#चीन की कंपनियों से चंदा ले रही सरकार
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dainiksamachar · 1 year ago
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सत्ताधारी पार्टी को ही ज्यादा चंदा क्यों मिलता है... सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा तीखा सवाल
नई दिल्ली: चुनावी बॉन्ड स्कीम पर इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में दलीलें रखी जा रही हैं। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड योजना से सत्ताधारी दल को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है। इस पर केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सत्तारूढ़ दल को ज्यादा योगदान मिलना एक परिपाटी है। इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि आपके अनुसार, ऐसा क्यों है कि सत्ताधारी दल को चंदे का एक बड़ा हिस्सा मिलता है, इसका कारण क्या है? मेहता ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि जो भी पार्टी सत्तारूढ़ होती है उसे ज्यादा चंदा मिलता है। हालांकि उन्होंने कहा कि यह उनका व्यक्तिगत जवाब है, सरकार का जवाब नहीं है। जब चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने आंशिक गोपनीयता का हवाला दिया और कहा कि सत्ता में बैठे व्यक्ति के पास विवरण तक पहुंच हो सकती है, तो सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जानकारी पूरी तरह से गोपनीय है। पीठ ने कहा, ‘यह एक अस्पष्ट क्षेत्र है। आप ऐसा कह सकते हैं, दूसरा पक्ष इससे सहमत नहीं होगा।’ स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट का सवालसुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना के साथ समस्या यह है कि यह ‘सिलेक्टिव गुमनामी’ और ‘सिलेक्टिव गोपनीयता’ प्रदान करती है क्योंकि विवरण स्टेट बैंक के पास उपलब्ध रहता है और उन तक कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी पहुंच सकती हैं। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि योजना के साथ (इस तरह की) समस्या रहेगी अगर यह सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर नहीं प्रदान करती और अस्पष्टता से ग्रस्त है। केंद्र की दलीलकेंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि भारत सहित लगभग हर देश चुनावों में काले धन के इस्तेमाल की समस्या से जूझ रहा है और चुनावी बॉन्ड योजना मतदान प्रक्रिया में ‘अवैध धन’ के खतरे को खत्म करने का एक प्रयास है। संविधान पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत इस विशेष योजना को काले धन की समस्या से निपटने की दिशा में ��क एकल प्रयास के रूप में नहीं ले सकती है। मेहता ने डिजिटल भुगतान और वर्ष 2018 और 2021 के बीच 2.38 लाख ‘शेल कंपनियों’ के खिलाफ कार्रवाई सहित काला धन से निपटने के लिए सरकार द्��ारा उठाए गए कई कदमों पर प्रकाश डाला। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की सदस्यता वाली पीठ के समक्ष मेहता ने कहा, ‘आम तौर पर चुनावों और राजनीति में, विशेषकर चुनावों में काले धन का इस्तेमाल होता है...हर देश इस समस्या से जूझ रहा है। भारत भी इस समस्या से जूझ रहा है।’ पीठ राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दलीलें सुन रही है।उन्होंने अदालत में दायर अपनी लिखित दलील में कहा, ‘देश की चुनावी प्रक्रिया को चलाने में बेहिसाब नकदी (काला धन) का इस्तेमाल देश के लिए गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।’ डिजिटलीकरण की भूमिका का उल्लेख करते हुए मेहता ने कहा कि भारत में लगभग 75 करोड़ मोबाइल इंटरनेट यूजर हैं और हर तीन सेकंड में एक नया इंटरनेट यूजर जुड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘भारत में डिजिटल भुगतान की मात्रा अमेरिका और यूरोप की तुलना में लगभग सात गुना और चीन की तुलना में तीन गुना है।’मेहता ने कहा कि कई तरीकों को आजमाने के बावजूद प्रणालीगत विफलताओं के कारण काले धन के खतरे से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा जा सका है, इसलिए वर्तमान योजना बैंकिंग प्रणाली और चुनाव में सफेद धन को सुनिश्चित करने का एक विवेकपूर्ण प्रयास है। 'पारदर्शिता कम होती है'दिनभर चली सुनवाई के दौरान एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने तर्क दिया कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान की बुनियादी संरचना है और राजनीतिक दलों की गुमनाम ‘कॉर्पोरेट फंडिंग’, जो अनिवार्य रूप से पक्षपात के लिए दी गई रिश्वत है, सरकार की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली की जड़ पर प्रहार करती है। उन्होंने कहा कि चुनावी बॉन्ड गुमनाम कॉर्पोरेट फंडिंग का एक साधन है जो पारदर्शिता को कमजोर करता है और अपारदर्शिता को बढ़ावा देता है।न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, ‘कंपनी अधिनियम के तहत खाते वास्तविक आय का पता लगाने के उद्देश्य से रखे जाते हैं। ये आयकर खातों से अलग होते हैं। आम तौर पर कंपनी अधिनियम के तहत, मुनाफे को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की प्रवृत्ति होती है क्योंकि तब आपको बाजार में अधिक विश्वसनीयता और ऋण तक अधिक पहुंच मिलती है।’ उन्होंने कहा कि इसके विपरीत आयकर अधिनियम में कर बचाने की प्रवृत्ति है।एक अन्य हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने भी दिन के दौरान अपनी दलीलें दीं। उन्होंने कहा कि चुनावी बॉण्ड विशिष्ट हैं। इस पर पीठ ने कहा, यह जरूरी नहीं है। यह कहा गया कि बॉन्ड साल में कुछ… http://dlvr.it/SyG7vC
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shantinewshindi · 4 years ago
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पीएम केयर्स फंड का ब्योरा सार्वजनिक करे केंद्र, चीन की कंपनियों से चंदा ले रही सरकार: मदन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा ने कहा है कि मोदी सरकार के भ्रमपूर्ण बयान देशवासियों में चिंता उत्पन्न कर रहे हैं। रविवार शाम अपने आवास पर मीडिया से बातचीत में आरोप लगाया कि एक ओर गलवान घाटी... Source link
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jmyusuf · 6 years ago
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गवाँर होना बुरा नहीं ,गवाँर होके अर्थशास्त्री हो जाना खतरनाक है...
गवाँर होना बुरा नहीं ,गवाँर होके अर्थशास्त्री हो जाना खतरनाक है... निम्न बिन्दुओं पर ध्यान दीजिये और अगर देश से मुहब्बत है तो हर पॉइंट को आराम से पढ़िए और विचार कीजिये👇
(1)- जेट एयरवेज मामला -पिछले साल तक जेट एयरवेज एक लक्ज़री और कम्फर्टेबल फ्लाइट सेवा देने वाली कम्पनी के रूप में जानी जाती रही थी। मेरे नजरिये में वो बेस्ट थी, इंडिगो,स्पाइस,एयर इंडिया,इत्तिहाद में इत्तिहाद एयरवेज के बाद सबसे बेहतर जेट एयरवेज ही थी। फिर भी जेट डूब रही है ,अंतरास्ट्रीय उड़ानें बंद हो चुकी है और कम्पनी अपना फाइनल हिसाब तैयार कर रही है। हज़ारों बेरोजगार होंगे , अभी आटा और गीला होगा।
(2)- बीएसएनएल -सरकार को कर्ज देने वाली बीएसएनएल खुद घाटे में डूबी हुई है! चुनाव के बाद 57000 कर्मचारियों की छटनी करने का प्रस्ताव मंत्रालय की मेज पर पड़ा हुआ है ,चुनाव ख़त्म होते ही इस पर निर्णय भी हो जायेगा। सोचना पड़ेगा कि आखिर देश की एक मात्र सरकारी टेलिकॉम कंपनी और सिर्फ इसी के पास लैंडलाइन और ब्रॉडबैंड सुविधा देने की क्षमता है  वो कैसे डूब सकती है ? जी डूब सकती है ,जब देश का प्रधानमंत्री नीले कोट में प्राइवेट कंपनियों का प्रचार करे तो सरकारी संस्थाए ऐसे ही डूब कर मरती है।
(3)- HAL vs अनिल अम्बानी -भारतीय वायु सेना को एक से बढ़कर एक लड़ाकू विमान बना कर देने वाली हिंदुस्तान ऐरोमेटिक लिमिटेड कंपनी ऐसे हालत में है कि अपने कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ है। ऐसा भला कैसे हो सकता है कि देश की एकमात्र जेट बनाने वाली कम्पनी डूब जाये जिसका कोई प्रतिद्धंदी भी न हो ? जी डूब सकता है,मोदी जैसा प्रधानमंत्री है तो मुमकिन है। जब देश का प्रधानमंत्री एक दो परिवारों का चौकीदार बन जाये तो मुमकिन है। जब देश की संस्था (HAL) का नाम खुद प्रधानमंत्री कटवा दे और 10 दिन पहले बनी अनिल अम्बानी की कंपनी का नाम डलवा दे ,जो खुद ही अदालत में दिवालिया घोषित होने के लिए खड़ा हो तो देश की संस्थाए ऐसे ही बर्बाद होती है।
(4) इंडिया पोस्ट सर्विस - दुनिया क�� सबसे बड़ी पोस्टल सर्विस 15000 करोड़ के घाटे में है। देश की आधी आबादी को नहीं मालूम होगा कि देश के संचार मंत्रालय को कौन से मंत्री जी देख रहे हैं। कभी दिखे ही नहीं ,अपने विभाग की तरफ से कोई सन्देश देने,कोई कामयाबी दिखाने नजर नहीं आये। ऐसे में इतनी बड़ी संस्था का डूब जाना आम बात है।
(5) डूबते बैंक भागते करोड़ पति - एक तरफ बैंक करोड़पतियों के डूबते कर्ज के तले दब रहे है तो सरकार उन्ही पूंजीपतियों के कर्ज माफ़ करने में लगी हुई है ,मोदी सरकार ने 5.5 लाख करोड़ रूपये का कर्ज जो पूंजीपतियों को दिया गया था उसे राईट ऑफ कर दिया है यानि उनका लोन माफ़ कर दिया है। ये उस अमाउंट का चार गुना है जितना कि मोदी बिहार में बिहारियों के सामने बोली लगाकर आये थे कि विधानसभा में सरकार बनने पर वो बिहार को सवा सौ करोड़ का पैकेज देंगे ,जो आज तक नहीं दिया। 36 अरबपति व्यापारी जिनका व्यापार इंडिया ही नहीं विदेशों में भी फैला हुआ था ,वो बैंको का लोन लेकर भाग गए या भगा दिए गए। ऐसे में बैंको की हालत खराब होनी ही थी ,ठीक ठाक चल रहे बैंक को भिखारी हो चुके बैंक के साथ मर्ज कराया जा रहा है ,डर ये है कि कहीं ठीक ठीक वाले भी भिखारी न बन जायें।
(6 ) विश्व की चौथी सबसे बड़ी इकॉनमी बनाने का दंभ - श्रीमान मोदी महान मुट्ठी भींच कर बड़े बड़े शो में ये शो कर रहे हैं कि उन्होंने भारत को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकॉनामी बना दिया है। अच्छा जी! क्या करना पड़ता है इतनी बड़ी इकॉनामी बनाने के लिए ? जोर शोर से भाषण देना होता होगा ? विज्ञापन कराने होते होंगे ? अच्छा चलिए मान लेते हैं आपने बनाया और आपसे पहले इस देश की अर्थव्यवस्था सोडे की बोतल में बंद थी ,आप आये फिस्सस् करके बोतल खोली और लीजिये इकॉनामी बड़ी हो गयी। ये कैसी बड़ी इकॉनामी है कि जिसमें रोजगार नहीं है ? हालत इतने बुरे है कि अपने ही सांख्यिकी विभाग का डाटा छुपाते फिर रहे हैं ? अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना हमेशा से ही आसान काम रहा है।
(7)- रिजर्व बैंक की अनदेखी - देश में तीन लोग सबसे महत्पूर्ण पदों पर है। पहले प्रधानमंत्री दूसरे राष्ट्रपति और तीसरे RBI के गवर्नर। RBI के निर्णय समान्यतः केंद्रीय सरकारों से प्रभावित नहीं होते या केंद्र सरकार RBI पर दबाव नहीं बनाती ,लेकिन नोटबंदी जैसे घातक फैसले बिना RBI की रजामंदी के लिए गए ,जिसकी वजह से रघुराम राजन जैसे काबिल गवर्नर समय से पूर्व पद से हट गए। उसके बाद प्रधानमंत्री के सबसे विश्वसपात्र अम्बानी परिवार के ��जदीकी उर्जित पटेल को RBI का गवर्नर बनाया गया। शुरू में सब ठीक चला ,नोटबंदी का भी उन्होंने बचाव किया मगर धीरे धीरे वो भी केंद्र सरकार की मनमानियों से तंग आ गए। सरकार ने रिजर्व बैंक का रिजर्व ही छीन लिया।इससे पहले उर्जित पटेल इस्तीफा देकर चले गए। वो रिजर्व जिसका प्रयोग चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय नहीं किया गया , स्व.अटल जी ने देश से चंदा देने की अपील की मगर इस रिजर्व पर हाथ नहीं डाला मगर मोदी ने १/३ हिस्से को ले लिया। वो भी ऐसे हालत में जब वो डींगे हाकते फिर रहे हैं कि उन्होंने देश को बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है। हद है कि नहीं?
(8 )- चाटुकारों की सरकार- बीजेपी में योग्य लोगों की कमी नहीं है ,ऐसे लोग मौजूद है जो बेहतर तरीके से देश चला सकते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री को वो लोग ज्यादा भाते हैं जो उनका गुणगान करें। भले ही देश का भट्टा बैठ जाये। 
उदाहरण के लिए स्मृति ईरानी ,संबित पात्रा ,अरुण जेटली इत्यादि को ही देख लीजिए। स्मृति ईरानी हारी हुई उम्मीदवार है ,इंटर पास है और उन्हें आईआईएम IIT और तमाम शिक्षण संस्थाओं को चलाने की जिम्मेदारी दे दी गयी ,अरुण जेटली हारे हुए उम्मीदवार और वकील हैं उन्हें देश की अर्थव्यवस्था सँभालने की जिम्मेदारी दे दी गयी। संबित पात्रा प्रवक्ता हैं और बड़ी मेहनत करते है बीजेपी के लिए ,उन्हें ONGC का स्वतंत्र निदेशक बना दिया गया। लेकिन जो काबिल लोग है उनके साथ दिक्कत ये है कि वो परम् भक्त किस्म के नहीं है। सुब्रमण्यम स्वामी ,अर्थशास्त्र के बड़े ज्ञाता हैं, उन्हें वित्त मंत्री बना देते लेकिन उन्हें वकील बनाया हुआ है ,वो सुप्रीम कोर्ट में ही नजर आते है ,20 -20 सालों से लगातर सांसद आज भी सांसद है लेकिन हारे हुए लोग 2-2 विभाग संभाल रहे हैं।
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