#दान और तर्पण
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🙏 पितृ पक्ष का महाभारत से एक प्रसंग
श्राद्ध का एक प्रसंग महाभारत महाकाव्य से इस प्रकार है, कौरव-पांडवों के बीच युद्ध समाप्ति के बाद, जब सब कुछ समाप्त हो गया, दानवीर कर्ण मृत्यु के बाद स्वर्ग पहुंचे। उन्हें खाने मे सोना, चांदी और गहने भोजन के जगह परोसे गये। इस पर, उन्होंने स्वर्ग के स्वामी इंद्र से इसका कारण पूछा।
इस पर, इंद्र ने कर्ण को बताया कि पूरे जीवन में उन्होंने सोने, चांदी और हीरों क��� ही दान किया, परंतु कभी भी अपने पूर्वजों के नाम पर कोई भोजन नहीं दान किया। कर्ण ने इसके उत्तर में कहा कि, उन्हें अपने पूर्वजों के बारे मैं कोई ज्ञान नही था, अतः वह ऐसा करने में असमर्थ रहे।
तब, इंद्र ने कर्ण को पृथ्वी पर वापस जाने के सलाह दी, जहां उन्होंने इन्हीं सोलह दिनों के दौरान भोजन दान किया तथा अपने पूर्वजों का तर्पण किया। और इस प्रकार दानवीर कर्ण पित्र ऋण से मुक्त हुए।
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पौष अमावस्या 2024: पितृओं का आशीर्वाद प्राप्त करें, दान करें और आत्मिक शुद्धि प्राप्त करें
हिंदू कैलेंड�� शुभ दिनों और त्योहारों से भरा हुआ है, जिनमें से प्रत्येक की अनूठी परंपराएं और महत्व हैं. इनमें से पौष अमावस्या पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने, आध्यात्मिक कार्यों को करने और उदारता के भाव को अपनाने के लिए समर्पित एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में प्रसिद्ध है. 30 दिसंबर, 2024, सोमवार को पड़ने वाला यह दिन न केवल आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें अपने पूर्वजों से जुड़ने और अनुष्ठानों और दया के कार्यों के माध्यम से कृतज्ञता व्यक्त करने का भी स्मरण कराता है.
1. पौष अमावस्या 2024 तिथि और मुहूर्त
कार्यक्रमतिथि और समयप्रारंभ तिथि और समय30 दिसंबर, 2024, सुबह 04:01 बजेसमाप्त तिथि और समय31 दिसंबर, 2024, सुबह 03:56 बजेस्नान-दान का शुभ मुहूर्त30 दिसंबर, 2024 को सुबह 5:57 बजे से 6:21 बजे तक
इस दिन के रीति-रिवाजों का पालन करने और उदारता के मूल्यों को अपनाने से आप अपने पूर्वजों का सम्मान कर सकते हैं, अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं और समाज के कल्याण में योगदान दे सकते हैं. 30 दिसंबर, 2024 के नजदीक आते हुए, आइए हम इस दिन का स्वागत ईमानदारी, भक्ति और करुणा से भरे हृदय के साथ करें.
2. पौष अमावस्या का महत्व
2.1 पितृ कर्म (पितृ पूजन): यह दिन तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध जैसे अनुष्ठान करने के लिए शुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि ये अनुष्ठान दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करते हैं और उनके आशीर्वाद को सुखी जीवन के लिए प्राप्त करते हैं.
2.2 आत्मिक शुद्धि: पौष अमावस्या के दिन उपवास करने और गंगा या यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से व्यक्ति के कर्म शुद्ध होते हैं और आत्मा साफ होती है.
2.3 समृद्धि की प्राप्ति: भक्त सूर्य (सूर्य देव) और विष्णु जैसे देवताओं की पूजा भी करते हैं, आने वाले वर्ष के लिए अच्छे स्वास्थ्य, धन और सफलता की कामना करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक बाधाएं दूर हो सकती हैं और भरपूर धन प्राप्ति हो सकती है.
3. अनुष्ठान और पालन
उपवास: इस दिन भक्त अक्सर कठोर उपवास रखते हैं, शाम की प्रार्थना और अनुष्ठान पूरा करने के बाद ही भोजन करते हैं.
पूजा और तर्पण: अनुष्ठानों में पूर्वजों को जल, फूल, चावल के गोले (पिंड) और चंदन का लेप च��़ाना शामिल है. इन प्रसादों को चढ़ाते समय दक्षिण दिशा का मुख होना आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह यम, मृत्यु के देवता की दिशा के साथ संरेखित होता है.
मंदिर दर्शन: शिव, विष्णु और सूर्य जैसे देवताओं को समर्पित मंदिरों में जाना इस दिन का एक अभिन्न अंग है. ऐसे कार्य किसी के आध्यात्मिक जुड़ाव को गहरा करते हैं.
4. पौष अमावस्या पर दान का महत्व
पौष अमावस्या पर दान हिंदू परंपराओं में गहराई से जुड़ा हुआ है. यह केवल भौतिक देने के बारे में नहीं है, बल्कि यह कर्म ऋण के भुगतान और सकारात्मक कर्मों के संचय का प्रतीक है.
5. दान के सुझाव
अन्नदान: जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े या धन दान करना दया और उदारता को दर्शाता है.
संस्थाओं को समर्थन: नारायण सेवा संस्थान जैसी संस्थाओं को दान देना, जो दिव्यांग और वंचित व्यक्तियों के उत्थान के लिए काम करती हैं, आपके योगदान को और अधिक सार्थक बनाता है.
शिक्षा के लिए समर्थन: गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए दान देना ज्ञान और आत्मज्ञान की खोज के अनुरूप है.
6. नारायण सेवा संस्थान: मुस्कानें फैलाना
नारायण सेवा संस्थान, एक प्रमुख धर्मार्थ संगठन, दिव्यांग और वंचित व्यक्तियों के उत्थान के लिए अपने अथक प्रयासों के माध्यम से पौष अमावस्या की भावना को मूर्त रूप देता है. कृत्रिम अंग प्रदान करने से लेकर शिक्षा और आजीविका पहलों का समर्थन करने तक, संस्थान करुणा और समर्पण के साथ जीवन बदल रहा है. इस तरह के दान न केवल पौष अमावस्या की परंपराओं का सम्मान करते हैं बल्कि सामाजिक कल्याण में भी योगदान देते हैं.
7. पौष अमावस्या की भावना को अपनाएं
पौष अमावस्या केवल अनुष्ठानों का दिन नहीं है, बल्कि यह चिंतन, पुन: जुड़ाव और पुनर्जीवन का क्षण है. इसके रीति-रिवाजों का पालन करने और उदारता के मूल्यों को अपनाने से आप अपने पूर्वजों का सम्मान कर सकते हैं, अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं और समाज के कल्याण में योगदान दे सकते हैं. 30 दिसंबर, 2024 के नजदीक आते हुए, आइए हम इस दिन का स्वागत ईमानदारी, भक्ति और करुणा से भरे हृदय के साथ करें.
8. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न: पौष अमावस्या का क्या महत्व है?
उत्तर: पौष अमावस्या पूर्वजों की पूजा, आत्मिक शुद्धि और दान के लिए समर्पित है.
प्रश्न: इस दिन कौन से अनुष्ठान किए जाते हैं?
उत्तर: तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध, गंगा स्नान और सूर्य देव की पूजा प्रमुख अनुष्ठान हैं.
प्रश्न: पौष अमावस्या पर दान का क्या महत्व है?
उत्तर: दान करना पौष अमावस्या के महत्व को बढ़ाता है और कर्म ऋण को कम करता है.
प्रश्न: मैं पौष अमावस्या घर पर कैसे मना सकता हूं?
उत्तर: आप घर पर उपवास कर सकते हैं, पूर्वजों को जल अर्पित कर सकते हैं और प्रार्थना कर सकते हैं.
प्रश्न: नारायण सेवा संस्थान पौष अमावस्या से कैसे जुड़ा है?
उत्तर: संस्थान दिव्यांगों और जरूरतमंदों की सहायता करके पौष अमावस्या की ��ावना को जीवंत करता है.
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December Amavasya Date 2024: साल की आखिरी अमावस्या कब है, जानें तिथि, स्नान-दान का शुभ मुहूर्त और मह��्व
Paush Amavasya Date:हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का को बहुत ��ी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान -दान करने के साथ पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है. इस बार पौष माह की अमावस्या तिथि सोमवार के दिन पड़ रही है. ऐसे में यह सोमवती अमावस्य कहलाएगी. हिंदू धर्म में सभी अमावस्य तिथि में से मौनी और सोमवती अमावस्य को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन…
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#पितृ तर्पण
श्राद्ध और पिण्ड दान करने से जीव की गति नहीं होती।
प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराई। बहुर श्राद्ध खान को आए काग भये कलमाही।
जब आवे आसोच का महीना,
कौवाँ बाप बनाई।
जीवित बाप को लठ्ठम लट्ठा,
मुवें गंग पहुँचया।
जब आवे आसोच का महीना, कौवाँ बाप बनइयाँ।
रे भोलिसी दुनियाँ,
सतगुरु बिन कैसे सरियाँ।
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Pitru Paksha 2024 Daan: पितृपक्ष में भूलकर भी ना करें इन चीजों का दान, मिलेगा बहुत लाभPitru Paksha 2024 Daan: पितृ पक्ष का समय बेहद ही महत्वपूर्ण होता है। यह समय पूर्ण रूप से पितरों को समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान लोग अपने पूर्वजों का तर्पण और उनके नाम से गीता के पाठ का आयोजन करते हैं।
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*🌞~ आज दिनांक - 06 अगस्त 2024 का वैदिक और सटीक हिन्दू पंचांग आप के शुभ कार्य के लिए ~🌞*
*⛅दिनांक - 06 अगस्त 2024*
*⛅दिन - मंगलवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - वर्षा*
*⛅मास - श्रावण*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - द्वितीया शाम 07:52 तक तत्पश्चात तृतीया*
*⛅नक्षत्र - मघा शाम 05:44 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी*
*⛅योग - वरीयान प्रातः 11:00 तक तत्पश्चात परिघ*
*⛅राहु काल - शाम 04:02 से शाम 05:40 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:13*
*⛅सूर्यास्त - 07:18*
*⛅दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:45 से 05:29 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:19 से दोपहर 01:12*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:24 अगस्त 07 से रात्रि 01:07 अगस्त 07 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण - मंगला गौरी व्रत*
*⛅विशेष - द्वितीया को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🌹 चातुर्मास्य व्रत की महिमा🌹*
*🔸 चतुर्मास में प्रतिदिन एक समय भोजन करने वाला पुरुष अग्निष्टोम यज्ञ के फल का भागी होता है । पंचगव्य सेवन करने वाले मनुष्य को चन्द्रायण व्रत का फल मिलता है । यदि धीर पुरुष चतुर्मास में नित्य परिमित अन्न का भोजन करता है तो उसके सब पातकों का नाश हो जाता है और वह वैकुण्ठ धाम को पाता है । चतुर्मास में केवल एक ही अन्न का भोजन करने वाला मनुष्य रोगी नहीं होता ।*
*🔸 जो मनुष्य चतुर्मास में केवल दूध पीकर अथवा फल खाकर रहता है, उसके सहस्रों पाप तत्काल विलीन हो जाते हैं ।*
*🔸 पंद्रह दिन में एक दिन संपूर्ण उपवास करने से शरीर के दोष जल जाते हैं और चौदह दिनों में तैयार हुए भोजन का रस ओज में बदल जाता है । इसलिए एकादशी के उपवास की महिमा है । वैसे तो गृहस्थ को महीने में केवल शुक्लपक्ष की एकादशी रखनी चाहिए, किंतु चतुर्मास की तो दोनों पक्षों की एकादशियाँ रखनी चाहिए ।*
*🔸 जो बात करते हुए भोजन करता है, उसके वार्तालाप से अन्न अशुद्ध हो जाता है । वह केवल पाप का भोजन करता है । जो मौन होकर भोजन करता है, वह कभी दुःख में नहीं पड़ता । मौन होकर भोजन करने वाले राक्षस भी स्वर्गलोक में चले गये हैं । यदि पके हुए अन्न में कीड़े-मकोड़े पड़ जायें तो वह अशुद्ध हो जाता है । यदि मानव उस अपवित्र अन्न को खा ले तो वह दोष का भागी होता है । जो नरश्रेष्ठ प्रतिदिन ‘ॐ प्राणाय स्वाहा, ॐ अपानाय स्वाहा, ॐ व्यानाय स्वाहा, ॐ उदानाय स्वाहा, ॐ समानाय स्वाहा’ – इस प्रकार प्राणवायु को पाँच आहुतियाँ देकर मौन हो भोजन करता है, उसके पाँच पातक निश्चय ही नष्ट हो जाते हैं ।*
*🔸चतुर्मास में जैसे भगवान विष्णु आराधनीय हैं, वैसे ही ब्राह्मण भी । भाद्रपद मास आने पर उनकी महापूजा होती है । जो चतुर्मास में भगवान विष्णु के आगे खड़ा होकर ‘पुरुष सूक्त’ का पाठ करता है, उसकी बुद्धि बढ़ती है ।*
*🔸 चतुर्मास सब गुणों से युक्त समय है । इसमें धर्मयुक्त श्रद्धा से शुभ कर्मों का अनुष्ठान करना चाहिए ।*
*सत्संगे द्विजभक्तिश्च गुरुदेवाग्नितर्पणम् ।*
*गोप्रदानं वेदपाठः सत्क्रिया सत्यभाषणम् । ।*
*गोभक्तिर्दानभक्तिश्च सदा धर्मस्य साधनम् ।*
*🔸 ‘सत्संग, भक्ति, गुरु, देवता और अग्नि का तर्पण, गोदान, वेदपाठ, सत्कर्म, सत्यभाषण, गोभक्ति और दान में प्रीति – ये सब सदा धर्म के साधन हैं ।’*
*🔸 देवशयनी एकादशी से देवउठी एकादशी तक उक्त धर्मों का साधन एवं नियम महान फल देने वाला है । चतुर्मास में भगवान नारायण योगनिद्रा में शयन करते हैं, इसलिए चार मास शादी-विवाह और सकाम यज्ञ नहीं होते । ये मास तपस्या करने के हैं ।*
*🔸 चतुर्मास में योगाभ्यास करने वाला मनुष्य ब्रह्मपद को प्राप्त होता है । ‘नमो नारायणाय’ का जप करने से सौ गुने फल की प्राप्ति होती है । यदि मनुष्य चतुर्मास में भक्तिपूर्वक योग के अभ्यास में तत्पर न हुआ तो निःसंदेह उसके हाथ से अमृत का कलश गिर गया । जो मनुष्य नियम, व्रत अथवा जप के बिना चौमासा बिताता है वह मूर्ख है ।*
*🔸बुद्धिमान मनुष्य को सदैव मन को संयम में रखने का प्रयत्न करना चाहिए । मन के भलीभाँति वश में होने से ही पूर्णतः ज्ञान की प्राप्ति होती है ।*
*🔸 ‘एकमात्र सत्य ही परम धर्म है । एक सत्य ही परम तप है । केवल सत्य ही परम ज्ञान है और सत्य में ही धर्म की प्रतिष्ठा है । अहिंसा धर्म का मूल है । इसलिए उस अहिंसा को मन, वाणी और क्रिया के द्वारा आचरण में लाना चाहिए ।’*
*(स्कं. पु. ब्रा. 2.18-19)*
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षटतिला एकादशी- इस व्रत से दूर होती है दुख-दरिद्रता
माघ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक एकादशी व्रत का अपना एक विशेष महत्व होता है और इस दिन व्रत करने के साथ दान-पुण्य करना बेहद लाभकारी माना गया है। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत बहुत ही खास मा���ा जाता है। हर महीने 2 एकादशी और एक साल में कुल 24 एकादशी आती हैं। इस दिन भगवान विष्णु के पूजन का विधान है। आइये जानते हैं क्या है षटतिला एकादशी और क्या है इसका महत्व ?
षटतिला एकादशी कब है ?
इस साल षटतिला एकादशी 6 फरवरी 2024, मंगलवार को मनाई जाएगी। षटतिला एकादशी के दिन पूजन में व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती कर पारण के समय तिल का दान करें। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ति होती है। इस व्रत को रखने से मनुष्यों को अपने बुरे पापों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में यह भी बताया है कि केवल षटतिला एकादशी का व्रत रखने से वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त होता है।
षटतिला एकादशी का महत्व
षटतिला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की श्रद्धा पूर्वक पूजा करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और वैभव बना रहता है। षटतिला एकादशी का व्रत रखने से वैवाहिक जीवन सुखमय और खुशहाल बनता है। इसके अलावा इस व्रत की कथा सुनने एवं पढ़ने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि षटतिला एकादशी के दिन अन्न दान करने का बहुत महत्व माना जाता है। इस दिन ब्राह्मण को एक भरा हुआ घड़ा, छतरी, जूतों का जोड़ा, काले तिल और उससे बने व्यंजन और वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।
क्यों कहा जाता है इसे षटतिला एकादशी ?
षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व है। इस व्रत में तिल का छः तरीके से इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसे षटतिला एकादशी कहा जाता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत करने से स्वर्ण-दान से मिलने वाले पुण्य के समान ही पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन तिल का अत्यंत महत्व है। इस दिन तिल के जल से स्नान करते हैं, तिल का उबटन लगाया जाता है, तिल से हवन किया जाता है। इसके अलावा तिल का भोजन में इस्तेमाल करते हैं, तिल से तर्पण करते हैं और तिल का दान करते हैं। महंत श्री पारस जी ने कहा है कि एकादशी तिथि के दिन पूजा-पाठ करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है और उन्हें सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
एकादशी पूजा विधि
एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके उपरांत मंदिर की सफाई कर मंदिर में गंगाजल छिड़कें। चौकी पर पूजा स्थल में पीला वस्त्र बिछाएं और इस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान विष्णु को धूप, दीप अर्पित करें।
भगवान विष्णु के सामने तुलसी दल जरूर चढ़ाएं। साथ ही कुमकुम, पीला फूल, पीला चंदन और भोग में पीले रंग की मिठाई और फल के साथ तिल-गुड़ के लड्डू चढ़ाएं। व्रत के दौरान क्रोध, ईर्ष्या आदि जैसे विकारों क��� त्याग करके फलाहार का सेवन करना चाहिए। साथ ही रात्रि जागरण भी करना चाहिए।
अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी इस दिन शुभ माना जाता है। अंत में पूजा समाप्त करने के पश्चात प्रसाद का वितरण करें।
तिल एवं गुड़ के दान का महत्व
महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि जो व्यक्ति षटतिला एकादशी के दिन तिल एवं गुड़ का दान करते हैं, उन्हें मोक्ष मिलता है। ऐसी भी मान्यता है कि षटतिला एकादशी के दिन पितरों का तिल-तर्पण करने से उन्हें सद्गति की प्राप्ति होती है। साथ ही ये भी माना जाता है कि षटतिला एकादशी के दिन व्यक्ति जितने तिल का दान करता है, उतने हजार वर्ष तक बैकुंठलोक में सुख पूर्वक रहता है। महंत श्री पारस भाई जी ने आगे बताया कि जो भी इस दिन तिल का छह तरह से उपयोग करता है उसे कभी धन की कमी नहीं होती और आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।
षटतिला एकादशी की व्रत-कथा
प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण की विधवा पत्नी थी। वह भगवान विष्णुजी की अनन्य भक्त थी। वह उनकी प्रतिदिन पूजा करती थी। उसने विष्णुजी का आशीर्वाद पाने के लिए एक महीने तक उपवास किया। ऐसा करने पर उसका तन-मन शुद्ध हो गया लेकिन उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं खिलाया, न ही कभी देवताओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान किया। इसलिए ब्राह्मण-भोज का महत्व बताने के लिए षटतिला एकादशी को ब्राह्मण रूप में विष्णुजी महिला के पास गए और उससे भिक्षा मांगी। उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं कराया और दान में एक मिट्टी का ढेला दिया।
जब उसकी मृत्यु हुई तो वह बैकुंठधाम तो गई लेकिन वहां उसे एक खाली झोपड़ी मिली। यह सब देखकर उसने सोचा कि वह तो श्रद्धा भाव से विष्णुजी की पूजा करती थी लेकिन उसे खाली झोपड़ी क्यों मिली। इसके बाद विष्णुजी महिला के पास पहुंचे और उसको कारण बताया कि उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं कराया था। तब उस दुखी महिला ने भगवान विष्णुजी से इसका हल पूछा। उसकी बात सुनकर विष्णुजी ने उसे षटतिला एकादशी व्रत करने के बारे में बताया। महिला ने विष्णुजी की बात सुनकर श्रद्धा भाव और नियम से व्रत किया। उसकी पूजा से विष्णुजी खुश हुए और उन्होंने कहा कि षटतिला एकादशी के दिन जो भी व्यक्ति इस व्रत को करेगा और ब्राह्मणों को दान देगा तब उसे मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होगी एवं जीवन में सुख-शांति का वास होगा। इस दिन तिल का दान करने से रोग, दोष और भय से छुटकारा मिलता है। साथ ही इस दिन तिल का दान करने से अनाज की कभी कमी नहीं होती है और इस व्रत के प्रभाव से दुख-दरिद्रता दूर होती है।
ॐ श्री विष्णवे नम: … “पारस प��िवार” की ओर से षटतिला एकादशी की ढेर सारी शुभकामनाएं !!!!
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पूरे देश प्रदेश से अब होगा पाखंडवाद का खात्मा 👇
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1. ब्रम्हा,विष्णु ,महेश के माता-पिता कौन है ?
2. शेरावाली माता (दुर्गा अष्टांगी) का पति कौन है ?
3. हमको जन्म देने व मारने में किस प्रभु का स्वार्थ है ?
4. हम सभी इतनी देवी-देवताओं की इतनी भक्ति करते हैं,फिर भी दु:खी क्यों ��ैं?
5. ब्रम्हा ,विष्णु ,महेश किसकी भक्ति करते हैं?
6. पूर्ण संत की क्या पहचान है एवं पूर्ण मोक्ष कैसे मिलेगा ?
7. परमात्मा साकार है या निराकार ?
8. किसी भी गुरु की शरण में जाने से मुक्ति संभव है या नहीं ? 9. तीर्थ, व्रत, तर्पण,श्राद्ध निकालने से लाभ संभव है या नहीं ? 10.श्री कृष्ण जी काल नहीं थे ! फिर गीता वाला काल कौन है ?
11.पूर्ण परमात्मा कौन तथा कैसा है ? कहाँ रहता है ?कैसे मिलता है ? किसने देखा है ?
12.समाधि अभ्यास (Meditation) राम,हरे कृष्ण ,हरिओम ,हंस,तीन व पांच नामों तथा वाहेगुरु आदि -आदि नामों के जाप से सुख एवं मुक्ति संभव है या नहीं ? 13.वर्तमान समय में प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं के अनुसार वह महान संत कौन है ?
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वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान की जानकारी में अब संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान 📚 के आगे कोई भी नहीं टिक पाएगा। और अब पूरा विश्व में होगा पाखंडवाद का खात्मा ! बंदी छोड़ संत रामपाल जी महाराज की जय हो।🙏💐
🔉सुनिए सन्त रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन:
● साधना TV पर शाम 7:30 से 8:30 तक
● ईश्वर TV पर रात्रि 8:30 से 9:30 तक
● वृन्दा tv पर रात्रि 9:30 से 10:30 तक
● खबर फास्ट न्यूज tv पर रात्रि 09:30 से 10:30
● वाणी चैनल पर रात्रि 9:30 से 10:30 तक
● कात्यायनी TV पर रात्रि 8:00 से 9:00 तक
● Haryana News पर सुबह 6:00 से 7:00 तक
● श्रद्धा MH One पर दोपहर 2:00 से 3:00 तक
● नवग्रह चैनल पर रात्रि 9:00 से 10:00 तक
● TV Today Nepal पर दोपहर 1:30 से 2:30
● नेपाल वन पर सुबह 5:30 से 6:30 तक
● STV सगरमाथा चैनल पर सुबह 5:55 से 6:55
● अप्पन tv चैनल पर शाम 7:00 से 8:00 तक
🙏कबीर,गुरु बिन माला फेरते गुरु बिन देते दान
गुरु बिन दोनों निष्फल है पूछो वेद पुराण।
साचा शब्द कबीर का, सुन सुन लागे आग ।
अज्ञानी सौ जल जल मरै ,ज्ञानी जाय जाग ।।
सत्संग की आधी घड़ी, तप के वर्ष हजार।
तो भी बराबर है नहीं, कहे कबीर विचार।।🙏
सतलोक आश्रम हरियाणा।
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अब होगा पाखंडवाद का खात्मा!
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1. ब्रम्हा,विष्णु ,महेश के माता-पिता कौन है ?
2. शेरावाली माता (दुर्गा अष्टांगी) का पति कौन है ?
3. हमको जन्म देने व मारने में किस प्रभु का स्वार्थ है ?
4. हम सभी इतनी देवी-देवताओं की इतनी भक्ति करते हैं,फिर भी दु:खी क्यों हैं?
5. ब्रम्हा ,विष्णु ,महेश किसकी भक्ति करते हैं?
6. पूर्ण संत की क्या पहचान है एवं पूर्ण मोक्ष कैसे मिलेगा ?
7. परमात्मा साकार है या निराकार ?
8. किसी भी गुरु की शरण में जाने से मुक्ति संभव है या नहीं ? 9. तीर्थ, व्रत, तर्पण,श्राद्ध निकालने से लाभ संभव है या नहीं ? 10.श्री कृष्ण जी काल नहीं थे ! फिर गीता वाला काल कौन है ?
11.पूर्ण परमात्मा कौन तथा कैसा है ? कहाँ रहता है ?कैसे मिलता है ? किसने देखा है ?
12.समाधि अभ्यास (Meditation) राम,हरे कृष्ण ,हरिओम ,हंस,तीन व पांच नामों तथा वाहेगुरु आदि -आदि नामों के जाप से सुख एवं मुक्ति संभव है या नहीं ? 13.वर्तमान समय में प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं के अनुसार वह महान संत कौन है ?
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वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान की जानकारी में अब संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान 📚 के आगे कोई भी नहीं टिक पाएगा। और अब पूरा विश्व में होगा पाखंडवाद का खात्मा ! बंदी छोड़ संत रामपाल जी महाराज की जय हो।🙏💐
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🙏कबीर,गुरु बिन माला फेरते गुरु बिन देते दान
गुरु बिन दोनों निष्फल है पूछो वेद पुराण।
साचा शब्द कबीर का, सुन सुन लागे आग ।
अज्ञानी सौ जल जल मरै ,ज्ञानी जाय जाग ।।
सत्संग की आधी घड़ी, तप के वर्ष हजार।
तो भी बराबर है नहीं, कहे कबीर विचार।।🙏
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कुंडली में यदि चंद्र, बुद्ध व शुक्र पर पितृदोष हो तो निवारण के लिए क्या करना चाहिए?
पितृदोष को निवारण करने के लिए कई उपाय हो सकते हैं, जो निम्नलिखित हो सकते हैं:
पितृ दोष शांति पूजा: पितृ दोष शांति के लिए विशेष पूजा अनुष्ठान की जा सकती है। इसमें गणेश पूजन, पितृ तर्पण, और पितृदेवों के लिए दान आदि शामिल हो सकते हैं।
दान और पुण्यकर्म: पितृदोष के निवारण में दान और पुण्यकर्म का महत्वपूर्ण योगदान होता है। पितृदेवों के लिए अन्न, वस्त्र, धान्य, तिल, घी, दूध, आदि का दान करना उपयुक्त हो सकता है।
पितृतर्पण: पितृतर्पण का अनुष्ठान करना भी पितृदोष को दूर करने में मददगार साबित हो सकता है। यह पूजा और तर्पण का अनुष्ठान विशेष तिथियों और स्थलों पर किया जाता है।
मंत्र जाप: विशेष मंत्रों का जाप करने से भी पितृदोष को शांत किया जा सकता है। गणेश मंत्र, पितृदेवों के मंत्र, या महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जा सकता है।
व्रत और उपवास: विशेष व्रत और उपवास का पालन करना भी पितृदोष को शांत करने में मदद कर सकता है। इसमें सोमवार का व्रत, आमावस्या का उपवास आदि शामिल हो सकते हैं।
यह सभी उपाय शास्त्रीय सिद्धांतों पर आधारित हैं। लेकिन ध्यान रहे कि इन उपायों का परिणाम व्यक्ति की ईमानदारी, निष्ठा, और समर्पण के साथ ही मिलता है। इसलिए उन्हें सम्पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाना चाहिए। और अधिक जानकारी के लिए आप टोना टोटका सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सकते है।
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🐚 षटतिला एकादशी व्रत कथा - Sat-tila Ekadasi Vrat Kath
जय श्री हरि ! पौष पुत्रदा एकादशी के उपरांत, माघ माह के कृष्ण पक्ष मे आने वाली इस एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है।
तिल स्नान
तिल का उबटन
तिल का हवन
तिल का तर्पण
तिल का भोजन और
तिलों का दान, तिल के ये 6 प्रयोग इस व्रत मैं अवश्य करें। इनके प्रयोग के कारण यह षटतिला एकादशी कहलाती है। इस व्रत के करने से अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।..
..षटतिला एकादशी व्रत कथा को पूरा पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 👇 📲 https://www.bhaktibharat.com/katha/shat-tila-ekadashi-vrat-katha ▶ https://youtu.be/_3Hb0vvrIZo
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मार्गशीर्ष अमावस्या 2024: तिथि, शुभ मुहूर्त और दान का महत्व
हिंदू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व होता है। यह दिन पितरों को श्रद्धांजलि देने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए समर्पित होता है। मार्गशीर्ष अमावस्या का और भी अधिक महत्व है, क्योंकि यह साल की अंतिम शनिश्चरी अमावस्या होती है। इस दिन पितरों का तर्पण करने से उन्हें विशेष शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मार्गशीर्ष अमावस्या 2024 की तिथि और शुभ मुहूर्त
वर्ष 2024 में मार्गशीर्ष अमावस्या 30 नवंबर को सुबह 10 बजकर 29 मिनट से शुरू होगी और 1 दिसंबर को सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, इस बार मार्गशीर्ष अमावस्या का व्रत 01 दिसंबर 2024 को रखा जाएगा।
स्नान-दान का शुभ मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 5 बजकर 8 मिनट से सुबह 6 बजकर 2 मिनट तक) और अभिजीत मुहूर्त (30 नवंबर को सुबह 11 बजकर 49 मिनट से दोपहर 12 बजकर 31 मिनट तक) स्नान-दान के लिए शुभ माने जाते हैं।
मार्गशीर्ष अमावस्या पर क्या करें:
पितरों का तर्पण: इस दिन पितरों का तर्पण करना बहुत शुभ माना जाता है। तिल के तेल का दीपक जलाएं और पितरों को जल अर्पित करें।
दान: इस दिन दान करना बहुत पुण्यदायी होता है। आप अन्न, वस्त्र, धन आदि दान कर सकते हैं।
पूजा: भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा करें।
व्रत: इस दिन व्रत रखना भी शुभ माना जाता है।
मंत्र जाप: इस दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें।
मार्गशीर्ष अमावस्या पर क्या न करें:
अशुभ काम: इस दिन अशुभ काम न करें।
झूठ बोलना: झूठ बोलने से बचें।
गुस्सा करना: गुस्सा करने से बचें।
मनमुटाव: किसी से मनमुटाव न करें।
मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व
पितरों को शांति मिलती है।
पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मन शांत होता है।
जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
निष्कर्ष
मार्गशीर्ष अमावस्या एक पवित्र दिन है। इस दिन पितरों को याद करके और उनकी पूजा करके हम उनके आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
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#श्राद्ध_करने_की_श्रेष्ठ_विधि
श्राद्ध-पिण्डदान गीता अनुसार कैसा है?
श्रीमद्भगवद्गीता mourner wridiculen
Anandmurti Gurumaa
हमारे पित्तरों के किये गए पाप पुण्य के भागीदार हम भी होते हैं।
हमें अपने पित्तरों के लिए दान, तर्पण आदि करना चाहिए।
हिन्दू साहेबान ! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण
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Sant Rampal Ji Maharaj
मेरे अज़ीज़ हिंदुओं
स्वयं पढ़ो अपने ग्रंथ
गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में कहा है कि जो पित्तरों की पूजा करते हैं, वे पित्तर योनि प्राप्त करेंगे, मोक्ष नहीं होगा। जो भूत पूजते हैं, वे भूत बनेंगे। श्राद्ध करना पित्तर पूजा तथा भूत पूजा है।
श्रीमद्भगवद्गीता mane edition
यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः । भूतानि यान्ति भूतेच्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ॥ २५ ॥ यान्ति, देवव्रताः, देवान्, पितृन्, यान्ति, पितृव्रताः, भूतानि, यान्ति, भूतेज्याः, यान्ति, मद्याजिनः, अपि, माम्॥ २५ ॥
कारण यह नियम है कि-
यान्ति
प्राप्त होते हैं
1 (और)
मेरा पूजन करनेवाले भक्त
देवताओंको पूजनेवाले
देवान् यान्ति
देवताओंको प्राप्त होते हैं,
माम् अपि
मुझको
ही
मद्याजिनः ।
पितृव्रताः पितरोंको
पूजनेवाले - पितरोंको
पितृन्
वान्ति भूतेज्याः भूतानि
प्राप्त होते हैं,
यान्ति
भूतोंको पूजनेवाले
भूतोंको
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प्राप्त होते हैं।
(इसीलिये मेरे भक्तोंका पुनर्जन्म
नहीं होता।")
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#पितृ तर्पण
श्राद्ध और पिण्ड दान करने से जीव की गति नहीं होती।
प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराई। बहुर श्राद्ध खान को आए काग भये कलमाही।
जब आवे आसोच का महीना,
कौवाँ बाप बनाई।
जीवित बाप को लठ्ठम लट्ठा,
मुवें गंग पहुँचया।
जब आवे आसोच का महीना, कौवाँ बाप बनइयाँ।
रे भोलिसी दुनियाँ,
सतगुरु बिन कैसे सरियाँ।
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Vaishakh Amavasya Upay 2024: वैशाख अमावस्या के दिन करें ये उपाय, पूरी होगी धन प्राप्ति की कामनाVaishakh Amavasya Upay 2024: इस साल वैशाख अमावस्या 8 मई, बुधवार को पड़ रही है। धार्मिक मान्यता के अनुसार वैशाख अमावस्या को धार्मिक कार्यों, स्नान, दान और पितरों को तर्पण करने के लिए बहुत शुभ माना जाता है।"
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*🌞~ आज का हिन्दू पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक - 10 मई 2024*
*⛅दिन - शुक्रवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - उत्तरायण*
*⛅ऋतु - ग्रीष्म*
*⛅मास - वैशाख*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - तृतीया रात्रि 02:50 मई 11 तक तत्पश्चात चतुर्थी*
*⛅नक्षत्र - रोहिणी प्रातः 10:47 तक तत्पश्चात मृगशिरा*
*⛅योग- अतिगंड दोपहर 12:07 तक तत्पश्चात सुकर्मा*
*⛅राहु काल - प्रातः 10:57 से दोपहर 12:36 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:01*
*⛅सूर्यास्त - 07:11*
*⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:34 से 05:18 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त -दोपहर 12:10 से दोपहर 01:03 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:13 मई 11 से रात्रि 12:57 मई 11 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - अक्षय तृतीया, त्रेता युगादि तिथि, श्री परशुराम जयंती, श्री बसवेश्वर जयंती, रोहिणी व्रत, माँ मातंगी जयंती*
*⛅विशेष - तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🌹 अक्षय तृतीया - 10 मई 2024 🌹*
*( पूरा दिन शुभ मुहूर्त )*
*🔹 'अक्षय' शब्द का मतलब है- जिसका क्षय या नाश न हो । इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे 'अक्षय तृतीया' कहते हैं । भविष्यपुराण, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, स्कन्दपुराण में इस तिथि का विशेष उल्लेख है । इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है ।*
*🔹भ��िष्यपुराण के मध्यमपर्व में कहा गया है वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया में गंगाजी में स्नान करनेवाला सब पापों से मुक्त हो जाता है ।*
*इस दिन गंगा-स्नान करने से सारे तीर्थ करने का फल मिलता है। गंगाजी का सुमिरन एंव जल में आवाहन करके ब्राह्ममुहूर्त में पुण्यस्नान तो सभी कर सकते हैं। स्नान के पश्चात प्रार्थना करें-*
*माधवे मेषगे भानौ मुरारे मधुसूदन।*
*प्रातः स्नानेन मे नाथ फलदः पापहा भव।।*
*🔹सप्तधान्य उबटन व गोझरण मिश्रित जल से स्नान पुण्यदायी है। पुष्प, धूप-दीप, चंदन, अक्षत (साबुत चावल) आदि से लक्ष्मी नारायण का पूजन व अक्षत से हवन अक्षय फलदायी है।*
*🔹इस दिन ��िना कोई शुभ मुहूर्त देखे कोई भी शुभ कार्य प्रारम्भ या सम्पन्न किया जा सकता है। जैसे – विवाह, गृह-प्रवेश या वस्त्र-आभूषण, घर, वाहन, भूखंड आदि की खरीददारी, कृषिकार्य का प्रारम्भ आदि सुख-समृद्धि प्रदायक है।*
*🔹इस दिन किया गया उपवास, जप, ध्यान, स्वाध्याय भी अक्षय फलदायी होता है। एक बार हलका भोजन करके भी उपवास कर सकते हैं।*
*🔹इस दिन पानी के घड़े, पंखे, ओले (खाँड के लड्डू), पादत्राण (जूते-चप्पल), छाता, जौ, गेहूँ, चावल, गौ, वस्त्र आदि का दान पुण्यदायी है। परंतु दान सुपात्र को ही देना चाहिए।*
*🌹पितृ-तर्पण का महत्त्व व विधि🌹*
*🔹अक्षय तृतीया के दिन पितृ-तर्पण करना अक्षय फलदायी है । पितरों के तृप्त होने पर घर में सुख-शांति-समृद्धि व दिव्य संताने आती है ।*
*🔹विधि : इस दिन तिल एवं अक्षत लेकर र्विष्णु एवं ब्रम्हाजी को तत्त्वरूप से पधारने की प्रार्थना करें । फिर पूर्वजों का मानसिक आवाहन कर उनके चरणों में तिल, अक्षत व जल अर्पित करने की भावना करते हुए धीरे से सामग्री किसी पात्र में छोड़ दें तथा भगवान दत्तात्रेय, ब्रम्हाजी व विष्णुजी से पूर्वजों की सदगति हेतु प्रार्थना करें ।*
*🔹इस दिन माता-पिता, गुरुजनों की सेवा कर के उनकी विशेष प्रसन्नता, संतुष्टि व आशीर्वाद प्राप्त करें। इसका फल भी अक्षय होता है।*
*🌹अक्षय तृतीया ( 10 मई 2024 )का तात्त्विक संदेश :*
*'अक्षयʹ यानी जिसका कभी नाश न हो । शरीर एवं संसार की समस्त वस्तुएँ नाशवान हैं, अविनाशी तो केवल परमात्मा ही है । यह दिन हमें आत्मविवेचन की प्रेरणा देता है । अक्षय आत्मतत्त्व पर दृष्टि रखने का दृष्टिकोण देता है । महापुरुषों व धर्म के प्रति हमारी श्रद्धा और परमात्मप्राप्ति का हमारा संकल्प अटूट व अक्षय हो – यही अक्षय तृतीया का संदेश मान सकते हो ।*
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