची हुई है। 99 प्रतिशत गिद्ध खत्म हो चुके हैं। विलुप्ति की कगार पर पहुंचे इन दुर्लभ गिद्धों की कुछ प्रजातियां इन दिनों छत्तीसगढ़ के बीजापुर स्थित इंद्रावती टाइगर रिजर्व क्षेत्र में देखी जा रही हैं। हिमालय का राजा, जिसकी बादशाहत काबुल से लेकर भूटान तक है, वो हिमालयन ग्रीफन वल्चर बीजापुर के…
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दुर्लभ गिद्ध बेआवाज: जानलेवा चीनी मांझे ने छीन ली परिंदे की परवाज, दिल छू लेगी ये कहानी
दुर्लभ गिद्ध बेआवाज: जानलेवा चीनी मांझे ने छीन ली परिंदे की परवाज, दिल छू लेगी ये कहानी
सुनील कैथवास, न्यूज डेस्क, अमर उजाला नेटवर्क, मेरठ Published by: Dimple Sirohi Updated Tue, 28 Dec 2021 11:34 AM IST सार मेरठ में हाल ही में हुई एक घटना ने सिर्फ दिलों को झकझोर दिया बल्कि इंसानियत पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। शहर के केंट क्षेत्र में इन दिनों एक विलुप्तप्राय गिद्द चर्चा का विषय बन चुका है। हैरानी की बात है कि यह गिद्द अब उड़ नहीं सकता। आगे पढ़ें आखिर ऐसा क्या हुआ जिसने छीन ली इस…
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विश्वमै दुर्लभ चरा बारेकोटमा
विश्वमै दुर्लभ चरा बारेकोटमा
विश्वमै दुर्लभ मानिएका चराहरु बारेकोट गाउँपालिकाका विभिन्न ठाउँमा फेला परेका छन् । पटक–पटक गरिएको अध्ययनबाट बारेकोटमा दुर्लभ चरा फेला परेको पक्���ी संरक्षण सङ्घका केन्द्रीय सदस्य गोविन्द सिंहले बताउनुभयो । विश्वमै लोपोन्मुख हाडफोर गिद्ध, राष्ट्रियस्तरमा लोपोन्मुख हिमाली गिद्ध, सङ्कटोन्मुख वन्यजन्तु तथा वनस्पतिको अन्तर्राष्ट्रिय नियन्त्रण सन्धिको अनुसूची (आइआइमा)मा सूचीकृत कालो चिल, कालिज, काकाकुल,…
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कञ्चनपुरमा भेटियो विश्वमै दुर्लभ सुन गिद्धको गुँड
१८ भदौ, काठमाडौं । लोपोन्मुख पन्छी सुन गिद्धको गुँड पछिल्लो पटक कञ्चनपुर जिल्लामा फेला परेको छ ।
सुन गिद्धको गुँड समुद्री सतहबाट १ हजार १९ मिटरदेखि १ हजार ५ सय १९ मिटरसम्मको उचाइमा देखिने गरेकोमा हालै कञ्चनपुर जिल्लामा भेटिएको गुँड १ सय ७६ मिटरमै रहेको नेपाल पन्छी संरक्षण संघका गिद्ध विज्ञ कृष्ण भुसालले जानकारी दिए ।
सुन गिद्ध नेपालमा पाइने रैथाने गिद्ध हो । नेपालमा पाइने नौ प्रजातीका गिद्धमध्ये छ प्रजाती रैथाने हुन् जसले नेपालमा गुँड बनाएर बच्चा कोरल्छन् । बाँकी तीन प्रजाती जाडो याममा बसाइँसराइँ गरी आउँछन् ।
विश्वमै दुर्लभ अति संकटापन्न अवस्थामा रहेको यस गिद्धको नेपालमा अनुमानित संख्या २ सयदेखि ४ सयको हाराहारीमा छ । नेपाल पन्छी संरक्षण संघले हालसम्म यसका १६ गुँडहरु फेला पारेको जनाएको छ । पश्चिम नेपालको मध्य पहाडमा रूखमा गुँड बनाउने यस चराको गुँड पहिलो पटक आधिकारीक रुपमा सन् २०१२ मा पाल्पा जिल्लामा भेटिएको थियो ।
हालसम्म सुन गिद्धको गुँड कञ्चनपुर, जाजरकोट, अर्घाखाँची, पाल्पा, कास्की, तनहुँ र लमजुङमा अभिलेख गरिएको छ । अनुसन्धानलाई व्यापक बनाउँदै गएमा आगामी दिनमा अन्य जिल्लाहरुमा समेत सुन गिद्धका गुँडहरु फेला पर्नसक्ने भुसालको भनाइ छ ।
नेपालमा सन् १९९० को दशकमा करिब १० लाखको संख्यामा पाइने अनुमान गरिएको गिद्धको संख्या हाल आएर २० हजारभन्दा कममा सीमित भएको बताइन्छ । गिद्धको संख्यामा यसरी नाटकीय ढंगले ह्रास आउनुको प्रमुख कारण घरपालुवा पशु उपचारमा प्रयोग गरिने औषधि डाइक्लोफेनेक हो ।
सुन्निएको र दुखेको निको पार्न प्रयोग गरिने डाइक्लोफेनेकले उपचार गरिएका पशुको मृत्यु पश्चात सिनो खाँदा गिद्धको मृगौलामा असर गर्ने मृत्यु हुने जानकारहरु बताउँछन् । वासस्थानको विनाश, आहाराको कमी, सिनोमा विषकोे प्रयोग, गिद्धलाई हानी गर्ने अन्य पीडानाशक औषधिहरु र विद्युतीय तार गिद्धका लागि चुनौती हुन् ।
गिद्ध संरक्षणका लागि नेपाल सरकारले २०६३ जेठ २३ देखि पशु उपचारमा डाइक्लोफेनेक प्रतिवन्ध गरी त्यसक��� विकल्पमा सुरक्षित मेलोक्��िक्यामको उत्पादन र प्रयोग शुरु गरेको छ । गिद्धलाई शुद्ध आहार उपलब्ध गराई संरक्षण गर्ने उद्देश्यले जटायु (गिद्ध) रेष्टुरेन्टहरु सञ्चालन पनि गरिएको छ । त्यसैगरी गिद्ध संरक्षण तथा प्रजनन केन्द्रमा हुर्काइएका र कोरलिएका गिद्धलाई सुरक्षित प्राकृतिक वातावरणमा पुनःस्थापना गराउने, स्याटेलाइट जडान गरी अध्ययन गर्ने कार्यको थालनी पनि भएको छ ।
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नवीन सुख सागर
श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवाँ अध्याय [स्कंध ६]
(वृतासुर का चरित्र वर्णन)
दो००वृतासुर ने भक्तिमय, सुन्दर वरणों ज्ञान।
ग्यारहवें अध्याय में, ताकौ कियो बखान।।
कैसे किया असुर वृत्तासुर ने भगवान विष्णु का गुणगान।
https://shrimadbhagwadmahapuran.blogspot.com/2021/06/blog-post_10.html
श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षत ! जब देवताओं से युद्ध में असुरों की कुछ न चली तो वे भयभीत होकर वृत्तासुर का साथ छोड़ कर भागने लगे तो वृत्तासुर ने दनुजों को सेना को भागते देख कर कहा--
हे शूरवीर ! इस संसार में जिसने जन्म लिया है। उसकी अवश्य मृत्यु होती है। परन्तु इस युद्ध में वीर गति को प्राप्त होने वाले को इस लोक में यश तथा परलोक में स्वर्ग प्राप्त होता है। सो हे वीरो! आप लोग समझिये कि योग साधन द्वारा मृत्यु और वीरगति ये दोनों ही दुर्लभ हैं। अतः रण में ही लड़ कर मृत्यु पाना ही उत्तम है। तुम लोग लौट कर भरसक युद्ध करो।
परन्तु वृत्तासुर के कहे को भागते हुये मूर्ख असुरों ने नहीं माना।
इधर देवताओं की सैना भागती हुई असुरों की सैना को मारने लगी तब वृत्तासुर ने हँस कर कहा--
हे देवताओं! तुम लोग वृथा इन भागते हुये असुरों को मारने के लिये क्यों दौड़ रहे हो।
जो अपने आप को शूरवीर बनते हैं, उनका यह धर्म नहीं है कि वह भागते पर हाथ छोड़ें। यदि तुम अपने आपको बलवान समझते हो, और युद्ध करने की अभिलाषा रखते हो तो समर क्षेत्र में क्षण मात्र के लिये मेरे सामने खड़े हो जाओ।
इतना कहकर क्रोध करके वह वृत्तासुर गरजने लगा तथा वह वृत्तासुर शूल हाथ में लेकर पैरों से धरती को धसकाता हुआ देवताओं की सेना का चूर-चूर करने लगा। इस बात को देख गुस्सा में भरकर इन्द्र ने अपने 'शत्रु उस वृत्तासुर के ऊपर गदा फेंकी, वृत्तासुर ने आती हुई उस गदा को बाँये हाथ से पकड़ कर उसी गदा से एरावत की कनपटी पर प्रहार किया। उसके इस हस्त लाघवता के कार्य की सब लोगों ने बड़ी प्रशंसा की।
ऐरावत हाथी उस गदा की चोट से मुँह से रुधिर बहाता हुआ इन्द्र के सहित सात धनुष के बराबर पर पीछे को हट गया । तब इन्द्रदेव के अमृत वर्षा हाथ के स्पर्श करने से तत्काल ऐरावत हाथी की गदा चोट की पीड़ा दूर हो गई ��र फिर संभल कर युद्ध के लिये वृत्तासुर के सामने आ कर डट गया।
वृत्तासुर भाई के मारने वाले इन्द्र से, जिसके कि हाथ में बज्र लगा हुआ देखकर बोला- हे इन्द्र ! तू ब्रम्ह, गुरू और भाई की हत्या करने वाला है। इसलिये आज तुझे मार कर भाई के ऋण से मैं मुक्त हो जाऊँगा, हे इन्द्र ! तूने स्वर्ग के पाने की इच्छा से पशु की तरह हमारे ज्येष्ठ भ्राता के शिर काट डाले है। अतः इस निन्दनीय कर्म से लज्जा, दया, धर्म आदि से तो तू भ्रष्ट हो ही गया है, अतः मेरे शूल से फटे हुए हृदय वाले तुझे अब गिद्ध खावेंगे । और जितने भी देवता हैं जो कि मेरे ऊपर शस्त्रों का प्रहार कर रहे हैं उन सबको त्रिशूल से काट २ कर भैरवादिक देवताओं को भेंट देदूंगा, और हे इन्द्र ! यदि तूने मेरे शिर को काट गिराया तो मैं अपनी देह से भूतों को बलि देकर परम पद को प्राप्त हो जाऊँगा। हे इन्द्र ! मेरे उपर तू बज्र क्यों नहीं फेंकता है, पहिले फेंकी हुई गदा की तरह यह तेरा फेंका हुआ बज्र निष्फल नहीं जायेगा, क्योंकि यह बज्र हरि भगवान के तेज से तथा दधीचि की तपस्या से भरे हुए होने के कारण बड़ा तीक्ष्ण हो गया है, अत: इस बज्र से ही मुझ शत्रु को मार। जहाँ हरि भगवान जिनके पक्ष में होते हैं वहाँ युद्ध में उसी की विजय होती है, मैं संकर्षण भगवान के चरणारविंदों में मन लगा कर तेरे वज्र से मरा हुआ योगियों की गति को प्राप्त हो जाऊँगा। हरिभगवान अपने भक्तों को स्वर्ग को आदि लोकों की सम्पति नहीं देते क्यों कि उन संम्पतियों को पाकर भक्तों के हृदय में द्वेष आदि होने लग जाते हैं। इसलिए हमारे स्वामी श्री हरि भगवान धर्म, कर्म और काम इन तीनों वर्गों के प्राप्त करने के श्रम को नष्ट कर देते हैं, और भक्तों को तो वह सीधी मुक्ति ही देते हैं जो कि सब पुरुषार्थों में उत्तम पुरुषार्थ है।
यह कह कर अब वृत्तासर भगवान की स्तुति करने लगा।
हे हरे ! मैं जन्म जन्मान्तरों में आपके आपके दासों का ही दास होता रहूँ । मेरा मन आपके स्मरण करने में लगा रहे मेरी वाणी आपके नामों का कीर्तन करती रहे और शरीर मेरा आपकी सेवा कार्य करता रहे।
हे ईश्वर ! आप के बिना स्वर्ग तथा ब्रम्हादि लोकों को भी मैं नहीं चाहता हूँ। हे भगवान ! जिस तरह भूखे प्यासे और जिनके पंख नहीं उगे हैं वे छोटे छोटे पक्षियों के बच्चे अपनी मईया की तरफ टकटकी लगा कर देखते रहते हैं, उसी प्रकार मेरा मन भी आपके दर्शन करना चाहता है। संसार क�� आवागवन के इस चक्र में घूमते हुए मेरी मित्रता आपके भक्तों में ही होती रहे, पुत्र, स्त्री गृह आदि में मेरा प्रेम न होने पावे ।
।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम ग्यारहवॉं अध्याय समाप्तम🥀।।
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यूपी के कुशीनगर में मिला दुर्लभ गिद्ध, देखने को उमड़ी भीड़
यूपी के कुशीनगर में मिला दुर्लभ गिद्ध, देखने को उमड़ी भीड़
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यूपी के कुशीनगर (Kushinagar)जिले के बरवापट्टी (Barwapatti )थाना क्षेत्र में एक विलुप्त प्राय गिद्ध (vulture)घायलावस्था में मिला है। उसके दोनों पंखों में C3 टैग और जीपीएस लगा है। वनाधिकारियों ने गिद्ध को कब्जे में ले लिया है।
Edited By Sujeet Upadhyay | नवभारत टाइम्स | Updated: 24 Apr 2020, 05:08:00 PM IST
यूपी के कुशीनगर में एक विलुप्त प्राय गिद्ध घायलावस्था में पाया गया। हाइलाइट्स
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Up:कानपुर में मिला दुर्लभ प्रजाति का हिमालयन गिद्ध, चिड़ियाघर में 15 दिन के लिए किया गया क्वारंटीन - Himalayan Vulture Of Rare Species Found In Kanpur
Up:कानपुर में मिला दुर्लभ प्रजाति का हिमालयन गिद्ध, चिड़ियाघर में 15 दिन के लिए किया गया क्वारंटीन – Himalayan Vulture Of Rare Species Found In Kanpur
चिड़ियाघर अस्पताल परिसर में मौजूद गिद्ध – फोटो : अमर उजाला ख़बर सुनें ख़बर सुनें यूपी के कानपुर में विलुप्त हो चुका गिद्ध मिला है। शनिवार को बेनाझावर ईदगाह कब्रिस्तान के पास मिला गिद्ध हिमालयन बताया जा रहा है। जिसे देखने के लिए मौके पर सैकड़ों लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। क्षेत्रियों ने बताया कि यहां गिद्ध का जोड़ा था, एक गिद्ध मौके से उड़ गया है। हिमालयन गिद्ध मिलने की जानकारी क्षेत्रियों ने…
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जैसलमेर: बिजली की तारों से मारे जा रहे गोड़ावन, मोर, ऊंट और दुर्लभ जीव
#GreatIndianBustard #GIB #Godavan #DNP #Desert National Park #जैसलमेर: बिजली की तारों से मारे जा रहे #गोड़ाव��, #मोर, #ऊंट और दुर्लभ जीव
Godawan, peacock, camels and rare creatures being killed by electric wires
Jaisalmer News: जैसलमेर जिले में बिजली की तारों से राज्य पक्षी गोड़ावन (Great Indian Bustard) और राष्ट्रीय पक्षी मोर मौत का शिकार हो रहे है इसके अलावा भी बड़े आकार वाले पक्षियों कुरजां,गिद्ध आदि भी बिजली के तारों से टकराकर मर रहे है.
झूल रहे बिजली के तारों से टकराकर मरने वाले बड़े आकार के जीवों में राज्य पशु ऊंट और…
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टाइगर टी-39 की बेटी बनेगी मुकंदरा हिल्स की शान
नया बसेरा: वन्यजीव विभाग ने रणथम्भौर में बाघिन को किया टैंक्यूलाइज, अब मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में करेगी स्वच्छंद विचरण न्यूजवेव @ कोटा कोटा से 40 किमी दूर मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में इकलौते टाइगर एमटी-1 का साथ निभाने के लिए रणथम्भौर अभयारण्य से टाइगर-39 की बेटी ने मुकंदरा की धरा पर दस्तक दे दी है। हरियाली से आच्छादित वादियां, घने पहाड़, घाटियां, प्राकृतिक झरने, पोखर, तालाब एमटी-1 को बसेरा बसाने के लिए आमंत्रण दे रहे हैं।
Female Tiger याद दिला दें कि वर्ष की शुरूआत में कालंदा वनक्षेत्र में बाघ टी-91 ने पदचाप से अपनी दस्तक दी थी। जिसे एमटी-1 नाम देकर मुकंदरा हिल्स के संरक्षित क्षेत्र में खुले विचरण के लिए छोडा गया। इस टेरिटेरी में वह निरंतर घूमता रहा लेकिन रिजर्व में एक भी बाघिन नहीं मिलने से परिवार अधूरा रहा। इस बीच कानूनी बाधाएं हट जाने के बाद दिसंबर माह में दो बाघिनों को इस क्षेत्र में लाने की मुहित तेज हो गई। चंबल किनारे कोटा थर्मल पॉवर स्टेशन के परिसर में नर व मादा पैंथर व 3 बच्चे देखे जाने के बाद उनकी निरंतर निगरानी की जा रही हैं। 375 से अधिक चीतल आए वनविभाग ने संजय वन शाहपुरा से 22 चीतल लाकर मुकंदरा हिल्स के घने जंगल में छोड़ दिए। पिछले एक वर्ष से विभिन्न स्थानों से चीतल लाकर मुकंदरा क्षेत्र में छोडे़ जा रहे हैं। इनकी सख्या बढ़कर 375 से अधिक हो गई है। टाइगर के लिए शिकार हेतु प्री-बैस तैयार किया जा रहा है। 2018 में बसा बाघों का नया बसेरा
मुकंदरा हिल्स को 9 अप्रैल,2011 में मुकंदरा टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। कोटा एयरपोर्ट से महज 40 किमी दूर यह नया अभयारण्य राज्य के चार जिलों कोटा, बूंदी, झालावाड़ व चित्तौड़गढ़ में लगभग 760 वर्ग किलोमीटर मेें फैला हुआ है। इसमें लगभग 417 वर्गकिमी में कोर एरिया तथा 343 वर्गकिमी में बफर जोन होगा, जिसमें मुकुंदरा नेशनल पार्क, दरा अभयारण्य, जवाहर सागर सेंचुरी तथा चंबल घडियाल सेंचुरी का कुछ भाग भी शामिल रहेगा। जानकारों ने बताया कि 1962 तक इस क्षेत्र में शेर दिखाई देते थे। 1980 के दशक में यहां बाघों की दहाड़ सुनाई देती थी। 2003 में भी एक बाघ ने यहां विचरण किया। 2018 में एक बाघ व एक बाघिन के आगमन से अब बाघों की गंूज सुनाई देगी। टाइगर की क्रॉसबीड के लिए अनुकूल
वन्यजीव अधिकारियों के अनुसार, मुकंदरा रिजर्व का क्षेत्रफल सरिस्का सेंचुरी से ज्यादा है। रणथम्भौर सेंचुरी में इस समय 62 से अधिक टाइगर होने से वहां के नर बाघ समीपवर्ती मुंकदरा रिजर्व में आकर अन्य मादा बाघ से क्रॉसबीड कर सकेंगे, जिससे निकट भविष्य में यहां टाइगर की हाईब्रिड देखी जा सकती है। जलवायु की बात करें तो मुकंदरा टाइगर रिजर्व एवं नेशनल पार्क का नजारा बरसात में देखने लायक होता है। यहां 885.6 मिमी औसत वर्षा होती है। उंची पहाड़ियों के बीच खूबसूरत घना वन क्षेत्र, नदी व घाटियां है। इस हरे-भरे क्षेत्र में पलाश,अमलताश, नीम, जामुन, इमली, अर्जुन, तेंदू, बरगद, पीपल, महुआ, बेल, कदम, सेतल व आंवले के वृक्षों के साथ सघन जंगल है। यही वजह है कि चंबल किनारे बाघ, पैंथर, भालू, सांभर, चीतल, जरख (हाइना), भेड़िया, लोमड़ी, नीलगाय, काले हिरण, वनविलाव, खरगोश,दुर्लभ स्याहगोह, निशाचर सिविट केट और रेटल जैसे दुर्लभ वन्यजीव यहां देखने को मिलते हैं। वन्य अधिकारियों के अनुसार, मुकंदरा क्षेत्र में लगभग 1000 चीतल, 60 भालू, 60 से 70 पैंथर, 60 नील गायों सहित बाघ प्रजाति के 6 बघेरा (लेपर्ड) भी हैं। बडी संख्या में छोटे वन्यजीव विचरण करते हैं। 225 पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियां पक्षी विशेषज्ञों ने बताया कि इस प्रकृति की गोद में बसे इस क्षेत्र में लगभग 225 तरह के पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियां पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण हैं। इनमें दुर्लभ सफे�� पीठ व लम्बी चोंच वाले गिद्ध, केस्टेड सस्पेंट, ईमल, शॉट टोड ईगल, सारस क्रेेन, पैराडाइज प्लाई केचर, स्टोक बिल किंगफिशर, कर्ड स्कोप्स उल्लू ���हित बड़ी संख्या में राष्ट्रीय पक्षी मोर, कोयलों की गूंज पर्यटकों का मन मोह लेती है। चार जिलों में फैला है टाइगर रिजर्व
760 वर्गकिमी में फैला 342.82 वर्गकिमी बफर एरिया 417.17 किमी कोर एरिया नेशनल कोरिडोर - 1305 वर्गकिमी (वनभूमि- 958 वर्गकिमी, राजस्व भूमि-347 किमी) नेशनल पार्क- 205 वर्गकिमी कोरिडोर रेेंज- सवाईमानसिंह सेंचुरी, रणथम्भौर-आमली-इंद्रगढ़-लाखेरी-तलवास-रामगढ़ सेंचुरी से जवाहर सागर सेंचुरी तक पार्ट-1: सवाईमाधोपुर से रामगढ़ सेंचुरी (बूंदी) व आमली तक पार्ट-2: रामगढ़ सेंचुरी से जवाहर सागर सेंचुरी तक। कुल फॉरेस्ट ब्लॉक- 51 (बूंदी-36, सवाईमाधोपुर-8, भीलवाड़ा- 6, टोंक-1) जुडे़गा पर्यटन- रामगढ़ विषधारी, बूंदी, शेरगढ़ सेंचुरी, बारां, मुकंदरा नेशनल पार्क, दरा, राष्ट्रीय घडियाल सेंचुरी, कोटा व जवाहर सागर सेंचुरी, चित्तौडगढ़। बढे़गी इकोनॉमी- होटल, रेस्तरां, ट्रांसपोर्ट, एयर सर्विस, आर्ट, हस्तशिल्प व अन्य परिवहन सेवाएं। Read the full article
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अण्डा पार्न थाले दुर्लभ डंगर गिद्धले
अण्डा पार्न थाले दुर्लभ डंगर गिद्धले
चितवन, १३ कात्तिक । चितवन राष्ट्रिय निकुञ्जमा रहेको गिद्ध प्रजनन केन्द्रमा रहेका दुर्लभ डंगर गिद्धले अण्डा पार्न थालेका छन् । गत वर्ष १५ वटा गिद्धले अण्डा पारेका थिए भने यस वर्ष एउटा गिद्धले अण्डा पारिसकेको छ । नोभेम्बर÷डिसेम्बर महिनामा अण्डा पार्ने भए पनि यस वर्ष केही छिटो अण्डा पारेको हो । चितवन राष्ट्रिय निकुञ्जका सहायक संरक्षण अधिकृत वेदबहादुर खड्काका अनुसार केन्द्रमा ५७ वटा गिद्ध रहेका छन् ।…
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आक्कल झुक्कल देखिने ठुडे गिद्धको कथा
नेपालमा पाइने नौ प्रजातिका गिद्धमध्ये डंगर गिद्ध, सानो खैरो गिद्ध, सुन गिद्ध, सेतो गिद्ध, हिमाली गिद्ध र हाडफोर गिद्ध नेपालमै गुँड बनाएर बच्चा कोरल्ने रैथाने प्रजाति हुन् । राज गिद्ध हिउँदे आगन्तुक, खैरो गिद्ध हिउँदे बटुवा र लामो ठुडे गिद्ध नेपालको लागि फिरन्ते प्रजाति हुन् ।
मरेका जनावरको सिनो र फालेको मासुजन्य फोहर पदार्थलाई खाई हाम्रो वरपरको वातावरणलाई प्रदुषित, दुर्गन्धित र रोगमुक्त बनाउन महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह गर्ने गिद्धलाई ‘प्रकृतिको कुचीकार’ भनिन्छ । करिब डेढ दशक अघिसम्म तपाई हाम्रो गाउँ टोलमा पनि सयौंको संख्यामा सिनोमा लुछाचुँडी गरिरहेका गिद्ध सहजै भेटिन्थे । तर आज ती दृश्य दुर्लभ भएका छन् र यत्रतत्र सर्वत्र पाइने गिद्धहरु जीवन अस्तित्व समाप्तिको किनारामा छन् ।
सन् १९९० को दशकमा दक्षिण एशियामा करोडौं र नेपालमा लाखौको संख्यामा पाइने गिद्ध ९५ प्रतिशत भन्दा बढीले घट्नुको प्रमुख कारण घरपालुवा पशु उपचारमा प्रयोग गरिने औषधि डाइक्लोफेनेक हो । यसप्रकारको अकल्पनीय र अप्राकृतिक विनाशका कारण सानो खैरो, डंगर, लामो ठुडे र सुन गिद्ध अति सङ्कटापन्न र सेतो गिद्ध सङ्कटापन्न अवस्थामा पुगेका छन् । अति सङ्ककटापन्न प्रजाती आउने १० वर्षभित्र लोप हुने सम्भावना ५० प्रतिशत हुन्छ ।
सन् २०११ मा नेपालमै पहिलो पटक नवलपरासीको कावासोती पिठौलीमा रहेको विश्वकै नमुना समुदायस्तरको जटायु (गिद्ध) रेष्टुरेन्ट क्षेत्रमा देखिएको फिरन्ते लामो ठुडे गिद्धको प्रजाती करिब आठ वर्षपछि पुन उक्त क्षेत्रमा दोस्रोपटक देखिएको छ । गत जनवरी महिनाको २५ तारेख (२०७५ माघ ११) का द��न नेपाल पन्छी संरक्षण संघको गिद्ध संरक्षण कार्यक्रमको टिम मलगायत अंकित बिलास जोशी, देउबहादुर राना, ईश्वरीप्रसाद चौधरी र केवलप्रसाद चौधरी त्यस क्षेत्रमा गिद्धको अनुगमन गरिरहेका थियौं ।
सानो खैरो गिद्धजस्तै देखिने यस लामो ठुडे गिद्धलाई सुरुमा त हामीहरुले त्यही नै ठान्यौं तर ध्यानपूर्वक केही समय यसको अवलोकन गरेपछि फरक खुट्याउन सक्यौं । नेपालमा पाइने नौ प्रजातिका गिद्ध मध्ये आठ प्रजातिका गिद्ध एकै दिन एकै ठाउँमा अवलोकन गरेको त्यो दिन मेरो जीवन र गिद्ध अनुसन्धान र संरक्षणमा क्रियाशील विगत दश वर्षकै अविस्मरणीय दिन हो । अर्को दिन चराविद डीबी चौधरीसँग पनि यसको अवलोकन गर्यौं ।
मुलत भारतमा प्रजनन गर्ने यस लामो ठुडे गिद्धको पिठौलीबाट सबैभन्दा नजिकको बासस्थान करिब ५७० किमी टाढा मध्यप्रदेश, भारतमा पर्दछ । लामो ठुडे गिद्ध मध्य प्रदेश र उत्तर प्रदेशमा अवस्थित यसको नजिकका बासस्थान क्षेत्रबाट यहाँ आएको अनुमान गरिएको छ ।
त्यसयताको करिब एक महिनाको अवधीमा लामो ठुडे गिद्ध नौ पटक यस क्षेत्रमा अन्य प्रजातिका गिद्धसँग सिनोमा लुछाचुडी गरिरहेको भेटियो जसको अनुगमन तथा अन्य प्रजातिसँगको अन्तरसम्बन्ध अध्ययन गरिएको छ । आशा छ, आक्कल झुक्कल देखिने यो विश्वमै दुर्लभ लामो ठुडे गिद्ध आगामी दिनमा पनि देखिने छ र तपाई हामी सबैको साझा प्रयासले गिद्ध संरक्षणमा सफलता हासील गर्नेछौं ।
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राष्ट्रकै पहिचान बन्दैछ जटायु रेष्टुराँ (कृष्ण अधिकारी) नवलपरासी, १४ चैत । केही वर्षअघिसम्म गाउँमा कुनै पशु चौपाया मरेमा महिनौँसम्म दुर्गन्ध फैलिने र स्याल, कुकुरजस्ता जनावरले सिनो जथाभावी फैलाउने समस्याले आजित बनेका नवलपरासीको पिठौली र कावासोती क्षेत्रका बासिन्दा अहिले गिद्ध रेष्टुराँ स्थापनापछि यस समस्याबाट मुक्तमात्र भएका छैनन्, अन्तर्राष्ट्रिय जगत्मा गाउँको पहिचान बनेकामा गौरवान्वित छन् । अशुभ र फोहरी पक्षीका रुपमा घृणा र तिरस्कार गरिने सामाजिक धारणालाई चुनौती दिँदै स्थानीय समुदायले रेष्टुराँ स्थापना गरेर थालेको गिद्ध संरक्षण अभियानको अन्तर्राष्ट्रिय समुदायले समेत प्रशंसा गरेका छन् । यही रेष्टुराँले अहिले गाउँको पहिचान देशभित्र मात्र नभएर विश्वमा बढ्न थालेको छ । वन मन्त्रालयको जैविक विविधता तथा वातावरण महाशाखाका प्रमुख डा महेश्वर ढकालका अनुसार एसियामै गिद्ध सङ्कटमा परेका बेला नेपालले संरक्षण अभियान सुरु गरेकामा गत भदौमा अमेरिकाको हवाईमा सम्पन्न अन्तर्राष्ट्रिय प्रकृति संरक्षण सङ्घको विश्व सम्मेलनका सहभागी मुलुकहरुले प्रशंसा गर्दै सिको गर्ने घोषणा गरेका थिए । गिद्धको संरक्षण भएसँगै चितवन घुम्ने पर्यटक, गिद्धका बारेमा अध्ययन अनुसन्धान गर्न आउनेको सङ्ख्या बढेको छ । चितवन राष्ट्रिय निकुञ्जको नमुना मध्यवर्ती सामुदायिक वन क्षेत्र��ा रेष्टुराँ स्थापना गरिएपछि स्वदेशी तथा विदेशी पर्यटकको घुइँचो लागेसँगै स्थानीय जनताको जीविकोपार्जनमा समेत सुधार आएको नमुना मध्यवर्ती सामुदायिक वन उपभोक्ता समितिका अध्यक्ष बलिराम महतो बताउनुहुन्छ । करिब ४१५ हेक्टर जमिनमा रेष्टुराँ स्थापना गरेर विश्वमै अति सङ्कटापन्न अवस्थामा पुगेको गिद्धको संरक्षण गर्ने अभियानसँगै वातावरण संरक्षण र जैविक विविधताको क्षेत्रमा उल्लेखनीय कार्य भएको छ । यस रेष्टुराँलाई पर्यटकीय गन्तव्यका रुपमा विकास गर्न सकिने प्रशस्त सम्भावना छ । पूर्व–पश्चिम राजमार्गको नारायणघाट–बुटवल खण्डस्थित कावासोतीबाट चार किलोमिटरको दूरीमा रहेको यस रेष्टुराँमा विश्वमै दुर्लभ पाँच प्रजातिका गिद्धको अवलोकन गर्न सकिन्छ । यहाँ थारु संस्कृति अवलोकन, नमुना घाँसेमैदान व्यवस्थापन, दुर्लभ एकसिङ्गे गैँडा, पाटेबाघलगायत विभिन्न पशुपक्षीको अवलोकन गर्न सकिने र होमस्टेमा बस्ने सुविधा रहेकाले पर्यटकको चहलपहल बढ्न थालेको छ । गिद्ध संरक्षणका लागि पूर्वाधार विकाससँगै जनचेतना अभिवृद्धि तथा स्थानीय समुदायको जीवनस्तरमा पनि सुधार ल्याउन विभिन्न सङ्घसंस्थाको सहयोगमा आयमूलक क्रियाकलापहरु सञ्चालन गरिएका छन् । वन तथा जैविक विविधता संरक्षणमा देशकै नमुना केन्द्रका रुपमा विकास गर्न १० वर्षे गुरुयोजना बनाउन लागिएको जटायु रेष्टुराँ व्यवस्थापन समितिका अध्यक्ष डिबी चौधरी बताउनुहुन्छ । रेष्टुराँको व्यवस्थापनका लागि यहाँ भ्रमण गर्न आउने विदेशी पर्यटकका लागि रु ५०० र नेपालीलाई रु ५० शुल्क लिने गरिएको छ । गिद्धले सिनो खाएर छाडेका हड्डी र छाला बिक्री गरेर वर्षमा करिब रु ७० हजार आम्दानी हुने गरेको र यसबाट रेष्टुराँको सञ्चालन गर्न धौधौ परेको उहाँको भनाइ छ । सुरुमा गिद्ध रेष्टुराँ स्थापना गर्न स्थानीयवासीले विरोध जनाएका थिए । गाउँनजिकै मरेको सिनो राख्दा गाउँ नै दुर्गन्ध हुन्छ भन्ने भ्रम गाउँलेमा थियो । चौधरी भन्नुहुन्छ – “अहिले विस्तारै यसको महत्व बुझेपछि सबै गिद्धको संरक्षणमा एकचित्त भएका छन् ।” नेपाल पक्षी संरक्षणको पहल र स्थानीयवासीको सक्रियतामा २०६४ भदौमा स्थापना भएको यस रेष्टुराँलाई सुरुमा रोयल सोसाइटी प्रोटेक्सन अफ वल्र्ड, युकेले सहयोग पु¥याएको थियो भने हाल यसको सञ्चालनका लागि संयुक्त राष्ट्रसङ्घीय विकास कार्यक्रम, विश्व वातावरण कोष÷साना अनुदान कार्यक्रमले आर्थिक तथा प्राविधिक सहयोग गरिरहेको छ । कार्यक्रमको सहयोगमा मध्यवर्ती क्षेत्रका बासिन्दालाई गिद्धको उपयोगिताबारे जनचेतना फैलाई यसको संरक्षणतर्फ विभिन्न कार्यक्रमहरु सञ्चालन गरिएका छन् । ��मुदायको सहभागितामा जैविक विविधताको संरक्षण र जीविकोपार्जनका क्रियाकलापलाई एकैसाथ अगाडि बढाइएमा त्यसले सकारात्मक परिवर्तन ल्याउनसक्ने यस रेष्टुराँबाट पुष्टि भएको कार्यक्रमका राष्ट्रिय प्रबन्धक गोपाल शेरचन बताउनुहुन्छ । जटायु रेष्टुराँलाई व्यवस्थित तुल्याउन गौरक्ष केन्द्र स्थापना गरी बुढा गाईगोरु पाल्ने प्रबन्ध मिलाइएको छ । जहाँ पशुहरू सङ्कलन गर्ने, पाल्ने र मरेपछि मात्र स�� सिनो गिद्धलाई खुवाउने गरिन्छ । “पहिले एउटा सिनो फाल्न दुई÷चार सय रुपैयाँ खर्च लाग्थ्यो, महिनौँसम्म दुर्गन्ध फैलन्थ्यो, अहिले बुढा गाईगोरु बेचेर उल्टै चार÷पाँच सय आम्दानी हुने र वातावरण पनि स्वच्छ बन्ने नेचर गाइड होमनाथ गौतमको कथन छ । गिद्धले पशु मरेको आधा घन्टामै खाने भएकाले प्रदूषण र अनेक रोगको महामारी फैलन पाउँदैन । गिद्ध संरक्षणबाट जैविक विविधता र वातावरणको सन्तुलन मात्र होइन, मानिस र पक्षीबीचको अनुपम सम्बन्धले पारिस्थितीय प्रणालीलाई मजबुत बनाउन मद्दत गरेको छ । आफैँ सिकार नगरी मरेका जनावर मात्र खाने गिद्धलाई प्रदूषित र दुर्गन्धित वातावरणलाई स्वच्छ र सफा राखी विभिन्न महामारी हुन नदिने भएकाले प्रकृतिको कुचीकारको रुपमा लिने गरिन्छ । गिद्धको सङ्ख्यामा एक्कासि कमी आएपछि विश्वव्यापीरुपमै संरक्षण अभियान थालिएको छ । केही वर्षयता पशुको उपचारमा प्रयोग गरिने डाइक्लोफेनक औषधिको अत्यधिक प्रयोगले गिद्धको विनाश भएपछि सरकारले २०६३ जेठ २३ देखि यसको आयातमै रोक लगाएको छ भने हालसम्म ५६ जिल्लालाई डाइक्लोफेनकमुक्त घोषणा गरिएको छ । डाइक्लोफेनक खुवाइएको पशुको सिनो खाएपछि गिद्धको मिर्गौला खराव भई केही दिनमा नै मर्ने क्रम बढ्दै जाँदा गिद्धको सङ्ख्यामा ९५ प्रतिशतले ह्रास आएको छ । विश्वमा २३ प्रजातिका गिद्धहरु रहेकामा नेपालमा पाइने नौ प्रजातिका गिद्धमध्ये डङ्गर र सानो खैरो गिद्ध सङ्कटापन्न अवस्थामा छ । हाडफोर गिद्ध, सेतो गिद्ध, हिमाली गिद्ध, खैरो गिद्ध, राज गिद्ध र सुन्न गिद्धको सङ्ख्यामा पनि ह्रास आएको छ । लोपोन्मुख यस मांसाहारी पक्षीको संरक्षणका लागि चितवन राष्ट्रिय निकुञ्जभित्रको कसरा क्षेत्रमा २०६५ वैशाखमा गिद्ध प्रजनन केन्द्रको स्थापना गरिएको छ । यस रेस्टुराँको सफलतापछि रुपन्देहीको गैडहवा ताल, दाङको लालमटिया र बिजौरी, कैलालीको खुटिया, कास्कीको घाचोक र सुनसरीको रामधुनीमा पनि जटायु रेस्टुराँको स्थापना गरिएका छन् । गिद्ध संरक्षणका लागि विश्वमा ३०० भन्दा बढी रेस्टुराँ स्थापना भएको भए पनि समुदायस्तरबाट सञ्चालन भएको यो नै पहिलो रेस्टुराँ हो । दक्षिण अफ्रिकामा मात्रै २०० भन्दा बढी गिद्ध रेस्टुराँ रहेका बताइन्छ । रासस
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राष्ट्रकै पहिचान बन्दैछ जटायु रेष्टुराँ नवलपरासी, १४ चैत । केही वर्षअघिसम्म गाउँमा कुनै पशु चौपाया मरेमा महिनौँसम्म दुर्गन्ध फैलिने र स्याल, कुकुरजस्ता जनावरले सिनो जथाभावी फैलाउने समस्याले आजित बनेका नवलपरासीको पिठौली र कावासोती क्षेत्रका बासिन्दा अहिले गिद्ध रेष्टुराँ स्थापनापछि यस समस्याबाट मुक्तमात्र भएका छैनन्, अन्तर्राष्ट्रिय जगत्मा गाउँको पहिचान बनेकामा गौरवान्वित छन् । अशुभ र फोहरी पक्षीका रुपमा घृणा र तिरस्कार गरिने सामाजिक धारणालाई चुनौती दिँदै स्थानीय समुदायले रेष्टुराँ स्थापना गरेर थालेको गिद्ध संरक्षण अभियानको अन्तर्राष्ट्रिय समुदायले समेत प्रशंसा गरेका छन् । यही रेष्टुराँले अहिले गाउँको पहिचान देशभित्र मात्र नभएर विश्वमा बढ्न थालेको छ । वन मन्त्रालयको जैविक विविधता तथा वातावरण महाशाखाका प्रमुख डा महेश्वर ढकालका अनुसार एसियामै गिद्ध सङ्कटमा परेका बेला नेपालले संरक्षण अभियान सुरु गरेकामा गत भदौमा अमेरिकाको हवाईमा सम्पन्न अन्तर्राष्ट्रिय प्रकृति संरक्षण सङ्घको विश्व सम्मेलनका सहभागी मुलुकहरुले प्रशंसा गर्दै सिको गर्ने घोषणा गरेका थिए । गिद्धको संरक्षण भएसँगै चितवन घुम्ने पर्यटक, गिद्धका बारेमा अध्ययन अनुसन्धान गर्न आउनेको सङ्ख्या बढेको छ । चितवन राष्ट्रिय निकुञ्जको नमुना मध्यवर्ती सामुदायिक वन क्षेत्रमा रेष्टुराँ स्थापना गरिएपछि स्वदेशी तथा विदेशी पर्यटकको घुइँचो लागेसँगै स्थानीय जनताको जीविकोपार्जनमा समेत सुधार आएको नमुना मध्यवर्ती सामुदायिक वन उपभोक्ता समितिका अध्यक्ष बलिराम महतो बताउनुहुन्छ । करिब ४१५ हेक्टर जमिनमा रेष्टुराँ स्थापना गरेर विश्वमै अति सङ्कटापन्न अवस्थामा पुगेको गिद्धको संरक्षण गर्ने अभियानसँगै वातावरण संरक्षण र जैविक विविधताको क्षेत्रमा उल्लेखनीय कार्य भएको छ । यस रेष्टुराँलाई पर्यटकीय गन्तव्यका रुपमा विकास गर्न सकिने प्रशस्त सम्भावना छ । पूर्व–पश्चिम राजमार्गको नारायणघाट–बुटवल खण्डस्थित कावासोतीबाट चार किलोमिटरको दूरीमा रहेको यस रेष्टुराँमा विश्वमै दुर्लभ पाँच प्रजातिका गिद्धको अवलोकन गर्न सकिन्छ । यहाँ थारु संस्कृति अवलोकन, नमुना घाँसेमैदान व्यवस्थापन, दुर्लभ एकसिङ्गे गैँडा, पाटेबाघलगायत विभिन्न पशुपक्षीको अवलोकन गर्न सकिने र होमस्टेमा बस्ने सुविधा रहेकाले पर्यटकको चहलपहल बढ्न थालेको छ । गिद्ध संरक्षणका लागि पूर्वाधार विकाससँगै जनचेतना अभिवृद्धि तथा स्थानीय समुदायको जीवनस्तरमा पनि सुधार ल्याउन विभिन्न सङ्घसंस्थाको सहयोगमा आयमूलक क्रियाकलापहरु सञ्चालन गरिएका छन् । वन तथा जैविक विविधता संरक्षणमा देशकै नमुना केन्द्रका रुपमा विकास गर्न १० वर्षे गुरुयोजना बनाउन लागिएको जटायु रेष्टुराँ व्यवस्थापन समितिका अध्यक्ष डिबी चौधरी बताउनुहुन्छ । रेष्टुराँको व्यवस्थापनका लागि यहाँ भ्र��ण गर्न आउने विदेशी पर्यटकका लागि रु ५०० र नेपालीलाई रु ५० शुल्क लिने गरिएको छ । गिद्धले सिनो खाएर छाडेका हड्डी र छाला बिक्री गरेर वर्षमा करिब रु ७० हजार आम्दानी हुने गरेको र यसबाट रेष्टुराँको सञ्चालन गर्न धौधौ परेको उहाँको भनाइ छ । सुरुमा गिद्ध रेष्टुराँ स्थापना गर्न स्थानीयवासीले विरोध जनाएका थिए । गाउँनजिकै मरेको सिनो राख्दा गाउँ नै दुर्गन्ध हुन्छ भन्ने भ्रम गाउँलेमा थियो । चौधरी भन्नुहुन्छ – “अहिले विस्तारै यसको महत्व बुझेपछि सबै गिद्धको संरक्षणमा एकचित्त भएका छन् ।” नेपाल पक्षी संरक्षणको पहल र स्थानीयवासीको सक्रियतामा २०६४ भदौमा स्थापना भएको यस रेष्टुराँलाई सुरुमा रोयल सोसाइटी प्रोटेक्सन अफ वल्र्ड, युकेले सहयोग पु¥याएको थियो भने हाल यसको सञ्चालनका लागि संयुक्त राष्ट्रसङ्घीय विकास कार्यक्रम, विश्व वातावरण कोष÷साना अनुदान कार्यक्रमले आर्थिक तथा प्राविधिक सहयोग गरिरहेको छ । कार्यक्रमको सहयोगमा मध्यवर्ती क्षेत्रका बासिन्दालाई गिद्धको उपयोगिताबारे जनचेतना फैलाई यसको संरक्षणतर्फ विभिन्न कार्यक्रमहरु सञ्चालन गरिएका छन् । समुदायको सहभागितामा जैविक विविधताको संरक्षण र जीविकोपार्जनका क्रियाकलापलाई एकैसाथ अगाडि बढाइएमा त्यसले सकारात्मक परिवर्तन ल्याउनसक्ने यस रेष्टुराँबाट पुष्टि भएको कार्यक्रमका राष्ट्रिय प्रबन्धक गोपाल शेरचन बताउनुहुन्छ । जटायु रेष्टुराँलाई व्यवस्थित तुल्याउन गौरक्ष केन्द्र स्थापना गरी बुढा गाईगोरु पाल्ने प्रबन्ध मिलाइएको छ । जहाँ पशुहरू सङ्कलन गर्ने, पाल्ने र मरेपछि मात्र सो सिनो गिद्धलाई खुवाउने गरिन्छ । “पहिले एउटा सिनो फाल्न दुई÷चार सय रुपैयाँ खर्च लाग्थ्यो, महिनौँसम्म दुर्गन्ध फैलन्थ्यो, अहिले बुढा गाईगोरु बेचेर उल्टै चार÷पाँच सय आम्दानी हुने र वातावरण पनि स्वच्छ बन्ने नेचर गाइड होमनाथ गौतमको कथन छ । गिद्धले पशु मरेको आधा घन्टामै खाने भएकाले प्रदूषण र अनेक रोगको महामारी फैलन पाउँदैन । गिद्ध संरक्षणबाट जैविक विविधता र वातावरणको सन्तुलन मात्र होइन, मानिस र पक्षीबीचको अनुपम सम्बन्धले पारिस्थितीय प्रणालीलाई मजबुत बनाउन मद्दत गरेको छ । आफैँ सिकार नगरी मरेका जनावर मात्र खाने गिद्धलाई प्रदूषित र दुर्गन्धित वातावरणलाई स्वच्छ र सफा राखी विभिन्न महामारी हुन नदिने भएकाले प्रकृतिको कुचीकारको रुपमा लिने गरिन्छ । गिद्धको सङ्ख्यामा एक्कासि कमी आएपछि विश्वव्यापीरुपमै संरक्षण अभियान थालिएको छ । केही वर्षयता पशुको उपचारमा प्रयोग गरिने डाइक्लोफेनक औषधिको अत्यधिक प्रयोगले गिद्धको विनाश भएपछि सरकारले २०६३ जेठ २३ देखि यसको आयातमै रोक लगाएको छ भने हालसम्म ५६ जिल्लालाई डाइक्लोफेनकमुक्त घोषणा गरिएको छ । डाइक्लोफेनक खुवाइएको पशुको सिनो खाएपछि गिद्धको मिर्गौला खराव भई केही दिनमा नै मर्ने क्रम बढ्दै जाँदा गिद्धको सङ्ख्यामा ९५ प्रतिशतले ह्रास आएको छ । विश्वमा २३ प्रजातिका गिद्धहरु रहेकामा नेपालमा पाइने नौ प्रजातिका गिद्धमध्ये डङ्गर र सानो खैरो गिद्ध सङ्कटापन्न अवस्थामा छ । हाडफोर गिद्ध, सेतो गिद्ध, हिमाली गिद्ध, खैरो गिद्ध, राज गिद्ध र सुन्न गिद्धको सङ्ख्यामा पनि ह्रास आएको छ । लोपोन्मुख यस मांसाहारी पक्षीको संरक्षणका लागि चितवन राष्ट्रिय निकुञ्जभित्रको कसरा क्षेत्रमा २०६५ वैशाखमा गिद्ध प्रजनन केन्द्रको स्थापना गरिएको छ । यस रेस्टुराँको सफलतापछि रुपन्देहीको गैडहवा ताल, दाङको लालमटिया र बिजौरी, कैलालीको खुटिया, कास्कीको घाचोक र सुनसरीको रामधुनीमा पनि जटायु रेस्टुराँको स्थापना गरिएका छन् । गिद्ध संरक्षणका लागि विश्वमा ३०० भन्दा बढी रेस्टुराँ स्थापना भएको भए पनि समुदायस्तरबाट सञ्चालन भएको यो नै पहिलो रेस्टुराँ हो । दक्षिण अफ्रिकामा मात्रै २०० भन्दा बढी गिद्ध रेस्टुराँ रहेका बताइन्छ । The post राष्ट्रकै पहिचान बन्दैछ जटायु रेष्टुराँ appeared first on Etajakhabar.
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नयाँ चरा पत्ता लगाउने नेपाली अनुसन्धानकर्ता सम्मानित
१६ माघ, काठमाडौं । सन् २०१६ मा नेपालका लागि तीन प्रजातीका नयाँ चरा पत्ता लगाउने अनुसन्धानकर्ताहरु सम्मानित भएका छन् । नेपाल पन्छी संरक्षण संघको ३४ औ वार्षिक साधारण सभाको कार्यक्रममा नेपालका लागि नयाँ प्रजाती रुफस टेल्ड रक थ्रस चरा पत्ता लगाउने नरेश कुसी नेतृत्वको समूह, ग्रे साइडेड थ्रस पत्ता लगाउने सोम जिसी नेतृत्वको समूह र वेस्ट हिमालयन बुस वाब्लर पत्ता लगाउने हठन चौधरी नेतृत्वको समूहलाई संघले सम्मानित गरेको हो ।
यससँगै नेपालमा पाइने चराको प्रजाती संख्या ८८४ पुगेको छ ।
उनीहरुको कामको उच्च मूल्याङ्कन गर्दै सम्मान गरिएको नेपाल पन्छी संरक्षण संघका प्रमुख कार्यकारी अधिकृत डा. नरेन्द्रमान बाबु प्रधानले बताए ।
यसैबीच स्वस्थ वातावरणको सूचक चराहरुमा बढ्दो शहरीकरणले पारेको प्रभाव अध्ययन र संरक्षण अभियानको पहिलो वर्ष काठमाडौंमा सम्पन्न गरिएको छ । अभियान अन्तर्गत राष्ट्रिय निकुञ्ज तथा वन्यजन्तु संरक्षण विभाग र राष्ट्रिय प्रकृति संरक्षण कोषसँगको सहकार्यमा चितवन राष्ट्रिय निकुञ्जको कसरामा रहेको गिद्ध संरक्षण तथा प्रजनन केन्द्रमा हुर्काइएका प्रजननअयोग्य गिद्धहरुलाई बिस्तारै सुरक्षित प्राकृतिक बासस्थानमा पुनःस्थापना गर्ने कार्यक्रमको सुरुवात गरिएको छ ।
प्रजनन् अयोग्ग ठहरिएका ति गिद्धहरुलाई नवलपरासीको कावासोतीमा रहेको जटायु रेष्टुरेन्ट क्षेत्रमा सफलतापूर्वक प्राकृतिक बासस्थानमा पुनःस्थापना गरी तिनीहरुको नियमित अनुगमन गरिने संघका गिद्ध संरक्षण कार्यक्रम अधिकृत कृष्ण भुसालले जानकारी दिए ।
कर्याङ-कुरुङ सारसको मुस्ताङमा गरिएको बसाइँसराइ अनुगमन र अध्ययनको सुरुवात यसै वर्ष गरिएको र यस अध्ययनलाई नियमित गर्ने संघका बरिष्ठ कार्यक्रम अधिकृत ज्योतेन्द्र ठकुरीले जानकारी दिए ।
संघका अध्यक्ष युवराज बस्नेतको अध्यक्षता र वन तथा भू-संरक्षण मन्त्रालयका निमित्त सचिव प्रेम कंडेलको प्रमुख आतिथ्यतमा सम्पन्न ३४ औं वार्षिक साधरण सभामा कार्यक्रम तथा आर्थिक प्रतिवेदन क्रमशः महासचिव ��ाजेन्द्र गुरुङ र कोषाध्यक्ष अशोकबहादुर मल्लले प्रस्तुत गरेका थिए ।
समारोहमा उपस्थित अतिथी, संस्थाका सल्लाहकार, सदस्यहरु र पन्छी तथा वातावरणविदरुले अझ सशक्त ढंगबाट पन्छी, वातावरण, जैविक विविधता जोगाउन लाग्न संस्थालाई सुझाव दिएका थिए ।
सन् १९८२ मा स्थापना भएको नेपाल पंक्षी संरक्षण संघले नेपालमा पंक्षीहरुको वैज्ञानिक अध्ययन तथा संरक्षण र बासस्थान व्यवस्थापनमा नेतृत्वदायी भूमिका खेल्दै आएको छ । बर्डलाइफ इन्टरनेशनल साझेदार रहेको संघले गिद्ध, खरमजुर जस्ता लोपोन्मुख, अतिसंकटापन्न तथा दुर्लभ चराहरुको वैज्ञानिक अध्ययन तथा संरक्षणका कार्यहरुका साथै चरा र जैविक विविधताको लागि काम गदर्ैै आएको छ ।
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राष्ट्रकै पहिचान बन्दैछ जटायु रेष्टुराँ नवलपरासी, १४ चैत । केही वर्षअघिसम्म गाउँमा कुनै पशु चौपाया मरेमा महिनौँसम्म दुर्गन्ध फैलिने र स्याल, कुकुरजस्ता जनावरले सिनो जथाभावी फैलाउने समस्याले आजित बनेका नवलपरासीको पिठौली र कावासोती क्षेत्रका बासिन्दा अहिले गिद्ध रेष्टुराँ स्थापनापछि यस समस्याबाट मुक्तमात्र भएका छैनन्, अन्तर्राष्ट्रिय जगत्मा गाउँको पहिचान बनेकामा गौरवान्वित छन् । अशुभ र फोहरी पक्षीका रुपमा घृणा र तिरस्कार गरिने सामाजिक धारणालाई चुनौती दिँदै स्थानीय समुदायले रेष्टुराँ स्थापना गरेर थालेको गिद्ध संरक्षण अभियानको अन्तर्राष्ट्रिय समुदायले समेत प्रशंसा गरेका छन् । यही रेष्टुराँले अहिले गाउँको पहिचान देशभित्र मात्र नभएर विश्वमा बढ्न थालेको छ । वन मन्त्रालयको जैविक विविधता तथा वातावरण महाशाखाका प्रमुख डा महेश्वर ढकालका अनुसार एसियामै गिद्ध सङ्कटमा परेका बेला नेपालले संरक्षण अभियान सुरु गरेकामा गत भदौमा अमेरिकाको हवाईमा सम्पन्न अन्तर्राष्ट्रिय प्रकृति संरक्षण सङ्घको विश्व सम्मेलनका सहभागी मुलुकहरुले प्रशंसा गर्दै सिको गर्ने घोषणा गरेका थिए । गिद्धको संरक्षण भएसँगै चितवन घुम्ने पर्यटक, गिद्धका बारेमा अध्ययन अनुसन्धान गर्न आउनेको सङ्ख्या बढेको छ । चितवन राष्ट्रिय निकुञ्जको नमुना मध्यवर्ती सामुदायिक वन क्षेत्रमा रेष्टुराँ स्थापना गरिएपछि स्वदेशी तथा विदेशी पर्यटकको घुइँचो लागेसँगै स्थानीय जनताको जीविकोपार्जनमा समेत सुधार आएको नमुना मध्यवर्ती सामुदायिक वन उपभोक्ता समितिका अध्यक्ष बलिराम महतो बताउनुहुन्छ । करिब ४१५ हेक्टर जमिनमा रेष्टुराँ स्थापना गरेर विश्वमै अति सङ्कटापन्न अवस्थामा पुगेको गिद्धको संरक्षण गर्ने अभियानसँगै वातावरण संरक्षण र जैविक विविधताको क्षेत्रमा उल्लेखनीय कार्य भएको छ । यस रेष्टुराँलाई पर्यटकीय गन्तव्यका रुपमा विकास गर्न सकिने प्रशस्त सम्भावना छ । पूर्व–पश्चिम राजमार्गको नारायणघाट–बुटवल खण्डस्थित कावासोतीबाट चार किलोमिटरको दूरीमा रहेको यस रेष्टुराँमा विश्वमै दुर्लभ पाँच प्रजातिका गिद्धको अवलोकन गर्न सकिन्छ । यहाँ थारु संस्कृति अवलोकन, नमुना घाँसेमैदान व्यवस्थापन, दुर्लभ एकसिङ्गे गैँडा, पाटेबाघलगायत विभिन्न पशुपक्षीको अवलोकन गर्न सकिने र होमस्टेमा बस्ने सुविधा रहेकाले पर्यटकको चहलपहल बढ्न थालेको छ । गिद्ध संरक्षणका लागि पूर्वाधार विकाससँगै जनचेतना अभिवृद्धि तथा स्थानीय समुदायको जीवनस्तरमा पनि सुधार ल्याउन विभिन्न सङ्घसंस्थाको सहयोगमा आयमूलक क्रियाकलापहरु सञ्चालन गरिएका छन् । वन तथा जैविक विविधता संरक्षणमा देशकै नमुना केन्द्रका रुपमा विकास गर्न १० वर्षे गुरुयोजना बनाउन लागिएको जटायु रेष्टुराँ व्यवस्थापन समितिका अध्यक्ष डिबी चौधरी बताउनुहुन्छ । रेष्टुराँको व्यवस्थापनका लागि यहाँ भ्रमण गर्न आउने विदेशी पर्यटकका लागि रु ५०० र नेपालीलाई रु ५० शुल्क लिने गरिएको छ । गिद्धले सिनो खाएर छाडेका हड्डी र छाला बिक्री गरेर वर्षमा करिब रु ७० हजार आम्दानी हुने गरेको र यसबाट रेष्टुराँको सञ्चालन गर्न धौधौ परेको उहाँको भनाइ छ । सुरुमा गिद्ध रेष्टुराँ स्थापना गर्न स्थानीयवासीले विरोध जनाएका थिए । गाउँनजिकै मरेको सिनो राख्दा गाउँ नै दुर्गन्ध हुन्छ भन्ने भ्रम गाउँलेमा थियो । चौधरी भन्नुहुन्छ – “अहिले विस्तारै यसको महत्व बुझेपछि सबै गिद्धको संरक्षणमा एकचित्त भएका छन् ।” नेपाल पक्षी संरक्षणको पहल र स्थानीयवासीको सक्रियतामा २०६४ भदौमा स्थापना भएको यस रेष्टुराँलाई सुरुमा रोयल सोसाइटी प्रोटेक्सन अफ वल्र्ड, युकेले सहयोग पु¥याएको थियो भने हाल यसको सञ्चालनका लागि संयुक्त राष्ट्रसङ्घीय विकास कार्यक्रम, विश्व वातावरण कोष÷साना अनुदान कार्यक्रमले आर्थिक तथा प्राविधिक सहयोग गरिरहेको छ । कार्यक्रमको सहयोगमा मध्यवर्ती क्षेत्रका बासिन्दालाई गिद्धको उपयोगिताबारे जनचेतना फैलाई यसको संरक्षणतर्फ विभिन्न कार्यक्रमहरु सञ्चालन गरिएका छन् । समुदायको सहभागितामा जैविक विविधताको संरक्षण र जीविकोपार्जनका क्रियाकलापलाई एकैसाथ अगाडि बढाइएमा त्यसले सकारात्मक परिवर्तन ल्याउनसक्ने यस रेष्टुराँबाट पुष्टि भएको कार्यक्रमका राष्ट्रिय प्रबन्धक गोपाल शेरचन बताउनुहुन्छ । जटायु रेष्टुराँलाई व्यवस्थित तुल्याउन गौरक्ष केन्द्र स्थापना गरी बुढा गाईगोरु पा���्ने प्रबन्ध मिलाइएको छ । जहाँ पशुहरू सङ्कलन गर्ने, पाल्ने र मरेपछि मात्र सो सिनो गिद्धलाई खुवाउने गरिन्छ । “पहिले एउटा सिनो फाल्न दुई÷चार सय रुपैयाँ खर्च लाग्थ्यो, महिनौँसम्म दुर्गन्ध फैलन्थ्यो, अहिले बुढा गाईगोरु बेचेर उल्टै चार÷पाँच सय आम्दानी हुने र वातावरण पनि स्वच्छ बन्ने नेचर गाइड होमनाथ गौतमको कथन छ । गिद्धले पशु मरेको आधा घन्टामै खाने भएकाले प्रदूषण र अनेक रोगको महामारी फैलन पाउँदैन । गिद्ध संरक्षणबाट जैविक विविधता र वातावरणको सन्तुलन मात्र होइन, मानिस र पक्षीबीचको अनुपम सम्बन्धले पारिस्थितीय प्रणालीलाई मजबुत बनाउन मद्दत गरेको छ । आफैँ सिकार नगरी मरेका जनावर मात्र खाने गिद्धलाई प्रदूषित र दुर्गन्धित वातावरणलाई स्वच्छ र सफा राखी विभिन्न महामारी हुन नदिने भएकाले प्रकृतिको कुचीकारको रुपमा लिने गरिन्छ । गिद्धको सङ्ख्यामा एक्कासि कमी आएपछि विश्वव्यापीरुपमै संरक्षण अभियान थालिएको छ । केही वर्षयता पशुको उपचारमा प्रयोग गरिने डाइक्लोफेनक औषधिको अत्यधिक प्रयोगले गिद्धको विनाश भएपछि सरकारले २०६३ जेठ २३ देखि यसको आयातमै रोक लगाएको छ भने हालसम्म ५६ जिल्लालाई डाइक्लोफेनकमुक्त घोषणा गरिएको छ । डाइक्लोफेनक खुवाइएको पशुको सिनो खाएपछि गिद्धको मिर्गौला खराव भई केही दिनमा नै मर्ने क्रम बढ्दै जाँदा गिद्धको सङ्ख्यामा ९५ प्रतिशतले ह्रास आएको छ । विश्वमा २३ प्रजातिका गिद्धहरु रहेकामा नेपालमा पाइने नौ प्रजातिका गिद्धमध्ये डङ्गर र सानो खैरो गिद्ध सङ्कटापन्न अवस्थामा छ । हाडफोर गिद्ध, सेतो गिद्ध, हिमाली गिद्ध, खैरो गिद्ध, राज गिद्ध र सुन्न गिद्धको सङ्ख्यामा पनि ह्रास आएको छ । लोपोन्मुख यस मांसाहारी पक्षीको संरक्षणका लागि चितवन राष्ट्रिय निकुञ्जभित्रको कसरा क्षेत्रमा २०६५ वैशाखमा गिद्ध प्रजनन केन्द्रको स्थापना गरिएको छ । यस रेस्टुराँको सफलतापछि रुपन्देहीको गैडहवा ताल, दाङको लालमटिया र बिजौरी, कैलालीको खुटिया, कास्कीको घाचोक र सुनसरीको रामधुनीमा पनि जटायु रेस्टुराँको स्थापना गरिएका छन् । गिद्ध संरक्षणका लागि विश्वमा ३०० भन्दा बढी रेस्टुराँ स्थापना भएको भए पनि समुदायस्तरबाट सञ्चालन भएको यो नै पहिलो रेस्टुराँ हो । दक्षिण अफ्रिकामा मात्रै २०० भन्दा बढी गिद्ध रेस्टुराँ रहेका बताइन्छ । The post राष्ट्रकै पहिचान बन्दैछ जटायु रेष्टुराँ appeared first on Etajakhabar.
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राष्ट्रकै पहिचान बन्दैछ जटायु रेष्टुराँ नवलपरासी, १४ चैत । केही वर्षअघिसम्म गाउँमा कुनै पशु चौपाया मरेमा महिनौँसम्म दुर्गन्ध फैलिने र स्याल, कुकुरजस्ता जनावरले सिनो जथाभावी फैलाउने समस्याले आजित बनेका नवलपरासीको पिठौली र कावासोती क्षेत्रका बासिन्दा अहिले गिद्ध रेष्टुराँ स्थापनापछि यस समस्याबाट मुक्तमात्र भएका छैनन्, अन्तर्राष्ट्रिय जगत्मा गाउँको पहिचान बनेकामा गौरवान्वित छन् । अशुभ र फोहरी पक्षीका रुपमा घृणा र तिरस्कार गरिने सामाजिक धारणालाई चुनौती दिँदै स्थानीय समुदायले रेष्टुराँ स्थापना गरेर थालेको गिद्ध संरक्षण अभियानको अन्तर्राष्ट्रिय समुदायले समेत प्रशंसा गरेका छन् । यही रेष्टुराँले अहिले गाउँको पहिचान देशभित्र मात्र नभएर विश्वमा बढ्न थालेको छ । वन मन्त्रालयको जैविक विविधता तथा वातावरण महाशाखाका प्रमुख डा महेश्वर ढकालका अनुसार एसियामै गिद्ध सङ्कटमा परेका बेला नेपालले संरक्षण अभियान सुरु गरेकामा गत भदौमा अमेरिकाको हवाईमा सम्पन्न अन्तर्राष्ट्रिय प्रकृति संरक्षण सङ्घको विश्व सम्मेलनका सहभागी मुलुकहरुले प्रशंसा गर्दै सिको गर्ने घोषणा गरेका थिए । गिद्धको संरक्षण भएसँगै चितवन घुम्ने पर्यटक, गिद्धका बारेमा अध्ययन अनुसन्धान गर्न आउनेको सङ्ख्या बढेको छ । चितवन राष्ट्रिय निकुञ्जको नमुना मध्यवर्ती सामुदायिक वन क्षेत्रमा रेष्टुराँ स्थापना गरिएपछि स्वदेशी तथा विदेशी पर्यटकको घुइँचो लागेसँगै स्थानीय जनताको जीविकोपार्जनमा समेत सुधार आएको नमुना मध्यवर्ती सामुदायिक वन उपभोक्ता समितिका अध्यक्ष बलिराम महतो बताउनुहुन्छ । करिब ४१५ हेक्टर जमिनमा रेष्टुराँ स्थापना गरेर विश्वमै अति सङ्कटापन्न अवस्थामा पुगेको गिद्धको संरक्षण गर्ने अभियानसँगै वातावरण संरक्षण र जैविक विविधताको क्षेत्रमा उल्लेखनीय कार्य भएको छ । यस रेष्टुराँलाई पर्यटकीय गन्तव्यका रुपमा विकास गर्न सकिने प्रशस्त सम्भावना छ । पूर्व–पश्चिम राजमार्गको नारायणघाट–बुटवल खण्डस्थित कावासोतीबाट चार किलोमिटरको दूरीमा रहेको यस रेष्टुराँमा विश्वमै दुर्लभ पाँच प्रजातिका गिद्धको अवलोकन गर्न सकिन्छ । यहाँ थारु संस्कृति अवलोकन, नमुना घाँसेमैदान व्यवस्थापन, दुर्लभ एकसिङ्गे गैँडा, पाटेबाघलगायत विभिन्न पशुपक्षीको अवलोकन गर्न सकिने र होमस्टेमा बस्ने सुविधा रहेकाले पर्यटकको चहलपहल बढ्न थालेको छ । गिद्ध संरक्षणका लागि पूर्वाधार विकाससँगै जनचेतना अभिवृद्धि तथा स्थानीय समुदायको जीवनस्तरमा पनि सुधार ल्याउन विभिन्न सङ्घसंस्थाको सहयोगमा आयमूलक क्रियाकलापहरु सञ्चालन गरिएका छन् । वन तथा जैविक विविधता संरक्षणमा देशकै नमुना केन्द्रका रुपमा विकास गर्न १० वर्षे गुरुयोजना बनाउन लागिएको जटायु रेष्टुराँ व्यवस्थापन समितिका अध्यक्ष डिबी चौधरी बताउनुहुन्छ । रेष्टुराँको व्यवस्थापनका लागि यहाँ भ्रमण गर्न आउने विदेशी पर्यटकका लागि रु ५०० र नेपालीलाई रु ५० शुल्क लिने गरिएको छ । गिद्धले सिनो खाएर छाडेका हड्डी र छाला बिक्री गरेर वर्षमा करिब रु ७० हजार आम्दानी हुने गरेको र यसबाट रेष्टुराँको सञ्चालन गर्न धौधौ परेको उहाँको भनाइ छ । सुरुमा गिद्ध रेष्टुराँ स्थापना गर्न स्थानीयवासीले विरोध जनाएका थिए । गाउँनजिकै मरेको सिनो राख्दा गाउँ नै दुर्गन्ध हुन्छ भन्ने भ्रम गाउँलेमा थियो । चौधरी भन्नुहुन्छ – “अहिले विस्तारै यसको महत्व बुझेपछि सबै गिद्धको संरक्षणमा एकचित्त भएका छन् ।” नेपाल पक्षी संरक्षणको पहल र स्थानीयवासीको सक्रियतामा २०६४ भदौमा स्थापना भएको यस रेष्टुराँलाई सुरुमा रोयल सोसाइटी प्रोटेक्सन अफ वल्र्ड, युकेले सहयोग पु¥याएको थियो भने हाल यसको सञ्चालनका लागि संयुक्त राष्ट्रसङ्घीय विकास कार्यक्रम, विश्व वातावरण कोष÷साना अनुदान कार्यक्रमले आर्थिक तथा प्राविधिक सहयोग गरिरहेको छ । कार्यक्रमको सहयोगमा मध्यवर्ती क्षेत्रका बासिन्दालाई गिद्धको उपयोगिताबारे जनचेतना फैलाई यसको संरक्षणतर्फ विभिन्न कार्यक्रमहरु सञ्चालन गरिएका छन् । समुदायको सहभागितामा जैविक विविधताको संरक्षण र जीविकोपार्जनका क्रियाकलापलाई एकैसाथ अगाडि बढाइएमा त्यसले सकारात्मक परिवर्तन ल्याउनसक्ने यस रेष्टुराँबाट पुष्टि भएको कार्यक्रमका राष्ट्रिय प्रबन्धक गोपाल शेरचन बताउनुहुन्छ । जटायु रेष्टुराँलाई व्यवस्थित तुल्याउन गौरक्ष केन्द्र स्थापना गरी बुढा गाईगोरु पाल्ने प्रबन्ध मिलाइएको छ । जहाँ पशुहरू सङ्कलन गर्ने, पाल्ने र मरेपछि मात्र सो सिनो गिद्धलाई खुवाउने गरिन्छ । “पहिले एउटा सिनो फाल्न दुई÷चार सय रुपैयाँ खर्च लाग्थ्यो, महिनौँसम्म दुर्गन्ध फैलन्थ्यो, अहिले बुढा गाईगोरु बेचेर उल्टै चार÷पाँच सय आम्दानी हुने र वातावरण पनि स्वच्छ बन्ने नेचर गाइड होमनाथ गौतमको कथन छ । गिद्धले पशु मरेको आधा घन्टामै खाने भएकाले प्रदूषण र अनेक रोगको महामारी फैलन पाउँदैन । गिद्ध संरक्षणबाट जैविक विविधता र वातावरणको सन्तुलन मात्र होइन, मानिस र पक्षीबीचको अनुपम सम्बन्धले पारिस्थितीय प्रणालीलाई मजबुत बनाउन मद्दत गरेको छ । आफैँ सिकार नगरी मरेका जनावर मात्र खाने गिद्धलाई प्रदूषित र दुर्गन्धित वातावरणलाई स्वच्छ र सफा राखी विभिन्न महामारी हुन नदिने भएकाले प्रकृतिको कुचीकारको रुपमा लिने गरिन्छ । गिद्धको सङ्ख्यामा एक्कासि कमी आएपछि विश्वव्यापीरुपमै संरक्षण अभियान थालिएको छ । केही वर्षयता पशुको उपचारमा प्रयोग गरिने डाइक्लोफेनक औषधिको अत्यधिक प्रयोगले गिद्धको विनाश भएपछि सरकारले २०६३ जेठ २३ देखि यसको आयातमै रोक लगाएको छ भने हालसम्म ५६ जिल्लालाई डाइक्लोफेनकमुक्त घोषणा गरिएको छ । डाइक्लोफेनक खुवाइएको पशुको सिनो खाएपछि गिद्धको मिर्गौला खराव भई केही दिनमा नै मर्ने क्रम बढ्दै जाँदा गिद्धको सङ्ख्यामा ९५ प्रतिशतले ह्रास आएको छ । विश्वमा २३ प्रजातिका गिद्धहरु रहेकामा नेपालमा पाइने नौ प्रजातिका गिद्धमध्ये डङ्गर र सानो खैरो गिद्ध सङ्कटापन्न अवस्थामा छ । हाडफोर गिद्ध, सेतो गिद्ध, हिमाली गिद्ध, खैरो गिद्ध, राज गिद्ध र सुन्न गिद्धको सङ्ख्यामा पनि ह्रास आएको छ । लोपोन्मुख यस मांसाहारी पक्षीको संरक्षणका लागि चितवन राष्ट्रिय निकुञ्जभित्रको कसरा क्षेत्रमा २०६५ वैशाखमा गिद्ध प्रजनन केन्द्रको स्थापना गरिएको छ । यस रेस्टुराँको सफलतापछि रुपन्देहीको गैडहवा ताल, दाङको लालमटिया र बिजौरी, कैलालीको खुटिया, कास्कीको घाचोक र सुनसरीको रामधुनीमा पनि जटायु रेस्टुराँको स्थापना गरिएका छन् । गिद्ध संरक्षणका लागि विश्वमा ३०० भन्दा बढी रेस्टुराँ स्थापना भएको भए पनि समुदायस्तरबाट सञ्चालन भएको यो नै पहिलो रेस्टुराँ हो । दक्षिण अफ्रिकामा मात्रै २०० भन्दा बढी गिद्ध रेस्टुराँ रहेका बताइन्छ । The post राष्ट्रकै पहिचान बन्दैछ जटायु रेष्टुराँ appeared first on Etajakhabar.
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