#कल्लूजल्लाद
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chaitanyabharatnews · 5 years ago
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पीढ़ियों से लोगों को फांसी दे रहा है यह जल्लाद परिवार, भगत सिंह-कसाब को भी फंदे पर लटका चुका है, अब निर्भया के दोषियों की बारी
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चैतन्य भारत न्यूज जब भी इंसान गलती करता है तो ईश्वर उसे उसके किए की सजा जरूर देता है। लेकिन ईश्वर से पहले हमारा कानून ही अपराधी को दंड दे देता है। जो जैसा जुर्म करता है उसे वैसा दंड मिलता है। हमारे देश में जघन्य और विरल अपराध करने वाले को फांसी की सजा देने का प्रावधान है। फांसी की सजा हमारे देश में ब्रिटिश काल से चली आ रही है। भारत में मुजरिम को फांसी के फंदे पर चढ़ाने का काम जल्लाद करता है। हम आपको आज उसी जल्लाद परिवार के बारे में बता रहे हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी से यह काम करता आ रहा है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); पवन जल्लाद परिवार का इकलौता वारिस देश का जल्लाद परिवार उत्तर प्रदेश के मेरठ में रहता है, जिनका पुश्तैनी काम ही फांसी देना है। परदादा से लेक�� पोते तक ने इस पेशे को कायम रखा है। इस परिवार को कल्लू जल्लाद के परिवार के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन पवन जल्लाद आज इस खानदान की विरासत को बड़ी शिद्दत के साथ संभाल रहा है। पवन ही वर्तमान समय में इस परिवार का इकलौता और जीवित वारिस है। परदादा ने दी थी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पवन के परदादा लक्ष्मन सिंह अंग्रेजों के जमाने में जल्लाद थे। उन्होंने ही लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी के फंदे पर लटकाया था। पवन के दादा कल्लू सिंह को फांसी देने में बहुत ही ज्यादा महारथ हासिल थी। कहा जाता है कि उनके जैसा फांसी का फंदा बनाना किसी और के बस की बात नहीं थी। दादा कल्लूराम ने रंगा-बिल्ला को दी फांसी परदादा के बाद उनके दादा कल्लूराम ने इस विरासत को संभाला। कल्लू जल्लाद ने दिल्ली की सेंट्रल जेल में रंगा-बिल्ला को फांसी दी थी। कल्लू ने ही इंदिरा गांधी के हत्यारों को भी फांसी दी थी। पवन ने फंदा बनाने का और प्लैटफॉर्म तैयार करने का काम अपने दादा कल्लू सिंह से ही सीखा। बचपन के दिनों से पवन दादा के साथ जेल में आते-जाते रहते थे और इस काम की हर बारीकी को ध्यान से सीखते थे। पवन पांच बार अपने दादा कल्लू सिंह को फांसी देते हुए देख चुके हैं। पिता ने कसाब को फंदे पर चढ़ाया कल्लूराम के बाद पवन के पिता मम्मू ने विरासत को आगे बढ़ाया। मम्मू ने अपने जीवनकाल में कुल 12 अपराधियों को फांसी दी है। 26/11 हमले के आरोपी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब को 21 नवंबर, 2012 को फांसी दी गई थी। यरवदा सेंट्रल में जल्लाद मम्मू सिंह ने उसे फांसी पर लटकाया था। अब पवन अपनी विरासत को आगे बढ़ा रहा है। कौन होते हैं जल्लाद जल्लाद जेल में नियुक्त नहीं होते बल्कि उन्हें विशेषतौर से फांसी की सजा के लिए बुलाया जाता है। ये किसी एक ही जेल में नहीं रहते। इन्हें एक जेल से दूसरी जेल में बुलाया जाता है। फांसी का समय तय होता है इतने बजे, इतने मिनट, इतने सेकेंड तयशुदा समय पर जल्लाद को फांसी देनी होती है। बता दें पवन को इस पेशे के तौर पर सरकार से महज 5 हजार रुपए मिलते हैं। इसमें उनका गुजारा नहीं हो पाता। पवन गांव में फेरी लगाकर कपड़ें भी बेचते हैं। ये भी पढ़े... निर्भया सामूहिक दुष्कर्म के दोषियों को फांसी देने की तैयारी शुरू, 16 दिसंबर को मिल सकती है फांसी आखिर क्यों सूरज निकलने से पहले अपराधी को दी जाती है फांसी की सजा? आप भी जानिए मौत करीब आते देख निर्भया के दोषी को याद आए वेद पुराण, फांसी से बचने के लिए कहा- दिल्ली गैस चैम्बर, प्रदूषण से ही मर जाऊंगा Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years ago
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पीढ़ियों से लोगों को फांसी दे रहा है यह जल्लाद परिवार, भगत सिंह-कसाब को भी फंदे पर लटका चुका है, अब निर्भया के दोषियों की बारी
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चैतन्य भारत न्यूज जब भी इंसान गलती करता है तो ईश्वर उसे उसके किए की सजा जरूर देता है। लेकिन ईश्वर से पहले हमारा कानून ही अपराधी को दंड दे देता है। जो जैसा जुर्म करता है उसे वैसा दंड मिलता है। हमारे देश में जघन्य और विरल अपराध करने वाले को फांसी की सजा देने का प्रावधान है। फांसी की सजा हमारे देश में ब्रिटिश काल से चली आ रही है। भारत में मुजरिम को फांसी के फंदे पर चढ़ाने का काम जल्लाद करता है। हम आपको आज उसी जल्लाद परिवार के बारे में बता रहे हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी से यह काम करता आ रहा है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); पवन जल्लाद परिवार का इकलौता वारिस देश का जल्लाद परिवार उत्तर प्रदेश के मेरठ में रहता है, जिनका पुश्तैनी काम ही फांसी देना है। परदादा से लेकर पोते तक ने इस पेशे को कायम रखा है। इस परिवार को कल्लू जल्लाद के परिवार के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन पवन जल्लाद आज इस खानदान की विरासत को बड़ी शिद्दत के साथ संभाल रहा है। पवन ही वर्तमान समय में इस परिवार का इकलौता और जीवित वारिस है। परदादा ने दी थी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पवन के परदादा लक्ष्मन सिंह अंग्रेजों के जमाने में जल्लाद थे। उन्होंने ही लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी के फंदे पर लटकाया था। पवन के दादा कल्लू सिंह को फांसी देने में बहुत ही ज्यादा महारथ हासिल थी। कहा जाता है कि उनके जैसा फांसी का फंदा बनाना किसी और के बस की बात नहीं थी। दादा कल्लूराम ने रंगा-बिल्ला को दी फांसी परदादा के बाद उनके दादा कल्लूराम ने इस विरासत को संभाला। कल्लू जल्लाद ने दिल्ली की सेंट्रल जेल में रंगा-बिल्ला को फांसी दी थी। कल्लू ने ही इंदिरा गांधी के हत्यारों को भी फांसी दी थी। पवन ने फंदा बनाने का और प्लैटफॉर्म तैयार करने का काम अपने दादा कल्लू सिंह से ही सीखा। बचपन के दिनों से पवन दादा के साथ जेल में आते-जाते रहते थे और इस काम की हर बारीकी को ध्यान से सीखते थे। पवन पांच बार अपने दादा कल्लू सिंह को फांसी देते हुए देख चुके हैं। पिता ने कसाब को फंदे पर चढ़ाया कल्लूराम के बाद पवन के पिता मम्मू ने विरासत को आगे बढ़ाया। मम्मू ने अपने जीवनकाल में कुल 12 अपराधियों को फांसी दी है। 26/11 हमले के आरोपी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब को 21 नवंबर, 2012 को फांसी दी गई थी। यरवदा सेंट्रल में जल्लाद मम्मू सिंह ने उसे फांसी पर लटकाया था। अब पवन अपनी विरासत को आगे बढ़ा रहा है। कौन होते हैं जल्लाद जल्लाद जेल में नियुक्त नहीं होते बल्कि उन्हें विशेषतौर से फांसी की सजा के लिए बुलाया जाता है। ये किसी एक ही जेल में नहीं रहते। इन्हें एक जेल से दूसरी जेल में बुलाया जाता है। फांसी का समय तय होता है इतने बजे, इतने मिनट, इतने सेकेंड तयशुदा समय पर जल्लाद को फांसी देनी होती है। बता दें पवन को इस पेशे के तौर पर सरकार से महज 5 हजार रुपए मिलते हैं। इसमें उनका गुजारा नहीं हो पाता। पवन गांव में फेरी लगाकर कपड़ें भी बेचते हैं। ये भी पढ़े... निर्भया सामूहिक दुष्कर्म के दोषियों को फांसी देने की तैयारी शुरू, 16 दिसंबर को मिल सकती है फांसी आखिर क्यों सूरज निकलने से पहले अपराधी को दी जाती है फांसी की सजा? आप भी जानिए मौत करीब आते देख निर्भया के दोषी को याद आए वेद पुराण, फांसी से बचने के लिए कहा- दिल्ली गैस चैम्बर, प्रदूषण से ही मर जाऊंगा Read the full article
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चैतन्य भारत न्यूज जब भी इंसान गलती करता है तो ईश्वर उसे उसके किए की सजा जरूर देता है। लेकिन ईश्वर से पहले हमारा कानून ही अपराधी को दंड दे देता है। जो जैसा जुर्म करता है उसे वैसा दंड मिलता है। हमारे देश में जघन्य और विरल अपराध करने वाले को फांसी की सजा देने का प्रावधान है। फांसी की सजा हमारे देश में ब्रिटिश काल से चली आ रही है। भारत में मुजरिम को फांसी के फंदे पर चढ़ाने का काम जल्लाद करता है। हम आपको आज उसी जल्लाद परिवार के बारे में बता रहे हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी से यह काम करता आ रहा है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); पवन जल्लाद परिवार का इकलौता वारिस देश का जल्लाद परिवार उत्तर प्रदेश के मेरठ में रहता है, जिनका पुश्तैनी काम ही फांसी देना है। परदादा से लेकर पोते तक ने इस पेशे को कायम रखा है। इस परिवार को कल्लू जल्लाद के परिवार के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन पवन जल्लाद आज इस खानदान की विरासत को बड़ी शिद्दत के साथ संभाल रहा है। पवन ही वर्तमान समय में इस परिवार का इकलौता और जीवित वारिस है। परदादा ने दी थी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पवन के परदादा लक्ष्मन सिंह अंग्रेजों के जमाने में जल्लाद थे। उन्होंने ही लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी के फंदे पर लटकाया था। पवन के दादा कल्लू सिंह को फांसी देने में बहुत ही ज्यादा महारथ हासिल थी। कहा जाता है कि उनके जैसा फांसी का फंदा बनाना किसी और के बस की बात नहीं थी। दादा कल्लूराम ने रंगा-बिल्ला को दी फांसी परदादा के बाद उनके दादा कल्लूराम ने इस विरासत को संभाला। कल्लू जल्लाद ने दिल्ली की सेंट्रल जेल में रंगा-बिल्ला को फांसी दी थी। कल्लू ने ही इंदिरा गांधी के हत्यारों को भी फांसी दी थी। पवन ने फंदा बनाने का और प्लैटफॉर्म तैयार करने का काम अपने दादा कल्लू सिंह से ही सीखा। बचपन के दिनों से पवन दादा के साथ जेल में आते-जाते रहते थे और इस काम की हर बारीकी को ध्यान से सीखते थे। पवन पांच बार अपने दादा कल्लू सिंह को फांसी देते हुए देख चुके हैं। पिता ने कसाब को फंदे पर चढ़ाया कल्लूराम के बाद पवन के पिता मम्मू ने विरासत को आगे बढ़ाया। मम्मू ने अपने जीवनकाल में कुल 12 अपराधियों को फांसी दी है। 26/11 हमले के आरोपी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब को 21 नवंबर, 2012 को फांसी दी गई थी। यरवदा सेंट्रल में जल्लाद मम्मू सिंह ने उसे फांसी पर लटकाया था। अब पवन अपनी विरासत को आगे बढ़ा रहा है। कौन होते हैं जल्लाद जल्लाद जेल में नियुक्त नहीं होते बल्कि उन्हें विशेषतौर से फांसी की सजा के लिए बुलाया जाता है। ये किसी एक ही जेल में नहीं रहते। इन्हें एक जेल से दूसरी जेल में बुलाया जाता है। फांसी का समय तय होता है इतने बजे, इतने मिनट, इतने सेकेंड तयशुदा समय पर जल्लाद को फांसी देनी होती है। बता दें पवन को इस पेशे के तौर पर सरकार से महज 5 हजार रुपए मिलते हैं। इसमें उनका गुजारा नहीं हो पाता। पवन गांव में फेरी लगाकर कपड़ें भी बेचते हैं। ये भी पढ़े... निर्भया सामूहिक दुष्कर्म के दोषियों को फांसी देने की तैयारी शुरू, 16 दिसंबर को मिल सकती है फांसी आखिर क्यों सूरज निकलने से पहले अपराधी को दी जाती है फांसी की सजा? आप भी जानिए मौत करीब आते देख निर्भया के दोषी को याद आए वेद पुराण, फांसी से बचने के लिए कहा- दिल्ली गैस चैम्बर, प्रदूषण से ही मर जाऊंगा Read the full article
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