#दुकान में ग्राहक नहीं आ रहे हैं
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दुकान में ग्राहक नहीं आ रहे हैं तो करें ये उपाए, 100% दुकान रहेगी फुल
दुकान में ग्राहक नहीं आ रहे हैं, ऐसी समस्या की शिकायत अक्सर बहुत से लोग करते हैं। लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो पाता। आज हम आपको बताए���गे कुछ ऐसे उपाय या टोटके जिनकी मदद से आपकी दुकान में कस्टमर आना शुरू हो जायेंगे।
मार्किट में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो दूसरों की सफलता से जलते हैं और उन्हें निचे गिराने के लिए कोई न कोई टोन टोटके करते हैं ताकि वे उनसे बड़े व्यापारी न बन जाये। ऐसे में इस प्रकार के लोगों से बचने के लिए बहुत से उपाय दिए गए हैं, जिन्हे हम आज आपके साथ साझा करेंगे। Read more…
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यह सच्ची घटना मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैं इसको भेजने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूं
प्रार्थना सच्ची और दिल से हो तो भगवान किसी न किसी रूप में हमारी सहायता कर ही देते हैं यह वास्तव में बिल्कुल सही बात है
*एक मेजर के नेतृत्व में 15 जवानों की एक टुकड़ी हिमालय के अपने रास्ते पर थी*
बेतहाशा ठण्ड में मेजर ने सोचा की अगर उन्हें यहाँ एक कप चाय मिल जाती तो आगे बढ़ने की ताकत आ जाती
लेकिन रात का समय था आपस कोई बस्ती भी नहीं थी
लगभग एक घंटे की चढ़ाई के पश्चात् उन्हें एक जर्जर चाय की दुकान दिखाई दी
लेकिन अफ़सोस उस पर *ताला* लगा था.
भूख और थकान की तीव्रता के चलते जवानों के आग्रह पर मेजर साहब दुकान का ताला तुड़वाने को राज़ी हो गया खैर ताला तोडा गया
तो अंदर उन्हें चाय बनाने का सभी सामान मिल गया
*जवानों ने चाय बनाई साथ वहां रखे बिस्किट आदि खाकर खुद को राहत दी थकान से उबरने के पश्चात् सभी आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे* लेकिन मेजर साहब को यूँ चोरो की तरह दुकान का ताला तोड़ने के कारण *आत्मग्लानि* हो रही थी
उन्होंने अपने पर्स में से एक हज़ार का नोट निकाला और चीनी के डब्बे के नीचे दबाकर रख दिया तथा दुकान का शटर ठीक से बंद करवाकर आगे बढ़ गए.
तीन महीने की समाप्ति पर इस टुकड़ी के सभी 15 जवान सकुशल अपने मेजर के नेतृत्व में उसी रास्ते से वापिस आ रहे थे
रास्ते में उसी चाय की दुकान को खुला देखकर वहां विश्राम करने के लिए रुक गए
उस दुकान का *मालिक* एक बूढ़ा चाय वाला था जो एक साथ इतने ग्राहक देखकर खुश हो गया और उनके लिए चाय बनाने लगा
चाय की चुस्कियों और बिस्कुटों के बीच वो बूढ़े चाय वाले से उसके जीवन के अनुभव पूछने लगे खास्तौर पर इतने बीहड़ में दूकान चलाने के बारे में
बूढ़ा उन्हें कईं कहानियां सुनाता रहा और साथ ही भगवान का शुक्र अदा करता रहा
तभी एक जवान बोला " *बाबा आप भगवान को इतना मानते हो अगर भगवान सच में होता तो फिर उसने तुम्हे इतने बुरे हाल में क्यों रखा हुआ है"*
बाबा बोला *"नहीं साहब ऐसा नहीं कहते भगवान के बारे में,भगवान् तो है और सच में है .... मैंने देखा है"
आखरी वाक्य सुनकर सभी जवान कोतुहल से बूढ़े की ओर देखने लगे
बूढ़ा बोला "साहब मै बहुत मुसीबत में था एक दिन मेरे इकलौते बेटे को आतंकवादीयों ने पकड़ लिया उन्होंने उसे बहुत मारा पिटा लेकिन उसके पास कोई जानकारी नहीं थी इसलिए उन्होंने उसे मार पीट कर छोड़ दिया"
"मैं दुकान बंद करके उसे हॉस्पिटल ले गया मै बहुत तंगी में था साहब और आतंकवादियों के डर से किसी ने उधार भी नहीं दिया"
"मेरे पास दवाइयों के पैसे भी नहीं थे और मुझे कोई उम्मीद नज़र नहीं आती थी उस रात साहब मै बहुत रोया और मैंने भगवान से प्रार्थना की और मदद मांगी "और साहब ... उस रात भगवान मेरी दुकान में खुद आए"
"मै सुबह अपनी दुकान पर पहुंचा ताला टूटा देखकर मुझे लगा की मेरे पास जो कुछ भी थोड़ा बहुत था वो भी सब लुट गया"
" *मै दुकान में घुसा तो देखा 1000 रूपए का एक नोट, चीनी के डब्बे के नीचे भगवान ने मेरे लिए रखा हुआ है"*
"साहब ..... उस दिन एक हज़ार के नोट की कीमत मेरे लिए क्या थी शायद मै बयान न कर पाऊं ... लेकिन भगवान् है साहब ... भगवान् तो है"* बूढ़ा फिर अपने आप में बड़बड़ाया
भगवान् के होने का आत्मविश्वास उसकी आँखों में साफ़ चमक रहा था
यह सुनकर वहां सन्नाटा छा गया
पंद्रह जोड़ी आंखे मेजर की तरफ देख रही थी जिसकी आंख में उन्हें अपने लिए स्पष्ट आदेश था *"चुप रहो "
मेजर साहब उठे, चाय का बिल अदा किया और बूढ़े चाय वाले को गले लगाते हुए बोले "हाँ बाबा मै जनता हूँ भगवान् है.... और तुम्हारी चाय भी शानदार थी"
और उस दिन उन पंद्रह जोड़ी आँखों ने पहली बार मेजर की आँखों में चमकते पानी के दुर्लभ दृश्य का साक्ष्य किया
और
सच्चाई यही है की भगवान तुम्हे कब किसी का भगवान बनाकर कहीं भेज दे ये खुद तुम भी नहीं जानते...........
कूपवाड़ा सेक्टर में घटित एक जवान द्वारा शे��र की गई सच्ची घटना (जम्मू एवं कश्मीर-भारत)
~PPG~
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शरीर छोड़ने के बाद आत्मा का भटकना और दूसरे शरीर में प्रवेश करना
��क अंतिम प्रश्न और फिर हम ध्यान के लिए बैठेगें एक मित्र ने सुबह की चर्चा के बाद पूछा ह�� कि क्या कुछ आत्माएं शरीर छोड़ने के बाद भटकती रह जाती हैं?
कुछ आत्माएं निश्चित ही शरीर छोड़ने के बाद एकदम से दूसरा शरीर ग्रहण नहीं कर पाती हैं। उसका कारण? उसका कारण है। और उसका कारण शायद आपने कभी न सोचा होगा कि यह कारण हो सकता है। दुनिया में अगर हम सारी आत्माओं को विभाजित करें, सारे व्यक्तित्वों को, तो वे तीन तरह के मालूम पड़ेंगे। एक तो अत्यंत निकृष्ट, अत्यंत हीन चित्त के लोग; एक अत्यंत उच्च, अत्यंत श्रेष्ठ, अत्यंत पवित्र किस्म के लोग; और फिर बीच की एक भीड़ जो दोनों का तालमेल है, जो बुरे और भले को मेल —मिलाकर चलती है। जैसे कि अगर डमरू हम देखें, तो डमरू दोनों तरफ चौड़ा है और बीच में पतला होता है। डमरू को उलटा कर लें। दोनों तरफ पतला और बीच में चौड़ा हो जाए तो हम दुनिया की स्थिति समझ लेंगे। दोनों तरफ छोर और बीच में मोटा—डमरू उलटा। इन छोरों पर थोड़ी—सी आत्माएं हैं।
निकृष्टतम आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में और श्रेष्ठ आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में। बीच की आत्माओं को जरा भी देर नहीं लगती। यहां, मरे नहीं, वहां, नई यात्रा शुरू हो गई। उसके कारण हैं। उसका कारण यह है कि साधारण, मीडियाकर मध्य की जो आत्माएं हैं, उनके योग्य गर्भ सदा उपलब्ध रहते हैं।
मैं आपको कहना चाहूंगा कि जैसे ही आदमी मरता है, मरते ही उसके सामने सैकड़ों लोग संभोग करते हुए, सैकड़ों जोड़े दिखाई पड़ते हैं, मरते ही। और जिस जोड़े के प्रति वह आकर्षित हो जाता है वहां, वह गर्भ में प्रवेश कर जाता है। लेकिन बहुत श्रेष्ठ आत्माएं साधारण गर्भ में प्रवेश नहीं कर सकतीं। उनके लिए असाधारण गर्भ की जरूरत है, जहॉं असाधारण संभावनाएं व्यक्तित्व की मिल सकें। तो श्रेष्ठ आत्माओं को रुक जाना पड़ता है। निकृष्ट आत्माओं को भी रुक जाना पडता है, क्योंकि उनके योग्य भी गर्भ नहीं मिलता। क्योंकि उनके योग्य मतलब अत्यंत अयोग्य गर्भ मिलना चाहिए वह भी साधारण नहीं।
श्रेष्ठ और निकृष्ट, दोनों को रुक जाना पड़ता है। साधारण जन एकदम जन्म ले लेता है, उसके लिए कोई कठिनाई नहीं है। उसके लिए निरंतर बाजार में गर्भ उपलब्ध हैं। वह तत्काल किसी गर्भ के प्रति आकर्षित हो जाता है।
सुबह मैंने बारदो की बात की थी। बारदो की प्रक्रिया में मरते हुए आदमी से यह भी कहा जाता है कि अभी तुझे सैकड़ों जोड़े भोग करते हुए, संभोग करते हुए दिखाई पड़ेंगे। तू जरा सोच कर, जरा रुक कर, जरा ठहर कर, गर्भ में प्रवेश करना। जल्दी मत करना, ठहर, थोड़ा ठहर! थोड़ा ठहर कर किसी गर्भ में जाना। एकदम मत चले जाना।
जैसे कोई आदमी बाजार में खरीदने गया है सामान। पहली दुकान पर ही प्रवेश कर जाता है। शो रूम में जो भी लटका हुआ दिखाई पड़ जाता है, वही आकर्षित कर लेता है। लेकिन बुद्धिमान ग्राहक दस द���कान भी देखता है। उलट—पुलट करता है, भाव—ताव करता है, खोज—बीन करता है, फिर निर्णय करता है। नासमझ जल्दी से पहले ही जो चीज उसकी आंख के सामने आ जाती है, वहीं चला जाता है।
तो बारदो की प्रक्रिया में मरते हुए आदमी से कहा जाता है कि सावधान! जल्दी मत करना। जल्दी मत करना। खोजना, सोचना, विचारना, जल्दी मत करना। क्योंकि सैकड़ों लोग निरंतर संभोग में रत हैँ। सैकड़ों जोड़े उसे स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। और जो जोड़ा उसे आकर्षित कर लेता है, और वही जोड़ा उसे आकर्षित करता है जो उसके योग्य गर्भ देने के लिए क्षमतावान होता है।
तो श्रेष्ठ और निकृष्ट आत्माएं रुक जाती हैं। उनको प्रतीक्षा करनी पड़ती है कि जब उनके योग्य गर्भ मिले। निकृष्ट आत्माओं को उतना निकृष्ट गर्भ दिखाई नहीं पड़ता, जहां, वे अपनी संभावनाएं पूरी कर सकें। श्रेष्ठ आत्मा को भी नहीं दिखाई पड़ता।
निकृष्ट आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम प्रेत कहते हैं। और श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम देवता कहते हैं। देवता का अर्थ है, वे श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक गईं। और प्रेत का अर्थ है, भूत का अर्थ है, वे आत्माएं जो निकृष्ट होने के कारण रुक गईं। साधारण जन के लिए निरंतर गर्भ उपलब्ध है। वह तत्काल मरा और प्रवेश कर जाता है। क्षण भर की भी देरी नहीं लगती। यहा समाप्त नहीं हुआ, और वहां, वह प्रवेश करने लगता है।
उन्होंने यह भी पूछा है कि ये जो आत्माएं रुक जाती हैं क्या वे किसी के शरीर में प्रवेश करके उसे परेशान भी कर सकती हैं?
इसकी भी संभावना है। क्योंकि वे आत्माएं, जिनको शरीर नहीं मिलता है, शरीर के बिना बहुत पीड़ित होने लगती हैं। निकृष्ट आत्माएं शरीर के बिना बहुत पीड़ित होने लगती हैं। श्रेष्ठ आत्माएं शरीर के बिना अत्यंत प्रफुल्लित हो जाती हैं। यह फर्क ध्यान में रखना चाहिए। क्योंकि श्रेष्ठ आत्मा शरीर को निरंतर ही किसी न किसी रूप में बंधन अनुभव करती है और चाहती है कि इतनी हलकी हो जाए कि शरीर का बोझ भी न रह जाए। अंततः वह शरीर से भी मुक्त हो जाना चाहती है, क्योंकि शरीर भी एक कारागृह मालूम होता है। अंततः ���से लगता है कि शरीर भी कुछ ऐसे काम करवा लेता है, जो न करने योग्य हैं। इसलिए वह शरीर के लिए बहुत मोहग्रस्त नहीं होता। निकृष्ट आत्मा शरीर के बिना एक क्षण भी नहीं जी सकती। क्योंकि उसका सारा रस, सारा सुख, शरीर से ही बंधा होता है।
शरीर के बिना कुछ आनंद लिये जा सकते हैं। जैसे समझें, एक विचारक है। तो विचारक का जो आनंद है, वह शरीर के बिना भी उपलब्ध हो जाता है। क्योंकि विचार का शरीर से कोई संबंध नहीं है। तो अगर एक विचारक की आत्मा भटक जाए, शरीर न मिले, तो उस आत्मा को शरीर लेने की कोई तीव्रता नहीं होती, क्योंकि विचार का आनंद तब भी लिया जा सकता है। लेकिन समझो कि एक भोजन करने में रस लेने वाला आदमी है, तो शरीर के बिना भोजन करने का रस असंभव है। तो उसके प्राण बड़े छटपटाने लगते हैं कि वह कैसे प्रवेश कर जाए। और उसके योग्य गर्भ न मिलता हो, तो वह किसी कमजोर आत्मा में—कमजोर आत्मा से मतलब है ऐसी आत्मा, जो अपने शरीर की मालिक नहीं है—उस शरीर में वह प्रवेश कर सकता है, किसी कमजोर आत्मा की भय की स्थिति में।
और ध्यान रहे, भय का एक बहुत गहरा अर्थ है। भय का अर्थ है जो सिकोड़ दे। जब आप भयभीत होते हैं, तब आप सिकुड़ जाते हैं। जब आप प्रफुल्लित होते हैं, तो आप फैल जाते हैं। जब कोई व्यक्ति भयभीत होता है, तो उसकी आत्मा सिकुड जाती है और उसके शरीर में बहुत जगह छूट जाती है, जहां, कोई दूसरी आत्मा प्रवेश कर सकती है। एक नहीं, बहुत आत्माएं भी एकदम से प्रवेश कर सकती हैं। इसलिए भय की स्थिति में कोई आत्मा किसी शरीर में प्रवेश कर सकती है। और करने का कुल कारण इतना होता है कि उसके जो रस हैं, वे शरीर से बंधे हैं। वह दूसरे के शरीर में प्रवेश करके रस लेने की कोशिश करती है। इसकी पूरी संभावना है, इसके पूरे तथ्य हैं, इसकी पूरी वास्तविकता है। इसका यह मतलब हुआ कि एक तो भयभीत व्यक्ति हमेशा खतरे में है। जो भयभीत है, उसे खतरा हो सकता है। क्योंकि वह सिकुड़ी हुई हालत में होता है। वह अपने मकान में, अपने घर के एक कमरे में रहता है, बाकी कमरे उसके खाली पड़े रहते हैं। बाकी कमरों में दूसरे लोग मेहमान बन सकते हैं।
कभी—कभी श्रेष्ठ आत्माएं भी शरीर में प्रवेश करती हैं, कभी—कभी। लेकिन उनका प्रवेश बहुत दूसरे कारणों से होता है। कुछ कृत्य हैं करुणा के, जो शरीर के बिना नहीं किए जा सकते। जैसे समझें कि एक घर में आग लगी है और कोई उस घर को आग से बचाने को नहीं जा रहा है। भीड़ बाहर घिरी खड़ी है, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती कि आग में बढ़ जाए। और तब अचानक एक आदमी बढ़ जाता है और वह आदमी बाद में बताता है कि मुझे समझ में नहीं आया कि मैं किस ताकत के प्रभाव में बढ़ गया। मेरी तो हिम्मत न थी। वह बढ़ जाता है और आग बुझाने लगता है और आग बुझा लेता है। और किसी को बचा कर बाहर निकल आता है। और वह आदमी खुद कहता है कि ऐसा लगता है कि मेरे हाथ की बात नहीं है यह, किसी और ने मुझसे यह करवा लिया है। ऐसी किसी घडी में जहां, कि किसी शुभ कार्य के लिए आदमी हिम्मत न जुटा पाता हो, कोई श्रेष्ठ आत्मा भी प्रवेश कर सकती है। लेकिन ये घटनाएं कम होती हैं।
निकृष्ट आत्मा निरंतर शरीर के लिए आतुर रहती है। उसके सारे रस उनसे बंधे हैं। और यह बात भी ध्यान में रख लेनी चाहिए कि मध्य की आत्माओं के लिए कोई बाधा नहीं है, उनके लिए निरंतर गर्भ उपलब्ध हैं।
इसीलिए श्रेष्ठ आत्मायें कभी—कभी सैकड़ों वर्षों के बाद ही पैदा हो पाती हैं। और यह भी जानकर हैरानी होगी कि जब श्रेष्ठ आत्माएं पैदा होती हैं, तो करीब—करीब पूरी पृथ्वी पर श्रेष्ठ आत्माएं एक साथ पैदा हो जाती हैं। जैसे कि बुद्ध और महावीर भारत में पैदा हुए आज से पच्चीस सौ वर्ष पहले। बुद्ध, महावीर दोनों बिहार में पैदा हुए। और उसी समय बिहार में छह और अदभुत विचारक थे। उनका नाम शेष नहीं रह सका, क्योंकि उन्होंने कोई अनुयायी नहीं बनाए। और कोई कारण न था, वे बुद्ध और महावीर की ही हैसियत के लोग थे। लेकिन उन्होंने बड़े हिम्मत का प्रयोग किया। उन्होंने कोई अनुयायी नहीं बनाए। उनमें एक आदमी था प्रबुद्ध कात्यायन, एक आदमी था अजित केसकंबल, एक था संजय विलट्ठीपुत्र, एक था मक्सली गोशाल, और लोग थे। उस समय ठीक बिहार में एक साथ आठ आदमी एक ही प्रतिभा के, एक ही क्षमता के पैदा हो गए। और सिर्फ बिहार में, एक छोटे — से इलाके में सारी दुनिया के। ये आठों आत्माएं बहुत देर से प्रतीक्षारत थीं। और मौका मिल सका तो ��कदम से भी मिल गया।
और अक्सर ऐसा होता है कि एक श्रृंखला होती है अच्छे की भी और बुरे की भी। उसी समय यूनान में सुकरात पैदा हुआ थोड़े समय के बाद, अरस्तू पैदा हुआ, प्लेटो पैदा हुआ। उसी समय चीन में कंक्यूशियस पैदा हुआ, लाओत्से पैदा हुआ, मेन्शियस पैदा हुआ, च्चांगत्से पैदा हुआ। उसी समय सारी दुनिया के कोने —कोने में कुछ अदभुत लोग एकदम से पैदा हुए। सारी पृथ्वी कुछ अदभुत लोगों से भर गई।
ऐसा प्रतीत होता है कि ये सारे लोग प्रतीक्षारत थे, प्रतीक्षारत थीं उनकी आत्माएं और एक मौका आया और गर्भ उपलब्ध हो सके। और जब गर्भ उपलब्ध होने का मौका आता है, तो बहुत से गर्भ एक साथ उपलब्ध हो जाते हैं। जैसे कि फूल खिलता है एक। फूल का मौसम आया है, एक फूल खिला और आप पाते हैं कि दूसरा खिला और तीसरा खिला। फूल प्रतीक्षा कर रहे थे और खिल गए। सुबह हुई, सूरज निकलने की प्रतीक्षा थी और कुछ फूल खिलने शुरू हुए। कलियां टूटी, इधर फूल खिला उधर फूल निकला। रात भर से फूल प्रतीक्षा कर रहे थे, सूरज निकला और फूल खिल गए।
ठीक ऐसा ही निकृष्ट आत्माओं के लिए भी होता है। जब पृथ्वी पर उनके लिए योग्य वातावरण मिलता है, तो एक साथ एक श्रृंखला में वे पैदा हो जाते हैं। जैसे हमारे इस युग में भी हिटलर और स्टैलिन और माओ जैसे लोग एकदम से पैदा हुए। एकदम से ऐसे खतरनाक लोग पैदा हुए, जिनको हजारों साल तक प्रतीक्षा करनी पड़ी होगी। क्योंकि स्टैलिन या हिटलर या माओ जैसे आदमियों को भी जल्दी पैदा नहीं किया जा सकता। अकेले स्टैलिन ने रूस में कोई साठ लाख लोगों की हत्या की—अकेले एक आदमी ने। और हिटलर ने —अकेले एक आदमी नें—कोई एक करोड़ लोगों की हत्या की।
हिटलर ने हत्या के ऐसे साधन ईजाद किए, जैसे पृथ्वी पर कभी किसी ने नहीं किए। हिटलर ने इतनी सामूहिक हत्या की, जैसी कभी किसी आदमी ने नहीं की। तैमूरलंग और चंगेजखां सब बचकाने सिद्ध हो गए। हिटलर ने गैस चेंबर्स बनाए। उसने कहा, एक—एक आदमी को मारना तो बहुत महंगा है। एक—एक आदमी को मारो, तो गोली बहुत महंगी पड़ती है। एक—एक आदमी को मारना महंगा है, एक—एक आदमी को कब्र में दफनाना महंगा है। एक—एक आदमी की लाश को उठाकर गांव के बाहर फेंकना बहुत महंगा है। तो कलेक्टिव मर्डर, सामूहिक हत्या कैसे की जाए! लेकिन सामूहिक हत्या भी करने के उपाय हैं। अभी अहमदाबाद में कर दी या कहीं और कर दी, लेकिन ये बहुत महंगे उपाय हैं। एक—एक आदमी को मारो, बहुत तकलीफ होती है, बहुत परेशानी होती है, और बहुत देर भी लगती है। ऐसे एक —एक को मारोगे, तो काम ही नहीं चल सकता। इधर एक मारो, उधर एक पैदा हो जाता है। ऐसे मारने से कोई फायदा नहीं होता।
हिटलर ने गैस चेंबर बनाए। एक—एक चेंबर में पांच—पांच हजार लोगों को इकट्ठा खड़ा करके बिजली का बटन दबाकर एकदम से वाष्पीभूत किया जा सकता है। बस, पांच हजार लोग खड़े किए, बटन दबा और वे गए। एकदम गए और इसके बाद हाल खाली। वे गैस बन गए। इतनी तेज चारों तरफ से बिजली गई कि वे गैस हो गए। न उनकी कब्र बनानी पड़ी, न उनको कहीं मार कर खून गिराना पड़ा।
खून—जून गिराने का हिटलर ��र कोई नहीं लगा सकता जुर्म। अगर पुरानी किताबों से भगवान चलता होगा, तो हिटलर को बिलकुल निर्दोष पाएगा। उसने खून किसी का गिराया ही नहीं, किसी की छाती में उसने छुरा मारा नहीं, उसने ऐसी तरकीब निकाली जिसका कहीं वर्णन ही नहीं था। उसने बिलकुल नई तरकीब निकाली, गैस चेंबर। जिसमें आदमी को खड़ा करो, बिजली की गर्मी तेज करो, एकदम वाष्पीभूत हो जाए, एकदम हवा हो जाए, बात खतम हो गई। उस आदमी का फिर नामोल्लेख भी खोजना मुश्किल है, हड्डी खोजना भी मुश्किल है, उस आदमी की चमड़ी खोजना मुश्किल है। वह गया। पहली दफा हिटलर ने इस तरह आदमी उड़ाए जैसे पानी को गर्म करके भाप बनाया जाता है। पानी कहां, गया, पता लगाना मुश्किल है। ऐसे सब खो गए आदमी। ऐसे गैस चेंबर बनाकर उसने एक करोड़ आदमियों को अंदाजन गैस चेंबर में उड़ा दिया।
ऐसे आदमी को जल्दी गर्भ मिलना बड़ा मुश्किल है। और अच्छा ही है कि नहीं मिलता। नहीं तो बहुत कठिनाई हो जाए। अब हिटलर को बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ेगी फिर। बहुत समय लग सकता है हिटलर को दोबारा वापस लौटने के लिए। बहुत कठिन है मामला। क्योंकि इतना निकृष्ट गर्भ अब फिर से उपलब्ध हो। और गर्भ उपलब्ध होने का मतलब क्या है? गर्भ उपलब्ध होने का मतलब है, मां और पिता, उस मां और पिता की लंबी श्रृंखला दुष्टता का पोषण कर रही है—लंबी श्रृंखला। एकाध जीवन में कोई आदमी इतनी दुष्टता पैदा नहीं कर सकता है कि उसका गर्भ हिटलर के योग्य हो जाए। एक आदमी कितनी दुष्टता करेगा? एक आदमी कितनी हत्याएं करेगा? हिटलर जैसा बेटा पैदा करने के लिए, हिटलर जैसा बेटा किसी को अपना मां—बाप चुने इसके लिए सैकड़ों, हजारों, लाखों वर्षों की लंबी कठोरता की परंपरा ही कारगर हो सकती है। यानी सैकड़ों, हजारों वर्ष तक कोई आदमी बूचड़खाने में काम करते ही रहे हों, तब नस्ल इस योग्य हो पाएगी, वीर्याणु इस योग्य हो पाएगा कि हिटलर जैसा बेटा उसे पसंद करे और उसमें प्रवेश करे।
ठीक वैसा ही भली आत्मा के लिए भी है। लेकिन सामान्य आत्मा के लिए कोई कठिनाई नहीं है। उसके लिए रोज गर्भ उपलब्ध हैं। क्योंकि उसकी इतनी भीड़ है और उसके लिए चारों तरफ इतने गर्भ तैयार हैं और उसकी कोई विशेष मांगें भी नहीं हैं। उसकी मांगें बड़ी साधारण हैं। वही खाने की, पीने की, पैसा कमाने की, काम— भोग की, इज्जत की, आदर की, पद की, मिनिस्टर हो जाने की, इस तरह की सामान्य इच्छाएं हैं। इस तरह की इच्छाओं वाला गर्भ कहीं भी मिल सकता है, क्योंकि इतनी साधारण कामनाएं हैं कि सभी की हैं। हर मां —बाप ऐसे बेटे को चुनाव के लिए अवसर दे सकता है। लेकिन अब किसी आदमी को एक करोड़ आदमी मारने हैं, किसी आदमी को ऐसी पवित्रता से जीना है कि उसके पैर का दबाव भी पृथ्वी पर न पड़े, और किसी आदमी को इतने प्रेम से जीना है कि उसका प्रेम भी किसी को कष्ट न दे पाए, उसका प्रेम भी किसी के लिए बोझिल न हो जाए, तो फिर ऐसी आत्माओं के लिए तो प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है।
ओशो
मैं मृत्यु सिखाता हूँ
प्रवचन - 5
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MBA की पढ़ाई छोड़ शुरू की चाय की दुकान, आज है करोड़ों का बिज़नेस
मंज़िल उन्हीं को मिलती है जो रास्तों की परवाह किए बिना आगे बढ़ते जाते हैं। आज हमारे देश के युवा आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ रहे हैं। एक समय था जब पढ़-लिख कर चाय बेचना या ठेला लगाने का काम बहुत अपमानजनक माना जाता था। लेकिन आज समय बदल चुका है इसी बात को प्रमाणित किया है इंदौर के प्रफुल्ल बिल्लोरे ने, जिन्होंने ना केवल पढ़-लिख कर चाय बेचने का काम शुरू किया बल्कि आज इसके जरिए करोड़ों की कमाई भी कर रहे हैं और साथ ही कई युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बने हैं। तो आइए जानते हैं प्रफुल्ल बिल्लोरे के जीवन की प्रेरक कहानी।
बचपन से ही बनना चाहते थे बिज़नेसमैन
मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के एक साधारण परिवार में जन्में प्रफुल्ल बचपन से ही बिज़नेसमैन बनना चाहते थे। इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने बीकॉम की डिग्री प्राप्त की और लगातार 3 साल तक CAT जैसे Exams की भी तैयारी की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। अन्य लोगों की तरह प्रफुल्ल भी पूरी तरह से निराश हो गए। उन्हें लगा कि वो कुछ कर नहीं पाएंगे। उन्होंने बहुत दिनों तक अपने आप को कमरे मे बंद कर लिया और बस सोचते रहे कि आगे अब क्या करना है? इसी सोच के कारण वो डिप्रेशन का भी शिकार हो गए। लेकिन उनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
ऐसे मिला आइडिया
कहते है न कि जिंदगी में जिन्हें बहुत ऊंची उड़ान भरनी होती है वो गिरने के बारे में नहीं ��ोचते। बस इसी बात को ध्यान में रखकर प्रफुल्ल ने मन बना लिया था कि चाहे जो भी हो अब वो इन सब परेशानियों से बहार निकल कर ही मानेंगे। उन्होंने अपने पिता से पूरा देश घूमने की इच्छा जताई। इसके बाद प्रफुल्ल पूरे देश के अलग-अलग शहरों में घूमने निकल पड़े। आखिर में वो गुजरात आकर रूके। वहां उन्होंने मेक्डोनाल्ड में काम करना शुरू किया। लेकिन जल्द ही उन्हें समझ में आ गया कि उन्हें खुद के लिए कुछ करना है। प्रफुल्ल बिल्लोरे के जीवन के बारे में विस्तार से जानने के लिए आप इस वीडियो को भी देख सकते हैं- https://www.youtube.com/watch?v=68pSo94OTI4
बिज़नेस प्लान के बिना ही शुरू किया काम
लगभग पूरा भारत घूम चुके प्रफुल्ल के पास अपने बिज़नेस को लेकर कोई प्लान नहीं था। प्रफुल्ल के दिमाग में एक बात आयी कि क्यों ना चाय बेचने का बिज़नेस शुरू किया जाए। लेकिन उन्हें यह भी लग रहा था कि लोग क्या कहेंगे, पर लोगों की बात की परवाह किए बिना उन्होंने अपने पिताजी से 10-15 हज़ार रुपये एक इंटरनेशनल कोर्स करने के नाम पर लिए और एक छोटी सी चाय की दुकान खोली। उन्हें ऐसा करने में 45 दिन लग गए।
शुरूआत में नहीं मिला एक भी ग्राहक
जोश-जोश में प्रफुल्ल ने चाय का स्टॉल तो लगा लिया था, लेकिन शुरूआत में कोई भी ग्राहक उनकी दुकान पर चाय पीने नहीं आता था। ऐसे समय में प्रफुल्ल हार मानने की बजाय खुद ही चाय लेकर ग्राहकों के पास जाते थे और उन्हें चाय ऑफर करते थे। वो लोगों से अंग्रेजी में बात करते और फ्री में चाय ऑफर करते थे। लोगों को उनका यह अंदाज पसंद आने लगा और लोग उनकी ओर आकर्षित होने लगे। लोगों पर इनका जादू इस कदर चला कि लोग उनके बारे में जानने के लिए हर रोज उनकी दुकान खुलने से पहले ही वहां आ कर बैठने लगे।
पिता के कहने पर किया MBA और फिर से की नई शुरूआत
प्रफुल्ल ने चाय का स्टॉल लगाने की बात अपने घर में नहीं बताई थी। इसलिए जब उनके पिता ने पूछा कि वो क्या कर रहे हैं तो उन्होंने उन्होंने एमबीए में एडमिशन लेने का बहाना बनाया और 50 हजार रुपये लेकर एक लोकल कॉलेज में एमबीए करने के लिए एडमिशन ले लिया। इस समय प्रफुल्ल ने एमबीए कॉलेज में एडमिशन तो ले लिया था पर पढाई में उनका मन नहीं लग रहा था। बस 7 दिन पढ़ने के बाद ही वो समझ गए थे कि यहाँ वक़्त बर्बाद न कर उन्हें वो काम ही करते रहना चाहिए। प्रफुल्ल ने एक बार फिर अहमदाबाद में चाय की दुकान खोली क्योंकि पहले किसी के शिकायत करने के कारण उन्हें दुकान बंद करनी पड़ी थी। लेकिन इस बार उन्होंने एक नया ठिकाना ढूंढा। वो एक हॉस्पिटल के मालिक के पास गये और उनसे दुकान खोलने की बात की और अपनी नयी दूकान खोल ली���
MBA चाय वाला के नाम से ऐसे लिखी सफलता की कहानी
प्रफुल्ल ने अपना पूरा समय चाय बेचने के बिज़नेस पर ही लगा दिया। बढ़ते हुए बिज़नेस के साथ-साथ प्रफुल्ल को अब अपने चाय की दुकान के लिए एक अच्छा सा नाम भी चाहिए था। इसीलिए उन्होंने बहुत सोच विचार कर एमबीए चाय वाला नाम रखा। जिसके MBA का मतलब Mr Billore Ahmedabad है। इसी एक नाम से उस छोटे से चाय की दुकान और प्रफुल्ल के सपनों को एक नई पहचान मिली है। प्रफुल्ल आज इस चाय की दुकान से ही करोड़ों का टर्नओवर कर रहे हैं। आज उनके टीम में कई लोग जुड़े हुए हैं।
प्रफुल्ल ने अपनी मेहनत और लगन के दम पर अपनी सफलता की कहानी लिखी है। आज वो अपनी मेहनत और काबिलियत के बल पर लाखों लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। कई युवा उन्हें आज अपना आदर्श मानते हैं।
लेख के बारे में आप अपनी टिप्पणी को कमेंट सेक्शन में कमेंट करके दर्ज करा सकते हैं। इसके अलावा आप अगर एक व्यापारी हैं और अपने व्यापार में मुश्किल परेशानियों का सामना कर रहे हैं और चाहते हैं कि स्टार्टअप बिज़नेस को आगे बढ़ाने में आपको एक पर्सनल बिज़नेस कोच का अच्छा मार्गदर्शन मिले तो आपको PSC(Problem Solving Course) का चुनाव जरूर करना चाहिए। जिससे आप अपने बिज़नेस में एक अच्छी हैंडहोल्डिंग पा सकते हैं और अपने बिज़नेस को चार गुना बढ़ा सकते हैं।
Source: https://hindi.badabusiness.com/motivational/success-story-of-mba-chai-wala-11609.html
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रमेश के बचपन की
एक और समझदारी की बात 👻
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एक दिन बचपन में रमेश का
मैगी खाने का मन हुआ 😋
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रमेश बगल की
किराने की दुकान पर जाकर
अंकल से बोला 🗣
अंकल एक मैगी का पैकेट देना प्लीज़
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अंकल दूसरे ग्राहक में व्यस्त थे
उन्होंने कहा …दो मिनट रूको
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इतना सुनते ही
रमेश बोला… नहीं नहीं अंकल
मुझे “बनी हुई मैगी” नहीं चाहिए
मुझे तो “कच्ची मैगी” चाहिए
पैकेट वाली
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बेचारे दुकानदार अंकल को
अभी तक चक्कर आ रहे हैं 😇
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हमारा समझदार रमेश 👻
👻👻👻👻
👻👻👻👻👻
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गर्मियों की एक दोपहर, गुरु नानक देव भगवान अपने शिष्यों के साथ एक कस्बे के बाजार से गुजर रहे थे। उस दिन कोई भीड़ नहीं थी। इक्का दुक्का ही ग्राहक किसी दुकान पर था। चलते चलते गुरू जी अनाज की एक दुकान के सामने रुक गए। वहाँ एक व्यापारी, गुस्से में भरा हुआ, एक बकरे को, एक छड़ी से, बड़ी बुरी तरह से पीट रहा था। उस बकरे की गलती यह थी कि उसने ने दुकान के बाहर पड़ी, मोठ की ढेरी में से कुछ मोठ खा ली थी। एक तो गर्मियों के दिन, फिर ग्राहक नहीं थे, और वह व्यापारी घर से ही जला भुना आया था। ऊपर से बकरा मोठ खाने लगा। तो उस व्यापारी में जैसे ज्वालामुखी फूट पड़ा था। पर विचित्र बात यह थी कि यह सब देख कर गुरु जी को हंसी आ गई। शिष्यों को बड़ी हैरानी हुई कि यहाँ बकरे की पिटाई हो रही है, और गुरू जी हंस रहे हैं। कारण पूछने पर गुरू जी ने बताया कि यह बकरा अपने पिछले जन्म में इस व्यापारी का पिता था। यह व्यापारी इसी बकरे का पुत्र है। पिछले जन्म में, इस बकरे ने, देवताओं से माँग माँग कर इस पुत्र को पाया था। इसकी दुकान, मकान और यह सारा कमाया हुआ धन इसी बकरे का है। यह सब काम करते हुए भी इस अपने पुत्र को छाती से चिपटाए घूमता था। यह सब बात इस बकरे को तो याद है, पर इस व्यापारी को याद नहीं। इस बकरे ने संसार तो खूब कमाया, पर कभी भगवान को पाने का प्रयास नहीं किया। यह अपने धन के अहंकार और इसी पुत्र के मोह में "मैं मैं" करता था। इसीलिए इस जन्म में यह बकरा बना घूम रहा है। अब देखो! यह बकरा चार दिनों से भूखा था। पर चार दाने भी नहीं खा पाता है कि मार पड़ती है। मैं इन दोनों पर नहीं हंस रहा। मैं तो दुनियावालों पर हंसता हूँ, कि फिर भी लोग संग्रह करते हैं। लोकेशानन्द कहता है कि अपना संसार बसाना बुरा नहीं है, पर उसे भी तो याद करो जिसने संसार बनाया, आपको बनाया। भगवान को भी तो याद करो। वह ही न बनाता तो आप क्या बनाते? https://www.instagram.com/p/Ce7rwfkLM_W/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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इस पोस्ट में हम आपको बताएंगे छोटू शिकारी के जीवन के कहानी के बारे में। छोटू शिकारी अभी के टाइम में चर्चित ही नही बल्कि पूरे यूपी बिहार में चमक चुके है। छोटू शिकारी एक गरीब घर लड़के है जो अपने मेहनत और टेलेंट के दाम पर आगे बढ़ रहे है तो इस पोस्ट में बने रहे हम आपको बताएंगे पूरी कहानी।
हम आपको Chhotu Shikari Biography in Hindi, Wiki, Age, Height, Girlfriend, Income सभी से जुडी जानकारी विस्तार रूप से बताएंगे और साथ में छोटू शिकारी के जीवन के बारे में भी बताएँगे |
Chhotu Shikari Wiki / Biography
Full Name ( पूरा नाम ) छोटू सिंह
Nick Name ( निक नाम ) छोटू शिकारी
Age ( आयु ) 22 वर्ष (2021)
Profession ( व्यवसाय ) लेखक, गायक
Famous for ( प्रसिद्धि ) भोजपुरी गाना
Chhotu Shikari Career
छोटू शिकारी का जन्म ��माहोता गां��, जिला सारण (छपरा) में हुआ था छोटू शिकारी को बचपन से ही कुछ कर दिखाने का सपना था। छोटू शिकारी कोपा हाई स्कूल से पढ़े लिखे हैं। पढ़ाई करते करते आर्मी में ज्वाइन होने की तयारी कर रहे थे। लेकिन किस्मत साथ नही देता ऐसे ही देखते देखते कोरोणा महामारी आ गया जिसके चलते घर से लीकालना भी मुश्किल हो गया।
और छोटू शिकारी के कोपा बाजार पर एक दुकान भी था उसी दुकान में छोटू शिकारी रहा करते थे। क्योंकि वह दुकान उनके बड़े भईया चलते थे कभी कभी छोटू शिकारी दुकान में चले जाते थे। लेकिन किसी कारण दुकान पर ग्राहक जाना कम हो गए और दुकान धीरे धीरे बंद हो गया।
लेकिन आपको बता दे छोटू शिकारी बहोत पहले से गाना लिखा करते थे। वाह काफी बड़े बड़े गायक लोगो को अपना गाना लिख कर दिया करते थे। लेकिन कोरोना महामारी के दौरान 2021 में छोटू शिकारी अपना खुद के लिए गाना लिखे
छोटू शिकारी गाना लिखने के बाद 2021 के अप्रैल महीना में अपना गाना गए और रिलीज किए। अपने ही Chhotu Shikari Official YouTube Channel से। गाना रिलीज होते ही पूरे यूपी बिहार में तहलका मच गया। जिस गाने का नाम (अपराधी लगेला _ Apradhi Lagela) इस गाने का बोल था हमरा नामवा के अपराधी लगेला।
Apradhi Lagela गाने को लेकर Babuaan Team पहुंचा छोटू शिकारी के पास इन्टरव्यू लेने के लिए। छोटू शिकारी से यह गाना गाने का मतलब पूछा गया तो छोटू शिकारी ने बताए पहले काफी न्यूज पेपर में पढ़ा करते थे जो क्राइम करते हैं उनको लोग अपराधी कहा करते हैं इसलिए यह गाना छोटू शिकारी गए।
Personal Information (व्यक्तिगत जानकारी)
जन्म दिनांक ( DOB ) ज्ञात नहीं
जन्म स्थान ( Birth Place ) समोहोता, सारन, बिहार
ग���ह नगर ( Home town ) सारन, बिहार
वर्तमान निवास ( Current Place ) पटना, बिहार
धर्म ( Religion ) हिन्दू
जाति ( Caste ) राजपूत
राष्ट्रीयता ( Nationality ) भारतीय
विद्यालय ( School ) ज्ञात नहीं
महाविद्यालय ( college ) ज्ञात नहीं
शिक्षा ( Education ) ज्ञात नहीं
राशि ( Zodiac sign ) कर्क राशि
Net worth 1,00,000
Chhotu Shikari Family ( छोटू शिकारी का परिवार )
छोटू शिकारी का परिवार सारण में रहते है और वह अब पटना कभी गांव में रहते है। और छोटू शिकारी के पापा मामी गांव में ही रहते है साथ में भाई बहन। आपको बता दे छोटू शिकारी के अभी शादी नहीं हुई है। नही कोई गर्लफ्रेंड।
Father Not Know
Mother Not Known
Brother ___
Sister None
Wife None
Girlfriend Not Know
Favorite Things ( पसंदीदा चीज़े )
पसंदीदा अभिनेता पवन सिंह,
पसंदीदा अभिनेत्री अक्षरा ��िंह
पसंदीदा गायक पवन सिंह
पसंदीदा खेल क्रिकेट
पसंदीदा व्यंजन लिट्ठी चौखा
हॉबी डांस करना , घूमना
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*---झगड़े का मूल कारण---*
*हम दुश्मनों को भी*
*बडी शानदार सज़ा देते हैं,*
*हाथ नहीं उठाते*
*बस! नज़रों से गिरा देते हैं।*
*एक बार एक सेठ अपनी दुकान पर बेठे थे.. दोपहर का समय था ��सलिए कोई ग्राहक भी नहीं था तो वो थोड़ा सुस्ताने लगे..*
*इतने में ही एक संत भिक्षक भिक्षा लेने के लिए दुकान पर आ पहुचे और सेठ जी को आवाज लगाई कुछ देने के लिए...*
*सेठजी ने देखा की इस समय कोन आया है ?*
*जब उठकर देखा तो एक संत याचना कर रहा था..*
*सेठ बड़ा ही दयालु था वह तुरंत उठा और दान देने के लिए एक कटोरी चावल बोरी में से निकाला और संत के पास आकर उनको चावल दे दिया...*
*संत ने सेठ जी को बहुत बहुत आशीर्वाद और दुवाएं दी...*
*तब सेठ जी ने संत से हाथ जोड़कर बड़े ही विनम्र भाव से कहा की..*
*हे गुरुजन, आपको मेरा प्रणाम ... मैं आपसे अपने मन में उठी शंका का समाधान पूछना चाहता हूँ।*
*संत याचक ने कहा की जरुर पूछो...*
*तब सेठ जी ने कहा की.. लोग आपस में लड़ते क्यों है ?*
*संत ने सेठ जी के इतना पूछते ही.. शांत स्वभाव और वाणी में कहा की सेठ मैं तुम्हारे पास भिक्षा लेने के लिए आया हुं.. तुम्हारे इस प्रकार के मूर्खता पूर्वक सवालो के जवाब देने नहीं आया हूँ।*
*इतना संत के मुख से सुनते ही सेठ जी को क्रोध आ गया और मन में सोचने लगे की यह केसा घमंडी और असभ्य संत है ?*
*ये तो बड़ा ही कृतघ्न है, एक तरफ मैंने इनको दान दिया और ये मेरे को ही इस प्रकार की बात बोल रहे है..*
*इनकी इतनी हिम्मत...*
*और ये सोच कर सेठजी को बहुत ही गुस्सा आ गया और वो काफी देर तक उस संत को खरी खोटी सुनाते रहे।*
*और जब अपने मन की पूरी भड़ास निकाल चुके तब कुछ शांत हुए तब, संत ने बड़े ही शांत और स्थिर भाव से कहा की...*
*जैसे ही मैंने कुछ बोला आपको गुस्सा आ गया, और आप गुस्से से भर गए और लगे जोर जोर से बोलने और चिलाने...*
*वास्तव में केवल गुस्सा ही सभी झगड़े का मूल होता है ...*
*यदि सभी लोग अपने गुस्से पर काबू रखना सीख जाये तो दुनिया में झगड़े ही कभी न होंगे।*
*झगडे का मूल कारण गुस्सा है।*
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किसान बनकर खाद खरीदने दुकान पहुंच गए आईएएस अधिकारी , रंगे हाथ पकड़ी धोखाधड़ी!
New Post has been published on https://bollywoodpapa.com/285960/ias-g-surya-praveen-chand-visit-fertilizer-shop-as-a-farmer-detected-wrong-doings-by-shop-owners/
किसान बनकर खाद खरीदने दुकान पहुंच गए आईएएस अधिकारी , रंगे हाथ पकड़ी धोखाधड़ी!
दोस्तों आपने राजाओं की कहानी में पढ़ा और सुना होगा कि राजा अपने राज्य में क्या चल रहा है इसको जानने के लिए भेष बदलकर जनता के बीच जाता है और वास्तिवक स्थिति का पता लगाता है। ये ही तरकीब आज भी ईमानदार अफसर अजमा रहे हैं। सोशल मीडिया पर ऐसा ही एक फोटो वायरल हो रही है जिसमें एक शहर के डीएम ने भेष बदलकर धोखाधड़ी कर रहे दुकानदारों को रंगे हाथों पकड़ा।
ये फोटो तेलंगाना के विजयवाड़ा जिले के सब कलेक���टर जी सूर्या परवीन चंद का है। जिसमें वो दुकानदान से खाद खरीदते हुए नजर आ रहे है। उन्होंने किसानों के साथ हो रही धोखाधड़ी की जांच करने के लिए भेष बदला और दुकान पर खाद लेने के लिए पहुंच गए थे। कईकल्लूर और मुनीपाली मंडल की खाद की दुकानों में वो क्या चल रहा है इसके लिए भेष बदलकर पहुंच गए। जहां सब कलेक्टर ने पाया कि दुकानदार डीएपी और यूरिया एमआरपी से ज्यादा बेच रहे थे। कई दुकानदार खाद का बिल भी ग्राहक को नहीं दे रहे थे। उन्होंने खाद की जमाखोरी करते हुए अपने गोदाम खाद से भर रखे थे।
IAS officer G Surya Praveen Chand concealed his identity and visited fertilizer shops as a buyer. The Vijayawada sub collector detected wrong doings by shop owners and got them booked. #AndhraPradesh pic.twitter.com/SkGscN4Hht
— Sushil Rao (@sushilrTOI) August 7, 2021
सोशल मीडिया पर ये फोटो शेयर करने वाले शख्स ने लिखा आप देख सकते हैं कि जो शख्स खाद लेता दिख रहा है वो आईएएस अधिकारी परनी चंद हैं। किसानों ने उसने दुकानदारों की धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करवाई थी जिसके बाद शुक्रवार को वो भेष बदलकर जांच करने पहुंच गए। दो दुकानदारों को धोखाधड़ी और हेराफेरी करते पकड़ा और तुरंत दुकान सील करवा दी। ये दुकानदार यूरिया जो 266 रुपये की बेचन चाहिए थी लेकिन ये उसका दाम 280 रुपये वसू रहे थे। ये दुकानदार ग्राहों का आधार डिटेल भी नहीं मांग रहे थे जबकि वो जरूरी है।
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Covid LockDown: कोरोना संकट के बीच रेस्तरां के कारोबार पर इस वजह से मंडराने लगा है खतरा Divya Sandesh
#Divyasandesh
Covid LockDown: कोरोना संकट के बीच रेस्तरां के कारोबार पर इस वजह से मंडराने लगा है खतरा
नई दिल्ली कोरोना के बढ़ते संकट की वजह से देश के कई हिस्से में लॉकडाउन (shut down) किया गया है। इस वजह से जरूरी चीजों की दुकान के अलावा तकरीबन सभी कारोबार ठप पड़ गया है। राज्यों में किए गए स्थानीय लॉकडाउन (shut down) की वजह से लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध और आर्थिक गतिविधियों में कमजोरी की वजह से रेस्टोरेंट बिजनेस (restaurant business) पर काफी असर पड़ा है। पिछले साल किए गए लॉकडाउन के बाद रेस्टोरेंट बिजनेस (restaurant business) धीरे-धीरे रिकवरी की कगार पर था, लेकिन कोरोनावायरस के सेकेंड वेब (second wave) की वजह से अब इस कारोबार पर खतरा मंडराने लगा है।
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टेक अवे और डिलीवरी से गुजारा नहीं कई राज्यों में किए गए लॉकडाउन के बाद हालांकि टेक आउट और डिलीवरी जैसे आर्डर की इजाजत दी गई है, लेकिन रेस्तरां कारोबारियों (restaurant business) को यह डर है कि सिर्फ डिलीवरी की वजह से उन्हें अपने कारोबार को चलाने में मदद नहीं मिलेगी। अगर कोरोना संक्रमण (Covid infection) की मौजू��ा स्थिति चार-छह महीने जारी रहती है तो इस वजह से रेस्तरां कारोबार (restaurant business) पर खतरा बढ़ सकता है।
बार-बार बढ़ रहा है लॉकडाउन देश में कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है और इस वजह से कई राज्यों ने लॉकडाउन और कर्फ्यू आदि की घोषणा कर दी है। शुरुआत में कई राज्यों में 1 हफ्ते का लॉकडाउन किया गया था, जिसे बार-बार बढ़ाया जा रहा है। स्थानीय लॉकडाउन की वजह से रेस्तरां कारोबार काफी प्रभावित हुआ है।
देशव्यापी लॉकडाउन से भी अधिक असर फर्जी कैफे जैसे रेस्तरां चेन चलाने वाले मैसिव रेस्टोरेंट्स के संस्थापक जोरावर कालरा ने कहा, “देश के कई राज्यों में लगाए गए इस तरह के प्रतिबंध की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन की तुलना में भी अधिक दिक्कत हो रही है। नाइट कर्फ्यू या वीकेंड लॉकडाउन जैसे प्रावधानों की वजह से रेस्तरां कारोबार (restaurant business) का अंकगणित बिगड़ गया है। देश के बड़े शहरों में आम तौर पर लोग वीकेंड पर ही रेस्तरां में खाने आते थे, लॉकडाउन की वजह से अब लोग घर से बाहर निकलने से परहेज कर रहे हैं।
धंधा नहीं, फिर भी खुले रेस्तरां कोरोनावायरस संकट के इस दौर में रेस्तरां में काम करने वाली टीम पर जहां कोरोनावायरस संक्रमण का खतरा है, वही प्रतियोगियों की वजह से बढ़ रहे दबाव की वजह से ग्राहक खोने का डर भी सता रहा है। कालरा ने कहा कि वित्तीय रूप से लाभदायक नहीं होने के बाद भी बहुत से रेस्तरां कारोबार चलाने की कोशिश कर रहे हैं। कालरा ने कहा, “कोरोना संक्रमण के सेकंड वेव में रेस्तरां कारोबार की रिकवरी और धीमी रह सकती है।”
जल्द सेकेंड वेव आने से बढ़ी दिक्कत वास्तव में इस बार देश के चुनिंदा शहरों और राज्यों में लॉकडाउन किया जा रहा है। कोरोना संकट के मौजूदा वेव की वजह से 45 साल से कम उम्र के लोगों को अधिक संक्रमण हो रहा है। स्पेशलिटी रेस्टोरेंट के चेयरमैन अंजन चटर्जी के मुताबिक पिछले साल किया गया देशव्यापी लॉकडाउन हर व्यक्ति के लिए झटके की तरह था, लेकिन लोगों को यह उम्मीद नहीं थी कि कोरोनावायरस का सेकंड वेव इतनी जल्दी आ जाएगा।
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Vastu problems ..... ? here is divine healing care
वास्तु समस्या.... डिवाइन हीलिंग केयर है ना इसमें कोई शक नहीं है कि उस घर में सुख, शांति एवं सम्पन्नता तीनों आती है जो घर वास्तु-सम्मत बना हो। वहीं दूसरी ओर हम देखते हैं कि संबंधित बिल्डर अथवा व्यक्ति ज्ञान के अभाव में या फिर थोडे पैसे बचाने के चक्कर में वास्तु नियमों की पालना ना करते हुए घर अथवा कार्यालय बना लेते हैं। लेकिन जब वे संबंधित स्थान में निवास अथवा व्यापार करते हैं, तो उन्हें दिक्कतों का सामना करना पडता है।
कुछ उदाहरण बताना चाहेंगे। एक सज्जन ने बिल्डर से फ्लेट खरीदकर वहाॅं निवास शुरू किया। उस फ्लेट में दरअसल ईशान कोण में टाॅयलेट बना था। उल्लेखनीय है कि वास्तु के हिसाब से ईशान कोण शिवजी का पवित्र स्थान माना जाता है। वास्तु के अनुसार ईशान कोण पूजास्थान बनाने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। उपरोक्त वास्तुदोष के कारण कुछ महीने में ही संबंधित सज्जन को मान-सम्मान, धन एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्या आने लगी।
दूूसरा उदाहरण ऐसी दुकान का बताना चाहेंगे जो उस शहर की सबसे ज्यादा चलने वाली दुकान थी। मगर एक समय ऐसा भी आया कि उस दुकान में पूरे महीने भर दस ग्राहक से ज्यादा नहीं आते थे। यह स्थिति उनके साथ एक साल से अधिक हो गई। उन्होंने हमें एप्रोच किया। हमने उनकी ग्रहों की महादशा के अलावा वास्तु का बारीकि से अध्ययन किया। कुछ सवाल उनसे पूछे। फिर हमने वहां पर परंपरागत वास्तु के अलावा आधुनिक वास्तु के भी कुछ प्रयोग करवाए। हमने पहले ही दिन उन्हें क्लियर कर दिया था कि जैसा कि लोग बोलते हैं रातो-रात चमत्कार हो जाएगा, ऐसा कुछ नहीं होगा। आपको उपाय के साथ कुछ महीने इंतजार करना होगा और उन्होंने ठीक ऐसा ही किया। जहां उनकी ग्राहकी दस ग्राहक प्रतिदिन पर आ गई थी, वह धीरे-धीरे तीन हुई, फिर पचास हुई और समय के साथ बढती चली गई।
तीसरा उदाहरण, ऐसे से घर का बातना चाहेंगे जिनके घर का नैरित्य कोण जो कमरा बना था, वह एक फिट नीचे को था। वास्तु में यह कोण राहू का क्षेत्र कहलाता है। उपरोक्त कोण समतल ना होने के कारण संबंधित घर के सदस्यों में अकारण तनाव की स्थिति बनी रहती थी तथा पैसे का बडा भाग दवाईयों पर खर्च होता था। हमारी सलाह से उन्होंने उपरोक्त क्षेत्र को समतल किया था तथा एक अन्य उपाय किया, जिससे उनकी सभी मुख्य समस्याएं ठीक हो गईं। अतः आदर्श स्थिति यह है कि व्यक्ति घर अथवा कार्यालय बनाने से पूर्व ही वास्तु सलाह लेकर निर्माण करवाये। अगर घर, दुकान अथवा कार्यालय बन भी चुका है, तो एडवांस वास्तु के नियमों के आधार पर बिना कोई तोडफोड किए आसान उपायों से भी वास्तुुदोष दूर किया जा सकता है। डिवाइन हीलिंग केयर के प्लेटफार्म पर वास्तु एक्सपर्ट प्रीतिबाला पटेल (+91 9316258163) ने कई प्राॅपर्टीज में अपने अनुभव एवं विभिन्न प्रयागों के आधार पर बेहतर रिजल्ट दिए हैं, संबंधित प्राॅपर्टीज का वास्तुदोष दूरा किया है।
कई बार व्यक्ति अपना फ्लेट अथवा शॉप बेचना चाहता है, मगर काफी प्रयासों के बाद भी उसे सफलता नहीं मिलती। ऐसे कई केसों में भी वास्तुएक्सपर्ट प्रीतिबाला ने वास्तुसुधार एवं हीलिंग के माध्यम से लोगों को लाभ दिलवाया है।
वास्तु के तहत वैसे तो कई प्रकार की चीजें देखी जाती हैं। मगर उनमें से आपकी जानकारी के लिए कुछ चीजें यहां बताई जा रही है |
भूखंड का प्रकार- सबसे पहले वास्तु एक्सपर्ट की आवश्यकता घर अथवा कार्यालय बनाने के लिए आप लेने जा रहे हैं, उस समय होती है क्योंकि यह देखना परम आवश्यक होता है कि संबंधित भूखंड किस प्रकार का है तथा वह आपके लिए शुभ होगा कि नहीं। क्योंकि गलत भूखंड के चयन के उपरांत आप उस पर जो निर्माण करवाएंगे, उसमें मुख्य दोष भूखंड का ही बन जाएगा। भूखंड कई प्रकार के होते हैं जैसे- वर्गाकार, आयताकार, वृत्ताकार भूखंड, सूपाकार, धनुषाकार, बाल्टीनुमार, मृदंगाकार, काकमुखी इत्यादि। प्रत्येक आकार के भूखंड का फल अलग-अलग हो सकता है। भूखंड के आकार के अलावा भी कई अन्य चीजें भी संबधित प्लाॅट की देखी जाती हैं जैसे कि वहां की मिटटी। इन सब चीजें का भी प्रभाव पडता है।
पानी का स्थान- वास्तुषास्त्र के अनुसार पानी लक्ष्मी को आकर्षित करता है अतः पानी का स्थान बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। चाहे वह आपका घर में बनने वाला अंडरग्राउंड वाटर टेंक हो अथवा खेत या फिर घर में बनने वाला बोरवेल, पानी की टंकी अथवा फिश एक्वेरियम। सही जगह पर यदि बनाते अथवा लगाते हैं तो यह धन को आकर्षित करेगा। गलत जगह पर पानी का स्थान बनाने से, पानी से संबंधित कोई प्रोडक्ट रखने पर धन में गिरावट की स्थिति बन सकती है। हमने अक्सर घर एवं कार्यालय में देखा है कि लोग मछलीघर (फिश एक्वेरियम) को गलत दिशा में रख देते हैं और फिर कुछ माह बाद उन्हें धन की समस्या आने लगती है।
वास्तु का रंगों से कनेक��षन- जब हम घर का व्हाइट वाश करवाते हैं, तो जो रंग हमें पसंद आता है अमूमन उसी रंग का प्रयोग घर की अलग-अलग दीवारों पर करते हैं। आपको आश्चर्य होगा कि यदि हम वास्तु के अनुरूप रंग का प्रयोग घर अथवा कार्यालय की दीवालों पर करे एवं उचित रंग के पर्दों का चयन करें, तो इससे भी हमें अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। घर में यह प्रयोग करने पर शांति का वातावरण निर्मित हो सकता है तथा स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति हो सकती है। वहीं कार्यालय में ऐसा करने पर ग्राहकी अच्छी हो सकती है।
मुख्य द्वार- वास्तु एक्सपर्ट प्रीतिबाला के अनुसार घर का मुख्य द्वार बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि एनर्जी अर्थात ऊर्जा यहीं से घर में प्रवेश करती है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह होती है कि यह किस दिशा में खुलता है क्योंकि मुख्य द्वार ही तय करता है कि आपका घर पूर्वमुखी है, उत्तरमुखी, दक्षिणमुखी अथवा पश्चिम मुखी। इसके बाद बारी आती है कि आपने मुख्य द्वार में किस रंग, आकृति इत्यादि का प्रयोग किया है क्योंकि इन सब का प्रभाव घर के सभी सदस्यों तथा विशेष रूप से घर के मुखिया पर पडता है।
व्यवसाय और वास्तु- प्रीतिबाला बताती हैं कि प्रत्येक व्यवसाय में वास्तु के नियम अलग अलग हो सकते हैं। व्यवसाय क्षेत्र में जो मुख्य बातें वास्तु के अनुसार देखी जाती है वह यह हैं- मालिक का केबिन किस दिशा में हैं, गल्ला जिसे कैश काउंटर कहते हैं वह कहां स्थापित है, संबंधित जगह पर कौन से रंग का प्रयोग किया गया है इत्यादि। उदाहरण के तौर पर किसी व्यक्ति का कार्यक्षेत्र ज्योतिष है, तो उसे कार्यस्थल की दीवारों पर संबंधित ग्रह का रंग करवाने से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
बिना तोडफोड वास्तुदोष निवारण- मान लीजिए आपने ऐसा घर अथवा कार्यालय खरीद लिया है जहां वास्तुदोष है। तो ऐसी स्थिति में एडवांस वास्तु के तहत हम कुछेक प्रोडक्ट का प्रयोग करके, घर की एनर्जी में बैलेंस करेंगे। क्योंकि जब भी संबंधित जगह पर वास्तु समस्या है, तो वहां की एनर्जी जरूर प्रभावित हो जाती है। प्रीतिबाला बताती हैं ऐसे में वे आवश्यकता के अनुसार मुख्य रूप से आईना, क्रिसटल, तेज रौशनी के बल्ब, वृक्ष, फिश एक्वेरिअम, मूर्ति, श्वेतार्क गणेश, बांसुरी, आंतरिक साजसज्जा तथा रंग, यंत्र इत्यादि के इस्तेमाल करवाकर वास्तुदोष दूर करवाती हैं। आपको बताना चाहेंगे कि डिवाइन हीलिंग केयर की डायरेक्टर प्रीतिबाला पटेल ने एडवांस वास्तु के तहत उपरोक्त एवं अन्य उपायों से कम समय में बेहतर परिणाम दिए हैं।
स्टडीरूम एवं वास्तु- आपको जानकर ��श्चर्य होगा डिवाइन हीलिंग केयर नेे करीब पांच सौ से अधिक केसों में सफलता पाई हैं जिन घर में बच्चों का मन पढाई में नहीं लगता था और वास्तु के उपायों को अपनाकर उनके बच्चों ने अच्छे मार्कस लिए। बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि बच्चों का कमरा किस जगह बनाया गया है, उस कमरे में क्या सामान रखा गया है, बच्चों का स्टडी टेबल किस रंग का है, स्टडी टेबल किस दिशा में लगाया गया है, स्टडी रूम में किन रंगों का प्रयोग किया गया है इत्यादि। यदि उपरोक्त बिंदुओं में से एक भी सही नहीं है, तो बच्चों में एकाग्रता की कमी निष्चित रूप से देखने को मिलेगी।
मनमाना वास्तु- आज के समय में यह भी देखने को मिलता है कि लोग यूटयूब में देखकर अथवा प्रचलित बिंदुओं के आधार पर अपने घर एवं व्यापार स्थल का निर्माण कर देते हैं। और फिर संबंधित व्यक्ति को कुछ समय बाद नुकसान उठाना पडता है। अतः हमारी आपको सलाह रहेगी कि प्रोफेशनल वास्तु एक्सपर्ट की सलाह आपको इसके लिए लेनी चाहिए। वास्तु से संबंधित कोई भी प्रयोग किताब में पढकर, दोस्तों की बातों में आकर, सोशल साइट देखकर नहीं करना चाहिए। क्योंकि आपको समझना होगा कि ना तो एक जैसे भूखंड सबसे है और ना एक जैसा नक्शा लोगों के घर अथवा कार्यालय के होते हैं अतः वास्तु का उपाय सभी लोगो के लिए कामन एवं उपयोगी होगा, यह जरूरी नहीं।
कार्यालय वास्तु- कई बार जहां पर हम नौकरी करने जाते हैं, तो वहां पर यदि हमें नकारात्मकता लगे तथा हमारे खिलाफ राजनीति होती है, अथवा आप प्रमोशन के पात्र हैं तभी भी आपको प्रमोशन नहीं मिल पाता, तो ऐसे में आप आसान उपायों के द्वारा उपरोक्त स्थितियों को कम कर सकते हैं, संबंधित जगह की वास्तुसमस्या ठीक कर सकते हैं। क्योंकि हो सकता है आप गलत दिषा में मुंह करके बैठते हों अथवा सीढियों अथवा पिल्लर के पास आपके बैठने का स्थान हो इत्यादि। क्योंकि उपरोक्त बिंदु बहुत प्रभाव डालते हैं, ऐसी स्थितियों में आपके दिन-रात काम करने के बाद भी सफलता मिल पाना कठिन हो जाता है।
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ਸਵਰਗੀ ਗਾਇਕ ਅਮਰ ਸਿੰਘ ਚਮਕੀਲੇ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਉੱਪਰ ਅਧਾਰਿਤ ਮੇਰੇ ਨਾਵਲ ਸ਼ਹੀਦ ਦਾ ਇੱਕ ਕਾਂਡ -ਬਲਰਾਜ ਸਿੰਘ ਸਿੱਧੂ
ਗਲਤ ਗੱਲ -ਬਲਰਾਜ ਸਿੰਘ ਸਿੱਧੂ
ਅੱਤ ਦੀ ਗਰਮੀ ਵਿੱਚ ਲੁਧਿਆਣੇ ਬੱਸ ਅੱਡੇ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਬਣੇ ਪੰਜਾਬੀ ਗਾਇਕਾਂ ਦੇ ਦਫਤਰਾਂ ਮੂਹਰੇ ਦੀ ਇੱਕ ਰਿਕਸ਼ਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਰਿਕਸ਼ਾ ਚਾਲਕ ਬਿਹਾਰੀ ਹੈ। ਰਿਕਸ਼ੇ ਵਿੱਚ ਦੋ ਸਵਾਰੀਆਂ ਬੈਠੀਆਂ ਹਨ। ਇੱਕ ਪੱਚੀ ਛੱਬੀ ਸਾਲ ਦਾ ਟੌਹਰੀ ਜਿਹਾ ਟੇਡੀ ਬੰਨੀ ਪੇਚਾਂ ਵਾਲੀ ਪੱਗ ਵਾਲਾ ਮੁੰਡਾ ਤੇ ਦੂਜਾ ਅਧਖੜ ਜਿਹੀ ਉਮਰ ਦਾ ਖੁੱਲੀ ਦਾੜੀ ਵਾਲਾ ਸਫਾਰੀ ਸੂਟ ਪਹਿਨੀ ਬੈਠਾ ਵਿਅਕਤੀ।
ਪਸੀਨੋ ਪਸੀਨੀ ਹੋ��� ਬਿਹਾਰੀ ਰਿਕਸ਼ੇ ਵਾਲੇ ਨੇ ਮੱਥੇ 'ਤੇ ਆਇਆ ਪਸੀਨਾ ਪੂੰਝਣ ਲਈ ਜਿਉਂ ਹੀ ਪੈਡਲ ਮਾਰਨੇ ��ੰਦ ਕੀਤੇ ਤਾਂ ਰਿਕਸ਼ੇ ਵਿੱਚ ਬੈਠੀਆਂ ਦੋਨਾਂ ਸਵਾਰੀਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਅਧਖੜ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਸੜਕ 'ਤੇ ਜਾਂਦੇ ਇੱਕ ਲੜਕੇ ਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ, "ਓ ਕਾਕਾ... ਗਾਇਕ ਅਮਰ ਸਿੰਘ ਚਮਕੀਲੇ ਦਾ ਦਫਤਰ ਕਿੱਥੇ ਕੁ ਆ?"
"ਆਹਾ ਨਾਲ ਦਾ ਮੋੜ ਮੁੜ ਜੋ। ਸ਼ੌਕਰਾਂ ਆਲੀ ਦੁਕਾਨ ਨਾਲ ਚਮਕੀਲੇ ਦਾ ਈ ਦਫਤਰ ਆ।"
ਦਫਤਰ ਮੂਹਰੇ ਰਿਕਸ਼ਾ ਰੁੱਕੇ ਤੋਂ ਦੋਨੋਂ ���ਵਾਰੀਆਂ ਉਤਰੀਆਂ 'ਤੇ ਅਧਖੜ ਵਿਅਕਤੀ ਪੈਸੇ ਦੇਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਤੇ ਨੌਜਵਾਨ ਦਫਤਰ ਵੱਲ ਵੱਧ ਗਿਆ। ਦਫਤਰ ਵਿੱਚ ਅਜੇ ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਸੀ ਆਇਆ ।ਸਿਰਫ ਗਾਇਕ ਅਮਰ ਸਿੰਘ ਚਮਕੀਲੇ ਦਾ ਢੋਲਕ ਮਾਸਟਰ ਕੇਸਰ ਸਿੰਘ ਟਿੱਕੀ ਹੀ ਸੀ। ਟਿੱਕੀ ਨੇ ਗਾਹਕ ਆਏ ਦੇਖ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬੈਠਣ ਦਾ ਇਸ਼ਾਰਾ ਕੀਤਾ ਤੇ ਚਾਹ ਪਾਣੀ ਪੁੱਛਿਆ।
ਅਧਖੜ ਵਿਅਕਤੀ ਦਾੜੀ 'ਤੇ ਹੱਥ ਫੇਰ ਕੇ ਬੋਲਿਆ, "ਮੇਰਾ ਨਾਂ ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਆ।... ਮੈਂ ਰਿਟਾਇਰ ਐਸ ਪੀ ਹਾਂ। ਆਹ ਮੇਰਾ ਲੜਕੈ। ਇਹ ਹਿੰਡ ਕਰੀ ਜਾਂਦੈ ਕਿ ਆਪਣੇ ਵਿਆਹ 'ਤੇ ਇਹਨੇ ਚਮਕੀਲੇ ਦਾ ਅਖਾੜਾ ਜ਼ਰੂਰ ਲਵਾਉਣੈ।"
ਕੇਸਰ ਟਿੱਕੀ ਬੋਲਿਆ, "ਹਾਂ ਜੀ ਸਰਦਾਰ ਜੀ। ਥੋਡੀ ਸੇਵਾ ਕਰਨ ਨੂੰ ਈ ਅਸੀਂ ਬੈਠੇ ਆਂ। ਕਿਹੜੀ ਤਰੀਕ ਆ?"
"ਅਗਲੇ ਮਹੀਨੇ ਦੀ ਚੌਵੀ।" ਨੌਜਵਾਨ ਹੁੱਭ ਕੇ ਬੋਲਿਆ।
ਕੇਸਰ ਟਿੱਕੀ ਨੇ ਮੇਜ਼ ਦੇ ਡਰਾਅ ਵਿੱਚ ਪਈ ਡਾਇਰੀ ਕੱਢ ਕੇ ਦੇਖੀ ਤੇ ਕੁਝ ਸੋਚ ਕੇ ਬੋਲਿਆ, "ਸਰਦਾਰ ਜੀ, ਉਂਅਅਅਅਅ ਚੌਵੀ ਤਰੀਕ ਤਾਂ ਬੁੱਕ ਆ ਜੀ। ਆਹ ਲਉ ਆਪੇ ਡੈਰੀ ਦੇਖਲੋ।"
ਦੋਨਾਂ ਪਿਉ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦੇ ਚਿਹਰੇ ਇੱਕਦਮ ਮੁਰਝਾ ਗਏ। ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਠਰਮੇ ਨਾਲ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ, "ਅਸੀਂ ਬਹੁਤ ਦੂਰੋਂ ਚੱਲ ਕੇ ਆਏ ਹਾਂ। ਪਾਤੜਾਂ ਕੋਲ ਮੇਰਾ ਪਿੰਡ ਆ। ਸੁਣਿਐ ਚਮਕੀਲਾ ਇੱਕ ਦਿਨ ਵਿੱਚ ਤਿੰਨ ਚਾਰ ਅਖਾੜੇ ਲਾ ਦਿੰਦੈ।... ਕਰੋ ਸਾਡਾ ਕੁਸ਼?"
"ਅਖਾੜੇ ਤਾਂ ਚੌਵੀ ਨੂੰ ਵੀ ਤਿੰਨ ਈ ਲੱਗ ਰਹੇ ਨੇ ਜੀ। ਪਰ ਅਸੀਂ ਦੂਜੇ ਅਖਾੜੇ ਲਾ ਕੇ ਥੋਡੇ ਪਿੰਡ ਨਹੀਂ ਪਹੁੰਚ ਸਕਦੇ। ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਕਿਹੜਾ ਹਵਾਈ ਜਹਾਜ ਆ। ਜੇ ਤੁਹਾਡੇ ਲਾਵਾਂਗੇ ਤਾਂ ਦੂਜੇ ਖੁੰਝਦੇ ਨੇ।" ਟਿੱਕੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਮਜ਼ਬੂਰੀ ਪ੍ਰਗਟਾਈ।
ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਲਈ ਦਫਤਰ ਵਿੱਚ ਚੁੱਪ ਪਸਰੀ ਰਹੀ। ਫੇਰ ਨੌਜਵਾਨ ਲੜਕਾ ਬੋਲਿਆ, "ਬਾਈ ਆਏਂ ਕਰ ਯਾਰ ਸਾਨੂੰ ਕੇਰਾਂ ਚਮਕੀਲੇ ਨਾਲ ਮਿਲਾਦੇ। ਫੇਰ ਮੈਂ ਜਾਣਾ ਜਾਂ ਮੇਰਾ ਕੰਮ।"
ਉਹਨੇ ਅਜੇ ਗੱਲ ਪੂਰੀ ਹੀ ਕੀਤੀ ਸੀ ਕਿ ਦਫਤਰ ਦੇ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਦਾ ਬੂਹਾ ਖੁੱਲਿਆ ਤੇ ਅਮੀਤਾਬ ਬਚਨ ਵਰਗੇ ਹੇਅਰ ਸਟਾਇਲ ਵਾਲਾ ਇੱਕ ਲੰਮਾ-ਲੰਝਾ ਨੌਜਵਾਨ ਡੱਬੀਆਂ ਵਾਲੀ ਬਿਸਕੁੱਟੀ ਕਮੀਜ਼ ਤੇ ਭੂਰੀ ਪੈਂਟ ਪਾਈ ਅੰਦਰ ਦਾਖਿਲ ਹੋਇਆ। ਉਸ ਨੇ ਬਾਹਰੋਂ ਖੜ੍ਹੇ ਨੇ ਕੁਝ ਕੁ ਗੱਲਾਂ ਸੁਣ ਲਈਆਂ ਸਨ। ਅੰਦਰ ਆਉਂਦਿਆਂ ਹੀ ਉਸ ਨੌਜਵਾਨ ਨੇ ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ਬੁਲਾ ਕੇ ਦੋਨਾਂ ਪਿਉ ਪੁੱਤਾਂ ਨਾਲ ਹੱਥ ਮਿਲਾਇਆ, "ਦਾਸ ਨੂੰ ਹੀ ਅਮਰ ਸਿੰਘ ਚਮਕੀਲਾ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ।"
ਚਮਕੀਲੇ ਨੂੰ ਦੇਖਦਿਆਂ ਹੀ ਦੋਨਾਂ ਦੇ ਚਿਹਰੇ ਖਿੜ ਗਏ। ਕੇਸਰ ਟਿੱਕੀ ਨੇ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਚਮਕੀਲੇ ਨੂੰ ਸਾਰੀ ਕਹਾਣੀ ਸੁਣਾਈ ਤਾਂ ਚਮਕੀਲਾ ਸੋਚਾਂ ��ਿੱਚ ਪੈ ਗਿਆ। ਚਮਕੀਲੇ ਨੂੰ ਕੁਰਸੀ ਛੱਡ ਕੇ ਟਿੱਕੀ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋ ਗਿਆ।
ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਟਿੱਕੀ ਨੂੰ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ, "ਜਾ ਟਿੱਕੀ, ਭੱਜ ਕੇ ਚਾਹ ਨੂੰ ਕਹਿ ਕੇ ਆ।"
"ਨਾ ਬਾਈ ਜੀ, ਚਾਹ ਦੀ ਲੋੜ ਨ੍ਹੀਂ, ਬਸ ਤੁਸੀਂ ਮੇਰੇ ਵਿਆਹ 'ਤੇ ਖਾੜਾ ਲਾਉਣ ਲਈ ਮੰਨ ਜੋ?" ਨੌਜਵਾਨ ਨੇ ਮੇਜ਼ 'ਤੇ ਪਿਆ ਚਮਕੀਲੇ ਦਾ ਉੱਠ ਕੇ ਹੱਥ ਘੁੱਟ ਲਿਆ।
ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹੱਥ ਉੱਪਰ ਪਏ ਉਸਦੇ ਹੱਥ ਉੱਤੇ ਆਪਣਾ ਦੂਜਾ ਹੱਥ ਰੱਖਿਆ ਤੇ ਬੁੱਲ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁਸਕਾਉਂਦਾ ਹੋਇਆ ਬੋਲਿਆ, "ਯਾਰ ਮੈਂ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਜ਼ਰੂਰ ਕਰਦਾ। ਪਰ ਮੈਂ ਮਜ਼ਬੂਰ ਹਾਂ। ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਕਲਾਕਾਰ ਨੂੰ ਭੇਜ ਦਿੰਨੇ ਆ?"
"ਨਹੀਂ ਹੋਰ ਨੂੰ ਨ੍ਹੀਂ ਕਿਸੇ ਨੇ ਉੱਥੇ ਸੁਣਨਾ। ਬਸ ਸਿਰਫ ਤੁਹਾਨੂੰ ਹੀ ਲਿਜਾਣਾ। ਮੈਂ ਚਾਹੁੰਨਾਂ ਕੇਰਾਂ ਪਤਾ ਲੱਗਜੇ ਬਈ ਕਿਸੇ ਦਾ ਵਿਆਹ ਹੋ ਰਿਹੈ।... ਤੁਸੀਂ ਪ੍ਰਗਰਾਮ ਦੇ ਕਿੰਨੇ ਪੈਸੇ ਲੈਂਦੇ ਹੋ?"
ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਧੀਮੀ ਜਿਹੀ ਅਵਾਜ਼ ਵਿੱਚ ਦੱਸਿਆ, "ਪੈਂਤੀ ਸੌ।"
ਐਨੇ ਨੂੰ ਇੱਕ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਮੁੰਡੂ ਚਾਰ ਗਿਲਾਸਾਂ ਵਿੱਚ ਚਾਹ ਲੈ ਕੇ ਆ ਗਿਆ। ਸਾਰੇ ਜਾਣੇ ਚਾਹ ਪੀਣ ਲੱਗ ਪਏ।
ਲੜਕੇ ਦੇ ਬਾਪ ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਨੇ ਚਾਹ ਦੀ ਆਖਰੀ ਘੁੱਟ ਭਰੀ, "ਚਮਕੀਲਿਆ, ਇਉਂ ਕਰ ਤੈਨੂੰ ਚਾਰ ਹਜ਼ਾਰ ਦੇਮਾਂਗੇ। ਦੂਜਾ ਚੌਵੀ ਤਰੀਕ ਦਾ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਕੈਂਸਲ ਕਰਕੇ ਸਾਡਾ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਕਰਦੇ।"
"ਠੀਕ ਐ ਸਰਦਾਰ ਜੀ। ਅਸੀਂ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਕਰ ਦਿੰਨੇ ਆਂ।" ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਦੋਨਾਂ ਦੇ ਚਿਹਰਿਆਂ ਨੂੰ ਨਿਰਖ ਨਾਲ ਦੇਖਿਆ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਉੱਪਰ ਖੁਸ਼ੀ ਦੀ ਲਹਿਰ ਦੌੜ ਰਹੀ ਸੀ। ਜਰੈਨਲ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਜੇਬ 'ਚੋਂ ਪੈਸੇ ਕੱਢਣ ਲੱਗਾ ਤਾਂ ਚਮਕੀਲਾ ਬੋਲ ਪਿਆ, "ਸਰਦਾਰ ਜੀ, ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਤਾਂ ਥੋਡਾ ਬੁੱਕ ਕਰ ਲੈਨੇ ਆਂ। ਪਰ ਜੇ ਕੱਲ੍ਹ ਨੂੰ ਸਾਨੂੰ ਕੋਈ ਪੰਤਾਲੀ ਸੌ ਦੇ ਗਿਆ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਰਨ ਚਲੇ ਜਾਵਾਂਗੇ।"
ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਉੱਠ ਕੇ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋ ਗਿਆ, "ਲੈ ਤੁਸੀਂ ਸਾਡਾ ਪ੍ਰਗਰਾਮ ਬੁੱਕ ਕਰਕੇ ਆਏਂ ਕਿਵੇਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹੋ? ਇਹ ਤਾਂ ਗਲਤ ਗੱਲ ਐ ਯਾਰ।"
"ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਦਾ ਬੁੱਕ ਕਰਨ ਬਾਅਦ ਕੈਂਸਲ ਕਰਕੇ ਤੁਹਾਡੇ ਆਈਏ, ਕੀ ਉਹ ਗਲਤ ਗੱਲ ਨ੍ਹੀਂ? ਤੁਸੀਂ ਕਰੋ ਤਾਂ ਸਹੀ, ਚਮਕੀਲਾ ਕਰੇ ਤਾਂ ਗਲਤ?" ਕਹਿ ਕੇ ਚਮਕੀਲਾ ਮੁਸਕਰਾਉਣ ਲੱਗ ਪਿਆ।
ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਨਿੰਮੋਝੂਣਾ ਜਿਹਾ ਹੋ ਕੇ ਬੈਠ ਗਿਆ।
ਚਮਕੀਲਾ ਆਪਣੀ ਡਾਇਰੀ ਫਰੋਲਦਾ ਹੋਇਆ ਬੋਲਿਆ, "ਇਉਂ ਕਰੋ ਬਾਈ ਬਣਕੇ। ਤੁਸੀਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਦਿਨ ਦਾ ਵਿਆਹ ਰੱਖ ਲਵੋ ਮੈਂ ਫਰੀ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਲਾਜੂੰ। ਭਾਵੇਂ ਇੱਕ ਪੈਸਾ ਨਾ ਦਿਉ।"
ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬੇਬਸੀ ਪ੍ਰਗਟ ਕੀਤੀ, "ਵਿਆਹ ਦੀ ਤਰੀਕ ਤਾਂ ਹੁਣ ਫਿਕਸ ਹੋ ਗਈ। ਕੈਂਸਲ ਨ੍ਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ।"
"ਓ ਭਾਪਾ ਜੇ ਚਮਕੀਲਾ ਨ੍ਹੀਂ ਮੰਨਦਾ, ਤੂੰ ਹੀ ਮੰਨਜਾ? ਕਿਉਂ ਮੇਰਾ ਵਿਆਹ ਖਰਾਬ ਕਰਦੇ ਹੋ।" ਮੁੰਡੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਬਾਪ ਦੇ ਪੈਰ ਫੜ ਲਏ।
ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮੁੰਡੇ ਦੇ ਹੱਥੋਂ ਆਪਣੇ ਪੈਰ ਛੁਡਾਏ ਤੇ ਚਮਕੀਲੇ ਕੋਲ ਮੇਜ਼ 'ਤੇ ਹੱਥ ਰੱਖ ਕੇ ਝੁੱਕ ਗਿਆ, "ਅੱਛਾ ਚਮਕੀਲੇ ਬਾਈ, ਦੱਸ ਕਿਹੜੀ ਕਿਹੜੀ ਤਰੀਕ ਵਿਹਲੀ ਹੈ।"
ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਡਾਇਰੀ 'ਤੇ ਨਿਗਾਹ ਮਾਰਦਿਆ ਦੱਸਿਆ, "ਉਦੂੰ ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਪੱਚੀ ਨੂੰ ਵਿਹਲੇ ਆਂ। ਫੇਰ ਸਾਰਾ ਮਹੀਨਾ ਵੇਹਲ ਨ੍ਹੀਂ ਬਾਈ ਜੀ"
"ਠੀਕ ਆ, ਬੁੱਕ ਕਰਦੇ ਫੇਰ।" ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਨੇ ਨੋਟਾਂ ਦੀ ਗੁੱਟੀ ਕੱਢ ਕੇ ਮੇਜ਼ ਉੱਤੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤੀ।
ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਕਮੀਜ ਦੀ ਜ਼ੇਬ ਵਿੱਚੋਂ ਪੈਨ ਕ��ਢ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਨਾਮ ਅਤੇ ਐਡਰੈਸ ਪੁੱਛ ਕੇ ਡਾਇਰੀ ਵਿੱਚ ਲਿੱਖ ਦਿੱਤਾ, "ਲਓ ਜੀ ਕਰਤੀ ਬੁੱਕ।"
"ਚੱਲ ਜੈਜ ਜੈਜ ਜੇ ਦੱਸ ਹੁਣ ਪੈਸੇ ਕਿੰਨੇ ਦਈਏ ਤੈਨੂੰ।" ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਹੱਥਾਂ ਨੂੰ ਥੁੱਕ ਲਾ ਕੇ ਨੋਟ ਗਿਣਨ ਲੱਗ ਪਿਆ।
ਚਮਕੀਲਾ ਮੇਜ਼ ਦੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਪਈ ਕੁਰਸੀ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਖੜਾ ਹੋ ਗਿਆ, "ਮਾਲਕੋ ਇਹ ਕਿਹੜੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦੇ ਓ। ਹੁਣੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਜੁਬਾਨ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ਕਿ ਵਿਆਹ ਦੀ ਤਰੀਕ ਬਦਲ ਲਓ, ਮੈਂ ਫਰੀ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਕਰੂੰਗਾ। ਫੇਰ ਮੈਂ ਕਿਵੇਂ ਮੁੱਕਰ ਸਕਦਾਂ। ਮਰਦ ਦੀ ਜਬਾਨ ਤੇ ਰਕਾਨ ਦੇ ਹਾਸੇ ਦਾ ਈ ਮੁੱਲ ਹੁੰਦੈ।"
"ਸੱਚੀਂ ਆਵੇਂਗਾ ਨਾ? ਦੇਖੀ ਕਿਤੇ ਉਹੀ ਗੱਲ ਨਾ ਹੋਵੇ, ਅਸੀਂ ਉਡੀਕੀ ਜਾਈਏ ਤੇ ਤੂੰ ਆਵੇ ਨਾ। ਏਦੂੰ ਪੈਸੇ ਲੈ ਲੈ ਸਾਨੂੰ ਦਸੱਲੀ ਰਹੂ।" ਮੁੰਡਾ ਬੋਲਿਆ।
"ਮਿੱਤਰਾ ਜੇ ਨਾ ਪਹੁੰਚਿਆ ਤਾਂ ਗਾਉਣਾ ਛੱਡਦੂੰ। ਬੇਫਿਕਰ ਹੋ ਕੇ ਘਰ ਨੂੰ ਜਾਉ। ਪੱਚੀ ਤਰੀਕ ਨੂੰ ਚਮਕੀਲਾ ਆਪਣੀ ਪਾਰਟੀ ਨਾਲ ਅਖਾੜਾ ਲਾਉਣ ਪਹੁੰਚਜੂ। ਠੀਕ ਆ ਨਾ ਗੱਲ?"
"ਹਾਂ ਠੀਕ ਆ ਗੱਲ ਤਾਂ ਪਰ ਚਮਕੀਲੇ ਉਹ ਗਾਣਾ ਜ਼ਰੂਰ ਗਾਈ ਜਦ ਪਹਿਲੀ ਲਾਮ ਪੜੀ ਭੁੱਬ ਨਿਕਲਗੀ ਮੇਰੀ। ਸਾਲੀ ਦਾਰੂ ਪੀ ਕੇ ਪੂਰਾ ਭੰਗੜਾ ਪਾਮਾਂਗੇ ਇੱਕ ਲੱਤ 'ਤੇ।"
"ਮੈਂ ਤਾਂ ਗਾਦੂੰਗਾ। ਤੇਰੀ ਭੁੱਬ ਨਿਕਲਜੂਗੀ?"
"ਮੈਂ ਤਾਂ ਉੱਚੀ-ਉੱਚੀ ਲੇਰਾਂ ਮਾਰਦੂੰ।"
ਚਮਕੀਲਾ ਖਿੜਖਿੜਾ ਕੇ ਹੱਸ ਪਿਆ। ਦੋਨੇ ਪਿਉ ਪੁੱਤ ਚਮਕੀਲੇ ਨੂੰ ਜੱਫੀ ਪਾ ਕੇ ਦਫਤਰ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਕਲ ਗਏ।
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पंजाब के प्रसिद्ध गायक (स्व.)अमर सिंह चमकीला के जीवन पर आधारित बलराज सिंह सिद्धू के नये उपन्यास ‘शहीद’ का एक अध्याय – अनुवाद : सुभाष नीरव
गलत बात
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भीषण गर्मी में लुधियाना बस अड्डे के सामने बने पंजाबी गायकों के दफ़्तरों के आगे एक रिक्शा जा रहा है। रिक्शा वाला बिहारी है। रिक्शे में दो सवारियाँ बैठी हैं। एक 25-26 वर्षीय शौकीन-सा युवक बैठा है जिसने पेचों वाली टेढ़ी पगड़ी बाँध रखी है और दूसरा खुली दाढ़ी वाला सफ़ारी सूट पहने अधेड़-सी उम्र का आदमी बैठा है।
पसीने-पसीने हुए बिहारी रिक्शेवाले ने माथे पर चुहचुहा आया पसीना पोंछने के लिए जैसे ही पैडल मारना बन्द किया तो रिक्शे में बैठी दोनों सवारियों में से अधेड़ व्यक्ति ने सड़क पर जाते एक लड़के से पूछा, “ओ काका… गायक अमर सिंह चमकीले का ��फ़्तर किधर है ?”
“ये साथ वाला मोड़ मुड़ जाओ। शौकरों वाली दुकान के साथ ही चमकीले का दफ़्तर है।“
दफ़्तर के सामने रिक्शा रुका तो दोनों सवारियाँ उतरीं। अधेड़ आदमी पैसे देने लगा और नौजवान दफ़्तर की ओर बढ़ गया। दफ़्तर में अभी अन��य कोई नहीं आया था। सिर्फ़ चमकीले का ढोलक मास्टर केसर सिंह टिक्की ही था। टिक्की ने ग्राहक आए देखकर उन्हें बैठने का इशारा किया और चाय-पानी पूछा।
अधेड़ व्यक्ति दाढ़ी पर हाथ फेरकर बोला, “मेरा नाम जरनैल सिंह है… मैं रिटायर एस.पी. हूँ। यह मेरा बेटा है। यह जिद किए बैठा है कि अपने विवाह पर इसे चमकीले का अखाड़ा ज़रूर लगवाना है।”
केसर टिक्की बोला, “हाँ जी, सरदार जी। आप लोगों की सेवा करने के लिए ही तो हम बैठे हैं। कौन सी तारीख है ?”
“अगले महीने की 24 तारीख़।” नौजवान उमंगित-सा तुरन्त बोला।
केसर टिक्की ने मेज़ की दराज में पड़ी डायरी निकालकर देखी और कुछ सोचकर बोला, “सरदार जी, चौबीस तारीख़ तो बुक है जी। ये लो खुद देख लो डैरी !”
बाप-बेटे दोनों के चेहरे एकदम मुरझा गए। जरनैल सिंह धैर्यपूर्वक कहने लगा, “हम बहुत दूर से चलकर आए हैं। पातड़ां के पास गाँव है मेरा। सुना है, चमकीला एक दिन में तीन-चार अखाड़े लगा देता है… करो हमारा भी कुछ।”
“अखाड़े तो चौबीस को भी तीन ही लग रहे हैं जी। पर हम दूसरे अखाड़े लगाकर तुम्हारे गाँव नहीं पहुँच सकते। हमारे पास कौन-सा हवाई जहाज है। अगर तुम्हारे यहाँ लगाएँगे तो दूसरे छूटते हैं।” टिक्की ने अपनी मज़बूरी प्रकट की।
कुछ समय के लिए दफ़्तर में चुप पसर गई। फिर नौजवान लड़का बोला, “भई, ऐसा कर यार, हमें ज़रा चमकीले से मिला दे। फिर मैं जानूं या मेरा काम।”
उसने अभी बात पूरी ही की थी कि दफ़्तर का दरवाज़ा खुला और अमिताभ बच्चन जैसे हेयर स्टाइल वाला एक लम्बा-पतला नौजवान डिब्बियों वाली बिस्कुटी कमीज़ और भूरी पैंट पहने अंदर दाख़िल हुआ। उसने बाहर खड़े ने कुछेक बातें सुन ली थीं। अंदर आते ही उस नौजवान ने ‘सतिश्री अकाल’ बुलाकर बाप-बेटे दोनों से हाथ मिलाया, “दास को ही अमर सिंह चमकीला कहते हैं।”
चमकीले को देखते ही दोनों के चेहरे खिल उठे। केसर टिक्की ने संक्षेप में चमकीले को सारी कहानी सुनाई तो चमकीला सोच में पड़ गया। चमकीले के लिए कुर्सी छोड़कर टिक्की खड़ा हो गया।
चमकीले ने टिक्की को हुक्म दिया, “जा टिक्की, भागकर चाय को कह आ।”
“न भाई जी, चाय की ज़रूरत नहीं, बस आप मेरे विवाह पर अखाड़ा लगाने के लिए मान जाओ।” नौजवान ने उठकर मेज़ पर रखा चमकीले का हाथ दबा लिया।
चमकीले ने अपने हाथ पर पड़े उसके हाथ पर अपना दूसरा हाथ रखा और होंठों में मुस्कराते हुए बोला, “यार, मैं प्रोग्राम कर सकता होता तो अवश्य करता। पर मैं मज़बूर हूँ। किसी दूसरे कलाकार को भेज देते हैं।”
“दूसरे को कोई नहीं सुनने वाला। बस, सिर्फ़ आपको ही लेकर जाना है। मैं चाहता हूँ कि ज़रा लोगों को पता तो चले कि किसका विवाह हो रहा है… आप प्रोग्राम के कितने पैसे लेते हो ?”
चमकीले ने धीमी-सी आवाज़ में बताया, “पैंतीस सौ।”
तभी एक छोटा-सा लड़का चार गिलासों में चाय लेकर आ गया। सभी चाय पीने ल्ग पड़े।
लड़के के बाप जरनैल सिंह ने चाय का आख़िरी घूंट भरा, “चमकीले, ऐसा कर, तुझे चार हज़ार देंगे। चौबीस तारीख का दूसरा प्रोग्राम कैंसिल करके हमारा प्रोग्राम कर दे।”
“ठीक है सरदार जी। हम प्रोग्राम कर देते हैं।” चमकीले ने दोनों चेहरों की ओर देखते हुए कहा। उन पर खुशी की लहर दौड़ रही थी। जरनैल सिंह अपनी जेब में से पैसे निकालने लगा तो चमकीला बोल पड़ा, “सरदार जी, प्रोग्राम तो आपका बुक कर लेते है, पर अगर कल को हमें कोई पैंतालीस सौ दे गया तो हम उनके यहाँ प्रोग्राम करने चले जाएँगे।”
जरनैल सिंह उठकर खड़ा हो गया, “लो, तुम हमारा प्रोग्राम बुक करके ऐसा कैसे कर सकते हो ? यह तो गलत बात है यार।”
“किसी दूसरे का बुक करने के बाद कैंसिल करके आपके यहाँ आएँ, क्या वो गलत बात नहीं। आप करो तो सही, चमकीला करे तो गलत ?” कहकर चमकीला मुस्कराने लग पड़ा।
जरनैल सिंह शर्मिंदा-सा होकर बैठ गया।
चमकीला अपनी डायरी उलट-पुलटकर बोला, “ऐसा करो जी। आप किसी दूसरे दिन का विवाह रख लो, मैं फ्री में प्रोग्राम कर दूँगा। बेशक एक पैसा न देना।”
जरनैल सिंह ने बेबसी प्रकट की, “विवाह की तारीख़ तो फिक्स हो गई। कैंसिल नहीं हो सकती।”
“ओ भापा, अगर चमकीला नहीं मानता तो आप ही मान जाओ। क्यों मेरा विवाह खराब करते हो।” लड़के ने बाप के पैर पकड़ लिए।
जरनैल सिंह ने लड़के के हाथों अपने पैर छुड़ाये और चमकीले के पास मेज़ पर हाथ रखकर झुक गया, “अच्छा चमकीले भाई, बता कौन-सी तारीख़ खाली है ?”
चमकीले ने डायरी पर निगाह मारते हुए बताया, “इससे अगले दिन 25 को खाली हैं। फिर सारा महीना खाली नहीं है भाई जी।”
“ठीक है, बुक कर दे फिर।” जरनैल सिंह ने नोटों की गड्डी निकालकर मेज़ पर रख दी।
चमकीले ने कमीज़ की जेब में से पेन निकालकर उनका नाम और पता पूछकर डायरी में लिखा और बोला, “लो जी, कर दी बुक।”
“चल, अब बता पैसे कितने दें तुझको ?” जरनैल सिंह उंगलियों को थूक लगाकर नोट गिनने लग पड़ा।
चमकीला मेज़ के दूसरी तरफ़ कुर्सी को छोड़ उठकर खड़ा हो गया, “मालिको, ये क्या बातें करते हो ? अभी आपको चमकीले ने जुबान दी थी कि विवाह की तारीख़ बदल लो, ��ैं फ्री में प्रोग्राम करूँगा। फिर मैं कैसे मुकर सकता हूँ। मर्द की जुबान और समझदार औरत की हँसी का मोल होता है।”
“सच में, आओगे न ? देखना वही बात न हो, हम इंतज़ार करते रहें और तुम आओ ही नहीं। इससे तो पैसे ले लो, तसल्ली तो रहेगी।” लड़का बोला।
“मित्तरा, अगर न पहुँचा तो गाना छोड़ दूँगा। बेफिक्र होकर घर जाओ। 25 तारीख़ को चमकीला अपनी पार्टी के साथ अखाड़ा लगाने ज़रूर पहुँच जाएगा। ठीक है न बात ?”
“हाँ ठीक है, पर चमकीला जी वो गाना ज़रूर गाना ‘जद पहली लाम पड़ी भुब निकल गी मेरी…’ दारू पीकर पूरा भंगड़ा डालेंगे एक टाँग से…।”
चमकीला खिलखिलाकर हँस पड़ा। दोनों बाप-बेटा चमकीले को जफ़्फ़ी डालकर दफ़्तर में से बाहर निकल गए।
(हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव)
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शुरु करें Cloud Kitchen बिज़नेस, घर बैठे हर महीने करें लाखों की कमाई
कोरोना महामारी बिज़नेस और रोजगार के लिए संकट और अवसर दोनों के रूप में ऊभर कर आयी थी। जहां एक तरफ कोविड ने लाखों करोड़ों लोगों के बिज़नेस चौपट कर दिए तो वहीं दूसरी तरफ कई लोगों को बिज़नेस के नए विकल्प भी दिए। अपनी नौकरी गंवाने के बाद लोगों ने घर लौटकर छोटा-मोटा बिज़नेस शुरू किया और आज ठीक-ठाक पैसे कमा रहे हैं। कोरोना महामारी के बीच कई ऐसे बिज़नेस की शुरूआत हुई जिसके बारे में कोई सोच भी ��हीं सकता। इन्हीं खास बिज़नेस आइडिया में से एक है क्लाउड किचन। यह एक ऐसा बिज़नेस है जिसमे रेस्टोरेंट और दुकान के बिना ही ग्राहक तक फ़ूड डिलीवर किया जाता है। इस बिज़नेस की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह घर बैठे ही शुरू किया जा सकता है। यही कारण है कि आज इस बिज़नेस को शुरू करने वाले लोग घर बैठे लाखों की कमाई कर रहे हैं। इस बिज़नेस के सफल होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि फ़ूड डिलीवरी अब फ़ास्ट हो चुकी है। खाना आर्डर करने के कुछ ही समय में तेज़ी से लोगों तक पहुंच रहा है। जिसके कारण और ज्यादा लोग ऑर्डर कर रहे हैं। इसलिए आज के इस लेख में हम आपको क्लाउड किचन बिज़नेस (Business) के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बाद आप क्लाउड किचन आसानी से शुरू कर सकते हैं और अच्छी कमाई कर सकते हैं।
क्या होता है क्लाउड किचन बिज़नेस?
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर क्लाउड किचन होता क्या है। क्लाउड किचन एक ऑनलाइन रेस्टोरेंट की तरह होता है जहां पर आपको बाहर जाकर ऑर्डर देने की जरूरत नहीं पड़ती। इसके लिए आप अपने घर पर ही बैठकर ऑर्डर दे सकते हैं और आपके घर पर ऑनलाइन फूड डिलीवर हो जाता है। इस बिजनेस को शुरु करना बेहद आसान है। इसे अपने घर के किचन से लेकर प्रोफेशनल किचन में शुरू किया जा सकता है। जहां आप ऑनलाइन ऑर्डर बुक कर के सामान पहुंचा सकते हैं । आप यदि चाहें तो ऑफ लाइन भी किसी रेस्टोरेंट, हॉस्टल और कॉर्पोरेट को खाना सप्लाई कर सकते हैं। वहीं त्योहारों के समय कुछ खास तरह के पकवानों के ऑर्डर ले सकते हैं।
बिज़नेस की संभवानाएं
क्लाउड किचन का बिज़नेस आज सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाने वाले बिज़नेस में से एक बन गया है। इस बिज़नेस में रेस्टॉरेंट खोलने में जो पैसे इन्वेस्ट होते थे वो इसमें नहीं होते। यहाँ केवल खाना बनता है और पैक होकर डिलीवर हो जाता है जिससे एम्प्लोयी और साफ़-सफाई में भी लागत कम लगती है। क्लाउड किचन में कम इन्वेस्टमेंट में ज्यादा प्रॉफिट होता है। आप इससे कम समय में ज्यादा प्रोफिट कमा सकते है। अभी मार्केट में इसके कॉम्पिटिशन भी कम है। जिससे आप इसे अभी शुरू करके भविष्य के लिए अच्छी नींव स्थापित कर सकते हैं।
कैसे शुरू करें क्लाउड किचन बिज़नेस
क्लाउड किचन बिज़नेस शुरू करने के लिए आपको यह समझना होगा कि यह एक ऑनलाइन बिज़नेस है। इसलिए सबसे पहले आपको एक ऐप बनाना होगा जहाँ से कस्टमर आपसे सीधा संपर्क कर सकते हैं और ऑर्डर दे सकते हैं। आप इसे चाहे तो अपन घर से ही शुरू कर सकते हैं या फिर एक खास जगह का चुनाव कर सकते है जहां से आप सबसे जल्दी खाना डिलीवरी कर पाएं। इस बिज़नेस को शुरू करने में ज्यादा पैसे की भी जरूरत नहीं होती। छोटे स्तर पर इस काम को शुरू करने के लिए सिर्फ 25,000 रुपयों के निवेश की जरूरत पड़ती है। वहीं, प्रोफेशनल स्तर पर शुरू करने ��र इसमें चार-पांच लाख रुपए तक का खर्च आ सकता है। आपको बस पूरे सेटअप पर ध्यान देना होगा मतलब फ़ूड से रिलेटेड बर्तन, इक्विपमेंट, राशन, किचन के लिए जगह, फ्रीजर, बर्नर जैसे अन्य सामान में इन्वेस्ट करना होगा। ऑनलाइन के साथ-साथ आप इस बिजनेस को ऑफलाइन माध्यम से भी कर सकते हैं। किसी भी बिज़नेस को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक सही लीडर की जरूरत पड़ती है आप चाहे तो Leadership Consultant की सलाह ले कर अपने बिज़नेस को सही से चला सकते हैं।
क्लाउड किचन के लिए करना होगा रजिस्ट्रेशन
क्लाउड किचन बिज़नेस शुरू करने के लिए आपको जीएसटी का रजिस्ट्रेशन, एफएसएसएआई का फूड लाइसेंस, नगर निगम लाइसेंस, जैसे कुछ अन्य जरूरी दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है।आप फूड लाइसेंस ऑनलाइन अप्लाई कर सकते हैं। वहीं जीएसटी के लिए किसी चार्टेड एकाउंटेंट से मदद ले सकते हैं। इसक अलावा आपको अपने क्लाउड किचन को फूड डिलीवरी करने वाले ऐप जैसे स्विगी और जोमैटो पर रजिस्टर करना होगा।
मार्केटिंग का भी ले सकते हैं सहारा
आज के दौर में अधिकांश बिज़नेस को मार्केटिंग की मदद लेनी पड़ती है। अपने क्लाउड किचन के बिज़नेस को आगे बढ़ाने के लिए आप मार्केटिंग तकनीक का सहारा ले सकते हैं। इसके लिए आप डिजिटल मार्केटिंग एक्सपर्ट रख सकते हैं या फिर किसी एजेंसी को हायर कर सकते हैं। साथ ही सोशल मीडिया पर भी प्रमोशन कर सकते हैं क्योंकि बहुत से यूजर सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं। आप यहां से ग्राहकों को आसानी से ढूंढ सकते हैं।
क्लाउड किचन बिज़नेस एक बेहतरीन विकल्प है। आप इसे शुरू करके हर महीने लाखों की कमाई कर सकते हैं। इसके लिए आपको ज्यादा मशक्कत करने की भी जरूरत नही��� है। आप घर बैठे इसे शुरू कर सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं। लेख के बारे में आप अपनी टिप्पणी को कमेंट सेक्शन में कमेंट करके दर्ज करा सकते हैं। इसके अलावा आप अगर एक व्यापारी हैं और अपने व्यापार में मुश्किल परेशानियों का सामना कर रहे हैं और चाहते हैं कि स्टार्टअप बिज़नेस को आगे बढ़ाने में आपको एक पर्सनल बिज़नेस कोच का अच्छा मार्गदर्शन मिले तो आपको PSC (Problem Solving Course) का चुनाव जरूर करना चाहिए जिससे आप अपने बिज़नेस में एक अच्छी हैंडहोल्डिंग पा सकते हैं और अपने बिज़नेस को चार गुना बढ़ा सकते हैं ।
Source: https://hindi.badabusiness.com/business-motivation/start-cloud-kitchen-business-to-earn-millions-every-month-11393.html
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एशिया के सबसे बड़े स्लम धारावी में आता है कुंभरवाड़ा। कुंभर यानी कुम्हार और वाड़ा यानी कॉलोनी। इस तरह कुम्हारों की बसाहट के बाद कुंभरवाड़ा बना। 100 साल से भी ज्यादा समय से यहां मिट्टी के बर्तन बनाने का काम चल रहा है। कुंभरवाड़ा दीयों का कितना बड़ा मार्केट है, इसका अंदाज इस बात से लगा सकते हैं कि सालभर में यहां करीब 10 करोड़ दीये बनाए जाते हैं। यहां घरों के बाहर भट्टी और घरों के अंदर मिट्टी के बर्तन सजे होते हैं।
दिवाली इन लोगों के लिए बिजनेस का सबसे बड़ा मौका होता है, लेकिन इस बार हालात खराब हैं। कोरोना के चलते न माल एक्सपोर्ट हुआ है और न ही लोकल ग्राहकी अच्छी हो रही है। कोरोना ने इस पॉटरी विलेज की दीपावली फीकी कर दी है।
कुंभरवाड़ा मुंबई का मिट्टी के बर्तनों का सबसे बड़ा बाजार है।
5 हजार दीये खराब हो गए, बिके अभी तक 10 हजार ही
राकेश भाई 90 फीट रोड पर ही मिट्टी के बर्तनों की दुकान लगाते हैं। कहते हैं, 'पहली बार ऐसा हो रहा है कि हमें भट्टी जलाने के लिए वेस्ट मटेरियल भी महंगा मिल रहा है और माल भी नहीं बिक रहा। वेस्ट मटेरियल महंगा क्यों हो गया? इस पर बोले, 'भैया धारावी में कपड़े की हजारों फैक्ट्रियां हैं। उनकी जो बची हुई कतरन होती है, वही हम खरीदते हैं और उससे भट्टी जलाते हैं। इस बार फैक्ट्रियां ही बंद पड़ी थीं। चुनिंदा फैक्ट्रियों ने ही कतरन बेची तो जो माल 80 रुपए में मिलता था वो 220 में मिला।'
राकेश ने दीपावली के लिए 20 हजार दीये रखे थे। इसमें से 5 हजार तो खराब ही हो गए, क्योंकि वो काली मिट्टी से बने थे। गुजरात से जो मिट्टी आती है, वो आ नहीं पाई थी। ऐसे में काली मिट्टी से दीये बनाने पड़े। 15 हजार दीये बचे थे, उसमें से करीब 10 हजार ही बिक पाए हैं। पिछली दिवाली तक तो एक झटके में ही इतना माल निकल जाता था। कहते हैं कि कुछ दिनों पहले मेरे पिताजी की डेथ हुई है। हमें मिठाई, कपड़े कुछ नहीं खरीदना। खरीदना होता तो इस बार कुछ खरीद भी नहीं पाते।
कुंभरवाड़ा के राकेश कहते हैं कि पिछली दिवाली तक तो इतनी भीड़ होती थी कि खाने का भी टाइम नहीं मिल पाता था, अब तो सब मंदा है।
दरअसल, कुंभरवाड़ा के कुम्हार हर साल मार्च-अप्रैल से दीये बनाना शुरू कर देते हैं। यह काम अक्टूबर तक चलता है, फिर दीपावली पर ग्राहकी होती है। छोटे लेवल पर काम करने वाले भी दिवाली पर लाख-दो लाख कमा लेते हैं। यह कमाई चार-पांच महीने की मेहनत की होती है। इस बार कोरोना के चलते मार्च-अप्रैल में कोई काम हो ही नहीं सका। दीयों के लिए मिट्टी गुजरात से आती है, वो भी इस बार नहीं आई। जून के बाद कुछ गाड़ियां आईं, लेकिन माल इतना महंगा बिका कि छोटे लेवल पर काम करने वाले खरीद नहीं सके। अब ये लोग वो माल बेच रहे हैं, जो पहले से बना रखा हुआ है।
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पीढ़ियों से यही काम कर रहे, इस बार ग्राहकी आधी हो गई
हंसमुख भाई परमार कहते हैं, 'हम पीढ़ियों से यही काम करते आ रहे हैं। कुंभरवाड़ा में तैयार होने वाले दीये यूएस, दुबई और लंदन तक जाते हैं। कुछ माल पानी के जहाज से जाता है तो कुछ हवाई जहाज से जाता है। हालांकि, बाहर माल भेजने का काम कुछ बड़े लोग ही करते हैं। छोटे व्यापारी तो यहीं के भरोसे होते हैं। मुंबई में अभी लोकल सभी के लिए शुरू नहीं हुई इसलिए शहर के ग्राहक भी इधर नहीं आ रहे।'
वो कहते हैं कि बेरोजगारी और कामधंधा मंदा होने के कारण भी लोग परेशान हैं इसलिए दीपावली पर बहुत ज्यादा खरीदारी नहीं कर रहे। हंसमुख भाई ने पिछले 20 सालों में पहली बार दिवाली पर इतनी फीकी ग्राहकी देखी है। कहने लगे कि बिजनेस सीधे-सीधे 50 टका कम हो गया। पहले दिवाली पर 4 से 5 लाख रुपए का बिजनेस होता था, इस बार तो लाख में बात पहुंची ही नहीं।
हसमुख कहते हैं कि पिछले 20 सालों में पहली बार दीपावली पर इतना मंदा बाजार देखा है।
50 लाख दीये विदेश जाते हैं कुंभरवाडा में मिट्टी के बर्तनों का छोटे लेवल पर बिजनेस करने वाला कुम्हार परिवार भी सालभर में औसतन 1 लाख दीये बनाता है। इससे महीने में 15 से 20 हजार रुपए की कमाई हो जाती है। सालभर में करीब 10 करोड़ दीये बनते हैं। कारोबारियों के मुताबिक, 50 लाख दीये तो विदेशों में एक्सपोर्ट हो जाते हैं। दीये के साथ ही मिट्टी के कई आइटम यहां बनाए जाते हैं।
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कुंभरवाड़ा में ढेरों छोटे-छोटे कारोबारी हैं, जिनके लिए दीवाली कमाने का बड़ा मौका होता है। पूरा परिवार इस काम में लग जाता है, लेकिन इस बार सब मंदा है।
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बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान खत्म हाेने के बाद मंगलवार काे झारखंड की सीमा मिर्जाचौकी के पास राेके गए वाहनाें काे जैसे ही आगे बढ़ने की अनुमति मिली, एनएच-80 पर वाहनों का दबाव एकाएक बढ़ गया।
इस कारण बुधवार को कहलगांव से घोघा तक 9 घंटे एनएच जाम रहा। रात में वाहन धीरे-धीरे निकल रहे थे, लेकिन बुधवार की सुबह शहर की वाहनाें का भी दबाव बढ़ गया। वहीं बुधवार को कहलगांव में साप्ताहिक हाट के कारण भी शहर में खरीदारी करने वालों की भीड़ बढ़ने से और परेशानी बढ़ गई।
सुबह 10 बजे शाम 6 बजे तक जाम में वाहन फंसे रहे। इस दौरान जाम को हटाने के लिए कहीं भी पुलिस नहीं दिखी। इससे यात्रियों में काफी रोष था। वाहनों में बैठे छोटे-छोटे बच्चों का बुरा हाल था। कई यात्रियों की ट्रेन छूट गई तो कई लोग समय पर अपने दफ्तर नहीं पहुंच सके। कहलगांव में तो पैदल चलना भी मुश्किल था।
छोटे वाहन चालक और बाइक सवार संपर्क सड़क होकर जाने लगे। इस कारण धीरे-धीरे ये सड़क भी जाम की चपेट में आ गए। शाम लगभग 5 बजे कहलगांव थाने की पुलिस पहुंची और जाम हटाने की नाकाम कोशिश की, लेकिन जाम जस की तस बनी रही। शाम 7 बजे पुलिस ने ट्रैफिक वनवे कराया तब लोगों ने राहत की सांस ली और वाहन धीरे-धीरे अपने गंतव्य की ओर रवाना हुए।
कहलगांव से भागलपुर आने में यात्रियों को पांच घंटे लगे
एनएच-80 पर लगे ��ाम में वाहन इस कदर फंसे थे कि न आगे जा पा रहे थे न पीछे। यात्रियों को कहलगांव से भागलपुर आने में पांच घंटे लगे। अपने परिवार के साथ भागलपुर जा रही मिर्जाचौकी की एक महिला ने बताया कि बच्चे को भागलपुर में डॉक्टर से दिखाना था, लेकिन हम यहां तीन घंटे से जाम में फंसे हुए है। इसी इस संबंध में नगर पंचायत अध्यक्ष अजय मंडल ने बताया कि हटिया का दिन था इसलिए जाम और भयावह हो गया। उन्होंने यह भी कहा कि तीन दिन से भारी वाहनों का आवागमन बंद था। वोटिंग समाप्त होने के बाद बुधवार को अचानक एनएच पर वाहनों का दबाव बढ़ गया।
इधर, नवगछिया बाजार व स्टेशन रोड में भी लगा जाम शहर में बुधवार को पूरे दिन जाम की स्थिति बनी रही। इस कारण आसपास के इलाकों से खरीददारी करने आए ग्राहकों को काफी कठिनाई हुई। स्थानीय लोगों ने बताया कि शहर में नो इंट्री के बाद भी बड़ी वाहनो के प्रवेश होने के कारण जाम लगा था। इसके अलावा सड़क पर सब्जी विक्रेता ठेला लगाते हैं। इससे जाम की स्थिति और भयावह हो जाती है। बुधवार को स्टेशन रोड और मेन रोड से महाराज जी चौक तक जाम था।
लोगों को महाराजजी चौक से स्टेशन जाने में एक घंटे से भी अधिक समय लग रहा था। करवाचौथ को लेकर खरीददारी करने के लिए बाजार आए लोगों को काफी परेशानी हुई। शहरवासियों ने अनुमंडल प्रशासन से इसका स्थायी समाधान कराने की मांग की है। स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि आए दिन जाम लगने से हमारे धंधे पर इसका विपरीत असर पड़ता है। ग्राहक दुकान तक नहीं पहुंच पाते हैं।
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कहलगांव में बुधवार को एनएच-80 पर जाम में फंसे वाहन।
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चांदनी चौक की यात्रा
मैडम खासी खफा इस बात से थी की सुबह उठते ही सारथी जी का फ़ोन जब आया तो हमने आधे घंटे में निकलने की बात कही। बात दर असल ये है की चाँदनी चौक में टाउन हाल के पास इत्र की बहुत ज़बरदस्त दूकान है। इस प्रतिष्ठान में इत्र ही नहीं बल्कि अगरबत्ती और खुश्बू से सम्बंधित कई प्रयोजन और उपाय मिलते हैं। इधर घर पे अगरबत्ती खत्म हुई चली थी कई दिन से और उधर सारथी जी कह रहे थे की चला जाए बल्लीमारान चस्मा खरीदने। आप लोगों को सारथी जी के बारे में ज़रा बताएं तो हमारे परम घनिष्ठों में से एक हैं। पेशे से वकील हैं और बातचीत व्यक्तित्त्व एवं आचरण में ठहराव लिए हुए हैं। अच्छा, हैं भी पूरब के तो हमारी खूब बनती है। बल्लीमारान में इरफ़ान भाई की दूकान अब चर्चित है हमारे मित्रगणों में। सामान अच्छा देते हैं, वर्तमान के स्टाइल का ध्यान रखते हैं और ग्राहक को बहुत अच्छे से सलाह मशविरा देते हैं। तो निकल पड़े हम शनिवार को चांदनी चौक की दिशा में। जोर बाग़ में अपनी ससुराल में गाड़ी खड़ी कर मेट्रो पे हो लिए सारथी जी और मैं। बड़ा ही विहंगम दृश्य होता है दिल्ली मेट्रो के अंदर का। खास तौर पर गुडगाँव से आने जाने वाली ट्रेनों का। हर इंसान जो खड़ा हुआ रहता है, वो एक लगातार एक परस्पर स्पर्धा में पोजीशन लिए रहता है। की हो खाली कोई सीट और मैं लपकूं तुरंत। बहरहाल सारथी जी और हम खड़े रहे और बतियाते गए बिना इस चौतरफा स्पर्धा से विचलित हुए। केंद्रीय सचिवालय स्टेशन आया, और बाकी स्टेशनों के मुकाबले ज़्यादा भीड़ चढ़ती हैं यहाँ से। तो चढ़ी जी भीड़। मेरे पीछे कोच के अंत की दो जनो वाली सीट थी जो खाली हुई थी। उनमे से एक पे एक लड़की आ बैठी। करीब 24-25 साल की उम्र रही होगी मोहतरमा की। दूसरी जो जगह खली हुई वो मुझसे बहुत पास थी। दूरी का अंदाज़ा आप लोगों को इसलिए दे रहा हूँ क्योंकि खाली हुई किसी सीट का अगला मालिकाना हक़ इसी दूरी पे निर्भर होता है। तो मेरे पास होने की वजह से एक सज्जन जो बैठने के लिए आगे बढ़े तो, लेकिन वह दुरी वाला आंकड़ा देख ठिठक गए। उनकी तरफ मैंने देखा तो बोले बैठिये बैठिये आप बैठिये। सुन कर अच्छा लगा। नहीं तो स्पर्धा ऐसी रहती है की किलर इंस्टिंक्ट से छीनी झपटी जाती हैं सीटें। बहरहाल मैंने उन्ही को कहा की वे बैठ जाएं। 2 बार कहने पे वो बैठ गए। अब उस सीट पर ये सज्जन और वो महिला बैठे हुए थे। केंद्रीय सचिवालय की भीड़ में काफी लोग चढ़े। एक परिवार भी चढ़ा 3 छोटे बच्चे जिनमे से एक गोद में था और बाकी 3 4 साल के रहे होंगे दो। मियां बीवी संग बच्चे मेट्रो के सफर का आनंद लेने लगे। ज़्यादा भीड़ होने की वजह से जो महिला थीं वे असहज महसूस करने लगी और बोलीं भाई साहब मेरी गोद में बच्चा है तो आप मुझे बैठ जाने दीजिये। ये वही भाई साहब थे जो मेरे कहने पे बैठे थे उस सीट पर। खैर ये बात सुन कर वे खड़े हो गए और ये महिला गोद में बच्चे को लिए बैठ गयीं। बहुत प्यारे बच्चे थे। ये परिवार दिल्ली आया रहा होगा रिश्तेदारी में और अब वापिस जा रहे थे। कश्मीरी गेट बस अड्डे पे उतरना था उन्हें। ये सब घट रहा था तभी मेरा मन विचलित हुआ किसी की हरकत से। ये वो ही मोहतरमा थीं जो अब इस महिला के बगल में बैठी थी। भारत एक विविधताओं का देश है। कोई अति संपन्न है तो कोई बिलकुल ठन ठन गोपाल। मोहतरमा भी कोई अति संपन्न वर्ग से नहीं थी लेकिन जैसे ही ये महिला अपने बच्चों के साथ वहां बैठी इन्होंने मुँह बना लिया और नाक मुह को रुमाल से ढाँक लिया। ऐसा माहौल बना दिया उस लड़की ने जैसे किसी ने उसके बगल में कूड़ा या जूठन रख दिया हो। अपने इस सड़े गले रवैय्ये से ख़ासा असहज किया रहा होगा उन महिला को लेकिन वो कुछ नहीं बोली। शायद ये सोच के की बड़े लोग छोटे लोग का फर्क होता होगा। हम इतना कुछ घटित होते देख रहे थे, इस बात से शायद सारथी जी भी नावाक़िफ़ रहे हों लेकिन इस घटनाक्रम ने हमको ख़ासा असहज़ कर दिया। एक बार को तो मन किया कि सुना दें उन महिला को लेकिन फिर ठिठक गए सार्वजनिक स्थान पर महिलाओं के शुभचिंतकों का सोच के। बहुत छोटे थे हम, तीसरी क्लास में रहे होंगे। मेरठ में शास्त्री नगर के डी ब्लॉक से सेंट्रल मार्केट को जाती रोड पर सामने से राँग साइड आती एक लूना सवार महिला ने पूरी टक्कर मार दी। मैं सही साइड पे था, वह महिला यकायक ग़लत दिशा में आकर हमको टक्कर मार देती है, परिणाम स्वरूप दोनों ही गिर जाते हैं। गिरने के उपरांत का माहौल ही अलग है, सही दिशा में चलता हुआ साइकल सवार बच्चा दो कलाबाज़ियाँ खाकर घुटने छिलवाकर उठ खड़ा होता है। वह अपने शरीर और साइकल के नुक़सान की समीक्षा कर रहा होता है कि ज़माना भागता है महिला को बचाने। दर्द की मात्रा लिंग या आयु नहीं देखती। हाँ सहन शक्ति ज़रूर अलग अलग हो सकती है जो की कई बिंदुओं पे निर्भर करता है।
बहरहाल एक व���द्ध सज्जन ने ज़रूर पूछा की बेटा ज़्यादा तो नहीं लगी। उसके अलावा तो पूरा सभ्य समाज मुझे अलंकारों से सींच रहा था की निकल जाते हैं बिना देखे समझे सड़क पे बच्चे और ना जाने क्या क्या, और पूरे मनोयोग से मैडम के प्रति समवेदनाएँ प्रकट कर रहा था।
कोई बोला अरे पानी लाओ भई मैडम के लिए पानी लाओ, तो मुझे ख़याल आया की मैं ही ले आता हूँ कहीं हैंड पम्प से ठंडा पानी नहीं तो बोलने लग जाएँगे की देखो बदतमीज़ खड़ा है यहीं। मैं सिर्फ़ यह बताना चाह रहा हूँ की भीड़ के इस नारी प्रेम के रवैय्ये से मैं बहुत छोटी उम्र में परिचित हो गया था।
इसीलिए उन मेट्रो वाली मुँह सिकोड़ती युवती को कुछ बोला नहीं।
लेकिन अगर सोचा जाए तो कितने बड़े अंतर्विरोध हमारे अंदर पनपते हैं। क्या ग़रीब होना, जो कि एक तुलनात्मक विशेषण है, किसी को घृणा का पात्र बनाता है ?? उस हिसाब से तो आप हम या दुनिया का हर प्राणी, दूसरे की इज़्ज़त, फ़ोर्ब्ज़ मैगज़ीन के हिसाब से करे। बहुत समस्या हो जाएगी। सम्मान देना और पाना मानव सभ्यता का महत्वपूर्ण सूचक है।
ये भी नहीं हम कहे दे रहे की कल से लग जाओ, ग़रीबी हटा दो और बवाल काट दो। परंतु सबको सम्मान से और समदर्शी स्वभाव से देखना और जानना एक अच्छी शुरुआत ज़रूर हो सकती है। हर किसी के जीवन का किसी ना किसी क़िस्से में या कई सारे क़िस्सों में हीरो/ हीरोईन/प्रटैगनिस्ट वह आदमी स्वयं होता है। वो एक ऐसा भी आयाम हो सकता है जिस पे आप हम पूर्णतः असफल हों। हर कोई स्वयंभू है ख़ुद के जीवन का हीरो।
शम्मी नारंग जी ने कहा “अगला स्टेशन चाँदनी चौक है, दरवाज़ों से बच कर खड़े हों”
सोचते सोचते चाँदनी चौक पर उतर गए।
इत्र की दुकान वाक़ई कालजयी है, कभी जाना हो तो बताइएगा।
श्रीष
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