#एपीजेअब्दुलकलाम
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Happy Birthday, Dr. APJ Abdul Kalam! Today, we celebrate the incredible legacy of a visionary leader, an inspiring scientist, and a true champion of education. Your unwavering dedication to the progress of India and your passion for empowering the youth continue to inspire millions. May your dreams for a brighter future guide us as we strive to reach new heights. Thank you for your wisdom, humility, and the light you bring to our lives. Here’s to honoring your remarkable journey and the profound impact you’ve made. #APJAbdulKalam #AbdulKalam #APJ #APJAbdulKalamBirthday #StudentsDay #एपीजेअब्दुलकलाम #DrAbdulKalam #Inspiration #VisionaryLeader #ScienceAndEducation
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सपनों की शक्ति
Dreams boost energy…. सपने देखने का महत्व हमारे जीवन को एक दिशा और प्रेरणा प्रदान करता है। आइए इसे उदाहरणों के माध्यम से समझते हैं। “सपने वो नहीं जो आप सोते समय देखते हैं, सपने वो हैं जो आपको सोने नहीं देते।” – डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ✨ यह उदाहरण बताता है कि असली सपने वही होते हैं जो हमें मेहनत करने और उन्हें पूरा करने की प्रेरणा देते हैं। सर्वेक्षण से उदाहरण: Harvard Business Review के एक…
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जब पढ़ाई के लिए एपीजे अब्दुल कलाम को बेचना पड़ा था अखबार, इतना संघर्षभरा था उनका राष्ट्रपति बनने तक का सफर
चैतन्य भारत न्यूज भारत के मिसाइलमैन के नाम से प्रसिद्ध देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की आज जयंती है। अब्दुल कलाम का जन्म दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के रामेश्वरम में 15 अक्टूबर 1931 को एक गरीब परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम अवुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम था। वे देश के 11वें राष्ट्रपति थे। इस खास दिन जानते हैं डॉ. कलाम के संघर्ष के बारे में- (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
डॉ. कलाम का परिवार नाव बनाने का काम करता था। उनके पिता नाव मछुआरों को किराए पर दिया करते थे। बचपन से ही डॉ. कलाम बड़ा व्यक्ति बनना चाहते थे और अपनी खास पहचान बनाना चाहते थे। हालांकि बचपम में परिस्थियां इतनी अच्छी नहीं थी। स्कूल से लौटने के बाद वे कुछ देर तक अपने बड़े भाई मुस्तफा कलाम की दुकान पर भी बैठते थे, जो कि रामेश्वरम रेलवे स्टेशन पर थी। उनके भाई को घर-घर अखबार पहुंचाने वाले एक व्यक्ति की जरुरत थी, जिसके बाद कलाम साहब ने वह जिम्मेदारी निभाई और अपनी पढ़ाई का खर्च निकाला। इन हालातों के सामने भी उन्होंने कभी अपने सपनों को टूटने नहीं दिया।
डॉ. कलाम ने साल 1950 में इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए त्रिची के सेंट जोसेफ कालेज में एडमिशन लिया। फिर उन्होंने बीएससी की डिग्री ली और फिर मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की। इसके बाद कलाम साहब ने दिल्ली आकर एक जगह वैज्ञानिक के पद पर नौकरी की, जहां वे विमान बनाने का काम करते थे। फिर डॉ. कलाम को ’वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान’ के केन्द्र बंगलुरू में भेज दिया गया। वहां उनकी जिम्मेदारी स्वदेशी हावरक्राफ्ट बनाने की की, जो बेहद मुश्किल मानी जाती थी। लेकिन कलाम साहब ने यह भी कर दिखाया। हावरक्राफ्ट बनाकर उन्होंने और उनके सहयोगियों ने उसमे पहली उड़ान भरी। तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्णमेनन ने इस काम के लिए डॉ. कलाम की खूब तारीफ की।
फिर डॉ. कलाम ने ‘इंडियन कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च’ में इंटरव्यू दिया, जहां उनका इंटरव्यू विक्रम साराभाई ने लिया और वह रॉकेट इंजीनियर के पद पर सेलेक्ट हो गए। यहां से उनके ख्वाब को पंख मिले और फिर उन्हें नासा भेजा गया। नासा से लौटने के बाद डॉ. कलाम को भारत के पहले रॉकेट को आसमान तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मिली और उन्होंने इस जिम्मेदारी को भी पूरा कर लिया। भारत के सबसे पहले उपग्रह ‘नाइक अपाची’ ने उड़ान भरी। रोहिणी रॉकेट ने उड़ान भरी और स्वदेशी रॉकेट के दम पर भारत की पहचान पूरी दुनिया में बन गई। उन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें भी भारतीय तकनीक से बनाईं।
वैज्ञानिक और इंजीनियर डॉ. कलाम ने 2002 से 2007 तक 11वें राष्ट्रपति के रूप में देश की सेवा की। उन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण, पद्म विभूषण और भारत रत्न से भी सम्मानित किया है। 27 जुलाई, 2015 को डॉ. कलाम का शिलॉंग में निधन हो गया था। जब वे आईआईएम शिलॉन्ग में लेक्चर देने गए थे, तभी दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था। उनके निधन के बाद सात दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा भी की गई थी।
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भारत के करोड़ों युवाओं के महान प्रेरणा पुरुष, भारत की परमाणु शक्ति के प्रेरक महान वैज्ञानिक, मिसाइलमैन नाम से प्रख्यात, भारत रत्न, पूर्व राष्ट्रपति
डॉ० एपीजे अब्दुल कलाम
पुण्यतिथि पर शत-शत नमन
नवाब सतपाल तंवर
भीम सेना चीफ
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ये हैं देश के सबसे 'असफल उम्मीदवार', अब तक हार चुके हैं 170 चुनाव, इस बार भी लड़ेंगे
चैतन्य भारत न्यूज। धर्मपुरी। आमतौर पर चुनाव जीतने के लिए ही लड़ा जाता है, लेकिन एक शख्स ऐसे भी हैं जिसने हारने में महारथ हासिल की है। तमिलनाडु के सलेम के रहने वाले डॉ. पद्मराजन ने साल 1988 में पहली बार चुनाव लड़ने के लिए मैदान में कदम रखा, लेकिन इसमें उन्हें जीत हासिल नहीं हुई, लेकिन इसके बाद भी उनका जज्बा कम नहीं हुआ। इसके बाद वह लगातार चुनावी दंगल में उतरते रहे और हारते रहे।डॉ. के पद्मराजन अभी तक 170 चुनाव लड़कर हार चुके हैं। उन्होंने आगामी चुनाव के लिए धर्मपुरी सीट से अपना अगला नामांकन दाखिल किया है। देना चाहते हैं संदेश पत्रकारों को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि वह इस बार भी नामांकन दाखिल कर रहे हैं। उन्होंने कहा इसके पीछे कारण है कि वह यह संदेश देना चाहते हैं कि कोई भी किसी भी चुनाव में लड़ सकता है। पद्मराजन पेशे से होम्योपैथिक डॉक्टर थे और बाद में वह बिजनस करने लगे। इनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में 'भारत के सबसे असफल उम्मीदवार' के रूप में भी दर्ज हो चुका है। इन दिग्गजों के खिलाफ भी लड़ चुके हैं चुनाव... अटल बिहारी वाजपेयी प्रणव मुखर्जी मनमोहन सिंह एपीजे अब्दुल कलाम जयललिता Read the full article
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