#गाय का टीका
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मानसून में मवेशियों की सही देखभाल है ज़रूरी, क्या हैं खतरे और जानिए बचाव के तरीके
बरसात में बढ़ जाता है बीमारियों का खतरा
बरसात का मौसम सिर्फ़ इंसानों के लिए ही नहीं, बल्कि मवेशियों के लिए भी कई तरह की बीमारियां लेकर आता है। इसलिए पशुपालकों को इस मौसम में पशुओं की खास देखभाल की ज़रूरत होती है, वरना पशुओं की मौत भी हो सकती है।
मानसून में मवेशियों की सही देखभाल: बरसात का मौसम जितना सुहाना लगता है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी होता है। खासतौर पर पशुपालकों के लिए। इस मौसम ��ें पानी के कारण फिसलन बढ़ जाती है, जिससे पशुओं के गिरकर चोट लगने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसके साथ ही उन्हें गीली घास मिलती है जिसमें पौष्टिक तत्व कम होते हैं और बीमारियों का खतरा भी कई गुना रहता है। ऐसे में पुशओं के रहने की जगह से लेकर आहार तक, सबका बहुत ध्यान रखने की ज़रूरत है, वरना पशु पालकों को पशु की मृत्यु और कम दूध उत्पादन का जोखिम उठाना पड़ सकता है।बरसात में होने वाली बीमारियां
हमारे देश में जून से सितंबर तक मानसून रहता है। इस मौसम में पशुओं के बा़ड़े में पानी भर जाने के कारण कॉक्सीडियता या कुकड़िया रोग, फुट रॉट जैसे गंभीर रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा थनैला रोग की आशंका भी बढ़ जाती है। पशुपालकों को मानसून शुरू होने से पहले ही गाय-भैंसों को गल-घोंटू और लंगड़ी बुखार का टीका लगवा देना चाहिए।
मानसून में मवेशियों में किलनी की समस्या भी बढ़ सकती है। अगर उनके रहने की जगह में बहुत ज़्यादा किलनियां हो जाएं तो पशुओं में सर्रा, थिलेनरिया, बबेसिओसिस रोगो��� का खतरा बढ़ जाता है। इसमें जानवरों को तेज़ बुखार के साथ ही खून की कमी भी हो जाती है।
आवास का रखें ध्यान
मानसून में मवेशियों के रहने की जगह के साथ ही उनके आहार पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है। बरसात में उनके आवास में पानी नहीं भरने देना है और जहां तक संभव हो उनके बाड़े को सूखा रखने की कोशिश करें। जल-जमाव की समस्या से बचने के लिए पशुओं के आवास की जगह पर छत बनाने के लिए स्टील या लोहे की जस्ता चढ़ी नालीदार चादर का इस्तेमाल करना चाहिए। हफ़्ते में दो बार बाड़े में चूना छिड़कें और आसपास की जगह को साफ़ रखना चाहिए।
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‘‘भक्त परमार्थी होना चाहिए‘‘
जैसे गाय स्वयं तो जंगल में खेतों में घास खाकर आती है। स्वयं जल पीती है। मानव को अमृत दूध पिलाती है। उसके दूध से घी बनता है। गाय सुत यानि गाय का बच्छा हल में जोता जाता है। इंसान का पोषण करता है। गाय का गोबर भी मनुष्य के काम आता है। मृत्यु उपरांत गाय के शरीर के चमड़े से जूती बनती हैं जो मानव के पैरों को काँटों-कंकरों से रक्षा करती है। मानव जन्म प्राप्त प्राणी परमार्थ न करके भक्ति से वंचित रहकर पाप करने में अनमोल जीवन नष्ट कर जाता है। माँसाहारी ��र राक्षस की तरह गाय को मारकर उसके माँस को खा जाता है। महापाप का भागी बनता है। इस ��म्बन्ध की परमेश्वर कबीर जी की निम्न
वाणी पढ़ें :-
‘‘परमार्थी गऊ का दृष्टांत‘‘
गऊको जानु परमार्थ खानी। गऊ चाल गुण परखहु ज्ञानी।।
आपन चरे तृण उद्याना। अँचवे जल दे क्षीर निदाना।।
तासु क्षीर घृत देव अघाहीं। गौ सुत नर के पोषक आहीं।।
विष्ठा तासु काज नर आवे। नर अघ कर्मी जन्म गमावे।।
टीका पुरे तब गौ तन नासा। नर राक्षस गोतन लेत ग्रासा।।
चाम तासु तन अति सुखदाई। एतिक गुण इक गोतन भाई।।
‘‘परमार्थी संत लक्षण‘‘
गौ सम संत गहै यह बानी। तो नहिं काल करै जिवहानी।।
नरतन लहि अस बु़द्धी होई। सतगुरू मिले अमर ह्नै सोई।।
सुनि धर्मनि परमारथ बानी। परमारथते होय न हानी।।
पद परमारथ संत अधारा। गुरू सम लेई सो उतरे पारा।।
सत्य शब्द को परिचय पावै। परमारथ पद लोक सिधावै।।
सेवा करे विसारे आपा। आपा थाप अधिक संतापा।।
यह नर अस चातुर बुद्धिमाना। गुन सुभ कर्म कहै हम ठाना।।
ऊँचा कर्म अपने सिर लीन्हा। अवगुण कर्म पर सिर दीन्हा।।
तात होय शुभ कर्म विनाशा। धर्मदास पद गहो विश्वासा।।
आशा एक नामकी राखे। निज शुभकर्म प्रगट नहिं भाखे।।
गुरूपद रहे सदा लौ लीना। जैसे जलहि न विसरत मीना।।
गुरू के शब्द सदा लौ लावे। सत्यनाम निशदिन गुणगावे।।
जैसे जलहि न विसरे मीना। ऐसे शब्द गहे परवीना।।
पुरूष नामको अस परभाऊ। हंसा बहुरि न जगमहँ आऊ।।
निश्चय जाय पुरूष के पासा। कूर्मकला परखहु धर्मदासा।।
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी के माध्यम से मानव मात्र को संदेश व निर्देश दिया है। कहा है कि मानव को गाय की तरह परमार्थी होना चाहिए। जिनको सतगुरू मिल गया है, वे तो अमर हो जाएंगे। घोर अघों (पापों) से बच जाएंगे, सेवा करें तो अपनी महिमा की आशा न करें। यदि अपने आपको थाप (मान-बड़ाई के लिए अपने आपको महिमावान मान) लेगा तो उसको अधिक कष्ट होगा। शुभ कर्म नष्ट हो जाएंगे।
उपदेशी केवल एक नाम की आशा रखे। मान-बड़ाई की चाह हृदय से त्याग दे। अपने शुभ कर्म (दान या अन्य सेवा) किसी के सामने न बताए। गुरू जी के पद (चरण) यानि गुरू की शरण में ऐसे रहे जैसे जल में मीन रहती है। मछली एक पल भी पानी के बिना नहीं रह सकती। तुरंत मर जाती है। ऐसे गुरू की शरण को महत्त्व देवे। गुरू जी द्वारा ��िए शब्द यानि जाप मंत्र (सतगुरू शब्द) जो सत्यनाम है यानि वास्तविक भक्ति मंत्र में सदा लीन रहे जो पुरूष (परमात्मा) का भक्ति मंत्र है, उसका ऐसा प्रभाव है, उसमें इतनी शक्ति है कि साधक पुनः संसार में जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता। वह वहाँ चला जाता है जो सनातन परम धाम, जहाँ परम शांति है। जहाँ जाने के पश्चात् साधक कभी लौटकर संसार में नहीं आता।
यही प्रमाण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में है। गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा, उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परम धाम (शाश्वतम् स्थानम्) को प्राप्त होगा।
(अध्याय 18 श्लोक 62) गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि तत्त्वज्ञान प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात साधक लौटकर कभी संसार में नहीं आता। जिस परमेश्वर ने संसार रूपी वृक्ष की रचना की है, उसी की भक्ति करो।(अध्याय 15 श्लोक 4) गीता ज्ञान दाता ने अपनी नाशवान अर्थात् जन्म-मरण की स्थिति गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, 9 में तथा अध्याय 10 श्लोक 2 में स्पष्ट ही ��खी है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। पाठकजनो! गीता से स्पष्ट हुआ कि गीता ज्ञान दाता (काल ब्रह्म है जो श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके बोल रहा था) नाशवान है, जन्म-मरण के चक्र में है तो उसके उपासक की भी यही स्थिति होती है। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित लाभ प्राप्त नहीं हो सकता।
दूसरी बात यह सिद्ध होती है कि गीता ज्ञान दाता से कोई अन्य समर्थ तथा सर्व लाभदायक परमेश्वर है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता ज्ञान दाता यानि काल ब्रह्म ने कहा है। वह परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी हैं। उन्होंने अपनी महिमा स्वयं ही कही है जो आप जी कबीर सागर में पढ़ रहे हैं। परमेश्वर ने अनुराग सागर पृष्ठ 13 पर कहा कि सत्य पुरूष द्वारा रची सृष्टि के विषय में बताई कथा का साक्षी किसको बनाऊँ क्योंकि सबकी उत्पत्ति बाद में हुई है। पहले अकेले सतपुरूष थे। यहाँ पर विवेक करने की बात यह है कि कबीर जी को ज्ञान कहाँ से हुआ? जब सृष्टि रचना के समय कोई नहीं था। इससे स्वसिद्ध है कि ये स्वयं पूर्ण परमात्मा सृष्टि के सृजनहार हैं। जिन महान आत्माओं को परमेश्वर कबीर जी मिले हैं,
उन्होंने भी यही साक्ष्य दिया है कि :-
गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, कुल के सिरजनहार।।
भावार्थ इस वाणी से ही स्पष्ट है।
‘‘कूर्म कला परखो धर्मदासा‘‘ का भावार्थ है कि जैसे कूर्म यानि कच्छवा आपत्ति के समय अपने मुख तथा पैरों को अपने अंदर छुपाकर निष्क्रिय हो जाता है। आपत्ति ��लने के तुरंत पश्चात् अपने मार्ग पर चल देता है। इसी प्रकार भक्त को चाहिए कि यदि सांसारिक व्यक्ति आपके भक्ति मार्ग में बाधा उत्पन्न करे तो उसको उलटकर जवाब न देकर अपनी भक्ति को छुपाकर सुरक्षित रखे। सामान्य स्थिति होते ही फिर उसी गति से साधना करे। इस प्रकार करने से ‘‘निश्चय जाय पुरूष के पासा‘‘ वह साधक परमात्मा के पास अवश्य चला जाएगा।
अनुराग सागर पृष्ठ 163(281) पर :-
सोरठा :- हंस तहां सुख बिलसहीं, आनन्द धाम अमोल।
पुरूष तनु छवि निरखहिं, हंस करें किलोल।।
भावार्थ :- उपरोक्त ज्ञान के आधार से साधना करके साधक अमर धाम में चला जाता है। वहाँ पर आनन्द भोगता है। वह सतलोक बेसकीमती है। वहाँ पर सत्यपुरूष के शरीर की शोभा देखकर आनन्द मनाते हैं।
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अनुराग सागर के पृष्ठ 162 तथा 163 का सारांश:-
______________________
भक्त परमार्थी होना चाहिए
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जैसे गाय स्वयं तो जंगल में खेतों में घास खाकर आती है। स्वयं जल पीती है। मानव को अमृत दूध पिलाती है। उसके दूध से घी बनता है। गाय सुत यानि गाय का बच्छा हल में जोता जाता है। इंसान का पोषण करता है। गाय का गोबर भी मनुष्य के काम आता है। मृत्यु उपरांत गाय के शरीर के चमड़े से जूती बनती हैं जो मानव के पैरों को काँटों-कंकरों से रक्षा करती है। मानव जन्म प्राप्त प्राणी परमार्थ न करके भक्ति से वंचित रहकर पाप करने में अनमोल जीवन नष्ट कर जाता है। माँ���ाहारी नर राक्षस की तरह गाय को मारकर उसके माँस को खा जाता है। महापाप का भागी बनता है। इस सम्बन्ध की परमेश्वर कबीर जी की निम्न वाणी पढ़ें:-
‘‘परमार्थी गऊ का दृष्टांत‘‘
गऊको जानु परमार्थ खानी। गऊ चाल गुण परखहु ज्ञानी।।
आपन चरे तृण उद्याना। अँचवे जल दे क्षीर निदाना।।
तासु क्षीर घृत देव अघाहीं। गौ सुत नर के पोषक आहीं।।
विष्ठा तासु काज नर आवे। नर अघ कर्मी जन्म गमावे।।
टीका पुरे तब गौ तन नासा। नर राक्षस गोतन लेत ग्रासा।।
चाम तासु तन अति सुखदाई। एतिक गुण इक गोतन भाई।।
‘‘परमार्थी संत लक्षण‘‘
गौ सम संत गहै यह बानी। तो नहिं काल करै जिवहानी।।
नरतन लहि अस बु़द्धी होई। सतगुरू मिले अमर ह्नै सोई।।
सुनि धर्मनि परमारथ बानी। परमारथते होय न हानी।।
पद परमारथ संत अधारा। गुरू सम लेई सो उतरे पारा।।
सत्य शब्द को परिचय पावै। परमारथ पद लोक सिधावै।।
सेवा करे विसारे आपा। आपा थाप अधिक संतापा।।
यह नर अस चातुर बुद्धिमाना। गुन सुभ कर्म कहै हम ठाना।।
ऊँचा कर्म अपने सिर लीन्हा। अवगुण कर्म पर सिर दीन्हा।।
तात होय शुभ कर्म विनाशा। धर्मदास पद गहो विश्वासा।।
आशा एक नामकी राखे। निज शुभकर्म प्रगट नहिं भाखे।।
गुरूपद रहे सदा लौ लीना। जैसे जलहि न विसरत मीना।।
गुरू के शब्द सदा लौ लावे। सत्यनाम निशदिन गुणगावे।।
जैसे जलहि न विसरे मीना। ऐसे शब्द गहे परवीना।।
पुरूष नामको अस परभाऊ। हंसा बहुरि न जगमहँ आऊ।।
निश्चय जाय पुरूष के पासा। कूर्मकला परखहु धर्मदासा।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी के माध्यम से मानव मात्र को संदेश व निर्देश दिया है। कहा है कि मानव को गाय की तरह परमार्थी होना चाहिए। जिनको सतगुरू मिल गया है, वे तो अमर हो जाएंगे। घोर अघों (पापों) से बच जाएंगे, सेवा करें तो अपनी महिमा की आशा न करें। यदि अपने आपको थाप (मान-बड़ाई के लिए अपने आपको महिमावान मान) लेगा तो उसको अधिक कष्ट होगा। शुभ कर्म नष्ट हो जाएंगे।
उपदेशी केवल एक नाम की आशा रखे। मान-बड़ाई की चाह हृदय से त्याग दे। अपने शुभ कर्म (दान या अन्य सेवा) किसी के सामने न बताए। गुरू जी के पद (चरण) यानि गुरू की शरण में ऐसे रहे जैसे जल में मीन रहती है। मछली एक पल भी पानी के बिना नहीं रह सकती। तुरंत मर जाती है। ऐसे गुरू की शरण को महत्त्व देवे। गुरू जी द्वारा दिए शब्द यानि जाप मंत्र (सतगुरू शब्द) जो सत्यनाम है यानि वास्तविक भक्ति मंत्र में सदा लीन रहे जो पुरूष (परमात्मा) का भक्ति मंत्र है, उसका ऐसा प्रभाव है, उसमें इतनी शक्ति है कि साधक पुनः संसार में जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता। वह वहाँ चला जाता है जो सनातन परम धाम, जहाँ परम शांति है। जहाँ जाने के पश्चात् साधक कभी लौटकर संसार में नहीं आता।
यही प्रमाण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में है। गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा, उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परम धाम (शाश्वतम् स्थानम्) को प्राप्त होगा।(अध्याय 18 श्लोक 62)
गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि तत्त्वज्ञान प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर कभी संसार में नहीं आता। जिस परमेश्वर ने संसार रूपी वृक्ष की रचना की है, उसी की भक्ति करो।(अध्याय 15 श्लोक 4)
गीता ज्ञान दाता ने अपनी नाशवान अर्थात् जन्म-मरण की स्थिति गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5ए 9 में तथा अध्याय 10 श्लोक 2 में स्पष्ट ही रखी है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। पाठकजनो! गीता से स्पष्ट हुआ कि गीता ज्ञान दाता (काल ब्रह्म है जो श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके बोल रहा था) नाशवान है, जन्म-मरण के चक्र में है तो उसके उपासक की भी यही स्थिति होती है। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित लाभ प्राप्त नहीं हो सकता। दूसरी बात यह सिद्ध होती है कि गीता ज्ञान दाता कोई अन्य समर्थ तथा सर्व लाभदायक परमेश्वर हैं जिनकी शरण में जाने के लिए गीता ज्ञान दाता यानि काल ब्रह्म ने कहा है। वह परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी हैं। उन्होंने अपनी महिमा स्वयं ही कही है जो आप जी कबीर सागर में पढ़ रहे हैं। परमेश्वर ने अनुराग सागर पृष्ठ 13 पर कहा कि सत्य पुरूष द्वारा रची सृष्टि के विषय में बताई कथा का साक्षी किसको बनाऊँ क्योंकि सबकी उत्पत्ति बाद में हुई है। पहले अकेले सतपुरूष थे। यहाँ पर विवेक करने की बात यह है कि कबीर जी को ज्ञान कहाँ से हुआ? जब सृष्टि रचना के समय कोई नहीं था। इससे स्वसिद्ध है कि ये स्वयं पूर्ण परमात्मा सृष्टि के सृजनहार हैं। जिन महान आत्माओं को परमेश्वर कबीर जी मिले हैं, उन्होंने भी यही साक्ष्य दिया है कि:-
गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, कुल के सिरजनहार।।
भावार्थ इस वाणी से ही स्पष्ट है।
‘‘कूर्म कला परखो धर्मदासा‘‘ का भावार्थ है कि जैसे कूर्म यानि कच्छवा आपत्ति के समय अपने मुख तथा पैरों को अपने अंदर छुपाकर निष्क्रिय हो जाता है। आपत्ति टलने के तुरंत पश्चात् अपने मार्ग पर चल देता है। इसी प्रकार भक्त को चाहिए कि यदि सांसारिक व्यक्ति आपके भक्ति मार्ग में बाधा उत्पन्न करे तो उसको उलटकर जवाब न देकर अपनी भक्ति को छुपाकर सुरक्षित रखे। सामान्य स्थिति होते ही फिर उसी गति से साधना करे। इस प्रकार करने से ‘‘निश्चय जाय पुरूष के पासा‘‘ वह साधक परमात्मा के पास अवश्य चला जाएगा।
अनुराग सागर पृष्ठ 163(281) पर:-
सोरठा:- हंस तहां सुख बिलसहीं, आनन्द धाम अमोल।
पुरूष तनु छवि निरखहिं, हंस करें किलोल।।
भावार्थ:- उपरोक्त ज्ञान के आधार से साधना करके साधक अमर धाम में चला जाता है। वहाँ पर आनन्द भोगता है। वह सतलोक बेसकीमती है। वहाँ पर सत्यपुरूष के शरीर की शोभा देखकर आनन्द मनाते हैं।
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कोविशील्ड के दूसरे डोज के लिए CoWIN पोर्टल पर हुआ बदलाव, पहले से लिया गया अप्वाइंटमेंट वैध रहेगा
कोविशील्ड के दूसरे डोज के लिए CoWIN पोर्टल पर हुआ बदलाव, पहले से लिया गया अप्वाइंटमेंट वैध रहेगा
कोविशल्ड के एंव दोज के लिए काउइन पोर्टल पर बदलाव, पहले से अपडेट किए गए इंटर्नेट को मान्य किया गया है। Source link
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सेवा प्रदाता अब सहमति से CoWIN पोर्टल पर किसी व्यक्ति के टीकाकरण की स्थिति की जांच कर सकते हैं
सेवा प्रदाता अब सहमति से CoWIN पोर्टल पर किसी व्यक्ति के टीकाकरण की स्थिति की जांच कर सकते हैं
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने CoWIN पोर्टल पर एक सेवा को सक्रिय किया है जो किसी को भी व्यक्ति के पंजीकृत मोबाइल नंबर और नाम के साथ किसी व्यक्ति के टीकाकरण की स्थिति की जांच करने की अनुमति देता है, इसके बाद सहमति के लिए एक OTP आता है। सेवा प्रदाता द्वारा सेवा का उपयोग किया जा सकता है – निजी संस्थाएं जैसे ट्रैवल एजेंसियां, कार्यालय, नियोक्ता, मनोरंजन एजेंसियां या आईआरसीटीसी जैसी सरकारी एजेंसियां…
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Today's Horoscope-
मेष: कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले अपनी अंतरात्मा की सुने। अपनी वाणी को कड़वा न होने दें। योजनाबद्ध तरीके से प्रत्येक कार्य करें।
वृष: कार्य सफल होंगे। स्टूडेंट्स की नए सब्जेक्ट्स में र���चि रहेगी। सरकारी कार्यों में आर्थिक सफलता मिलेगी। आज गाय के कच्चे दूध से शिवलिंग अभिषेक करने व शिवलिंग पर काले तिल अर्पित करने से मानसिक तनाव दूर होगा।
मिथुन: आज के दिन रुके हुए कार्य पूरे करें। भाई-बहन से मनमुटाव दूर होगा। घूमने-फिरने में समय व्यर्थ होगा। सर्वाइकल का दर्द रह सकता है।
कर्क: विद्यार्थियों को सफलता मिलने में संदेह रहेगा। धूल मिट्टी और बाहर के भोजन से बचने का प्रयास करें। एलर्जी इंफेक्शन आपको परेशान कर सकता है।
सिंह: कार्यों हेतु त्वरित निर्णय लेंगे। बुजुर्गों से लाभ होगा। सामाजिक मान बढ़ेगा। वाणी में उग्रता रहेगी। क्रोध से स्वास्थ्य (ब्लड प्रेशर) संबंधी परेशानियां आएंगी। मेहमानों का आगमन होगा।
कन्या: फिजूल की यात्रा का योग बनेगा। मानसिक तनाव रहेगा। स्वभाव में आवेश रहेगा। आकस्मिक खर्च होगा। छोटी-छोटी बातों को नजर-अंदाज करने की कोशिश करें।
तुला: आय में वृद्धि होगी। मित्रों से मुलाकात व उन पर धन खर्च होगा। पर्यटन स्थल की सैर होगी। विवाह के लिए उत्सुकों को पार्टनर मिलने के योग हैं।
वृश्चिक: कार्यस्थल पर अनुकूल वातावरण रहेगा। अधिकारीगण प्रसन्न रहेंगे। कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होंगे। प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। गैस्टिक से परेशान रहेंगे। शिवलिंग पर धतूरे के फूल अर्पित करने से संतान संबंधी परेशानियां दूर होंगी।
धनु: विवाह संबंधी वार्ता विफल हो सकती है। कभी-कभार सुबह के समय बड़ या पीपल के पेड़ को दूध से सींचें और वहां की मिटटी का टीका माथे पर अथवा शरीर पर कहीं भी लगाएं।
मकर: घूमने-फिरने एवं शॉपिंग इत्यादि पर धन खर्च होगा। खान-पान की गड़बड़ी से स्वास्थ्य पर खर्च होगा। बिजनेस पार्टनर से मतभेद हो सकता है।
कुंभ: मनोबल से सभी कार्य पूरे होंगे। पार्टनरशिप में लाभ हो सकता है। धूल- मिट्टी और बाहर के भोजन से बचने का प्रयास करें। एलर्जी-इंफेक्शन आपको परेशान कर सकता है।
मीन: विवाह संबंधी वार्ता किसी के कारण विफल हो सकती है। मनोबल गिराने वाले व्यक्तियों से दूर रहे। आने वाले कुछ दिनों में शुभ समाचार मिल सकता है। शिवलिंग पर धतूरे के फूल अर्पित करने से संतान संबंधी परेशानियां दूर होंगी।
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Today's Horoscope –
मेष( Aries): आज कल क्या होगा, इसके बारे में सोचकर समय खराब न करें। कोई काम खत्म कर के ही आगे के काम की प्लानिंग करें । आज किसी और की भेदपूर्ण या निजी बात पर अपनी ओर से कोई टीका-टिप्पणी नहीं करें।आज के दिन की सफलता के लिए हरे मूंग पानी मे भिगो कर गाय को खिलाये ।
वृष(Taurus): आज सारी उलझनों और अड़चनों को दरकिनार करके अपने काम निपटाने के लिहाज से दिन बहुत अच्छा है। आप अपनी मेहनत के दम पर बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। बस अपनी कोशिशों में कमी न करें। आज के दिन कि सफलता के लिये शिव मंदिर मे नंदी को गुड का भोग लगाये ।
मिथुन(Gemini): आज काम काज को लेकर थोड़ा फोकस बढ़ाने कि आवश्यकता है। अपने धैर्य और कुशलता का प्रयोग करें, यदि कोई काम नहीं चल रहा तो उसे नए नज़रिये से देखने कि ज़रुरत है।आज के दिन की सफलता के लिए भगवान गणेश जी को दूर्वा चढ़ा कर दिन की शुरुआत करे।
कर्क(Cancer): आज आपके प्रयासों से आप अपने लिए कुछ नए अवसर पैदा कर सकते हैं। ज्यादातर प्रयासों में आपको भाग्य का साथ मिलेगा। आज आप दूसरों से मदद की उम्मीद करने के बजाए अपने कर्मों पर ही विश्वास रखें। आज की सफलता के लिए मोगरे के पुष्प पितरो के चित्र के समक्ष अर्पण करे ।
सिंह(Leo): आज किसी भी बात में टालमटोल न करें नहीं तो यह स्वभाव आपके लिए भविष्य में नुकसानदायक हो सकता है। आये हुए अवसर हाथ से निकल सकते हैं।खुद को नियंत्रण में रखेंगे, तो बहुत हद तक सफल रहेंगे। आज के दिन की सफलता के लिए बैल को गुड और हरी सब्जी खिलाये ।
कन्या(Virgo): आज हार्ड वर्क की बजाय स्मार्ट वर्क करने का प्रयास करें। सबसे पहले यह देखें कि आखिर आपके लक्ष्य क्या हैं और आप फिलहाल क्या कर रहे हैं।अपने मन को शांत बनाएं रखें, अशांत मन ही रोग का सबसे बड़ा कारण है।आज के दिन की सफलता के लिए किसी जरूरतमंद को दवाईओ का दान करे।
तुला(Libra): आज के दिन के फैसले भावनाओं में ना लेकर थोड़ा प्रैक्टिकल होकर ले । अपने व्यवहार और सोच में संयम और सहनशीलता बनाने के प्रयास करें।आज अपने काम से ही सरोकार रखें ।आज के दिन की सफलता के लिए अपने माता पिता की पसंद कुछ मिठाई माता पिता को खिलाये ।
वृश्चिक(Scorpio): आज आप कोई डिसीजन लेना चाहते हैं तो तात्कालिक लाभ के बजाए इस बात पर ध्यान दें कि कौन सा विकल्प या कौन सा मार्ग आपके लिए भविष्य में ज्यादा कारगर होगा। बेहतर रहेगा कि आप अपन�� योजनाओं में ज्यादा से ज्यादा महत्व भविष्य को दें, न कि वर्तमान को। आज के दिन की सफलता के लिए गणेश मंदिर मे लड्डू का भोग लगाये ।
धनु(Sagittarius): आज कार्यक्षेत्र में कुछ बदलाव हो सकते है जो की आपके भले के लिए हैं। इनके कारण परेशान न हों। व्यापार अच्छा चलेगा। कठिन परिस्थिति का सामना सकारात्मक और खुले मन से करें तो अच्छा है। आज के दिन की सफलता के लिए गणेश जी को जल का अर्ध्य प्रदान करे ।
मकर(Capricorn): किस्मत से पूरा होता काम आज आपको खुशियां देकर जाएगा।कुछ नया करने की सोचें । आज आप नौकरी -व्यापार क्षेत्र मे सफलता प्राप्त होगी । पिछले दिनों से चली आ रही समस्याएं कम होंगी। आज के दिन कि सफलता के लिये चीटियों को आटा खिलाये।
कुंभ(Aquarius): आज महत्वपूर्ण फैसले सारे तथ्यों और विकल्पों पर अच्छी तरह विचार करने के बाद ही करें। आज आप कल्पनाओं में अपना समय न गंवाए और सामने आ रहे अवसरों का प्रयोग करें।आज के दिन कि सफलता के लिये गाय को हरा पालक खिला कर दिन कि शुरुआत करे।
मीन(Pisces): आपके लिए आज का दिन नए अवसर ले कर आ रहा है। उन अवसर को पहचाने । अपनी लापरवाही से आप इन्हें गवा सकते हैं। आपको अवसर मिलेंगे और संसाधन भी। इनका पूरा लाभ उठाएं। आज के दिन की सफलता के लिए किसी ग़रीब कन्या को मीठा परांठा खिलाये ।
आपका दिन शुभ व मंगलमय हो।
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स्पेशलिस्ट-
मनचाही लव मैरिज करवाना, पति या प्रेमी को मनाना, कारोबार का न चलना, धन की प्राप्ति, पति पत्नी में अनबन और गुप्त प्रेम आदि समस्याओ का समाधान।
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Heart touching maa shayari and status
हैलो, दोस्तों अब हम यहां एक और लेख के साथ हैं हिंदी और अंग्रेजी में मां पर maa shayari, मातृ दिवस हमारे कई लोगों के लिए सबसे अधिक प्रतीक्षित दिन है क्योंकि यह हमारे प्यार को दिखाने के लिए सबसे अधिक दिल-वार्मिंग अवसर है। हमारी प्यारी maa की देखभाल करें। संबंध मानव जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है और maa के साथ एक बंधन माताओं दिवस समारोह के साथ दुनिया भर में मनाया जाता है।
Maa shayari and status-
ठाक गया हो रोटी के पछा भाग भाग कर ठाक गया हो सोती रातो मुझे जग जग कर कश मिल जय वही बिता हुआ बच्चन जब माँ खलीती थी भग भाग कर और सुलीती थी जग जाग का
मा तेरी याद सती है मीरे मा तेरी याद सती है, मेरे पास आ जाओ ठाक गया हुन, मुजे अपने आंचल मी सुलाओ Ungliyaan Apni फेर कर Baalon मी Mere एक बार फिर से बचपन की लोरीयान सनओओ
माहे फेले आंसो आते और तुम याद आती थी आज तु याद आती है और आसो निकेल आते है मा
तेरे बीना मेन ये डूनिया छोड टू डू प्र उस्का दिल काइज़ दुखा डु जो रोज़ा दारवाज़ प्र खादी खेती है बीटा घर जल्दी आ जना
एमएए टैब भी रोटी थी जबा बीटा पालतू मुझे लात मर्त था एमएए टैब भी रोटी थी जब बीटा जीर जाटा था एमएए टैब भी रोटी थी जब बीटा बुखार या सरदी मी तादप्ता था एमएए टैब भी रोटी थी जब बीटा खान नही खटा था और एमएए आज भी रोटी है जब बीटा खन्ना नाही डिटा
कही मा को ना देखू टू चेन नही आती है दिल ना जेन क्यू मां का नाम सोचते हाय बेहेल जाता है कही मस्करा डी टू लगता है जिंदगी मिल गेई मुजको नायी कही दुखी हो टू दिल मेरा भी दुखी हो जाता है
एक मा पाथर उबाल्ती रही रावत एक मा पाथर उबाल्ती रही रावत भार बाची फारेब खा के तो गाय
मां के दोोध मेरा तोह डम मां के दोोध मेरा तोह हम गर्म है है चहे वो हिंदुस्तान की हो या पाकिस्तान की
मा बाप के आंकन मी डू मा बाप के आंकन मी दो बार्स आसो आते हैं लाडकी घर चोड टैब और लद्दा मुह मोड ता
उमर भार तेरी मोहब्बत मेरी खिद्रमतगर उमर भार तेरी मोहब्बत मेरी खिद्रमतगर मुख्य तेरी खिद्रमत के कबील जेबी हाव तु चाल बसि माँ
अपेंड भुनी के सुला हम हम आंसन अपने की अगुवाई करें गीरा के हंसया हम कोदार्ड कही ना देना अन हस्तीयन को अल्लाह मां मा बाप बनया जिन्को
मा तेरी याद सती है, मेरे पास आ जाओ ठाक गया हुन, मुजे अपने आंचल मी सुलाओ Ungliyaan Apni फेर कर Baalon मी Mere एक बार फिर से बचपन की लोरीयन सुनआओ !!!
गुटनो से रेंगेट रेंगेट कबी पायरन पार खड़ हुआ तेरी ममता की छव मेरा जान कबा बादा हुआ कला टीका दुधा मलयी आज भी सब कुच वैसा है मुख्य हाय मुख्य हू हर जग प्यार ये तेरा कैसा है सेधा सधा भोला भाला मुख्य हाय सबसे अछा हू किटना भी हो जाउ बादा मां मुख्य आज भी तेरा बचा हुन
Read all best maa shayari from shayaribird
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🌻 *जीने की राह* 🌻
*(Part-86)*
*भक्त परमार्थी होना चाहिए | जीने की राह*
*अनुराग सागर के पृष्ठ 162 तथा 163 का सारांश:-*
भक्त परमार्थी होना चाहिए
जैसे गाय स्वयं तो जंगल में खेतों में घास खाकर आती है। स्वयं जल पीती है। मानव को अमृत दूध पिलाती है। उसके दूध से घी बनता है। गाय सुत यानि गाय का बच्छा हल में जोता जाता है। इंसान का पोषण करता है। गाय का गोबर भी मनुष्य के काम आता है। मृत्यु उपरांत गाय के शरीर के चमड़े से जूती बनती हैं जो मानव के पैरों को काँटों-कंकरों से रक्षा करती है। मानव जन्म प्राप्त प्राणी परमार्थ न करके भक्ति से वंचित रहकर पाप करने में अनमोल जीवन नष्ट कर जाता है। माँसाहारी नर राक्षस की तरह गाय को मारकर उसके माँस को खा जाता है। महापाप का भागी बनता है। इस सम्बन्ध की परमेश्वर कबीर जी की निम्न वाणी पढ़ें:-
‘‘परमार्थी गऊ का दृष्टांत‘‘
गऊको जानु परमार्थ खानी। गऊ चाल गुण परखहु ज्ञानी।।
आपन चरे तृण उद्याना। अँचवे जल दे क्षीर निदाना।।
तासु क्षीर घृत देव अघाहीं। गौ सुत नर के पोषक आहीं।।
विष्ठा तासु काज नर आवे। नर अघ कर्मी जन्म गमावे।।
टीका पुरे तब गौ तन नासा। नर राक्षस गोतन लेत ग्रासा।।
चाम तासु तन अति सुखदाई। एतिक गुण इक गोतन भाई।।
‘‘परमार्थी संत लक्षण‘‘
गौ सम संत गहै यह बानी। तो नहिं काल करै जिवहानी।।
नरतन लहि अस बु़द्धी होई। सतगुरू मिले अमर ह्नै सोई।।
सुनि धर्मनि परमारथ बानी। परमारथते होय न हानी।।
पद परमारथ संत अधारा। गुरू सम लेई सो उतरे पारा।।
सत्य शब्द को परिचय पावै। परमारथ पद लोक सिधावै।।
सेवा करे विसारे आपा। आपा थाप अधिक संतापा।।
यह नर अस चातुर बुद्धिमाना। गुन सुभ कर्म कहै हम ठाना।।
ऊँचा कर्म अपने सिर लीन्हा। अवगुण कर्म पर सिर दीन्हा।।
तात होय शुभ कर्म विनाशा। धर्मदास पद गहो विश्वासा।।
आशा एक नामकी राखे। निज शुभकर्म प्रगट नहिं भाखे।।
गुरूपद रहे सदा लौ लीना। जैसे जलहि न विसरत मीना।।
गुरू के शब्द सदा लौ लावे। सत्यनाम निशदिन गुणगावे।।
जैसे जलहि न विसरे मीना। ऐसे शब्द गहे परवीना।।
पुरूष नामको अस परभाऊ। हंसा बहुरि न जगमहँ आऊ।।
निश्चय जाय पुरूष के पासा। कूर्मकला परखहु धर्मदासा।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी के माध्यम से मानव मात्र को संदेश व निर्देश दिया है। कहा है कि मानव को गाय की तरह परमार्थी होना चाहिए। जिनको सतगुरू मिल गया है, वे तो अमर हो जाएंगे। घोर अघोंर (पापों) से बच जाएंगे, सेवा करें तो अपनी महिमा की आशा न करें। यदि अपने आपको थाप (मान-बड़ाई के लिए अपने आपको महिमावान मान) लेगा तो उसको अधिक कष्ट होगा। शुभ कर्म नष्ट हो जाएंगे।
उपदेशी केवल एक नाम की आशा रखे। मान-बड़ाई की चाह हृदय से त्याग दे। अपने शुभ कर्म (दान या अन्य सेवा) किसी के सामने न बताए। गुरू जी के पद (चरण) यानि गुरू की शरण में ऐसे रहे जैसे जल में मीन रहती है। मछली एक पल भी पानी के बिना नहीं रह सकती। तुरंत मर जाती है। ऐसे गुरू की शरण को महत्त्व देवे। गुरू जी द्वारा दिए शब्द यानि जाप मंत्रा (सतगुरू शब्द) जो सत्यनाम है यानि वास्तविक भक्ति मंत्रा में सदा लीन रहे जो पुरूष (परमात्मा) का भक्ति मंत्र है, उसका ऐसा प्रभाव है, उसमें इतनी शक्ति है कि साधक पुनः संसार में जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता। वह वहाँ चला जाता है जो सनातन परम धाम, जहाँ परम शांति है। जहाँ जाने के पश्चात् साधक कभी लौटकर संसार में नहीं आता।
यही प्रमाण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में है। गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा, उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परम धाम (शाश्वतम् स्थानम्) को प्राप्त होगा।(अध्याय 18 श्लोक 62)
गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि तत्त्वज्ञान प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर कभी संसार में नहीं आता। जिस परमेश्वर ने संसार रूपी वृक्ष की रचना की है, उसी की भक्ति करो।(अध्याय 15 श्लोक 4)
गीता ज्ञान दाता ने अपनी नाशवान अर्थात् जन्म-मरण की स्थिति गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5ए 9 में तथा अध्याय 10 श्लोक 2 में स्पष्ट ही रखी है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। पाठकजनो! गीता से स्पष्ट हुआ कि गीता ज्ञान दाता (काल ब्रह्म है जो श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके बोल रहा था) नाशवान है, जन्म-मरण के चक्र में है तो उसके उपासक की भी यही स्थिति होती है। इसलिए गीता अध्���ाय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित लाभ प्राप्त नहीं हो सकता। दूसरी बात यह सिद्ध होती है कि गीता ज्ञान दाता कोई अन्य समर्थ तथा सर्व लाभदायक परमेश्वर हैं जिनकी शरण में जाने के लिए गीता ज्ञान दाता यानि काल ब्रह्म ने कहा है। वह परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी हैं। उन्होंने अपनी महिमा स्वयं ही कही है जो आप जी कबीर सागर में पढ़ रहे हैं। परमेश्वर ने अनुराग सागर पृष्ठ 13 पर कहा कि सत्य पुरूष द्वारा रची सृष्टि के विषय में बताई कथा का साक्षी किसको बनाऊँ क्योंकि सबकी उत्पत्ति बाद में हुई है। पहले अकेले सतपुरूष थे। यहाँ पर विवेक करने की बात यह है कि कबीर जी को ज्ञान कहाँ से हुआ? जब सृष्टि रचना के समय कोई नहीं था। इससे स्वसिद्ध है कि ये स्वयं पूर्ण परमात्मा सृष्टि के सृजनहार हैं। जिन महान आत्माओं को परमेश्वर कबीर जी मिले हैं, उन्होंने भी यही साक्ष्य दिया है कि:-
गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, कुल के सिरजनहार।।
भावार्थ इस वाणी से ही स्पष्ट है।
‘‘कूर्म कला परखो धर्मदासा‘‘ का भावार्थ है कि जैसे कूर्म यानि कच्छवा आपत्ति के समय अपने मुख तथा पैरों को अपने अंदर छुपाकर निष्क्रिय हो जाता है। आपत्ति टलने के तुरंत पश्चात् अपने मार्ग पर चल देता है। इसी प्रकार भक्त को चाहिए कि यदि सांसारिक व्यक्ति आपके भक्ति मार्ग में बाधा उत्पन्न करे तो उसको उलटकर जवाब न देकर अपनी भक्ति को छुपाकर सुरक्षित रखे। सामान्य स्थिति होते ही फिर उसी गति से साधना करे। इस प्रकार करने से ‘‘निश्चय जाय पुरूष के पासा‘‘ वह साधक परमात्मा के पास अवश्य चला जाएगा।
अनुराग सागर पृष्ठ 163(281) पर:-
सोरठा:- हंस तहां सुख बिलसहीं, आनन्द धाम अमोल।
पुरूष तनु छवि निरखहिं, हंस करें किलोल।।
भावार्थ:- उपरोक्त ज्ञान के आधार से साधना करके साधक अमर धाम में चला जाता है। वहाँ पर आनन्द भोगता है। वह सतलोक बेसकीमती है। वहाँ पर सत्यपुरूष के शरीर की शोभा देखकर आनन्द मनाते हैं।
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप ��ंत रामपाल जी महार���ज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
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🌻 *जीने की राह* 🌻
*(Part-86)*
*भक्त परमार्थी होना चाहिए | जीने की राह*
*अनुराग सागर के पृष्ठ 162 तथा 163 का सारांश:-*
भक्त परमार्थी होना चाहिए
जैसे गाय स्वयं तो जंगल में खेतों में घास खाकर आती है। स्वयं जल पीती है। मानव को अमृत दूध पिलाती है। उसके दूध से घी बनता है। गाय सुत यानि गाय का बच्छा हल में जोता जाता है। इंसान का पोषण करता है। गाय का गोबर भी मनुष्य के काम आता है। मृत्यु उपरांत गाय के शरीर के चमड़े से जूती बनती हैं जो मानव के पैरों को काँटों-कंकरों से रक्षा करती है। मानव जन्म प्राप्त प्राणी परमार्थ न करके भक्ति से वंचित रहकर पाप करने में अनमोल जीवन नष्ट कर जाता है। माँसाहारी नर राक्षस की तरह गाय को मारकर उसके माँस को खा जाता है। महापाप का भागी बनता है। इस सम्बन्ध की परमेश्वर कबीर जी की निम्न वाणी पढ़ें:-
‘‘परमार्थी गऊ का दृष्टांत‘‘
गऊको जानु परमार्थ खानी। गऊ चाल गुण परखहु ज्ञानी।।
आपन चरे तृण उद्याना। अँचवे जल दे क्षीर निदाना।।
तासु क्षीर घृत देव अघाहीं। गौ सुत नर के पोषक आहीं।।
विष्ठा तासु काज नर आवे। नर अघ कर्मी जन्म गमावे।।
टीका पुरे तब गौ तन नासा। नर राक्षस गोतन लेत ग्रासा।।
चाम तासु तन अति सुखदाई। एतिक गुण इक गोतन भाई।।
‘‘परमार्थी संत लक्षण‘‘
गौ सम संत गहै यह बानी। तो नहिं काल करै जिवहानी।।
नरतन लहि अस बु़द्धी होई। सतगुरू मिले अमर ह्नै सोई।।
सुनि धर्मनि परमारथ बानी। परमारथते होय न हानी।।
पद परमारथ संत अधारा। गुरू सम लेई सो उतरे पारा।।
सत्य शब्द को परिचय पावै। परमारथ पद लोक सिधावै।।
सेवा करे विसारे आपा। आपा थाप अधिक संतापा।।
यह नर अस चातुर बुद्धिमाना। गुन सुभ कर्म कहै हम ठाना।।
ऊँचा कर्म अपने सिर लीन्हा। अवगुण कर्म पर सिर दीन्हा।।
तात होय शुभ कर्म विनाशा। धर्मदास पद गहो विश्वासा।।
आशा एक नामकी राखे। निज शुभकर्म प्रगट नहिं भाखे।।
गुरूपद रहे सदा लौ लीना। जैसे जलहि न विसरत मीना।।
गुरू के शब्द सदा लौ लावे। सत्यनाम निशदिन गुणगावे।।
जैसे जलहि न विसरे मीना। ऐसे शब्द गहे परवीना।।
पुरूष नामको अस परभाऊ। हंसा बहुरि न जगमहँ आऊ।।
निश्चय जाय पुरूष के पासा। कूर्मकला परखहु धर्मदासा।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी के माध्यम से मानव मात्र को संदेश व निर्देश दिया है। कहा है कि मानव को गाय की तरह परमार्थी होना चाहिए। जिनको सतगुरू मिल गया है, वे तो अमर हो जाएंगे। घोर अघोंर (पापों) से बच जाएंगे, सेवा करें तो अपनी महिमा की आशा न करें। यदि अपने आपको थाप (मान-बड़ाई के लिए अपने आपको महिमावान मान) लेगा तो उसको अधिक कष्ट होगा। शुभ कर्म नष्ट हो जाएंगे।
उपदेशी केवल एक नाम की आशा रखे। मान-बड़ाई की चाह हृदय से त्याग दे। अपने शुभ कर्म (दान या अन्य सेवा) किसी के सामने न बताए। गुरू जी के पद (चरण) यानि गुरू की शरण में ऐसे रहे जैसे जल में मीन रहती है। मछली एक पल भी पानी के बिना नहीं रह सकती। तुरंत मर जाती है। ऐसे गुरू की शरण को महत्त्व देवे। गुरू जी द्वारा दिए शब्द यानि जाप मंत्रा (सतगुरू शब्द) जो सत्यनाम है यानि वास्तविक भक्ति मंत्रा में सदा लीन रहे जो पुरूष (परमात्मा) का भक्ति मंत्र है, उसका ऐसा प्रभाव है, उसमें इतनी शक्ति है कि साधक पुनः संसार में जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता। वह वहाँ चला जाता है जो सनातन परम धाम, जहाँ परम शांति है। जहाँ जाने के पश्चात् साधक कभी लौटकर संसार में नहीं आता।
यही प्रमाण श्री���द्भगवत गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में है। गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा, उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परम धाम (शाश्वतम् स्थानम्) को प्राप्त होगा।(अध्याय 18 श्लोक 62)
गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि तत्त्वज्ञान प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर कभी संसार में नहीं आता। जिस परमेश्वर ने संसार रूपी वृक्ष की रचना की है, उसी की भक्ति करो।(अध्याय 15 श्लोक 4)
गीता ज्ञान दाता ने अपनी नाशवान अर्थात् जन्म-मरण की स्थिति गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5ए 9 में तथा अध्याय 10 श्लोक 2 में स्पष्ट ही रखी है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। पाठकजनो! गीता से स्पष्ट हुआ कि गीता ज्ञान दाता (काल ब्रह्म है जो श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके बोल रहा था) नाशवान है, जन्म-मरण के चक्र में है तो उसके उपासक की भी यही स्थिति होती है। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित लाभ प्राप्त नहीं हो सकता। दूसरी बात यह सिद्ध होती है कि गीता ज्ञान दाता कोई अन्य समर्थ तथा सर्व लाभदायक परमेश्वर हैं जिनकी शरण में जाने के लिए गीता ज्ञान दाता यानि काल ब्रह्म ने कहा है। वह परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी हैं। उन्होंने अपनी महिमा स्वयं ही कही है जो आप जी कबीर सागर में पढ़ रहे हैं। परमेश्वर ने अनुराग सागर पृष्ठ 13 पर कहा कि सत्य पुरूष द्वारा रची सृष्टि के विषय में बताई कथा का साक्षी किसको बनाऊँ क्योंकि सबकी उत्पत्ति बाद में हुई है। पहले अकेले सतपुरूष थे। यहाँ पर विवेक करने की बात यह है कि कबीर जी को ज्ञान कहाँ से हुआ? जब सृष्टि रचना के समय कोई नहीं था। इससे स्वसिद्ध है कि ये स्वयं पूर्ण परमात्मा सृष्टि के सृजनहार हैं। जिन महान आत्माओं को परमेश्वर कबीर जी मिले हैं, उन्होंने भी यही साक्ष्य दिया है कि:-
गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, कुल के सिरजनहार।।
भावार्थ इस वाणी से ही स्पष्ट है।
‘‘कूर्म कला परखो धर्मदासा‘‘ का भावार्थ है कि जैसे कूर्म यानि कच्छवा आपत्ति के समय अपने मुख तथा पैरों को अपने अंदर छुपाकर निष्क्रिय हो जाता है। आपत्ति टलने के तुरंत पश्चात् अपने मार्ग पर चल देता है। इसी प्रकार भक्त को चाहिए कि यदि सांसारिक व्यक्ति आपके भक्ति मार्ग में बाधा उत्पन्न करे तो उसको उलटकर जवाब न देकर अपनी भक्ति को छुपाकर सुरक्षित रखे। सामान्य स्थिति होते ही फिर उसी गति से साधना करे। इस प्रकार करने से ‘‘निश्चय जाय पुरूष के पासा‘‘ वह साधक परमात्मा के पास अवश्य चला जाएगा।
अनुराग सागर पृष्ठ 163(281) पर:-
सोरठा:- हंस तहां सुख बिलसहीं, आनन्द धाम अमोल।
पुरूष तनु छवि निरखहिं, हंस करें किलोल।।
भावार्थ:- उपरोक्त ज्ञान के आधार से साधना करके साधक अमर धाम में चला जाता है। वहाँ पर आनन्द भोगता है। वह सतलोक बेसकीमती है। वहाँ पर सत्यपुरूष के शरीर की शोभा देखकर आनन्द मनाते हैं।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
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Stud Burnt in Yol : कांगड़ा के वणी में पशुशाला में आग लगने से हजारों रुपये का नुकसान #news4
योल : कांगड़ा जिले के कैंट बोर्ड योल के तहत टीका वणी में शुक्रवार दोपहर बाद एक पशुशाला में अचानक आग लग जाने से हजारों रुपये का नुकसान हो गया। गनीमत रही कि पशुशाला में बंधे मवेशियों को गांव वालों ने बचा लिया। समाजसेवी शांति कुमार ने बताया कि दोपहर बाद 2.30 बजे पशुशाला से धुआं निकलता देखा व गांव वालों को सूचित करने पर सभी इकट्ठा हो गए तो भारी मशक्कत के बाद पशुशाला के अंदर बंधे दो बैल, दो गाय, चार…
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सोपोल बिहार की 19 वर्षीय लड़की को बिना टीकाकरण के मिला कोरोना सर्टिफिकेट ब्रेक- News18 Hindi
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सीरम इंस्टीट्यूट: अपना टीकाकरण न करें: दक्षिण अफ्रीका ने भारत को वापस लेने के लिए कहा! - दक्षिण अफ्रीका ने भारत को टीका लगवाने के लिए कहा
सीरम इंस्टीट्यूट: अपना टीकाकरण न करें: दक्षिण अफ्रीका ने भारत को वापस लेने के लिए कहा! – दक्षिण अफ्रीका ने भारत को टीका लगवाने के लिए कहा
मुख्य विशेषताएं: सीरम कंपनी की 10 लाख कोरोना वैक्सीन खुराक दक्षिण अफ्रीका में भेज दी गई दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों द्वारा खरीदने और भु��तान करने से पहले गाय शील्ड वैक्सीन का परीक्षण किया गया था। नए प्रकार के कोरोना के खिलाफ कम सुरक्षा प्रदान करने के लिए सीरम टीके पाए गए हैं कोरोना के लिए एक टीका की खोज की गई है और इसे दुनिया भर में आम जनता के लिए रखा जा रहा है। भारत में कोवाक्सिन और कोवाशील्ड…
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