#एक दिन का उदय
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chetnanandji · 1 month ago
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ईश्वर क्या है और क्या ईश्वर प्राप्ति करना चाहिए?
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मेरे अनुभव के अनुसार इस ब्रह्मांड में एक अद्वितीय तत्व है, यह तत्व हर वस्तु के भीतर व बाहर सभी जगह है! सभी निर्जीव वस्तुओं में अचेतन रूप में व सभी सजीव वस्तुओं में चेतन रूप में विराजमान है! यह तत्व नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है! यह नाश रहित अर्थात अविनाशी तत्व है! जैसे मकड़ी एक-एक तार से सुंदर जाल बुनती है उसी प्रकार प्रकृति ने इसी चेतन तत्व के धागों से इस सुंदर सृष्टि का सृजन किया है! इस तत्व को ही ईश्वर, भगवान, आत्मा, परमात्मा, मन, राम, कृष्ण, शिव, वाहेगुरु, अल्लाह आदि विभिन्न नामों से पुकारा या जाना जाता है क्योंकि यह तत्व हर प्राणी के भीतर है इसलिए जीव को ही शिव व शिव को ही जीव कहा जाता है अर्थात ईश्वर ही जीव है व जीव ही ईश्वर है। जब व्यक्ति "मैं कौन हूं?" विचार पर साधना पूर्ण करता है तो पाता है कि मैं ईश्वर हूं व जब ईश्वर कौन है? विचार लेकर साधना करता है तब वह जान पाता है कि मैं ही ईश्वर हूं! ईश्वर जीव से अलग कोई व्यक्तित्व नहीं है! हर जीव ही ईश्वर है व ईश्वर ही जीव है! बस सभी में जागरूकता का फर्क है! व्यक्ति ज्यों ज्यों साधना की गहराई में पहुंचता है त्यों त्यों जागरूकता अर्थात ज्ञान का उदय होता है व एक दिन अंधकार अर्थात अज्ञान पूर्ण रूप से खत्म होकर सत्य को प्रकट कर देता है व सत्य ही ईश्वर है।
ईश्वर प्राप्ति क्या है?
विभिन्न संतों द्वारा ईश्वर प्राप्ति के विभिन्न नाम रखे गए हैं जैसे आत्म साक्षात्कार, आत्मज्ञान, परमात्मा मिलन, निर्वाण या मोक्ष की स्थिति आदि! यह सभी एक ही स्थिति के नाम है! जब व्यक्ति विभिन्न साधनों द्वारा अपने मन को निर्मल कर लेता है तो यह पूर्ण निर्मल मन की स्थिति ही ईश्वर प्राप्ति है! जब तक मन में कामनाओं व वासानाओं रूपी मेल है तब तक बुद्धि सभी चीजों को विभिन्न रूपों में बांटती रहती है यह अज्ञान है व अज्ञान ही दुख, भ्रम व चिंता को जन्म देता है! लोभ, क्रोध, अभिमान, दुविधा, इर्ष्या, भय ये सब इसी अज्ञान की संतान है! साधनाओं द्वारा इस अज्ञान का समूल नाश करना ही साधक का लक्ष्य होता है। जब ज्ञान का उदय होता है तब मन पूर्ण पवित्र हो जाता है क्योंकि ज्ञान ही पवित्र करने वालों में श्रेष्ठ है व जब मन पूर्ण निर्मल हो जाता है वह स्थिति परम शांति दायक, परम आनंद दायक व परम ज्ञानी की स्थिति होती है। इसी को ही ईश्वर प्राप्ति, आत्म साक्षात्कार या निर्वाण कहा जाता है!
ईश्वर प्राप्ति का महत्व
बुद्धि ने सत्य को विषय और वस्तु (द्वेत) में विभाजित कर दिया है जिससे हर पल ��िचार उत्पन्न हो रहे हैं एवं मनुष्य विचलित रहता है व भावनाओं में बंधा हुआ खंडित होता ही रहता है और लालच, मोह और तृष्णा की पकड़ उस पर बढ़ती रहती है! जन्म से वृद्धा अवस्था के चक्कर में बीमारी और मृत्यु का भय उसके मन के चारों ओर बनी दीवारों को और प्रबल करता जाता है। इसलिए इस भ्रम को ही दूर करना जरूरी है। जब एक बार ये द्वेतका भ्रम टूट गया तो व्यक्ति स्वतंत्र होकर जीने लगता है! वह पूर्ण एकाग्र व पूर्ण जागरूक होकर पूर्ण ज्ञान व परम आनंद को प्राप्त करता है। ईश्वर प्राप्ति या आत्म साक्षात्कार का रास्ता सब कुछ पाने का विज्ञान है! इस रास्ते पर चलने से व्यक्ति ना की अलौकिक जीवन में बल्कि भौतिक जीवन में भी कामयाबी की सर्वोत्तम ऊंचाइयों को छूता है! ईश्वर प्राप्ति या आत्म साक्षात्कार के प्रयास के लिए मनुष्य को ना तो घर छोड़ने की जरूरत है व ना ही व्यवसाय बदलने की जरूरत है क्योंकि यह यात्रा बाहरी नहीं भीतरी है! आप अपने गृहस्थी व व्यवसाय को करते हुए भी स्व अनुशासन की साधना द्वारा ईश्वर प्राप्ति या आत्म साक्षात्कार कर सकते हैं।
निष्कर्ष
व्यक्ति अज्ञान अवस्था में खुद को नहीं जान पा रहे हैं। इस दुर्लभ मनुष्य जीवन को पाकर जो इसी जीवन में मन को निर्मल करने की चेष्टा व प्रयास नहीं करता उसका जन्म लेना ही बेकार है। तुम खुद ही कल्पवृक्ष हो, आप जो चाहो वैसा पा सकते हो। आप अपने अभी तक के जीवन को ध्यान से देखो तो ऐसा लगेगा कि आपने आपका पूरा जीवन व्यर्थ ही गवा दिया है। चैक करो कि अब तक आपने क्या उल्लेखनीय कार्य किया है जिस पर आप खुद, आपका परिवार, आपका देश आप पर गर्व कर सके। इसलिए मेरे दोस्तों, हर बड़े काम की शुरुआत कभी ना कभी छोटे से ही करनी पड़ती है। इसलिए आप जो भी कार्य कर रहे हैं उसके साथ-साथ मन को निर्मल करने वाली इस शुभ यात्रा को शुरू करें व लोगों को भी इस यात्रा पर चलने के लिए उत्साहित करें।
उदाहरण
जब किसान अपने खेत की सिंचाई करना चाहता है, तो उसे किसी अन्य स्थान से पानी लाने की आवश्यकता नहीं होती। खेत के समीप जलाशय में पानी जमा हो जाता है, बीच में बांध होने के कारण खेत में पानी नहीं आ रहा है। किसान बांध को हटा देता है और गुरुत्वाकर्षण के नियम के अनुसार पानी अपने आप खेत में चला जाता है। इसी प्रकार सभी प्रकार की उन्नति और शक्ति सभी मनुष्य में पहले से ही निहित है। पूर्णता मनुष्य का स्वभाव है; केवल उसके द्वार बंद हैं, उसे अपना सच्चा मार्ग नहीं मिल रहा है। यदि कोई इस बाधा को पार कर सके, तो उसकी स्वाभाविक पूर्णता उसकी शक्ति के बल पर अभिव्यक्त होगी। और तब मनुष्य अपने भीतर पहले से ही विद्यमान शक्तियों को प्राप्त कर लेता है। जब यह बाधा दूर हो जाती है और प्रकृति अपनी अप्रतिबंधित गति को पुनः प्राप्त कर लेती है, तब जिन्हें हम पापी कहते हैं, वे भी संत बन जाते हैं। प्रकृति स्वयं हमें पूर्णता की ओर ले जा रही है, समय आने पर वह सभी को वहां ले जाएगी। धार्मिक होने के लिए जो भी अभ्यास और प्रया��� हैं, वे केवल प्रतिबंधात्मक कार्य हैं - वे केवल बाधा को दूर करते हैं और इस प्रकार पूर्णता का द्वार खोलते हैं जो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है; जो हमारा स्वभाव है!
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helputrust · 2 years ago
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22.05.2023, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में त्याग, बलिदान एवं पराक्रम के प्रतीक 'मेवाड़ मुकुट' महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती के अवसर पर रामायण पार्क, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष श्री एस पी रॉय, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव, सेक्टर 25 के नि��ासीगण ए. के. त्रिपाठी, जे. पी. गुप्ता, महेश जैसवाल, आर के शर्मा, सरिता शर्मा, के. पी. शर्मा, सुनीता शर्मा, संजय कुमार पाण्डेय तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स���वयंसेवकों द्वारा महाराणा प्रताप जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण किया गया |
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था, देख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था |" भारतीय इतिहास में अनेक महान वीरों ने अपनी शौर्य और बलिदान के माध्यम से हमारे देश को गौरवान्वित किया है, उनमें से एक महान वीर थे "महाराणा प्रताप सिंह" जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं । महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के उदयपुर, मेवाड़ मे सिसोदिया राजपूत राजवंश के महान राजा थे एवं अपनी वीरता, पराक्रम, व शौर्यता के लिए जाने जाते थे । शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी | आज महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर आइए यह संकल्प लें कि अपने दुश्मनों के सामने कभी घुटने नहीं टेकेगे वह पूरे आत्मविश्वास एवं तन्मयता के साथ अपने देश की रक्षा करेंगे |"
महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष एस पी राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अनुपम, अद्वितीय, अपराजेय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के स्मरण मात्र से आज भी साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण संघर्ष एवं सफलता की चेतना एक साथ स्वत: हो जाती है l गुहील (गुहिला दित्य) कुल में आज से 483 साल पहले 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ किला में राणा उदय सिंह (द्वितीय) के पुत्र राणा प्रताप (प्रथम) जिन्हें हम महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ था l इस कुल की शुरूआत वर्ष 566 में गुहिला दित्य से हुई, जो इस्लाम धर्म के शुरुआत के कई वर्ष पूर्व हैं और यह वंश अभी तक चला आ रहा है इसीलिए इस वंश (dynasty) को विश्व का सबसे लंबा शासक वंश कहा जाता है | इसी कुल में अनेकों वीर योद्धा हुए जिन्होंने राजपूताना मेवाड़ के साथ अपनी मातृभूमि एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया | वंदनीय बप्पा रावल जिनका शासन 734 से 753 ईसवी तक रहा, ने प्रथम मुस्लिम आक्रांता को खदेड़ कर भारत से ��ाहर कर दिया | सिसौदा के गहलोत श्रद्धेय राणा हमीर ने अलाउद्दीन खिलजी से जीतकर चित्तौड़ पुनः अपने कब्जे में ले लिया और तभी से इस वंश को सिसोदिया कहा जाने लगा | महाराणा कुंभकरण जो लोगों में कुम्भा के नाम से विख्यात हैं उन्हें “हिंदू सुरत्राण” कहा गया है | जिन्होंने दिल्ली एवं गुजरात के सुल्तानों का कितना ही प्रदेश अपने अधीन किया | मध्यकालीन युग में राणा संग्राम सिंह जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, वे मुगल आक्रांता बाबर से लड़ाई लड़े ताकि भारत के पवित्र भूमि पर उसका कब्जा न हो और उसी स्वतंत्र मात्रभूमि की भावना का जीवंत स्वरूप हम महाराणा प्रताप में पाते हैं जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर, जिसका आधिपत्य और साम्राज्य समूचे उत्तर भारत पर था, के विरुद्ध वर्ष 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के कई वर्षों तक अपने प्रण पर अडिग रहकर लड़ते रहे क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहा जबकि मुगल के 30,000 सेना फौज के सामने महाराणा का मात्र 5000 सेना की फौज थी | इसी युद्ध में महाराणा का चेतक घायल हो गया था और तभी सामला के राजा मानसिंह झाला ने महाराणा को अपना मुकुट देकर रणभूमि से निकाला ताकि महाराणा प्रताप अकबर से बाद में लोहा ले सके | हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर 1577, 1578, 1579 एवं 1580 तक विभिन्न सेनापतियों जैसे सहवास हुसैन, बहलोल खान, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना के अगुवाई में लगातार बड़ी सेना की टुकड़ी के साथ भेजता रहा मगर सभी युद्ध अनिर्णायक रहा | महाराणा प्रताप गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई लड़ते थे 1581 में दानवीर भामाशाह ने धन देकर युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किए | वर्ष 1582 में विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने कोल  भील से गठित अकबर के 50,000 सेना पर धावा बोल दिया | यह युद्ध देवार युद्ध के नाम से जाना जाता है | और मुगल सेना हार के कारण अपने 36000 सेना महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया | महाराणा का चित्तौड़ छोड़कर पुनः पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया | इस तरह से विजयादशमी हम भारतीयों के लिए दो खुशियां लेकर आती है एक राजा रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने का और इसी सूर्यवंशी कुल में पैदा महाराणा के जीत का | इसी Battle of Dewar में महाराणा ने अपने तलवार से बहलोल खान को एक बार में ही बीचो-बीच टुकड़े कर दिए | मगर Battle of Dewar का इतिहास में स्थान नहीं मिला | 1584 में अकबर स्वयं सेना लेकर आया मगर वह 6 माह बाद निराश होकर आगरा लौट गया वह महाराणा को पराजित नहीं कर सका | महाराणा कुल की महानता इससे भी जाहिर होती है कि राज चिन्ह में भील आदिवासी को राणा के स��कक्ष रखा गया है और सूर्य के नीचे “जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार,” की पंक्ति अंकित है जो अपने धर्म की रक्षा का सन्देश देती है |
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sujit-kumar · 2 years ago
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कबीर बड़ा या कृष्ण Part 104
‘‘शिशु कबीर देव द्वारा कुँवारी गाय का दूध पीना’’
बालक कबीर को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे। 25 दिन जब बालक को निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-2 कर विलाप कर रही थी। सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न भिन्न-2 स्त्री-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। आज पच्चीसवाँ दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फाँसी पर लटक जाऊँगी। मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए पीए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता। यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह सोच कर फूट-2 कर रो रही थी। भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना तथा उससे की गई प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी।
भगवान शिव, एक ब्राह्मण (ऋषि) का रूप बना कर नीरू की झोंपड़ी के सामने खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। सन्त रूप में खड़े भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी हे ब्राह्मण ! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे। फकीर वेशधारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है आप के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आँसू जिव्हा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे महात्मा जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह का��ी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उस दिन ज्येष्ठ ��ास की शुक्ल पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने इष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीनदयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया। सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भी आहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूँगी। मैं इसकी मृत्यु की प्रतिक्षा कर रही हूँ। सर्व रात्रि बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी। नीमा के मुख से सर्वकथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा। आप का बालक मुझे दिखाईए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर ऋषि के समक्ष प्रस्तुत किया। दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्टि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाऐं व हस्त रेखाऐं देख कर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है। कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे विप्रवर! बनावटी सांत्वना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की साँस आएगी। पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कुँवारी गाय लाऐं। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कुँवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याए (अर्थात् कुँवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी। परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई।
शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा ब्राह्मण को प्रणाम किया। ब्राह्मण ने कहा नीरू! आप एक कुँवारी गाय लाओ। वह दूध देवेगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कुँवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर से एक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्र) भी ले आया। परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार विप्ररूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्र थनों के नीचे रखने का ��देश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने ब्राह्मण रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव के रूप हो। आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। विप्र रूपधारी भगवान शंकर बोले! साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधु नाहीं। यह कहकर विप्र रूपधारी शिवजी ने वहाँ से प्रस्थान किया।
विशेष वर्णन अध्याय ’’ज्ञान सागर‘‘ के पृष्ठ 74 तथा ’’स्वसमबेद बोध‘‘ के पृष्ठ 134 पर भी है जो इस प्रकार है:-
’’कबीर सागर के ज्ञान सागर के पृष्ठ 74 पर‘‘
सुत काशी को ले चले, लोग देखन तहाँ आय। अन्न-पानी भक्ष नहीं, जुलहा शोक जनाय।।
तब जुलहा मन कीन तिवाना, रामानन्द सो कहा उत्पाना।। मैं सुत पायो बड़ा गुणवन्ता। कारण कौण भखै नहीं सन्ता।
रामानन्द ध्यान तब धारा। जुलहा से तब बचन उच्चारा।।।
पूर्व जन्म तैं ब्राह्मण जाती। हरि सेवा किन्ही भलि भांति।।
कुछ सेवा तुम हरि की चुका। तातैं भयों जुलहा का रूपा।।
प्रति प्रभु कह तोरी मान लीन्हा। तातें उद्यान में सुत तोंह दिन्हा।।
नीरू वचन
हे प्रभु जस किन्हो तस पायो। आरत हो तव दर्शन आयो।।
सो कहिए उपाय गुसाई। बालक क्षुदावन्त कुछ खाई।।
रामानन्द वचन
रामानन्द अस युक्ति विचारा। तव सुत कोई ज्ञानी अवतारा।।
बछिया जाही बैल नहीं लागा। सो लाई ठाढ़ करो तेही आगै।।
साखी = दूध चलै तेहि थन तें, दूध्हि धरो छिपाई।
क्षूदावन्त जब होवै, तबहि दियो पिलाई।।
चैपाई
जुलहा एक बछिया लै आवा। चल्यो दूत (दूध) कोई मर्म न पावा।।
चल्यो दूध, जुलहा हरषाना। राखो छिपाई काहु नहीं जाना।।।
पीवत दूध बाल कबीरा। खेलत संतों संग जो मत धीरा।।
ज्ञान सागर पृष्ठ 73 पर चैपाई
’’भगवान शंकर तथा कबीर बालक की चर्चा’’
{नोटः- यह प्रकरण अधूरा लिखा है। फिर भी समझने के लिए मेरे ऊपर कृपा है परमेश्वर कबीर जी की। पहले यह वाणी पढ़ें जो ज्ञान सागर के पृष्ठ 73 पर लिखी है, फिर अन्त में सारज्ञान यह दास (रामपाल दास) बताएगा।}
चैपाई
घर नहीं रहो पुरूष (नीरू) और नारी (नीमा)। मैं शिव सों अस वचन उचारी।।
आन के बार बदत हो योग। आपन नार करत हो भोग।।
नोटः- जो वाणी कोष्ठक { } में लिखी हैं, वे वाणी ज्ञान सागर में नहीं लिखी गई हैं जो पुर���तन कबीर ग्रन्थ से ली हैं।
{ऐसा भ्रम जाल फलाया। परम पुरूष का नाम मिटाया।}
काशी मरे तो जन्म न होई। {स्वर्ग में बास तास का सोई}
{ मगहर मरे सो गधा जन्म पावा, काशी मरे तो मोक्ष करावा}
और पुन तुम सब जग ठग राखा। काशी मरे हो अमर तुम भाखा
जब शंकर होय तव काला, {ब्रह्मण्ड इक्कीस हो बेहाला}
{तुम मरो और जन्म उठाओ, ओरेन को कैसे अमर कराओ}
{सुनों शंकर एक बात हमारी, एक मंगाओ धेनु कंवारी}
{साथ कोरा घट मंगवाओ। बछिया के पीठ हाथ फिराओ}
{दूध चलैगा थनतै भाई, रूक जाएगा बर्तन भर जाई}
{सुनो बात देवी के पूता। हम आए जग जगावन सूता}
{पूर्ण पुरूष का ज्ञान बताऊँ। दिव्य मन्त्रा दे अमर लोक पहुँचाऊँ}
{तब तक नीरू जुलहा आया। रामानन्द ने जो समझाया}
{रामानन्द की बात लागी खारी। दूध देवेगी गाय कंवारी}
{जब शंकर पंडित रूप में बोले, कंवारी धनु लाओ तौले}
{साथ कोरा घड़ा भी लाना, तास में धेनु दूधा भराना}
{तब जुलहा बछिया अरू बर्तन लाया, शंकर गाय पीठ हाथ लगाया}
{दूध दिया बछिया कंवारी। पीया कबीर बालक लीला धारी}
{नीरू नीमा बहुते हर्षाई। पंडित शिव की स्तुति गाई}
{कह शंकर यह बालक नाही। इनकी महिमा कही न जाई}
{मस्तक रेख देख मैं बोलूं। इनकी सम तुल काहे को तोलूं}
{ऐस नछत्र देखा नाहीं, घूम लिया मैं सब ठाहीं।}
{इतना कहा तब शंकर देवा, कबीर कहे बस कर भेवा}
{मेरा मर्म न जाने कोई। चाहे ज्योति निरंजन होई}
{हम है अमर पुरूष अवतारा, भवसैं जीव ऊतारूं पारा}
{इतना सुन चले शंकर देवा, शिश चरण धर की नीरू नीमा सेवा}
हे स्वामी मम भिक्षा लीजै, सब अपराध क्षमा (हमरे) किजै
{कह शंकर हम नहीं पंडित भिखारी, हम है शंकर त्रिपुरारी।}
{साधु संत को भोजन कराना, तुमरे घर आए रहमाना}
{ज्ञान सुन शंकर लजा आई, अद्भुत ज्ञान सुन सिर चक्राई।}
{ऐसा निर्मल ज्ञान अनोखा, सचमुच हमार है नहीं मोखा}
कबीर सागर अध्याय ‘‘स्वसम वेद बोध‘‘ पृष्ठ 132 से 134 तक परमेश्वर कबीर जी की प्रकट होने वाली वाणी है, परंतु इसमें भी कुछ गड़बड़ कर रखी है। कहा कि जुलाहा नीरू अपनी पत्नी का गौना (यानि विवाह के बाद प्रथम बार अपनी पत्नी को उसके घर से लाना को गौना अर्थात् मुकलावा कहते हैं।) यह गलत है। जिस समय परमात्मा कबीर जी नीरू को मिले, उस समय उनकी आयु लगभग 50 वर्ष थी। विचार करें गौने से आते समय कोई बालक मिल जाए तो कोई अपने घर नहीं रखता। वह प��ले गाँव तथा सरकार को बताता है। फिर उसको किसी निःसंतान को दिया जाता है यदि कोई लेना चाहे तो। नहीं तो राजा उसको बाल ग्रह में रखता है या अनाथालय में छोड़ते हैं। नीमा ने तो बच्चे को छोड़ना ही नहीं चाहा था। फिर भी जो सच्चाई वह है ही, हमने परमात्मा पाना है। उसको कैसे पाया जाता है, वह विधि सत्य है तो मोक्ष सम्भव है, ज्ञान इसलिए आवश्यक है कि विश्वास बने कि परमात्मा कौन है, कहाँ प्रमाण है? वह चेष्टा की जा रही है। अब केवल ’’बालक कबीर जी ने कंवारी गाय का दूध पीया था, वे वाणी लिखता हूँ’’।
स्वसम वेद बोध पृष्ठ 134 से
पंडित निज निज भौन सिधारा। बिन भोजन बीते बहु बारा (दिन)।।
बालक रूप तासु (नीरू) ग्रह रहेता। खान पान नाहीं कुछ गहते।
जोलाहा तब मन में दुःख पाई। भोजन करो कबीर गोसांई।।
जोलाहा जोलाही दुखित निहारी। तब हम तिन तें बचन उचारी।।
कोरी (कंवारी) एक बछिया ले आवो। कोरा भाण्डा एक मंगाओ।।
तत छन जोलाहा चलि जाई। गऊ की बछिया कोरी (कंवारी) ल्याई।।
कोरा भाण्डा एक गहाई (ले आई)। भांडा बछिया शिघ्र (दोनों) आई।।
दोऊ कबीर के समुख आना। बछिया दिशा दृष्टि निज ताना।।
बछिया हेठ सो भाण्डा धरेऊ। ताके थनहि दूधते भरेऊ।
दूध हमारे आगे धरही, यहि विधि खान-पान नित करही।।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
भावार्थ - पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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airnews-arngbad · 12 days ago
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Regional Marathi Text Bulletin, Chhatrapati Sambhajinagar
Date – 22 January 2025
Time 18.10 to 18.20
Language Marathi
आकाशवाणी छत्रपती संभाजीनगर
प्रादेशिक बातम्या
दिनांक – २२ जानेवारी २०२५ सायंकाळी ६.१०
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राष्ट्रीय आरोग्य अभियानाला २०२६ पर्यंत मुदतवाढ देण्याचा केंद्रीय मंत्रिमंडळाचा निर्णय
निवडणुकीतल्या उत्तम कामगिरीसाठी महाराष्ट्राला केंद्रीय निवडणूक आयोगाचा पुरस्कार जाहीर
मकोकाअंतर्गत अटकेतील आरोपी वाल्मीक कराड याला १४ दिवसांची न्यायालयीन कोठडी
आणि
बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ योजनेचा दहावा वर्धापनदिन विविध कार्यक्रमांनी साजरा
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केंद्रीय मंत्रिमंडळानं राष्ट्रीय आरोग्य अभियानाला २०२६ पर्यंत मुदतवाढ देण्याचा निर्णय घेतला आहे. आज नवी दिल्लीत मंत्रिमंडळाच्या बैठकीनंतर केंद्रीय वाणिज्य आणि उद्योग मंत्री पियुष गोयल यांनी पत्रकार परिषदेत ही माहिती दिली. २०२३-२४ या आर्थिक वर्षात या मोहिमेअंतर्गत देशात आयुष्मान आरोग्य मंदिरांची संख्या १ लाख ७२ हजार झाली आहे, तर सरकारच्या डायलिसीस मोहिमेचा साडेचार लाख रुग्णांना लाभ झाल्याची माहिती केंद्रीय मंत्री पीयुष गोयल यांनी दिली. ते म्हणाले –
नॅशनल हेल्थ मिशन के द्वारा जिस प्रकार के ऐतिहासिक टार्गेटस्‌ को मिट करने का काम गत दस वर्षों मे माननीय प्रधानमंत्रीजी के नेतृत्व मे हुआ है, लगबग बारा लाख हेल्थ केअर्स के वर्कर्स 2021 से 22 के बीच मे नॅशनल हेल्थ मिशन के साथ जुडे। दो सौ बीस करोड से अधिक कोविड-19 के वॅक्सिन डोसेज्‌ देशभर मे दिये गये। 2023-24 तक 1,72,000 आयुष्यमान आरोग्य मंदिर सेंटर्स खुल चुके है।
२०२५-२६ च्या पणन हंगामासाठी कच्च्या तागाच्या किमान हमी भावात प्रति क्विंटल तीनशे पंधरा रुपयांची वाढ करण्याचा निर्णय केंद्रीय मंत्रिमंडळानं आजच्या बैठकीत घेतला. या निर्णयामुळे कच्च्या तागाला यावर्षी पाच हजार सहाशे पन्नास रुपये प्रति क्विंटल, असा किमान हमी भाव मिळेल. या निर्णयाचा ईशान्य भारतातल्या सुमारे चाळीस लाख शेतकरी कुटुंबांना फायदा होईल, असं पियुष गोयल यांनी सांगितलं.
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निवडणूक काळात उत्तम कामगिरी केल्याबद्दल केंद्रीय निवडणूक आयोगानं महाराष्ट्राला पुरस्कार जाहीर केला आहे. मुख्य निवडणूक अधिकारी एस. चोकलिंगम यांना हा पुरस्कार जाहीर झाला आहे. २०२४-२५ या वर्षासाठी महाराष्ट्रासोबत जम्मू आणि काश्मिर तसंच झारखंडलाही पुरस्कार जाहीर झाला आहे.
छत्रपती संभाजीनगरचे विभागीय आयुक्त दिलीप गावडे आणि जिल्हाधिकारी दिलीप स्वामी यांना टपाली मतपत्रिका देवाण-घेवाण कार्यवाहीसाठी उत्कृष्ट नियोजनाचा पुरस्कार जाहीर झाला असून सिल्लोडचे उपविभागीय अधिकारी लतिफ पठाण यांना उत्कृष्ट निवडणूक निर्णय अधिकारी म्हणून पुरस्कार जाहीर झाला आहे.
याशिवाय मुंबई शहरचे जिल्हाधिकारी संजय यादव आणि मुंबई उपनगरचे जिल्हाधिकारी राजेंद्र क्षीरसागर यांना विशेष श्रेणीत पुरस्कार जाहीर झाला आहे. येत्या शनिवारी, राष्ट्रीय मतदार दिनी नवी दिल्लीत हे पुरस्कार प्रदान केले जाणार आहेत.
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केईएम रुग्णालय हे मुंबई आणि आसपासच्या रहिवाशांचा आधारवड असून, रुग्णांना जागा कमी पडू नये यासाठी केईएममध्ये आयुष्मान शताब्दी टॉवर उभे करावेत, असे निर्देश उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे यांनी दिले आहेत. सेठ गोवर्धनदास सुंदरदास वैद्यकीय महाविद्यालय आणि केईएम रुग्णालयाचा नव्याण्णवावा वर्धापन दिन सोहळा रुग्णालयाच्या प्रांगणात आज झाला, त्यावेळी ते बोलत होते. रुग्णालय आणि महाविद्यालयाच्या कार्याचा शिंदे यांनी आपल्या भाषणातून गौरव केला.
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मैत्री कायद्याला अधिक बळकट करण्यासाठी राज्यसरकार एक विशेष पोर्टल तयार करत असल्याचं, उद्योगमंत्री उदय सामंत यांनी सांगितलं आहे. ते आज दावोस इथून पत्रकारांशी बोलत होते. या पोर्टलबाबत अधिक माहिती देतांना सामंत म्हणाले –
हे पोर्टल आल्यानंतर उद्योजकांना कमीत कमी वेळेमध्ये सगळे दाखले मिळायला त्याचा उपयोग होणार आहे. देशातलं हे पहिलं पोर्टल असं आहे, की ॲप्लीकेशन कसं करायचं आणि ॲप्लिकेशन केल्यानंतर ते ॲप्लिकेशन नक्की कुठे आहे हे दाखवणारं पोर्टल पुढच्या आठ दिवसांमध्ये ��ॅबिनेटच्या निमित्तानं आम्ही महाराष्ट्रामध्ये आणतोय. त्याचं देखील अनेक उद्योजकांनी स्वागत केलेलं आहे.
अयोध्येतल्या श्रीराम मंदिरात श्रीरामललांच्या प्राणप्रतिष्ठेला आज एक वर्ष पूर्ण होत असल्याच्या औचित्यानं मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांनी देशवासियांना शुभेच्छा दिल्या आहेत. नागपूर इथे आजच्या या दिनाच्या निमित्तानं जयस्तुते फाउंडेशनतर्फे महाल परिसरात अकरा हजार दिव्यांनी दीपोत्सव साजरा करण्यात आला. यावेळी आकर्षक रांगोळीच्या माध्यमातून धनुष्यबाण, शंख, गदा, कलश आणि स्वस्तिक अशी मंगलचिन्हं साकारण्यात आली होती.
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हैदराबाद मुक्तिसंग्रामाचे प्रणेते, थोर स्वातंत्र्यसेनानी, शिक्षणतज्ज्ञ स्वामी रामानंद तीर्थ यांचा आज स्मृतीदिन आहे. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांनी स्वामी रामानंद तीर्थ यांना अभिवादन केलं आहे.
उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे यांनीही स्वामी रामानंद तीर्थ यांना अभिवादन केलं, आध्यात्मिकता आणि राजकारण यांचा विलक्षण संयोग साधणाऱ्या या लोकप्रिय नेतृत्वाला नमन, अशा शब्दात शिंदे यांनी आपल्या भावना व्यक्त केल्या आहेत.
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नागपूरहून ते गोव्यापर्यंत जाणाऱ्या आणि कोल्हापूरची अंबाबाई, तुळजापूरची तुळजाभवानी, माहूरची रेणुकादेवी ही तीन शक्तीपीठं जोडणाऱ्या शक्तिपीठ महामार्गासाठीच्या भूसंपादनाला आता गती आली आहे. महाराष्ट्र राज्य रस्ते विकास महामंडळानं यासाठीच्या पर्यावरणीय परवानग्यांची प्रक्रिया सुरू केली असून आता मराठवाड्यातल्या काही जिल्ह्यात भूसंपादन प्रक्रियेला सुरुवात करण्यात आल्याचं वृत्तसंस्थेच्या बातमीत म्हटलं आहे.
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शिवसेनेचे संस्थापक बाळासाहेब ठाकरे यांच्या जयंतीनिमित्त पुढील वर्षभर राज्यभरात राज्य परिवहन महामंडळ-एसटीच्या सर्व बसस्थानकांवर “हिंदुहृदयसम्राट बाळासाहेब ठाकरे स्वच्छ, सुंदर बसस्थानक अभियान” राबवण्यात येणार आहे. राज्याचे परिवहन मंत्री प्रताप सरनाईक यांनी ही घोषणा केली. यानिमित्तानं राज्यभरात प्रत्येक बसस्थानकावर शालेय विद्यार्थी, सामाजिक संस्था आणि एसटी कर्मचाऱ्यांच्या सहकार्यातून स्वच्छता मोहीम राबवण्यात येणार आहे. या अभियानामध्ये दर तीन महिन्यांनी प्रत्येक बसस्थानकाचं मूल्यमापन होणार असून, शहरी गटातून पहिल्या येणाऱ्या बस स्थानकास एक कोटी, निमशहरी गटातून पहिल्या येणाऱ्या बस स्थानकास ५० लाख तर ग्रामीण गटातून पहिल्या येणाऱ्या बस स्थानकाला २५ लाख रुपये बक्षीस दिलं जाणार आहे.
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संतोष देशमुख हत्या प्रकरणात मकोका खाली अटकेत असलेला आरोपी वाल्मिक कराड याला आज बीड जिल्हा सत्र न्यायालयानं चौदा दिवसांची न्यायालयीन कोठडी सुनावली. याआधीची पोलीस कोठडीची मुदत संपल्यावर आज कराड याला जिल्हा सत्र न्या��ालयात हजर करण्यात आलं, त्यावेळी विशेष सत्र न्यायाधीशांनी हा निर्णय दिला. दरम्यान, केज इथल्या खंडणी प्रकरणाची सुनावणी उद्या गुरुवारी होणार आहे.
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जालना इथल्या प्रसिद्ध योग शिक्षक संगीता आलोक लाहोटी यांच्या हत्येप्रकरणी त्यांचा नोकर भीमराव धाडे याला जिल्हा आणि सत्र न्यायाधीश वर्षा मोहिते यांनी जन्मठेप आणि आर्थिक दंडाची शिक्षा सुनावली आहे. १४ डिसेंबर २०२१ रोजी लाहोटी यांची राहत्या घरी हत्या झाली होती. विशेष सरकारी वकील म्हणून उज्ज्वल निकम यांनी या खटल्याचं काम पाहिलं.
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‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ या योजनेचा दहावा वर्धापनदिन आज सर्वत्र विविध कार्यक्रमांनी साजरा झाला.
प्रत्येक क्षेत्रात महिलांचा सहभाग हा पुरुषांच्या बरोबरीनं असायला हवा, तरच देशाची खऱ्या अर्थाने प्रगती होईल, असं मत छत्रपती संभाजीनगरचे जिल्हाधिकारी दिलीप स्वामी यांनी व्यक्त केलं आहे. जिल्हा नियोजन समिती सभागृहात आज ‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ या योजनेच्या दशकपूर्तीनिमित्त महिला आणि बालविकास विभागाच्या कार्यक्रमात ते बोलत होते. जिल्ह्यात मुलींचा घटता जन्मदर ही चिंतेची बाब असल्याचं त्यांनी नमूद केलं.
परभणी इथं जिल्हाधिकारी कार्यालयात जिल्हाधिकारी रघुनाथ गावडे यांच्या उपस्थितीत कार्यक्रम घेण्यात आला. या दशकपूर्तीनिमित्त जिल्हाभरात मानसिक स्वास्थ्य आणि कौशल्य विकास अशा विविध कार्यक्रमांचं आयोजन करण्यात येणार असल्याची माहिती जिल्हा परिषदेच्या महिला आणि बाल कल्याण विभागाच्या उपमुख्य कार्यकारी रेखा काळम यांनी यावेळी दिली.
नाशिक तसंच धुळ्यातही आज बेटी बचाव बेटी पढाओ’ या अभियानाचा शुभारंभ करण्यात आला. या अभियानात मुलींचं संरक्षण, शिक्षणाला प्रोत्साहन, लिंगभेद निर्मूलन यासाठी जनजागृतीपर उपाय करण्यात येणार आहेत.
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भारत आणि इंग्लंड यांच्यादरम्यान पाच सामन्यांच्या टी ट्वेंटी मालिकेतला पहिला सामना आज होणार आहे. कोलकाता इथल्या ईडन गार्डन मैदानावर संध्याकाळी सात वाजता हा सामना सुरू होईल. सूर्यकुमार यादव भारतीय संघाचं नेतृत्व करत आहे. तसंच भारताचा जलदगती गोलंदाज मोहम्मद शमी दुखापतीतून बाहेर येऊन या सामन्याद्वारे पुनरागमन करत आहे.
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राज्यस्तरीय ग्राफलिंग शालेय कुस्ती स्पर्धेत धाराशिवची महिला मल्ल पौर्णिमा खरमाटे हिने सुवर्ण पदकाची कमाई केली. १७ आणि १८ जानेवारी रोजी नाशिक इथं या स्पर्धा पार पडल्या. या विजयामुळे पौर्णिमाची १९ वर्षाखालील राष्ट्रीय क्रीडा कुस्ती स्पर्धेसाठी निवड झाली आहे
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karmaastro · 25 days ago
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सकट चौथ 2025: तिथि, पूजा का समय, व्रत कथा, विधि और क्या करें और क्या न करें
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सकट चौथ, जिसे संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है, भगवान गणेश और देवी संकटहर्ता को समर्पित एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। मुख्य रूप से हिंदू भक्तों द्वारा मनाया जाने वाला यह दिन बाधाओं को दूर करने और भक्तों के जीवन में समृद्धि लाने में विश्वास रखता है। 2025 में, सकट चौथ उनके लिए विशेष महत्व रखता है जो अपने परिवार के कल्याण के लिए दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं।
सकट चौथ 2025 तिथि और पूजा का समय
पवित्र सकट चौथ 2025 को शुक्रवार, 17 जनवरी, 2025 को मनाया जाएगा। विस्तृत समय इस प्रकार है:
चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 17 जनवरी 2025 को सुबह 6:14 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त: 18 जनवरी 2025 को सुबह 4:58 बजे
चंद्रोदय का समय: रात 8:47 बजे
भक्तों को शाम के समय पूजा करनी चाहिए और चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत तोड़ना चाहिए।
सकट चौथ व्रत कथा
सकट चौथ व्रत कथा गहन आध्यात्मिक महत्व रखती है और भक्ति और विश्वास का महत्व सिखाती है। पूरी कथा इस प्रकार है:
प्राचीन समय में, एक समृद्ध राज्य पर एक धर्मपरायण राजा शासन करता था। राज्य की रानी गहरी भक्त थीं और नियमित रूप से अपने परिवार के कल्याण के लिए अनुष्ठान करती थीं। लेकिन राजकुमार, उनका इकलौता पुत्र, गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। सबसे अच्छे चिकित्सकों की सलाह और अनगिनत अनुष्ठानों के बावजूद, उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ।
एक दिन, एक ज्ञानी साधु महल में आए। राजकुमार की स्थिति सुनने के बाद, साधु ने सकट चौथ व्रत रखने और भगवान गणेश और देवी संकटहर्ता को समर्पित एक विशेष पूजा करने का सुझाव दिया। साधु ने बताया कि देवी संकटहर्ता इस दिन विशेष रूप से कृपालु होती हैं और जो लोग भक्ति के साथ व्रत रखते हैं उन्हें कठिनाइयों से राहत प्रदान करती हैं।
��ानी ने साधु की सलाह मानने का निर्णय लिया। सकट चौथ के दिन, उन्होंने निर्जला व्रत (बिना पानी के व्रत) रखा, पूरी श्रद्धा के साथ अनुष्ठान किए और व्रत कथा सुनी। उन्होंने भगवान गणेश और देवी संकटहर्ता से प्रार्थना की कि वे उनके पुत्र का जीवन बचाएं। चंद्रमा के उदय के समय, उन्होंने चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर व्रत तोड़ा।
चमत्कारिक रूप से, उसी रात से राजकुमार की तबीयत में सुधार होने लगा। कुछ ही दिनों में, वह पूरी तरह से ठीक हो गया, जिससे शाही परिवार में आनंद और राहत फैल गई। तब से, सकट चौथ व्रत रखने की परंपरा जारी है, और भक्तों का मानना है कि यह उनके बच्चों की रक्षा कर सकता है और उनके जीवन से बाधाओं को दूर कर सकता है।
सकट चौथ व्रत की दूसरी कथा
एक गांव में एक गरीब लेकिन भक्त महिला रहती थी। उसका इकलौता पुत्र था, जिसे उसने अपनी कठिनाइयों के बावजूद बहुत प्यार और देखभाल से पाला। महिला की भगवान गणेश में गहरी आस्था थी, और वह नियमित रूप से उनके व्रत और पूजा करती थी।
एक बार, गांव में भयंकर अकाल पड़ा, और महिला को भोजन जुटाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी। एक दिन, उसने सकट चौथ का महत्व सुना और व्रत रखने का निर्णय लिया। उसने निर्जला व्रत किया और पूरी श्रद्धा से भगवान गणेश की पूजा की। पूजा के दौरान उसने व्रत कथा सुनी और अपनी संतान की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए प्रार्थना की।
उसके बेटे को एक दिन अचानक जंगल में एक बड़े खतरे का सामना करना पड़ा। एक विशाल सांप ने उसे काटने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही वह सांप उसके करीब आया, भगवान गणेश प्रकट हुए और अपने दिव्य प्रभाव से सांप को वहां से भगा दिया।
जब महिला को इस घटना के बारे में पता चला, तो उसने भगवान गणेश का धन्यवाद किया और समझ गई कि सकट चौथ व्रत ने उसके बेटे की जान बचाई। तभी से यह परंपरा प्रचलित हो गई कि इस दिन व्रत रखने से बच्चों की रक्षा होती है और परिवार पर आने वाले संकट दूर हो जाते हैं।
सकट चौथ की एक और प्रसिद्ध कथा
प्राचीन समय में, एक गांव में एक साहूकार (व्यापारी) रहता था। उसके सात बेटे और सात बहुएं थीं। साहूकार की सबसे छोटी बहू बहुत भक्त थी और भगवान गणेश में गहरी आस्था रखती थी। जब भी कोई पर्व या व्रत आता, वह श्रद्धा और नियमों का पालन करते हुए पूजा-अर्चना करती।
एक बार सकट चौथ का दिन आया। साहूकार की छोटी बहू ने व्रत रखने का संकल्प लिया। पूरे दिन उसने निर्जला व्रत किया और शाम को पूजा की तैयारी करने लगी। लेकिन साहूकार और उसकी अन्य बहुओं ने उसका मजाक उड़ाया। उन्होंने कहा, "तुम्हारे इस उपवास और पूजा का कोई अर्थ नहीं है। इससे किसी को कोई लाभ नहीं होगा।"
छोटी बहू ने ��नकी बातों को अनसुना किया और अपने व्रत और पूजा में ध्यान केंद्रित किया। उसने भगवान गणेश की पूजा करते हुए दुर्वा, मोदक, और लाल फूल अर्पित किए और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोला।
उस रात, साहूकार के परिवार में एक अनहोनी घटित हुई। साहूकार और उसकी छह बहुएं गंभीर रूप से बीमार पड़ गईं। घर में अशांति फैल गई। परिवार के लोग इस विपदा का कारण समझने में असमर्थ थे। परेशान होकर उन्होंने गांव के एक संत से परामर्श लिया।
संत ने कहा, "आपने सकट चौथ व्रत और पूजा का अपमान किया है। भगवान गणेश ने आपको यह सजा दी है। इस संकट से बचने के लिए पूरे परिवार को गणेश जी से क्षमा मांगनी होगी और व्रत को श्रद्धा के साथ करना होगा।"
साहूकार और उसकी बहुएं बहुत पछताईं। उन्होंने अगले दिन गणेश जी की विधिवत पूजा की और भगवान गणेश से क्षमा मांगी। उनकी प्रार्थनाओं के बाद, परिवार के सभी सदस्य ठीक हो गए।
तब से, यह कथा प्रचलित हो गई और सकट चौथ व्रत का महत्व हर घर में बताया जाने लगा। यह व्रत सिखाता है कि भक्ति, श्रद्धा, और विश्वास से भगवान गणेश सभी संकटों को हर लेते हैं और परिवार में सुख-शांति लाते हैं।
गर्भ धारण करने के सर्वोत्तम समय हेतु ऑनलाइन रिपोर्ट ले
ऑनलाइन रिपोर्ट ले
इस कथा का महत्व
यह कहानी सिखाती है कि भक्ति और विश्वास के साथ व्रत रखने से भगवान गणेश और देवी संकटहर्ता की कृपा प्राप्त होती है। संकटों से मुक्ति पाने और संतान के कल्याण के लिए यह व्रत विशेष रूप से प्रभावशाली माना जाता है।
सकट चौथ पूजा विधि
1. सुबह की तैयारी:
सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
पूजा स्थल को साफ करें और वहां भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
2. संकल्प:
व्रत को श्रद्धा से रखने का संकल्प लें और अपने परिवार के कल्याण और बाधाओं को दूर करने के लिए प्रार्थना करें।
3. पूजा विधि:
एक दीपक जलाएं और अगरबत्ती लगाएं।
दुर्वा, लाल फूल, फल और मोदक जैसे मिठाई भगवान गणेश को अर्पित करें।
गणेश मंत्र जैसे “ॐ गं गणपतये नमः” का जाप करें।
4. शाम की पूजा:
भगवान गणेश के लिए भोग तैयार करें।
सकट चौथ व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
आरती करें और सभी बाधाओं को दूर करने के लिए प्रार्थना करें।
5. व्रत तोड़ना :
चंद्रमा के दर्शन के बाद, चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करके व्रत तोड़ें।
क्या करें (Dos) सकट चौथ पर
• निर्जला व्रत रखें: यह व्रत का सबसे शुभ तरीका माना जाता है। जो लोग निर्जला व्रत नहीं रख सकते, वे आंशिक व्रत रख सकते हैं।
• मोदक और दुर्वा चढ़ाएं: यह भगवान गणेश की प्रिय भेंट मानी जाती है।
• गणेश मंत्र का जाप करें: भगवान गणेश को समर्पित मंत्रों का जाप व्रत के सकारात्मक प्र��ावों को बढ़ाता है।
• व्रत कथा सुनें: पूजा के दौरान सकट चौथ कथा अवश्य सुनें या पढ़ें।
क्या न करें (Don’ts) सकट चौथ पर
• मांसाहारी भोजन से बचें: इस पवित्र दिन पर मांसाहारी भोजन और शराब से दूर रहें।
• चंद्रोदय अनुष्ठान को न छोड़ें: व्रत चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित किए बिना अधूरा माना जाता है।
• लहसुन और प्याज का उपयोग न करें: भोग और अपने भोजन (यदि आंशिक व्रत) के लिए सात्विक भोजन तैयार करें।
• नकारात्मक विचार न र��ें: पूरे दिन सकारात्मक और भक्ति से भरा दृष्टिकोण बनाए रखें। सकट चौथ का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष के अनुसार, सकट चौथ मनाने से राहु और केतु जैसे अशुभ ग्रहों के प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो अपने कुंडली में प्रतिकूल ग्रहों की महादशा या अंतरदशा के कठिन समय से गुजर रहे हैं। इस शुभ दिन के लाभों को अपनी अनूठी ग्रह स्थिति के आधार पर अधिकतम करने के लिए डॉ. विनय बजरंगी जैसे अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श करें।
निष्कर्ष
सकट चौथ 2025 भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करने और जीवन की चुनौतियों को दूर करने का एक शक्तिशाली दिन है। व्रत को श्रद्धा से रखकर, पूजा को भक्ति से करके, और क्या करें और क्या न करें का पालन करके, भक्त आध्यात्मिक और भौतिक लाभों का अनुभव कर सकते हैं। इस दिन का आपके जीवन पर कैसे प्रभाव पड़ सकता है, इस पर व्यक्तिगत ज्योतिषीय मार्गदर्शन के लिए डॉ. विनय बजरंगी से परामर्श करें।
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helputrust-harsh · 1 month ago
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महाराणा प्रताप जन्म जयंती : एस पी रॉय | Maharana Pratap Birth Anniversary : S P Roy
22.05.2023, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में त्याग, बलिदान एवं पराक्रम के प्रतीक 'मेवाड़ मुकुट' महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती के अवसर पर रामायण पार्क, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष श्री एस पी रॉय, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव, सेक्टर 25 के निवासीगण ए. के. त्रिपाठी, जे. पी. गुप्ता, महेश जैसवाल, आर के शर्मा, सरिता शर्मा, के. पी. शर्मा, सुनीता शर्मा, संजय कुमार पाण्डेय तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों द्वारा महाराणा प्रताप जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण किया गया |
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था, देख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था |" भारतीय इतिहास में अनेक महान वीरों ने अपनी शौर्य और बलिदान के माध्यम से हमारे देश को गौरवान्वित किया है, उनमें से एक महान वीर थे "महाराणा प्रताप सिंह" जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं । महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के उदयपुर, मेवाड़ मे सिसोदिया राजपूत राजवंश के महान राजा थे एवं अपनी वीरता, पराक्रम, व शौर्यता के लिए जाने जाते थे । शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी | आज महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर आइए यह संकल्प लें कि अपने दुश्मनों के सामने कभी घुटने नहीं टेकेगे वह पूरे आत्मविश्वास एवं तन्मयता के साथ अपने देश की रक्षा करेंगे |"
महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष एस पी राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अनुपम, अद्वितीय, अपराजेय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के स्मरण मात्र से आज भी साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण संघर्ष एवं सफलता की चेतना एक साथ स्वत: हो जाती है l गुहील (गुहिला दित्य) कुल में आज से 483 साल पहले 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ किला में राणा उदय सिंह (द्वितीय) के पुत्र राणा प्रताप (प्रथम) जिन्हें हम महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ था l इस कुल की शुरूआत वर्ष 566 में गुहिला दित्य से हुई, जो इस्लाम धर्म के शुरुआत के कई वर्ष पूर्व हैं और यह वंश अभी तक चला आ रहा है इसीलिए इस वंश (dynasty) को विश्व का सबसे लंबा शासक वंश कहा जाता है | इसी कुल में अनेकों वीर योद्धा हुए जिन्होंने राजपूताना मेवाड़ के साथ अपनी मातृभूमि एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया | मध्यकालीन युग में राणा संग्राम सिंह जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, वे मुगल आक्रांता बाबर से लड़ाई लड़े ताकि भारत के पवित्र भूमि पर उसका कब्जा न हो और उसी स्वतंत्र मात्रभूमि की भावना का जीवंत स्वरूप हम महाराणा प्रताप में पाते हैं जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर, जिसका आधिपत्य और साम्राज्य समूचे उत्तर भारत पर था, के विरुद्ध वर्ष 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के कई वर्षों तक अपने प्रण पर अडिग रहकर लड़ते रहे क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहा जबकि मुगल के 30,000 सेना फौज के सामने महाराणा का मात्र 5000 सेना की फौज थी | इसी युद्ध में महाराणा का चेतक घायल हो गया था और तभी सामला के राजा मानसिंह झाला ने महाराणा को अपना मुकुट देकर रणभूमि से निकाला ताकि महाराणा प्रताप अकबर से बाद में लोहा ले सके | हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर 1577, 1578, 1579 एवं 1580 तक विभिन्न सेनापतियों जैसे सहवास हुसैन, बहलोल खान, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना के अगुवाई में लगातार बड़ी सेना की टुकड़ी के साथ भेजता रहा मगर सभी युद्ध अनिर्णायक रहा | महाराणा प्रताप गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई लड़ते थे 1581 में दानवीर भामाशाह ने धन देकर युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किए | वर्ष 1582 में विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने कोल  भील से गठित अकबर के 50,000 सेना पर धावा बोल दिया | यह युद्ध देवार युद्ध के नाम से जाना जाता है | और मुगल सेना हार के कारण अपने 36000 सेना महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया | महाराणा का चित्तौड़ छोड़कर पुनः पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया | इस तरह से विजयादशमी हम भारतीयों के लिए दो खुशियां लेकर आती है एक राजा रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने का और इसी सूर्यवंशी कुल में पैदा महाराणा के जीत का | इसी Battle of Dewar में महाराणा ने अपने तलवार से बहलोल खान को एक बार में ही बीचो-बीच टुकड़े कर दिए | मगर Battle of Dewar का  इतिहास में स्थान नहीं मिला | 1584 में अकबर स्वयं सेना लेकर आया मगर वह 6 माह बाद निराश होकर आगरा लौट गया वह महाराणा को पराजित नहीं कर सका | महाराणा कुल की महानता इससे भी जाहिर होती है कि राज चिन्ह में भील आदिवासी को राणा के समकक्ष रखा गया है और सूर्य के नीचे “जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार,” की पंक्ति अंकित है जो अपने धर्म की रक्षा का सन्देश देती है |
#महाराणा_प्रताप_जयंती #maharanapratapjayanti #MaharanaPratapJayanti #maharanapratapjayanti2023 #maharanapratap #rajputana #rajput #rajasthan #maharana #udaipur #mewar #rajasthani #baisa #kshatriya #hindu #jodhpur #haldighati #rajputi #jaipur #shivajimaharaj #rajputs #rajputanaculture
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helpukiranagarwal · 1 month ago
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महाराणा प्रताप जन्म जयंती : एस पी रॉय | Maharana Pratap Birth Anniversary : S P Roy
22.05.2023, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में त्याग, बलिदान एवं पराक्रम के प्रतीक 'मेवाड़ मुकुट' महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती के अवसर पर रामायण पार्क, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष श्री एस पी रॉय, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव, सेक्टर 25 के निवासीगण ए. के. त्रिपाठी, जे. पी. गुप्ता, महेश जैसवाल, आर के शर्मा, सरिता शर्मा, के. पी. शर्मा, सुनीता शर्मा, संजय कुमार पाण्डेय तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों द्वारा महाराणा प्रताप जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण किया गया |
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था, देख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था |" भारतीय इतिहास में अनेक महान वीरों ने अपनी शौर्य और बलिदान के माध्यम से हमारे देश को गौरवान्वित किया है, उनमें से एक महान वीर थे "महाराणा प्रताप सिंह" जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं । महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के उदयपुर, मेवाड़ मे सिसोदिया राजपूत राजवंश के महान राजा थे एवं अपनी वीरता, पराक्रम, व शौर्यता के लिए जाने जाते थे । शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी | आज महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर आइए यह संकल्प लें कि अपने दुश्मनों के सामने कभी घुटने नहीं टेकेगे वह पूरे आत्मविश्वास एवं तन्मयता के साथ अपने देश की रक्षा करेंगे |"
महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष एस पी राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अनुपम, अद्वितीय, अपराजेय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के स्मरण मात्र से आज भी साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण संघर्ष एवं सफलता की चेतना एक साथ स्वत: हो जाती है l गुहील (गुहिला दित्य) कुल में आज से 483 साल पहले 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ किला में राणा उदय सिंह (द्वितीय) के पुत्र राणा प्रताप (प्रथम) जिन्हें हम महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ था l इस कुल की शुरूआत वर्ष 566 में गुहिला दित्य से हुई, जो इस्लाम धर्म के शुरुआत के कई वर्ष पूर्व हैं और यह वंश अभी तक चला आ रहा है इसीलिए इस वंश (dynasty) को विश्व का सबसे लंबा शासक वंश कहा जाता है | इसी कुल में अनेकों वीर योद्धा हुए जिन्होंने राजपूताना मेवाड़ के साथ अपनी मातृभूमि एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया | मध्यकालीन युग में राणा संग्राम सिंह जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, वे मुगल आक्रांता बाबर से लड़ाई लड़े ताकि भारत के पवित्र भूमि पर उसका कब्जा न हो और उसी स्वतंत्र मात्रभूमि की भावना का जीवंत स्वरूप हम महाराणा प्रताप में पाते हैं जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर, जिसका आधिपत्य और साम्राज्य समूचे उत्तर भारत पर था, के विरुद्ध वर्ष 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के कई वर्षों तक अपने प्रण पर अडिग रहकर लड़ते रहे क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहा जबकि मुगल के 30,000 सेना फौज के सामने महाराणा का मात्र 5000 सेना की फौज थी | इसी युद्ध में महाराणा का चेतक घायल हो गया था और तभी सामला के राजा मानसिंह झाला ने महाराणा को अपना मुकुट देकर रणभूमि से निकाला ताकि महाराणा प्रताप अकबर से बाद में लोहा ले सके | हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर 1577, 1578, 1579 एवं 1580 तक विभिन्न सेनापतियों जैसे सहवास हुसैन, बहलोल खान, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना के अगुवाई में लगातार बड़ी सेना की टुकड़ी के साथ भेजता रहा मगर सभी युद्ध अनिर्णायक रहा | महाराणा प्रताप गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई लड़ते थे 1581 में दानवीर भामाशाह ने धन देकर युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किए | वर्ष 1582 में विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने कोल  भील से गठित अकबर के 50,000 सेना पर धावा बोल दिया | यह युद्ध देवार युद्ध के नाम से जाना जाता है | और मुगल सेना हार के कारण अपने 36000 सेना महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया | महाराणा का चित्तौड़ छोड़कर पुनः पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया | इस तरह से विजयादशमी हम भारतीयों के लिए दो खुशियां लेकर आती है एक राजा रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने का और इसी सूर्यवंशी कुल में पैदा महाराणा के जीत का | इसी Battle of Dewar में महाराणा ने अपने तलवार से बहलोल खान को एक बार में ही बीचो-बीच टुकड़े कर दिए | मगर Battle of Dewar का  इतिहास में स्थान नहीं मिला | 1584 में अकबर स्वयं सेना लेकर आया मगर वह 6 माह बाद निराश होकर आगरा लौट गया वह महाराणा को पराजित नहीं कर सका | महाराणा कुल की महानता इससे भी जाहिर होती है कि राज चिन्ह में भील आदिवासी को राणा के समकक्ष रखा गया है और सूर्य के नीचे “जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार,” की पंक्ति अंकित है जो अपने धर्म की रक्षा का सन्देश देती है |
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helputrust-drrupal · 1 month ago
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महाराणा प्रताप जन्म जयंती : एस पी रॉय | Maharana Pratap Birth Anniversary : S P Roy
22.05.2023, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में त्याग, बलिदान एवं पराक्रम के प्रतीक 'मेवाड़ मुकुट' महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती के अवसर पर रामायण पार्क, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष श्री एस पी रॉय, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव, सेक्टर 25 के निवासीगण ए. के. त्रिपाठी, जे. पी. गुप्ता, महेश जैसवाल, आर के शर्मा, सरिता शर्मा, के. पी. शर्मा, सुनीता शर्मा, संजय कुमार पाण्डेय तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों द्वारा महाराणा प्रताप जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण किया गया |
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था, देख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था |" भारतीय इतिहास में अनेक महान वीरों ने अपनी शौर्य और बलिदान के माध्यम से हमारे देश को गौरवान्वित किया है, उनमें से एक महान वीर थे "महाराणा प्रताप सिंह" जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं । महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के उदयपुर, मेवाड़ मे सिसोदिया राजपूत राजवंश के महान राजा थे एवं अपनी वीरता, पराक्रम, व शौर्यता के लिए जाने जाते थे । शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी | आज महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर आइए यह संकल्प लें कि अपने दुश्मनों के सामने कभी घुटने नहीं टेकेगे वह पूरे आत्मविश्वास एवं तन्मयता के साथ अपने देश की रक्षा करेंगे |"
महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष एस पी राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अनुपम, अद्वितीय, अपराजेय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के स्मरण मात्र से आज भी साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण संघर्ष एवं सफलता की चेतना एक साथ स्वत: हो जाती है l गुहील (गुहिला दित्य) कुल में आज से 483 साल पहले 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ किला में राणा उदय सिंह (द्वितीय) के पुत्र राणा प्रताप (प्रथम) जिन्हें हम महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ था l इस कुल की शुरूआत वर्ष 566 में गुहिला दित्य से हुई, जो इस्लाम धर्म के शुरुआत के कई वर्ष पूर्व हैं और यह वंश अभी तक चला आ रहा है इसीलिए इस वंश (dynasty) को विश्व का सबसे लंबा शासक वंश कहा जाता है | इसी कुल में अनेकों वीर योद्धा हुए जिन्होंने राजपूताना मेवाड़ के साथ अपनी मातृभूमि एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया | मध्यकालीन युग में राणा संग्राम सिंह जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, वे मुगल आक्रांता बाबर से लड़ाई लड़े ताकि भारत के पवित्र भूमि पर उसका कब्जा न हो और उसी स्वतंत्र मात्रभूमि की भावना का जीवंत स्वरूप हम महाराणा प्रताप में पाते हैं जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर, जिसका आधिपत्य और साम्राज्य समूचे उत्तर भारत पर था, के विरुद्ध वर्ष 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के कई वर्षों तक अपने प्रण पर अडिग रहकर लड़ते रहे क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहा जबकि मुगल के 30,000 सेना फौज के सामने महाराणा का मात्र 5000 सेना की फौज थी | इसी युद्ध में महाराणा का चेतक घायल हो गया था और तभी सामला के राजा मानसिंह झाला ने महाराणा को अपना मुकुट देकर रणभूमि से निकाला ताकि महाराणा प्रताप अकबर से बाद में लोहा ले सके | हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर 1577, 1578, 1579 एवं 1580 तक विभिन्न सेनापतियों जैसे सहवास हुसैन, बहलोल खान, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना के अगुवाई में लगातार बड़ी सेना की टुकड़ी के साथ भेजता रहा मगर सभी युद्ध अनिर्णायक रहा | महाराणा प्रताप गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई लड़ते थे 1581 में दानवीर भामाशाह ने धन देकर युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किए | वर्ष 1582 में विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने कोल  भील से गठित अकबर के 50,000 सेना पर धावा बोल दिया | यह युद्ध देवार युद्ध के नाम से जाना जाता है | और मुगल सेना हार के कारण अपने 36000 सेना महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया | महाराणा का चित्तौड़ छोड़कर पुनः पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया | इस तरह से विजयादशमी हम भारतीयों के लिए दो खुशियां लेकर आती है एक राजा रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने का और इसी सूर्यवंशी कुल में पैदा महाराणा के जीत का | इसी Battle of Dewar में महाराणा ने अपने तलवार से बहलोल खान को एक बार में ही बीचो-बीच टुकड़े कर दिए | मगर Battle of Dewar का  इतिहास में स्थान नहीं मिला | 1584 में अकबर स्वयं सेना लेकर आया मगर वह 6 माह बाद निराश होकर आगरा लौट गया वह महाराणा को पराजित नहीं कर सका | महाराणा कुल की महानता इससे भी जाहिर होती है कि राज चिन्ह में भील आदिवासी को राणा के समकक्ष रखा गया है और सूर्य के नीचे “जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार,” की पंक्ति अंकित है जो अपने धर्म की रक्षा का सन्देश देती है |
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drrupal-helputrust · 1 month ago
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22.05.2023, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में त्याग, बलिदान एवं पराक्रम के प्रतीक 'मेवाड़ मुकुट' महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती के अवसर पर रामायण पार्क, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष श्री एस पी रॉय, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव, सेक्टर 25 के निवासीगण ए. के. त्रिपाठी, जे. पी. गुप्ता, महेश जैसवाल, आर के शर्मा, सरिता शर्मा, के. पी. शर्मा, सुनीता शर्मा, संजय कुमार पाण्डेय तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों द्वारा महाराणा प्रताप जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण किया गया |
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था, देख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था |" भारतीय इतिहास में अनेक महान वीरों ने अपनी शौर्य और बलिदान के माध्यम से हमारे देश को गौरवान्वित किया है, उनमें से एक महान वीर थे "महाराणा प्रताप सिंह" जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं । महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के उदयपुर, मेवाड़ मे सिसोदिया राजपूत राजवंश के महान राजा थे एवं अपनी वीरता, पराक्रम, व शौर्यता के लिए जाने जाते थे । शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी | आज महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर आइए यह संकल्प लें कि अपने दुश्मनों के सामने कभी घुटने नहीं टेकेगे वह पूरे आत्मविश्वास एवं तन्मयता के साथ अपने देश की रक्षा करेंगे |"
महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष एस पी राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अनुपम, अद्वितीय, अपराजेय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के स्मरण मात्र से आज भी साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण संघर्ष एवं सफलता की चेतना एक साथ स्वत: हो जाती है l गुहील (गुहिला दित्य) कुल में आज से 483 साल पहले 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ किला में राणा उदय सिंह (द्वितीय) के पुत्र राणा प्रताप (प्रथम) जिन्हें हम महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ था l इस कुल की शुरूआत वर्ष 566 में गुहिला दित्य से हुई, जो इस्लाम धर्म के शुरुआत के कई वर्ष पूर्व हैं और यह वंश अभी तक चला आ रहा है इसीलिए इस वंश (dynasty) को विश्व का सबसे लंबा शासक वंश कहा जाता है | इसी कुल में अनेकों वीर योद्धा हुए जिन्होंने राजपूताना मेवाड़ के साथ अपनी मातृभूमि एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया | मध्यकालीन युग में राणा संग्राम सिंह जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, वे मुगल आक्रांता बाबर से लड़ाई लड़े ताकि भारत के पवित्र भूमि पर उसका कब्जा न हो और उसी स्वतंत्र मात्रभूमि की भावना का जीवंत स्वरूप हम महाराणा प्रताप में पाते हैं जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर, जिसका आधिपत्य और साम्राज्य समूचे उत्तर भारत पर था, के विरुद्ध वर्ष 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के कई वर्षों तक अपने प्रण पर अडिग रहकर लड़ते रहे क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहा जबकि मुगल के 30,000 सेना फौज के सामने महाराणा का मात्र 5000 सेना की फौज थी | इसी युद्ध में महाराणा का चेतक घायल हो गया था और तभी सामला के राजा मानसिंह झाला ने महाराणा को अपना मुकुट देकर रणभूमि से निकाला ताकि महाराणा प्रताप अकबर से बाद में लोहा ले सके | हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर 1577, 1578, 1579 एवं 1580 तक विभिन्न सेनापतियों जैसे सहवास हुसैन, बहलोल खान, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना के अगुवाई में लगातार बड़ी सेना की टुकड़ी के साथ भेजता रहा मगर सभी युद्ध अनिर्णायक रहा | महाराणा प्रताप गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई लड़ते थे 1581 में दानवीर भामाशाह ने धन देकर युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किए | वर्ष 1582 में विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने कोल  भील से गठित अकबर के 50,000 सेना पर धावा बोल दिया | यह युद्ध देवार युद्ध के नाम से जाना जाता है | और मुगल सेना हार के कारण अपने 36000 सेना महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया | महाराणा का चित्तौड़ छोड़कर पुनः पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया | इस तरह से विजयादशमी हम भारतीयों के लिए दो खुशियां लेकर आती है एक राजा रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने का और इसी सूर्यवंशी कुल में पैदा महाराणा के जीत का | इसी Battle of Dewar में महाराणा ने अपने तलवार से बहलोल खान को एक बार में ही बीचो-बीच टुकड़े कर दिए | मगर Battle of Dewar का  इतिहास में स्थान नहीं मिला | 1584 में अकबर स्वयं सेना लेकर आया मगर वह 6 माह बाद निराश होकर आगरा लौट गया वह महाराणा को पराजित नहीं कर सका | महाराणा कुल की महानता इससे भी जाहिर होती है कि राज चिन्ह में भील आदिवासी को राणा के समकक्ष रखा गया है और सूर्य के नीचे “जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार,” की पंक्ति अंकित है जो अपने धर्म की रक्षा का सन्देश देती है |
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kaawkaawnews · 2 months ago
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अब क्यों चर्चा में है वाराणसी का उदय प्रताप काॅलेज
ये है वाराणसी का उदय प्रताप कॉलेज. लगभग 100 एकड़ में फैला ह��. इस कॉलेज परिसर में एक मस्जिद और मजार भी है. साल 2018 में सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कॉलेज को नोटिस दिया और सारी संपत्ति वक्फ बोर्ड की बताई. इस पर तभी से विवाद है. यह भी पढ़ें: अदालतें क्यों दे रही है मस्जिद के सर्वे को आदेश? चार दिन पहले इस कॉलेज में मुख्यमंत्री योगी आए थे. मुख्यमंत्री योगी यूनिवर्सिटी बनाने की घोषणा कर गए. इससे…
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dainikdangal · 4 months ago
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चंद्रोदय का समय और पूजा विधि: करवा चौथ 2024 की सभी जानकारी
करवा चौथ 2024 का पर्व 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा, जो विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ के दिन का मुख्य आकर्षण चंद्रमा का दर्शन और पूजा होती है, जिसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है। चंद्रमा के उदय होने का समय और पूजा की विधि जानना बहुत जरूरी है ताकि पूजा सही समय पर और सही तरीके से की जा…
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helputrust · 1 month ago
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महाराणा प्रताप जन्म जयंती : एस पी रॉय | Maharana Pratap Birth Anniversary : S P Roy
22.05.2023, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में त्याग, बलिदान एवं पराक्रम के प्रतीक 'मेवाड़ मुकुट' महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती के अवसर पर रामायण पार्क, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष श्री एस पी रॉय, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव, सेक्टर 25 के निवासीगण ए. के. त्रिपाठी, जे. पी. गुप्ता, महेश जैसवाल, आर के शर्मा, सरिता शर्मा, के. पी. शर्मा, सुनीता शर्मा, संजय कुमार पाण्डेय तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों द्वारा महाराणा प्रताप जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण किया गया |
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था, देख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था |" भारतीय इतिहास में अनेक महान वीरों ने अपनी शौर्य और बलिदान के माध्यम से हमारे देश को गौरवान्वित किया है, उनमें से एक महान वीर थे "महाराणा प्रताप सिंह" जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं । महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के उदयपुर, मेवाड़ मे सिसोदिया राजपूत राजवंश के महान राजा थे एवं अपनी वीरता, पराक्रम, व शौर्यता के लिए जाने जाते थे । शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी | आज महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर आइए यह संकल्प लें कि अपने दुश्मनों के सामने कभी घुटने नहीं टेकेगे वह पूरे आत्मविश्वास एवं तन्मयता के साथ अपने देश की रक्षा करेंगे |"
महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष एस पी राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अनुपम, अद्वितीय, अपराजेय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के स्मरण मात्र से आज भी साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण संघर्ष एवं सफलता की चेतना एक साथ स्वत: हो जाती है l गुहील (गुहिला दित्य) कुल में आज से 483 साल पहले 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ किला में राणा उदय सिंह (द्वितीय) के पुत्र राणा प्रताप (प्रथम) जिन्हें हम महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ था l इस कुल की शुरूआत वर्ष 566 में गुहिला दित्य से हुई, जो इस्लाम धर्म के शुरुआत के कई वर्ष पूर्व हैं और यह वंश अभी तक चला आ रहा है इसीलिए इस वंश (dynasty) को विश्व का सबसे लंबा शासक वंश कहा जाता है | इसी कुल में अनेकों वीर योद्धा हुए जिन्होंने राजपूताना मेवाड़ के साथ अपनी मातृभूमि एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया | मध्यकालीन युग में राणा संग्राम सिंह जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, वे मुगल आक्रांता बाबर से लड़ाई लड़े ताकि भारत के पवित्र भूमि पर उसका कब्जा न हो और उसी स्वतंत्र मात्रभूमि की भावना का जीवंत स्वरूप हम महाराणा प्रताप में पाते हैं जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर, जिसका आधिपत्य और साम्राज्य समूचे उत्तर भारत पर था, के विरुद्ध वर्ष 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के कई वर्षों तक अपने प्रण पर अडिग रहकर लड़ते रहे क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहा जबकि मुगल के 30,000 सेना फौज के सामने महाराणा का मात्र 5000 सेना की फौज थी | इसी युद्ध में महाराणा का चेतक घायल हो गया था और तभी सामला के राजा मानसिंह झाला ने महाराणा को अपना मुकुट देकर रणभूमि से निकाला ताकि महाराणा प्रताप अकबर से बाद में लोहा ले सके | हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर 1577, 1578, 1579 एवं 1580 तक विभिन्न सेनापतियों जैसे सहवास हुसैन, बहलोल खान, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना के अगुवाई में लगातार बड़ी सेना की टुकड़ी के साथ भेजता रहा मगर सभी युद्ध अनिर्णायक रहा | महाराणा प्रताप गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई लड़ते थे 1581 में दानवीर भामाशाह ने धन देकर युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किए | वर्ष 1582 में विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने कोल  भील से गठित अकबर के 50,000 सेना पर धावा बोल दिया | यह युद्ध देवार युद्ध के नाम से जाना जाता है | और मुगल सेना हार के कारण अपने 36000 सेना महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया | महाराणा का चित्तौड़ छोड़कर पुनः पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया | इस तरह से विजयादशमी हम भारतीयों के लिए दो खुशियां लेकर आती है एक राजा रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने का और इसी सूर्यवंशी कुल में पैदा महाराणा के जीत का | इसी Battle of Dewar में महाराणा ने अपने तलवार से बहलोल खान को एक बार में ही बीचो-बीच टुकड़े कर दिए | मगर Battle of Dewar का  इतिहास में स्थान नहीं मिला | 1584 में अकबर स्वयं सेना लेकर आया मगर वह 6 माह बाद निराश होकर आगरा लौट गया वह महाराणा को पराजित नहीं कर सका | महाराणा कुल की महानता इससे भी जाहिर होती है कि राज चिन्ह में भील आदिवासी को राणा के समकक्ष रखा गया है और सूर्य के नीचे “जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार,” की पंक्ति अंकित है जो अपने धर्म की रक्षा का सन्देश देती है |
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tgop123 · 4 months ago
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Karwa Chauth 2024: Puja Timings, Moonrise, and Fasting Rituals
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करवा चौथ एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है जिसे मुख्य रूप से विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए मनाती हैं। यह त्योहार उत्तर भारत में विशेष रूप से लोकप्रिय है और सुहागिन स्त्रियों के लिए विशेष महत्व रखता है। 2024 में करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएँ पूरे दिन उपवास रखती हैं और रात में चंद्रमा के free kundali matching दर्शन के बाद अपना व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ का पर्व नारी शक्ति, त्याग और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस दिन महिलाएँ न केवल अपने पति की लंबी उम्र और सफलता के लिए व्रत रखती हैं, बल्कि यह पर्व पति-पत्नी के रिश्ते को और भी गहरा और मजबूत बनाने Karwa Chauth 2024 का अवसर भी प्रदान करता है। करवा चौथ पर महिलाएँ सोलह श्रृंगा��� करती हैं और विधिपूर्वक पूजा करती हैं। यह त्योहार उत्तर भारत के अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी मनाया जाता है, और इसके पीछे की मान्यता यह है कि यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशहाली और सुख-समृद्धि लाता है।
करवा चौथ व्रत का समय और मुहूर्त (2024)
करवा चौथ व्रत का समय और चंद्रमा उदय का मुहूर्त व्रत को विशेष रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं। व्रत का प्रारंभ सूर्योदय से होता है और इसका समापन चंद्रमा के दर्शन के बाद किया जाता है। इस वर्ष करवा चौथ 20 अक्टूबर को है और चंद्रमा के shubh muhurat today उदय का समय इस दिन की पूजा के लिए महत्वपूर्ण है।
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करवा चौथ 2024 का प्रमुख मुहूर्त इस प्रकार है:
चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 20 अक्टूबर 2024, रविवार को सुबह 09:30 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त: 21 अक्टूबर 2024, सोमवार को सुबह 06:36 बजे
चंद्र दर्शन का समय: 20 अक्टूबर 2024 को रात 08:15 बजे (स्थान के अनुसार समय में थोड़ा बदलाव हो सकता है)
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पूजा विधि
करवा चौथ के दिन महिलाएँ Karwa Chauth पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। इस दिन महिलाएँ सूर्योदय से पहले उठकर सरगी खाती हैं, जो कि उनकी सास द्वारा दी जाती है। सरगी में मिठाई, फल, और अन्य पौष्टिक आहार होते हैं जो दिन भर के व्रत में ऊर्जा बनाए रखने में मदद करते हैं। सरगी खाने के बाद महिलाएँ पूरे दिन जल और अन्न का त्याग करती हैं और शाम को भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा करती हैं। पूजा में करवा, दीपक, फल और मिठाई चढ़ाई जाती है।
पूजा के बाद महिलाएँ चंद्रमा का इंतजार करती हैं। चंद्रमा के उदय होने के बाद वे उसे अर्घ्य देकर पूजा करती हैं। इसके बाद उनके numerology matching for marriage पति उनके व्रत को तुड़वाते हैं और जल ग्रहण कराते हैं।
करवा चौथ का धार्मिक और सामाजिक महत्व
करवा चौथ एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में ही नहीं, बल्कि पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास को मजबूत करने का अवसर भी है। इस दिन महिलाएँ अपने सोलह श्रृंगार के साथ सजधज कर पूजा करती हैं, जिससे यह त्योहार सौंदर्य, शक्ति और नारीत्व का भी प्रतीक बन जाता है। यह व्रत पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को और भी प्रगाढ़ बनाता है।
करवा चौथ का पर्व आज के आधुनिक युग में भी Karwa Chauth festival अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है, जहाँ पति-पत्नी एक दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम का इज़हार इस व्रत के माध्यम से करते हैं।
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airnews-arngbad · 14 days ago
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Regional Marathi Text Bulletin, Chhatrapati Sambhajinagar Date – 20 January 2025 Time 7.10 AM to 7.20 AM Language Marathi आकाशवाणी छत्रपती संभाजीनगर प्रादेशिक बातम्या दिनांक २० जानेवारी २०२५ सकाळी ७.१० मि.
• संविधान निर्मात्यांना अभिमान वाटावा, असा भारत घडवण्यासाठी कार्यरत राहण्याचं पंतप्रधानांचं आवाहन • स्वित्झर्लंडमधील दाओसमध्ये आजपासून होणार विविध क्षेत्रासंबंधी सामंजस्य करार • शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालयांमध्ये अवयव प्रत्यारोपण सुविधा वर्षभरात उपलब्ध करुन देणार - वैद्यकीय शिक्षण मंत्री हसन मुश्रीफ यांचं आश्वासन • पहिल्या खो-खो विश्वचषक स्पर्धेत भारतीय महिला आणि पुरुष संघाला अजिंक्यपद आणि • दहाव्या अजिंठा वेरुळ आंतरराष्ट्रीय चित्रपट महोत्सवाचा समारोप
संविधान निर्मात्यांना अभिमान वाटावा, असा भारत घडवण्यासाठी कार्यरत राहण्याचं आवाहन, पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी केलं आहे. ते काल आकाशवाणीवरच्या ‘मन की बात’ कार्यक्रम मालिकेच्या ११८ व्या भागात नागरिकांशी संवाद साधत होते. भारतीय प्रजासत्ताकाच्या ७५ व्या वर्धापन दिनाच्या अनुषंगाने, संविधान सभेत डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी यांनी मांडलेल्या विचारांचं ध्वनिमुद्रण पंतप्रधानांनी श्रोत्यांना ऐकवलं… ‘‘जब संविधान सभा ने अपना काम शुरू किया, तो बाबासाहब आंबेडकर ने परस्पर सहयोग को लेकर एक बहुत मह��्वपूर्ण बात कही थी | “Our difficulty as I said is not about the ultimate future. Our difficulty is how to make the heterogeneous mass that we have today, take a decision in common and march in a cooperative way on that road which is bound to lead us to unity.” ये audio डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी का है - “हमारी जिंदगी और संस्कृति में कुछ ऐसा है जिसने हमें समय के थपेड़ों के बावजूद जिंदा रहने की शक्ति दी है| अगर हम अपने आदर्शों को सामने रखे रहेंगे तो हम संसार की बड़ी सेवा कर पाएंगे |” अब मै आपको डॉ. श्याम प्रसाद मुखरजी की आवाज सुनाता हूं| ’’
येत्या २३ जानेवारीला नेताजी सुभाषचंद्र बोस यांच्या जयंतीदिनी साजरा होणारा पराक्रम दिवस, २५ जानेवारीला साजरा होणारा राष्ट्रीय मतदार दिन, भारतीय अंतराळ संशोधन संस्था-इस्रोचा अंतराळात दोन उपग्रह परस्परांशी जोडण्याचा यशस्वी प्रयोग, भारतीय अंतराळ तंत्रज्ञान स्टार्ट-अप कंपनीकडून देशातल्या पहिला खाजगी उपग्रहाचं यशस्वीरित्या प्रक्षेपण, स्टार्टअप उपक्रमाची यशस्वी वाटचाल, वन्यजीव संवर्धन, आदी विषयांवर पंतप्रधानांनी आपले विचार मांडले. महिला बचत गटांच्या प्रेरणादायी यशोगाथाही त्यांनी श्रोत्यांना ऐकवल्या. यंदाच्या कुंभमेळ्यात युवा वर्गाच��� मोठा सहभाग असल्याचा उल्लेख करुन, हा कुंभमेळा डिजीटल माध्यमांतून जागतिक स्तरावर लोकप्रिय ठरत असल्याचा, प्रत्येक भारतीयाला अभिमान असल्याचं, पंतप्रधानांनी नमूद केलं.
स्वित्झर्लंडमधल्या दाओस इथं आजपासून जागतिक आर्थिक मंच २०२५ ला प्रारंभ होत आहे. या कार्यक्रमात केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव सहभागी होणार असून, ते देशाच्या विकास आराखड्याची माहिती देतील. या परिषदेत सहभागी होण्यासाठी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस आणि उद्योगमंत्री उदय सामंत दावोस इथं दाखल झाले आहेत. या दौऱ्यात विविध क्षेत्रात सामंजस्य करार होण्याची अपेक्षा आहे.
कर्मचारी भविष्य निर्वाह निधी संघटनेनं सदस्यांची प्रोफाईल अपडेट करण्याची ऑनलाईन प्रक्रिया सुलभ केली आहे. ज्या सदस्यांचे युनिव्हर्सल अकाउंट नंबर आधार कार्डच्या माध्यमातून वैध झाले आहेत, असे सदस्य त्यांच्या प्रोफाईलमध्ये त्यांचं स्वतःचं नाव, जन्मतारीख, ��िंग, राष्ट्रीयत्व, वडिल अथवा आईचं नाव, रुजू झाल्याचा दिनांक, समाप्ती दिनांक आदी तपशील कुठल्याही कागदपत्रांशिवाय अपलोड करू शकतात. या सुविधेचा लाभ तीन लाख ९० हजार कर्मचारी भविष्य निर्वाह निधी धारकांना होणार असल्याची माहिती श्रम आणि रोजगार मंत्रालयानं दिली आहे.
राज्यातल्या शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय आणि संलग्न रुग्णालयांमध्ये अवयव प्रत्यारोपण सुविधांसह सर्व सुविधा येत्या वर्षभरात उपलब्ध करुन देण्याचं आश्वासन, वैद्यकीय शिक्षण मंत्री हसन मुश्रीफ यांनी दिलं आहे. काल छत्रपती संभाजीनगर इथं शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालयात अतिविशेषोपचार रुग्णालयाचं उद्घाटन आणि आर्थिकदृष्ट्या मागासवर्गीय घटकांसाठी विविध सुविधांचं भूमिपूजन मुश्रीफ यांच्या हस्ते करण्यात आलं, त्यावेळी ते बोलत होते. ‘‘या हॉस्पिटलमध्ये गरीब लोकं येतात. जवळजवळ मराठवाड्यातील आणि मराठवाडा लगतच्या जिल्ह्यांतील गरीब माणसं इथं येतात. त्यांना बाहेरच्या दवाखान्यात, खाजगी दवाखान्यात पैसा देणं परवडत नाही. त्यांचीसुद्धा अतिशय चांगली व्यवस्था होणं अतिशय आवश्यक आहे. खाजगी दवाखान्यामध्ये तिकडे लोकांचा कल जास्त असतो पैसे भरायचा. पण मी म्हणतो आपण शासकीय रूग्णालयांमध्ये किडनी ट्रान्सप्लांट, हार्ट ट्रान्सप्लांट, लिवर ट्रान्सप्लांट अशा सुविधा इथे का निर्माण करू शकत नाही. आणि म्हणून माझं हे स्वप्न आहे की अशा शासकीय महाविद्यालयांमध्ये या सुविधा वर्षभरामध्ये सुरू केल्याशिवाय मी राहणार नाही.’’
जिल्ह्याचे पालकमंत्री संजय शिरसाट यावेळी उपस्थित होते. मुश्रीफ यांनी सांगितलेल्या सर्व सुविधांचा विकास करणं ही जबाबदारी असून पालकमंत्री म्हणून सर्व कामांसाठी एकत्रित निधी देणार, अशी घोषणा शिरसाट यांनी केली.
नांदेड जिल्ह्यातल्या स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाडा विद्यापीठातले संशोधक प्राध्यापक डॉक्टर राजाराम माने आणि डॉक्टर झोयेक शेख यांच्या गटानं केलेल्या संशोधनाला, अमेरिकेचं पेटंट प्राप्त झालं आहे. या संशोधनाद्वारे मानवी मूत्रापासून कार्बन पदार्थांची निर्मिती करुन त्याचा वापर हायड्रोजन ऊर्जा निर्मितीसाठी करता येत असल्याची माहिती विद्यापीठातर्फे देण्यात आली. या यशाबद्दल डॉ. माने आणि त्यांच्या सहकाऱ्यांचं विद्यापीठाचे कुलगुरू डॉ. मनोहर चासकर यांनी अभिनंदन केलं आहे.
पहिल्या खो-खो विश्वचषक स्पर्धेत भारतीय महिला आणि पुरुष संघ अजिंक्य ठरले. दिल्लीत इथं काल झालेल्या अंतिम सामन्यात भारतीय महिला संघाने नेपाळचा ७८ विरुद्ध ४० असा, तर भारतीय पुरुष संघानेही नेपाळचाच ५४ विरुद्ध ३६ असा पराभव केला. केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू, माजी लोकसभा ��ध्यक्ष सुमित्रा महाजन यावेळी उपस्थित होते. या विजयाबद्दल पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी दोन्ही संघांचं अभिनंदन केलं आहे.
छत्रपती संभाजीनगर इथं आयोजित दहाव्या अजिंठा वेरुळ आंतरराष्ट्रीय चित्रपट महोत्सवाचा काल सिनेदिग्दर्शिका फराह खान यांच्या उपस्थितीत समारोप झाला. या समारोप सोहळ्यात सर्वोत्कृष्ट चित्रपटासाठीचा सुवर्ण कैलास पुरस्कार शांतिनिकेतन या चित्रपटाला प्रदान करण्यात आला. ऑस्कर विजेते साउंड डिझायनर पद्मश्री रसुल पुकुट्टी, राज्य चित्रपट रंगभूमी आणि सांस्कृतिक विकास महामंडळाचे सहव्यवस्थापकीय संचालकधनंजय सावळकर यावेळी उपस्थित होते.
छत्रपती संभाजीनगर इथल्या स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाडा संशोधन संस्थेचा पद्मविभुषण गोविंदभाई श्रॉफ स्मृती पुरस्कार ज्येष्ठ सामाजिक कार्यकर्ते आणि भारतीय कम्युनिस्ट पक्षाचे राष्ट्रीय सचिव डॉ भालचंद्र कांगो यांना काल प्रदान करण्यात आला. स्मृतिचिन्ह आणि रोख रक्कम अशा स्वरुपाचा हा पुरस्कार संस्थेचे अध्यक्ष डॉ. डी के देशमुख यांच्या हस्ते प्रदान करण्यात आला. हा पुरस्कार स्वीकारल्यानंतर आपल्या भावना व्यक्त करतांना डॉ कांगो म्हणाले.. ‘‘माझा सत्कार हा माझा व्यक्तीश: सत्कार नसून, माझं सतत म्हणणं आहे की माझ्याबरोबर जे कार्यकर्ते होऊन गेले, त्या कार्यकर्त्यांनी मला मदत केली, अनेक कार्यकर्ते आहेत जे अजुनही माझ्याबरोबर काम करत आहेत. या सगळ्या कार्यकर्त्यांनी मदत केल्यामुळेच मी काहीतरी करु शकलो. आणि म्हणून त्यांचाही हा सत्कार आहे.’’
बीड तालुक्यातल्या घोडका राजुरी गावाजवळ काल सकाळी एसटी बसच्या धडकेत तीन युवकांचा मृत्यू झाला. मृतांच्या कुटुंबीयांना प्रत्येकी १० लाख रुपये मदत देण्याचे निर्देश एसटी प्रशासनाला दिले असल्याची माहिती परिवहन मंत्री प्रताप सरनाईक यांनी दिली. सकाळच्या धुक्यामुळे धावण्याचा सराव करणारे युवक दिसले नाहीत, असं चालकाचं म्हणणं आहे.
बीड जिल्ह्याच्या केज तालुक्यातल्या मस्साजोग इथले सरपंच संतोष देशमुख यांच्या हत्येच्या निषेधार्थ तसंच परभणी इथं कोठडीत निधन झालेले सोमनाथ सूर्यवंशी यांना न्याय मिळावा या मागणीसाठी काल छत्रपती संभाजीनगर इथं जनआक्रोश मोर्चा काढण्यात आला. या मोर्चात मराठा आंदोलन नेते मनोज जरांगे पाटील, माजी खासदार इम्तियाज जलील, विधान परिषदेचे विरोधी पक्ष नेते अंबादास दानवे यांच्यासह मोठा जनसमुदाय सहभागी झाला होता.
हिंगोली जिल्ह्यात कळमनुरी इथल्या जिल्हा परिषदेच्या मैदानावर काल शासकीय सेवा आणि योजनांचा महामेळावा तसंच अंमलबजावणी महाशिबीर घेण्यात आलं. या का��्यक्रमाचं उद्घाटन मुंबई उच्च न्यायालयाच्या औरंगाबाद खंडपीठाचे न्यायमूर्ती तथा जिल्हा पालक न्यायमूर्ती नितीन सूर्यवंशी यांच्या हस्ते झालं. यावेळी उपस्थित मान्यवरांच्या हस्ते आदिवासी लाभार्थ्यांना विविध लाभांचं वाटप करण्यात आलं.
हिंगोली इथल्या बौद्ध संस्कृतिक मंडळाच्या वतीने आयोजित डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर व्याख्यानमालेचं उद्घाटन काल प्रसिद्ध व्याख्याते डॉ. ऋषिकेश कांबळे यांच्या हस्ते झालं. चळवळीच्या पुनर्मांडणीची गरज-अर्थात चळवळी बांधारे, या विषयावर बोलताना कांबळे यांनी, समाजातील ज्वलंत प्रश्न घेऊन लढे उभे केल्यास चळवळ उभी राहील, असं मत व्यक्त केलं.
लातूर जिल्ह्यात उदगीर इथं दगावलेले कावळे 'एव्हीयन इन्फल्युएन्झा एच 5 एन 1' विषाणुजन्य रोगामुळं मृत झाल्याचं, तपासणीत आढळलं आहे. यामुळं उदगीर शहरातला संबंधित परिसर हा अलर्ट झोन - सावधानता क्षेत्र म्हणून जाहीर करण्यात आला आहे. प्रभावित क्षेत्राच्या दहा किलोमीटर परिघातल्या कोंबड्यांच्या सर्वेक्षणाचे नमुने तपासणीसाठी पाठवण्याचे आदेश ला��ूरच्या जिल्हाधिकारी वर्षा ठाकूर घुगे यांनी दिले आहेत.
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jyotis-things · 4 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart98 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart99
"शिशु कबीर देव द्वारा कुँवारी गाय का दूध पीना"
बालक कबीर को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे। 25 दिन जब बालक को निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-2 कर विलाप कर रही थी। सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न भिन्न-2 स्त्री-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। आज पच्चीसवाँ दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फाँसी पर लटक जाऊँगी। मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए पीए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता। यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह सोच कर फूट-2 कर रो रही थी। भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना तथा उससे की गई प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी।
भगवान शिव, एक ब्राह्मण (ऋषि) का रूप बना कर नीरू की झोंपड़ी के सामने खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। सन्त रूप में खडे भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी हे ब्राह्मण ! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे। फकीर वेशधारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है आप के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आँसू जिव्हा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे महात्मा जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह काशी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उस दिन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने इष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीनदयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया। सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भी आहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूँगी। मैं इसकी मृत्यु की प्रतिक्षा कर रही हूँ। सर्व रात्रि बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी।
नीमा के मुख से सर्वकथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा। आप का बालक मुझे दिखाईए। ए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर ऋषि के समक्ष प्रस्तुत किया। दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्टि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाएँ व हस्त रेखाएँ देख कर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है। कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे विप्रवर! बनावटी सांत्वना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की साँस आएगी। पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कुँवारी गाय लाऐं। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कुँवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याए (अर्थात् कुँवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी। परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई।
शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा ब्राह्मण को प्रणाम किया। ब्राह्मण ने कहा नीरू ! आप एक कुँवारी गाय लाओ। वह दूध देवेगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कुँवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर से एक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्र) भी ले आया। परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार विप्ररूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्र थनों के नीचे रखने का आदेश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने ब्राह्मण रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव के रूप हो। आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र ! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। विप्र रूपधारी भगवान शंकर बोले ! साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधु नाहीं। यह कहकर विप्र रूपधारी शिवजी ने वहाँ से प्रस्थान किया।
विशेष वर्णन अध्याय "ज्ञान सागर" के पृष्ठ 74 तथा "स्वसमबेद बोध" के पृष्ठ 134 पर भी है जो इस प्रकार है:-
"कबीर सागर के ज्ञान सागर के पृष्ठ 74 पर" सुत काशी को ले चले, लोग देखन तहाँ आय। अन्न-पानी भक्ष नहीं, जुलहा शोक जनाय ।। तब जुलहा मन कीन तिवाना, रामानन्द सो कहा उत्पाना ।। मैं सुत पायो बड़ा गुणवन्ता। कारण कौण भखै नहीं सन्ता। रामानन्द ध्यान तब धारा। जुलहा से तब बचन उच्चारा ।।। पूर्व जन्म तैं ब्राह्मण जाती। हरि सेवा किन्ही भलि भांति ।। कुछ सेवा तुम हरि की चुका। तातै भयों जुलहा का रूपा ।।
प्रति प्रभु कह तोरी मान लीन्हा। ता���ें उद्यान में सुत तोंह दिन्हा ।।
नीरू वचन
हे प्रभु जस किन्हो तस पायो। आरत हो तव दर्शन आयो ।।
सो कहिए उपाय गुसाई। बालक क्षुदावन्त कुछ खाई ।।
रामानन्द वचन
रामानन्द अस युक्ति विचारा। तव सुत कोई ज्ञानी अवतारा ।।
बछिया जाही बैल नहीं लागा। सो लाई ठाढ़ करो तेही आगै ।।
साखी = दूध चलै तेहि थन तें, दूधहि धरो छिपाई।
क्षूदावन्त जब होवै, तबहि दियो पिलाई ।।
चौपाई
जुलहा एक बछिया लै आवा। चल्यो दूत (दूध) कोई मर्म न पावा ।।
हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण चल्यो दूध, जुलहा हरषाना। राखो छिपाई काहु नहीं जाना ।।। पीवत दूध बाल कबीरा। खेलत संतों संग जो मत धीरा ।।
ज्ञान सागर पृष्ठ 73 पर चौपाई
"भगवान शंकर तथा कबीर बालक की चर्चा"
[नोटः- यह प्रकरण अधूरा लिखा है। फिर भी समझने के लिए मेरे ऊपर
कृपा है परमेश्वर कबीर जी की। पहले यह वाणी पढ़ें जो ज्ञान सागर के पृष्ठ 73 पर लिखी है, फिर अन्त में सारज्ञान यह दास (रामपाल दास) बताएगा।] घर नहीं रहो पुरूष (नीरू) और नारी (नीमा)। मैं शिव सों अस वचन उचारी ।।
चौपाई
आन के बार बदत हो योग। आपन नार करत हो भोग ।।
नोटः- जो वाणी कोष्ठक {] में लिखी हैं, वे वाणी ज्ञान सागर में नहीं लिखी गई हैं जो पुरातन कबीर ग्रन्थ से ली हैं।
ऐसा भ्रम जाल फलाया। परम पुरूष का नाम मिटाया।) काशी मरे तो जन्म न होई। स्वर्ग में बास तास का सोई] { मगहर मरे सो गधा जन्म पावा, काशी मरे तो मोक्ष करावा] और पुन तुम सब जग ठग राखा। काशी मरे हो अमर तुम भाखा जब शंकर होय तव काला, ब्रह्मण्ड इक्कीस हो बेहाला} तुम मरो और जन्म उठाओ, ओरेन को कैसे अमर कराओ} [सुनों शंकर एक बात हमारी, एक मंगाओ धेनु कंवारी] साथ कोरा घट मंगवाओ। बछिया के पीठ हाथ फिराओ] [दूध चलैगा थनतै भाई, रूक जाएगा बर्तन भर जाई] [सुनो बात देवी के पूता। हम आए जग जगावन सूता] {पूर्ण पुरुष का ज्ञान बताऊँ। दिव्य मन्त्र दे अमर लोक पहुँचाऊँ] {तब तक नीरू जुलहा आया। रामानन्द ने जो समझाया {रामानन्द की बात लागी खारी। दूध देवेगी गाय कंवारी) जब शंकर पंडित रूप में बोले, कंवारी धनु लाओ तौले] {साथ कोरा घड़ा भी लाना, तास में धेनु दूधा भराना] {तब जुलहा बछिया अरू बर्तन लाया, शंकर गाय पीठ हाथ लगाया दूध दिया बछिया कंवारी। पीया कबीर बालक लीला धारी] [नीरू नीमा बहुते हर्षाई। पंडित शिव की स्तुति गाई] [कह शंकर यह बालक नाही। इनकी महिमा कही न जाई] [मस्तक रेख देख मैं बोलूं। इनकी सम तुल काहे को तोलूं] [ऐस नछत्र देखा नाहीं, घूम लिया मैं सब ठाहीं ।] इतना कहा तब शंकर देवा, कबीर कहे बस कर भेवा [मेरा मर्म न जाने कोई। चाहे ज्योति निरंजन होई]
ग्यारहवां अध्याय
हम है अमर पुरुष अवतारा, भवसैं जीव ऊतारूं पारा)
इतना सुन चले शंकर देवा, शिश चरण धर की नीरू नीमा सेवा]
हे स्वामी मम भिक्षा लीजै, सब अपराध क्षमा (हमरे) किजै
[कह शंकर हम नहीं पंडित भिखारी, हम है शंकर त्रिपुरारी।] साधु संत को भोजन कराना, तुमरे घर आए रहमाना)
[ज्ञान सुन शंकर लजा आई, अद्भुत ज्ञान सुन सिर चक्राई।] ऐसा निर्मल ज्ञान अनोखा, सचमुच हमार है नहीं मोखा]
* कबीर सागर अध्याय "स्वसम वेद बोध" पृष्ठ 132 से 134 तक परमेश्वर कबीर जी की प्रकट होने वाली वाणी है, परंतु इसमें भी कुछ गड़बड़ कर रखी है। कहा कि जुलाहा नीरू अपनी पत्नी का गौना (यानि विवाह के बाद प्रथम बार अपनी पत्नी को उसके घर से लाना को गौना अर्थात् मुकलावा कहते हैं।) यह गलत है। जिस समय परमात्मा कबीर जी नीरू को मिले, उस समय उनकी आयु लगभग 50 वर्ष थी। विचार करें गौने से आते समय कोई बालक मिल जाए तो कोई अपने घर नहीं रखता। वह पहले गाँव तथा सरकार को बताता है। फिर उसको किसी निःसंतान को दिया जाता है यदि कोई लेना चाहे तो। नहीं तो राजा उसको बालग्रह में रखता है या अनाथालय में छोड़ते हैं। नीमा ने तो बच्चे को छोड़ना ही नहीं चाहा था। फिर भी जो सच्चाई वह है ही, हमने परमात्मा पाना है। उसको कैसे पाया जाता है, वह विधि सत्य है तो मोक्ष सम्भव है, ज्ञान इसलिए आवश्यक है कि विश्वास बने कि परमात्मा कौन है, कहाँ प्रमाण है? वह चेष्टा की जा रही है। अब केवल "बालक कबीर जी ने कंवारी गाय का दूध पीया था, वे वाणी लिखता हूँ"।
स्वसम वेद बोध पृष्ठ 134 से
पंडित निज निज भौन सिधारा। बिन भोजन बीते बहु बारा (दिन) ।। बालक रूप तासु (नीरू) ग्रह रहेता। खान पान नाहीं कुछ गहते । जोलाहा तब मन में दुःख पाई। भोजन करो कबीर गोसाई ।। जोलाहा जोलाही दुखित निहारी। तब हम तिन तें बचन उचारी ।। कोरी (कंवारी) एक बछिया ले आवो। कोरा भाण्डा एक मंगाओ ।। तत छन जोलाहा चलि जाई। गऊ की बछिया कोरी (कंवारी) ल्याई ।। कोरा भाण्डा एक गहाई (ले आई)। भांडा बछिया शिघ्र (दोनों) आई ।। दोऊ कबीर के समुख आना। बछिया दिशा दृष्टि निज ताना ।। बछिया हेठ सो भाण्डा धरेऊ। ताके थनहि दूधते भरेऊ। दूध हमारे आगे धरही, यहि विधि खान-पान नित करही ।।
1. ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम् अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे ।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
भावार्थ पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्न्या धेनवः) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
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subeshivrain · 4 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart98 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart99
"शिशु कबीर देव द्वारा कुँवारी गाय का दूध पीना"
बालक कबीर को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे। 25 दिन जब बालक को निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-2 कर विलाप कर रही थी। सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न भिन्न-2 स्त्री-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। आज पच्चीसवाँ दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फाँसी पर लटक जाऊँगी। मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए पीए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता। यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह सोच कर फूट-2 कर रो रही थी। भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना तथा उससे की गई प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी।
भगवान शिव, एक ब्राह्मण (ऋषि) का रूप बना कर नीरू की झोंपड़ी के सामने खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। सन्त रूप में खडे भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी हे ब्राह्मण ! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे। फकीर वेशधारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है आप के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आँसू जिव्हा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे महात्मा जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह काशी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उस दिन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने इष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीनदयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया। सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भी आहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूँगी। मैं इसकी मृत्यु की प्रतिक्षा कर रही हूँ। सर्व रात्रि बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी।
नीमा के मुख से सर्वकथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा। आप का बालक मुझे दिखाईए। ए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर ऋषि के समक्ष प्रस्तुत किया। दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्टि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाएँ व हस्त रेखाएँ देख कर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है। कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे विप्रवर! बनावटी सांत्वना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की साँस आएगी। पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कुँवारी गाय लाऐं। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कुँवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याए (अर्थात् कुँवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी। परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई।
शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा ब्राह्मण को प्रणाम किया। ब्राह्मण ने कहा नीरू ! आप एक कुँवारी गाय लाओ। वह दूध देवेगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कुँवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर से एक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्र) भी ले आया। परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार विप्ररूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्र थनों के नीचे रखने का आदेश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने ब्राह्मण रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव के रूप हो। आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र ! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। विप्र रूपधारी भगवान शंकर बोले ! साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधु नाहीं। यह कहकर विप्र रूपधारी शिवजी ने वहाँ से प्रस्थान किया।
विशेष वर्णन अध्याय "ज्ञान सागर" के पृष्ठ 74 तथा "स्वसमबेद बोध" के पृष्ठ 134 पर भी है जो इस प्रकार है:-
"कबीर सागर के ज्ञान सागर के पृष्ठ 74 पर" सुत काशी को ले चले, लोग देखन तहाँ आय। अन्न-पानी भक्ष नहीं, जुलहा शोक जनाय ।। तब जुलहा मन कीन तिवाना, रामानन्द सो कहा उत्पाना ।। मैं सुत पायो बड़ा गुणवन्ता। कारण कौण भखै नहीं सन्ता। रामानन्द ध्यान तब धारा। ��ुलहा से तब बचन उच्चारा ।।। पूर्व जन्म तैं ब्राह्मण जाती। हरि सेवा किन्ही भलि भांति ।। कुछ सेवा तुम हरि की चुका। तातै भयों जुलहा का रूपा ।।
प्रति प्रभु कह तोरी मान लीन्हा। तातें उद्यान में सुत तोंह दिन्हा ।।
नीरू वचन
हे प्रभु जस किन्हो तस पायो। आरत हो तव दर्शन आयो ।।
सो कहिए उपाय गुसाई। बालक क्षुदावन्त कुछ खाई ।।
रामानन्द वचन
रामानन्द अस युक्ति विचारा। तव सुत कोई ज्ञानी अवतारा ।।
बछिया जाही बैल नहीं लागा। सो लाई ठाढ़ करो तेही आगै ।।
साखी = दूध चलै तेहि थन तें, दूधहि धरो छिपाई।
क्षूदावन्त जब होवै, तबहि दियो पिलाई ।।
चौपाई
जुलहा एक बछिया लै आवा। चल्यो दूत (दूध) कोई मर्म न पावा ।।
हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण चल्यो दूध, जुलहा हरषाना। राखो छिपाई काहु नहीं जाना ।।। पीवत दूध बाल कबीरा। खेलत संतों संग जो मत धीरा ।।
ज्ञान सागर पृष्ठ 73 पर चौपाई
"भगवान शंकर तथा कबीर बालक की चर्चा"
[नोटः- यह प्रकरण अधूरा लिखा है। फिर भी समझने के लिए मेरे ऊपर
कृपा है परमेश्वर कबीर जी की। पहले यह वाणी पढ़ें जो ज्ञान सागर के पृष्ठ 73 पर लिखी है, फिर अन्त में सारज्ञान यह दास (रामपाल दास) बताएगा।] घर नहीं रहो पुरूष (नीरू) और नारी (नीमा)। मैं शिव सों अस वचन उचारी ।।
चौपाई
आन के बार बदत हो योग। आपन नार करत हो भोग ।।
नोटः- जो वाणी कोष्ठक {] में लिखी हैं, वे वाणी ज्ञान सागर में नहीं लिखी गई हैं जो पुरातन कबीर ग्रन्थ से ली हैं।
ऐसा भ्रम जाल फलाया। परम पुरूष का नाम मिटाया।) काशी मरे तो जन्म न होई। स्वर्ग में बास तास का सोई] { मगहर मरे सो गधा जन्म पावा, काशी मरे तो मोक्ष करावा] और पुन तुम सब जग ठग राखा। काशी मरे हो अमर तुम भाखा जब शंकर होय तव काला, ब्रह्मण्ड इक्कीस हो बेहाला} तुम मरो और जन्म उठाओ, ओरेन को कैसे अमर कराओ} [सुनों शंकर एक बात हमारी, एक मंगाओ धेनु कंवारी] साथ कोरा घट मंगवाओ। बछिया के पीठ हाथ फिराओ] [दूध चलैगा थनतै भाई, रूक जाएगा बर्तन भर जाई] [सुनो बात देवी के पूता। हम आए जग जगावन सूता] {पूर्ण पुरुष का ज्ञान बताऊँ। दिव्य मन्त्र दे अमर लोक पहुँचाऊँ] {तब तक नीरू जुलहा आया। रामानन्द ने जो समझाया {रामानन्द की बात लागी खारी। दूध देवेगी गाय कंवारी) जब शंकर पंडित रूप में बोले, कंवारी धनु लाओ तौले] {साथ कोरा घड़ा भी लाना, तास में धेनु दूधा भराना] {तब जुलहा बछिया अरू बर्तन लाया, शंकर गाय पीठ हाथ लगाया दूध दिया बछिया कंवारी। पीया कबीर बालक लीला धारी] [नीरू नीमा बहुते हर्षाई। पंडित शिव की स्तुति गाई] [कह शंकर यह बालक नाही। इनकी महिमा कही न जाई] [मस्तक रेख देख मैं बोलूं। इनकी सम तुल काहे को तोलूं] [ऐस नछत्र देखा नाहीं, घूम लिया मैं सब ठाहीं ।] इतना कहा तब शंकर देवा, कबीर कहे बस कर भेवा [मेरा मर्म न जाने कोई। चाहे ज्योति निरंजन होई]
ग्यारहवां अध्याय
हम है अमर पुरुष अवतारा, भवसैं जीव ऊतारूं पारा)
इतना सुन चले शंकर देवा, शिश चरण धर की नीरू नीमा सेवा]
हे स्वामी मम भिक्षा लीजै, सब अपराध क्षमा (हमरे) किजै
[कह शंकर हम नहीं पंडित भिखारी, हम है शंकर त्रिपुरारी।] साधु संत को भोजन कराना, तुमरे घर आए रहमाना)
[ज्ञान सुन शंकर लजा आई, अद्भुत ज्ञान सुन सिर चक्राई।] ऐसा निर्मल ज्ञान अनोखा, सचमुच हमार है नहीं मोखा]
* कबीर सागर अध्याय "स्वसम वेद बोध" पृष्ठ 132 से 134 तक परमेश्वर कबीर जी की प्रकट होने वाली वाणी है, परंतु इसमें भी कुछ गड़बड़ कर रखी है। कहा कि जुलाहा नीरू अपनी पत्नी का गौना (यानि विवाह के बाद प्रथम बार अपनी पत्नी को उसके घर से लाना को गौना अर्थात् मुकलावा कहते हैं।) यह गलत है। जिस समय परमात्मा कबीर जी नीरू को मिले, उस समय उनकी आयु लगभग 50 वर्ष थी। विचार करें गौने से आते समय कोई बालक मिल जाए तो कोई अपने घर नहीं रखता। वह पहले गाँव तथा सरकार को बताता है। फिर उसको किसी निःसंतान को दिया जाता है यदि कोई लेना चाहे तो। नहीं तो राजा उसको बालग्रह में रखता है या अनाथालय में छोड़ते हैं। नीमा ने तो बच्चे को छोड़ना ही नहीं चाहा था। फिर भी जो सच्चाई वह है ही, हमने परमात्मा पाना है। उसको कैसे पाया जाता है, वह विधि सत्य है तो मोक्ष सम्भव है, ज्ञान इसलिए आवश्यक है कि विश्वास बने कि परमात्मा कौन है, कहाँ प्रमाण है? वह चेष्टा की जा रही है। अब केवल "बालक कबीर जी ने कंवारी गाय का दूध पीया था, वे वाणी लिखता हूँ"।
स्वसम वेद बोध पृष्ठ 134 से
पंडित निज निज भौन सिधारा। बिन भोजन बीते बहु बारा (दिन) ।। बालक रूप तासु (नीरू) ग्रह रहेता। खान पान नाहीं कुछ गहते । जोलाहा तब मन में दुःख पाई। भोजन करो कबीर गोसाई ।। जोलाहा जोलाही दुखित निहारी। तब हम तिन तें बचन उचारी ।। कोरी (कंवारी) एक बछिया ले आवो। कोरा भाण्डा एक मंगाओ ।। तत छन जोलाहा चलि जाई। गऊ की बछिया कोरी (कंवारी) ल्याई ।। कोरा भाण्डा एक गहाई (ले आई)। भांडा बछिया शिघ्र (दोनों) आई ।। दोऊ कबीर के समुख आना। बछिया दिशा दृष्टि निज ताना ।। बछिया हेठ सो भाण्डा धरेऊ। ताके थनहि दूधते भरेऊ। दूध हमारे आगे धरही, यहि विधि खान-पान नित करही ।।
1. ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम् अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे ।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
भावार्थ पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्न्या धेनवः) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
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