#इसके अधिकारी निलंबित
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तहसीलदार की 500 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से सरकार हैरान, हुए सस्पेंड, अविश्वसनीय यात्रा बनी सस्पेंशन की वजह?
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AIN NEWS 1: पंजाब सरकार ने तहसीलदार रणजीत सिंह को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई तब हुई जब एक जांच में खुलासा हुआ कि उन्होंने 45 किलोमीटर की दूरी महज 4 मिनट में तय कर ली। यह मामला 17 जनवरी का है, जब लुधियाना के पूर्वी तहसील दफ्तर में बैठकर उन्होंने जगराओं में छह विवादित रजिस्ट्रियां दर्ज कीं। कैसे हुआ खुलासा? जांच में सामने आया कि रणजीत सिंह ने जगराओं में 5:05 बजे से 5:12 बजे तक छह रजिस्ट्रियां दर्ज कीं। इसके बाद, उन्होंने लुधियाना के पूर्वी तहसील कार्यालय में 5:16 बजे एक और रजिस्ट्री की। इसका मतलब यह हुआ कि उन्होंने लुधियाना से जगराओं की 45 किलोमीटर की दूरी मात्र 4 मिनट में तय कर ली। यह स्पीड दुनिया की सबसे तेज़ कारों से भी अधिक है। जांच और सजा पंजाब सरकार के वित्त विभाग के वरिष्ठ अधिकारी अनुराग वर्मा की जांच में पाया गया कि तहसीलदार ने अपने पद का दुरुपयोग किया। नतीजतन, उन्हें तत्काल निलंबित कर दिया गया। साथ ही, उन्हें जगराओं और लुधियाना पूर्वी तहसील से हटाकर धारकलां, पठानकोट भेज दिया गया है। अब उन्हें वहां रोजाना एसडीएम दफ्तर में हाजिरी लगानी होगी और डीसी पठानकोट को रिपोर्ट द��नी होगी। रिटायरमेंट से पहले मुश्किलें बढ़ीं रणजीत सिंह 28 फरवरी को रिटायर होने वाले थे, लेकिन अब उनकी सभी सरकारी सुविधाओं पर रोक लगा दी गई है। जब तक उनके खिलाफ जांच पूरी नहीं होती, उन्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा। विजिलेंस विभाग उनके खिलाफ शिकायतों की जांच कर रहा है और अगर वे दोषी पाए जाते हैं, तो उन पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है। आरसी और डीड राइटर पर भी गिरी गाज तहसीलदार की निलंबन के साथ ही रजिस्ट्रार क्लर्क (आरसी) मनप्रीत सिंह की भूमिका की भी जांच शुरू हो गई है। जांच टीम उनके द्वारा चेक की गई रजिस्ट्रियों का पूरा रिकॉर्ड खंगाल रही है। बिना जांच किए इन छह रजिस्ट्रियों पर मोहर लगाने और हस्ताक्षर करने के कारण आरसी भी शिकंजे में आ चुके हैं। इसके अलावा, इन रजिस्ट्रियों को लिखने वाले डीड राइटर पर भी कार्रवाई की संभावना है। तहसीलदार का पक्ष इस पूरे मामले पर तहसीलदार रणजीत सिंह ने सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने किसी भी रजिस्ट्री के बदले कोई रिश्वत नहीं ली। यदि कोई वित्तीय लेन-देन हुआ है तो इसकी जानकारी आरसी मनप्रीत सिंह के पास होगी, क्योंकि सभी रजिस्ट्रियां उन्होंने ही चेक की थीं और उन पर मोहर लगाई थी। https://youtu.be/5Fa0HTcb67Y?si=DhPnwOt_FuNg9GVQ Tehsildar Ranjit Singh was suspended after a shocking revelation that he traveled 45 kilometers in just 4 minutes to register six disputed land deals in Jagraon while sitting in the Ludhiana East Tehsil office. The investigation found that he misused his authority, leading to an immediate suspension by the Punjab government. His case is now under Vigilance Department investigation, and all retirement benefits have been put on hold. The Registrar Clerk (RC) Manpreet Singh is also under scrutiny for approving these registrations without verification. Read the full article
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पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया की प्रतिमा का घोर अपमान, मुख्यमंत्री ने दिए कार्यवाही के निर्देश; तीन अधिकारी निलंबित
पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया की प्रतिमा का घोर अपमान, मुख्यमंत्री ने दिए कार्यवाही के निर्देश; तीन अधिकारी निलंबित #BreakingNews #news #Samachar #RightNews #RightNewsIndia
Madhya Pradesh News: कटनी जिले में केंद्रीय मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया के प्रतिमा को गलत ढंग से हटाने को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। इसके पीछे की वजह एक वायरल वीडियो है, जिसमें माधवराव सिंधिया की मूर्ति को हटाने के लिए स्टैच्यू के गले में पट्टा डालकर जेसीबी से उठाकर किनारे रखा जा रहा है। दरअसल पूरा मामला चाका बाईपास का है। यहां श्री जी कंपनी की ओर से फ्लाई ओवर ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है।…
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चंदौली में ट्रकों से अवैध वसूली कर रहे थे पुलिसवाले, सादी वर्दी में एसपी को देख भाग निकले, SI समेत 6 सस्पेंड
विकास पाठक, चंदौली: पूर्वांचल में बलिया जिले के बाद अब चंदौली में पुलिसकर्मियों द्वारा ट्रकों से अवैध वसूली का मामला सामने आया है। पुलिस अधीक्षक आदित्य लांघे सादी वर्दी में बुधवार की देर रात यूपी-बिहार बॉर्डर पर स्थित कंदवा थाने पहुंचे। यहां पुलिसकर्मी वसूली करते दिखे। एसपी को पहचान वसूली में लिप्त पुलिसकर्मी भाग निकले।इसके बाद पुलिस अधीक्षक ने थाने का निरीक्षण का किया तो कई लापरवाही सामने आईं। इसके बाद एसपी ने थाने के प्रभारी इंस्पेक्टर सलिल स्वरूप आदर्श, उप निरीक्षक अमरनाथ साहनी, मुख्य आरक्षी सुनील वर्मा, श्याम सुंदर, नागेंद्र कुमार के साथ आरक्षी किशन सरोज को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। पुलिस अधीक्षक के छापे के दौरान भाग निकले पुलिसकर्मियों का पता लगाया जा रहा है। इस कार्रवाई से पहले पुलिस अधीक्षक ने एक ही थाने में तीन साल से अधिक समय से जमे 134 मुख्य आरक्षियों का तबादला कर कार्यक्षेत्र बदल दिया है। इसके साथ ही पुलिस अधीक्षक कार्यालय में रिश्वत दिए जाने के मामले में प्रधान लिपिक और यातायातकर्मी को निलंबित किया है। बलिया वसूली कांड: एस�� समेत 20 आरोपी तीन दिन की रिमांड पर बलिया जिले के भर��ली बॉर्डर पर ट्रकों से करोड़ों की वसूली करने वाले गैंग के सरगना निलंबित थानेदार समेत 20 आरोपितों को बलिया पुलिस ने गुरुवार को वाराणसी की जिला जेल से रिमांड पर लिया। विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) की अदालत द्वारा तय पुलिस रिमांड अवधि शुरू होने के समय सुबह दस बजे से पहले ही बलिया पुलिस की कई टीमें जेल पहुंच गई। इसके बाद कानूनी प्रक्रिया पूरी कर आरोपितों को पुलिस कस्टडी में लिया गया।मेडिकल करवाकर आरोपितों को कड़ी सुरक्षा में बलिया ले जाने में दोपहर तक का समय बीत गया। सूत्रों के मुताबिक प्रकरण के विवेचक के साथ ही पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी देर रात सभी अभियुक्तों से अलग-अलग पूछताछ शुरू करेंगे। विवेचक आजमगढ़ के एएसपी शुभम अग्रवाल ने बताया कि तीन दिन की रिमांड अवधि में अभियुक्तों से पूछताछ कर संगठित गिरोह में शामिल अन्य अभियुक्तों, क्राइम सीन के पुनर्निर्माण, मनी ट्रेल का पता लगाने के साथ ही गैंग को संरक्षण देने वालों के बारे में जानकारी की जाएगी। बता दें कि पुलिस रिमांड पर लिए गए अभियुक्तों में नरही के निलंबित थानेदार पन्नेलाल समेत चार पुलिसकर्मी और 16 दलाल हैं। गिरफ्तारी के बाद सभी वाराणसी जेल में रखे गए हैं। http://dlvr.it/TBNXKm
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सक्ती: (Employee Suspended) कलेक्टर नूपुुर राशि पन्ना ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में लापरवाही बरतने पर एक स्वास्थ्य कर्मचारी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। उप स्वास्थ्य केन्द्र सक्ती में कार्यरत ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजक चन्द्र किशोर साहू को कार्य में लापरवाही बरतने पर छत्तीसगढ़ सिविल सेवा नियम 1965 के तहत निलंबित किया है। दरअसल, कलेक्टर ने अधिकारियों-कर्मचारियों को नियमित समय पर स्वास्थ्य केन्द्रों में उपस्थित रहकर आम जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं। इसके बावजूद आरएचओ उप स्वास्थ्य केन्द्र सक्ती चन्द्र किशोर साहू द्वारा कार्य से अनुपस्थित रहने और शासकीय कार्य में लापरवाही बरतने पर निलंबन की कार्रवाई की गई है l Employee Suspended निलंबन अवधि में साहू का मुख्यालय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र डभरा, जिला सक्ती निर्धारित किया गया है। निलंबन अवधि में उन्हें नियमानुसार जीवन निर्वाह भत्ता देय होगा। कलेक्टर नूपुर राशि पन्ना आम जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा सुनिश्चित कराने के लिए संवेदनशील है। उनके द्वारा मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को शासन की योजनाओं के तहत स्वास्थ्य के क्षेत्र में किसी भी अधिकारी-कर्मचारी द्वारा आमजनता के स्वास्थ्य के साथ यदि किसी भी प्रकार की लापरवाही बरती जाती है तो उनके विरूद्ध नियमानुसार कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं l
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सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र
परिचय
भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपील का अंतिम न्यायालय है और सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय है। इसे अपने पवित्र कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम बनाने के लिए, इसे बहुत व्यापक अधिकार क्षेत्र प्रदान किया गया है। न्यायालय, अधीनस्थ (सबोर्डिनेट) न्यायालयों के आदेशों की अपील सुनता है, संविधान की व्याख्या और समर्थन करता है, नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है और अंतर्राज्यीय (इंटरस्टेट) विवादों का समाधान करता है।
ऐतिहासिक अवलोकन
सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास का पता भारत सरकार अधिनियम, 1935 से लगाया जा सकता है। अधिनियम ने संघीय (फेडरल) न्यायालय की स्थापना की, जो संघीय राज्यों और प्रांतों (प्रोविंस) के बीच विवादों पर निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार था। इसके अलावा, संघीय न्यायालय को उच्च न्यायालयों से अपील सुनने का भी अधिकार था। स���्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र और शक्तियां संघीय न्यायालय के समान हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान है। सर्वोच्च न्यायालय 28 जनवरी, 1950 को चालू हुआ, और भारत के सर्वोच्च न्यायालय की अध्यक्षता करने वाले पहले न्यायाधीश माननीय श्री न्यायमूर्ति हरिलाल जेकिसुंदस कानिया थे।
सर्वोच्च न्यायालय का मूल अधिकार क्षेत्र
मूल अधिकार क्षेत्र अदालत की वह शक्ति है कि वह मामले को पहले दृष्टांत के न्यायालय के रूप में सुने और निर्णय दे। अनुच्छेद 131 सर्वोच्च न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट करता है। यह प्रदान करता है कि न्यायालय मूल अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए सक्षम होगा: - केंद्र सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच विवादों में, - ऐसे विवादों में, जहां केंद्र सरकार और एक या अधिक राज्य एक पक्ष का गठन करते हैं और एक या अधिक राज्य दूसरे पक्ष का गठन करते हैं, - दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवादों में। - बंदी प्रत्यक्षीकरण (हेबियस कॉर्पस) : रिट यह सुनिश्चित करने के लिए कि हिरासत कानूनी है या गैरकानूनी, बंदी को अदालत के समक्ष पेश करने का आदेश देती है।44वें संविधान संशोधन के प्रभाव के आधार पर, जो यह प्रावधान करता है कि अनुच्छेद 21 को आपातकाल की घोषणा के समय भी निलंबित नहीं किया जा सकता है, बंदी प्रत्यक्षीकरण का रिट आपातकाल के समय भी प्रभावी ढंग से जारी किया जा सकता है। - क्यू वारंटो : यह रिट एक अदालत द्वारा एक सार्वजनिक अधिकारी को जारी की जाती है जिसमें उसे अपने कार्यों के पीछे के अधिकार की व्याख्या करने की आवश्यकता होती है। लोक अधिकारी को उस प्राधिकरण (अथॉरिटी) को साबित करना आवश्यक होता है जिसके द्वारा वह पद धारण कर रहा है और सार्वजनिक कार्यालय की शक्तियों का प्रयोग कर रहा है। यह रिट आम तौर पर सार्वजनिक पदों पर बैठे कार्यकारी (एक्जीक्यूटिव) अधिकारियों के खिलाफ जारी की जाती है। - परमादेश (मैंडेमस) : अदालत ने एक सरकारी अधिकारी को अपने सार्वजनिक कर्तव्य के निर्वहन (डिस्चार्ज) को फिर से शुरू करने का निर्देश देने के लिए परमादेश का एक रिट जारी किया। यह ध्यान देने योग्य है कि यह रिट किसी निजी व्यक्ति, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, भारत के राष्ट्रपति या किसी भी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ जारी नहीं की जा सकती है। - निषेध (प्रोहिबिशन) : न्यायालय यह रिट किसी अधीनस्थ न्यायालय को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने या हड़पने या कानून के उल्लंघन में कार्य करने से रोकने के लिए जारी करता है। यह रिट उस समय जारी की जाती है जब एक अधीनस्थ न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र से अधिक मामले की सुनवाई करने का निर्णय लेता है। - सर्चियोररी : जहां अधीनस्थ न्यायालय किसी ऐसे मामले का निर्णय करता है जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है या जहां मामला नैसर्गिक (नेचुरल) न्याय सिद्धा��तों के उल्लंघन में तय किया गया है, न्यायालय को सर्चियोररी की रिट जारी करने का अधिकार है, जिससे गलत निर्णय को रद्द किया जा सकता है। - एम. इस्माइल फारूकी बनाम भारत संघके मामले में, राष्ट्रपति ने बाबरी मस्जिद की जगह में एक मंदिर था या नहीं, इस मुद्दे पर न्यायालय की सलाहकार राय मांगी। हालांकि, न्यायालय ने माना कि राष्ट्रपति को न्यायालय की राय लेने के लिए उचित कारण बताना चाहिए। न्यायालय ने आगे कहा कि जहां वह कारणों को अनुचित मानता है, वहां वह सलाहकार राय देने के लिए बाध्य नहीं है। न्यायालय ने इस आधार पर अपनी सलाहकार राय देने से इनकार कर दिया कि संदर्भ अनावश्यक था। - रीकेरल शिक्षा विधेयक बनाम अज्ञात (1958), में केरल शिक्षा विधेयक, 1957 केरल राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किया गया था और राष्ट्रपति ने इसके कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता पर सर्वोच्च न्यायालय की राय मांगी थी। राज्यपाल ने विधेयक पर अपनी सहमति नहीं दी थी और राष्ट्रपति के विचार की मांग की थी। न्यायालय के सामने जो मुद्दा आया वह यह था कि क्या विधेयक के प्रावधानों के संबंध में सलाहकार राय मांगी जा सकती है, जिसे अभी तक एक क़ानून के रूप में शामिल नहीं किया गया है। न्यायालय ने अनुच्छेद 143 के दायरे और उद्देश्यों के संबंध में कई टिप्पणियां कीं: - न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 143(1) में प्रावधान है कि न्यायालय संदर्भित मामले पर राष्ट्रपति को अपनी राय दे सकता है और इसलिए सलाहकार राय न्यायालय का विवेकाधीन अधिकार क्षेत्र है और न्यायालय राष्ट्रपति को राय देने के लिए बाध्य नहीं है। - हालाँकि, केवल इसलिए कि कोई विधेयक कानून के रूप में लागू नहीं हुआ है, न्यायालय के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से इनकार करने का कोई आधार नहीं हो सकता है। - न्यायालय ने आगे कहा कि अनुच्छेद 143 का उद्देश्य राष्ट्रपति मामले को सर्वोच्च न्यायालय में भेजकर कानून के एक प्रश्न के संबंध में अपनी शंकाओं को दूर करने में सक्षम बनाना है। - न्यायालय ने माना कि वह केवल उस प्रश्न पर विचार करेगा जिसे राष्ट्रपति द्वारा संदर्भित किया गया था और यह प्रश्न के दायरे से बाहर नहीं जा सकता है। - न्यायालय ने आगे अनुच्छेद 143(1) और अनुच्छेद 143(2) के तहत किए गए संदर्भ के बीच अंतर किया। अनुच्छेद 143(2) में यह प्रावधान है कि जहांअनुच्छेद 131 के परंतुक (प्रोविसो) में प्रदान किया गया ऐसा मामला राष्ट्रपति द्��ारा न्यायालय को भेजा जाता है, वहां न्यायालय राष्ट्रपति को अपनी राय प्रदान करेगा। अनुच्छेद 131 के प्रावधान में समझौतों, संधियों, या अन्य ऐसे उपकरणों से उत्पन्न विवादों के संबंध में न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र को शामिल नहीं किया गया है जो संविधान के प्रभाव में आने से पहले दर्ज किए गए थे। न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 143(1) न्यायालय को अपनी राय देने के लिए विवेकाधीन बनाता है, अनुच्छेद 143 (2) राष्ट्रपति द्वारा संदर्भित मामलों में न्यायालय को अपनी राय देना अनिवार्य बनाता है। - जहां किसी व्यक्ति को बरी करने के आदेश को उलटते हुए उच्च न्यायालय द्वारा मौत की सजा सुनाई जाती है। - जहां उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय से मामले को वापस लेता है और मुकदमा चलाता है और बाद में आरोपी को मौत की सजा देता है। - नए साक्ष्य की खोज : पीड़ित पक्ष नए महत्व���ूर्ण साक्ष्य की खोज पर समीक्षा के लिए अपील कर सकता है। हालांकि, यह ध्यान रखना उचित है कि समीक्षा के लिए आवेदन करने वाले पक्ष को यह दिखाना होगा कि पक्षों द्वारा उचित परिश्रम के अभ्यास के बावजूद इस तरह के नए सबूत पहले नहीं खोजे जा सके। यदि यह दिखाया जाता है कि पक्ष की लापरवाही के कारण पहले चरण में सबूतों का पता नहीं चला था, तो आवेदन विफल हो जाएगा। - स्पष्ट त्रुटि: जहां “रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटि” है, तो न्यायालय द्वारा समीक्षा की अनुमति दी जा सकती है। त्रुटि महत्वपूर्ण होनी चाहिए और अपील करने वाले पक्ष को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने वाली होनी चाहिए। त्रुटि किसी भी तर्क की आवश्यकता के बिना स्पष्ट होनी चाहिए। - कोई पर्याप्त कारण : जहां न्यायालय को लगता है कि समीक्षा की अनुमति देने के लिए पर्याप्त कारण है, वह पीड़ित पक्ष के समीक्षा आवेदन की अनुमति दे सकता है। - सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है और इसकी व्याख्या अंतिम होगी। - संविधान काअनुच्छेद 141 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानूनों को बाध्यकारी बल प्रदान करता है। कानून के एक ही प्रश्न पर विचार करते समय न्यायालय के निर्णयों का पूर्वगामी (प्रीसीडेंशियल) महत्व होता है। इसके अलावा, न्यायालय के फैसलों को समग्र रूप से पढ़ा जाना चाहिए। यहाँ तक कि न्यायालय के एकपक्षीय (एक्स पार्टे) निर्णय भी अधीनस्थ न्यायालयों के लिए बाध्यकारी होते हैं। - सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कामकाज के लिए नियमों और प्रक्रियाओं की स्थापना की है। इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भी न्यायालय के कॉलेजियम की सिफारिश पर की जाती है। - सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्राप्त है। यह विधायिका द्वारा पारित कानूनों की समीक्षा कर सकता है और यदि वे मौलिक अधिकारों या संविधान के किसी अन्य प्रावधान का उल्लंघन करते पाए जाते हैं तो उन्हें शून्य घोषित कर सकते हैं। - इसके अलावा, अनुच्छेद 137न्यायालय को अपने निर्णयों और आदेशों की समीक्षा करने की शक्ति प्रदान करता है। - सर्वोच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो और मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए रिट भी जारी कर सकता है। - न्यायालय उन लोगों को दंडित कर सकता है जो उसके आदेशों का पालन करने से इनकार करते हैं या जो न्यायालय के खिलाफ निंदनीय और अपमानजनक टिप्पणी करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना के लिए दंड देने की शक्ति की परिकल्पनाअनुच्छेद 129 के तहत की गई है ।
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय भारत में न्यायालयों के पदानुक्रम (हायरार्की) के शीर्ष पर है। यह एक व्यापक अधिकार क्षेत्र का आनंद लेता है और देश में कानून के शासन को सुनिश्चित करने और विधायिका और कार्यपालिका पर नियंत्रण रखने के लिए जिम्मेदार है। यह स्पष्ट है कि सर्वोच्च न्यायालय को वह अधिकार क्षेत्र प्रदान किया गया था जो संघीय न्यायालय के साथ-साथ प्रिवी काउंसिल द्वारा प्राप्त किया गया था। संसद न्यायालय के व्यापक अधिकार क्षेत्र को और भी बढ़ा सकती है। हालाँकि, संसद का कोई भी अधिनियम न्यायालय के ��ंतर्निहित अधिकार क्षेत्र को कम या सीमित नहीं कर सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
· कौन सा अनुच्छेद सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों को लागू करने वाले रिट जारी करने की शक्ति प्रदान करता है?
अनुच्छेद 32.
·अन्य देशों के शीर्ष न्यायालयों की तुलना में भारत के सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र कितना विस्तृत है?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय को अन्य देशों के संघीय न्यायालयों की तुलना में व्यापक अधिकार क्षेत्र वाला कहा जा सकता है। यूनाइटेड किंगडम में, सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने का अधिकार नहीं है। आयरलैंड के साथ-साथ जापान में, शीर्ष अदालतें मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए संघीय अधिकार क्षेत्र का आनंद नहीं लेती हैं। ऑस्ट्रेलियाई सर्वोच्च न्यायालय का कोई सलाहकार अधिकार क्षेत्र नहीं है। जहां तक यूएस सर्वोच्च न्यायालय का संबंध है, न्यायालय के पास राज्य की अदालतों की कुछ अपीलों को सुनने का अधिकार क्षेत्र नहीं है। भारत में, सर्वोच्च न्यायालय सभी निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों से अपील सुन सकता है। इसके अलावा, यूएस सर्वोच्च न्यायालय को सलाहकार अधिकार क्षेत्र का भी आनंद नहीं मिलता है।
· उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) का सिद्धांत किस मामले में निर्धारित किया गया था?
रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा (2002) के ऐतिहासिक मामले में, अदालत के सामने यह सवाल उठा कि क्या समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद पीड़ित व्यक्ति द्वारा दूसरी समीक्षा को प्राथमिकता दी जा सकती है। न्यायालय के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि उपचारात्मक याचिका के रूप में दूसरी समीक्षा को न्याय के किसी भी बड़े पैमाने पर विफलता को सुधारने की अनुमति दी जा सकती है। न्यायालय ने इस प्रकार माना कि न्याय की विफलता का शिकार न्यायालय के अंतिम आदेश से दूसरी अपील कर सकता है। न्यायालय ने माना था कि “दुर्लभतम से दुर्लभतम मामलों ” में, मनुष्यों की गलती के कारण, पुनर्विचार की आवश्यकता हो सकती है और न्याय की सकल विफलता को सुधारने के लिए अंतिम आदेश की दूसरी समीक्षा की आवश्यकता हो सकती है।
· जनहित याचिका की अवधारणा किस मामले में निर्धारित की गई थी?
मुंबई कामगार सभा बनाम मेसर्स अब्दुलभाई फैजुल्लाभाई और अन्य (1976) के ऐतिहासिक मामले में, श्रमिक संघ द्वारा श्रमिकों और उनके नियोक्ताओं के बीच विवाद के संबंध में एक अपील दायर की गई थी। उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि चूंकि संघ विवाद का पक्ष नहीं था, इसलिए इस मामले में उसका कोई अधिकार नहीं था। हालाँकि, न्यायालय ने जनहित के आधार पर संघ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ा दिया। इस मामले को भारत में जनहित याचिका के विकास की शुरुआत माना जाता है। Read the full article
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Tata motors big action on officers - टाटा मोटर्स के जमशेदपुर प्लांट में प्रबंधन ने की बड़ी कार्रवाई, दुर्घटना को लेकर आठ बड़े अधिकारियों को किया निलंबित
जमशेदपुर : टाटा मोटर्स में पिछले दिनों जमशेदपुर प्लांट के फाइनल डिवीजन में हुए चेचिस दुर्घटना को लेकर कंपनी प्रबंधन ने बड़ी कार्रवाई की है. इस मामले की सघन जांच कंपनी प्रबंधन के साथ मिलकर फैक्ट्री इंस्पेक्टर ने करवाई थी. इसमें यह मालूम चला की सुरक्षा के दृष्टिकोण से काफी लापरवाही बरती गई है. इसके आधार पर कंपनी प्रबंधन ने जीएम लेवल के 8 अधिकारी को निलंबित कर दिया है. इसमें प्रमोद भरे, गौतम ठाकुर,…
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बच्चों से मारपीट के मामले में राज्य सरकार ने की सख्त कार्रवाई, तत्कालीन डीपीओ निलंबित
NCG NEWS DESK कांकेर : राज्य सरकार ने कांकेर में बच्ची से मारपीट के मामले में सख्त कार्रवाई की है। राज्य सरकार ने तत्कालीन जिला कार्यक्रम अधिकारी चंद्रशेखर मिश्रा को विशेषीकृत दत्तक एजेंसी कांकेर के विरुद्ध शिकायतों की जांच में लापरवाही पर तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। इसके साथ ही कांकेर कलेक्टर डॉ प्रियंका शुक्ला के निर्देश पर बच्चों से मारपीट की आरोपी समन्वयक (विशेषीकृत दत्तक ग्रहण…
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राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय का प्रिंसिपल सस्पेंड छात्राओं के साथ करता था अपने कक्ष में बुलाकर गंदी हरकत..
कालसी अपने कक्ष में बुलाकर छात्राओं से छेड़छाड़ के आरोप में स्कूल प्रिंसिपल हुआ सस्पेंड राजधानी देहरादून के कालसी ब्लॉक क्षेत्र अंतर्गत एक स्कूल की छात्राओं से छेड़छाड़ करने के आरोप में प्रधानाध्यापक को निलंबित किया गया है इसके साथ ही जिला शिक्षा अधिकारी ने उप शिक्षा अधिकारी चकराता को जांच अधिकारी नामित कर 15 दिन में जांच आख्या प्रस्तुत करने के निर्देश दिए जानकारी के अनुसार राजकीय उच्च…
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Chhattisgarh News: निलंबित PCS सौम्या चौरसिया की जमानत मामले में सुनवाई पूरी, हाईकोर्ट ने फैसला...
Chhattisgarh News : छत्तीसगढ़ राज्य प्रशासनिक सेवा की अधिकारी और मुख्यमंत्री की पूर्व उप सचिव सौम्या की जमानत मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सौम्या चौरसिया को गिरफ्तार किया था। इसके बाद से वह जेल में बंद हैं। रायपुर कोर्ट से जमानत अर्जी खारिज होने के बाद सौम्या ने हाईकोर्ट…
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#Chhattisgarh#chhattisgarhnews#cg new#cg news :#CG News today#Chhattisgarh News :#Chhattisgarh News: निलंबित PCS सौम्या चौरसिया की जमानत मामले में सुनवाई पूरी#news:#pcs#अपराध#एक्सक्लूसिव#की#चौरसिया#छत्तीसगढ़#जमानत#निलंबित#ने#न्यूज़#पूरी#फैसला#ब्रेकिंग#मामले#में#राजनीति#राज्य#रायपुर#सुनवाई#सौम्या#हाईकोर्ट#हाईकोर्ट ने फैसला...
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गुड़गांव में करोड़ों की चोरी के मामले में आईपीएस अधिकारी निलंबित
गुड़गांव में करोड़ों की चोरी के मामले में आईपीएस अधिकारी निलंबित
कुछ दिनों बाद गुड़गांव की एक अदालत ने जांचकर्ताओं की खिंचाई नहीं की आईपीएस अधिकारी धीरज सेतिया पर लगे आरोपों की जांच करोड़ों रुपये की चोरी के मामले में हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को अधिकारी को निलंबित कर दिया. हरियाणा के अधिकारियों ने प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग से भी मामले की जांच करने को कहा है। शुक्रवार को जारी एक आदेश में, हरियाणा के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजीव अरोड़ा ने कहा: “हरियाणा के…
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शिक्षा के मंदिर में शर्मनाक हरकत: चित्तौड़गढ़ के सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल और टीचर की अश्लील हरकतें CCTV में कैद?
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AIN NEWS 1: राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने शिक्षा के पवित्र माहौल को शर्मसार कर दिया है। गंगरार ब्लॉक के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, सालेरा में प्रिंसिपल और महिला टीचर की आपत्तिजनक गतिविधियां स्कूल परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गईं।
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इन वीडियो के वायरल होने के बाद शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया। जिला शिक्षा अधिकारी राजेंद्र कुमार शर्मा ने ��त्काल प्रभाव से दोनों को निलंबित कर दिया। इसके अलावा, ग्रामीणों और अभिभावकों में घटना को लेकर भारी आक्रोश है। कैसे हुआ खुलासा? स्कूल के अन्य शिक्षकों को पहले से प्रिंसिपल के व्यवहार पर शक था। इसलिए उन्होंने गुपचुप तरीके से प्रिंसिपल के कमरे में सीसीटीवी कैमरे लगवाए। कैमरों में प्रिंसिपल और महिला टीचर की आपत्तिजनक हरकतें रिकॉर्ड हुईं।
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वायरल वीडियो की संख्या दर्जनों में बताई जा रही है, जो अलग-अलग दिनों की घटनाओं को दर्शाती हैं। शिक्षा विभाग की कार्रवाई शिक्षा विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एक जांच समिति गठित की है। प्रिंसिपल अरविंद व्यास का मुख्यालय राशमी और महिला टीचर का मुख्यालय बेगूं तय किया गया है। दोनों पर राजस्थान सिविल सेवा (आचरण) नियमावली की धारा 16 सीसी के तहत कार्रवाई शुरू की गई है। जिला शिक्षा अधिकारी राजेंद्र शर्मा ने कहा कि ऐसी घटनाएं शिक्षा विभाग की छवि को नुकसान पहुंचाती हैं। ग्रामीणों का गुस्सा और मांगें घटना के बाद स्थानीय ग्रामीणों ने थाने और प्रशासनिक अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा। ग्रामीणों का कहना है कि ऐसी घटनाओं से बच्चों की शिक्षा और मानसिकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने दोषियों को नौकरी से बर्खास्त करने की मांग की है। आरोपियों की पृष्ठभूमि प्रिंसिपल अरविंद व��यास और महिला टीचर दोनों शादीशुदा हैं। अरविंद व्यास गंगरार के निवासी हैं और भारतीय मजदूर संघ के प्रदेशाध्यक्ष हैं। महिला टीचर चित्तौड़गढ़ के पास की रहने वाली हैं और उनके पति एक फैक्टरी में काम करते हैं। शिक्षा के माहौल पर असर इस घटना ने शिक्षा व्यवस्था को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। जिस स्थान पर बच्चों को नैतिकता और शिक्षा का पाठ पढ़ाया जाता है, वहां ऐसे कृत्य शर्मनाक हैं। इस घटना को लेकर लोग न केवल शिक्षा विभाग बल्कि समाज के नैतिक मूल्यों पर भी सवाल उठा रहे हैं। English Paragraph for SEO Boost: A shocking incident has surfaced from Chittorgarh, Rajasthan, where a government school principal and a female teacher were caught engaging in inappropriate activities on CCTV. The viral videos, showing multiple instances of misconduct, have led to their suspension by the education department. This incident raises serious concerns about the sanctity of educational institutions and has sparked outrage among locals. The matter is under investigation, and strict action is being taken to maintain the integrity of the education system in Rajasthan. Read the full article
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शहीदे आजम भगत सिंह:एक क्रांतिकारी के आखिर 24 घंटे -
शहीदे आजम भगत सिंह और 23 मार्च 1931 -
शहीदे आजम भगत सिंह एक ऐसा नाम जो बहुत ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।अब के समय के बच्चे जो उस उम्र में कुछ सोच -समझ नहीं पाते उस उम्र भगत सिंह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गये। लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 की शुरुआत किसी और दिन की तरह ही हुई थी। फर्क सिर्फ इतना सा था कि सुबह-सुबह जोर की आँधी आई थी। लेकिन जेल के कैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा जब चार बजे ही वॉर्डेन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं।उन्होंने कारण नहीं बताया। उनके मुंह से सिर्फ ये निकला कि आदेश ऊपर से ��ै।अभी कैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है,जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फुसफुसाते हुए गुजरा कि आज रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।उस क्षण की निश्चिंतता ने उनको झकझोर कर रख दिया। कैदियों ने बरकत से मनुहार की कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी चीज जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में बंद थे। बरकत भगत सिंह की कोठरी में गया और वहाँ से उनका पेन और कंघा ले आया। सारे कैदियों में होड़ लग गई कि किसका उस पर अधिकार हो।आखिर में ड्रॉ निकाला गया।
भगत सिंह ने क्यों कहा -इन्कलाबियों को मरना ही होता है-
अब सब कैदी चुप हो चले थे। उनकी निगाहें उनकी कोठरी से गुजरने वाले रास्ते पर लगी हुई थी। भगत सिंह और उनके साथी फाँसी पर लटकाए जाने के लिए उसी रास्ते से गुजरने वाले थे।एक बार पहले जब भगत सिंह उसी रास्ते से ले जाए जा रहे थे तो पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सच्चर ने आवाज ऊँची कर उनसे पूछा था, "आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया। " भगत सिंह का जवाब था,"इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मजबूत होता है,अदालत में अपील से नहीं।" वॉर्डेन चरत सिंह भगत सिंह के खैरख्वाह थे और अपनी तरफ से जो कुछ बन पड़ता था उनके लिए करते थे। उनकी वजह से ही लाहौर की द्वारकादास लाइब्रेरी से भगत सिंह के लिए किताबें निकल कर जेल के अंदर आ पाती थीं।भगत सिंह को किताबें पढ़ने का इतना शौक था कि एक बार उन्होंने अपने स्कूल के साथी जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिए कार्ल लीबनेख की 'मिलिट्रिजम', लेनिन की 'लेफ्ट विंग कम्युनिजम' और अपटन सिनक्लेयर का उपन्यास 'द स्पाई' कुलबीर के जरिए भिजवा दें।
भगत सिंह अपने जेल की कोठरी में शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे-
भगत सिंह जेल की कठिन जिंदगी के आदी हो चले थे। उनकी कोठरी नंबर 14 का फर्श पक्का नहीं था। उस पर घास उगी हुई थी। कोठरी में बस इतनी ही जगह थी कि उनका पाँच फिट, दस इंच का शरीर बमुश्किल उसमें लेट पाए।भगत सिंह को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे। मेहता ने बाद में लिखा कि भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे।उन्होंने मुस्करा कर मेहता को स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब 'रिवॉल्युशनरी लेनिन' लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हे किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे ��ानो उनके पास अब ज्यादा समय न बचा हो।मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे?भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बगैर कहा, "सिर्फ दो संदेश... साम्राज्यवाद मुर्द��बाद और 'इंकलाब जिदाबाद!" इसके बाद भगत सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें,जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी।
वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी गयी -
भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगुरु से मिलने उनकी कोठरी पहुंचे। राजगुरु के अंतिम शब्द थे, "हम लोग जल्द मिलेंगे।" सुखदेव ने मेहता को याद दिलाया कि वो उनकी मौत के बाद जेलर से वो कैरम बोर्ड ले लें जो उन्होंने उन्हें कुछ महीने पहले दिया था।मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है। अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।भगत सिंह मेहता द्वारा दी गई किताब के कुछ पन्ने ही पढ़ पाए थे। उनके मुंह से निकला, "क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी खत्म नहीं करने देंगे?" भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए उनको फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना लाएं।लेकिन बेबे भगत सिंह की ये इच्छा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि भगत सिंह को बारह घंटे पहले फांसी देने का फैसला ले लिया गया और बेबे जेल के गेट के अंदर ही नहीं घुस पाया।
तीनों क्रांतिकारियों अंतिम क्षण -
थोड़ी देर बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आजादी गीत गाने लगे- कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगें ये अपनी ही जमीं होगी ये अपना आसमाँ होगा।
फिर इन तीनों का एक-एक करके वजन लिया गया।सब के वजन बढ़ गए थे। इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें। फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।चरत सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसा कर कहा कि वाहे गुरु को याद करो।
भगत सिंह बोले, "पूरी जिदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया। असल में मैंने कई बार गरीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा भी है। अगर मैं अब उनसे माफी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है। इसका अंत नजदीक आ रहा है। इसलिए ये माफी मांगने आया है।" जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाय, कैदियों ने दूर से आती कुछ पदचापें सुनीं।उनके साथ भारी बूटों के जमीन पर पड़ने की आवाजे भी आ रही थीं। साथ में एक गाने का भी दबा स्वर सुनाई दे रहा था, "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।।।" सभी को अचानक जोर-जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे सुनाई देने लगे।फांसी का तख्ता पुराना था लेकिन फांसी देने वाला काफी तंदुरुस्त। फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलवाया गया था।भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे। भगत सिंह अपनी माँ को दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख्ते से 'इंकलाब जिदाबाद' का नारा लगाएंगे।
भगत सिंह ने अपने माँ से किया वादा निभाया और फांसी के फंदे को चूमकर -इंकलाब जिंदाबाद नारा लगाया -
लाहौर जिला कांग्रेस के सचिव पिंडी दास सोंधी का घर लाहौर सेंट्रल जेल से बिल्कुल लगा हुआ था। भगत सिंह ने इतनी जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाया कि उनकी आवाज सोंधी के घर तक सुनाई दी। उनकी आवाज सुनते ही जेल के दूसरे कैदी भी नारे लगाने लगे। तीनों युवा क्रांतिकारियों के गले में फांसी की रस्सी डाल दी गई।उनके हाथ और पैर बांध दिए गए। तभी जल्लाद ने पूछा, सबसे पहले कौन जाएगा? सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी। जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मार कर हटा दिया।काफी देर तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे।अंत में उन्हें नीचे उतारा गया और वहाँ मौजूद डॉक्टरों लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट कर्नल एनएस सोधी ने उन्हें मृत घोषित किया।
क्यों मृतकों की पहचान करने से एक अधिकारी ने मना किया -
एक जेल अधिकारी पर इस फांसी का इतना असर हुआ कि जब उससे कहा गया कि वो मृतकों की पहचान करें तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उसे उसी जगह पर निलंबित कर दिया गया। एक जूनियर अफसर ने ये काम अंजाम दिया।पहले योजना थी कि इन सबका अंतिम संस्कार जेल के अंदर ही किया जाएगा, लेकिन फिर ये विचार त्यागना पड़ा जब अधिकारियों को आभास हुआ कि जेल से धुआँ उठते देख बाहर खड़ी भीड़ जेल पर हमला कर सकती है। इसलिए जेल की पिछली दीवार तोड़ी गई।उसी रास्ते से एक ट्रक जेल के अंदर लाया गया और उस पर बहुत अपमानजनक तरीके से उन शवों को एक सामान की तरह डाल दिया गया। पहले तय हुआ था कि उनका अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाएगा, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया।उनके पार्थिव शरीर को फिरोजपुर के पास सतलज के किनारे लाया गया। तब तक रात के 10 बज चुके थे। इस बीच उप पुलिस अधीक्षक कसूर सुदर्शन सिंह कसूर गाँव से एक पुजारी जगदीश अचरज को बुला लाए। अभी उनमें आग लगाई ही गई थी कि लोगों को इसके बारे में पता चल गया।जैसे ही ब्रितानी सैनिकों ने लोगों को अपनी तरफ आते देखा, वो शवों को वहीं छोड़ कर अपने वाहनों की तरफ भागे। सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया।अगले दिन दोपहर के आसपास जिला मैजिस्ट्रेट के दस्तखत के साथ लाहौर के कई इलाकों में नोटिस चिपकाए गए जिसमें बताया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का सतलज के किनारे हिंदू और सिख रीति से अंतिम संस्कार कर दिया गया।इस खबर पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया आई और लोगों ने कहा कि इनका अंतिम संस्कार करना तो दूर, उन्हें पूरी तरह जलाया भी नहीं गया। जिला मैजिस्ट्रेट ने इसका खंडन किया लेकिन किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया।
वॉर्डेन चरत सिंह फूट-फूट कर रोने लगे -
इस तीनों के सम्मान में तीन मील लंबा शोक जुलूस नीला गुंबद से शुरू हुआ। पुरुषों ने विरोधस्वरूप अपनी बाहों पर काली पट्टियाँ बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियाँ पहन रखी थीं। लगभग सब लोगों के हाथ में काले झंडे थे।लाहौर के मॉल से गुजरता हुआ जुलूस अनारकली बाजार के बीचोबीच रूका। अचानक पूरी भीड़ में उस समय सन्नाटा छा गया जब घोषणा की गई कि भगत सिंह का परिवार तीनों शहीदों के बचे हुए अवशेषों के साथ फिरोजपुर से वहाँ पहुंच गया है। जैसे ही तीन फूलों से ढ़के ताबूतों में उनके शव वहाँ पहुंचे, भीड़ भावुक हो गई। लोग अपने आँसू नहीं रोक पाए।उधर, वॉर्डेन चरत सिंह सुस्त कदमों से अपने कमरे में पहुंचे और फूट-फूट कर रोने लगे। अपने 30 साल के करियर में उन्होंने सैकड़ों फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी ने मौत को इतनी बहादुरी से गले नहीं लगाया था जितना भगत सिंह और उनके दो कॉमरेडों ने।किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि16 साल बाद उनकी शहादत भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का एक कारण साबित होगी और भारत की जमीन से सभी ब्रिटिश सैनिक हमेशा के लिए चले जाएंगे।
शहीद-ए-आजम का भगत सिंह नाम कैसे पड़ा -
भारत माँ के इस महान सपूत का नाम उनकी दादी के मुँह से निकले लफ्जों के आधार पर रखा गया था।जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ, उसी दिन उनके पिता सरदार किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह की जेल से रिहाई हुई थी। इस पर उनकी दादी जय कौर के मुँह से निकला 'ए मुंडा ते बड़ा भागाँवाला ए' (यह लड़का तो बड़ा सौभाग्यशाली है)।शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबरसिंह संधु के पुत्र) यादविंदरसिंह संधु ने बताया कि दादी के मुँह से निकले इन अल्फाज के आधार पर घरवालों न��� फैसला किया कि भागाँवाला (���ाग्यशाली) होने की वजह से लड़के का नाम इन्हीं शब्दों से मिलता-जुलता होना चाहिए, लिहाजा उनका नाम भगतसिंह रख दिया गया।
शहीद-ए-आजम का नाम भगतसिंह रखे जाने के साथ ही नामकरण संस्कार के समय किए गए यज्ञ में उनके दादा सरदार अर्जुनसिंह ने यह संकल्प भी लिया कि वे अपने इस पोते को देश के लिए समर्पित कर देंगे। भगतसिंह का परिवार आर्य समाजी था, इसलिए नामकरण के समय यज्ञ किया गया।यादविंदर ने बताया कि उन्होंने घर के बड़े-बुजुर्गों से सुना है कि भगतसिंह बचपन से ही देशभक्ति और आजादी की बातें किया करते थे। यह गुण उन्हें विरासत में मिला था, क्योंकि उनके घर के सभी सदस्य उन दिनों आजादी की लड़ाई में शामिल थे।हमारा उद्देश्य हमेशा रहता है की अपने इतिहास के चुनिंदा घटनाओं से आपको अवगत कराते रहे है। हमारे आर्टिकल आपको अगर पसंद आते है तो हमे अपना समर्थन दे।
पूरा जानने के लिए -http://bit.ly/319PmN5
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पूजा को सर्वोच्च न्यायालय से भी मिला झटका, ईडी को नोटिस, 2जनवरी को जमानत पर होगी सुनवाई
पूजा को सर्वोच्च न्यायालय से भी मिला झटका, ईडी को नोटिस, 2जनवरी को जमानत पर होगी सुनवाई
रांची/नई दिल्ली। मनरेगा घोटाला और मनी लॉड्रिंग की आरोपित निलंबित आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने ईडी को नोटिस जारी करते हुए बेल पर सुनवाई की अगली तारीख 2 जनवरी को निर्धारित कर दी। सुप्रीम कोर्ट में आरोपित पूजा सिंघल की जमानत पर सुनवाई में भाग लेते उनके वकील ने दलील दी। इसके पश्चात ईडी के वकील ने अपना पक्ष रखते हुए कहा…
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After Being Fired, Twitter CFO Ned Segal Changes His Bio, Says "Current Fan Of Twitter"
After Being Fired, Twitter CFO Ned Segal Changes His Bio, Says “Current Fan Of Twitter”
एलोन मस्क ने ट्विटर के सीईओ पराग अग्रवाल और मुख्य वित्तीय अधिकारी नेड सेगल को निलंबित कर दिया। अरबपति एलोन मस्क ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के प्रमुख बनने के लिए एक ट्विटर अधिग्रहण की लड़ाई पूरी कर ली है, जिसमें उन्होंने “जबरदस्त क्षमता” को उजागर करने का वादा किया है। इसके तुरंत बाद, उन्होंने कई अमेरिकी मीडिया आउटलेट्स के अनुसार, ट्विटर के सीईओ पराग अग्रवाल, मुख्य वित्तीय अधिकारी नेड सेगल और…
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महासमुंद । जिले में 1 अप्रैल से सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण, बेरोजगारी भत्ता, मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना के काम करने हैं। पूरा अप्रैल महीने महत्वपूर्ण कार्य किए जाने हैं। इसलिए सभी तैयारियां पूरी कर ली जाएं। ये बातें कलेक्टर निलेशकुमार क्षीरसागर Collector Nileshkumar Kshirsagar ने मंगलवार को समय-सीमा की बैठक के दौरान कही। उन्होंने कहा कि सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण के लिए तकनीकी जानकारी रखने वाले शासकीय अधिकारी-कर्मचारियों को दायित्व दिया गया है। इसके साथ ही मास्टर ट्रेनर भी नियुक्त कर दिए है। जिन्हें प्रशिक्षण दिया गया है। सभी सावधानी बरतते हुए काम करें। बैठक कलेक्टर की अध्यक्षता में कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में आयोजित हुई। बैठक में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत एस. आलोक, वनमंडलाधिकारी पंकज राजपूत, अपर कलेक्टर दुर्गेश वर्मा, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एसआर बंजारे सहित विभिन्न विभागों के जिला स्तरीय अधिकारी उपस्थित थे। कलेक्टर क्षीरसागर ने कहा कि ये कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता के हैं। अतः पूरी जवाबदेही के साथ सम्पन्न करें। उन्होंने सर्वेक्षण कार्य की मुख्य बातें बताते हुए कहा कि यह कार्य महत्वपूर्ण है, यह पूरे महीने तक चलेगा। पहले मकानों की अच्छे पेंट से नंबरिंग कर लें। उन्होंने कहा कि मकान का फोटो खींचे तो उसमें मकान का नम्बर और मुखिया का तस्वीर स्पष्ट दिखना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसी तारीख से बेरोजगारी भत्ता के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी किए जाने हैं। इसके लिए छत्तीसगढ़ शासन कौशल विकास तकनीकी शिक्षा एवं रोजगार विभाग द्वारा ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया गया है। इसमें आवेदन की अभी कोई अंतिम सीमा नहीं है। यह पोर्टल 24 घंटे काम करेगा। बेरोजगारी भत्ता के लिए युवाओं को इधर-उधर घूमने की जरूरत नहीं ऑनलाइन प्रविष्टि कर सकते हैं। कलेक्टर ने मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना में कहा कि जिले के बड़े किसानों को इसकी जानकारी देते हुए उन्हें जमीन पर पेड़ लगाने कहा जाए और इस योजना के लाभ के बारे में भी बताया जाए। वनमंडलाधिकारी पंकज राजपूत ने बताया कि जिले में ढाई हजार हेक्टेयर लक्ष्य निर्धारित है। इस योजना में पांच एकड़ से अधिक क्षेत्र में पौध रोपण के लिए 50 प्रतिशत वित्तीय अनुदान शासन द्वारा हितग्राही को प्रदान किया जाता है। इससे ग्रामीण किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं। सीईओ जिला पंचायत एस. आलोक ने बैठक में अवगत कराया कि नरेगा में दिए गए लक्ष्य 55 लाख 27 हजार मानव दिवस के विरुद्ध अब तक 54 लाख 16 हजार मानव दिवस ��ोजगार सृजित किए गए है। वित्तीय वर्ष समाप्ति तक दिए गए लक्ष्य पूरा हो जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि जिले में अमृत सरोवर 58 पूर्ण हो गए हैं। इसमें कृषि विभाग का पूरा सहयोग मिला है। शेष अमृत सरोवर का सौंदर्यीकरण कार्य भी किया जा रहा है। उप संचालक रोजगार ने बैठक में जानकारी देते हुए बताया कि आवेदक का छत्तीसगढ़ का मूल निवासी होना चाहिए। आवेदन की जाने वाले वित्तीय वर्ष के लिए 1 अप्रैल को आवेदक की आयु 18 से 35 वर्ष के बीच होनी चाहिए। आवेदक मान्यता प्राप्त बोर्ड से न्यूनतम हायर सेकेंडरी (12वीं) उत्तीर्ण होना चाहिए। उसका जिला रोजगार एवं स्वरोजगार मार्गदर्शन केन्द्र में पंजीकृत हो एवं आवेदन के वर्ष के 1 अप्रैल को हायर सेकेण्डरी अथवा उससे अधिक के योग्यता में उसका रोजगार पंजीयन 2 वर्ष पुराना हो। इसके अलावा आवेदक के आय का कोई स्त्रोत न हो एवं आवेदक के परिवार के समस्त स्रोतों से आय ढाई लाख वार्षिक से अधिक न हो वे पात्र होंगे। कलेक्टर क्षीरसागर ने बारी-बारी से निलंबित प्रकरणों और उनके निराकरण की जानकारी ली। उन्होंने कहा कि अविवादित भूमि प्रकरणों का निराकरण समय पर करें। जन चौपाल के आवेदनों को भी समय-सीमा में निराकृत करें।
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सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र
परिचय
भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपील का अंतिम न्यायालय है और सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय है। इसे अपने पवित्र कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम बनाने के लिए, इसे बहुत व्यापक अधिकार क्षेत्र प्रदान किया गया है। न्यायालय, अधीनस्थ (सबोर्डिनेट) न्यायालयों के आदेशों की अपील सुनता है, संविधान की व्याख्या और समर्थन करता है, नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है और अंतर्राज्यीय (इंटरस्टेट) विवादों का समाधान करता है।
ऐतिहासिक अवलोकन
सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास का पता भारत सर���ार अधिनियम, 1935 से लगाया जा सकता है। अधिनियम ने संघीय (फेडरल) न्यायालय की स्थापना की, जो संघीय राज्यों और प्रांतों (प्रोविंस) के बीच विवादों पर निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार था। इसके अलावा, संघीय न्यायालय को उच्च न्यायालयों से अपील सुनने का भी अधिकार था। सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र और शक्तियां संघीय न्यायालय के समान हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान है। सर्वोच्च न्यायालय 28 जनवरी, 1950 को चालू हुआ, और भारत के सर्वोच्च न्यायालय की अध्यक्षता करने वाले पहले न्यायाधीश माननीय श्री न्यायमूर्ति हरिलाल जेकिसुंदस कानिया थे।
सर्वोच्च न्यायालय का मूल अधिकार क्षेत्र
मूल अधिकार क्षेत्र अदालत की वह शक्ति है कि वह मामले को पहले दृष्टांत के न्यायालय के रूप में सुने और निर्णय दे। अनुच्छेद 131 सर्वोच्च न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट करता है। यह प्रदान करता है कि न्यायालय मूल अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए सक्षम होगा: - केंद्र सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच विवादों में, - ऐसे विवादों में, जहां केंद्र सरकार और एक या अधिक राज्य एक पक्ष का गठन करते हैं और एक या अधिक राज्य दूसरे पक्ष का गठन करते हैं, - दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवादों में। - बंदी प्रत्यक्षीकरण (हेबियस कॉर्पस) : रिट यह सुनिश्चित करने के लिए कि हिरासत कानूनी है या गैरकानूनी, बंदी को अदालत के समक्ष पेश करने का आदेश देती है।44वें संविधान संशोधन के प्रभाव के आधार पर, जो यह प्रावधान करता है कि अनुच्छेद 21 को आपातकाल की घोषणा के समय भी निलंबित नहीं किया जा सकता है, बंदी प्रत्यक्षीकरण का रिट आपातकाल के समय भी प्रभावी ढंग से जारी किया जा सकता है। - क्यू वारंटो : यह रिट एक अदालत द्वारा एक सार्वजनिक अधिकारी को जारी की जाती है जिसमें उसे अपने कार्यों के पीछे के अधिकार की व्याख्या करने की आवश्यकता होती है। लोक अधिकारी को उस प्राधिकरण (अथॉरिटी) को साबित करना आवश्यक होता है जिसके द्वारा वह पद धारण कर रहा है और सार्वजनिक कार्यालय की शक्तियों का प्रयोग कर रहा है। यह रिट आम तौर पर सार्वजनिक पदों पर बैठे कार्यकारी (एक्जीक्यूटिव) अधिकारियों के खिलाफ जारी की जाती है। - परमादेश (मैंडेमस) : अदालत ने एक सरकारी अधिकारी को अपने सार्वजनिक कर्तव्य के निर्वहन (डिस्चार्ज) को फिर से शुरू करने का निर्देश देने के लिए परमादेश का एक रिट जारी किया। यह ध्यान देने योग्य है कि यह रिट किसी निजी व्यक्ति, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, भारत के राष्ट्रपति या किसी भी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ जारी नहीं की जा सकती है। - निषेध (प्रोहिबिशन) : न्यायालय यह रिट किसी अधीनस्थ न्यायालय को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने या हड़पने या कानून के उल्लंघन में कार्य करने से रोकने के लिए जारी करता है। यह रिट उस समय जारी की जाती है जब एक अधीनस्थ न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र से अधिक मामले की सुनवाई करने का निर्णय लेता है। - सर्चियोररी : जहां अधीनस्थ न्यायालय किसी ऐसे मामले का निर्णय करता है जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है या जहां मामला नैसर्गिक (नेचुरल) न्याय सिद्धांतों के उल्लंघन में तय किया गया है, न्यायालय को सर्चियोररी की रिट जारी करने का अधिकार है, जिससे गलत निर्णय को रद्द किया जा सकता है। - एम. इस्माइल फारूकी बनाम भारत संघके मामले में, राष्ट्रपति ने बाबरी मस्जिद की जगह में एक मंदिर था या नहीं, इस मुद्दे पर न्यायालय की सलाहकार राय मांगी। हालांकि, न्यायालय ने माना कि राष्ट्रपति को न्यायालय की राय लेने के लिए उचित कारण बताना चाहिए। न्यायालय ने आगे कहा कि जहां वह कारणों को अनुचित मानता है, वहां वह सलाहकार राय देने के लिए बाध्य नहीं है। न्यायालय ने इस आधार पर अपनी सलाहकार राय देने से इनकार कर दिया कि संदर्भ अनावश्यक था। - रीकेरल शिक्षा विधेयक बनाम अज्ञात (1958), में केरल शिक्षा विधेयक, 1957 केरल राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किया गया था और राष्ट्रपति ने इसके कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता पर सर्वोच्च न्यायालय की राय मांगी थी। राज्यपाल ने विधेयक पर अपनी सहमति नहीं दी थी और राष्ट्रपति के विचार की मांग की थी। न्यायालय के सामने जो मुद्दा आया वह यह था कि क्या विधेयक के प्रावधानों के संबंध में सलाहकार राय मांगी जा सकती है, जिसे अभी तक एक क़ानून के रूप में शामिल नहीं किया गया है। न्यायालय ने अनुच्छेद 143 के दायरे और उद्देश्यों के संबंध में कई टिप्पणियां कीं: - न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 143(1) में प्रावधान है कि न्यायालय संदर्भित मामले पर राष्ट्रपति को अपनी राय दे सकता है और इसलिए सलाहकार राय न्यायालय का विवेकाधीन अधिकार क्षेत्र है और न्यायालय राष्ट्रपति को राय देने के लिए बाध्य नहीं है। - हालाँकि, केवल इसलिए कि कोई विधेयक कानून के रूप में लागू नहीं हुआ है, न्यायालय के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से इनकार करने का कोई आधार नहीं हो सकता है। - न्यायालय ने आगे कहा कि अनुच्छेद 143 का उद्देश्य राष्ट्रपति मामले को सर्वोच्च न्यायालय में भेजकर कानून के एक प्रश्न के संबंध में अपनी शंकाओं को दूर करने में सक्षम बनाना है। - न्यायालय ने माना कि वह केवल उस प्रश्न पर विचार करेगा जिसे राष्ट्रपति द्वारा संदर्भित किया गया था और यह प्रश्न के दायरे से बाहर नहीं जा सकता है। - न्यायालय ने आगे अनुच्छेद 143(1) और अनुच्छेद 143(2) के तहत किए गए संदर्भ के बीच अंतर किया। अनुच्छेद 143(2) में यह प्रावधान है कि जहांअनुच्छेद 131 के परंतुक (प्रोविसो) में प्रदान किया गया ऐसा मामला राष्ट्रपति द्वारा न्यायालय को भेजा जाता है, वहां न्यायालय राष्ट्रपति को अपनी राय प्रदान करेगा। अनुच्छेद 131 के प्रावधान में समझौतों, संधियों, या अन्य ऐसे उपकरणों से उत्पन्न विवादों के संबंध में न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र को शामिल नहीं किया गया है जो संविधान के प्रभाव में आने से पहले दर्ज किए गए थे। न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 143(1) न्यायालय को अपनी राय देने के लिए विवेकाधीन बनाता है, अनुच्छेद 143 (2) राष्ट्रपति द्वारा संदर्भित मामलों में न्यायालय को अपनी राय देना अनिवार्य बनाता है। - जहां किसी व्यक्ति को बरी करने के आदेश को उलटते हुए उच्च न्यायालय द्वारा मौत की सजा सुनाई जाती है। - जहां उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय से मामले को वापस लेता है और मुकदमा चलाता है और बाद में आरोपी को मौत की सजा देता है। - नए साक्ष्य की खोज : पीड़ित पक्ष नए महत्वपूर्ण साक्ष्य की खोज पर समीक्षा के लिए अपील कर सकता है। हालांकि, यह ध्यान रखना उचित है कि समीक्षा के लिए आवेदन करने वाले पक्ष को यह दिखाना होगा कि पक्षों द्वारा उचित परिश्रम के अभ्यास के बावजूद इस तरह के नए सबूत पहले नहीं खोजे जा सके। यदि यह दिखाया जाता है कि पक्ष की लापरवाही के कारण पहले चरण में सबूतों का पता नहीं चला था, तो आवेदन विफल हो जाएगा। - स्पष्ट त्रुटि: जहां “रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटि” है, तो न्यायालय द्वारा समीक्षा की अनुमति दी जा सकती है। त्रुटि महत्वपूर्ण होनी चाहिए और अपील करने वाले पक्ष को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने वाली होनी चाहिए। त्रुटि किसी भी तर्क की आवश्यकता के बिना स्पष्ट होनी चाहिए। - कोई पर्याप्त कारण : जहां न्यायालय को लगता है कि समीक्षा की अनुमति देने के लिए पर्याप्त कारण है, वह पीड़ित पक्ष के समीक्षा आवेदन की अनुमति दे सकता है। - सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है और इसकी व्याख्या अंतिम होग��। - संविधान काअनुच्छेद 141 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानूनों को बाध्यकारी बल प्रदान करता है। कानून के एक ही प्रश्न पर विचार करते समय न्यायालय के निर्णयों का पूर्वगामी (प्रीसीडेंशियल) महत्व होता है। इसके अलावा, न्यायालय के फैसलों को समग्र रूप से पढ़ा जाना चाहिए। यहाँ तक कि न्यायालय के एकपक्षीय (एक्स पार्टे) निर्णय भी अधीनस्थ न्यायालयों के लिए बाध्यकारी होते हैं। - सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कामकाज के लिए नियमों और प्रक्रियाओं की स्थापना की है। इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भी न्यायालय के कॉलेजियम की सिफारिश पर की जाती है। - सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्राप्त है। यह विधायिका द्वारा पारित कानूनों की समीक्षा कर सकता है और यदि वे मौलिक अधिकारों या संविधान के किसी अन्य प्रावधान का उल्लंघन करते पाए जाते हैं तो उन्हें शून्य घोषित कर सकते हैं। - इसके अलावा, अनुच्छेद 137न्यायालय को अपने निर्णयों और आदेशों की समीक्षा करने की शक्ति प्रदान करता है। - सर्वोच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो और मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए रिट भी जारी कर सकता है। - न्यायालय उन लोगों को दंडित कर सकता है जो उसके आदेशों का पालन करने से इनकार करते हैं या जो न्यायालय के खिलाफ निंदनीय और अपमानजनक टिप्पणी करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना के लिए दंड देने की शक्ति की परिकल्पनाअनुच्छेद 129 के तहत की गई है ।
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय भारत में न्यायालयों के पदानुक्रम (हायरार्की) के शीर्ष पर है। यह एक व्यापक अधिकार क्षेत्र का आनंद लेता है और देश में कानून के शासन को सुनिश्चित करने और विधायिका और कार्यपालिका पर नियंत्रण रखने के लिए जिम्मेदार है। यह स्पष्ट है कि सर्वोच्च न्यायालय को वह अधिकार क्षेत्र प्रदान किया गया था जो संघीय न्यायालय के साथ-साथ प्रिवी काउंसिल द्वारा प्राप्त किया गया था। संसद न्यायालय के व्यापक अधिकार क्षेत्र को और भी बढ़ा सकती है। हालाँकि, संसद का कोई भी अधिनियम न्यायालय के अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र को कम या सीमित नहीं कर सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
· कौन सा अनुच्छेद सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों को लागू करने वाले रिट जारी करने की शक्ति प्रदान करता है?
अनुच्छेद 32.
·अन्य देशों के शीर्ष न्यायालयों की तुलना में भारत के सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र कितना विस्तृत है?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय को अन्य देशों के संघीय न्यायालयों की तुलना में व्यापक अधिकार क्षेत्र वाला कहा जा सकता है। यूनाइटेड किंगडम में, सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने का अधिकार नहीं है। आयरलैंड के साथ-साथ जापान में, शीर्ष अदालतें मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए संघीय अधिकार क्षेत्र का आनंद नहीं लेती हैं। ऑस्ट्रेलियाई सर्वोच्च न्यायालय का कोई सलाहकार अधिकार क्षेत्र नहीं है। जहां तक यूएस सर्वोच्च न्यायालय का संबंध है, न्यायालय के पास राज्य की अदालतों की कुछ अपीलों को सुनने का अधिकार क्षेत्र नहीं है। भारत में, सर्वोच्च न्यायालय सभी निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों से अपील सुन सकता है। इसके अलावा, यूएस सर्वोच्च न्यायालय को सलाहकार अधिकार क्षेत्र का भी आनंद नहीं मिलता है।
· उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) का सिद्धांत किस मामले में निर्धारित किया गया था?
रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा (2002) के ऐतिहासिक मामले में, अदालत के सामने यह सवाल उठा कि क्या समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद पीड़ित व्यक्ति द्वारा दूसरी समीक्षा को प्राथमिकता दी जा सकती है। न्यायालय के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि उपचारात्मक याचिका के रूप में दूसरी समीक्षा को न्याय के किसी भी बड़े पैमाने पर विफलता को सुधारने की अनुमति दी जा सकती है। न्यायालय ने इस प्रकार माना कि न्याय की विफलता का शिकार न्यायालय के अंतिम आदेश से दूसरी अपील कर सकता है। न्यायालय ने माना था कि “दुर्लभतम से दुर्लभतम मामलों ” में, मनुष्यों की गलती के कारण, पुनर्विचार की आवश्यकता हो सकती है और न्याय की सकल विफलता को सुधारने के लिए अंतिम आदेश की दूसरी समीक्षा की आवश्यकता हो सकती है।
· जनहित याचिका की अवधारणा किस मामले में निर्धारित की गई थी?
मुंबई कामगार सभा बनाम मेसर्स अब्दुलभाई फैजुल्लाभाई और अन्य (1976) के ऐतिहासिक मामले में, श्रमिक संघ द्वारा श्रमिकों और उनके नियोक्ताओं के बीच विवाद के संबंध में एक अपील दायर की गई थी। उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि चूंकि संघ विवाद का पक्ष नहीं था, इसलिए इस मामले में उसका कोई अधिकार नहीं था। हालाँकि, न्यायालय ने जनहित के आधार पर संघ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ा दिया। इस मामले को भारत में जनहित याचिका के विकास की शुरुआत माना जाता है। Read the full article
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