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#दलितों
trendingwatch · 2 years
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मध्य प्रदेश के गांव में दलित दंपति, बेटे की गोली मारकर हत्या
मध्य प्रदेश के गांव में दलित दंपति, बेटे की गोली मारकर हत्या
द्वारा पीटीआई दमोह: मध्य प्रदेश के दमोह जिले में एक 32 वर्षीय दलित व्यक्ति और उसके माता-पिता की मंगलवार को गोली मारकर हत्या कर दी गई, जब उस पर एक हमलावर की पत्नी को घूरने का आरोप लगाया गया था, पुलिस ने कहा। अधिकारियों ने बताया कि 32 वर्षीय पीड़िता के दो छोटे भाई हमले में घायल हो गए जबकि मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। पुलिस अधीक्षक डीआर तेनिवार ने बताया कि घटना दमोह जिला मुख्यालय से करीब…
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helputrust · 10 months
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लखनऊ, 06.12.2023 | महापरिनिर्वाण दिवस 2023 के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में ट्रस्ट के इंदिरा नगर, सेक्टर 25 स्थित कार्यालय मे "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी श्रीमती डॉ रूपल अग्रवाल ने दीप प्रज्वलन किया तथा बाबा साहब डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी के चित्र पर पुष्पार्पण करके श्रद्धांजलि अर्पित की l
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, "भारतीय संविधान के जनक कहे जाने वाले डॉ भीमराव अंबेडकर एक बड़े समाज सुधारक औरविद्वान थे । उन्हें अपने कार्यों और विद्वता के लिए जाना जाता है । लेकिन 6 दिसंबर 1956 को संविधान के जनक पंचतत्वों में विलीन हो गए थे ।डॉ अंबेडकर की डेथ एनिवर्सरी को महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर मनाया जाता है ।डॉ भीमराव अंबेडकर ने हमेशा ही दलितों की स्थिति में सुधार लाने के लिए काम किया ।छुआछूत जैसी कुप्रथा को खत्म करने में भी उनकी बड़ी भूमिका मानी जाती है । उनके अनुयायियों का ये मानना है कि उनके गुरु भगवान बुद्ध की तरह ही काफी प्रभावी और सदाचारी थे और उनके कार्यों की वजह से उन्हें निर्वाण प्राप्त हो चुका है । यही कारण है कि उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है । आज के परिवेश में बाबा साहब के बताए तीन मंत्र “शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो” का पालन राष्ट्रहित में आवश्यक है l बाबा  साहब ने संविधान बनाकर सबको आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया l आज की आवश्यकता हर व्यक्ति को शिक्षित बनाने की है l समाज के विकास के लिए संगठित होना अत्यंत आवश्यक हैं l बाबा साहब ने शिक्षा के आधार पर ही भारत के संविधान की नींव रखी l उन्हीं के बनाए गए संविधान में लिखी बातों का पालन आज भी सरकार द्वारा किया जाता है l श्री अग्रवाल ने यह भी कहा कि, वर्तमान में देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी भी 'सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास ' के मंत्र को यथार्थ करते हुए, बाबा साहब डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी के बताये हुए मार्ग पर देश को एक मजबूत और विकसित राष्ट्र बनाने में कार्यरत हैं l"
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deshbandhu · 6 hours
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Brahmin Saansadon ka Bhaaratiya Raajaniti Mein Badhata Dabdaba
भारत की राजनीति में जाति का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। समय के साथ कई जातियों और वर्गों ने सत्ता में अपनी पकड़ मजबूत की है। इन्हीं जातियों में ब्राह्मण समुदाय भी एक प्रमुख भूमिका में रहा है। "भारत में ब्राह्मण सांसद" इस बात का प्रमाण है कि भारतीय लोकतंत्र में यह जाति सदियों से प्रभावी भूमिका निभाती आई है। चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम का दौर हो या आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था, ब्राह्मण समाज ने सत्ता के विभिन्न स्तरों पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है।
ब्राह्मणों का ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व
भारतीय समाज में ब्राह्मणों का स्थान सदियों से ऊँचा माना जाता रहा है। उन्हें विद्या, धर्म, और नीति का संरक्षक माना गया है। प्राचीन समय से ही यह समुदाय राजा और शासकों के सलाहकार की भूमिका में रहा है। वे न केवल धार्मिक कार्यों में अग्रणी रहे, बल्कि नीति-निर्धारण और प्रशासनिक जिम्मेदारियों में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
आधुनिक भारत में भी ब्राह्मणों ने स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर संविधान सभा तक अपनी पहचान बनाई है। महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, और गोविंद बल्लभ पंत जैसे प्रमुख नेताओं का संबंध ब्राह्मण समुदाय से रहा है, जिन्होंने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्वतंत्रता के बाद से भारत में ब्राह्मण सांसदों की संख्या और उनका प्रभाव लगातार बना हुआ है, हालांकि यह समय-समय पर घटता-बढ़ता रहा है।
ब्राह्मण सांसदों की वर्तमान स्थिति
भारत में ब्राह्मण सांसदों की स्थिति समय के साथ बदलती रही है। 1950 और 1960 के दशक में, जब कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व था, तब ब्राह्मण नेता भारतीय राजनीति में शीर्ष पर थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक, कई प्रमुख नेता ब्राह्मण समाज से थे। लेकिन समय के साथ, विशेष रूप से 1980 के दशक के बाद, मंडल आयोग और पिछड़ी जातियों के आरक्षण के बाद, जातिगत राजनीति ने एक नया मोड़ लिया।
हालांकि, इसके बावजूद, आज भी संसद और राज्य विधानसभाओं में ब्राह्मण सांसदों का महत्वपूर्ण स्थान है। वे न केवल बड़े राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता बने हुए हैं, बल्कि कई राज्यों में मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी आसीन हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में ब्राह्मण सांसदों की संख्या और प्रभाव आज भी चर्चा का विषय बना रहता है।
जातिगत समीकरण और ब्राह्मणों का दबदबा
भारत में जातिगत राजनीति ने हमेशा चुनावी समीकरणों को प्रभावित किया है। पिछले कुछ दशकों में, पिछड़ी जातियों और दलितों के उभरने के बावजूद, ब्राह्मण समुदाय ने अपनी पकड़ बनाए रखी है। इसका कारण यह है कि ब्राह्मण नेता उच्च राजनीतिक सूझ-बूझ और व्यापक प्रशासनिक अनुभव के कारण विभिन्न दलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं।
ब्राह्मण नेताओं का महत्व इस बात में भी देखा जा सकता है कि जब किसी भी पार्टी को चुनाव जीतने के लिए जातिगत समीकरणों की जरूरत होती है, तब ब्राह्मण समाज को नजरअंदाज करना कठिन होता है। भाजपा, कांग्रेस, और अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों ने समय-समय पर ब्राह्मण नेताओं को अपने शीर्ष पदों पर बिठाया है ताकि ब्राह्मण मतदाताओं का समर्थन प्राप्त किया जा सके।
विभिन्न राज्यों में ब्राह्मणों का प्रभाव
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में ब्राह्मण सांसदों का महत्वपूर्ण प्रभाव है। उत्तर प्रदेश, जो देश का सबसे बड़ा राज्य है, वहां के चुनावी समीकरण जातिगत आधार पर तय होते हैं। यहां पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या अधिक है, और इसलिए, चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, सभी पार्टियां ब्राह्मण नेताओं को टिकट देने में पीछे नहीं रहतीं।
बिहार में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। यहां जातिगत समीकरण में ब्राह्मणों का महत्वपूर्ण स्थान है। राज्य में जब चुनाव होते हैं, तो ब्राह्मण वोटरों को साधने के लिए राजनीतिक पार्टियां अपने प्रमुख नेताओं के रूप में ब्राह्मणों को पेश करती हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और भाजपा दोनों ने ब्राह्मण समुदाय से कई महत्वपूर्ण नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है।
ब्राह्मण सांसदों की भूमिका और चुनौतियाँ
हालांकि ब्राह्मण सांसदों का दबदबा आज भी बरकरार है, लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ जहां पिछड़ी जातियों और दलितों का राजनीतिक सशक्तिकरण हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ ब्राह्मण नेताओं को जातिगत राजनीति के भीतर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है।
इसके अलावा, मंडल आयोग के बाद से ब्राह्मणों की राजनीतिक स्थिति कुछ हद तक कमजोर हुई है, क्योंकि आरक्षण नीति ने पिछड़ी जातियों को अधिक अवसर प्रदान किए हैं। फिर भी, ब्राह्मण सांसदों ने अपनी राजनीतिक कौशल और कूटनीति से अपने लिए एक मजबूत आधार बनाए रखा है।
भविष्य में ब्राह्मणों की भूमिका
भारत में ब्राह्मण सांसदों की भूमिका भविष्य में भी महत्वपूर्ण बनी रहेगी। हालांकि राजनीति का जातिगत समीकरण समय-समय पर बदलता रहेगा, लेकिन ब्राह्मण नेताओं की बौद्धिक और संगठनात्मक क्षमता के कारण उनका स्थान हमेशा खास रहेगा। वर्तमान समय में जब राजनीति का ध्रुवीकरण हो रहा है, तब ब्राह्मण समुदाय को अपनी एकता और प्रभाव को बनाए रखना होगा।
इसके अलावा, ब्राह्मण समाज को सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अधिक संवेदनशील और प्रगतिशील होना पड़ेगा, ताकि वे बदलते भारत के साथ तालमेल बिठा सकें। अगर वे इन चुनौतियों का सामना कर पाते हैं, तो निश्चित रूप से भारत में ब्राह्मण सांसदों का प्रभाव भविष्य में भी बरकरार रहेगा।
निष्कर्ष
"भारत में ब्राह्मण सांसद" एक ऐसा विषय है जो भारतीय राजनीति के कई आयामों को छूता है। ब्राह्मणों का दबदबा केवल जातिगत समीकरणों के आधार पर नहीं है, बल्कि यह उनकी राजनीतिक कुशलता, शिक्षा, और अनुभव के कारण भी है। हालांकि, बदलते सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में ब्राह्मण नेताओं को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन उनके ऐतिहासिक और सामाजिक प्रभाव को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारतीय राजनीति में ब्राह्मण सांसदों की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण बनी रहेगी।
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Dalit homes set on fire: भूमि विवाद में 20 से अधिक दलितों के घर जलाए गए; मल्लिकार्जुन खड़गे, मायावती ने दी प्रतिक्रिया
शुरुआत में बताया गया था कि बुधवार रात की इस घटना में 80 से अधिक घर जलकर खाक हो गए, लेकिन बिहार पुलिस ने यह संख्या 21 बताई है। बिहार के नवादा जिले में दलित बस्ती में कथित तौर पर जमीन विवाद को लेकर उपद्रवियों ने 20 से ज़्यादा घरों में आग लगा दी। पुलिस ने बताया कि मुख्य संदिग्ध समेत 15 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है, जबकि आरजेडी और कांग्रेस ने इस घटना को बिहार में व्याप्त “जंगल राज” का एक और सबूत…
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rightnewshindi · 2 days
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जातिवादी आतंकियों का आतंक, दलितों के गांव पर किया हमला, 80 घर जलाए; डराने के लिए फायरिंग भी की
Casteist Goons Attack: कहने को तो वैसे बिहार में सुशासन का राज है। पुलिस और प्रशासन के इकबाल की बात कही जाती है। लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी हो रही हैं, जिससे सवाल उठता है कि क्या बिहार के जातिवादी आतंकियों को पुलिस प्रशासन से डर है? जातिवादी आतंकी जहां भी हैं, आज भी दलितों को प्रताड़ित करने से बाज नहीं आ रहे हैं। कुछ इसी तरह की वारदात बिहार के नवादा जिले में हुई है। जहां महादलित टोला पर जातिवादी…
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saveralivehindi · 9 days
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मणीपुर और आरक्षण आंदोलन के आगे मीडिया पर छाया हिमाचल का मस्जिद कांड
भारत की मेन स्ट्रीम मीडिया पर आज के दौर में विपक्षि दलों के द्वारा खूब सवाल खड़े किये जा रहे हैं. राजनीतिक दल आज मीडिया को गोदी मीडिया के नाम से संबोधित भी किया जा रहा है. मणीपुर में हिंसक आक्रोश को लेकर मीडिया में कुछ जगह नहीं है. वही दूसरा बड़ा मुद्दा आरक्षण को लेकर दिल्ली में दलितों का प्रदर्शन, इस पर भी मीडिया में कोई जगह नहीं मिल रही है. लेकिन हिमाचल में मस्जिद के मुद्दे पर लाईव स्ट्रीमिंग…
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subkuz00 · 12 days
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बिहार में राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की जीत सुनिश्चित
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चार विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए जोरदार प्रचार किया। उन्होंने अपने भाषण में विपक्ष, विशेषकर राजद (राष्ट्रीय जनता दल) पर तीखा हमला करते हुए कहा कि राजद के शासनकाल में अति पिछड़ों और दलितों का शोषण हुआ था।
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indiaepost · 15 days
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हरियाणा में दलित वर्ग ने जिला व ब्लाक स्तर पर टीमों का किया गठन, लोगों करेंगे जागरूक
चंडीगढ़: सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी आरक्षण वर्गीकरण को लेकर दिए गए फैसले के तहत आरक्षित बची हुई सीटें सामान्य वर्ग में नहीं जाएंगी। केंद्र व हरियाणा सरकार ने दलितों के इस संशय को दूर कर दिया है कि आरक्षित सीटों पर एससी वर्ग की ही भर्तियां होंगी, बीच हुई सीटें बैकलॉग में जाएंगी, एससी सीटों पर सामान्य वर्ग के हिस्से में नहीं दिया जाएगा। आरक्षण को लेकर पिछले काफी दिनों से फैलाए जा रहे भ्रम पर दलित…
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dainiksamachar · 19 days
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मिस इंडिया की लिस्ट में कोई दलित... क्या जातियों को लेकर राहुल गांधी की राजनीति हास्यास्पद है?
नई दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गांधी के विचार और काम करने का तरीका आजकल चर्चा में हैं। सोशल मीडिया पर वह काफी ऐक्टिव हो गए हैं। 'कास्ट सिस्टम' पर उन���े अलग-अलग विचार देखने को मिलते हैं। जाति जनगणना के मामले पर राहुल गांधी आए दिन मोदी सरकार पर हमलावर भी रहते हैं। लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने के बाद से ही राहुल का सियासी मिजाज बदला-बदला सा नजर आ रहा है। राहुल गांधी का जातियों वाला दांव खूब सुर्खियां बटोर रहा है। इस बीच बुद्धिजीवी वर्ग भी राहुल गांधी की जातियों वाली राजनीति की समीक्षा करने में लगा है। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ��ेख में तवलीन सिंह का कहना है कि जातियों पर राहुल गांधी का हालिया बयान हैरान करने वाला है।दरअसल राहुल गांधी ने हाल ही में कहा था कि आपने कभी किसी दलित, आदिवासी या ओबीसी लड़की को मिस इंडिया बनने के लिए प्रतिस्पर्धा करते नहीं देखा होगा। तवलीन कहती हैं कि आखिर राहुल गांधी का क्या मतलब है? मिस इंडिया कोई सरकारी नौकरी तो है नहीं जो आरक्षण के आधार पर मिले। यह तो एक निजी प्रतियोगिता है जिसमें कोई भी भारतीय महिला भाग ले सकती है। राहुल के ये बयान भी हैरान करने वाले थे यही नहीं, अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन पर भी राहुल गांधी ने कहा था कि उन्हें इस बात का दुख है कि समारोह में दलित, आदिवासी और ओबीसी समुदाय के लोग ज्यादा संख्या में मौजूद नहीं थे। तवलीन ने तंज कसते हुए कहा कि क्या राहुल गांधी ने यह नहीं देखा कि धार्मिक समारोह का संचालन खुद प्रधानमंत्री ने किया था, जो खुद ओबीसी जाति से आते हैं? राजनीतिक जानकार कहते हैं कि राहुल गांधी का जाति को लेकर यह जुनून उन्हें कई बार अजीबोगरीब बयान देने पर मजबूर कर देता है। कुछ समय पहले उन्होंने कहा था कि बॉलीवुड में भी दलितों का प्रतिनिधित्व नहीं होने से उन्हें दुख होता है। मोदी से आगे निकलना अभी भी मुश्किल इंडिया टुडे के एक सर्वे में राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए दूसरा सबसे पसंदीदा नेता बताया गया है।हालांकि, राहुल गांधी को अभी भी मोदी से आगे निकलने के लिए लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और नितिन गडकरी जैसे दिग्गज नेताओं से आगे निकलकर उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। राहुल गांधी ने खुद को मोदी से बिल्कुल अलग छवि वाला नेता बनाने की कोशिश की है और इसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है। लेकिन जातियों को लेकर उनका बेतुका बयान उनकी नई इमेज को प्रभावित कर सकता है। http://dlvr.it/TCgMrj
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dhaliwalmanjit · 25 days
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Poona Pact 1932 : गांधी के इस फैसले से दलितों में चमचा युग की हुई शुरुआत...
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trendingwatch · 2 years
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यूपी: शौचालय की सीट 'चोरी' करने पर दलित व्यक्ति की पिटाई, मुंडन; 3 गिरफ्तार के बीच भाजपा नेता
यूपी: शौचालय की सीट ‘चोरी’ करने पर दलित व्यक्ति की पिटाई, मुंडन; 3 गिरफ्तार के बीच भाजपा नेता
द्वारा पीटीआई बहराइच (यूपी): उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में शौचालय की सीट चोरी करने के संदेह में 30 वर्षीय दलित व्यक्ति को कथित तौर पर बिजली के खंभे से बांधकर पीटा गया, मुंडवाया गया और उसका चेहरा काला कर दिया गया. रविवार। उन्होंने बताया कि एक स्थानीय भाजपा नेता समेत सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। हरदिया थाना क्षेत्र के शुद्ध हिंद सिंह गांव में बुधवार को हुई यह घटना सोशल मीडिया पर इसका…
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countryinsidenews · 26 days
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CIN /दलितों, पिछड़ों एवं अकलियतों के सामाजिक उत्थान में बी0 पी0 मंडल का बड़ा योगदान रहा: जगदानन्द सिंह
पटना 25 अगस्त, 2024/आज राष्ट्रीय जनता दल के राज्य कार्यालय में महान समाजवादी नेता, पूर्व मुख्यमंत्री एवं मंडल आयोग के पूर्व अध्यक्ष स्व0 बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल जी की जयन्ती पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री जगदानन्द सिंह की अध्यक्षता में मनायी गयी। इस अवसर पर स्व0 मंडल जी के तैल चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। इस अवसर पर श्री जगदानन्द सिंह ने कहा कि देश में जब भी सामाजिक परिर्वतन…
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helputrust · 10 months
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16.11.2023, लखनऊ | महान वीरांगना उदा देवी पासी जी की पुण्य तिथि के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा इंदिरा नगर, 25/2जी, सेक्टर 25 स्थित ट्रस्ट के कार्यालय पर "श्रद्धांपूर्ण पुष्पांजलि" का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ. रूपल अग्रवाल एवं ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने महान वीरांगना उदा देवी पासी जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की |
इस मौके पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन  अग्रवाल ने कहा, 'भारतीय इतिहास में पुरुष क्रांतिकारियों का जिक्र तो खूब मिलता है, लेकिन किसी महिला क्रांतिकारी या सैनिक की कहानियां कम ही बताई जाती हैं।इन्हीं महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं ऊदा देवी पासी, जिन्होंने अपनी वीरता से अंग्रेजों को धूल चटा दी थी | आज ऊदा देवी का शहादत दिवस है | ऊदा देवी की वीरता दलितों और महिलाओं की वीरता को दर्शाती है | इसी दिन वह अंग्रेजों से कड़ी लड़ाई का सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थीं | उनकी आश्चर्यजनक वीरता को देखकर ब्रिटिश अधिकारी कैंपबेल ने अपनी टोपी उतार दी और उन्हें श्रद्धांजलि दी |
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pacificleo · 1 month
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कौन जात हो भाई? “दलित हैं साब!” नहीं मतलब किसमें आते हो? आपकी गाली में आते हैं गंदी नाली में आते हैं और अलग की हुई थाली में आते हैं साब! मुझे लगा हिंदू में आते हो! आता हूँ न साब! पर आपके चुनाव में। क्या खाते हो भाई? “जो एक दलित खाता है साब!” नहीं मतलब क्या-क्या खाते हो? आपसे मार खाता हूँ क़र्ज़ का भार खाता हूँ और तंगी में नून तो कभी अचार खाता हूँ साब! नहीं मुझे लगा कि मुर्ग़ा खाते हो! खाता हूँ न साब! पर आपके चुनाव में। क्या पीते हो भाई? “जो एक दलित पीता है साब! नहीं मतलब क्या-क्या पीते हो? छुआ-छूत का ग़म टूटे अरमानों का दम और नंगी आँखों से देखा गया सारा भरम साब! मुझे लगा शराब पीते हो! पीता हूँ न साब! पर आपके चुनाव में। क्या मिला है भाई “जो दलितों को मिलता है साब! नहीं मतलब क्या-क्या मिला है? ज़िल्लत भरी ज़िंदगी आपकी छोड़ी हुई गंदगी और तिस पर भी आप जैसे परजीवियों की बंदगी साब! मुझे लगा वादे मिले हैं! मिलते हैं न साब! पर आपके चुनाव में। क्या किया है भाई? “जो दलित करता है साब! नहीं मतलब क्या-क्या किया है? सौ दिन तालाब में काम किया पसीने से तर सुबह को शाम किया और आते जाते ठाकुरों को सलाम किया साब! मुझे लगा कोई बड़ा काम किया! किया है न साब! आपके चुनाव का प्रचार!”
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rightnewshindi · 1 month
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पटना में दलितों पर हुए लाठीचार्ज से भड़के सांसद चंद्रशेखर आजाद, कहा, सूद समेत जवाब दिया जाएगा
Bharat Bandh: एससी-एसटी में सब कैटेगरी से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ भारत बंद का असर उत्तर प्रदेश के कई जिलों में दिख रहा है. भारत बंद के आह्वान पर बहुजन समाज पार्टी और अन्य संगठनों के लोग विभिन्न जिलों में प्रदर्शन कर रहे हैं. दुकानें बंद करवाई जा रही हैं और मार्केट नहीं खोलने की अपील की गई है. वहीं पटना में आंदोलन कर रहे भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया. पुलिस…
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knowledgeinhindi · 2 months
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Suryakant Tripathi 'Nirala'
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (1896-1961) हिंदी साहित्य में अग्रणी व्यक्ति थे, जो कवि, उपन्यासकार, निबंधकार और अनुवादक के रूप में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध थे।
छायावाद आंदोलन में एक केंद्रीय व्यक्ति, जिसने हिंदी कविता में एक रोमांटिक और नव-रोमांटिक चरण को चिह्नित किया, निराला के काम की विशेषता इसकी भावनात्मक गहराई, गीतात्मक सुंदरता और दार्शनिक अंतर्वस्तु है।
निराला की कविता अक्सर प्रकृति, प्रेम और सामाजिक बाधाओं के खिलाफ व्यक्ति के संघर्ष के विषयों पर आधारित होती थी।
हाशिए पर पड़े और दलितों के लिए उनकी गहरी सहानुभूति "सरोज स्मृति" जैसी रचनाओं में स्पष्ट है, जो उनकी बेटी को समर्पित एक मार्मिक शोकगीत है।
उनके अन्य उल्लेखनीय संग्रहों में "परिमल" और "अनामिका" शामिल हैं, जो भाषा पर उनकी महारत और गहरी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को जगाने की उनकी क्षमता को दर्शाते हैं।
कविता के अलावा, निराला ने हिंदी गद्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके उपन्यासों और निबंधों ने सामाजिक मुद्दों को संबोधित किया और मानव स्वभाव और समाज के बारे में उनकी गहरी टिप्पणियों को प्रदर्शित किया।
उनके अनुवाद कार्य, विशेष रूप से बंगाली साहित्य ने हिंदी साहित्यिक परंपराओं में एक नया आयाम जोड़ा, सांस्कृतिक और भाषाई विभाजन को पाट दिया।
निराला का जीवन व्यक्तिगत त्रासदियों और संघर्षों से भरा था, जिसने उनकी साहित्यिक आवाज़ को गहराई से प्रभावित किया।
उनकी रचनाएँ पाठकों को प्रेरित करती हैं और उनके साथ प्रतिध्वनित होती हैं, जिससे वे हिंदी साहित्य में एक स्थायी प्रतीक बन गए हैं। उनकी विरासत को इसके नवाचार, भावनात्मक समृद्धि और कलात्मक और सामाजिक आदर्शों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के लिए मनाया जाता है।
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