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( #MuktiBodh_Part46 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part47
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर (85)
‘‘रंका-बंका की परीक्षा’’
परमेश्वर कबीर जी एक संत के रूप में पुण्डरपुर के पास एक आश्रम बनाकर सत्संग करते थे। नामदेव जी ने वही सत्संग सुना था। परमेश्वर कबीर जी ने ही वह छत बनाई थी। नामदेव जी ने गुरू दीक्षा ले ली। एक अन्य परिवार ने भी दीक्षा उस संत से ले रखी थी। परिवार में तीन प्राणी थे। रंका तथा उसकी पत्नी बंका तथा बेटी अवंका। रंका बहुत निर्धन था। दोनों पति-पत्नी जंगल से लकड़ी तोड़कर लाते थे और शहर में बेचकर निर्वाह चला रहे थे। परमात्मा के विधान को गहराई से जाना था। रंका जी का पूरा परिवार कबीर जी (अन्य रूप में विद्यमान थे) का शिष्य था। भक्त नामदेव भी उसी संत जी (कबीर जी) के शिष्य थे। एक दिन नामदेव जी ने सतगुरू जी से निवेदन किया कि हे प्रभु! आपके भक्त रंका जी बहुत निर्धन हैं। इनको कुछ धन प्रदान करो ताकि निर्वाह ठीक हो सके। जंगल से लकडि़यां बेचकर कठिनता से निर्वाह कर रहे हैं। दुर्बल श��ीर है। दोनों पति-पत्नी लकडि़यां वन से लाकर बेचते हैं। भक्ति का समय भी कम मिलता है। सतगुरू रूप में विराजमान परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि भक्त नामदेव! मैंने बहुत कोशिश की है धन देने की, परंतु ये लेते ही नहीं। नामदेव ने कहा कि हे गुरूदेव! आप फिर से धन दो, अवश्य लेंगे। बड़े दुःखी हैं। जिस समय दोनों रंका तथा उसकी पत्नी बंका जंगल से लकडि़यों का गठ्ठा लिए आ रहे थे तो सतगुरू जी अपने शिष्य नामदेव जी को साथ लेकर उस मार्ग में गए। मार्ग में सोने (Gold) के आभूषण, सोने की असरफी (10 ग्राम सोने की बनी हुई) तथा चांदी के आभूषण तथा सिक्के डालकर स्वयं दोनों गुरू-शिष्य किसी झाड़ के पीछे छिपकर खड़े हो गए और उनकी गतिविधि देखने लगे।
भक्त रंका लकडि़यां सिर पर लिए आगे-आगे चल रहा था। उनसे कुछ दूरी पर उनकी पत्नी आ रही थी। रंका जी ने उस आभूषण तथा अन्य सोने को देखकर विचार किया कि मेरी पत्नी आभूषण को देखकर दिल डगमग न कर ले क्योंकि आभूषण स्त्री को बहुत प्रिय होते हैं। यह विचार करके सर्व धन पर पैरों से मिट्टी डालने लगा। उसकी पत्नी बंका जी की
दृष्टि अपने पति की क्रिया पर पड़ी तो समझते देर न लगी और बोली चलो भक्त जी! मिट्टी पर मिट्टी क्यों डाल रहे हो? दोनों पति-पत्नी उस सर्व धन को उलंघकर चले गए।
तब परमेश्वर जी ने कहा कि देख लो नामदेव! मैं क्या करूं? नामदेव जी को भी अहसास हुआ कि वास्तव में दोनों परम भक्त हैं।
क्रमशः_______
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दुनिया के कोने कोने में जगत के तारणहार संत के अवतरण दिवस की गूंज
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जानिए क्या-क्या सुविधाऐ मिलेगी समागम में 👇👇
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संत रामपाल जी का ज्ञान भारत के साथ साथ पश्चिमी देशों की फिजाओ में घुलता हुआ। #SaintRampalJi
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सूरत फुरकान 25 आयात 52 से 59 में लिखा है कि गुनाहों को क्षमा करने वाला सिर्फ एक कबीर नामक अल्लाह है उसकी पूजा विधि किसी तत्वदर्शी (बाख़बर) से पूछ देखो वर्तमान में (बाख़बर) संत रामपाल जी महाराज ही हैं।
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श्री गुरुग्रंथ साहिब के पृष्ठ 1342, 946, 437 आदि में स्पष्ट रूप से लिखा है कि श्री नानक जी को गुरु जी मिले थे। जिन्होंने नानक जी को दीक्षा दी थी। साथ ही, नानक जी ने यह भी स्पष्ट किया है कि वक्त गुरु के बिना भक्ति सफल नहीं होती। लेकिन वह गुरु पूरा होना चाहिए। साथ ही, श्री गुरुग्रंथ साहिब के पृष्ठ 465 में श्री नानक जी ने कहा है कि मेरा यह जीव बहुत समय से जन्म तथा मृत्यु के चक्र में भ्रमता रहा, अब पूर्ण सतगुरु ने वास्तविक नाम प्रदान किया। जानिए गुरुग्रंथ साहिब के अनुसार पूर्ण गुरु की महिमा तथा नानक जी के गुरु कौन थे? https://bit.ly/3YYZyFy
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Raksha Bandhan क्यों नहीं मनाना चाहिए? Sant Rampal Ji Maharaj Videos
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JagatGuru Tatvadarshi Sant Rampal Ji Maharaj has given the mantra for the complete eradication of the dowry evil through the book 'Dharti Upar Swarg'.
#धरती_ऊपर_स्वर्ग
Sant Rampal Ji Maharaj
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जो सारनाम हैं, वह पवित्र तथा अविनाशी हैं।
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#ज्ञानगंगा_Part76
"उजड़ा परिवार बसा "
मैं भक्त रमेश पुत्र श्री उमेद सिंह, गाँव-पेटवाड़, त. हांसी, जिला हिसार का रहने वाला हूँ अब एम्पलाईज कॉलोनी, जेल के सामने जीन्द में सपरिवार रहता हूँ । नाम लेने से पहले हम भूतों की पूजा करते थे। हमारे गाँव में बाबा सरिया की मान्यता थी, जिस पर हम प्रत्येक महीने की पूर्णिमा को ज्योति लगाने जाते थे। हम शुक्रवार, जन्माष्टमी, शिवरात्री का व्रत भी करते थे। पित्तरों का पिंड दान और श्राद्ध भी निकालते थे। फिर भी हमारा घर बिल्कुल उजड़ चुका था। जब मैं बारह वर्ष का था तब मेरे पिता जी की मृत्यु हो गई थी। घर में तीन सदस्य थे, तीनों की आपस में लड़ाई रहती थी, तीनों को भूत-प्रेत बहुत दुःखी किया करते थे और तीनों बहुत ज्यादा बीमार रहते थे। पहले डाक्टरों को दिखाया पर कोई आराम नहीं हुआ, फिर सेवड़ों के पास गए, कोई कहता तुम 5000 रूपये दे दो मैं तुम्हें बिल्कुल ठीक कर दूँगा, कोई कहता तुम 10000 रूपये दे दो ।
हम बिल्कुल उजड़ चुके थे। परन्तु कोई आराम नहीं हुआ। मेरे रिश्तेदार भक्त रघुबीर सिंह गाँव कौंथ कलां, वाले के बार-2 कहने से मेरी माता जी ने सन् 1996 में संत रामपाल जी महाराज से नाम ले लिया। मेरी पत्नी को पाँच वर्ष ऊपरांत भी कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई थी। मेरी माता जी के कहने से मेरी पत्नी ने भी संत रामपाल जी महाराज से नाम ले लिया। नाम दान लेते ही वर्ष के अन्दर मेरी पत्नी ने एक लड़के को जन्म दिया। मेरा भगवान से विश्वास उठ चुका था। इस कारण मैंने नाम नहीं लिया तथा अपनी माता व पत्नी को भी संत जी के पास जाने से मना करता था। मेरा लड़का जो पंद्रह दिन का था, बहुत ज्यादा बीमार हो गया। डाक्टरों ने कह दिया कि यह लड़का सुबह तक मर जायेगा, इसे ले जाओ । शाम को एक भक्त ने बन्दी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज के बारे में बताया कि आश्रम जीन्द में आए हैं वे पूर्ण संत हैं और वे ही इस बच्चे को ठीक कर सकते हैं। हम डाक्टरों और सेवड़ों के पास जा-जाकर थक चुके थे। मेरा भगवान से विश्वास उठ गया था। मैंने उस भक्त को मना कर दिया। किंतु उसने दोबारा फिर प्रार्थना की कि वे स्वयं ��न्दी छोड़ भगवान ही धरती पर आए हुए हैं। यदि वे दया कर दें तो यह लड़का ठीक हो सकता है। उस भक्त के इतने विश्वास के साथ कहने पर मैंने अपनी माता जी को अनुमति दे दी। मेरी माँ ने लड़के को ले जाकर सतगुरु रामपाल जी महाराज के चरणों में रख दिया और रोते हुए प्रार्थना की कि महाराज जी यह बच्चा मर चुका है। अब आप ही इसे ठीक कर सकते हैं। तब बन्दी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज ने कहा कि कबीर परमेश्वर की रजा से यह ठीक हो जाएगा। अगले दिन जब बच्चे को मरना था वह ठीक हो गया। ।। बोलो बन्दी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय ।।
हमारा उजड़ा हुआ घर बन्दी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की कंपा से दोबारा बस गया। इतना चमत्कार देखकर भी पाप कर्मों की वजह से मैंने नाम नहीं लिया और पूर्व वाली पूजा तथा भूतों की पूजा ही करता रहा। हमारे घर पर बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज की वाणी का पाठ संत रामपाल जी महाराज करते थे और मैं बाहर जाकर शराब पीता था। फिर एक वर्ष बाद एक दिन हमारे घर पाठ हो रहा था तब शाम को बन्दी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज ने सत्संग किया। तब मैंने सत्संग सुना और नाम भी ले लिया। फिर हमारे घर में दुःख नाम की चीज नहीं रही। मेरी माता जी ने किसी के बहकावे में आकर नाम खण्डित कर दिया । कुछ समय पश्चात सन् 2000 में मेरी माँ को अचानक पैर में जलन होने लगी।
डाक्टरों को दिखाया। उन्होंने बताया कि इसे ब्लड कैंसर है। यह दस-पंद्रह दिन में मर जायेगी। अगर पी.जी.आई. चण्डीगढ़ में ले जाओ तो वहाँ डेढ़ लाख रूपये लग कर यह ज्यादा से ज्यादा एक साल तक जीवित रह सकती है। परन्तु दर्द कम नहीं होगा। बन्दी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज ने बताया कि आपकी माता जी ने नाम खंडित कर दिया है। जैसे बिजली का बिल न भरने से कनेक्शन कट जाने से विद्युत से मिलने वाला लाभ बंद हो जाता है। उसे फिर सुचारु करवाना पड़ता है। मेरी माता जी ने अपनी गलती की क्षमा याचना की। महाराज जी ने दोबारा नाम दिया तथा सिर पर हाथ रखा। सिर पर हाथ रखते ही पैर की जलन व दर्द बन्द हो गया। फिर लगभग दो वर्ष के बाद जाड़ पड़वाने की वजह से जाड़ में से खून निकलने लगा। डाक्टर ने दवाई दी और टांके भी लगाए, परन्तु खून निकलना बंद नहीं हुआ। फिर डॉक्टर ने इसकी बीमारी चैक की और बताया कि इसे ब्लड कैंसर है और अब वह फूट चुका है। अब यह ठीक नहीं हो सकती। इसे घर ले जाओ। यह खून निकलने से दो दिन में मर जायेगी। फिर अगले दिन इसके पेशाब और लैटरिंग में से भी खून आना शुरु हो गया। तब मैंने सतगुरु रामपाल जी महाराज को फोन से बताया कि डाक्टर ने कहा है कि ये दो दिन में मर जायेगी । तब सतगुरु रामपाल जी महाराज ने कहा कि बन्दी छोड़ जो करेंगे ठीक करेंगे। फिर अगली रात को दो बजे यमदूत उसे लेने के लिए आए। मेरी माँ ने कहा कि तेरे पिता जी (वे दस वर्ष पहले गुजर चुके थे) मुझे लेने के लिए आये हुए हैं। इतना कहते-कहते वह यमदूत मेरी माँ के अन्दर प्रवेश कर गया और कहने लगा कि मैं इसे लेकर जाऊँगा, इसका समय पूरा हो चुका है। मेरे को चाय पिलाओ। तब हमने उसके लिए चाय बनाने के लिए रखी ही थी, इतने में वह यमदूत कहने लगा कि पता नहीं तुम्हारे घर में कितनी बड़ी शक्ति है, वह मुझे मार रही है, मैं यहाँ और नहीं रूक सकता, मुझे जल्दी से चाय पिलाओ, मैं जा रहा हूँ और गर्म चाय ही पी गया। जाते हुए कहने लगा कि तुम्हारे घर में पूर्ण परमात्मा खड़े हैं। मैं इसे नहीं ले जा सकता, यह कहते हुए वह चला गया। एक मिनट के बाद ही खून बिल्कुल बंद हो गया, जीम और दाँत जो काले हो चुके थे, बिल्कुल साफ हो गए और बन्दी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की कंपा से वह पूरी तरह से पहले से भी स्वस्थ हो गई। परमात्म��� कबीर साहेब जी ने मेरी माता जी की पाँच वर्ष आयु बढ़ा दी। 24 जुलाई 2005 को सत्य भक्ति करके सतलोक प्रस्थान किया। बोलो बन्दी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय । सत साहेब ।
भक्त रमेश दास मोबाईल नं. 7404438000
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हे! जीव तू परमेश्वर जी का यथार्थ अध्यात्म ज्ञान 'तू' समझ। तू इस मन रूपी काल ब्रह्म माली के 21 ब्रह्मांड रूपी बबूल के बाग में है।
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कबीर, चोरी जारी वैश्या वृति, कबहु ना करयो को ।
पुण्य पाई नर देही, ओच्छी ठौर न खोए ।।
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तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहा आस ऐहो आधार ।
नानक नीच कहै बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।
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नाम दीक्षा लेकर सिमरन करने वाले को उस समय प्रभाव दिखेगा जब उसके अंदर के सब परपंच समाप्त हो जाएंगे।
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