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हरिद्वार कुंभ मेला 2021: 850 साल पुराना है कुंभ मेले का इतिहास, समुद्र मंथन से जुड़ी है इसके पीछे की कहानी
चैतन्य भारत न्यूज 1 अप्रैल से हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन शुरू हो गया है। कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए इस बार कुंभ मेले की अवधि 28 दिनों तक सीमित रखने का निर्णय लिया गया है। महाशिवरात्रि पर हरिद्वार में लग रहे कुंभ का पहला स्नान होगा। इस दिन भारी संख्या में भक्त गंगामें डुबकी लगाएंगे। हालांकि कोरोना महामारी को देखते हुए बचाव की सभी गाइडलाइंस का पालन किया जाएगा। कुंभ मेले का इतिहास करीब 850 साल पुराना है। माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गई थी। शास्त्रों में बताया गया है कि पृथ्वी का एक वर्ष देवताओं का दिन होता है, इसलिए हर बारह वर्ष पर एक स्थान पर पुनः कुंभ का आयोजन होता है। देवताओं का बारह वर्ष पृथ्वी लोक के 144 वर्ष के बाद आता है। ऐसी मान्यता है कि 144 वर्ष के बाद स्वर्ग में भी कुंभ का आयोजन होता है इसलिए उस वर्ष पृथ्वी पर महाकुंभ का अयोजन होता है। महाकुंभ के लिए निर्धारित स्थान प्रयाग को माना गया है। कुंभ मेले का इतिहास कहते हैं कुंभ मेले का कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी है। कहते हैं कि एकबार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षस ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया था। सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें पूरी बात बताई थी। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता राक्षसों के साथ संधि करके अमृत निकालने के प्रयास में लग गए। समुद्र मंथन से अमृत निकलते ही देवताओं के इशारे पर इंद्र पुत्र 'जयंत' अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। राक्षसों ने अमृत लाने के लिए जयंत का पीछा किया और कठिन परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा और अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और दानव में 12 दिन तक भयंकर युद्ध होता रहा। मंथन में निकले अमृत का कलश हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक के स्थानों पर ही गिरा था, इसलिए इन चार स्थानों पर ही कुंभ मेला हर तीन बरस बाद लगता आया है। 12 साल बाद यह मेला अपने पहले स्थान पर वापस पहुंचता है। यही कारण है कि कुंभ के मेले को इन्हीं चार स्थानों पर मनाया जाता है। कुंभ को 4 हिस्सों में बांटा गया है। जैसे अगर पहला कुंभ हरिद्वार में होता है तो ठीक उसके 3 साल बाद दूसरा कुंभ प्रयागराज में और फिर तीसरा कुंभ 3 साल बाद उज्जैन में, और फिर 3 साल बाद चौथा कुंभ नासिक में होता है। Read the full article
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हरिद्वार कुंभ मेला 2021: 850 साल पुराना है कुंभ मेले का इतिहास, समुद्र मंथन से जुड़ी है इसके पीछे की कहानी
चैतन्य भारत न्यूज 1 अप्रैल से हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन शुरू हो गया है। कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए इस बार कुंभ मेले की अवधि 28 दिनों तक सीमित रखने का निर्णय लिया गया है। महाशिवरात्रि पर हरिद्वार में लग रहे कुंभ का पहला स्नान होगा। इस दिन भारी संख्या में भक्त गंगामें डुबकी लगाएंगे। हालांकि कोरोना महामारी को देखते हुए बचाव की सभी गाइडलाइंस का पालन किया जाएगा। कुंभ मेले का इतिहास करीब 850 साल पुराना है। माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गई थी। शास्त्रों में बताया गया है कि पृथ्वी का एक वर्ष देवताओं का दिन होता है, इसलिए हर बारह वर्ष पर एक स्थान पर पुनः कुंभ का आयोजन होता है। देवताओं का बारह वर्ष पृथ्वी लोक के 144 वर्ष के बाद आता है। ऐसी मान्यता है कि 144 वर्ष के बाद स्वर्ग में भी कुंभ का आयोजन होता है इसलिए उस वर्ष पृथ्वी पर महाकुंभ का अयोजन होता है। महाकुंभ के लिए निर्धारित स्थान प्रयाग को माना गया है। कुंभ मेले का इतिहास कहते हैं कुंभ मेले का कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी है। कहते हैं कि एकबार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षस ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया था। सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें पूरी बात बताई थी। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता राक्षसों के साथ संधि करके अमृत निकालने के प्रयास में लग गए। समुद्र मंथन से अमृत निकलते ही देवताओं के इशारे पर इंद्र पुत्र 'जयंत' अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। राक्षसों ने अमृत लाने के लिए जयंत का पीछा किया और कठिन परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा और अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और दानव में 12 दिन तक भयंकर युद्ध होता रहा। मंथन में निकले अमृत का कलश हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक के स्थानों पर ही गिरा था, इसलिए इन चार स्थानों पर ही कुंभ मेला हर तीन बरस बाद लगता आया है। 12 साल बाद यह मेला अपने पहले स्थान पर वापस पहुंचता है। यही कारण है कि कुंभ के मेले को इन्हीं चार स्थानों पर मनाया जाता है। कुंभ को 4 हिस्सों में बांटा गया है। जैसे अगर पहला कुंभ हरिद्वार में होता है तो ठीक उसके 3 साल बाद दूसरा कुंभ प्रयागराज में और फिर तीसरा कुंभ 3 साल बाद उज्जैन में, और फिर 3 साल बाद चौथा कुंभ नासिक में होता है। Read the full article
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