#इतने दिन तक रहेंगे बंद
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School closed: स्कूलों की छुट्टी का ऐलान, बढ़ती गर्मी को देखते हुए लिया गया फैसला, इतने दिन तक रहेंगे बंद
School closed : पहाड़ी इलाकों में भारी बर्फबारी तो मैदानी इलाकों में भीषण गर्मी का प्रकोप देखा जा रहा है। बढ़ते तापमान को देखते हुए कई राज्यों ने स्कूलों के समय में बदलाव किया है तो किन्हीं राज्यों में तो गर्मी से हालात इतने खराब हैं कि स्कूलों की छुट्टियां तक करनी पड़ गई हैं। हाल ही में गर्मी को देखते हुए महाराष्ट्र राज्य में भी स्कूलों को बंद कर दिया गया है। छुट्टियों का हुआ ऐलान School closed…
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गांधी जयंती से लेकर क्रिसमस तक इतने दिन बंद रहेगा शेयर बाजार, देखें पूरी लिस्ट
मौजूदा कैलेंडर ईयर के आखिरी के तीन महीने बाकी हैं. ये तीन महीने त्योहारों से भरे हुए होते हैं. ऐसे में कई तरह की छुट्टियां भी होती हैं. इन छुट्टियों में कई तरह के काम बंद होते हैं. ऐसा ही कुछ शेयर बाजार के साथ है. गांधी जयंती से लेकर क्रिसमस तक कई तरह की छुट्टियां हैं, जिसकी वजह से शेयर बाजार भी बंद रहेंगे. इसी दौरान बीएसई हॉलिडे कैलेंडर के अनुसार इन तीन महीनों में सिर्फ शेयर बाजार ही नहीं बल्कि…
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Alcohol lovers के लिए एक ज़रूरी खबर सामने आयी है, ये तो हम जानते ही है की हम एलेक्शंस की तरफ एप्रोच कर रहे है जिसके चलते दिल्ली में कई दिन dry day announce किया गया है, तो आइये जानते है कब होगा दिल्ली में dry day Id-ul-Fitr (April 11), Ram Navami (April 17), Mahavir Jayanti (April 21), Buddha Purnima (May 23), and Id-ul-Zuha (June 17) को दिल्ली में dry day होगा इसके आलावा April 24 शाम 6 बजे के बाद से लेकर April 26 शाम 6 बजे तक Uttar Pradesh के Ghaziabad और Gautam Budh Nagar में भी liquor stores बंद रहेंगे, और दिल्ली में May 23 6 बजे के बाद से May 25 6 PM तक भी ठेके बंद रहेंगे इसके साथ ही साथ June 4 को भी दिल्ली में Dry Day ही रहेगा |
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आपकी धार्मिक भावनाओं की ठेसदानी बहुत छोटी है जनाब!
ध्यान दें, कहीं फट न जाए!
Originally published at https://randompearls.com on August 12, 2020.
यह ठेसदानी क्या है?
हमारे शरीर में कुछ थैले-नुमा अंग होते हैं। इन्हें संस्कृत में ‘आशय’ और आम बोलचाल की भाषा में ‘दानी’ कहते हैं। जैसे पित्ताशय या पित्त-दानी जिसमें पित्त जमा होता है, बच्चेदानी जिसमें बच्चा पलता है। ऐसे ही एक अंग होता है (जिसका अभी तक विज्ञान को पता नहीं लगा है) ठेसदानी! इसका कार्य होता है हमारे मन पर लगी ठेसों को, चोटों को ग्रहण और संग्रहण (जमा) करना। चोटें आती हैं, ठेसदानी में कुछ देर, कुछ दिन, कभी-कभी कुछ साल रहती हैं, फिर भुला दी जाती हैं। लेकिन अगर यह ठेसदानी छोटी हो तो जल्दी भर जाती है, और फिर हिलने लगती है। फिर यह हमें भी तकलीफ देती है और हमारे आस-पास वालों को भी। अगर अहंकार बड़ा हो तो यह ठेसदानी बेहद छोटी हो जाती है, इसलिए जल्दी भरने लगती है। और फिर यह हमें दिन रात दोज़ख की आग की तरह जलाती है।
खामोश!
“खामोश! मेरी धार्मिक भावनाओं को आपने ठेस पहुँचा दी है। इसलिए अब आपको इस गुनाह की माफी माँगनी होगी। और आइंदा कभी मेरी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाने की हिमाक़त न करियेगा।"
यही सुनते आ रहें हैं न आप बचपन से।
आखिर कब तक बर्दाश्त करते रहेंगे यह सब? इस पागलपन की कोई इंतहा है? लेकिन आप भी क्या करें, आपकी अपनी धार्मिक भावनाओं वाली ठेसदानी भी तो छोटी है। आज उनके मज़हबी जज़्बात को चोट पहुँच गयी है तो वे पागल हो गए हैं। अगर आप कुछ बोले कि “पागल मत बनो, वगैरह”, और कल आपकी धार्मिक भावनाओं को छेड़ दिया गया, फिर? फिर आप कैसे पागल बनेंगे? बवाल काटेंगे? तो इसलिए आप भी चुप रहते हैं, बोलते हैं भी तो बस यह कि “याद रखना आज तुमको पागल बनने की स्वीकृति दी है, कल तुम मुझे दे देना”।
कहना तो यह चाहिए कि “बंद करो बकवास ये, न तुम्हारा कुछ बिगड़ा है, न तुम्हारे बाप या दादा का। अब अगर हजारों साल पहले हुए किसी इंसान से, या किसी किताब से, तुम ग़ैर-फ़ितरी तौर से, असामान्य रूप से जुड़ गए हो, और उसमें किसी ने कोई कमी निकाल दी है, तो इसमें उसका या बाकियों का गुनाह क्या है? कोई सम्राट अशोक के बारे में अपनी बुरी राय ज़ाहिर करे, या जूलियस सीज़र के बारे में, तो ज़्यादा से ज़्यादा तुम अपनी नापसंदगी ज़ाहिर कर सकते हो (अगर वे तुम्हें पसंद हों तो), मग़र offend होना तो दूर, तुम्हें बोलने वाले को चुप कराने का भी कोई कानूनन हक़ नहीं है। तुम चाहे सम्राट अशोक को, या जूलियस सीज़र को, या किसी भी ऐरे-ग़ैरे-नत्थू-खैरे को अपना मालिक़-ए-रूह मान लो, दूसरे को तो ऐसा नहीं मनवा सकते न? और जो तुम्हारे मन का स्वामी है, वह बिल्कुल किसी दूसरे के लिए ऐरा-ग़ैरा हो सकता है, इसमें क्या गलत है?”
लेकिन बजाय यह कहने के, कहते आप यह हैं “अच्छा, तुम्हारी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँची तो तुमने इतना हल्ला मचाया? मैं भी अब इंतज़ार में हूँ। मुझे भी पर्मिट मिल गया। अगली बार ज़रा कोई मेरी धार्मिक भावनाओं को छू के देखे, न बवंडर मचा दिया तो कहना? मैं क्यों चुप रहूँ? तुम डाल-डाल तो हम पात-पात! आज तुम्हारे पैगम्बर के बारे में कुछ बोला गया तो तुम्हारी ठेसदानी हिल गयी, कल जब मेरे राम, कृष्ण के बारे में कुछ बोला जायेगा तो मैं अपनी हिला लूँगा”।
इसे कहते हैं खरबूजे का खरबूजे को देख के रंग बदलना! गणित की भाषा में कहें ‘exponential growth of stupidity’। लेकिन आप भी क्या करें – इस stupidity में, मूर्खता में क्या गज़ब का रस है! अव्वल तो दिमाग नहीं चलाना पड़ता – क्योंकि थोड़ा भी सोचेंगे तो पता लग जायेगा कि यह तो सरासर अक़्ल-ए-सलीम, common-sense से उल्टी बात है। अगर समाज में हम धार्मिक भावनाओं के नाम पर offend होने की इजाज़त दे दें, तो फिर तो कोई कुछ ���ोल ही नहीं सकता, मतलब कुछ भी नहीं।
क्योंकि कुछ भी किसी की धार्मिक भावनाओं की ठेसदानी को हिला सकता है। किसी के धर्म या संप्रदाय या मज़हब के हिसाब से कुछ भी, वाक़ई कुछ भी आहत करने वाला हो सकता है। उदाहरण के लिए किसी की किताब या परम्पराओं के हिसाब से हिटलर परमपूज्य है, भगवान-स्वरूप है तो इतिहास की किताबों में से हिटलर की बुराइयाँ निकाल दी जाएँ! बिल क्लिंटन देवादिदेव है तो उसके बारे में बुरी राय जताना बंद! जवाहर लाल नेहरू सबसे ज़्यादा काबिल-ए-एहतराम हैं, तो उनकी कमियों की चर्चा करना बंद। और कमियों की ही क्यों, “किताब” के हिसाब से तो बस चर्चा करना भी कुफ़्र हो सकता है, तो बस इन सब की चर्चा करना बंद! क्योंकि किसी की धार्मिक किताब या धार्मिक परम्पराओं पर प्रश्न उठाना तो allowed नहीं है... बस किताब में लिखा है, या लोग ऐसा करते आए हैं, इतना काफी है।
अगर कोई कहे कि किताब का पुराना होना ज़रूरी है, तो भई कितना पुराना? 5000 साल? 1000, 500, 300? कहाँ लकीर खींचेंगे? फिर अगर कोई कहे कि उस धर्म के काफी लोग होने चाहिए? तो काफी मतलब? और minority की, अल्पसंख्यकों की इज्ज़त नहीं करेंगे आप? करेंगे न? तो अगर मैं सौ-पचास लोगों को लेकर आ जाऊँ और बोलूँ कि “मेरे इस नए मज़हब के हिसाब से सार्वजनिक शौचालय नहीं होने चाहिएँ – यह हमारे लिए offending है”, तो क्या सरकार को सब स्कूलों से, माल्स से, कार्यालयों से शौचालय हटा देने चाहिएँ? मज़हब का मामला है भई!
ऐसा नहीं होना चाहिए न? मैं आपको बुरा बोलूँ, या आपकी किसी आदत पर प्रश्नचिन्ह लगाऊँ, आप बुरा मान सकते हैं, निश्चित ही offend हो सकते हैं। फिर भी कानून तो हाथ में नहीं ले सकते, लेकिन हाँ offend होना जायज़ है, लाज़मी तो नहीं है, जायज़ है। आपके माँ-बाप को बुरा बोलूँ तो भी offend हो सकते हैं। ठीक है��� हालाँकि उस पर भी सरकार को मुझे चुप कराने का कोई हक़ नहीं है। क्योंकि फिर तो विकास दुबे, विजय माल्या आदि सबके बच्चों को आ जाना चाहिए मैदान में कि नहीं साहब, हम offend हो रहें हैं, उनकी बुराई करना, उनको तंग करना वगैरह सब बंद करो। लब्बोलुआब यह कि समाज में किसी को किसी भी इंसान, परंपरा या विचार के बारे में अच्छी या बुरी राय ज़ाहिर करने का हक़ होना चाहिए, फिर चाहे वह इंसान जीवित हो, किसी का बाप-दादा हो, या आप उस इंसान को या उस परंपरा या विचार को पागलों की तरह प्यार करते हों।
हाँ वह इंसान अगर आप हों, आपका कोई रिश्तेदार या दोस्त वगैरह हो जिससे आप कभी व्यक्तिगत, वैयक्तिक रूप से जुड़े रहें हों, तो आप उस बुरा बोलने वाले पर मान-हानि का केस कर सकते हैं। इतना समझ में आता है।
लेकिन वह इंसान अगर सैकड़ों-हजारों साल पहले मर खप गया हो, फिर तो किसी को offend होना तो दूर, hurt भी नहीं होना चाहिए। लेकिन चलिये hurt हो सकता है, उदास हो सकता है, दुखी हो सकता है, अपने उल्टे विचार प्रकट कर सकता है, इस से ज़्यादा किसी को कुछ करने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए। फसाद करना तो दूर, मान-हानि का केस करने की भी नहीं।
और इंसान नहीं अगर परम्पराओं की, विचारों की बात हो रही हो तब तो offend होने की बात भी करना बेमानी है। धर्म, मजहब, सम्प्रदाय - ये सब विचार हैं, अवधारणाएँ हैं। जैसे कम्यूनिस्म एक विचार है, फासिस्म एक विचार है। हो सकता है आपने इनमें से किसी को अपना माइबाप मान लिया हो, आपका अत्यधिक भावनात्मक जुड़ाव हो गया हो किसी विचार से। तो दूसरों को इनके बारे में बोलने से रोकने का आपको लाइसेन्स नहीं मिल जाता। दूसरे इन विचारों के बारे में क्या सोचते हैं, क्या कहते हैं, उस पर आपकी पसंदगी-नापसंदगी के हिसाब से रोक लगाना निहायत ही हास्यास्पद बात है।
उपरोक्त व्यवस्था एक सामान्य, सभ्य समाज की मूलभूत आवश्यकता है। लेकिन इतना सोचने-समझने में भी 5-10 मिनट तो लग ही जाते हैं। इतना क्यों सोचिएगा आप, सर नहीं फट जाएगा? तो पहली बात तो यह कि आहत होने में, ठेसित होने में दिमाग़ को आराम मिल जाता है। लेकिन यह तो दीगर बात है।
असल बात तो है ego का boost-up, अहम् का, अहंकार का बढ़ावा, खुदी का इजाफा। आहाहा! क्या मधुर स्वाद है… मैं खुद तो कुछ हूँ नहीं, औकात मेरी ज़ीरो है, बिसात मेरी टके आने की भी नहीं। वैसे इसमें अपने आप में कोई खराब बात नहीं है, कोई ज़रूरी नहीं है कुछ होना। लेकिन मन तो मेरा भी करता है कि मेरी भी कोई रुतबेदार, हैसियतदार शख्सियत होती, कोई प्रतिष्ठित व्यक्तित्व होता, मैं भी कोई राजाधिराज, स्वामिनारायण होता। लोग मेरे सामने ��ुक के खड़े होते, सलाम पे सलाम ठोंकते, या पैर छू के हाथ माथे पर लगाते। अब इस मन का क्या करें? सीधी सी युक्ति है – क्यों न मैं अपनी ego को किसी बड़ी शख्सियत से attach कर लूँ, अपने होने को किसी नामचीन संस्था से जोड़ लूँ, क्यों न अपनी दो टके की कीमत छिपाने के लिए अपने ऊपर कोई जाना-पहचाना लेबल लगा लूँ? क्यों न बस एक मामूली इंसान की बजाए हिन्दू, मुसलमान बन जाऊँ?
अरे पता है, हिन्दू हूँ मैं... अपने जीवन में तो मैंने खाक कुछ नहीं किया, लेकिन अपने हिन्दू पूर्वजों का क्या वर्णन करूँ – पूरा संसार हिला के रख दिया था। कितने प्रश्नों के उत्तर ढूँढ लिए थे उन्होंने, कितनी तरह की तकनीकें ईजाद कर लीं थीं, वीरता में सर्वोपरि थे, और अगाध बुद्धि के धनी थे... मैं, पता है मैं, उन्हीं की हिन्दू परंपरा का अनुयायी हूँ, मुझे कम मत समझना!
मैं? मैं मुसलमान हूँ। अल्लाह-तआला ने खुद हमारे पैगंबर को इल्हाम दिया था। क्या गज़ब बात है! मैं उसी नबी की रवायत का मुरीद हूँ। हर सवाल का जवाब फरमाया है अल्लाह मियाँ ने हमारे मज़हब में, हमारे नबी को। ये जो आजकल तरह-तरह की खोजें करके साइन्स-ज़दा लोग खुश होते रहते हैं... ये बिग-बैंग, ये pandemic-control ये सब अल्लाह-तआला ने हमारे रसूलुल्लाह को पहले ही बयान कर दिया था। अब रही बात मेरी, मैं तो शायद दो कौड़ी का भी नहीं, लेकिन चूँकि मैं मुसलमान हूँ, इसलिए मुझे कम मत आँकना!
अब कोई पूछे जनाब कि इतनी तकनीकें, इतने जवाब तुम्हारी किताबों में पहले ही दे दिये गए थे, तो आज तक इंतज़ार किसका था? पहले क्यों नहीं बताया कभी कि दुनिया बिग-बैंग से शुरू हुई है, कितना तापमान था, क्या आकार था? विज्ञान की खोजों की प्रतीक्षा क्यों करते रहते हो भाई? जब तक विज्ञान नहीं खोजेगा, तुम कहते हो कि “देखा, तुम्हारे विज्ञान के पास इन बातों का जवाब ही नहीं है... हमारे पास है” और जवाब भी क्या है? “पता है भगवान ने बनाया है भगवान ने, अल्लाह ने, तुम्हें नहीं पता, हमें पता है। देखा, दे दिया न जवाब!” क्या माशाल्लाह जवाब है!
और फिर जैसे ही विज्ञान कुछ खोज ले, तो तुरंत तुम कहने लगते हो “अरे, हमारे यहाँ तो पहले ही बता दिया गया था, ये देखो, साफ लिखा है यहाँ पर। (और मैं इसी महान परंपरा का अनुयायी हूँ!)” अब साफ तो क्या खाक लिखा होता है! खाली पृष्ठ भी हो तुम्हारी किताब में तो कहोगे कि “देखा, मतलब साफ है, दुनिया बनने से पहले कुछ नहीं था, सब खाली था, इसलिए ये प���ज खाली है... या फिर, देखो असल में कुछ है ही नहीं, सब माया है, matter नहीं है, सब energy है इसीलिए ये पेज खाली है, हमारे यहाँ यह पहले ही पता था!”
कोई कहे कि “सरकार, थोड़ा साफ शब्दों में लिख देते जो ऐसे घुमा-फिरा के मतलब नहीं निकालना पड़ता।“ तो जवाब आता है कि “अरे यह उस समय के लोगों के हिसाब से लिखा गया था न, इसलिए इतनी सादी ज़बान इस्तेमाल की है”। मतलब एक से बढ़कर एक विज्ञान के गूढ़ रहस्य बिना किसी scientific notation के समझा दिये! अब क्या कहें इनको कि साथ-के-साथ, साइड में या फुटनोट में, ज़रा कायदे से step-by-step, क्रमा���ुसार भी समझा देते! अगर उस समय के लोगों को न समझ में आता तो न सही। बता देते कि ये सब 1500-2000 साल के बाद के लोगों के लिए है, इसलिए इतने वक़्त तक इसको मत पढ़ना। कुछ नहीं तो binary कोड में लिख देते (1, 0, 1, 0 की भाषा में), अपने आप जब समय आता तो लोग समझ जाते, उस से पहले नहीं!
वैसे तो इस तरह की हजारों बातें हैं जो “ज़्यादातर धर्मों और परम्पराओं” में पहले ही बता दी गयी हैं, लेकिन फिर भी बात निकली है तो मैं भी एक बात धीरे से कह दूँ? मैंने पुराण, उपनिषद, कुरान, बाइबल और advanced physics - ये सारी चीज़ें पढ़ीं हैं। अगर आपको वेद, पुराण, उपनिषद, कुरान, बाइबल वगैरह में बिंग-बैंग थ्योरी या थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी वगैरह की कहीं रत्ती भर भी झलक दिखती है, तो कृपा करके अपना धार्मिक ग्रंथ ज़रूर पढ़ें, या फिर से पढ़ें, लेकिन उसके पहले बेसिक और स्नातक स्तर का साइन्स का कोर्स एक बार ज़रूर पूरा करें।
लेकिन फिर वही बात हो जाती है न! इतना सोच लिया, या इतनी मेहनत कर ली तो आपकी ego का क्या होगा? वह कैसे परवान चढ़ेगी? इसलिए आप बस इतना कह देते हैं और सोच लेते हैं - “मैं हिन्दू हूँ, मुसलमान हूँ, और मेरी किताबों में, मेरी परंपरा में निरा सत्य वर्णित है। मेरी किताबों, परम्पराओं और मेरे देवी देवताओं, मेरे पैगंबर पर कोई प्रश्न उठाना तो दूर, कोई चर्चा भी मत करना, नहीं तो मेरी ठेसदानी हिलने लगेगी, हो सकता है फट भी जाये। फट गयी तो समझो ज्वालामुखी फट जाएगा। अब क्या करें, मेरी देह में मेरी ठेसदानी इतनी छोटी जो ठहरी, सारी जगह मेरी जान से प्यारी, मेरी फूली हुई ego ने जो ले ली है!”
तो इसलिए एक समझौता कर लेते हैं आप अपने जैसे अहंकारी लोगों के साथ। blasphemy law, धार्मिक-निंदा या ईश-निंदा कानून बना लेते हैं। और मन में सोच के खुश हो लेते हैं कि “वाह! क्या प्रगतिशील, understanding, progressive इंसान ��ूँ मैं। सब धर्मों का आदर करता हूँ। किसी को भी किसी भी धर्म के बारे में बुरा बोलने की इजाज़त नहीं दूँगा!” अब इसमें जो आप खुद जीत गए, कि कोई आपके मज़हब पर उंगली नहीं उठा सकता, यह इंतज़ाम जो आपने कर लिया, यह नहीं दिखता आपको। कैसे दिखे, पहाड़ सा अहम् जो आँखों के आगे खड़ा हुआ है। यह अहम् आपको पालता है, आप इसे। और इस कायदे, कानून की आड़ में सही को सही व गलत को गलत कहने वालों का (जो कि समाज के लिए बेहद ज़रूरी हैं), या इस पर चर्चा भी करने वालों का, मुँह जो आप बंद कर देते है, यह भी आपको समझ नहीं आता। क्योंकि सही-गलत पता भी चल जाये, या सिद्ध भी हो जाए तो जीवन में उतना स्वाद थोड़े न आएगा जितना अपनी खुदी को चाटने में। वह तो अपूर्व आनंद है!
आज के युग में जन्म लेकर भी यदि आप अपने दिमाग को बंद रखने में इस सीमा तक सफल हो जाते हैं कि ‘यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ जब देखो वहाँ वहाँ’ आपकी धार्मिक भावनाओं को ठेस लग जाती है, और आप इस ठेस का बदला लेने पर आमादा हो जाते हैं, तो आपके, और आपकी ठेसदानी के लिए एक पुराना शेर अर्ज़ है, थोड़े बदलाव के साथ...
कितने कमज़र्फ हैं ये गुब्बारे, जो चंद साँसों में फूल जाते हैं मज़हब का चोला डाल के कमीने, अपनी औकात भूल जाते हैं
इसी विषय पर एक बेहतरीन कविता पढ़ने के लिए यहाँ जाएँ — https://randompearls.com
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🚩 भगवान शिवजी ने अफगानिस्तान में अंग्रेज अफसर की बचाई थी जान- 26 जुलाई 2021
🚩 ज्यादातर हिंदू धर्म के लोग ही भगवान शिव को मानते हैं, उनकी पूजा करते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बताने जा रहे हैं, जो अंग्रेज था और वो भगवान शिव के प्रति सच्ची श्रद्धा रखता था। उसका दावा था कि एक बार खुद भगवान शिव उसकी जान बचाने के लिए अफगानिस्तान चले गए थे। इस अंग्रेज की कहानी बेहद ही हैरान करने वाली है।
🚩 सन 1879 की बात है । भारत में ब्रिटिश शासन था, उन्हीं दिनों अंग्रेजों ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया । इस युद्ध का संचालन आगर मालवा ब्रिटिश छावनी के लेफ़्टिनेंट कर्नल मार्टिन को सौंपा गया था । कर्नल मार्टिन समय-समय पर युद्ध-क्षेत्र से अपनी पत्नी को कुशलता के समाचार भेजता रहता था । युद्ध ��ंबा चला और अब तो संदेश आने भी बंद हो गये । लेडी मार्टिन को चिंता सताने लगी कि 'कहीं कुछ अनर्थ न हो गया हो, अफगानी सैनिकों ने मेरे पति को मार न डाला हो । कदाचित पति युद्ध में शहीद हो गये तो मैं जीकर क्या करूँगी ?'- यह सोचकर वह अनेक शंका-कुशंकाओं से घिरी रहती थी ।
🚩 चिन्तातुर बनी वह एक दिन घोड़े पर बैठकर घूमने जा रही थी । मार्ग में किसी मंदिर से आती हुई शंख व मंत्र ध्वनि ने उसे आकर्षित किया । वह एक पेड़ से अपना घोड़ा बाँधकर मंदिर में गयी । बैजनाथ महादेव के इस मंदिर में शिवपूजन में निमग्न पंडितों से उसने पूछा :"आप लोग क्या कर रहे हैं ?" एक वृद्ध ब्राह्मण ने कहा : " हम भगवान शिव का पूजन कर रहे हैं ।" लेडी मार्टिन : 'शिवपूजन की क्या महत्ता है ? ब्राह्मण :' बेटी ! भगवान शिव तो औढरदानी हैं, भोलेनाथ हैं । अपने भक्तों के संकट निवारण कर���े में वे तनिक भी देर नहीं करते हैं । भक्त उनके दरबार में जो भी मनोकामना लेकर के आता है, उसे वे शीघ्र पूरी करते हैं, किंतु बेटी ! तुम बहुत चिन्तित और उदास नजर आ रही हो ! क्या बात है ?"
🚩 लेडी मार्टिन :" मेरे पतिदेव युद्ध में गये हैं और विगत कई दिनों से उनका कोई समाचार नहीं आया है । वे युद्ध में फँस गये हैं या मारे गये है, कुछ पता नहीं चल रहा । मैं उनकी ओर से बहुत चिन्तित हूँ |" इतना कहते हुए लेडी मार्टिन की आँखे नम हो गयीं । ब्राह्मण : "तुम चिन्ता मत करो, बेटी ! शिवजी का पूजन करो, उनसे प्रार्थना करो, लघुरूद्री करवाओ । भगवान शिव तुम्हारे पति का रक्षण अवश्य करेंगे । "
🚩 पंडितों की सलाह पर उसने वहाँ ग्यारह दिन का 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र से लघुरूद्री अनुष्ठान प्रारंभ किया तथा प्रतिदिन भगवान शिव से अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगी कि "हे भगवान शिव ! हे बैजनाथ महादेव ! यदि मेरे पति युद्ध से सकुशल लौट आये तो मैं आपका शिखरबंद मंदिर बनवाऊँगी ।" लघुरूद्री की पूर्णाहुति के दिन भागता हुआ एक संदेशवाहक शिवमंदिर में आया और लेडी मार्टिन को एक लिफाफा दिया । उसने घबराते-घबराते वह लिफाफा खोला और पढ़ने लगी ।
🚩 पत्र में उसके पति ने लिखा था :"हम युद्ध में रत थे और तुम तक संदेश भी भेजते रहे लेकिन अचानक पठानी सेना ने घेर लिया । ब्रिटिश सेना कट मरती और मैं भी मर जाता । ऐसी विकट परिस्थिति में हम घिर गये थे कि प्राण बचाकर भागना भी अत्याधिक कठिन था ।| इतने में मैंने देखा कि युद्धभूमि में भारत के कोई ��क योगी, जिनकी बड़ी लम्बी जटाएँ हैं, हाथ में तीन नोंकवाला एक हथियार (त्रिशूल) इतनी तीव्र गति से घुम रहा था कि पठान सैनिक उन्हें देखकर भागने लगे । उनकी कृपा से घेरे से हमें निकलकर पठानों पर वार करने का मौका मिल गया और हमारी हार की घड़ियाँ अचानक जीत में बदल गयीं । यह सब भारत के उन बाघाम्बरधारी एवं तीन नोंकवाला हथियार धारण किये हुए (त्रिशूलधारी) योगी के कारण ही सम्भव हुआ । उनके महातेजस्वी व्यक्तित्व के प्रभाव से देखते-ही-देखते अफगानिस्तान की पठानी सेना भाग खड़ी हुई और वे परम योगी मुझे हिम्मत देते हुए कहने लगे । घबराओं नहीं । मैं भगवान शिव हूँ तथा तुम्हारी पत्नी की पूजा से प्रसन्न होकर तुम्हारी रक्षा करने आया हूँ, उसके सुहाग की रक्षा करने आया हूँ ।"
🚩 पत्र पढ़ते हुए लेडी मार्टिन की आँखों से अविरत अश्रुधारा बहती जा रही थी, उसका हृदय अहोभाव से भर गया और वह भगवान शिव की प्रतिमा के सम्मुख सिर रखकर प्रार्थना करते-करते रो पड़ी ।
🚩 कुछ सप्ताह बाद उसका पति कर्नल मार्टिन आगर छावनी लौटा । पत्नी ने उसे सारी बातें सुनाते हुए कहा : "आपके संदेश के अभाव में मैं चिन्तित हो उठी थी लेकिन ब्राह्मणों की सलाह से शिवपूजा में लग गयी और आपकी रक्षा के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करने लगी । उन दुःखभंजक महादेव ने मेरी प्रार्थना सुनी और आपको सकुशल लौटा दिया ।" अब तो पति-पत्नी दोनों ही नियमित रूप से बैजनाथ महादेव के मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे । अपनी पत्नी की इच्छा पर कर्नल मार्टिन मे सन 1883 में पंद्रह हजार रूपये देकर बैजनाथ महादेव मंदिर का जीर्णोंद्वार करवाया, जिसका शिलालेख आज भी आगर मालवा के इस मंदिर में लगा है । पूरे भारतभर में अंग्रेजों द्वार निर्मित यह एकमात्र हिन्दू मंदिर है ।
🚩 यूरोप जाने से पूर्व लेडी मार्टिन ने पड़ितों से कहा : "हम अपने घर में भी भगवान शिव का मंदिर बनायेंगे तथा इन दुःख-निवारक देव की आजीवन पूजा करते रहेंगे ।"
🚩 हिंदू भगवान, वैदिक मंत्र और हिंदू साधु-संतों में अथाह शक्ति है पर विडंबना है कि हम भारतवासी आज इनकी महत्ता भूल गए हैं और पाश्चात्य संस्कृति की तरफ जाकर अपना पतन खुद कर रहे है, अब समय है फिर से हमें अपनी संस्कृति की तरफ लौटने का...।
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उत्तराखंड से बड़ी खबर: 29 जून तक बढ़ा कोविड कर्फ्यू, इतने दिन खुलेंगी दुकानें
उत्तराखंड से बड़ी खबर: 29 जून तक बढ़ा कोविड कर्फ्यू, इतने दिन खुलेंगी दुकानें
देहरादून: उत्तराखंड से बड़ी खबर सामने आई है।उत्तराखंड सरकार के द्वारा कोविड कर्फ्यू 29 जून तक बढ़ाया गया है। हालांकि कोविड कर्फ्यू में इस बार सरकार ने डील भी दी है। 5 दिन दुकानों को खोलने का निर्णय सरकार ने लिया है। वही होटल और रेस्टोरेंट 50% की मंजूरी के साथ खुलेंगे, रात 10:00 बजे से 6:00 बजे तक होटल बंद रहेंगे। वहीं 50% उपस्थिति के साथ बार भी खुल सकेंगे । नगरीय क्षेत्रों में रात्रि को कोविड…
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12 कारण जो बनाते हैं #MonsterReloaded सैमसंग गलैक्सी M12 को आम जनता के बजट का फोन Divya Sandesh
#Divyasandesh
12 कारण जो बनाते हैं #MonsterReloaded सैमसंग गलैक्सी M12 को आम जनता के बजट का फोन
अब तक हम Samsung Galaxy M12 के बारे में बात करना बंद नहीं कर पाए हैं! Samsung ने जब से 12 सिलेब्रिटीज को इसकी #MonsterReloaded बैटरी को खत्म करने की चुनौती दी है तभी से यह स्मार्टफोन काफी चर्चा में है। 11 मार्च को इस ग्लैमरस लॉन्च के रनअप में Sarah Jane, Anga Bedi, Sayani Gupta जैसे कुछ सितारों ने पूरे दमखम के साथ इस चैलेंज को स्वीकार किया। सभी एक के बाद चैलेंज को पूरा करने में जुट गए ताकि Team M12 इस रेस को जीत सके। #MonsterReloaded को उसके खेल में हराने के बाद अगले लेवल के लिए बैटन को Varun Sood, Shriya Pilgaonkar और Sumeet Vyas के हवाले किया गया। गर्मी काफी बढ़ गई थी और इन सिलेब्स को इस मॉन्स्टर डिवाइस की बैटरी को ड्रेन करने के लिए अलग-अलग तरीके आजमाते देखा गया। सभी ने 48 MP True Resolution Camera, 8nm Exynos Processor, 90 Hz Refresh Rate और 6000mAh बैटरी को इस्तेमाल करते हुए ! इन्होंने कई फोटो क्लिक किए, बैकग्राउंट में ढेर सारे ऐप चलाए, म्यूजिक सुना, नैविगेशन को यूज किया और दौड़ के दौरान अपने फेवरिट शो भी देखे लेकिन फोन पर इसका भी कोई असर नहीं हुआ। रेस में अगली बारी- मॉडल Asim Riyaz, Sayan Bakshi, Aahana Kumra, Eesha Rabba की थी और इन सबको भी अपना बेस्ट परफॉर्मेंस देना था, लेकिन #MonsterReloaded M12 को हराने के लिए यह काफी नहीं था।
आखिरकार अमित साध पर्दा उठा और Samsung Galaxy M12 की दमदार बैटरी का लोहा माना।
183 km और 32 से ज्यादा घंटों के बाद, 12 सिलेब्रिटीज 1 मॉन्स्टर से हार गए। ये सभी बुरी तरह थक चुके थे, लेकिन M12 में इतने बड़े टास्क के बाद भी 8% की सम्मानजनक बैटरी बची थी।
अगर आपके मन में अभी भी इस फोन को ट्राई करने को लेकर कोई शक है, तो हम आपको 12 ऐसी व��ह बता रहे हैं कि क्यों यह फोन सभी मिलेनियल्स के लिए ही है। इसमें:
1. सबसे अच्छा प्रोसेसर
मिलेनियल्स The Best से कम में विश्वास नहीं करते। Samsung Galaxy M12 के साथ भी ऐसा ही है। यह आपका फोन है क्योंकि इसमें 8nm Exynos 850 SoC लगा है। शुरुआती रिसर्च आपको बताएगी कि यह प्रोसेसर अब तक केवल प्रीमियम सेगमेंट के स्मार्टफोन्स में ही देखने को मिलता है। यह कम पावर यूज करता है और बैटरी परफॉर्मेंस को बेहद काबिलियत से मैनेज करता है। यह पहली बार है जब किसी बजट फोन में BEST प्रोसेसर की एंट्री हुई है। यही वजह है कि #MonsterReloaded आपका Best बेट है।
2. तगड़ा रिफ्रेश रेट 12 हजार से कम में आने वाले आजकल के ज्यादातर फोन 60Hz तक का ही रिफ्रेश रेट ऑफर कर पाते हैं, जो यूजर को काफी निराशाजनक ग्लिची एक्सपीरियंस देता है। Samsung Galaxy M12 के साथ, फास्ट 90Hz रिफ्रेश रेट वाला HD पैनल अभूतपूर्व स्मार्टफोन एक्सपीरियंस दे पाता है। ऐसा परफॉर्मेंस की मिलेनियल्स को हमेशा से चाहत थी! Samsung कहता है कि आप यह DESERVE करते हैं। यही वजह है कि यहां 12 हजार से कम में एक हाई क्वालिटी, यूजर-फ्रेंडली और फास्ट स्मार्टफोन है जिसे आप बिना रुके ब्राउजिंग, बिंज-वॉच, गेम खेलने, मल्टीपल ऐप को यूज करने के अलावा कई दूसरी चीजों के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं और वह भी बिना हैंग हुए!
हमारा यकीन नहीं कर रहे? यहां Sarah Jane हैं जो M12 के सुपर स्मूद डिस्प्ले पर खुद को स्क्रॉल करने औप सर्फ करने से रोक नहीं पा रही हैं।
3. बड़ी 6000mAh की बैटरी
हम अपने फोन्स का इस्तेमाल कई सारी चीजों के लिए करते हैं! रेगुलर कॉल्स, टेक्सटिंग, ब्राउजिंग, बिंज-वॉचिंग, सोशल मीडिया का इस्तेमाल, काम से जुड़े skype कॉल्स, प्रेजेंटेशन, डॉक्युमेंट/एक्सेल शीट को चलते-फिरते एडिट करना और न जाने क्या-क्या। अब जरा सोचिए- काम में एक थकाने वाले दिन के बाद, आप अपने दोस्त की पार्टी में जाना चाहते हैं। उन्हें आपकी प्लेलिस्ट पसंद है और वे चाहते हैं ति आप उस रात के DJ बने। लेकिन सोचिए अगर! आपके पहुंचते ही फोन की बैटरी खत्म हो जाए। बेहद अजीब सिचुएशन होगी।
लेकिन यह 12 रुपये से कम में आने वाले रेगुलर डिवाइसेज की आम समस्या है, जो वादों में बड़े होते हैं लेकिन जब आपको उनकी जरूरत होती है, वे डिलिवर करने में फेल हो जाते हैं। M12 के साथ, आपको पूरे दिन चार्जर लेकर घूमने की जरूरत नहीं पडे़गी! Samsung ने Galaxy M12 में विशालकाय, भरोसेमंद और देर-तक चल��े वाली बैटरी दी है जो 15 वॉ�� के फास्ट चार्जिंग सपॉर्ट के साथ आती है। इसे जितना मन करे उतना इस्तेमाल करें, और यह हेवी यूसेज के बाद भी दो दिन तक चल जाएगी! इसने हमारे होश उड़ा दिए। यहां तक की Sayano Gupta भी इसकी फैन हैं!
4. खूबसूरत डिस्प्ले
लो-स्टैंडर्ड वाला डिस्प्ले किसी का भी मूड-ऑफ कर सकता है। 12 हजार से कम में या तो आपको बड़ी स्कीन मिलेगी जिसमें शानदार व्यूइंग एक्सपीरियंस के लिए वैसी टेक्नॉलजी नहीं होगी या फिर किसी में टेक्नॉलजी तो होगी लेकिम उसमें बड़ी स्क्रीन की कमी होगी। मिलेनियल्स के लिए अच्छा फोन वह है जो बेहतरीन डिजाइन, कंफर्टेबल व्यूइंग के लिए शानादर और चौड़ा डिस्प्ले और जबर्दस्त टेक्नॉलजी के साथ मिलकर स्मूद और बेहतरीन एक्सपीरियंस दे। Samsung Galaxy M12 में परफेक्ट 6.4 इंच का HD+ डिस्प्ले दिया गया है जो 90Hz के रिफ्रेश रेट सपॉर्ट, 20:9 के आस्पेक्ट रेशियो और 720×1600 रेजॉलूशन के साथ आता है। रिजल्ट यह है कि #MonsterReloaded डिस्प्ले घंटो बिना रुकावट इस्तेमाल किए जाने के लिए बेस्ट क्वॉलिटी स्क्रीन ऑफर करता है। यहां देखिए Shriya Pilgaonkar इससे कितना इंप्रेस हुईं!
5. M12 के कैमरा से हो जाएगा प्यार
अब! हम जानते हैं कि मिलेनियल्स को ग्राम और Facebook के लिए पिक्चर और सेल्फी क्लिक करना कितना पसंद है! ऑटोमैटिकली, फोन खरीदते वक्त पिक्चर रेजॉलूशन और क्वॉलिटी सबसे जरूरी चीज बन जाते हैं। आपको मार्केट में मौजूद 12 हजार रुपये से कम के स्मार्टफोन्स के साथ अजस्ट नहीं करना चाहिए क्योंकि उनमें ग्रेनी पिक्चर, ऑटो-फोकस की कमी, अलग-अलग लाइटिंग कंडिशन और चलते-फिरते फोटो क्लिक करने में परेशानी जैसे दिक्कतें आती हैं। ब्लर विजन और पिक्सलेटेड मेमरीज का जमाना जा चुका है!
Samsung Galaxy M12 के रियर साइड में TRUE 48 MP के क्वॉड कैमरा सेटअप दिय गया है, जसमें 48MP प्राइमरी लेंस, पोर्ट्रेट शॉट्स के लिए 5 मेगापिक्सल का Ultra Wide लेंस, 2MP का डेप्थ सेंसर और एक 2MP का मैक्रो सेंसर दिया गया है। सामने की तरफ फोन में क्रिस्टल-क्लि��र शॉट्स के लिए 8MP सेंसर दिया गया है। M12 नैचरल और शानदार कलर्स के साथ जबर्दस्त डीटेल वाली पिक्चर्स कैप्चर करता है, ताकि यह पक्का हो सके कि आपको सोशल मीडिया पर पूरा अटेंशन मिले-जिसके आप हकदार हैं।
6. स्टोरेज कैपेसिटी ऐसे फोन का क्या करना जो हमारी जरूरत के अनुसार सब कुछ स्टोर न कर सके- फाइल्स, डाक्यूमेंट्स, वीडियोज आदि। फोन में स्टोरेज की चाह रखना गलत नहीं है। जब आप बाहर जाएं तो आपको बॉस या क्लाइंट के लिए फाइल ढूंढने के लिए लैपटॉप खोलने की जरूरत नहीं है। यही वो कम्फर्ट है जो M12 आपको देता है। ��समें 8nm Exynos 850 SoC के साथ 4GB/ 6GB रैम और 64GB/128GB इंटरनल स्टोरेज (माइक्रोएसडी कार्ड से 512GB तक एक्सपेंडेबल) मिलती है ताकि आप सभी जरूरी चीजों को अपने साथ लेकर चल सके, जहां भी आप जाएं।
7. डिजाइन है शानदार
फोन का फर्स्ट इम्प्रैशन हमेशा डिजाइन ही होता है। अगर किसी फोन का डिजाइन अच्छा नहीं तो अधिकतर वो हमारी लिस्ट से बाहर ही हो जाता है। 6.5-इंच के इंफिनिटी-V एचडी डिस्प्ले के साथ इसमें 720 x 1600 पिक्सेल्स (एचडी+), 90Hz का रिफ्रेश रेट, डीव ड्रॉप नॉच और गोरिल्ला ग्लास 3 प्रोटेक्शन के साथ पॉलीकार्बोनेट बैक, चौकोर मॉड्यूल के साथ रियर कैमरा सेटअप दिया गया है। इन सभी के साथ फोन का डिजाइन काफी क्लासी लगता है। इतना ही नहीं, इसका माप 164.0 x 75.9 x 9.7mm है और इसका वजन 221 ग्राम है। यह तीन कलर्स- ब्लैक, व्हाइट और ब्लू में आता है। इसके साइड में फिंगरप्रिंट सेंसर, 3.5mm हेडफोन जैक और यूएसबी टाइप-सी पोर्ट है। ओवरऑल, इस फोन का डिजाइन बेहद खूबसूरत है।
8. किलर सॉफ्टवेयर हमें यह अच्छे से पता है की आजकल के लोगों को हर चीज के बारे में सब कुछ जानना है और समय से आगे चलकर हर जानकारी से अपडेटेड रहना है। ऐसे में M12, ड्यूल सिम फोन वन यूआई 3.0 कोर पर आधारित है और एंड्राइड 11 के लेटेस्ट वर्जन पर चलता है। इस फोन के साथ आप हमेशा अपडेटेड रहेंगे क्योंकि इसमें सुपरफास्ट अनुभव के लिए LPDDR4x रैम मौजूद है। है ना सुपर कूल!
9. तगड़ी सुरक्षा और सिक्योरिटी हमें सरक्षित रहना बेहद जरूरी है। सुरक्षा के मद्देनजर, यह फोन सुपर-फास्ट फेस अनलॉक के साथ-साथ फिंगरप्रिंट स्कैनर के साथ भी आता है। इससे आप हर समय सुरक्षित रहते हुए डिवाइस को बहुत आसानी और फास्ट इस्तेमाल कर सकते हैं।
10. अन्य आकर्षक फीचर्स
इस फोन में जरूरी सेंसर्स और पोर्ट्स जैसे कई फीचर्स मौजूद हैं जो बजट स्मार्टफोन में मिलना बहुत मुश्किल है। इस स्मार्टफोन में एक्सेलेरोमीटर, ग्रिप सेंसर, एम्बिएंट लाइट सेंसर और प्रोक्सिमिटी सेंसर दिया गया है। इतना ही है, इसमें आपको मिलेगा डॉल्बी अट्मॉस, जिसका अनुभव आप हेडफोन के साथ ले सकते हैं। M12 के साथ जितना चाहे उतना OTT प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट देखें क्योंकि इसके साथ आता है वाइडवाइन L1 सर्टिफिकेशन जिससे आप जितना चाहे उतना HD कंटेंट स्ट्रीम कर सकते हैं।
हैरान कर देने वाली कीमत 90Hz रिफ्रेश रेट HD+ इंफिनिटी-V डिस्प्ले, 8nm Exynos 850 प्रोसेसर, ट्रू 48MP कैमरा और 6000mAh की बड़ी बैटरी के साथ आपको 4GB+64GB वैरिएंट के लिए मात्र Rs 10999 की कीमत अदा करनी है। अगर आपको 6GB+128GB वैरिएंट ��रीदना है तो आपको Rs 13499 देने होंगे। अब पता चला क्यों बॉलीवुड के सितारे M12 पर फिदा हो गए थे?
बेहतरीन ऑफर्स सैमसंग को यह पता है की आप बहुत स्मार्ट हैं और हमेशा आगे रहना चाहते हैं। इसलिए M12 को इससे भी कम कीमत पर खरीदने का मौका दिया गया है। सैमसंग इस फोन को इंट्रोडक्टरी लॉन्च ऑफर के तहत और भी सस्ते में खरीदने का मौका दे रही है। इस फोन को ICICI क्रेडिट कार्ड के साथ खरीदने पर आपको Rs 1000 का इंस्टेंट कैशबैक मिलेगा। यह कैशबैक ईएमआई और नॉन-ईएमआई दोनों ही ट्रांजैक्शंस पर मिलेगा। अगर आप ICICI डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं तो आपको Rs 1000 का ईएमआई ट्रांजैक्शंस पर इंस्टेंट कैशबैक मिलेगा। इसका मतलब Galaxy M12 4GB रैम+64GB इंटरनल स्टोरेज वैरिएंट आपको Rs 9999 और 6GB+128GB वैरिएंट आपको मात्र Rs 12499 का पड़ेगा।
तो अब इंतजार किस बात का? इस फोन को खरीदने के लिए , और नजदीकी रिटेल आउटलेट्स पर जाएं और इस #MonsterReloaded को 18 मार्च 2021 को सेल के दिन ही खरीदें।
डिस्क्लेमर: यह एक ब्रांड पोस्ट है और इसे नवभारत टाइम्स की स्पॉटलाइट टीम द्वारा लिखा गया है।
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भारत साहसिक निर्णय ले रहा है और उन्हें तेजी के साथ लागू कर रहा है: पीएम मोदी.
भारत साहसिक निर्णय ले रहा है और उन्हें तेजी के साथ लागू कर रहा है: पीएम मोदी.प्रधान मंत्री ने आदिवासी मेहमानों, एनसीसी कैडेटों, एनएसएस स्वयंसेवकों और तबलीक्स कलाकारों के साथ बातचीत की, जो गणतंत्र दिवस परेड में भारत का प्रदर्शन करेंगे.मंत्रिमंडल के मेरे वरिष्ठ सहयोगी, देश के रक्षा मंत्री श्रीमान राजनाथ सिंह जी, ��्री अर्जुन मुंडा जी, श्री किरण रिजिजू जी, श्रीमती रेणुका सिंह सरूटा जी और देश भर से यहां आए हुए मेरे प्यारे नौजवान साथियों, कोरोना ने वाकई बहुत कुछ बदल कर रख दिया है। मास्क, कोरोना टेस्ट, दो गज की दूरी, ये सब अब ऐसे लग रहा है जैसे रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गया है। पहले जब फोटो निकालने जाते थे तो कैमरामेन कहता था, स्माईल। अब मास्क के कारण वो भी बोलता नहीं है। यहां भी हम देख रहे हैं कि अलग-अलग जगह बैठने की व्यवस्था करनी पड़ी है। काफी फैलाव रखना पड़ा है। लेकिन इसके बावजूद भी आपका उत्साह, आपकी उमंग उसमें कोई कमी नजर नहीं आ रही है, वैसी की वैसी है।साथियों,आप यहां देश के अलग-अलग कोने से आए हैं। यहां देश के दूर-सुदूर जनजातीय क्षेत्रों से आए साथी हैं, NCC-NSS के ऊर्जावान युवा भी हैं और राजपथ पर अलग-अलग राज्यों की झांकी, अलग-अलग राज्यों का संदेश, बाकी देश तक पहुंचाने वाले कलाकार साथी भी हैं। राजपथ पर जब आप जोश के साथ कदम-ताल करते हैं तो हर देशवासी जोश से भर जाता है। जब आप भारत की समृद्ध कला, संस्कृति, परंपरा और विरासत की झांकी दिखाते हैं, तो हर देशवासी का माथा गौरव से और ऊंचा हो जाता है। और मेने तो देखा है कि परेड के समय में मेरे बगल में कोई न कोई देश के प्रमुख रहते हैं। इतनी सारी चीजें देखकर के उनको बड़ा surprise होता है, बहुत सारे सवाल पूछते रहते हैं, जानने का प्रयास करते हैं। देश के किस कोने में है, क्या है, कैसा है। जब हमारे आदिवासी साथी राजपथ पर संस्कृति के रंग बिखेरते हैं, तो संपूर्ण भारत उन रंगो में रंग जाता है, झूम उठता है। गणतंत्र दिवस की परेड भारत की महान सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के साथ ही हमारे सामरिक सामर्थ्य को भी नमन करती है। गणतंत्र दिवस की परेड, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को जीवंत करने वाले हमारे संविधान को नमन करती है। मैं आपको 26 जनवरी को बेहतरीन प्रदर्शन के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। आपसे एक आग्रह भी है। अभी दिल्ली में ठीक-ठाक ठंड पड़ रही है। जो साउथ से आए होंगे उनको तो परेशानी ओर होती होगी और आप कई दिन से यहां हैं लेकिन आप में से बहुत से लोग, जैसा मेने कहा सर्दी के आदी नहीं हैं। इतनी सुबह उठकर आपको ड्रिल के लिए निकलना होता है। मैं यही कहुंगा कि आप अपनी सेहत का ध्यान जरूर रखिएगा।साथियों,इस वर्ष हमारा देश, अपनी आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। इस वर्ष गुरू तेग बहादुर जी का 400���ां प्रकाश पर्व भी है। और इसी वर्ष हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की 125वीं जन्मजयंती भी मना रहे हैं। अब देश ने ये तय किया है कि नेताजी के जन्मदिवस को हम पराक्रम दिवस के तौर पर मनाएंगे। कल पराक्रम दिवस पर मैं उनकी कर्मभूमि कोलकाता में ही था। आजादी के 75 वर्ष, गुरू तेग बहादुर जी का जीवन, नेताजी का शौर्य, उनका हौसला, ये सब कुछ हम सभी के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है। हमें देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने का अवसर नहीं मिला, क्योंकि हममे से अधिकतर लोग आजादी के बाद पैदा हुए हैं। लेकिन हमें देश ने अपना सर्वश्रेष्ठ अर्पित करने का अवसर जरूर दिया है। हम जो भी देश के लिए अच्छा कर सकते हैं, भारत को मजबूत बनाने के लिए कर सकते हैं वो हमें करते रहना चाहिए।साथियों,यहां गणतंत्र दिवस की परेड की तैयारियों के दौरान आपने भी महसूस किया होगा कि हमारा देश कितनी विविधता भरा हुआ है। अनेकों भाषाएं, अनेकों बोलियां, अलग-अलग खान-पान। कितना कुछ अलग है लेकिन भारत एक है। भारत यानि कोटि-कोटि सामान्य जन के खून-पसीने, आकांक्षाओं और अपेक्षाओं की सामूहिक शक्ति। भारत यानि राज्य अनेक, राष्ट्र एक। भारत यानि समाज अनेक, भाव एक। भारत यानि पंथ अनेक, लक्ष्य एक। भारत यानि रिवाज़ अनेक, मूल्य एक। भारत यानि भाषाएं अनेक, अभिव्यक्ति एक। भारत यानि रंग अनेक, तिरंगा एक। अगर एक पंक्ति में कहें तो भारत में रास्ते भले ही अलग-अलग हैं, लेकिन गंतव्य एक ही है, मंज़िल एक ही है और ये मंजिल है, एक भारत, श्रेष्ठ भारत।साथियों,आज एक भारत, श्रेष्ठ भारत की ये शाश्वत भावना, देश के हर कोने में प्रकट हो रही है, मजबूत हो रही है। आपने भी देखा और सुना भी होगा कि मिज़ोरम की 4 साल की बालिका उसने वंदे मातरम् जब गाया तो सुनने वालों को गर्व से भर देता है। केरल के स्कूल की एक बच्ची जब कठिन परिश्रम से सीखकर, एक हिमाचली गीत, बड़े परफेक्शन के साथ गाती है, तो राष्ट्र की ताकत महसूस होती है। तेलुगु बोलने वाली एक बिटिया जब अपने स्कूल प्रोजेक्ट में बड़े रोचक ढंग से हरियाणवी खान-पान का परिचय देती है तो हमें भारत की श्रेष्ठता के दर्शन होते हैं।साथियों,भारत की इसी ताकत से देश और दुनिया को परिचित करने के लिए एक भारत, श्रेष्ठ भारत पोर्टल बनाया गया है और आप सब तो डिजिटल जनरेशन वाले हैं तो जरूर जाइएगा। इस पोर्टल पर जो व्यंजन विधियों का सेक्शन है, उसपर एक हज़ार से भी अधिक लोगों ने अपने प्रदेश के व्यंजन साझा किए है। कभी समय निकालकर आप इस पोर्टल को जरूर देखिएगा और परिवार मैं भी कहिए जरा आज मां बताओ ये, आपको बहुत आनंद ��एगा।साथियों,बीते दिनों कोरोना काल में स्कूल कॉलेज आदि बंद होने प��� भी देश के युवाओं ने डिजिटल माध्यम से अन्य राज्यों के साथ वेबिनार किए हैं। इन Webinars में म्यूज़िक, डांस, खान-पान की अलग-अलग राज्यों की अलग- अलग शैलियों पर बड़ी विशेष चर्चाएं की है। आज सरकार की भी कोशिश है कि हर प्रांत, हर क्षेत्र की भाषाओं, खान-पान और कला का पूरे देश में प्रचार-प्रसार हो। देश में भारत के हर राज्य के रहन-सहन, तीज-त्यौहार के बारे में जागरूकता और बढ़े। विशेषतौर पर हमारी समृद्ध आदिवासी परंपराओं, आर्ट एंड क्राफ्ट से देश बहुत कुछ सीख सकता है। इन सबको आगे बढ़ाने में एक भारत श्रेष्ठ भारत अभियान बहुत मदद कर रहा है।साथियों,आजकल आपने सुना होगा, देश में बहुत बोला जाता है- शब्द सुनाई देता है, वोकल फॉर लोकल। जो अपने घर के आसपास चीजें बन रही हैं, स्थानीय स्तर पर बन रही हैं, उस पर मान करना, उसका गर्व करना, उसे प्रोत्साहित करना, यही है वोकल फॉर लोकल। लेकिन ये वोकल फॉर लोकल की भावना, तब और मजबूत होगी जब इसे एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना से शक्ति मिलेगी। हरियाणा की किसी चीज के संबंध में, मैं तमिलनाडु में रहता हूं, मुझे गर्व होना चाहिए। केरल की किसी चीज का, मैं हिमाचल मैं रहता हूं, मुझे गर्व होना चाहिए। एक क्षेत्र के लोकल प्रॉडक्ट पर दूसरा क्षेत्र भी गर्व करेगा, उसे प्रोत्साहित करेगा, तभी लोकल प्रॉडक्ट की पहुंच देशभर में होगी, उसमें एक ग्लोबल प्रॉडक्ट बनने की ताकत पैदा होगी।साथियों,ये वोकल फॉर लोकल, ये आत्मनिर्भर भारत अभियान, इनकी सफलता आप जैसे नौजवानों पर टिकी हुई हैं और आज जब मेरे सामने NCC और NSS के इतने सारे नौजवान हैं। उनकों तो शिक्षा-दीक्षा सब ये ही दिया जाता है। मैं आज आपको एक छोटा सा काम देना चाहता हूं। और देश भर के हमारे NCC के नौजवान मुझे जरूर इस काम में मदद करेंगे। आप एक काम कीजिये, सुबह उठकर के रात को सोने तक जिन चीजों का आप उपयोग करते हैं। टूथपेस्ट हो, ब्रश हो, कंघा हो, कुछ भी –कुछ भी, घर में AC हो , मोबाइल फोन हो, जो भी, जरा देखिए तो कितनी चीजों की आपको जरूरत होती है दिनभर में और उनमें से कितनी चीजें हैं जिसमें हमारे देश के मजदूर के पसीने की महक है, कितनी चीजें हैं जिसमें हमारे इस महान देश की मिट्टी की सुगंध है। आप चौंक जाएंगे, जाने- अनजाने में इतनी चीजें विदेश की हमारे जीवन में घुस गई हैं, हमें पता तक नहीं है। एक बार उस पर देखेंगे तो पता चलेगा कि आत्मनिर्भर भारत बनाने का सबसे पहला कर्तव्य हमीं से शुरू होना चाहिए। इसका मतलब मैं ये नहीं कह रहा हूं कि आपके पास कोई विदेशी चीज है तो कल जाके फैंक दो। मैं ये भी नहीं कह रहा कि दुनिया में कोई अच्छी चीज हो, हमारे यहां न हो, तो उसको लेने से मना करो ये नहीं हो सकता। लेकिन हम�� पता तक नहीं है ऐसी ऐसी चीजें हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में, हमें एक प्रकार से गुलाम बना दिया है, मानसिक गुलाम बना दिया है। मेरे नौजवान साथियों से में आग्रह करूंगा। NCC-NSS के शिष्टबद्ध नौजवानों से आग्रह करुंगा। आप अपने परिवार के सबको बिठाकर के जरा सूची बनाइए, एक बार देखिए, फिर आपको कभी मेरी बात को याद नहीं करना पड़ेगा, आपकी आत्मा कहेगी कि हमने हमारे देश का कितना नुकसान कर दिया है।साथियों,भारत आत्मनिर्भर किसी के कहने भर से ही नहीं होगा, बल्कि जैसा मेने कहा आप जैसे देश के युवा साथियों के करने से ही होगा। और आप ये तब और ज्यादा बेहतर तरीके से कर पाएंगे जब आपके पास ज़रूरी Skill-Set होगा।साथियों,Skill के, कौशल के इसी महत्व को दखते हुए ही, 2014 में सरकार बनते ही, Skill Development के लिए विशेष मंत्रालय बनाया गया। इस अभियान के तहत अब तक साढ़े 5 करोड़ से अधिक युवा साथियों को अलग-अलग कला और कौशल की ट्रेनिंग दी जा चुकी है। कौशल विकास के इस कार्यक्रम के तहत सिर्फ ट्रेनिंग ही नहीं दी जा रही, बल्कि लाखों युवाओं को रोजगार और स्वरोज़गार में मदद भी की जा रही है। लक्ष्य ये है कि भारत के पास स्किल्ड युवा भी हों और Skill Sets के आधार पर उन्हें रोजगार के नए अवसर भी मिलें।साथियों,आत्मनिर्भर भारत के लिए युवाओं के कौशल पर ये फोकस भी देश की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने प्रस्तुत किया है। आप भी उसको देख पाएंगे। इसमें पढ़ाई के साथ ही पढ़ाई के उपयोग यानि application पर भी उतना ही बल दिया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति की कोशिश ये है कि युवाओं को उनकी रुचि के अनुसार विषय चुनने की आज़ादी दी गई है। उनको कब पढ़ाई करनी है, कब पढ़ाई छोड़नी है और कब फिर से करनी है, इसके लिए भी Flexibility दी गई है। कोशिश यही है कि हमारे विद्यार्थी जो कुछ खुद से करना चाहते हैं, वो उसी में आगे बढ़ें।साथियों,नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पहली बार Vocational Education को Education की मुख्य धारा में लाने का गंभीर प्रयास किया गया है। कक्षा 6 से ही विद्यार्थियों को स्थानीय ज़रूरतों और स्थानीय व्यवसायों से जुड़ा अपनी रुचि का कोई भी कोर्स चुनने का विकल्प दिया गया है। ये सिर्फ पढ़ाने के कोर्स नहीं होंगे बल्कि सीखने और सिखाने के कोर्स होंगे। इसमें स्थानीय कुशल कारीगरों के साथ प्रैक्टिकल अनुभव भी दिया जाएगा। इसके बाद चरणबद्ध तरीके से सभी मिडिल स्कूलों के शैक्षणिक विषयों में व्यावसायिक शिक्षा को एकीकृत करने का भी लक्ष्य है। मैं आज आपको ये विस्तार से, इसलिए भी बता रहा हूं क्योंकि आप जितना जागरूक रहेंगे, उतना ही आपका भविष्य भी उज्ज्वल होगा। साथियों,आप सभी ही आत्मनिर्भर भारत अभियान के असली कर्णधार हैं। NCC हो, NSS हो या फिर दूसरे संगठन हों, आपने देश के सामने आने वाली हर चुनौती, हर ��ंकट के समय अपनी भूमिका निभाई है। कोरोना काल में भी आपने जो काम किया है, volunteers के रूप में, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए वो कम है। जब देश को, शासन-प्रशासन को सबसे अधिक ज़रूरत थी, तब आपने volunteers के रूप में आगे आकर व्यवस्थाएं बनाने में मदद की। आरोग्य सेतु एप को जन-जन तक पहुंचाना हो या फिर कोरोना संक्रमण से जुड़ी दूसरी जानकारियों को लेकर जागरूकता, आपने प्रशंसनीय काम किया है। कोरोना के इस काल में फिट इंडिया अभियान के माध्यम से फिटनेस के प्रति Awareness जगाने में आपका रोल महत्वपूर्ण रहा है।साथियों,जो आपने अभी तक किया, इसको अब अगले चरण पर ले जाने का समय आ गया है। और मैं ये आपसे इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आपकी पहुंच देश के हर हिस्से, हर समाज तक है। मेरा आपसे आग्रह है कि आपको देश में चल रहे कोरोना वैक्सीन अभियान में भी देश की मदद करने के लिए आगे आना है। आपको वैक्सीन को लेकर सही जानकारियां देश के गरीब से गरीब और सामान्य से सामान्य नागरिक को देनी है। कोरोना की वैक्सीन भारत में बनाकर, भारत के वैज्ञानिकों ने अपना कर्तव्य बखूबी निभाया है। अब हमें अपना कर्तव्य निभाना है। झूठ और अफवाह फैलाने वाले हर तंत्र को हमें सही जानकारी से परास्त करना है। हमें ये याद रखना है कि हमारा गणतंत्र इसलिए मज़बूत है क्योंकि ये कर्तव्य की भावना से संकल्पित है। इसी भावना को हमें मज़बूत करना है। इसी से हमारा गणतंत्र भी मज़बूत होगा और आत्मनिर्भरता का हमारा संकल्प भी सिद्ध होगा। आप सभी को इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व में शरीक होने का अवसर मिला है। मन को गढ़ने का, देश को जानने का और देश के लिए कुछ न कुछ करने का, इससे बड़ा संस्कार कोई ओर नहीं हो सकता है। जो सौभाग्य आप सबको प्राप्त हुआ है। मुझे विश्वास है कि 26 जनवरी के इस भव्य समारोह के बाद जब यहां से घर लौटेंगे, आप यहां की अनेक चीजों को याद रखकर के जाएंगे। लेकिन साथ-साथ ये कभी नहीं भूलना कि हमें देश को अपना सर्वश्रेष्ठ अर्पित करना ही है, करना ही है, करना ही है। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।बहुत-बहुत धन्यवाद .
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कौन है आतंकवादी : गरीबी या इस्लाम ?
भारत में गरीबी है , क्या यह वाक्य भारतवासी को झंकझोर देने के लिए काफी नही है ! जहाँ तक मैं समझता हूँ इस वाक्य से बड़ी बात किसी महाक्��ांति के लिए 21वीं सदी के भारत में कुछ और हो ही सकता है l विडम्बना ये है कि लोग इतने शिथिल और गरीब हो गए हैं कि अब उन्हें याद ही नहीं है कि किसलिए वे आजाद हुए थे, किसलिए पूर्वजों ने बंटबारे का दंश झेला था , क्यों लाखों के लाख लोग मर कट गए थे ? इन्हें कुछ भी याद नही है ! और यह बात मैं पुरे होशो-हवास में लिख रहा हूँ !
यदि इनको अपनी आजादी के पीछे का मकसद याद होता तो फिर संविधान गठन और इसके लागु हो जाने के बाद जिवंत और जोशीले रहते ना की कांग्रेस को गाँधी के नाम पर मतदान करते रहते ! ये लोग गरीबी में जीने को कतई मजबूर नही हैं बल्कि इनके स्वाभाव में ही गरीबी रच बस चुकी है ! लोकतंत्र को समझने के लिए , लोकतान्त्रिक समाज को बनाने के लिए सजग नागरिकों की जरुरत होती है लेकिन यहाँ तो 73 साल बीत जाने के बाद भी इनलोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है !
जो समाज आजादी के इतने बर्षों बाद भी गरीब है और फिर भी दिन रात – कश्मीर हमारा है , पाकिस्तान मुर्दाबाद करने में लगा है तो निश्चित ही उस समाज को स्वतंत्रता और परतंत्रता के बीच में अन्तर का बोध नही है ! भारतीय समाज की मनोदशा और चित में अतीत की व्याख्या भर के राजनेता एशो-आराम की जिन्दगी जी रहे हैं ! बस इस सूत्र के सहारे आजीवन भारतीयों को गुलाम बनाकर रखा जा सकता है ये बात सभी दलों को पता है ! चुनाव आते ही रामराज्य , गीता , कुरान , अशोक , गाँधी , पाकिस्तान , कश्मीर , हिन्दू और मुस्लिम का अलख जगा कर मतदाताओं को बस में कर लिया जाना और फिर सत्ता हाथ में आते ही पांच बर्षों तक सुख भोग करना यही आजतक भारतीय लोकतंत्र के मायने हैं !
आतंकवाद के नाम पर जोश दिखाते नागरिक यदि एकबार को गरीबी को आतंकवाद मानकर , एक पल के लिए भी स्वयं की परिस्थित को देखेंगे तो सकते में आ जायेंगे ! पीढ़ी दर पीढ़ी को बर्बाद और खोखला करती गरीबी किसी आतंकवादी से कम नहीं प्रतीत होगा ! किसी भी दल ने आजतक इनको स्वतंत्र नहीं रहने दिया बल्कि इसके विपरीत इनके साथ एक क्रूर मजाक किया है अन्यथा ये भी समृद्ध और खुशहाल होते !
यदि इनको अब भी यह समझ में नहीं आया की विश्व के नजर में भारत एक गरीब देश है और यहाँ कड़ोरों लोग आज भी रोज भूखे सो रहे हैं तो इनको कोई जागृत नहीं कर सकता ! यदि इन्ह��ने वोट देना बंद नहीं किया तो ये आजीवन ऐसे ही रहेंगे और अपने बच्चों को भी इसी हालात में छोड़ कर मरेंगे !
महाक्रांति के लिए ये देश तैयार है लेकिन यहाँ के भ्रमित जनता नहीं , ठीक वैसे ही जैसे चलने के लिए एक कार तो खड़ी है लेकिन चालक चलाने को तैयार नही हो ! कोई पत्रकार औरंगजेब पर रिपोर्ट करके इनकी मनोदशा को नियंत्रण कर रहा है तो कोई धर्मगुरु कुरान की आयात सुनाकर ! एक शहर के नाम बदल जाने पर इनकी ख़ुशी अनियंत्रित हो जाती है ! उस दल को राष्ट्रवादी मानकर चौक-चौराहे झंडे हाथ में उठाये घूमते-फिरते रहते हैं ! और शाम को घर आनेपर वही कर्ज , घरेलु चिंता , तगेदा आदि आदि !
कौन है ज़िमेदार ? कौन चिरकालीन निंद में सोया हुआ है ? संविधान या संविधान के दायरे में आनेवाले आम नागरिक ? भला क्यों कोई दल इस भ्रमजाल को तोडना चाहेगा जब सबकुछ उसकी दृष्ट में ठीक है ! कोई भी कम –से-कम बुद्धिवाला ऐसी सुलभ और सरल रास्ते पर निरंतर चलना पसंद करेगा जब तक उन रास्तों पर कांटें नहीं विखेड़ दिये जायेंगे ! और ये कांटे कौन विखेड़ेगा ? कांटे विखेड़नेवालों को तो गुणगान करने से फुरसत नहीं !
अपने अस्तित्व को मिटाकर जीनेवाले भारत में ही देखने को मिलते हैं ! ऐसे जीवन को गधा जीवन कहा जाता है ! जो मिल जाए उसी में संतुष्ट , जीवनभर गरीबी को ढोना और फिर अपने आनेवाले नस्ल को मरते समय सही-सलामत गठरी हस्तांतरित कर देना !
मैं जब भी इनकी तरफ देखता हूँ तो मन बहुत भर जाता है ! रेलवे ट्रैक के बगल में रोते विलखते बच्चे, कूड़ा-करकट की ढेर से बोतल,प्लास्टिक चुनते हुए बच्चे , तीन इंटों के चूल्हे पर अर्ध्नंग सी दिखने वाली औरत का रोटी पकाना,बगल में एक फटे हुए तिरपाल के निचे चिथड़ों को ओढ़े सोती हुई नन्ही सी बच्ची ! ये सिर्फ दिल्ली या मुम्बई की बात नहीं समूर्ण भारत की बात है ! जब राज्य सरकार इन सभी बेघरों के लिए रैन-वसेरा की व्यवस्था करती है तो दिन-रात समाचार और पत्रिकाओं में सरकार की प्रशंशा होती है ! ये प्रशंशा करनेवाले तनिक भी नहीं सोचते की उनके पास आजादी के 73 साल बीत जाने के बाद भी घर और काम क्यों नहीं है ? नाही ये पूछते हैं नाही राजनेता बताते हैं !
कुछ बुद्धिजीवी इन बेघरों के बारे में अलग ही राय रखते हैं ! इनके अनुसार ये बेघर, फ्लाईओवर , रोड के बगल में रहनेवाले नशा के आदि होते हैं ! जो भी एक दो पैसे मिलते हैं उस से नशा करते हैं ! मैं तो इन सभी बुद्धिजीवियों से सिर्फ एक ही प्रश्न पूछता हूँ – “महाशय , नशा तो दूसरी बात है , पहली बा�� पर कुछ कहिये की ये बेघर क्यों हैं ? नशा तो आपके घर में भी आम बात है , उस पर बाद में बात कर लेंगे ! मेरे इस प्रश्न पर फिर वे चुप हो जाते हैं !
एक लाख गरीब में से एक व्यक्ति कुछ बन जाता है तो देश गुणगान करने लगते हैं ! जबकि तनिक भी नहीं सोचते कि “गुणगान तो स्वाभाविक” है ! अब एक बगिया में हजारों फूलों के पौधों में से यदि एक ही पौधे में फूल खिले तो दृष्ट तो वहीँ पर जा कर अट्केगी ! बांकी पौधों में फूल क्यों नही आया ये बात उस बगिया के माली से कोई क्यों पूछेगा ! भारत में भी यही तो हो रहा है – माली योजनाओं पर योजना बनाते हैं , बुआई करते हैं लेकिन एक अरब पौधों में से 10 पौधे में फूल उगते हैं और बांकी के बचे पौधे ताली बजाते बजाते सुख जाते हैं ! कौन पूछेगा माली से कि विफलताओं का क्या कारण था ? नहीं पूछते लोग क्योंकि वे मनाकर चलते हैं की उनके नसीब में गरीबी ही लिखी है ! नही करना चाहते विद्रोह क्योंकि मानकर चलते हैं की वे कमजोर हैं और लाचार भी ! और इसलिए सो रहे हैं और सोते सोते मर जायेंगे !
आज ही के दिन मुम्बई में आतंकवादियों ने हमला किया था जिसे भारतीय 26/11 के नाम से जानते हैं, मुझे पता है की एक दल दुसरे दल पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर इस घृणितकार्य को याद कर रहे होंगे ! मुझे दलों के बीच में क्या आरोप-प्रत्यारोप चल रहा है उस से लेना देना नहीं है ! राजनीति में एक दल दुसरे दलों आरोप तो लगायेंगे ही ! मुझे तो उन लोगों से कहना है जो इन दो दलों के साथ साथ स्वयं को बांटकर एक-दुसरे पर छींटा-कशी कर रहे हैं ! एक दल से कोई कुछ लिखता है और समर्थन में आम जनता कूद पड़ते हैं ! समर्थन में कूदे हुए आम जनताओं से विपक्ष पक्ष के आम जनता लड़ने लगते हैं ! मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे राजनेता एक मछुआरा और उनके द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से दाने के रूप में फेंका गया बोर जिसे खाने को आतुर मछली असमय राजनितिक कांटें में फंसकर दम तोड़ देते हैं ! देश में अबतक जितनी भी आतंकवादी घटना हुई है उन सभी में से “गरीबी” सबसे भयानक आतंकी घटना है ! जनता अगर चाहे तो पक्ष और विपक्ष को एक सूत से बांधकर लालकिले से इंडियागेट और फिर इंडियागेट से संसद तक भगा भगा कर आजादी और राष्ट्रवाद का मतलब बता सकती है ! मैं तो यही मानता हूँ की भारतीय राजनेताओं को राष्ट्रवाद जनता सिखाये लेकिन विडम्बना ये है की उलटे खुद ही सिख रहे हैं !
इस लेख के अंत में मैं तो यही कहूँगा कि- भारत एक गरीब देश है और इस देश की गरीबी अब चरम पर पहुँच चुकी है ! कश्मीर , राष्ट्रवाद , मंदिर , मस्जिद को एक तरफ रखने का समय है यह l नागरिकों को एकजुट होकर “महाक्रांति” को आ��ंभ करना चाहिए चाहे कोई भी सरकार हो , मनुष्य के मूल्यों को आजतक भारत में घर नही मिला है और इसके पीछे कोई और नहीं बल्कि “राजनेता” हैं ! क्रांति की आगाज़ – “अब वोट नहीं” के महामंत्र से करना होगा ! सिर्फ यही एक मात्र उपाय है सही लोकतंत्र को जानने का , अधिकार और स्वतंत्रता के मायने को धरातल पर उतारने का ! यदि इस बात को भारतीय नागरिक नहीं समझेंगे तो दलों के बीच में पिसते रहेंगे सदियों सदियों तक ! मेरा मानना है कि मानव मूल्यों के संरक्षण के बिना राष्ट्रवाद की बात करना बेईमानी है ! पेट में दाने ही नही घर , सामान अधिकार और स्वतंत्र अभिव्यक्ति सिर्फ संविधान के पन्नो में रहे और देश में हालात इसके विपरीत हो तो देशभक्ति करना एक ढोंग और स्वयं को छलने जैसा है ! इस देश में एक क्रांति ऐसी होनी चाहिए जो संविधान को पुर्णतः मरम्मत कर दे ताकि लोकतंत्र स्वस्थ्य हो सके , देश के कोने कोने में भ्रमण कर सके , अपने आप पर इतरा सके ! एक समृद्ध भारत की गाथा लिख सके ! यह संभव है लेकिन इसके लिए आमजन को जागना होगा !
_दिशव
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अनलॉक-4 में केंद्र सरकार ने करीब 6 महीने बाद 9वीं से 12वीं तक के बच्चों के स्कूल खोलने की इजाजत दी है। सरकार ने कहा कि बच्चे गाइडेंस के लिए 21 सितंबर से स्कूल जा सकते हैं। इसके बाद राज्य सरकारों को स्कूल खोलने पर फैसला लेना था। लेकिन, अभी तक मध्यप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा ही स्कूल खोलने को राजी हुए हैं। लेकिन, सर्वे में पता चला है कि 70% से 90% पैरेंट्स अब भी बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते।
दैनिक भास्कर ने स्कूलों और पैरेंट्स के मन की बात जानने के लिए 9 राज्यों से ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है-
1. मध्यप्रदेश : सरकारी और प्राइवेट स्कूल 21 सितंबर से आंशिक रूप से खुलेंगे। कक्षाएं नहीं लगाई जाएंगी। 9वीं से 12वीं तक के छात्र पैरेंट्स की परमिशन से थोड़े समय के लिए स्कूल जा सकेंगे।
भोपाल में सागर पब्लिक स्कूल की चेयरमैन जयश्री कंवर ने कहा, "हम स्कूल खोलने के लिए ��ैयार हैं, लेकिन यह तय नहीं है कि 21 सितंबर से ही खोलेंगे। पहले पैरेंट्स की काउंसलिंग और ओरिएंटेशन करेंगे। इसके बाद उनकी सहमति लेंगे। यह पूरी तरह से पैरेंट्स पर निर्भर करेगा कि वे बच्चों को स्कूल भेजें या नहीं।"
भोपाल के आईपीएस की प्रिंसिपल चित्रा अय्यर ने कहा कि हमारे यहां कोरोना से बचाव के अरेंजमेंट हो गए हैं, पूरी तैयारी है। पहले पैरेंट्स से एक सहमति पत्र भरवाया जाएगा। उसके बाद ही बच्चों को स्कूल बुलाएंगे।
इंदौर के एनी बेसेंट स्कूल के संचालक मोहित यादव ने बताया कि स्कूल खोलने को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है। ऑनलाइन क्लास अच्छी चल रही हैं, ऐसे में जिन बच्चों को कहीं कुछ समझ नहीं आ रहा है वे ही स्कूल आएंगे। यदि पैरेंट्स अपने बच्चों को भेजना चाहते हैं तो ये उनकी जिम्मेदारी होगी। उन्हें पहले हमें लिखित में अपनी सहमति देनी होगी।
दो बच्चों की मां प्रेरणा शर्मा कहती हैं कि इतने महीने इंतजार किया है तो अब वैक्सीन लगने के बाद ही बच्चों को स्कूल भेजेंगे।
2. छत्तीसगढ़ : यहां पर स्कूलों में तैयारियां हो रही थीं, लेकिन इससे पहले ही शनिवार को रायपुर समेत 6 शहरों में लॉकडाउन लग गया। ऐसे में फिलहाल स्कूल खोलने की कोई गुजाइंश नहीं है। दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसिएशन बच्चों को स्कूल भेजने के पक्ष में है।
रायपुर के बड़े स्कूल मौजूदा हालात में बच्चों को बुलाने के विरोध में हैं। ज्यादातर स्कूलों में 28 सितंबर तक परीक्षाएं शुरू हो जाएंगी। वहीं स्कूल एसोसिएशन का कहना है कि एग्जाम ऑनलाइन ही कराएंगे, लेकिन सरकार स्कूल खोल देगी तो परीक्षा के लिए छात्रों को बुला सकते हैं।
डीपीएस के प्रिसिंपल रघुनाथ मुखर्जी कहते हैं कि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि स्कूल में बच्चों को संक्रमण नहीं ह��गा। केपीएस की प्रिसिंपल प्रियंका त्रिपाठी का कहना है कि स्कूल खुले तो सरकार की गाइडलाइन के हिसाब से तैयारी की जाएगी।
रायपुर में रहने वाली डॉली साहू का बेटा 11वीं में पढ़ता है। डॉली कहती हैं कि बेटे की जान जोखिम में नहीं डाल सकते। दो बेटियां के पिता पीयूष खरे कहते हैं कि वैक्सीन आने के बाद देखेंगे, अभी स्कूल भेजने का सवाल ही नहीं उठता।
3. राजस्थान: बच्चे सिर्फ पैरेंट्स की लिखित परमिशन से गाइडेंस के लिए स्कूल जा सकेंगे। केंद्र सरकार की एसओपी के बाद राज्य सरकार ने भी साफ निर्देश जारी कर दिए हैं।
जयपुर के सुबोध पब्लिक स्कूल के प्रवक्ता संजय सारस्वत का कहना है कि ऑनलाइन परीक्षाओं के चलते स्कूल नहीं खोलने का फैसला लिया है। 5 अक्टूबर तक नई गाइडलाइन जारी होंगी। इसके बाद स्कूल खोलने पड़े तो पूरी तैयारी है। बच्चों को रोटेशन के आधार पर बुलाएंगे और एक क्लास में 12 से ज्यादा बच्चों को नहीं बैठाया जाएगा।
अमेरिकन इंटरनेशनल स्कूल के डायरेक्टर अनिल शर्मा ने बताया कि 21 सितंबर से बच्चे स्कूल गाइडेंस के लिए खोले जाएंगे। इसे फिलहाल हम ट्रायल के तौर पर देख रहे हैं। रोजाना पांच सब्जेक्ट के टीचर की व्यवस्था की गई है। कर्मचारियों को सैनेटाइजेशन की ट्रेनिंग दी गई है। स्टूडेंट की थर्मल स्क्रीनिंग करने की ट्रेनिंग क्लास टीचर को दी गई है।
निजी स्कूलों की सबसे बड़ी संस्था स्कूल शिक्षा परिवार के प्रदेश अध्यक्ष शर्मा के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में करीब 30 प्रतिशत पैरेंट्स चाहते हैं कि बच्चों को स्कूल भेजना चाहिए। वहीं, ग्रामीणों इलाकों में करीब 70 प्रतिशत पैरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार हैं।
4. गुजरात: राज्य में 16 मार्च से स्कूल बंद है। इस बीच राज्य सरकार ने कहा है कि दिवाली तक स्कूल बंद रखे जाएंगे और आगे हालात को देखते हुए फैसला लिया जाएगा।
गुजरात में कें��्र की गाइडलाइन के बावजूद 21 सितंबर से कक्षा 9 से 12 तक के स्कूल भी नहीं खुलेंगे।। राज्य के शिक्षा मंत्री भूपेंद्र सिंह चूड़ासमा ने कहा कि ��िलहाल दिवाली तक स्कूल नहीं खुलेंगे, उसके बाद रिव्यू किया जाएगा।
स्कूल एसोसिएशन का कहना है कि मौजूदा स्थिति में स्कूलों पर भी खतरा है, इसलिए राज्य सरकार ने स्कूलों को खोलने का फैसला नहीं किया है। स्थिति में सुधार होने पर फैसला लिया जाएगा। तब तक ऑनलाइन पढ़ाई जारी रहेगी।
4. बिहार : स्कूल खोले जाने पर अभी न तो स्कूलों ने सहमति दी है और न ही पैरेंट्स तैयार हैं। कहा जा रहा है कि चुनाव और छठ पूजा के बाद सोचा जाएगा। राज्य सरकार की तरफ से भी कोई साफ निर्देश जारी नहीं किए गए हैं। ऐसे में सोमवार से स्कूल नहीं खुल रहे हैं।
पटना हाई स्कूल के प्रिंसिपल रवि रंजन ने कहा कि स्कूल खोलने को लेकर कोई निर्देश नहीं मिला है। ऑनलाइन क्लास के साथ एग्जाम भी ऑनलाइन हो रही हैं।
कृष्णा निकेतन स्कूल के सचिव डॉ. कुमार अरुणोदय का कहना है कि प्रशासन को पहले स्कूलों और पैरेंट्स के साथ बैठक कर स्ट्रैटजी बनानी चाहिए, क्योंकि मामला बच्चों की सुरक्षा से जुड़ा है।
9वीं क्लास की छात्रा सृष्टि के पिता विकास मेजरवार ने कहा कि जब हम ऑफिस में ही डरकर काम कर रहे हैं तो बच्चों को स्कूल कैसे भेज सकते हैं?
5. झारखंड : यहां राज्य सरकार ने 30 सितंबर तक स्कूल नहीं खोलने का निर्देश दिया है। पैरेंट्स के साथ टीचर्स इस बात के पक्ष में नहीं हैं कि बच्चों को अभी स्कूल बुलाया जाए।
रांची के दिल्ली पब्लिक स्कूल के प्रिंसिपल राम सिंह ने बताया कि राज्य सरकार की गाइडलाइन का इंतजार कर रहे हैं। स्कूल में सैनेटाइजेशन, थर्मल स्क्रीनिंग, हैंड वॉश की व्यवस्था हो चुकी है। बहुत ज्यादा बच्चों के आने की संभावना नहीं है। फिर भी जो भी बच्चे डाउट क्लियरिंग के लिए आएंगे उनके लिए सेपरेट क्लास रखी जाएगी।
एक बच्चे की मां ने कहा कि अभी बच्चे को स्कूल नहीं भेजेंगी, क्योंकि ऑनलाइन स्टडी का सिस्टम इम्प्रूव हो गया है। जो समस्याएं थीं, वे दूर कर ली गई हैं।
6. हरियाणा: यहां 21 सिंतबर से स्कूल आंशिक तौर पर केंद्र की गाइडलाइन के मुताबिक खोले जाएंगे।
पानीपत के एसडी विद्या मंदिर की प्रिंसिपल सविता चौधरी ने बताया कि फिलहाल 22 सितंबर से 30 सितंबर तक उनके स्कूल में कंपार्टमेंट के एग्जाम हैं। हर दिन स्कूल सैनेटाइज हो रहा है। थर्मल स्कैनर से जांच हो रही है। अभी हाफ ईयरली एग्जाम भी बाकी हैं। इसके बाद हालात को देखते हुए स्कूल खोले जाएंगे।
यहां के सरकारी और प्राइवेट विद्यालयों के टीचर्स के लिए आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करना और कोविड टेस्ट करवाना भी जरूरी है।
7. चंडीगढ़ : प्रशासन की तरफ से कराए गए सर्वे में सामने आया है कि 75% से ज्यादा पैरेंट्स बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं हैं। यहां स्कूल खोलने को लेकर कोई साफ निर्देश प्रशासन की तरफ से नहीं दिया गया है। ऐसे में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
स्ट्रॉबेरी फील्ड्स हाई स्कूल सेक्टर-26 के डायरेक्टर अतुल खन्ना का कहना है कि सभी तैयारियां कर ली हैं। 75% पैरेंट्स बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते, इसलिए बाकी 25% के लिए प्लान तैयार कर रहे हैं। टीचर्स को भी सिर्फ तभी बुलाएंगे अगर उनकी जरूरत है। हाफ ईयरली एग्जाम नहीं ले रहे।
विवेक हाई स्कूल सेक्टर-38 की प्रिंसिपल रेनु पुरी कहती हैं कि स्कूल खोलने को लेकर एक सर्वे किया था, जिसमें सामने आया कि 90% पैरेंट्स बच्चों नहीं भेजना चाहते। स्कूल में रोज सैनेटाइजेशन किया जा रहा है। टीचर्स और स्टाफ तो ऑनलाइन सिस्टम से कंफर्टेबल हैं, हम अभी उन्हें नहीं बुलाएंगे।
8. उत्तर प्रदेश : केंद्र सरकार की गाइडलाइन पर योगी सरकार ने अभी तक ��ोई भी फैसला नहीं लिया। 15 सितंबर को बैठक होनी थी, वह भी नहीं हुई। राज्य के बेसिक शिक्षा मंत्री ने कहा है कि अभी कोरोना के केस बढ़ रहे हैं, इसलिए स्कूल 21 सिंतबर से नहीं खोले जाएंगे।
लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल के प्रबंधक जगदीश गांधी का कहना है कि अभी तक तो स्कूल में सभी क्लासेस ऑनलाइन चल रही हैं। हमारे सभी स्कूल की ब्रांच में कोविड-19 को लेकर तैयारियां पूरी की गई हैं। ऑनलाइन टेस्ट और पढ़ाई जारी है।
पैरेंट्स से अभी कोई बातचीत नहीं हुई है। ऑनलाइन ही क्लास और टेस्ट लिए जा रहे हैं। हाफ ईयरली एग्जाम भी ऑनलाइन ही कराए जाएंगे।
सिटी मॉन्टेसरी स्कूल के प्रवक्ता ऋषि कपूर बताते हैं कि फिलहाल स्कूल खोलने को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है। सभी टीचर्स को ऑनलाइन पढ़ाई कराने के संबंध में गाइडलाइन और मोबाइल ऐप्स की जानकारियां दी गई हैं। टीचर और बाकी स्टाफ वर्क फ्रॉम होम हैं।
9. महाराष्ट्र: राज्य में 30 सितंबर तक सभी स्कूल बंद रहेंगे। अनलॉक-5 यानी 1 अक्टूबर के बाद राज्य सरकार तय करेगी। पैरेंट्स के रिएक्शन जानने के लिए सर्वे भी कराए जा रहे हैं।
मुंबई, पुणे समेत देश के 14 शहरों में चलने वाले 'विबग्योर ग्रुप ऑफ स्कूल्स' के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर पेशवा आचार्य ने बताया कि स्कूलों को फिर से खोलने का रोडमैप और एसओपी तैयारी कर ली गई है। हालांकि, ज्यादातर पैरेंट्स चाहते हैं कि जब तक कोरोना की दवा बाजार में नहीं आ जाती तब तक पढ़ाई ऑनलाइन ही होनी चाहिए।
आचार्य ने बताया कि ज्यादातर पैरेंट्स स्कूल की तरफ से शुरू किए गए 'वर्चुअल लर्निंग सिस्टम' से संतुष्ट हैं। हम कक्षा 1 से 8वीं तक का इन्फॉर्मल रिव्यू कर रहे हैं। 9 से 12वीं तक ऑनलाइन एग्जाम करवा रहे हैं।
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School Reopening Ground Report Update | Resuming Classes In Madhya Pradesh, Haryana, Rajasthan Chhatisgarh and Jharkhand Bihar
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ताजनगरी में कोरोना वायरस के 490 एक्टिव केस, खुद ही करना होगा बचाव ताजनगरी में CoronaVirus संंक्रमण अब बेकाबू हो चला है। शुरुआती दौर में गली-मोहल्लों मेंं सेनेटाइजेशन हुआ भी, अब ये मशीनें भी खड़ी हो चुकी हैं। सड़कों से लेकर बाजारों तक में भीड़ भरपूर है। गुरुवार से सूबे में बार भी खोल दिए गए हैं। बाजार भी अब सिर्फ रविवार को ही बंद रहेंगे। न बाजारों में सेनेटाइजेशन हो रहा है और न भीड़ पर नियंत्रण। साफ शब्दों में बात ये है कि अब आपको खुद की सुरक्षा करनी है। बुधवार को 71 नए मामले सामने आने से अब यह आगरा में एक नया रिकॉर्ड बन गया है। कुल कोरोना संक्रमितों की संख्या 3000 की दहलीज को लांघते हुए 3041 पर आ गई है। इसमें सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात ये है कि अब आगरा में कोरोना के एक्टिव केस 490 हैं, इतने तादाद में एक्टिव केस पहले कभी नहीं रहे। इससे पहले मंगलवार को 69 नए केस आए थे। यानि दो दिन में 100 से ज्यादा केस आ रहे हैं। आगरा में मृतक संख्या 107 है। आगरा में ठीक होने वाले लोगों की संख्या 2444 हैं। अब तक तक 1,22,638 लोगों की जांच हो चुकी है।
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कहानी- मूल्यांकन (Short Story- Mulyankan)
अपने जीवन में मैंने कई बुज़ुर्गों को उपेक्षित जीवन जीते देखा है. जब घर बनवाया, तभी सोच लिया था कि पापाजी को सबसे बड़ा, सुंदर और आरामदायक कमरा देंगे, पर इस चक्कर में हमने पापाजी को कमरे से ही बांध दिया. साथ ही अकेलेपन से भी.
“मम्मीजी, नेहा दीदी का फोन है.” स्वरा की आवाज़ पर नलिनी ने फोन हाथ में लिया. ‘हेलो’ कहते ही नेहा की घबराई-सी आवाज़ आई, “मम्मी, एक प्रॉब्लम हो गई है. मां बाथरूम में गिर गई हैं. उनके बाएं हाथ में फ्रैक्चर आया है.”
“अरे! कैसे... कहां... कब... अभी कैसी हैं? कोई है उनके पास...” नेहा की ‘मां’ यानी सास के गिरने की ख़बर सुनकर नलिनी ने एक साथ कई सवाल पूछ डाले, तो प्रत्युत्तर में नेहा रोनी आवाज़ में बोली, “वो इंदौर में ही हैं. आज रात उन्हें अहमदाबाद के लिए चलना था. उन्हें हाथ में फ्रैक्चर हुआ है. अब कैसे आएंगी. मम्मी, अब मेरा क्या होगा... दो हफ़्ते बाद सलिल को कनाडा जाना है और अगले हफ़्ते मेरी डिलीवरी है. मम्मी, आप आ पाओगी क्या?”
नेहा के पूछने पर नलिनी एकदम से ���ोई जवाब नहीं दे पाई. एक महीने पहले ही बेटे का ब्याह किया है. नई-नवेली बहू को देखते हुए ही प्रोग्राम तय हुआ था कि डिलीवरी के समय नेहा की सास अहमदाबाद आ जाएंगी और एक-डेढ़ महीना रुककर वापस आएंगी, तब वह जाएगी. ऐसे कम से कम ढाई-तीन महीने तक नेहा और उसके बच्चे की सार-संभाल हो जाएगी.
“तू घबरा मत, देखते हैं क्या हो सकता है.” नेहा को तसल्ली देकर नलिनी ने फोन रखा और प्रेग्नेंट बेटी की चिंता में कुछ देर यूं ही बैठी रही. परिस्थिति वाकई विकट थी. समधनजी के हाथ में फ्रैक्चर होने से उनके साथ-साथ सबके लिए मुश्किलें बढ़ गईं.
क्या-कैसे होगा इस चिंता से उन्हें बहू स्वरा ने उबारते हुए कहा, “मम्मीजी आप दीदी के पास अहमदाबाद चली जाइए. मैं यहां सब संभाल लूंगी.”
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नलिनी के हिचकने पर उसके ससुर भी बोले, “इतना सोचनेवाली कौन-सी बात है. नील तो है यहां... अब तो स्वरा भी है. तुम और उपेन्द्र तुरंत निकलो.”
“पर पापाजी, आप कैसे रहेंगे? आपकी देखभाल, परहेज़ी खाना...”
“सब हो जाएगा, मेरे बहू-बेटे नहीं होंगे तो क्या, तुम्हारे बेटा-बहू तो हैं ना.”
“अरे पापाजी, नील को तो ऑफिस से ़फुर्सत नहीं है और इसे आए अभी ��हीनाभर ही हुआ है. इनके भरोसे कैसे...” नलिनी हिचकिचाई, तो 80 बरस के बूढ़े ससुरजी हंसते हुए बोले, “मैं कोई छोटा बच्चा हूं, जो अपनी देखभाल न कर पाऊं... और न स्वरा बच्ची है, जो घर न संभाल पाए. तुम्हारी शादी हुई थी, तब तुमने 20 बरस की उम्र में सब संभाल लिया था. और तुम्हारी सास तो 16 बरस की ही थी, जब ब्याहकर आई थी. अरे, स्वरा कैसे नहीं संभालेगी घर... क्यों स्वरा, संभालेगी न?”
“हां जी, दादाजी...” क्या कहती स्वरा और क्या कहती नलिनी अपने ससुर को कि तब के और आज के ज़माने में बहुत फ़र्क़ है. नलिनी का सिर अपने ससुर के सामने श्रद्धा से झुक गया.
विपरीत परिस्थितियों के चलते ‘मैं ख़ुद को संभाल लूंगा.’ कहकर उसका मनोबल बढ़ा रहे हैं, जबकि वह जानती है कि पापाजी को बाथरूम तक जाना भारी पड़ता है. पापाजी और घर की ज़िम्मेदारी स्वरा के भरोसे छोड़ने में उन्हें डर ही लग रहा था. आजकल की लड़कियां क्या जानें घर की सार-संभाल... पर पापाजी और परिस्थितियों के आगे वह विवश थी.
यूं तो स्वरा एक महीने से घर में है, पर अधिकतर समय तो मायके-हनीमून और घूमने-फिरने में ही निकल गया. वह स्वयं बेटे की शादी के बाद बड़े प्रयास से घर की व्यवस्था पुरानी पटरी पर लौटा पाई थी. अब यूं अचानक घर छोड़-छाड़कर अहमदाबाद के लिए निकलने को मन नहीं मान रहा था, पर मौ़के की नज़ाकत समझते हुए घर की व्यवस्था-पापाजी के परहेज़ों और दवाइयों के बारे में नील-स्वरा को समझाकर वह और उपेन्द्र तुरंत हवाई जहाज से अहमदाबाद के लिए निकल गए. नौवें महीने के आख़िरी हफ़्ते में कब डिलीवरी हो जाए, कुछ पता नहीं.
मम्मी-पापा को देखकर नेहा का सारा तनाव छूमंतर हो गया. उनके पहुंचने के चार दिन बाद ही उसने पुत्री को जन्म दिया. कुछ दिनों बाद दामाद सलिल कनाडा चले गए. नलिनी ने घर की सारी व्यवस्था संभाल ली और उपेन्द्र ने बाहर की. नेहा और नन्हीं परी के बीच समय कैसे निकलता, कुछ पता ही नहीं चलता. भोपाल फोन करने पर पापाजी- ‘यहां की चिंता मत करो सब ठीक है’ कहकर तसल्ली दे देते.
40 दिन बाद नेहा ने नलिनी से कहा, “मम्मी, अगले हफ़्ते सलिल आ जाएंगे. मैं भी चलने-फिरने लगी हूं. आप चाहो, तो भोपाल चली जाओ.” यह सुनकर नलिनी ने राहत की सांस ली. मन तो घर में अटका ही था, सो नेहा के कहने पर दो दिन और रुककर नलिनी ने वापसी का टिकट करवा लिया. साथ ही उपेन्द्र और नेहा को कह दिया कि उनके भोपाल पहुंचने की ख़बर पापाजी, नील-स्वरा को कतई न दें. सरप्राइज़ का मज़ा रहेगा.
सरप्राइज़ की बात सुनकर नेहा ख़ुशी-ख़ुशी मान गई, पर उपेन्द्र पहुंचने की सूचना न देने से कुछ असहज थे.
रास्ते में ट्रेन में उन्होंने इस बाबत नलिनी से बात की, तो वह बोली, “पहली बार स्वरा के भरोसे पापाजी और घर की ज़िम्मेदारी छोड़ी है. पापाजी-नील तो सीधे-सादे हैं, जब भी फोन किया ‘सब ठीक है, चिंता मत करो’ कहते रहे. अचानक पहुंचने पर स्वरा का असली मूल्यांकन हो पाएगा कि वो घर संभालने में कितनी सक्षम और घरवालों के प्रति कितनी संवेदनशील है.
यह सुनकर उपेन्द्र अवाक रह गए. नलिनी के फोन न करने के पीछे छिपी मानसिकता का उन्हें ज़रा भी भान नहीं था. वो तो समझे बैठे थे कि नलिनी अचानक पहुंचकर उन्हें सुखद आश्चर्य में डुबोने का मंतव्य रखती है.
बिना किसी को सूचित किए उपेन्द्र और नलिनी घर पहुंचे, तो ख़ुद सरप्राइज़ हो गए, जब घर में ताला लगा देखा. बाहर का गेट किराएदार ने खोला और बताया कि सब लोग सुबह से ही बाहर हैं. घर के बरामदे में उन्हें बैठाकर वह चाभी लेने चला गया. आसपास नज़र दौड़ाते नलिनी-उपेन्द्र बेतरह चौंके, जब उन्होंने पापाजी के कमरे की बेंत की आरामकुर्सी और मेज़ बरामदे में रखी देखी.
किराएदार से चाभी लेकर ताला खोला, तो सकते में आ गए. पापाजी के कमरे में परदे और पेंटिग्स के अलावा कुछ नहीं था. दीवान-आलमारी सब बरामदे से लगे छोटे-से गेस्टरूम में आ चुके थे. कमरे का हुलिया देखकर नलिनी को बहुत ग़ुस्सा आया. कितने सुरुचिपूर्ण ढंग से पापाजी का कमरा सजाया गया था. सुंदर परदे, पेंटिंग्स, केन की कुर्सियां, जिसमें मखमल की गद्दी लगी हुई थी. अख़बार रखने के लिए तिपाई... एक छोटा टीवी... सारी सुविधा से संपन्न बुज़ुर्ग आज उसकी अनुपस्थिति में गेस्टरूम में पहुंच गए थे.
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“कल की आई लड़की की हिम्मत देखो उपेन्द्र, पापाजी का ये हाल किया, तो हमारा क्या हाल करेगी बुढ़ापे में.” आवेश में बड़बड़ाती हुई नलिनी पूरे घर में घूम आई थी. बाकी घर का हुलिया ठीक-ठाक ही था... नील के ऊपर भी उसे बहुत क्रोध आया.
उसी समय नलिनी से मिलने बगलवाली पड़ोसन आ गई. नलिनी को देखकर वह बोली, “तुम्हें ऑटो से उतरते देखा तो चली आई. अच्छा हुआ तुम आ गई. तुम नहीं थी, तो तुम्हारे ससुर का तो बड़ा बुरा हाल था.
एक-दो बार आई मिलने तभी जाना कि तुम्हारी नई-नवेली बहू ने उन्हें अपने कमरे से बेदख़ल कर दिया है. मैं तो अक्सर उन्हें बरामदे या लॉन में भटकते देखती थी. अब हम लोग तो उसे कुछ कह नहीं सकते, वैसे भी आजकल की लड़कियां किसकी सुनती हैं. कहीं पलटकर मुझे कुछ कह देती तो भई, मैं तो न सह पाती. बस, तुम्हारे ससुर को देखकर बुरा लगता था. तुम लोगों ने उन्हें इतने आदर से रखा, पर तुम्हारी बहू ने तो...” वह बोल ही रही थी कि पापाजी की रौबदार आवाज़ आई, “बेटाजी, आप मेरे लिए इतना परेशान थीं, यह जानकर बड़ा अच्छा लगा, पर अपनी परेशानी मुझसे साझा कर लेतीं, तो ज़्यादा अच्छा होता.”
यह सुनकर पड़ोसन हकबका गई और नलिनी सिर पर आंचल रखकर ससुरजी के पांव छूने लगी.
“आप कहां गए थे पापा? और अकेले कहां से आ रहे हैं?”
“अकेला नहीं हूं स्वरा है बाहर. कोई जाननेवाला मिल गया है, उससे बात करने लगी है. पर ये बताओ, तुम लोग आनेवाले हो, ये किसी को बताया क्यों नहीं?” पापाजी ने पूछा तो उपेन्द्र बगले झांकते हुए बोले, “नलिनी आप लोगों को सरप्राइज़ देना चाहती थी.”
उपेन्द्र की बात सुनकर पापाजी कुर्सी से अपनी छड़ी टिकाते बोले, “सरप्राइज़ तो हम अच्छे से हो गए, पर जान जाते तुम लोग आनेवाले हो, तो डॉक्टर का अपॉइंटमेंट न लेते. घर पर ही मिलते.”
“सब ठीक तो है पापा...?” उपेन्द्र ने चिंता से पूछा, तो वह बोले, “सब ठीक है भई, डायबिटीज़ कंट्रोल में है.”
“पापाजी आप यहां कैसे आ गए? मतलब, इस छोटे से गेस्टरूम में.” नलिनी के पूछने पर वह बोले, “अरे, अभी इन्होंने तो बताया कि तुम्हारी बहू ने मुझे यहां भेज दिया और हां बेटाजी...” अब पापाजी पड़ोसन से मुखातिब थे, “तुम जो अभी मेरी बहू के कान भर रही थी कि मुझे मेरे कमरे से बेदख़ल कर दिया गया, तो सोचो, ऐसी हालत में तो मैं यहां दुखी-ग़मगीन-सा दिखता... और बेटे-बहू की नाक में दम न कर देता कि जल्दी आओ...”
“सॉरी अंकलजी, मैंने जो महसूस किया, सो कह दिया नलिनी से.”
“द़िक्क़त यही है, हम जो महसूस करते हैं, वो सही पात्र से नहीं कहते. तुमने जो महसूस किया, उसकी चर्चा मुझसे कर लेती तो ठीक रहता. अब देखो, जैसे मैं अपने बेटे-बहू से नहीं कह पाया कि मेरे बड़े से कमरे में मुझे अकेलापन लगता है.
नलिनी-उपेन्द्र ने इस घर का सबसे अच्छा कमरा मुझे दिया. इतने प्यार से सजाया-संवारा, पर सच कहूं तो कमरे से बरामदे और लॉन के बीच की दूरी के चलते आलसवश टहलना छूट गया.”
“अरे, तो ये बात पहले क्यों नहीं कही पापाजी?”
नलिनी के कहने पर पापाजी भावुक होकर बोले, “संकोचवश न कह पाया. कैसे कहता बेटी, जिस कमरे के परदे के सेलेक्शन के लिए तुम दस दुकानें घूमी हो, जिसके डेकोर के लिए तुम घंटों नेट के सामने बैठी हो, उस कमरे के लिए कैसे कह देता कि मुझे यहां नहीं रहना है. तू तो मेरी प्यारी बहू है, पर तेरी बहू तो मेरी मां बन गई. वह तो सीधे ही बोली, ‘दादाजी, आप दिनभर कमरे में क्यों बैठे रहते हैं. आलस छोड़िए, बैठे-बैठे घुटने और ख़राब हो जाएंगे.’ उसने मेरे कमरे से
कुर्सी-मेज़ निकलवाकर बरामदे में डलवा दिया. मैंने कहा कि लेटने के लिए कमरे तक जाना भारी पड़ता है, तो यह सुनकर तुम्हारी बहू बोली, ‘दादाजी जब तक सर्दी है, तब तक के लिए गेस्टरूम में शिफ्ट हो जाएं.’ मुझे भी सही ��गा. आराम करने की तलब होने पर बरामदे और लॉन से गेस्टरूम आना सुविधाजनक था. गेस्टरूम से लॉन-बरामदा सब दिखता है. जब मन करता है बरामदे में टहल लेता हूं... जब इच्छा हो, लॉन में पेड़-पौधे, फूल-पत्तियां देख लेता हूं... किराएदार के बच्चे खेलते हैं, तो उनकी आवाज़ मन में ऊर्जा भर देती है. किराएदार के बच्चे नीचे खेलने आते हैं, तो दो बातें उनसे भी कर लेता हूं... छोटावाला तो रोज़ नियम से शाम छह बजे लूडो ले आता है. बुरा न मानना बेटी, ये कमरा छोटा ज़रूर है, पर इसमें पूर्णता का एहसास है. चलने-फिरने में गिरने का डर नहीं रहता है. आसपास खिड़की-दरवाज़े, मेज़-कुर्सी का सहारा है. छड़ी की ज़रूरत नहीं.”
“अरे वाह! मम्मीजी आ गईं...” सहसा स्वरा का प्रफुल्लित स्वर गूंजा. पैर छूते हुए वह चहकी, “अरे, बताया नहीं कि आप आ रहे हैं. पता होता तो आज हम हॉस्पिटल न जाते.”
नलिनी चुप रही, तो पापाजी बोले, “तुम्हारी मम्मी तुम्हें सरप्राइज़ देना चाहती थीं.”
स्वरा चहकते हुए बोली, “आज सरप्राइज़ का दिन है क्या...? मम्मीजी पता है दादाजी की सारी रिपोर्ट्स नॉर्मल आई हैं.”
“देख लो, मेरी सैर रंग लाई.”
पापाजी के कहने पर स्वरा बोली, “मम्मीजी, बड़े जोड़-तोड़ किए दादाजी को टहलाने के लिए... रोज़ हम कहते टहलने को, तो दादाजी आज-कल कहकर टाल देते और अपने कमरे में बंद रजाई ओढ़े ठिठुरते रहते थे. बस, एक दिन इलाज निकाला पापाजी की रजाई और दीवान कमरे से हटाकर यहां डाल दी. अब प्यासे को कुएं के पास तो जाना ही था. इस कमरे के पास बरामदा होने से इनका अड्डा यहीं जमने लगा है. बरामदे और लॉन की पूरी धूप वसूलते हैं.” स्वरा हंस रही थी, पापाजी मुस्करा रहे थे, पर नलिनी मौन थी. उसे गंभीर देखकर स्वरा की हंसी थम गई.
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वह कान पकड़ते हुए बोली, “सॉरी मम्मी, नील ने पहले ही कहा था कि मेरी हरकत पर मुझे ख़ूब डांट पड़नेवाली है. सोचा था जब आप आएंगी, तब तक जनवरी की कड़ाके की सर्दी निकल जाएगी. आपके आने से पहले सारी व्यवस्था पहले जैसी कर दूंगी. पर आप तो बिना बताए आ गईं और मेरी ख़ुराफ़ात पकड़ी गई.”
यह सुनकर नलिनी गंभीरता से बोली, “बताकर आती, तो मूल्यांकन कैसे करती.”
“किस बात का?” स्वरा ने अचरज से पूछा, तो नलिनी बोली, “सिक्के के दूसरे पहलू का मूल्यांकन... सिक्के का एक पहलू सही तस्वीर नहीं दिखाता है ये आज जान लिया. अपने जीवन में मैंने कई बुज़ुर्गों को उपेक्षित जीवन जीते देखा है. जब घर बनवाया, तभी सोच लिया था कि पापाजी को सबसे बड़ा, सुंदर और आरामदायक कमरा देंगे, पर इस चक्कर में हमने पापाजी को कमरे से ही बांध दिया. साथ ही अकेलेपन से भी. इसका तोड़ निकालना पड़ेगा. सर्दी तक तो यहां ठीक है, पर गर्मियों में पुराने कमरे में रहेंगे पापाजी. पापाजी के पुराने कमरे में लाइब्रेरी शिफ्ट करके एक छोटा-सा सोफा और क्वीन साइज़ बेड लगा देंगे. आने-जानेवाले पापाजी के कमरे में बैठेंगे, ताकि वहां रौनक़ भी रहे और बड़ा कमरा छोटा भी लगे और पापाजी का दिल भी लगा रहे.”
“अरे वाह! मम्मीजी, ये तो और भी बढ़िया आइडिया है. वैसे दादाजी दिन में यहां और रात को वहां सो सकते हैं.”
“ये लो जी, एक और आइडिया.” उपेन्द्र हंसकर बोले, तो पापाजी बनावटी दुख के साथ कहने लगे, “इसका मतलब है कि मुझे दोनों कमरों की देखभाल करनी होगी.”
स्वरा हंसकर बोली, “और नहीं तो क्या. इसी बहाने आपका एक कमरे से दूसरे तक चलना-फिरना तो होगा. कम से कम ये तो नहीं कहेंगे, हाय मेरा घुटना जाम हो गया.” अपनी नकल करती स्वरा को देख पापाजी मुस्कुराकर बोले, “नलिनी, तेरी बहू बहुत शरारती है.”
यह सुनकर नलिनी तपाक से बोली, “मेरी बहू नहीं पापाजी, आपकी मां...” सब हंसने लगे.
इस बीच किराएदार के बच्चों की गेंद बरामदे में आ गई, जो पापाजी दो कदम चलने से कतराते थे, वह बच्चों की गेंद उठाने के लिए लॉन की ओर बढ़ रहे थे. नलिनी-उपेन्द्र के लिए यह दृश्य सुखद था.
“आंटीजी, आप चाय पियेंगी?” स्वरा ने पड़ोसन से पूछा, तो वह ‘घर में काम बहुत है’ कहते हुए उठ गई. शायद उन्हें भी सिक्के के दूसरे पहलू का भान हो गया था. जाती हुई पड़ोसन को नलिनी ने नहीं रोका, उसका ध्यान तो पापाजी की ओर था... जो खिलखिलाते चेहरे के साथ गेंद बच्चों की ओर उछाल रहे थे.
मीनू त्रिपाठी
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Lockdown 5.0: जून में इतने दिन बंद रहेंगे बैंक, यहां देखें Bank Holiday की पूरी लिस्ट
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Bank Holiday June 2020: कोरोना वायरस के चलते 25 मार्च से ही लॉकडाउन की मार झेल रहा देश आज से धीरे-धीरे अनलॉक हो रहा है। जाहिर है अब लोग घर से बाहर निकलेंगे। पहले से अटके बैंक के कामकाज को भी... from Live Hindustan Rss feedhttps://https://ift.tt/2AvKLdW
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Top amazing benefit of Candle flame gazing meditation Guide दीपक त्राटक साधना
अगर कोई आपसे पूछे की आप कौनसा tratak meditation करना पसंद करेंगे तो आपका जवाब होगा Mirror gazing or candle flame gazing meditation क्यों ? क्यों की YouTube पर इन 2 tratak के बारे में इतना कुछ शे��र किया जा चूका है खासकर Psychic ability को लेकर की हर कोई इसके पीछे crazy है. जोश में आकर Deepak or mombatti tratak की शुरुआत कर लेते है लेकिन कुछ समय बाद ही हमें अहसास हो जाता है की ये tratak meditation हमारे लिए नहीं है. इसकी वजह है इसका तीव्र प्रभाव. त्राटक में आप बिंदु त्राटक, शक्ति चक्र त्राटक, सप्त वर्तुल पर त्राटक, दर्पण त्राटक पढ़ चुके है इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए आज बात करते है ज्योति / CANDLE / Deepak tratak sadhna in Hindi की, दीपक त्राटक कठिन त्राटक में से एक है. इसमें दीपक की लौ पर नजर अभ्यास करना पड़ता है. और एक बात ये त्राटक बिलकुल अँधेरे वाले कमरे में किया जाता है. सभी जानना चाहते है की आखिर क्यों हमें दीपक त्राटक साधना का अभ्यास करना चाहिए. क्या सम्मोहन सिखने के लिए Deepak tratak साधना सबसे बढ़िया माध्यम है ?
अगर आप दिन में करते है तो आपको अपना कमरा पूरी तरह ढक कर करना होगा. दीपक त्राटक कठिन इसलिए माना गया है क्यों की दीपक की लौ गतिमान होती है हवा के जरा से इशारे पर ये गतिशील हो जाती है. इसलिए जब भी दीपक त्राटक का अभ्यास करना हो इस बात का ध्यान रखे की हवा का प्रवाह न के बराबर हो.
What is candle flame gazing meditation in Hindi
Candle gazing meditation ऐसे object पर fixed gazing practice है जिसमे Fire element है. ये object कोई भी हो सकता है जैसे की मोमबत्ती, दीपक या फिर कुछ और. ये साधना बहुत खास है और candle gazing meditation benefits इतने ज्यादा है की हर कोई आपको आज दीपक त्राटक साधना के बारे बताता हुआ मिल जायेगा. Candle gazing का सीधा connection third eye से जोड़कर देखा जाता है. ऐसा माना जाता है की candle gazing meditation का अभ्यास बहुत जल्दी ही third eye activation process को trigger करना शुरू कर देता है. जब हम किसी लौ पर gazing practice करते है तो ये सीधे हमारे pineal gland को active करती है जिसकी वजह से हम इसमें अनुभव जल्दी कर पाते है. tratak के दौरान लौ में ��ेहरे दिखाई देना या कुछ precognition experience होते रहते है जिनकी वजह हमारे nervous system की center का active बनना है. candle पर अभ्यास करने के लिए आपको एक tratak meditation stand की जरुरत पड़ती है ताकि हम एक लेवल बना सके और हमारी नजर सीधी रहे. इस tratak के लिए बंद कमरे का चुनाव करना होता है. अगर दिन में करना पड़े तो गहरे परदे लगा ले. इससे आप न सिर्फ candle flame पर खुद को concentrate कर लेंगे बल्कि अभ्यास में अनुभव भी सही रहेंगे. Deepak tratak sadhna के बारे में आवश्यक बाते इससे पहले की आप Candle gazing meditation technique की शुरुआत करे आपको इसके बारे मे कुछ Suggestion and help guide tips के बारे में जान लेना चाहिए. Spiritual benefit और Psychic ability specially hypnotic eye powers दोनों ही मकसद से किया जा सकता है. candle flame gazing meditation या फिर मोमबत्ती त्राटक दोनों एक ही है. जलते दीपक की लौ पर नजर जमाना दीपक त्राटक है और ये Spiritual tratak practice में से एक है. इस त्राटक से hypnotic power ability in eye को generate करते है जिसका प्रयोग दूसरों को अपने सामने मजबूर करने में कर सकते है ज्यादातर इसका अभ्यास सामाजिक सम्मान के लिए करते है. यह त्राटक हमें उग्र भी बना सकता है क्यों की इससे न सिर्फ आँखों में बल्कि बॉडी में भी गर्मी बनने लगती है और ये तेज हमें व्याकुल करने लगता है बेहतर होगा की इसके साथ हमें मन को साधना चाहिए और ध्यान करे. इस त्राटक में तेल के दीपक का इस्तेमाल न करे न ही मोमबत्ती का ( बंद कमरे में खुले में कर सकते है ) इसके लिए सिर्फ शुद्ध देसी घी का दीपक इस्तेमाल करे. ऐसा न हो तो Candle भी अच्छा option है और ये आसानी से available होने वाला माध्यम है. अगर आप इन Tips को ध्यान में रखकर practice शुरू करते है तो यक़ीनन आप इसे सही लाभ ले सकेंगे. being Positive make your Aura energy field strong इस सिद्धि का उपयोग सकारात्मक तथा निरापद कार्यों में करने से त्राटक शक्ति की वृद्धि होने लगती है. सिर्फ दे��ने मात्र से आग को पैदा करने वाले योगियों में भी त्राटक सिद्धि रहती है. इस सिद्धि से मन में concentration, संकल्प शक्ति व कार्य सिद्धि के योग बनते हैं. weak eye sight वालों को इस साधना को धीरे धीरे बढ़ते हुए क्रम में करना चाहिए. पहले दिन पॉच मिनट से शुरू कर के हर तीन चार दिन में एक मिनट ही बढाना चाहिये और अपनी आंखों की ज्योंति को चेक करते हुये धीरे धीरे ही बढाना चाहिये. अपनी आंखों की क्षमता के अनुसार candle flame gazing meditation practice को चालीस मिनट या अधिक समय तक ले जाना चाहिये. Deepak tratak sadhna हमें शक्ति देता है इसलिए इसका उपयोग दूसरों को निचा दिखाने में न करे. दिन में बिन्दु त्राटक करे वा रात्रि में दीपक त्राटक करे क्योंकि दिन के प्राक्रतिक प्रकाश में बिन्दु को आसानी से देखा जा सकता है ओर रात के अंधेरे में दीपक ठीक रहेगा. दिन में बिन्दु पर तो करना ही है कभी भी आप किसी चीज पर त्राटक कर सकते है. आफिस में दुकान में घर में खाली हुये किसी चीज पर अपनी नजर जमा लीजिये. सडक पर चल रहे है एक जगह रूक कर त्राटक नही करना है. tratak meditation के दौरान आप जितना stable and positive रहते है उतना ही आपको इस practice में फायदा मिलने लगता है. Stop analysis during practice क्या कभी आपने जानने की कोशिश की है fixed gazing tratak practice में हम fail क्यों हो जाते है ? इसकी सबसे बड़ी वजह है हमारा विचारो में उलझना. tratak के दौरान हमारे मन में कई तरह के विचार आते है क्यों की इस दौरान हमारे nervous center पर positive effect पड़ता है और वे active होने लगते है. इस समय हमें सिर्फ observe करना है न की interfere करना. अपने आस पास की चीजों को ध्यान से देखिये कोई विश्लेषण ना कीजिये. किसी चीज को ध्यान से देखने पर भी हमारे विचार रूकते है. Dot gazing exercise के लिये आवश्यक नही कि आप कागज पर ही बिन्दु बनाये. आप दीवार पर भी बना सकते है. मैंने घर में कुछ खास जगहों पर बिन्दु बना रखा है. जब भी टाइम मिलता है उस पर नजर जमा लेता हॅू. किसी भी चीज पर नजर जमाना त्राटक है सडक चलते हुये आस पास की चीजों को ध्यान से देखिये ये भी त्राटक ही है. कमजोर नेत्र ज्योति वालों को candle flame gazing meditation practice को step by step में करना चाहिए. पहले दिन 5 मिनट से शुरू कर के हर तीन चार दिन में एक मिनट ही बढाना चाहिये और अपनी Eye sight को चेक करते हुये धीरे धीरे ही बढाना चाहिये. अपनी आंखों की क्षमता के अनुसार इसको चालीस मिनट या अधिक समय तक ले जाना चाहिये. दीपक त्राटक से पहले की तैयारी Candle flame gazing की practice से पहले आपको कुछ तैयारी कर लेनी चाहिए. अभ्यास से ठीक 15 minute पहले हाथ मुह और आँखों को अच्छे से धो ले. कुछ देर eye exercise कर ले और फिर 5 minute तक breathing meditation exercise करे. इससे आपकी सांसे कण्ट्रोल में होती है. tratak के दौरान सबसे अहम् होती है सांसो की गति. जितनी धीमी गति से आप साँस लेते है उतना ही ज्यादा आपका Concentration बढ़ता है. धीमी गति से चली साँस हमारे विचारो मे�� कमी लाती है साथ ही candle flame पर focus करने में आसानी बनी रहती है. सीधे tratak के अभ्यास की वजह से हम लौ को स्थिर नहीं रख पाते है और हमारी सांसो की वजह से जब ये बार बार हिलती है तब थोड़ी ही देर के अभ्यास के बाद हम frustrate हो जाते है. इससे बचने के लिए आपको tratak meditation से पहले ये तैयारी कर लेनी चाहिए. candle flame gazing meditation practice in Hindi Candle flame gazing meditation का अभ्यास आप सुबह और रात्रि के 10 बजे बाद कभी भी कर सकते है. अन्य त्राटक की तरह इसके लिए भी वही नियम और शर्ते है. जैसे की अभ्यास में जल्दी नहीं, अभ्यास को नियमित रखना. अपने आसन से लगभग तीन चार पॉच फुट की दूरी पर मोमबत्ती अथवा दीपक को आप अपनी आँखों के सामने रखिए. अर्थात एक समान दूरी पर दीपक या मोमबत्ती, जो जलती रहे, जिस पर प्रैक्टिस के समय हवा नहीं लगे व वह बुझे भी नहीं, इस प्रकार रखिए. इसके आगे एकाग्र मन से व स्थिर आँखों से उस ज्योति को देखते रहें. जब तक आँखों में कोई अधिक कठिनाई नहीं हो तब तक देखते रहिये. यह क्रम प्रतिदिन जारी रखें. धीरे-धीरे आपको ज्योति का तेज बढ़ता हुआ दिखाई देगा. कुछ दिनों उपरांत आपको ज्योति के प्रकाश के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देगा. अभ्यास के दौरान मन को शांत रखना क्यों की अवचेतन मन उस दौरान आपके मनोभाव के अनुसार दीपक की लौ में चेहरे बनाता है. इसके लिए ध्यान रखे मन को निर्मल रखे जिससे आपका मन भटके नहीं और आपको दीपक त्राटक में सफलता मिले. दीपक शुद्ध घी का हो और उसके सामने बैठ जाये. ये दीपक आपके बैठने के ठीक सामने हो यानि की इसके अभ्यास में आपको अपनी नजर ऊपर निचे न करनी पड़े. ( tratak meditation stand का use करे ) दीपक त्राटक का और शक्ति चक्र का अभ्यास काफी हद तक समान है. क्यों की दोनों में ही गतिमान OBJECT पर FOCUS करना पड़ता है. Candle flame gazing meditation और Shakti chakra tratak meditation दोनों ही सबसे ज्यादा हमारे third eye activation process पर असर डालते है. ये प्रोसेस कुछ लोगो के लिए बहुत तेज हो सकती है इसलिए करते समय सावधान रहे और अगर मन को स्थिर नहीं रख पा रहे है तो अभ्यास को कुछ समय के लिए रोक दे. पढ़े : Trataka meditation के दौरान Thoughtless Awareness की स्थिति को कैसे प्राप्त करे ? दीपक त्राटक से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल जवाब What is candle gazing? ये एक tratak meditation process है जिसमे object के तौर पर हम flame वाले object लेते है जैसे की दीपक या मोमबत्ती. जब हम इसकी लौ पर fixed gazing करते है तो candle gazing practice बन जाती है. Is it safe to stare at a candle flame? लम्बे समय तक किसी object को देखते रहने की वजह से eye fatigue की problem का सामना करना पड़ता है. अगर आप बिना किसी सावधानी के लम्बे समय तक जबरदस्ती इसका अभ्यास करते है तो ये आपकी आँखों को नुकसान पहुंचा सकती है. Do candle help with mediation? meditation करने का सबसे बड़ा मकसद मस्तिष्क में आ रहे विचारो से छुटकारा पाना है. जब हम किसी object को medium बनाकर अभ्यास करते है तो आसानी से हम खुद को एक जगह focus रख पाते है. candle भी उन object में से एक हो सकता है जो आपके concentration के लिए एक वातावरण तैयार करती है. what are the benefit of candle gazing candle gazing के कई सारे फायदे है जिसमे आँखों की रौशनी बढ़ना, नजर तेज होना, सम्मोहन शक्ति का बनना और भी बहुत कुछ. ये साधना हमारे अन्दर के तेज को बढाती है जिसकी वजह से हम किसी भी व्यक्ति पर आसानी से अपना प्रभाव छोड़ पाते है. Why is my candle flickering so much? वजह है खुले कमरे में अभ्यास करना या फिर सांसो की गति का संयमित न होना. अभ्यास के दौरान अगर हम एक लय में साँस नहीं ले पाते है तो भी candle flame बिखर सकती है जिसका असर हमारे अभ्यास पर देखने को मिल सकता है. bad quality candle के unburned carbon particles की वजह से भी लौ बिखर सकती है. Are Candles bad for you? हाँ हो सकता है क्यों की सही चुनाव की कमी से toxic element नुकसान दे सकते है. Selecting a Candle for Trataka ज्यादातर लोगो का ये मानना है की market में easily available होने वाली white candle ही Candle flame gazing meditation में इस्तेमाल की जाती है लेकिन अब इस अभ्यास को थोड़ा advance बना दि��ा गया है. Different color of candle in trataka meditation का अलग अलग प्रभाव होता है. इस concept को लेने के पीछे Color therapy को ध्यान में रखा गया है. निचे अलग अलग कलर का हम पर क्या असर पड़ता है और किस तरह के अनुभव होते है इने दर्शाया गया है. ये process सिर्फ इसलिए add की गई है ताकि आप खुद को एक अलग अनुभव दे सके. market में अलग अलग color की candle available है लेकिन कोशिश करे की जिस candle का इस्तेमाल Aroma touch therapy में होता है उन्हें ही ले. ये Toxic free होती है. White – Purity, clarity, innocence, simplicity, completion Gold – Abundance, prosperity, wealth, spirituality Violet – Commitment, reverence, higher consciousness Indigo – Imagination, insight, wisdom, clarity of thought Blue – Creativity, self-expression, communication, relaxation, trust Turquoise – Independence, protection, healing Green – Forgiveness, compassion, inspiration, hope, love, freedom, healing Yellow – Ambition, inner power, self-esteem, self-respect, self-discipline, confidence, courage, generosity Orange – Sensuality and sexual energy, friendship, optimism, happiness Red – Courage, strength, vitality, survival, family bonding Pink – Empathy, loyalty हम जिस color का selection करते है वैसा ही हमारा मन बन जाता है. ये पूरी तरह आप पर है की आप इसका चुनाव कैसे करते है. Benefit of candle gazing trataka इस त्राटक के अभ्यास को में काफी special मानता हूँ. इसकी वजह है इसके Experience and benefit जो किसी और tratak में शायद इतने जल्दी न मिले. Improves eyesight and vision Improves concentration, intelligence and memory LAYA YOGA meditation के लिए सबसे बेहतरीन अभ्यास में से एक है. candle flame gazing meditation से self-confidence, patience and willpower को मजबूत बनाया जाता है कार्य-कुशलता और रचनाशील को बढाता है. मस्तिष्क को शांत करता है और inner peace and silence प्रदान करता है decision-making ability को strong बनाता है जिसकी वजह से निर्णय लेने में आसानी रहती है mental, behavioral and emotional ailments पर कण्ट्रोल हासिल होता है stress relief and deep relaxation sleep related disorders जैसे की headache, insomnia, nightmares को दूर करता है और गहरी नींद में सहायक है Clairvoyance or perception of subtle manifestations यानि आने वाले कल को देखने की क्षमता को active बनाता है. ये सभी benefit हमें tratak gazing meditation के जरिये मिलते है जिनकी वजह से लाइफ में काफी help मिलती है. candle flame gazing meditation suggestion and tips candle flame gazing meditation में लौ आपकी साँस लेने से भी थर्राती है इसलिए सांसो को नियत रखे दूसरा सांसो का सम्बन्ध विचारों से है इसलिए सांसो को नियंत्रित कर हम विचारों को नियंत्रित कर लेते है. जिससे की त्राटक में लगने वाला समय कम हो जाता है और सफलता जल्दी मिलने लगती है. त्राटक मन के विचारों को दर्शाता है इसलिए इस वक़्त आप जो भी सोचते है वो दीपक की लौ में झलकता है जैसे की इस अभ्यास में किसी के मन में दबी काम भावना जाग्रत हो जाती है तो उसे काम से जुड़े द्रश्य दिखने लगेंगे. अगर आपका मन शांत है तो आपको सिर्फ दिव्य ज्योति दिखेगी जिसमे आप खोते चले जायेंगे. यही है आपके subconscious mind secret programming की शुरुआत इसलिए त्राटक के वक़्त भावना पर नियंत्रण रखे अगर आपकी इच्छाएं इस वक़्त उठती है तो उन्हें भावना द्वारा साँस की गति नियत कर ले बिलकुल न के बराबर जिससे विचारों का प्रवाह रुक जाता है. जाग्रत होता है अवचेतन मन इस आकृति के अनुरूप ही घटनाएँ जीवन में घटित होने लगेंगी. इस अवस्था के साथ ही आपकी आँखों में एक विशिष्ट तरह का तेज आ जाएगा. जब आप किसी पर नजरें डालेंगे, तो वह आपके मनोनुकूल कार्य करने लगेगा. दीपक त्राटक पर या किसी अन्य त्राटक पर अलग अलग लोगो के अलग अलग अनुभव होते है. अगर अपने भी दीपक त्राटक किया है तो अपने अनुभव कमेंट के माध्यम से शेयर करे. आपके अनुभव किसी और को आगे बढ़ने में सहयक होंगे. अगर आप fixed gazing on laptop screen or mobile पर practice कर रहे है तो आपको इसके नुकसान जान लेने चाहिए. Candle flame gazing meditation final conclusion किसी भी tratak से पहले हमें उसके बारे में पूरी डिटेल समझ लेनी चाहिए. हम जिस Trataka object पर practice करते है वास्तव में हम खुद को वैसा ही बना लेते है यानि उसके गुण को अपनाते है. ये हठ योग का एक भाग है. Gazing flame meditation की शुरुआत करने से पहले आपको इसके लिए तैयार हो जाना चाहिए. अगर आप candle gazing meditation में color को ध्यान में रखते है तो अभ्यास को अलग दिशा मिल जाती है. हमारा मन अलग अलग रंग पर अलग reaction देता है. इन्हें ध्यान में रखकर अभ्यास किया जाए तो यक़ीनन सफलता हासिल की जा सकती है. tratak के दौरान हमें जो भी दिखाई देता है वो हमारे मन की रचना या फिर याद होती है जो normal condition में अपने Inactive state में होती है. अनुभव से घबराए नहीं बल्कि स��थिरता के साथ अभ्यास बनाए रखे. Read the full article
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कोरोनावायरस : 167 वर्षों में पहली बार रेलवे स्थापना दिवस पर थमे रहेंगे रेलगाड़ी के पहिए
चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. 16 अप्रैल को भारतीय रेलवे का 167वां स्थापना दिवस है। साल 1853 में आज ही के दिन पहली बार हमारे देश में ट्रेन का संचालन हुआ था। इतने सालों में यह पहली बार है जब रेलवे स्थापना दिवस पर यात्री ट्रेनों के पहिये थमे रहेंगे। बता दें देश में कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते 3 मई तक लॉकडाउन लागू है। ऐसे में यात्री रेल सेवा भी बंद है। भारतीय रेलवे के एक प्रवक्ता ने कहा कि, रेलवे के इतिहास में यह पहली बार है जब इतने दिनों तक यात्री रेल सेवाएं बंद की गई है। विश्व युद्ध ,1947 के दौरान हुई रेल हड़ताल, राष्ट्रीय या प्राकृतिक आपदा के बीच भी कभी इतने दिनों तक यात्री रेल संचालन बाधित नहीं रहा है। मुंबई में भी कभी भारी बारिश में या आतंकी हमले और बम धमाके के बाद भी इतनों दिनों तक रेल सेवा नहीं रोकी गई। ऐसे में यह लॉकडाउन अभूतपूर्व है। रेलवे प्रवक्ता ने यह भी कहा कि, साल 1974 की रेल हड़ताल भी असाधारण थी और तब कर्मचारी काम पर नहीं आ रहे थे और कर्मचारी संघ बातचीत कर रहे थे। लेकिन फिर भी अंतिम दिनों में आवश्यक सामग्री की ढुलाई के लिए ट्रेनों का संचालन शुरू कर दिया गया था। यह हड़ताल 8 से 27 मई तक चली थी। मुंबई में तैनात पश्चिमी रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि, 'मुझे याद है कि साल 2006 जुलाई में ट्रेनों में सिलसिलेवार धमाके हुए थे। इससे ट्रेनों को भी नुकसान हुआ था, लेकिन हम परिचालन रोकने को तैयार नहीं थे। घटना के चार घंटे के भीतर हमने ट्रेनों का परिचालन शुरू भी कर दिया था।' उन्होंने आगे कहा कि, कुछ सालों पहले भारी बारिश और बाढ़ की वजह से नालासोपारा इलाके में ट्रेनों का आवागमन रोकना पड़ा था, लेकिन दूसरे इलाकों में परिचालन जारी रहा था। ये भी पढ़े... भारतीय रेलवे का 167वां स्थापना दिवस आज, जानें रेलवे से जुड़ी 11 रोचक बातें भारत में बन रहा है दुनिया का सबसे बड़ा रेलवे ब्रिज, एफिल टॉवर से भी होगा ऊंचा सावधान! अगर तोड़े रेलवे के नियम तो आपको उठा ले जाएंगे यमराज रेलवे ने लॉन्च किया कार्टून कैरेक्टर गप्पू भैया, यह लोगों को कराएगा हादसों से सचेत Read the full article
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