#दक्षिण और मध्य एशिया
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बादशाह बाबर के स्ट्रगल ने उन्हे "मध्य एशिया का शहजादा (द प्रिंस ऑफ मिडिल एशिया)" बना दिया।
Emperor Babur’s struggles made him “The Prince of Middle Asia”. उनके पास कुछ भी नही था, वे “फर्गना” और “समरकंद” के बर्फीले रेगिस्तान से सब कुछ हार कर दक्षिण – पूर्व की ओर चल पड़े और आ काबुल धमके। वहां बैठकर “अल – हिंद के हालातों का जायजा ले लिया और “सुलतान इब्राहिम लोदी” से हिंद का तख्त छीनने को निकल पड़े लेकिन रास्ते में ही मालूम हो चला कि काबुल में आपके घर बेटा हुआ है तो “मिर्ज़ा बाबर” इसे…
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मणिपुर की संस्कृति: परंपरा और जीवन शैली
मणिपुर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में से एक है। मणिपुर दो शब्दों मणि + पुर से मिलकर बना है जहाँ “मणि” का अर्थ है जवाहरात और “पुर” का अर्थ है स्थान। तो, मणिपुर का शाब्दिक अर्थ “ज्वेल लैंड” है। मणिपुर का अर्थ केवल अक्षर में ही नहीं बल्कि आत्मा में भी सत्य है। मणिपुर वास्तव में एक अनमोल रत्न है जो भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता के साथ चमक रहा है। मणिपुर की कला और संस्कृति बहुत समृद्ध है और मणिपुरियों के जीवन में इसका बहुत महत्व है। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से मणिपुर हमेशा भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच ए�� क्रॉस-सेक्शन बिंदु रहा है अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें
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मणिपुर की संस्कृति: परंपरा और जीवन शैली
मणिपुर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में से एक है। मणिपुर दो शब्दों मणि + पुर से मिलकर बना है जहाँ “मणि” का अर्थ है जवाहरात और “पुर” का अर्थ है स्थान। तो, मणिपुर का शाब्दिक अर्थ “ज्वेल लैंड” है। मणिपुर का अर्थ केवल अक्षर में ही नहीं बल्कि आत्मा में भी सत्य है। मणिपुर वास्तव में एक अनमोल रत्न है जो भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता के साथ चमक रहा है। मणिपुर की कला और संस्कृति बहुत समृद्ध है और मणिपुरियों के जीवन में इसका बहुत महत्व है। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से मणिपुर हमेशा भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच एक क्रॉस-सेक्शन बिंदु रहा है। मणिपुर की श्रेष्ठ संस्कृति मणिपुर के पर्यटकों के लिए हमेशा एक उच्च आकर्षण रही है।
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Play Violin || वायलिन || Violin Instrument || Violin in Hindi || Violin Guitar || Learning Violin for Beginners बनावट (Texture) वायलिन तंतु वाद्यों में सबसे अधिक लोकप्रिय वाद्य है, इसका भारतीय नाम बेला है। विगत शताब्दी के अंत से यह भारतीय संगीत में प्रवेश कर चुका है। लोकसंगीत में उपलब्ध ‘सारिदा’ नामक वाद्य से इसकी शक्ल विशेष रूप से मिलती-जुलती है। इसमें धातु के स्थान ताँत के तीन तार लगे होते हैं और इसका ‘टेलपीस’ वाला हिस्सा वायलिन जैसा होता है। भारतीय संगीत में वायलिन के समान गज से बजने वाले वाद्यों का प्रचार प्राचीनकाल से रहा है। भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानो का इस सम्बन्ध में यह मत ही कि गज से बजने वाले वाद्यों का सूत्रपात सर्वप्रथम भारत इ हुआ और यहीं से इसका प्रचार विदेशों में फैला। दक्षिण के कुछ मंदिरों में वायलिन के आकार – प्रकार वाले चित्र भी मिलती है, परन्तु इनको किस नाम से पुकारा जाता है, इस सम्बन्ध में कोई जान कारी उपलब्ध नहीं है। यह माना जाता है कि १३ ई० के लगभग भारत में प्रचलित पिनाकी वीणा से इसका आकार – प्रकार तथा वादन शैली अधिकांश रूप से मिलती – जुलती है। पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार वायलिन का उद्गम ‘वायोलिन’ नामक मध्यकालीन वाद्य से हुआ है, जो स्वयं मध्य एशिया के रिबेका नामक वाद्य का परिवर्तित रूप है। पाश्चात्य देशों में वायलिन ‘वाद्य का राजा’ कहा जाता है। https://omsangeet.com/2022/09/play-violin-violin-instrument-violin-in-hindi-violin-guitar-learning-violin-for-beginners/
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Bhopal mai Ghumane ki Jagah
Bhopal mai Ghumane ki Jagah - भोपाल के पर्यटन स्थल
Discover top tourist places in Bhopal, Madhya Pradesh! Plan your visit to Bhopal Mai Ghumane Ki Jagah and explore the city's captivating attractions. Upper Lake , Bhopal ऊपरी झील, जिसे भोजताल के नाम से भी जाना जाता है, भोपाल की एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कृत्रिम झील है, जो भारत में सबसे पुरानी मानी जाती है। स्थानीय तौर पर इसे बड़ा तालाब के नाम से जाना जाता है, यह पीने के पानी का एक प्रमुख स्रोत है, जो निवासियों को सालाना लगभग तीस मिलियन गैलन पानी की आपूर्ति करता है। झील के एक कोने पर एक स्तंभ पर राजा भोज की मूर्ति है। पुल पुख्ता नामक एक ओवरब्रि�� ऊपरी झील को निचली ��ील से अलग करता है। पूर्वी हिस्से में बोट क्लब पैरासेलिंग, कायाकिंग, पैडलिंग और राफ्टिंग जैसी विभिन्न जल ग���िविधियाँ प्रदान करता है। कमला पार्क इसकी प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाता है। शाही उद्यान नए अनुभव चाहने वाले आगंतुकों को आकर्षित करता है और पीक सीज़न के दौरान यहाँ हलचल रहती है।
Van Vihar , Bhopal केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण भोपाल में वन विहार में प्रकृति रिजर्व और वनस्पति आवास का प्रबंधन करता है, जो श्यामला हिल्स के पास और ऊपरी झील के नजदीक स्थित है। वन विहार जानवरों के लिए एक प्राकृतिक सेटिंग प्रदान करता है, जो उन्हें अपने मूल पर्यावरण के करीब स्थितियों में पनपने की अनुमति देता है। पर्यटक विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं और पक्षियों को देख सकते हैं, जिनमें पैंथर, चीता, नीलगाय, पैंथर और वैगटेल शामिल हैं। सफेद बाघ को देखने का सबसे अच्छा समय जुलाई और सितंबर के बीच है। Indira Gandhi Rashtriya Manav Sangrahalaya , Bhopal इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय एक अनोखा संग्रहालय है जो भोपाल के श्यामला हिल्स में वन विहार राष्ट्रीय उद्यान से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित है। यह भारत में सबसे बड़े मानवविज्ञान संस्थान और भोपाल में एक लोकप्रिय आकर्षण के रूप में प्रसिद्ध है। संग्रहालय मानव संस्कृति और विकास को प्रदर्शित करता है, जिसमें सजाए गए रॉक हाउस, औपनिवेशिक स्वदेशी रीति-रिवाज, वास्तुकला और परंपराएं शामिल हैं। इसमें दृश्य-श्रव्य संग्रह, नृवंशविज्ञान आइटम और इंटरैक्टिव फिल्में हैं। लगभग 200 एकड़ में फैले इस संग्रहालय का उद्देश्य भारतीय आदिवासी समुदायों की विविधता और सामाजिक रीति-रिवाजों को प्रदर्शित करना है। जनजातीय लोगों द्वारा विकसित, नृवंशविज्ञान स्थान जीवन के पुराने तरीके और पौराणिक निशानों को संरक्षित करता है। संग्रहालय सुबह 10 बजे से शाम 5.30 बजे (सितंबर से फरवरी) और सुबह 11 बजे से शाम 6.30 बजे (मार्च से अगस्त) तक खुलता है, सोमवार और सार्वजनिक छुट्टियों पर बंद रहता है। प्रवेश शुल्क रु. वयस्कों के लिए 50 रु. प्रति व्यक्ति छात्रों और समूहों के लिए 25। Chhota Talab, Bhopal निचली झील के नाम से भी जानी जाने वाली यह झील भोपाल रेलवे जंक्शन से लगभग चार किलोमीटर दूर स्थित है। यह लोअर लेक ब्रिज, या पुल पुख्ता, एक सस्पेंशन ब्रिज द्वारा ऊपरी झील से जुड़ा हुआ है। 1794 में निर्मित, निचली झील को शहर के आकर्षणों को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया गया था। यह प्रभावशाली पहाड़ियों से घिरा हुआ एक शांत और शांत वातावरण प्रदान करता है। Bhimbetka caves भीमबेटका दक्षिण एशिया का एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है, जो मानव अस्तित्व के सबसे पुराने साक्ष्य प्रदर्शित करने वाले पांच सौ से अधिक शैल आश्रयों के लिए जाना जाता है।वनस्पति रंगों का उपयोग करके बनाई गई प्राचीन रॉक कला, गुफाओं की दरारों और आंतरिक दीवारों में उल्लेखनीय रूप से अच्छी तरह से बची हुई है। भीमबेटका एक आकर्षक गंतव्य है जो सभी आयु वर्ग के लोगों के घूमने के लिए उपयुक्त है। यह भोपाल और होशंगाबाद को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 12 के माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है। भीमबेटका गुफाओं तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका एक निजी टैक्सी सेवा किराए पर लेना है। Gohar Mahal,Bhopal यह भोपाल में ऊपरी झील के तट पर स्थित एक आश्चर्यजनक स्मारक है, जिसे 1820 में शहर की पहली महिला शासक गौहर बेगम ने बनवाया था।महल तक आसानी से पहुंचा जा सकता है, हवाई अड्डा लगभग नौ से दस किलोमीटर दूर स्थित है, और निकटतम रेलवे स्टेशन साइट से लगभग छह किलोमीटर दूर है। Birla Museum,Bhopal मध्य प्रदेश में बिड़ला संग्रहालय क्षेत्र की समृद्ध प्रागैतिहासिक सभ्यता का एक उल्लेखनीय भंडार है। भोपाल आने वाले इतिहास और पुरातत्व प्रेमियों के लिए यह संग्रहालय अवश्य देखने योग्य आकर्षण है। निकटतम रेलवे स्टेशन भोपाल मुख्य स्टेशन है, जो लगभग पाँच किलोमीटर दूर है। हालाँकि, बिड़ला संग्रहालय तक पहुँचने का सबसे सुविधाजनक तरीका सड़क मार्ग है, या तो ड्राइविंग करके, कैब लेकर या बस का उपयोग करके। Shaukat mahal,Bhopal भोपाल में शौकत महल एक आश्चर्यजनक वास्तुशिल्प चमत्कार है जो इंडो-इस्लामिक और यूरोपीय डिजाइन तत्वों के मिश्रण के लिए जाना जाता है। इमारत के शीर्ष पर त्रिकोण के रूप में जटिल मेहराब हैं, और अग्रभाग सुंदर पैटर्न से सजाया गया है, जो कलाकार की शिल्प कौशल को प्रदर्शित करता है। पर्यटक निजी टैक्सी किराए पर लेकर या आसानी से उपलब्ध सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करके शौकत महल तक आसानी से पहुंच सकते हैं, क्योंकि यह भोपाल रेलवे जंक्शन से लगभग चार किलोमीटर दूर स्थित है। Bharat Bhavan,Bhopal भोपाल में स्थित भारत भवन, 1982 में भारत की पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को समर्पित एक स्वतंत्र बहु-कला परिसर और संग्रहालय है। केंद्र का लक्ष्य दृश्य, भाषाई और प्रदर्शन कलाओं के माध्यम से आगंतुकों को एक आकर्षक और यादगार अनुभव प्रदान करना है। यह आधुनिक अभिव्यक्ति, रचनात्मकता और मुक्त भाषण कार्यक्रमों के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। भारत भवन पूरे देश के प्रतिभाशाली नृत्य और गायन कलाकारों को देखने के लिए पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है। अपर लेक के पास स्थित, यह राजा भोज अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से 12 किमी, हबीबगंज रेलवे स्टेशन से 8 किमी और नादिरा बस स्टैंड से 6 किमी दूर है। Taj-ul-Masjid,Bhopal ताज-उल-मस्जिद देश की सबसे बड़ी और सबसे शानदार मस्जिदों में से एक है, जिसमें विशाल गुंबदों, उत्कृष्ट मीनारों और आश्चर्यजनक गलियारों के साथ लुभावनी वास्तुकला है। हालाँकि, मस्जिद के अंदर प्रवेश केवल मुसलमानों के लिए प्रतिबंधित है। राजा भोज टर्मिनल से सिर्फ नौ किलोमीटर और हमीदिया रोड पर शहर के केंद्रीय रेलवे स्टेशन से चार किलोमीटर दूर स्थित, मस्जिद तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। विदिशा, सांची, उज्जैन, इंदौर और अन्य शहरों और कस्बों जैसे आसपास के क्षेत्रों के लिए लगातार बसें उपलब्ध हैं, जिससे भोपाल के सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। भोपाल में खरीदारी करने के कुछ प्रमुख स्थान हैं: New Market: टीटी नगर भी कहलाने वाले न्यू मार्केट में कई दुकानें हैं जो कपड़े, सहायक उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स, जूते और बहुत कुछ बेचते हैं। बजट खरीदारी और सौदेबाजी करने के लिए यह बेहतरीन स्थान है। Bittan Market: यह बाजार साड़ियों, कपड़े, आभूषण और हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। यह पारंपरिक भारतीय कपड़े और अन्य सामान की तलाश करने वालों के लिए एक लोकप्रिय जगह है। MP Crafts Exhibition: बिड़ला संग्रहालय के पास स्थित यह एम्पोरियम मध्य प्रदेश के पारंपरिक हस्तशिल्प की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित करता है, जिसमें कपड़ा, मिट्टी के बर्तन, आभूषण और बहुत कुछ है। DB Mall - इस आधुनिक शॉपिंग मॉल में भारतीय और अंतरराष्ट्रीय ब्रांड हैं, जो इसे मनोरंजन, भोजन, फैशन और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए एक ��न-स्टॉप स्थान बनाते हैं। Ashima Mall: आशिमा मॉल, एक और आधुनिक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, ब्रा���डों, खाद्य कोर्टों और मनोरंजन क्षेत्रों से मिलकर एक परिवार के अनुकूल शॉपिंग स्थान है। C21 Mall- मॉल विभिन्न खरीदारी और मनोरंजन आवश्यकताओं को पूरा करता है, खुदरा दुकानों, खाद्य पदार्थों और मल्टीप्लेक्स सिनेमा के एक मिश्रण के साथ। ये भोपाल में खरीदारी करने के कुछ महत्वपूर्ण स्थान हैं। पुराने बाजारों से लेकर आधुनिक शॉपिंग मॉल तक, शहर में कई अलग-अलग खरीदारी अनुभव हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सभी पसंद के खरीदारों को उनकी पसंद के अनुसार कुछ न कुछ मिल जाएगा। आप भोपाल पहुंचे कैसे? विभिन्न परिवहन साधनों से मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल तक आसानी से पहुँचना संभव है। यहाँ भोपाल पहुंचने का तरीका बताया गया है: राजा भोज (IATA: BHO) हवाई अड्डा भोपाल से प्रमुख भारतीय शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बैंगलोर आदि से सीधी उड़ानें ले सकते हैं। शहर के केंद्र से हवाई अड्डा लगभग 15 किलोमीटर (9 मील) दूर है। By Train भारत के सबसे बड़े रेलवे स्टेशनों में से एक भोपाल जंक्शन देश भर के कई शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यह स्टेशन सुपरफास्ट ट्रेनों और लंबी दूरी ट्रेनों से जुड़ा हुआ है। इस शहर को दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता से अच्छी रेल कनेक्टिविटी है। By Bus- भोपाल में अच्छी तरह से विकसित सड़क नेटवर्क है, जिसमें अंतरराज्यीय और शहरी बस सेवाएं उपलब्ध हैं। इंदौर, नागपुर, जबलपुर और अन्य आसपास के शहरों से अक्सर बसें चलती हैं। भोपाल बस स्टेंड (हमीदिया बस स्टेंड भी कहलाता है) सबसे बड़ा बस टर्मिनल है। By Car कार से भोपाल राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) और राज्य राजमार्गों से जुड़ा हुआ है। भोपाल पड़ोसी राज्यों और शहरों से जा सकता है। आम तौर पर सड़क अच्छी है, और यात्रा में मनोरम दृश्य हैं। जब आप भोपाल पहुंचते हैं, तो शहर के आसपास जाने के लिए आपको साइकिल रिक्शा, टैक्सी, शहरी बसें और ऑटो-रिक्शा जैसे कई स्थानीय साधन मिलेंगे। परिवहन विकल्पों के बारे में सबसे नवीनतम जानकारी की जांच करना उचित है, खासकर अगर मेरे पिछले अपडेट से कोई परिवर्तन या सुधार हुआ है। Homepage Read the full article
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मणिपुर की संस्कृति: परंपरा और जीवन शैली
मणिपुर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में से एक है। मणिपुर दो शब्दों मणि + पुर से मिलकर बना है जहाँ “मणि” का अर्थ है जवाहरात और “पुर” का अर्थ है स्थान। तो, मणिपुर का शाब्दिक अर्थ “ज्वेल लैंड” है। मणिपुर का अर्थ केवल अक्षर में ही नहीं बल्कि आत्मा में भी सत्य है। मणिपुर वास्तव में एक अनमोल रत्न है जो भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता के साथ चमक रहा है। मणिपुर की कला और संस्कृति बहुत समृद्ध है और मणिपुरियों के जीवन में इसका बहुत महत्व है। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से मणिपुर हमेशा भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच एक क्रॉस-सेक्शन बिंदु रहा है। मणिपुर की श्रेष्ठ संस्कृति मणिपुर के पर्यटकों के लिए हमेशा एक उच्च आकर्षण रही है।धार्मिक क्रिया , रीति-रिवाजों, परंपराओं और अंधविश्वासों ने हमेशा दुनिया भर के कई लोगों को आकर्षित किया है। इस लेख में, आप मणिपुर की कला, संस्कृति, लोगों, संगीत नृत्य, व्यवसाय और व्यंजनों के बारे में जानेंगे।
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Salam Air Boarding Pass Download | सलाम एयर बोर्डिंग पास डाउनलोड करें
नमस्कार दोस्तो Salam Air Boarding Pass Download करने के लिए जानले की सलाम एयर ओमान में स्थित एक कम लागत वाली एयरलाइन है, जो मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के विभिन्न गंतव्यों के लिए सस्ती उड़ानें प्रदान करती है। एयरलाइन द्वारा अपने ग्राहकों को प्रदान की जाने वाली कई सुविधाओं में से एक उनके बोर्डिंग पास को ऑनलाइन डाउनलोड करने की क्षमता है। इस लेख में, हम सलाम एयर बोर्डिंग पास डाउनलोड प्रक्रिया पर एक…
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#Salam Air Boarding Pass Download#अपना सलाम एयर बोर्डिंग पास कैसे डाउनलोड करें#सलाम एयर बोर्डिंग पास डाउनलोड करें#सलाम एयर बोर्डिंग पास में क्या जानकारी शामिल है?#सलाम एयर मोबाइल ऐप का उपयोग करने के लाभ
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Singapore भारत के यात्रियों को आश्वस्त करता है, लोकप्रिय हॉलिडे डेस्टिनेशन पर आगंतुकों का स्वागत करता है
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फीफा विश्व कप 2022 अनुसूची: कतर शेड्यूल में विश्व कप फुटबॉल 2022 का पूरा विवरण देखें, पहला मैच, समय, दिनांक, स्थान | फुटबॉल समाचार
फीफा विश्व कप 2022 अनुसूची: कतर शेड्यूल में विश्व कप फुटबॉल 2022 का पूरा विवरण देखें, पहला मैच, समय, दिनांक, स्थान | फुटबॉल समाचार
फीफा विश्व कप 2022 कतर में 20 नवंबर से शुरू होगा। यह जापान और दक्षिण कोरिया द्वारा 2002 के टूर्नामेंट की मेजबानी के बाद मध्य पूर्व में आयोजित पहला और एशिया में दूसरा विश्व कप है। प्रतियोगिता के पहले मैच में मेजबान कतर इक्वाडोर से भिड़ेगा। ब्राजील खिताब के लिए सबसे पसंदीदा हैं क्योंकि उनका लक्ष्य 2002 के बाद से रिकॉर्ड-विस्तारित छठा खिताब हासिल करना है। अन्य बड़े दावेदार अर्जेंटीना और मौजूदा…
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ब्रिटेन उन लोगों को नहीं भूला जिन्हें अब भी अफगानिस्तान छोड़ना है: राजदूत - वीडियो
ब्रिटेन उन लोगों को नहीं भूला जिन्हें अब भी अफगानिस्तान छोड़ना है: राजदूत – वीडियो
अफगानिस्तान में ब्रिटिश राजदूत, सर लॉरी ब्रिस्टो ने कहा कि यह निकासी के प्रयास के ‘इस चरण को बंद करने का समय’ है, जब अफगान नागरिकों के लिए यूके की अंतिम उड़ान काबुल हवाई अड्डे से रवाना हुई। दो सप्ताह से भी कम समय में ब्रिटिश सेना द्वारा लगभग 14,000 लोगों को देश से बाहर निकाला गया है .
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सलवार कमीज: जो पहनते है क्या उसके बारे में जानते है ?
सलवार कमीज औऱ साड़ी - सलवार कमीज नाम से जेहन में उसका प्रतिबिम्ब उकरने लगता है | फिर भी किसी ने गौर ���हीं किया होगा की आखिर ये पहनावा आया कहा से क्योकि भारत में इस पहनावे का चलन नहीं था जो भी लोग थोड़ा बहुत इतिहास के बारे जानकारी रखते होंगे उन्हें पता होगा की भारत में बहुत पहले ज्यादा लोग समान्यता महिलाये वस्त्र के रूप में एक कपडे का ही प्रयोग करती थी जो उस समय धोती के नाम से जाना जाता था | उसका रूप बदलते -बदलते वो अब साडी कहलाने लगी है और अब तो उसमे कई तरह की साड़िया बाजार में आने लगी है | इसकी पहचान केवल एक फीमेल वेश -भूषा की तरह बनी है |
सलवार कमीज मर्द औऱ स्त्री दोनों का पहनावा -
लेकिन सलवार कमीज में ऐसा नहीं है कई जगहों पर इसको पुरषों के वेश -भूषा भी माना जाता है इसका साफ़ मतलब है ये पहनावा स्त्री और पुरुष दोनों ही धारण करते है अब आते है सलवार कमीज पर जैसा की नाम से लग रहा है ये एक उर्दू उत्पन्य शब्द है दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के पुरुषों और महिलाओं का पारंपरिक परिधान है। सलवार एक पतलून या पाईजामह है और क़मीस एक लंबा पैंट, या सलवार, पंजाबी मेंसलवार के रूप में जाना जाता है|उर्दू में ये शब्द फ़ारसी से लिया गया है |
१-सलवार कमीज - सलवार से मालूम ही होता है की ये बैग्गी ट्राउज़र्स की तरह है उर्दू में शलवार के नाम से जाना जाता है ये सलवार शब्द का प्रयोग भारत में बहुत ही होता है |ज्यादातर पंजाबी लोगों का शलवार और सलवार का साउंड एक जैसा ही लगता है |-कमीज - कमीज़ शब्द क़मीज़ से बना है ये एक पायजामा टाइप होता है इसमें कई लेंथ होते है |शब्द कमीज ये अरब से आया हुआ शब्द है जो इंग्लिश में क्यू से शुरू होता है |ये सलवार कमीज आज के दौर में कई तरह के स्टाइल आने से इन पायजामों का नाम भी चेंज हुआ है |
सबसे पहले सलवार कमीज़ का कांसेप्ट कहा से आया -
सलवार कमीज़ का कांसेप्ट सबसे पहले मुगलो दवरा लाया गया है |मुगलों में महिलाये और पुरष इसी तरह पोशाक पहना करते थे और वो बहुत शौक़ीन थे ज्वेलरी के भी और वो अच्छे कपडे इस तरह के परिधान पहना करते थे |और साथ बहुत ही बेहतरीन कपड़ो का प्रयोग करते थे जो साथ में महंगे भी हुआ करते थे |मुग़ल महिलाये ज्यादातर मलमल , वेलवेट , सिल्क के बने हुए पोशाक पहना करती थी |मुग़ल ने ही सलवार कमीज में नयी -नयी चीजें जोड़कर कई तरह और कई टाइप की सलवार कमीज़ बनायीं जो ��ज भी चल रही है |ये 13 सेंचुरी चलता आ रहा था |कहा जाये तो यही से सलवार और कमीज की खोज कहे या विकास कहे यही से हुआ |फिर पुरे विश्व तक गया |और आज भी कई मुस्लिम देशों की ये राष्ट्रीय ड्रेस है | अफगानिस्तान में पुरषो के दवरा बहुत ही सलवार कमीज पहनी जाती है |और बाद में ये भारतीय महिलाओं दवरा अडॉप्ट कर ली गयी और प्रसिद्ध भी हुई | हो भी क्यों न थोड़ा सरल भी था इसको पहनना |
सलवार कमीज़ उसके स्टाइल -
पंजाबी सूट -
पंजाब रीजन पहले से भी सांस्कृतिक रूप से भरा -भूरा रहा है | पंजाबी कमीज जो वो मुगलों से थोड़ा अंतर लिए होती वो स्ट्रैट में होती है बिना साइड सिल्ट के और वही जो सलवार होती है टॉप में चौड़ी और नीचे पैर की तरफ बढ़ते -बढ़ते सुकुडती जाती है |और एंकल के चारो ओर इक्ठा रहती है |चूड़ीदार पैजामा भी पंजाब में प्रसिद्ध है |सलवार को लोकल पंजाबी सूथन भी कहते है |पंजाबी सूट का प्रचलन इसलिए भी बहुत बढ़ा क्योकि 1960 में सिनेमा के दौर में पंजाबी परिधान पहने हुए अक्सर एक्ट्रेस दिख जाये करती थी |पंजाबी सूट का प्रचलन स्कूल के बच्चों में भी घर कर गया है |इसमें वेरियशन भी बहुत है जैसे पटियाला सूट जो आजकल बहुत ही चर्चित है |
सिंधी सूट -
सिंधी पारम्परिक सलवार को कांचा कहा जाता है |ये टॉप से लेकर एंकल तक चौड़ी रहती है |इसमें कई प्लेट बनी रहती है |इसके साथ महिलाये सिंधी चोला पहनती है जिसकी लम्बाई घुटने तक होती थी |सिंधी के लोगों में ये आज भी प्रचलित है | ऐसे मिलते जुलते कई फैशन में लोग इसे जोड़ रहे है |
अनारकली सूट -
इस सूट का नाम अनारकली इसलिए रखा गया क्योकि पहले दरबारी नर्तकी ऐसे ही परिधान पहनती थी औऱ उनके पजनने की वजह से इसे अनारकली नाम दिया गया |ये इस समय बहुत ही पॉपुलर है | ये एक फ्रॉक स्टाइल टॉप औऱ सलवार का मिक्सचर है |ये वास्तव में भी इस पहनावे का जुड़ाव पंजाब रीजन से औऱ जम्मू रीजन से है वहाँ इस पहनावे को अंगा नाम से जाना जाता है |ये इस समय बहुत चर्चित औऱ लोकप्रिय ऑउटफिट है | भारत में तो ये महिलाओं की पसंदीदा ड्रेस है | बाजार में इसकी मांग भी बहुत है |पहनने में सरल औऱ देखने बहुत ही ट्रेंडी लगने की वजह से लोगों इसके प्रति क्रेज बना हुआ है | परिधान औऱ लाइफस्टाइल
कपड़ों के हिसाब से ये परिधान बहुत ही फेमस हुआ क्योकि आज के दौर में लोगों ज्यादातर कामकाजी लाइफस्टाइल को अपना रहे है इसमें वो इजी औऱ आरामदायक परिधान को ज्यादा चुन रहे है औऱ इसीलिए पेंट्स इतने चलन में है औऱ लोकप्रिय है |क्योकि इनका पहनना आसान भी होता है औऱ ये ज्यादा कम्फर्ट भी होते है |उसी तरह अब दुनिया जैसे बदल रही है लोग सलवार कमीज की ओर आकर्षित ��ो रहे है | क्योकि ये परिधान ज्यादे हलके औऱ केयर करने में आसान होते है |
वैसे परिधान आदमी क्या पहने क्या नहीं पहने ये उस रीजन के वातावरण पर भी निर्भर करता है | औऱ अब तो गूगल का दौर है इससे कोई भी स्टाइल एक कोने से दूसरे कोने में पहचने में समय नहीं लगता है | इसलिए सलवार कमीज में भी इसका असर दिख रहा है औऱ अलग -अलग स्टाइल के बहुत से आइटम बाजार में आ रहे है |हमारा ये मानना है की आप जिस भी परिधान में सूंदर औऱ सरल महसूस करे उसे ही प्रयोग में लाये |
पूरा जानने के लिए-https://bit.ly/3jGXxbt
#सिंधीसूटस्टाइल#सलवारकमीज#सलवारऔरकमीज#सलवार#शलवार#वेलवेट#राष्ट्रीयड्रेस#मुस्लिमदेशों#मुगलोदवरा#मलमल#भारतीयमहिलाओं#बैग्गीट्राउज़र्स#पोशाकपहना#पोशाक#टाइप#पायजामा#दोनोंहीधारण#स्त्रीऔरपुरुष#पहनावा#सूंदरऔऱसरलमहसूस#परिधानमें#परिधानऔऱलाइफस्टाइल#पटियालासूट#पंजाबीसूट#पंजाबीलोगों#पंजाबीपरिधान#ज्यादाकम्फर्ट#बाजार#कमीज़#अफगानिस्तान
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माँ सरस्वती का निवास: शारदा देश कश्मीर और ‘सर्वज्ञ पीठ’ की धरोहर
कश्मीर में जिस मंदिर के द्वार कभी आदि शंकर के लिए खुले थे आज उसके भग्नावशेष ही बचे हैं। हम प्रतिवर्ष वसंत पंचमी और नवरात्र में माँ सरस्वती की वंदना शंकराचार्य द्वारा रची गई स्तुति से करते हैं लेकिन उस सर्वज्ञ पीठ को भूल गए हैं जिसपर कभी आदि शंकर विराजे थे।
देश की चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित करने तथा आचार्य गौड़पाद में महाविष्णु के दर्शन करने के पश्चात आदि शंकर को माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त हुई थी। विद्यारण्य कृत ‘शंकर दिग्विजय’ ग्रं��� में वर्णित कथा के अनुसार शंकर अपने शिष्यों के साथ गंगा किनारे बैठे थे तभी किसी ने समाचार दिया कि विश्व में जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप में भारत और भारत में काश्मीर सबसे प्रसिद्ध स्थान है जहाँ शारदा देवी का वास है। उस क्षेत्र में माँ शारदा को समर्पित एक मंदिर है जिसके चार द्वार हैं। मंदिर के भीतर ‘सर्वज्ञ पीठ’ है। उस पीठ पर वही आसीन हो सकता है जो ‘सर्वज्ञ’ अर्थात सबसे बड़ा ज्ञानी हो।
उस समय माँ शारदा के उस मंदिर के चार द्वार थे जो चारों दिशाओं में खुलते थे। पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा से आए विद्वानों के लिए तीन द्वार खुल चुके थे किंतु दक्षिण दिशा की ओर से कोई विद्वान आया नहीं था इसलिए वह द्वार बंद था। आदि शंकर ने जब यह सुना तो वे शारदा मंदिर के सर्वज्ञ पीठ के दक्षिणी द्वार के लिए निकल पड़े।
शंकर जब काश्मीर पहुँचे तब वहाँ उन्हें अनेक विद्वानों ने घेर लिया। उन विद्वानों में न्याय दर्शन, सांख्य दर्शन, बौद्ध एवं जैनी मतावलंबी समेत कई विषयों के ज्ञाता थे। शंकर ने सभी को अपनी तर्कशक्ति और मेधा से परास्त किया तत्पश्चात मंदिर का दक्षिणी द्वार खुला और आदि शंकर पद्मपाद का हाथ पकड़े हुए सर्वज्ञ पीठ की ओर बढ़ चले। तभी माँ सरस्वती ने शंकर की परीक्षा लेने के लिए उनसे कहा, “तुम अपवित्र हो। एक सन्यासी होकर भी काम विद्या सीखने के लिए तुमने एक स्त्री संग संभोग किया था। इसलिए तुम सर्वज्ञ पीठ पर नहीं बैठ सकते।”
तब शंकर से कहा, “माँ मैंने जन्म से लेकर आजतक इस शरीर द्वारा कोई पाप नहीं किया। दूसरे शरीर द्वारा किए गए कर्मों का प्रभाव मेरे इस शरीर नहीं पड़ता।” यह सुनकर माँ शारदा शांत हो गईं और आदि शंकर सर्वज्ञ पीठ पर विराजमान हुए। माँ सरस्वती का ��शीर्वाद प्राप्त कर शंकर की कीर्ति चहुँओर फैली और वे शंकराचार्य कहलाए। आदि शंकराचार्य ने माँ सरस्वती की वंदना में स्तुति की रचना की जो आज प्रत्येक छात्र की वाणी को अलंकृत करती है- “नमस्ते शारदे देवि काश्मीरपुर वासिनी, त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे।”
कश्मीर में जिस मंदिर के द्वार कभी आदि शंकर के लिए खुले थे आज उसके भग्नावशेष ही बचे हैं। हम प्रतिवर्ष वसंत पंचमी और नवरात्र में माँ सरस्वती की वंदना शंकराचार्य द्वारा रची गई स्तुति से करते हैं लेकिन उस सर्वज्ञ पीठ को भूल गए हैं जिसपर कभी आदि शंकर विराजे थे। शारदा पीठ देवी के 18 महाशक्ति पीठों में से एक है। आज वह शारदा पीठ पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर में है और वहाँ जाने की अनुमति किसी को नहीं है।
कश्मीर के रहने वाले एक मुसलमान डॉ अयाज़ रसूल नाज़की अपने रिश्तेदारों से मिलने पाक अधिकृत कश्मीर स्थित मुज़फ्फ़राबाद कई बार गए। अंतिम बार जब वे 2007 में गए थे तब उन्होंने शारदा पीठ जाने की ठानी। डॉ नाज़की की माँ के पूर्वज हिन्दू थे इसलिए वे अपनी जड़ों को खोजने शारदा पीठ गए थे। गत 60 वर्षों में वे पहले और अंतिम भारतीय कश्मीरी थे जो शारदा पीठ गए थे।
एक समय ऐसा भी था जब बैसाखी पर कश्मीरी पंडित और पूरे भारत से लोग तीर्थाटन करने शारदा पीठ जाते थे। आज वह शारदा पीठ उस क्षेत्र में है जिसे पाकिस्तान आज़ाद कश्मीर कहता है। आज़ाद कश्मीर मीरपुर मुज़फ्फ़राबाद का क्षेत्र है जो जम्मू कश्मीर राज्य का अंग है।
मुज़फ्फ़राबाद झेलम और किशनगंगा नदियों के संगम पर बसा छोटा सा नगर है। किशनगंगा के तट पर ही शारदा तहसील में शारदा गाँव स्थित है। वहाँ आज शारदा विश्वविद्यालय के अवशेष ही दिखाई पड़ते हैं। कनिष्क के राज में यह समूचे सेंट्रल एशिया का सबसे बड़ा ज्ञान का केंद्र था। वस्तुतः कश्मीर की ख्याति ही ‘शारदा प्रदेश’ के नाम से थी। आर्थर लेवलिन बैशम ने अपनी पुस्तक ‘वंडर दैट वाज़ इण्डिया’ में लिखा है कि बच्चे अपने उपनयन संस्कार के समय ‘कश्मीर गच्छामि’ कहते थे जिसका अर्थ था कि अब वे उच्च शिक्षा हेतु कश्मीर जाने वाले हैं।
कश्मीर के शंकराचार्य के समकक्ष आदर प्राप्त आचार्य अभिनवगुप्त ने लिखा है कि कश्मीर में स्थान-स्थान पर ऋषियों की कुटियाँ थीं और पग-पग पर भगवान शिव का वास था।
शारदा पीठ का उल्लेख सर्वप्रथम नीलमत पुराण में मिलता है। इसके अतिरिक्त कल्हण ने राजतरंगिणी में लिखा है कि सम्राट ललितादित्य के समय में शारदा विश्वविद्यालय में बंगाल के गौड़ समुदाय के लोग शारदा पीठ आते थे। संस्कृत समूचे कश्मीर की भाषा थी और शारदा विश्वविद्यालय में 14 विषयों की पढ़ाई होती थी। शारदा विश्वविद्यालय में ही देवनागरी से भिन्न शारदा लिपि का जन्म हुआ था।
डॉ अयाज़ रसूल नाज़की ने Cultural Heritage of Kashmiri Pandits नामक पुस्तक ��ें प्रकाशित अपने लेख में ‘सारिका’ या ‘शारदा’ की लोक प्रचलित कहानी लिखी है। हुआ यह कि एक बार कश्मीर में रहने वालों की वाणी चली गई। कोई न कुछ बोल सकता था न व्यक्त कर सकता था। आवाज़ चली जाने से लोग दुखी और परेशान थे। तब सबने मिलकर हरि पर्वत पहाड़ी पर जाने का निश्चय किया। वहाँ पहुँच कर सबने भगवान से प्रार्थना की। तभी एक बड़ी सी मैना आई और उस चिड़िया ने अपनी चोंच से पत्थरों पर खोए हुए अक्षरों को लिखना प्रारंभ किया। सबने मिलकर उन अक्षरों को बोलकर पढ़ा, और इस प्रकार सबकी वाणी लौट आई।
संभव है कि वाग्देवी सरस्वती ने कश्मीरी लिपि शारदा को इसी प्रकार प्रकट किया हो लेकिन शेष भारत ने शारदा देश, लिपि, आदि शंकर की सर्वज्ञ पीठ और देवी की शक्ति पीठ को भी लगभग भुला दिया है।
✍🏻यशार्क पांडेय
कश्मीर के म्लेच्छ आक्रमण-
(१) १४४० ई.पू. में-राजतरङ्गिणी, तरंग १-
प्रपौत्रः शकुनेस्तस्य भूपतेः प्रपितृव्यजः। अथावहदशोकाख्यः सत्यसंघो वसुन्धराम्॥१०१॥
यः शान्तवृजिनो राजा प्रपन्नो जिनशासनम्। शुष्कलेत्रवितस्तात्रौ तस्तार स्तूपमण्डलैः॥१०२॥
धर्मारण्य विहारान्तः वितस्तात्र पुरेऽभवत्। यत्कृतं चैत्यमुत्सेधावधिप्राप्त्यक्षमेक्षणम्॥१०३॥
स षण्नवत्या गेहानां लक्षैर्लक्ष्मीसमुज्ज्वलैः। गरीयसीं पुरीं श्रीमांश्चक्रे श्रीनगरीं नृपः॥१०४॥----
म्लेच्छैः संछादिते देशे स तदुच्छित्तये नृपः। तपः सन्तोषिताल्लेभे भूतेशात्सुकृती सुतम्॥१०७॥
सोऽथ भूभृज्जलौकोऽभूद्भूलोक सुरनायकः। यो यशः सुधया शुद्धं व्यधाद्ब्रह्माण्डमण्डलम्॥१०८॥---
तत्काल प्रबल प्रेद्ध बौद्ध वादि समूहजित्। अवधूतोऽभवत् सिद्धस्तस्य ज्ञानोपदेशकृत्॥११२॥----
स रुद्ध वसुधान् म्लेच्छान्निर्वास्या खर्व विक्रमः। जिगाय जैत्रयात्राभिर्महीमर्णवमेखलाम्॥११५॥
ते यत्रोज्झटितास्तेन म्लेच्छाश्छादितमण्डलाः। स्थानमुज्झटडिम्बं तज्जनैरद्यापि गद्यते॥११६॥
गोनन्द वंश का ४८वां राजा अशोक या धर्मा��ोक (१४४८-१४०० ई.पू.) था। वह बौद्ध हो गया और कई विहार बनवाये। वहा�� के बौद्धों ने मध्य एशिया के म्लेच्छों को बुला कर उनसे आक्रमण करवाया। म्लेच्छ शासन होने पर गोनन्द वन में भाग गया। शिव की पूजा से उसे जलौक नामक पुत्र हुआ जिसने राज्य को पुनः जीता (१४००-१३४४ ई.पू.) और वर्णाश्रम धर्म की पुनः स्थापना की। म्लेच्छों का जहां समूल नाश किया था उसका नाम उज्झट-डिम्ब पड़ा। उसने ९६ लाख घरों का श्रीनगर नगर बसाया।
(२) जलौक के पुत्र दामोदर के ५० वर्ष ��ाज्य के बाद हुष्क, जुष्क, कनिष्क ने ६० वर्ष राज्य किया (१२९४-१२३४ ई.पू.)। उनसे पुनः अभिमन्यु (१२३४-११८२ ई.पू.) ने राज्य ले लिया।
(३) (पण्डित गवास लाल -कश्मीर का संक्षिप्त इतिहास से)-कल्हण के समय ११४८ ई. के बाद १२९५ ई. तक कश्मीर में हिन्दू शासन रहा। १२९५ से १३२४-२५ ई तक राजा सिंहदेव का शासन था। उस समय स्वात से शमीर, तिब्बत से रेन्छन शाह तथा दर्दिस्तान से लन्कर चक आये जिनको राजा ने आश्रय दिया। उनको सरकारी नौकरी तथा जागीर दी। इनलोगों ने १३२२ ई. में चंगेज खान के वंशज जुल्फी कादिर खान को आक्रमण के लिये निमन्त्रित किया। उसने ७०,००० घुड़सवारों के साथ आक्रमण किया और इन गद्दारों की मदद से लाकॊं लोगों की हत्या की तथा ५०,००० ब्राह्मणों को गुलाम बना कर ले गये। इनमें कई देवसर की बर्फ में मारे गये। राजा सिंहदेव किश्तवार भाग गये तथा उनके सेनापति रामचन्द गगनजिर भागे। शत्रुओं के जाने के बाद रामचन्द ने वापस राज्य पर कब्जा करने की कोशिश की पर तिब्बत से आये जागीरदार रेन्छन ने रामचन्द की हत्या कर उसकी पुत्री से विवाह किया और राजा बन गया। उसने इस्लाम स्वीकार कर सदरुद्दीन नाम से राजा बना। २५ वर्ष राज्य के बाद सिंहदेव के भाई उदयन देव ने १३२७ ई. में पुनः राज्य पर कब्जा किया। १३४३ ई. में उसके मरने पर उसके मन्त्री शाह मिर्जा ने कब्जा किया और शमसुद्दीन के नाम से राजा बना। १३४७ में उसके मरने पर उसके लड़के जमशेद को हरा कर उसका छोटा भाई अल्लाउद्दीन अली शेर राजा बना। उसके लड़के शाह उद्दीन (१३६०-१३७८) ने फिरोजशाह तुगलक की अधीनता स्वीकार की। उसके बाद १५५४ ई. तक उसके वंशज राज करते रहे। उसके बाद सिंहदेव के समय दरद से आये लंकर चक के वंशजों ने १५८८ ई तक शासन किया। उसके बाद १७५३ ई. तक मुगलों के सूबेदारों ने शासन किया। मुहम्मद शाह दुर्रानी के आक्रमण के बाद कश्मीर १८१९ ई. तक अफगान सूबेदारों के अधीन रहा।
(४) हिन्दू राज्य-१८१९ ई. में यह सिख राजाओं के सूबेदारों के अधीन रहा। इनमें १८४१-४६ तक मुस्लिम सूबेदार थे। अंग्रेजों द्वारा सिखों की पराजय के बाद महाराजा गुलाब सिंह ने १६-३-१८४�� ई. में कश्मीर अंग्रेजों से खरीद लिया। उनके पुत्र रणवीर सिंह के नाम पर रणवीर पेनल कोड है। उनके पुत्र प्रताप सिंह तथा उनके पुत्र हरिसिंह १९४७ तक राजा रहे। वे स्वाधीनता के बाद भारत में मिलना चाहते थे। पर भारत के प्रधानमन्त्री नेहरू ने कहा कि कश्मीर (जम्मू, लद्दाख नहीं) मुस्लिम बहुल है अतः राजा हरि सिंह का विचार कश्मीर के लोगों की इच्छा नहीं है। केवल शेख अब्दुल्ला ही कश्मीर के प्रतिनिधि हो सकते हैं (उनसे नेहरू का रक्त सम्बन्ध कहा जाता है)। उसके बाद शेख अब्दुल्ला का परिवार और उनके दामाद गुलाम मुहम्मद मुख्यमन्त्री बने। बीच में उनके समर्थक मुफ्ती मुहम्मद सईद भी मुख्य मन्त्री बने। उनकी पुत्री अभी मुख्य मन्त्री हैं। नेहरू ने बिना जनमत संग्राह् के कश्मीर का विलय अस्वीकार किया जो बाद में पाकिस्तान की मांग हुयी। भारतीय संविधान मेंएक अलग धारा ३७० जोड़ी गयी जिसके अनुसार वहां के राज प्रमुख या संविधान सभा की सहमति से ही राष्ट्रपति कोई निर्णय ले सकते है। राज प्रमुख पद समाप्त होने पर यह धारा स्वतः समाप्त होनी थी, पर कांग्रेस की इच्छा के कारण यह अभी तक भारत में पूरी तरह नहीं मिल पाया है। १९ जनवरी १९९० को यहां प्रायः २०,००० हिन्दुओं की हत्या कर बाकी ७ लाख को कश्मीर से भगा दिया गया जो अभी तक अपने ही देश में प्रवासी बने हुये हैं।
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चंद्र ग्रहण 2022: 2025 तक अंतिम पूर्ण चंद्र ग्रहण या ब्लड मून कैसे देखें
चंद्र ग्रहण 2022: 2025 तक अंतिम पूर्ण चंद्र ग्रहण या ब्लड मून कैसे देखें
साल का आखिरी पूर्ण चंद्रग्रहण मंगलवार को होगा, जब पृथ्वी सूर्य की किरणों को चंद्रमा तक पहुंचने से रोक देगी। ब्लड मून के रूप में भी जाना जाता है, चंद्र ग्रहण पिछले पूर्ण चंद्र ग्रहण के लगभग एक साल बाद होगा और उत्तरी अमेरिका, मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और एशिया में दर्शकों को दिखाई देगा। मंगलवार को चंद्रमा काला पड़ जाता है और लाल रंग का हो जाता है। यह 14…
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गुरुनानक देव सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु थे और इन्होनें आध्यात्मिक शिक्षाओं की नींव रखी जिस पर सिख धर्म का गठन हुआ था. इन्हें एक धार्मिक नवप्रवर्तनक माना जाता है, गुरु नानक ने अपनी शिक्षाओं को फैलाने के लिए दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में यात्रा की. उन्होंने एक भगवान के अस्तित्व की वकालत की और अपने अनुयायियों को सिखाया कि हर इंसान ध्यान और अन्य पवित्र प्रथाओं के माध्यम से भगवान तक पहुंच सकता है. गुरु नानक ने मठवासी वाद का समर्थन नहीं किया और अपने अनुयायियों से ईमानदार गृहस्थ के जीवन का नेतृत्व करने के लिए कहा. उनकी शिक्षाओं को 974 भजनों के रूप में अमर किया गया था, जिसे सिख धर्म के पवित्र पाठ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से जाना जाता हैं.(Guru Nanak History in Hindi) बिंदु(Points) जानकारी (Information) नाम (Name) गुरु नानक जन्म (Birth Date) 15 अप्रैल, 1469 जन्म स्थान (Birth Place) राय भोई की तलवंडी (वर्तमान में पंजाब, पाकिस्तान) मृत्यु की तिथि (Date of Death) 22 सितंबर, 1539 मौत का स्थान (Death Place) करतारपुर (वर्तमान में पाकिस्तान) पिता (Father Name) कल्याण चाँद और मेहता कालू मां (Mother Name) तृप्ता देवी बहन (Sister Name) नानकी पत्नी (Wife Name) सुलाखनी बच्चे (Childrens) श्री चंद और लखमी दास उत्तराधिकारी (Successor) गुरु अंगद प्रसिद्ध (Known For) सिख धर्मं के संस्थापक विश्राम स्थान (Vishram Sthan) गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर, पाकिस्तान गुरु नानक का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Guru Nanak’s Birth and Early Life) गुरु नानक देव का जन्म रावी नदी के किनारे तलवंडी नामक गांव में एक खत्री कुल में हुआ था. इनकी जन्म तिथि को लेकर आज भी इतिहासकारों में मतभेद है. कुछ इतिहासकारों के अनुसार इनकी जन्म तिथि 15 अप्रैल 1470 है परंतु वर्तमान समय में उनकी जन्म तिथि कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. गुरु नानक देव के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था. इनकी एक बड़ी बहन नानकी थी. अपने बचपन में गुरु नानक देव ने कई प्रादेशिक भाषाएं जैसे फारसी और अरबी आदि का अध्ययन किया. नानक जब 5 वर्ष के थे तब उनके पिता ने उन्हें हिंदी भाषा और वैदिक साहित्य का ज्ञान प्राप्त करने के लिए उन्हें पंडित गोपाल दास पांडे के यहां भेजा. नानक बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और चंचल स्वभाव के थे. पंडित गोपाल दास बालक नानक की बुद्धिमत्ता और योग्यता से काफी प्रसन्न थे. एक दिन जब वे अभ्यास के दौरान नानक से ओम शब्द का उच्चारण करवा रहे थे. तो बालक नानक ने उनसे ओम शब्द का अर्थ पूछ लिया. पंडित गोपालदास पांडे ने नानक को कहा की ओम सर्व रक्षक परमात्मा का नाम है. बालक नानक ने गोपालदास पांडे से कहा कि पंडित जी मेरी मां ने परमात्मा का नाम “सत करतार” बताया है. इस पर पंडित जी ने बालक नानक को कहा कि परमात्मा को हम अनेक नामों से पहचानते हैं. इन दोनों शब्दों का अर्थ एक ही है. पंडित गोपाल दास पांडे ने मेहता कालू से कहा कि आपका पुत्र बहुत ही मेधावी है अब मेरे पास उसे देने के लिए कोई भी ज्ञान शेष नहीं है. पंडित जी की यह बात सुनकर मेहता कालू राय ने अपने पुत्र नानक को फारसी और उर्दू भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए कुतुबुद्दीन मौलवी के पास भेजा. एक दिन जब मौलवी नानक से अलिफ शब्द बोलने के लिए कह रहे थे. तब बालक नानक ने मौलवी से पूछा कि आलिफ शब्द का अर्थ क्या है. फारसी भाषा में एक अल्लाह या खुदा को अलिफ कहा जाता है. नानक की हाजिर जवाबी के कारण मौलवी ने मेहता कालू राय से कहा कि तेरा बेटा खुदा का रूप है. मैं इसे क्या पढ़ाउंगा यह तो सारी दुनिया को पढ़ा सकता है. नानक देव का विवाह वर्ष 1487 में गुरदासपुर जिले क�� रहने वाले मूला की कन्या सुलाखनी से हुआ था. जिनसे इनके 2 पुत्र श्री चंद और लखमी दास हुए. गुरु नानक द्वारा यज्ञोप��ित संस्कार का विरोध हिंदू धर्म में बालकों का यज्ञोपवीत संस्कार अर्थात जनेऊ धारण का कार्यक्रम किया जाता है. नानक के घर भी कार्यक्रम तय हुआ. कालू मेहता ने अपने सभी रिश्तेदारों को न्योता देकर इस कार्यक्रम के लिए बुलाया था. यज्ञोपवित संस्कार वाले दिन नानक ने जनेऊ पहनने से साफ इंकार कर दिया. उन्होंने कहा मुझे इन धागों पर विश्वास नहीं है. नानक ने भरी सभा में कहा कि गले में धागा डालने से मन पवित्र नहीं होता. मन पवित्र करने के लिए अच्छे आचरण की जरूरत होती है. बालक की वाकपटुता और दृढ़ता देख कर सभी लोग चकित रह गए. गुरु नानक देव ने हिंदू धर्म में प्रचलित कई कुरीतियों का भी विरोध किया. गुरु नानक देव की मृत्यु (Guru Nanak’s Death) अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, गुरु नानक हिंदुओं और मुस्लिम दोनों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए थे. उनके आदर्श ऐसे थे कि दोनों समुदायों ने इसे आदर्श माना. अपने जीवन के अंतिम दिनों में गुरु नानक बहुत लोकप्रिय हो गए थे. गुरु नानक ने करतारपुर नामक नगर बसाया था और वहां एक धर्मशाला (गुरुद्वारा) बनवाया था. 22 सितंबर 1540 में गुरु नानक देव का निधन हो गया. अपनी मृत्यु के पहले उन्होंने अपने परम भक्त और शिष्य लहंगा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से प्रसिद्ध हुए. Guru Nanak History in Hindi Guru Nanak History in Hindi biography of Guru Nanak Guru Nanak movie Guru Nanak book Guru Nanak biography in Hindi biography of Guru Nanak Guru Nanak movie Guru Nanak book Guru Nanak biography in Hindi biography of Guru Nanak Guru Nanak movie Guru Nanak book Guru Nanak biography in Hindi
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How many countries Indian flights can go to?
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भारतीय उड़ानें कितने देशों में जा सकती हैं? भारतीय विमान अब 116 “प्वाइंट ऑफ कॉल्स” में काम कर सकते हैं – पूरे एशिया में मध्य पूर्व के रास्ते यूरोप और उत्तर से दक्षिण अमेरिका तक फैले हुए हैं। इसके सात और देश पिछले 109 के आंकड़े से अधिक हैं। इनमें से 36 में भारतीय वाहक संचालित होते हैं जबकि 48 देशों की एयरलाइंस भारत में संचालित होती हैं। एयरलाइंस के संदर्भ में ‘प्वाइंट ऑफ कॉल’ क्या है: कॉल का एक…
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सेब की किस्मों के लिए जाना जाता है, जम्मू और कश्मीर जल्द ही खजूर उगाएगा
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एक्सप्रेस समाचार सेवा श्रीनगर: मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में व्यापक रूप से उगाए जाने वाले खजूर जल्द ही जम्मू और कश्मीर में उगाए जाएंगे, जो स्वादिष्ट सेब की विभिन्न किस्मों के उत्पादन के लिए जाना जाता है, और अधिकारियों को उम्मीद है कि खजूर की खेती किसानों के लिए एक गेम चेंजर साबित होगी। केंद्र शासित प्रदेश में। बागवानी विभाग ने पिछले साल फरवरी में जम्मू क्षेत्र के सांबा के विजयपुर इलाके में अपनी…
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