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#उष्ण कटिबंधीय
aliscience · 1 year
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भारत के मुख्य जीवोम
Major Biomes of India भारत के मुख्य जीवोम जीवोम (बायोम)  एक बड़े पैमाने के भौगोलिक क्षेत्र (large-scale geographic area) को दर्शाता करता है जो विशिष्ट जलवायु, वनस्पति और पशु जीवन की विशेषता रखता है। यह एक प्रमुख पारिस्थितिक समुदाय या पारिस्थितिकी तंत्र है जो तापमान, वर्षा, ऊंचाई और मिट्टी के प्रकार जैसे कारकों से आकार लेता है। बायोम वनस्पतियों और जीवों का एक विशाल संयोजन है जो एक विशेष जलवायु के…
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अदरक की खेती से किसान हो जाएंगे मालामाल, ये है फार्मिंग का वैज्ञानिक तरीका, जानें कौन सी किस्म है अच्छी
अदरक की खेती से किसान हो जाएंगे मालामाल, ये है फार्मिंग का वैज्ञानिक तरीका, जानें कौन सी किस्म है अच्छी
अदरक मुख्य रूप से उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की फसल है. अदरक शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के स्ट्रिंगवेरा से हुई है, जिसका अर्थ है, एक सींग या बारह सिंध जैसा शरीर. अदरक का उपयोग प्राचीन काल से मसाले, ताजी सब्जी और औषधि के रूप में किया जाता रहा है. अदरक का उपयोग दवाई, सौंदर्य सामग्री और मसाले के रूप में किया जाता रहा है. भारत में खेती का नाम सुनते ही आमतौर पर लोगों के जेहन में सबसे पहले धान और गेहूं…
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lok-shakti · 3 years
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जावेद की पोती ️उर्फ️उर्फ️उर्फ️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️
हाल ही में लॉन्च होने वाले प्रोग्राम (बिग बॉस ओटीटी) की पूर्व एटी नॉट हाईवे हाईवे (उरफी जावेद) ने एक ऐसे गुण विकसित किए (जावेद अख्तर)। बिजली का उत्पादन शबाना आजमी (शबाना आज़मी) द्वारा किया गया था। अंतरिक्ष, हाल ही में हाइरपीयशनी जावेद को हवाई अड्डे पर स्पॉट किया गया था। वहां पर उन्हें बिकिनी टॉप के साथ क्रॉप डेनिम जैकट और डेनिम जींस में स्पॉट किया गया था। पोस्ट आने के बाद सोशल मिडिया पर मौसम खराब…
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allgyan · 4 years
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रेगिस्तान फैलते और सिकुड़ते भी है -
रेगिस्तान नाम से ही रेत की याद आ जाती है |लेकिन आपने कभी सोचा की इनका निर्माण कैसे होते है |ये कहा से आते है | इतने बड़े टीले कहा से आते है |लोगों की सोच होती है की रेगिस्तान गर्म होते है लेकिन ऐसा नहीं होता है |उत्तरी और दच्छिन ध्रुव में रेगिस्तान पाए जाते है जो बेहद ठन्डे होते है |रेगिस्तान पृथ्वी के ऐसे स्थान होते है जहां वर्षा बहुत कम (लगभग 250 मिमी) होती है|अधिकत्तर  रेगिस्तान व्यापक जलवायु परिवर्तन के कारण बनते हैं। रेगिस्तानीकरण कोई नई परिघटना नहीं है अपितु इसका इतिहास तो बहुत पुराना है। संसार के विशाल रेगिस्तान अनेक प्राकृतिक क्रियाओं से गुजर कर, दीर्घ अंतराल के पश्चात ही निर्मित हुए हैं।रेगिस्तान स्थिर नहीं होते, कभी फैलते हैं तो कभी सिकुड़ते हैं और निश्चित रूप से इन पर मानव का कोई नियंत्रण नहीं है।
रेगिस्तानीकरण प्रभाव तुरंत पता करना आसान नहीं -
रेगिस्तान का विस्तार एक अनिश्चित प्रक्रिया है तथा यह भी आवश्यक नहीं कि जहां रेगिस्तानीकरण हो रहा है वहां निकट ही कोई रेगिस्तान उपस्थित हो। यदि लंबे समय तक किसी भी उपजाऊ धरती का प्रबंधन ठीक से नहीं होता है तब चाहे वह स्थान किसी रेगिस्तान से कितना ही दूरस्थ क्यों न हो उसका रेगिस्तानीकरण हो सकता है। रेगिस्तानीकरण के प्रभावों का तुरंत पता करना संभव नहीं है। हमको इस विषय में जानकारी तभी हो पाती है जबकि रेगिस्तानीकरण की प्रक्रिया एक निश्चित क्रियात्मक दौर से गुजर जाए। इसलिए ऐसी कोई विधि नहीं है जिससे कि हमें रेगिस्तानीकरण होने के समय की पारिस्थितिकी अथवा धरती की उर्वरकता की दर का ज्ञान हो सके। रेगिस्तानीकरण से संबंधित अनेक प्रश्न जैसे, रेगिस्तानीकरण की प्रक्रिया क्या भूमंडलीय परिवर्तन का सूचक है,क्या यह स्थाई अथवा अस्थाई है और पुनः यथा स्थिति में परिवर्तन करने योग्य है आदि का समाधान प्राप्त नहीं हो सकता है।
धरती की उर्वरक क्षमता में ह्रास होना ही रेगिस्तानीकरण है -
रेगिस्तानीकरण एक सीधी लाइन में अथवा दिशा में अपना दायरा नहीं फैलाता तथा इसको मापने की कोई निश्चित विधि भी नहीं है।धरती की उर्वरक क्षमता में ह्रास कोई साधारण व अनायास होने वाली प्रक्रिया नहीं है अपितु एक जटिल प्रक्रिया है। भूमि ह्रास का कोई एक निश्चित कारण भी नहीं है। किसी भी धरती का ह्रास करने में अनेक कारण सहायक हो सकते हैं। विभिन्न स्थानों की भूमि की उवर्रकता के ह्रास की गति भी एक समान नहीं होती है और अनेक स्थानों पर यह जलवायु पर निर्भर करती है। रेगिस्तानीकरण किसी भी क्षेत्र की जलवायु को प्रभावित कर अति शुष्क बना सकता है औ��� वहां की स्थानीय जलवायु में परिवर्तन कर सकने में सहायक हो सकता है।
उच्च दाब वाले क्षेत्र में रेगिस्तान का जन्म -
उच्च दाब के दोनों उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों की धरती पर सघन वायु उतरती है, पूर्वी हवाएं निर्मित होती हैं जो सूखी तथा नमी रहित होती हैं। यह सूखी हवाएं उस क्षेत्र की धरती से नमी सोख कर धरती को अधिक शुष्क बना देती हैं। पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध की पट्टी में कक रेखा के निकटवर्ती क्षेत्र में अनेक रेगिस्तान जैसे चीन का गोबी रेगिस्तान, उत्तरी अफ्रीका का सहारा रेगिस्तान, उत्तरी अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम में स्थित रेगिस्तान तथा मध्य पूर्व के अरब तथा ईरानी रेगिस्तान स्थित हैं।अधिकतर रेगिस्तान 30 डिग्री उत्तरी और 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के उच्च दाब क्षेत्रों में स्थित हैं।इन क्षेत्रों का उच्च तापमान नमी सोखने में सहायक होता है।
दुनिया के सबसे पुराना रेगिस्तान कौन है -
दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका के अटलांटिक तट से लगा नामीब रेगिस्तान धरती पर सबसे सूखी जगहों में से एक है|नामीब का अर्थ होता है -'वह इलाका जहां कुछ भी नहीं है'मंगल ग्रह की सतह जैसा दिखने वाले इस भू-भाग पर रेत के टीले हैं, ऊबड़-खाबड़ पहाड़ हैं और 3 देशों के 81 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले बजरी के मैदान हैं|5 करोड़ 50 लाख साल पुराने नामीब रेगिस्तान को दुनिया का सबसे पुराना रेगिस्तान माना जाता है|
नामीब रेगिस्तान में केवल 2 मिलीमीटर बारिश ही होती सालभर में -
इसकी तुलना में सहारा रेगिस्तान बहुत पहले का है लगभग 20 से 70 लाख साल पहले का है|इसलिए नामीब रेगिस्तान को ही सबसे पुराना रेगिस्तान माना गया है |गर्मियों में यहां तापमान अक्सर 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है और रातें इतनी ठंडी होती हैं कि बर्फ जम जाए|बसने के लिहाज से यह धरती के सबसे दुर्गम इलाकों में से एक है|नामीब रेगिस्तान दक्षिणी अंगोला से नामीबिया होते हुए 2,000 किलोमीटर दूर दक्षिण अफ्रीका के उत्तरी हिस्से तक फैला है|यहाँ बनी कुछ भू आकृतिया लोगों को भी चकित कर जाती है |यहाँ पर साल में औसतन सिर्फ़ 2 मिलीमीटर बारिश होती है |हमारा हमेशा ये उद्देश्य रहा है की आपको अलग चीजें के बारे में अवगत कराया जाता है |
#सहारा रेगिस्तान#संसारकेविशालरेगिस्तान#रेगिस्तानीकरणहोरहा#रेगिस्तानीकरणप्रभावतुरंतपताकरना#रेगिस्तानस्थिरनहींहोते#रेगिस्तानफैलतेऔरसिकुड़तेभीहै#रेगिस्ताननामसेहीरेतकीयादआजातीहै#रेगिस्तानगर्महोतेहै#रेगिस्तानकैसेबने#रेगिस्तानकाविस्तारएकअनिश्चितप्रक्रिया#रेगिस्तान#मानवकाकोईनियंत्रणनहींहै#मरुस्थल#भूमिकीउवर्रकताकेह्रासकीगति#प्राकृतिकक्रियाओंसेगुजरकर#पुरानारेगिस्तान#नामीबरेगिस्तानदक्षिणीअंगोला#नामीबरेगिस्तान#धरतीकीउर्वरकक्षमतामेंह्रासहोना#जहांवर्षाब��ुतकम#जलवायुपरनिर्भरकरती#उच्चदाबवालेक्षेत्रमेंरेगिस्तानकाजन्म#ईरानीरेगिस्तान#अतिशुष्कबनासकता#45डिग्रीसेल्सियस
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studycarewithgsbrar · 2 years
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टाइफून ने फिलीपींस में स्कूलों को बंद करने, खाली करने के लिए मजबूर किया - टाइम्स ऑफ इंडिया
टाइफून ने फिलीपींस में स्कूलों को बंद करने, खाली करने के लिए मजबूर किया – टाइम्स ऑफ इंडिया
मनीला: उत्तरी क्षेत्र में आए उष्ण कटिबंधीय तूफान ने कहर बरपाया फिलीपींस मंगलवार को तेज हवाओं और बारिश ने कम से कम दो लोगों को घायल कर दिया और राष्ट्रपति को राजधानी और बाहरी प्रांतों में स्कूलों और सरकारी कार्यालयों को बंद करने के लिए प्रेरित किया। ट्रॉपिकल स्टॉर्म मा-ऑन मंगलवार सुबह 110 किमी (68 मील प्रति घंटे) की निरंतर हवाओं और 150 किमी / घंटा (93 मील प्रति घंटे) और उत्तरी प्रांतों के साथ देश…
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merikheti · 2 years
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तुलसी की खेती करने के फायदे
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दोस्तों आज हम बात करेंगे तुलसी की खेती की। जिस प्रकार विभिन्न प्रकार की फसलें जैसे दाल, गन्ना, गेहूं, जौ, बाजरा आदि पारंपरिक फसलें  मानी जाती है, उसी प्रकार औषधि के रूप में तुलसी की खेती की जाती है। तुलसी की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।
तुलसी की खेती:
वैसे तो किसान गेहूं, गन्ना, धान आदि की फसल की खेती करते हैं और यह खेती वे लम्बे समय से करते आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में किसान इन खेतीयों को पारंपरिक तौर पर करते हैं। परंतु प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार, हरदोई के एक किसान ने इन परंपराओं से हटकर, तुलसी की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाया है, तुलसी की फसल की खेती से काफी मुनाफा कमाया है।
जिले के इस किसान ने पारंपरिक फसलों की बुवाई से हटकर अलग कार्य कर दिखाया है, जिसके लिए लोग उसकी काफी प्रशंसा करते हैं। ऐसे में आप इस किसान के नाम को जानने के लिए जरूर इच्छुक होंगे।
हरदोई के इस किसान का नाम अभिमन्यु है, ये हरदोई के नीर गांव में निवास करते हैं। अभिमन्यु तुलसी की खेती लगभग 1 हेक्टेयर की भूमि पर कर रहे हैं, जहां उन्हें अन्य फसलों से ज्यादा मुनाफा मिल रहा है। ये खेती कर 90 से 100 दिनों के भीतर अच्छी कमाई कर लेते हैं।ये भी पढ़ें:तुलसी के पौधों का मानव जीवन में है विशेष महत्व
तुलसी के तेल की बढ़ती मांग:
मार्केट दुकानों आदि जगहों पर तुलसी के तेल की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं। क्योंकि तुलसी स्वास्थ्य तथा औषधी कई प्रकार से काम में  लिया जाता है तथा विभिन्न विभिन्न प्रकार की औषधि बनाने के लिए तुलसी के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं दूसरी ओर यदि हम बात करें, त्वचा को आकर्षित व कुदरती निखार देने की, तो भी तुलसी के तेल का ही चुनाव किया जाता है। ऐसी स्थिति में मार्केट तथा अन्य स्थानों पर तुलसी की मांग तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में किसान तुलसी की खेती कर अच्छी कमाई की प्राप्ति कर सकते हैं।
तुलसी के तेल की कीमत:
तुलसी के तेल की कीमत लगभग 1800 से  2000 प्रति लीटर है। करोना जैसी भयानक महामारी के समय लोग ज्यादा से ज्यादा तुलसी के तेल का इस्तेमाल कर रहे थे। तुलसी के तेल का इस्तेमाल देखते हुए इसकी कीमत दिन प्रतिदिन और बढ़ती गई। बाजार और मार्केट में अभी भी इनकी कीमत उच्च कोटि पर है।
तुलसी की खेती के लिए उपयुक्त भूमि का चयन:
किसानों के अनुसार कम उपजाऊ वाली जमीनों पर तुलसी की खेती बहुत ज्यादा मात्रा में होती है। जिन भूमियों में जल निकास की व्यवस्था सही ढंग से की गई हो उन भूमि पर उत्पादन ज्यादा होता है। बलुई दोमट मिट्टी तुलसी की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।ये भी पढ़ें:रोज़मेरी – सुगंधित पौधे की खेती (Rosemary Aromatic Plant Cultivation Info in Hindi)
उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु तुलसी की खेती के लिए उपयोगी है।
तुलसी की खेती करने के लिए भूमि को तैयार करना:
तुलसी की खेती करने से पहले भूमि को हल या किसी अन्य उपकरण द्वारा अच्छे से जुताई कर लेना चाहिए। एक अच्छी गहरी जुताई प्राप्त करने के बाद ही बीज रोपण का कार्य शुरू करना चाहिए। सभी प्रकार की भूमि तुलसी की खेती करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
तुलसी के पौधों की बुवाई तथा रोपाई करने के तरीके:
तुलसी के बीज सीधे खेतों में नहीं लगाए जाते हैं, इससे फसल पर बुरा असर पड़ता है। तुलसी की फसल की बुवाई करने से पहले, कुछ दिनों तक इन्हें नर्सरी में सही ढंग से तैयार करने के बाद ही खेतों में इसकी रोपाई का कार्य करना चाहिए। सीधे बीज को खेतों में लगाना फसल को खराब कर सकता है। किसान तुलसी की खेती करने से पहले तुलसी के बीजों को नर्सरी में सही ढंग से तैयार करने की सलाह देते हैं।ये भी पढ़ें:पालड़ी राणावतन की मॉडल नर्सरी से मरु प्रदेश में बढ़ी किसानों की आय, रुका भूमि क्षरण
तुलसी के पौधे को तैयार करने के तरीके:
तुलसी के पौधों को बोने से पहले किसान खरपतवार को पूरे खेत से भली प्रकार से साफ करते हैं। उसके बाद लगभग 18 से 20 सेंटीमीटर गहरी जुताई करते हैं। तुलसी की खेती के लिए लगभग 15 टन सड़ी हुई गोबर को खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी के पौधे के लिए क्यारियों की दुरी : पौधे से पौधे की दूरी ३० -४० सेंटीमीटर व लाइन से लाइन की दूरी ३८ -४६ सेंटीमीटर रखनी चाहिए। खाद के रूप में 20 किलोग्राम फास्फोरस और पोटाश का भी इस्तेमाल किया जाता है। बुवाई के 15 से 20 दिन के बाद खेतों में नत्राजन डालना फसल के लिए उपयोगी होता है। तुलसी के पौधे छह ,सात हफ्तों में रोपाई के लिए पूरी तरह से तैयार हो।
तुलसी के पौधों की रोपाई का उचित समय
तुलसी के पौधों की रोपाई का सही समय दोपहर के बाद का होता है। तुलसी के पौधों की रोपाई सदैव सूखे मौसम में करना फसल के लिए उपयोगी होता है। रोपाई करने के बाद जल्द ही सिंचाई की व्यवस्था बनाए रखना चाहिए। मौसम बारिश का लगे तब आप रोपाई का कार्य शुरू कर दे। इससे फसल की अच्छी सिंचाई हो जाती है।
दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा या आर्टिकल तुलसी की खेती करने के फायदे पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में  तुलसी की फसल जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारी मौजूद है। जो आप के बहुत काम आ सकती हैं। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट है। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ तथा अन्य सोशल प्लेटफॉर्म पर शेयर करें।
Source तुलसी की खेती करने के फायदे
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mytracknews · 3 years
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ये हैं दुनिया के सबसे महंगे अंगूर, कीमत आपको हैरान कर देगी
ये हैं दुनिया के सबसे महंगे अंगूर, कीमत आपको हैरान कर देगी
उष्ण कटिबंधीय देशों में उत्कृष्ट जलवायु के कारण वहां फल सस्ते दामों पर मिलते हैं। उष्णकटिबंधीय देशों में रहने वाले लोग इन फलों को बहुतायत में खरीदते हैं क्योंकि वे सस्ती कीमत पर आते हैं। हालांकि एक ऐसा फल है, जिसकी कीमत लाखों से हजारों के बीच होती है। रूबी रोमन अंगूर इतने शानदार होते हैं कि भारत में इस फल की कीमत लगभग 7,50,000 रुपये है। सिर्फ एक अंगूर की कीमत करीब 35,000 रुपये है। दुनिया के सबसे…
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its-axplore · 4 years
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21 दिसंबर को दिन सबसे छोटा रहा है। इस दौरान 24 घंटे की जगह इसकी अवधि 23 घंटे 56 मिनट और 4 सेकेंड रहा। मौसम विभाग के वैज्ञानिक रविंद्र कुमार के मुताबिक 21 दिसंबर को संक्रांति दिवस था। जिसके तहत इस दिन साल का सबसे छोटा दिन होता है और इसकी रात सबसे लंबी होती है। इस दिन पृथ्वी का ध्रुव सूर्य से अधिकतम झुकाव पर होता है। इसी वजह से दिन छोटा होता है।
21 दिसंबर को बिहार में दिन की अवधि लगभग 10 घंटे रही। पिछले पांच साल के रिकार्ड के मुताबिक 21 दिसंबर 2020 को सबसे सर्द संक्रांति अवधि रिकार्ड किया गया। मौसम विभाग के वैज्ञानिक संजय कुमार के मुताबिक साल में दो बार संक्रांति होता है। जिसे समर और विंटर संक्रांति कहते हैं। विंटर संक्रांति हर साल 21 से 23 दिसंबर के बीच होता है। सामान्य रुप से ये 22 दिसंबर को ही होता है। इस दिन उत्तरी गोलार्ध में देश सूर्य से सबसे दूर होता है।
उसका केंद्र मकर राशि के उष्ण कटिबंधीय के ऊपरी हिस्से में होता है। पृथ्वी की धुरी 23.5 डिग्री के कोण पर झुकी हुई रहती है। यह सूर्य की परिक्रमा करती है। इससे रात लंबी दिन छोटा होता है। समर संक्रांति में दिन लंबा होता है। हालांकि पिछले पांच साल के रिकार्ड के मुताबिक 21 दिसंबर 2020 को सबसे सर्द संक्रांति अवधि रिकार्ड किया गया। इस दौरान अधिकतम तापमान 17.8 डिग्री और न्यूनतम तापमान 7.8 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया। अभी ठंड से राहत मिलने की फिलहाल संभावना नहीं है।
सुबह 8:30 से 9:30 के बीच 30 बढ़ा पारा
सोमवार की सुबह पटना में तापमान ने पिछले पांच सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया। राजधानी के कई इलाकों में घने कोहरे के कारण विमान से साथ-साथ सामान्य यातायात भी प्रभावित रहा। बेली रोड, बोरिंग रोड, इनकम टैक्स चौराहा में विजिबिलिटी 800 मीटर से भी कम रही। हालांकि, दिन चढ़ने के साथ तापमान बढ़ा और विजिबिलिटी भी ठीक हुई।
ठंड से बचाव : 57 जगहों पर अलाव
ठंड से बचाव के लिए 57 जगहों पर अलाव जले। महावीर मंदिर, आईजीआईएमएस व पीएमसीएच प्रमुख स्थान रहे।
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गांधी मैदान सुबह 7 :25 बजे
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pvpradeep102 · 4 years
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✍विश्व में घास के प्रमुख मैदान एवं क्षेत्र ►- प्रेयरीज >>> उत्तरी अमेरिका ►- लानोज >>> अमेजन नदी के उत्तरी ओरनीको बेसिन ►- कम्पास >>> अमेजन नदी के दक्षिण भाग में ब्राजील ►- कटिंगा >>> ब्राजील के उष्ण कटिबंधीय वन ►- पार्कलैण्ड >>> अफ्रीका ►- पम्पास >>> द. अमेरिका(अर्जेण्टीना के मैदानी भागों में) ►- वेल्ड >>> द.अफ्रीका के भूमध्य सागरीय जलवायु में ►- डाउंस >>> आस्ट्रेलिया(मरे-डार्लिंग बेसिन में) ►- स्टेपीज >>> यूरेशिया https://www.instagram.com/p/CGyyzD8po2J/?igshid=1rc4o7sa042ll
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allgyan · 4 years
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रेगिस्तान फैलते और सिकुड़ते भी है -
रेगिस्तान नाम से ही रेत की याद आ जाती है |लेकिन आपने कभी सोचा की इनका निर्माण कैसे होते है |ये कहा से आते है | इतने बड़े टीले कहा से आते है |लोगों की सोच होती है की रेगिस्तान गर्म होते है लेकिन ऐसा नहीं होता है |उत्तरी और दच्छिन ध्रुव में रेगिस्तान पाए जाते है जो बेहद ठन्डे होते है |रेगिस्तान पृथ्वी के ऐसे स्थान होते है जहां वर्षा बहुत कम (लगभग 250 मिमी) होती है|अधिकत्तर  रेगिस्तान व्यापक जलवायु परिवर्तन के कारण बनते हैं। रेगिस्तानीकरण कोई नई परिघटना नहीं है अपितु इसका इतिहास तो बहुत पुराना है। संसार के विशाल रेगिस्तान अनेक प्राकृतिक क्रियाओं से गुजर कर, दीर्घ अंतराल के पश्चात ही निर्मित हुए हैं।रेगिस्तान स्थिर नहीं होते, कभी फैलते हैं तो कभी सिकुड़ते हैं और निश्चित रूप से इन पर मानव का कोई नियंत्रण नहीं है।
रेगिस्तानीकरण प्रभाव तुरंत पता करना आसान नहीं -
रेगिस्तान का विस्तार एक अनिश्चित प्रक्रिया है तथा यह भी आवश्यक नहीं कि जहां रेगिस्तानीकरण हो रहा है वहां निकट ही कोई रेगिस्तान उपस्थित हो। यदि लंबे समय तक किसी भी उपजाऊ धरती का प्रबंधन ठीक से नहीं होता है तब चाहे वह स्थान किसी रेगिस्तान से कितना ही दूरस्थ क्यों न हो उसका रेगिस्तानीकरण हो सकता है। रेगिस्तानीकरण के प्रभावों का तुरंत पता करना संभव नहीं है। हमको इस विषय में जानकारी तभी हो पाती है जबकि रेगिस्तानीकरण की प्रक्रिया एक निश्चित क्रियात्मक दौर से गुजर जाए। इसलिए ऐसी कोई विधि नहीं है जिससे कि हमें रेगिस्तानीकरण होने के समय की पारिस्थितिकी अथवा धरती की उर्वरकता की दर का ज्ञान हो सके। रेगिस्तानीकरण से संबंधित अनेक प्रश्न जैसे, रेगिस्तानीकरण की प्रक्रिया क्या भूमंडलीय परिवर्तन का सूचक है,क्या यह स्थाई अथवा अस्थाई है और पुनः यथा स्थिति में परिवर्तन करने योग्य है आदि का समाधान प्राप्त नहीं हो सकता है।
धरती की उर्वरक क्षमता में ह्रास होना ही रेगिस्तानीकरण है -
रेगिस्तानीकरण एक सीधी लाइन में अथवा दिशा में अपना दायरा नहीं फैलाता तथा इसको मापने की कोई निश्चित विधि भी नहीं है।धरती की उर्वरक क्षमता में ह्रास कोई साधारण व अनायास होने वाली प्रक्रिया नहीं है अपितु एक जटिल प्रक्रिया है। भूमि ह्रास का कोई एक निश्चित कारण भी नहीं है। किसी भी धरती का ह्रास करने में अनेक कारण सहायक हो सकते हैं। विभिन्न स्थानों की भूमि की उवर्रकता के ह्रास की गति भी एक समान नहीं होती है और अनेक स्थानों पर यह जलवायु पर निर्भर करती है। रेगिस्तानीकरण किसी भी क्षेत्र की जलवायु को प्रभावित कर अति शुष्क बना सकता है और वहां की स्थानीय जलवायु में परिवर्तन कर सकने में सहायक हो सकता है।
उच्च दाब वाले क्षेत्र में रेगिस्तान का जन्म -
उच्च दाब के दोनों उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों की धरती पर सघन वायु उतरती है, पूर्वी हवाएं निर्मित होती हैं जो सूखी तथा नमी रहित होती हैं। यह सूखी हवाएं उस क्षेत्र की धरती से नमी सोख कर धरती को अधिक शुष्क बना देती हैं। पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध की पट्टी में कक रेखा के निकटवर्ती क्षेत्र में अनेक रेगिस्तान जैसे चीन का गोबी रेगिस्तान, उत्तरी अफ्रीका का सहारा रेगिस्तान, उत्तरी अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम में स्थित रेगिस्तान तथा मध्य पूर्व के अरब तथा ईरानी रेगिस्तान स्थित हैं।अधिकतर रेगिस्तान 30 डिग्री उत्तरी और 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के उच्च दाब क्षेत्रों में स्थित हैं।इन क्षेत्रों का उच्च तापमान नमी सोखने में सहायक होता है।
दुनिया के सबसे पुराना रेगिस्तान कौन है -
दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका के अटलांटिक तट से लगा नामीब रेगिस्तान धरती पर सबसे सूखी जगहों में से एक है|नामीब का अर्थ होता है -'वह इलाका जहां कुछ भी नहीं है'मंगल ग्रह की सतह जैसा दिखने वाले इस भू-भाग पर रेत के टीले हैं, ऊबड़-खाबड़ पहाड़ हैं और 3 देशों के 81 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले बजरी के मैदान हैं|5 करोड़ 50 लाख साल पुराने नामीब रेगिस्तान को दुनिया का सबसे पुराना रेगिस्तान माना जाता है|
नामीब रेगिस्तान में केवल 2 मिलीमीटर बारिश ही होती सालभर में -
इसकी तुलना में सहारा रेगिस्तान बहुत पहले का है लगभग 20 से 70 लाख साल पहले का है|इसलिए नामीब रेगिस्तान को ही सबसे पुराना रेगिस्तान माना गया है |गर्मियों में यहां तापमान अक्सर 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है और रातें इतनी ठंडी होती हैं कि बर्फ जम जाए|बसने के लिहाज से यह धरती के सबसे दुर्गम इलाकों में से एक है|नामीब रेगिस्तान दक्षिणी अंगोला से नामीबिया होते हुए 2,000 किलोमीटर दूर दक्षिण अफ्रीका के उत्तरी हिस्से तक फैला है|यहाँ बनी कुछ भू आकृतिया लोगों को भी चकित कर जाती है |यहाँ पर साल में औसतन सिर्फ़ 2 मिलीमीटर बारिश होती है |हमारा हमेशा ये उद्देश्य रहा है की आपको अलग चीजें के बारे में अवगत कराया जाता है |
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kisansatta · 4 years
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किसान करे हरे चारे की खेती
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दुधारू पशुओं को प्रतिदिन कम से कम दो किलो दाने की आवश्यकता होती है। शहरों के आसापास स्थित डेयरी कृषक अपने पशुओं को धान कट्टी या फिर गेंहू भूषा के साथ दाना-खल्ली देते है। धान पैरा कट्टी तथा गेंहू भूषा 1-2 रूपये प्रति किलो व दाना -खल्ली 10-15 रूपये प्रति किलो की दर से बाजार से लेना होती है । चारा दाना मंहगा होने के कारण पशुओं को पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है। इसके चलते पशुओं में तेजी से बढ़ती कुपोषाण की समस्या के कारण आज हमारे यहां प्रति पशु प्रति दिन का दूध उत्पादन एक लीटर या इससे भी कम है। इसी वजह से दुग्ध उत्पादन घाटे का व्यवसाय होता जा रहा है जिससे किसानो का पशुधन के प्रति मोह भंग होता जा रहा है।
पशुआहार के विकल्प की खोज में एक विस्मयकारी फनज़्-अजोला सदाबहार चारे के रूप में उपयोगी हो सकता है। दूध की बढ़ती मांग के लिए आवश्यक है कि पशुपालन व्यवसाय को अधिक लाभकारी बनाया जाए। इसके लिए जरूरी है की पशु पालन में दाने-चारे में आने वाली लागत (वर्तमान में यह 70 प्रतिशत से अधिक बैठती है ) को कम करना होगा। इसमें प्रकृति प्रदत्त अजोला की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। यह सर्वविदित है कि पशुओं के संतुलित आहार में हरे चारों की अहम भूमिका होती है, इसे नाकारा नहीं जा सकता है। भारत में पशुओं के लिए हरे चारे की उपलब्धता में निरंतर कमी परिलक्षित हो रही है।
वनों एवं पारंपरिक चारागाहों का क्षेत्रफल दिनोंदिन घटता चला जा रहा है। कृषि के आधुनिकीकरण की वजह से फसल प्रति-उत्पाद(भूसा,कड़वी, पैरा कुट्टी आदि) में भी कमीं आ रही है जोकि अन्यथा पशु आहार के रूप में उपयोग किया जाता रहा है। हरे चारे अथवा पौष्टिक आहार की इस कमीं की पूर्ति बाजार से मंहगे व गुणवत्ता विहीन ��शु आहार से की जा रही है। यही वजह है जिसके कारण दुग्ध उत्पादन लागत में वृद्धि और पशुपालन घाटे का सौदा होता जा रहा है। इस समस्या के लिए अजोला उत्पादन पशुपालको के लिए वरदान बन सकता है। इसे घर-आंगन में उगा सकते है और साल भर हरा चारा उत्पादन कर सकते हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों से अजोला उत्पादन के बेहतर नतीजे सामने आ रहे है ।
अजोला एक विस्मयकारी अद्भुत पौधा दरअशल अजोला तेजी से बढऩे वाली एक प्रकार की जलीय फनज़् है, जो पानी की सतह पर तैरती रहती है। धान की फसल में नील हरित काई की तरह अजोला को भी हरी खाद के रूप में उगाया जाता है और कई बार यह खेत में प्राकर्तिक रूप से भी उग जाता है। इस हरी खाद से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और उत्पादन में भी आशातीत बढ़ोत्तरी होती है। एजोला की सतह पर नील हरित शैवाल सहजैविक के रूप में विध्यमान होता है।
इस नील हरित शैवाल को एनाबिना एजोली के नाम से जाना जाता है जो कि वातावरण से नत्रजन के स्थायीकरण के लिए उत्तरदायी रहता है। एजोला शैवाल की वृद्धि के लिए आवश्यक काबज़्न स्त्रोत एवं वातावरण प्रदाय करता है । इस प्रकार यह अद्वितीय पारस्परिक सहजैविक संबंध अजोला को एक अदभुद पौधे के रूप में विकसित करता है, जिसमें कि उच्च मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध होता है। प्राकृतिक रूप से यह उष्ण व गमज़् उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। देखने में यह शैवाल से मिलती जुलती है और आमतौर पर उथले पानी में अथवा धान के खेत में पाई जाती है।
पशुओं को अजोला चारा खिलाने के लाभ अजोला सस्ता, सुपाच्य एवं पौष्टिक पूरक पशु आहार है। इसे खिलाने से वसा व वसा रहित पदार्थ सामान्य आहार खाने वाले पशुओं के दूध में अधिक पाई जाती है। पशुओं में बांझपन निवारण में उपयोगी है। पशुओं के पेशाब में खून की समस्या फॉस्फोरस की कमी से होती है। पशुओं को अजोला खिलाने से यह कमी दूर हो जाती है। अजोला से पशुओं में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहे की आवश्यकता की पूर्ति होती है जिससे पशुओं का शारिरिक विकास अच्छा है।
अजोला में प्रोटीन आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा-कैरोटीन) एवं खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, कापर, मैगनेशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इसमें शुष्क मात्रा के आधार पर 40-60 प्रतिशत प्रोटीन, 10-15 प्रतिशत खनिज एवं 7-10 प्रतिशत एमीनो अम्ल, जैव ���क्रिय पदार्थ एवं पोलिमर्स आदि पाये जाते है। इसमें कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा अत्यंत कम होती है। अत: इसकी संरचना इसे अत्यंत पौष्टिक एवं असरकारक आदर्श पशु आहार बनाती है। यह गाय, भैंस, भेड़, बकरियों , मुर्गियों आदि के लिए एक आदर्श चारा सिद्ध हो रहा है।
दुधारू पशुओं पर किए गए प्रयोगो से साबित होता है कि जब पशुओं को उनके दैनिक आहार के साथ 1.5 से 2 किग्रा. अजोला प्रतिदिन दिया जाता है तो दुग्ध उत्पादन में 15-20 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गयी है। इसके साथ इसे खाने वाली गाय-भैसों की दूध की गुणवत्ता भी पहले से बेहतर हो जाती है।
प्रदेश में मुर्गीपालन व्यवसाय भी बहुतायत में प्रचलित है। यह बेहद सुपाच्य होता है और यह मुर्गियों का भी पसंदीदा आहार है। कुक्कुट आहार के रूप में अजोला का प्रयोग करने पर ब्रायलर पक्षियों के भार में वृद्धि तथा अण्डा उत्पादन में भी वृद्धि पाई जाती है। यह मुर्गीपालन करने वाले व्यवसाइयों के लिए बेहद लाभकारी चारा सिद्ध हो रहा है। यही नहीं अजोला को भेड़-बकरियों, सूकरों एवं खरगोश, बतखों के आहार के रूप में भी बखूबी इस्तेमाल किया जा सकता है।
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khabaruttarakhandki · 4 years
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दुर्लभ प्रजाति की वनस्पतियों का अद्भुत खज़ाना
उत्तराखंड की ख़ास बात ये है कि यहां तीन तरह के वन हैं. उष्ण कटिबंधीय (ट्रॉपिकल), सम शीतोष्ण (टैम्परेट) और अल्पाइन. इन तीनों प्रकार के वनों में पाई जाने वाली वनस्पतियों के जर्मप्लाज़्म का संरक्षण करना वन अनुसंधान शाखा का मुख्य लक्ष्य है. संरक्षण के इस काम में जुटे आईएफ़एस अधिकारी और उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक जर्मप्लाज़्म के संरक्षण का फ़ायदा ये होगा कि अगर कभी जलवायु परिवर्तन, तापमान ��ें वृद्धि, अवैध दोहन, खनन या फिर वनों के कटान से किसी वनस्पति की प्रजाति अपनी प्राकृतिक जगह से विलुप्त हो जाती है तो राज्य के पास इनके जीवित पौधों का संग्रह सुरक्षित रहेगा जिसकी मदद से दोबारा उस वनस्पति को उसके प्राकृतिक वास में बहाल किया जा सकेगा. 
वन अनुसंधान  शाखा ने जिन 1145 प्रजातियों की वनस्पतियों का संरक्षण किया है उनमें से 386 औषधीय महत्व की हैं. 1145 प्रजातियों में वृक्षों की 375 प्रजातियां, झाड़ियों की 100 प्रजातियां, 110 शाकीय प्रजातियां यानी Herbs, ऑर्किड की 60 प्रजातियां, बांसों की 35 प्रजातियां, कैक्टस और सक्यूलेंट की 150 प्रजातियां, जंगली लताओं की 34 प्रजातियां और 22 तरह के जलीय पौधे (aquatic plants) शामिल हैं.
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इसके अलावा पहली बार निचले स्तर के पौधों जैसे 26 तरह के मॉस, 28 तरह के लाइकेन और दो तरह के एल्गाई यानी शैवाल का भी न केवल संरक्षण किया गया है बल्कि इनकी प्रजातियों की वैज्ञानिक पहचान भी निर्धारित करके इनका रिकॉर्ड तैयार किया गया है. 
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उत्तराखंड में वनस्पतियों की 70 से 80 प्रजातियां ऐसी हैं जो एन्डेमिक हैं यानी राज्य के बाहर दुनिया में कहीं नहीं पाई जातीं. इनमें से 46 को वन अनुसंधान शाखा ने संरक्षित किया है. उत्तराखंड के जैव विविधता बोर्ड ने राज्य में वनस्पति की 16 प्रजातियों को विलुप्त होने के कगार पर पाया है.
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इन 16 प्रजातियों में से 11 को अनुसंधान शाखा ने संरक्षित कर लिया है. इनमें मीठा विष, कुमाऊं पाम, पटवा, गैंती, रेड क्रेन ऑर्किड (नन ऑर्किड), वन पलाश, ट्री फर्न, अतीस, त्रायमाण वगैरह शामिल हैं. बाकी पांच लुप्तप्राय प्रजातियों को भी ढूंढ कर संरक्षित करने की कोशिशें जारी हैं.
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कुल मिलाकर 68 ऐसी प्रजातियों को संरक्षित किया गया है जो IUCN (इंटरनेशनल यूनियन फ़ॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर) की रेड लिस्ट के हिसाब से दुर्लभ या लुप्त प्राय हो चुकी हैं. इनमे कई काफ़ी लोकप्रिय प्रजातियां हैं जैसे ब्रह्म कमल, चंदन, रक्त चंदन, तेजपात, अश्वगंधा, ब्राह्मी, अर्जुन, वज्रदंती, सालमपंजा ऑर्किड, बद्री तुलसी, थुनेर (टैक्सास बकाटा जिससे कैंसर की दवा बनती है) और भोजपत्र. उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली कुछ दुर्लभ प्रजातियां जैसे कुटकी, कूथ, चिरायता, समेवा, जटामासी, चिरौंजी, कासनी का भी संरक्षण किया गया है. 
उत्तराखंड की वन अनुसंधान शाखा की मुहिम, 1145 प्रजातियों की वनस्पतियों का संरक्षण
386 प्रजातियां औषधीय महत्व की 375 प्रजातियों के पेड़ 100 प्रजातियों की झाड़ियां 110 शाकीय प्रजातियां 60 प्रजातियों के ऑर्किड 35 प्रजातियों के बांस 150 प्रजातियों के कैक्टर और सक्यूलेंट 34 प्रजातियों की जंगली लताएं 22 प्रजातियों के जलीय पौधे 26 किस्म की मॉस 28 किस्म के लाइकेन 2 किस्म के एल्गाई
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gyanyognet-blog · 5 years
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गुणकारी अमृत फल एवं दिव्य औषधि ‘बेल’
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गुणकारी अमृत फल एवं दिव्य औषधि ‘बेल’
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आयुर्वेद में बेल को अत्यन्त गुणकारी फल माना जाता है। यह एक ऐसा फल है जिसके पत्ते, जड़ और छाल भी उपयोगी हैं। बेल पत्र इसी बेल नामक फल की पत्तियाँ हैं जिनका प्रयोग पूजा में किया जाता है। उष्ण कटिबंधीय फल बेल के वृक्ष हिमालय की तराई, मध्य एवं दक्षिण भारत बिहार, तथा बंगाल में घने जंगलों में अधिकता से पाए जाते हैं। चूर्ण आदि औषधीय प्रयोग में बेल का कच्चा फल, मुरब्बे के लिए अधपक्का फल और शर्बत के लिए पका फल काम में लाया जाता है। इसके कुछ घरेलू इलाज निम्न लिखित हैं किन्तु इनका सेवन करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श कर लेना उचित है – 1. आँखें दुखने पर पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूँद आँखों में टपकाएँ। दुखती आँखों की पीड़ा, चुभन, शूल ठीक होकर, नेत्र ज्योति बढ़ेगी। 2. सौ ग्राम पानी में थोड़ा गूदा उबालें, ठंडा होने पर कुल्ले करने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं। 3. रक्त शुद्धि के लिए बेलवृक्ष की पचास ग्राम जड़, बीस ग्राम गोखरू के साथ पीस-छान लें। सुबह एक छोटा चम्मच चूर्ण आधा कप खौलते पानी में घोंलें। मिश्री या शहद मिला कर गरमा-गरम घूँट भरें। कुछ ही दिनों में लाभ दिखाई देने लगेगा। 4. गर्मियों में लू लगने पर इस फल का शर्बत पीने से शीघ्र आराम मिलता है तथा तपते शरीर की गर्मी भी दूर होती है। 5. पके बेल में चिपचिपापन होता है इसलिए यह डायरिया रोग में काफी लाभप्रद है। यह फल पाचक होने के साथ-साथ बलवर्द्धक भी है। 6. पके बेल का शर्बत पीने से पेट साफ रहता है। यह रस शीतलता देने वाला और वीर्यवर्धक होता है । 7. इसके पके फल को शहद व मिश्री के साथ चाटने से शरीर के खून का रंग साफ होता है, खून में भी वृद्धि होती है। 8. बेल का मुरब्बा शरीर की शक्ति बढ़ाता है तथा सभी उदर विकारों से छुटकारा भी दिलाता है। 9. भूख कम हो, कब्ज हो, जी मिचलाता हो तो इसका गूदा पानी में मथ कर रख लें और उसमें चुटकी भर लौंग, काली मिर्च का चूर्ण, मिश्री मिला कर कुछ दिन लेने से भूख बढ़ेगी, कब्ज की शिकायत खत्म हो जाएगी। 10. सिर दर्द में बेल पत्र के रस से भीगी पट्टी माथे पर रखें। पुराना सर दर्द होने पर ग्यारह पत्तों का रस निकाल कर पी जाएँ। गर्मियों में इसमें थोड़ा पानी मिला ले। कितना ही पुराना सर दर्द ठीक हो जाएगा। 11. मोच अथवा अन्दरूनी चोट में बेल पत्रों को पीस कर थोड़े गुड़ में पकाइए। इसे थोड़ा गर्म पुल्टिस बन पीडित अंग पर बाँध दें। दिन में तीन-चार बार पुल्टिस बदलने पर आराम आ जाएगा। 12. बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, कृमिनाशक, संग्राही (मल को बाँधकर लाने वाले) व सूजन उतारने वाले हैं। ये मूत्र के प्रमाण व मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं। शरीर के सूक्ष्म मल का शोषण कर उसे मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देते हैं। इससे शरीर की आभ्यंतर शुद्धि हो जाती है। बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं। 13. पके फल के सेवन से वात-कफ का शमन होता है। 14. बच्चों के पेट में कीड़े हों तो इस फल के पत्तों का अर्क निकालकर पिलाना चाहिए। 15. बेल की छाल का काढ़ा पीने से अतिसार रोग में राहत मिलती है। 16. बेल के गूदे को खांड के साथ खाने से संग्रहणी रोग में राहत मिलती है। 17. छोटे बच्चों को प्रतिदिन एक चम्मच पका बेल खिलाने से शरीर की हड्डियाँ मजबूत होती हैं। 18. कभी दस्त लगे, कभी कब्ज हो जाए तो यह स्थिति बड़ी कष्टदायक होती है। ऐसे में पके बेल को शर्बत या पानी में मथ कर कुछ दिन लगातार लेने से लाभ होता है। 19. किसी प्रकार के घाव पर इसके पत्तों को पीस कर बांधने से घाव जल्दी भरता है। 20. खूनी बवासीर में इसका चूर्ण मिश्री मिला कर एक सप्ताह तक पानी में लेने से लाभ होता है। 21. बलवृद्धि के लिए इसका चूर्ण और मिश्री दूध में मिला कर लेने से लाभ होता है। इसे कुछ दिन लगातार लेने से खून की कमी, शारीरिक दुर्बलता एवं धातुदोष दूर होते हैं। 22. इसकी छाल का काढ़ा बना कर शहद मिला कर पीने से किसी भी तरह की उल्टी से राहत मिलती है। Advertisements
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sahu4you · 4 years
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सबसे तेजी से बढ़ते पेड़ और पौधे - Fast Growing Tree in Hindi
क्या आप जानते हैं कि कौन से तेजी से बढ़ने वाले पेड़ हैं जो आप अच्छा लाभ कमाकर कमा सकते हैं? इस पेड़ रोपण व्यवसाय में, काम समय और उच्च लाभदायक है।पृथ्वी का हृदयः कहे जाने वाले वृक्ष कुदरत का एक अनमोल तौफा है जिसमे कई जीव-जन्तुओ का प्राण बसा हुआ है। हम मनुष्य तो अपने रहने खाने के लिए कही ना कही से प्रबंध कर लेते है परन्तु हमारे आस पास रहने वाले कई जीव अपना जीवन व्यापन वृक्ष के मदद से करते है।
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fast growing tree in hindi अगर पृथ्वी पर से सभी वृक्ष ख़त्म हो जाए तो यहाँ प्राणियों का निवास करना काफी मुश्किल हो जाएगा। पेड़ पृथ्वी के पर्यावरण में आवश्यक तत्वों का संतुलन बनाए रखता है जो जीव जन्तुओ के जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इन सभी बातो के कारण आज हो रहे जंगल ह्रास को रोका जा रहा है एवं कटे गये पेड़ो के स्थान पर जल्द बढ़ने वाले पेड़ो को लगाया जा रहा है। जानिए अक्टूबर माह में कौन-सी खेती करनी चाहिए? नींबू घास की खेती - लेमन ग्रास से जुडी जानकारी खरगोश क्या खाते हैं? खरगोशों के लिए आहार क्या आप जानते हैं कि हमारी प्रयालिंग में जल्द बढ़ने वाला पेड़ कौन है? अगर नहीं तो आज हम आपको इस सवाल के जवाब को हम बताते हैं। तो चलिए जानते हैं कि ऐसे कौन से तेजी से बढ़ते पेड़ हैं जिनका वाणिज्यिक उपयोग होता है और व्यवसाय के हिसाब से अच्छा लाभ भी मिलता है:
Fast Growing Commercial Trees
Sr. No. Tree Name In English Tree Name In Hindi Maturity Time 1 Eucalyptus निलगिरी 10-12 Years 2 Sagwan सागवान 12-14 Years 3 Melia Dubia मेलिया दुबिया 10-12 Years 4 Gamhar गम्हार 10-12 Years 5 Semal सेमल 12-15 Years 6 Bamboo बांस 5-7 Years 7 Red Sanders रक्त चन्दन 8-10 Years 8 Mahogany Tree महोगनी 15-20 Years आप Tree Farming Business से जुडी अधिक जानकारी यहाँ पर प्राप्त कर सकते हैं। नीलगिरी वृक्ष (Eucalyptus) Eucalyptus एक पुष्पीय झाड़ीनुमा पेड़ है जिसे आम बोलचाल के रूप में निलगिरी के नाम से जानते है। मर्टल परिवार का यह वृक्ष ऑस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले फूलदार वृक्षो में प्रमुख है। निलगिरी के 700 से अधिक प्रजाति पाए जाते है। यह वृक्ष ऑस्ट्रेलिया के अलावा यह उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पाई जाती है। इस पेड़ के फल, फुल, पत्ते एवं छाल ��ा इस्तेमाल किसी ना किसी प्रकार से मनुष्य के द्वारा किया जाता है। यह पेड़ काफी तेजी से बढ़ाते है एवं इसके लकड़ी कोमल होते है जिस कारण इसका इस्तेमाल जलावन या सजावटी वस्तुओ को बनाने का काम किया जाता है। रोपण: अगर आप इस पौधे को लगाना चाहते है तो यह आपके एक एकड़ जमीन में कुल 500 पेड़ लगा सकते है। लागत एक एकड़ भूमि में 500 पेड़ को लगाने, मिट्टी को तैयार करने, खाद इत्यादि में कुल लागत Rs 55,000 से 70,000  तक आ सकती है । कमाई इस पेड़ का बाजार मूल्य Rs 30,000 तक होते है जो इसके गुणवत्ता पर निर्भर करता है। इस प्रकार अगर आप 10 वर्ष में कुल 1.5 करोड़ का Business कर सकते है। इसके अलावे ऐसे और कई Medicinal Trees है जिहे लगाकर कम समय में अच्छा खासा मुनाफा कमाया जा सकता है। Sagwan सागवान जिस लोग अलग अलग नाम से जानते है। कुछ जगहों पर इसे सागौन तो कोई सागवान तो वही बहुत से स्थानों पर इसे Teakwood के रूप में भी जाना जाता है। भारत में पाए जाने वाले सभी इमारती पेड़ो में सबसे उत्तम लकड़ी सागवान का होता है क्योकि इसके लकड़ी हल्का एवं मजबूत के साथ साथ काफी लम्बे समय तक चलने वाली होती है। आज हर कोई अपने घरेलु इस्तेमाल में इस्तेमाल की जाने वाली Furniture Teakwood से बनवाना पसंद करते है। रोपण: अगर आप व्यापार के उद्देश्य से इस पेड़ को लगाना चाहते है तो यह एक एकड़ में 400 सागवान के पौधे को लगा सकते है। लागत अगर आप अपने जमीन में पेड़ लगाने की तयारी कर रहे है तो आपके दिमाग में सबसे पहला सवाल यह उत्पन होगा की पौधो की लगाने में कितना खर्च पड़ेगा। एक एकड़ में लगाने वाले पौधे में कुल लागत 40 से 45 हज़ार पड़ सकते है। कमाई लगभग 12 वर्ष में यह पेड़ तैयार हो जाते है। अगर आप इसके लकड़ी को बाजार में बेचे तो आपको प्रति पेड़ Rs 40,000 तक मिल सकता है। उस हिसाब से अगर 400 पेड़ में अगर 300 भी बड़े हो जाते है तो आपको Rs 1 Crore 20 Lakh तक की कमी हो सकती है, और अगर सभी Expenses काट दिया जाये तो भी आसानी से कम से कम 1 Crore तो कमाया ही जा सकता है। Malabar Neem (मालाबार नीम) Melia Dubia Fast Growing की सूचि में अगला पेड़ Melia Dubia है। अर्ध-शुष्क क्षेत्रों एवं उच्च आय पैदा करने के लिए कृषि वानिकी करना चाहिए एवं कृषि वानिकी के लिए यह पेड़ उपयुक्त है। इस पेड़ के सही विकास के लिए उपजाऊ एवं रेतीले मिट्टी की आवश्यकता होती है। अन्य पेड़ के मुकाबले इस पेड़ का वृद्धि दर अधिक है। अगर आप इस पेड़ को लगते है तो यह छः माह में 1.80 मीटर तक बढ़ता है जिसकी मोती 7 Cm होता है। एक साल में यह 6.4 मीटर लम्बा एवं 12 Cm तक मोटा होता है। रोपण: एक एकड़ भूमि में आप 400 से 430 पेड़ को लगा सकते है। लागत इतने पेड़ के लगाने में आपको लगभग 30 से 40 हज़ार रूपये खर्च करने पड़ेंगे। Maturing Timing इस पेड़ की सबसे अच्छी बात यह है की मिलिया दुबिया को बड़ा होने में 5 से 6 Years लगते है और उसके बाद इसे कटवा कर पैसा कमाया जा सकता है। कमाई जो तैयार होने पर बाजार में लगभग Rs 5,500 के दर से बिकता है एवं एक पेड़ से 200 Kg लकड़ी प्राप्त होता है। गम्भारी (Gambhari Fruit) आम बोलचाल के भाषा में गम्हार के नाम से जाना जाने वाला पेड़ Gmelina Arborea है जो एक तेजी से बढ़ने वाला पर्णपाती पेड़ है। इस पेड़ को स्वाभाविक रूप से समुन्द्र तल से 1,500 मीटर की ऊंचाई पर लगा सकते है। यह भारत के अलावा म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, के साथ साथ चीन के दक्षिणी प्रांतों में भी पाया जाता है। इस पेड़ के पत्ते का इस्तेमाल दवा के रूप में किया जाता है। अगर आप इसके पत्ते का लेप सर दर्द या अन्य दर्द में राहत प्रदान करता है इसके अलावा इसका Juce का इस्तेमा अल्सर को साफ़ करने के लिए इस्तेमाल कर सकते है। रोपण: अन्य पेड़ो के अनुसार इसे भी एक एकड़ भूमि में 500 पेड़ लगते है। लागत एक एकड़ में 500 पेड़ को लगाने में कुल Rs 40,000 से 55,000  तक के लागत लग सकते है, जो तैयार होकर हमे लाखो का फायदा कराता है। और उसके बाद Next Year से 10,000 से 15,000 तक का Expenses  आ सकता है। कमाई किसी भी पेड़ की लकड़ी का मूल्य उसके Quality पर Dipend होता है। अगर आपके पास Gamhar के उत्तम Quality है तो आप एक एकड़ में लगे पेड़ो से कुल एक करोड़ का Business कर सकते है। शाल्मली (Semal, Shalmali) सेमल जिसे Bombax Ceiba कहा जाता है, इसके इस्तेमाल के आधार पर इसे Cotton Tree के नाम से भी जानते है। यह एशियाई उष्णकटिबंधीय वृक्ष है जो सीधा एवं लम्बे होते है एवं शर्दियो के दिनों में इसके डाली में नए पत्ते आते है। नए पत्तो के आने से पहले डालियों में पांच पंखुड़ी वाले आकर्षक लाल रंग के फुल खिलते है जो दिखने में काफी आकर्षक होते है। आम तौर पर एक व्यस्क सेमल कम से कम 20 मीटर उच्चा होता है। रोपण: अगर आप इस पेड़ की खेती करना चाहते है तो आप अपने एकड़ भूमि में 450 पेड़ लगा सकते है जो 10 वर्ष में पूरी तरह से व्यस्क हो जाते है। लागत एक एकड़ में लगाने वाले पेड़ में लगभग Rs 50,000 तक का खर्च हो सकता है। कमाई बाजार में इसके लकड़ी का Price लगभग Rs 30,000 प्रति पेड़ है। बांस के पौधे (Bamboo) Bamboo जिसे हिंदी में बांस कहा जाता है, यह मुख्य रूप से एक प्रकार का सबसे लम्बा घास है परन्तु अधिकतर लोग इसे पेड़ के रूप में मानते है। यह एक प्रकार का झाड़ीनुमा पौधा है जिसे विश्व का सबसे तेजी से बदने वाला पौधा है, जिसका इस्तेमाल कई प्रकार से किया जाता है। Bamboo Tree की वृद्धि दर इतना अधिक है की यह 3 से 4 Year में Harvesting के लिए Ready हो जाता है जिसे आप काट कर अन्य कार्यो में इस्तेमाल कर सकते है। रोपण: एक एकड़ भूमि में 1500 से 1700 पौधे आप लगा सकते है। लागत यह बहुत ही निम्न बजट वाला पौधा है। एक एकड़ भूमि में कुल लगाने वाले पौधो में Rs 9,000 से 20,000 तक के खर्च हो सकते है। कमाई इस पौधे को लगाने के 4 वर्ष के बाद आप इसकी कटाई कर सकते है और 9 वे वर्ष में आपको कुल 48 मेट्रिक टन बॉस का उत्पादन होगा जिससे आप 30,000 से 40,000 तक पैसे कम सकते है। और अगर आप Single Single Bamboo Market में सेल करते है तो आपको आसानी से हर पेड़ का Rs 40-50 मिल जाता है। रक्त चन्दन (लाल चन्दन) Red Sanders रक्त चन्दन (लाल चन्दन) के नाम से जाने जाना वाला पेड़ Red Sanders जिसका वैज्ञानिक नाम Pterocarpus Santalinus है। दक्षिण भारत के जंगलो में पाए जाने वाले इस पेड़ को हिन्दू धर्म में पवित्र माना गया है। सफ़ेद चन्दन के अनुसार लाल चन्दन में सुगंध नहीं होता लेकिन शैव एवं शाक्त परम्परा को मानाने वाले लोग इसका इस्तेमाल पूजा में करते है। इसके तना के बीचो बीच पाए जाने वाले सामग्री का इस्तेमाल पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने, शरीर में तरल का संचय, रक्त शोधन जैसे उपचार में किया जाता है। इसके पेड़ कम से कम 8 मीटर (26 Feet) उच्चा एवं इसके तना 50 से 150 Cm तक मोटा होता है। Planting Red Sanders के पौधों एक एकड़ की भूमि पर लगभग 400 पेड़ लग सकते हैं। कमाई पेड़ के 12 से 15 साल होने के बाद एक पेड़ से औसतन 20 से 30 किलो तक लकड़ी मिल जाती है , और बाजार में इसकी कीमत 6 से 7 हजार रूपए प्रति किलो है। यानी की एक पेड़ से आपको एक से डेढ़ लाख तक की आमदानी हो सकती है। महोगनी जीनस स्वेतेनिया (Mahogany Tree) महोगनी एक प्रकार की लकड़ी है जिसका इस्तेमाल कई प्रकार के घरेलु Furniture को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। यह मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते है Honduran या Big-Leaf Mahogany, West Indian या Cuban Mahogany एवं Swietenia Humilis आदि। Planting महोगनी के पौधों एक एकड़ की भूमि पर लगभग 500 पेड़ लग सकते हैं। लागत सुरुवाती दौर में एक एकड़ की भूमि में महोगनी के पौधों को लगाने में तकरीबन Rs 1,10,000/- तक की लागत लग सकती है। और उसके बाद सालाना 15,000 से 20,000 तक का खर्चा आ सकता है। कमाई महोगनी के एक पेड़ से तक़रीबन Rs 40,000 से Rs 70,000 तक की कमाई हो सकती है। Indian Market में 1 Feet By 1 Feet का Price 1,000 से 1,500 तक है। निष्कर्ष: जी हाँ दोस्तों, आपको आज की पोस्ट कैसी लगी, आज हमने आपको बताया सबसे तेजी से बढ़ते पेड़ और पौधे और हिंदी में फास्ट ग्रोइंग ट्री की सूची बहुत आसान शब्दों में, हमने आज की पोस्ट में भी सीखा। आज मैंने इस पोस्ट में List of Fast Growing Tree in Hindi सीखा। आपको इस पोस्ट की जानकारी अपने दोस्तों को भी देनी चाहिए। वे और सोशल मीडिया पर भी यह पोस्ट ज़रूर साझा करें। इसके अलावा, कई लोग इस जानकारी तक प��ुंच सकते हैं। यदि आप हमारी वेबसाइट के नवीनतम अपडेट पाना चाहते है उसके लिए Sahu4You.com को Visit करते रहे साथ ही हमसे Facebook, 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theyourclasses · 4 years
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General Knowledge Quiz, GK Questions Answers, GK Quiz 2020 Hindi/English
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General Knowledge Quiz, GK Questions Answers, GK Quiz 2020 Hindi/English
The Christmas celebration in Australia occurs in which season? Summer season
Consider the following statements:
Wardha and Indravati are the reservoirs of coal in the Gondwana region.
in the Kutch region, the Jurassic reservoir of coal located.
There are mainly lignite reserves in Tamil Nadu and Kerala.
Which of the statements given above is/are correct?1, 2 and 3
Consider the following statements:
In the Panjab state, 94% of the underground water has been grown whereas in Bihar state only 20% of ground water has been utilized.
Nearly 67 percent of the water resources in the country are available in the alluvial basins of the Ganges, both in the local and temporary areas.
Which of the statements given above is/are correct?Both 1 and 2
Perihelion which is the earth’s position closest to the sun takes place on________.3 January
Consider the following statements:
Biosphere Reserve has been established under Wildlife Protection Act.
Limited economic activities (sand and stone mining) are permitted in Biosphere Reserve.
Which of the statements given above is/are correct?Both 1 and 2
Consider the following statements:
Agriculture is done on 57% of India’s land area.
In the world, only 12 percent of the total land is cultivated.
Which of the statements given above is/are correct?Both 1 and 2
Consider the following statements:
Cotton is a tropical crop.
Cotton is sown in semi dry parts of the country during the Kharif season.
Which of the statements given above is/are correct?Both 1 and 2
Which of the following cities is not situated on the river bank?Bhopal
Which of the following imaginary lines join places with same level of rainfalls?Isohyets lines
How many Indian states share their boundaries with Nepal?5
1.आस्ट्रेलिया में क्रिसमस का पर्व किस ऋतु में होता है?ग्रीष्म ऋतु
निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
वर्धा तथा इन्द्रावतीगोण्डवाना क्षेत्र में कोयले के भंडार है।
कच्छ क्षेत्र में जुरासिक कोयले के भंडार है।
तमिलनाडु तथा केरल में मुख्य रूप से लिग्नाइट के भंडार है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?1, 2 और 3
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1.पंजाब में भूमिगत जल का 94प्रतिशत विकास हुआ है, जबकि बिहार राज्य में भूमिगत जल का 20प्रतिशत भाग ही उपयोग किया गया है।
2.स्थानिक तथा अस्थायी दोनों रूप से देश का लगभग 67प्रतिशत जल संसाधन गंगा के जलोढ़ बेसिनों में उपलब्ध है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?1 और 2 दोनों
उपसौर,जो सूर्य की पृथ्वी के सबसे निकट की स्थिति ________ को होती है।3 जनवरी
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1.बायोस्फीयर रिजर्व वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत स्थापित किया गया है।
2.बायोस्फीयर रिजर्व में सीमित आर्थिक गतिविधि (रेत और पत्थर खनन) की अनुमति है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?1 और 2 दोनों
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
भारत के 57प्रतिशत भू-भाग पर कृषि की जाती है।
2.विश्व में कुल भूमि पर केवल 12प्रतिशत भू-भाग पर कृषि की जाती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?1 और 2 दोनों
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
कपास एक उष्ण कटिबंधीय फसल है।
कपास देश के अर्ध शुष्क भागों में खरीफ ऋतु में बोयी जाती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?1 और 2 दोनों
निम्नलिखित में से कौन सा नगर नदी तट पर अवस्थित नहीं है?भोपाल
निम्नलिखित में से किस काल्पनिक रेखा के द्वारा समान वर्षा स्तर वाले स्थानों को जोड़ा जाता है?समवर्षा रेखा
भारत के कितने राज्य नेपाल के साथ सीमा साझा करते है?5
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mahenthings-blog · 6 years
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कौन है हम ?? भाग -1  
चलिए अब मूल विषय पर आते है और अपने आपको जानने पहचानने की कोशिश करते है | पृथ्वी लगभग 4 अरब 60 करोड़ वर्ष पूर्व अस्तित्व में आयी और इसकी परतो का विकास चार अवस्थाओं में सामने आया ,चौथी अवस्था चतुर्थिकी कहलाती है जिसके होलोसीन और प्लाइस्टोसीन दो भाग है  ,प्लाइस्टोसीन का काल 20 लाख वर्ष से 12 हजार वर्ष पूर्व तक तथा होलोसीन का 12 हजार वर्ष पूर्व से वर्तमान तक आता है | पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति लगभग 3 अरब 50 करोड़ वर्ष पूर्व हो चुकी थी जो वनस्पतियो तथा जीवजन्तुओ में सिमित थी और इसके बाद के करोडो वर्षो तक रही | लगभग 3 करोड़ वर्ष पूर्व आदिमानव जो बंदरो की तरह थे अस्तित्व में आये ,पृथ्वी पर सर्वप्रथम मानव की उत्पत्ति अस्ट्रालापिथेकस अर्थात होमिनिड के रूप में पूर्व प्लाइस्टोसिन काल और प्लाइस्टोसीन काल के प्रारम्भ में हुयी जो 55 लाख से 15 लाख वर्ष पूर्व का काल था | ये दो पेरो और उभरे पेट वाला था लेकिन इसका मस्तिष्क केवल 400 सीसी का ही था इसे प्रोटो मानव और आद्य मानव भी कहा गया ,इसमें मानव और वानर दोनों के लक्षण विद्यमान थे | 20 लाख से 15 लाख वर्ष पूर्व दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका में होमो हेविलिस का प्रादुर्भाव हुआ जिसे प्रथम मानव कहा गया | इसने पत्थरो को तोड़कर और तराशकर उनका इस्तेमाल किया ,जहां भी इसके अवशेष मिले है वहां टूटे हुए पत्थरो के टुकड़े अवश्य मिले है | 18 से 16 लाख वर्ष पूर्व के आसपास होमो इरेक्टस अर्थात सीधे मानव का प्रादुर्भाव हुआ | पत्थर के हस्तकुठार के निर्माण और अग्नि के अविष्कार का श्रेय इसे ही है | होमो हेवीलिस के विपरीत इसने दूर दराज के क्षेत्रो की यात्राएं की जिसकी पुष्टि इसके अफ्रीका के अतिरिक्त चीन ,दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में मिले अवशेषों से होती है | जैविक विकास के अगले क्रम में होमो सेपियन्स सामने आता है जिससे आधुनिक मानव अस्तित्व में आया | इसका काल निर्धारण 2. 30 लाख वर्ष से 30 हजार वर्ष पूर्व निर्धारित किया गया है | इसका शरीर छोटा और माथा संकरा था लेकिन इसके मस्तिष्क का आकार बहुत बड़ा ( 1200 -1800 सीसी ) था | हम अर्थात आधुनिक मानव अर्थात होमो सेपियंस सेपियंस इसी से जैविक विकास क्रम की अभी तक जानी गयी अंतिम कड़ी के रूप में अस्तित्व में आये | होमो सेपियंस सेपियंस 1. 15 लाख वर्ष पूर्व ऊपरी पुरापाषाण काल में दक्षिणी अफ्रीका में प्रकट हुआ | इसका ललाट बड़ा और हड्डियां पतली थी तथा मस्तिष्क पूर्व के रूपों की तुलना में बहुत बड़ा ( लगभग 1200 से 2000 सीसी ) था इसीलिए ये अधिक बुद्धिमान था और इसमें परिवेश को बदलने और उसके अनुरूप निर्णय लेने की क्षमता थी | ये बोलना जानता था अथवा नहीं निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता क्योंकि विभिन्न अन्वेषणों के आधार पर भाषा के जन्म का समय 50 हजार वर्ष पूर्व का ही निर्धारित किया गया है |                    
   पृथ्वी के विकास क्रम में लगभग 4 करोड़ वर्ष पूर्व स्वतंत्र भौगोलिक इकाई के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप का आविर्भाव हुआ | प्रायद्वीपीय भारतीय भौगोलिक क्षेत्र अंटार्कटिका ,अफ्रीका ,अरब और दक्षिणी अमेरिका के साथ दक्षिणी वृहत महादेश का हिस्सा था जिसे गोवनालेंड कहा जाता है | पूर्व में गोवनालेंड उत्तरी वृहत महादेश लारेशिया के साथ मिला हुआ था | उत्तरी महादेश में ग्रीनलैंड ,यूरोप और हिमालय के उत्तर भाग में स्थित क्षेत्र शामिल थे | बाद में गोवनालेंड और लारेशिया पृथक इकाइयां बन गए | पृथ्वी की विवर्तनिक गतिविधियों के कारण 22 करोड़ 50 लाख वर्ष पूर्व गोवनालेंड का बिखराव शुरू हुआ जिसके चलते अन्य इकाइयों के साथ भारतीय उपमहादेश भी अस्तित्व में आया ये समय 5 करोड़ 80 लाख वर्ष से 3 करोड़ 70 लाख वर्ष के मध्य का कहा जा सकता है | शुरू में भारतीय उपमहादेश ने यूरेशियाई महादेश की और बढ़ने का प्रयास किया और यही कारण था कि हिमालय की वर्तमान भौगोलिक स्थिति उस काल से भिन्न थी | प्राचीन भौगोलिक आंकड़ों के अनुसार हिमालय को अपनी पूर्ण ऊंचाई प्लाइस्टोसीन काल में मिली |  सिंधु और गंगा नदियों के मैदानी क्षेत्रो के निर्माण में हिमालय ने मुख्य भूमिका निभाई | भारतीय उपमहादेश का कुल क्षेत्रफल 4 ,202 ,500 वर्ग किलोमीटर है और ये उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र कहा जाता है  जिसमे भारत ,पाकिस्तान ,बांग्लादेश ,नेपाल और भूटान शामिल है | भारतीय उपमहाद्वीप में शिवालिक पहाड़ी इलाके में पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के अंतर्गत पोतवार पठार में मानव खोपडिया के अत्यंत प्राचीन जीवाश्म मिले है | इन्हे रामा पिथेकस और शिवा पिथेकस कहा गया | रामा पिथेकस स्त्री खोपड़ी है इनमे होमिनिड की विशेषताएं तो है लेकिन ये वानरों का ही प्रतिनिधित्व करते है | इसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाला एक अन्य जीवाश्म यूनान में पाया गया जिसे लगभग 1 करोड़ वर्ष पुराना माना गया है | लेकिन इसके अतिरिक्त इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिला जो ये स्थापित कर सके कि इसी जाति का प्रसारण भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ हो | 1982 में नर्वदा घाटी अंतर्गत हथनोरा से होमिनिड की सम्पूर्ण खोपड़ी प्राप्त हुई जो आद्य होमो सेपियंस की है | अब तक भारतीय उपमहादेश में होमो सेपियंस के अवशेष कही नहीं मिले है |  श्रीलंका में होमो सेपियंस सेपियंस अर्थात आधुनिक मानव के लगभग 34 हजार वर्ष पुराने जीवाश्म मिले है ,ये काल होलोसीन अवस्था के शिकारी और खाद्य संग्राहक जीवन अवस्था का है |ऐसा कहा जा सकता है कि आधुनिक मानव अफ्रीका से समुद्रतट के सहारे होता हुआ दक्षिणी भारत में पहुंचा ये घटना लगभग 35 हजार वर्ष पूर्व की मानी जाती है | जारी है अतीत का ये सफर ----महेंद्र जैन 27 जनवरी 2019
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