#कबि नामें अवतार । नौ योगेश्वर में रमा
Explore tagged Tumblr posts
Text
0 notes
Text
#GodMorningFriday
गरीब, ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार। नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी अपने विधान अनुसार राजा ऋषभ देव (जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर) को मिले थे। अपना नाम कविर्देव बताया था।
👉अवश्य पढ़िए संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखी पुस्तक "ज्ञान गंगा"|
0 notes
Text
( #MuktiBodh_Part12 के आगे ��ढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part13
गरीब, ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार। नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार।।
◆◆ भावार्थ :- ◆◆
परमेश्वर कबीर जी अपने विधान अनुसार {कि परमात्मा ऊपर के लोक में
निवास करता है। वहाँ से गति करके आता है, अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनको अपनी वाक (वाणी) द्वारा भक्ति करने की प्रेरणा करता है आदि-आदि जो पूर्व में विस्तार से लिख दिया है।} राजा ऋषभ देव (जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर) को मिले थे। अपना नाम कविर्देव बताया था। ऋषभ देव जी ने अपने धर्मगुरूओं-ऋषियों से सुन रखा था कि परमात्मा का वास्तविक नाम वेदों में कविः देव (कविर्देव) है। परमात्मा कवि ऋषि नाम से ऋषभ देव को भक्ति की प्रेरणा देकर अंतर्ध्यान हो गए थे। नौ नाथों (गोरखनाथ, मच्छन्द्रनाथ, जलन्दरनाथ, चरपटनाथ आदि-आदि) को समझाने के लिए उनको मिले तथा राजा जनक विदेही (विलक्षण शरीर वाले को विदेही कहते हैं) को सत्यज्ञान बताकर उनको सही दिशा दी। राजा जनक से दीक्षा लेकर शुकदेव ऋषि को स्वर्ग प्राप्त हुआ। परंतु वह पूर्ण मोक्ष नहीं मिला जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है :-
(तत्वदर्शी संत से तत्वज्ञान समझने के पश्चात्) आध्यात्म अज्ञान को तत्वज्ञान रूपी
शस्त्र से काटकर उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करन��� चाहिए जहाँ
जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते। जिस परमेश्वर से संसार रूपी
वृक्ष की प्रवृति विस्तार को प्राप्त हुई है यानि जिस परमेश्वर ने संसार की रचना की है, केवल उसी की भक्ति करो।
वाणी नं. 24 में यही स्पष्ट किया है कि यदि स्वर्ग जाने की भी तमन्ना है तो वे भी
विशेष (निज) मंत्रों के जाप से ही पूर्ण होगी। परंतु यह इच्छा तत्वज्ञान के अभाव से है। जैसे
गीता अध्याय 2 श्लोक 46 में बहुत सटीक उदाहरण दिया है कि :- सब ओर से परिपूर्ण
जलाशय (बड़ी झील=Lake) प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन
रह जाता है। उसी प्रकार तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् विद्वान पुरूष का वेदों (ऋग्वेद,
यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) में प्रयोजन रह जाता है।
◆◆ भावार्थ :- ◆◆
तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् अन्य देवताओं से होने वाले क्षणिक लाभ
(स्वर्ग व राज्य प्राप्ति) से अधिक सुख समय तथा पूर्ण मोक्ष (गीता अध्याय 15 श्लोक 4 वाला मोक्ष) जो परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म=गीता अध्याय 8 श्लोक 3, 8, 9, 10, 20 से 22 वाले परमेश्वर) के जाप से होता है, की जानकारी के पश्चात् साधक की जितनी श्रद्धा अन्य
देवताओं में रह जाती है यानिः-
कबीर, एकै साध��� सब सधै, सब साधें सब जाय। माली सींचे मूल कूँ, फलै फूलै अघाय।।
◆ भावार्थ :- गीता अध्याय 15 श्लोक 1.4 को इस अमृतवाणी में संक्षिप्त कर बताया है किः-
जो ऊपर को मूल (जड़) वाला तथा नीचे को तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु,
तमगुण शिव) रूपी शाखा वाला संसार रूपी वृक्ष है :-
कबीर, अक्षर पुरूष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार। तीनों देवा शाखा हैं, पात रूप संसार।।
जैसे पौधे को मूल की ओर से पृथ्वी में रोपण करके मूल की सिंचाई की जाती है तो
उस मूल परमात्मा (परम अक्षर ब्रह्म) की पूजा से पौधे की परवरिश होती है। तब तना, डार, शाखाओं तथा पत्तों का विकास होकर पेड़ बन जाता है। छाया, फल तथा लकड़ी सर्व प्राप्त होती है जिसके लिए पौधा लगाया जाता है। यदि पौधे की शाखाओं को मिट्टी में रोपकर जड़ों को ऊपर करके सिंचाई करेंगे तो भक्ति रूपी पौधा नष्ट हो जाएगा। इसी प्रकार एक मूल (परम अक्षर ब्रह्म) रूप परमेश्वर की पूजा करने से सर्व देव विकसित होकर साधक को बिना माँगे फल देते रहेंगे।(जिसका वर्णन गीता अध्याय 3 श्लोक 10 से 15 में भी है) इस प्रकार ज्ञान होने पर साधक का प्रयोजन उसी प्रकार अन्य देवताओं से रह जाता है जैसे झील की प्राप्ति के पश्चात् छोटे जलाश्य में रह जाता है। छोटे जलाश्य पर आश्रित को ज्ञान होता है कि यदि एक वर्ष बारिश नहीं हुई तो छोटे तालाब का जल समाप्त हो जाएगा। उस पर आश्रित भी संकट में पड़ जाऐंगे। झील के विषय में ज्ञान है कि यदि दस वर्ष भी बारिश न हो तो भी जल समाप्त नहीं होता। वह व्यक्ति छोटे जलाश्य को छोड़कर तुरंत बड़े जलाश्य पर आश्रित हो जाता है। भले ही छोटे जलाशय जल पीने में झील के जल जैसा ही स्वादिष्ट है, परंतु पर्याप्त व चिर स्थाई नहीं है। इसी प्रकार अन्य देवताओं (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी) की भक्ति से मिलने वाले स्वर्ग का सुख बुरा नहीं है, परंतु क्षणिक है, पर्याप्त नहीं है। इन देवताओं तथा इनके अतिरिक्त किसी भी देवी-देवता, पित्तर व भूत पूजा करना गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, 20 से 23 में मना किया है। इसलिए भी इनकी भक्ति करना शास्त्र विरूद्ध होने से व्यर्थ है जिसका गीता अध्याय 16 श्लोक 23,24 में प्रमाण है। कहा है कि शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण करने वालों को न तो सुख प्राप्त होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है और न ही परम गति यानि पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है अर्थात् व्यर्थ प्रयत्न है।(गीता अध्याय 16 श्लोक 23) इससे तेरे लिए अर्जुन! कर्तव्य यानि जो भक्ति कर्म करने चाहिऐ और अकर्तव्य यानि जो भक्ति कर्म न करने चाहिऐ, उसके लिए शास्त्र ही प्रमाण हैं यानि शास्त्रों को आधार मानकर निर्णय लेकर शास्त्रों में वर्णित साधना करना योग्य है।(गीता अध्याय 16 श्लोक 24)
◆◆ वाणी नं. 25 :- ◆◆
गरीब, अगम अनाहद भूमि है, जहां नाम का दीप। ��क पलक बिछुरै नहीं, रहता नयनां बीच।।25।।
◆ सरलार्थ :- उस परमेश्वर का द्वीप यानि सत्यलोक अगम अनाहद (काल के तथा
अक्षर पुरूष के लोकों से आगे वाली) विशाल धरती है। अनहद माने जिसकी हद (सीमा)
न हो।
सतलोक विसीमित है। वह परमात्मा तत्वज्ञान प्राप्त साधक की आँखों का तारा
बनकर रहता है। एक पल (क्षण) भी दूर नहीं होता। भक्त को आँखों के सामने कुछ रेखाऐं
दिखाई देती हैं। वे परमात्मा की भक्ति का सांकेतिक तोल-माप हैं।
◆◆ वाणी नं. 26 से 37 :- ◆◆
गरीब, साहिब साहिब क्या करै, साहिब है परतीत। भैंस सींग साहिब भया, पांडे गावैं गीत।।26।।
गरीब, राम सरीखे राम हैं, संत सरीखे संत। नाम सरीखा नाम है, नहीं आदि नहिं अंत।।27।।
गरीब, महिमा सुनि निज नाम की, गहे द्रौपदी चीर। दुःशासन से पचि रहे, अंत न आया बीर।।28।।
गरीब, सेतु बंध्या पाहन तिरे, गज पकड़े थे ग्राह। गनिका चढी बिमान में, निरगुन नाम मल्लाह।।29।।
गरीब, बारद ढारी कबीर जी, भगत हेत कै काज। सेऊ कूं तो सिर दिया, बेचि बंदगी नाज।।30।।
गरीब, कहां गोरख कहां दत्त थे, कहां सुकदेव कहां ब्यास। भगति हेत सें जानियैं, तीन लोक प्रकास।।31।। गरीब, कहां पीपा कहां नामदेव, कहां धना बाजीद। कहां रैदास कमाल थे, कहां थे फकर फरीद।।32।।
गरीब, कहां नानक दादू हुते, कहां ज्ञानी हरिदास। कहां गोपीचंद भरथरी, ये सब सतगुरु पास।।33।।
गरीब, कहां जंगी चरपट हुते, कहां अधम सुलतान। भगति हेत प्रगट भये, सतगुरु के प्रवान।।34।।
गरीब, कहां नारद प्रह्लाद थे, कहां अंगद कहां सेस। कहां विभीषण ध्रुव हुते, भक्त हिरंबर पेस।।35।।
गरीब, कहां जयदेव थे कपिल मुनि, कहां रामानंद साध। कहां दुर्बासा कष्ण थे, भगति आदि अनाद।। 36।।
गरीब, कहां ब्रह्मा कहां बेद थे, कहां सनकादि चार। कहां शंभु कहां बिष्णु थे, भगति हेत दीदार।।37।।
◆ सरलार्थ :- संत गरीबदास जी ने बताया है कि :-
साहिब-साहिब यानि राम-राम क्या करता फिरता है। साहेब तो परतीत (विश्वास) में
है। जैसे भैंस का टूटा हुआ सींग जो व्यर्थ कूड़े में पड़ा था, वह भक्त के विश्वास से साहिब
(परमात्मा) बन गया। पंडित गुरू को विश्वास नहीं था। वह केवल परमात्मा की महिमा के
गुणगान निज स्वार्थ के लिए कर रहा था।
क्रमशः..........
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र प��र्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
0 notes
Text
0 notes
Text
गरीब, ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार।
नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार।।
#SaintRampalJiQuotes
0 notes
Text
गरीब, ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार।
नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार।।
0 notes
Text
गरीब, ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार।
नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी अपने विधान अनुसार राजा ऋषभ देव (जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर) को मिले थे। अपना नाम कविर्देव बताया था। परमात्मा कवि ऋषि नाम से ऋषभ देव को भक्ति की प्रेरणा देकर अंतर्ध्यान हो गए थे। नौ नाथों (गोरखनाथ, मच्छन्द्रनाथ, जलन्दरनाथ, चरपटनाथ आदि-आदि) को समझाने के लिए उनको मिले तथा राजा जनक विदेही (विलक्षण शरीर वाले को विदेही कहते हैं) को सत्यज्ञान बताकर उनको सही दिशा दी। राजा जनक से दीक्षा लेकर शुकदेव ऋषि को स्वर्ग प्राप्त हुआ।
0 notes
Text
गरीब, ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार।
नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार।।
0 notes
Text
गरीब, ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार।
नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी अपने विधान अनुसार राजा ऋषभ देव (जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर) को मिले थे। अपना नाम कविर्देव बताया था। परमात्मा कवि ऋषि नाम से ऋषभ देव को भक्ति की प्रेरणा देकर अंतर्ध्यान हो गए थे। नौ नाथों (गोरखनाथ, मच्छन्द्रनाथ, जलन्दरनाथ, चरपटनाथ आदि-आदि) को समझाने के लिए उनको मिले तथा राजा जनक विदेही (विलक्षण शरीर वाले को विदेही कहते हैं) को सत्यज्ञान बताकर उनको सही दिशा दी। राजा जनक से दीक्षा लेकर शुकदेव ऋषि को स्वर्ग प्राप्त हुआ।
0 notes
Text
गरीब, ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार।
नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी अपने विधान अनुसार राजा ऋषभ देव (जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर) को मिले थे। अपना नाम कविर्देव बताया था। परमात्मा कवि ऋषि नाम से ऋषभ देव को भक्ति की प्रेरणा देकर अंतर्ध्यान हो गए थे। नौ नाथों (गोरखनाथ, मच्छन्द्रनाथ, जलन्दरनाथ, चरपटनाथ आदि-आदि) को समझाने के लिए उनको मिले तथा राजा जनक विदेही (विलक्षण शरीर वाले को विदेही कहते हैं) को सत्यज्ञान बताकर उनको सही दिशा दी। राजा जनक से दीक्षा लेकर शुकदेव ऋषि को स्वर्ग प्राप्त हुआ।
0 notes
Text
#GodMorningMonday
ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार । नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार ||
0 notes
Text
#GodMorningMonday
ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार । नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार ||
0 notes
Text
#GodMorningMonday
ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार । नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार ||अधिक जानकारी के लिए देखें साधना टीवी शाम 7:30 बजे। 🙏
0 notes
Text
#GodMorningSaturday
ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार ।
नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार ॥
0 notes
Text
#GodMorningTuesday
#Kabir_is_Supreme_God
गरीब, ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार।
नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार ।।
भावार्थ :-
परमेश्वर कबीर जी अपने विधान अनुसार [कि परमात्मा ऊपर के लोक में निवास करता है। वहाँ से गति करके आता है, अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनको अपनी वाक (वाणी) द्वारा भक्ति करने की प्रेरणा करता है आदि-आदि।] राजा ऋषभ देव (जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर) को मिले थे। अपना नाम कविर्देव बताया था। ऋषभ देव जी ने अपने धर्मगुरूओं-ऋषियों से सुन रखा था कि परमात्मा का वास्तविक नाम वेदों में कविः देव (कविर्देव) है। परमात्मा कवि ऋषि नाम से ऋषभ देव को भक्ति की प्रेरणा देकर अंतर्ध्यान हो गए थे। नौ नाथों (गोरखनाथ, मच्छन्द्रनाथ, जलंदरनाथ, चरपटनाथ आदि) को समझाने के लिए उनको मिले तथा राजा जनक विदेही (विलक्षण शरीर वाले को विदेही कहते हैं) को सत्यज्ञान बताकर उनको सही दिशा दी। परंतु राजा जनक ने विष्णु उपासना को नहीं त्यागा। राजा जनक से दीक्षा लेकर शुकदेव ऋषि को स्वर्ग प्राप्त हुआ परंतु वह पूर्ण मोक्ष नहीं मिला जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है:
(तत्वदर्शी संत से तत्वज्ञान समझने के पश्चात्) अध्यात्म अज्ञान को तत्वज्ञान रूपी शस्त्र से काटकर उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार कभी नहीं आते। जिस परमेश्वर से संसार रूपी वृक्ष की प्रवृति विस्तार को प्राप्त हुई है यानि जिस परमेश्वर ने संसार की रचना की है, केवल उसी की भक्ति करो।
अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj YouTube channel पर Visit करें।
0 notes