छठ पूजा 2024: तिथि और महत्व
छठ पूजा एक प्राचीन हिंदू त्यौहार है जो सूर्य देव और छठी माई (छठ देवी) को समर्पित है। यह त्यौहार हर साल कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। 2024 में, छठ पूजा 5 नवंबर (मंगलवार) को मनाई जाएगी।
और पढ़ें: https://astroera.in/blog/festivals/chhath-pooja-2024-date-and-significance
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छठ पूजा 2022 दिन 1: नहाय खाय चार दिवसीय उत्सव की शुरुआत; जानिए अनुष्ठान और महत्व
छठ पूजा 2022 दिन 1: नहाय खाय चार दिवसीय उत्सव की शुरुआत; जानिए अनुष्ठान और महत्व
छवि स्रोत: TWITTER/SANGAMTALS छठ पूजा 2022 दिन 1: नहाय ख
छठ पूजा 2022 दिन 1: नहाय खाय छठ के चार दिवसीय त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है। शु�� त्योहार दिवाली के छह दिन बाद शुरू होता है। इस साल यह शुभ त्योहार 27 अक्टूबर से नहाय खाय के पारंपरिक समारोह के साथ शुरू हो रहा है, जो इस चार दिवसीय लंबे त्योहार के पहले दिन मनाया जाता है। पृथ्वी पर जीवन बनाए रखने के लिए सूर्य भगवान को धन्यवाद देने के लिए, भक्त…
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दुर्गा पूजा पर निबंध | Durga Puja par Nibandh
दुर्गा पूजा पर निबंध, Durga Puja par Nibandh
भारत एक ऐसा देश है, जहां दुनिया के तमाम त्योहार धूमधाम से मनाया जाते हैं। दुर्गा पूजा भी भारत में एक विशेष धार्मिक त्योहार है। इस त्योहार के दौरान 9 दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। दुर्गा पूजा का त्योहार बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। इस दिन मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का संहार किया था और इसी दिन राम ने रावण के संहार के लिए मां दुर्गा से…
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Chhath Puja: रामायण से जुड़े हैं छठ महापर्व के तार, सबसे पहले माता सीता ने किया था पूजन और व्रत
Chhath Puja: माता सीता ने बिहार में इस जगह पर की थी छठ पूजा. आज भी यहां मौजूद हैं माता सीता के चरण चिह्न, आनंद रामायण में भी जिक्र है. मुंगेर , धार्मिक मान्यता के अनुसार माता सीता ने सबसे पहला छठ पूजन बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर सपन्न किया था. इसके बाद महापर्व छठ की शुरुआत हुई. छठ को बिहार का महापर्व माना जाता है. यह पर्व बिहार के साथ देश के अन्य राज्यों में भी बड़ी धूम - धाम के साथ मनाया जाता है. बिहार के मुंगेर में छठ पर्व का विशेष महत्व है. छठ पर्व से जुडी कई लोककथाएं है.
लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता सीता ने सर्वप्रथम छठ पूजन किया था. इस बात के प्रमाण स्वरूप आज भी वहां माता सीता के चरण चिन्ह मौजूद हैं, जहां उन्होंने छठ पूजा की थी. बबुआ घाट के पश्चिमी तट पर आज भी माता के चरण चिन्ह मौजूद हैं. ये एक विशाल पत्थर पर अंकित हैं. पत्थर पर दोनों के चरणों के निशान हैं.
छह दिन तक की थी पूजा
वाल्मीकि और आनंद रामायण के अनुसार ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां ने छह दिन तक रहकर छठ पूजा की थी. श्री राम जब 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध से पाप मुक्त होने के लिए ऋषि -मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया. इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था. लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया. जिसके बाद मुग्दल ऋषि ने माता सीता को सूर्य की उपासना करने की सलाह दी थी.
मुग्दल ऋषि के आदेश पर भगवान राम और माता सीता पहली बार मुंगेर आए थे. यहां पर ऋषि के आदेश पर माता सीता ने कार्तिक की षष्ठी तिथि पर भगवान सूर्य देव की उपासना मुंगेर के बबुआ गंगा घाट के पश्चमी तट पर छठ व्रत किया था. जिस जगह पर माता सीता ने व्रत किया वहां पर माता सीता का एक विशाल चरण चिन्ह आज भी मौजूद है. इसके अलावे शिलापट्ट पर सूप, डाला और लोटे के निशान हैं. मंदिर का गर्भ गृह साल में छह महीने तक गंगा के गर्भ में समाया रहता है. जलस्तर घटने पर छह महीने ऊपर रहता है. इस मंदिर को सीताचरण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. वही सीता मां के पद चिन्ह का दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते रहते हैं
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छठ पूजा #ChhathPooja का महापर्व प्राकृतिक से प्रेम का प्रतीक है जिसमें सूर्य देवता की आराधना की जाती है छठ पूजा पर्व चार दिनों तक चलने वाला त्योहार हैं जिसमें नहाय-खाय, खरना, डूबते सूर्य को अर्घ्य, पूजा का समापन दिनों का विशेष महत्व है। -सच्चे मन और श्रद्धा के साथ छठ पूजा व्रत करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं इसलिए अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए स्त्री और पुरुषों दोनो के द्वारा छठ पूजा व्रत किया जाता हैं । छठ पूजा के दौरान भगवान सूर्य और छठी मैया से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए महिलाएं 36 घंटे तक उपवास रखती हैं. छठ के पहले दिन को नहाय खाय कहा जाता है - भक्त गंगा नदी जैसे पवित्र जल में स्नान करते हैं, छठ का पालन करने वाली महिलाएं निर्जला व्रत रखकर भक्त भगवान सूर्य के लिए प्रसाद तैयार करते हैं. दूसरे और तीसरे दिन को खरना और छठ पूजा कहा जाता है. महिलाएं इन दिनों एक कठिन निर्जला व्रत रखती हैं. इसके साथ ही चौथे दिन (उषा अर्घ्य) महिलाएं पानी में खड़े होकर उगते सूरज को अर्घ्य देती हैं और फिर अपना 36 घंटे का उपवास तोड़ती हैं.
सूरज में सर्व धर्म समभाव वाले, सर्व कला संपन्न संत शिरोमणि ऋषि रत्न रा गौहर शाही जी महराज का छवि मुबारक प्रकट हो चुकी है, जो कि सभी धर्म संप्रदाय के लोग इस छवि को देखते हुए , नामदान लेकर अपने हृदय को प्रबुद्ध करके ईश्वर से जुड़ रहें हैं और अपने जीवन को लाभान्वित पहुंचा रहे हैं। और अपनी हर बीमारी, कष्ट को दूर कर रहें हैं।
नामदान लेने का तरीका।
सूरज में प्रकट कल्कि अवतार रा गौहर शाही जी महाराज की इस दिव्य प्रकट छवि को देखते हुए तीन बार ( रा राम ) पढ़े , नाम दान प्राप्त हो जाएगा । फिर यह नामदान मन की माला ( दिल की हर दो धड़कनों ) के साथ दिल की एक धड़कन के साथ रा और दिल की दूसरी धड़कन के साथ राम बार बार मिलाते रहें।
“रा राम" धड़कनों में बार बार टकरायेगा तो दिव्य प्रकाश, दिव्य ज्योति बनेगी । " उत्तर आपके हृदय में गूंजेगा।"
#ifollowGoharShahi #YounusAlGohar #छठपूजा
#chhathpooja #suryadev #महापर्व #निर्जला #व्रत
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छठ पूजा 2023: शुभ मुहूर्त (Date), महत्व और सामग्री
भारत एक ऐसा देश है जो अपनी विविध सांस्कृतिक विरासत और उत्सवों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। यहाँ, हर एक त्योहार बड़े अनोखे तरीके से मनाया जिसके कारण दुनिया भर से लोग यहां त्योहारों को देखने आते हैं। इन्हीं अनोखे त्योहारों में से एक त्योहार है "छठ पूजा"। छठ पूजा एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे उत्तर भारत के कई राज्यों में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस ब्लॉग से आप जानेंगे छठ पूजा का महत्व, उसके तौर तरीके एवं पूजा की विधी और सामग्री।
छठ पूजा कब है:
छठ पूजा हर साल शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। यह पूजा चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) और कार्तिक मास (अक्टूबर-नवम्बर) के बीच दो बार मनाई जाती है। पहली बार छठ पूजा चैत्र मास में छठ तिथि को मनाई जाती है, जिसे "छठ छई" कहा जाता है। दूसरी बार यह पूजा कार्तिक मास में कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है, जिसे "खराग छठ" कहा जाता है। इन दोनों अवसरों पर, लोग सूर्यकुंड (पूर्व) या कोषी नदी (पश्चिम) के किनारे जाकर छठ पूजा करते हैं।
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है:
छठ पूजा का महत्व पौराणिक समय से चला आ रहा है, जिसमें सूर्यदेव की पूजा कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्यदेव की प्रसन्नता प्राप्त करना और उनकी शक्ति और सौभाग्य की वृद्धि की आशा होती है। छठ पूजा के दौरान, माँ छठी महागौरी और सूर्यदेव का व्रत रखा जाता है, जिसमें व्रती निर्जल सूर्यदेव का पूजन करती है ।
छठ पूजा सामग्री:
छठ पूजा के लिए विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है जो इस उत्सव को पूर्ण बनाती है। यहाँ हम छठ पूजा के सामग्री की एक सूची प्रस्तुत कर रहे हैं:
पूरे परिवार को नए कपड़े पहनने चाहिए, खासकर व्रत करने वाले व्यक्ति को।
छठ पूजा अर्थात दउरी में प्रसाद रखने के लिए बांस की दो बड़ी टोकरियाँ।
सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बांस या पीतल से बने बर्तन का उपयोग करना चाहिए।
दूध और गंगाजल के अर्घ्य के लिए एक गिलास, लोटा और थाली सेट होना चाहिए।
नारियल जिस्में जल भरा हुआ हो
पाँच पत्तेदार गन्ने के तने
चावल
बारह दीपक या दीये
रोशनी, कुमकुम और अगरबत्ती
सिन्दूर
एक केले का पत्ता
केला, सेब, सिंघाड़ा, हल्दी, मूली और अदरक के पौधे, शकरकंद और सुथनी (रतालू प्रजाति)
सुपारी
शहद और मिठाई
गुड़ (छठी मैया को प्रसाद बनाने के लिए चीनी की जगह गुड़ का उपयोग किया जाता है)
गेहूं और चावल का आटा
गंगाजल और दूध
ठेकुआ
छठ पूजा के दौरान, व्रती एक बांस की टोकरी में छठी महागौरी की मूर्ति ऱखकर उनकी पूजा करती हैं। इस त्यौहार में ख़ासतौर पर चावल, दलिया, चना, गुड़, और दूध का उपयोग किया जाता है। इन सामग्रियों से वे व्रत के दौरान भोजन बनाते हैं। छठ पूजा के दौरान घर को सजाने के लिए खास रूप से फूल, दीपक, और रंगों का उपयोग किया जाता है। घर को सजाने का उद्देश्य पूजा का माहौल बनाना होता है। छठ पूजा के दौरान, व्रती को भोजन बनाने और सूर्यदेव का पूजन करने के लिए बर्तन और छलना की आवश्यकता होती है।
छठ पूजा के दौरान, व्रती विशेष रूप से लकड़ी का उपयोग करती हैं जिनसे वे सूर्यदेव के पूजन क��� लिए झूला बनाती हैं। छठ पूजा के इन सामग्रियों का सवाल समय के साथ बदलता है, लेकिन इनका महत्व हमेशा बरकरार रहता है। यह पूजा न केवल एक धार्मिक अद्वितीयता है, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक अद्वितीयता भी है जो हमारे समृद्ध और भारतीय संस्कृति का हिस्सा है।
छठ पूजा विधि:
दिन 1: नहाय खाय (छठ पूजा शुरू)
पहले दिन, भक्त उषा काल के पहले सूर्योदय से पहले, नदी या जलस्रोत में स्नान करते हैं। स्नान के बाद, वे घर लौटकर खुद के लिए एक विशेष भोजन तैयार करते हैं, जिसमें चावल, दाल (लेंटिल्स), और कद्दू शामिल होते हैं। इस भोजन को सूर्य देव को चढ़ाया जाता है, और भक्त दिन भर उपवास करते हैं।
दिन 2: लोहंडा और खरना (बिना पानी के व्रत)
दूसरे दिन, भक्त निर्जल उपवास करते हैं। शाम को, वे थेकुआ (गेहूं के आटे और गुड़ से बनी मिठाई) का प्रसाद तैयार करते हैं। सूर्यास्त होने से पहले, वे इस प्रसाद को खाकर उनका उपवास तोड़ते हैं।
दिन 3: संध्या अर्घ्य (सूर्य देव को शाम का अर्घ्य)
भक्त अपनी संध्या की अर्घ्य क्रिया सूर्यास्त के समय करते हैं। वे कमर तक पानी में खड़े होते हैं और फल, थेकुआ, गन्ना, और नारियल का अर्घ्य सूर्य देव को देते हैं।यह आमतौर पर नदी के किनारे, तालाबों, या अन्य जल स्रोतों के किनारे किया जाता है।
दिन 4: उषा अर्घ्य (सूर्य भगवान को सुबह का अर्घ्य)
छठ पूजा के आखिरी दिन पर, भक्त सुबह जल्दी उठकर सूर्योदय के समय नदी किनारे जाते हैं। वे सूर्योदय के साथ अर्घ्य (पानी के साथ पूजा) करते हैं, साथ में फल और थेकुआ के साथ उपवास तोड़ते हैं
और च्हठ पूजा समाप्त करते हैं ।
प्रसाद ग्रहण करना:
पूजा करने के बाद, भक्त प्रसाद को अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करते हैं। प्रसाद को पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच बाँटना शुभ माना जाता है।
छठ कथा:
पूजा के दौरान, भक्त अक्सर छठ कथा पढ़ते हैं, जिसमें छठ मैया (सूर्य देव की पुत्री उषा) और उनकी तपस्या की कहानी सुनाई जाती है।
भारतीय परंपराओं और समृद्ध विरासत के गौरव का जश्न मनाते हुए, प्रभु श्रीराम- इन्सेंस विद अ स्टोरी अनूठी सुगंध तैयार करते हैं। आइए और उन सुगंधों का अनुभव करें जो भारत की कहानियाँ बयान करती हैं।
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छठ सूर्य, प्रकृति की जीवन शक्ति को दर्शाता है: पीएम मोदी
छठ सूर्य, प्रकृति की जीवन शक्ति को दर्शाता है: पीएम मोदी
एक्सप्रेस समाचार सेवा
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 94वें संस्करण को संबोधित किया। छठ पूजा के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “सूर्य की पूजा करने की परंपरा इस बात का प्रमाण है कि हमारी संस्कृति और आस्था प्रकृति से कितनी गहरी जुड़ी हुई है। यह पूजा हमारे जीवन में सूर्य के प्रकाश के महत्व पर प्रकाश डालती है।”
मोदी ने कहा कि यह उत्सव…
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मुख्यमंत्री योगी ने छठ पूजा का बताया महत्व, कहा- छठी माता सामाजिक समरसता की सबसे बड़ी प्रतिमूर्ति
मुख्यमंत्री योगी ने छठ पूजा का बताया महत्व, कहा- छठी माता सामाजिक समरसता की सबसे बड़ी प्रतिमूर्ति
छवि स्रोत: पीटीआई
योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो)
उतार प्रदेश: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छत्य पूजा का महत्वपूर्ण वर्णन किया जो संपूर्ण लोक को साथ-साथ संगति पर्व, प्रकृति के साथ मिलकर ग्रह देवता सूर्य की उपासना की हम्मेथ्स से मिलकर बनता है। । उनth -kana छठी छठी kana की की से ही हम लोग लोग इस इस आस आस से जुड़े जुड़े जुड़े जुड़े से
‘सूर्य के संसार की कल्पना भी नहीं हो…
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Chhath Puja 2022: छठ पूजा क्यों मनाई जाती है? जानिए छठ के चार दिनों की तिथि, इतिहास और महत्व
Chhath Puja 2022: छठ पूजा क्यों मनाई जाती है? जानिए छठ के चार दिनों की तिथि, इतिहास और महत्व
Chhath Puja 2022: इस आर्टिकल में हम आपके छठ पूजा की तिथि, इतिहास और महत्व के बारे में बता रहे हैं.
chhath puja 2022 historical past: छठ पूजा का चार दिवसीय त्योहार नहाय खाय और खरना के साथ शुरू हो चुका है. बता दें कि 28 अक्टूबर को छठ पूजा का नहाय-खाय हुआ. जबकि छठ पर्व का खरना पूजा 29 अक्टूबर को यानी आज है. इसके बाद कल यानी 30 अक्टूबर को संध्याकारीन अर्घ्य दिया जाएगा. वहीं छठ पूजा के अंतिम दिन यानी…
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छठ पूजा दिवस 4 उषा अर्घ्य: जानिए महत्व, पूजा विधि और सूर्य पूजन का मंत्र
छठ पूजा दिवस 4 उषा अर्घ्य: जानिए महत्व, पूजा विधि और सूर्य पूजन का मंत्र
छवि स्रोत: TWITTER/DESI_THUG1 छठ पूजा पर भक्त सूर्य को अर्घ्य देते हैं
चार दिवसीय छठ पूजा 31 अक्टूबर को समाप्त होगी और भक्तों ने सूर्य को अर्घ्य दिया। छठ पूजा के चौथे दिन को उषा अर्घ्य या पराना दिन के रूप में जाना जाता है। इस दिन कुछ भक्त छठ के 36 घंटे के कठिन उपवास को भी तोड़ेंगे। 31 अक्टूबर को उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाएगा और जल तट के पास पूजा-अर्चना की जाएगी। महिलाएं इस त्योहार को अपने…
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छठ पर्व 🙏🏻
*दुनिया का इकलौता ऐसा पावन पर्व जिसकी महत्ता दिन ब दिन बढ़ती जा रही है*।आज ये पर्व हिंदुस्तान ,मलेशिया के अलावे लंदन,अमेरिका में भी बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है।
*ये छठ पूजा जरुरी है*
*धर्म के लिए नहीं*,
*अपितु*..
हम-आप सभी के लिए
जो अपनी जड़ों से कट रहे हैं ।
अपनी परंपरा, सभ्यता,संस्कृति, परिवार से दूर होते जा रहे है।
*ये छठ जरुरी है*
उन बेटों के लिए
जिनके घर आने का ये बहाना है ।
*ये छठ जरुरी है*
उस माँ के लिए
जिन्हें अपनी संतान को देखे
महीनों हो जाते हैं,
उस परिवार के लिये
जो आज टुकड़ो में बंट गया है ।
*ये छठ जरुरी है*
उस आजकल की नई बह��/पुतोहु
के लिए
जिन्हें नहीं पता कि
दो कमरों से बड़ा भी घर होता है ।
*ये छठ जरुरी है*
उनके लिए जिन्होंने नदियों को
सिर्फ किताबों में ही देखा है ।
*ये छठ जरुरी है*
उस परंपरा को ज़िंदा रखने के लिए
जो स���ानता की वकालत करता है ।
*ये छठ जरुरी है*
जो बताता है कि
बिना पुरोहित/ब्राह्मण भी पूजा हो सकती है ।
*ये छठ जरुरी है*
जो सिर्फ उगते सूरज को ही नहीं
डूबते सूरज को भी प्रणाम करना सिखाता है ।
*ये छठ जरुरी है*
गागर , निम्बू और सुथनी जैसे
फलों को जिन्दा रखने के लिए ।
*ये छठ जरुरी है*
सूप और दउरा को
बनाने वालों के लिए,
ये बताने के लिए कि,
इस समाज में उनका भी महत्व है ।
*ये छठ जरुरी है*
उन दंभी पुरुषों के लिए
जो नारी को कमज़ोर समझते हैं ।
*ये छठ जरुरी है*
भारतीयों के योगदान
और हिन्दुओ के सम्मान के लिए ।
*ये छठ जरुरी है*
सांस्कृतिक विरासत और आस्था को
बनाये रखने के लिए ।
*ये छठ जरुरी है*
परिवार तथा समाज में
एकता एवं एकरूपता के लिए ।
II संयमित एवं संतुलित व्यवहार
=सुखमय जीवन का आधार II जय छठी मैया।। 🙏🏻
🙏 *ये छठ है। ये हठ है। ये मानवता की हठ है।*🙏
*तमाम पाखंडों से दूर प्रकृति से जुड़ने की हठ है।* नदी में घुलने की हठ है। रवि के साथ जीने की हठ है। रवि का साथ देने की हठ है। कौन कहता है कि जो डूब गया सो छूट गया। कौन कहता है कि जो अस्त हो गया वो समाप्त हो गया। जैसे सूर्य अस्त होता है वैसे फिर उदय भी होता है। अगर एक सभ्यता समाप्त होती है तो दूसरी जन्म लेती है। अगर आत्मा अस्त होती है तो वो फिर उदय भी होती है । जो मरता है वो फिर जन्म लेता है। *जो डूबता है वो फिर उभरता है। जो अस्त होता है वो फिर उदयमान होता है।* जो ढलता है वो फिर खिलता भी है। यही चक्र छठ है। यही प्राकृतिक सिद्धांत छठ का मूल है। यही भारतीय संस्कृति है। *छठ इसी प्रकृति चक्र और जीवन चक्र को समझने का पर्व है।*
छठ अंत और प्रारंभ की समग्रता को समान भाव से जीवन चक्र का हिस्सा मानना है। पूजा दोनों की होनी है। प्रारम्भ की भी और अंत की भी। छठ प्रकृति चक्र की इसी शाश्वतता की रचना है, मानव सभ्यता की अमर होने की कल्पना है तो आत्मा की अजय होने की परिकल्पना है। छठ सिर्फ महापर्व नहीं है छठ जीवन पर्व है। जीवन के नियमों को बनाने का संकल्प छठ है। उन नियमों का फिर पालन छठ है। अपनों का साथ, अपनों की पूजा छठ है। *घर की तरफ लौटने का नाम छठ है।* सात्विकता का सामूहिक संकल्प छठ है। जो गलती हुई हो, जो गलती करते हों वो अब नहीं दोहराने का नाम छठ है। *अपराधी का अपराध ना करना छठ है। प्रकृति का हनन रोकना छठ है।*
👉 *गन्दगी, काम, क्रोध, लोभ को त्यागना छठ है।* नैतिक मूल्यों को अपनाने का नाम छठ है। सुख सुविधा को त्यागकर कष्ट को पहचानने का नाम छठ है। शारीरिक और मानसिक संघर्ष का नाम छठ है। छठ सिर्फ प्रकृति की पूजा नहीं है। ये व्यक्ति की भी पूजा है। व्यक्ति प्रकृति का ही तो अंग है। छठ प्रकृति के हर उस अंग की उपासना है जो हठी है। जिसमें कुछ कर गुजरने की , *कभी निराश न होने की, कभी हार ना मानने की, डूब कर फिर खिलने की , गिर कर फिर उठने की हठ है।* ये हठ नदियों में है, ये हठ बहते जल में है, ये हठ अस्तोदय होते सूर्य में है, ये हठ किसान की खेती में है, ये हठ छठ व्रतियों में है।
👉इसलिए छठ नदियों की पूजा है, सूर्य की पूजा है, परम्पराओं की पूजा है। अपने खेत से उगे उस केले के उगने की, गन्ने के जन्म लेने की, सूप को बुनने की, दौरा को उठाने की, निर्जल अर्घ्य देने की पूजा है। व्रत करने वाले व्रतियों की पूजा है। *क्योंकि छठ व्रती भी उतने ही पूज्यनीय है जितनी की छठी मइया और उनके भास्कर भइया।* छठ प्रत्यूषा की पूजा है तो ऊषा की भी पूजा है। ये जल की पूजा है तो वायु की भी पूजा है। व्यक्ति के कठोर बनने की प्रक्रिया है। ४ दिनों तक होने वाले तप की पूजा है। छठ में कला भी है और कृति भी है। वास्तव में छठ सिर्फ पूजा नहीं है ये आध्यात्मिक क्रिया है।
👉व्यक्ति को अपनी प्रकृति से जोडने की प्रक्रिया है। ये प्रक्रिया योग साधना जैसी है। *इसमें संपूर्ण योग है। शरीर और मन को पूरी तरह साधने वाला योग है। इसमें यम भी है इसमें नियम भी हैं। कम से कम साधन उपयोग करने का नियम है, सुखद शैय्या को त्यागने का नियम है तो तामसिक भोज को त्यागने का नियम भी है। काम, क्रोध, लोभ से दूर विचारों में सत्यता और ब्रह्मचर्य का यम भी है।* छठ का अर्घ्य आसन स्वरूप है। शरीर को साधने का आसन है, जल के अंदर उतर कर कमर तक पानी में लम्बे समय तक खड़ा रहना योगासन है। पानी में सूर्य देव को अर्घ्य देकर पंच परिक्रमा कठिन शारीरिक आसन है। छठ में अगर आसन है तो प्राणायाम भी है। कठिन छठ व्रत बिना श्वास उपासना के संभव नहीं है। सूर्योपासना श्वास नियंत्रण से ही संभव है। नियंत्रण तो खान पान का भी है। अन्न जल त्याग कर दूसरे दिन एकान्त में खरना ग्रहण करने का अनुशासन है। ये अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करने जैसा है। इसलिए छठ में प्रत्याहार भी है। छठ के केन्द्र में सूर्य पूजा और व्रत है। चारों दिन की धारणा में आदित्य का मूर्त रूप है। निर्जल व्रत चंचल मन को स्थायित्व प्रदान करता है। व्रती ध्यान मग्न होता है। ध्यान मग्न व्रती आदित्य की धारणा में सूर्य समाधि की और अग्रसर होता है। *छठ अपनी संपूर्णता में बुद्ध के अष्टांग योग की तरफ बढ़ता दिखाई देता रहता है।*
🙏उस महान दृश्य की कल्पना कीजिए जब अपने आराध्य भगवान भास्कर को मनुजता साहस दे रही होती है।🙏 वो डूबते भास्कर को अर्घ्य देती है। प्रणाम करती है। शक्ति देती है। भास्कर भगवान है। ईश्वर की कल्पना है। सूर्य अपने भक्तों से अपने अस्तगामी पथ पर मिलने वाली इस अतुल्य मानवीय शक्ति को देख कर जरूर भावुक होते होंगे। डूबते सूरज को अर्घ्य देते हजारों लोगों को देख कर सूर्य की ओर देखो तो सूर्य भी शक्तिमानी दिखने लगते हैं। ढलते सूरज भी स्वाभिमानी लगने लगते हैं। ढलती, गुजरती किरणें भी प्रफुल्लित सी चहक उठती हैं। अनवरत बहती नदियां भी इस अदभुत मानवीय शक्ति को निहारती रहती है। कुछ पल के लिए ठहर जाती है और अलौकिक आनंद में सहर्ष रम जाती हैं।
👉जब सूर्य समाधि में व्यक्ति स्वयं निर्जल होकर भास्कर को जल समर्पित करता है तो प्रकृति और व्यक्ति के अतुल्य समर्पण के दर्शन होते है। व्यक्ति के प्रकृति को स्वयं से ऊपर रखने के दर्शन के दर्शन होते है। इस दर्शन से यह भरोसा निकलता है कि *जब तक छठ है तब तक प्रकृति ही ईश्वर है, सूर्य ही ईश्वर है।* व्यक्ति प्रकृति का ही अंग है और प्रकृति को स्वयं से ऊपर भी रखता है। *छठ में व्यक्ति और प्रकृति का ये सम्बन्ध जैसे आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध दिखाता है।* छठ भारतीय संस्कृति के कृतज्ञता दर्शाने के दर्शन का भी नाम है। उत्तर भारत के एक बड़े भूभाग का जीवन दर्शन सिर्फ और सिर्फ मां गंगा, उनकी बहनों और भगवान भास्कर की धुरी पर घूमता है।
नदियों से मिले जल और सूर्य से मिली किरणों ने हमेशा से मानवता को पाला और पोषा है। बड़ी बड़ी सभ्यताएं और संस्कृतियां नदियों और सूर्य के परस्पर समन्वय से ही विकसित हो पाई है। छठ इन नदियों, तालाबों के जल और सूर्य की किरणों को हमारी कृतज्ञता दर्शाने का तरीका है। इस महापर्व के माध्यम से पूरी की पूरी उत्तर भारतीय संस्कृति माँ गंगा, यमुना, सोन, घाघरा, सरयू, गंडक ना जाने और कितनी असंख्य धाराओं, जलाशयों, पोखरों, तालाबों की ओर अपनी कृतज्ञता प्रकट कर रही होती है। *ये हमारी संस्कृति का दर्शन है कि हम कृतज्ञ हैं उस अस्त होते रवि के और उदय होते भास्कर के और उस कृतज्ञता को छठ महापर्व के रूप में प्रकट भी कर रहे हैं।*
👉जरा सोचिए *जब एक साथ हम सभी सूर्य को अर्घ्य देंगे तो कितनी विशाल सामूहिक कृतज्ञता प्रकट होगी।* पूरी की पूरी एक सभ्यता और संस्कृति नतमस्तक होगी इन प्राकृतिक स्रोतों के सामने। *हम बता रहे होंगे कि आप हैं तो हम हैं। नदियां हैं तो हम हैं। सूर्य हैं तो हम हैं। जलाशय हैं तो हम हैं।* इस सामूहिक कृतज्ञता को दर्शाना ही हमारा उत्सव है, पर्व है, त्यौहार है। ये कृतज्ञता हम अपने मेहनत से उगाए केले, गन्ने और मन से बनाए खरना और ठेकुआ के लोकमन के माध्यम से दर्शा रहे होंगे। लोकमन का छठ वो अदृश्य सूर्याकर्षण भी है जो हर व्यक्ति को सूर्य की तरफ खींचता है ये शायद वही गुरुत्वाकर्षण है जिससे सूर्य पृथ्वी को अपनी ओर खींचता है। छठ में गंगाकर्षण भी है जो पूरे समाज को नदियों और जलाशयों की तरफ मोड़ता है।
*नदियों और सूर्य की तरफ मुड़ता समाज अपनी पुरातन सामाजिक चेतना को जगाता रहता है।* जीवन शैली में होने वाले बदलावों से अपनी सांस्कृतिक चेतना पर आंच नहीं आने देता है। अक्षुण्ण लोक संस्कृति ही समाज के संगठित स्वरूप का निर्माण करती है और उसे समय समय पर विघटन से बचाती है। संगठित समाज लोकपर्व के माध्यम से ही अपने अंदर आई दरारों को भरने का काम करता है। अपने आप को पुनः स्वस्थ करता है।
नदियों पर आया समाज, सूर्य को अर्घ्य समर्पित करती संस्कृति वहां उन घाटों पर एक सामाजिक संवाद करती भी दिखती है। *इतना बड़ा समाज एक जगह एक समय पर एक विषयवस्तु पर एक राय होता है।* सब प्रकृति के सामने नतमस्तक होते हैं। अपनी अपनी कृतज्ञता प्रकट कर रहे होते हैं। कौन किस रंग का है, किस जाति का है, किस वर्ण से है और कितना अर्थ लेकर जीवन यापन कर रहा है ये सब सूर्य के सामने निरर्थक हो जाता है।
👉 छठ पूजा ना सिर्फ सामाजिक संवाद कराती है अपितु समाज में आपसी आकर्षण बढ़ा कर समरसता लाती है। *वर्ण, जाति , रंग भेद से कहीं ऊपर उठ जाता है सामाजिक संवाद।*
हमें ज़रूरत है तो छठ जैसे पर्वों को संभालने की, उन्हें अगली पीढि़यों तक पहुंचाने की, लोक मानस के इस महापर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाने की। हमें ज़रूरत है तो छठ में निहित तत्वों के मूल अर्थों को समझने की, उन अर्थों के व्यापक विस्तार की, उस विस्तार को सामाजिक स्वीकार्यता दिलाने की, स्वीकृत विस्तार को लोक मन में ढालने की, छठ को हमेशा मनाते रहने की, लोक पर्व के माध्यम से सशक्त समाज और जाग्रत राष्ट्र को बनाने की, छठ के माध्यम से गंगा की संस्कृति को विश्व की सबसे श्रेष्ठ संस्कृति बनाने की।
*लोकआस्था के अभूतपूर्व महापर्व छठ की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।*
साभार- व्हाट्सएप एप से।
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Nahe Khaye 2022 Date: छठ पूजा में कब स्नान करें? जानिए तारीख और महत्व
Nahe Khaye 2022 Date: छठ पूजा में कब स्नान करें? जानिए तारीख और महत्व
छठ पूजा नेह खाए 2022: इस बार छठ पूजा 30 अक्टूबर 2022 को है। छठ पूजा, जो चार दिनों तक चलती है, नहे खाय परंपरा से शुरू होती है। छठ कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यानी 28 अक्टूबर 2022 को स्नान कर शुरू होगा और सप्तमी तिथि के दिन यानी 31 अक्टूबर 2022 को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होगा. आस्था के इस महान पर्व पर महिलाएं संतान सुख, लंबी आयु और उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ निर्ज…
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अगहनी छठ व्रत के अवसर पर व्रतियों ने भगवान भास्कर को दिया अर्ध्य, जानें क्या है महत्व?
अगहनी छठ व्रत के अवसर पर व्रतियों ने भगवान भास्कर को दिया अर्ध्य, जानें क्या है महत्व?
Sheikhpura: बिहार में हिंदुओं के पवित्र त्योहार छठ पूजा का विशेष महत्व है। यूँ तो ये त्योहार कार्तिक मास में मनाया है। पर कुछ लोग इस त्योहार को चैत्र एवं अगहन मास में भी मनाते हैं।
अगहनी छठ पूजा के अवसर पर आज शेखोपुरसराय नगर पंचायत के नीमी गांव के पंचार्क सूर्य मंदिर स्थित तालाब में रविवार को छठ वर्तियों ने भगवान भास्कर को अर्ध्य अर्पण किया।
इस बाबत इसकी जानकारी देते हुए मंदिर के पुजारी प्रेमभूषण…
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जय जोहार संगवारी मैं हूं हर्ष आप सभी का स्वागत है छत्तीसगढ़ राइडर परिवार में दोस्तों आज हम लाए हैं और रायगढ़ का छठ पूजा का वीडियो जो कि छठ पूजा का तीसरा दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है उसका वीडियो दोस्तों छठ पूजा वर्ष में दो बार मनाये जाने वाले इस पर्व को पूर्ण आस्था और श्रद्धा से मनाया जाता है| पहला छठ पर्व चैत्र माह में मनाया जाता है और दूसरा कार्तिक माह में| यह पर्व मूलतः सूर्यदेव की पूजा के लिए प्रसिद्ध है| रामायण और महाभारत जैसी पौराणिक शास्त्रों में भी इस पावन पर्व का उल्लेख है| हिन्दू धर्म में इस पर्व का एक अलग ही महत्व है, जिसे पुरुष और स्त्री बहुत ही सहजता से पूरा करते है| आइये जानते है इस पर्व के हर दिन के महत्व के बारे में: 1. पहला दिन: ‘नहाय खाय’ के नाम से प्रशिद्ध इस दिन को छठ पूजा का पहला दिन माना जाता है| इस दिन नहाने और खाने की विधि की जाती है और आसपास के माहौल को साफ सुथरा किया जाता है| इस दिन लोग अपने घरों और बर्तनों को साफ़ करते है और शुद्ध-शाकाहारी भोजन कर इस पर्व का आरम्भ करते है| 2. दूसरा दिन: छठ पूजा के दुसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है| इस दिन खरना की विधि की जाती है| ‘खरना’ का असली मतलब पुरे दिन का उपवास होता है| इस दिन व्रती व्यक्ति निराजल उपवास रखते है| शाम होने पर साफ सुथरे बर्तनों और मिट्टी के चुल्हे पर गुड़ के चावल, गुड़ की खीर और पुड़ीयाँ बनायी जाती है और इन्हें प्रसाद स्वरुप बांटा जाता है| 3. तीसरा दिन: इस दिन शाम को भगवान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है| सूर्य षष्ठी के नाम से प्रशिद्ध इस दिन को छठ पूजा के तीसरे दिन के रूप में मनाया जाता है| इस पावन दिन को पुरे दिन निराजल उपवास रखा जाता है और शाम में डूबते सूर्य को अर्ग दिया जाता है| पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शाम के अर्ग के बाद छठी माता के गीत गाये जाते है और व्रत कथाये सुनी जाती है| 4.चौथा दिन: छठ पूजा के चौथे दिन सुबह सूर्योदय के वक़्त भगवान सूर्य को अर्ग दिया जाता है| आज के दिन सूर्य निकलने से पहले ही व्रती व्यक्ति को घाट पर पहुचना होता है और उगते हुए सूर्य को अर्ग देना होता है| अर्ग देने के तुरंत बाद छठी माता से घर-परिवार की सुख-शांति और संतान की रक्षा का वरदान माँगा जाता है| इस पावन पूजन के बाद सभी में प्रसाद बांट कर व्रती खुद भी प्रसाद खाकर व्रत खोलते है| छठ के महापर्व पर सब रहुआ लोगिन के ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं छठी माई सब केहू के मनोकामना पूरा करे जय छठी माई video link https://youtu.be/2Tf1nCcsO3o #chhatpuja2021 #chhatpooja #chhatghatraigarh (at Raigarh) https://www.instagram.com/p/CWLwxcKMrn1/?utm_medium=tumblr
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