#चुनावआयोगकेअध्यक्ष
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म्यांमार जिसे हम वर्मा के नाम से भी जानते है -
म्यांमार दक्षिण एशिया का एक देश है |इसका पुराना अंग्रेज़ी नाम बर्मा था जो यहाँ के सर्वाधिक मात्रा में आबाद जाति (नस्ल) बर्मी के नाम पर रखा गया था|इसके उत्तर में चीन, पश्चिम में भारत, बांग्लादेश एवम् हिन्द महासागर तथा ��क्षिण एवंम पूर्व की दिशा में थाईलैंड एवं लाओस देश स्थित हैं।यह भारत एवम चीन के बीच एक रोधक राज्य का भी काम करता है। इसकी राजधानी नाएप्यीडॉ और सबसे बड़ा शहर देश की पूर्व राजधानी यांगून है, जिसका पूर्व नाम रंगून था| म्यांमार को सात राज्य और सात मण्डल मे विभाजित किया गया है। जिस क्षेत्र मे बर्मी लोगों की जनसंख्या अधिक है उसे मण्डल कहा जाता है। राज्य वह मण्डल है, जो किसी विशेष जातीय अल्पसंख्यकों का घर हो।यहाँ 2011 पहले तक सैन्य शासन था |आज जब खबर आयी की म्यांमार में तख्तापलट हो गया है तो हम भी सोचों की आपको इसके बारे प्रकाश डाला जाये |
म्यांमार में सेना और सरकार के बीच टकराव -
म्यांमार में सेना और सरकार के बीच नवम्बर से ही तनाव देखने को मिल रहा था |क्योकि म्यांमार में नवंबर में ही आम चुनाव हुए थे और उस चुनाव में चुनावी नतीजों में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने 83% सीटें जीत ली थीं| इस चुनाव को कई लोगों को आंग सान सू ची सरकार के जनमत संग्रह के रूप में देखा| साल 2011 में सैन्य शासन ख़त्म होने के बाद से ये दूसरा चुनाव था|चुनाव में सू ची की पार्टी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने भारी अंतर से जीत हासिल की थी लेकिन वहाँ की सेना का दावा था कि चुनाव में धोखाधड़ी हुई है |सेना की ओर से सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति और चुनाव आयोग के अध्यक्ष के ख़िलाफ़ शिकायत की गई थी|
सेना ने लगाया था सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप -
हाल ही में सेना द्वारा कथित भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने की धमकी देने के बाद तख़्तापलट की आशंकाएं पैदा हो गई हैं|हालांकि, चुनाव आयोग ने इन सभी आरोपों का खंडन किया था |लेकिन सोमवार जैसे ही ये खबर आयी है पूरी दुनिया में हलचल पैदा हो गयी है |सेना ने सोमवार को कहा कि उसने सत्ता सैन्य प्रमुख मिन आंग लाइंग को सौंप दी है|सेना का ये क़दम दस साल पहले उसी के बनाए संविधान का उल्लंघन है |उनका कहना है कि सेना ने पिछले शनिवार को ही कहा था कि वो संविधान का पालन करेगी |इस संविधान के तहत सेना को आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार है लेकिन आंग सान सू ची जैसे नेताओं को हिरासत में लेना एक ख़तरनाक और उकसाने वाला कदम हो सकता है जिसका कड़ा विरोध देखा जा सकता है|
तख़्तापलट से नागरिकों क्यों हो रही है समस्या -
म्यांमार पे पूरी तरह सेना का शासन हो गया है और देश में आपातकाल लग गया है | म्यांमार के बड़े शहरों में मोबाइल इंटरनेट डेटा और ��ोन सर्विस बंद हो गई हैं|सरकारी चैनल एमआरटीवी ने तकनीकी समस्याओं का हवाला दिया है और प्रसारण बंद हो चुका है|म्यांमार की राजधानी नेपिडॉ के साथ संपर्क टूट चुका है और वहां संपर्क साधना मुश्किल हो गया है|म्यांमार की पूर्व राजधानी और सबसे बड़े शहर यंगून में फोन लाइन और इंटरनेट कनेक्शन सीमित हो गया है|कई सेवा प्रदाताओं ने अपनी सेवाएं बंद करना शुरू कर दिया है|बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ टेलीविज़न समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रसारकों को ब्लॉक कर दिया गया है| और स्थानीय स्टेशन ऑफ़ एयर कर दिए गए हैं|यंगून में स्थानीय लोगों ने आने वाले दिनों में नकदी की कमी पड़ने की आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए एटीएम के सामने लाइन लगाना शुरू कर दिया है|जैसी लम्बी -लम्बी लाइन भारत में नोटबंदी के समय लगी थी |
आंग सान सू की की गिरफ़्तारी क्यों ?
आंग सान सू की म्यांमार की सर्वच्या नेता है |वे बर्मा (इस समय म्यांमार )के राष्ट्रपिता आंग सान की पुत्री हैं |उनका जन्म 19 जून 1945 को रंगून में हुआ था | आंग सान सू लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई प्रधानमंत्री, प्रमुख विपक्षी नेता और म्यांमार की नेशनल लीग फार डेमोक्रेसी की नेता रही है |लोकतंत्र के लिए आंग सान के संघर्ष का प्रतीक बर्मा में पिछले 20 वर्ष में कैद में बिताए गए 14 साल गवाह हैं। बर्मा की सैनिक सरकार ने उन्हें पिछले कई वर्षों से घर पर नजरबंद रखा हुआ था। इन्हें १३ नवम्बर २०१० को रिहा किया गया है।जैसा की मैंने बताया था की म्यांमार में 2011 से ही लोकतंत्र स्थापित किया गया था | उनके प���ता भी अंग्रेज़ों से लड़े थे थे लेकिन उनकी हत्या कर दी गयी थी | इनके खून में ही राजनीती थी |
आंग सान सू का भारत से कनेक्शन -
आंग सान सू का भारत से गहरा रिश्ता है |पिता की हत्या के बाद इनकी माता को म्यांमार में एक राजनीतिक शख्सियत के रूप में प्रसिद्ध मिली और इन्हे भारत और नेपाल की राजदूत नियुक्त किया गया |अपनी मां के साथ रह रही आंग सान सू की ने लेडी श्रीराम कॉलेज, नई दिल्ली से 1964 में राजनीति विज्ञान में स्नातक करी|वैसे तो सू पढ़ाई में बहुत अच्छी थी |आगे की पढाई ऑक्सफोर्ड में जारी रखते हुए दर्शन शास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र में 1969 में डिग्री हासिल की। स्नातक करने के बाद वह न्यूयॉर्क शहर में परिवार के एक दोस्त के साथ रहते हुए संयुक्त राष्ट्र में तीन साल के लिए काम किया|
आंग सान सू की राजनीती और परिवार पर प्रभाव -
1972 में आंग सान सू की ने तिब्बती संस्कृति के एक विद्वान और भूटान में रह रहे डॉ॰ माइकल ऐरिस से शादी की। उसके बाद सू ने लंदन में उन्होंने अपने पहले बेटे, अलेक्जेंडर ऐरिस, को जन्म दिया। उनका दूसरा बेटा किम 1977 में पैदा हुआ। इसके बाद उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ओरिएंटल और अफ्रीकन स्टडीज में से 1985 में पीएच .डी हासिल की।1988 में सू की बर्मा अपनी बीमार माँ की सेवा के लिए लौट आईं, लेकिन बाद में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। 1995 में क्रिसमस के दौरान माइकल की बर्मा में सू की आखिरी मुलाकात साबित हुई क्योंकि इसके बाद बर्मा( म्यांमार)सरकार ने माइकल को प्रवेश के लिए वीसा देने से इंकार कर दिया।
1997 में माइकल को प्रोस्टेट कैंसर होना पाया गया, जिसका बाद में उपचार किया गया। इसके बाद अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र संघ और पोप जान पाल द्वितीय द्वारा अपील किए जाने के बावजूद बर्मी सरकार ने उन्हें वीसा देने से यह कहकर इंकार कर दिया की उनके देश में उनके इलाज के लिए माकूल सुविधाएं नहीं हैं। इसके एवज में सू की को देश छोड़ने की इजाजत दे दी गई, लेकिन सू की ने देश में पुनः प्रवेश पर पाबंदी लगाए जाने की आशंका के मद्देनजर बर्मा छोड़कर नहीं गईं।माइकल का उनके 53वें जन्मदिन पर देहांत हो गया।1989 में अपनी पत्नी की नजरबंदी के बाद से माइकल उनसे केवल पाँच बार मिले। सू की के बच्चे आज अपनी मां से अलग ब्रिटेन में रहते हैं।इसलिए जब कभी आप संघर्ष करते हो तो बहुत कुछ दाँव पर लगाना पड़ता है | और तो और इन्हे शांति का नोबेल पुरस्कार भी मिल चूका है |अब देखना होगा की आगे म्यांमार की सैन्य शासन म्यांमार को कहा तक ले जाता है | हमारा काम है आप तक खबर के हर पहलु को पहुँचाना है |
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म्यांमार जिसे हम वर्मा के नाम से भी जानते है -
म्यांमार दक्षिण एशिया का एक देश है |इसका पुराना अंग्रेज़ी नाम बर्मा था जो यहाँ के सर्वाधिक मात्रा में आबाद जाति (नस्ल) बर्मी के नाम पर रखा गया था|इसके उत्तर में चीन, पश्चिम में भारत, बांग्लादेश एवम् हिन्द महासागर तथा दक्षिण एवंम पूर्व की दिशा में थाईलैंड एवं लाओस देश स्थित हैं।यह भारत एवम चीन के बीच एक रोधक राज्य का भी काम करता है। इसकी राजधानी नाएप्यीडॉ और सबसे बड़ा शहर देश की पूर्व राजधानी यांगून है, जिसका पूर्व नाम रंगून था| म्यांमार को सात राज्य और सात मण्डल मे विभाजित किया गया है। जिस क्षेत्र मे बर्मी लोगों की जनसंख्या अधिक है उसे मण्डल कहा जाता है। राज्य वह मण्डल है, जो किसी विशेष जातीय अल्पसंख्यकों का घर हो।यहाँ 2011 पहले तक सैन्य शासन था |आज जब खबर आयी की म्यांमार में तख्तापलट हो गया है तो हम भी सोचों की आपको इसके बारे प्रकाश डाला जाये |
म्यांमार में सेना और सरकार के बीच टकराव -
म्यांमार में सेना और सरकार के बीच नवम्बर से ही तनाव देखने को मिल रहा था |क्योकि म्यांमार में नवंबर में ही आम चुनाव हुए थे और उस चुनाव में चुनावी नतीजों में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने 83% सीटें जीत ली थीं| इस चुनाव को कई लोगों को आंग सान सू ची सरकार के जनमत संग्रह के रूप में देखा| साल 2011 में सैन्य शासन ख़त्म होने के बाद से ये दूसरा चुनाव था|चुनाव में सू ची की पार्टी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने भारी अंतर से जीत हासिल की थी लेकिन वहाँ की सेना का दावा था कि चुनाव में धोखाधड़ी हुई है |सेना की ओर से सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति और चुनाव आयोग के अध्यक्ष के ख़िलाफ़ शिकायत की गई थी|
सेना ने लगाया था सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप -
हाल ही में सेना द्वारा कथित भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने की धमकी देने के बाद तख़्तापलट की आशंकाएं पैदा हो गई हैं|हालांकि, चुनाव आयोग ने इन सभी आरोपों का खंडन किया था |लेकिन सोमवार जैसे ही ये खबर आयी है पूरी दुनिया में हलचल पैदा हो गयी है |सेना ने सोमवार को कहा कि उसने सत्ता सैन्य प्रमुख मिन आंग लाइंग को सौंप दी है|सेना का ये क़दम दस साल पहले उसी के बनाए संविधान का उल्लंघन है |उनका कहना है कि सेना ने पिछले शनिवार को ही कहा था कि वो संविधान का पालन करेगी |इस संविधान के तहत सेना को आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार है लेकिन आंग सान सू ची जैसे नेताओं को हिरासत में लेना एक ख़तरनाक और उकसाने वाला कदम हो सकता है जिसका कड़ा विरोध देखा जा सकता है|
तख़्तापलट से नागरिकों क्यों हो रही है समस्या -
म्यांमार पे पूरी तरह सेना का शासन हो गया है और देश में आपातकाल लग गया है | म्यांमार के बड़े शहरों में मोबाइल इंटरनेट डेटा और फोन सर्विस बंद हो गई हैं|सरकारी चैनल एमआरटीवी ने तकनीकी समस्याओं का हवाला दिया है और प्रसारण बंद हो चुका है|म्यांमार की राजधानी नेपिडॉ के साथ संपर्क टूट चुका है और वहां संपर्क साधना मुश्किल हो गया है|म्यांमार की पूर्व राजधानी और सबसे बड़े शहर यंगून में फोन लाइन और इंटरनेट कनेक्शन सीमित हो गया है|कई सेवा प्रदाताओं ने अपनी सेवाएं बंद करना शुरू कर दिया है|बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ टेलीविज़न समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रसारकों को ब्लॉक कर दिया गया है| और स्थानीय स्टेशन ऑफ़ एयर कर दिए गए हैं|यंगून में स्थानीय लोगों ने आने वाले दिनों में नकदी की कमी पड़ने की आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए एटीएम के सामने लाइन लगाना शुरू कर दिया है|जैसी लम्बी -लम्बी लाइन भारत में नोटबंदी के समय लगी थी |
आंग सान सू की की गिरफ़्तारी क्यों ?
आंग सान सू की म्यांमार की सर्वच्या नेता है |वे बर्मा (इस समय म्यांमार )के राष्ट्रपिता आंग सान की पुत्री हैं |उनका जन्म 19 जून 1945 को रंगून में हुआ था | आंग सान सू लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई प्रधानमंत्री, प्रमुख विपक्षी नेता और म्यांमार की नेशनल लीग फार डेमोक्रेसी की नेता रही है |लोकतंत्र के लिए आंग सान के संघर्ष का प्रतीक बर्मा में पिछले 20 वर्ष में कैद में बिताए गए 14 साल गवाह हैं। बर्मा की सैनिक सरकार ने उन्हें पिछले कई वर्षों से घर पर नजरबंद रखा हुआ था। इन्हें १३ नवम्बर २०१० को रिहा किया गया है।जैसा की मैंने बताया था की म्यांमार में 2011 से ही लोकतंत्र स्थापित किया गया था | उनके पिता भी अंग्रेज़ों से लड़े थे थे लेकिन उनकी हत्या कर दी गयी थी | इनके खून में ही राजनीती थी |
आंग सान सू का भारत से कनेक्शन -
आंग सान सू का भारत से गहरा रिश्ता है |पिता की हत्या के बाद इनकी माता को म्यांमार में एक राजनीतिक शख्सियत के रूप में प्रसिद्ध मिली और इन्हे भारत और नेपाल की राजदूत नियुक्त किया गया |अपनी मां के साथ रह रही आंग सान सू की ने लेडी श्रीराम कॉलेज, नई दिल्ली से 1964 में राजनीति विज्ञान में स्नातक करी|वैसे तो सू पढ़ाई में बहुत अच्छी थी |आगे की पढाई ऑक्सफोर्ड में जारी रखते हुए दर्शन शास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र में 1969 में डिग्री हासिल की। स्नातक करने के बाद वह न्यूयॉर्क शहर में परिवार के एक दोस्त के साथ रहते हुए संयुक्त राष्ट्र में तीन साल के लिए काम किया|
आंग सान सू की राजनीती और परिवार पर प्रभाव -
1972 में आंग सान सू की ने तिब्बती संस्कृति के एक विद्वान और भूटान में रह रहे डॉ॰ माइकल ऐरिस से शादी की। उसके बाद सू ने लंदन में उन्होंने अपने पहले बेटे, अलेक्जेंडर ऐरिस, को जन्म दिया। उनका दूसरा बेटा किम 1977 में पैदा हुआ। इसके बाद उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ओरिएंटल और अफ्रीकन स्टडीज में से 1985 में पीएच .डी हासिल की।1988 में सू की बर्मा अपनी बीमार माँ की सेवा के लिए लौट आईं, लेकिन बाद में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। 1995 में क्रिसमस के दौरान माइकल की बर्मा में सू की आखिरी मुलाकात साबित हुई क्योंकि इसके बाद बर्मा( म्यांमार)सरकार ने माइकल को प्रवेश के लिए वीसा देने से इंकार कर दिया।
1997 में माइकल को प्रोस्टेट कैंसर होना पाया गया, जिसका बाद में उपचार किया गया। इसके बाद अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र संघ और पोप जान पाल द्वितीय द्वारा अपील किए जाने के बावजूद बर्मी सरकार ने उन्हें वीसा देने से यह कहकर इंकार कर दिया की उनके देश में उनके इलाज के लिए माकूल सुविधाएं नहीं हैं। इसके एवज में सू की को देश छोड़ने की इजाजत दे दी गई, लेकिन सू की ने देश में पुनः प्रवेश पर पाबंदी लगाए जाने की आशंका के मद्देनजर बर्मा छोड़कर नहीं गईं।माइकल का उनके 53वें जन्मदिन पर देहांत हो गया।1989 में अपनी पत्नी की नजरबंदी के बाद से माइकल उनसे केवल पाँच बार मिले। सू की के बच्चे आज अपनी मां से अलग ब्रिटेन में रहते हैं।इसलिए जब कभी आप संघर्ष करते हो तो बहुत कुछ दाँव पर लगाना पड़ता है | और तो और इन्हे शांति का नोबेल पुरस्कार भी मिल चूका है |अब देखना होगा की आगे म्यांमार की सैन्य शासन म्यांमार को कहा तक ले जाता है | हमारा काम है आप तक खबर के हर पहलु को पहुँचाना है |
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