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तुला लग्न की कुंडली में अष्टम में गुरु और शुक्र की युति कैसी होती है?
तुला लग्न की कुंडली में अष्टम भाव का महत्व बहुत अधिक होता है, क्योंकि यह भाव जीवन के गहन और रहस्यमय पहलुओं से जुड़ा होता है। यह भाव मृत्यु, पुनर्जन्म, गुप्त ज्ञान, आपसी संपत्ति, उत्तराधिकार, और अचानक होने वाले घटनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। जब अष्टम भाव में गुरु (बृहस्पति) और शुक्र की युति होती है, तो इसका प्रभाव तुला लग्न के व्यक्ति के जीवन पर अलग-अलग तरीके से पड़ सकता है।
गुरु और शुक्र की युति
गुरु (बृहस्पति) और शुक्र दोनों ही शुभ ग्रह माने जाते हैं, लेकिन उनकी युति के प्रभाव इस बात पर निर्भर करते हैं कि वे किस भाव में हैं, किस राशि में हैं, और अन्य ग्रहों के साथ उनका संबंध कैसा है।
अष्टम भाव में गुरु का प्रभाव:
गुरु यहाँ ज्ञान, विस्तार, और समृद्धि का प्रतीक है। अष्टम भाव में गुरु होने से व्यक्ति को गहरे और गुप्त ज्ञान की ओर आकर्षण हो सकता है। यह व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिकता या दर्शन के प्रति रुचि को बढ़ा सकता है।
यह स्थिति व्यक्ति को उत्तराधिकार, बीमा, या साझेदारी से लाभ भी दिला सकती है। यह एक प्रकार से "गुरु" के रूप में काम कर सकता है, जिससे व्यक्ति जीवन के कठिनाइयों से सीख ले सकता है।
अष्टम भाव में शुक्र का प्रभाव:
शुक्र सौंदर्��, प्रेम, और आनंद का प्रतीक है। अष्टम भाव में शुक्र व्यक्ति के जीवन में गहरे और अर्थपूर्ण संबंधों की ओर आकर्षण को दर्शाता है। यह युति एक गहरी और शक्तिशाली प्रेम भावना का संकेत भी दे सकती है।
शुक्र के इस स्थान पर होने से व्यक्ति को भौतिक सुख-सुविधाओं और संपत्ति में रुचि हो सकती है।
युति का परिणाम
गुरु और शुक्र की युति, विशेष रूप से अष्टम भाव में, एक मिलाजुला प्रभाव डाल सकती है:
आध्यात्मिक गहराई: यह युति व्यक्ति को गहरे आध्यात्मिक या गूढ़ ज्ञान की ओर आकर्षित कर सकती है। व्यक्ति को ध्यान, योग, या अन्य आध्यात्मिक प्रथाओं में रुचि हो सकती है।
गहन संबंध: यह युति गहरे और भावनात्मक संबंधों की ओर संकेत कर सकती है। व्यक्ति को प्रेम और साझेदारी में गहराई और अर्थ की तलाश हो सकती है।
साझेदारी और संपत्ति: अष्टम भाव के कारण, यह युति उत्तराधिकार, साझेदारी, या आपसी संपत्ति से लाभ का संकेत हो सकता है।
हालांकि, अष्टम भाव में राहु या अन्य कठिन ग्रहों की उपस्थिति के साथ, यह युति कुछ चुनौतियों का संकेत भी दे सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति जीवन के इन गहरे पहलुओं का संतुलित और सतर्क दृष्टिकोण से सामना करे। और जानकारी के लिए आप कुंडली चक्र २०२२ प्रोफेशनल सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सकते है। जो आपको एक सटीक जानकारी दे सकता है।
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सुप्रीम कोर्ट का हिन्दू उत्तराधिकार कानून के तहत बड़ा फैसला, पैतृक जमीन बेचने पर लगाई रोक; जानें पूरा मामला
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई हिन्दू उत्तराधिकारी अपनी पैतृक कृषि भूमि का हिस्सा बेचना चाहता है, तो उसे यह संपत्ति पहले अपने परिवार के सदस्य को ही बेचने का प्रयास करना होगा। कोर्ट के अनुसार, यह निर्णय हिन्दू उत्तराधिकार कानून (Hindu Succession Law) की धारा 22 के तहत लिया गया है, जिसमें पारिवारिक संपत्ति का ��ाहरी व्यक्तियों के हाथ में जाने से…
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Ratan tata pays homage : टाटा संस के रतन टाटा को अपने शब्दों में दी श्रद्धांजलि, जाने किसने क्या कहा
“रतन” को “टाटा” कहना बहुत मुश्किल है : भरत वसानीयदि किसी को टाटा के उत्तराधिकार चार्ट को देखना है, और उन्हें एक शब्द में वर्णन करने के लिए कहा गया है, तो भरत वासनी ने इसे इस प्रकार रखा है: – बिना कहे ही जमशेदजी को संस्थापक कहा जाता है। दोराबजी को कार्यान्वयनकर्ता कहा जाएगा। दोराबजी के योगदान पर इतनी अधिक चर्चा नहीं की जाती है, लेकिन वह दोराबजी ही थे जिन्होंने अपने पिता और संस्थापक की हर बात पर…
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( #Muktibodh_part238 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part239
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 457-458
‘‘स्मरण दीक्षा‘‘
भावार्थ है कि नेक नीति से रहो। अजर-अमर जो सार शब्द है, वह तथा दो अक्षर वाला सत्यनाम प्राप्त करो। यह मूल दीक्षा है। केवल पाँच तथा सात नाम से मोक्ष नहीं है।
टकसारी पंथ वाले ने इसी चूड़ामणि वाले पंथ से दीक्षा लेकर यानि नाद वाला बनकर मूर्ख बनाया था कि कबीर साहब ने कहा है कि तेरे बिन्द वाले मेरे नाद वाले से दीक्षा लेकर
ही पार होंगे। इससे भ्रमित होकर धर्मदास के छठी पीढ़ी वाले ने वास्तविक पाँच मंत्र (कमलों को खोलने वाले) छोड़कर नकली नाम जो सुमिरन बोध के पृष्ठ 22 पर लिखे हैं जो ऊपर लिखे हैं (आदिनाम, अजरनाम, अमीनाम ...), प्रारम्भ कर दिए जो वर्तमान में दामाखेड़ा गद्दी वाले महंत जी दीक्षा में देते हैं। वह गलत हैं। उसने टकसारी पंथ बनाया तथा उसने चुड़ामणि वाले पंथ से भिन्न होकर अपनी चतुराई से अन्य साधना प्रारम्भ की थी जो ऊपर बताई है। उसने मूल गद्दी वाले धर्मदास की छठी पीढ़ी वाले को भ्रमित किया कि हमने तो एक सत्यपुरूष की भक्ति करनी है। ये मूल कमल से लेकर कण्ठ कमल तक वाले देवी-देवताओं के नाम जाप नहीं करने, नहीं तो काल के जाल में ही रह जाएंगे। फिर कबीर सागर से उपरोक्त पूरे शब्द (कविता) को दीक्षा मंत्रा बनाकर देने लगा। मनमानी आरती चौंका बना लिया। इस तर्क से प्रभावित होकर धर्मदास जी की छठी गद्दी वाले महंत जी ने टकसारी वाली दीक्षा स्वयं भी ले ली और शिष्यों को भी देने लगा जो वर्तमान में दामाखेड़ा
गद्दी से प्रदान की जा रही है जो व्यर्थ है।
‘‘अनुराग सागर‘‘ अध्याय के पृष्ठ 140 की वाणियों का भावार्थ चल रहा है।
हे धर्मदास! तेरी छठी पीढ़ी वाला टकसारी पंथ वाली दीक्षा तथा आरती चौंका नकली स्वयं भी लेगा और आगे वही चलेगा। इस प्रकार तेरा बिन्द (वंश पुत्र प्रणाली) अज्ञानी हो जाएगा। हमारी सर्व साधना झाड़ै यानि छोड़ देगा। अपने आपको अधिक महान मानेगा, अहंकारी होगा जो मेरा नाद (शिष्य परंपरा में तेरहवां अंश आएगा, उस) के साथ झगड़ा करेगा। तेरा पूरा वंश वाले दुर्मति को प्राप्त होकर वे बटपार (ठग=धोखेबाज) मेरे ��ेरहवें
वचन वंश (नाद शिष्य) वाले मार्ग में बाधा उत्पन्न करेंगे।
अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 140 से वाणी सँख्या 16 :-
धर्मदास तुम चेतहु भाई। बचन वंश कहं देहु बुझाई।।1
कबीर जी ने कहा कि हे धर्मदास! तुम कुछ सावधानी बरतो। अपने वंश के व्यक्तियों को समझा दो कि सतर्क रहें।
हे धर्मदास! जब काल ऐसा झपटा यानि झटका मारेगा तो मैं (कबीर जी) सहायता करूँगा। अन्य विधि से अपना सत्य कबीर भक्ति विधि प्रारम्भ करूँगा। नाद हंस (शिष्य परंपरा का आत्मा) तबहि प्रकटावैं। भ्रमत जग भक्ति दृढ़ावैं।।2
नाद पुत्र सो अंश हमारा। तिनतै होय पंथ उजियारा।।3
बचन वंश नाद संग चेतै। मेटैं काल घात सब जेते।।4
{बचन वंश का अर्थ धर्मदास जी के वंशजों से है क्योंकि श्री चूड़ामणि जी को कबीर परमेश्वर जी ने दीक्षा दी थी। इसलिए बचन वंश कहे गए हैं। बाद में अपनी संतान को उत्तराधिकार बनाने लगे। वे बिन्द के कहे गए हैं। नाद से स्पष्ट है कि शिष्य परंपरा वाले।}
अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ पृष्ठ 141 से :-
शब्द की चास नाद कहँ होई। बिन्द तुम्हारा जाय बिगोई।।5।।
बिन्द से होय न नाम उजागर। परिख देख धर्मनि नागर।।6।।
चारहूँ युग देख हूँ समवादा। पंथ उजागर कीन्हो नादा।।7।।
धर्मनि नाद पुत्र तुम मोरा। ततें दीन्हा मुक्ति का डोरा।।8।।
भावार्थ :- वाणी नं. 8 में परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट भी कर दिया है कि नाद किसे कहा है? हे धर्मनि! तुम मेरे नाद पुत्र अर्थात् शिष्य हो और जो आपके शरीर से उत्पन्न हो, वे आपके बिन्द परंपरा है।
वाणी नं. 2 में वर्णन है कि जब-जब काल मेरे सत्यभक्ति मार्ग को भ्रष्ट करेगा। तब मैं अपना नाद अंश यानि शिष्य रूपी पुत्र प्रकट करूँगा जो यथार्थ भक्ति विधि तथा यथार्थ अध्यात्मिक ज्ञान से भ्रमित समाज को सत्य भक्ति समझाएगा, सत्य मार्ग को दृढ़ करेगा।
जो मेरा नाद (वचन वाला शिष्य) अंश आएगा, उससे मेरा यथ���र्थ कबीर पंथ प्रसिद्ध होगा, (उजागर यानि प्रकाश में आवैगा।) बिन्द वंश (जो धर्मदास तेरे वंशज) हैं, उनका कल्याण भी नाद (मेरे शिष्य परंपरा वाले) से होगा।
वाणी नं. 5 में कहा है कि शब्द यानि सत्य मंत्र नाम की चास यानि शक्ति नाद (शिष्य परंपरा वाले) के पास होगी। यदि मेरे नाद वाले से दीक्षा नहीं लेंगे तो तुम्हारा बिन्द यानि वंश परंपरा महंत गद्दी वाला बर्बाद हो जाएंगे।
वाणी नं. 6 में वर्णन है कि बिन्द से कभी भी नाद यानि शिष्य प्रसिद्ध नहीं हुआ।
भावार्थ है कि महंत गद्दी वाले तो अपनी गद्दी की सुरक्षा में ही उलझे रहते हैं। अपने स्वार्थवश मनमुखी मर्यादा बनाकर बाँधे रखते हैं।
वाणी नं. 7 में कहा है कि ��ारों युगों का इतिहास उठाकर देख ले। संवाद यानि चर्चा करके विचार कर। प्रत्येक युग में नाद से ही पंथ का प्रचार व प्रसिद्धि हुई है।
प्रमाण :- 1. सत्ययुग में कबीर जी सत सुकृत नाम से प्रकट हुए थे। उस समय सहते जी को शिष्य बनाया था। उससे प्रसिद्धि हुई है।
2. त्रेता में बंके जी को शिष्य बनाया था, उससे प्रसिद्धि हुई थी।
3. द्वापर में चतुर्भुज जी को शिष्य बनाया था, उससे सत्यज्ञान प्रचार हुआ था।
4. कलयुग में धर्मदास जी को शिष्य बनाया था जिनके कारण ही वर्तमान तक कबीर पंथ की प्रसिद्धि तथा विस्तार हुआ है।
क्रमशः_____
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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029 राजा
एक राज्य में राजवंश समाप्त हो गया था, राज्य का उत्तराधिकार किसे मिलता? तो दशकों से एक बड़ी विचित्र व्यवस्था चली आ रही थी। वे जन सामान्य में से ही किसी को राजा चुनते और पाँच वर्ष बाद उसे दूर घने जंगल में छोड़ देते, जहाँ जंगली जानवर उसे फाड़ कर खा जाते।कौन मरना चाहेगा? इसीलिए अपनी खुशी से कोई राजा न बनता, और जो बनता, वह खाने पीने और मौज करने में ही समय बिता देता।एक बार एक संतसेवी युवक को राजा बनाया…
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🎉🇮🇳 भाषा की सुंदरता का जश्न मनाएं! 📚✨ क्या आप जानते हैं कि 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब हमारी खूबसूरत भाषा, हिंदी, को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था? 🗓️ आइए, इस अद्वितीय भाषा की महत्ता में डूब जाते हैं और यह समझते हैं कि यह हमारे दिलों में क्यों एक खास स्थान रखता है। 🧡 हिंदी, जिसमें दुनियाभर में 600 मिलियन से अधिक बोलने वाले हैं, सिर्फ एक संवाद का माध्यम नहीं है; यह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। 🌟 वो बॉलीवुड की फिल्में जो पूरी दुनिया को मोहित करती हैं, या अनमोल साहित्य जो अमर चिन्ह छोड़ गया है, हिंदी वाकई सीमाओं को पार कर चुका है। 📽️📚 ✨ अंक बड़ी बातें करते हैं: हिंदी वैश्विक रूप से चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है, जिससे व्यक्तिगतता की जड़ें जुड़ती हैं। यह बस एक भाषा नहीं है; यह हमारे विविधता में एकता का प्रतीक है। 🤝 लेकिन हिंदी दिवस का जश्न क्यों मनाना चाहिए? 🤔 📜 हिंदी का गहरा इतिहास है, 7वीं सदी से उसका विकास हुआ है। हिंदी को गले लगाना हमारे उत्तराधिकार की मान्यता और हमारे पहचान के विकास का एक संकेत है। 🌳 📈 हिंदी भारत के आर्थिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ, हिंदी में सामग्री लाखों लोगों तक पहुंच रही है, आर्थिक विकास को बढ़ावा देना। 💼💰 📖 हिंदी बस एक भाषा नहीं है; यह सभी के लिए समान अवसर देने का कुंजी है। 🎓 🌐 इंटरनेट जगह-जगह की सीमाओं को तोड़ते हुए, हिंदी की सामग्री वैश्विक दर्शकों तक पहुंच रही है, हमारी संस्कृति का वैश्विक प्रचार करती है। 🌍 तो, हम कैसे कर सकते हैं हिंदी दिवस को विशेष? 🎊 🤝 हिंदी को गले लगाएं: ह Let's celebrate Hindi Diwas with pride and spread the love for our language far and wide. 🧡🇮🇳 What's your favorite Hindi word, phrase, or memory? Share it with us! 🤗📢 #HindiDiwas #CelebrateHindi #hindiquotes #hindilanguage #hindi #postaresume #vipulthewonderful
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Property Right : क्या औलाद को बेदखल करने के बाद भी देना होगा संपत्ति में हिस्सा, जानिये कानून में क्या है प्रावधान
Ancestral Property: पैतृक संपत्ति (ancestral property) ऐसी संपत्ति होती है जो आपको पिता के पूर्वजों से मिली हो। पैतृक संपत्ति (ancestral property) कम-से-कम 4 पीढ़ी पुरानी होनी चाहिए. इस बीच परिवार में कोई बंटवारा नहीं होना चाहिए,
आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से।
कई बार अनचाही परिस्तिथियों के कारण मां-बाप अपने बच्चों को जायदाद से बेदखल कर देते हैं. इसके बाद उन बच्चों को अपने माता-पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं रह जाता है, हालांकि, एक संपत्ति ऐसी भी होती है जिससे बच्चों को मां-बाप द्वारा बेदखल नहीं किया जा सकता है. इसे पैतृक संपत्ति (Ancestral Property Eviction) कहते हैं, तो अगर आपने अपनी संतान कहीं से बेदखल किया भी है तो तब भी वह पैतृक संपत्ति (ancestral property) में दावे के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
लगभग शत प्रतिशत संभावना है कि कोर्ट का फैसला संतान के पक्ष में ही आएगा, हालांकि, कई बार कोर्ट ऐसे में मामलों में मां-बाप का समर्थन कर देते हैं लेकिन यह उस निर्धारित केस की डिटेल्स और जज के विवेक पर निर्भर करता है, यह अपवाद ही होता है. इसके अलावा कोर्ट भी माता-पिता की इस मामले में कोई मदद नहीं कर पाता है।
क्या होती है पैतृक संपत्ति?
किसी भी शख्स को उसके दादा, परदादा से मिली संपत्ति पैतृक कहलाती है. पैतृक संपत्ति (ancestral property) कम-से-कम 4 पुश्तें पुरानी होनी चाहिए, इस बीच परिवार में कोई बंटवारा नहीं होना चाहिए. अगर बंटवारा होता है तो वह प्रॉपर्टी पैतृक नहीं रह जाएगा। पैतृक संपत्ति (ancestral property) पर पुत्र और पुत्री दोनों का हक होता है. पैतृक संपत्ति को विरासत में मिली संपत्ती भी कहा जा सक���ा है, हालांकि, विरासत में मिली हर संपत्ति पैतृक नहीं होती, पैतृक संपत्ति के बारे में हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 की धारा 4, 8 और 19 में बात की गई है,अगर संपत्ति में बंटवारा हो जाता है तो वह पैतृक की जगह खुद से जुटाई गई संपत्ति में तब्दील हो जाती है और इसके माता-पिता अपनी संतान को उस प्रॉपर्टी से बेदखल कर सकते हैं।
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संयुक्त राष्ट्र ने कैलाश की 11वीं रिपोर्ट प्रकाशित की
योगदान के लिए कॉल करें: शिक्षा का अधिकार, प्रगति और चुनौतियाँ विशेष प्रतिवेदक आज शिक्षा के अधिकार के लिए वर्तमान प्रमुख चुनौतियों और भविष्य के लिए ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण मुद्दों की पहचान करने की इच्छा करता है।
निःशुल्क शिक्षा का अधिकार प्राचीन वैदिक सभ्यता का मूल है जिसने औपनिवेशिक शासन के दौरान उत्पीड़न और शैक्षिक और सांस्कृतिक नरसंहार का सामना किया है।
संयुक्त राज्य कैलाश प्राचीन पवित्र हिंदू धर्मग्रंथों, वेदों एवं आगमों के आदेशों के अनुरूप अपने संवैधानिक अधिकार के रूप में निःशुल्क शिक्षा, निःशुल्क भोजन, निःशुल्क आश्रय, निःशुल्क वस्त्र, निःशुल्क चिकित्सा देखभाल (जीवन की पांच बुनियादी आवश्यकताएं) का अधिकार प्रदान करता है। परमशिव (आदिम हिंदू देवता) द्वारा लिखित प्राचीन हिंदू आर्थिक ग्रंथ में, परमशिव यह कहते हैं कि उन वस्तुओं के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए जो साझा करने से नष्ट नहीं होती हैं - जैसे शिक्षा और ज्ञान। एशिया में, इसकी शिक्षा प्रणाली सहित प्राचीन प्रबुद्ध हिंदू सभ्यता के पुनरुद्धार को डीप स्टेट तत्वों द्वारा निरंतर और लगातार प्रताड़ना का सामना करना पड़ा है, जहां हिंदू आदिवासी स्वदेशी कृषि जनजातियों (एआईएटी) की स्वदेशी शिक्षा पर एक दशक से अधिक समय से लगातार हमला किया जा रहा था। हिंदूवादी चरमपंथी जिन्होंने स्वदेशी धार्मिक मामलों और बच्चों की उत्तराधिकार प्रक्रिया में भी हस्तक्षेप किया।
एआईएटी सदस्यों और उस समुदाय के नेता के उत्पीड़न के बावजूद, हिंदू धर्म के सर्वोच्च धर्माध्यक्ष (एसपीएच) और कैलाश राज्य के प्रमुख, भगवान नित्यानंद परमशिवम, गुरुकुल को पुनर्जीवित करने में सफल रहे हैं और इसे इस संप्रभु भूमि में निंशुल्क उपलब्ध कराया गया है। कैलाश के साथ-साथ विश्व स्तर पर भी।
गुरुकुल को जीवन के उच्चतम मूल्यों जैसे अहिंसा, 'जीवन दूसरों के लिए है', हर इंसान में निहित असाधारण जन्मजात अतिचेतन शक्तियों को व्यक्त करने और परम सत्य को प्रसारित करने वाले प्राकृतिक सक्षम करूण नेताओं को बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है और सफल रहा है। परमशिवोहम् का - मैं परमशिव (परम आदिम दिव्यता) हूं।
पूरी रिपोर्ट को यहा�� पर पढ़ें: https://www.ohchr.org/sites/default/files/documents/issues/education/cfi-hrc53/submission-education-hrc53-cso-kailash-union-en.docx
संयुक्त राष्ट्र पेज से लिंक: https://www.ohchr.org/en/calls-for-input/2023/call-contributions-right-education-advances-and-challenges
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UCC, दिल्ली अध्यादेश... हंगामेदार होगा संसद का मॉनसून सत्र, सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के सामने बड़ी चुनौती
नई दिल्ली: 20 जुलाई से शुरू होगा। यह 11 अगस्त तक चलेगा। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने शनिवार को इसकी जानकारी दी। संसद का मॉनसून सत्र बेहद हंगामेदार रहने की संभावना है। अगले वर्ष लोकसभा चुनाव हैं। इसे लेकर प्रमुख विपक्षी दलों ने बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चेबंदी शुरू कर दी है। आगामी सत्र के दौरान सरकार समान नागरिक संहिता (UCC) बिल पेश कर सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूसीसी की पुरजोर वकालत कर चुके हैं। इसके बाद कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है। वहीं, आम आदमी पार्टी (AAP) दिल्ली में लाए गए केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ तीखा विरोध करेगी। इस पर कुछ विपक्षी दलों ने AAP का समर्थन करने को कहा है। अरविंद केजरीवाल की पार्टी इस अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुकी है। सरकार ने सभी पार्टियों से सत्र के दौरान संसद के विधायी और अन्य कामकाज में रचनात्मक योगदान देने की अपील की है। ऐसी खबरें हैं कि सत्र की शुरुआत पुराने संसद भवन में होगी। बाद में नए संसद भवन में बैठकें हो सकती हैं। 20 जुलाई से 11 अगस्त तक चलने वाले मॉनसून सत्र में 17 बैठकें होंगी। प्रधानमंत्री ने 28 मई को नई संसद का शुभारंभ किया था। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने मॉनसून सत्र का शेड्यूल बताते हुए ट्वीट किया- 'मैं सभी पार्टियों से सत्र के दौरान संसद के विधायी और अन्य कामकाज में रचनात्मक योगदान देने की अपील करता हूं।' अध्यादेश की जगह लेने वाला बिल लाएगी सरकारमॉनसून सत्र में केंद्र सरकार 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश' की जगह लेने के लिए विधेयक ला सकती है। यह सेवा मामलों में दिल्ली सरकार को विधायी और प्रशासनिक नियंत्रण देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी कर देगा। इसे लेकर कांग्रेस अपना रुख साफ कर चुकी है। वह कह चुकी है कि वह केंद्र सरकार के अध्यादेश का समर्थन करेगी। वहीं, AAP इस बाबत बिल का पुरजोर विरोध करेगी। इसमें पार्टी को कई अन्य दलों का भी भरपूर साथ मिलने की उम्मीद है। इस अध्यादेश के लिखाफ केजरीवाल बीते दिनों विपक्ष के तमाम दलों के नेताओं से मुलाकात करते आए हैं। UCC को लेकर बन रहा है माहौल, आ सकता है बिल इसके अलावा सरकार राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एनआरएफ) विधेयक 2023 को संसद में पेश कर सकती है। इससे राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना का रास्ता साफ होगा। हालांकि, इस सत्र में सबसे ज्यादा नजर यूसीसी बिल पर हो सकती है। माना जा रहा है कि इसी सत्र में सरकार इसे पेश करेगी। इसे लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में तीखी नोक-झोंक हो सकती है। महाराष्ट्र में बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने कहा है कि वह बालासाहेब ठाकरे के 'एक राष्ट्र, एक कानून' के नजरिये का समर्थन करती है। उसने केंद्र से संसद के मॉनसून सत्र में यूसीसी पर चर्चा करने की अपील की है। समान नागरिक संहिता पर विपक्ष के तेवर गरम कांग्रेस समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मुद्दे पर बीजेपी पर हमलावर है। पार्टी ने आरोप लगाया कि बीजेपी लोगों को विभाजित करना और नफरत फैलाना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ दिन पहले यूसीसी की वकालत की थी। इसके बाद कांग्रेस ने यह प्रतिक्रिया दी है। मोदी ने भोपाल में मंगलवार को यूसीसी का जोरदार समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि मुस्लिमों को संवदेनशील मुद्दों पर भड़काया जा रहा है। यूसीसी सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, विरासत, रखरखाव और संपत्ति के उत्तराधिकार से जुड़े एक सामान्य कानून से संबंधित है।कांग्रेस प्रवक्ता मीम अफजल ने कहा है कि यह यूसीसी नहीं बल्कि 'डीसीसी' (डिवाइडिंग सिविल कोड) है। इसके जरिये देश को विभाजित करने की मंशा है। यूसीसी कोई एजेंडा नहीं है। अलबत्ता, इसके पीछे नीयत देश के लोगों को बांटना है। तमाम विपक्षी दलों ने इस कदम को वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले समाज का ध्रुवीकरण करने वाला कदम बताया है। केरल के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ माकपा नेता पिनराई विजयन ने आरोप लगाया कि यूसीसी के मुद्दे को उठाने के पीछे भाजपा का चुनावी एजेंडा है। उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की है कि वह इसे लागू नहीं करे। http://dlvr.it/SrXJk6
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Elon Musk Says He Doesn't Wish To Give His Children Control Of His Companies
एलोन मस्क अपने 4 साल के बेटे के साथ। अक्टूबर के अंत में माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर पर आने के बाद से अरबपति एलोन मस्क हर दिन सुर्खियां बटोर रहे हैं। टेस्ला, स्पेसएक्स और ट्विटर के सीईओ, जो दुनिया के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति भी हैं, ने उत्तराधिकार की योजना और अपने व्यवसायों में अपने बच्चों की व्यस्तता पर अपनी राय साझा की है। के साथ एक साक्षात्कार में वॉल स्ट्रीट जर्नल (डब्लूएसजे), अरबपति ने…
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राहुल ने शरद पवार की बेटी सुप्रिया को क्यों लगाया फोन? महाराष्ट्र के सियासी बवंडर का 'दिल्ली गेम' समझिए
Delhi: एनसीपी चीफ के पद से शरद पवार के इस्तीफे के बाद महाराष्ट्र में सियासी हलचल तेज हुई है। एनसीपी के भीतर उत्तराधिकार की जंग अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही है। सबसे बड़ा सवाल ये है कि पवार की जगह कौन लेगा- उनकी बेटी सुप्रिया सुले या भतीजे अजित पवार? एनसीपी के भीतर उठे इस तूफान का राष्ट्रीय राजनीति पर क्या अस�� होगा? http://dlvr.it/SnW2YD
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जी.एल. बजाज में हुई दहेज को ना कहो, उत्तराधिकार को हां पर वाद-विवाद प्रतियोगितागणेश विजेता और लव शर्मा रहे उप-विजेता, भूमिका को प्ले रोल में प्रथम स्थान
जी.एल. बजाज में हुई दहेज को ना कहो, उत्तराधिकार को हां पर वाद-विवाद प्रतियोगिता गणेश विजेता और लव शर्मा रहे उप-विजेता, भूमिका को प्ले रोल में प्रथम स्थान
जी.एल. बजाज ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस मथुरा की वूमेन सेल द्वारा शनिवार को "आज की दुनिया में अग्रणी महिलाओं" के जीवन संघर्ष और "दहेज को ना कहो, उत्तराधिकार को हां" विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। महिला प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित कार्यक्रम का शुभारम्भ संस्थान की निदेशक प्रो. (डॉ.) नीता अवस्थी ने मां सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर किया। प्रो. नीता अवस्थी ने छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज महिलाएं शिक्षा, राजनीति, व्यवसाय और सामाजिक कार्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका का निर्वहन कर रही हैं। महिलाएं परिवार बनाती हैं, परिवार घर बनाता है, घर समाज बनाता है और समाज ही देश बनाता है। इसका सीधा अर्थ यही है की महिलाओं का योगदान हर जगह है। महिलाओं की क्षमता को नजरअंदाज कर एक अच्छे समाज की कल्पना करना व्यर्थ है। सच कहें तो शिक्षा और महिला सशक्तीकरण के बिना परिवार, समाज और देश का विकास नहीं किया जा सकता। प्रो. नीता अवस्थी ने महिलाओं को सशक्त बनाने तथा अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज बनाने के महत्व पर बल दिया। कार्यक्रम की शुरुआत "आज की दुनिया में अग्रणी महिलाओं" पर एक शक्तिशाली और प्रेरक प्रस्तुति के साथ हुई। इस प्रस्तुति में दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिलाओं के जीवन और उपलब्धियों को प्रतिभागी छात्र-छात्राओं ने लघु वीडियो क्लिपों के माध्यम से प्रदर्शित किया। वीडियो रचनात्मक, प्रेरक और समाज में महिलाओं के योगदान के महत्व पर प्रकाश डालते नजर आए। "दहेज को ना कहो, उत्तराधिकार को हां" वाद-विवाद प्रतियोगिता का उद्देश्य दहेज प्रथा को समाप्त करने तथा महिलाओं के उत्तराधिकार को बढ़ावा देने के महत्व को प्रतिपादित करना था। प्रतिभागी छात्र-छात्राओं ने कहा कि दहेज प्रथा एक ऐसा सामाजिक अभिशाप है जो महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों को बढ़ावा देता है। इस व्यवस्था ने समाज के सभी वर्गों को अपनी चपेट में ले लिया है। दहेज प्रथा को रोकने और खत्म करने के लिए दहेज निषेध अधिनियम, 1961 को लाया गया है। इसके तहत 2 सेक्शन हैं, जिसमें सेक्शन 3 और 4 आते हैं। इसमें सेक्शन 3 के अंतर्गत दहेज लेना या देना दोनों अपराध माना गया है। ऐसा करने पर ��पराधी को 15 हजार रुपए के जुर्माने के साथ 5 साल तक की सजा सुनाई जा सकती है। जबकि सेक्शन 4 कहता है कि दहेज की मांग करने पर 6 महीने से 2 साल तक की सजा हो सकती है। अंत में निर्णायकों द्वारा वाद-विवाद प्रतियोगिता और रोल प्ले गतिविधि के विजेताओं की घोषणा की गई। वाद-विवाद प्रतियोगिता में बी.टेक तृतीय वर्ष के छात्र गणेश विजेता तथा बी.टेक तृतीय वर्ष सीएसई के लव शर्मा उप-विजेता घोषित किए गए वहीं रोल प्ले में बीटेक फर्स्ट ईयर की भूमिका शर्मा विजेता रहीं। कार्यक्रम के समापन अवसर पर संस्थान के प्राध्यापकों डॉ. भोले सिंह और डॉ. नक्षत्रेश कौशिक ने विजेता तथा उप-विजेता छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत किया। कार्यक्रम की समन्वयक मेधा खेनवार ने कार्यक्रम का संचालन किया।
वाद-विवाद प्रतियोगिता के विजेता तथा उप-विजेता छात्रों को सम्मानित करते डॉ. भोले सिंह और डॉ. नक्षत्रेश कौशिक Read the full article
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श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप 1.31 https://srimadbhagavadgita.in/1/31 न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे । न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च ॥ १.३१ ॥ TRANSLATION हे कृष्ण! इस युद्ध में अपने ही स्वजनों का वध करने से न तो मुझे कोई अच्छाई दिखती है और न, मैं उससे किसी प्रकार कि विजय, राज्य या सुख की इच्छा रखता हूँ । PURPORT यह जाने बिना कि मनुष्य का स्वार्थ विष्णु (या कृष्ण) में है सारे बद्धजीव शारीरिक सम्बन्धों के प्रति यह सोच कर आकर्षित होने हैं कि वे ऐसी परिस्थितियों में प्रसन्न रहेंगे । ऐसी देहात्मबुद्धि के कारण वे भौतिक सुख के कारणों को भी भूल जाते हैं । अर्जुन तो क्षत्रिय का नैतिक धर्म भी भूल गया था । कहा जाता है कि दो प्रकार के मनुष्य परम शक्तिशाली तथा जाज्वल्यमान सूर्यमण्डल में प्रवेश करने के योग्य होते हैं । ये हैं – एक तो क्षत्रिय जो कृष्ण की आज्ञा से युद्ध में मरता है तथा दूसरा संन्यासी जो आध्यात्मिक अनुशीलन में लगा रहता है । अर्जुन अपने शत्रुओं को भी मारने से विमुख हो रहा है – अपने सम्बन्धियों कि बात तो छोड़ दें । वह सोचता है कि स्वजनों को मारने से उसे जीवन में सुख नहीं मिल सकेगा , अतः वह लड़ने के लिए इच्छुक नहीं है, जिस प्रकार कि भूख न लगने पर कोई भोजन बनाने को तैयार नहीं होता । उसने तो वन जाने का निश्चय कर लिया है जहाँ वह एकांत में निराशापूर्ण जीवन काट सके । किन्तु क्षत्रिय होने के नाते उसे अपने जीवननिर्वाह के लिए राज्य चाहिए क्योंकि क्षत्रिय कोई अन्य कार्य नहीं कर सकता । किन्तु अर्जुन के पास राज्य कहाँ है? उसके लिए तो राज्य प्राप्त करने का एकमात्र अवसर है कि अपने बन्धु-बान्धवों से लड़कर अपने पिता के राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त करे जिसे वह करना नहीं चाह रहा है । इसीलिए वह अपने को जंगल में एकान्तवास करके निराशा का एकांत जीवन बिताने के योग्य समझता है । ----- Srimad Bhagavad Gita As It Is 1.31 na ca śreyo ’nupaśyāmi hatvā sva-janam āhave na kāṅkṣe vijayaṁ kṛṣṇa na ca rājyaṁ sukhāni ca TRANSLATION I do not see how any good can come from killing my own kinsmen in this battle, nor can I, my dear Kṛṣṇa, desire any subsequent victory, kingdom or happiness. PURPORT Without knowing that one’s self-interest is in Viṣṇu (or Kṛṣṇa), conditioned souls are attracted by bodily relationships, hoping to be happy in such situations. In such a blind conception of life, they forget even the causes of material happiness. Arjuna appears to have even forgotten the moral codes for a kṣatriya. It is said that two kinds of men, namely the kṣatriya who dies directly in front of the battlefield under Kṛṣṇa’s personal orders and the person in the renounced order of life who is absolutely devoted to spiritual culture, are eligible to enter into the sun globe, which is so powerful and dazzling. Arjuna is reluctant even to kill his enemies, let alone his relatives. He thinks that by killing his kinsmen there would be no happiness in his life, and therefore he is not willing to fight, just as a person who does not feel hunger is not inclined to cook. He has now decided to go into the forest and live a secluded life in frustration. But as a kṣatriya, he requires a kingdom for his subsistence, because the kṣatriyas cannot engage themselves in any other occupation. But Arjuna has no kingdom. Arjuna’s sole opportunity for gaining a kingdom lies in fighting with his cousins and brothers and reclaiming the kingdom inherited from his father, which he does not like to do. Therefore he considers himself fit to go to the forest to live a secluded life of frustration. ----- #krishna #iskconphotos #motivation #success #love #bhagavatamin #india #creativity #inspiration #life #spdailyquotes #devotion
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मृत्यु के बाद किसे बनाएं उत्तराधिकार? ना हो विवाद इसके लिए जान लें ये सभी नियम
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जनपद सदस्यों को पंचायतों मे आमंत्रित करने के संबंधी पत्र लिखा - प्रिया प्रभात
मैहर । अपने अधिकारों के प्रति सजग एवं कर्तव्य से विमुख प्रशासनिक व्यवस्था जनप्रतिनिधियों के अधिकारों को संरक्षण नहीं दे पा रही है आशय स्पष्ट है कि शासन की मंशा समझ कर व्यवहारिक रुप से क्या उचित है यह निर्णय आदेश संबंधित उत्तराधिकार संपन्न अधिकारियों के अपने कर्तव्य समझदार करना चाहिए पर ऐसी स्थिति में स्पष्ट आदेश शासन का वह ढूंढने लगते हैं जो ठीक नहीं है इस संबंध में जनपद पंचायत मैहर के सभापति…
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'पापाजी' की तरह अकबर का किरदार नहीं निभाएंगे नसीर
‘पापाजी’ की तरह अकबर का किरदार नहीं निभाएंगे नसीर
फोटोग्राफ: मोटेली प्रोडक्शंस/इंस्टाग्राम के सौजन्य से नसीरुद्दीन शाह जल्द ही अकबर का किरदार निभाएंगे। जलाल अल-दीन मुहम्मद अकबर, तीस��ा मुग़ल बादशाह, मोबशेर जावेद अकबर नहीं, कभी पत्रकार और कभी मंत्री। “यह ताज नाम की एक श्रृंखला है,” नसीर सुभाष के झा को बताता है। “यह अकबर और उसके बेटों के बीच उत्तराधिकार की लड़ाई के बारे में है। मैं अकबर की भूमिका निभा रहा हूं, लेकिन पापाजी (मुगल-ए-आजम में पृथ्वीराज…
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