#डल
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mala-dasi · 2 years ago
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#StoryOfHanumanJi
परमार्थी हनुमान जी को निस्वार्थ दुःखियों की सहायता करने का फल मिला। परमात्मा स्वयं आए, मोक्ष मार्ग बताया। हनुमान जी फिर मानव जीवन प्राप्त करेंगे। तब परमेश्वर कबीर जी उनको शरण में लेकर मुक्त करेंगे। उस आत्मा में सत्य भक्ति बीज डल चुका है।
- संत रामपाल जी महाराज
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gauravvbisht · 2 years ago
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#StoryOfHanumanJi
परमार्थी हनुमान जी को निस्वार्थ दुःखियों की सहायता करने का फल मिला। परमात्मा स्वयं आए, मोक्ष मार्ग बताया। हनुमान जी फिर मानव जीवन प्राप्त करेंगे। तब परमेश्वर कबीर जी उनको शरण में लेकर मुक्त करेंगे। उस आत्मा में सत्य भक्ति बीज डल चुका है।
- संत रामपाल जी महाराज
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glitteryalpacaartisan · 2 years ago
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StoryOfHanumanJi
⚜️ हनुमान जी ने मुनिंद्र ऋषि जी की शरण कैसे ग्रहण की?
कौन थे मुनिंद्र ऋषि, यह जानने के लिए Download करें हमारी Official App
"Sant Rampal Ji Maharaj" या Visit करें Satlok Ashram YouTube Channel
⚜️परमार्थी हनुमान जी को निस्वार्थ दुःखियों की सहायता करने का फल मिला। परमात्मा स्वयं आए, मोक्ष मार्ग बताया। हनुमान जी फिर मानव जीवन प्राप्त करेंगे। तब परमेश्वर कबीर जी उनको शरण में लेकर मुक्त ���रेंगे। उस आत्मा में सत्य भक्ति बीज डल चुका है।
- संत रामपाल जी महाराज
⚜️कबीर परमेश्वर जी ने हनुमान जी को सृष्टि रचना सुनाई। सत्यकथा सुनकर हनुमान जी गदगद हुए। सत्यलोक देखने की प्रार्थना की। हनुमान जी को दिव्य दृष्टि देकर सतलोक दिखाया। ऋषि मुनीन्द्र जी (कबीर परमेश्वर जी) सिंहासन पर बैठे दिखाई दिए। मुनीन्द्र जी नीचे आए। हनुमान जी ��ो विश्वास हुआ कि ये परमेश्वर हैं। सत्यलोक सुख का स्थान है। परमेश्वर कबीर जी से दीक्षा ली। अपना जीवन धन्य किया। मुक्ति के अधिकारी हुए।
⚜️पवित्र आत्मा परमार्थी स्वभाव हनुमान जी को परमेश्वर कबीर जी ने अपनी शरण में लिया। परमार्थी आत्मा को संसार तथा काल के स्वामी भले ही परोपकार का फल नहीं देते, परंतु परमेश्वर ऐसी आत्माओं को शरण में अवश्य लेते हैं क्योंकि ऐसी आत्मा ही परम भक्त बनकर भक्ति करते हैं और मोक्ष प्राप्त करते हैं।
⚜️हनुमान जी ने अपनी पूजा करने के लिए कभी नहीं कहा। वो तो खुद एक भक्त थे | यह शास्त्र विधि छोड़ कर मनमाना आचरण है जिससे कोई लाभ नहीं है।
⚜️हनुमान जयंती पर जानिए आखिर किस भगवान की शरण में जाने से हनुमान जी को पूर्ण मोक्ष मार्ग मिला।
जानने के लिए Download करें हमारी Official App
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⚜️हनुमान जी राम जी को भगवान मानते थे और हमने हनुमान जी को पूजना शुरू कर दिया।
हनुमान जी जैसे भक्त होना दुर्लभ है पर हनुमान जी के भक्त बनना शास्त्र विरुद्ध है।
⚜️कबीर परमेश्वर जी ने हनुमान जी को सृष्टि रचना सुनाई। दिव्य दृष्टि देकर सतलोक दिखाया। हनुमान जी को विश्वास हुआ कि ये परमेश्वर हैं। सत्यलोक सुख का स्थान है।
⚜️परमार्थी स्वभाव हनुमान जी को परमेश्वर कबीर जी ने अपनी शरण में लिया।
⚜️कबीर परमात्मा मुनीन्द्र ऋषि के रूप में स्वयं आए, हनुमान जी को मोक्ष मार्ग बताया। उनका कल्याण हुआ। हनुमान जी फिर मानव जीवन प्राप्त करेंगे। तब परमेश्वर कबीर जी उनको शरण में लेकर मुक्त करेंगे
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chotharamchoudhary · 2 years ago
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#StoryOfHanumanJi
हनुमान जी ने मुनिंद्र ऋषि जी की शरण कैसे ग्रहण की?
कौन थे मुनिंद्र ऋषि, यह जानने के लिए Download करें हमारी Official App
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परमार्थी हनुमान जी को निस्वार्थ दुःखियों की सहायता करने का फल मिला। परमात्मा स्वयं आए, मोक्ष मार्ग बताया। हनुमान जी फिर मानव जीवन प्राप्त करेंगे। तब परमेश्वर कबीर जी उनको शरण में लेकर मुक्त करेंगे। उस आत्मा में सत्य भक्ति बीज डल चुका है।
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- संत रामपाल जी महाराज
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anmols · 2 days ago
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#GodMorningSaturday
#Iskcon_Exposed
जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो उनके गले की माला कबीर देव जी के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल और आशीर्वाद भरा सिर पर हाथ रखा।
#राधास्वामी_पंथ_Baseless
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#GodMorningSaturday
#Iskcon_Exposed
जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो उनके गले की माला कबीर देव जी के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल और आशीर्वाद भरा सिर पर हाथ रखा।
#राधास्वामी_पंथ_Baseless
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manojsihag9 · 6 days ago
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#GodMorningSaturday
#Iskcon_Exposed
#राधास्वामी_पंथ_Baseless
जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो उनके गले की माला कबीर देव जी के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल और आशीर्वाद भरा सिर पर हाथ रखा
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vedantbhoomidigital · 27 days ago
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तस्वीरों में: मौसम की पहली बर्फबारी के बाद सफेद रंग में लिपटा श्रीनगर
श्रीनगर में सर्द सुबह के दौरान एक शिकारा आंशिक रूप से जमी हुई डल झील पर फंस गया। कश्मीर घाटी में शीत लहर तेज होने के कारण तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे गिर गया, श्रीनगर में न्यूनतम तापमान शून्य से 7.3 डिग्री सेल्सियस नीचे दर्ज किया गया। (पीटीआई फोटो/एस इरफान)
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imranjalna · 1 month ago
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सर्दियों में त्वचा की देखभाल: इन आसान फेशियल मसाज टिप्स से पाएं ग्लोइंग स्किन
Winter skin care: Get glowing skin with these easy facial massage tips सर्दियों के मौसम में ठंडी हवाओं के कारण त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है। त्वचा की नमी कम होने से स्किन डल और अस्वस्थ दिखने लगती है। ऐसे में फेशियल मसाज एक बेहतरीन समाधान है। यह न केवल त्वचा को पोषण और नमी प्रदान करता है, बल्कि ब्लड सर्कुलेशन को भी बढ़ावा देता है, जिससे त्वचा में प्राकृतिक चमक आती है। यहां सर्दियों में फेशियल…
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nwnews24 · 1 month ago
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सर्दियों में Face Wash से जुड़ी 5 गलतियां बना देती हैं स्किन को डल और ड्राई, जानें क्या है सही तरीका
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rightnewshindi · 3 months ago
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लेक मैन ऑफ इंडिया आनंद मल्लीगावड पहुंचे धर्मशाला, डल झील में हो रहे रिसाव के मामले पर करेंगे बैठक
Kangra News: मैकलोडगंज की पवित्र डल झील में रिसाव की समस्या के समाधान के लिए लेक मैन ऑफ इंडिया आनंद मल्लीगावड मंगलवार को अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे। बैठक के लिए आनंद मल्लीगावड सोमवार देर शाम धर्मशाला पहुंचे. बैठक में उपायुक्त कांगड़ा के अलावा एसडीएम धर्मशाला, पर्यटन, जल शक्ति विभाग, नगर निगम और अन्य विभागों के अधिकारी भी मौजूद रहेंगे। इसके अलावा बैठक में अधिकारियों द्वारा डल झील के मौजूदा…
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jyotis-things · 4 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart101 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart102
ऋषि रामानन्द स्वामी को गुरु बना कर शरण में लेना
स्वामी रामानन्द जी अपने समय के सुप्रसिद्ध विद्वान कहे जाते थे। वे द्राविड़ से काशी नगर में वेद व गीता ज्ञान के प्रचार हेतु आए थे। उस समय काशी में अधिकतर ब्राह्मण शास्त्रविरूद्ध भक्तिविधि से जनता को दिशा भ्रष्ट कर रहे थे। भूत-प्रेतों के झाड़े जन्त्र करके वे काशी शहर के ब्राह्मण अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे थे। स्वामी रामानन्द जी ने काशी शहर में वेद ज्ञान व गीता जी तथा पुराणों के ज्ञान को अधिक महत्व दिया तथा वह भूत-प्रेत उतारने वाली पूजा का अन्त किया अपने ज्ञान के प्रचार के लिए चैदह सौ ऋषि बना रखे थे। {स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर जी की शरण में आने के पश्चात् चैरासी शिष्य और बनाए थे जिनमें रविदास जी नीरू-नीमा, गीगनौर (राजस्थान) के राजा पीपा ठाकुर आदि थे कुल शिष्यों की संख्या चैदह सौ चैरासी कही जाती है } वे चैदह सौ ऋषि विष्णु पुराण, शिव पुराण तथा देवी पुराण आदि मुख्य-2 पुराणों की कथा करते थे। प्रतिदिन बावन (52) सभाऐं ऋषि जन किया करते थे। काशी के क्षेत्र को विभाजित करके मुख्य वक्ताओं को प्रवचन करने के लिए स्वामी रामानन्द जी ने कह रखा था। स्वयं भी उन सभाओं में प्रवचन करने जाते थे। स्वामी रामानन्द जी का बोल बाला आस-पास के क्षेत्र में भी था। सर्व जनता कहती थी कि वर्तमान में महर्षि रामानन्द स्वामी तुल्य विद्वान वेदों व गीता जी तथा पुराणों का सार ज्ञाता पृथ्वी पर नहीं है। परमेश्वर कबीर जी ने अपने स्वभाव अनुसार अर्थात् नियमानुसार रामानन्द स्वामी को शरण में लेना था। कबीर जी ने सन्त गरीबदास जी को अपना सिद्धान्त बताया है जो सन्त गरीबदास जी (बारहवें पंथ प्रवर्तक, छुड़ानी धाम, हरियाणा वाले) ने अपनी वाणी में लिखा हैः-
गरीब जो हमरी शरण है, उसका हूँ मैं दास।
गेल-गेल लाग्या फिरूं जब तक ��रती आकाश।।
गोता मारूं स्वर्ग में जा पैठू पाताल।
गरीबदास ढूढत फिरूं अपने हीरे माणिक लाल।
हरदम संगी बिछुड़त नाहीं है महबूब सल्लौना वो।
एक पलक में साहेब मेरा फिरता चैदह भवना वो।
ज्यों बच्छा गऊ की नजर में यूं साई कूँ सन्त।
भक्तों के पीछे फिरै भक्त वच्छल भगवन्त।
कबीर कमाई आपनी कबहूँ न निष्फल जायें।
सात समुन्दर आढे पड़ैं मिले अगाऊ आय।।
सतयुग में विद्याधर नामक ब्राह्मण के रूप में तथा त्रेतायुग में वेदविज्ञ ऋषि के रूप में जन्में स्वामी रामानन्द जी वाले जीव ने परमेश्वर कबीर जी को बालक रूप में प्राप्त किया था। भक्तमति कमाली वाला जीव उस समय दीपिका नाम की विद्याधर ब्राह्मण की पत्नी थी। वही दीपिका वाली आत्मा वेदविज्ञ ब्राह्मण की पत्नी सूर्या थी। जो कलयुग में कमाली बनी। यही दोनों आत्माऐं त्रेता युग में ऋषि दम्पति (वेदविज्ञ तथा सूर्या) था। उस समय भी परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी शिशु रूप में इन्हें मिले थे। इस के पश्चात् भी इन दोनों जीवों को अनेकों जन्म व स्वर्ग प्राप्ति भी हुई थी। वही आत्माऐं कलयुग में परमेश्वर कबीर जी के समकालीन हुई थी। पूर्व जन्म के सन्त सेवा के पुण्य अनुसार परमेश्वर कबीर जी ने उन पुण्यात्माओं को शरण में लेने के लिए लीला की।
स्वामी रामानन्द जी की आयु 104 वर्ष थी उस समय कबीर देव जी के लीलामय शरीर की आयु 5 (पाँच) वर्ष थी। स्वामी रामानन्द जी महाराज का आश्रम गंगा दरिया के आधा किलो मीटर दूर स्थित था। स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी के तट पर बने पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे। पाँच वर्षीय कबीर देव ने अढ़ाई (दो वर्ष छः महीने) वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया तथा पंच गंगा घाट की पौड़ियों (सीढ़ियों) पर लेट गए। स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन की भांति स्नान करने गंगा दरिया के घाट पर गए। अंधेरा होने के कारण स्वामी रामानन्द जी बालक कबीर देव को नहीं देख सके। स्वामी रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ (लकड़ी का जूता) सीढ़ियों पर लेटे बालक कबीर देव के सिर में लगी। बालक कबीर देव लीला करते हुए रोने लगे जैसे बच्चा रोता है। स्वामी रामानन्द जी को ज्ञान हुआ कि उनका पैर किसी बच्चे को लगा है जिस कारण से बच्चा पीड़ा से रोने लगा है। स्वामी जी बालक को उठाने तथा चुप करने के लिए शीघ्रता से झुके तो उनके गले की माला (एक रूद्राक्ष या तुलसी की लकड़ी के एक मनके की कण्ठी यानि माला जो वैष्णव पंथी पहनते हैं) बालक कबीर देव के गले में डल गई। जिसे अंधेरे के कारण स्वामी रामानन्द जी नहीं देख सके। स्वामी रामानन्द जी ने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम-राम बोल राम नाम से सर्व कष्ट दूर हो जाते हैं। ऐसा कह कर बच्चे के सिर को सहलाया। आशीर्वाद देते हुए सिर ��र हाथ रखा। बालक कबीर परमेश्वर अपना उद्देश्य पूरा होने पर चुप होकर पौड़ियों पर बैठ गए।
स्वामी रामानन्द जी ने विचार किया कि वह बच्चा रात्रि में रास्ता भूल जाने के कारण यहाँ आकर सो गया होगा। इसे अपने आश्रम में ले जाऊँगा। वहाँ से इसे इनके घर भिजवा दूँगा। ऐसा विचार करके स्नान करने लगे। परमेश्वर कबीर जी वहाँ से अन्तर्धान हुए तथा अपनी झोंपड़ी में आकर सो गए। कबीर परमेश्वर ने इस प्रकार स्वामी रामानन्द जी को गुरु धारण किया।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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subeshivrain · 4 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart101 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart102
ऋषि रामानन्द स्वामी को गुरु बना कर शरण में लेना
स्वामी रामानन्द जी अपने समय के सुप्रसिद्ध विद्वान कहे जाते थे। वे द्राविड़ से काशी नगर में वेद व गीता ज्ञान के प्रचार हेतु आए थे। उस समय काशी में अधिकतर ब्राह्मण शास्त्रविरूद्ध भक्तिविधि से जनता को दिशा भ्रष्ट कर रहे थे। भूत-प्रेतों के झाड़े जन्त्र करके वे काशी शहर के ब्राह्मण अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे थे। स्वामी रामानन्द जी ने काशी शहर में वेद ज्ञान व गीता जी तथा पुराणों के ज्ञान को अधिक महत्व दिया तथा वह भूत-प्रेत उतारने वाली पूजा का अन्त किया अपने ज्ञान के प्रचार के लिए चैदह सौ ऋषि बना रखे थे। {स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर जी की शरण में आने के पश्चात् चैरासी शिष्य और बनाए थे जिनमें रविदास जी नीरू-नीमा, गीगनौर (राजस्थान) के राजा पीपा ठाकुर आदि थे कुल शिष्यों की संख्या चैदह सौ चैरासी कही जाती है } वे चैदह सौ ऋषि विष्णु पुराण, शिव पुराण तथा देवी पुराण आदि मुख्य-2 पुराणों की कथा करते थे। प्रतिदिन बावन (52) सभाऐं ऋषि जन किया करते थे। काशी के क्षेत्र को विभाजित करके मुख्य वक्ताओं को प्रवचन करने के लिए स्वामी रामानन्द जी ने कह रखा था। स्वयं भी उन सभाओं में प्रवचन करने जाते थे। स्वामी रामानन्द जी का बोल बाला आस-पास के क्षेत्र में भी था। सर्व जनता कहती थी कि वर्तमान में महर्षि रामानन्द स्वामी तुल्य विद्वान वेदों व गीता जी तथा पुराणों का सार ज्ञाता पृथ्वी पर नहीं है। परमेश्वर कबीर जी ने अपने स्वभाव अनुसार अर्थात् नियमानुसार रामानन्द स्वामी को शरण में लेना था। कबीर जी ने सन्त गरीबदास जी को अपना सिद्धान्त बताया है जो सन्त गरीबदास जी (बारहवें पंथ प्रवर्तक, छुड़ानी धाम, हरियाणा वाले) ने अपनी वाणी में लिखा हैः-
गरीब जो हमरी शरण है, उसका हूँ मैं दास।
गेल-गेल लाग्या फिरूं जब तक धरती आकाश।।
गोता मारूं स्वर्ग में जा पैठू पाताल।
गरीबदास ढूढत फिरूं अपने हीरे माणिक लाल।
हरदम संगी बिछुड़त नाहीं है महबूब सल्लौना वो।
एक पलक में साहेब मेरा फिरता चैदह भवना वो।
ज्यों बच्छा गऊ की नजर में यूं साई कूँ सन्त।
भक्तों के पीछे फिरै भक्त वच्छल भगवन्त।
कबीर कमाई आपनी कबहूँ न निष्फल जायें।
सात समुन्दर आढे पड़ैं मिले अगाऊ आय।।
सतयुग में विद्याधर नामक ब्राह्मण के रूप में तथा त्रेतायुग में वेदविज्ञ ऋषि के रूप में जन्में स्वामी रामानन्द जी वाले जीव ने परमेश्वर कबीर जी को बालक रूप में प्राप्त किया था। भक्तमति कमाली वाला जीव उस समय दीपिका नाम की विद्याधर ब्राह्मण की पत्नी थी। वही दीपिका वाली आत्मा वेदविज्ञ ब्राह्मण की पत्नी सूर्या थी। जो कलयुग में कमाली बनी। यही दोनों आत्माऐं त्रेता युग में ऋषि दम्पति (वेदविज्ञ तथा सूर्या) था। उस समय भी परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी शिशु रूप में इन्हें मिले थे। इस के पश्चात् भी इन दोनों जीवों को अनेकों जन्म व स्वर्ग प्राप्ति भी हुई थी। वही आत्माऐं कलयुग में परमेश्वर कबीर जी के समकालीन हुई थी। पूर्व जन्म के सन्त सेवा के पुण्य अनुसार परमेश्वर कबीर जी ने उन पुण्यात्माओं को शरण में लेने के लिए लीला की।
स्वामी रामानन्द जी की आयु 104 वर्ष थी उस समय कबीर देव जी के लीलामय शरीर की आयु 5 (पाँच) वर्ष थी। स्वामी रामानन्द जी महाराज का आश्रम गंगा दरिया के आधा किलो मीटर दूर स्थित था। स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी के तट पर बने पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे। पाँच वर्षीय कबीर देव ने अढ़ाई (दो वर्ष छः महीने) वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया तथा पंच गंगा घाट की पौड़ियों (सीढ़ियों) पर लेट गए। स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन की भांति स्नान करने गंगा दरिया के घाट पर गए। अंधेरा होने के कारण स्वामी रामानन्द जी बालक कबीर देव को नहीं देख सके। स्वामी रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ (लकड़ी का जूता) सीढ़ियों पर लेटे बालक कबीर देव के सिर में लगी। बालक कबीर देव लीला करते हुए रोने लगे जैसे बच्चा रोता है। स्वामी रामानन्द जी को ज्ञान हुआ कि उनका पैर किसी बच्चे को लगा है जिस कारण से बच्चा पीड़ा से रोने लगा है। स्वामी जी बालक को उठाने तथा चुप करने के लिए शीघ्रता से झुके तो उनके गले की माला (एक रूद्राक्ष या तुलसी की लकड़ी के एक मनके की कण्ठी यानि माला जो वैष्णव पंथी पहनते हैं) बालक कबीर देव के गले में डल गई। जिसे अंधेरे के कारण स्वामी रामानन्द जी नहीं देख सके। स्वामी रामानन्द जी ने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम-राम बोल राम नाम से सर्व कष्ट दूर हो जाते हैं। ऐसा कह कर बच्चे के सिर को सहलाया। आशीर्वाद देते हुए सिर पर हाथ रखा। बालक कबीर परमेश्वर अपना उद्देश्य पूरा होने पर चुप होकर पौड़ियों पर बैठ गए।
स्वामी रामानन्द जी ने विचार किया कि वह बच्चा रात्रि में रास्ता भूल जाने के कारण यहाँ आकर सो गया होगा। इसे अपने आश्रम में ले जाऊँगा। वहाँ से इसे इनके घर भिजवा दूँगा। ऐसा विचार करके स्नान करने लगे। परमेश्वर कबीर जी वहाँ से अन्तर्धान हुए तथा अपनी झोंपड़ी में आकर सो गए। कबीर परमेश्वर ने इस प्रकार स्वामी रामानन्द जी को गुरु धारण किया।
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votersverdict · 4 months ago
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Learn about the Jammu and Kashmir State of INDIA. About its famous assembly constituencies, famous politicians, local political parties, places of interest and ruling politicians of past.
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nishamittal · 6 months ago
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काशी बनारस के सुप्रसिद्ध विद्वान व 1400 शिष्यों के गुरु स्वामी रामानंद जी प्रतिदिन पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे।
एक दिन वहां पर पहले से ही 5 वर्षीय कबीर देव जी ने ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया तथा पंचगंगा घाट की सीढ़ियों में लेट गए। अंधेरा होने के कारण रामानंद जी के पैर की खड़ाऊ बालक रूप कबीर देव के सिर में लगी तथा कबीर साहेब जी ने रोने की लीला की।
जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो उनके गले की माला कबीर देव जी के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल और आशीर्वाद भरा सिर पर हाथ रखा।
इस तरह कबीर परमेश्वर ने रामानंद जी को गुरु धारण करने की लीला की।
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bikanerlive · 7 months ago
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प्रधानमंत्री मोदी श्रीनगर में मनाएंगे योग दिवस...
तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी पहली बार जम्मू-कश्मीर जा रहे हैं। वे 20 जून को श्रीनगर पहुंचेंगे और 21 जून को योग दिवस के मौके पर एक बड़े कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। वे डल झील के किनारे सैकड़ों लोगों के साथ योग करेंगे। जम्मू में हालिया आतंकी घटनाओं के बाद प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर खासे इंतजाम किए गए हैं। दो दिवसीय यात्रा के लिए जम्मू-कश्मीर जा रहे हैं, जिसके दौरान वे विभिन्न…
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khushi8239 · 7 months ago
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🍀स्वामी रामानंद जी का उद्धार कैसे हुआ??
प्रभु कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को तत्वज्ञान समझाया।
पंडित स्वामी रामानन्द जी एक विद्वान पुरुष थे। वेदों व गीता जी के मर्मज्ञ ज्ञाता माने जाते थे।
पाँच वर्ष की आयु में रामानन्द जी को गुरु धारण करना
जिस समय कबीर परमेश्वर (कविर्देव) अपने लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हो गए तब गुरु मर्यादा बनाए रखने के लिए लीला की। अढ़ाई वर्ष की आयु के बच्चे का रूप धारण करके सुबह-सुबह अंधेरे में पंचगंगा घाट की पौडि़यों के ऊपर लेट गए, जहाँ पर स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन स्नानार्थ जाया करते थे। श्री रामानन्द जी चारों वेदों के ज्ञाता और पवित्रा गीता जी के विद्वान माने जाते थे। स्वामी रामानन्द जी की आयु 104 वर्ष की हो चुकी थी। काशी में जो पाखण्ड पूजा दूसरे पण्डितों ने चला रखी थी वह बंद करवा दी थी। रामानन्द जी शास्त्रा अनुकूल साधना बताया करते थे और पूरी काशी में अपने बावन दरबार लगाया करते थे। रामानन्द जी पवित्रा गीता जी व पवित्र वेदों के आधार पर विधिवत् साधना बताते थे। ओ3म् नाम का जाप उपदेश देते थे।
उस दिन भी जब स्नान करने के लिए पंचगंगा घाट पर गए तो पौडि़यों पर कबीर साहेब लेटे हुए थे। सुबह ब्रह्ममूहूर्त के अंधेरे में स्वामी रामानन्द जी को कबीर साहेब दिखाई नहीं दिए। कबीर साहेब के सिर में रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ लग गई। कविर्देव ने जैसे बालक रोते हैं ऐसे रोना शुरु कर दिया। रामानन्द जी तेजी से झुके और देखा कि कहीं बालक को चोट तो नहीं लग गई तथा प्यार से उठाया। उसी समय रामानन्द जी के गले की कण्ठी (माला) निकल कर परमेश्वर कविर्देव के गले में डल गई। रामानन्द जी ने कहा कि बेटा राम - राम बोलो। राम के नाम से दुःख दूर हो जाते हैं, पुत्र राम - राम बोलो, कबीर साहेब के सिर पर हाथ रखा। शिशु रूप में कबीर साहेब चुप हो गए। फिर रामानन्द जी स्नान करने लग गए और सोचा कि बच्चे को आश्रम में ले चलूँगा। जिसका होगा उसके पास भिजवा दूँगा। रामानन्द जी ने स्नान करके देखा तो बच्चा वहाँ पर नहीं है। कबीर साहेब वहाँ से अंतध्र्यान हुए और अपनी झोपड़ी में आ गए। रामानन्द जी ने सोचा कि बच्चा था चला गया होगा, अब उसको कहाँ ढूंढूं?।
कबीर प्रभु द्वारा स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में दो रूप धारण करना
एक दिन स्वामी रामानन्द जी का कोई शिष्य कहीं पर सत्संग कर रहा था। कबीर साहेब वहाँ पर चले गए। वह ऋषि जी श्री विष्णु पुराण की कथा सुना रहा था। वह कह रहा था कि भगवान विष्णु जी सारी सृष्टी के रचनहार हैं, यही पालनकर्ता हैं, यही राम और कृष्ण रूप में अवतार आने वाली परम शक्ति हैं, अजन्मा हैं, श्री विष्णु जी के कोई माता-पिता नहीं हैं। कविरीश्वर ने यह सारी चर्चा सुनी। सत्संग के उपरान्त कबीर परमेश्वर ने कहा ऋषि जी क्या मैं एक प्रश्न पूछ सकता हूँ? ऋषि जी ने कहा कि हाँ बेटा! पूछो। वहाँ सैकड़ों की संख्या में भक्तजन उपस्थित थे। कविर्देव ने कहा कि आप विष्णु पुराण से सत्संग सुना रहे थे कि श्री विष्णु जी परमशक्ति है, इन्हीं से ब्रह्मा और शिव की उत्पत्ति हुई है। ऋषि जी ने कहा कि मैं जो सुनाता हूँ, विष्णु पुराण में ऐसा ही लिखा हुआ है। कबीर साहेब ने कहा कि ऋषि जी मैंने तो आपसे संशय निवारण के लिए प्रार्थना की है आप क्षुब्ध मत होईये। एक दिन मैंने शिवपुराण सुना था। उसमें वह महापुरुष सुना ��हे थे कि भगवान शिव से विष्णु और ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई (प्रमाण पवित्रा शिव पुराण, रूद्र संहिता, अध्याय 6 तथा 7 में, गीता प्रैस गोरख पुर से प्रकाशित) देवी भागवत के तीसरे स्कंद में लिखा है कि देवी इन तीनों ब्रह्मा-विष्णु- शिव की माँ है। ये तीनों नाशवान हैं, अविनाशी नहीं हैं। ऋषि जी निरूतर हो गए। क्रोधित होकर बोला तू कौन है ? किसका पुत्रा है ? कबीर साहेब से पहले ही दूसरे भक्तजन कहने लगे कि यह तो नीरु जुलाहे का पुत्रा है। स्वामी रामानन्द जी का शिष्य कहने लगा कि तूने गले में कण्ठी कैसे डाल रखी है ? (वैष्णु साधू तुलसी की एक मणिये की माला गले में डालते हैं, उससे यह प्रमाणित होता है कि इन्होंने विष्णु परंपरा से उपदेश ले रखा है।) तेरा गुरुदेव कौन है? कबीर साहेब ने कहा कि मेरे गुरुदेव वही हैं जो आपके गुरुदेव हैं। वह ऋषि बहुत क्रोधित हो गया तथा बोला कि रे नादान ! तू अछूत जुलाहे का बच्चा और मेरे गुरुदेव को अपना गुरुदेव बताता है। मेरे गुरुदेव का पता है कौन हैं ? श्री श्री 1008 पंडित रामानन्द जी आचार्य। तू जुलाहे का बालक, वे तो तेरे जैसे अछूतों के दर्शन भी नहीं करते और तू कह रहा है कि मैंने उनसे नाम लिया है। देख लो भाई भक्तजनों यह झूठा, कपटी है। अभी गुरुदेव के पास जाऊँगा और उनको तेरी सारी कहानी बताऊँगा। तू छोटी जाति का बच्चा हमारे गुरुदेव की बेइज्जती करता है। कविरग्नि बोले कि ठीक है गुरुदेव जी को बताओ। उस ऋषि ने जाकर श्री रामानन्द जी को बताया कि गुरुदेव एक जुलाहे जाति का लड़का है। उसने तो हमारी नाक काट दी। वह कहता है कि स्वामी रामानन्द जी मेरे गुरुदेव हैं। हे भगवन् ! हमारा तो बाहर निकलना दुःभर हो गया। स्वामी रामानन्द जी बोले कि कल सुबह उसको बुला कर लाओ। कल देखना तुम्हारे सामने मैं उसको कितना दण्ड दूँगा।
स्वामी रामानन्द जी के मन की बात बताना
अगले दिन सुबह-सुबह कबीर ��ाहेब को दस नादान व्यक्तियों ने पकड़ कर श्री रामानन्द जी के सामने उपस्थित कर दिया। रामानन्द जी ने यह दिखाने के लिए कि मैं कभी छोटी जाति वालों के दर्शन भी नहीं करता, यह झूठ बोल रहा था कि इसने मेरे से दीक्षा ली है, आगे पर्दा लगा लिया। रामानन्द जी ने पर्दे के पीछे से पूछा कि तू कौन है और तेरी क्या जाति है? तेरा कौन सा पंथ है, अर्थात् किस परमात्मा की पूजा
रामानंद अधिकार सुनि, जुलहा अक जगदीश। दास गरीब बिलंब ना, ताहि नवावत शीश।।
रामानंद कूं गुरु कहै, तनसैं नहीं मिलात। दास गरीब दर्शन भये, पैडे लगी जुं लात।।
पंथ चलत ठोकर लगी, रामनाम कहि दीन। दास गरीब कसर नहीं, सीख लई प्रबीन।।
आडा पडदा लाय करि, रामानंद बूझंत। दास गरीब ��ुलंग छबि, अधर डाक कूदंत।।
कौन जाति कुल पंथ है, कौन तुम्हारा नाम। दास गरीब अधीन गति, बोलत है बलि जांव।।
उत्तर कबीर जी का:-
जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर पद पंथ। दास गरीब लिखति परै, नाम निंरजन कंत।।
रामानन्द जी बोले:-
रे बालक सुन दुर्बद्धि, घट मठ तन आकार। दास गरीब दरद लग्या, हो बोले सिरजनहार।।
तुम मोमन के पालवा, जुलहै के घर बास। दास गरीब अज्ञान गति, एता दृढ़ विश्वास।।
मान बडाई छांडि करि, बोलौ बालक बैंन। दास गरीब अधम मुखी, एता तुम घट फैंन।।
तर्क तलूसैं बोलतै, रामानंद सुर ज्ञान। दास गरीब कुजाति है, आखर नीच निदान।।
परमेश्वर कबीर जी (कविर्देव) ने प्रेमपूर्वक उत्तर दिया -
महके बदन खुलास कर, सुनि स्वामी प्रबीन। दास गरीब मनी मरै, मैं आजिज आधीन।।
मैं अविगत गति सैं परै, च्यारि बेद सैं दूर। दास गरीब दशौं दिशा, सकल सिंध भरपूर।।
सकल सिंध भरपूर हूँ, खालिक हमरा नाम। दासगरीब अजाति हूँ, तैं जूं कह्या बलि जांव।।
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