#चट्टान का
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मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं
मै तूफानो मे चलने का आदि हू
तुम मत मेरी मन्जिल आसां करों..
हैंं फूल रोक़ते, काटे मुझें चलाते..
मरुस्थल, पहाड़ चलनें की चाह बढ़ाते..
सच क़हता हू ज़ब मुश्किले ना होती है..
मेरें पग तब चलनें मे भी शर्मांते..
मेरे संग चलनें लगे हवाए ज़िससे..
तुम पथ के क़ण-क़ण को तूफान करों..
मै तूफानो मे चलनें का आदि हू..
तुम मत मेरी मन्जिल आसां करो..
अंगार अधर पे धर मै मुस्क़ाया हू..
मै मर्घंट से जिन्दगी बुला के लाया हू..
हू आंख़-मिचौली ख़ेल चला क़िस्मत से..
सौं बार म्रत्यु के गलें चूम आया हू..
हैं नही स्वीकार दया अपनीं भी..
तुम मत मुझ़पर कोईं अह्सान करो..
मै तूफ़ानो मे चलने का आदि हू..
तुम मत मेरी मन्जिल आसां करो..
शर्मं के ज़ल से राह सदा सिचती हैं..
गति की मशाल आधी मै ही हंसती हैं..
शोलों से ही श्रगार पथिक़ का होता हैं..
मन्जिल की माग लहू से ही सज़ती हैं..
पग मे गति आती हैं, छालें छिलने से..
तुम पग़-पग पर ज़लती चट्टान धरों..
मै तूफ़ानो मे चलने का आदि हू..
तुम मत मेरी मन्जिल आसां करो..
फूलो से ज़ग आसान नही होता हैं..
रुक़ने से पग गतिवान नही होता हैं..
अवरोध नही ��ो सम्भव नही प्रगति भी..
हैं नाश ज़हां निर्मंम वही होता हैं..
मै ��सा सुक़ुन नव-स्वर्गं “धरा” पर ज़िससे..
तुम मेरी हर बस्ती वीरां करो..
मै तूफानों मे चलने का आदि हू..
तुम मत मेरी मन्जिल आसां करो..
मै पथी तूफानों में राह ब़नाता..
मेरा दुनियां से केवल इतना नाता..
वह मुझ़े रोकती हैं अवरोध बिछाक़र..
मै ठोकर उसें लगाकर बढ़ता ज़ाता..
मै ठुक़रा सकू तुम्हे भी हंसकर ज़िससे..
तुम मेरा मन-मानस पाषाण क़रो..
मै तूफानो मे चलने का आदि हू..
तुम मत मेरीं मन्जिल आसां करो..
~गोपालदास ‘नीरज'
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टिलीलिली / दिनेश कुमार शुक्ल
बंदर चढ़ा है पेड़ पे
करता टिलीलिली
कि ये ले गुल बकावली
कि ले ले गुल बकावली।
मैं रात की पेंदी से
खुरच लाया हूँ सपने
फुटपाथ पर सोये हुए
सब थे मेरे अपने
अपनों की आँख से
मैं उठा लाया हूँ काजल
काजल की बना स्याही
और सपनों की कहानी
लिखता हूँ सुनाता हूँ
वही सबकी कहानी
पी हमने छाछ फूंककर
फिर जीभ क्यों जली।
आयेंगे अभी रात के
वो पीरो पयम्बर
हफ्ता वसूलने को वो
ख्वाबों के सितमगर
सपने न होंगे आँख में
तो क्या वसूलेंगे
गुस्से में बिफर जायेंगे
हो जायेंगे पागल
तब बच के फूट लेंगे
हम पतली कोई गली।
हम अब तक उसी घर में हैं
जो कब का गिर चुका
उस राह गुजरना
तो बुलाना कभी-कभी,
ऐ रात तुझको अपने
अंधेरों की कसम है
हमको भी अपने साथ
सुलाना कभी-कभी
‘दे जिंदगी ले नींद’ - की आवाज लगाता
अत्तार नींद बेचता फिरता गली-गली।
जो सो रहे हैं
रो रहे हैं -
खो रहे हैं लोग,
चुपचाप जो सहते हैं
वो विष बो रहे हैं लोग
कपड़े भी कातिलों के
वही धो रहे हैं लोग
इनकी है आँख बन्द
और है जुबां सिली।
तुमको न ठगे ठग
तो किसे और ठगेगा
तुमने उसे चुना
वो किसे और ठगेगा
ये कैसा शहर है कि
खुद पे तोड़ता कहर
ये कैसा समन्दर कि
लहर तोड़ती लहर
अब चुप भी रहो
कुछ न कहो सो रही है रात
जग जायेगी, टहनी भी अगर
नीम की हिली।
आलू नहीं है प्याज नहीं
राज उन्हीं का
कल जिनका राज था
है राज आज उन्हीं का
राशन खरीदना है और जेब है फटी
घरवाली क्या करे न कहे जो जली कटी,
कश्ती की बात क्या करो
याँ डूबता साहिल
लगती है गरीबी में
ये दुनियाँ सड़ी-गली
लिखता है रिसालों में
वो बातें बड़ी-बड़ी --
चांदी की उसकी खो गई थी
एक तश्तरी
तुम देखते उसने चलाई
किस तरह छड़ी
नौकर की पीठ थी
मगर चट्टान सी कड़ी,
वो तीन सौ की तश्तरी
थी गिफ्ट में मिली।
आते रहे जाते रहे
इस देश में चुनाव
नेता व नेती घूमते
घर-घर व गाँव-गाँव
ये कुछ भी कहें
मुँह से इनके निकले कांव-कांव
कौवों ने सुना जब से
वो नेतों से हैं खफ़ा
नेतों की आँख फोड़ेंगे
उनकी अगर चली।
जैसे प्रगट हों देवता
धरती पे जब कभी
वैसे ही इधर आते हैं
अफसर कभी-कभी
काजू मिठाई चाय का
जब भोग लगाकर
बैठा हुआ था हाकिम
दरबार सजाकर
चौपाल की छत से गिरी
अफ़सर पर छिपकली।
घर जा रहा था हारा थका
खत्म करके काम
सूरज को अँधेरों ने
छुरी मारी सरे शाम,
उसके लहू से लाल ज़मीं
लाल आसमान
क्या अब सुबह न आयेगी
बस रात रहेगी
कुछ दिन बस हमें
रोशनी की याद रहेगी ?
यादें भी डूब जायेंगी
क्या अंधकार में
नस्लें भी बदल जायेंगी
क्या अन्धकार में
उल्लू ही रहेंगे वहाँ
उजड़े दयार में ?
अब खेल खत्म होता है
आई चला चली।
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1419.
एक तितली की तरह
-© कामिनी मोहन।
जो हैं सुशोभित
हैं निकट एक चट्टान के
निकट रहेंगे हमेशा
उज्ज्वल तन संसार के
आनंद की आग में जल जाएँगे
फ़र्क नहीं कि वक़्त निगल कर
किधर ले जाएँगे।
जुनून और पागल कर देने वाली भूख की तरह
रचित पांडुलिपियाँ अथाह शून्य में बिखराएँगे
जैसे एक पेंटिंग बनाने में
लग गए हो कई साल
उन रंग भरे शब्दों के
कविताओं की सूचियाँ बनाएँगे।
कहीं आधे अंधेरे और उजाले के बीच
कहीं आधे और पूरे शब्दों के बीच
कहीं कठोरता और कोमलता के बीच
कहीं आराधना और साधना के बीच
कहीं उदासीनता और प्यार के बीच
काँपता हुआ दिल ठहरेगा
मिलने की निश्चिंतता के बीच
हम एक अवर्णनीय गंध फैलाएँगे।
जैसे आकाश में तारे
अपना रहस्य छिपाते चमकते रहते हैं
हवाएँ समय का ताना-बाना बुनती रहती हैं
लहरें पृथ्वी की उज्ज्वल
अंधेरी भूमि पर घूमती रहती हैं
जब ख़ालीपन हमेशा रहता है
तब प्रेम के प्रभामंडल को पहनकर
हम पूर्णता में हास्य लेकर आएँगे।
भ्रम की भ्रामक दुनिया में
एक तेज़ है
सब उज्ज्वल है
हम जिज्ञासा में
एक तितली की तरह
तैरते जाएँगे
मौत की आशंका और आतंक से भरी हुई
रक्त से सनी धरती पर
उगने वाले फूलों को झड़ने से बचाएँगे।
-© कामिनी मोहन ।
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चांग'ई-6 मून मिशन द्वारा चंद्रमा से लाई चट्टान से खुला बड़ा रहस्य, जानें क्या है ज्वालामुखी विस्फोट से जुड़ा मामला
China News: चीन के वैज्ञानिकों ने पहली बार चंद्रमा के सुदूर हिस्से के रहस्य को सुलझाने का कारनामा कर दिखाया है। पहली बार चीनी वैज्ञानिक और उनके अमेरिकी सहयोगी चंद्रमा के दूर वाले हिस्से पर ज्वालामुखी विस्फोटों की सटीक उम्र मापने में सक्षम हुए हैं। पहले इसके अंदाजा केवल रिमोट सेंसिंग के आकलनों के माध्यम से किया जाता था। इसी साल जून में चीन का चांग’ई-6 मून मिशन चंद्रमा से चट्टान का सैंपल लेकर…
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70,000 वर्ष पुरानी यह ममी आज तक विज्ञान जगत के लिए चुनौती और हैरानी का सबब बनी हुई है। इसे लगभग 1500 साल पहले एक इंडोनेशियाई खजाना-खोजी ने बर्फ के नीचे से ढूंढा था, जब वह एक खजाने की तलाश में उत्तरी इंडोनेशिया के पहाड़ों में भटक रहा था। अचानक उसे बर्फ की एक बड़ी चट्टान के नीचे बुलबुले से दिखे और उसने खुदाई करनी शुरू कर दी थी।
शोध के बाद वैज्ञानिक दावा कर रहे है कि ये ममी 70000 पहले मानवों की धरती पर रहने वाली किसी लुप्त मगर उन्नत प्रजाति से जुड़ी है और इसके बदन पर बने टैटू इस ओर इशारा करते हैं कि यह कोई पुजारिन या भविष्यवक्ता रही होगी। इस ममी से जुड़ी एक और रहस्यमय बात ये भी है कि इस ममी के सौ से भी टुकड़े हैं, जिन्हें इतनी सफाई से सिला गया है कि शोधकर्ताओं को भी ये ��ात 50 साल पहले MRI के दौरान पता चली।
लुप्त सभ्यताओं पर रिसर्च करने वाले शोधकर्ताओं ने सम्भावना व्यक्त की है कि अतीत में इस प्रजाति के ऊपर हुए किसी दूसरी प्रजाति के अकस्मात मगर योजनाबद्ध हमले के दौरान इस पुजारिन के टुकड़े किये गए होंगे। बाद में इस प्रजाति के बचे हुए लोगों ने पुजारिन की लाश को बेहद उन्नत चिकित्सा तकनीक से सिल कर ममी में परिवर्तित कर दिया होगा। लेकिन इस सबसे भी ज्यादा हैरतंगेज और अविश्वसनीय बात ये है कि ये ममी कभी कभी सांस लेती है।
इस जानक���री ने शोधकर्ताओं के होश उड़ा दिये। मजेदार बात ये है कि इसी साल 2024 में इस ममी पर रिसर्च कर रहे एक इजराइली विद्यार्थी ने इस पर ध्यान दिया और इसकी जानकारी रिसर्च टीम के बाकी के मेम्बर्स को दी। जब ममी की लगातार निगरानी की गई तो पता चला यह हर रोज सुबह 4 बजे सांस लेती है और सबसे बड़ा धमाका तो तब हुआ जब पता चला कि ममी सांसों की ध्वनि, असल मे एक संगीतमय कोड ह
काफी प्रयासों और अत्याधुनिक यंत्रो द्वार इस कोड को पिछले महीने यानी अक्टूबर में डिकोड किया जा सका। डिकोड करने पर पता चला यह ध्वनि कोड ममी हज़ारो साल से निकाल रही है, जिसका अर्थ है, 'बंटोगे तो कटोगे।' शोधकर्ताओं का मानना है कि इस ममी की प्रजाति के लोग शायद ये ध्वनि कोड डिकोड नहीं कर पाए होंगे और इसी वजह से यह उन्नत प्रजाति अचानक समाप्त हो गई होगी।
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Bhool Bhulaiyaa 3 Collection Day 9 : वीकेंड पर आंधी बनी ‘भूल भुलैया 3’, ‘सिंघम अगेन’ के सामने चट्टान बनकर खड़े हुए कार्तिक आर्यन
दिवाली पर दो बड़ी फिल्मों ने दस्तक दी. एक तरफ कार्तिक आर्यन और तृप्ति डिमरी की ‘भूल भुलैया 3’ और दूसरी तरफ अजय देवगन और करीना कपूर की ‘सिंघम अगेन’. हालांकि दोनों ही सितारों के पास अपनी-अपनी फौज थी. जहां एक तरफ ‘भूल भुलैया 3’ में दो-दो मंजुलिका के राज से पर्दा उठा, तो वहीं दूसरी तरफ अजय देवगन अपनी सितारों की फौज के साथ बड़े पर्दे पर नजर आए. शुरुआत से ही इस बात का अंदाजा लग गया था कि ये दोनों के…
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Jamshedpur rural - गालूडीह के बड़बिल रंकणी डूंगरी में 700 फीट ऊंची पहाड़ी पर पूजीं जाती है मां दुर्गा, विधि-विधान के साथ होती है पूजा अर्चना
गालूडीहः घाटशिला प्रखंड के बड़बिल रंकणी डूंगरी में पिछले कई साल से मां रंकणी का विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जा रही है. ये मां दुर्गा का एक रूप है. इस मंदिर के बारे में किवंदती है कि मां रंकणी एक चट्टान पर नहाती थीं. एक दिन तत्कालीन गालूडीह के जमींदार डूंगरी के ऊपर महिला नहाती है. जमींदार नदी बाबू को कौतुहल हुआ कि आखिर घने जंगल के बीच बसे डूंगरी में कौन अकेली महिला नहाने की हिम्मत करती है.…
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यादों के सुनहरे पल
बीती यादों में खो जाता हूं हर पल उन लम्हों में गुम हो जाता हूं एक दौर ऐसा था जो जिंदगी पंख फैलाकर नीले आकाश में मदमस्त उड़ान भरती थी ऐसा महसूस होता था सारी कायनात अपने मुट्ठी में कैद है । हकीकत की चट्टान से टकराकर जब हसरतें बिखरती हैं तो एहसास होता है जिंदगी परिश्रम और सब्र का परिणाम है ।।
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Lalit Surjan ki Kalam se - Aam Janata Par Internet ki Khuphiya Nigaah
इंटरनेट का आविष्कार और विकास अमेरिका के सैन्य-पूंजी गठजोड़ की हिफाजत और उसके उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए हुआ है। यदि कोई व्यक्ति या समूह इस एजेंडा के दाएं-बाएं जाने की कोशिश करेगा तो उसके बारे में इंटरनेट के माध्यम से संकलित सूचनाओं का उपयोग उसी पर चट्टान पटक देने जैसी कार्रवाई में किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में जिनका इंटरनेट पर नियंत्रण है वे आपके बारे में राई-रत्ती खबर रखते हैं। आपने यदि व्यवस्था का विरोध किया तो एक सीमा तक ही आपकी हरकतें बर्दाश्त की जाएंगी।
Read More: https://www.deshbandhu.co.in/editorial/from-lalit-surjan-pen-internet-secret-eye-on-the-general-public-492704-2
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The terrestrial part of the solar system is limited to Mars
The terrestrial part of the solar system is limited to Mars
Terrestrial means actually rocky parts
Is Mars a rocky surface
Yes, Mars has a rocky surface:
Terrestrial planet
Mars is a terrestrial planet, which means it has a compact, rocky surface like Earth.
Formation
Mars formed about 4.5 billion years ago when gravity pulled in swirling gas and dust.
Composition
Mars has a central core, a rocky mantle, and a solid crust.
Appearance
Mars is one of the easiest planets to spot in the night sky, appearing as a bright red point of light.
Moons
Mars' moons are made of carbon-rich rock mixed with ice, and may be captured asteroids.
Frozen caps
Mars has water ice caps that remain frozen year-round, and seasonal caps of frost that appear in the winter.
The planets closest to the Sun—Mars, Earth, Venus, and Mercury—are made mostly of rock. The rocky planets all formed in our inner solar system. Their geological history is preserved on their surfaces. Their landscapes reveal the processes that shaped them: impacts, crustal movements, volcanic activity, and erosion.
Mars: Facts
NASA Science (.gov)
https://science.nasa.gov › mars › facts
Surrounding the core is a rocky mantle between 770 and 1,170 miles (1,240 to 1,880 kilometers) thick, and above that, a crust made of iron, magnesium, aluminum,
Surface
The Red Planet is actually many colors. At the surface, we see colors such as brown, gold, and tan. The reason Mars looks reddish is due to oxidization – or rusting – of iron in the rocks, regolith (Martian “soil”), and dust of Mars. This dust gets kicked up into the atmosphere and from a distance makes the planet appear mostly red.
Interestingly, while Mars is about half the diameter of Earth, its surface has nearly the same area as Earth’s dry land. Its volcanoes, impact craters, crustal movement, and atmospheric conditions such as dust storms have altered the landscape of Mars over many years, creating some of the solar system's most interesting topographical features.
A large canyon system called Valles Marineris is long enough to stretch from California to New York – more than 3,000 miles (4,800 kilometers). This Martian canyon is 200 miles (320 kilometers) at its widest and 4.3 miles (7 kilometers) at its deepest. That's about 10 times the size of Earth's Grand Canyon.
Mars is home to the largest volcano in the solar system, Olympus Mons. It's three times taller than Earth's Mt. Everest with a base the size of the state of New Mexico.
Mars appears to have had a watery past, with ancient river valley networks, deltas, and lakebeds, as well as rocks and minerals on the surface that could only have formed in liquid water. Some features suggest that Mars experienced huge floods about 3.5 billion years ago.
There is water on Mars today, but the Martian atmosphere is too thin for liquid water to exist for long on the surface. Today, water on Mars is found in the form of water-ice just under the surface in the polar regions as well as in briny (salty) water, which seasonally flows down some hillsides and crater walls.
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मंगल ग्रह तक ही है सौरमंडल की टेरेस्ट्रियल अंश
टेरेस्ट्रियल का अर्थ है वास्तव में चट्टान बहुल अंग
क्या मंगल ग्रह चट्टानी समृद्ध सतह है
हाँ, मंगल की सतह चट्टानी है:
स्थलीय ग्रह
मंगल एक स्थलीय ग्रह है, जिसका अर्थ है कि इसकी सतह पृथ्वी की तरह सघन, चट्टानी है।
गठन
मंगल का निर्माण लगभग 4.5 अरब साल पहले हुआ था जब गुरुत्वाकर्षण ने घूमती हुई गैस और धूल को अपनी ओर खींचा था।
संरचना
मंगल में एक केंद्रीय कोर, एक चट्टानी आवरण और एक ठोस परत है।
दिखावट
मंगल रात के आकाश में दिखने वाले सबसे आसान ग्रहों में से एक है, जो एक चमकदार लाल प्रकाश बिंदु के रूप में दिखाई देता है।
चंद्रमा
मंगल के चंद्रमा बर्फ के साथ मिश्रित कार्बन युक्त चट्टान से बने हैं, और संभवतः क्षुद्रग्रहों द्वारा पकड़े गए हैं।
जमी हुई टोपियाँ
मंगल पर पानी की बर्फ की टोपियाँ हैं जो साल भर जमी रहती हैं, और सर्दियों में मौसमी ठंढ की टोपियाँ दिखाई देती हैं।
सूर्य के सबसे निकट के ग्रह- मंगल, पृथ्वी, शुक्र और बुध- ज़्यादातर चट्टान से बने हैं। चट्टानी ग्रह सभी हमारे आंतरिक सौर मंडल में बने हैं। उनका भूवैज्ञानिक इतिहास उनकी सतहों पर संरक्षित है। उनके भूदृश्य उन प्रक्रियाओं को प्रकट करते हैं जिन्होंने उन्हें आकार दिया: प्रभाव, क्रस्टल मूवमेंट, ज्वालामुखी गतिविधि और क्षरण।
मंगल: तथ्य
NASA विज्ञान (.gov)
https://science.nasa.gov › mars › तथ्य
कोर के चारों ओर 770 और 1,170 मील (1,240 से 1,880 किलोमीटर) मोटी चट्टानी मेंटल है, और उसके ऊपर, लोहे, मैग्नीशियम, एल्युमिनियम से बनी एक परत है,
सतह
लाल ग्रह वास्तव में कई रंगों का है। सतह पर, हम भूरा, सुनहरा और तन जैसे रंग देखते है���। मंगल ग्रह के लाल दिखने का कारण चट्टानों, रेगोलिथ (मंगल ग्रह की "मिट्टी") और मंगल की धूल में लोहे के ऑक्सीकरण - या जंग लगने - के कारण है। यह धूल वायुमंडल में चली जाती है और दूर से देखने पर ग्रह ज़्यादातर लाल दिखाई देता है।
दिलचस्प बात यह है कि मंगल ग्रह का व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग आधा है, लेकिन इसकी सतह का क्षेत्रफल पृथ्वी की सूखी भूमि के लगभग बराबर है। इसके ज्वालामुखी, प्रभाव क्रेटर, क्रस्टल मूवमेंट और धूल के तूफान जैसे वायुमंडलीय स्थितियों ने कई वर्षों में मंगल के परिदृश्य को बदल दिया है, जिससे सौर मंडल की कुछ सबसे दिलचस्प स्थलाकृतिक विशेषताएं बन गई हैं। वैलेस मेरिनेरिस नामक एक बड़ी घाटी प्रणाली कैलिफ़ोर्निया से न्यूयॉर्क तक फैलने के लिए पर्याप्त लंबी है - 3,000 मील (4,800 किलोमीटर) से अधिक। यह मार्टियन घाटी अपने सबसे चौड़े स्थान पर 200 मील (320 किलोमीटर) और सबसे गहरे स्थान पर 4.3 मील (7 किलोमीटर) है। यह पृथ्वी के ग्रैंड कैन्यन के आकार का लगभग 10 गुना है। मंगल ग्रह सौर मंडल के सबसे बड़े ज्वालामुखी, ओलंपस मॉन्स का घर है। यह पृथ्वी के माउंट एवरेस्ट से तीन गुना ऊँचा है और इसका आधार न्यू मैक्सिको रा��्य के आकार का है। ऐसा प्रतीत होता है कि मंगल ग्रह का अतीत पानी से भरा रहा है, जिसमें प्राचीन नदी घाटी नेटवर्क, डेल्टा और झील के किनारे हैं, साथ ही सतह पर चट्टानें और खनिज हैं जो केवल तरल पानी में बन सकते हैं। कुछ विशेषताओं से पता चलता है कि मंगल ग्रह पर लगभग 3.5 अरब साल पहले भारी बाढ़ आई थी। आज मंगल ग्रह पर पानी है, लेकिन मंगल ग्रह का वायुमंडल इतना पतला है कि सतह पर लंबे समय तक तरल पानी मौजूद नहीं रह सकता। आज, मंगल ग्रह पर पानी ध्रुवीय क्षेत्रों में सतह के ठीक नीचे पानी-बर्फ के रूप में पाया जाता है और साथ ही खारे (नमकीन) पानी के रूप में भी पाया जाता है, जो मौसमी रूप से कुछ पहाड़ियों और गड्ढों की दीवारों से बहता है।
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"एक ऐसी प्रेम कहानी जिसे भुला दिया गया"
भारत कई अनूठी कहानियों और घटनाओं का साक्षी रहा है. यहां हर मोड़ पर कुछ ना कुछ ऐसा सुनने को जरूर मिल जाता है जो आपको हैरान कर देता है कि क्या वाकई ऐसा हो सकता है.आज हम आपको ऐसे ही एक स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपनी अमर प्रेम कहानी के लिए जाना जाता है. ऐसी कहानी जो आज कई सदियों बाद भी ना सिर्फ याद की जाती है बल्कि आज के भौतिकवाद से ग्रस्त समाज में जहां प्यार को बस एक खेल की तरह खेला जा रहा है वहां प्यार के उस एहसास से रूबरू करवाती है जिसके लिए कभी लोग अपनी जान तक दे दिया करते थे.
यह कहानी मांडू की रानी रूपमती और बाज बहादुर की है. इतिहास के पन्नों में दर्ज मांडू (मध्य प्रदेश) स्थित रानी रूपमती का महल एक समय पहले तक बेहद खूबसूरत हुआ करता था, इतना कि कोई भी उसे देखकर अपनी आंखों पर विश्वास ना कर पाए कि क्या वाकई कोई इमारत इतनी बेहतरीन हो सकती है. इस महल के ऊपर मंडप बने हुए थे जहां बैठकर पूरा राज्य नजर आता था.
यह महल 365 मीटर ऊंची और सीधी खड़ी चट्टान पर स्थित है जिसका निर्माण बाज बहादुर ने करवाया था. ऐतिहासिक कहानियों के अनुसार रानी रूपमती सुबह-शाम मंडप पर बैठर सामने बहने वाली खूबसूरत नर्मदा नदी को देखा करती थी. महल के नीचे की ओर एक और महल है जिसे बाज बहादुर महल कहा जाता है और इस महल से रानी रूपमती का मंडप बहुत खूबसूरत नजर आता था. ऐसा माना जाता है कि जब रानी मंडप में होती थी, तब बाज बहादुर अपने महल के झरोखे से रूपमती को घंटों निहारा करता था.
सन 1561 की बात है जब मुगल बादशाह अकबर के सेनापति आदम खां ने मांडू पर आक्रमण कर बाजबहादुर को पराजित कर दिया और रानी रूपमती को अगवा कर लिया. रानी रूपमती ने आदम खां के समक्ष समर्पण नहीं किया और अपनी जान दे दी.
इस घटना के बाद रानी रूपमती और बाज बहादुर की प्रेम कहानी अमर हो गई और अकबर ने ही इन दोनों की प्रेम कहानी को लिखित रूप प्रदान करवाया.
मांडू में ना सिर्फ रानी रूपमती का महल चर्चा बटोरता है बल्कि यहां कई और भी स्थान हैं जो अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर हैं. मांडू की मस्जिदें भारतीय इस्लामी स्थापत्य कला की बेजोड़ उदाहरण हैं. इसके अलवा दो अन्य महल, जहाज महल और हिंडोला महल भी सौंदर्य के उत्कृष्ट नमूने हैं.
मांडू स्थित अशर्फी महल की क��ानी भी अजीब है. होशंगशाह ने सोने की अशर्फियों से इस महल का निर्माण करवाया था, जिसकी वजह से इसे अशर्फी महल का नाम दिया गया. मांडू की इसी भव्यता से प्रभावित होकर मुगल सम्राट जहांगीर यहां कई महीनों तक रहा और चप्पे-चप्पे का विचरण किया. उसने अपने प्रवास के दौरान कई भवनों का ना सिर्फ निर्माण करवाया बल्कि कई पुरानी इमारतों की मरम्मत भी करवाई.
वर्ष 1732 में मल्हार राव के नेतृत्व वाली मराठा सेना ने मांडू के मुगल गवर्नर को पराजित कर इस राज्य पर कब्जा कर लिया, तब से लेकर राजशाही के अंत तक मांडू पर मराठों का ही राज रहा. आजादी के बाद जब मांडू की रियासत पर सरकार का आधिपत्य हुआ तब यहां मालवा पर्यटन रिसॉर्ट बनाया गया. मांडू की खूबसूरती का कोई सानी नहीं है यही वजह है कि आज यहां हर साल देश-विदेश के कई सैलानी आते हैं.
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Navratri Festivals in India
Paras Parivaar Organization(पारस परिवार आर्गेनाइजेशन):
नवरात्रि की नौ रातों में हर रात एक अलग अवतार या रूप में माँ दुर्गा की पूजा की जाती है। हर रात को एक अलग रूप या स्वरुप में माँ की उपासना करते हुए, भक्तों को शक्ति, सदभावना और दिव्यता की अनुभूति होती है। ये रातें नवरात्रि का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। जिनमें भक्ति और आध्यात्मिकता की भावनाओं को जागृत किया जाता है।
नवरात्रि की नौ रातों में हर रूप का एक अलग अर्थ और महत्व है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार नवरात्रि के इस समय में माँ के हर रूप से भक्तों को माँ दुर्गा की शक्ति, साहस और दया को जानने का अवसर मिलता है। नवरात्रि में हर रात और हर दिन मंत्रों और भजनों के साथ भक्ति में वृद्धि होती है। जिससे व्यक्ति अपने आंतरिक अस्तित्व को महसूस करता है और उनका धार्मिक एवं मानसिक विकास होता है।
नवरात्रि का पर्व सामान्य रूप से माँ दुर्गा को समर्पित है। नवरात्रि माँ शक्ति की पूजा का महत्वपूर्ण त्यौहार है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस अवसर पर भक्तों का उद्देश्य माँ दुर्गा की पूजा, स्तुति और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करना है। नवरात्रि भक्ति के महत्व को समझने और अमल में लाने का भी पर्व है।
नवरात्रि का महत्व ये है कि ये त्यौहार माँ दुर्गा की अद्भुत पराक्रम को जानने का अवसर प्रदान करता है। माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के माध्यम से भक्तों को समृद्धि की प्राप्ति की प्रेरणा मिलती है। भक्तों का उद्देश्य माँ दुर्गा की कृपा दृष्टि को प्राप्त करना और उनकी शक्ति को प्राप्त करना है। नवरात्रि एक ऐसे समय का प्रतीक है जहाँ पर परिवार और समाज में प्रेम और सद्भावना का संचार होता है।
नवरात्रि माँ दुर्गा को मनाने का अवसर है। नवरात्रि में मन और शरीर शुद्ध हो जाता है। नवरात्रि इस रूप में भी महत्वपूर्ण है कि इस समय बुराई से दूर रहने और अच्छाई को बढ़ावा देने का संकल्प लिया जाता है। इस अवसर पर भक्ति, ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक विकास की दिशा में अग्रसर किया जाता है। यह नवरात्रि का त्यौहार एकता और प्रेम का प्रतीक है। जिसमें परिवार और समाज के लोग एक साथ मिलकर माँ दुर्गा की आराधना करते हैं।
माँ दुर्गा के नौ रूप :
1. माँ शैलपुत्री जी
देवी दुर्गा ने पार्वती के रुप में हिमालय के घर जन्म लिया। इसी कारण देवी का पहला नाम पड़ा शैलपुत्री अर्थात हिमालय की बेटी। शैल का मतलब है पहाड़ या चट्टान। माँ शैलपुत्री सिखाती है कि जीवन में सफलता और जीत प्राप्त करने के लिए अपने लक्ष्यों को चट्टान की तरह मजबूत बनायें।
माँ शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ रूपों में से पहले स्वरूप में जानी जाती हैं। इस रूप में मां दुर्गा को पर्वतराज हिमालय की बेटी के रूप में पूजा जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है। मां शैलपुत्री की पूजा, धन-दौलत और अच्छे स्वास्थ्य के लिए की जाती है।
2. माँ ब्रह्मचारिणी जी
इस रूप में मां दुर्गा को तपस्विनी के रूप में पूजा जाता हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है, जो ब्रह्मा के द्वारा बताए गए आचरण पर आगे बढ़े। क्योंकि जीवन में कुछ भी प्राप्त करने के लिए अनुशासन सबसे ज्यादा जरूरी है। इनकी पूजा से आपको आगे बढ़ने की शक्ति मिलती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से आपके सभी कार्य पूरे होते हैं और विजय की प्राप्ति होती है। मां ब्रह्माचारिणी के दाहिने हाथ में मंत्र जपने की माला और बाएं में कमंडल है।
3. माँ चंद्रघंटा जी
ये माँ दुर्गा का तीसरा रूप है, जिनके माथे पर घंटे के आकार का चंद्रमा है, इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा है। मां चंद्रघंटा के हाथों में त्रिशूल, धनुष, गदा और तलवार है। मां चंद्रघंटा ��क्ति का वरदान देती हैं और साथ ही भय को भी दूर करती हैं। माँ के दस हाथों में अस्त्र-शस्त्र सजे हुए हैं। मां युद्ध मुद्रा में सिंह पर विराजमान होती हैं।
4. माँ कूष्माण्डा जी
कुष्मांडा देवी का चौथा स्वरूप है। ग्रंथों के अनुसार इन्हीं देवी की मंद मुस्कान से अंड यानी ब्रह्मांड की रचना हुई थी। इसी कारण इनका नाम कूष्मांडा पड़ा। ये देवी भय दूर करती हैं। भय यानी डर ही सफलता की राह में सबसे बड़ी मुश्किल होती है। जिसे जीवन में सभी तरह के भय से मुक्त होकर सुख से जीवन बिताना हो, उसे देवी कुष्मांडा की पूजा करनी चाहिए। इनकी साधना करने से जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर होते हैं।
इनके शरीर की कांति सूर्य के समान तेज है। इनके तेज की तुलना इन्हीं से की जा सकती है। इनकीआठ भुजाएं हैं इसलिए ये अष्टभुजादेवी के नाम से भी जानी जाती हैं।
5. माँ स्कंदमाता जी
भगवान शिव और पार्वती के पहले पुत्र हैं कार्तिकेय और उन्हीं का ही एक नाम है स्कंद। इसलिए कार्तिकेय या स्कंद की माँ होने के कारण देवी के पांचवें रुप को स्कंद माता के नाम से जाना जाता है। भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं।
स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र अर्थात श्वेत है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। इनकी उपासना से साधक को अलौकिक तेज की प्राप्ति होती है।
6. माँ कात्यायनी जी
कात्यायिनी ऋषि कात्यायन की पुत्री हैं। कात्यायन ऋषि ने देवी दुर्गा की बहुत तपस्या की थी और फिर दुर्गा प्रसन्न हुई तब ऋषि ने वरदान में माँगा कि देवी दुर्गा उनके घर में पुत्री के रुप में जन्म लें। कात्यायन की बेटी होने के कारण ही नाम इनका पड़ा कात्यायिनी पड़ा।
यह नवदुर्गाओं में छठवीं देवी हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को रोग से मुक्ति पाने के लिए देवी कात्यायिनी की पूजा अर्चना करें। ये स्वास्थ्य की देवी हैं।
7. माँ कालरात्रि जी
इस रूप में मां दुर्गा का भयानक स्वरूप होता हैं। इन्हें काली माँ के रूप में पूजा जाता है। माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। काल यानि समय और रात्रि मतलब रात। इसका अर्थ उन सिद्धियों से है जो रात के समय साधना करने से साधक को मिलती हैं।
इनके नाम से दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत, बाधा आदि सभी भयभीत होकर दूर भाग जाते हैं। माँ कालरात्रि को शुभंकरी, महायोगीश्वरी और महायोगिनी भी कहा जाता है। माँ कालरात्रि की पूजा करने के बाद भक्तों को अकाल मृत्यु का भय भी खत्म हो जाता है।
8. माँ महागौरी जी
इस रूप में मां दुर्गा को सुंदर और उज्ज्वल स्वरूप में पूजा जाता हैं। माँ दुर्गा का ��ठवा स्वरूप है महागौरी। मां महागौरी का रंग अत्यंत गौरा है यही वजह है कि इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार अपनी कठिन तपस्या से मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था। इसलिए इन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरी, धन ऐश्वर्य प्रदान करने वाली कहा जाता है। इनका जो स्वरूप है वह अत्यंत सौम्य है। मां गौरी का यह रूप बेहद मोहक है। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है।
9. माँ सिद्धिदात्री जी
इस रूप में मां दुर्गा सभी सिद्धियों की देने वाली माँ के रूप में पूजा जाता हैं। माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। इस दिन पूरी श्रद्धा भाव के साथ साधना करने वाले व्यक्ति को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं।
मां सिद्धिदात्री कमल के पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी उपासना से हर तरह की सिद्धि, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है। इन्हीं देवी की कृपा से ही महादेव की आधी देह देवी की हो गई थी और वह अर्धनारीश्वर कहलाए।
“पारस परिवार” की ओर से “चैत्र नवरात्रि” की हार्दिक शुभकामनाएं !!
आपका जीवन धन और प्रेम से भरपूर हो
मां दुर्गा आपको सुख और शांति प्रदान करें !!
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प्रेशर कम करने का ‘वैक्सीन’ है कोटा कोचिंग सिस्टम- डॉ.विक्रांत पांडे
एलन एलुमनी मीट-2024 ‘समानयन’ : केंद्रीय गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव डॉ.विक्रांत पांडे ने कोटा में अपनी पढाई के अनुभव साझा किये अरविंद न्यूजवेव @कोटा ‘कोचिंग ऐसा टूल है जो विद्यार्थी के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। रोज क्लास में उसे कंफर्ट जोन से बाहर आने का डोज दिया जाता है, जिससे उसकी इम्यूनिटी बढ़ती जाती है। पढाई करते समय प्रेशर कम करने का वैक्सीन कोटा कोचिंग सिस्टम ही देता है।' केंद्रीय गृह मंत्रालय, नईदिल्ली में संयुक्त सचिव वरिष्ठ आईएएस डॉ विक्रांत पांडे एलन कॅरिअर इंस्टीट्यूट की दो दिवसीय एलुमनी मीट-2024 ‘समानयन’ में भाग लेने के लिये कोटा पहुंचे। एक विशेष बातचीत में उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि यहां का कोचिंग सिस्टम आपको अपनी छिपी हुई क्षमता को पहचानने की ताकत देता है। यह आप पर निर्भर है प्रेशर में कितना खिलकर बाहर आते हैं। कोटा में पढने का अनुभव
मैने झालावाड जिले के बकानी कस्बे में हिंदी माध्यम से स्कूली पढाई की। शिक्षक पिता ने कहा कि मैं डॉक्टर नहीं बन सका, तुम कोशिश करो। उनके संस्कार लेकर मैने 1996 में कोटा आकर एलन से पीएमटी की तैयारी की। गांव से शहर में आकर अकेले किराये के कमरे में रहकर पढाई की। एलन के शिक्षकों ने मनोबल बहुत बढाया। पहले प्रयास में ही चयन हो गया। उदयपुर से एमबीबीएस करते हुये आईएएस बनने का सपना देखा। पहले प्रयास में इंटरव्यू में सफल नहीं हुआ लेकिन कोटा कोचिंग की बदलौत हार नहीं मानी और दूसरे प्रयास में यूपीएससी में अच्छी रैंक से चयनित हो गया। गत 19 वर्षों से सिविल सेवा में रहते हुये बलसाड, भरूच व अहमदाबाद में जिला कलक्टर रहा। इन दिनों गृह मंत्रालय, नईदिल्ली में सेवारत हूं। चट्टान की तरह खडे रहो एक सवाल के जवाब में डॉ. पांडे ने कहा कि हमारा पूरा जीवन एक कॉम्पिटीशन है। हर मुकाम पर लाइनें लंबी मिलेगी, आप चट्टान की तरह खडे रहो। यह मानकर चलें कि मेरी सीट तो फिक्स है। मुझे 100 प्रतिशत मेहनत करना है। मैने 2005 में यूपीएससी दी, तब 50 आईएएस के लिये 11 लाख परीक्षार्थी थे। जज्बा ऐसा हो कि मैदान में रोकने वाले कितने भी खिलाडी हों, आपको अपनी गेंद बाउंड्री के बाहर ही भेजना है। कोचिंग सिस्टम आपकी राह में वेलवेट नहीं बिछाता है, दबाव या दर्द सहने की ताकत पैदा करता है। भीतर से बहुत मजबूत बना देता है। आईएएस इंटरव्यू में भी कोटा कोचिंग से मिला आत्मविश्वास ही काम आया। अपने बच्चों में अलख जगाओ डॉ. पांडे ने माता-पिता को सलाह दी कि वे बच्चों से आशा रखें लेकिन अति महत्वाकांक्षी नहीं बनें। अपने बच्चों को प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने के लिये अलख जगाओ। कोचिंग शिक्षक उत्प्रेरक का कार्य करेंगे, आप कूलेंट बनकर शांत रहो। जो आप नहीं कर पाये, उसकी अपेक्षा बच्चे से नहीं करें। बच्चे की मानसिकता को भांप लें। जीवन बहुत लंबा है, हर बात पर उसे दाद देते हुये कहें कि अगली बार इससे भी अच्छा होगा। किसी अन्य से तुलना कभी मत करो। पढाई के दौरान कई टेस्ट होंगे, हमें गोल पर नजरें टिकानी हैं। परीक्षायें मौज-मस्ती नहीं है, स्वाध्याय और मेडिटेशन है। परीक्षा के बाद बच्चे से मार्क्स पर नही करंे। उससे संवाद कर भावनात्मक लगाव महसूस करायें। जिस भूमि पर पानी के छींटे गिरेंगे, खाद डलेगी, वह बंजर नहीं रहेगी। कोचिंग सिस्टम भी बच्चों को वैज्ञानिक ढंग से स्मार्ट थिंकिंग देता है। उसके मस्तिष्क को उपजाऊ बना देता है। थ्योरी पढ़ने का तरीका बदलो एक सवाल के जवाब में वरिष्ठ आईएएस डॉ.पांडे ने कहा कि हम स्कूली पढाई में जो थ्योरी पढते हैं, उसका तरीका प्रवेश परीक्षाओं में बदल जाता है। स्कूल में नंबर आ जाते हैं लेकिन कंसेप्ट क्लियर नहीं होते हैं। कोचिंग में थ्योरी के चेप्टर के कंसेप्ट को समझाते हैं। प्रश्नों का एनालिसिस करना सिखाते हैं। इससे सोचने की सही क्षमता आ जाती है। थ्योरी के प्रत्येक चेप्टर से 100 प्रश्न हल करने की प्रेक्टिस करने पर पढाई करने का तरीका ही बदल जाता है। तेजी से प्रश्न हल करने का स्किल कोचिंग से ही मिलता है। हर शिक्षक थ्योरी चेप्टर को प्रवेश परीक्षाओं से जोड़कर पढाते हैं। यह आप पर निर्भर है कि प्रेशर से कितना खिलकर बाहर आते हैं। कोचिंग सिस्टम आपको दौडने का रास्ता दिखाता है, राह में कंसेप्ट क्लियर कर पत्थर हटाता है तो कठिन प्रश्न देकर पत्थर डालता भी है। जिससे आप कम्पीटिशन की बाधाओं को पार कर लक्ष्य को पा सको। ये हैं कोटा कोचिंग की खास बातें आज दुनियाभर में कोटा कोचिंग की अलग पहचान है। यहां के शिक्षक बच्चों के साथ कडी मेहनत कर उन्हें लक्ष्मण रेखा से बाहर निकालते हैं। बच्चे खुद का विश्लेषण करें। ओवर थिंकिग व सोशल प्रेशर से खुद को दूर रखें। जल्दी से किसी सफलता की कोशिश न करें। कोटा कोचिंग में पीयर गु्रप आपको पढने का माहौल देता है। टाइम मैनेजमेंट, कंसेप्ट समझने, समर्पित होकर पढाई करने से आप खुद को अपग्रेड करना सीख जायेंगे। कोटा कोचिंग का स्वस्थ वातावरण आपको कम्फर्ट जोन से बाहर निकालने में सक्षम है। इसलिये अपने टारगेट के आगे 1-2 साल सोशल मीडिया व स्मार्ट फोन को भूल जायें। Read the full article
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नज्म दौर ए हाजिर
जमाना जाहिलिया तो बदनाम ठहरा वहशी दौर ए हाजिर का इंसान ठहरा। जिंदा दफन किया बेटियों को कभी आज हमल में ही कातिल बाप ठहरा। कभी तो रौनकों का मेला है जिंदगी जिंदगी असल में मौत का पेश्खेमा ठहरा । हालात ने मायूस कर दिया अब मुझे भी आंधियों के खिलाफ मैं कभी चट्टान ठहरा। इस उम्र में कब तक लड़ता रहूंगा जंग जहां से मिले कुछ वक्त मुझ पे जिम्मेदारियों का पहाड़ ठहरा । हर शाख को बदनाम करने से क्या…
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जैतून के पेड़ों की खेती से क्या लाभ होता है? इसे जानने के लिए उत्पादन तकनीक और वर्तमान बाजार का मूल्यांकन करें
राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में, जहाँ जलवायु की कठिनाइयों के कारण पारंपरिक फसलों की खेती मुश्किल होती है, वहाँ जैतून की खेती किसानों के लिए एक बड़ी संभावना बन रही है। इसका कारण है कि यह फसल बंजर भूमि में भी अच्छी पैदावार कर रही है, जिससे किसानों को लाभ हो रहा है।
जैतून, जिसे अंग्रेजी में ऑलिव कहा जाता है, राजस्थान के किसानों के लिए एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है। यह फल विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में उपयोग किया जाता है, लेकिन जैतून का प्रमुख उपयोग तेल के रूप में होता है। इससे कुकिंग ऑयल और शिशुओं की मालिश के तेल के अलावा, यह ब्यूटी उत्पादों और दवाइयों में भी उपयोग होता है। इसलिए, इसकी बाजार में हमेशा मांग रहती है। जैतून का तेल महंगा होता है, इसलिए किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं जब वे इसे महंगे दर पर बेचते हैं।
जैतून की खेती को बढ़ावा
जैतून की खेती से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार संभव है। इसलिए सरकार ने जैतून की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को केवल प्रेरित ही नहीं किया जा रहा है, बल्कि पौधों की देखभाल और रखरखाव के लिए सब्सिडी भी प्रदान की जा रही है। हमारे देश में सबसे ज़्यादा जैतून राजस्थान में ही उगाया जाता है, क्योंकि यहां की जलवायु इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। राजस्थान के बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू और जैसलमेर जिलों में इसकी खेती की जा रही है। जैतून का पौधा 3-10 मीटर या इससे अधिक ऊंचा भी हो सकता है।
जैतून की खेती के लिए किस तरह की मिट्टी चाहिए?
जैतून की खेती के लिए वहाँ किसी ऐसी ज़मीन का चयन करें जहाँ पानी की निकासी अच्छी हो। यदि खेत पथरीला या छोटे-छोटे कंकड़ वाला हो, तो यह और भी अच्छा होगा। खेत की गहराई में कम से कम एक मीटर ऊंची चट्टान होनी चाहिए। इसकी खेती के लिए नरम और मजबूत मिट्टी का चयन करें। पौधों को रोपाई करते समय, 2 फीट ऊँचे और 2 फीट चौड़े मेड़ बनाएं।
मेड़ बनाने के लिए ट्रैक्टर की मदद ले सकते हैं। पौधों को रोपाई करने से पहले, एक गड्ढा खोदकर उसमें गोबर की खाद और दीमकरोधी दवा डालें और 3-4 दिनों के लिए छोड़ दें। इसके बाद, सवा फुट का एक और गड्ढा खोदें और उसमें जैतून का पौधा लगाएं। रोपाई के बाद, तुरंत सिंचाई करें और फिर खेत को ड्रिप आईरिगेशन सिस्टम से जोड़ें ताकि पौधों को नियमित जल प्राप्त हो सके। पौधों के बीच की दूरी को 4 मीटर और पंक्ति के बीच की दूरी को 7 मीटर रखें।
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अयोध्या में निर्माणाधीन श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की विशेषताएं:
1. मंदिर परम्परागत नागर शैली में बनाया जा रहा है।
2. मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट रहेगी।
3. मंदिर तीन मंजिला रहेगा। प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फीट रहेगी। मंदिर में कुल 392 खंभे व 44 द्वार होंगे।
4. मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बालरूप (श्रीरामलला सरकार का विग्रह), तथा प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा।
5. मंदिर में 5 मंडप होंगे: नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप
6. खंभों व दीवारों में देवी देवता तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी जा रही हैं।
7. मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से, 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से होगा।
8. दिव्यांगजन एवं वृद्धों के लिए मंदिर में रैम्प व लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी।
9. मंदिर के चारों ओर चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा। चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट होगी।
10. परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा, व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा।
11. मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप विद्यमान रहेगा।
12. मंदिर परिसर में प्रस्तावित अन्य मंदिर- महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी व ऋषिपत्नी देवी अहिल्या को समर्पित होंगे।
13. दक्षिण पश्चिमी भ���ग में नवरत्न कुबेर टीला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है एवं तथा वहां जटायु प्रतिमा की स्थापना की गई है।
14. मंदिर में लोहे का प्रयोग नहीं होगा। धरती के ऊपर बिलकुल भी कंक्रीट नहीं है।
15. मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टेड कंक्रीट (RCC) बिछाई गई है। इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है।
16. मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है।
17. मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पॉवर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे।
18. 25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र (Pilgrims Facility Centre) का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी।
19. मंदिर परिसर में स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा भी रहेगी।
20. मंदिर का निर्माण पूर्णतया भारतीय परम्परानुसार व स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कुल 70 एकड़ क्षेत्र में 70% क्षेत्र सदा हरित रहेगा।
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