#खलिहान
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तालाब और खलिहान विलुप्त हो रहा हैं,
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DAY 5763
Jalsa, Mumbai Nov 27, 2023 Mon 11:14 PM
peace tranquility calm and the strength of pious divinity ..
🚩
Babuji .. his birth, his presence , his guidance his learnings and his spirit .. each moment vivid and alive ..
I stand in front of his portrait where he breathed his last .. a small prayer for his strength and presence for all .. that is it .. he would never have wanted any more .. if you did it, he would not object, but left to himself would be his wont ..
my colleague from KBC sends his wishes :
बाबूजी की जन्मतिथि पर सादर नमन 🙏🏽
उनकी एक रचना …
“ अब समाप्त हो गया मेरा काम, करना है बस आराम ही आराम, अब न खुरपी न हँसिया, न पुरवट न लढ़िया, न रखरखाव, न हर न हेंगा, मेरी मिट्टी में जो कुछ निहित था, उसे मैंने जोत बो, अश्रु स्वेद रक्त से सींच, निकाला, काटा, खलिहान का खलिहान पाटा, अब मौत क्या ले जाएगी मेरी मिट्टी से, ठेंगा … । “
सचमुच मौत ठेंगा ही ले जा पाई, वो आज भी जीवित हैं और हमेशा रहेंगे, अपनी अमर कृतियों में …
नमन 🙏🏽💐🙏🏽
the translation shall ruin the thought and shall never be able to express the depth of what he wrote .. yes the depth .. that was what all his works portrayed and spelt out ..
BUT .. let me attempt an attempt ..
my work has ended , now I have to just take rest ; I need no utensils that are used for plowing the earth the fields .. whatever had been contained in this earth, I did sow and nurture and plough .. with my blood sweat and tears .. field upon fields did I farm and cut the growth from the earth during the harvesting ...
what shall death take away from this earth of mine .. ठेंगा !!!
ठेंगा is a word that defies explanation in any form or language .. it is usually done with sound and act .. an act of pushing out your thumb while you say the word ..
in the English language the thumb is a symbol of being right or correct ..
in Hindi it is the exact opposite .. it's a colloquial mode , for to put it mildly and crudely , and do pardon the tongue .. its you
get f..all !!!
so yes , really what will death take away from his earth .. ठेंगा, thénga .. nothing , f..all .. for his work shall live ever even when he has left this World ..or rather left this Earth ..
Amitabh Bachchan
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#MondayMotivation
👉दृष्टि पड़े सो,फना है,धर अम्बर कैलाश। कृत्रिम बाजी झूठ है,सुरति समोवो श्वांस।।
🙏भावार्थ है जो कुछ आप देख रहे हो यानि खेत-खलिहान, बाग-बगीचे,पर्वत,झरने,
वन,दरिया,गाँव-शहर,जीव-जंतु,राजा, मानव तथा चाँद,सूर्य,तारे,नक्षत्र,ग्रह
आदि-आदि सब फना (नाशवान) है।
👉 संत रामपाल जी का सत्संग सुने साधना चैनल पर शाम 7:30 से 8:30 बजे तक।
👉संत रामपाल जी महाराज ऐप डाउनलोड करें।
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आपको आगामी पंच दिवसीय दीप पर्व महोत्सव की अनंत हार्दिक शुभकामनायें | **धनतेरस** समुद्र मंथन से आयुर्वेद अमृत कलश लिये प्रकट हुये चौदहवें रत्न भगवान् धनवंतरी आपको, आपके पूरे परिवार को उत्तम स्वास्थ्य, दीर्घायु व उत्कृष्ट रोग-प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करें- **रूप चतुर्दशी** आप को व आपके परिवार को अप्रतिम सौंदर्य व रूप यौवन प्रदान करें - **दीपावली** देवी लक्ष्मी आप पर इतनी प्रसन्न हो कि आप के घर को धन धान्य से परिपूर्ण कर आप के पास ही स्थाई वास करे- **गोवर्धन** आप के सम्पूर्ण खेत-खलिहान, यानी आय के स्त्रोत इतने फलें-फूलें कि आपकी अनन्त पीढ़ियों तक किसी भी वस्तु का अभाव न हो- **भैया दूज** भाई बहन में अटूट प्रेम दे,बहन कभी अपने आप को असहज महसूस न करे और बहन द्वारा भाई के माथे पर लगाया गया तिलक स्वर्णिम पुष्प की तरह हमेशा महकता रहे- यह पांच दिवसीय दीप महोत्सव आप सभी को उत्तम स्वास्थ्य,सुख-समृद्धि, आत्मसंतोष, शांति, स्फूर्ति और ऊर्जा दायक हो सभी का कल्याण हो ऐसी अनंत मंगलकामना- || जय श्री राम || #दीप_पर्व_शुभकामनाएं #धनतेरस #रूप_चतुर्दशी #दीपावली #गोवर्धन_पूजा #भैया_दूज #दीपोत्सव_मंगलमय #उत्तम_स्वास्थ्य #सौंदर्य_यौवन #धन_धान्य #संपन्नता #भाई_बहन_प्रेम #शांति_और_सुख #जय_श्री_राम #आयुर्वेद #लक्ष्मी_कृपा
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#GodMorningSaturday
दृष्टि पड़े सो फना है, धर अम्बर कैलाश
कृत्रिम बाजी झूठ है, सुरति समोवो श्वास॥
सरलार्थ:-
जो कुछ आप देख रहे हो यानि खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, पर्वत, झरने, वन, दरिया, गांव-शहर, जीव-जंतु, राजा, मानव तथा चांद, सूर्य, तारे, न��्षत्र, ग्रह आदि- आदि सब फना (नाश्वान) है॥
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#GodMorningMonday
दृष्टि पड़े सो फना है, धर अम्बर कैलाश। कृत्रिम बाजी झूठ है, सुरति समोवो श्वांस ।।
सतलोक आश्रम सोजत (राज.)
भावार्थ
है कि जो कुछ आप देख रहे हो यानि खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, पर्वत, झरने, वन, दरिया, गाँव-शहर, जीव-जंतु, राजा, मानव तथा चाँद, सूर्य, तारे, नक्षत्र, ग्रह आदि-आदि सब फना (नाशवान) है।
शिव जी का घर कैलाश पर्वत पर है। वह कैलाश पर्वत भी नष्ट होगा। यह सब कृत्रिम संसार सब झूठ है। एक स्वपन के समान है। इसलिए श्वांस उश्वांस से स्मरण (नाम जाप) करो। संसार को असार मानो। परमात्मा की भक्ति करो। अपना कल्याण करवाओ।
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
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कबीर बड़ा या कृष्ण Part 90
वेदों से जानते हैं परम अक्षर ब्रह्म कौन है? Part B
यहाँ पर वेदों के मंत्रों की कुछ फोटोकाॅपी लगाई हैं जिनका अनुवाद आर्य समाज के आचार्यों, शास्त्रियों ने किया है। कुछ ठीक, कुछ गलत है। परंतु सत्य फिर भी स्पष्ट है।
वेद मंत्रों में कहा है कि सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता ‘‘परम अक्षर ब्रह्म’’ यानि ‘‘सत्यपुरूष’’ आकाश में बने सनातन परम धाम यानि सत्यलोक में निवास करता है। एक सिंहासन पर विराजमान है। उसके सिर के ऊपर मुकट तथा छत्र लगे हैं। परमेश्वर देखने में राजा के समान है। परमेश्वर वहाँ से चलकर नीचे के लोक में पृथ्वी आदि पर चलकर (गति करके) आता है। अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनको यथार्थ अध्यात्म ज्ञान बताता है। अपने मुख से वाणी बोल-बोलकर भक्ति करने की प्रेरणा करता है। साधना के सत्य नामों का आविष्कार करता है। प्रत्येक युग में एक बार ऐसी लीला करते हुए शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर निवास करता है। वहाँ से बाल परमेश्वर को निःसंतान दम्पति उठा ले जाते हैं। बाल भगवान की परवरिश कंवारी गायों द्वारा होती है। बड़ा होकर तत्त्वज्ञान का प्रचार करता है। अपने मुख से वाणी उच्चारण करता है। दोहों, चैपाईयों, शब्दों के माध्यम से अपनी जानकारी की वाणी उच्चारण करता है जिसको (कविर्गिर्भीः) कबीर वाणी कहा जाता है तथा इसी कारण से प्रसिद्ध कवि की भी पदवी प्राप्त करता है यानि उसको कवि कहा जाता है। जिस पर वेदों में कहे लक्षण खरे उतरते ह��ं। वही सृष्टि का उत्पत्ति कर्ता तथा सबका धारण-पोषण कर्ता है। अन्य नहीं हो सकता। ये लक्षण केवल कबीर जुलाहे (काशी वाले) पर खरे उतरते हैं। इसलिए परम अक्षर ब्रह्म कबीर जी हैं। इन वेद मंत्रों के बाद चारों युगों में परमेश्वर कबीर जी का लीला करने आने का संक्षिप्त वर्णन है। उसे पढ़कर जान जाओगे कि वेदों में कबीर परमेश्वर जी का वर्णन है। कबीर परमेश्वर जी ने भी कहा है:-
बेद मेरा भेद है, मैं ना बेदन के मांही। जौन बेद से मैं मिलूं, बेद जानते नांही।।
अर्थात् कबीर जी ने स्पष्ट किया है कि चारों वेद मेरी महिमा बताते हैं। परंतु इन वेदों में मेरी प्राप्ति की भक्ति विधि नहीं क्योंकि काल ब्रह्म ने वह यथार्थ भक्ति के मंत्र निकाल दिए थे। मेरी प्राप्ति का ज्ञान जिस सूक्ष्म वेद में है, उसका ज्ञान वेदों में अंकित नहीं है।
कृपया पढ़ें वेद मंत्र तथा दास (रामपाल दास) के द्वारा किया गया विश्लेषण, इनके बाद परमेश्वर कबीर जी का चारों युगों में सतलोक सिंहासन से गति करके आने का प्रकरण।
वेद मंत्र (प्रमाण सहित)
प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 86 मन्त्र 26-27
Rig Veda Mandal 9 Sukt 86 Mantra 26
ववेचन:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मन्त्र 26, जो आर्यसमाज के आचार्यों व महर्षि दयानन्द के चेलों द्वारा अनुवादित है जिसमें स्पष्ट है कि यज्ञ करने वाले अर्थात् धार्मिक अनुष्ठान करने वाले यजमानों अर्थात् भक्तों के लिए परमात्मा, सब रास्तों को सुगम करता हुआ अर्थात् जीवन रूपी सफर के मार्ग को दुखों रहित करके सुगम बनाता हुआ। उनके विघ्नों अर्थात् संकटों का मर्दन करता है अर्थात् समाप्त करता है। भक्तों को पवित्र अर्थात् पाप रहित, विकार रहित करता है। जैसा की अगले मन्त्र 27 में कहा है कि ’’जो परमात्मा द्यूलोक अर्थात् सत्यलोक के तीसरे पृष्ठ पर विराजमान है, वहाँ पर परमात्मा के शरीर का प्रकाश बहुत अधिक है।‘‘ उदाहरण के लिए परमात्मा के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश करोड़ सूर्य तथा इतने ही चन्द्रमाओं के मिले-जुले प्रकाश से भी अधिक है। यदि वह परमात्मा उसी प्रकाश युक्त शरीर से पृथ्वी पर प्रकट हो जाए तो हमारी चर्म दृष्टि उन्हें देख नहीं सकती। जैसे उल्लु पक्षी दिन में सूर्य के प्रकाश के कारण कुछ भी नहीं देख पाता है। यही दशा मनुष्यों की हो जाए। इसलिए वह परमात्मा अपने रूप अर्थात् शरीर के प्रकाश को सरल करता हुआ उस स्थान से जहाँ परमात्मा ऊपर रहता है, वहाँ से गति करके बिजली के समान क्रीड़ा अर्थात् लीला करता हुआ चलकर आता है, श्रेष्ठ पुरूषों को मिलता है। यह भी स्पष्ट है कि आप कविः अर्थात् कविर्देव हैं। हम उन्हें कबीर साहेब कहते हैं।
Rig Veda Mandal 9 Sukt 86 Mantra 27
विवेचन:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 के मन्त्र 27। इसमें स्पष्ट है कि ’’परमात्मा द्यूलोक अर्थात् अमर लोक के तीसरे पृष्ठ अर्थात् भाग पर विराजमान है। सत्यलोक अर्थात् शाश्वत् स्थान के तीन भाग हैं। एक भाग में वन-पहाड़-झरने, बाग-बगीचे आदि हैं। यह बाह्य भाग है अर्थात् बाहरी भाग है। (जैसे भारत की राजधानी दिल्ली भी तीन भागों में बँटी है। बाहरी दिल्ली जिसमें गाँव खेत-खलिहान और नहरें हैं, दूसरा बाजार बना है। तीसरा संसद भवन तथा कार्यालय हैं।)
इसके पश्चात् द्यूलोक में बस्तियाँ हैं। सपरिवार मोक्ष प्राप्त हंसात्माऐं रहती हैं। (पृथ्वी पर जैसे भक्त को भक्तात्मा कहते हैं, इसी प्रकार सत्यलोक में हंसात्मा कहलाते हैं।) (3) तीसरे भाग में सर्वोपरि परमात्मा का सिंहासन है। उसके आस-पास केवल नर आत्माऐं रहती हैं, वहाँ स्त्री-पुरूष का जोड़ा नहीं है। वे यदि अपना परिवार चाहते हैं तो शब्द (वचन) से केवल पुत्र उत्पन्न कर लेते हैं। इस प्रकार शाश्वत् स्थान अर्थात् सत्यलोक तीन भागों में परमात्मा ने बाँट रखा है। वहाँ यानि सत्यलोक में प्रत्येक स्थान पर रहने वालों में वृद्धावस्था नहीं है, वहाँ मृत्यु नहीं है। इसीलिए गीता अध्याय 7 श्लोक 29 में कहा है कि जो जरा अर्थात् वृद्ध अवस्था तथा मरण अर्थात् मृत्यु से छूटने का प्रयत्न करते हैं, वे तत् ब्रह्म अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म को जानते हैं। सत्यलोक में सत्यपुरूष रहता है, वहाँ पर जरा-मरण नहीं है, बच्चे युवा होकर सदा युवा रहते हैं।
प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 82 मन्त्र 1-2
Rig Veda Mandal 9 Sukt 82 Mantra 1
Rig Veda Mandal 9 Sukt 82 Mantra 2
विवेचन:- ऊपर ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मन्त्र 1-2 की फोटोकापी हैं, यह अनुवाद महर्षि दयानन्द जी के दिशा-निर्देश से उन्हीं के चेलों ने किया है और सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली से प्रकाशित है।
इनमें स्पष्ट है कि:- मन्त्र 1 में कहा है ’’सर्व की उत्पत्ति करने वाला परमात्मा तेजोमय शरीर युक्त है, पापों को नाश करने वाला और सुखों की वर्षा करने वाला अर्थात् सुखों की झड़ी लगाने वाला है, वह ऊपर सत्यलोक में सिंहासन पर बैठा है जो देखने में राजा के समान है। यही प्रमाण सूक्ष्मवेद में है कि:-
अर्श कुर्श पर सफेद गुमट है, जहाँ परमेश्वर का डेरा।
श्वेत छत्र सिर मुकुट विराजे, देखत न उस चेहरे नूं।।
यही प्रमाण बाईबल ग्रन्थ तथा र्कुआन् शरीफ में है कि परमात्मा ने छः दिन में सृष्टि रची और सातवें दिन ऊपर आकाश में तख्त अर्थात् सिंहासन पर जा विराजा। (बाईबल के उत्पत्ति ग्रन्थ 2:26-30 तथा र्कुआन् शरीफ की सुर्त ’’फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में है।)
वह परमात्मा अपने अमर धाम से चलकर पृथ्वी पर शब्द वाणी से ज्ञान सुनाता है। वह वर्णीय अर्थात् आदरणीय श्रेष्ठ व्यक्तियों को प्राप्त होता है, उनको मिलता है। {जैसे 1 सन्त धर्मदास जी बांधवगढ(मध्य प्रदे�� वाले को मिले) 2 सन्त मलूक दास जी को मिले, 3 सन्त दादू दास जी को आमेर (राजस्थान) में मिले 4 सन्त नानक देव जी को मिले 5 सन्त गरीब दास जी गाँव छुड़ानी जिला झज्जर हरियाणा वाले को मिले 6 सन्त घीसा दास जी गाँव खेखड़ा जिला बागपत (उत्तर प्रदेश) वाले को मिले।}
वह परमात्मा अच्छी आत्माओं को मिलते हैं। जो परमात्मा के दृढ़ भक्त होते हैं, उन पर परमात्मा का विशेष आकर्षण होता है। उदाहरण भी बताया है कि जैसे विद्युत अर्थात् आकाशीय बिजली स्नेह वाले स्थानों को आधार बनाकर गिरती है। जैसे कांसी धातु पर बिजली गिरती है, पहले कांसी धातु के कटोरे, गिलास-थाली, बेले आदि-आदि होते थे। वर्षा के समय तुरन्त उठाकर घर के अन्दर रखा करते थे। वृद्ध कहते थे कि कांसी के बर्तन पर बिजली अमूमन गिरती है, इसी प्रकार परमात्मा अपने प्रिय भक्तों पर आकर्षित होकर मिलते हैं।
मन्त्र नं. 2 में तो यह भी स्पष्ट किया है कि परमात्मा उन अच्छी आत्माओं को उपदेश करने की इच्छा से स्वयं महापुरूषों को मिलते हैं। उपदेश का भावार्थ है कि परमात्मा तत्वज्ञान बताकर उनको दीक्षा भी देते हैं। उनके सतगुरू भी स्वयं परमात्मा होते हैं। यह भी स्पष्ट किया है कि परमात्मा अत्यन्त गतिशील पदार्थ अर्थात् बिजली के समान तीव्रगामी होकर हमारे धार्मिक अनुष्ठानों में आप पहुँचते हैं। आप जी ने पीछे पढ़ा कि सन्त धर्मदास को परमात्मा ने यही कहा था कि मैं वहाँ पर अवश्य जाता हूँ जहाँ धार्मिक अनुष्ठान होते हैं क्योंकि मेरी अनुपस्थिति में काल कुछ भी उपद्रव कर देता है। जिससे साधकों की आस्था परमात्मा से छूट जाती है। मेरे रहते वह ऐसी गड़बड़ नहीं कर सकता। इसीलिए गीता अध्याय 3 श्लोक 15 में कहा है कि वह अविनाशी परमात्मा जिसने ब्रह्म को भी उत्पन्न किया, सदा ही यज्ञों में प्रतिष्ठित है अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों में उसी को इष्ट रूप में मानकर आरती स्तुति करनी चाहिए।
इस ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मन्त्र 2 में यह भी स्पष्ट किया है कि आप (कविर्वेधस्य) कविर्देव है जो सर्व को उपदेश देने की इच्छा से आते हो, आप पवित्र परमात्मा हैं। हमारे पापों को छुड़वाकर अर्थात् नाश करके हे अमर परमात्मा! आप हम को सुःख दें और (द्युतम् वसानः निर्निजम् परियसि) हम आप की सन्तान हैं। हमारे प्रति वह वात्सल्य वाला प्रेम भाव उत्पन्न करते हुए उसी (निर्निजम्) सुन्दर रूप को (परियासि) उत्पन्न करें अर्थात् हमारे को अपने बच्चे जानकर जैसे पहले और जब चाहें तब आप अपनी प्यारी आत्माओं को प्रकट होकर मिलते हैं, उसी तरह हमें भी दर्शन दें।
प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 96 मन्त्र 16 से 20
Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 16
Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 17
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 के मंत्र 16 में कहा है कि हे परमात्मन्! आप अपने श्रेष्ठ गुप्त नाम का ज्ञान कराऐं। उस नाम को मंत्र 17 में बताया है कि वह कविः यानि कविर्देव है।
मंत्र 17 की केवल हिन्दी:- (शिशुम् जज्ञानम् हर्यन्तम्) परमेश्वर जान-बूझकर तत्वज्ञान बताने के उ��्देश्य से शिशु रूप में प्रकट होता है, उनके ज्ञान को सुनकर (मरूतो गणेन) भक्तों का बहुत बड़ा समूह उस परमात्मा का अनुयाई बन जाता है। (मृजन्ति शुम्यन्ति वहिन्)
वह ज्ञान बुद्धिजीवी लोगों को समझ आता है, वे उस परमेश्वर की स्तुति भक्ति तत्वज्ञान के आधार से करते हैं, वह भक्ति (वहिन्) शीघ्र लाभ देने वाली होती है। वह परमात्मा अपने तत्वज्ञान को (काव्येना) कवित्व से अर्थात् कवियों की तरह दोहों, शब्दों, लोकोक्तियों, चैपाईयों द्वारा (कविर् गीर्भिः) कविर् वाणी द्वारा अर्थात् कबीर वाणी द्वारा (पवित्रम् अतिरेभन्) शुद्ध ज्ञान को उच्चे स्वर में गर्ज-गर्जकर बोलते हैं। वह (कविः) कवि की तरह आचरण करने वाला कविर्देव (सन्त्) सन्त रूप में प्रकट (सोम) अमर परमात्मा होता है। (ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17)
विशेष:- इस मन्त्र के मूल पाठ में दो बार ’’कविः’’ शब्द है, आर्य समाज के अनुवादकर्ताओं ने एक (कविः) का अर्थ ही नहीं किया है।
Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 18
विवेचन:- यह ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 18 की फोटोकापी है जिसका अनुवाद महर्षि दयानन्द जी के अनुयाईयों ने किया है। सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली द्वारा अनुवादित है। इस पर विवेचन करते हैं। इसके अनुवाद में भी बहुत-सी गलतियाँ हैं जो आर्यसमाज के आचार्यों ने की है। हम संस्कृत भी समझ सकते हैं, विवेचन करता हूँ तथा यथार्थ अनुवाद व भावार्थ स्पष्ट करता हूँ। मन्त्र 17 में कहा है कि ऋषि या सन्त रूप में प्रकट होकर परमात्मा अमृतवाणी अपने मुख कमल से बोलता है और उस ज्ञान को समझकर अनेकों अनुयाईयों का समूह बन जाता है। (य) जो वाणी परमात्मा तत्वज्ञान की सुनाता है, वे (ऋषिकृत्) ऋषि रूप में प्रकट परमात्मा कृत (सहंस्रणीयः) हजारों वाणियाँ अर्थात् कबीर वाणियाँ (ऋषिमना) ऋषि स्वभाव वाले भक्तों के लिए (स्वर्षाः) आनन्ददायक होती हैं। (कविनाम पदवीः) कवित्व से दोहों, चैपाईयों में वाणी बोलने के कारण वह परमात्मा प्रसिद्ध कवियों में से एक कवि की भी पदवी प्राप्त करता है। वह (सोम) अमर परमात्मा (सिषासन्) सर्व की पालन की इच्छा करता हुआ प्रथम स्थिति में (महिषः) बड़ी पृथ्वी अर्थात् ऊपर के लोकों में (तृतीयम् धाम) तीसरे धाम अर्थात् सत्यलोक के तीसरे पृष्ठ पर (अनुराजति) तेजोमय शरीर युक्त (स्तुप) गुम्बज में (विराजम्) विराजमान है, वहाँ बैठा है। यही प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 54 मन्त्र 3 में है कि परमात्मा सर्व लोकों के ऊपर के लोक में विराजमान है, (तिष्ठन्ति) बैठा है।
Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 19
विवेचन:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 19 का भी आर्य समाज के विद्वानों ने अनुवाद किया है। इसमें भी बहुत सारी गलतियाँ है। पुस्तक विस्तार के कारण केवल अपने मतलब की जानकारी प्राप्त करते हैं।
इस मन्त्र में चैथे धाम का वर्णन है जो आप जी सृष्टि रचना में पढेंगे, उससे पूर्ण जानकारी होगी पढे़ं इसी पुस्तक के पृष्ठ 208 पर।
परमात्मा ने ऊपर के चार लोक अजर-अमर रचे हैं।
अनामी लोक जो सबसे ऊपर है।
अगम लोक
अलख लोक
सत्यलोक
हम पृथ्वी लोक पर हैं, यहाँ से ऊपर के लोकों की गिनती करेंगे तो 1 सत्यलोक 2 अलख लोक 3 ��गम लोक तथा 4 अनामी लोक गिना जाता है। उस चैथे धाम में बैठकर परमात्मा ने सर्व ब्रह्माण्डों व लोकों की रचना की। शेष रचना सत्यलोक में बैठकर की थी। आर्य समाज के अनुवादकों ने तुरिया परमात्मा अर्थात् चैथे परमात्मा का वर्णन किया है। यह चैथा धाम है। उसमें मूल पाठ मन्त्र 19 का भावार्थ है कि तत्वदर्शी सन्त चैथे धाम तथा चैथे परमात्मा का (विवक्ति) भिन्न-भिन्न वर्णन करता है। पाठक जन कृपया पढे़ं सृष्टि रचना इसी पुस्तक के पृष्ठ 208 पर जिससे आप जी को ज्ञान होगा कि लेखक (संत रामपाल दास) ही वह तत्वदर्शी संत है जो तत्वज्ञान से परिचित है।
Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 20
विवेचन:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 20 का यथार्थ ज्ञान जानते हैंः-
इस मन्त्र का अनुवाद महर्षि दयानन्द के चेलों द्वारा किया गया है, इनका दृष्टिकोण यह रहा है कि परमात्मा निराकार है क्योंकि महर्षि दयानन्द जी ने यह बात दृढ़ की है कि परमात्मा निराकार है। इसलिए अनुवादक ने सीधे मन्त्र का अनुवाद घुमा-फिराकर किया है। जैसे मूल पाठ में लिखा हैः-
मर्य न शुभ्रः तन्वा मृजानः अत्यः न सृत्वा सनये धनानाम्।
वृर्षेव यूथा परि कोशम अर्षन् कनिक्रदत् चम्वोः आविवेश।।
अनुवाद:- जैसे (मर्यः न) मनुष्य सुन्दर वस्त्रा धारण करता है, ऐसे परमात्मा मनुष्य के समान (शुभ्रः तन्व) सुन्दर शरीर (मृजानः) धारण करके (अत्यः) अत्यन्त गति से चलता हुआ (सनये धनानाम्) भक्ति धन के धनियों अर्थात् पुण्यात्माओं को (सनये) प्राप्ति के लिए आता है। (यूथा वृषेव) जैसे एक समुदाय को उसका सेनापति प्राप्त होता है, ऐसे वह परमात्मा संत व ऋषि रूप में प्रकट होता है तो उसके बहुत सँख्या में अनुयाई बन जाते हैं और परमात्मा उनका गुरू रूप में मुखिया होता है। वह परमात्मा (परि कोशम्) प्रथम ब्रह्माण्ड में (अर्षन्) प्राप्त होकर अर्थात् आकर (कनिक्रदत्) ऊँचे स्वर में सत्यज्ञान उच्चारण करता हुआ (चम्वोः) पृथ्वी खण्ड में (अविवेश) प्रविष्ट होता है।
भावार्थ:- जैसे पूर्व में वेद मन्त्रों में कहा है कि परमात्मा ऊपर के लोक में रहता है, वहाँ से गति करके अपने रूप को अर्थात् शरीर के तेज को सरल करके पृथ्वी पर आता है। इस ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 20 में उसी की पुष्टि की है। कहा है कि जैसे मनुष्य वस्त्र धारण करता है, ऐसे अन्य शरीर धारण करके परमात्मा मानव रूप में पृथ्वी पर आता है और (धनानाम्) दृढ़ भक्तों (अच्छी पुण्यात्माओं) को प्राप्त होता है, उनको वाणी उच्चारण करके तत्वज्ञान सुनाता है।
विवेचन:- ये ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 16 से 20 की फोटोकापियाँ हैं, जिनका हिन्दी अनुवाद महर्षि दयानन्द सरस्वती आर्यसमाज प्रवर्तक के दिशा-निर्देश से उनके आर्यसमाजी चेलों ने किया है। यह अनुवाद कुछ-कुछ ठीक है, अधिक गलत है। पहले अधिक ठीक या कुछ-कुछ गलत था जो मेरे द्वारा शुद्ध करके विवेचन में लिख दिया है। अब अधिक गलत को शुद्ध करके लिखता हूँ।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 16 में कहा है कि:-
हे परमात्मा! आपका जो गुप्त वास्तविक (चारू) श्रेष्ठ (नाम) नाम है, उसका ज्ञान कराऐं। प्रिय पाठको! जैसे भारत के राजा को प्रधानमंत्री कहते हैं, यह उनकी पदवी का प्रतीक है। उनका वास्तविक नाम कोई अन्य ही होता है। जैसे पहले प्रधानमंत्री जी पंडित जवाहर ला�� नेहरू जी थे। ’’जवाहरलाल’’ उनका वास्तविक नाम है। इस मंत्र 16 में कहा है कि हे परमात्मा! आपका जो वास्तविक नाम है वह (सोतृमिः) उपासना करने का (स्व आयुधः) स्वचालित शस्त्र के समान (पूयमानः) अज्ञान रूपी गन्द को नाश करके पापनाशक है। आप अपने उस सत्य मन्त्र का हमें ज्ञान कराऐं। (देव सोम) हे अमर परमेश्वर! आपका वह मन्त्र श्वांसों द्वारा नाक आदि (गाः) इन्द्रियों से (वासुम् अभि) श्वांस-उश्वांस से जपने से (सप्तिरिव = सप्तिः इव) विद्युत् जैसी गति से अर्थात् शीघ्रता से (अभिवाजं) भक्ति धन से परिपूर्ण करके (श्रवस्यामी) ऐश्वर्य को तथा मोक्ष को प्राप्त कराईये।
प्रिय पाठकों से निवेदन है कि इस ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 16 के अनुवाद में बहुत-सी गलतियाँ थी जो शुद्ध कर दी हैं। प्रमाण के लिए मूल पाठ मे ’’अभिवाजं’’ शब्द है इसका अनुवाद नहीं किया गया है। इसके स्थान पर ’’अभिगमय’’ शब्द का अर्थ जोड़ा है जो मूल पाठ में नहीं है।
विवेचन:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17 के अनुवाद में भी बहुत गलतियाँ हैं जो आर्यसमाजियों द्वारा अनुवादित है। अब शुद्ध करके लिखता हूँः-
जैसा कि पूर्वोक्त ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 तथा 82 के मन्त्रों में प्रमाण है कि परमात्मा अपने शाश्वत् स्थान से जो द्यूलोक के तीसरे स्थान पर विराजमान है, वहाँ से चलकर पृथ्वी पर जान-बूझकर किसी खास उद्देश्य से प्रकट होता है। परमात्मा सर्व ब्रह्माण्डों में बसे प्राणियों की परवरिश तीन स्थिति में करते हैं।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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अबकी बार यह पूरब से चलेगा।
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अच्छा या बुरा नही होकर एक वक्त हैं। जो वक्त बेवक्त खाली हो जाता हैं। उस खालीपन के अंदर कई मौसम एक साथ रहा करते हैं।
आज चमकती हुई धूप हैं। सर्द मौसम बहुत पास से गुजर रहा है। धूप निश्चिंत हैं कि अब सर्द मौसम बाधा नहीं बनेंगे, लेकिन बीच बीच में बेमकसद भटकती असंतुष्ट बदली ��ूप को आशंकित करती हैं। इस आशंका को ��ब और बल मिलता हैं, जब हवाएं अट्टहास करती पास से गुजर जाती हैं।
शोर करता यह उद्वेलित मालूम पड़ता हैं जैसे बेमतलब का हो।
बेमतलब का होना इसे और जंगली बनाता हैं। उपेक्षा और तिरस्कार से सख्त हो चुका, यह लोगो को दर्द दे कर अपना गुस्सा निकालता है। अपनी पहचान खातिर बार–बार शोर करता अपनी मौजूदगी का अहसास कराता हैं।
लेकिन इन जाड़ों के बाद वाली धूप में तुम्हारा क्या काम?
वेग से गुजरती इन हवाओं को देख धूप थोड़ी देर के लिए ठिठक पड़ती हैं। जानी पहचानी लेकिन पहचान का कोई सिरा नजर नहीं आता। मिलने की खुशबू आ रही , लेकिन कैसे मिले थे याद नही! हवाएं शिकायती और उम्मीद की मिलीजुली नजरों से धूप को ताक रही हैं। जैसे कुछ इशारा करना चाह रही हो। "भूल गए क्या वो तपिश जब मुझे गले लगाएं थे? भूल गए वो शाम जब मेरे आगोश में ताजे हुए थे। या सुकून वाली वो रातें जब तुम मेरे सपनो में सोएं थे? अब मुझे तुम्हारी जरूरत हैं और तुम मुझे निचोड़ रहे हो। सूखा डाल रहे हो। कोई कैसे भूल सकता हैं!"
धूप निःशब्द हैं। थोड़ी देर के लिए सहम जाता हैं। यादें पीछा करती हैं और सुबह ओस बन जाती हैं।
बेउम्मीद मुसाफ़िर बन चुका हवा शुष्क हो चला हैं। धूप का सहारा मिले तो अभी भी बरस सकता हैं, लेकिन इसके आसार नजर नहीं आते। धूप को भी फरवरी का कर्तव्य निभाना हैं। ऐसे कैसे उस आवारगी में वापस मुड़ जाए।
एक दर्द फैल रही हैं हवा के अंदर, एक ऐसा दर्द जिसे दस्तक की कमी खाती हैं। जिधर से गुजरती हैं खामोशी पसरा देती हैं। यह सिर्फ खामोशी नही जादुई खामोशी हैं– जो सर्द हैं रूखा सूखा हैं। सामने पड़ने वाले खुद ब खुद इसमें समा जाते हैं।
यह संक्रमण काल हैं, जिधर ठंडी गर्मी आमने –सामने, नजरे मिलाए एक दूसरे से विदा ले रहे हैं। और अंततः किसी एक को विदा हो जाना हैं। बेदिली से ही सही हर बार इस मौसम में सर्द हवा को ही विदा लेनी पड़ती है। कुछ वक्त गुजार चुकने के बाद भला कौन कही जाना चाहता हैं।
लेकिन कोई आगे बढ़ने के वावजूद भी एकाएक चला तो नही जाता?
ये सर्द हवा भी एकबारगी नही चला जाएगा। जाने कितने प्रेमी जोड़ों को एक दूसरे से वादा करते देख मुस्कुराएगा। ईश्वर से इनके लिए रहम की भीख मांगेगा। फरवरी को मार्च बनाएगा। सुर्ख रंगो में रंगते चला जाएगा। ऐसा जाएगा की पेड़ के सार�� पत्ते दूर तक उसका पीछा करेंगे।
सड़क छत खेत तालाब से गुजर कर यह उन गलियों से भी गुजरेगा जिन गलियों में शोर हुआ करता था। अब रात की वीरानगी है।
अतीत को ओढ़े उस जर्जर महल के सूखे रंगो को कुरेदता उसके सीलन को अपने साथ लेता जाएगा।
खंडहर हो चुके उस मकान के गलियारों से भी गुजरेगा और बंद किवाड़ वाली उस कमरे में सपनों को मुस्कुराता छोड़ आगे बढ़ जाएगा।
चलते चलते यह नदी बन जाएगा। समतल पे सरपट दौड़ेगा, खाइयों को भरते थमी थमी चलेगा। सामने पहाड़ आए, किनारे हो लेगा। जंगल को सींचते यात्रा चलता रहेगा।
क्या हैं यह जिंदगी? कभी सब दे देती हैं। कभी एक झटके में सब छीन लेती हैं! लेकिन इस लेन देन में जिंदा रहना जरूरी हैं। इस बात का हवा को पता हैं। रौशनी चौराहे मुहल्ले खेत खलिहान ओझल होने लगे हैं।
यहां से अकेलेपन की यात्रा हैं। वापसी की यात्रा की नियति हमेशा से अकेलेपन की रही हैं। अकेलापन अकेला ही रहता हैं। जिस पल किसी के साथ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, वह पल प्रायः अकेला गुजरता हैं। कुछ सच्चाईयां भयानक होती हैं। उनके नुकीले दांत होते हैं।
उस जगह से बेदखल हो जाते हैं जहां कुछ वक्त गुजार चुके होते हैं। मन रम जाता हैं। अहंकार अपना घर बना लेता हैं, एक सुंदर महल।
और जब यहां से रवानगी होती है तो सब कुछ बदल जाता हैं।
दिलकश अंदाज की जगह भावशून्यता दिखती हैं। स्वागत करती बांहे अब मजबूरियों में कांप रही होती हैं।
शब्दों में इतनी भी हिम्मत नही कि ढंग से विदा कर सके।
सामने कई रास्ते हैं। जो आगे चल कर एक हो जाते हैं।
वह रास्ता रेगिस्तान को जाता हैं। रेगिस्तान सुना ही था सुना ही रहा।
लोग रास्ते बनाते गए और आंधियां निशान मिटाते गई।
ऐसी पल भर में खो जानें वाली रास्तों में वह होकर भी नही था।
किनारे खड़ा वो पेड़ नजदीक आ रहा हैं।
उमंगों की यात्रा में इसी जगह कुछ वक्त के लिए ठहरा था।
पत्तियां नई–नई सी थी। चिड्डियो की आवाज़ें जैसे महबूब की पुकार हो चले थे।
ढोल बाजे दूर कही गांव में बज रहे थे। शायद कोई दुल्हन धड़कते दिल से अपनी बारात का इंतजार कर रही थी।
अब वो गांव दुल्हन को विदा कर अलसाया सा पड़ा था।
पेड़ भी मौन था।
मुझे पहचानता था मालूम नही। बिना पहचान के कौन कही रुकता हैं।
सामने सपाट आकाश दिख रहा है। मिलों फैली तन्हाईया बांहे फैलाए खड़ी हैं। स्वागत कोई भी ��रे अच्छा लगता हैं।
शून्य हो चला है समय। समय का शून्य हो जाना वक्त को थाम लेता हैं।
सुख चुकी हवा को लहरे भींगो देने खातिर पास बुला रही हैं।
कभी लहरों के ऊपर हवा तो कभी हवा के ऊपर लहरें। जैसे ईश्वर सबको अपने आगोश में ले लेते हैं वैसे सागर भी हवा को अपने आगोश में लेकर भिगो रही हैं।
हवा को नया बना रही हैं।
हवा का नया जन्म हो रहा हैं।
अबकी बार यह पूरब से चलेगा।
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मुझको भी पंख लगा दो माँ (mujhko bhi pankh lgado maa )
मैं उड़ना चाहती हूँ चिड़ियों की तरह, मुझको भी पंख लगा दो माँ (mujhko bhi pankh lgado maa ) , मुझे कहाँ तक पंख फैलाने हैं, मुझको मेरा दायरा समझादो माँ , * * * * ऊँचे-ऊँचे पेड़ मिलेंगे, हरियाली से सजे हैं खेत-खलिहान , चारों दिशाओं में घूमना -फिरना, उड़ने लिए है पूरा आसमान , माँ की नसीहत सूनकर जाना, मत होना मुझ से नाराज़, उड़ने से पहले नजर दौड़ाना, कहीं घात लगाकर ना…
#जीवन रक्षा पहली कक्षा#बेटी के पंख#माँ की नसीहत#मुझको भी पंख लगा दो माँ (mujhko bhi pankh lgado maa )
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दृष्टि पड़े सो फना है, धर अम्बर कैलाश। कृत्रिम बाजी झूठ है, सुरति समोवो श्वांस।।
भावार्थ है कि जो कुछ आप देख रहे हो यानि खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, पर्वत, झरने,
वन, दरिया, गाँव-शहर, जीव-जंतु, राजा, मानव तथा चाँद, सूर्य, तारे, नक्षत्र, ग्रह
आदि-आदि सब फना (नाशवान) है।#सत_भक्ति_सन्देश
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दृष्टि पड़े सो फना है, धर अम्बर कैलाश। कृत्रिम बाजी झूठ है, सुरति समोवो श्वांस।।
भावार्थ है कि जो कुछ आप देख रहे हो यानि खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, पर्वत, झरने,
वन, दरिया, गाँव-शहर, जीव-��ंतु, राजा, मानव तथा चाँद, सूर्य, तारे, नक्षत्र, ग्रह
आदि-आदि सब फना (नाशवान) है।#सत_भक्ति_सन्देश
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दृष्टि पड़े सो फना है, धर अम्बर कैलाश। कृत्रिम बाजी झूठ है, सुरति समोवो श्वांस।।
भावार्थ है कि जो कुछ आप देख रहे हो यानि खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, पर्वत, झरने,
वन, दरिया, गाँव-शहर, जीव-जंतु, राजा, मानव तथा चाँद, सूर्य, तारे, नक्षत्र, ग्रह
आदि-आदि सब फना (नाशवान) है।#सत_भक्ति_सन्देश
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दृष्टि पड़े सो फना है, धर अम्बर कैलाश। कृत्रिम बाजी झूठ है, सुरति समोवो श्वांस।।
भावार्थ है कि जो कुछ आप देख रहे हो यानि खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, पर्वत, झरने,
वन, दरिया, गाँव-शहर, जीव-जंतु, राजा, मानव तथा चाँद, सूर्य, तारे, नक्षत्र, ग्रह
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दृष्टि पड़े सो फना है, धर अम्बर कैलाश। कृत्रिम बाजी झूठ है, सुरति समोवो श्वांस।।
भावार्थ है कि जो कुछ आप देख रहे हो यानि खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, पर्वत, झरने,
वन, दरिया, गाँव-शहर, जीव-जंतु, राजा, मानव तथा चाँद, सूर्य, तारे, नक्षत्र, ग्रह
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दृष्टि पड़े सो फना है, धर अम्बर कैलाश। कृत्रिम बाजी झूठ है, सुरति समोवो श्वांस।।
भावार्थ है कि जो कुछ आप देख रहे हो यानि खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, पर्वत, झरने,
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