#किराडू मंदिर
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Dear sir..
Good morning
God is making us ,time is moving to our journey of life and space is design to our character according to condition.
So I can say everything this is fix in this universe ..we can't change that ..
Now my philosophy is close ..sorry ..
Here I lived busy in art work and after art work I joined a literature event ..
So that's short note at here ..
मित्रों फेसबुक के माध्यम से प्राप्त आमंत्रण जिसे प्रेषित किया बीकानेर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री मधु आचार्य आशावादी जी ने और कलाकार /साहित्यकार /कवि श्री नगेंद्र किराडू जी ने ! आप दोनों ही मेरे आदरणीय और गुरु तुल्य भी है ! सो उनके सार्वजानिक आग्रह फेसबूकिय आग्रह की रक्षा करते हुए उनके सम्मान में उपस्थित हुआ आज सुबह 11 बजे रमेश इंग्लिश स्कूल में !
जहां आयोजित हुआ पुस्तक लोकार्पण का आयोजन वो भी हिंदी और राजस्थानी दोनों भाषाओँ की तीन पुस्तकों का लोकार्पण ! तय प्रोग्राम के मध्य साहित्यकार श्री गिरिराज व्यास जी ने भी अपनी लिखी एक पुस्तक "अतीत एक स्मृति" हिंदी पुस्तक का, लोकार्पण भी जुड़वालिया ! डोरी सु कुँवें ने खींचर सहर माय ले आया व्यास जी महाराज , तामपत्र कूड़ो कोणी दियो हो गंगा सिंह जी महाराज इये बात ने पुख्ता पुख्त करदी आज फेरूं श्री गिरिराज जी व्यास आप री खेचळ सु ! क्योंकि डॉ. अर्जुन देव चारण जी ने साफ साफ़ स्पष्ट शब्दों में कहा की ये पुस्तक अतीत एक स्मृति पूर्ण संवाद मांग रही है जो इस कार्यक्रम में संभव नहीं हो सकता ! और कड़े शब्दों में कहूं तो खीर में मुसळ जेडी बात ! पर अतीत एक स्मृति का भी ��ोकार्पण मास्टर श्रीकांत व्यास की भूमिका के साथ संभव हो गया ! पर पुस्तक के साहित्य सृजन का सम्मान उस पर व्याख्यान शेष ही रह गया ! जिसकी कसर साहित्यकार श्री राजेंद्र जोशी जी के शब्दों में भी पूर्ण होना संभव नहीं हो सकता अब तो , वे कह् देते है किसी कमी के रहने पर की हमकले कसर कढ़ा देसों .. ?
मुख्य लोकार्पण समारोह आरम्भ हुआ डॉ. अर्जुनदेव चारण जी , साहित्यकार मधु आचार्य जी और डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित के साथ दोनों पुस्तक लेखक श्री नगेन्द्र किराडू जी और श्रीमती सीमा पारीक जी को मंच पर आमंत्रित करके ! जिन्हे मंच सञ्चालन करते हुए साहित्यकार श्री संजय पुरोहित जी ने आमंत्रित किया मंच पर !
फिर सम्मान किया गया डॉ. अर्जुन देव चारण जी के साथ साहित्यकार मधु आचार्य जी और डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित जी का आप को सोल साफा और प्रतिक चिन्ह भेंट करके आप का सम्मान किया गया !
स्वागत उद्बोधन दिया सूर्यप्रकाशन मंदिर के प्रकाशक डॉ. प्रशान्त बिस्सा जी ने आप ने दोनों लेखकों के साहित्य के विषय में जानकारी देते हुए प्रकाशन से पूर्व की महत्वपूर्ण बातों को सबके समक्ष रखा !
फिर दो चरणों में पुस्तकों का लोकार्पण हुआ पहले चरण में साहित्यकार श्री नगेंद्र किराड़ू जी की हिंदी में लिखी पुस्तक " मधु आचार्य आशावादी के सृजन का व्याकरणिक अनुशीलन " का और फिर साहित्यकार श्रीमती सीमा पारीक की दो पुस्तकें कविता संग्रै " साची कैऊ थाने " और बाल उपन्यास "काळजे री कोर " राजस्थानी बाल साहित्य का लोकार्पण हुआ !
साहित्यकार नगेन्द्र किराडू जी ने अपनी पुस्तक के विषय में कहा की मैंने जब मधु आचार्य जी के साहित्य को पढ़ा और पाया की आप के साहित्य में व्याकरण का समीक्षात्मक मूल्याङ्कन करूँ एक शोधार्थी की भांति और फिर मैंने उनके लेखन के व्याकरण पर केंद्रित होते हुए ये पुस्तक लिख दी ! जो अब आप के अनुशीलन के लिए उपलब्ध है !
साहित्यकार श्रीमती सीमा पारीक जी ने भी बताया की मेरा साहित्य सृजन कोरोना काल में आरम्भ हुआ और मैंने बच्चों से प्रभावित होकर बाल साहित्य वो भी राजस्थानी में लिखना आरम्भ किया और उसका प्रमाण मेरी ये दो कृतियां आप के समक्ष है !
मंच से दोनों लेखकों का भी सम्मान सोल साफा और प्रतिक चिन्ह भेंट करते हुए किया गया !
दोनों लेखकों की पुस्तकों पर दो पत्र वाचन भी हुए जिसमे श्री अशोक कुमार व्यास ने साहित्यकार नगेंद्र किराड़ू जी की पुस्तक पर अपना परचा पढ़ा आप ने मधुजी के सरल साहित्य के विषय पर किये गए साहित्यकार नगेंद्र किराडू जी के साहित्य शोध कार्य पर एक शानदार पर जटिल शब्दों की हिंदी से पत्र रचा और पढ़ा !
साहित्यकार श्रीमती सीमा पारीक जी की पुस्तकों पर पत्र वाचन किया श्रीमती सविता जोशी जी ने आप ने पुरे पत्रवाचन को मात्र 10 से 15 मिनिट में ही सार गर्भित विषय वस्तु जो की बाल साहित्य और राजस्थानी बाल साहित्य के लिए उपयोगी है और उसका समावेश साहित्यकार सीमा पारीक जी की पुस्तकों में उल्लेखित होने की बात को अपन�� पत्र से कही ! मंच से दोनों पत्रवाचकों का भी सम्मान किया गया सोल साफा प्रतीकचिन्ह भेंट करते हुए !
फिर मंच के विशिष्ठ अतिथि डॉ. गजेसिंह जी ने अपने उद्बोधन में साहित्यकार नगेंद्र किराडू जी की पुस्तक के विषय में अपनी बात आरम्भ करते हुए कहा की जब ये पाण्डुलिपि मेरे पास आयी तो मैंने सोचा किसी व्याकरण के विषय से सम्बंधित पुस्तक है ! पर जब गहन अध्ययन किया तो पाया की ये हिंदी व्याकरण की नहीं बल्कि साहित्य में व्याकरण के रचनात्मक प्रयोग पर शोध जैसा कोई लेखन कार्य है जिसे साहित्यकार नगेन्द्र किराडू जी ने साहित्यकार मधु आचार्य आशावादी जी के समग्र साहित्य सृजन को केंद्र में लेते हुए किया है ! उन्होंने इस पुस्तक और इसमें उल्लेखित शोध विषय को राजस्थान में पहला साहित्य शोध कहा है !
साहित्यकार मधुआचार्य आशावादी जी ने दोनों लेखकों को बधाई देते हुए उनकी प्रशंसा भी की ! मधु जी ने श्री नगेन्द्र किराडू जी के लिए कहा की मेरे साहित्य को कोई इस प्रकार से भी ले सकता है ये मेरे लिए आश्चर्य की बात है और शायद जो इस पुस्तक में उल्लेखित हुआ है या नगेन्द्र ने किया है वो सब मैंने ध्यान में लिया ही नहीं मेरा सृजन कर्म करते हुए !
साहित्यकार श्रीमती सीमा पारीक जी के साहित्य पर मधु आचार्य जी ने सुझाव दिया की कविता को अगर और गहराई से ठीक से समझना और सीखना है तो डॉ. अर्जुनदेव चारण जी की कविता पर लिखी पुस्तक का अध्ययन जरूर करो ! आपने सीमा जी के बाल उपन्यास की सरहाना करते हुए कहा की राजस्थानी में बाल साहित्य पर काम करने वाले बहुत काम लोग है और आप ने ये बेडा उठाया है इसके लिए आप को बधाई !
अध्यक्षीय उद्बोधन दिया डॉ. अर्जुनदेव चारण जी ने आप ने साहित्यकार नगेन्द्र किराडू जी के साहित्य चिंतन और समीक्षात्मक दृष्टि रखने की विशेषता की सराहना करते हुए कहा की साहित्य का अनुशीलन अति आवश्यक है और जब व्याकरण की दृष्टि से अनुशीलन किया जाए तो लेखक के कार्य के कई और पहलु भी समीक्षक पाठक के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है और इस कार्य में साहित्यकार नगेन्द्र किराडू सफल हुए है! सो उन्हें बधाई देते हुए अपनी बात कही ! आप ने श्रीमती सीमा पारीक जी के बाल साहित्य और राजस्थानी लेखन के विषय में कहा की कविता संवेदना का प्रतिबिम्ब होती है जिसे पाठक सम्प्रेषित कर पाए तो वो कविता अन्यथा वो सिर्फ कविता का भास या मात्र कविता का अभ्यास भर है ! आप ने साहित्यकार श्री गिरिराज व्यास जी को ���ी बधाई देते हुए कहा की आप की पुस्तक चर्चा की मांग रखती है और आप ने उस मांग को आरम्भ होने से पूर्व ही समाप्त कर दिया लोकार्पण में लोकार्पण कर के ! जिसे साहित्यकार श्री गिरिराज व्यास जी ने भी स्वीकारा सदन में !
आभार ज्ञापित किया रमेश इंग्लिश स्कूल के प्रबंधक डॉ. सेनुका हर्ष जी ने !
यहाँ उस लोकार्पण समारोह के छाया चित्र मेरे कैमरा की नजर से आप के अवलोकन हेतु !


Greeting

Today I am invited for one more literature event.writer cum press editor or publisher master Harish B Sharma is launching his edited book / granth Katharang or in this book he published a samiksha / critical note ,I wrote that on his novel shruti shah calling ..

You have a great day sir
Warm regards
Yogendra Kumar Purohit
Master of fine arts
Bikaner, India
DAY 6273
Jalsa, Mumbai Apr 19, 2025/Apr 20 Sat/Sun 1:12 am

words of wisdom from Shweta , sent to me 👆🏼 .. her repertoire of books and reading is immense .. as is of Navya .. it is such a delight to sit in their presence and company and be educated about aspects of life and the world .. it is astonishing ..
And that is what eats us elders up .. there is the desire to do and be a part of what this GEn thinks and does .. but the limitations of time barricade the impulse and the intent ..
Life did not move so rapidly in our time or in the time of our elders .. now the rapidity is so volatile that the wishes to accomplish all is overwhelming .. you do not want to miss out a single day, in case you miss something that you had wished you would want to do, or be a part of ..
The excitement of what the World does to day and the speed with which it does it is unbelievably attractive .. and one wants so desperately to be a art of it .. or many parts of it .. but time is not with us .. at our age we lament the time .. and we feel let down .. for the wish to be having the time to be involved , to test, to apply, to discover, to invent, to admire and enjoy that spectacle .. is huge ..
But the hugeness hits a wall .. the timeless wall of limitations ..
"एक ���ड़ी ख़रीद कर, हाथ में क्या बांध ली;
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे ~ "
पूज्य बाबूजी के शब्द
My wishes as ever .. and the great battle of invention that percolates our lives persists to be in its excel ..
The excel of AI ..
So, I asked and it replied :
"Artificial Intelligence (AI) is the simulation of human intelligence in machines designed to think, learn, and make decisions. It powers technologies like voice assistants, recommendation systems, and autonomous vehicles. AI works through algorithms that process data, recognize patterns, and improve over time through machine learning. It is transforming industries by automating tasks, enhancing productivity, and enabling innovative solutions. From healthcare diagnostics to personalized education, AI’s potential is vast. However, it also raises ethical concerns about bias, privacy, and job displacement. As AI continues to evolve, balancing innovation with responsibility will be key to ensuring it benefits society as a whole."
The clarity of social implications is a massive debate , engaging thinkers and artists and writers and indeed all creative talent ..
For the creative content of a writer are his words .. and if the AI data bank consumes that , as a part of a legacy to be maintained over time infinity, it can be used by ChatGPT to refer or use that extract for its personalised usage .. making it the property of ChatGPT ... NOT the property of the writers or the artists, from where it originally came ..
So the copyright of the artist has been technically 'stolen' , and he or she never gets the benefit of ts copyright, when GPT uses it for its presence .. !!!!
The true value of an artists creation will never be restored to his credit, because technology usurps it .. gulps it down deliciously , with an aerated drink and finalising its consumption with a belch 😜🤭 ... END OF CHAPTER !!!
End of discussion .. !!!
In time there shall be much to be heard and written on the subject ..
Each invention provides benefits .. but also victims ..
बनाये कोई - लाभ उठाए कोई और, जिसने उसे बनाया ही न हो
Love

Amitabh Bachchan
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किराडू मंदिर: रात में यदि कोई रुका तो बन जाएगा पत्थर
किराडू मंदिर: रात में यदि कोई रुका तो बन जाएगा पत्थर
बाड़मेर जिले में स्थित किराडू मंदिर में जब रात को कोई ठहरता है तो वह पत्थर बन जाता है, पत्थर बनी एक महिला की मूर्ति आज भी वहां स्थापित है. राजस्थान के बाड़मेर जिले के हात्मा गांव में स्थित किराडू मंदिर एक ऐसा रहस्यमय मंदिर है, जिसका रहस्य अत्यंत ही आश्चर्यजनक हैं. यह भारत देश का ऐसा मंदिर है, जिसमें रात होते ही कोई नहीं रुकता सभी इससे दूर भागते हैं. बताया जाता है की यदि रात के समय में कोई यहां…

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��िराडू मंदिर जहां सूरज डूबने के बाद कोई भी इस मंदिर के आसपास नहीं भटकता है। और जो भी इस मंदिर में रातभर रुकने की कोशिश करता है वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है। यह मंदिर राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित है।
#kiradutemple #kiradutemplebarmer #hindutemple #rajasthan #losttemple #barmer
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🙏 क्या कोई बता सकता है इसे बनाने में किस तरह की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हुआ है ?
यह किसी धातु के स्तम्भ नहीं हैं जिनके पार्ट्स को अलग-अलग आकार देकर वेल्डिंग या अन्य तकनीक से आपस में जोड़ा गया है, बल्कि यह पत्थर के स्तम्भ हैं, और सबसे ज्यादा रोचक बात यह है की प्रत्येक स्तम्भ केवल एक पत्थर से बना है । यह मंदिर इतना प्राचीन है कि इसके निर्माण का निश्चित समय काल ज्ञात नहीं है ।
क्या हमारे पूर्वजों के द्वारा निर्मित ऐसी विरासतें आपको सनातनी होने पर गर्व करने के लिए मजबूर नहीं करती ?
(किराडू मंदिर, राजस्थान, अनुमानतः 11वीं शताब्दी )
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जानें भारत के कुछ रहस्मय मंदिरों के बारे में .....

भारत में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जिनकी महत्ता के साथ ही उनके साथ जुड़ी हैं तमाम रहस्यमयी कड़ियां है इन्हें सुलझाने के लिए कई बार प्रयास किए गये लेकिन जब शोधकर्ताओं को कुछ हाथ नहीं लगा तो सभी ने हाथ खींच लिए। इसके बाद बाकी बची तो मंदिर के रहस्य की उलझी हुई कहानियां… अगर आप भी ऐसे ही किसी धार्मिक स्थल की यात्रा करना चाहते हैं तो इन मंदिरों को अपनी ‘प्लेस टू विजिट’ लिस्ट में डाल सकते हैं। हां ख्याल इस बात का रखना है कि इन मंदिरों में रात में रुकने की मनाही है।
पाषाण बनने के डर से नहीं रुकते शाम यहां
पांच मंदिरों की एक निहायत ही खूबसूरत श्रृंखला है बाड़मेर में। इसे किराडू मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के रहस्यमयी होने के साथ ही एक और बात काफी प्रसद्धि है और वह है इस मंदिर की खूबसूरत नक्काशी। यह इतनी शानदार है कि इसे ‘राजस्थान का खजुराहो’ भी कहा जाता है। लेकिन इस मंदिर में अगर कोई भी शाम के बाद रुका तो कभी लौटकर नहीं आया। कहा जाता है कि किराडू पर एक साधू का श्राप है। स्थानीय लोगों के अनुसार एक बार एक साधु अपने शिष्यों के साथ इस शहर में आए। कुछ दिन रहने के बाद साधु देश भ्रमण पर निकले।

इसी दौरान अचानक ही उनके शिष्य बीमार पड़ गए, लेकिन गांव के लोगों ने उनकी देखभाल नहीं की। लेकिन उसी गांव में एक कुम्हारिन थी। जिसने उन शिष्यों की देखभाल की थी। ऐसे में जब साधु वापस पहुंचे और अपने शिष्यों को इस हालत में देखा तो उन्हें काफी दु:ख हुआ और उन्होंने वहां के लोगों को श्राप दिया कि जहां मानवता नहीं है वहां लोगों को भी नहीं रहना चाहिए। उनके श्राप देते ही सभी पाषाण के हो गए। लेकिन साधु ने उस कुम्हारिन को कहा कि वह शाम ढलने से पहले ही वहां से चली जाए। साथ ही जब जाए तो कुछ भी हो जाए पीछे मुड़कर न देख�� अन्यथा वह भी पाषाण की बन जाएगी। लेकिन कुम्हारिन जब जाने लगी तो उसने साधु को परखने के लिए पीछे मुड़ कर देखा तो उसी समय वह भी पाषाण की बन गई। कहा जाता है कि जो भी वहां शाम में रुकता है, वह पाषाण बन जाता है। यही कारण है कि वहां जाने वाला हर व्यक्ति शाम ढलने से पहले ही वहां से बाहर निकल जाता है।
अद्भुत है मां शारदा देवी मंदिर
भक्तों को मन मांगी मुराद देने वाली मां शारदा का यह मंदिर विंध्याचल पर्वत की चोटी पर बसा है। स्थानीय कथानकों के अनुसार इस मंदिर के निर्माण से लेकर आज तक मां की पूजा- अर्चना सबसे पहले आल्हा ही करते आए हैं। कहते हैं कि जब प्रात:काल में मां के मंदिर के पट खोले जाते हैं, तो वहां मां के चरणों में जल के साथ ही एक फूल चढ़ा हुआ मिलता है। हालांकि आज तक कोई भी आल्हा को देख नहीं सका है। चूंकि मंदिर विंध्याचल पर्वत की चोटी पर है तो रात्रि में पंडित भी वहां नहीं रुकते।

इसके अलावा जब भी किसी ने वहां रात में रुककर आल्हा को देखने का प्रयास किया, उसकी मृत्यु हो गई। यही वजह है कि मंदिर परिसर में कोई भी रात्रि विश्राम नहीं करता। पुजारी बताते हैं मंदिर को खोलने का समय सुबह चार बजे का है। तभी मंदिर में प्रवेश किया जाता है। वह बताते हैं कि अक्सर ही मंदिर के दृश्य को देखकर लगता है जैसे कोई वहां कपाट खुलने से पहले ही वहां से चला गया हो।
कानपुर में भी है भूतों वाला मंदिर
कानपुर से तकरीबन 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह एक गुप्तकालीन मंदिर है। कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण अमावस की रात को किया गया था। इसे भूतों वाला मंदिर इसलिए भी कहते हैं क्योंकि इस मंदिर के अंदर किसी भी भगवान की कोई भी मूर्ति नहीं है। कहा जाता है कि पहले कभी इस मंदिर में मूर्तियां थीं और उनकी विधि-विधान से पूजा भी की जाती थी। लेकिन मुगलों क�� शासन में यहां स्थापित अष्टधातुओं की मूर्तियां चोरी हो गईं। कहा जाता है कि तब से यह मंदिर खाली है और यहां से आने-जाने वाले हर व्यक्ति को अजीब सी आवाजें सुनाई देती हैं।
आसपास के लोग कहते हैं कि रात में भूतों की पूजा करने की आवाजें साफ सुनाई देती हैं। यहां पर भूत बड़ी ही धूमधाम से पूजा करते हैं। यह भी कहा जाता है कि यदि शाम के बाद कोई भी इस मंदिर में गया तो उसे अज्ञात बीमारी हो जाती है और वह कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं होता। बता दें कि मंदिर में शाम 7 बजे के बाद जाने की सख्त मनाही है।
अलवर के इस किले में आज भी भटकती है आत्माएं
राजस्थान के अलवर जिले में स्थित भानगढ़ का किला एशिया की सबसे डरावनी जगहों में से एक है। कहते हैं कि यह किला शापित है। किले को लेकर स्थानीय लोग बताते हैं कि भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती अत्यंत सुंदर थी। उनके इस रूप पर भानगढ़ का एक तांत्रिक मोहित हो गया। वह उनसे विवाह करना चाहता था, जो कि संभव नहीं था। ऐसे में राजकुमारी को पाने के लिए तांत्रिक ने तेल खरीदने आई उनकी दासी को अभिमंत्रित तेल दे दिया। ताकि रत्नावती उसके सम्मोहन से तांत्रिक के पास खिंची चली आएं। लेकिन दासी के हाथ से वह शीश छूटकर गिर गई और तेल पास की ही शिला पर जा गिरा। इसके बाद वह शिला तांत्रिक की ओर खिंचने लगी, इससे उस शिला के नीचे दबने से उस तांत्रिक की मौत हो गई।

इसके बाद तांत्रिक ने अपनी मौत से पहले समस्त नगरवासियों के विनाश का शाप दिया। कहा जाता है कि जैसे ही तांत्रिक की मौत हुई राजकुमारी के साथ ही सभी नगरवासियों की भी मौत हो गई। एक ही रात में सबकुछ तबाह हो गया। माना जाता है कि उन्हीं लोगों की आत्माएं यहां भटकती हैं। कहते हैं नगर में बने नर्तकी महल से रात को घुंघुरुओं की आवाजें आती हैं। बता दें कि यहां सरकार की ओर से सख्त आदे�� जारी किए गए हैं कि कोई भी व्यक्ति शाम 6 बजे के बाद किले में या फिर आसपास नहीं जाएगा। यही वजह है कि शाम के साढे 5 बजते ही सैलानियों को किले से बाहर निकालने का काम शुरू कर दिया जाता है।
https://kisansatta.com/know-about-some-mysterious-temples-of-india/ #KnowAboutSomeMysteriousTemplesOfIndia Know about some mysterious temples of India ..... Top, Trending #Top, #Trending KISAN SATTA - सच का संकल्प
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बहुत ही रहस्यमयी है बाड़मेर का किराडू मंदिर
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रहस्यमय मंदिर - शाम के बाद यहां आने पर लोग बन जाते हैं पत्थर की मूर्तियां ...
रहस्यमय मंदिर – शाम के बाद यहां आने पर लोग बन जाते हैं पत्थर की मूर्तियां …
यह स्थान है किराडू का मंदिर। पूरे राजस्थान में खजुराहो मंदिर के नाम से प्रसिद्घ यह मंदिर प्रेमियों को विशेष आकर्षित करता हैं। लेकिन यहां की ऐसी खौफनाक सच्चाई है जिसे जानने के बाद कोई भी यहां शाम के बाद ठहरने की हिम्मत नहीं कर सकता।किराडू के मंदिर विषय में ऐसी मान्यता है कि यहां शाम ढ़लने के बाद जो भी रह जाता है वह या तो पत्थर का बन जाता है या मौत की नींद सो जाता है। किराडू के विषय में यह मान्यता…
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#किराडू का मंदिर#रहस्यमय मंदिर#hindu religion#hindu temple#kiradu#Kiradu temple#Mysterious Temple#odd news#odd temple#People come here to become the evening stone sculptures#temple of kiradu#viral news
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सरकारी स्तर पर अनदेखी से गोचर से मिलने वाले फायदों से समाज वंचित : देवीसिंह भाटी Divya Sandesh
#Divyasandesh
सरकारी स्तर पर अनदेखी से गोचर से मिलने वाले फायदों से समाज वंचित : देवीसिंह भाटी
बीकानेर। राजस्थान के पूर्व मंत्री देवीसिंह भाटी ने शनिवार को कहा कि गोचर की सरकारी स्तर पर अनदेखी होने से गोचर से मिलने वाले फायदों से समाज वंचित रह रहा है। सरेह नथानिया स्थित हनुमानजी मंदिर सभागार में गोचर विकास से जुड़ी संस्थाओं और इस क्षेत्र में कार्यरत प्रमुख लोगों की बैठक में भाटी ने यह बात कही।
यह खबर भी पढ़ें: राज्य मानने लगे वैक्सीनेशन को आरटीपीआर का विकल्प, केन्द्र भी कर रहा विचार
बैठक में भाटी ने यह भी कहा कि अब समाज ही आगे आकर सर्वजन हिताय गोचर का विकास का जिम्मा ले रहा है। दो घण्टे चली बैठक में गोचर के समग्र विकास के अलावा संरक्षण और सुरक्षा के मुद्दे भी उठे। सभी ने यह संकल्प लिया कि मिलजुल कर गोचर का विकास करेंगे। भाटी हर वर्ष अपनी माँ की स्मृति में आर्थिक सहयोग देंगे। पहले चरण में भाटी ने ढाई लाख रुपये सरेह नथानिया गोचर विकास समिति अध्यक्ष ब्रज रतन किराडू को देने की घोषणा की। शहर से सटी गोचर पर पिल्लर लगाकर दीवार बनाने का काम 17 जून से शुरू किया जाएगा। पहले चरण में करीब 3 किलोमीटर दीवार बनेगी। साथ ही गोचर में खेजड़ी, पीपल, बड़ के पेड़ लगाने और सेवण घास का चारागाह विकसित किया जाएगा।
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राजस्थानी कला
राजस्थानी कला राजस्थानी स्थापत्य कला 1.मुद्रा कला 2.मूर्ति कला 3.धातु मूर्ति कला 4.चित्रकला 5.धातु एवं काष्ठ कला 6.लोककला इतिहास के साधनों में शिलालेख, पुरालेख और साहित्य के समानान्तर कला भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसके द्वारा हमें मानव की मानसिक प्रवृतियों का ज्ञान ही प्राप्त नहीं होता वरन् निर्मितियों में उनका कौशल भी दिखलाई देता है। यह कौशल तत्कालीन मानव के विज्ञान तथा तकनीक के साथ-साथ समाज, धर्म, आर्थिक और राजनीतिक विषयों का तथ्यात्मक विवरण प्रदान करने में इतिहास का स्रोत बन जाता है। इसमें स्थापत्या, मूर्ति, चित्र, मुद्रा, वस्राभूषण, श्रृंगार-प्रसाधन, घरेलु उपकरण इत्यादि जैसे कई विषय समाहित है जो पुन: विभिन्न भागों में विभक्त किए जा सकते हैं।
Rajasthani Kala Sthapatya Mudra Murti Dhatu ChitraKala Aivam Kashth LokKala Itihas Ke Sadhno Me Shilalekh पुरालेख Aur Sahitya Samanantar Bhi Ek Mahatvapurnn Sthan Rakhti Hai Iske Dwara Hamein Manav Ki Mansik Pravritiyon Ka Gyan Hee Prapt Nahi Hota Varan निर्मितियों Unka Kaushal DikhLayi Deta Yah Tatkaleen Vigyaan Tatha Taknik Sath - Samaj Dharm Aarthik RajNeetik Vishayon Tathyatmak Vivarann Pradan Karne Strot Ban Jata Isme स्थापत्य.
राजस्थानी स्थापत्य कला: राजस्थान में प्राचीन काल से ही हिन्दु, बौद्ध, जैन तथा मध्यकाल से मुस्लिम धर्म के अनुयायियों द्वारा मंदिर, स्तम्भ, मठ, मस्जिद, मकबरे, समाधियों और छतरियों का निर्माण किया जाता रहा है। इनमें कई भग्नावेष के रुप में तथा कुछ सही हालत में अभी भी विद्यमान है। इनमें कला की दृष्टि से सर्वाधिक प्राचीन देवालयों के भग्नावशेष हमें चित्तौड़ के उत्तर में नगरी नामक स्थान पर मिलते हैं। प्राप्त अवशेषों में वैष्णव, बौद्ध तथा जैन धर्म की तक्षण कला झलकती है। तीसरी सदी ईसा पूर्व से पांचवी शताब्दी तक स्थापत्य की विशेषताओं को बतलाने वाले उपकरणों में देवी-देवताओं, यक्ष-यक्षिणियों की कई मूर्तियां, बौद्ध, स्तूप, विशाल प्रस्तर खण्डों की चाहर दीवारी का एक बाड़ा, 36 फुट और नीचे से 14 फुल चौड़ दीवर कहा जाने वाला "गरुड़ स्तम्भ’ यहां भी देखा जा सकता है। 1567 ई. में अकबर द्वारा चित्तौड़ आक्रमण के समय इस स्तम्भ का उपयोग सैनिक शिविर में प्रकाश करने के लिए किया गया था। गुप्तकाल के पश्चात कालिका मन्दिर के रुप में विद्यमान चित्तौड़ का प्राचीन "सूर्य मन्दिर’ इसी जिले में छोटी सादड़ी का भ्रमरमाता का मन्दिर कोटा में, बाड़ौली का शिव मन्दिर तथा इनमें लगी मूर्तियां तत्कालीन कलाकारों की तक्षण कला के बोध के साथ जन-जीवन की अभिक्रियाओं का संकेत भी प्रदान करती हैं। चित्तौड़ जिले में स्थित मेनाल, डूंगरपुर जिले में अमझेरा, उदयपुर में डबोक के देवालय अवशेषों की शिव, पार्वती, विष्णु, महावीर, भैरव तथा ��र्तकियों का शिल्प इनके निर्माण काल के सामाजिक-सांस्कृतिक विकास का क्रमिक इतिहास बतलाता है। सातवीं शताब्दी से राजस्थान की शिल्पकला में राजपूत प्रशासन का प्रभाव हमें शक्ति और भक्ति के विविध पक्षों द्वारा प्राप्त होता है। जयपुर जिले में स्थित आमानेरी का मन्दिर (हर्षमाता का मंदिर), जोधपुर में ओसिया का सच्चियां माता का मन्दिर, जोधपुर संभाग में किराडू का मंदिर, इत्यादि और भिन्न प्रांतों के प्राचीन मंदिर कला के विविध स्वरों की अभिव्यक्ति संलग्न राजस्थान के सांस्कृतिक इतिहास पर विस्तृत प्रकाश डालने वाले स्थापत्य के नमूने हैं। उल्लेखित युग में निर्मित चित्तौड़, कुम्भलगढ़, रणथंभोर, गागरोन, अचलगढ़, गढ़ बिरली (अजमेर का तारागढ़) जालोर, जोधपुर आदि के दुर्ग-स्थापत्य कला में राजपूत स्थापत्य शैली के दर्शन होते हैं। सरक्षा प्रेरित शिल्पकला इन दुर्गों की विशेषता कही जा सकती है जिसका प्रभाव इनमें स्थित मन्दिर शिल्प-मूर्ति लक्षण एवं भवन निर्माण में आसानी से परिलक्षित है। तेरहवीं शताब्दी के पश्चात स्थापत्य प्रतीक का अद्वितीय उदाहरण चित्तौड़ का "कीर्ति स्तम्भ’ है, जिसमें उत्कीर्म मूर्तियां जहां हिन्दू धर्म का वृहत संग्रहालय कहा जा सकता है। वहां इसकी एक मंजिल पर खुदे फारसी-लेख से स्पष्ट होता है कि स्थापत्य में मुस्लिम लक्ष्ण का प्रभाव पड़ना शुरु होने लगा था। सत्रहवीं शताब्दी के पश्चात भी परम्परागत आधारों पर मन्दिर बनते रहे जिनमें मूर्ति शिल्प के अतिरिक्त भित्ति चित्रों की नई परम्परा ने प्रवेश किया जिसका अध्ययन राजस्थानी इतिहास के लिए सहयोगकर है।
किला/दुर्ग स्थापत्य
कौटिल्य का कहना है कि राजा को अपने शत्राुओं से सुरक्षा के लिए राज्य की सीमाओं पर दुर्गो का निर्माण करवाना चाहिये । राजस्थान में प्राचीनकाल सेही राजा महाराजा अपने निवास की सुरक्षा के लिए, सामग्री संग्रह के लिए, आक्रमण के समय अपनी प्रजा को सुरक्षित रखने के लिए तथा पशुध्न को बचाने के लिए विभिन्न आकार-प्रकार के दुर्गो का निर्माण करते रहे है। प्राचीन लेखकों, ने दुर्ग को राज्य का अनिवार्य अंग बताया है। शुक्रनीतिसार के अनुसार राज्य के सात अंग माने गए है जिनमें से एक दुर्ग है। इसीलिए किलों की अध्कि संख्या अपने अध्किार में रखना एक गौरव की बात मानी जाती थी । अतःकिलों की स्थापत्य कला राजस्थान में बहुत अध्कि विकसित हुई । शुक्रनीतिसार के अनुसार दुर्ग के नौ भेद बताए गये है- एरण दुर्ग -खाई, तथा पत्थरों से जिनके मार्ग दुर्गम बने हो । पारिख दुर्ग -जो चारों तरपफ बहुत बड़ी खाई से घिरा हो । परिध दुर्ग -जो चारों तरपफ ईट, पत्थर तथा मिट्टी से बने परकोटों से घिरा हो । वन दुर्ग -जो बहुत बड़े-बड़े कांटेदार वृक्षों के समूह द्वारा चारों तरपफ से घिरा हो । धन्व दुर्ग -जो चारों तरपफ बहुत दूर तक मरूभूमि से घिरा हो । जलदुर्ग -जो चारों तरपफ विस्तृत जलराशि से घिरा हो । गिरी दुर्ग -जो किसी एकान्त पहाड़ी पर जल प्रबंध् के साथ हो । सैन्य दुर्ग -व्यूह रचना में चतुर वीरों से व्याप्त होने सेजो अभेध् (आक्रमण द्वारा अजेय) हो । सहाय दुर्ग -जिससें सूर तथा सदा अनुकूल रहने वाले वान्ध्व रहते हो । उपरोक्त सभी दुर्गो में सैन्य दुर्ग सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। राजस्थान के शासकों ने इसी दुर्ग निर्माण परम्परा का पालन किया । लेकिन मध्यकाल में मुस्लिम प्रभाव से दुर्ग स्थापत्य कला में एक नया मोड़ आया । जब ऊँँची-ऊँँची पहाड़ियों के जो ऊपर चौड़ी होती थी और जहाँ खेती और सिंचाई के साध्न हो दुर्ग बनाने के काम मेली जाने लगी और ऐसी पहाड़ियों पर प्राचीन दुर्ग बने हुए थे तो उन्हें पिफर से नया रूप दिया गया। गिरी दुर्गो में चित्तौड़ का किला सबसे प्राचीन तथा सब किलों का सिरमौर है। इसके लिए उक्ति प्रचलित है- गढ़ तो चित्तौड़ गढ़, बाकी बस गढ़ैया, जो इसकी देशव्यापी ख्याति का प्रमाण है। गिरि दुर्गो में कुंभलगढ, रणथम्भौर, सिवाणा, जालौर, अजमेर का तारागढ़ (गढवीटली), जोध्पुर का मेहरानगढ आमेर का जयगढ़ स्थापत्य की दृष्टि से उत्कृष्ट गिरी दुर्ग है। जलदुर्ग की कोटि में गागरोण दुर्ग (झालावाड़) आता है। स्थल (धन्वय) दुर्गो में जैसलमेर का किला प्रमुख है, जिसे सिपर्फ ���्रस्तर खण्डों को जोड़कर बनाया गया है। इसमें कहीं भी चूने का प्रयोग नहीं है। जूनागढ़ (बीकानेर) तथा नागौर का किला भी स्थल दुर्गो की कोटि में आते है। जूनागढ़ का किला रेगिस्तान के किलों में श्रेष्ठ है। राजस्थान के समस्त किले बड़े ही सुदृढ़ तथा सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत है और साथ ही स्थापत्य कला की उत्कृष्टता संजोये हुये है।
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किला/दुर्ग स्थापत्य
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राजस्थानी स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषता
Kila Durg Sthapatya Kautilya Ka Kahna Hai Ki Raja Ko Apne शत्राुओं Se Surakshaa Ke Liye Rajya Borders Par Durgon Nirmann Karwana Chahiye Rajasthan Me Pracheenkal Sehi Maharaja Niwas Samagri Sangrah Aakramann Samay Apni Praja Surakshit Rakhne Tatha पशुध्न Bachane विभिÂ Akaar Prakar Karte Rahe Pracheen Lekhakon ne Anivarya Ang Bataya शुक्रनीतिसार Anusaar Saat Maane Gaye Jinme Ek IsiLiye Kilon अध्कि Sankhya अध्किार Rakhna Gauarav Baa
राजस्थानी स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषता:शिल्प- सौष्ठव, अलंकृत पद्धति एवं विषयों की विविधता है ।
यह हिन्दू स्थापत्य कला के रूप में जानी जाती है ।
राजपूतों की वीरता के कारण राजस्थान के स्थापत्य में शौर्य की भावना स्पष्टत: दिखाई देती है ।
मधय काल में जब तुर्की के निरंतर आक्रमण होने लगे तो राजस्थानी स्थापत्य में शौर्य के साथ-साथ सुरक्षा की भावना का भी समावेश किया गया और विशाल एवं सुदृढ़ दुर्ग बनवाने आरम्भ कर दिये गए ।
सुरक्षा की दृष्टि से राजपूत शासकों ने अपने निवास भी दुर्ग के भीतर बनवाये तथा पानी का व्यवस्था के लिये जलाशय खुदवाये ।
राजपूत शासकों की र्धम के प्रति अगाध श्रद्धा ने दुर्ग के भीतर मंदिरों का निर्माण भी करवाया । -
17वीं सदी में मुगलों के सम्पर्क से राजपूत एवं मुस्लिम कला का पारस्परिक मिलन हुआ, जिससे हिन्दू एवं मुस्लिम स्थापत्य शैलियों में समन्वय हुआ ।
दोनों शैलियों के समन्वय से राजस्थानी स्थापत्य का रूप निखर आया ।
प्रमुख विशेषाएँ- 1. प्राचीन स्थापत्य- राजस्थान की स्थापत्य कला बहुत प्राचीन है ।
यहाँ पर काली बंगा में सिन्धु घाटी सभ्यता की स्थापत्य कला के प्रमाण उपलब्ध है ।
इसी प्रकार आहड़ सभ्यता की स्थापत्य कला उदयपुर के पास तथा मौर्यकाल में प्रस्पफुटितसभ्यता के चिन्ह बैराठ में मिले है । -
2. सौष्ठव ।
3. अलंकृत पद्धति ।
4. विषयों की विविधता- इससे यहां के शासकों तथा निवासियों की विचारधारओं, अनुभूतियों और उद्देश्यों की जानकारी प्राप्त होती है ।5. हिन्दु स्थापत्य कला के रूप में- राजस्थान में सबसे प्रमुख स्थापत्य कला राजपूतों की रही है, जिसके कारण सम्पूर्ण राजस्थान किलों मन्दिरों, परकोटों, राजाप्रासादों, जलाशयों उद्योगों, स्तम्भों तथा समाधयिों एवं छतरियों से भर गया है ।
6. शोर्य व सुरक्षाभाव से परिपूर्ण । -
7. हिन्दु व मुस्लिम स्थापत्य का समन्वय- मुगलों के सम्पर्क के पूर्व यहाँ हिन्दू स्थापत्य शैली की प्रधानता रही जिसमें स्तम्भों, सीधे पाटों, ऊंचे शिखरों, अलंकृत आकृतियों, कमल और कलश का महत्व था ।
मुगल काल में राजस्थान की स्थापत्य कला पर मुगलशैली का प्रभाव पड़ा ।
इस शैली कीविशेषताएें थी- नोकदार तिपतिया, मेहराव, मेहरावी डाटदार छतें, इमारतों का इठपहला रूप, गुम्बज, मीनारे आदि ।
दोनों शैलियों के समन्वय से राजस्थानी स्थापत्य का रूप निखरआया ।
हिन्दू कारीगरों ने मुस्लिम आदेशों के अनुरूप जिन भवनों का निर्माण किया हैं उन्हें सुप्रसिद्ध कला विशेषज्ञ पफर्गुसन ने इण्डों-सारसेनिक शैली की संज्ञा दी है । -
Rajasthani Sthapatya Kala Ki Pramukh Visheshta Shilp Saushthav Alankrit Paddhati Aivam Vishayon Vividhata Hai Yah Hindu Ke Roop Me Jani Jati Rajputon Veerta Karan Rajasthan Shaurya Bhawna स्पष्टत Dikhayi Deti मधय Kaal Jab Turkey Nirantar Aakramann Hone Lage To Sath Surakshaa Ka Bhi Samavesh Kiya Gaya Aur Vishal Sudridh Durg Banawane Aarambh Kar Diye Gaye Drishti Se Rajput Shasako ne Apne Niwas Bheetar Banwaye Tatha Pani Vyavastha.
1.मुद्रा कला :राजस्थान के प्राचीन प्रदेश मेवाड़ में मज्झमिका (मध्यमिका) नामधारी चित्तौड़ के पास स्थित नगरी से प्राप्त ताम्रमुद्रा इस क्षेत्र को शिविजनपद घोषित करती है। तत्पश्चात् छठी-सातवीं शताब्दी की स्वर्ण मुद्रा प्राप्त हुई। जनरल कनिंघम को आगरा में मेवाड़ के संस्थापक शासक गुहिल के सिक्के प्राप्त हुए तत्पश्चात ऐसे ही सिक्के औझाजी को भी मिले। इसके उर्ध्वपटल तथा अधोवट के चित्रण से मेवाड़ राजवंश के शैवधर्म के प्रति आस्था का पता चलता है। राणा कुम्भाकालीन (1433-1468 ई.) सिक्कों में ताम्र मुद्राएं तथा रजत मुद्रा का उल्लेख जनरल कनिंघम ने किया है। इन पर उत्कीर्ण वि.सं. 1510, 1512, 1523 आदि तिथियों ""श्री कुभंलमेरु महाराणा श्री कुभंकर्णस्य ’ ’ , ""श्री एकलिंगस्य प्रसादात ’ ’ और ""श्री ’ ’ के वाक्यों सहित भाले और डमरु का बिन्दु चिन्ह बना हुआ है। यह सिक्के वर्गाकृति के जिन्हें "टका’ पुकारा जाता था। यह प्रबाव सल्तनत कालीन मुद्रा व्यवस्था को प्रकट करता है जो कि मेवाड़ में राणा सांगा तक प्रचलित रही थी। सांगा के पश्चात शनै: शनै: मुगलकालीन मुद्रा की छाया हमें मेवाड़ और राजस्थान के तत्कालीन अन्यत्र राज्यों में दिखलाई देती है। सांगा कालीन (1509-1528 ई.) प्राप्त तीन मुद्राएं ताम्र तथा तीन पीतल की है। इनके उर्ध्वपटल पर नागरी अभिलेख तथा नागरी अंकों में तिथि तथा अधोपटल पर ""सुल्तान विन सुल्तान ’ ’ का अभिलेख उत्कीर्ण किया हुआ मिलता है। प्रतीक चिन्हों में स्वास्तिक, सूर्य और चन्द्र प्रदर्शित किये गए हैं। इस प्रकार सांगा के उत्तराधिकारियों राणा रत्नसिंह द्वितीय, राणा विक्रमादित्य, बनवीर आदि की मुद्राओं के संलग्न मुगल-मुद्राओं का प्रचलन भी मेवाड में रहा था जो टका, रुप्य आदि कहलाती थी।
परवर्ती काल में आलमशाही, मेहताशाही, चांदोडी, स्वरुपशाही, भूपालशाही, उदयपुरी, चित्तौड़ी, भीलवाड़ी त्रिशूलिया, फींतरा आदि कई मुद्राएं भिन्न-भिन्न समय में प्रचलित रही वहां सामन्तों की मुद्रा में भीण्डरीया पैसा एवं सलूम्बर का ठींगला व पदमशाही नामक ताम्बे का सिक्का जागीर क्षेत्र में चलता था। ब्रिटीश सरकार का "कलदार’ भी व्यापार-��ाणिज्य में प्रयुक्त किया जाता रहा था। जोधपुर अथवा मारवाड़ प्रदेश के अन्तर्गत प्राचीनकाल में "पंचमार्क’ मुद्राओं का प्रचलन रहा था। ईसा की दूसरी शताब्दी में यहां बाहर से आए क्षत्रपों की मुद्रा "द्रम’ का प्रचलन हुआ जो लगभग सम्पूर्ण दक्षिण-पश्चिमी राजस्थान में आर्थिक आधार के साधन-रुप में प्रतिष्ठित हो गई। बांसवाड़ा जिले के सरवानियां गांव से 1911 ई. में प्राप्त वीर दामन की मुद्राएं इसका प्रमाण हैं। प्रतिहार तथा चौहान शासकों के सिक्कों के अलावा मारवाड़ में "फदका’ या "फदिया’ मुद्राओं का उल्लेख भी हमें प्राप्त होता है।
राजस्थान के अन्य प्राचीन राज्यों में जो सिक्के प्राप्त होते हैं वह सभी उत्तर मुगलकाल या उसके पश्चात स्थानीय शासकों द्वारा अपने-अपने नाम से प्रचलित कराए हुए मिलते हैं। इनमें जयपुर अथवा ढुंढ़ाड़ प्रदेश में झाड़शाही रामशाही मुहर मुगल बादशाह के के नाम वाले सिक्को में मुम्मदशाही, प्रतापगढ़ के सलीमशाही बांसवाड़ा के लछमनशाही, बून्दी का हाली, कटारशाही, झालावाड़ का मदनशाही, जैसलमैर में अकेशाही व ताम्र मुद्रा - "डोडिया’ अलवर का रावशाही आदि मुख्य कहे जा सकते हैं।
मुद्राओं को ढ़ालने वाली टकसालों तथा उनके ठप्पों का भी अध्ययन अपेक्षित है। इनसे तत्कालीन मुद्रा-विज्ञान पर वृहत प्रकाश डाला जा सकता है। मुद्राओं पर उल्लेखित विवरणों द���वारा हमें सत्ता के क्षेत्र विस्तार, शासकों के तिथिक्रम ही नहीं मिलते वरन् इनसे राजनीतिक व्यवहारों का अध्ययन भी किया जा सकता है।Mudra Kala Rajasthan Ke Pracheen Pradesh Mewad Me Majjhamika Madhyamika naamdhari Chittaud Paas Sthit Nagri Se Prapt ताम्रमुद्रा Is Shetra Ko शिविजनपद Ghosit Karti Hai Tatpaschat Chhathi - 7 th Satabdi Ki Swarna Hui General Kaningham Agra Sansthapak Shashak Guhil Sikke Hue Aise Hee औझाजी Bhi Mile Iske उर्ध्वपटल Tatha अधोवट Chitrann Rajvansh शैवधर्म Prati Aastha Ka Pata Chalata Ranna कुम्भाकालीन 1433 1468 Ee Sikkon Tamra Mudraain.
2.मूर्ति कला : राजस्थान में काले, सफेद, भूरे तथा हल्के सलेटी, हरे, गुलाबी पत्थर से बनी मूर्तियों के अतिरिक्त पीतल या धातु की मूर्तियां भी प्राप्त होती हैं। गंगा नगर जिले के कालीबंगा तथा उदयपुर के निकट आहड़-सभ्यता की खुदाई में पकी हुई मिट्टी से बनाई हुई खिलौनाकृति की मूर्तियां भी मिलती हैं। किन्तु आदिकाल से शास्रोक्य मूर्ति कला की दृष्टि से ईसा पूर्व पहली से दूसरी शताब्दी के मध्य निर्मित जयपुर के लालसोट नाम स्थान पर ""बनजारे की छतरी ’ ’ नाम से प्रसिद्ध चार वेदिका स्��म्भ मूर्तियों का लक्षण द्रष्टत्य है। पदमक के धर्मचक्र, मृग, मत्स, आदि के अंकन मरहुत तथा अमरावती की कला के समानुरुप हैं। राजस्थान में गुप्त शासकों के प्रभावस्वरुप गुप्त शैली में निर्मित मूर्तियों, आभानेरी, कामवन तथा कोटा में कई स्थलों पर उपलब्ध हुई हैं। गुप्तोतर काल के पश्चात राजस्थान में सौराष्ट्र शैली, महागुर्जन शैली एवं महामास शैली का उदय एवं प्रभाव परिलक्षित होता है जिसमें महामास शैली केवल राजस्थान तक ही सीमित रही। इस शैली को मेवाड़ के गुहिल शासकों, जालौर व मण्डोर के प्रतिहार शासकों और शाकम्भरी (सांभर) के चौहान शासकों को संरक्षण प्रदान कर आठवीं से दसवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक इसे विकसित किया। 15वीं शताब्दी राजस्थान में मूर्तिकला के विकास का स्वर्णकाल था जिसका प्रतीक विजय स्तम्भ (चित्तौड़) की मूर्तियां है। सोलहवी शताब्दी का प्रतिमा शिल्प प्रदर्शन जगदीश मंदिर उदयपुर में देखा जा सकता है। यद्यपि इसके पश्चात भी मूर्तियां बनी किंतु उस शिल्प वैचिञ्य कुछ भी नहीं है किंतु अठाहरवीं शताब्दी के बाद परम्परावादी शिल्प में पाश्चात्य शैली के लक्षण हमें दिखलाई देने लगते हैं। इसके फलस्वरूप मानव मूर्ति का शिल्प का प्रादूर्भाव राजस्थान में हुआ।
Murti Kala Rajasthan Me Kaale Safed Bhure Tatha Halke सलेटी Hare Gulabi Patthar Se Bani Murtiyon Ke Atirikt Peetal Ya Dhatu Ki Murtiyan Bhi Prapt Hoti Hain Ganga Nagar Jile Kaalibanga Udaipur Nikat Aahad - Sabhyata Khudai Paki Hui Mitti Banai खिलौनाकृति Milti Kintu आदिकाल शास्रोक्य Drishti Eesa Poorv Pehli Doosri Satabdi Madhy Nirmit Jaipur Lalsot Naam Sthan Par Banjare Chhatri ’ Prasidh Char Vedica Stambh Ka Lakshann द्रष्टत्य
3.धातु मूर्ति कला : धातु मूर्ति कला को भी राजस्थान में प्रयाप्त प्रश्रय मिला। पूर्व मध्य, मध्य तथा उत्तरमध्य काल में जैन मूर्तियों का यहां बहुतायत में निर्माण हुआ। सिरोही जिले में वसूतगढ़ पिण्डवाड़ा नामक स्थान पर कई धातु प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं जिसमें शारदा की मूर्ति शिल्प की दृष्टि से द्रस्टव्य है। भरतपुर, जैसलमेर, उदयपुर के जिले इस तरह के उदाहरण से परिपूर्ण है। अठाहरवी शताब्दी से मूर्तिकला ने शनै: शनै: एक उद्योग का रुप लेना शुरु कर दिया था। अतः इनमें कलात्मक शैलियों के स्थान पर व्यवसायिकृत स्वरूप झलकने लगा। इसी काल में चित्रकला के प्रति लोगों का रुझान दिखलाई देता है।
Dhatu Murti Kala Ko Bhi Rajasthan Me Prayapt Prashray Mila Poorv Madhy Tatha उत्तरमध्य Kaal Jain Murtiyon Ka Yahan Bahutayat Nirmann Hua Sirohi Jile वसूतगढ़ Pindwada Namak Sthan Par Kai Pratimaein Prapt Hui Hain Jisme Sharda Ki Shilp Drishti Se द्रस्टव्य Hai Bharatpur Jaisalmer Udaipur Ke Is Tarah Udaharan Paripurn अठाहरवी Satabdi Murtikala ne Shanai Ek Udyog Roop Lena Shuru Kar Diya Tha Atah Inme Kalatmak Shailiyon व्यवसायिकृत.
4.धातु एवं काष्ठ कला :
इसके अन्तर्गत तोप, बन्दूक, तलवार, म्यान, छुरी, कटारी, आदि अस्र-शस्र भी इतिहास के स्रोत हैं। इनकी बनावट इन पर की गई खुदाई की कला के साथ-साथ इन पर प्राप्त सन् एवं अभिलेख हमें राजनीतिक सूचनाएं प्रदान करते हैं। ऐसी ही तोप का उदाहरण हमें जोधपुर दुर्ग में देखने को मिला जबकि राजस्थान के संग्रहालयों में अभिलेख वाली कई तलवारें प्रदर्शनार्थ भी रखी हुई हैं। पालकी, काठियां, बैलगाड़ी, रथ, लकड़ी की टेबुल, कुर्सियां, कलमदान, सन्दूक आदि भी मनुष्य की अभिवृत्तियों का दिग्दर्शन कराने के साथ तत्कालीन कलाकारों के श्रम और दशाओं का ब्यौरा प्रस्तुत करने में हमारे लिए महत्वपूर्ण स्रोत सामग्री है।Dhatu Aivam Kashth Kala Iske Antargat Top Banduk Talwar Myan Chhuri Katari Aadi अस्र - शस्र Bhi Itihas Ke Strot Hain Inki Banavat In Par Ki Gayi Khudai Sath Prapt Year Abhilekh Hamein RajNeetik Suchanayein Pradan Karte Aisi Hee Ka Udaharan Jodhpur Durg Me Dekhne Ko Mila Jabki Rajasthan संग्रहालयों Wali Kai तलवारें प्रदर्शनार्थ Rakhi Hui Palki काठियां BailGadi Rath Lakadi टेबुल कुर्सियां कलमदान सन्दूक Manushya Abhivritiyon Digdar
5.लोककला :
अन्ततः: लोककला के अन्तर्गत बाध्य यंत्र, लोक संगीत और नाट्य का हवाला देना भी आवश्यक है। यह सभी सांस्कृतिक इतिहास की अमूल्य धरोहरें हैं जो इतिहास का अमूल्य अंग हैं। बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध तक राजस्थान में लोगों का मनोरंजन का साधन लोक नाट्य व नृत्य रहे थे। रास-लीला जैसे नाट्यों के अतिरिक्त प्रदेश में ख्याल, रम्मत, रासधारी, नृत्य, भवाई, ढाला-मारु, तुर्रा-कलंगी या माच तथा आदिवासी गवरी या गौरी नृत्य नाट्य, घूमर, अग्नि नृत्य, कोटा का चकरी नृत्य, डीडवाणा पोकरण के तेराताली नृत्य, मारवाड़ की कच्ची घोड़ी का नृत्य, पाबूजी की फड़ तथा कठपुतली प्रदर्शन के नाम उल्लेखनीय हैं। पाबूजी की फड़ चित्रांकित पर्दे के सहारे प्रदर्शनात्मक विधि द्वारा गाया जाने वाला गेय-नाट्य है। लोक बादणें में नगाड़ा ढ़ोल-ढ़ोलक, मादल, रावण हत्था, पूंगी, बसली, सारंगी, तदूरा, तासा, थाली, झाँझ पत्तर तथा खड़ताल आदि हैं।
LokKala Anttah Ke Antargat Badhy Yantra Lok Sangeet Aur Natya Ka Hawala Dena Bhi Awashyak Hai Yah Sabhi Sanskritik Itihas Ki Amuly धरोहरें Hain Jo Ang 20th Sadee Purvaraddh Tak Rajasthan Me Logon Manoranjan Sadhan Wa Nritya Rahe The Raas - Leela Jaise Natyon Atirikt Pradesh Khyal Rammat रासधारी Bhawai Dhala मारु Turra Kalangi Ya माच Tatha Aadiwasi Gavari Gauri Ghoomar Agni Kota Chakri डीडवाणा Pokaran तेराताली Marwad Kachhi Gho.
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Kiradu Temple in Rajasthan: हमारे सामने आने वाले कई तथ्य ऐसे होते है जो हमें हैरान कर देते है जिन पर हम चाहकर भी विश्वास नहीं कर पाते है। आपने कभी ऐसी जगह के बारे में सुना है जहाँ रात को रुकने पर आप इंसान से पत्थर बन सकते है। हो गए ना हैरान? अगर ��हीं, तो हम आपको आज ऐसी जगह के बारे में बताएंगे, जहाँ अगर आप रात को ठहरे तो इंसान से पत्थर में बदल जाएगें। चलिए जानते है इस रहस्यमय जगह के बारे में।
राजस्थान का ये गांव (Kiradu Temple in Rajasthan)
राजस्थान की ताप्ती रेतीली धरती अपने अंदर कई राज समेटे बैठी हैं। यह राज ऐसे होते हैं जिन्हें जानकर बड़े-बड़े हिम्मतवालों के पसीने छूट जाते हैं। कुलधारा गांव और भानगढ़ का किला राजस्थान में स्थित ऐसे ही रहस्यमय स्थानों में से एक है जो पूरी दुनिया में भूतिया स्थान के रुप में में जाने जाते है।
बारमेर जिले में स्थित किराडू का मंदिर (Kiradu Temple) रहस्य के मामले में कुलधारा और भानगढ़ जितना ही खौफनाक है। यह मंदिर राजस्थान में खजुराहो मंदिर के नाम से मशहूर है जो प्रेमियों के लिए विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र हैं। लेकिन इस जगह की खौफनाक हकीकत को जानने के बाद कोई भी शख्स सूरज ढलने के बाद यहां ठहरने की हिम्मत नहीं करता है।
पत्थर का बन जाता है इंसान (Mysterious Temples in India)
किराडू के मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां शाम होने के बाद जो भी रह जाता है वो या तो पत्थर का बन जाता है या फिर मौत की गहरी नींद में सो जाता है। इस स्थान के बारे में यह मान्यता सदियों से चली आ रही है। पत्थर बन जाने के खौफ के कारण यह इलाका शाम होते ही पूरा वीरान हो जाता है।
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किराडू के मंदिर विषय में ऐसी मान्यता है कि यहां शाम ढ़लने के बाद जो भी रह जाता है वह या तो पत्थर का बन जाता है या मौत की नींद सो जाता है।
किराडू के मंदिर विषय में ऐसी मान्यता है कि यहां शाम ढ़लने के बाद जो भी रह जाता है वह या तो पत्थर का बन जाता है या मौत की नींद सो जाता है।
इस मंदिर में जो रात को ठहरा बन गया पत्थर का राजस्थान की रेतीली धरती में कई राज दफन हैं। यह राज ऐसे हैं जिन्हें जानकर बड़े-बड़े सूरमाओं के पसीने छूट जाते हैं। कुलधारा गांव और भानगढ़ का किला ऐसे ही रहस्यमय स्थानों में से एक है जो भूतहा स्थान के रुप में पूरी दुनिया में जाने जाते है।
कुलधारा और भानगढ़ से अलग एक और रहस्यमय स्थान है जो बारमेर जिले में स्थित है। यह स्थान है किराडू का मंदिर।
पूरे…
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किराडू मंदिर: क्या यहां मौजूद तमाम पत्थर, कभी इंसान हुआ करते थे?
किराडू मंदिर: क्या यहां मौजूद तमाम पत्थर, कभी इंसान हुआ करते थे?
हिन्दुस्तान की एक अद्भुत विरासत है किराडू मंदिर. ये मंदिर राजस्थान के बाड़मेर से करीब 30 किलोमीटर दूर छोटा से कस्बे में है. इस कस्बे का नाम भी इसी मंदिर के नाम पर रखा गया है.
किराडू 11वीं शताब्दी तक परमार वंश की राजधानी हुआ करता था, लेकिन आज किराडू के नाम से ही लोगों के दिल की दहशत फैल जाती है. देश की जिस धरोहर पर सैलानियों की भीड़ होनी चाहिए, उसके वीरान रास्ते एक ही सवाल गूंजता है कि क्या वाकई…
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