#चित्��
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सर्वश्रेष्ठ तीर्थ, तत्वदर्शी संत का सत्संग
तीर्थ जैसे अमरनाथ, केदारनाथ, वैष्णो देवी आदि तो यादगारें हैं कि यहाँ पर ऐसी घटना घटी थी ताकि उनका प्रमाण बना रहे। जबकि श्रीमद्देवी भागवत (देवी पुराण) के छठे स्कन्ध, अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर चित्तशुद्ध तीर्थ यानि तत्वदशी संत के सत्संग रुपी तीर्थ को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
अधिक जानकारी के लिए पढ़िए
हिन्��ू साहेबान ! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण
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Where there is chit (चित्), there is ānanda (आनन्द).
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विनय पत्रिका_श्रीगोस्वामितुलसीदासविरचित
राम रावरो नाम मेरो मातु-पितु है सुजन-सनेही, गुरु- साहिब, सखा- सुहृद, राम-नाम प्रेम-पन अबिचल बितु है सतकोटि चरित अपार दधिनिधि मथि लियो काढ़ि वामदेव नाम-घृतु है नामको भरोसो - बल चारिहू फलको फल, सुमिरिये छाड़ि छल भलो कृतु है स्वारथ-साधक, परमारथ-दायक नाम, राम-नाम सारिखो न और हितु है तुलसी सुभाव कही, साँचिये परैगी सही, सीतानाथ-नाम नित चितहूको चितु है
भावार्थ- हे श्रीरामजी आपका नाम ही मेरा माता-पिता, स्वजन- सम्बन्धी, प्रेमी, गुरु, स्वामी, मित्र और अहैतुक हितकारी है और आपके नामसे जो मेरा अनन्य प्रेम है, वही मेरा अटल धन है शिवजीने सौ करोड़ चरित्ररूपी अगाध दधि-सागरको मथकर उससे राम-नामरूपी घी निकाला है आपके नामका बल-भरोसा अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलोंका (चरम) फल है कपटभाव छोड़कर इसीका स्मरण करना चाहिये यही सर्वोत्तम यज्ञ है आपका नाम सभी सांसारिक स्वार्थोंका साधनेवाला एवं परमार्थ (मोक्ष) - का प्रदान करनेवाला है श्रीरामनामके समान हित करनेवाला और कोई भी नहीं है यह बात तुलसीने स्वभावसे ही कही है, अतएव सचमुच ही इसपर सही पड़ेगी जानकीरमण श्रीरामका नाम चित्तका भी चित् है जय श्री सीताराम🏹ᕫ🚩🙏
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Conscience et saccidânanda
3Ramana Maharshi” Ôm citānandarūpam Śivo’haṃ Śivo’haṃ Śivo’haṃ « Ôm. Formé de conscience et de joie, je suis Śiva, je suis Śiva, je suis Śiva. »i Le mot sanskrit cit चित् signifie « conscience », mais aussi « pensée, connaissance »ii. Dans les traditions védique et hindouiste, la « matière » et la « nature » ne se distinguent pas nettement de la « conscience », elles lui sont intimement…
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262 चित्रकूट का फल
262 चित्रकूट का फलअब आप सावधान हो जाएँ !!हृदयस्थ भगवान के निर्देश में चलते चलते, जब आपका चित् त्रिकूट नहीं ही रहता, चित्रकूट हो जाता है, जब अन्त:करण भगवदाकार हो जाता है, अपना कोई संकल्प रहता ही नहीं, भगवान का संकल्प ही आपका संकल्प हो जाता है, जब त्रिगुण, त्रिदेह, त्रिवस्था का झझंट नहीं रहता, माया का बंधन नहीं रहता, ��ब, तब आप में तीन परिवर्तन होते हैं।१- आप ही अत्रि हो जाते हैं। अत्रि माने अ+त्रि,…
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#ThursdayMotivation
सर्वश्रेष्ठ तीर्थ।
सर्वश्रेष्ठ चित् शुद्ध तीर्थ है चित शुद्ध तीर्थ अर्थात तत्वदर्शी संत का सत्संग तीर्थ से भी श्रेष्ठ है
अधिक जानकारी के लिए देखे जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन ईश्वर चैनल सुबह 6:00 बजे से और पढ़े पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा
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शरण पड़े को गुरु संभाले,
जान के बालक भोरा रे।
कहे कबीर चरण चित् राखो,
ज्यों सुई में डोरा रे ।।
#भगवान_कौन_है
#SantRampajiQuotes
#KabirIsGod
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राजवर्धन आज़ाद की नई किताब : “नीम का शहद” आद्योपांत पढ़ा।बारंबार पढ़ने का मन हुआ,इसलिए कई बार पढ़ा ।
इस किताब के बारे में कुछ कहने से पहले, एक वाक़या शेयर करना चाहूँगा । सुप्रसिद्ध हार्ट सर्जन डॉ पी. वेणु गोपाल से एम्स,दिल्ली में भेँट हुई ।उन्होंने मेरे बड़े भाई की ओपेन हार्ट सर्जरी की थी- जहां तक मुझे याद है,वह तारीख़ थी 12 जनवरी 1992 ! मैंने उनके प्रति कृतज्ञता प्रगट की और उन्होंने आत्मीय भाव से मेरी ओर देखा । मैं उनका फ़ैन हो गया ।बाद के बर्षों में जब उन्होंने सफलतापूर्वक पहला हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी किया और एक के बाद एक नयी ऊँचाइयों को छूने लगे- तभी किसी इंटरव्यू में उनसे किसी ने सवाल किया, “डॉक्टर साहब,आप शत प्रतिशत सफलता के साथ इतने सारे कठिन सर्जरी कैसे कर लेते हैं ?”
डॉक्टर वेणु गोपाल ने बड़ी सादगी से ऊपर ईश्वर की ओर देखने की मुद्रा में जवाब दिया, “आइ सिम्पली मूव माइ हैंड्स, रेस्ट एवरीथिंग इज डन बाइ द ऑलमाइटी हिमसेल्फ” !
डॉ. पी. वेणु गोपाल जैसे सुविख्यात हार्ट सर्जन और डॉ. राजबर्धन आज़ाद जैसे सुविख्यात रेटिनल सर्जन की सृजन शक्तियों में यह ‘कॉमन थ्रेड’ नजर आया - इसलिए मैंने उस वाक़ये की चर्चा की । कोई ज़रूरी नहीं है कि उनके अन्य विचार भी एक-दूसरे से मिलते ही हों । मुझे लगता है कि किसी भी सफल और ईमानदार प्रोफेशनल के लिए- चा��े साइंटिस्ट,डॉक्टर , इंजीनियर हो , लेखक या किसी अन्य विधा में पारंगत व्यक्ति - “ग्रैटिच्युड” प्राईम मूवर है - “Finding smoother pebbles on the sea shore” (न्यूटन)
“नीम का शहद” के सभी 240 कविताओं को पढ़कर,रचनाकार में वही भाव दिखे जिसमें कहीं कर्ता होने का लेश मात्र कोई दंभ नहीं है।
किसी रचनाकार की कृतियों को पढ़ने से पहले, मेरा सहज स्वभाव है कि यह जानूँ कि उसने अपनी कृति किन्हें समर्पित किया है और खुद अपनी बात में, उनका क्��ा कहना है ?
इन्होंने “जिन लक्ष्मी दुर्गा सरस्वती” को अपनी यह पहली कृति समर्पित किया है,उन्हें उसी श्रद्धा के साथ प्रणाम करता हूँ जिन्हें महर्षि अरविन्द ‘प्लेन्स ऑफ कॉन्शसनेस’ सत्-चित्-आनन्द ( Existence-Consciousness-Bliss ) कहते हैं - ये ही मोटिवेशन की अक्षय ऊर्जा के स्रोत हैं।
“अपनी बात” में रचनाकार ने प्रयोगवादी नई कविता का ज़िक्र करते समय अज्ञेय द्वारा सम्पादित ‘दूसरा सप्तक’ की चर्चा की है- अपने स्कूली जीवन के दौरान अज्ञेय कृत गद्य रचनाएँ यथा: “नदी के द्वीप”; “शेखर : एक जीवनी” पढ़ पाया,पर ‘दूसरा सप्तक’ मैंने अभी तक नहीं पढ़ा था । राज वर्धन जी की प्रेरणा से,
अज्ञेय सम्पादित “तार सप्तक”, “दूसरा सप्तक” , “तीसरा सप्तक” और “चौथा सप्तक” के दरवाज़ों पर सिर्फ़ दस्तक देकर ताका-झांका- इसी क्रम में, अज्ञेय की प्रिय कविता, “दु:ख सबको माँजता है” की यादें ताज़ा हो गईं ।
”नदी के द्वीप” उपन्यास के शुरुआती पन्ने पर ‘अज्ञेय’ ने पी.बी. शेली की कविता उद्धरित कर इसका अनुवाद इस तरह से किया है:
दु:ख सबको मांजता है
व्यथा के गहरे और फैले सागर में
कई हरे - भरे द्वीप भी अवश्य होंगे
नहीं तो थका-हारा सागरिक
कभी ऐसे यात्रा करता न रह सकता!”
-अज्ञेय
Many a green isle needs must be
In the deep wide sea of Misery,
Or the mariner, worn and wan,
Never thus could voyage on
- P.B. Shelley
“नीम का शहद” काव्य संग्रह में रचनाकार ने अपनी अकुलाहट,छटपटाहट,मानवीय संवेदनाओं को कम-से-कम शब्दों में कहने का प्रयास किया है ।किसी एक कविता में औसतन 50 शब्द ही पूरे पेज पर दिखेंगे (हो सकता है,कुछ कविताओं में अधिकत�� 100 शब्द भी मिल जायें ) पर वे आपको ‘गागर में सागर’ की तरह महसूस होंगे । सभी कविताएँ स्वत:स्फूर्त हैं ।ये सब ’देखन में छोटन’ भले लगते हों,पर ‘गंभीर घाव’ नहीं करते बल्कि अंधेरे से वास्तविकता की ओर ले जाते हैं मानो ज्योति के लिए तरस रहे किसी मरीज़ के आँख की पट्टी खुलते ही अचानक रोशनी दिख जाने पर उसके चेहरे पर उल्लास की ख़ुशी दमक उठे ! रचना काल 2021 - 22 है जो कोरोना-काल की यादें लेकर दर्द का एहसास भी ताज़ा कराता है ।
अपने रोज़मर्रा ज़िंदगी के ऐसे ‘डिफाइनिंग मोमेंट्स’ को बिना किसी आयास के कम से कम शब्दों में गढ़ने की अद्भुत क्षमता है रचनाकार में - उनमें यह नैसर्गिक गुण ईश्वर प्रदत्त है। वे ‘ओम्’ की असीम शक्ति कम से कम शब्दों में पिरोना चाहते हैं जिसे वे ‘मौन की अभिव्यक्ति’ के रूप में देखते हैं - यही तो असली साधना और इबादत है ।
‘कर्टेन रेजर’ के बतौर “नीम का शहद” काव्य संग्रह से , मात्र सात कविताएँ शेयर कर रहा हूँ जिन्हें ‘सप्तक’ की तरह पढ़कर शेष दो सौ तैंतीस ( 233 ) कविताओं का रसास्वादन करने की उत्कंठा आपमें बनी रहे और राजकमल प्रकाशन का यह अनूठा काव्य संग्रह , मूल्य 895 रू. ( आमेजन पर उपलब्ध हार्ड कवर 605/- रूपये में ) आप मंगा कर पढ़ सकें ।
1) धृतराष्ट्र आज भी ज़िन्दा है:
धृतराष्ट्र आज भी
ज़िन्दा है
फ़र्क़ इतना है कि
ऑंख होते हुए भी
अंधा है
2) ज़िन्दगी :
ज़िन्दगी है उल्फ़त
ज़िन्दगी है क़िस्मत
जिनके हैं ख़ादिम
उनकी है जन्नत
ज़िन्दगी है दीवानी
करती है मनमानी
चाहत की आड़ में
लिख रही कहानी
ज़िन्दगी ज़माना है
आना और जाना है
चलती किसी की नहीं
लिक्खा ठिकाना है
3) बीमार है मुल्क :
हवा लिये कन्धे पर
हवा को ढूँढ़ रहे हैं
बिस्तर लिये सर पर
घर को ढूँढ़ रहे हैं
बीमार है मुल्क
बीमार हैं कुर्सियाँ
बीमार हकीम से
हम दवा पूछ रहे हैं
श्मशान में है भीड़
हम घाट ढूँढ़ रहे हैं
बचे हैं जो लोग
चालीसा पढ़ रहे हैं
कुदरत का है क़हर
परवरदिगार बेख़बर
हर गाँव हर शहर
हम रहमत ढूँढ़ रहे हैं
4) कब तक साथ चलोगी मॉं तुम
कब तक साथ चलोगी मॉं तुम
कब तक साथ चलोगे पापा
कष्ट सहकर दिया जन्म
पढ़ा- लिखाकर बड़ा किया
खड़ा पॉंव पर कर मॉं तुमने
ब्याह रचाकर घर दिया
पग-पग पर पापा तुमने
मुश्किल से आगाह किया
जीने का मूल मंत्र देकर
बढ़ने की राह प्रशस्त किया
माँ तुमने घर और बाहर
हम सबको सँभाल दिया
पापा तुमने साहस देकर
कवच में हमको ढ़ाल दिया
हम तो चाहते हैं तुम दोनों
अनन्त काल तक संग रहो
ईश्वर की भी है इच्छा
समस्त परिवार के अंग रहो
पर जीवन तो क्षणभंगुर है
यही तो है इसका स्यापा
कब तक साथ चलोगी मॉं तुम
कब तक साथ चलोगे पापा
5) नीतीश कुमार:
ऑंखें तेज़
आवाज़ बुलन्द
चाल सहज
भाषा स्वच्छन्द
अपार शक्ति
अपरिमित क्षमता
इच्छा सेवा
विश्वास समता
देश- सेवा
करने तैयार
चित्त उदार
नीतीश कुमार
6) नीम का शहद
कुर्सी बनी जागीर
खोखले बने अमीर
नकार का ताज
लिये स्वयं आज
लिख रहे रोज़ लेख
अनभिज्ञता का आलेख
प्रतिरूप अवरोध का
बन रहे हैं प्रत्येक
गा रहे जो संगीत
द्रव्य का हर तरफ़
पिला रहे सदियों से
वो नीम का शहद
7) सात दशक :
सात दशक
पहचानी महक
हर रोज़
दे रही दस्तक
एक फूल
मेरा रसूल
कभी प्रतिकूल
कभी अनुकूल
एक चिन्तन की
अनोखी पाठशाला
वो चमका
जिसने पढ़ डाला
एक लौ जिसने
किया उजाला
एक शक्ति पुंज
अनन्त वाला
हर दशक की
अपनी झलक
थोड़ी ललक
थोड़ी कसक
मेरे संग थे
मेरे उसूल
घर बना
हमारा गुरूकुल
अंत में, मेरे मन में यह जिज्ञासा उठी कि डॉ. राजवर्धन आज़ाद ने अपने इस खूबसूरत काव्य संग्रह के शीर्षक का नाम “नीम का शहद” ही क्यों चुना ?
क्या इसलिए कि विश्व रूप दर्शन कराने के लिए श्रीमद्भागवत गीता के ग्यारहवें अध्याय में वर्णित, “पश्य मे पार्थ रूपाणि” की दिव्य दृष्टि चाहिए जो भगवत्कृपा के बिना संभव नहीं है, अत: साधारण ऑंखों से, उन चकाचौंध तेज शक्ति-पुंज के सौम्य दर्शन हेतु, कोरेंटाइन औषधीय गुणों से परिपूर्ण “नीम का शहद” एक प्रयोगात्मक प्रतीक ( Allegorical Significance ) के रूप में सहजता प्रदान कर सके ?
मेरा यह पूर्ण विश्वास है कि “नीम का शहद” कृति को अप्रत्याशित सफलता मिलेगी । डॉक्टर राजवर्धन आज़ाद को दिल की ��हराइयों से बहुत बहुत बधाई , हार्दिक शुभकामनाएँ एवं अनेकों धन्यवाद - भगवान श्री राम एवं माता जानकी की कृपा उनके समस्त परिवार पर सदैव बनी रहे !
मेरी ओर से इस खूबसूरत काव्य संग्रह को फ़ाइव स्टार 🌟 🌟 🌟 🌟 🌟 !
शुभाकांक्षी : नागेश चन्द्र मिश्र
पटना, 9 अप्रैल 2024 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
चैती नवरात्र का पहला दिन: नव वर्ष का आरंभ
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, हरि ॐ
कोई मोक्ष मंत्र नहीं है क्योंकि इनका किसी भी ग्रंथ में प्रमाण नहीं है। यानि ये शास्त्र विरुद्ध मनमाने मंत्र हैं और इस विषय में गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा गया है कि शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाने आचरण से गति अर्थात् मोक्ष प्राप्त नहीं होता। तो फिर कौन सा है मोक्ष मंत्र?
अधिक जानकारी के लिए देखिए
Sant Rampal Ji Mahraj
YouTube Channel
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शरण पड़े को गुरु संभाले,जान के बालक भोरा रे।
कहे कबीर चरण चित् राखो, ज्यों सुई में डोरा रे ।।
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youtube
शरण पड़े को गुरु संभाले, जान के बाहगलक भोरा रे।
कहे कबीर चरण चित् राखो, ज्यों सुई में डोरा रे ।।
कबीर,कबिरा सोई पीर हैं, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जानि है, सो काफिर बेपीर॥
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#सच्चिदानंद_की_परिभाषा...
सच्चिदानन्द शब्द जो हैं "सत् + चित् + आनंद" से मिलकर बना हैं ।
🌼🌼🌼 हमारी आत्मा को जिस भगवान के रूप सौंदर्य को देखने से सच्चा आनंद की प्राप्ति होती हैं,दर्शन करने के पश्चात् भी दृष्टि तृप्त नहीं होती हैं,बस निहारते रहने को ही मन करता हैं,वही हमारे लिए सच्चिदानन्द हैं ।
लेकिन तत्वज्ञान के अभाव में अर्थात् सच्चा सतगुरू न मिलने के वजह से हमने सच्चिदानन्द अपने अथवा लोकवेद के हिसाब से अलग अलग भगवान को मान लिये हैं।
🌼🌼🌼 जैसे कीट पतंग के लिए दीपक अथवा ट्यूबलाइट ही सच्चिदानन्द भगवान हैं ।
जैसे चातक पक्षी के लिए चंद्रमा ही सच्चिदानन्द भगवान हैं ।
जैसे त्रिगुण उपासकों के लिए श्री ब्रम्हा जी,श्री विष्णु जी, श्री शिव जी सच्चिदानन्द भगवान हैं।
जैसे शक्ति की आराधना करने वाले भगतों के लिए मां अष्टांगी (दुर्गा जी) सच्चिदानन्द भगवान हैं
और इसी तरह
#ब्रम्ह के उपासकों के लिए #ब्रम्ह / कालपुरूष / क्षरपुरूष/ ज्योति निरंजन ही सच्चिदानन्द भगवान हैं लेकिन......
✓✓✓ वास्तव में #सच्चिदानंद_भगवान अर्थात् मनभावन #पूर्ण_परमात्मा कौन हैं ?
इस विषय में हमारे पवित्र श्री मद् भागवत गीता के अध्याय 8 के श्लोक नम्बर 9 और 10 में बिलकुल क्लीयर कर दिया ��या हैं कि
✓ सुर्य के समान चैतन्य स्वरूप अर्थात् सदैव जागृत अवस्था में रहने वाले और सुर्य के समान तेजोमय( किन्तु शीतल) प्रकाश युक्त शरीर वाले परमात्मा,
✓अचिन्त्या स्वरूप अर्थात् जिनका स्वरूप पल पल चिंतन (ध्यान) करने के योग्य हैं,
✓अणु के समान प्रचंड शक्ति युक्त अर्थात् शक्तिशाली (सर्व शक्तिमान) परमात्मा,
✓ जो अनादि हैं अर्थात जो #सनातन_परमात्मा हैं,
✓ जो सबके नियंता हैं,
✓ जो सबका धारण पोषण करने वाले हैं,
✓ जिनके बनाये विधान के अनुसार सभी जीवों को उनके शुभ,अशुभ कर्मों का यथोचित फल मिलता हैं,
✓ जो अविद्या से अत्यंत परे हैं अर्थात् जिसे तत्वज्ञान के जाने बिना (तत्वदर्शी सन्त को गुरू धारण किये बिना) प्राप्त नहीं किया जा सकता हैं,
✓ जो शुद्ध स्वरूप हैं अर्थात् जिनकी पवित्रता के समान और कोई पवित्र नही हैं और
✓ जो अंतरयामी हैं (सबके मन के बांतों को जान लेने वाले हैं),
🌼🌼🌼 उस सच्चिदानन्द घनब्रम्ह अर्थात् #पूर्ण_परमात्मा का जो भगत निश्चल मन में (कपटरहित होकर के) सुमिरन अर्थात् भक्ति करता हैं,
वह भगत भक्ति के शक्ति से भृकुटी के मध्य अपने प्राणों को अच्छी तरह से स्थापित करके अर्थात् इस नश्वर संसार से पुरी तरह से अपने चित्त को हटा लेता हैं,वह भगत अन्त समय में उसी #परम_दिब्य_पुरूष अर्थात् #सच्चिदानन्द_भगवान #कबीर_साहेब को ही प्राप्त होता हैं ।
#पांचवे_वेद अर्थात् #सुक्ष्मवेद के अमृतवाणी के आधार पर गुरूदेव जी महाराज ने हमें बताया हैं कि.......
अविगत राम कबीर हैं, चकवे अविनाशी *
ब्रम्हा विष्णु वजीर हैं, शिव करत हैं ख्वासी **
जीव शीव सब उतरे,वै ठाकुर हम दास *
कबीरा, और जाने नहीं, एक राम नाम की आश **
कबीर,अक्षर पुरूष एक पेड़ हैं, निरंजन वाकी डार *
तीनों देवा शाखा भये, पात रूपी संसार **
*★अपने संपूर्ण आध्यात्मिक शंका के समाधान हेतु सपरिवार आज ही अवश्य देखें "संत रामपाल जी महाराज" के मंगल प्रवचन★*
*#सत्संग*
⏰ _"रोज शाम 07:30 बजे"_⏰
📺 _साधना TV पर_ 📺
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*--II ● विवेक विचार ● II-
. *–II ● विवेक विचार ● II–**अखंडित, सातत्यपूर्ण संकल्पाचा २२२५ वा दिवस* “गुरु म्हणजे असा सत् चित् आनंद आहे, जो आम्हाला स्व: ची खरी ओळख करून देतो” *स्वामी विवेकानंद…..* वीर हनुमानाचा विचार केल्याशिवाय आपल्याला प्रभु श्रीरामचंद्रांचा विचार करता येत नाही, तसेच अर्जुन- श्रीकृष्ण, बुध्ददेव-आनंद, येशू ख्रिस्त-सेंट पॉल आदी गुरु-शिष्य परंपरेची उदाहरणे देता येतील. एकाचा नामोल्लेख केला असता, ओघानेच…
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चैतन्य को कर भिन्न तन से, शांति सम्यक पाएगा।होगा तुरत ही तूं सुखी, संसार से छुट जाएगा।आश्रम तथा वर्णादि का, किंचित ना तूं अभिमान कर।संबंध तज दे देह का, हो जा अमर हो जा अमर॥
ज्यों सीप की चाँदी लुभाती, सीप के जाने बिना।त्यों ही विषय सुनकर लगे हैं, आत्म पहचाने बिना।अज, अमर आत्मा जानकर, जो आत्म में तल्लीन हो।सब रस विरस लगते उसे, कैसे भला फिर दीन हो॥ जिस तत्त्व को कर प्राप्त, पर्दा मोह का फट जाय है।जल जाय हैं सब कर्म, चित्-जड़ ग्रन्थि जड़ कट जाय है।सो ब्रह्म है, तूं है वही, पुतला नहीं तू माँस का।भोले स्वयं हो तृप्त, बंधन काट दे भव-पाश का॥
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आदिगुरु शंकराचार्य जी जयंती पर आप सभी को शुभकामनाये त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव। त्वमेव सर्वं मम देव देव॥ न च तस्य कश्चिद् ब्राह्मणो न च शूद्रो न वैश्य एकोऽपि न तथा कः चित्। . . . . .
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#tuesdaymotivations
दोष पराया देखि के चले हसन्त हसन्त अपने चित् न आवई जिनको आदि ना अंत..!
निंदक लोग पराए लोगों के दोषो को देखकर हंस-हंसकर कर चलते हैं अपने अंतःकरण के दोषो को नहीं देखते जिनका की कोई भी अंत नहीं है..!
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज..!
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