#तीन साल की सजा
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Shaheed Diwas 2023: 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए
Shaheed Diwas : 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश सरकार ने लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी थी
हर साल 23 मार्च को भारत शहादत दिवस मनाया जाता है। भारत के तीन वीर सपूतों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे । ये तीनों ही युवाओं के लिए आदर्श और प्रेरणा है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु भारत की आजादी के लिए अपनी जान देने वाले ��्रांतिकारियों में से एक थे। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु नाम के तीन युवकों को ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी थी। वह 23 वर्ष के थे। इसलिए ,शहीदों को श्रद्धांजलि के रूप में, भारत सरकार ने 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में घोषित किया। लेकिन क्या आपको पता है कि इन तीनों शहीदों की मौत भी अंग्रेजी हुकूमत की एक साजिश थी? भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सभी को 24 मार्च को फाँसी देनी तय हुई थी, लेकिन अंग्रेजों ने एक दिन पहले 23 मार्च को भारत के तीनों वीर पुत्रो को फांसी पर लटका दिया। आखिर इसकी वजह क्या थी? आखिर भगत सिंह और उनके साथियों ने ऐसा क्या अपराध किया था कि उन्हें फांसी की सजा दी गई। भगत सिंह की पुण्यतिथि पर जानिए उनके जीवन के बारे में कई दिलचस्प बातें।
देश की आजादी के लिए सेंट्रल असेंबली में बम फेंका गया।
8 अप्रैल, 1929 को दो क्रांतिकारियों, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका और ‘साइमन गो बैक’ नारे में भी संदर्भित किया गया था। जहां कुख्यात आयोग के प्रमुख सर जॉन साइमन मौजूद थे। साइमन कमीशन को भारत में व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा था। बम फेंकने के बाद दोनों ने भागने की कोशिश नहीं की और सभा में पर्चे फेंक कर आजादी के नारे लगाते रहे और अपनी गिरफ्तारी दी। जो पर्चे गिराए उनमें पहला शब्द “नोटिस” था। उसके बाद उनमें पहला वाक्य फ्रेंच शहीद अगस्त वैलां का था। लेकिन दोनों क्रांतिकारियों द्वारा दिया गया प्रमुख नारा ‘’इंकलाब जिंदाबाद’’ था । इस दौरान उन्हें करीब दो साल की सजा हुई।
करीब दो साल की मिली कैद
भगत सिंह करीब दो साल तक जेल में रहे। उन्होंने बहुत सारे क्रांतिकारी लेख लिखे, जिनमें से कुछ ब्रिटिश लोगों के बारे में थे, और अन्य पूंजीपतियों के बारे में थे। जिन्हें वह अपना और देश का दुश्मन मानते थे। उन्होंने कहा कि श्रमिकों का शोषण करने वाला कोई भी व्यक्ति उनका दुश्मन है, चाहे वह व्यक्ति भारतीय ही क्यों न हो।
जेल में भी जारी रखा विरोध
भगत सिंह बहुत बुद्धिमान थे और कई भाषाएँ जानते थे। वह हिंदी, पंजाबी, उर्दू, बांग्ला और अंग्रेजी आती जानते थे । उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से बंगाली भी सीखी थी। भगत सिंह अक्सर अपने लेखों में भारतीय समाज में लिपि, जाति और धर्म के कारण आई लोगों के बीच की दूरी के बारे में चिंता और दुख व्यक्त करते थे।
राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव की फांसी की तारीख तय की गई
दो साल तक ��ैद में रहने के बाद, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च, 1931 को फाँसी दी जानी थी। हालाँकि, उनकी फाँसी की ख़बर से देश में बहुत हंगामा हुआ और ब्रिटिश सरकार प्रतिक्रिया से डर गई। वह तीनों सपूतों की फांसी के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। भारतीयों का आक्रोश और विरोध देख अंग्रेज सरकार डर गई थी।
डर गई अंग्रेज सरकार
ब्रिटिश सरकार को इस बात की चिंता थी कि भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु की फाँसी के दिन भारतीयों का गुस्सा उबलने की स्थिति में पहुँच जाएगा, और स्थिति और भी बदतर हो सकती है। इसलिए, उन्होंने उसकी फांसी की तारीख और समय को बदलने का फैसला किया।
तय समय से पहले दी भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी
ब्रिटिश सरकार ने जनता के विरोध को देखते हुए 24 मार्च जो फांसी का दिन था उसे 11 घंटे पहले 23 मार्च का दिन कर दिया। इसका पता भगत सिंह को नहीं था। 22 मार्च की रात सभी कैदी मैदान में बैठे थे। तभी वार्डन चरत सिंह आए और बंदियों को अपनी-अपनी कोठरियों में जाने को कहा। कुछ ही समय बाद नाई बरकत की बात कैदियों के कानों में पड़ी कि उस रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।
23 मार्च 1931 को शाम 7.30 बजे फांसी दे दी जायगी । कहते है कि जब भगत सिंह से उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन (Reminiscences of Leni) की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए। लेकिन जेल के अधिकारियों ने चलने को कहा तो उन्होंने किताब को हवा में उछाला और कहा – ’’ठीक है अब चलो।’’
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 बजकर 33 मिनट पर 23 मार्च 1931 को शाम में लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव एक दूसरे से मिले और उन्होंने एक-दूसरे का हाथ थामे आजादी का गीत गाया।
”मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे। मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग इे बसन्ती चोला।।’’
साथ ही ’इंक़लाब ज़िन्दाबाद’ और ’हिंदुस्तान आजाद हो’ का नारा लगये ।
उनके नारे सुनते ही जेल के कैदी भी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। कहा जाता है कि फांसी का फंदा पुराना था लेकिन ��िसे फांसी दी गई वह काफी तंदुरुस्त था। मसीद जलाद को फाँसी के लिए लाहौर के पास शाहदरा से बुलाया गया था। भगतसिंह बीच में खङे थे और अगल-बगल में राजगुरु और सुखदेव खङे थे। जब मसीद जल्लाद ने पूछा कि, ’सबसे पहले कौन जाएगा?’
तब सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकाने की सहमति दी। मसीद जल्लाद ने सावधानी से एक-एक करके रस्सियों को खींचा और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मारकर हटा दिया। लगभग 1 घंटे तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे, उसके बाद उन्हें नीचे उतारा गया और लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे ��ेल्सन और लेफ्टिनेंट एनएस सोढ़ी द्वारा उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
तीन क्रांतिकारियों, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का अंतिम संस्कार
ब्रिटिश सरकार की योजना थी इन सबका अंतिम दाह संस्कार जेल में करने की योजना बनाई थी। हालांकि, अधिकारियों को चिंता हुई कि अगर जेल से दाह संस्कार की प्रक्रिया से निकलने वाले धुएं को देखा तो जनता नाराज हो जाएगी। इसलिए, उन्होंने जेल की दीवार को तोड़ने और कैदियों के शवों को जेल के बाहर ट्रकों पर फेंकने का फैसला किया।
इससे पहले ब्रिटिश सरकार ने तय किया था कि भगत सिंह राजगुरु सुखदेव का अंतिम संस्कार रावी नदी के तट पर किया जाएगा, लेकिन उस समय रावी में पानी नहीं था। इसलिए उनके शव को फिरोजपुर के पास सतलुज नदी के किनारे लाया गया। उनके शवों को आग लगाई गई। इसके बारे में जब आस-पास के गाँव के लोगों को पता चल गया, तब ब्रिटिश सैनिक शवों को वहीं छोङकर भाग गये। कहा जाता है कि सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया था।
अगले दिन जब तीनों क्रांतिकारियों की मौत की खबर फैली तो उनके सम्मान में तीन मील लंबा जुलूस निकाला था। इसको लेकर लोगों ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया ।
फांसी से पहले भगत सिंह ने अपने साथियों को एक पत्र लिखा था।
साथियों,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता।
मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है- इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए।
लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी।
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POSCO एक्ट क्या है?
POSCO अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act) भारत में 2012 में लागू किया गया एक कानून है, जिसका उद्देश्य बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की रोकथाम और सजा सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य नाबालिगों को यौन शोषण और अन्य प्रकार के यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करना है।
POSCO अधिनियम के महत्वपूर्ण बिंदु:
परिभाषा:
अधिनियम के तहत 'बच्चा' की उम्र 18 वर्ष से कम होती है।
यौन अपराध में यौन शोषण, बलात्कार, और यौन उत्पीड़न शामिल है।
यौन अपराधों के प्रकार:
यौन शोषण: जब नाबालिग के साथ किसी प्रकार का यौन अनुबं�� या व्यवहार किया जाता है।
��लात्कार: नाबालिग के साथ बलात्कारी ढंग से यौन संबंध स्थापित करना।
पोर्नोग्राफी: बच्चों के साथ यौन गतिविधियों को रिकॉर्ड करना या प्रकट करना भी अपराध है।
कानूनी प्रक्रिया:
पुलिस को त्वरित और त्वरित कार्रवाई करनी होती है। ऐसे मामलों की सुनवाई विशेष अदालतों में की जाती है।
शिकायत के तुरंत बाद जांच की जाती है ताकि सबूत जल्दी से इकट्ठा किए जा सकें।
सजा का प्रावधान:
अधिनियम के अंतर्गत नाबालिग के साथ यौन शोषण करने वाले को तीन साल से लेकर जीवन तक की सजा हो सकती है। यह अपराध की गंभीरता और स्थिति के आधार पर अलग-अलग हो सकता है।
यदि अपराध बलात्कार का होता है, तो दंड और भी कठोर हो सकता है।
विशेष सुविधाएँ:
यह अधिनियम बच्चों के प्रति संवेदनशीलता और उचित कानूनी प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करता है।
बच्चे की पहचान और गोपनीयता को बनाए रखा जाता है, ताकि उसे और अधिक पीड़ित न बनाया जा सके।
आपराधिक दंड को बढ़ाना:
POSCO अधिनियम में अपराधियों के लिए दंड में वृद्धि की गई है। कई मामलों में त्वरित निर्णय के लिए विशेष न्यायालय स्थापित किए गए हैं।
यह अधिनियम सामाज में बच्चों के प्रति यौन अपराधों को रोकने और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसे लागू करने के लिए पुलिस, न्यायालयों और समाज के सभी हिस्सों की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता दें।
Advocate Karan Singh (Kanpur Nagar) [email protected] 8188810555, 7007528025
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सऊदी में टूटा फांसी का रिकॉर्ड! 100 से ज्यादा विदेशियों को सुनाई गई सजा, जानें कितने भारतीयों की हुई मौत
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दलितों पर हमला, झोंपड़ियों जलाई, महिलाओं के साथ किया दुर्व्यवहार; अदालत ने 98 दोषियों को सुनाई उम्रकैद की सजा
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jamshedpur murder case judgement : उलीडीह के राजीव मल्लिक हत्याकांड में दो आरोपी को 10 साल का सश्रम कारावास, कोर्ट ने जुर्माना भी लगाया
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40 साल बाद आरोपियों को 'सुप्रीम' राहत; उम्रकैद की सजा को सात साल की जेल में बदला
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1 जुलाई से देशभर में स्वदेशी कानून लागू, ग्वालियर में हुई पहली FIR, अब 3 साल के भीतर मिलेगा न्याय
नई दिल्ली : 30 जून खत्म होते ही देशभर में 1 जुलाई 2024 से तीनों नए कानून लागू हो गए। इसके तहत देश में पहली एफआईआर ग्वालियर में दर्ज की गई। जहां 1.80 लाख रुपये की कीमत की बाइक चोरी के मामले में मुकदमा दर्ज किया गया। अब से जो भी अपराध होगा। वह नए कानून के तहत ही दर्ज किया जाएगा। जबकि 1 जुलाई से पहले हुआ क्राइम पुराने कानून के हिसाब से ही दर्ज किया जाएगा। भले ही उस मामले में एफआईआर 1 जुलाई को या इसके बाद दर्ज की जाए। 15 अगस्त तक केंद्र शासित प्रदेशों में काम नए क्रिमिनल सिस्टम के तहत 15 अगस्त तक तमाम केंद्र शासित प्रदेशों में काम होने लगेगा। अन्य राज्यों में भी तकनीकी स्तर पर कार्य तेजी से हो रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री ने बताया कि नए कानूनों के तहत देश में पहली एफआईआर दिल्ली में नहीं बल्कि ग्वालियर में बाइक चोरी की दर्ज की गई है। दिल्ली में वेंडर के खिलाफ जो मामला दर्ज हुआ था। वह पुराने प्रावधान के तहत हुआ था। जिसे पुलिस ने रिव्यू के प्रावधान का उपयोग कर खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि देश के आजाद होने के 77 साल बाद आज भारत की न्याय प्रणाली पूरी तरह से स्वदेशी हो गई है। इसके बड़े फायदे होंगे। अंग्रेजों ने जो कानून बनाए थे। दंड की जगह न्याय देने वाले कानून उन्होंने 1 जुलाई से लागू हुए तीनों नए कानूनों को दंड की जगह न्याय देने वाला बताया। उन्होंने कहा कि कानून बनाने से पहले इसके हर पहलू पर चार सालों तक विस्तार से अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा की गई। आजादी के बाद से अब तक किसी भी कानून पर इतनी लंबी चर्चा पहले कभी नहीं हुई। नए कानूनों में पहली प्राथमिकता महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को दी गई है। इसमें एक नया अध्याय जोड़कर इसे और अधिक संवेदनशील बनाया गया है। यह तीनों नए कानून सबसे आधुनिक न्याय प्रणाली का सृजन करेंगे। इन कानूनों में आधुनिक से आधुनिक तकनीक को ना केवल अपनाया गया है। बल्कि ऐसा प्रावधान किया गया है कि अगले 50 सालों में भी आने वाली तकनीक भी इसमें समाहित हो सकें। 8वीं अनुसूची की सभी भाषाओं में कानून गृह मंत्री ने कहा कि देश के अलग-अलग राज्यों में बोली जाने वाली वि��िन्न भाषाओं को देखते हुए तीनों कानून देश की 8वीं अनुसूची की सभी भाषाओं में उपलब्ध होंगे और केस भी उन्हीं भाषाओं में चलेंगे। इसमें केवल हिंदी या इंग्लिश भाषा नहीं रखी गई है। नए कानूनों में आज के समय के हिसाब से धाराएं जोड़ी गई हैं। जिनसे लोगों को परेशानी थी। उन धाराओं को हटा दिया गया है। नए कानूनों में दंड की जगह न्याय को प्राथमिकता मिलेगी। देरी की जगह स्पीडी ट्रायल और जस्टिस मिलेगा। सभी प्रक्रियाओं के पूरा होने की टाइम लिमिट नए कानूनों में सभी प्रक्रियाओं के पूरा होने की टाइम लिमिट भी तय की गई है। इसके पूरी तरह लागू होने के बाद तारीख-पे-तारीख से निजात मिलेगी। किसी भी मामले में एफआईआर दर्ज होने से सुप्रीम कोर्ट तक तीन साल में न्याय मिल सकेगा। नए कानूनों में अंग्रेजों के राजद्रोह कानून को जड़ से समाप्त कर दिया गया है। कुछ लोग ऐसा भ्रम फैला रहे हैं कि नए कानूनों में रिमांड का समय बढ़ा दिया गया है। यह सच नहीं है। नए कानूनों के तहत भी रिमांड का समय पहले की तरह ही 15 दिन का है। उन्होंने कहा कि इन कानूनों में 60 दिनों के अंदर कुल 15 दिनों की रिमांड का प्रावधान किया गया है। 15 दिन की रिमांड की लिमिट को नहीं बढ़ाया गया है। इस बारे में भ्रांति फैलाई जा रही है। 7 साल या अधिक सजा केस में फोरेंसिक जांच अनिवार्य नए कानूनों में सात साल या इससे अधिक की सजा वाले अपराधों में फोरेंसिक जांच अनिवार्य की गई है। इससे न्याय जल्दी मिलेगा और सजा मिलने की दर को भी 90 फीसदी तक ले जाने में मदद मिलेगी। नए कानूनों पर करीब 22.5 लाख पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग के लिए 12 हजार मास्टर ट्रेनर तैयार किए जा चुके हैं। कई इंस्टीट्यूशंस को इसके लिए अधिकृत किया गया है और 23 हजार से अधिक मास्टर ट्रेनर्स को भी ट्रेंड किया जा चुका है। मॉब लिंचिंग को परिभाषित किया गया पहले कानूनों में केवल पुलिस के अधिकारों की रक्षा की गई थी लेकिन नए कानूनों में अब पीड़ितों और शिकायतकर्ता के अधिकारों की भी रखा करने का प्रावधान रखा गया है। उन्होंने कहा कि मॉब लिंचिंग के अपराध के लिए पहले के कानून में कोई प्रावधान नहीं था, लेकिन इन कानूनों में पहली बार मॉब लिंचिंग को परिभाषित किया गया। उन्होंने कहा कि देशभर के 99.9 फीसदी पुलिस थाने कंप्यूटराइज हो चुके हैं। ई-रिकॉर्ड जनरेट करने की प्रक्रिया भी 2019 से शुरू कर दी गई थी। जीरो एफआईआर, ई-एफआईआर और चार्जशीट सभी डिजिटल होंगे। नए कानूनों में सात साल या इससे अधिक की सजा वाले अपराधों में फोरेंसिक जांच अनिवार्य होगी। ज्यूडिशयरी में भी 21 हजार सबोर्डिनेट ज्यूडिशयरी की ट्रेनिंग हो चुकी है, 20 हजार पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को ट्रेंड… http://dlvr.it/T91nWb
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एसआरपीएफ जवान को तीन वर्ष की कैद, ३ लाख २५ हजार रुपए दंड
* पत्नी की पिटाई और मानसिक यातना देने का मामला SRPF Jawan sentenced to three years imprisonment and fine of Rs. 3.25 lakh जालना: जिला और सत्र न्यायाधीश-०२, एसआर तांबोळी ने आरोपी विशाल रंगनाथ वाघ (निवासी सुख शांती नगर, जालना) को अपनी पत्नी की पिटाई करने और उसे मानसिक व शारीरिक यातनाएं देने के आरोप में दोषी पाया और तीन साल की सजा सुनाई. साथ ही, फरियादी अंजली वाघ को मुआवजे के रूप में ३ लाख…
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Kanpur: 107 दागी पुलिसकर्मियों की सजा नहीं होगी निरस्त; संयुक्त पुलिस आयुक्त ने खारिज की अपील…जानें मामला
कानपुर कमिश्नरेट में तैनात 141 पुलिसकर्मी लापरवाही, घूसखोरी, धोखाधड़ी, दुष्कर्म, नशेबाजी जैसे मामलों में विभागीय जांच में पूर्व में दोषी पाए गए थे। राजपत्रित अधिकारी की रिपोर्ट के बाद डीसीपी मुख्यालय ने उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करते हुए सर्विस बुक में बैड एंट्री व अर्थदंड से दंडित किया था। दंडात्मक कार्रवाई के चलते इनकी प्रोन्नति और वेतनवृद्धि तीन से पांच साल तक के लिए रुक गई है। विभागीय…
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सामूहिक दुष्कर्म मामले में कोर्ट ने आरोपितों काे सुनाई, 20-20 साल की सजा
जालौन, 13 नवंबर (हि.स.)। जालौन में जिला सत्र न्यायालय ने अपहरण व पॉक्सो एक्ट मामले में महिला सहित तीन लोगों को 20-20 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है। न्यायाधीश ने साक्ष्यों के आधार पर आरोप सिद्ध हो जाने के बाद फैसला सुनाया और आरोपितों पर एक लाख 70 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। जुर्माना न अदा करने पर अतिरिक्त सजा भुगतनी पड़ेगी। मामेल में फैसला 17 माह बाद आया है। इस मामले में जानकारी देते हुए…
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मुन्ना भाई एमबीबीएस एडीसी समेत 6 को कोर्ट ने सुनाई तीन साल कैद की सजा, 10-10 हजार जुर्माना भी लगाया
मुन्ना भाई एमबीबीएस एडीसी समेत 6 को कोर्ट ने सुनाई तीन साल कैद की सजा, 10-10 हजार जुर्माना भी लगाया
Chamba News: फिल्म ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ जैसे एक मामले में 6 लोगों को तीन साल कैद की सजा सुनाई गयी है जिनमें एक हिमाचल प्रदेश के भरमौर के अतिरिक्त उपायुक्त (एडीसी) शामिल हैं। नौ साल पहले आयोजित इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सनल सलेक्शन (आईबीपीएस) क्लर्क की भर्ती परीक्षा में दो परीक्षार्थियों के स्थान पर परीक्षा देने के मामले में सीबीआई कोर्ट ने यह सजा सुनाई है। प्रत्येक दोषी पर 10-10 हजार जुर्माना…
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पत्नी ने प्रेमी के साथ मिलकर रची थी पति की हत्या की साजिश मिली आजीवन कारावास
सतना। जिले के कोलगवा थाना क्षेत्र में 4 साल पहले हुए एक हत्याकांड में जिला कोर्ट ने सजा तय कर दी है. कूटरचित हत्या करने के आरोप में तीन आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. पत्नी ने अपने प्रेमी और एक साथी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या की थी.आरोपियों पर कोर्ट ने जुर्माना भी लगाया है अब तीनों को आजीवन जेल में ही रहना होगा. क्या है मामला सतना जिले के कोलगवा थाना क्षेत्र में रामपुर हलके…
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Jamshedpur court two order : जमशेदपुर कोर्ट का दो फैसला, 1. जमशेदपुर कोर्ट ने पशुक्रूरता के एक आरोपी को दी सजा, तीन बरी, 2.बोड़ाम के समोला सिंह हत्याकांड के आरोपी को उम्रकैद, जुर्माना भी लगा
पशु क्रूरता के आरोप में एक व्यक्ति को तीन साल की सजा, जुर्माना भी लगा, तीन आरोपी बरी (नीचे देखे पूरी खबर) जमशेदपुर : पशु क्रूरता अधिनियम के एक मामले में सुनवाई कर रहे जमशेदपुर कोर्ट के एडीजे -4 आनंद मणी त्रिपाठी की अदालत ने मंगलवार को आरोपी पोटका निवासी सोमाय महाली को दोषी करार देते हुए तीन साल का सश्रम कारावास और एक हजार रूपए का जुर्माना लगाया हैं. अदालत ने मामले की अन्य तीन आरोपी रंजीत महाली,…
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