#गुरु गोबिंद सिंह जी का इतिहास
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Guru Gobind Singh ji | गुरु गोबिंद सिंह जी का इतिहास
Guru Gobind Singh ji Jayanti | गुरु गोबिंद सिंह जी जयंती Guru Gobind Singh ji Jayanti | गुरु गोबिंद सिंह जी जयंती Guru Gobind Singh ji | गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु हैं। इनका जन्म ( Guru Gobind Singh ji Jayanti | गुरु गोबिंद सिंह जी जयंती ) पौष सुदी 7वीं सन् 1666 को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर हुआ। उस समय गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे। उन्हीं के…
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Guru Gobind Singh Jayanti 2024: तिथि, समय, इतिहास और महत्व
Guru Gobind Singh Jayanti 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार, Guru Gobind Singh Jayanti हर साल पौष महीने के शुक्ल पक्ष की 7वीं तिथि को मनाई जाती है। यह एक सिख धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन, सिख समुदाय के लोग श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मदिन को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन, गुरुद्वारों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और भक्तजन गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन और शिक्षाओं को याद करते हैं।
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 तिथि और समय: गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2024 में 5 जनवरी, रविवार को पड़ रही है। यह दिन पौष महीने के शुक्ल पक्ष की 7वीं तिथि है। इस दिन, सुबह से ही गुरुद्वारों में विशेष पूजा-अर्चना शुरू हो जाएगी। इसके अलावा, कई जगहों पर गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन पर आधारित कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
Guru Gobind Singh इतिहास: गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 1666 ईस्वी में पटना, बिहार में हुआ था। उनके पिता श्री गुरु तेग बहादुर जी और माता माता गुजरी जी थे। Guru Gobind Singh जी सिख धर्म के दसवें गुरु थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई महान कार्यों को अंजाम दिया। उन्होंने सिख पंथ की स्थापना की और सिखों को एक अलग पहचान दी। उन्होंने सिखों को शस्त्र धारण करने की शिक्षा दी और उन्हें मुगल शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन का अंतिम समय आनंदपुर साहिब में बिताया।
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 महत्व: गुरु गोबिंद सिंह जयंती का सिख धर्म में बहुत महत्व है। यह दिन गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, सिख समुदाय के लोग गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन और शिक्षाओं को याद करते हैं। वे उनके साहस, शौर्य और त्याग की भावना से प्रेरणा लेते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जयंती पर गुरुद्वारों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और भक्तजन गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन पर आधारित कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन, सिख समुदाय के लोग श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मदिन को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन, गुरुद्वारों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और भक्तजन गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन और शिक्षाओं को याद करते हैं।
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 Quotes: आपके जीवन को बदलने के लिए ज्ञान के सात अनमोल शब्द
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 Quotes: सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह एक आध्यात्मिक नेता, योद्धा, कवि और दार्शनिक थे, जो 1666 से 1708 तक जीवित रहे। आध्यात्मिकता, साहस और धार्मिकता पर उनकी शिक्षाओं के लिए दुनिया भर के सिखों द्वारा उनका सम्मान किया जाता है। उनके शब्द आज भी लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शन करते हैं।
यहां गुरु गोबिंद सिंह के सात अनमोल उद्धरण दिए गए हैं जो जीवन के प्रति आपका नजरिया बदल सकते हैं, Guru Gobind Singh Jayanti 2024 Quotes आपके जीवन को बदलने के लिए ज्ञान के सात अनमोल शब्द
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 Quotes
1. "He alone is a man who keeps his word." - "केवल वही व्यक्ति है जो अपनी बात रखता है।"
This quote emphasizes the importance of integrity and honesty in life. When you keep your word, you build trust and respect with others. You also develop a strong sense of self-worth and integrity.
यह उद्धरण जीवन में सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के महत्व पर जोर देता है। जब आप अपनी बात रखते हैं, तो आप दूसरों के बीच विश्वास और सम्मान पैदा करते हैं। आपमें आत्म-मूल्य और सत्यनिष्ठा की एक मजबूत भावना भी विकसित होती है।
2. "The world is a bridge. Cross over it, but do not build your house upon it." - "दुनिया एक पुल है। इसे पार करो, लेकिन इस पर अपना घर मत बनाओ।"
This quote reminds us that the material world is temporary and impermanent. We should not get too attached to it or let it define our lives. Instead, we should focus on our spiritual growth and development.
यह उद्धरण हमें याद दिलाता है कि भौतिक संसार अस्थायी और अनित्य है। हमें इससे बहुत अधिक जुड़ना नहीं चाहिए या इसे अपने जीवन को परिभाषित नहीं करने देना चाहिए। इसके बजाय, हमें अपनी आध्यात्मिक उन्नति और विकास पर ध्यान देना चाहिए।
3. "Death is the only truth; all else is false." - "मृत्यु ही एकमात्र सत्य है; बाकी सब झूठ है।"
This quote is a reminder that death is the ultimate reality that we all must face. It encourages us to live our lives to the fullest and make the most of every moment.
यह उद्धरण एक अनुस्मारक है कि मृत्यु अंतिम वास्तविकता है जिसका हम सभी को सामना करना होगा। यह हमें अपना जीवन पूरी तरह से जीने और हर पल का अधिकतम लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
4. "The greatest sin is to forget God." - "भगवान को भूलना सबसे बड़ा पाप है।"
Guru Gobind Singh believed that the greatest sin is to forget God and the divine connection that we all have. When we forget God, we become lost and disconnected from our true selves.
गुरु गोबिंद सिंह का मानना था कि सबसे बड़ा पाप ईश्वर और हम सभी के दैवीय संबंध को भूलना है। जब हम ईश्वर को भूल जाते हैं, तो हम खो जाते हैं और अपने सच्चे स्वरूप ��े अलग हो जाते हैं।
5. "The greatest virtue is to remember God." - "भगवान् को याद करना सबसे बड़ा पुण्य है।"
The opposite of forgetting God is to remember Him always. When we remember God, we are reminded of our true purpose in life and our connection to the divine.
ईश्वर को भूलने के विपरीत उसे सदैव याद रखना है। जब हम भगवान को याद करते हैं, तो हमें जीवन में हमारे सच्चे उद्देश्य और परमात्मा के साथ हमारे संबंध की याद आती है।
6. "The greatest wealth is contentment." - "सबसे बड़ा धन संतोष है।"
Guru Gobind Singh taught that the greatest wealth is not material possessions but contentment. When we are content with what we have, we are free from greed, envy, and attachment.
गुरु गोबिंद सिंह ने सिखाया कि सबसे बड़ा धन भौतिक संपत्ति नहीं बल्कि संतोष है। जब हमारे पास जो कुछ है उससे हम संतुष्ट होते हैं, तो हम लालच, ईर्ष्या और मोह से मुक्त हो जाते हैं।
7. "The greatest victory is over oneself." - "सबसे बड़ी जीत स्वयं पर है।"
The greatest victory is not over others but over oneself. When we overcome our own ego, desires, and attachments, we achieve true victory.
सबसे बड़ी जीत दूसरों पर नहीं बल्कि स्वयं पर है। जब हम अपने अहंकार, इच्छाओं और आसक्ति पर विजय पाते हैं, तो हम सच्ची जीत हासिल करते हैं।
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 Quotes: आपके जीवन को बदलने के लिए ज्ञान के सात अनमोल शब्द -- गुरु गोबिंद सिंह के ये सात उद्धरण ईमानदारी, ईमानदारी, आध्यात्मिकता और संतुष्टि का जीवन जीने के महत्व का एक शक्तिशाली अनुस्मारक हैं। उनकी शिक्षाओं का पालन करके, हम अपने जीवन को बदल सकते हैं और सच्ची खुशी और पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं।
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गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2022: इतिहास, महत्व और 10वें सिख गुरु के बारे में सबकुछ
गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2022: इतिहास, महत्व और 10वें सिख गुरु के बारे में सबकुछ
छवि स्रोत: फ़ाइल छवि गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2022 गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2022: सिख धर्म के दसवें गुरु, उनका अनुकरणीय जीवन साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती सिख समुदाय के लोगों के बीच एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। उनका जन्म 22 दिसंबर, 1666 को पटना, बिहार में हुआ था। गुरु गोबिंद सिंह जयंती की गणना चंद्र कैलेंडर के अनुसार की जाती है। इस वर्ष, उनकी 356 वीं जयंती 29…
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इतिहास की इन सच्चाईयों पर भी गौर करें मित्रों
दारा शिकोह से उत्तराधिकार की लड़ाई में औरंगज़ेब का साथ सबसे ज़्यादा राजपूतों ने दिया था- प्रमुख थे (महाराणा प्रताप के)मेवाड़ के राणा राज सिंह, आमेर के राजा जय सिंह कछवाहा और मारवाड़ के राजा जसवंत सिंह।
असल में औरंगज़ेब के शासन में उसके अपने दरबार में राजपूत मनसबदारों की संख्या शाहजहाँ के 24% से बढ़ कर सीधे 33% हो गयी थी। इसमें अगर हिमाचल और पंजाब के सिख और हिंदू पहाड़ी राजाओं को जोड़ लें तो 50% के ऊपर जाएगी।
यहाँ यह भी याद रखें कि गुरु तेग़बहादुर से गुरु गोबिंद सिंह तक मुग़ल सल्तनत से हुई सारी लड़ाइयों में यही पहाड़ी हिंदू राजा थे जो उनसे लड़ते थे, औरंगज़ेब नहीं जाता था।
औरंगज़ेब के दीवान ए कुल थे रघुनाथ रे कायस्थ- जो औरंगज़ेब के तमाम विजय अभियानों पर साथ रहे। उनकी मृत्यु पर औरंगज़ेब ने श्रद्धांजलि लेख भी लिखा।
याद यह भी करिए कि शिवाजी को गिरफ़्तार करने जो मुग़ल सेना गई थी उसका सेनापति कौन था। सदमा लग सकता है आपको। आंबेर, माने आमेर माने आज के जयपुर के मिर्ज़ा राजा जय सिंह को।
उसी जयपुर के जिसकी राजकुमारी और भाजपा सांसद आजकल ताजमहल पर दावा पेश कर रही हैं के राजा औरंगजेब के मनसबदार थे और शिवाजी को ठीक करने भेजे गये थे - किये भी।
लंबी घेराबंदी के बाद शिवाजी को मुग़ल सेनापति जय सिंह से पुरंदर की संधि करनी पड़ी जिसमें उनको अपने 23 क़िले ही नहीं, बेटे संभाजी को भी देना पड़ा। संभाजी को मुग़ल मनसबदार बना कर मुग़लों के लिये लड़ने दक्कन भेजा गया।
शिवाजी ख़ुद मुग़ल साम्राज्य के अधीन आये- वासल स्टेट बने!
अब बस यह बताइए कि अगर औरंगजेब मंदिर तोड़ रहा था तो ये सारे महान हिंदू राजा लोग क्या कर रहे थे….????
Rajendra jain जी की वाल से साभार
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20जनवरी : गुरु गोबिंद सिंह जन्मजयंती ××××××××××××××××××××××× मुगलो ने करीब 350 साल हुकूमत की, वे आज कहाँ है किसी को पता नही। लेकिन जो उनसे हारते गए, मरते गए वो आज तक दिलो मे जिंदा और कायम है। जिन्होने किसी के आगे घुटने नही टेके, बेशक जान गंवानी पड़े या हारना पड़े, गुरु गोबिंद सिंह उनमे सबसे प्रमुख रहे। गुरु गोबिंद सिंह (20जनवरी1666 - 07अक्टूबर1708) जानते थे कि मेरा व मुगलो का कोई मुकाबला नही लेकिन फिर भी लड़ना है और लड़कर जान दे देनी है पर अनख (इज़्ज़त) नही देनी, स्वाभिमान नही देना। वो जानते थे कि हम एक छोटी चिड़िया के समान है जिसे बाज़ से लड़ना है और ये जज़्बा जिंदा रख औरो को भी प्रेरित करना है। बलिदान देकर इतिहास मे अमर होना है और जब तक दशम गुरु जिंदा रहे इसी उसूल पर जिंदा रहे, कभी हार नही मानी और सिक्खो को एक जुझारू कौम के रूप मे तब्दील कर दिया। गुर��� गोबिंद सिंह जी, औरंगजेब (03नवंबर1618 - 03मार्च1707) के मरने के ठीक डे�� साल बाद तक जीवित रहे। वे ��पने पीछे वे एक ऐसी कौम खड़ी कर गए जो आज तक बड़ी शान से जिंदा है और अपनी चमक कायम किये हुए है। ये दशम गुरु का ही ताप है कि सिक्खो का रुतबा पूरी दुनिया मे बढ़ा। आज सिक्ख भारत की सिरमौर कौम है। सिक्खो के दशम गुरु सिक्खो के लिए पिता के समान है जो आज भी उनके साथ विद्यमान है और नित उनसे प्रेरणा पाते है। गुरु गोबिंद सिंह का नाम लेते ही मुर्दे मे भी प्राण आ जाते है। गुरु गोबिंद सिंह ने अन्याय के खिलाफ कभी सिर नही झुकाया, यही उनकी सबसे बड़ी पूंजी थी जिसे वो अपनी कौम को दे गए। जिन्होने कलम और तलवार एक साथ लिए थे, ऐसे महान यौद्धा संत को उनकी 355वीं जन्मजयंती पर सादर नमन 🌷💐 🙏🙏 “चिड़ियों से मैं बाज लडाऊँ, गीदड़ों को मैं शेर बनाऊँ।” “सवा लाख से एक लडाऊँ, तभी गोबिंद सिंह नाम कहाऊँ।।” SAHIB-E-KAMAAL DHAN DHAN SHRI GURU GOBIND SINGH JI MAHARAJ 🙏🙏 GURUPURAB DIAN L AKH LAKH WADHAIYAN JI 🙏 #BanEVM #ईवीएम_हटाओ #बहुजनक्रांतिमोर्चा #राष्ट्रीयसीखमोर्चा #भारतमुक्तिमोर्चा #भारतीय_विद्यार्थी_मोर्चा #WeSupportFarmers #राष्ट्रीयकिसानमोर्चा #जयमूलनिवासी_ब्राह्मणविदेशी https://www.instagram.com/p/CKQqMBvlbE1/?igshid=5lmbiq0fzubf
#banevm#ईवीएम_हटाओ#बहुजनक्रांतिमोर्��ा#राष्ट्रीयसीखमोर्चा#भारतमुक्तिमोर्चा#भारतीय_विद्यार्थी_मोर्चा#wesupportfarmers#राष्ट्रीयकिसानमोर्चा#जयमूलनिवासी_ब्राह्मणविदेशी
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चिड़ियों से मैं बाज तुड़ाऊं.....तभी गोबिंद सिंह नाम कहाऊं
चिड़ियों से मैं बाज तुड़ाऊं…..तभी गोबिंद सिंह नाम कहाऊं
दानवीर, क्रांतिवीर,शूरवीर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी देवभूमि मीडिया ब्यूरो श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का पावन नाम आज भी भारतीय गौरवशाली इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। उन्हें सरबंसदानी, दानवीर,क्रांतिवीर एवं संत−सिपाही के रूप में याद किया जाता है। यों तो हमारे देश में अनेकों दानवीर हुए हैं जिन्होंने मानवता को त्रास मुक्त करने के लिए अनेकों बलिदान दिए। जैसे महर्षि शिबि ने इस संसार…
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#capital news#Chief Minister Trivendra Rawat#National#Personality#Prime Minister Narendra Modi#Treditions#Uttarakhand#Views & Reviews#World News
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सीएम योगी का ऐलान : स्कूलों में मनेगा साहिबजादा दिवस
सीएम योगी का ऐलान : स्कूलों में मनेगा साहिबजादा दिवस
गुरु गोबिंद सिंह जी के चार साहिबजादों और माता गुजरी जी को नमन करते हुए सीएम योगी ने घोषणा की है कि अब प्रदेश के हर स्कूल में प्रतिवर्ष साहिबजादा दिवस मनाया जाएगा। साथ ही, सिख गुरुओं का इतिहास पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाएगा। मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर रविवार को साहिबजादा दिवस पर आयोजित गुरुबाणी कीर्तन में सीएम योगी आदित्यनाथ समेत सरकार के अन्य मंत्री शामिल हुए। सिख समाज को भक्ति, शक्ति,…
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CORONA VIRUS के इस भयंकर महाकाल में क्या आज 13 April 2020 वैशाख (बैसाखी) का सूर्य कोई उमीद की किरण लायेगा? आइये जानते है, ज्योतिषिये विश्लेषण द्वारा। _______________________________ 13 April यानी वैशाख जिसे सिखों में भी बैसाखी के रूप में बड़ा पवित्र दिन माना जाता है। क्योंकि इसी दिन श्री गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी ने खालसा पंथ की सृजना की थी। इसी दिन गुरु साहिबान ने इतनी निडर शक्ति को जन्म दिया जोकि लाखों की फौज से भी नही डरते थे, और एक खालसा लाखों की फौज पर भी भारी होता था। निडर और अपने धर्म पर अडोल पंथ की सृजना की जिसका की इतिहास गवाह है। इसी तरह ज्योतिष में भी इस दिन का बहुत महत्व है। क्योंकि इसी दिन सूर्य जो सभी ग्रहो का राजा है अपनी उच्च की राशि मेष राशि में प्रवेश करता है जोकि राशि चक्र की सबसे प्रथम राशि है। यानी की आज सूर्य अपनी उच्च की राशि में प्रवेश करेंगे (उच्च का सीधे शब्दों में अर्थ होता है, की किसी ग्रह का अपनी उस राशि में प्रवेश करना जहाँ वह बलवान होकर अपने संपूर्ण गुणों को फलीभूत करता है) चलिए आईये इस बात का आंकलन ज्योतिष द्वारा करते है। आज 13 April, 2020 शाम 8:39 minutes पर सूर्य मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। यह दुनिया के लिए इस मुश्किल समय में एक उमीद की किरण लेकर आयेगा। क्योंकि सूर्य एक चिकित्सकीय गुणों (Doctorate properties) वाला ग्रह है। और अश्विनी नक्षत्र भी चिकित्सकीय (doctorate) नक्षत्र है, इसी नक्षत्र में बड़ी- बड़ी औषिधियों का निर्माण हुआ। यानी की यह एक बहुत अच्छा संजोग होगा, यानी की 13 April के बाद (अमूमन 25 April से 10 May के बीच) 1 महीने के अंतराल में जल्द ही कोई स्थिर ईलाज या इसकी दवाई का निर्माण हो सकता है। चिकित्सकीय जगत को एक बहुत बड़ी उपलब्धि की प्राप्ति होगी। क्योंकि यहाँ पर सूर्य को मंगल जोकि एक रोग प्रतिरोधक ग्रह है, अपनी पूर्ण चतुर्थ दृष्टि से देखेगा जिससे मंगल का रोग प्रतिरोधक बल मिलेगा जोकि सोने पर सुहागा जैसा संयोग होगा। परंतु यह सिर्फ ईलाज मिलने की संभावना का समय रहेगा। Corona के अंत का नही, बल्कि इस समय में यह अपना और अधिक प्रचंड रूप धार सकता है। इस समय हमे और अधिक सचेत रहने और प्रमात्मा के सिमरन ,भरोसे और शरण की आवश्यकता होगी। क्योंकि ईलाज मिलने के बाद भी प्रभाव में लाने में समय लग सकता है, और तब तक मनुष्य को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। परंतु इस समय में ईलाज का मिल जाना सबसे बड़ी राहत होगा। साथ ही आने वाले समय मे प्राकृतिक आपदायें या कुछ देशों में आपसी मतभेद भी उभर सकते है। #pendamic https://www.instagram.com/p/B-7CB9-pLL3/?igshid=412z7002ohvp
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Guru Gobind Singh Jayanti 2019: कौन थे गुरु गोबिंद सिंह, किन 5 चीजों को बनाया सिखों की शान? - Guru gobind singh jayanti 2019 sikh 10th guru life tpra
Guru Gobind Singh Jayanti 2019: लोहड़ी के पर्व के साथ आज गुरु गोबिंद सिंह जी की 352वीं जयंती भी है. गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के 10वें गुरु थे. उनका जन्म पटना के साहिब में हुआ था. साल 1699 में गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. यह सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है. गुरु गोबिंद सिंह ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया था. कहा जाता है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा करते हुए और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दिया था. गुरु गोबिंद सिंह का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करता है.
कौन थे गुरु गोबिंद सिंह?
कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंत की रक्षा के लिए कई बार मुगलों का सामना किया था. सिखों के लिए 5 चीजें- बाल, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था. इन चीजों को ‘पांच ककार’ कहा जाता है, जिन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए अनिवार्य होता है.
गुरु गोबिंद सिंह को ज्ञान, सैन्य क्षमता आदि के लिए जाना जाता है. गुरु गोबिंद सिंह ने संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखीं थी. साथ ही उन्होंने धनुष-बाण, तलवार, भाला चलाने की कला भी सीखी.
गुरु गोबिंद सिंह एक लेखक भी थे, उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की थी. उन्हें विद्वानों का संरक्षक माना जाता था. कहा जाता है कि उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी. इस लिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था.
कैसे मनाई जाती है गुरु गोबिंद सिंह जयंती-
सिख धर्म के लोग गुरु गोबिंद सिंह जयंती को बहुत धूम-धाम से मनाते हैं. इस दिन घरों और गुरुद्वारों में कीर्तन होता है. खालसा पंत की झांकियां निकाली जाती हैं. इस दिन खासतौर पर लंगर का आयोजन किया जाता है.
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क्या आप जानते हैं विश्व की सबसे मंहंगी ज़मीन सरहिंद, जिला फतेहगढ़ साहब (पंजाब) में है, जो मात्र 4 स्क्वेयर मीटर है। जानिये - रोंगटे खड़े कर देनें वाली ऐतिहासिक घटना। ੴ श्री गुरु गोविंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों का अंतिम संस्कार के लिए सेठ दीवान टोडर मल ने यह ज़मीन 78000 सोने की मोहरें (सिक्के) दे कर मुस्लिम बादशाह से खरीदी थी। सोने की कीमत के मुताबिक इस 4 स्कवेयर मीटर जमीन की कीमत 2500000000 (दो अरब पचास करोड़) बनती है। दुनिया की सबसे मंहंगी जगह खरीदने का रिकॉर्ड सिख धर्म के इतिहास में दर्ज करवाया गया है। आजतक दुनिया के इतिहास में इतनी मंहंगी जगह कहीं नही खरीदी गयी। और दुनिया के इतिहास में ऐसा युद्ध ना कभी किसी ने पढ़ा होगा ना ही सोचा होगा, यह युद्ध 'चमकौर युद्ध' (BattlE of Chamkaur) के नाम से भी जाना जाता है जो कि मुग़ल योद्धा वज़ीर खान की अगवाई में 10 लाख की फ़ौज का सामना सिर्फ 42 सिखों से, 6 दिसम्बर 1704 को हुआ जो कि गुरु गोबिंद सिंह जी की आज्ञा से तैयार हुए थे और जीत होती है उन 42 सूरमो की ! नतीजा यह निकलता है की उन 42 शूरवीरों की जीत होती है और हिंदुस्तान में मुग़ल हुकूमत की नींव, जो बाबर ने रखी थी, उसे जड़ से उखाड़ दिया गया। औरंगज़ेब ने भी उस वक़्त गुरु गोविंद सिंह जी का लोहा माना और घुटने टेक दिए और ऐसे मुग़ल साम्राज्य का अंत हुआ। औरंगजेब की तरफ से एक प्रश्न किया गया गुरु गोविंद सिंह जी से, कि यह कैसी फ़ौज तैयार की आपने जिसने 10 लाख की फ़ौज को उखाड़ फेंका? गुरु गोविंद सिंह जी ने जवाब दिया, चिड़ियों से मैं बाज लडाऊ, गीदड़ों को मैं शेर बनाऊं, सवा लाख से एक लडाऊं, तभी गोविंद सिंह नाम कहाउँ !! गुरु गोविंद सिंह जी ने जो कहा वो किया और जिन्हें आज हर कोई शीश झुकता है। यह है हमारे भारत की सबसे अनमोल विरासत जिसे कभी पढ़ाया ही नहीं जाता ! अगर आपको यकीन नहीं होता तो एक बार जरूर Google में लिखे 'बैटल ऑफ़ चमकौर' और सच आपको स्वयं पता लग जाएगा। चमकौर साहिब की जमीन, आगे चलकर, एक समृद्ध सिख ने खरीदी। उस को इसके इतिहास का कुछ पता नहीं था। जब पता चला कि यहाँ गुरु गोविंद सिंह जी के दो बेटे शहीद हुए थे, तो उन्होंने यह ज़मीन गुरु महाराज जी के बेटों की यादगार ( गुरुद्वारा साहिब) के लिए देने का मन बनाया। जब अरदास करने के समय उस सिख से पूछा गया कि अरदास में उनके लिए गुरु साहिब से क्या विनती करनी है, तो उस सिख ने कहा के गुरु जी से विनती करनी है कि मेरे घर कोई औलाद ना हो ताकि मेरे वंश में कोई भी यह कहने वाला ना हो कि यह ज़मीन मेरे बा�� दादा ने दी है। (at Sirhind)
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जीवन मंत्र डेस्क. शौर्य और साहस के प्रतीक गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को बिहार के पटना में हुआ। इस बार यह तिथी 02 जनवरी को है। इनके बचपन का नाम गोबिंद राय था और वे दसवें सिख गुरु थे। एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ वे एक निर्भयी योद्धा, कवि और दार्शनिक भी ��े। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। गुरु गोबिंद सिंह ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया था। कहा जाता है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा करते हुए और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दिया था। गुरु गोबिंद सिंह का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। सिखों की 5 मर्यादाएं कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की रक्षा के लिए कई बार मुगलों का सामना किया था। सिखों के लिए 5 मर्यादाएं- केश, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था। इन चीजों को पांच ककार कहा जाता है, जिन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए अनिवार्य होता है। गुरु गोबिंद सिंह को ज्ञान, सैन्य क्षमता आदि के लिए जाना जाता है। उन्होंने संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखीं थी। साथ ही उन्होंने धनुष-बाण, तलवार, भाला चलाने की कला भी सीखी। विद्वानों के संरक्षक गुरु गोबिंद सिंह एक लेखक भी थे, उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की थी। उन्हें विद्वानों का संरक्षक माना जाता था। कहा जाता है कि उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति बनी रहती थी। इस लिए उन्हें संत सिपाही भी कहा जाता था। सिख धर्म के लोग गुरु गोबिंद सिंह जयंती को बहुत धूम-धाम से मनाते हैं। इस दिन घरों और गुरुद्वारों में कीर्तन होता है। खालसा पंथ की झांकियां निकाली जाती हैं। इस दिन खासतौर पर लंगर का आयोजन किया जाता है। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Guru Gobind Singh Jayanti 2020 Guru Gobind Singh Gave Panch Kakar And Guru Granth Sahib
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20 Dec से ले के 27 Dec गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने परिवार और 400 अन्य #सिखों के साथ #आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया और निकल पड़े ....उस रात भयंकर सर्दी थी और बारिश हो रही थी ...सेना 25 किलोमीटर दूर सरसा नदी के किनारे पहुंची ही थी कि मुग़लों ने रात के अंधेरे में ही आक्रमण कर दिया । बारिश के कारण नदी में उफान था । कई सिख शहीद हो गए । कुछ नदी में ही बह गए । इस अफरातफरी में परिवार बिछुड़ गया । माता गूजरी और दोनों छोटे साहिबजादे गुरु जी से अलग हो गए । दोनो बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ ही थे । . उस रात गुरु जी ने एक खुले मैदान में शिविर लगाया । अब उनके साथ दोनो बड़े साहिबजादे और 40 सिख योद्धा थे । शाम तक आपने चौधरी रूप चंद और जगत सिंह की कच्ची गढ़ी में मोर्चा सम्हाल लिया । अगले दिन जो युद्ध हुआ उसे इतिहास में 2nd Battle Of Chamkaur Sahib के नाम से जाना जाता है । उस युद्ध में दोनों बड़े साहिबजादे और 40 अन्य सिख योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए । . उधर दोनो छोटे #साहिबजादे जो 20 कि रात को ही गुरु जी से बिछुड़ गए थे माता गुर्जरी के साथ सरहिंद के किले में कैद कर लिए गए थे । सरहिन्द के नवाब ने दबाव डाला कि धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल कर लो नही तो दीवार में जिंदा चुनवा दिया जाएगा ... दोनो साहिबज़ादों ने हंसते हंसते मौत को गले लगा लिया पर धर्म नही छोड़ा ......... गुरु साहब ने सिर्फ एक सप्ताह के भीतर यानी 22 dec से 27 Dec के बीच अपने 4 बेटे देश -- धर्म की खातिर वार दिए माता गूजरी ने दोनो बच्चों के साथ ये ठंडी रातें सरहिन्द के किले में , ठिठुरते हुए गुजारी थीं .... बहुत सालों तक ........ जब तक कि पंजाब के लोगों पे इस आधुनिकता का बु��ार नही चढ़ा था ........ ये एक सप्ताह ....... यानि कि 20 Dec से ले के 27 Dec तक लोग शोक मनाते थे और जमीन पे सोते थे । कई लोगों ने तो गुरु साहब की इस कुर्बानी को भुला दिया है .........पर मैं नही भूलने वाला🙏🏻🙏🏻 #waheguruji🙏 #gurugobindsinghji #sikhism #lovesikhi (at Shimla Hills) https://www.instagram.com/p/BrzD9RonPR_/?utm_source=ig_tumblr_share&igshid=phtu80xy5utv
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शहीदी दिवस: धर्म की रक्षा करते हुए ऐसे शहीद हुए थे गुरु तेग बहादुर, जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें
चैतन्य भारत न्यूज सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। गुरु तेग बहादुर आज के दिन यानी 24 नवंबर 1675 को शहीद हुए थे। प्रेम, त्याग और बलिदान के प्रतीक गुरु तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था। विश्व इतिहास में धर्म और मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय रहा है। आइए जानते हैं गुरु तेगबहादुर के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
गुरु तेगबहादुर सिंह का जन्म पंजाब के अमृतसर में हुआ था। वे सि��्खों के नौवें गुरु थे। उनके पिता का नाम गुरु हरगोबिंद सिंह था। गुरु तेगबहादुर सिंह का बचपन का नाम त्यागमल था। वे बाल्यावस्था से ही संत स्वरूप गहन विचारवान, उदार चित्त, बहादुर व निर्भीक स्वभाव के थे। उन्हें 'करतारपुर की जंग' में मुगल सेना के खिलाफ अतुलनीय पराक्रम दिखाने के बाद तेग बहादुर नाम मिला। 16 अप्रैल 1664 को वो सिखों को नौवें गुरु बने थे।
मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर का सिर कटवा दिया था। औरंगजेब चाहता था कि सिख गुरु इस्लाम स्वीकार कर लें लेकिन गुरु तेग बहादुर ने इससे इनकार कर दिया था। गुरु तेग बहादुर के त्याग और बलिदान के लिए उन्हें 'हिंद दी चादर' कहा जाता है। मुगल बादशाह ने जिस जगह पर गुरु तेग बहादुर का सिर कटवाया था दिल्ली में उसी जगह पर आज शीशगंज गुरुद्वारा स्थित है।
धर्मविरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह उनके निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। वे शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग-पुरुष थे। तेग बहादुर को ‘भारत की ढाल’ भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने दूसरों को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दे दी। ये भी पढ़े... शौर्य और साहस के प्रतीक गुरु हर गोबिंद सिंह की जयंती, जानिए सिखों के छठें गुरु के बारे में कुछ खास बातें जयंती : गुरु नानक देव ने रखी थी करतारपुर साहिब की नींव, जानिए उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें और मूल मंत्र करतारपुर साहिब गुरुद्वारे का क्या है इतिहास? जानें बंटवारे से लेकर अब तक की कहानी Read the full article
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आइए याद करते “चमकौर युद्ध” के पुरे घटनाक्रम को… 22 दिसंबर सन् 1704 को सिरसा नदी के किनारे चमकौर नामक जगह पर सिक्खों और मुग़लों के बीच एक ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया जो इतिहास में “चमकौर का युद्ध” नाम से प्रसिद्ध है। इस युद्ध में सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के नेतृत्व में 40 सिक्खों का सामना वजीर खान के नेतृत्व वाले 10 लाख मुग़ल सैनिकों से हुआ था। वजीर खान किसी भी सूरत में गुरु गोविंद सिंह जी को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ना चाहता था क्योंकि औरंगजेब की लाख कोशिशों के बावजूद गुरु गोविंद सिंह मुग़लों की अधीनता स्वीकार नहीं कर रहे थे। लेकिन गुरु गोविंद सिंह के दो बेटों सहित 40 सिक्खों ने गुरूजी के आशीर्वाद और अपनी वीरता से वजीर ��ान को अपने मंसूबो में कामयाब नहीं होने दिया और 10 लाख मुग़ल सैनिक भी गुरु गोविंद सिंह जी को नहीं पकड़ पाए। यह युद्ध इतिहास में सिक्खों की वीरता और उनकी अपने धर्म के प्रति आस्था के लिए जाना जाता है । गुरु गोविंद सिंह ने इस युद्ध का वर्णन “जफरनामा” में करते हुए लिखा है- ” चिड़ियों से मै बाज लडाऊ गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ. सवा लाख से एक लडाऊ तभी गोबिंद सिंह नाम कहउँ,” आइए याद करते अपने भारत के गौरवशाली इतिहास को और जानते है “चमकौर युद्ध” के पुरे घटनाक्रम को। मई सन् 1704 की आनंदपुर की आखिरी लड़ाई में कई मुग़ल शासकों की सयुक्त फौज ने आनंदपुर साहिब को 6 महीने तक घेरे रखा। उनका सोचना था की जब आनंदपुर साहिब में राशन-पानी खत्म हो जाएगा तब गुरु जी स्वयं मुगलों की अधीनता स्वीकार कर लेंगे। पर ये मुग़लों की नासमझी थी, जब आनंदपुर साहिब में राशन-पानी खत्म हुआ तो एक रात गुरु गोविंद सिंह जी आनंदपुर साहिब में उपस्तिथ अपने सभी साथियों को लेकर वहां से रवाना हो गए। पर कुछ ही देर बा�� मुगलों को पता चल गया की गुरु जी यहां से प्रस्थान कर गए है तो ��ो उनका पीछा करने लगे। उधर गुरु गोविंद सिंह जी अपने सभी साथियों के साथ सरसा नदी की और बढे जा रहे थे। जिस समय सिक्खों का काफिला इस बरसाती नदी के किनारे पहुँचा तो इसमें भयँकर बाढ़ आई हुई थी और पानी जोरों पर था। इस समय सिक्ख भारी कठिनाई में घिर गए। उनके पिछली तरफ शत्रु दल मारो-मार करता आ रहा था और सामने सरसा नदी फुँकारा मार रही थी, निर्णय तुरन्त लेना था। अतः श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी ने कहा कि कुछ सैनिक यहीं शत्रु को युद्ध में उलझा कर रखों और जो सरसा पार करने की क्षमता रखते हैं वे अपने घोड़े सरसा के बहाव के साथ नदी पार करने का प्रयत्न करें। ऐसा ही किया गया। भाई उदय सिंह तथा जीवन सिंह अपने अपने जत्थे लेकर शत्रु के साथ भिड़ गये। इतने में गुरूदेव जी सरसा नदी पार करने में सफल हो गए। किन्तु सैकड़ों सिक्ख सरसा नदी पार करते हुए मौत का शिकार हो गए क्योंकि पानी का वेग बहुत तीखा था। कई तो पानी के बहाव में बहते हुए कई कोस दूर बह गए। जाड़े ऋतु की वर्षा, नदी का बर्फीला ठँडा पानी, इन बातों ने गुरूदेव जी के सैनिकों के शरीरों को सुन्न कर दिया। इसी कारण शत्रु सेना ने सरसा नदी पार करने का साहस नहीं किया। सरसा नदी पार करने के पश्चात 40 सिक्ख दो बड़े साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह के अतिरिक्त गुरूदेव जी स्वयँ कुल मिलाकर 43 व्यक्तियों की गिनती हुईं। नदी के इस पार भाई उदय सिंह मुगलों के अनेकों हमलों को पछाड़ते रहे ओर वे तब तक वीरता से लड़ते रहे जब तक उनके पास एक भी जीवित सैनिक था और अन्ततः वे युद्ध भूमि में गुरू आज्ञा निभाते और कर्त्तव्य पालन करते हुए वीरगति पा गये। इस भयँकर उथल-पुथल में गुरूदेव जी का परिवार उनसे बिछुड़ गया। भाई मनी सिंह जी के जत्थे में माता साहिब कौर जी व माता सुन्दरी कौर जी और दो टहल सेवा करने वाली दासियाँ थी। दो सिक्ख भाई जवाहर सिंह तथा धन्ना सिंह जो दिल्ली के निवासी थे, यह लोग सरसा नदी पार कर पाए, यह सब हरिद्वार से होकर दिल्ली पहुँचे। जहाँ भाई जवाहर सिंह इनको अपने घर ले गया। दूसरे जत्थे में माता गुजरी जी छोटे साहबज़ादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह तथा गँगा राम ब्राह्मण ही थे, जो गुरू घर का रसोईया था। इसका गाँव खेहेड़ी यहाँ से लगभग 15 कोस की दूरी पर मौरिंडा कस्बे के निकट था। गँगा राम माता गुजरी जी व साहिबज़ादों को अपने गाँव ले गया। गुरूदेव जी अपने चालीस सिक्खों के साथ आगे बढ़ते हुए दोपहर तक चमकौर नामक क्षेत्र के बाहर एक बगीचे में पहुँचे। यहाँ के स्थानीय लोगों ने गुरूदेव जी का हार्दिक स्वागत किया और प्रत्येक प्रकार ��ी सहायता की। यहीं एक किलानुमा कच्ची हवेली थी जो सामरिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण थी क्योंकि इसको एक ऊँचे टीले पर बनाया गया था। जिसके चारों ओर खुला समतल मैदान था। हवेली के स्वामी बुधीचन्द ने गुरूदेव जी से आग्रह किया कि आप इस हवेली में विश्राम करें। गुरूदेव जी ने आगे जाना उचित नहीं समझा। अतः चालीस सिक्खों को छोटी छोटी टुकड़ियों में बाँट कर उनमें बचा खुचा असला बाँट दिया और सभी सिक्खों को मुकाबले के लिए मोर्चो पर तैनात कर दिया। अब सभी को मालूम था कि मृत्यु निश्चित है परन्तु खालसा सैन्य का सिद्धान्त था कि शत्रु के समक्ष हथियार नहीं डालने केवल वीरगति प्राप्त करनी है। अतः अपने प्राणों की आहुति देने के लिए सभी सिक्ख तत्पर हो गये। गरूदेव अपने चालीस शिष्यों की ताकत से असँख्य मुगल सेना से लड़ने की योजना बनाने लगे। गुरूदेव जी ने स्वयँ कच्ची गढ़ी (हवेली) के ऊपर अट्टालिका में मोर्चा सम्भाला। अन्य सिक्खों ने भी अपने अपने मोर्चे बनाए और मुगल सेना की राह देखने लगे। उधर जैसे ही बरसाती नाला सरसा के पानी का बहाव कम हुआ। मुग़ल सेना टिड्डी दल की तरह उसे पार करके गुरूदेव जी का पीछा करती हुई चमकौर के मैदान में पहुँची। देखते ही देखते उसने गुरूदेव जी की कच्ची गढ़ी को घेर लिया। मुग़ल सेनापतियों को गाँव वालों से पता चल गया था कि गुरूदेव जी के पास केवल चालीस ही सैनिक हैं। अतः वे यहाँ गुरूदेव जी को बन्दी बनाने के स्वप्न देखने लगे। सरहिन्द के नवाब वजीर ख़ान ने भोर होते ही मुनादी करवा दी कि यदि गुरूदेव जी अपने आपको साथियों सहित मुग़ल प्रशासन के हवाले करें तो उनकी जान बख्शी जा सकती है। इस मुनादी के उत्तर में गुरूदेव जी ने मुग़ल सेनाओं पर तीरों की बौछार कर दी। इस समय मुकाबला चालीस सिक्खों का हज़ारों असँख्य (लगभग 10 लाख) की गिनती में मुग़ल सैन्यबल के साथ था। इस पर गुरूदेव जी ने भी तो एक-एक सिक्ख को सवा-सवा लाख के साथ लड़ाने की सौगन्ध खाई हुई थी। अब इस सौगन्ध को भी विश्व के समक्ष क्रियान्वित करके प्रदर्शन करने का शुभ अवसर आ गया था। 22 दिसम्बर सन 1704 को सँसार का अनोखा युद्ध प्रारम्भ हो गया। आकाश में घनघोर बादल थे और धीमी धीमी बूँदाबाँदी हो रही थी। वर्ष का सबसे छोटा दिन होने के कारण सूर्य भी बहुत देर से उदय हुआ था, कड़ाके की शीत लहर चल रही थी किन्तु गर्मजोशी थी तो कच्ची हवेली में आश्रय लिए बैठे गुरूदेव जी के योद्धाओं के हृदय में। कच्ची गढ़ी पर आक्रमण हुआ। भीतर से तीरों और गोलियों की बौछार हुई। अनेक मुग़ल सैनिक हताहत हुए। दोबारा स��क्त धावे का भी यही हाल हुआ। मुग़ल सेनापतियों को अविश्वास होने लगा था कि कोई चालीस सैनिकों की सहायता से इतना सबल भी बन सकता है। सिक्ख सैनिक लाखों की सेना में घिरे निर्भय भाव से लड़ने-मरने का खेल, खेल रहे थे। उनके पास जब गोला बारूद और बाण समाप्त हो गए किन्तु मुग़ल सैनिकों की गढ़ी के समीप भी जाने की हिम्मत नहीं हुई तो उन्होंने तलवार और भाले का युद्ध लड़ने के लिए मैदान में निकलना आवश्यक समझा। सर्वप्रथम भाई हिम्मत सिंह जी को गुरूदेव जी ने आदेश दिया कि वह अपने साथियों सहित पाँच का जत्था लेकर रणक्षेत्र में जाकर शत्रु से जूझे। तभी मुग़ल जरनैल नाहर ख़ान ने सीढ़ी लगाकर गढ़ी पर चढ़ने का प्रयास किया किन्तु गुरूदेव जी ने उसको वहीं बाण से भेद कर चित्त कर दिया। एक और जरनैल ख्वाजा महमूद अली ने जब साथियों को मरते हुए देखा तो वह दीवार की ओट में भाग गया। गुरूदेव जी ने उसकी इस बुजदिली के कारण उसे अपनी रचना में मरदूद करके लिखा है। सरहिन्द के नवाब ने सेनाओं को एक बार इक्ट्ठे होकर कच्ची गढ़ी पर पूर्ण वेग से आक्रमण करने का आदेश दिया। किन्तु गुरूदेव जी ऊँचे टीले की हवेली में होने के कारण सामरिक दृष्टि से अच्छी स्थिति में थे। अतः उन्होंने यह आक्रमण भी विफल कर दिया और सिँघों के बाणों की वर्षा से सैकड़ों मुग़ल सिपाहियों को सदा की नींद सुला दिया। सिक्खों के जत्थे ने गढ़ी से बाहर आकर बढ़ रही मुग़ल सेना को करारे हाथ दिखलाये। गढ़ी की ऊपर की अट्टालिका (अटारी) से गुरूदेव जी स्वयँ अपने योद्धाओं की सहायता शत्रुओं पर बाण चलाकर कर रहे थे। घड़ी भर खूब लोहे पर लोहा बजा। सैकड़ों सैनिक मैदान में ढेर हो गए। अन्ततः पाँचों सिक्ख भी शहीद हो गये। फिर गुरूदेव जी ने पाँच सिक्खों का दूसरा जत्था गढ़ी से बाहर रणक्षेत्र में भेजा। इस जत्थे ने भी आगे बढ़ते हुए शत्रुओं के छक्के छुड़ाए और उनको पीछे धकेल दिया और शत्रुओं का भारी जानी नुक्सान करते हुए स्वयँ भी शहीद हो गए। इस प्रकार गुरूदेव जी ने रणनीति बनाई और पाँच पाँच के जत्थे बारी बारी रणक्षेत्र में भेजने लगे। जब पाँचवा जत्था शहीद हो गया तो दोपहर का समय हो गया था। सरहिन्द के नवाब वज़ीर ख़ान की हिदायतों का पालन करते हुए जरनैल हदायत ख़ान, इसमाईल खान, फुलाद खान, सुलतान खान, असमाल खान, जहान खान, खलील ख़ान और भूरे ख़ान एक बारगी सेनाओं को लेकर गढ़ी की ओर बढ़े। सब को पता था कि इतना बड़ा हमला रोक पाना बहुत मुश्किल है। इसलिए अन्दर बाकी बचे सिक्खों ने गुरूदेव जी के सम्मुख प्रार्थना की कि वह साहिबजादों सहित युद्ध क्षेत्र से कहीं ओर निकल जाएँ। यह सुनकर गुरूदेव जी ने सिक्खों से कहा: ‘तुम कौन से साहिबजादों (बेटों) की बात करते हो, तुम सभी मेरे ही साहबजादे हो’ गुरूदेव जी क�� यह उत्तर सुनकर सभी सिक्ख आश्चर्य में पड़ गये। गुरूदेव जी के बड़े सुपुत्र अजीत सिंह पिता जी के पास जाकर अपनी युद्धकला के प्रदर्शन की अनुमति माँगने लगे। गुरूदेव जी ने सहर्ष उन्हें आशीष दी और अपना कर्त्तव्य पूर्ण करने को प्रेरित किया। साहिबजादा अजीत सिंह के मन में कुछ कर गुजरने के वलवले थे, युद्धकला में निपुणता थी। बस फिर क्या था वह अपने चार अन्य सिक्खों को लेकर गढ़ी से बाहर आए और मुगलों की सेना पर ऐसे टूट पड़े जैसे शार्दूल मृग-शावकों पर टूटता है। अजीत सिंघ जिधर बढ़ जाते, उधर सामने पड़ने वाले सैनिक गिरते, कटते या भाग जाते थे। पाँच सिंहों के जत्थे ने सैंकड़ों मुगलों को काल का ग्रास बना दिया। अजीत सिंह ने अविस्मरणीय वीरता का प्रदर्शन किया, किन्तु एक एक ने यदि हजार हजार भी मारे हों तो सैनिकों के सागर में से चिड़िया की चोंच भर नीर ले जाने से क्या कमी आ सकती थी। साहिबजादा अजीत सिंह को, छोटे भाई साहिबज़ादा जुझार सिंह ने जब शहीद होते देखा तो उसने भी गुरूदेव जी से रणक्षेत्र में जाने की आज्ञा माँगी। गुरूदेव जी ने उसकी पीठ थपथपाई और अपने किशोर पुत्र को रणक्षेत्र में चार अन्य सेवकों के साथ भेजा। गुरूदेव जी जुझार सिंघ को रणक्षेत्र में जूझते हुए, को देखकर प्रसन्न होने लगे और उसके युद्ध के कौशल देखकर जयकार के ऊँचे स्वर में नारे बुलन्द करने लगे– “जो बोले, सो निहाल, सत् श्री अकाल”। जुझार सिंह शत्रु सेना के बीच घिर गये किन्तु उन्होंने वीरता के जौहर दिखलाते हुए वीरगति पाई। इन दोनों योद्धाओं की आयु क्रमश 18 वर्ष तथा 14 वर्ष की थी। वर्षा अथवा बादलों के कारण साँझ हो गई, वर्ष का सबसे छोटा दिन था, कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी, अन्धेरा होते ही युद्ध रूक गया। गुरू साहिब ने दोनों साहिबजादों को शहीद होते देखकर अकालपुरूख (ईश्वर) के समक्ष धन्यवाद, शुकराने की प्रार्थना की और कहा: ‘तेरा तुझ को सौंपते, क्या लागे मेरा’। शत्रु अपने घायल अथवा मृत सैनिकों के शवों को उठाने के चक्रव्यूह में फँस गया, चारों ओर अन्धेरा छा गया। इस समय गुरूदेव जी के पास सात सिक्ख सैनिक बच रहे थे और वह स्वयँ कुल मिलाकर आठ की गिनती पूरी होती थी। मुग़ल सेनाएँ पीछे हटकर आराम करने लगी। उन्हें अभी सन्देह बना हुआ था कि गढ़ी के भीतर पर्याप्त सँख्या में सैनिक मौजूद हैं। रहिरास के पाठ का समय हो गया था अतः सभी सिक्खों ने गुरूदेव जी के साथ मिलकर पाठ किया तत्पश्चात् गुरूदेव जी ने सिक्खों को चढ़दीकला में रहकर जूझते हुए शहीद होने के लिए प्रोत्साहित किया। सभी ने शीश झुकाकर आदेश का पालन करते हुए प्राणों की आहुति देने की शपथ ली किन्तु उन्होंने गुरूदेव जी के चरणों में प्रार्थना की कि यदि ��प समय की नज़ाकत को मद्देनज़र रखते हुए यह कच्ची गढ़ीनुमा हवेली त्यागकर आप कहीं और चले जाएँ तो हम बाजी जीत सकते हैं क्योंकि हम मर गए तो कुछ नहीं बिगड़ेगा परन्तु आपकी शहीदी के बाद पँथ का क्या होगा ? इस प्रकार तो श्री गुरू नानक देव जी का लक्ष्य सम्पूर्ण नहीं हो पायेगा। यदि आप जीवित रहे तो हमारे जैसे हज़ारों लाखों की गिनती में सिक्ख आपकी शरण में एकत्र होकर फिर से आपके नेतृत्त्व में सँघर्ष प्रारम्भ कर देंगे। गुरूदेव जी तो दूसरों को उपदेश देते थे: जब आव की आउध निदान बनै, अति ही रण में तब जूझ मरौ। फिर भला युद्ध से वह स्वयँ कैसे मुँह मोड़ सकते थे ? गुरूदेव जी ने सिंघों को उत्तर दिया– मेरा जीवन मेरे प्यारे सिक्खों के जीवन से मूल्यवान नहीं, यह कैसे सम्भव हो सकता है कि मैं तुम्हें रणभूमि में छोड़कर अकेला निकल जाऊँ। मैं रणक्षेत्र को पीठ नहीं दिखा सकता, अब तो वह स्वयँ दिन चढ़ते ही सबसे पहले अपना जत्था लेकर युद्धभूमि में उतरेंगे। गुरूदेव जी के इस निर्णय से सिक्ख बहुत चिन्तित हुए। वे चाहते थे कि गुरूदेव जी किसी भी विधि से यहाँ से बचकर निकल जाएँ ताकि लोगों को भारी सँख्या में सिंघ सजाकर पुनः सँगठित होकर, मुगलों के साथ दो दो हाथ करें। सिक्ख भी यह मन बनाए बैठे थे कि सतगुरू जी को किसी भी दशा में शहीद नहीं होने देना। वे जानते थे कि गुरूदेव जी द्वारा दी गई शहादत इस समय पँथ के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध होगी। अतः भाई दया सिंह जी ने एक युक्ति सोची और अपना अन्तिम हथियार आजमाया। उन्होंने इस युक्ति के अन्तर्गत सभी सिंहों को विश्वास में लिया और उनको साथ लेकर पुनः गुरूदेव जी के पास आये। और कहने लगे: गुरू जी, अब गुरू खालसा, पाँच प्यारे, परमेश्वर रूप होकर, आपको आदेश देते हैं कि यह कच्ची गढ़ी आप तुरन्त त्याग दें और कहीं सुरक्षित स्थान पर चले जाएं क्योंकि इसी नीति में पँथ खालसे का भला है। गुरूदेव जी ने पाँच प्यारों का आदेश सुनते ही शीश झुका दिया और कहा: मैं अब कोई प्रतिरोध नहीं कर सकता क्योंकि मुझे अपने गुरू की आज्ञा का पालन करना ही है। गुरूदेव जी ने कच्ची गढ़ी त्यागने की योजना बनाई। दो जवानों को साथ चलने को कहा। शेष पाँचों को अलग अलग मोर्चो पर नियुक्त कर दिया। भाई जीवन सिंघ, जिसका डील-डौल, कद-बुत तथा रूपरेखा गुरूदेव जी के साथ मिलती थी, उसे अपना मुकुट, ताज पहनाकर अपने स्थान अट्टालिका पर बैठा दिया कि शत्रु भ्रम में पड़ा रहे कि गुरू गोबिन्द सिंघ स्वयँ हवेली में हैं, किन्तु उन्होंने निर्णय लिया कि यहाँ से प्रस्थान ��रते समय हम शत्रुओं को ललकारेगें क्योंकि चुपचाप, शान्त निकल जाना कायरता और कमजोरी का चिन्ह माना जाएगा और उन्होंने ऐसा ही किया। देर रात गुरूदेव जी अपने दोनों साथियों दया सिंह तथा मानसिंह सहित गढ़ी से बाहर निकले, निकलने से पहले उनको समझा दिया कि हमे मालवा क्षेत्र की ओर जाना है और कुछ विशेष तारों की सीध में चलना है। जिससे बिछुड़ने पर फिर से मिल सकें। इस समय बूँदाबाँदी थम चुकी थी और आकाश में कहीं कहीं बादल छाये थे किन्तु बिजली बार बार चमक रही थी। कुछ दूरी पर अभी पहुँचे ही थे कि बिजली बहुत तेजी से चमकी। दया सिंघ की दृष्टि रास्ते में बिखरे शवों पर पड़ी तो साहिबज़ादा अजीत सिंह का शव दिखाई दिया, उसने गुरूदेव जी से अनुरोध किया कि यदि आप आज्ञा दें तो मैं अजीत सिंह के पार्थिव शरीर पर अपनी चादर डाल दूँ। उस समय गुरूदेव जी ने दया सिंह से प्रश्न किया आप ऐसा क्यों करना चाहते हैं। दयासिंघ ने उत्तर दिया कि गुरूदेव, पिता जी आप के लाड़ले बेटे अजीत सिंह का यह शव है। गुरूदेव जी ने फिर पूछा क्या वे मेरे पुत्र नहीं जिन्होंने मेरे एक सँकेत पर अपने प्राणों की आहुति दी है ? दया सिंह को इसका उत्तर हाँ में देना पड़ा। इस पर गुरूदेव जी ने कहा यदि तुम सभी सिंहों के शवों पर एक एक चादर डाल सकते हो, तो ठीक है, इसके शव पर भी डाल दो। भाई दया सिंह जी गुरूदेव जी के त्याग और बलिदान को समझ गये और तुरन्त आगे बढ़ गये। योजना अनुसार गुरूदेव जी और सिक्ख अलग-अलग दिशा में कुछ दूरी पर चले गये और वहाँ से ऊँचे स्वर में आवाजें लगाई गई, पीर–ऐ–हिन्द जा रहा है किसी की हिम्मत है तो पकड़ ले और साथ ही मशालचियों को तीर मारे जिससे उनकी मशालें नीचे कीचड़ में गिर कर बुझ गई और अंधेरा घना हो गया। पुरस्कार के लालच में शत्रु सेना आवाज की सीध में भागी और आपस में भिड़ गई। समय का लाभ उठाकर गुरूदेव जी और दोनों सिंह अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगे और यह नीति पूर्णतः सफल रही। इस प्रकार शत्रु सेना आपस में टकरा-टकराकर कट मरी। अगली सुबह प्रकाश होने पर शत्रु सेना को भारी निराशा हुई क्योंकि हजारों असँख्य शवों में केवल पैंतीस शव सिक्खों के थे। उसमें भी उनको गुरू गोबिन्द सिंह कहीं दिखाई नहीं दिये। क्रोधतुर होकर शत्रु सेना ने गढ़ी पर पुनः आक्रमण कर दिया। असँख्य शत्रु सैनिकों के साथ जूझते हुए अन्दर के पाँचों सिक्ख वीरगति पा गए। भाई जीवन सिंह जी भी शहीद हो गये जिन्होंने शत्रु को झाँसा देने के लिए गुरूदेव जी की वेशभूषा धारण की हुई थी। शव को देखकर मुग़ल सेनापति बहुत प्रसन्न हुए कि अन्त में गुरू मार ही लिया गया। परन्तु जल्दी ही उनको मालूम हो गया कि यह शव किसी अन्य व्यक्ति का है और गुरू ��ो सुरक्षित निकल गए हैं। मुग़ल सत्ताधरियों को यह एक करारी चपत थी कि कश्मीर, लाहौर, दिल्ली और सरहिन्द की समस्त मुग़ल शक्ति सात महीने आनन्दपुर का घेरा डालने के बावजूद भी न तो गुरू गोबिन्द सिंह जी को पकड़ सकी और न ही सिक्खों से अपनी अधीनता स्वीकार करवा सकी। सरकारी खजाने के लाखों रूपय व्यय हो गये। हज़ारों की सँख्या में फौजी मारे गए पर मुग़ल अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त न कर सके। यह गर्दन कट तो सकती है मगर झुक नहीं सकती। कभी चमकौर बोलेगा कभी सरहिन्द की दीवार बोलेगी।।
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जीवन मंत्र डेस्क. सिख समुदाय के दसवें गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को पटना, मेंं विक्रम संवत 1723 को हुआ था। इस साल यह तिथि 2 जनवरी को आ रही है। गुरु गोबिंद सिंह की याद में ही श्री हरिमंदिरजी पटना साहिब तख्त का निर्माण हुआ था। सिख इतिहास में पटना साहिब का विशेष महत्व है। सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह का जन्म यहीं 5 जनवरी, 1666 को हुआ था और उनका संपूर्ण बचपन भी यहीं गुजरा था। यही नहीं सिखों के तीन गुरुओं के चरण इस धरती पर पड़े हैं। इस कारण देश व दुनिया के सिख संप्रदाय के लिए पटना साहिब आस्था, श्रद्धा का बड़ा और पवित्र केंद्र व तीर्थस्थान हमेशा से है। सिक्खों को संगठित किया इनका मूल नाम गोविंद राय था। गोविंद सिंह को सैन्य जीवन के प्रति लगाव अपने दादा गुरु हरगोविंद सिंह से मिला था और वह बहुभाषाविद थे, जिन्हें फ़ारसी अरबी, संस्कृत और अपनी मातृभाषा पंजाबी का ज्ञान था। उन्होंने सिक्ख क़ानून को सूत्रबद्ध किया, काव्य रचना की और सिक्ख ग्रंथ दशम ग्रंथ (दसवां खंड) लिखकर प्रसिद्धि पाई। उन्होंने देश, धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सिक्खों को संगठित किया। यहां बीते जीवन के शुरुआती साल आनंदपुर जाने से पहले गुरु गोबिंद सिंह के जीवन के शुरुआती साल यहीं बीते थे। यह गुरुद्वारा सिखों के पाँच पवित्र तख्त में से एक है। भारत और पाकिस्तान में कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे की तरह, इस गुरुद्वारा को महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनाया गया था। 1837 में हुआ पुनर्निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने इसका पुनर्निर्माण 1837-39 के बीच कराया था। यहां आज भी गुरु गोबिंद सिंह की वह छोटी कृपाण है, जो बचपन में वे धारण करते थे। यहां आने वाले श्रद्धालु उस लोहे की छोटी चक्र को, जिसे गुरु बचपन में अपने केशों में धारण करते थे तथा छोटा बघनख खंजर, जो कमर-कसा में धारण करते थे, के दर्शन करना नहीं भूलते। गुरु तेग बहादुर जी महाराज जिस चंदन की लकड़ी के खड़ाऊं पहना करते थे, उसे भी यहां रखा गया है, जो श्रद्धालुओं की श्रद्धा से जुड़ा है। गुरुद्वारे की चौथी मंजिल में पुरातन हस्तलिपि और पत्थर के छाप की पुरानी बड़ी गुरु ग्रंथ साहिब की प्रति को सुरक्षित रखा गया है, जिस पर गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ने तीर की नोक से केसर के साथ मूल मंत्र लिखा था। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Shriharimandir ji Patna Sahib Takht, Guru Gobind Singh was born here
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