#एकादशी व्रत कथा पूजा विधि एवं महत्व
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*🪷कामिका एकादशी महत्व एवं पूजा विधि और कामिका एकादशी व्रत कथा🪷*
सनातन धर्म में सावन माह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को कामिका एकादशी मनाई जाती है। इस साल 31 जुलाई बुधवार को कामिका एकादशी है। यह विशेष दिन श्रीहरि विष्णुजी को समर्पित माना जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं होता है और व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलता है। यह चातुर्मास महीने की पहली एकादशी होती है।
कहा जाता है कि कामिका एकादशी का व्रत रखने से साधक पर विष्णुजी की कृपा बनी रहती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पूजा का शुभ मुहूर्त : इस दिन सुबह 05 बजकर 32 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 32 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त बन रहा है। इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग में कामिका एकादशी मनाई जाएगी।
व्रत के दिन स्नानादि के बाद साफ और स्वच्छ कपड़े धारण करें।
विष्णुजी का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद छोटी चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं। चौकी पर विष्णुजी और मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। अब मां लक्ष्मी और विष्णुजी के समक्ष दीपक जलाएं। उन्हें फल, फूल, धूप, दीप और नेवैद्य अर्पित करें। विष्णुजी की आरती उतारें और उनके मंत्रों का जाप करें। तत्पश्चात कामिका एकादशी की व्रत कथा पढ़ें। अंत में सभी देवी-देवताओं की आरती उतारें और पूजा समाप्त करें।
कामिका एकादशी का व्रत हरि विष्णु जी को समर्पित है। कामिका एकादशी का महत्व इसलिए भी अधिक रहता है क्योंकि, यह सावन मास में आती है। कामिका एकादशी सावन मास में आने वाली पहली एकादशी है। इसलिए कामिका एकादशी के दिन पद्म पुराण में बताए गए उपाय अपनाने से व्यक्ति को भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही यह उपाय मोक्ष दिलाने वाले और धन संपत्ति लाभ दिलाने वाले हैं। कामिका एकादशी के यह उपाय मोक्ष दिलाने के साथ ही सुख समृद्धि भी बढ़ाएंगे।
*सावन में कामिका एकादशी पर करें ये 6 उपाय, धन संपत्ति से होंगे मालामाल*
पद्मपुराण के अनुसार, कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा तुलसी की मंजरी से करें ऐसे करने से जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। यमलोक नहीं जाना पड़ता है।
कामिका एकादशी पर पूजा के समय तिल के तेल से या घी का दीपक भगवान विष्णु को दिखाएं। पद्मपुराण के अनुसार, इस उपाय से पितृ लोक में पितृ संतुष्ट होते हैं और पितरों की कृपा प्राप्त होती है।
*मोक्ष के लिए करें ये उपाय*
इसके अलावा कामिका एकादशी पर आप गौसेवा करें गौमाताओं को भोजन कराएं एवं श्री कृष्ण की लीलाओं का पाठ करें। इसके अलावा विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु चालीसा का पाठ करें ऐसा करने से आपको मोक्ष मिलती है।
एकादशी के दिन तुलसी पीढ़ा को मिट्टी से लेपें। साथ ही तुलसी माता को दीपक दिखाना चाहिए और तुलसी पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य पाप मुक्त होता है और उन्हें सुखों समृद्धि की प्राप्ति होती है।
*कामिका एकादशी पर धन संपत्ति के लिए करें ये उपाय*
एकादशी के दिन गौमाताओं के निमित्त कुछ न कुछ दान अवश्य करें गौसेवा करने से धन संपत्ति में वृद्धि होती है। यदि किसी के जीवन में आर्थिक दिक्कतें चल रही हैं तो वह भी समाप्त हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त घर मे हल्दी मिलाकर जल का छि��़काव करें और स्वास्तिक बनाएं ऐसे करने से घर मे देवी लक्ष्मी का वास होता है।
*कामिका एकादशी पर आरोग्य प्राप्ति के लिए उपाय*
कामिका एकादशी सावन की पहली एकादशी होती है। भगवान विष्णु के पूजन के साथ ही भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए ऐसे करने से आरोग्य और धन वैभव की प्राप्ति होती है।
*🪷 कामिका एकादशी व्रत कथा 🪷*
एक गाँव में एक वीर क्षत्रिय रहता था। एक दिन किसी कारण वश उसकी ब्राह्मण से हाथापाई हो गई और ब्राह्मण की मृत्य हो गई। अपने हाथों मरे गये ब्राह्मण की क्रिया उस क्षत्रिय ने करनी चाही। परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया। ब्राह्मणों ने बताया कि तुम पर ब्रह्म-हत्या का दोष है। पहले प्रायश्चित कर इस पाप से मुक्त हो तब हम तुम्हारे घर भोजन करेंगे।
इस पर क्षत्रिय ने पूछा कि इस पाप से मुक्त होने के क्या उपाय है। तब ब्राह्मणों ने बताया कि श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भक्तिभाव से भगवान श्रीधर का व्रत एवं पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराके सदश्रिणा के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने से इस पाप से मुक्ति मिलेगी। पंडितों के बताये हुए तरीके पर व्रत कराने वाली रात में भगवान श्रीधर ने क्षत्रिय को दर्शन देकर कहा कि तुम्हें ब्रह्म-हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई है।
इस व्रत के करने से ब्रह्म-हत्या आदि के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इहलोक में सुख भोगकर प्राणी अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं। इस कामिका एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं।
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षटतिला एकादशी- इस व्रत से दूर होती है दुख-दरिद्रता
माघ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक एकादशी व्रत का अपना एक विशेष महत्व होता है और इस दिन व्रत करने के साथ दान-पुण्य करना बेहद लाभकारी माना गया है। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत बहुत ही खास माना जाता है। हर महीने 2 एकादशी और एक साल में कुल 24 एकादशी आती हैं। इस दिन भगवान विष्णु के पूजन का विधान है। आइये जानते हैं क्या है षटतिला एकादशी और क्या है इसका महत्व ?
षटतिला एकादशी कब है ?
इस साल षटतिला एकादशी 6 फरवरी 2024, मंगलवार को मनाई जाएगी। षटतिला एकादशी के दिन पूजन में व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती कर पारण के समय तिल का दान करें। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ति होती है। इस व्रत को रखने से मनुष्यों को अपने बुरे पापों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में यह भी बताया है कि केवल षटतिला एकादशी का व्रत रखने से वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त होता है।
षटतिला एकादशी का महत्व
षटतिला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की श्रद्धा पूर्वक पूजा करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और वैभव बना रहता है। षटतिला एकादशी का व्रत रखने से वैवाहिक जीवन सुखमय और खुशहाल बनता है। इसके अलावा इस व्रत की कथा सुनने एवं पढ़ने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि षटतिला एकादशी के दिन अन्न दान करने का बहुत महत्व माना जाता है। इस दिन ब्राह्मण को एक भरा हुआ घड़ा, छतरी, जूतों का जोड़ा, काले तिल और उससे बने व्यंजन और वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।
क्यों कहा जाता है इसे षटतिला एकादशी ?
षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व है। इस व्रत में तिल का छः तरीके से इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसे षटतिला एकादशी कहा जाता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत करने से स्वर्ण-दान से मिलने वाले पुण्य के समान ही पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन तिल का अत्यंत महत्व है। इस दिन तिल के जल से स्नान करते हैं, तिल का ��बटन लगाया जाता है, तिल से हवन किया जाता है। इसके अलावा तिल का भोजन में इस्तेमाल करते हैं, तिल से तर्पण करते हैं और तिल का दान करते हैं। महंत श्री पारस जी ने कहा है कि एकादशी तिथि के दिन पूजा-पाठ करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है और उन्हें सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
एकादशी पूजा विधि
एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके उपरांत मंदिर की सफाई कर मंदिर में गंगाजल छिड़कें। चौकी पर पूजा स्थल में पीला वस्त्र बिछाएं और इस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान विष्णु को धूप, दीप अर्पित करें।
भगवान विष्णु के सामने तुलसी दल जरूर चढ़ाएं। साथ ही कुमकुम, पीला फूल, पीला चंदन और भोग में पीले रंग की मिठाई और फल के साथ तिल-गुड़ के लड्डू चढ़ाएं। व्रत के दौरान क्रोध, ईर्ष्या आदि जैसे विकारों का त्याग करके फलाहार का सेवन करना चाहिए। साथ ही रात्रि जागरण भी करना चाहिए।
अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी इस दिन शुभ माना जाता है। अंत में पूजा समाप्त करने के पश्चात प्रसाद का वितरण करें।
तिल एवं गुड़ के दान का महत्व
महंत श्��ी पारस भाई जी ने कहा कि जो व्यक्ति षटतिला एकादशी के दिन तिल एवं गुड़ का दान करते हैं, उन्हें मोक्ष मिलता है। ऐसी भी मान्यता है कि षटतिला एकादशी के दिन पितरों का तिल-तर्पण करने से उन्हें सद्गति की प्राप्ति होती है। साथ ही ये भी माना जाता है कि षटतिला एकादशी के दिन व्यक्ति जितने तिल का दान करता है, उतने हजार वर्ष तक बैकुंठलोक में सुख पूर्वक रहता है। महंत श्री पारस भाई जी ने आगे बताया कि जो भी इस दिन तिल का छह तरह से उपयोग करता है उसे कभी धन की कमी नहीं होती और आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।
षटतिला एकादशी की व्रत-कथा
प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण की विधवा पत्नी थी। वह भगवान विष्णुजी की अनन्य भक्त थी। वह उनकी प्रतिदिन पूजा करती थी। उसने विष्णुजी का आशीर्वाद पाने के लिए एक महीने तक उपवास किया। ऐसा करने पर उसका तन-मन शुद्ध हो गया लेकिन उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं खिलाया, न ही कभी देवताओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान किया। इसलिए ब्राह्मण-भोज का महत्व बताने के लिए षटतिला एकादशी को ब्राह्मण रूप में विष्णुजी महिला के पास गए और उससे भिक्षा मांगी। उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं कराया और दान में एक मिट्टी का ढेला दिया।
जब उसकी मृत्यु हुई तो वह बैकुंठधाम तो गई लेकिन वहां उसे एक खाली झोपड़ी मिली। यह सब देखकर उसने सोचा कि वह तो श्रद्धा भाव से विष्णुजी की पूजा करती थी लेकिन उसे खाली झोपड़ी क्यों मिली। इसके बाद विष्णुजी महिला के पास पहुंचे और उसको कारण बताया कि उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं कराया था। तब उस दुखी महिला ने भगवान विष्णुजी से इसका हल पूछा। उसकी ब���त सुनकर विष्णुजी ने उसे षटतिला एकादशी व्रत क���ने के बारे में बताया। महिला ने विष्णुजी की बात सुनकर श्रद्धा भाव और नियम से व्रत किया। उसकी पूजा से विष्णुजी खुश हुए और उन्होंने कहा कि षटतिला एकादशी के दिन जो भी व्यक्ति इस व्रत को करेगा और ब्राह्मणों को दान देगा तब उसे मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होगी एवं जीवन में सुख-शांति का वास होगा। इस दिन तिल का दान करने से रोग, दोष और भय से छुटकारा मिलता है। साथ ही इस दिन तिल का दान करने से अनाज की कभी कमी नहीं होती है और इस व्रत के प्रभाव से दुख-दरिद्रता दूर होती है।
ॐ श्री विष्णवे नम: … “पारस परिवार” की ओर से षटतिला एकादशी की ढेर सारी शुभकामनाएं !!!!
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रमा एकादशी व्रत कथा पूजा विधि एवं महत्व | Rama Ekadashi Vrat Katha 11 No...
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षट्तिला एकादशी के व्रत-पूजन, तिल-अन्न दान से सभी सुखों की प्राप्ति
माघ कृष्ण पक्ष की एकादशी को षट्तिला एकादशी कहते हैं। इस एकादशी में तिल को जल में मिलाकर स्नान और तिल का दान व तिल मिश्रित हवन सामग्री से यज्ञ करने का विशेष महत्व है। पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी रहती थी, जिसके पति की असमय मृत्यु हो गयी थी। वह ब्राह्मणी सदैव पूजा-पाठ, व्रत-तपस्या में लीन रहती थी, जिससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया। यद्यपि वह अत्यंत बुद्धिमान थी फिर भी उसने कभी देवताओं व ब्राह्मणों के निमित्त अन्न-धन का दान नहीं किया था। उसके कल्याण के निमित्त एक बार स्वयं भगवान विष्णु गरीब ब्राह्मण का वेष बनाकर उसके घर भिक्षा मांगने गये। उस ब्राह्मणी ने भिक्षुक को भिक्षा में मिट्टी का ढेला दिया। कुछ समय बाद उस ब्राह्मणी की मृत्यु हो गयी।
मृत्यु के बाद उसके पूजा-पाठ, व्रत-तपस्या के प्रभाव से स्वर्ग में उसे एक सुंदर महल मिला लेकिन अन्नदान व धनदान न करने से वह महल अन्न-धन आदि सामग्रियों से रिक्त था। घबराकर वह भगवान विष्णु के पास गई और इसका कारण पूछा, भगवान विष्णु ने कहा पूर्व जन्म में तुमने अन्न-धन का दान नहीं किया, जिससे तुम्हें स्वर्ग में ख���ली महल की प्राप्ति हुई है। अब मैं तुम्हें उपाय बताता हूं। जब तुम्हारे महल में तुमसे मिलने देवताओं की स्त्रियां आयें तो महल का दरवाजा खोलने से पहले तुम उनसे षट्तिला एकादशी के व्रत की विधि और महत्व पूछना तभी दरवाजा खोलना। भगवान विष्णु के कहने पर उस ब्राह्मणी ने ऐसा ही किया। देवताओं की स्त्रियों से षट्तिला एकादशी व्रत की विधि और महत्व को जानकर उसने विधिवत व्रत-पूजन और दान किया जिसके प्रभाव से स्वर्ग में उसका महल अन्न-धन और सभी सुख की सामग्रियों से परिपूर्ण हो गया।
परमपूज्य सद्गुरुदेव श्री सुधांशुजी महाराज की कृपा से आप सभी की धार्मिक निष्ठा की पूर्ति में समर्पित ‘‘युगऋषि पूजा एवं अनुष्ठान केन्द्र’’ द्वारा आनन्दधाम आश्रम, नई दिल्ली में षट्तिला एकादशी पर किए जाने वाले मन्त्रनुष्ठानों का लाभ प्राप्त करके अपने जीवन को धन्य बनाएं।
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जय जय श्री राधे राधे
❤️❤️❤️❤️❤️❤️
श्री भक्ति ग्रुप मंदिर ग्रुप के सभी सदस्यों को निर्जला एकादशी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ 🌹🙏🌹
( ❤️निर्जला_एकादशी ❤️)
निर्जला एकादशी व्रत 21, जून 2021, व्रत के नियम, पूजा विधि व कथा❗
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती है। यही कारण है कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि एकादशी व्रत रखने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। व्रती सभी सुखों को भोगकर अंत में मोक्ष को जाता है।
हर माह में दो एकादशी तिथि आती हैं। एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में।
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 21 जून दिन सोमवार को पड़ रही है। इस दिन शिव योग के साथ सिद्धि योग भी बन रहा है। शिव योग 21 जून को शाम 05 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। इसके बाद सिद्धि योग लग जाएगा।
🌿 एकादशी व्रत नियम-🌺
निर्जला एकादशी व्रत में जल का त्याग करना होता है। इस व्रत में व्रती पानी का सेवन नहीं कर सकता है। इसीलिए इस व्रत को निर्जला एकादशी व्रत कहते हैं, व्रत का पारण करने के बाद ही व्रती जल का सेवन कर सकता है।
🌿 एकादशी पूजा विधि-🌺
1 = सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
2 = घर के मंदिर में शुद्ध देशी घी का दीप प्रज्वलित करें।
3 = यदि घर में भगवान विष्णु की प्रतिमा है तो भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें,यदि
चित्र है तो गंगाजल के छीटे मारें ।
4 = भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
5 = अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
6 = भगवान की आरती करें।
7 = भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
8 = भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
9 = इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
10 = इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
💥 ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी भीमसेनी/ पांडव एकादशी व्रत कथा 🌷
भीमसेन व्यासजी से कहने लगे कि हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सब एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, परंतु महाराज मैं उनसे कहता हूं कि भाई मैं भगवान की शक्ति पूजा आदि तो कर सकता हूं, दान भी दे सकता हूं परंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता।
इस पर व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रति मास की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो। भीम कहने लगे कि हे पितामह! मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता। यदि वर्षभर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूं, क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि है सो मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह शांत रहती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक समय भी बिना भोजन किए रहना कठिन है।
अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए।
श्री व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।
व्यासजी के वचन सुनकर भीमसेन नरक में जाने के नाम से भयभीत हो गए और कांपकर कहने लगे कि अब क्या करूं? मास में दो व्रत तो मैं कर नहीं सकता, हां वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता हूं। अत: वर्ष में एक दिन व्रत करने से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए।
यह सुनकर व्यासजी कहने लगे कि वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।
यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे सारी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों का दान आदि देना चाहिए। इसके पश्चात भूखे और सत्पात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर आप भोजन कर लेना चाहिए। इसका फल पूरे एक वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है।
व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यह मुझको स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से अधिक है। केवल एक दिन मनुष्य निर्जल रहने से पापों से मुक्त हो जाता है।।
जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उनकी मृत्यु के समय यमदूत आकर नहीं घेरते वरन भगवान के पार्षद उसे पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। अत: संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। इसलिए यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिए। उस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और गौदान करना चाहिए।
इस प्रकार व्यासजी की आज्ञानुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि हे भगवन! आज मैं निर्जला व्रत करता हूं, दूसरे दिन भोजन करूंगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूंगा, अत: आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हो जाएं। इस दिन जल से भरा हुआ एक घड़ा वस्त्र से ढंक कर स्वर्ण सहित दान करना चाहिए।
जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको करोड़ पल सोने के दान का फल मिलता है और जो इस दिन यज्ञादिक करते हैं उनका फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, वे चांडाल के समान हैं। वे अंत में नरक में जाते हैं।
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❉‼श्री‼❉
❉🌹Զเधे Զเधे🌹❉
💝꧁"श्री राधा विजेयते नमः"꧂💝
🙏। श्रीमत्कुंजविहारिणेनमः। 🙏
🙏।।श्रीजी दास।।🙏
🌹𝓙𝓪𝓲 𝓑𝓲𝓱𝓪𝓻𝓲 𝓙𝓲 𝓚𝓲 🌹
🙏ℐᗅⅈ Տℍℛⅈ ℛᗅⅅℍℰ ℛᗅⅅℍℰ 🙏
💝 आप सभी स्वास्थ रहें 💝
🦚🌈 श्री भक्ति ग्रुप मंदिर 🦚🌈
🙏🌹🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏🌹🙏
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. दिनांक 11.12.2020 दिन शुक्रवार तदनुसार संवत् २०७७ मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आनेवाली है :-👇 "उत्पन्ना एकादशी" हिन्दू धर्म में एकादशियों का बड़ा महत्व है, यह दिन मात्र एक अवसर होने की बजाय एक पर्व का रूप भी धारण कर लेता है। इस दिन हिन्दू धर्म के लोग भगवान की पूरे विधि अनुसार पूजा करते हैं, उनके नाम का व्रत करते हैं तथा एकादशी के अनुकूल वरदान पाते हैं, ऐसी मान्यता प्रचलित है। हिन्दू धर्म में कुल 24 एकादशियां मानी गई हैं, जो यदि मलमास हो तो बढ़कर 26 हो जाती हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक माह दो एकादशियाँ आती हैं, एक शुक्ल पक्ष की और दूसरी कृष्ण पक्ष की। पिछली बार हमने देवोत्थान एकादशी पर चर्चा की थी इसी क्रम में आज चर्चा करते हैं आगामी मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की 'उत्पन्ना एकादशी" की। जानें इस एकादशी का महत्व एवं कैसे करें व्रत तथा पूजनके विषय मे। परिचय यह सभी जानते हैं कि एकादशी को व्रत करके भगवान का पूजन किया जाता है, लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि उत्पन्ना एकादशी से ही व्रत करने की प्रथा आरंभ हुई थी। इस एकादशी से जुड़ी कथा बेहद रोचक है, कहते हैं कि सतयुग में इसी एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ था। इस देवी ने भगवान विष्णु के प्राण बचाए, जिससे प्रसन्न होकर विष्णु ने इन्हें देवी एकादशी नाम दिया। उत्पन्ना देवी के जन्म के पीछे एक पौराणिक कथा इस प्रकार हैं- मुर नामक ��क असुर हुआ करता था, जिससे युद्घ करते हुए भगवान विष्णु काफी थक गए थे, और मौका पाकर बद्रीकाश्रम में गुफा में जाकर विश्राम करने लगे। परन्तु मुर असुर ने उनका पीछा किया और उनके पीछे-पीछे चलता हुआ बद्रीकाश्रम पहुंच गया। जब वह पहुंचा तो उसने देखा कि श्रीहरि विश्राम कर रहे हैं, उन्हें निद्रा में लीन देख उसने उनको मारना चाहा तभी विष्णु भगवान के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ और इस देवी ने मुर का वध कर दिया। देवी के कार्य से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने कहा कि देवी तुम मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्न हुई हो अतः तुम्हारा नाम "उत्पन्ना एकादशी" होगा। तथा भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया और कहा कि आज से प्रत्येक एकादशी को मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी। जो भी भक्त एकादशी के दिन मेरे साथ तुम्हारा भी पूजन करेगा और व्रत करेगा, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। #UtpannaEkadashi #RadheRadheje https://www.instagram.com/p/CInI55FAM0K/?igshid=1fo3odfq0a9dc
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#एकादशी के व्रत को सभी व्रत में श्रेष्ठ माना जाता है । इस दिन योग्य ब्राह्मणो को यथा शक्ति दान दक्षिणा भी देना चाहिए । इस व्रत को करने से समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं और भगवान श्री हरि विष्णु और माँ लक्ष्मी अति प्रसन्न होते हैं। जातक को जीवन में धन, यश, आरोग्य, विघा, योग्य पुत्र , पारिवारिक सुख, ऐश्वर्य तथा मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है और अंत में वह विष्णु लोक को जाता है। 🌾🍃🌾🍃🌾🍃🌾🍃🌾🍃🌾🍃🌾🍃🌾🍃🌾 www.astroshaliini.in astroshaliini.wordpress.com यह भी मान्यता है कि श्रावण मास में भगवान विष्णुजी की पूजा करने से, सभी गन्धर्वों और नागों की भी पूजा हो जाती है| श्री विष्णुजी को यदि संतुष्ट करना हो तो उनकी पूजा तुलसी पत्र से करें| ऐसा करने से ना केवल प्रभु प्रसन्न होंगे बल्कि आपके भी सभी कष्ट दूर हो जाएंगे| कामिका एकादशी व्रत की कथा सुनना यज्ञ करने के समान है| 🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍁 व्रत-विधि ===== 🍀🌻🍀🌻🍀🌻🍀🌻🍀🌻🍀 एकादशी तिथि पर स्नानादि से निवृत्त होकर पहले संकल्प लें और श्री विष्णु के पूजन-क्रिया को प्रारंभ करें| प्रभु को फल-फूल, तिल, दूध, पंचामृत आदि निवेदित करें| आठों पहर निर्जल रहकर विष्णुजी के नाम का स्मरण करें एवं भजन-कीर्तन करें। इस दिन ब्राह्मण भोज एवं दान-दक्षिणा का विशेष महत्व होता है| अत: ब्राह्मण को भोज करवाकर दान-दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करें। ASTROSHALIINI.WORDPRESS.COM astroshaliini.blogspot.com #remedialpathmakinglifeeeasy #astroshaliini#upay www.facebook.com/astroshaliini #vedicastrology #quotesdaily06 #numerology# #chakra#vedicastrologer #vastushastratips#astrologer #tips #mantras #astrologyremedy #zodiacsigns #zodiac #hindiquotes #astrologyposts (at ASTRO Shaliini Malhottra) https://www.instagram.com/p/CCqm5YNlk7s/?igshid=11s9uxy6854x8
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MANAN KARNE YOGY Ekadashi Katha:
*🍁 श्री विजया एकादशी मुहुर्त महत्व एवं कथा🍁*
पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 6 मार्च को सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर प्रारंभ हो रही है। यह तिथि 7 मार्च को सुबह 04:13 बजे समाप्त होगी। ऐसे में विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च, बुधवार को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 6:41 बजे से सुबह 9:37 बजे तक रहेगा। व्रत का परायण अगले दिन यानी 7 मार्च को सूर्योदय के उपरांत किया जाएगा।
*विजया एकादशी व्रत कथा*
धर्मराज युधिष्ठिर बोले - हे जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
श्री भगवान बोले हे राजन् - फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजय प्राप्त होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान कहिए।
ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस विजया एकादश��� की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण किया तब इस समाचार से श्री रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए।
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमानजी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया। ��हाँ से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे।
श्री रामचंद्रजी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र से किनारे पहुँचे तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।
श्री लक्ष्मण ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए। लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए।
मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ? रामचंद्रजी कहने लगे कि हे ऋषे! मैं अपनी सेना सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूँ। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ।
वकदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।
इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण, चाँदी, ताँबा या मिट्टी का एक घड़ा बनाएँ। उस घड़े को जल से भरकर तथा पाँच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के नीचे सतनजा और ऊपर जौ रखें। उस पर श्रीनारायण भगवान की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें। एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें।
तत्पश्चात घड़े के सामने बैठकर दिन व्यतीत करें और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठे रहकर जागरण करें। द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें। हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। श्री रामचंद्रजी ने ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई।
अत: हे राजन्! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, दोनों लोकों में उसकी अवश्य विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था कि हे पुत्र! जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
*महत्व*
विजया एकादशी के दिन भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की होती है पूजा
पद्म और स्कंद पुराण में विजया एकादशी व्रत का बताया गया है महत्व
हिंदू धर्म में सभी एकादशी का अपना-अपना महत्व बताया गया है. इसमें विजया एकादशी का विशेष महत्व. इसी दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की भक्त पर कृपा बनी रहती है. मोक��ष की प्राप्ति होती है. फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष एकादशी को विजया एकादशी मनाई जाती है।
विजया एकादशी, नाम के अनुसार ही इस एकादशी का व्रत करने वाले को जीवन की हर बाधा पर विजय पाने की शक्ति मिलती है. ये एकादशी आपका आत्मबल बढ़ाएगी साथ ही आपको सशक्त बना सकती है.पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी इस व्रत का महत्व बताया गया है. पौराणिक मान्यता है कि प्राचीन काल में कई राजा-महाराजा इसी व्रत के प्रभाव से अपनी निश्चित हार को जीत में बदल लेते थे. कहा जाता है कि विकट से विकट परिस्थिति में भी विजया एकादशी के व्रत से जीत पाई जा सकती है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि व्रतों में सबसे बड़ा व्रत एकादशी का माना जाता है. ज्योतिष के जानकारों के अनुसार इससे आप चन्द्रमा के हर ख़राब प्रभाव को रोक सकते हैं, ग्रहों के बुरे प्रभाव को भी काफी हद तक कम कर सकते हैं.
मान्यता है कि विजया एकादशी के दिन व्रत रखने से हर समस्या का निदान हो जाता है. लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान श्रीराम ने समुद्र के तट पर अपनी पूरी सेना के साथ विजया एकादशी का व्रत रखा था. जिसके प्रभाव से रावण का वध हुआ और भगवान राम को विजय प्राप्त हुई. इस व्रत को सभी पापों का नाश करने वाला माना जाता है. इस एकादशी व्रत का सीधा प्रभाव मन और शरीर पर पड़ता है. इस व्रत से अशुभ संस्कारों को भी नष्ट किया जा सकता है.ज्योतिष के जानकारों की मानें तो विजया एकादशी पर जिस मनोकामना को लेकर आप व्रत का संकल्प लेंगे उसमें आपको विजय मिलेगी.
*पूजा विधि*
1. विजया एकादशी का दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को समर्पित है.
2. इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें.
3. पीले या लाल रंग के वस्त्र को धारण करें.
4. पूजा का मंदिर अच्छे से स्वच्छ कर लें. फिर उसपर सप्त अनाज रखें.
5. इसके बाद वहां पर कलश स्थापित करें. फिर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें.
6. फल, फूल, दीपक, चंदन और तुलसी से भगवान विष्णु की पूजा करें.
7. इसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें.व्रत कथा पढ़ें या सुनें.
8. रात में श्री हरि के नाम का जाप करते हुए जागरण करें.
9. अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन और दान दक्षिणा दें।
10. गौसेवा अवश्य करे गौमाताओं को भोजन कराएं उनके निमित्त गौशाला में भूसा राशन डलवाएं।
विजया एकादशी पर क्या करें और क्या नहीं
तामसिक आहार इस दिन नहीं करें. भगवान विष्णु का ध्यान करके ही दिन की शुरुआत करें. इस दिन मन को ज्यादा से ज्यादा भगवान विष्णु में लगाए रखें. सेहत ठीक ना हो तो उपवास न रखें. केवल व्रत के नियमों का पालन करें. एकादशी के दिन चावल और भारी भोजन न खाएं. विजया एकादशी के दिन रात की उपासना का विशेष महत्व होता है. इस दिन क्रोध नहीं करें, कम बोलें और आचरण पर नियंत्रण रखें।
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भौम प्रदोष व्रत: मंगल दोष होता है शांत, पढ़ें व्रत कथा
भगवान शिव को समर्पित प्रदोष के व्रत का बहुत माहात्म्य है।ऐसा विश्वास है कि इस व्रत को रखने से महादेव प्रसन्न होते है। आज 5 मई दिन मंगलवार को भौम प्रदोष व्रत है। इसे मंगल प्रदोष भी कहा जाता है। मंगल दोष शांत होता है और दरिद्रता का नाश होता है। प्रदोष व्रत की कथा भी काफी पुण्य फल देने वाली मानी जाती है। जिस तरह हर महीने के दोनों पक्षों में एक-एक बार एकादशी का होता है, ठीक उसी प्रकार त्रयोदशी को प्रदोष का व्रत रखा जाता है। यदि इन तिथियों को सोमवार हो तो उसे सोम प्रदोष व्रत कहते हैं, यदि मंगलवार हो तो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं और शनिवार हो तो उसे शनि प्रदोष व्रत व्रत कहते हैं। विशेष कर सोमवार, मंगलवार एवं शनिवार के प्रदोष व्रत अत्याधिक प्रभावकारी माने गये हैं। प्रदोष व्रत से शिव जी अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं। जैसा की नाम से ही जाहिर है किसी भी तरह का दोष हो इस व्रत के करने से वह दोष खंडित हो जाता है। इस व्रत में भगवान शिव की हर दिन की पूजा से अलग-अलग दोष खंडित होते हैं।इस दिन व्रत करने से सर्व कामना की सिद्धि प्राप्त होती है।आइए पढ़ते है भौम प्रदोष व्रत की कथा-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन समय में एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। उसका एक ही पुत्र था। वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की आराधना करती थी। एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची।
हनुमानजी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करे।पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज।हनुमान (वेशधारी साधु) बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे। वृद्धा दुविधा में पड़ गई। अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज। लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी।साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा।यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी। उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया।वेशधारी साधु हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई। आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई।इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले। इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ।लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई। अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी।हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया।
भौम प्रदोष का महत्व:-
दिनों के संयोग के कारण प्रदोष व्रत के नाम एवं उसके प्रभाव में अन्तर हो जाता है। भौम का अर्थ है मंगल और प्रदोष का अर्थ है त्रयोदशी तिथि। मंगलवार यानी को त्रयोदशी तिथि होने से इसको भौम प्रदोष कहा जाता है। इस दिन शिव जी और हनुमान जी दोनों की पूजा करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस दिन शिव जी की उपासना करने से हर दोष का नाश होता है वहीं हनुमान जी की पूजा करने से शत्रु बाधा शांत होती है और कर्ज से छुटकारा मिलता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन उपवास करने से गोदान के बराबर फल मिलता है और उत्तम लोक की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत करने वाले स्त्री-पुरुषों को व्रत के एक दिन पहले सायंकाल नियम पूर्वक व्रत ग्रहण करना चाहिए। व्रत के दिन प्रात: काल स्नान करके संकल्पपूर्वक दिन भर उपवास करना चाहिए। प्रदोष काल में मंदिर या घर में विधि पूर्वक पूजा करनी चाहिए।
शिव भक्तों में भौम प्रदोष व्रत का काफी महत्व है। इस व्रत से से हजारों यज्ञों को करने का फल प्राप्त होता है। इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है और दरिद्रता का नाश होता है। संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का काफी महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इससे संतान की इच्छा रखने वालों के संतान की प्राप्ति होती है।
ऐसे करें पूजा:-
प्रदोष व्रत में प्रसाद, फूलमाला, फल, विल्वपत्र आदि लाकर यदि संभव हो तो पति-पत्नी एक साथ बैठकर शिव जी का पूजन करें। ईशान कोण में शिव जी की स्थापना करें। कुश के आसन पर बैठकर शिव जी के मन्त्रों का जाप करें। यदि मंत्र का ज्ञान ना हो तो ॐ नम: शिवाय का उच्चारण करते हुए पूजन करें। पूजन के उपरांत शुद्ध सात्विक आहार ग्रहण करें। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसी दिन मंगल दोष की समस्या से मुक्ति के लिए शाम को हनुमान जी के सामने चमेली के तेल का दीप��� जलाएं। हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए सुन्दरकाण्ड का पाठ करके उनसे मंगल दोष की समाप्ति की प्रार्थना करें। भौम प्रदोष पर प्रातःकाल लाल वस्त्र धारण करके हनुमान जी की उपासना करनी चाहिए। उनको लाल फूलों की माला चढ़ाकर दीपक जलायें और गुड़ का भोग लगायें। इसके बाद संकटमोचन हनुमानाष्टक का 11 बार पाठ करें। अंत में हलवा पूरी का भोग लगाएं।
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वरुथिनी एकादशी 18 अप्रैल को, इस दिन व्रत करने से मिलता है 10 हजार साल तक तपस्या करने के बराबर फल मिलता है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी वरूथिनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है, जो इस वर्ष 18 अप्रैल दिन शनिवार को है। वरूथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना विधि विधान से की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वरूथिनी एकादशी का व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को 10 हजार वर्षों तक की तपस्या का फल और पुण्य प्राप्त होता है, साथ ही व्यक्ति के समस्त पापों का नाश हो जाता है। आइए जानते हैं कि इस वर्ष वरूथिनी एकादशी के व्रत एवं पूजा का मुहूर्त, मंत्र, विधि, पारण समय एवं महत्व क्या है? वरूथिनी एकादशी मुहूर्त वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का प्रारंभ 17 अप्रैल 2020 दिन शुक्रवार शाम 08 बजकर 03 मिनट पर हो रहा है, जो 18 अप्रैल 2020 दिन शनिवार को रात 10 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगा। ऐसे में वरूथिनी एकादशी का व्रत शनिवार को रखा जाएगा। व्रत का पारण समय पारण करने का समय 19 अप्रैल 2020 दिन रविवार को सुबह 05 बजकर 51 मिनट से सुबह 08 बजकर 27 मिनट तक है। आपको इस समय काल में ही पारण कर व्रत को पूर्ण करना है। व्रत एवं पूजा विधि एकादशी के दिन प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद स्वच्छ कपड़े पहनकर हाथ में जल और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें। सुबह 07:29 बजे से 09:06 बजे के मध्य पूजा संपन्न करें। यह फलदायी और मंगलकारी होगा। पूजा स्थान पर एक ��ौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें। अब शुभ समय में उनका गंगा जल से अभिषेक कराएंं। अब उनको पीले फूल, अक्षत्, धूप, चंदन, रोली, दीप, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि अर्पित करें। इसके बाद श्रीहरि को पीले मिष्ठान या चने की दाल तथा गुड़ का भोग लगाएं। इसके बाद आप विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। फिर नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें। शांता कारम भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम। विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम। लक्ष्मीकान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म। अब भगवान विष्णु की आरती करें। इसके पश्चात दिनभर फलाहार करते हुए भगवत वंदन करें। रात्रि में श्री हरि कथा का पाठ, भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें। अगले दिन द्वादशी को भगवान विष्णु की पूजा करें। ब्राह्मण को दान दक्षिणा दें। फिर पारण के समय में पारण कर व्रत को पूरा करें। व्रत में क्या करें, क्या न करें 1- एकादशी व्रत में नमक का प्रयोग भूलकर भी न करें। 2- व्रत करने वाले को काम भाव और भोग विलास से स्वयं को दूर रखना चाहिए। 3- व्रत में मन, कर्म और वचन से शुद्ध रहे (at मां मंशा देवी एवं मां चंडी देवी दर्शन देवभूमि हरिद्वार) https://www.instagram.com/p/B_GS_UHg6DA/?igshid=4omw1fsocvxu
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Mokshada Ekadashi 2021: मोक्षदा एकादशी व्रत कथा पूजा विधि एवं महत्व | Mokshada Ekadashi Vrat Katha https://youtu.be/3onQm1MZ34o @भक्ति आस्था
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भीष्म द्वादशी व्रत से मिलता है सौभाग्य, इस विधि से करें भगवान विष्णु की पूजा
चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धर्म में माघ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि का काफी महत्व है। इस तिथि को भीष्म द्वादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि भीष्म तिथि का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सुख व समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस बार भीष्म द्वादशी 6 फरवरी को पड़ रही है। आइए जानते हैं भीष्म द्वादशी का महत्व और पूजन-विधि। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
भीष्म द्वादशी का महत्व शास्त्रों के मुताबिक, इस दिन व्रत करने से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है और यदि संतान है तो उसकी प्रगति होती है। इसके साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण होकर सुख-समृद्धि मिलती है। भीष्म द्वादशी को गोविंद द्वादशी भी कहते हैं। यह व्रत सब प्रकार का सुख वैभव देने वाला होता है। इस दिन उपवास करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस दिन भीष्म पितामह के साथ भगवान विष्णु की पूजा करें।
भीष्म द्वादशी पूजन-विधि भीष्म द्वादशी के दिन सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें। भीष्म द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की भी पूजा करें। पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुंकुम, दूर्वा का उपयोग करें। इसके बाद भीष्म द्वादशी की कथा सुनें। देवी लक्ष्मी समेत अन्य देवों की स्तुति करें तथा पूजा समाप्त होने पर चरणामृत एवं प्रसाद का वितरण करें। आज के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं व दक्षिणा दें। ये भी पढ़े... संतान सुख के लिए करें अहोई अष्टमी व्रत, जानिए इसका महत्व और पूजा-विधि पापों से मुक्ति दिलाता है जया एकादशी व्रत, जानिए इसका महत्व और पूजा-विधि पुत्र प्राप्ति और रोगों को दूर करने के लिए करें शीतला षष्ठी व्रत, जानिए महत्व और पूजा-विधि Read the full article
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जानिये क्या है, श्रावण पुत्रदा एकादशी का पौराणिक और धार्मिक महत्व? हिन्दु पंचांग के अनुसार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम श्रावण पुत्रदा एकादशी है जो इस वर्ष 10 अगस्त को पड़ रही है । धर्म ग्रंथों के अनुसार इस व्रत की कथा सुनने मात्र से वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है । मान्यताओं के अनुसार संतान सुख की इच्छा रखने वालों को इस व्रत का पालन करने से संतान की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार दशमी तिथि को शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। एकादशी का व्रत रखने वाले को अपना मन को शांत एवं स्थिर रखें। किसी भी प्रकार की द्वेष भावना या क्रोध मन में न लायें। परनिंदा से बचें। प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करे तथा स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान् विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं। भगवान् विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल एवं तिल का प्रयोग करें। व्रत के दिन अन्न वर्जित है। निराहार रहें और शाम में पूजा के बाद चाहें तो फल ग्रहण कर सकते है। यदि आप किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं तो भी एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है। संभव हो तो रात में जगकर भगवान का भजन कीर्तन करें। एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें। यदि नि:संतान व्यक्ति यह व्रत पूर्ण विधि-विधान व श्रद्धा से करता है तो उसे संतान सुख अवश्य ही प्राप्त होता है। श्रावण पुत्रदा एकादशी का श्रवण एवं पठन करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है, वंश में वृद्धि होती है तथा मनुष्य सभी सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है। For Free Prediction Call Now: 0124-6674671 or whatsapp: 9821599237 *For more information, visit us: www.astroscience.com or www.yesicanchange.com #GdVashist #Astrology #FreePrediction #LalKitab #VashistJyotish #PutradaEkadashi #LordVishnu https://www.instagram.com/p/B070ssBlzBT/?igshid=txhrgfmhxcuz
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. दिनांक 30.07.2020 दिन गुरुवार (संवत् २०७७ श्रावण मासे, शुक्ल पक्षे) को आने वाली है👇🏻 "श्रावण पुत्रदा एकादशी" श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम श्रावण पुत्रदा एकादशी है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस व्रत की कथा सुनने मात्र से वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है । मान्यताओं के अनुसार संतान सुख की इच्छा रखने वालों को इस व्रत का पालन करने से संतान की प्राप्ति होती है। व्रत विधि पुराणों के अनुसार दशमी तिथि को शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। एकादशी का व्रत रखने वाले को अपना मन को शांत एवं स्थिर रखें। किसी भी प्रकार की द्वेष भावना या क्रोध मन में न लायें। परनिंदा से बचें। प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें तथा स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान् विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं। भगवान् विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल एवं तिल का प्रयोग करें। व्रत के दिन अन्न वर्जित है। निराहार रहें और शाम में पूजा के बाद चाहें तो फल ग्रहण कर सकते है। यदि आप किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं तो भी एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है। संभव हो तो रात में जगकर भगवान का भजन कीर्तन करें। एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें। यदि नि:संतान व्यक्ति यह व्रत पूर्ण विधि-विधान व श्रृद्धा से करता है तो उसे संतान सुख अवश्य ही प्राप्त होता है। श्रावण पुत्रदा एकादशी का श्रवण एवं पठन करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है, वंश में वृद्धि होती है तथा मनुष्य सभी सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है। #ekadashi #एकादशी सभी भक्त हमारे Youtube चैनल से भी जुड़ जाएं | जय श्री राधे कृष्णा https://www.youtube.com/c/RadheRadheje #radheradheje #jaishreeradheradheje #kirshna #spirituality #inspiration #devotional #prem #bhakti #devichitralekhaji #motivation https://www.instagram.com/p/CDOnBfCA2vT/?igshid=caw090obb6l0
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पापांकुश एकादशी व्रत करनेवाले को अच्छा स्वास्थ्य, सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य मिलता है । भगवान नारायण को मानने वालों के लिए, इस एकादशी का विशेष महत्व होता है । रीती रिवाजों के अनुसार इस दिन व्रत रखने वाले कृष्ण एवं राधा की पूजा अर्चना करते है । इस एकादशी के बारे �%A...
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