स्वामी रामानन्द जी ने कहाः- अरे कुजात! अर्थात् शुद्र! छोटा मुंह बड़ी बात, तू अपने आपको परमात्मा कहता है। तेरा शरीर हाड़-मांस व रक्त निर्मित है। तू अपने आपको अविनाशी परमात्मा कहता है। तेरा जुलाहे के घर जन्म है फिर भी अपने आपको अजन्मा अविनाशी कहता है तू कपटी बालक है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहाः-
ना मैं जन्मु ना मरूँ, ज्यों मैं आऊँ त्यों जाऊँ।
गरीबदास सतगुरु भेद से लखो हमारा ढांव।।
सुन रामानन्द राम मैं, मुझसे ही बावन नृसिंह।
दास गरीब युग-2 हम से ही हुए कृष्ण अभंग।।
भावार्थः- कबीर जी ने उत्तर दिया हे रामानन्द जी, मैं न तो जन्म लेता हूँ ? न मृत्यु को प्राप्त होता हूँ। मैं चौरासी लाख प्राणियों के शरीरों में आने (जन्म लेने) व जाने (मृत्यु होने) के चक्र से भी रहित हूँ। मेरी विशेष जानकारी किसी तत्त्वदर्शी सन्त (सतगुरु) के ज्ञान को सुनकर प्राप्त करो। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 तथा यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्रा 10-13 में वेद ज्ञान दाता स्वयं कह रहा है कि उस पूर्ण परमात्मा के तत्व (वास्तविक) ज्ञान से मैं अपरिचित हूँ। उस तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी सन्तों से सुनों उन्हें दण्डवत् प्रणाम करो, अति विनम्र भाव से परमात्मा के पूर्ण मोक्ष मार्ग के विषय में ज्ञान प्राप्त करो, जैसी भक्ति विधि से तत्त्वदृष्टा सन्त बताएँ वैसे साधना करो। गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में लिखा है कि श्लोक 16 में जिन दो पुरूषों (भगवानों) 1ण् क्षर पुरूष अर्थात् काल ब्रह्म तथा 2ण् अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म का उल्लेख है, वास्तव में अविनाशी परमेश्वर तथा सर्व का पालन पोषण व धारण करने वाला परमात्मा तो उन उपरोक्त दोनों से अन्य ही है। हे स्वामी रामानन्द जी! वह उत्तम पुरूष अर्थात् सर्व श्रेष्ठ प्रभु मैं ही हूँ।
इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे बालक! तू निम्न जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात कर रहा है। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले कि गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा ह��ँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है। इस बात को सुनकर रामानन्द जी ने कहा कि ठहर जा तेरी तो लम्बी कहानी बनेगी, तू ऐसे नहीं मानेगा। मैं पहले अपनी पूजा कर लेता हूँ। रामानन्द जी ने कहा कि इसको बैठाओ। मैं पहले अपनी कुछ क्रिया रहती है वह कर लेता हूँ, बाद में इससे निपटूंगा।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
स्वामी रामानन्द जी ने कहाः- अरे कुजात! अर्थात् शुद्र! छोटा मुंह बड़ी बात, तू अपने आपको परमात्मा कहता है। तेरा शरीर हाड़-मांस व रक्त निर्मित है। तू अपने आपको अविनाशी परमात्मा कहता है। तेरा जुलाहे के घर जन्म है फिर भी अपने आपको अजन्मा अविनाशी कहता है तू कपटी बालक है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहाः-
ना मैं जन्मु ना मरूँ, ज्यों मैं आऊँ त्यों जाऊँ।
गरीबदास सतगुरु भेद से लखो हमारा ढांव।।
सुन रामानन्द राम मैं, मुझसे ही बावन नृसिंह।
दास गरीब युग-2 हम से ही हुए कृष्ण अभंग।।
भावार्थः- कबीर जी ने उत्तर दिया हे रामानन्द जी, मैं न तो जन्म लेता हूँ ? न मृत्यु को प्राप्त होता हूँ। मैं चौरासी लाख प्राणियों के शरीरों में आने (जन्म लेने) व जाने (मृत्यु होने) के चक्र से भी रहित हूँ। मेरी विशेष जानकारी किसी तत्त्वदर्शी सन्त (सतगुरु) के ज्ञान को सुनकर प्राप्त करो। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 तथा यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्रा 10-13 में वेद ज्ञान दाता स्वयं कह रहा है कि उस पूर्ण परमात्मा के तत्व (वास्तविक) ज्ञान से मैं अपरिचित हूँ। उस तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी सन्तों से सुनों उन्हें दण्डवत् प्रणाम करो, अति विनम्र भाव से परमात्मा के पूर्ण मोक्ष मार्ग के विषय में ज्ञान प्राप्त करो, जैसी भक्ति विधि से तत्त्वदृष्टा सन्त बताएँ वैसे साधना करो। गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में लिखा है कि श्लोक 16 में जिन दो पुरूषों (भगवानों) 1ण् क्षर पुरूष अर्थात् काल ब्रह्म तथा 2ण् अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म का उल्लेख है, वास्तव में अविनाशी परमेश्वर तथा सर्व का पालन पोषण व धारण करने वाला परमात्मा तो उन उपरोक्त दोनों से अन्य ही है। हे स्वामी रामानन्द जी! वह उत्तम पुरूष अर्थात् सर्व श्रेष्ठ प्रभु मैं ही हूँ।
इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे बालक! तू निम्न जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात कर रहा है। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले कि गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है। इस बात को सुनकर रामानन्द जी ने कहा कि ठहर जा तेरी तो लम्बी कहानी बनेगी, तू ऐसे नहीं मानेगा। मैं पहले अपनी पूजा कर लेता हूँ। रामानन्द जी ने कहा कि इसको बैठाओ। मैं पहले अपनी कुछ क्रिया रहती है वह कर लेता हूँ, बाद में इससे निपटूंगा।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
स्वामी रामानन्द जी ने कहाः- अरे कुजात! अर्थात् शुद्र! छोटा मुंह बड़ी बात, तू अपने आपको परमात्मा कहता है। तेरा शरीर हाड़-मांस व रक्त निर्मित है। तू अपने आपको अविनाशी परमात्मा कहता है। तेरा जुलाहे के घर जन्म है फिर भी अपने आपको अजन्मा अविनाशी कहता है तू कपटी बालक है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहाः-
ना मैं जन्मु ना मरूँ, ज्यों मैं आऊँ त्यों जाऊँ।
गरीबदास सतगुरु भेद से लखो हमारा ढांव।।
सुन रामानन्द राम मैं, मुझसे ही बावन नृसिंह।
दास गरीब युग-2 हम से ही हुए कृष्ण अभंग।।
भावार्थः- कबीर जी ने उत्तर दिया हे रामानन्द जी, मैं न तो जन्म लेता हूँ ? न मृत्यु को प्राप्त होता हूँ। मैं चौरासी लाख प्राणियों के शरीरों में आने (जन्म लेने) व जाने (मृत्यु होने) के चक्र से भी रहित हूँ। मेरी विशेष जानकारी किसी तत्त्वदर्शी सन्त (सतगुरु) के ज्ञान को सुनकर प्राप्त करो। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 तथा यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्रा 10-13 में वेद ज्ञान दाता स्वयं कह रहा है कि उस पूर्ण परमात्मा के तत्व (वास्तविक) ज्ञान से मैं अपरिचित हूँ। उस तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी सन्तों से सुनों उन्हें दण्डवत् प्रणाम करो, अति विनम्र भाव से परमात्मा के पूर्ण मोक्ष मार्ग के विषय में ज्ञान प्राप्त करो, जैसी भक्ति विधि से तत्त्वदृष्टा सन्त बताएँ वैसे साधना करो। गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में लिखा है कि श्लोक 16 में जिन दो पुरूषों (भगवानों) 1ण् क्षर पुरूष अर्थात् काल ब्रह्म तथा 2ण् अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म का उल्लेख है, वास्तव में अविनाशी परमेश्वर तथा सर्व का पालन पोषण व धारण करने वाला परमात्मा तो उन उपरोक्त दोनों से अन्य ही है। हे स्वामी रामानन्द जी! वह उत्तम पुरूष अर्थात् सर्व श्रेष्ठ प्रभु मैं ही हूँ।
इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे बालक! तू निम्न जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात कर रहा है। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले कि गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है। इस बात को सुनकर रामानन्द जी ने कहा कि ठहर जा तेरी तो लम्बी कहानी बनेगी, तू ऐसे नहीं मानेगा। मैं पहले अपनी पूजा कर लेता हूँ। रामानन्द जी ने कहा कि इसको बैठाओ। मैं पहले अपनी कुछ क्रिया रहती है वह कर लेता हूँ, बाद में इससे निपटूंगा।
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📖 *आज का पंचांग, चौघड़िया व राशिफल (चतुर्दशी तिथि)*📖
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
दिनांक:-13-सितम्बर-2023
वार:-----------बुधवार
तिथी :--------14चतुर्दशी:-28:50
पक्ष:--------कृष्णपक्ष
माह:--------भाद्रपद
नक्षत्र:-------मघा:-26:01
योग:--------सिद्बि:-26:08
करण:-------विष्टि:-15:36
चन्द्रमा:------सिंह
सुर्योदय:------06:26
सुर्यास्त:-------18:41
दिशा शूल-------उत्तर
निवारण उपाय:---गुड का सेवन
ऋतु :---------------शरद ऋतु
गुलीक काल:---11:00से 12:32
राहू काल:-------12:32से14:04
अभीजित--------- नहीं है
विक्रम सम्वंत .........2080
शक सम्वंत ............1945
युगाब्द ..................5125
सम्वंत सर नाम:------पिंगल
🌞चोघङिया दिन🌞
लाभ:-06:26से07:58तक
अमृत:-07:58से09:30तक
शुभ:-11:00से12:32तक
चंचल:-15:36से 17:08तक
लाभ:-17:08से 18:41तक
🌓चोघङिया रात🌗
शुभ:-20:11से21:39तक
अमृत :-21:39से23:07तक
चंचल :-23:07से00:35तक
लाभ :-03:31से04:58तक
🙏आज के विशेष योग 🙏
वर्ष का175वाँ दिन, भद्रा समाप्त15:36, मास शिवरात्रि, अघोरा चतुर्दशी, पर्युषण पर्व प्रारम्भ (पंचमी जैन), सूर्य उफा.पर 27:26, संग सू.सू.स्त्री वाहन गज(हाथी), वर्षा श्रेष्ठ
👉वास्तु टिप्स👈
मास शिवरात्रि के दिन एक मुखी रुद्राक्ष की पूजा करके तिजोरी में जरुर रखे।
*सुविचार👏*
उत्पन्न और नष्ट होने वाली वस्तु को लेकर अपने को बड़ा अथवा छोटा मानना बहुत बड़ी भूल है, तुच्छता है। 👍🏻 राधे राधे...
*💊💉आरोग्य उपाय🌱🌿*
पेट दर्द से बचने के लिए होम्योपैथी कोलोसिंथ 6 या 30 शक्ति का प्रयोग सर्वोत्तम है।
*🐑🐂 राशिफल🐊🐬*
🐏 *मेष*
बेवजह झुंझलाहट रहेगी। विवाद को बढ़ावा न दें। शोक समाचार प्राप्त हो सकता है, धैर्य रखें। दौड़धूप अधिक होगी। लाभ में कमी रहेगी। पुराना रोग उभर सकता है। बिछड़े साथियों से मुलाकात होगी। क्रोध न करें।
🐂 *वृष*
थोड़े प्रयास से काम बनेंगे। प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। कुसंगति से बचें। थकान महसूस होगी। रोजगार में वृद्धि होगी। वरिष्ठजन सहयोग करेंगे। घर-बाहर सुख-शांति रहेगी। भेंट व उपहार की प्राप्ति होगी। यात्रा मनोनुकूल रहेगी।
👫 *मिथुन*
घर में अतिथियों की आवाजाही रहेगी। उत्साहवर्धक सूचना प्राप्त होगी। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। उचित निर्णय ले पाएंगे। धनार्जन होगा। जल्दबाजी न करें। परीक्षा व साक्षात्कार आदि में सफलता मिलेगी। स्वास्थ्य पर व्यय होगा।
🦀 *कर्क*
भाग्योन्नति के प्रयास सफल रहेंगे। भेंट व उपहार की प्राप्ति होगी। यात्रा, निवेश व नौकरी मनोनुकूल रहेंगे। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। जल्दबाजी व लापरवाही न करें, लाभ होगा। जोखिम व जमानत के कार्य टालें।
🦁 *सिंह*
स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। स्वास्थ्य पर खर्च होगा। यात्रा में जल्दबाजी न करें। कर्ज लेना पड़ सकता है। वाणी पर नियंत्रण रखें, बाकी सामान्य रहेगा। चिंता बनी रहेगी। झंझटों में न पड़ें। बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे।
👰🏼 *कन्या*
बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे। शत्रु सक्रिय रहेंगे। यात्रा लाभदायक रहेगी। नौकरी में अधिकार बढ़ सकते हैं। घर-बाहर प्रसन्नता बनी रहेगी। वाणी पर नियंत्रण रखें। आय में वृद्धि होगी। व्यवसाय ठीक चलेगा।
⚖ *तुला*
योजना फलीभूत होगी। कार्यप्रणाली में सुधार होगा। वरिष्ठजन सहयोग करेंगे। घर-बाहर पूछ-परख रहेगी। रोजगार व आय में वृद्धि होगी। निर्णय क्षमता बढ़ेगी। यात्रा सफल रहेगी। योजना फलीभूत होगी। आय के साधन बढ़ेंगे।
🦂 *वृश्चिक*
राजकीय सहयोग से काम बनेंगे। तंत्र-मंत्र में रुचि रहेगी। बेरोजगारी दूर होगी। धनार्जन होगा। अपनी जानकारी गोपनीय रखें। व्यवसाय ठीक चलेगा। प्रसन्नता रहेगी। धर्म-कर्म में रुचि रहेगी। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी।
🏹 *धनु*
वाहन व मशीनरी के प्रयोग में सावधानी रखें। स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। क्रोध व उत्तेजना पर नियंत्रण रखें। बनते काम बिगड़ेंगे। आवक बनी रहेगी। जोखिम न उठाएं। घर-बाहर पूछ-परख रहेगी। झंझटों से दूर रहें।
🐊 *मकर*
जीवनसाथी से सहयोग मिलेगा। राजकीय सहयोग से काम बनेंगे। धन प्राप्ति सुगम होगी। परिवार के सदस्य कार्य में सहयोग करेंगे। लाभ में वृद्धि होगी। विवाद न करें। राजकीय सहयोग से लाभ में वृद्धि होगी।
🏺 *कुंभ*
संपत्ति के कार्य बड़ा लाभ दे सकते हैं। उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। मान में वृद्धि होगी। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। कार्यसिद्धि से प्रसन्नता रहेगी। राजकीय सहयोग मिलेगा। धनार्जन होगा। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है।
🐬 *मीन*
रचनात्मक कार्य पूर्ण व सफल रहेंगे। पार्टी व पिकनिक का आनंद मिलेगा। व्यवसाय लाभदायक रहेगा। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। दुष्टजन हानि पहुंचा सकते हैं। उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। संपत्ति के बड़े सौदे बड़ा लाभ दे सकते हैं।
यह तो सब जानते हैं कि गुरु बनाना जरूरी है, गुरु बिन तत्वज्ञान व मोक्ष नहीं मिल सकता। जो गुरु नहीं बनाता उसकी दुर्गति होती है। भूत प्रेत आदि के शरीर में कष्ट उठाता है। श्रीराम श्रीकृष्ण जो तीन लोक की प्रधान शक्ति है उन्होंने भी गुरु बनाकर जीवन व्यतीत किया।
लेकिन कबीर साहेब ने गुरु बनाया यह साधारण घटना नहीं है इसके पीछे बहुत बड़ा रहस्य है। आइए जानते ह।
पंडित स्वामी रामानन्द जी एक विद्वान पुरुष थे। वेदों व गीता जी के मर्मज्ञ ज्ञाता माने जाते थे।
काशी में जो पाखण्ड पूजा दूसरे पण्डितों ने चला रखी थी वह बंद करवा दी थी। रामानन्द जी शास्त्र अनुकूल साधना बताया करते थे और पूरी काशी में अपने बावन दरबार लगाया करते थे। ओ3म् नाम का जाप उपदेश देते थे।
जिस समय कबीर परमेश्वर (कविर्देव) अपने लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हो गए तब गुरु मर्यादा बनाए रखने के लिए लीला की। अढ़ाई वर्ष की आयु के बच्चे का रूप धारण करके सुबह-सुबह अंधेरे में पंचगंगा घाट की पौड़ियों के ऊपर लेट गए, जहाँ पर स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन स्नानार्थ जाया करते थे।
उस दिन भी जब स्नान करने के लिए पंचगंगा घाट पर गए तो पौड़ियों पर कबीर साहेब लेटे हुए थे। सुबह ब्रह्ममुहूर्त के अंधेरे में स्वामी रामानन्द जी को कबीर साहेब दिखाई नहीं दिए। कबीर साहेब के सिर में रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ लग गई। कविर्देव ने जैसे बालक रोते हैं ऐसे रोना शुरु कर दिया। रामानन्द जी तेजी से झुके उसी समय रामानन्द जी के गले की कण्ठी (माला) निकल कर परमेश्वर कविर्देव के गले में डल गई। रामानन्द जी ने कहा कि बेटा राम - राम बोलो। राम के नाम से दुःख दूर हो जाते हैं, इस प्रकार लीला करके कबीर साहेब ने रामानंद जी को गुरु बनाया।
एक दिन स्वामी रामानन्द जी का शिष्य कहीं पर सत्संग कर रहा था। कबीर साहेब वहाँ पर चले गए। उसको तत्वज्ञान बताया, ब्रह्मा विष्णु शिव जी की स्थिति बताई वह नाराज हो गया और कबीर साहेब की शिकायत रामानंद जी से कर दी और बताया कि कबीर साहेब ने बोला कि मेरे गुरु स्वामी रामानंद जी हैं।
अगले दिन सुबह-सुबह कबीर साहेब को 104 वर्षीय श्री रामानन्द जी के सामने उपस्थित कर दिया। रामानन्द जी ने यह दिखाने के लिए कि मैं कभी छोटी जाति वालों के दर्शन भी नहीं करता, यह झूठ बोल रहा था कि इसने मेरे से दीक्षा ली है, आगे पर्दा लगा लिया। रामानन्द जी ने पर्दे के पीछे से पूछा कि तू कौन है और तेरी क्या जाति है? तेरा कौन सा पंथ है?
उत्तर कबीर जी का:-
जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर पद पंथ। दास गरीब लिखति परै, नाम निंरजन कंत।।
यदि मेरी जाति पूछ रहे हो तो मैं जगतगुरु हूँ (वेदों में लिखा है कि जगतगुरु, सारी सृष्टि को ज्ञान प्रदान करने वाले कबीर प्रभु हैं) मेरा पंथ क्या है? मैं उस सर्वोच्च परमेश्वर का मार्ग दर्शन करने आया हूँ, जो अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड के रचयिता और धारण-पोषण करने वाले हैं। वेदों में जिसको कविर्देव, कविरग्नि आदि नामों से सम्बोधित किया है।
वह परमेश्वर मैं ही हूँ।
रामानन्द जी बोले:-
रे बालक सुन दुर्बद्धि, घट मठ तन आकार। दास गरीब दरद लग्या, हो बोले सिरजनहार।।
तुम मोमन के पालवा, जुलहै के घर बास। दास गरीब अ���्ञान गति, एता दृढ़ विश्वास।।
इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे निकम्मे! तू छोटी जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले हे गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है।
रामानन्द जी मानसिक पूजा करते थे वो करने लग गये, विष्णुजी जी मूर्ति की काल्पनिक पूजा करते थे। उस दिन पूजा कर ली लेकिन माला डालना भूल गये, कबीर साहेब ने कहा माला की गांठ खोल लो मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा, पूजा खंडित नहीं होगी।
रामानन्द जी ने कुटिया के सामने लगा पर्दा भी अपने हाथ से फैंक दिया और सारे ब्राह्मण समाज के सामने उस कबीर परमेश्वर को सीने से लगा लिया। रामानन्द जी ने कहा कि हे भगवन! आपका तो इतना कोमल शरीर है जैसे रूई हो और मेरा तो पत्थर जैसा शरीर है। एक तरफ तो प्रभु खड़े हैं और एक तरफ जाति व धर्म की दीवार है। प्रभु चाहने वाली पुण्यात्माऐं धर्म की बनावटी दीवार को तोड़ना श्रेयकर समझते हैं। वैसा ही स्वामी रामानन्द जी ने किया।
कबीर परमेश्वर ने पुण्य आत्मा रामानन्द जी को तत्वज्ञान बताया, सतलोक दिखाया और उनका कल्याण किया।
कबीर साहेब ने गुरु परम्परा बनाने के लिए ऐसी लीला की। साथ ही रामानन्द जी के जातिवादी विधान का नाश किया। और बताया सब एक परमात्मा के बच्चे हैं। उसके बाद रामानन्द जी ने कभी छुआछूत नहीं की।
अब हमें भी कबीर साहेब के समान तत्वदर्शी संत के दीक्षा लेकर कल्याण कराना चाहिए।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के रूप में स्वयं कबीर परमेश्वर आये हुये है।
#KabirPrakatDiwas
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
यह तो सब जानते हैं कि गुरु बनाना जरूरी है, गुरु बिन तत्वज्ञान व मोक्ष नहीं मिल सकता। जो गुरु नहीं बनाता उसकी दुर्गति होती है। भूत प्रेत आदि के शरीर में कष्ट उठाता है। श्रीराम श्रीकृष्ण जो तीन लोक की प्रधान शक्ति है उन्होंने भी गुरु बनाकर जीवन व्यतीत किया।
लेकिन कबीर साहेब ने गुरु बनाया यह साधारण घटना नहीं है इसके पीछे बहुत बड़ा रहस्य है। आइए जानते ह।
पंडित स्वामी रामानन्द जी एक विद्वान पुरुष थे। वेदों व गीता जी के मर्मज्ञ ज्ञाता माने जाते थे।
काशी में जो पाखण्ड पूजा दूसरे पण्डितों ने चला रखी थी वह बंद करवा दी थी। रामानन्द जी शास्त्र अनुकूल साधना बताया करते थे और पूरी काशी में अपने बावन दरबार लगाया करते थे। ओ3म् नाम का जाप उपदेश देते थे।
जिस समय कबीर परमेश्वर (कविर्देव) अपने लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हो गए तब गुरु मर्यादा बनाए रखने के लिए लीला की। अढ़ाई वर्ष की आयु के बच्चे का रूप धारण करके सुबह-सुबह अंधेरे में पंचगंगा घाट की पौड़ियों के ऊपर लेट गए, जहाँ पर स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन स्नानार्थ जाया करते थे।
उस दिन भी जब स्नान करने के लिए पंचगंगा घाट पर गए तो पौड़ियों पर कबीर साहेब लेटे हुए थे। सुबह ब्रह्ममुहूर्त के अंधेरे में स्वामी रामानन्द जी को कबीर साहेब दिखाई नहीं दिए। कबीर साहेब के सिर में रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ लग गई। कविर्देव ने जैसे बालक रोते हैं ऐसे रोना शुरु कर दिया। रामानन्द जी तेजी से झुके उसी समय रामानन्द जी के गले की कण्ठी (माला) निकल कर परमेश्वर कविर्देव के गले में डल गई। रामानन्द जी ने कहा कि बेटा राम - राम बोलो। राम के नाम से दुःख दूर हो जाते हैं, इस प्रकार लीला करके कबीर साहेब ने रामानंद जी को गुरु बनाया।
एक दिन स्वामी रामानन्द जी का शिष्य कहीं पर सत्संग कर रहा था। कबीर साहेब वहाँ पर चले गए। उसको तत्वज्ञान बताया, ब्रह्मा विष्णु शिव जी की स्थिति बताई वह नाराज हो गया और कबीर साहेब की शिकायत रामानंद जी से कर दी और बताया कि कबीर साहेब ने बोला कि मेरे गुरु स्वामी रामानंद जी हैं।
अगले दिन सुबह-सुबह कबीर साहेब को 104 वर्षीय श्री रामानन्द जी के सामने उपस्थित कर दिया। रामानन्द जी ने यह दिखाने के लिए कि मैं कभी छोटी जाति वालों के दर्शन भी नहीं करता, यह झूठ बोल रहा था कि इसने मेरे से दीक्षा ली है, आगे पर्दा लगा लिया। रामानन्द जी ने पर्दे के पीछे से पूछा कि तू कौन है और तेरी क्या जाति है? तेरा कौन सा पंथ है?
उत्तर कबीर जी का:-
जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर पद पंथ। दास गरीब लिखति परै, नाम निंरजन कंत।।
यदि मेरी जाति पूछ रहे हो तो मैं जगतगुरु हूँ (वेदों में लिखा है कि जगतगुरु, सारी सृष्टि को ज्ञान प्रदान करने वाले कबीर प्रभु हैं) मेरा पंथ क्या है? मैं उस सर्वोच्च परमेश्वर का मार्ग दर्शन करने आया हूँ, जो अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड के रचयिता और धारण-पोषण करने वाले हैं। वेदों में जिसको कविर्देव, कविरग्नि आदि नामों से सम्बोधित किया है।
वह परमेश्वर मैं ही हूँ।
रामानन्द जी बोले:-
रे बालक सुन दुर्बद्धि, घट मठ तन आकार। दास गरीब दरद लग्या, हो बोले सिरजनहार।।
तुम मोमन के पालवा, जुलहै के घर बास। दास गरीब अज्ञान गति, एता दृढ़ विश्वास।।
इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे निकम्मे! तू छोटी जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले हे गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारै तीर। दास गरीब अधर बसूं, अविगत सत्य कबीर।।
रामानन्द जी मानसिक पूजा करते थे वो करने लग गये, विष्णुजी जी मूर्ति की काल्पनिक पूजा करते थे। उस दिन पूजा कर ली लेकिन माला डालना भूल गये, कबीर साहेब ने कहा माला की गांठ खोल लो मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा, पूजा खंडित नहीं होगी।
रामानन्द जी ने कुटिया के सामने लगा पर्दा भी अपने हाथ से फैंक दिया और सारे ब्राह्मण समाज के सामने उस कबीर परमेश्वर को सीने से लगा लिया। रामानन्द जी ने कहा कि हे भगवन! आपका तो इतना कोमल शरीर है जैसे रूई हो और मेरा तो पत्थर जैसा शरीर है। एक तरफ तो प्रभु खड़े हैं और एक तरफ जाति व धर्म की दीवार है। प्रभु चाहने वाली पुण्यात्माऐं धर्म की बनावटी दीवार को तोड़ना श्रेयकर समझते हैं। वैसा ही स्वामी रामानन्द जी ने किया।
कबीर परमेश्वर ने पुण्य आत्मा रामानन्द जी को तत्वज्ञान बताया, सतलोक दिखाया और उनका कल्याण किया।
कबीर साहेब ने गुरु परम्परा बनाने के लिए ऐसी लीला की। साथ ही रामानन्द जी के जातिवादी विधान का नाश किया। और बताया सब एक परमात्मा के बच्चे हैं। उसके बाद रामानन्द जी ने कभी छुआछूत नहीं की।
अब हमें भी कबीर साहेब के समान तत्वदर्शी संत के दीक्षा लेकर कल्याण कराना चाहिए।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के रूप में स्वयं कबीर परमेश्वर आये हुये है।
#KabirPrakatDiwas
#SantRampalJiMaharaj
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
यह तो सब जानते हैं कि गुरु बनाना जरूरी है, गुरु बिन तत्वज्ञान व मोक्ष नहीं मिल सकता। जो गुरु नहीं बनाता उसकी दुर्गति होती है। भूत प्रेत आदि के शरीर में कष्ट उठाता है। श्रीराम श्रीकृष्ण जो तीन लोक की प्रधान शक्ति है उन्होंने भी गुरु बनाकर जीवन व्यतीत किया।
लेकिन कबीर साहेब ने गुरु बनाया यह साधारण घटना नहीं है इसके पीछे बहुत बड़ा रहस्य है। आइए जानते ह।
पंडित स्वामी रामानन्द जी एक विद्वान पुरुष थे। वेदों व गीता जी के मर्मज्ञ ज्ञाता माने जाते थे।
काशी में जो पाखण्ड पूजा दूसरे पण्डितों ने चला रखी थी वह बंद करवा दी थी। रामानन्द जी शास्त्र अनुकूल साधना बताया करते थे और पूरी काशी में अपने बावन दरबार लगाया करते थे। ओ3म् नाम का जाप उपदेश देते थे।
जिस समय कबीर परमेश्वर (कविर्देव) अपने लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हो गए तब गुरु मर्यादा बनाए रखने के लिए लीला की। अढ़ाई वर्ष की आयु के बच्चे का रूप धारण करके सुबह-सुबह अंधेरे में पंचगंगा घाट की पौड़ियों के ऊपर लेट गए, जहाँ पर स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन स्नानार्थ जाया करते थे।
उस दिन भी जब स्नान करने के लिए पंचगंगा घाट पर गए तो पौड़ियों पर कबीर साहेब लेटे हुए थे। सुबह ब्रह्ममुहूर्त के अंधेरे में स्वामी रामानन्द जी को कबीर साहेब दिखाई नहीं दिए। कबीर साहेब के सिर में रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ लग गई। कविर्देव ने जैसे बालक रोते हैं ऐसे रोना शुरु कर दिया। रामानन्द जी तेजी से झुके उसी समय रामानन्द जी के गले की कण्ठी (माला) निकल कर परमेश्वर कविर्देव के गले में डल गई। रामानन्द जी ने कहा कि बेटा राम - राम बोलो। राम के नाम से दुःख दूर हो जाते हैं, इस प्रकार लीला करके कबीर साहेब ने रामानंद जी को गुरु बनाया।
एक दिन स्वामी रामानन्द जी का शिष्य कहीं पर सत्संग कर रहा था। कबीर साहेब वहाँ पर चले गए। उसको तत्वज्ञान बताया, ब्रह्मा विष्णु शिव जी की स्थिति बताई वह नाराज हो गया और कबीर साहेब की शिकायत रामानंद जी से कर दी और बताया कि कबीर साहेब ने बोला कि मेरे गुरु स्वामी रामानंद जी हैं।
अगले दिन सुबह-सुबह कबीर साहेब को 104 वर्षीय श्री रामानन्द जी के सामने उपस्थित कर दिया। रामानन्द जी ने यह दिखाने के लिए कि मैं कभी छोटी जाति वालों के दर्शन भी नहीं करता, यह झूठ बोल रहा था कि इसने मेरे से दीक्षा ली है, आगे पर्दा लगा लिया। रामानन्द जी ने पर्दे के पीछे से पूछा कि तू कौन है और तेरी क्या जाति है? तेरा कौन सा पंथ है?
उत्तर कबीर जी का:-
जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर पद पंथ। दास गरीब लिखति परै, नाम निंरजन कंत।।
यदि मेरी जाति पूछ रहे हो तो मैं जगतगुरु हूँ (वेदों में लिखा है कि जगतगुरु, सारी सृष्टि को ज्ञान प्रदान करने वाले कबीर प्रभु हैं) मेरा पंथ क्या है? मैं उस सर्वोच्च परमेश्वर का मार्ग दर्शन करने आया हूँ, जो अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड के रचयिता और धारण-पोषण करने वाले हैं। वेदों में जिसको कविर्देव, कविरग्नि आदि नामों से सम्बोधित किया है।
वह परमेश्वर मैं ही हूँ।
रामानन्द जी बोले:-
रे बालक सुन दुर्बद्धि, घट मठ तन आकार। दास गरीब दरद लग्या, हो बोले सिरजनहार।।
तुम मोमन के पालवा, जुलहै के घर बास। दास गरीब अज्ञान गति, एता दृढ़ विश्वास।।
इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे निकम्मे! तू छोटी जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले हे गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारै तीर। दास गरीब अधर बसूं, अविगत सत्य कबीर।।
रामानन्द जी मानसिक पूजा करते थे वो करने लग गये, विष्णुजी जी मूर्ति की काल्पनिक पूजा करते थे। उस दिन पूजा कर ली लेकिन माला डालना भूल गये, कबीर साहेब ने कहा माला की गांठ खोल लो मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा, पूजा खंडित नहीं होगी।
रामानन्द जी ने कुटिया के सामने लगा पर्दा भी अपने हाथ से फैंक दिया और सारे ब्राह्मण समाज के सामने उस कबीर परमेश्वर को सीने से लगा लिया। रामानन्द जी ने कहा कि हे भगवन! आपका तो इतना कोमल शरीर है जैसे रूई हो और मेरा तो पत्थर जैसा शरीर है। एक तरफ तो प्रभु खड़े हैं और एक तरफ जाति व धर्म की दीवार है। प्रभु चाहने वाली पुण्यात्माऐं धर्म की बनावटी दीवार को तोड़ना श्रेयकर समझते हैं। वैसा ही स्वामी रामानन्द जी ने किया।
कबीर परमेश्वर ने पुण्य आत्मा रामानन्द जी को तत्वज्ञान बताया, सतलोक दिखाया और उनका कल्याण किया।
कबीर साहेब ने गुरु परम्परा बनाने के लिए ऐसी लीला की। साथ ही रामानन्द जी के जातिवादी विधान का नाश किया। और बताया सब एक परमात्मा के बच्चे हैं। उसके बाद रामानन्द जी ने कभी छुआछूत नहीं की।
अब हमें भी कबीर साहेब के समान तत्वदर्शी संत के दीक्षा लेकर कल्याण कराना चाहिए।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के रूप में स्वयं कबीर परमेश्वर आये हुये है।
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लेकिन कबीर साहेब ने गुरु बनाया यह साधारण घटना नहीं है इसके पीछे बहुत बड़ा रहस्य है। आइए जानते ह।
पंडित स्वामी रामानन्द जी एक विद्वान पुरुष थे। वेदों व गीता जी के मर्मज्ञ ज्ञाता माने जाते थे।
काशी में जो पाखण्ड पूजा दूसरे पण्डितों ने चला रखी थी वह बंद करवा दी थी। रामानन्द जी शास्त्र अनुकूल साधना बताया करते थे और पूरी काशी में अपने बावन दरबार लगाया करते थे। ओ3म् नाम का जाप उपदेश देते थे।
जिस समय कबीर परमेश्वर (कविर्देव) अपने लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हो गए तब गुरु मर्यादा बनाए रखने के लिए लीला की। अढ़ाई वर्ष की आयु के बच्चे का रूप धारण करके सुबह-सुबह अंधेरे में पंचगंगा घाट की पौड़ियों के ऊपर लेट गए, जहाँ पर स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन स्नानार्थ जाया करते थे।
उस दिन भी जब स्नान करने के लिए पंचगंगा घाट पर गए तो पौड़ियों पर कबीर साहेब लेटे हुए थे। सुबह ब्रह्ममुहूर्त के अंधेरे में स्वामी रामानन्द जी को कबीर साहेब दिखाई नहीं दिए। कबीर साहेब के सिर में रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ लग गई। कविर्देव ने जैसे बालक रोते हैं ऐसे रोना शुरु कर दिया। रामानन्द जी तेजी से झुके उसी समय रामानन्द जी के गले की कण्ठी (माला) निकल कर परमेश्वर कविर्देव के गले में डल गई। रामानन्द जी ने कहा कि बेटा राम - राम बोलो। राम के नाम से दुःख दूर हो जाते हैं, इस प्रकार लीला करके कबीर साहेब ने रामानंद जी को गुरु बनाया।
एक दिन स्वामी रामानन्द जी का शिष्य कहीं पर सत्संग कर रहा था। कबीर साहेब वहाँ पर चले गए। उसको तत्वज्ञान बताया, ब्रह्मा विष्णु शिव जी की स्थिति बताई वह नाराज हो गया और कबीर साहेब की शिकायत रामानंद जी से कर दी और बताया कि कबीर साहेब ने बोला कि मेरे गुरु स्वामी रामानंद जी हैं।
अगले दिन सुबह-सुबह कबीर साहेब को 104 वर्षीय श्री रामानन्द जी के सामने उपस्थित कर दिया। रामानन्द जी ने यह दिखाने के लिए कि मैं कभी छोटी जाति वालों के दर्शन भी नहीं करता, यह झूठ बोल रहा था कि इसने मेरे से दीक्षा ली है, आगे पर्दा लगा लिया। रामानन्द जी ने पर्दे के पीछे से पूछा कि तू कौन है और तेरी क्या जाति है? तेरा कौन सा पंथ है?
उत्तर कबीर जी का:-
जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर पद पंथ। दास गरीब लिखति परै, नाम निंरजन कंत।।
यदि मेरी जाति पूछ रहे हो तो मैं जगतगुरु हूँ (वेदों में लिखा है कि जगतगुरु, सारी सृष्टि को ज्ञान प्रदान करने वाले कबीर प्रभु हैं) मेरा पंथ क्या है? मैं उस सर्वोच्च परमेश्वर का मार्ग दर्शन करने आया हूँ, जो अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड के रचयिता और धारण-पोषण करने वाले हैं। वेदों में जिसको कविर्देव, कविरग्नि आदि नामों से सम्बोधित किया है।
वह परमेश्वर मैं ही हूँ।
रामानन्द जी बोले:-
रे बालक सुन दुर्बद्धि, घट मठ तन आकार। दास गरीब दरद लग्या, हो बोले सिरजनहार।।
तुम मोमन के पालवा, जुलहै के घर बास। दास गरीब अज्ञान गति, एता दृढ़ विश्वास।।
इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे निकम्मे! तू छोटी जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले हे गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारै तीर। दास गरीब अधर बसूं, अविगत सत्य कबीर।।
रामानन्द जी मानसिक पूजा करते थे वो करने लग गये, विष्णुजी जी मूर्ति की काल्पनिक पूजा करते थे। उस दिन पूजा कर ली लेकिन माला डालना भूल गये, कबीर साहेब ने कहा माला की गांठ खोल लो मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा, पूजा खंडित नहीं होगी।
रामानन्द जी ने कुटिया के सामने लगा पर्दा भी अपने हाथ से फैंक दिया और सारे ब्राह्मण समाज के सामने उस कबीर परमेश्वर को सीने से लगा लिया। रामानन्द जी ने कहा कि हे भगवन! आपका तो इतना कोमल शरीर है जैसे रूई हो और मेरा तो पत्थर जैसा शरीर है। एक तरफ तो प्रभु खड़े हैं और एक तरफ जाति व धर्म की दीवार है। प्रभु चाहने वाली पुण्यात्माऐं धर्म की बनावटी दीवार को तोड़ना श्रेयकर समझते हैं। वैसा ही स्वामी रामानन्द जी ने किया।
कबीर परमेश्वर ने पुण्य आत्मा रामानन्द जी को तत्वज्ञान बताया, सतलोक दिखाया और उनका कल्याण किया।
कबीर साहेब ने गुरु परम्परा बनाने के लिए ऐसी लीला की। साथ ही रामानन्द जी के जातिवादी विधान का नाश किया। और बताया सब एक परमात्मा के बच्चे हैं। उसके बाद रामानन्द जी ने कभी छुआछूत नहीं की।
अब हमें भी कबीर साहेब के समान तत्वदर्शी संत के दीक्षा लेकर कल्याण कराना चाहिए।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के रूप में स्वयं कबीर परमेश्वर आये हुये है।
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कबीर साहेब ने गुरु परम्परा बनाने के लिए ऐसी लीला की। साथ ही रामानन्द जी के जातिवादी विधान का नाश किया। और बताया सब एक परमात्मा के बच्चे हैं। उसके बाद रामानन्द जी ने कभी छुआछूत नहीं की।
अब हमें भी कबीर साहेब के समान तत्वदर्शी संत के दीक्षा लेकर कल्याण कराना चाहिए।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के रूप में स्वयं कबीर परमेश्वर आये हुये है।
यह तो सब जानते हैं कि गुरु बनाना जरूरी है, गुरु बिन तत्वज्ञान व मोक्ष नहीं मिल सकता। जो गुरु नहीं बनाता उसकी दुर्गति होती है। भूत प्रेत आदि के शरीर में कष्ट उठाता है। श्रीराम श्रीकृष्ण जो तीन लोक की प्रधान शक्ति है उन्होंने भी गुरु बनाकर जीवन व्यतीत किया।
लेकिन कबीर साहेब ने गुरु बनाया यह साधारण घटना नहीं है इसके पीछे बहुत बड़ा रहस्य है। आइए जानते ह।
पंडित स्वामी रामानन्द जी एक विद्वान पुरुष थे। वेदों व गीता जी के मर्मज्ञ ज्ञाता माने जाते थे।
काशी में जो पाखण्ड पूजा दूसरे पण्डितों ने चला रखी थी वह बंद करवा दी थी। रामानन्द जी शास्त्र अनुकूल साधना बताया करते थे और पूरी काशी में अपने बावन दरबार लगाया करते थे। ओ3म् नाम का जाप उपदेश देते थे।
जिस समय कबीर परमेश्वर (कविर्देव) अपने लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हो गए तब गुरु मर्यादा बनाए रखने के लिए लीला की। अढ़ाई वर्ष की आयु के बच्चे का रूप धारण करके सुबह-सुबह अंधेरे में पंचगंगा घाट की पौड़ियों के ऊपर लेट गए, जहाँ पर स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन स्नानार्थ जाया करते थे।
उस दिन भी जब स्नान करने के लिए पंचगंगा घाट पर गए तो पौड़ियों पर कबीर साहेब लेटे हुए थे। सुबह ब्रह्ममुहूर्त के अंधेरे में स्वामी रामानन्द जी को कबीर साहेब दिखाई नहीं दिए। कबीर साहेब के सिर में रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ लग गई। कविर्देव ने जैसे बालक रोते हैं ऐसे रोना शुरु कर दिया। रामानन्द जी तेजी से झुके उसी समय रामानन्द जी के गले की कण्ठी (माला) निकल कर परमेश्वर कविर्देव के गले में डल गई। रामानन्द जी ने कहा कि बेटा राम - राम बोलो। राम के नाम से दुःख दूर हो जाते हैं, इस प्रकार लीला करके कबीर साहेब ने रामानंद जी को गुरु बनाया।
एक दिन स्वामी रामानन्द जी का शिष्य कहीं पर सत्संग कर रहा था। कबीर साहेब वहाँ पर चले गए। उसको तत्वज्ञान बताया, ब्रह्मा विष्णु शिव जी की स्थिति बताई वह नाराज हो गया और कबीर साहेब की शिकायत रामानंद जी से कर दी और बताया कि कबीर साहेब ने बोला कि मेरे गुरु स्वामी रामानंद जी हैं।
अगले दिन सुबह-सुबह कबीर साहेब को 104 वर्षीय श्री रामानन्द जी के सामने उपस्थित कर दिया। रामानन्द जी ने यह दिखाने के लिए कि मैं कभी छोटी जाति वालों के दर्शन भी नहीं करता, यह झूठ बोल रहा था कि इसने मेरे से दीक्षा ली है, आगे पर्दा लगा लिया। रामानन्द जी ने पर्दे के पीछे से पूछा कि तू कौन है और तेरी क्या जाति है? तेरा कौन सा पंथ है?
उत्तर कबीर जी का:-
जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर पद पंथ। दास गरीब लिखति परै, नाम निंरजन कंत।।
यदि मेरी जाति पूछ रहे हो तो मैं जगतगुरु हूँ (वेदों में लिखा है कि जगतगुरु, सारी सृष्टि को ज्ञान प्रदान करने वाले कबीर प्रभु हैं) मेरा पंथ क्या है? मैं उस सर्वोच्च परमेश्वर का मार्ग दर्शन करने आया हूँ, जो अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड के रचयिता और धारण-पोषण करने वाले हैं। वेदों में जिसको कविर्देव, कविरग्नि आदि नामों से सम्बोधित किया है।
वह परमेश्वर मैं ही हूँ।
रामानन्द जी बोले:-
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इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे निकम्मे! तू छोटी जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले हे गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारै तीर। दास गरीब अधर बसूं, अविगत सत्य कबीर।।
रामानन्द जी मानसिक पूजा करते थे वो करने लग गये, विष्णुजी जी मूर्ति की काल्पनिक पूजा करते थे। उस दिन पूजा कर ली लेकिन माला डालना भूल गये, कबीर साहेब ने कहा माला की गांठ खोल लो मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा, पूजा खंडित नहीं होगी।
रामानन्द जी ने कुटिया के सामने लगा पर्दा भी अपने हाथ से फैंक दिया और सारे ब्राह्मण समाज के सामने उस कबीर परमेश्वर को सीने से लगा लिया। रामानन्द जी ने कहा कि हे भगवन! आपका तो इतना कोमल शरीर है जैसे रूई हो और मेरा तो पत्थर जैसा शरीर है। एक तरफ तो प्रभु खड़े हैं और एक तरफ जाति व धर्म की दीवार है। प्रभु चाहने वाली पुण्यात्माऐं धर्म की बनावटी दीवार को तोड़ना श्रेयकर समझते हैं। वैसा ही स्वामी रामानन्द जी ने किया।
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लेकिन कबीर साहेब ने गुरु बनाया यह साधारण घटना नहीं है इसके पीछे बहुत बड़ा रहस्य है। आइए जानते ह।
पंडित स्वामी रामानन्द जी एक विद्वान पुरुष थे। वेदों व गीता जी के मर्मज्ञ ज्ञाता माने जाते थे।
काशी में जो पाखण्ड पूजा दूसरे पण्डितों ने चला रखी थी वह बंद करवा दी थी। रामानन्द जी शास्त्र अनुकूल साधना बताया करते थे और पूरी काशी में अपने बावन दरबार लगाया करते थे। ओ3म् नाम का जाप उपदेश देते थे।
जिस समय कबीर परमेश्वर (कविर्देव) अपने लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हो गए तब गुरु मर्यादा बनाए रखने के लिए लीला की। अढ़ाई वर्ष की आयु के बच्चे का रूप धारण करके सुबह-सुबह अंधेरे में पंचगंगा घाट की पौड़ियों के ऊपर लेट गए, जहाँ पर स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन स्नानार्थ जाया करते थे।
उस दिन भी जब स्नान करने के लिए पंचगंगा घाट पर गए तो पौड़ियों पर कबीर साहेब लेटे हुए थे। सुबह ब्रह्ममुहूर्त के अंधेरे में स्वामी रामानन्द जी को कबीर साहेब दिखाई नहीं दिए। कबीर साहेब के सिर में रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ लग गई। कविर्देव ने जैसे बालक रोते हैं ऐसे रोना शुरु कर दिया। रामानन्द जी तेजी से झुके उसी समय रामानन्द जी के गले की कण्ठी (माला) निकल कर परमेश्वर कविर्देव के गले में डल गई। रामानन्द जी ने कहा कि बेटा राम - राम बोलो। राम के नाम से दुःख दूर हो जाते हैं, इस प्रकार लीला करके कबीर साहेब ने रामानंद जी को गुरु बनाया।
एक दिन स्वामी रामानन्द जी का शिष्य कहीं पर सत्संग कर रहा था। कबीर साहेब वहाँ पर चले गए। उसको तत्वज्ञान बताया, ब्रह्मा विष्णु शिव जी की स्थिति बताई वह नाराज हो गया और कबीर साहेब की शिकायत रामानंद जी से कर दी और बताया कि कबीर साहेब ने बोला कि मेरे गुरु स्वामी रामानंद जी हैं।
अगले दिन सुबह-सुबह कबीर साहेब को 104 वर्षीय श्री रामानन्द जी के सामने उपस्थित कर दिया। रामानन्द जी ने यह दिखाने के लिए कि मैं कभी छोटी जाति वालों के दर्शन भी नहीं करता, यह झूठ बोल रहा था कि इसने मेरे से दीक्षा ली है, आगे पर्दा लगा लिया। रामानन्द जी ने पर्दे के पीछे से पूछा कि तू कौन है और तेरी क्या जाति है? तेरा कौन सा पंथ है?
उत्तर कबीर जी का:-
जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर पद पंथ। दास गरीब लिखति परै, नाम निंरजन कंत।।
यदि मेरी जाति पूछ रहे हो तो मैं जगतगुरु हूँ (वेदों में लिखा है कि जगतगुरु, सारी सृष्टि को ज्ञान प्रदान करने वाले कबीर प्रभु हैं) मेरा पंथ क्या है? मैं उस सर्वोच्च परमेश्वर का मार्ग दर्शन करने आया हूँ, जो अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड के रचयिता और धारण-पोषण करने वाले हैं। वेदों में जिसको कविर्देव, कविरग्नि आदि नामों से सम्बोधित किया है।
वह परमेश्वर मैं ही हूँ।
रामानन्द जी बोले:-
रे बालक सुन दुर्बद्धि, घट मठ तन आकार। दास गरीब दरद लग्या, हो बोले सिरजनहार।।
तुम मोमन के पालवा, जुलहै के घर बास। दास गरीब अज्ञान गति, एता दृढ़ विश्वास।।
इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे निकम्मे! तू छोटी जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले हे गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारै तीर। दास गरीब अधर बसूं, अविगत सत्य कबीर।।
रामानन्द जी मानसिक पूजा करते थे वो करने लग गये, विष्णुजी जी मूर्ति की काल्पनिक पूजा करते थे। उस दिन पूजा कर ली लेकिन माला डालना भूल गये, कबीर साहेब ने कहा माला की गांठ खोल लो मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा, पूजा खंडित नहीं होगी।
रामानन्द जी ने कुटिया के सामने लगा पर्दा भी अपने हाथ से फैंक दिया और सारे ब्राह्मण समाज के सामने उस कबीर परमेश्वर को सीने से लगा लिया। रामानन्द जी ने कहा कि हे भगवन! आपका तो इतना कोमल शरीर है जैसे रूई हो और मेरा तो पत्थर जैसा शरीर है। एक तरफ तो प्रभु खड़े हैं और एक तरफ जाति व धर्म की दीवार है। प्रभु चाहने वाली पुण्यात्माऐं धर्म की बनावटी दीवार को तोड़ना श्रेयकर समझते हैं। वैसा ही स्वामी रामानन्द जी ने किया।
कबीर परमेश्वर ने पुण्य आत्मा रामानन्द जी को तत्वज्ञान बताया, सतलोक दिखाया और उनका कल्याण किया।
कबीर साहेब ने गुरु परम्परा बनाने के लिए ऐसी लीला की। साथ ही रामानन्द जी के जातिवादी विधान का नाश किया। और बताया सब एक परमात्मा के बच्चे हैं। उसके बाद रामानन्द जी ने कभी छुआछूत नहीं की।
अब हमें भी कबीर साहेब के समान तत्वदर्शी संत के दीक्षा लेकर कल्याण कराना चाहिए।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के रूप में स्वयं कबीर परमेश्वर आये हुये है।
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लेकिन कबीर साहेब ने गुरु बनाया यह साधारण घटना नहीं है इसके पीछे बहुत बड़ा रहस्य है। आइए जानते ह।
पंडित स्वामी रामानन्द जी एक विद्वान पुरुष थे। वेदों व गीता जी के मर्मज्ञ ज्ञाता माने जाते थे।
काशी में जो पाखण्ड पूजा दूसरे पण्डितों ने चला रखी थी वह बंद करवा दी थी। रामानन्द जी शास्त्र अनुकूल साधना बताया करते थे और पूरी काशी में अपने बावन दरबार लगाया करते थे। ओ3म् नाम का जाप उपदेश देते थे।
जिस समय कबीर परमेश्वर (कविर्देव) अपने लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हो गए तब गुरु मर्यादा बनाए रखने के लिए लीला की। अढ़ाई वर्ष की आयु के बच्चे का रूप धारण करके सुबह-सुबह अंधेरे में पंचगंगा घाट की पौड़ियों के ऊपर लेट गए, जहाँ पर स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन स्नानार्थ जाया करते थे।
उस दिन भी जब स्नान करने के लिए पंचगंगा घाट पर गए तो पौड़ियों पर कबीर साहेब लेटे हुए थे। सुबह ब्रह्ममुहूर्त के अंधेरे में स्वामी रामानन्द जी को कबीर साहेब दिखाई नहीं दिए। कबीर साहेब के सिर में रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ लग गई। कविर्देव ने जैसे बालक रोते हैं ऐसे रोना शुरु कर दिया। रामानन्द जी तेजी से झुके उसी समय रामानन्द जी के गले की कण्ठी (माला) निकल कर परमेश्वर कविर्देव के गले में डल गई। रामानन्द जी ने कहा कि बेटा राम - राम बोलो। राम के नाम से दुःख दूर हो जाते हैं, इस प्रकार लीला करके कबीर साहेब ने रामानंद जी को गुरु बनाया।
एक दिन स्वामी रामानन्द जी का शिष्य कहीं पर सत्संग कर रहा था। कबीर साहेब वहाँ पर चले गए। उसको तत्वज्ञान बताया, ब्रह्मा विष्णु शिव जी की स्थिति बताई वह नाराज हो गया और कबीर साहेब की शिकायत रामानंद जी से कर दी और बताया कि कबीर साहेब ने बोला कि मेरे गुरु स्वामी रामानंद जी हैं।
अगले दिन सुबह-सुबह कबीर साहेब को 104 वर्षीय श्री रामानन्द जी के सामने उपस्थित कर दिया। रामानन्द जी ने यह दिखाने के लिए कि मैं कभी छोटी जाति वालों के दर्शन भी नहीं करता, यह झूठ बोल रहा था कि इसने मेरे से दीक्षा ली है, आगे पर्दा लगा लिया। रामानन्द जी ने पर्दे के पीछे से पूछा कि तू कौन है और तेरी क्या जाति है? तेरा कौन सा पंथ है?
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जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर पद पंथ। दास गरीब लिखति परै, नाम निंरजन कंत।।
यदि मेरी जाति पूछ रहे हो तो मैं जगतगुरु हूँ (वेदों में लिखा है कि जगतगुरु, सारी सृष्टि को ज्ञान प्रदान करने वाले कबीर प्रभु हैं) मेरा पंथ क्या है? मैं उस सर्वोच्च परमेश्वर का मार्ग दर्शन करने आया हूँ, जो अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड के रचयिता और धारण-पोषण करने वाले हैं। वेदों में जिसको कविर्देव, कविरग्नि आदि नामों से सम्बोधित किया है।
वह परमेश्वर मैं ही हूँ।
रामानन्द जी बोले:-
रे बालक सुन दुर्बद्धि, घट मठ तन आकार। दास गरीब दरद लग्या, हो बोले सिरजनहार।।
तुम मोमन के पालवा, जुलहै के घर बास। दास गरीब अज्ञान गति, एता दृढ़ विश्वास।।
इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे निकम्मे! तू छोटी जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले हे गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारै तीर। दास गरीब अधर बसूं, अविगत सत्य कबीर।।
रामानन्द जी मानसिक पूजा करते थे वो करने लग गये, विष्णुजी जी मूर्ति की काल्पनिक पूजा करते थे। उस दिन पूजा कर ली लेकिन माला डालना भूल गये, कबीर साहेब ने कहा माला की गांठ खोल लो मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा, पूजा खंडित नहीं होगी।
रामानन्द जी ने कुटिया के सामने लगा पर्दा भी अपने हाथ से फैंक दिया और सारे ब्राह्मण समाज के सामने उस कबीर परमेश्वर को सीने से लगा लिया। रामानन्द जी ने कहा कि हे भगवन! आपका तो इतना कोमल शरीर है जैसे रूई हो और मेरा तो पत्थर जैसा शरीर है। एक तरफ तो प्रभु खड़े हैं और एक तरफ जाति व धर्म की दीवार है। प्रभु चाहने वाली पुण्यात्माऐं धर्म की बनावटी दीवार को तोड़ना श्रेयकर समझते हैं। वैसा ही स्वामी रामानन्द जी ने किया।
कबीर परमेश्वर ने पुण्य आत्मा रामानन्द जी को तत्वज्ञान बताया, सतलोक दिखाया और उनका कल्याण किया।
कबीर साहेब ने गुरु परम्परा बनाने के लिए ऐसी लीला की। साथ ही रामानन्द जी के जातिवादी विधान का नाश किया। और बताया सब एक परमात्मा के बच्चे हैं। उसके बाद रामानन्द जी ने कभी छुआछूत नहीं की।
अब हमें भी कबीर साहेब के समान तत्वदर्शी संत के दीक्षा लेकर कल्याण कराना चाहिए।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के रूप में स्वयं कबीर परमेश्वर आये हुये है।
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स्वामी रामानन्द जी ने कहाः- अरे कुजात! अर्थात् शुद्र! छोटा मुंह बड़ी बात, तू अपने आपको परमात्मा कहता है। तेरा शरीर हाड़-मांस व रक्त निर्मित है। तू अपने आपको अविनाशी परमात्मा कहता है। तेरा जुलाहे के घर जन्म है फिर भी अपने आपको अजन्मा अविनाशी कहता है तू कपटी बालक है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहाः-
ना मैं जन्मु ना मरूँ, ज्यों मैं आऊँ त्यों जाऊँ।
गरीबदास सतगुरु भेद से लखो हमारा ढांव।।
सुन रामानन्द राम मैं, मुझसे ही बावन नृसिंह।
दास गरीब युग-2 हम से ही हुए कृष्ण अभंग।।
भावार्थः- कबीर जी ने उत्तर दिया हे रामानन्द जी, मैं न तो जन्म लेता हूँ ? न मृत्यु को प्राप्त होता हूँ। मैं चौरासी लाख प्राणियों के शरीरों में आने (जन्म लेने) व जाने (मृत्यु होने) के चक्र से भी रहित हूँ। मेरी विशेष जानकारी किसी तत्त्वदर्शी सन्त (सतगुरु) के ज्ञान को सुनकर प्राप्त करो। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 तथा यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्रा 10-13 में वेद ज्ञान दाता स्वयं कह रहा है कि उस पूर्ण परमात्मा के तत्व (वास्तविक) ज्ञान से मैं अपरिचित हूँ। उस तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी सन्तों से सुनों उन्हें दण्डवत् प्रणाम करो, अति विनम्र भाव से परमात्मा के पूर्ण मोक्ष मार्ग के विषय में ज्ञान प्राप्त करो, जैसी भक्ति विधि से तत्त्वदृष्टा सन्त बताएँ वैसे साधना करो। गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में लिखा है कि श्लोक 16 में जिन दो पुरूषों (भगवानों) 1ण् क्षर पुरूष अर्थात् काल ब्रह्म तथा 2ण् अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म का उल्लेख है, वास्तव में अविनाशी परमेश्वर तथा सर्व का पालन पोषण व धारण करने वाला परमात्मा तो उन उपरोक्त दोनों से अन्य ही है। हे स्वामी रामानन्द जी! वह उत्तम पुरूष अर्थात् सर्व श्रेष्ठ प्रभु मैं ही हूँ।
इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे बालक! तू निम्न जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात कर रहा है। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले कि गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है। इस बात को सुनकर रामानन्द जी ने कहा कि ठहर जा तेरी तो लम्बी कहानी बनेगी, तू ऐसे नहीं मानेगा। मैं पहले अपनी पूजा कर लेता हूँ। रामानन्द जी ने कहा कि इसको बैठाओ। मैं पहले अपनी कुछ क्रिया रहती है वह कर लेता हूँ, बाद में इससे निपटूंगा।
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किसी घर में मन्दिर के लिए सबसे आदर्श स्थान ईशान कोण को माना गया है। इसके अलावा उत्तर और पूर्व दिशा भी घर के लिए छोटे मन्दिर का निर्माण किया जा सकता है। मैं यहां अपने प्रिय पाठकों के लिए मन्दिर के संदर्भ में कुछ बातें शेयर करूंगा।
जहां तक संभव हो घर में जो मंदिर हो उसे हमेशा उत्तर-पूर्व के मध्य में बनाएं।
हालांकि इसके अलावा उत्तर और पूर्व दिशा में कहीं भी मंदिर का निर्माण किया जा सकता है। तथापि वायव्य और अग्नि कोण में मंदिर निर्माण से बचने का प्रयास करना चाहिए।
सार्वजनिक मंदिरों में जो प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं, वे सभी प्राण प्रतिष्ठित होती हैं। इसके विपरीत घर में जो प्रतिमाएं हैं, वे सब सांकेतिक होती हैं इसलिए इन प्रतिमाओं के आकार-प्रकार को कोई महत्त्व नहीं है। प्रतिमाएं या तस्वीर छोटी या बड़ी किसी भी आकार की हो सकती है। इसमें कोई दोष नहीं है।
मंदिर कभी भी कवर्ड एरिया के बाहर नहीं होना चाहिए। कवर्ड एरिया के बाहर बने मंदिरों में मैंने बहुत से दोष देखें हैं।
मंदिर का दरवाजा किसी भी दिशा में हो सकता है लेकिन भगवान की प्रतिमाओं या तस्वीरों को हमेशा पूर्व या पश्चिम मुखी ही रखना चाहिए।
सीढ़ियो के नीचे मंदिर नहीं होना चाहिए।
टाॅयलेट से सट कर घर का मंदिर नहीं होना चाहिए। यानि टाॅयलेट और मंदिर की एक ही दीवार नहीं होनी चाहिए।
घर का मंदिर हमेशा छोटे-से आकार का होना चाहिए। ध्यान रखें कि मंदिर का सामान्य आकार अधिकतम 16 वर्ग फीट से ज्यादा न हो।