#एक दिन का उदय
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22.05.2023, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में त्याग, बलिदान एवं पराक्रम के प्रतीक 'मेवाड़ मुकुट' महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती के अवसर पर रामायण पार्क, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष श्री एस पी रॉय, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव, सेक्टर 25 के निवासीगण ए. के. त्रिपाठी, जे. पी. गुप्ता, महेश जैसवाल, आर के शर्मा, सरिता शर्मा, के. पी. शर्मा, सुनीता शर्मा, संजय कुमार पाण्डेय तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों द्वारा महाराणा प्रताप जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण किया गया |
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था, देख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था |" भारतीय इतिहास में अनेक महान वीरों ने अपनी शौर्य और बलिदान के माध्यम से हमारे देश को गौरवान्वित किया है, उनमें से एक महान वीर थे "महाराणा प्रताप सिंह" जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं । महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के उदयपुर, मेवाड़ मे सिसोदिया राजपूत राजवंश के महान राजा थे एवं अपनी वीरता, पराक्रम, व शौर्यता के लिए जाने जाते थे । शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी | आज महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर आइए यह संकल्प लें कि अपने दुश्मनों के सामने कभी घुटने नहीं टेकेगे वह पूरे आत्मविश्वास एवं तन्मयता के साथ अपने देश की रक्षा करेंगे |"
महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष एस पी राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अनुपम, अद्वितीय, अपराजेय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के स्मरण मात्र से आज भी साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण संघर्ष एवं सफलता की चेतना एक ��ाथ स्वत: हो जाती है l गुहील (गुहिला दित्य) कुल में आज से 483 साल पहले 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ किला में राणा उदय सिंह (द्वितीय) के पुत्र राणा प्रताप (प्रथम) जिन्हें हम महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ था l इस कुल की शुरूआत वर्ष 566 में गुहिला दित्य से हुई, जो इस्लाम धर्म के शुरुआत के कई वर्ष पूर्व हैं और यह वंश अभी तक चला आ रहा है इसीलिए इस वंश (dynasty) को विश्व का सबसे लंबा शासक वंश कहा जाता है | इसी कुल में अनेकों वीर योद्धा हुए जिन्होंने राजपूताना मेवाड़ के साथ अपनी मातृभूमि एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया | वंदनीय बप्पा रावल जिनका शासन 734 से 753 ईसवी तक रहा, ने प्रथम मुस्लिम आक्रांता को खदेड़ कर भारत से बाहर कर दिया | सिसौदा के गहलोत श्रद्धेय राणा हमीर ने अलाउद्दीन खिलजी से जीतकर चित्तौड़ पुनः अपने कब्जे में ले लिया और तभी से इस वंश को सिसोदिया कहा जाने लगा | महाराणा कुंभकरण जो लोगों में कुम्भा के नाम से विख्यात हैं उन्हें “हिंदू सुरत्राण” कहा गया है | जिन्होंने दिल्ली एवं गुजरात के सुल्तानों का कितना ही प्रदेश अपने अधीन किया | मध्यकालीन युग में राणा संग्राम सिंह जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, वे मुगल आक्रांता बाबर से लड़ाई लड़े ताकि भारत के पवित्र भूमि पर उसका कब्जा न हो और उसी स्वतंत्र मात्रभूमि की भावना का जीवंत स्वरूप हम महाराणा प्रताप में पाते हैं जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर, जिसका आधिपत्य और साम्राज्य समूचे उत्तर भारत पर था, के विरुद्ध वर्ष 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के कई वर्षों तक अपने प्रण पर अडिग रहकर लड़ते रहे क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहा जबकि मुगल के 30,000 सेना फौज के सामने महाराणा का मात्र 5000 सेना की फौज थी | इसी युद्ध में महाराणा का चेतक घायल हो गया था और तभी सामला के राजा मानसिंह झाला ने महाराणा को अपना मुकुट देकर रणभूमि से निकाला ताकि महाराणा प्रताप अकबर से बाद में लोहा ले सके | हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर 1577, 1578, 1579 एवं 1580 तक विभिन्न सेनापतियों जैसे सहवास हुसैन, बहलोल खान, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना के अगुवाई में लगातार बड़ी सेना की टुकड़ी के साथ भेजता रहा मगर सभी युद्ध अनिर्णायक रहा | महाराणा प्रताप गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई लड़ते थे 1581 में दानवीर भामाशाह ने धन देकर युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किए | वर्ष 1582 में ��िजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने कोल भील से गठित अकबर के 50,000 सेना पर धावा बोल दिया | यह युद्ध देवार युद्ध के नाम से जाना जाता है | और मुगल सेना हार के कारण अपने 36000 सेना महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया | महाराणा का चित्तौड़ छोड़कर पुनः पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया | इस तरह से विजयादशमी हम भारतीयों के लिए दो खुशियां लेकर आती है एक राजा रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने का और इसी सूर्यवंशी कुल में पैदा महाराणा के जीत का | इसी Battle of Dewar में महाराणा ने अपने तलवार से बहलोल खान को एक बार में ही बीचो-बीच टुकड़े कर दिए | मगर Battle of Dewar का इतिहास में स्थान नहीं मिला | 1584 में अकबर स्वयं सेना लेकर आया मगर वह 6 माह बाद निराश होकर आगरा लौट गया वह महाराणा को पराजित नहीं कर सका | महाराणा कुल की महानता इससे भी जाहिर होती है कि राज चिन्ह में भील आदिवासी को राणा के समकक्ष रखा गया है और सूर्य के नीचे “जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार,” की पंक्ति अंकित है जो अपने धर्म की रक्षा का सन्देश देती है |
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कबीर बड़ा या कृष्ण Part 104
‘‘शिशु कबीर देव द्वारा कुँवारी गाय का दूध पीना’’
बालक कबीर को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे। 25 दिन जब बालक को निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-2 कर विलाप कर रही थी। सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न भिन्न-2 स्त्री-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। आज पच्च���सवाँ दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फाँसी पर लटक जाऊँगी। मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए पीए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता। यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह सोच कर फूट-2 कर रो रही थी। भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना तथा उससे की गई प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी।
भगवान शिव, एक ब्राह्मण (ऋषि) का रूप बना कर नीरू की झोंपड़ी के सामने खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। सन्त रूप में खड़े भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी हे ब्राह्मण ! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे। फकीर वेशधारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है ��प के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आँसू जिव्हा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे महात्मा जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह काशी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उस दिन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने इष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीनदयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया। सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भी आहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूँगी। मैं इसकी मृत्यु की प्रतिक्षा कर रही हूँ। सर्व रात्रि बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी। नीमा के मुख से सर्वकथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा। आप का बालक मुझे दिखाईए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर ऋषि के समक्ष प्रस्तुत किया। दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्��ि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाऐं व हस्त रेखाऐं देख कर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है। कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे विप्रवर! बनावटी सांत्वना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की साँस आएगी। पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कुँवारी गाय लाऐं। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कुँवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याए (अर्थात् कुँवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी। परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई।
शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा ब्राह्मण को प्रणाम किया। ब्राह्मण ने कहा नीरू! आप एक कुँवारी गाय लाओ। वह दूध देवेगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कुँवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर से एक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्र) भी ले आया। परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार विप्ररूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्र थनों के नीचे रखने का आदेश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने ब्राह्मण रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव के रूप हो। आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। विप्र रूपधारी भगवान शंकर बोले! साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधु नाहीं। यह कहकर विप्र रूपधारी शिवजी ने वहाँ से प्रस्थान किया।
विशेष वर्णन अध्याय ’’ज्ञान सागर‘‘ के पृष्ठ 74 तथा ’’स्वसमबेद बोध‘‘ के पृष्ठ 134 पर भी है जो इस प्रकार है:-
’’कबीर सागर के ज्ञान सागर के पृष्ठ 74 पर‘‘
सुत काशी को ले चले, लोग देखन तहाँ आय। अन्न-पानी भक्ष नहीं, जुलहा शोक जनाय।।
तब जुलहा मन कीन तिवाना, रामानन्द सो कहा उत्पाना।। मैं सुत पायो बड़ा गुणवन्ता। कारण कौण भखै नहीं सन्ता।
रामानन्द ध्यान तब धारा। जुलहा से तब बचन उच्चारा।।।
पूर्व जन्म तैं ब्राह्मण जाती। हरि सेवा किन्ही भलि भा��ति।।
कुछ सेवा तुम हरि की चुका। तातैं भयों जुलहा का रूपा।।
प्रति प्रभु कह तोरी मान लीन्हा। तातें उद्यान में सुत तोंह दिन्हा।।
नीरू वचन
हे प्रभु जस किन्हो तस पायो। आरत हो तव दर्शन आयो।।
सो कहिए उपाय गुसाई। बालक क्षुदावन्त कुछ खाई।।
रामानन्द वचन
रामानन्द अस युक्ति विचारा। तव सुत कोई ज्ञानी अवतारा।।
बछिया जाही बैल नहीं लागा। सो लाई ठाढ़ करो तेही आगै।।
साखी = दूध चलै तेहि थन तें, दूध्हि धरो छिपाई।
क्षूदावन्त जब होवै, तबहि दियो पिलाई।।
चैपाई
जुलहा एक बछिया लै आवा। चल्यो दूत (दूध) कोई मर्म न पावा।।
चल्यो दूध, जुलहा हरषाना। राखो छिपाई काहु नहीं जाना।।।
पीवत दूध बाल कबीरा। खेलत संतों संग जो मत धीरा।।
ज्ञान सागर पृष्ठ 73 पर चैपाई
’’भगवान शंकर तथा कबीर बालक की चर्चा’’
{नोटः- यह प्रकरण अधूरा लिखा है। फिर भी समझने के लिए मेरे ऊपर कृपा है परमेश्वर कबीर जी की। पहले यह वाणी पढ़ें जो ज्ञान सागर के पृष्ठ 73 पर लिखी है, फिर अन्त में सारज्ञान यह दास (रामपाल दास) बताएगा।}
चैपाई
घर नहीं रहो पुरूष (नीरू) और नारी (नीमा)। मैं शिव सों अस वचन उचारी।।
आन के बार बदत हो योग। आपन नार करत हो भोग।।
नोटः- जो वाणी कोष्ठक { } में लिखी हैं, वे वाणी ज्ञान सागर में नहीं लिखी गई हैं जो पुरातन कबीर ग्रन्थ से ली हैं।
{ऐसा भ्रम जाल फलाया। परम पुरूष का नाम मिटाया।}
काशी मरे तो जन्म न होई। {स्वर्ग में बास तास का सोई}
{ मगहर मरे सो गधा जन्म पावा, काशी मरे तो मोक्ष करावा}
और पुन तुम सब जग ठग राखा। काशी मरे हो अमर तुम भाखा
जब शंकर होय तव काला, {ब्रह्मण्ड इक्कीस हो बेहाला}
{तुम मरो और जन्म उठाओ, ओरेन को कैसे अमर कराओ}
{सुनों शंकर एक बात हमारी, एक मंगाओ धेनु कंवारी}
{साथ कोरा घट मंगवाओ। बछिया के पीठ हाथ फिराओ}
{दूध चलैगा थनतै भाई, रूक जाएगा बर्तन भर जाई}
{सुनो बात देवी के पूता। हम आए जग जगावन सूता}
{पूर्ण पुरूष का ज्ञान बताऊँ। दिव्य मन्त्रा दे अमर लोक पहुँचाऊँ}
{तब तक नीरू जुलहा आया। रामानन्द ने जो समझाया}
{रामानन्द की बात लागी खारी। दूध देवेगी गाय कंवारी}
{जब शंकर पंडित रूप में बोले, कंवारी धनु लाओ तौले}
{साथ कोरा घड़ा भी लाना, तास में धेनु दूधा भराना}
{तब जुलहा बछिया अरू बर्तन लाया, शंकर गाय पीठ हाथ लगाया}
{दूध दिया बछिया कंवारी। पीया कबीर बालक लीला धारी}
{नीरू नीमा बहुते हर्षाई। पंडित शिव की स्तुति गाई}
{कह शंकर यह बालक नाही। इनकी महिमा कही न जाई}
{मस्तक रेख देख मैं बोलूं। इनकी सम तुल काहे को तोलूं}
{ऐस नछत्र देखा नाहीं, घूम लिया मैं सब ठाहीं।}
{इतना कहा तब शंकर देवा, कबीर कहे बस कर भेवा}
{मेरा मर्म न जाने कोई। चाहे ज्योति निरंजन होई}
{हम है अमर पुरूष अवतारा, भवसैं जीव ऊतारूं पारा}
{इतना सुन चले शंकर देवा, शिश चरण धर की नीरू नीमा सेवा}
हे स्वामी मम भिक्षा लीजै, सब अपराध क्षमा (हमरे) किजै
{कह शंकर हम नहीं पंडित भिखारी, हम है शंकर त्रिपुरारी।}
{साधु संत को भोजन कराना, तुमरे घर आए रहमाना}
{ज्ञान सुन शंकर लजा आई, अद्भुत ज्ञान सुन सिर चक्राई।}
{ऐसा निर्मल ज्ञान अनोखा, सचमुच हमार है नहीं मोखा}
कबीर सागर अध्याय ‘‘स्वसम वेद बोध‘‘ पृष्ठ 132 से 134 तक परमेश्वर कबीर जी की प्रकट होने वाली वाणी है, परंतु इसमें भी कुछ गड़बड़ कर रखी है। कहा कि जुलाहा नीरू अपनी पत्नी का गौना (यानि विवाह के बाद प्रथम बार अपनी पत्नी को उसके घर से लाना को गौना अर्थात् मुकलावा कहते हैं।) यह गलत है। जिस समय परमात्मा कबीर जी नीरू को मिले, उस समय उनकी आयु लगभग 50 वर्ष थी। विचार करें गौने से आते समय कोई बालक मिल जाए तो कोई अपने घर नहीं रखता। वह पहले गाँव तथा सरकार को बताता है। फिर उसको किसी निःसंतान को दिया जाता है यदि कोई लेना चाहे तो। नहीं तो राजा उसको बाल ग्रह में रखता है या अनाथालय में छोड़ते हैं। नीमा ने तो बच्चे को छोड़ना ही नहीं चाहा था। फिर भी जो सच्चाई वह है ही, हमने परमात्मा पाना है। उसको कैसे पाया जाता है, वह विधि सत्य है तो मोक्ष सम्भव है, ज्ञान इसलिए आवश्यक है कि विश्वास बने कि परमात्मा कौन है, कहाँ प्रमाण है? वह चेष्टा की जा रही है। अब केवल ’’बालक कबीर जी ने कंवारी गाय का दूध पीया था, वे वाणी लिखता हूँ’’।
स्वसम वेद बोध पृष्ठ 134 से
पंडित निज निज भौन सिधारा। बिन भोजन बीते बहु बारा (दिन)।।
बालक रूप तासु (नीरू) ग्रह रहेता। खान पान नाहीं कुछ गहते।
जोलाहा तब मन में दुःख पाई। भोजन करो कबीर गोसांई।।
जोलाहा जोलाही दुखित निहारी। तब हम तिन तें बचन उचारी।।
कोरी (कंवारी) एक बछिया ले आवो। कोरा भाण्डा एक मंगाओ।।
तत छन जोलाहा चलि जाई। गऊ की बछिया कोरी (कंवारी) ल्याई।।
कोरा भाण्डा एक गहाई (ले आई)। भांडा बछिया शिघ्र (दोनों) आई।।
दोऊ कबीर के सम��ख आना। बछिया दिशा दृष्टि निज ताना।।
बछिया हेठ सो भाण्डा धरेऊ। ताके थनहि दूधते भरेऊ।
दूध हमारे आगे धरही, यहि विधि खान-पान नित करही।।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
भावार्थ - पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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चंद्रोदय का समय और पूजा विधि: करवा चौथ 2024 की सभी जानकारी
करवा चौथ 2024 का पर्व 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा, जो विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ के दिन का मुख्य आकर्षण चंद्रमा का दर्शन और पूजा होती है, जिसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है। चंद्रमा के उदय होने का समय और पूजा की विधि जानना बहुत जरूरी है ताकि पूजा सही समय पर और सही तरीके से की जा…
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Karwa Chauth 2024: Puja Timings, Moonrise, and Fasting Rituals
करवा चौथ एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है जिसे मुख्य रूप से विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए मनाती हैं। यह त्योहार उत्तर भारत में विशेष रूप से लोकप्रिय है और सुहागिन स्त्रियों के लिए विशेष महत्व रखता है। 2024 में करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएँ पूरे दिन उपवास रखती हैं और रात में चंद्रमा के free kundali matching दर्शन के बाद अपना व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ का पर्व नारी शक्ति, त्याग और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस दिन महिलाएँ न केवल अपने पति की लंबी उम्र और सफलता के लिए व्रत रखती हैं, बल्कि यह पर्व पति-पत्नी के रिश्ते को और भी गहरा और मजबूत बनाने Karwa Chauth 2024 का अवसर भी प्रदान करता है। करवा चौथ पर महिलाएँ सोलह श्रृंगार करती हैं और विधिपूर्वक पूजा करती हैं। यह त्योहार उत्तर भारत के अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी मनाया जाता है, और इसके पीछे की मान्यता यह है कि यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशहाली और सुख-समृद्धि लाता है।
करवा चौथ व्रत का समय और मुहूर्त (2024)
करवा चौथ व्रत का समय और चंद्रमा उदय का मुहूर्त व्रत को विशेष रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं। व्रत का प्रारंभ सूर्योदय से होता है और इसका समापन चंद्रमा के दर्शन के बाद किया जाता है। इस वर्ष करवा चौथ 20 अक्टूबर को है और चंद्रमा के shubh muhurat today उदय का समय इस दिन की पूजा के लिए महत्वपूर्ण है।
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करवा चौथ 2024 का प्रमुख मुहूर्त इस प्रकार है:
चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 20 अक्टूबर 2024, रविवार को सुबह 09:30 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त: 21 अक्टूबर 2024, सोमवार को सुबह 06:36 बजे
चंद्र दर्शन का समय: 20 अक्टूबर 2024 को रात 08:15 बजे (स्थान के अनुसार समय में थोड़ा बदलाव हो सकता है)
पूजा विधि
करवा चौथ के दिन महिलाएँ Karwa Chauth पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। इस दिन महिलाएँ सूर्योदय से पहले उठकर सरगी खाती हैं, जो कि उनकी सास द्वारा दी जाती है। सरगी में मिठाई, फल, और अन्य पौष्टिक आहार होते हैं जो दिन भर के व्रत में ऊर्जा बनाए रखने में मदद करते हैं। सरगी खाने के बाद महिलाएँ पूरे दिन जल और अन्न का त्याग करती हैं और शाम को भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा करती हैं। पूजा में करवा, दीपक, फल और मिठाई चढ़ाई जाती है।
पूजा के बाद महिलाएँ चंद्रमा का इंतजार करती हैं। चंद्रमा के उदय होने के बाद वे उसे अर्घ्य देकर पूजा करती हैं। इसके बाद उनके numerology matching for marriage पति उनके व्रत को तुड़वाते हैं और जल ग्रहण कराते हैं।
करवा चौथ का धार्मिक और सामाजिक महत्व
करवा चौथ एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में ही नहीं, बल्कि पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास को मजबूत करने का अवसर भी है। इस दिन महिलाएँ अपने सोलह श्रृंगार के साथ सजधज कर पूजा करती हैं, जिससे यह त्योहार सौंदर्य, शक्ति और नारीत्व का भी प्रतीक बन जाता है। यह व्रत पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को और भी प्रगाढ़ बनाता है।
करवा चौथ का पर्व आज के आधुनिक युग में भी Karwa Chauth festival अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है, जहाँ पति-पत्नी एक दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम का इज़हार इस व्रत के माध्यम से करते हैं।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart98 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart99
"शिशु कबीर देव द्वारा कुँवारी गाय का दूध पीना"
बालक कबीर को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे। 25 दिन जब बालक को निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-2 कर विलाप कर रही थी। सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न भिन्न-2 स्त्री-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। आज पच्चीसवाँ दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फाँसी पर लटक जाऊँगी। मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए पीए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता। यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह सोच कर फूट-2 कर रो रही थी। भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना तथा उससे की गई प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी।
भगवान शिव, एक ब्राह्मण (ऋषि) का रूप बना कर नीरू की झोंपड़ी के सामने खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। सन्त रूप में खडे भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी हे ब्राह्मण ! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे। फकीर वेशधारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है आप के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आँसू जिव्हा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे महात्मा जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह काशी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उस दिन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने इष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीनदयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया। सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भी आहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूँगी। मैं इसकी मृत्यु की प्रतिक्षा कर रही हूँ। सर्व रात्रि बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी।
नीमा के मुख से सर्वकथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा। आप का बालक मुझे दिखाईए। ए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर ऋषि के समक्ष प्रस्तुत किया। दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्टि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाएँ व हस्त रेखाएँ देख कर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है। कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे विप्रवर! बनावटी सांत्वना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की साँस आएगी। पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कुँवारी गाय लाऐं। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कुँवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याए (अर्थात् कुँवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी। परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई।
शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा ब्राह्मण को प्रणाम किया। ब्राह्मण ने कहा नीरू ! आप एक कुँवारी गाय लाओ। वह दूध देवेगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कुँवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर से एक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्र) भी ले आया। परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार विप्ररूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्र थनों के नीचे रखने का आदेश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने ब्राह्मण रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव के रूप हो। आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र ! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। विप्र रूपधारी भगवान शंकर बोले ! साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधु नाहीं। यह कहकर विप्र रूपधारी शिवजी ने वहाँ से प्रस्थान किया।
विशेष वर्णन अध्याय "ज्ञान सागर" ��े पृष्ठ 74 तथा "स्वसमबेद बोध" के पृष्ठ 134 पर भी है जो इस प्रकार है:-
"कबीर सागर के ज्ञान सागर के पृष्ठ 74 पर" सुत काशी को ले चले, लोग देखन तहाँ आय। अन्न-पानी भक्ष नहीं, जुलहा शोक जनाय ।। तब जुलहा मन कीन तिवाना, रामानन्द सो कहा उत्पाना ।। मैं सुत पायो बड़ा गुणवन्ता। कारण कौण भखै नहीं सन्ता। रामानन्द ध्यान तब धारा। जुलहा से तब बचन उच्चारा ।।। पूर्व जन्म तैं ब्राह्मण जाती। हरि सेवा किन्ही भलि भांति ।। कुछ सेवा तुम हरि की चुका। तातै भयों जुलहा का रूपा ।।
प्रति प्रभु कह तोरी मान लीन्हा। तातें उद्यान में सुत तोंह दिन्हा ।।
नीरू वचन
हे प्रभु जस किन्हो तस पायो। आरत हो तव दर्शन आयो ।।
सो कहिए उपाय गुसाई। बालक क्षुदावन्त कुछ खाई ।।
रामानन्द वचन
रामानन्द अस युक्ति विचारा। तव सुत कोई ज्ञानी अवतारा ।।
बछिया जाही बैल नहीं लागा। सो लाई ठाढ़ करो तेही आगै ।।
साखी = दूध चलै तेहि थन तें, दूधहि धरो छिपाई।
क्षूदावन्त जब होवै, तबहि दियो पिलाई ।।
चौपाई
जुलहा एक बछिया लै आवा। चल्यो दूत (दूध) कोई मर्म न पावा ।।
हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण चल्यो दूध, जुलहा हरषाना। राखो छिपाई काहु नहीं जाना ।।। पीवत दूध बाल कबीरा। खेलत संतों संग जो मत धीरा ।।
ज्ञान सागर पृष्ठ 73 पर चौपाई
"भगवान शंकर तथा कबीर बालक की चर्चा"
[नोटः- यह प्रकरण अधूरा लिखा है। फिर भी समझने के लिए मेरे ऊपर
कृपा है परमेश्वर कबीर जी की। पहले यह वाणी पढ़ें जो ज्ञान सागर के पृष्ठ 73 पर लिखी है, फिर अन्त में सारज्ञान यह दास (रामपाल दास) बताएगा।] घर नहीं रहो पुरूष (नीरू) और नारी (नीमा)। मैं शिव सों अस वचन उचारी ।।
चौपाई
आन के बार बदत हो योग। आपन नार करत हो भोग ।।
नोटः- जो वाणी कोष्ठक {] में लिखी हैं, वे वाणी ज्ञान सागर में नहीं लिखी गई हैं जो पुरातन कबीर ग्रन्थ से ली हैं।
ऐसा भ्रम जाल फलाया। परम पुरूष का नाम मिटाया।) काशी मरे तो जन्म न होई। स्वर्ग में बास तास का सोई] { मगहर मरे सो गधा जन्म पावा, काशी मरे तो मोक्ष करावा] और पुन तुम सब जग ठग राखा। काशी मरे हो अमर तुम भाखा जब शंकर होय तव काला, ब्रह्मण्ड इक्कीस हो बेहाला} तुम मरो और जन्म उठाओ, ओरेन को कैसे अमर कराओ} [सुनों शंकर एक बात हमारी, एक मंगाओ धेनु कंवारी] साथ कोरा घट मंगवाओ। बछिया के पीठ हाथ फिराओ] [दूध चलैगा थनतै भाई, रूक जाएगा बर्तन भर जाई] [सुनो बात देवी के पूता। हम आए जग जगावन सूता] {पूर्ण पुरुष का ज्ञान बताऊँ। दिव्य मन्त्र दे अमर लोक पहुँचाऊँ] {तब तक नीरू जुलहा आया। रामानन्द ने जो समझाया {रामानन्द की बात लागी खारी। दूध देवेगी गाय कंवारी) जब शंकर पंडित रूप में बोले, कंवारी धनु लाओ तौले] {साथ कोरा घड़ा भी लाना, तास में धेनु दूधा भराना] {तब जुलहा बछिया अरू बर्तन लाया, शंकर गाय पीठ हाथ लगाया दूध दिया बछिया कंवारी। पीया कबीर बालक लीला धारी] [नीरू नीमा बहुते हर्षाई। पंडित शिव की स्तुति गाई] [कह शंकर यह बालक नाही। इनकी महिमा कही न जाई] [मस्तक रेख देख मैं बोलूं। इनकी सम तुल काहे को तोलूं] [ऐस नछत्र देखा नाहीं, घूम लिया मैं सब ठाहीं ।] इतना कहा तब शंकर देवा, कबीर कहे बस कर भेवा [मेरा मर्म न जाने कोई। चाहे ज्योति निरंजन होई]
ग्यारहवां अध्याय
हम है अमर पुरुष अवतारा, भवसैं जीव ऊतारूं पारा)
इतना सुन चले शंकर देवा, शिश चरण धर की नीरू नीमा सेवा]
हे स्वामी मम भिक्षा लीजै, सब अपराध क्षमा (हमरे) किजै
[कह शंकर हम नहीं पंडित भिखारी, हम है शंकर त्रिपुरारी।] साधु संत को भोजन कराना, तुमरे घर आए रहमाना)
[ज्ञान सुन शंकर लजा आई, अद्भुत ज्ञान सुन सिर चक्राई।] ऐसा निर्मल ज्ञान अनोखा, सचमुच हमार है नहीं मोखा]
* कबीर सागर अध्याय "स्वसम वेद बोध" पृष्ठ 132 से 134 तक परमेश्वर कबीर जी की प्रकट होने वाली वाणी है, परंतु इसमें भी कुछ गड़बड़ कर रखी है। कहा कि जुलाहा नीरू अपनी पत्नी का गौना (यानि विवाह के बाद प्रथम बार अपनी पत्नी को उसके घर से लाना को गौना अर्थात् मुकलावा कहते हैं।) यह गलत है। जिस समय परमात्मा कबीर जी नीरू को मिले, उस समय उनकी आयु लगभग 50 वर्ष थी। विचार करें गौने से आते समय कोई बालक मिल जाए तो कोई अपने घर नहीं रखता। वह पहले गाँव तथा सरकार को बताता है। फिर उसको किसी निःसंतान को दिया जाता है यदि कोई लेना चाहे तो। नहीं तो राजा उसको बालग्रह में रखता है या अनाथालय में छोड़ते हैं। नीमा ने तो बच्चे को छोड़ना ही नहीं चाहा था। फिर भी जो सच्चाई वह है ही, हमने परमात्मा पाना है। उसको कैसे पाया जाता है, वह विधि सत्य है तो मोक्ष सम्भव है, ज्ञान इसलिए आवश्यक है कि विश्वास बने कि परमात्मा कौन है, कहाँ प्रमाण है? वह चेष्टा की जा रही है। अब केवल "बालक कबीर जी ने कंवारी गाय का दूध पीया था, वे वाणी लिखता हूँ"।
स्वसम वेद बोध पृष्ठ 134 से
पंडित निज निज भौन सिधारा। बिन भोजन बीते बहु बारा (दिन) ।। बालक रूप तासु (नीरू) ग्रह रहेता। खान पान नाहीं कुछ गहते । जोलाहा तब मन में दुःख पाई। भोजन करो कबीर गोसाई ।। जोलाहा जोलाही दुखित निहारी। तब हम तिन तें बचन उचारी ।। कोरी (कंवारी) एक बछिया ले आवो। कोरा भाण्डा एक मंगाओ ।। तत छन जोलाहा चलि जाई। गऊ की बछिया कोरी (कंवारी) ल्याई ।। कोरा भाण्डा एक गहाई (ले आई)। भांडा बछिया शिघ्र (दोनों) आई ।। दोऊ कबीर के समुख आना। बछिया दिशा दृष्टि निज ताना ।। बछिया हेठ सो भाण्डा धरेऊ। ताके थनहि दूधते भरेऊ। दूध हमारे आगे धरही, यहि विधि खान-पान नित करही ।।
1. ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम् अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम��� इन्द्राय पातवे ।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
भावार्थ पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्न्या धेनवः) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart99
"शिशु कबीर देव द्वारा कुँवारी गाय का दूध पीना"
बालक कबीर को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे। 25 दिन जब बालक को निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-2 कर विलाप कर रही थी। सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न भिन्न-2 स्त्री-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। आज पच्चीसवाँ दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फाँसी पर लटक जाऊँगी। मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए पीए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता। यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह सोच कर फूट-2 कर रो रही थी। भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना तथा उससे की गई प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी।
भगवान शिव, एक ब्राह्मण (ऋषि) का रूप बना कर नीरू की झोंपड़ी के सामने खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। सन्त रूप में खडे भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी हे ब्राह्मण ! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे। फकीर वेशधारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है आप के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आँसू जिव्हा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे महात्मा जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह काशी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उस दिन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने इष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीनदयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया। सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भी आहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूँगी। मैं इसकी मृत्यु की प्रतिक्षा कर रही हूँ। सर्व रात्रि बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी।
नीमा के मुख से सर्वकथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा। आप का बालक मुझे दिखाईए। ए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर ऋषि के समक्ष प्रस्तुत किया। दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्टि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाएँ व हस्त रेखाएँ देख कर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है। कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे विप्रवर! बनावटी सांत्वना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की साँस आएगी। पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कुँवारी गाय लाऐं। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कुँवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याए (अर्थात् कुँवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी। परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई।
शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा ब्राह्मण को प्रणाम किया। ब्राह्मण ने कहा नीरू ! आप एक कुँवारी गाय लाओ। वह दूध देवेगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कुँवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर से एक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्र) भी ले आया। परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार विप्ररूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्र थनों के नीचे रखने का आदेश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने ब्राह्मण रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव के रूप हो। आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र ! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। विप्र रूपधारी भगवान शंकर बोले ! साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधु नाहीं। यह कहकर विप्र रूपधारी शिवजी ने वहाँ से प्रस्थान किया।
विशेष वर्णन अध्याय "ज्ञान सागर" के पृष्ठ 74 तथा "स्वसमबेद बोध" के पृष्ठ 134 पर भी है जो इस प्रकार है:-
"कबीर सागर के ज्ञान सागर के पृष्ठ 74 पर" सुत काशी को ले चले, लोग देखन तहाँ आय। अन्न-पानी भक्ष नहीं, जुलहा शोक जनाय ।। तब जुलहा मन कीन तिवाना, रामानन्द सो कहा उत्पाना ।। मैं सुत पायो बड़ा गुणवन्ता। कारण कौण भखै नहीं सन्ता। रामानन्द ध्यान तब धारा। जुलहा से तब बचन उच्चारा ।।। पूर्व जन्म तैं ब्राह्मण जाती। हरि सेवा किन्ही भलि भांति ।। कुछ सेवा तुम हरि की चुका। तातै भयों जुलहा का रूपा ।।
प्रति प्रभु कह तोरी मान लीन्हा। तातें उद्यान में सुत तोंह दिन्हा ।।
नीरू वचन
हे प्रभु जस किन्हो तस पायो। आरत हो तव दर्शन आयो ।।
सो कहिए उपाय गुसाई। बालक क्षुदावन्त कुछ खाई ।।
रामानन्द वचन
रामानन्द अस युक्ति विचारा। तव सुत कोई ज्ञानी अवतारा ।।
बछिया जाही बैल नहीं लागा। सो लाई ठाढ़ करो तेही आगै ।।
साखी = दूध चलै तेहि थन ��ें, दूधहि धरो छिपाई।
क्षूदावन्त जब होवै, तबहि दियो पिलाई ।।
चौपाई
जुलहा एक बछिया लै आवा। चल्यो दूत (दूध) कोई मर्म न पावा ।।
हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण चल्यो दूध, जुलहा हरषाना। राखो छिपाई काहु नहीं जाना ।।। पीवत दूध बाल कबीरा। खेलत संतों संग जो मत धीरा ।।
ज्ञान सागर पृष्ठ 73 पर चौपाई
"भगवान शंकर तथा कबीर बालक की चर्चा"
[नोटः- यह प्रकरण अधूरा लिखा है। फिर भी समझने के लिए मेरे ऊपर
कृपा है परमेश्वर कबीर जी की। पहले यह वाणी पढ़ें जो ज्ञान सागर के पृष्ठ 73 पर लिखी है, फिर अन्त में सारज्ञान यह दास (रामपाल दास) बताएगा।] घर नहीं रहो पुरूष (नीरू) और नारी (नीमा)। मैं शिव सों अस वचन उचारी ।।
चौपाई
आन के बार बदत हो योग। आपन नार करत हो भोग ।।
नोटः- जो वाणी कोष्ठक {] में लिखी हैं, वे वाणी ज्ञान सागर में नहीं लिखी गई हैं जो पुरातन कबीर ग्रन्थ से ली हैं।
ऐसा भ्रम जाल फलाया। परम पुरूष का नाम मिटाया।) काशी मरे तो जन्म न होई। स्वर्ग में बास तास का सोई] { मगहर मरे सो गधा जन्म पावा, काशी मरे तो मोक्ष करावा] और पुन तुम सब जग ठग राखा। काशी मरे हो अमर तुम भाखा जब शंकर होय तव काला, ब्रह्मण्ड इक्कीस हो बेहाला} तुम मरो और जन्म उठाओ, ओरेन को कैसे अमर कराओ} [सुनों शंकर एक बात हमारी, एक मंगाओ धेनु कंवारी] साथ कोरा घट मंगवाओ। बछिया के पीठ हाथ फिराओ] [दूध चलैगा थनतै भाई, रूक जाएगा बर्तन भर जाई] [सुनो बात देवी के पूता। हम आए जग जगावन सूता] {पूर्ण पुरुष का ज्ञान बताऊँ। दिव्य मन्त्र दे अमर लोक पहुँचाऊँ] {तब तक नीरू जुलहा आया। रामानन्द ने जो समझाया {रामानन्द की बात लागी खारी। दूध देवेगी गाय कंवारी) जब शंकर पंडित रूप में बोले, कंवारी धनु लाओ तौले] {साथ कोरा घड़ा भी लाना, तास में धेनु दूधा भराना] {तब जुलहा बछिया अरू बर्तन लाया, शंकर गाय पीठ हाथ लगाया दूध दिया बछिया कंवारी। पीया कबीर बालक लीला धारी] [नीरू नीमा बहुते हर्षाई। पंडित शिव की स्तुति गाई] [कह शंकर यह बालक नाही। इनकी महिमा कही न जाई] [मस्तक रेख देख मैं बोलूं। इनकी सम तुल काहे को तोलूं] [ऐस नछत्र देखा नाहीं, घूम लिया मैं सब ठाहीं ।] इतना कहा तब शंकर देवा, कबीर कहे बस कर भेवा [मेरा मर्म न जाने कोई। चाहे ज्योति निरंजन होई]
ग्यारहवां अध्याय
हम है अमर पुरुष अवतारा, भवसैं जीव ऊतारूं पारा)
इतना सुन चले शंकर देवा, शिश चरण धर की नीरू नीमा सेवा]
हे स्वामी मम भिक्षा लीजै, सब अपराध क्षमा (हमरे) किजै
[कह शंकर हम नहीं पंडित भिखारी, हम है शंकर त्रिपुरारी।] साधु संत को भोजन कराना, तुमरे घर आए रहमाना)
[ज्ञान सुन शंकर लजा आई, अद्भुत ज्ञान सुन सिर चक्राई।] ऐसा निर्मल ज्ञान अनोखा, सचमुच हमार है नहीं मोखा]
* कबीर सागर अध्याय "स्वसम वेद बोध" पृष्ठ 132 से 134 तक परमेश्वर कबीर जी की प्रकट होने वाली वाणी है, परंतु इसमें भी कुछ गड़बड़ कर रखी है। कहा कि जुलाहा नीरू अपनी पत्नी का गौना (यानि विवाह के बाद प्रथम बार अपनी पत्नी को उसके घर से लाना को गौना अर्थात् मुकलावा कहते हैं।) यह गलत है। जिस समय परमात्मा कबीर जी नीरू को मिले, उस समय उनकी आयु लगभग 50 वर्ष थी। विचार करें गौने से आते समय कोई बालक मिल जाए तो कोई अपने घर नहीं रखता। वह पहले गाँव तथा सरकार को बताता है। फिर उसको किसी निःसंतान को दिया जाता है यदि कोई लेना चाहे तो। नहीं तो राजा उसको बालग्रह में रखता है या अनाथालय में छोड़ते हैं। नीमा ने तो बच्चे को छोड़ना ही नहीं चाहा था। फिर भी जो सच्चाई वह है ही, हमने परमात्मा पाना है। उसको कैसे पाया जाता है, वह विधि सत्य है तो मोक्ष सम्भव है, ज्ञान इसलिए आवश्यक है कि विश्वास बने कि परमात्मा कौन है, कहाँ प्रमाण है? वह चेष्टा की जा रही है। अब केवल "बालक कबीर जी ने कंवारी गाय का दूध पीया था, वे वाणी लिखता हूँ"।
स्वसम वेद बोध पृष्ठ 134 से
पंडित निज निज भौन सिधारा। बिन भोजन बीते बहु बारा (दिन) ।। बालक रूप तासु (नीरू) ग्रह रहेता। खान पान नाहीं कुछ गहते । जोलाहा तब मन में दुःख पाई। भोजन करो कबीर गोसाई ।। जोलाहा जोलाही दुखित निहारी। तब हम तिन तें बचन उचारी ।। कोरी (कंवारी) एक बछिया ले आवो। कोरा भाण्डा एक मंगाओ ।। तत छन जोलाहा चलि जाई। गऊ की बछिया कोरी (कंवारी) ल्याई ।। कोरा भाण्डा एक गहाई (ले आई)। भांडा बछिया शिघ्र (दोनों) आई ।। दोऊ कबीर के समुख आना। बछिया दिशा दृष्टि निज ताना ।। बछिया हेठ सो भाण्डा धरेऊ। ताके थनहि दूधते भरेऊ। दूध हमारे आगे धरही, यहि विधि खान-पान नित करही ।।
1. ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम् अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे ।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
भावार्थ पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्न्या धेनवः) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
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Krshi Mein Sambhaavanaen: Rojagaar ke Avasaron ka Vistaar
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ सदियों से खेती-किसानी मुख्य व्यवसाय रहा है। खेती सिर्फ अन्न उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कई संभावनाएं और रोजगार के अवसर छिपे हैं। जैसे-जैसे कृषि के क्षेत्र में नई-नई तकनीकें और विधियां विकसित हो रही हैं, खेती में रोजगार के अवसर भी तेजी से बढ़ रहे हैं। युवाओं और नव उद्यमियों के लिए खेती एक सुनहरा क्षेत्र बनकर उभर रहा है, जहां वे न क��वल आत्मनिर्भर बन सकते हैं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
पारंपरिक कृषि से हटकर नए अवसर
खेती का पारंपरिक रूप, जैसे धान, गेहूं और सब्जियों की खेती, सदियों से चला आ रहा है। हालांकि, अब यह क्षेत्र केवल पारंपरिक खेती तक सीमित नहीं रहा। आधुनिक तकनीकों और सरकारी योजनाओं के सहयोग से किसानों के लिए अनेक नए रास्ते खुले हैं। इसमें जैविक खेती, बागवानी, डेयरी फार्मिंग, मछली पालन, पोल्ट्री, मधुमक्खी पालन और औषधीय पौधों की खेती जैसी गतिविधियाँ प्रमुख रूप से शामिल हैं। ये सभी क्षेत्र न केवल किसानों को बेहतर आय के साधन प्रदान कर रहे हैं, बल्कि उन लोगों के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा कर रहे हैं जो कृषि में रुचि रखते हैं।
कृषि में तकनीकी विकास
खेती में रोजगार के अवसर तकनीकी विकास के कारण भी तेजी से बढ़ रहे हैं। अब किसान पारंपरिक तरीकों से हटकर आधुनिक मशीनों, उपकरणों और तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं। ड्रोन तकनीक, सटीक कृषि, सेंसर आधारित सिंचाई, मिट्टी की जांच और बीजों की गुणवत्ता जांच जैसे तकनीकी साधनों ने खेती को आसान और लाभकारी बना दिया है। इससे न केवल किसानों की उत्पादन क्षमता बढ़ी है, बल्कि इस क्षेत्र में तकनीकी विशेषज्ञों के लिए भी रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हुए हैं।
इसके साथ ही, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) ने भी कृषि क्षेत्र में क्रांति ला दी है। कृषि आधारित मोबाइल ऐप, वेबसाइट और पोर्टल्स के माध्यम से किसान सीधे बाजार से जुड़ रहे हैं और अपनी उपज को उचित दामों पर बेच पा रहे हैं। ऐसे में आईटी पेशेवरों के लिए भी कृषि क्षेत्र में काम करने के लिए नए अवसर खुल रहे हैं।
जैविक खेती में रोजगार के अवसर
जैविक खेती आज के समय में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इसमें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे पर्यावरण को हानि नहीं पहुँचती और लोगों को शुद्ध खाद्य पदार्थ मिलते हैं। जैविक खेती का बाजार लगातार बढ़ रहा है, और इस क्षेत्र में रोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध हैं। युवा किसान जैविक खेती से जुड़कर अपनी उपज को सीधे बाजार में बेच सकते हैं या जैविक उत्पादों की प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित कर सकते हैं। इसके अलावा, जैविक खेती के प्रशिक्षण कार्यक्रम और परामर्श सेवाओं में भी रोजगार की अपार संभावनाएं हैं।
बागवानी और फूलों की खेती
खेती में रोजगार के अवसर बागवानी और फूलों की खेती में भी खूब हैं। फलों, सब्जियों और फूलों की मांग दि��-प्रतिदिन बढ़ रही है, खासकर शहरी क्षेत्रों में। फलों और सब्जियों की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग भी एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसमें कई लोग रोजगार पा सकते हैं। इसके अलावा, फूलों की खेती और उनके निर्यात का व्यवसाय भी किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रहा है। विशेष रूप से सजावटी पौधों और फूलों की खेती में युवा उद्यमी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
डेयरी और पशुपालन
कृषि क्षेत्र में डेयरी और पशुपालन का भी अहम योगदान है। दूध और उससे बने उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है, जिससे डेयरी उद्योग में रोजगार के अनेक अवसर उत्पन्न हो रहे हैं। इसके अलावा, बकरी पालन, मुर्गी पालन और मछली पालन जैसी गतिविधियाँ भी कृषि क्षेत्र में रोजगार के साधन प्रदान कर रही हैं। सरकारी योजनाओं के माध्यम से पशुपालन और डेयरी फार्मिंग के क्षेत्र में भी नए उद्यमियों को सहयोग मिल रहा है। इस प्रकार के उद्यमों से न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के साधन पैदा हो रहे हैं, बल्कि इनसे शहरी बाजारों में भी उत्पाद की आपूर्ति हो रही है।
कृषि प्रसंस्करण उद्योग
खेती में रोजगार के अवसर कृषि प्रसंस्करण उद्योग में भी बहुतायत से मौजूद हैं। जब किसानों की उपज सीधे बाजार में बेची जाती है, तो उसे प्रसंस्कृत करने और पैकेजिंग की आवश्यकता होती है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में फलों, सब्जियों, अनाज और डेयरी उत्पादों की प्रोसेसिंग की जाती है, जिससे उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ती है और उत्पाद की गुणवत्ता बेहतर होती है। इस उद्योग में निवेश करने वाले उद्यमियों और किसानों के लिए रोजगार के ढेर सारे विकल्प उपलब्ध हैं।
कृषि आधारित स्टार्टअप्स
आजकल कृषि क्षेत्र में कई स्टार्टअप्स का उदय हो रहा है, जो आधुनिक तकनीक और नवीन तरीकों का इस्तेमाल कर खेती को और अधिक लाभकारी बना रहे हैं। कृषि में रोजगार के अवसर इन स्टार्टअप्स के जरिए भी काफी बढ़ रहे हैं। चाहे वह खेती के लिए ड्रोन का इस्तेमाल हो, बायोटेक्नोलॉजी का उपयोग हो या फिर कृषि उत्पादों की ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर बिक्री हो, ये स्टार्टअप्स नए-नए रोजगार के विकल्प पैदा कर रहे हैं। युवा उद्यमियों के लिए यह एक शानदार अवसर है कि वे कृषि क्षेत्र में स्टार्टअप शुरू करें और किसानों को नई तकनीकों और सेवाओं से लाभान्वित करें।
सरकारी योजनाओं का योगदान
खेती में रोजगार के अवसरों के विस्तार में सरकार की कई योजनाओं और नीतियों का भी बड़ा योगदान है। सरकार किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण, सब्सिडी, लोन और अन्य वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है, जिससे वे नए-नए क्षेत्रों में प्रवेश कर सकें। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, किसान क्रेडिट कार्ड योजना, और कृषि यंत्रीकरण योजना जैसी कई योजनाएं हैं, जो किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ा रही हैं। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित छोटे उद्योगों की स्थापना को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार के विकल्प उत्पन्न हो रहे हैं।
कृषि में शिक्षा और प्रशिक्षण
खेती में रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए कृषि में शिक्षा और प्रशिक्षण का भी महत्वपूर्ण योगदान है। कृषि विश्वविद्यालयों और प्रशिक्षण संस्थानों के माध्यम से किसान और युवा नई तकनीकों और उन्नत खेती के तरीकों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और अन्य प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से किसानों को नई कृषि पद्धतियों और तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके अलावा, उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के जरिए युवाओं को खेती के व्यवसायिक पहलुओं की जानकारी दी जा रही है, जिससे वे खुद का कृषि व्यवसाय शुरू कर सकें।
निष्कर्ष
खेती में रोजगार के अवसर आज के समय में केवल खेतों तक सीमित नहीं हैं। कृषि से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में नए-नए रोजगार के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं, जिनमें कृषि प्रसंस्करण, तकनीकी विकास, जैविक खेती, बागवानी, डेयरी और पशुपालन जैसे अनेक क्षेत्र शामिल हैं। सरकार की योजनाएं, तकनीकी विकास और बाजार में बढ़ती मांग ने इस क्षेत्र में रोजगार की संभावनाओं को कई गुना बढ़ा दिया है। युवाओं और उद्यमियों के लिए यह समय है कि वे इन अवसरों का लाभ उठाएं और कृषि के क्षेत्र में अपना करियर बनाएं, साथ ही देश की प्रगति में भी योगदान दें।
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India vs Bangladesh Shubman Gill ने किया वो जो कोई और नहीं कर पाया - एक Record-Breaking Performance
India vs Bangladesh Shubman Gill Achieves What No One Else Could - A Record-Breaking Performance
Cricket की दुनिया में, एक खिलाड़ी का लगातार उच्च स्तर पर प्रदर्शन करने की क्षमता उसे बाकी से अलग बनाती है। Shubman Gill, भारतीय क्रिकेट के युवा बैटिंग सेंसेशन, ने वो कर दिखाया है जो दुनिया में कोई और खिलाड़ी नहीं कर पाया। चल रही India-Bangladesh Test series में Gill ने एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में उभरते हुए रिकॉर्ड तोड़ दिए और क्रिकेट के इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा लिया है।India और Bangladesh के बीच पहले Test match की दूसरी पारी के दौरान, Shubman Gill दिन के खेल की समाप्ति तक 33 रन बनाकर नाबाद रहे। कई लोग उम्मीद कर रहे थे कि अगले दिन वो एक बड़ी पारी खेलेंगे। Cricket fans को उम्मीद थी कि Gill एक डबल सेंचुरी बनाएंगे, लेकिन 33 रनों के अंदर ही Gill ने कुछ ऐतिहासिक कर दिखाया।Shubman Gill: January 2023 से Leading Run-Scorer1 जनवरी 2023 से, Shubman Gill इंटरनेशनल Cricket में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी बन गए हैं। Gill की खासियत ये है कि मात्र डेढ़ साल के अंदर, उन्होंने इंटरनेशनल Cricket के सभी Formats में 3000 से अधिक रन बना लिए हैं। ये उपलब्धि असाधारण है, क्योंकि अब तक कोई भी खिलाड़ी इस समयावधि में ऐसा नहीं कर पाया है।Gill के आंकड़े भी शानदार हैं। अभी तक उन्होंने 66 Matches खेले हैं, जिनमें उन्होंने 3,038 रन बनाए हैं और 9 सेंचुरीज उनके नाम हैं। उनका एवरेज 45 के करीब है, जो Test, ODI, और T20 तीनों Formats में एक ��्रभावशाली रिकॉर्ड है। ये आंकड़े Gill की कंसिस्टेंसी और उनकी विभिन्न Formats में खेलने की क्षमता को दर्शाते हैं।सबसे नजदीकी प्रतिस्पर्धीGill की उत्कृष्टता तब और स्पष्ट होती है जब हम उनकी तुलना अन्य शीर्ष खिलाड़ियों से करते हैं। Sri Lanka के Kusal Mendis, जो January 2023 से रन स्कोरिंग में दूसरे स्थान पर हैं, उन्होंने 66 Matches खेले हैं और 2851 रन बनाए हैं, जो Gill से लगभग 250 रन कम हैं। Mendis ने तीन सेंचुरीज बनाई हैं और उनका एवरेज 36 है, जो Gill से काफी कम है।तीसरे स्थान पर भारत के Rohit Sharma हैं, जो इंटरनेशनल Cricket में एक और महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं। Rohit ने इस अवधि में 56 Matches खेले हैं, जिनमें उन्होंने 2801 रन बनाए हैं, जिनमें 7 सेंचुरीज शामिल हैं और उनका एवरेज 46 है। हालांकि, उनका एवरेज Gill से थोड़ा ज्यादा है, लेकिन Rohit ने Gill से कम Matches खेले हैं और उनके रन टैली Gill से 200 रन कम है।Gill और उनके प्रतिस्पर्धियों के बीच का ये बड़ा अंतर यह दर्शाता है कि हाल के समय में युवा भारतीय खिलाड़ी कितने प्रभावशाली रहे हैं। Gill की तीनों Formats में लगातार उच्च स्तर पर प्रदर्शन बनाए रखने की क्षमता एक दुर्लभ कौशल है और उनकी काबिलियत और अडैप्टेबिलिटी को दर्शाता है।आगे का रास्ता: और Records तोड़ने की संभावना?जैसे-जैसे Shubman Gill का शानदार खेल जारी है, Cricket की दुनिया उनके अगले प्रदर्शन का बेसब्री से इंतजार कर रही है। उन्होंने 3000 रन का आंकड़ा पार कर लिया है, और Bangladesh के खिलाफ पहले Test की दूसरी पारी में, Fans को उम्मीद है कि Gill एक और शानदार पारी खेलेंगे। इस सीरीज़ के बाद, Gill का व्यस्त शेड्यूल है, जिसमें Test matches के साथ New Zealand और Australia के खिलाफ Test matches और South Africa का एक टूर भी शामिल है।ऐसा माना जा रहा है कि Gill के पास और भी Records तोड़ने की क्षमता है। कई महत्वपूर्ण Test matches के साथ, Cricket विशेषज्ञों का अनुमान है कि Gill अगले छह-सात Matches में आसानी से 1000 रन और बना सकते हैं। अगर Gill इसी प्रकार प्रदर्शन करते रहे, तो 2024 के अंत तक वो दुनिया के महानतम बल्लेबाजों में से एक बन सकते हैं।भारतीय Cricket का उज्जवल भविष्यShubman Gill का उदय भारतीय Cricket की प्रतिभा की संपन्नता का प्रमाण है। इस युवा खिलाड़ी ने पहले ही Test और ODI Formats में भारत की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हाई-प्रेशर सिचुएशन्स में महत्वपूर्ण पारियां खेलने की उनकी क्षमता उन्हें आज के सबसे रोमांचक खिलाड़ियों में से एक बनाती है।Gill की अद्भुत उपलब्धियाँ अभी सिर्फ शुरुआत हैं। उनकी निरंतर मेहनत, समर्पण और खेल के प्रति जुनून उन्हें भारतीय Cricket के महानतम आइकन्स में से एक बना सकते हैं। Fans के रूप में हम केवल आश्चर्यचकित होकर देख सकते हैं कि कैसे Shubman Gill नए बेंचमार्क ��ेट करते हैं और भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीत दिला��े हैं।Also Read:Sports
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As the evening approached
As the evening approached, the sun started setting towards the west and the moon was also setting. At the same time, a bright object appeared in the western sky.
How does the moon rise just after the sun rises?
A new moon rises with the sun, but it's not visible from Earth because it's in the daytime sky. This is because the moon is much less bright than the sun.
The moon's orbit around the Earth causes it to move 12–13 degrees east each day. This means that Earth has to rotate a little longer to bring the moon into view, which is why the moon rises about 50 minutes later each day.
The moon is above the horizon for about 12 hours out of every 24, and some portion of that time is during daylight. If you look carefully, you can sometimes see the moon during the day, but it's much less bright than the sun.
The moon goes around the earth turning in the same direction as the earth on itself and the earth around the sun. So before the eclipse, the moon will rise after the sun, “catch” it in the sky, “pass it” and set before the sun as it overtakes it in the sky.8 Feb 2022
Phases of the Moon
Museums Victoria
https://museumsvictoria.com.au › learning › little-science
... Moon is dependent on its position in relation to the Sun and Earth. The Moon rises in the east and sets in the west every day just like the Sun.
Phases of the Moon
This activity is designed to build curiosity about observable changes in the sky, with a focus on the phases of the Moon.
The person depicted in the illustrations below ventures outside at different times throughout the month and notices that the Moon looks different.
Each time the person is watching the Moon rise into the sky, but sometimes this happens during the day and other times at night. The Moon also appears to change shape over time, and this is related to when we can see the Moon in the sky.A New Moon rises above the eastern horizon at sunrise with the sun. On this day the Moon then travels across the daytime sky with the sun. A New Moon is in the daytime sky but we cannot see it from Earth.
On the day of a New Moon, the Moon is located between the Earth and the Sun. A person on Earth cannot see a New Moon because the side of the Moon that is facing Earth is not being illuminated by the Sun.
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शाम होते ही सूरज भी पश्चिम ओर ढल गए साथ साथ चंद्रमां भी ढल रही हो रही है उसी वक्त एक ऊजालों सी पिंड प्रकट हुआ उसी पश्चिमी आसमान में
सूरज की ऊगने की बाद ही चांद भी कैसे ऊग होते है
नया चाँद सूरज के साथ उगता है, लेकिन यह पृथ्वी से दिखाई नहीं देता क्योंकि यह दिन के समय आकाश में होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चाँद सूरज से बहुत कम चमकीला होता है।
पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षा इसे हर दिन 12-13 डिग्री पूर्व की ओर ले जाती है। इसका मतलब है कि चंद्रमा को देखने के लिए पृथ्वी को थोड़ा अधिक घूमना पड़ता है, यही वजह है कि चाँद हर दिन लगभग 50 मिनट बाद उगता है।
हर 24 घंटों में से लगभग 12 घंटे चाँद क्षितिज से ऊपर रहता है, और उस समय का कुछ हिस्सा दिन के उजाले के दौरान होता है। अगर आप ध्यान से देखें, तो आप कभी-कभी दिन के दौरान चाँद को देख सकते हैं, लेकिन यह सूरज से बहुत कम चमकीला होता है।
चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर उसी दिशा में घूमता है जिस दिशा में पृथ्वी खुद पर और पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। इसलिए ग्रहण से पहले, चंद्रमा सूर्य के बाद उदय होगा, आकाश में उसे “पकड़ेगा”, “उसे पार करेगा” और आकाश में सूर्य के आगे निकलने से पहले अस्त हो जाएगा।8 फरवरी 2022
चंद्रमा के चरण
म्यूजियम विक्टोरिया
https://museumsvictoria.com.au › learning › little-science
... चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के संबंध में अपनी स्थिति पर निर्भर करता है। चंद्रमा सूर्य की तरह ही हर दिन पूर्व में उदय होता है और पश्चिम में अस्त होता है।
चंद्रमा के चरण
यह गतिविधि चंद्रमा के चरणों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, आकाश में देखने योग्य परिवर्तनों के बारे में जिज्ञासा पैदा करने के लिए डिज़ाइन की गई है।
नीचे दिए गए चित्रों में दर्शाया गया व्यक्ति पूरे महीने में अलग-अलग समय पर बाहर निकलता है और देखता है कि चंद्रमा अलग दिखता है।
हर बार व्यक्ति चंद्रमा को आकाश में उगते हुए देख रहा होता है, लेकिन कभी-कभी यह दिन के दौरान और कभी-कभी रात में होता है। चंद्रमा भी समय के साथ आकार बदलता हुआ प्रतीत होता है, और यह इस बात से संबंधित है कि हम आकाश में चंद्रमा को कब देख सकते हैं। एक नया चंद्रमा सूर्योदय के समय सूर्य के साथ पूर्वी क्षितिज से ऊपर उगता है। इस दिन चंद्रमा फिर सूर्य के साथ दिन के आकाश में यात्रा करता है। एक नया चंद्रमा दिन के आकाश में होता है, लेकिन हम इसे पृथ्वी से नहीं देख सकते हैं। एक नए चंद्रमा के दिन, चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच स्थित होता है। पृथ्वी पर एक व्यक्ति एक नया चंद्रमा नहीं देख सकता है क्योंकि चंद्रमा का वह भाग जो पृथ्वी का सामना कर रहा है, सूर्य द्वारा प्रकाशित नहीं हो रहा है।
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Vivah Muhurat July 2024: जुलाई महीने में कितने दिन बजेगी विवाह की शहनाई, जानिए शुभ मुहूर्तVivah Muhurat July 2024: 29 जून को शुक्र के उदय होने के बाद एक बार फिर शादियों का सीजन शुरू हो गया है। इस साल जुलाई में विवाह के लिए कई शुभ मुहूर्त हैं। पंचांग के अनुसार जुलाई में देवशयनी एकादशी भी पड़ रही है।
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*समर कैंप आउटडोर शिक्षा और साहसिक कार्य के लिए स्वर्ग है - डॉक्टर अरुण*
India news 20 अनिल कुमार गुप्ता ब्यूरो प्रमुख जहानाबाद
जिले के मानस इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल दक्षिणी के परिसर में समर कैंप कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसका विधिबत उद्घाटन संस्था के अध्यक्ष डॉ अरुण कुमार सिन्हा ने किया अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा कि ग्रीष्म कालीन शिविर एक संरक्षित और सकारात्मक सेटिंग के माध्यम से बच्चों में आत्मविश्वास, स्वतंत्रता,सामाजिक कौशल को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। कौशल निर्माण कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ यह शिविर आउटडोर शिक्षा और प्राकृति साहसिक कार्य के लिए स्वर्ग है।
इस अवसर पर स्कूल के निदेशक श्री निशांत रंजन ने कहा कि समर कैंप की गतिविधियां बच्चों को नए दोस्त बनाने और स्थाई रिश्ते बनाने का अवसर प्रदान करती है । टीमवर्क और सहयोग के माध्यम से बच्चे सजग सहानुभूति और संघर्ष समाधान जैसे मूल्यवान सामाजिक कौशल सीखते हैं। यह शिविर बच्चों को नए कौशल विकसित करने और उनके जुनून की खोज करने के लिए मददगार साबित होता है। इस अवसर पर स्कूल के प्राचार्य डॉक्टर संजय कुमार सिन्हा ने कहा की समर कैंप बच्चों को प्राकृतिक दुविधा के साथ गहरा रिश्ता बनाते हुए खुद को तलाशने और खोजबीन का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है । मेरा लक्ष्य है यह है कि स्कूल के बच्चों में आत्मअनुशासन, लचीलापन और टीम नेतृत्व की भावना का विकास हो । इस अवसर पर उन्होंने कहा की शिविर 20 मई से शुरू होकर 26 मई को समाप्त होगा। जहां शिविर में भाग लेने वाले स्कूल के बच्चों को हॉर्स राइडिंग, थिएटर शिक्षा, कराटे, संगीत, ड्रामा, पेंटिंग, फोटोग्राफी, खेलकूद प्रतियोगिता,भाषण प्रतियोगिता आदि का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके लिए बिहार राज्य एवं झारखंड राज्य के समर शिविर विशेषज्ञों को आमंत्रित किए गए हैं। जिन विशेषज्ञों को बुलाया गया है वे कराटे के क्षेत्र में सौरव एवं नीरज, कबड्डी के क्षेत्र में गोपाल सिंह, हॉर्स राइडिंग के क्षेत्र में गोपाल कुमार, आर्ट एवं क्राफ्ट के क्षेत्र में शिखा कुमारी स्वर्ण पदक प्राप्त, कुमार उदय सिंह फोक डांस के लिए, ड्रामा क्षेत्र में सत्यम कुमार सिंह, और सौरव सफारी, संगीत क्षेत्र में मोहम्मद जानी, कैरेक्टर एजुकेशन क्षेत्र में शैलेंद्र कुमार, एवं बाल पेंटिंग क्षेत्र में नूतन सिंह पहुंच चुके हैं कैंप में भाग लेने वाले छात्र-छात्राओं को एक दिन 23/5/ 2024 को संपतचक स्थित वाटर पार्क पटना पटना भी जाना है। इस कार्यक्रम में जिले के अन्य स्कूल के भी छात्र-छात्राएं भी भाग लिए हैं। इस अवसर पर स्कूल के मैनेजर रणधीर कुमार ,मृत्युंजय कुमार राकेश कुमार राजीव कुमार अनुराग कुमार, योगेंद्र कुमार, अमित कुमार, पंकज कुमार संजय, कुमार पांडे, शिवनाथ कुमार, संजीव कुमार, अमरीश कुमार, राजेश कुमार, रामप्रवेश प्रसाद, उज्जवल कुमार मंजू सिंह, राखी कुमारी, प्रियंका कुमारी आदि भी सहयोग के लिए प्रतिबद्ध हैं।
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महाराणा प्रताप जन्म जयंती : एस पी रॉय | Maharana Pratap Birth Anniversary : S P Roy
22.05.2023, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में त्याग, बलिदान एवं पराक्रम के प्रतीक 'मेवाड़ मुकुट' महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती के अवसर पर रामायण पार्क, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष श्री एस पी रॉय, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव, सेक्टर 25 के निवासीगण ए. के. त्रिपाठी, जे. पी. गुप्ता, महेश जैसवाल, आर के शर्मा, सरिता शर्मा, के. पी. शर्मा, सुनीता शर्मा, संजय कुमार पाण्डेय तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों द्वारा महाराणा प्रताप जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण किया गया |
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था, देख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था |" भारतीय इतिहास में अनेक महान वीरों ने अपनी शौर्य और बलिदान के माध्यम से हमारे देश को गौरवान्वित किया है, उनमें से एक महान वीर थे "महाराणा प्रताप सिंह" जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं । महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के उदयपुर, मेवाड़ मे सिसोदिया राजपूत राजवंश के महान राजा थे एवं अपनी वीरता, पराक्रम, व शौर्यता के लिए जाने जाते थे । शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी | आज महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर आइए यह संकल्प लें कि अपने दुश्मनों के सामने कभी घुटने नहीं टेकेगे वह पूरे आत्मविश्वास एवं तन्मयता के साथ अपने देश की रक्षा करेंगे |"
महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष एस पी राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अनुपम, अद्वितीय, अपराजेय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के स्मरण मात्र से आज भी साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण संघर्ष एवं सफलता की चेतना एक साथ स्वत: हो जाती है l गुहील (गुहिला दित्य) कुल में आज से 483 साल पहले 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ किला में राणा उदय सिंह (द्वितीय) के पुत्र राणा प्रताप (प्रथम) जिन्हें हम महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ था l इस कुल की शुरूआत वर्ष 566 में गुहिला दित्य से हुई, जो इस्लाम धर्म के शुरुआत के कई वर्ष पूर्व हैं और यह वंश अभी तक चला आ रहा है इसीलिए इस वंश (dynasty) को विश्व का सबसे लंबा शासक वंश कहा जाता है | इसी कुल में अनेकों वीर योद्धा हुए जिन्होंने राजपूताना मेवाड़ के साथ अपनी मातृभूमि एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया | मध्यकालीन युग में राणा संग्राम सिंह जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, वे मुगल आक्रांता बाबर से लड़ाई लड़े ताकि भारत के पवित्र भूमि पर उसका कब्जा न हो और उसी स्वतंत्र मात्रभूमि की भावना का जीवंत स्वरूप हम महाराणा प्रताप में पाते हैं जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर, जिसका आधिपत्य और साम्राज्य समूचे उत्तर भारत पर था, के विरुद्ध वर्ष 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के कई वर्षों तक अपने प्रण पर अडिग रहकर लड़ते रहे क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहा जबकि मुगल के 30,000 सेना फौज के सामने महाराणा का मात्र 5000 सेना की फौज थी | इसी युद्ध में महाराणा का चेतक घायल हो गया था और तभी सामला के राजा मानसिंह झाला ने महाराणा को अपना मुकुट देकर रणभूमि से निकाला ताकि महाराणा प्रताप अकबर से बाद में लोहा ले सके | हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर 1577, 1578, 1579 एवं 1580 तक विभिन्न सेनापतियों जैसे सहवास हुसैन, बहलोल खान, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना के अगुवाई में लगातार बड़ी सेना की टुकड़ी के साथ भेजता रहा मगर सभी युद्ध अनिर्णायक रहा | महाराणा प्रताप गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई लड़ते थे 1581 में दानवीर भामाशाह ने धन देकर युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किए | वर्ष 1582 में विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने कोल भील से गठित अकबर के 50,000 सेना पर धावा बोल दिया | यह युद्ध देवार युद्ध के नाम से जाना जाता है | और मुगल सेना हार के कारण अपने 36000 सेना महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया | महाराणा का चित्तौड़ छोड़कर पुनः पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया | इस तरह से विजयादशमी हम भारतीयों के लिए दो खुशियां लेकर आती है एक राजा रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने का और इसी सूर्यवंशी कुल में पैदा महाराणा के जीत का | इसी Battle of Dewar में महाराणा ने अपने तलवार से बहलोल खान को एक बार में ही बीचो-बीच टुकड़े कर दिए | मगर Battle of Dewar का इतिहास में स्थान नहीं मिला | 1584 में अकबर स्वयं सेना लेकर आया मगर वह 6 माह बाद निराश होकर आगरा लौट गया वह महाराणा को पराजित नहीं कर सका | महाराणा कुल की महानता इससे भी जाहिर होती है कि राज चिन्ह में भील आदिवासी को राणा के समकक्ष रखा गया है और सूर्य के नीचे “जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार,” की पंक्ति अंकित है जो अपने धर्म की रक्षा का सन्देश देती है |
#महाराणा_प्रताप_जयंती #maharanapratapjayanti #MaharanaPratapJayanti #maharanapratapjayanti2023 #maharanapratap #rajputana #rajput #rajasthan #maharana #udaipur #mewar #rajasthani #baisa #kshatriya #hindu #jodhpur #haldighati #rajputi #jaipur #shivajimaharaj #rajputs #jaisalmer #rajputanaculture
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22.05.2023, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में त्याग, बलिदान एवं पराक्रम के प्रतीक 'मेवाड़ मुकुट' महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती के अवसर पर रामायण पार्क, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष श्री एस पी रॉय, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव, सेक्टर 25 के निवासीगण ए. के. त्रिपाठी, जे. पी. गुप्ता, महेश जैसवाल, आर के शर्मा, सरिता शर्मा, के. पी. शर्मा, सुनीता शर्मा, संजय कुमार पाण्डेय तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों द्वारा महाराणा प्रताप जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण किया गया |
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था, देख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था |" भारतीय इतिहास में अनेक महान वीरों ने अपनी शौर्य और बलिदान के माध्यम से हमारे देश को गौरवान्वित किया है, उनमें से एक महान वीर थे "महाराणा प्रताप सिंह" जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं । महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के उदयपुर, मेवाड़ मे सिसोदिया राजपूत राजवंश के महान राजा थे एवं अपनी वीरता, पराक्रम, व शौर्यता के लिए जाने जाते थे । शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी | आज महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर आइए यह संकल्प लें कि अपने दुश्मनों के सामने कभी घुटने नहीं टेकेगे वह पूरे आत्मविश्वास एवं तन्मयता के साथ अपने देश की रक्षा करेंगे |"
महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष एस पी राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अनुपम, अद्वितीय, अपराजेय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के स्मरण मात्र से आज भी साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण संघर्ष एवं सफलता की चेतना एक साथ स्वत: हो जाती है l गुहील (गुहिला दित्य) कुल में आज से 483 साल पहले 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ किला में राणा उदय सिंह (द्वितीय) के पुत्र राणा प्रताप (प्रथम) जिन्हें हम महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ था l इस कुल की शुरूआत वर्ष 566 में गुहिला दित्य से हुई, जो इस्लाम धर्म के शुरुआत के कई वर्ष पूर्व हैं और यह वंश अभी तक चला आ रहा है इसीलिए इस वंश (dynasty) को विश्व का सबसे लंबा शासक वंश कहा जाता है | इसी कुल में अनेकों वीर योद्धा हुए जिन्होंने राजपूताना मेवाड़ के साथ अपनी मातृभूमि एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया | मध्यकालीन युग में राणा संग्राम सिंह जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, वे मुगल आक्रांता बाबर से लड़ाई लड़े ताकि भारत के पवित्र भूमि पर उसका कब्जा न हो और उसी स्वतंत्र मात्रभूमि की भावना का जीवंत स्वरूप हम महाराणा प्रताप में पाते हैं जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर, जिसका आधिपत्य और साम्राज्य समूचे उत्तर भारत पर था, के विरुद्ध वर्ष 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के कई वर्षों तक अपने प्रण पर अडिग रहकर लड़ते रहे क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहा जबकि मुगल के 30,000 सेना फौज के सामने महाराणा का मात्र 5000 सेना की फौज थी | इसी युद्ध में महाराणा का चेतक घायल हो गया था और तभी सामला के राजा मानसिंह झाला ने महाराणा को अपना मुकुट देकर रणभूमि से निकाला ताकि महाराणा प्रताप अकबर से बाद में लोहा ले सके | हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर 1577, 1578, 1579 एवं 1580 तक विभिन्न सेनापतियों जैसे सहवास हुसैन, बहलोल खान, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना के अगुवाई में लगातार बड़ी सेना की टुकड़ी के साथ भेजता रहा मगर सभी युद्ध अनिर्णायक रहा | महाराणा प्रताप गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई लड़ते थे 1581 में दानवीर भामाशाह ने धन देकर युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किए | वर्ष 1582 में विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने कोल भील से गठित अकबर के 50,000 सेना पर धावा बोल दिया | यह युद्ध देवार युद्ध के नाम से जाना जाता है | और मुगल सेना हार के कारण अपने 36000 सेना महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया | महाराणा का चित्तौड़ छोड़कर पुनः पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया | इस तरह से विजयादशमी हम भारतीयों के लिए दो खुशियां लेकर आती है एक राजा रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने का और इसी सूर्यवंशी कुल में पैदा महाराणा के जीत का | इसी Battle of Dewar में महाराणा ने अपने तलवार से बहलोल खान को एक बार में ही बीचो-बीच टुकड़े कर दिए | मगर Battle of Dewar का इतिहास में स्थान नहीं मिला | 1584 में अकबर स्वयं सेना लेकर आया मगर वह 6 माह बाद निराश होकर आगरा लौट गया वह महाराणा को पराजित नहीं कर सका | महाराणा कुल की महानता इससे भी जाहिर होती है कि राज चिन्ह में भील आदिवासी को राणा के समकक्ष रखा गया है और सूर्य के नीचे “जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार,” की पंक्ति अंकित है जो अपने धर्म की रक्षा का सन्देश देती है |
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22.05.2023, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में त्याग, बलिदान एवं पराक्रम के प्रतीक 'मेवाड़ मुकुट' महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती के अवसर पर रामायण पार्क, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष श्री एस पी रॉय, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव, सेक्टर 25 के निवासीगण ए. के. त्रिपाठी, जे. पी. गुप्ता, महेश जैसवाल, आर के शर्मा, सरिता शर्मा, के. पी. शर्मा, सुनीता शर्मा, संजय कुमार पाण्डेय तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों द्वारा महाराणा प्रताप जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण किया गया |
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था, देख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था |" भारतीय इतिहास में अनेक महान वीरों ने अपनी शौर्य और बलिदान के माध्यम से हमारे देश को गौरवान्वित किया है, उनमें से एक महान वीर थे "महाराणा प्रताप सिंह" जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं । महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के उदयपुर, मेवाड़ मे सिसोदिया राजपूत राजवंश के महान राजा थे एवं अपनी वीरता, पराक्रम, व शौर्यता के लिए जाने जाते थे । शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी | आज महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर आइए यह संकल्प लें कि अपने दुश्मनों के सामने कभी घुटने नहीं टेकेगे वह पूरे आत्मविश्वास एवं तन्मयता के साथ अपने देश की रक्षा करेंगे |"
महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष एस पी राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अनुपम, अद्वितीय, अपराजेय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के स्मरण मात्र से आज भी साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण संघर्ष एवं सफलता की चेतना एक साथ स्वत: हो जाती है l गुहील (गुहिला दित्य) कुल में आज से 483 साल पहले 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ किला में राणा उदय सिंह (द्वितीय) के पुत्र राणा प्रताप (प्रथम) जिन्हें हम महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ था l इस कुल की शुरूआत वर्ष 566 में गुहिला दित्य से हुई, जो इस्लाम धर्म के शुरुआत के कई वर्ष पूर्व हैं और यह वंश अभी तक चला आ रहा है इसीलिए इस वंश (dynasty) को विश्व का सबसे लंबा शासक वंश कहा जाता है | इसी कुल में अनेकों वीर योद्धा हुए जिन्होंने राजपूताना मेवाड़ के साथ अपनी मातृभूमि एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया | मध्यकालीन युग में राणा संग्राम सिंह जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, वे मुगल आक्रांता बाबर से लड़ाई लड़े ताकि भारत के पवित्र भूमि पर उसका कब्जा न हो और उसी स्वतंत्र मात्रभूमि की भावना का जीवंत स्वरूप हम महाराणा प्रताप में पाते हैं जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर, जिसका आधिपत्य और साम्राज्य समूचे उत्तर भारत पर था, के विरुद्ध वर्ष 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के कई वर्षों तक अपने प्रण पर अडिग रहकर लड़ते रहे क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहा जबकि मुगल के 30,000 सेना फौज के सामने महाराणा का मात्र 5000 सेना की फौज थी | इसी युद्ध में महाराणा का चेतक घायल हो गया था और तभी सामला के राजा मानसिंह झाला ने महाराणा को अपना मुकुट देकर रणभूमि से निकाला ताकि महाराणा प्रताप अकबर से बाद में लोहा ले सके | हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर 1577, 1578, 1579 एवं 1580 तक विभिन्न सेनापतियों जैसे सहवास हुसैन, बहलोल खान, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना के अगुवाई में लगातार बड़ी सेना की टुकड़ी के साथ भेजता रहा मगर सभी युद्ध अनिर्णायक रहा | महाराणा प्रताप गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई लड़ते थे 1581 में दानवीर भामाशाह ने धन देकर युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किए | वर्ष 1582 में विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने कोल भील से गठित अकबर के 50,000 सेना पर धावा बोल दिया | यह युद्ध देवार युद्ध के नाम से जाना जाता है | और मुगल सेना हार के कारण अपने 36000 सेना महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया | महाराणा का चित्तौड़ छोड़कर पुनः पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया | इस तरह से विजयादशमी हम भारतीयों के लिए दो खुशियां लेकर आती है एक राजा रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने का और इसी सूर्यवंशी कुल में पैदा महाराणा के जीत का | इसी Battle of Dewar में महाराणा ने अपने तलवार से बहलोल खान को एक बार में ही बीचो-बीच टुकड़े कर दिए | मगर Battle of Dewar का इतिहास में स्थान नहीं मिला | 1584 में अकबर स्वयं सेना लेकर आया मगर वह 6 माह बाद निराश होकर आगरा लौट गया वह महाराणा को पराजित नहीं कर सका | महाराणा कुल की महानता इससे भी जाहिर होती है कि राज चिन्ह में भील आदिवासी को राणा के समकक्ष रखा गया है और सूर्य के नीचे “जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार,” की पंक्ति अंकित है जो अपने धर्म की रक्षा का सन्देश देती है |
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इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था, देख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था |" भारतीय इतिहास में अनेक महान वीरों ने अपनी शौर्य और बलिदान के माध्यम से हमारे देश को गौरवान्वित किया है, उनमें से एक महान वीर थे "महाराणा प्रताप सिंह" जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं । महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के उदयपुर, मेवाड़ मे सिसोदिया राजपूत राजवंश के महान राजा थे एवं अपनी वीरता, पराक्रम, व शौर्यता के लिए जाने जाते थे । शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी | आज महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर आइए यह संकल्प लें कि अपने दुश्मनों के सामने कभी घुटने नहीं टेकेगे वह पूरे आत्मविश्वास एवं तन्मयता के साथ अपने देश की रक्षा करेंगे |"
महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष एस पी राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अनुपम, अद्वितीय, अपराजेय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के स्मरण मात्र से आज भी साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण संघर्ष एवं सफलता की चेतना एक साथ स्वत: हो जाती है l गुहील (गुहिला दित्य) कुल में आज से 483 साल पहले 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ किला में राणा उदय सिंह (द्वितीय) के पुत्र राणा प्रताप (प्रथम) जिन्हें हम महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ था l इस कुल की शुरूआत वर्ष 566 में गुहिला दित्य से हुई, जो इस्लाम धर्म के शुरुआत के कई वर्ष पूर्व हैं और यह वंश अभी तक चला आ रहा है इसीलिए इस वंश (dynasty) को विश्व का सबसे लंबा शासक वंश कहा जाता है | इसी कुल में अनेकों वीर योद्धा हुए जिन्होंने राजपूताना मेवाड़ के साथ अपनी मातृभूमि एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया | मध्यकालीन युग में राणा संग्राम सिंह जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, वे मुगल आक्रांता बाबर से लड़ाई लड़े ताकि भारत के पवित्र भूमि पर उसका कब्जा न हो और उसी स्वतंत्र मात्रभूमि की भावना का जीवंत स्वरूप हम महाराणा प्रताप में पाते हैं जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर, जिसका आधिपत्य और साम्राज्य समूचे उत्तर भारत पर था, के विरुद्ध वर्ष 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के कई वर्षों तक अपने प्रण पर अडिग रहकर लड़ते रहे क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहा जबकि मुगल के 30,000 सेना फौज के सामने महाराणा का मात्र 5000 सेना की फौज थी | इसी युद्ध में महाराणा का चेतक घायल हो गया था और तभी सामला के राजा मानसिंह झाला ने महाराणा को अपना मुकुट देकर रणभूमि से निकाला ताकि महाराणा प्रताप अकबर से बाद में लोहा ले सके | हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर 1577, 1578, 1579 एवं 1580 तक विभिन्न सेनापतियों जैसे सहवास हुसैन, बहलोल खान, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना के अगुवाई में लगातार बड़ी सेना की टुकड़ी के साथ भेजता रहा मगर सभी युद्ध अनिर्णायक रहा | महाराणा प्रताप गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई लड़ते थे 1581 में दानवीर भामाशाह ने धन देकर युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किए | वर्ष 1582 में विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने कोल भील से गठित अकबर के 50,000 सेना पर धावा बोल दिया | यह युद्ध देवार युद्ध के नाम से जाना जाता है | और मुगल सेना हार के कारण अपने 36000 सेना महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया | महाराणा का चित्तौड़ छोड़कर पुनः पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया | इस तरह से विजयादशमी हम भारतीयों के लिए दो खुशियां लेकर आती है एक राजा रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने का और इसी सूर्यवंशी कुल में पैदा महाराणा के जीत का | इसी Battle of Dewar में महाराणा ने अपने तलवार से बहलोल खान को एक बार में ही बीचो-बीच टुकड़े कर दिए | मगर Battle of Dewar का इतिहास में स्थान नहीं मिला | 1584 में अकबर स्वयं सेना लेकर आया मगर वह 6 माह बाद निराश होकर आगरा लौट गया वह महाराणा को पराजित नहीं कर सका | महाराणा कुल की महानता इससे भी जाहिर होती है कि राज चिन्ह में भील आदिवासी को राणा के समकक्ष रखा गया है और सूर्य के नीचे “जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार,” की पंक्ति अंकित है जो अपने धर्म की रक्षा का सन्देश देती है |
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महाराणा प्रताप जन्म जयंती : एस पी रॉय | Maharana Pratap Birth Anniversary : S P Roy
22.05.2023, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में त्याग, बलिदान एवं पराक्रम के प्रतीक 'मेवाड़ मुकुट' महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती के अवसर पर रामायण पार्क, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, लखनऊ में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष श्री एस पी रॉय, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव, सेक्टर 25 के निवासीगण ए. के. त्रिपाठी, जे. पी. गुप्ता, महेश जैसवाल, आर के शर्मा, सरिता शर्मा, के. पी. शर्मा, सुनीता शर्मा, संजय कुमार पाण्डेय तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों द्वारा महाराणा प्रताप जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण किया गया |
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में, दुश्मन में कोहराम मचाया था, देख वीरता राजपूताने की, दुश्मन भी थर्राया था |" भारतीय इतिहास में अनेक महान वीरों ने अपनी शौर्य और बलिदान के माध्यम से हमारे देश को गौरवान्वित किया है, उनमें से एक महान वीर थे "महाराणा प्रताप सिंह" जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं । महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के उदयपुर, मेवाड़ मे सिसोदिया राजपूत राजवंश के महान राजा थे एवं अपनी वीरता, पराक्रम, व शौर्यता के लिए जाने जाते थे । शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी | आज महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर आइए यह संकल्प लें कि अपने दुश्मनों के सामने कभी घुटने नहीं टेकेगे वह पूरे आत्मविश्वास एवं तन्मयता के साथ अपने देश की रक्षा करेंगे |"
महाराणा प्रताप चैरिटेबल ट्रस्ट लखनऊ के अध्यक्ष एस पी राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अनुपम, अद्वितीय, अपराजेय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के स्मरण मात्र से आज भी साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण संघर्ष एवं सफलता की चेतना एक साथ स्वत: हो जाती है l गुहील (गुहिला दित्य) कुल में आज से 483 साल पहले 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ किला में राणा उदय सिंह (द्वितीय) के पुत्र राणा प्रताप (प्रथम) जिन्हें हम महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ था l इस कुल की शुरूआत वर्ष 566 में गुहिला दित्य से हुई, जो इस्लाम धर्म के शुरुआत के कई वर्ष पूर्व हैं और यह वंश अभी तक चला आ रहा है इसीलिए इस वंश (dynasty) को विश्व का सबसे लंबा शासक वंश कहा जाता है | इसी कुल में अनेकों वीर योद्धा हुए जिन्होंने राजपूताना मेवाड़ के साथ अपनी मातृभूमि एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया | मध्यकालीन युग में राणा संग्राम सिंह जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, वे मुगल आक्रांता बाबर से लड़ाई लड़े ताकि भारत के पवित्र भूमि पर उसका कब्जा न हो और उसी स्वतंत्र मात्रभूमि की भावना का जीवंत स्वरूप हम महाराणा प्रताप में पाते हैं जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर, जिसका आधिपत्य और साम्राज्य समूचे उत्तर भारत पर था, के विरुद्ध वर्ष 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के कई वर्षों तक अपने प्रण पर अडिग रहकर लड़ते रहे क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहा जबकि मुगल के 30,000 सेना फौज के सामने महाराणा का मात्र 5000 सेना की फौज थी | इसी युद्ध में महाराणा का चेतक घायल हो गया था और तभी सामला के राजा मानसिंह झाला ने महाराणा को अपना मुकुट देकर रणभूमि से निकाला ताकि महाराणा प्रताप अकबर से बाद में लोहा ले सके | हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर 1577, 1578, 1579 एवं 1580 तक विभिन्न सेनापतियों जैसे सहवास हुसैन, बहलोल खान, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना के अगुवाई में लगातार बड़ी सेना की टुकड़ी के साथ भेजता रहा मगर सभी युद्ध अनिर्णायक रहा | महाराणा प्रताप गुरिल्ला पद्धति से लड़ाई लड़ते थे 1581 में दानवीर भामाशाह ने धन देकर युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किए | वर्ष 1582 में विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने कोल भील से गठित अकबर के 50,000 सेना पर धावा बोल दिया | यह युद्ध देवार युद्ध के नाम से जाना जाता है | और मुगल सेना हार के कारण अपने 36000 सेना महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया | महाराणा का चित्तौड़ छोड़कर पुनः पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया | इस तरह से विजयादशमी हम भारतीयों के लिए दो खुशियां लेकर आती है एक राजा रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने का और इसी सूर्यवंशी कुल में पैदा महाराणा के जीत का | इसी Battle of Dewar में महाराणा ने अपने तलवार से बहलोल खान को एक बार में ही बीचो-बीच टुकड़े कर दिए | मगर Battle of Dewar का इतिहास में स्थान नहीं मिला | 1584 में अकबर स्वयं सेना लेकर आया मगर वह 6 माह बाद निराश होकर आगरा लौट गया वह महाराणा को पराजित नहीं कर सका | महाराणा कुल की महानता इससे भी जाहिर होती है कि राज चिन्ह में भील आदिवासी को राणा के समकक्ष रखा गया है और सूर्य के नीचे “जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार,” की पंक्ति अंकित है जो अपने धर्म की रक्षा का सन्देश देती है |
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