#आसिफ अली लड़ाई
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crickettr · 2 years ago
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मियांदाद ने पाकिस्तान के प्रति 'खराब व्यवहार' के लिए अफगानिस्तान की खिंचाई की
मियांदाद ने पाकिस्तान के प्रति ‘खराब व्यवहार’ के लिए अफगानिस्तान की खिंचाई की
पाकिस्तान के पूर्व कप्तान जावेद मियांदाद ने इस पर जमकर बरसे हैं अफ़ग़ानिस्तान चल रहे एशिया कप 2022 में बाबर आज़म एंड कंपनी के खिलाफ सुपर 4 टाई के दौरान ‘बुरा व्यवहार’ दिखाने के लिए क्रिकेट टीम। बुधवार को, शारजाह की भीड़ ने आसिफ अली और फरीद अहमद के बीच पहले ओवर में पूर्व के आउट होने के बाद एक शारीरिक परिवर्तन देखा। पाकिस्तान का 130 रनों का पीछा. 8 गेंदों में 16 रन बनाने वाले अली डग की ओर जा रहे…
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trendingwatch · 2 years ago
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'जुमा जुमा आठ दिन के बच्चे हैं': मियांदाद ने पाकिस्तान के प्रति 'बुरे व्यवहार' के लिए अफगानिस्तान की खिंचाई की
‘जुमा जुमा आठ दिन के बच्चे हैं’: मियांदाद ने पाकिस्तान के प्रति ‘बुरे व्यवहार’ के लिए अफगानिस्तान की खिंचाई की
पाकिस्तान के पूर्व कप्तान जावेद मियांदाद ने इस पर जमकर बरसे हैं अफ़ग़ानिस्तान चल रहे एशिया कप 2022 में बाबर आज़म एंड कंपनी के खिलाफ सुपर 4 टाई के दौरान ‘बुरा व्यवहार’ दिखाने के लिए क्रिकेट टीम। बुधवार को, शारजाह की भीड़ ने आसिफ अली और फरीद अहमद के बीच पहले ओवर में आउट होने के बाद शारीरिक परिवर्तन देखा। पाकिस्तान का 130 रनों का पीछा. 8 गेंदों में 16 रन बनाने वाले अली डग की ओर जा रहे थे, जब उन्हें…
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dainiksamachar · 2 years ago
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भुट्टो की लालच में पाकिस्‍तान से टूटकर बना था बांग्‍लादेश, अब इतिहास खुद को दोहरा रहा, इमरान खान का जोरदार प्रहार
लाहौर: पाकिस्‍तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के मुखिया और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने संघर्ष की तुलना बांग्‍लादेश के संस्‍थापक शेख मुजीबुर रहमान से कर डाली है। इमरान ने कहा कि जिस तरह से आवामी लीग के मुखिया शेख मुजीबुर रहमान ने असली आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, उसी तरह से वह भी संघर्ष कर रहे हैं। इमरान ने याद दिलाया कि जब एक राजनीतिक पार्टी को कानूनी तौर पर राजनीतिक जनादेश मिलने के बाद भी शासन नहीं करने दिया गया तो कैसे एक देश दो टुकड़ों में बंट गया था। लालच ने तोड़ा एक देश इमरान खान की तरफ से 28 अक्‍टूबर से हकीकी आजादी मार्च का आयोजन किया जा रहा है। मंगलवार को मार्च का पांचवां दिन था और इमरान गुंजरावाला में मौजूद थे। मार्च अपने तय कार्यक्रम से काफी पीछे चल रहा है। इसमें शामिल लोगों को संबोधित करते हुए इमरान ने कहा कि आवामी लीग को चुनावी जनादेश के बाद सत्‍ता का अधिकारी नहीं दिया गया था। इसका नतीजा था कि पाकिस्‍तान का पूर्वी हिस्‍सा अलग हो गया और बांग्‍लादेश बन गया। इमरान के शब्‍दों में, 'एक नालायक राजनेता ने सत्‍ता के लिए उसी लालच में सेनाओं को उस समय क��� सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के खिलाफ तैयार कर दिया था जिसने चुनाव जीता था, इस लालच की वजह से देश टूट गया था।' नवाज और जरदारी पर हमला इमरान ने कहा कि उनकी पार्टी इस समय सबसे बड़ राजनीतिक पार्टी है और इकलौती संघीय पार्टी भी है। लेकिन इसके बाद भी देश की सरकार ताजा चुनाव कराने से इनकार कर रही है। इमरान ने कहा, 'हर कोई जानता है कि मुजीबुर रहमान और उनकी पार्टी ने सन् 1970 में आम चुनाव जीते थे। उन्‍हें सत्‍ता हस्‍तांतरण करने की जगह एक चालाक राजनेता ने आवामी लीग और सेना को ही आपस में लड़वा दिया। वर्तमान समय में नवाज शरीफ और पूर्व राष्‍ट्रपति आसिफ अली जरदारी उसी तरह का काम कर रहे हैं। ये दोनों ही सरकार के साथ साजिश करके पीटीआई की सत्‍ता में वापसी को रोकने में लगे हुए हैं।' नवाज शरीफ को चैलेंज इस रैली में इमरान खान ने पूर्व पीएम नवाज शरीफ को भी चुनाव लड़ने की चुनौती दी। इमरान ने कहा कि नवाज शरीफ जब आप वापस आयेंगे तो मैं आपको आपके ही संसदीय क्षेत्र में हराकर दिखाऊंगा। इस समय इमरान ने जरदारी पर निशाना साधा। उन्‍होंने कहा कि वह सिंध में भी मौजूद होंगे क्‍योंकि इस प्रांत को बाकी प्रांतों की तुलना में जल्‍दी आजादी की जरूरत है। 'इमरान से डरने की जरूरत नहीं' पीटीआई की तरफ से इस्‍लामाबाद में इस समय एक हकीकी आजादी मार्च का आयोजन किया जा रहा है। इस मार्च में देश से लाखों लोग हिस्‍सा रहे हैं। इस प्रदर्शन ने पाकिस्‍तान की शहबाज सरकार की चिंताओं को बढ़ा दिया है। भाई और देश के पीएम शहबाज शरीफ की परेशानी देखकर नवाज ने लंदन ने उन्‍हें सलाह दी है। नवाज ने शहबाज को बताया कि पीएम को किसी की भी सुनने की जरूरत नहीं है। नवाज की मानें तो शहबाज को न तो इमरान की कोई मांग मानने की जरूरत है और न ही पूर्व पीएम को किसी तरह का कोई सम्‍मान देना चाहिए। चाहे इमरान दो हजार लोगों को इकट्ठा करें या फिर 20 हजार लोगों को। http://dlvr.it/Sc54t4
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sablogpatrika · 3 years ago
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अरुणा आसफ अली : 1942 की रानी झाँसी
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  आजाद भारत के असली सितारे-37   9 अगस्त 1942 को बम्बई के गोवालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आन्दोलन की बिगुल बजाने वाली और देश के युवाओं में एक नया जोश भरने वाली अरुणा आसफ अली (16.7.1909- 29.7.1996) का जन्म बंगाली परिवार में हरियाणा (तत्कालीन पंजाब) के कालका नामक स्थान में हुआ था। अरुणा आसफ अली के बचपन का नाम 'अरुणा गांगुली' था। इनके पिता बंगाल के एक प्रतिष्ठित परिवार से थे। उनका नाम था डॉ. उपेन्द्रनाथ गांगुली। वे बंगाल से आकर तत्कालीन संयुक्त प्रांत में बस गये थे। अरुणा के सिर से पिता का साया बचपन में ही उठ गया था किन्तु उनकी माँ अम्बालिका देवी ने उनकी पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था में किसी तरह की कमी नहीं आने दी। अरुणा ने पहले लाहौर के सैक्रेड हार्ट स्कूल और उसके बाद नैनीताल के ऑल सेन्ट्स कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की।   नैनीताल में उनके पिता का होटल का व्यवसाय था। वहीं पर जवाहरलाल नेहरू से भी उनका परिचय हुआ था, क्योंकि गर्मियों में पं. नेहरू का परिवार आमतौर पर नैनीताल चला जाता था। आरम्भ से ही अरुणा बहुत ही कुशाग्र बुद्धि की थीं और बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। लाहौर और नैनीताल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वे बंगाल आ गयीं और कोलकाता के 'गोखले मेमोरियल कॉलेज' में अध्यापन करने लगीं। इसी बीच इलाहाबाद में उनकी बहन पूर्णिमा बनर्जी के घर पर अरुणा की मुलाकात भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के वरिष्ठ नेता आसफ अली से हुई। ये वही आसफ अली हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले भगत सिंह का हमेशा समर्थन किया था। असेंबली में बम फोड़ने के बाद गिरफ्तार हुए भगत सिंह का केस भी आसफ अली ने ही लड़ा था। आसफ अली से उनकी यह मुलाकात धीरे-धीरे घ��िष्ठता में बदल गयी। स्वतन्त्र और साहसी विचारों वाली अरुणा ने परिजनों के विरोध के बावजूद आसफ अली से 1928 में विवाह कर लिया। उस समय अरुणा की उम्र 19 वर्ष थी और आसफ अली उनसे लगभग 20 साल बड़े थे। विवाह के बाद अरुणा का नाम बदलकर कुलसुम जमानी हो गया था लेकिन समाज में उनकी पहचान अरुणा आसफ अली के रूप में ही रही। आसफ अली से विवाह करने के पश्चात अरुणा स्वाधीनता संग्राम से जुड़ गयीं। वे अपने पति के साथ दिल्ली आ गयीं और दोनों पति-पत्नी स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने लगे।
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 नमक सत्याग्रह के दौरान होने वाली सार्वजनिक सभाओं में भाग लेने के कारण अरुणा आसफ अली को 1930 में गिरफ्तार कर लिया गया। वे लगभग एक वर्ष तक जेल में रहीं। वर्ष 1931 में गाँधी-इर्विन समझौते के अंतर्गत लगभग सभी राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया था, किन्तु, अरुणा आसफ अली को मुक्त नहीं किया गया। अरुणा आसफ अली के साथ होने वाले इस भेद-भाव से आहत होकर उनकी अन्य महिला साथियों ने भी जेल से बाहर निकलने से मना कर दिया। इसके बाद महात्मा गाँधी के दखल देने के बाद ही अरुणा आसफ अली को जेल से रिहा किया गया। वर्ष 1932 में तिहाड़ जेल में बंद होने के दौरान उन्होंने जेल प्रशासन द्वारा राजनैतिक कैदियों के साथ बुरा बर्ताव करने के विरोध में भूख हड़ताल कर दी। उनके प्रयास से तिहाड़ जेल के कैदियों की दशा में तो सुधार हुआ लेकिन अरुणा आसफ अली को अंबाला की जेल में एकांत कारावास की सजा दे दी गयी।  वर्ष 1932 में महात्मा गाँधी के आह्वान पर उन्होंने सत्याग्रह में सक्रिय भाग लिया, जिस कारण इन्हें फिर से छह माह के लिए जेल जाना पड़ा। वर्ष 1941 में अंग्रेजों ने भारत को द्वितीय विश्वयुद्ध में ढकेल दिया, जिसके विरोध में महात्मा गाँधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू कर दिया। अरुणा आसफ अली ने भी इसमें भाग लिया, जिसके फलस्वरूप उन्हें एक वर्ष कारावास की सजा मिली। ऊपर उल्लेख किया जा चुका है कि 9 अगस्त, 1942 को अ���िल भारतीय काँग्रेस समिति के बम्बई अधिवेशन में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आन्दोलन शुरू करने का प्रस्ताव पारित हुआ। इस अधिवेशन में अरुणा आसफ अली भी अपने पति के साथ मौजूद थीं। अंग्रेज सरकार ने अपने विरुद्ध हुए इस फैसले को असफल करने के लिए काँग्रेस के सभी बड़े नेताओं और कार्यसमिति के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। ऐसी परिस्थिति में अन्तिम सत्र की अध्यक्षता अरुणा आसफ अली ने किया और उन्होंने 9 अगस्त को बम्बई के गोवालिया टैंक मैदान में भारत का तिरंगा फहराकर भारत छोड़ो आन्दोलन की घोषणा कर दी। झंडा फहराए जाने के बाद पुलिस ने भीड़ पर आँसू गैस के गोले छोड़े, लाठी चार्ज किया और गोलियाँ भी चलाईं। इस दमन ने अरुणा आसफ अली के मन में आजादी की लौ को और अधिक तेज कर दिया। वे आम जनमानस में क्रान्ति का संदेश देकर भूमिगत हो गयीं और वेश एवं स्थान बदल-बदलकर आन्दोलन में हिस्सा लेने लगीं। अरुणा आसफ अली द्वारा गोवालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराने का व्यापक असर सारे देश पर पड़ा और आजादी के आन्दोलन में हिस्सा लेने वाले युवाओं में ऊर्जा का संचार हो गया। निश्चित रूप से अरुणा आसफ अली भारत छोड़ो आन्दोलन की नायिका थीं। उस समय कोई स्थिर नेतृत्व न होने के बावजूद देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ कड़े विरोध प्रदर्शन हुए जो यह स्पष्ट कर रहे थे कि अब भारतवासियों को गुलाम बना कर नहीं रखा जा सकता। गोवालिय़ा टैंक मैदान को अब अगस्त क्रान्ति मैदान कहा जाता है।
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इसी दौरान अरुणा आसफ अली को भी गिरफ्तार करने का आदेश जारी कर दिया गया था। गिरफ्तारी से बचने के लिए अरुणा भूमिगत हो गयीं थीं। दरअसल उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, डॉ॰ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का ज्यादा प्रभाव था। इसी कारण ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में अरुणा जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। गाँधी जी सहित अन्य नेताओं की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद बम्बई में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे असाधारण महिला थीं। बाद में उन्होंने गुप्त रूप से उन काँग्रेस जनों क��� पथ-प्रदर्शन किया, जो जेल से बाहर थे। बम्बई, कलकत्ता, दिल्ली आदि में घूम-घूमकर, मगर पुलिस की पकड़ से बचते हुए उन्होंने आजादी के आन्दोलन में शामिल लोगों में नव जागृति लाने का प्रयत्न किया। 1942 से 1946 तक वे देश भर में लगातार सक्रिय रहीं किन्तु ब्रिटिश सरकार का गुप्तचर विभाग लाख कोशिश करने के बावजूद उन्हें गिरफ्तार नहीं कर पाया। अंत में अंग्रेजों ने उनकी सारी सम्पत्ति जब्त करके उसे नीलाम कर दिया। इस बीच वे राम मनोहर लोहिया के साथ मिलकर ‘इंकलाब’ नामक मासिक समाचार पत्र का सम्पादन भी करती रहीं। अंग्रेज सरकार ने अरुणा आसफ अली की सूचना देने पर पाँच हजार रुपये का इनाम रखा था। इसी दौरान उनका स्वास्थ्य भी बहुत खराब हो गया था।  9 अगस्त 1942 से 26 जनवरी 1946 तक अरुणा आसफ अली को गिरफ्तार करने का वारन्ट उनका पीछा करता रहा किन्तु वे पकड़ में नहीं आईं। महात्मा गाँधी ने उन्हें पत्र लिखकर आत्म-समर्पण करने और आत्म-समर्पण के एवज में मिलने वाली धनराशि को हरिजन अभियान के लिए उपयोग करने को कहा, किन्तु अरुणा आसफ अली ने आत्म-समर्पण नहीं किया। वर्ष 1946 में जब उन्हें गिरफ्तार करने का वारंट रद्द किया गया तब जाकर अरुणा आसफ अली ने आत्म-समर्पण किया। आत्म-समर्पण करने के बाद पूरे देश में उनका भव्य स्वागत हुआ। कलकत्ता और दिल्ली में अरुणा आसफ अली ने अपने स्वागत में आयोजित सभाओं में ऐतिहासिक भाषण दिये। दिल्ली की सभाओं में उन्होंने कहा, “भारत की स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में ब्रिटेन से कोई समझौता नहीं को सकता। भारत अपनी स्वतन्त्रता ब्रिटेन से छीनकर ग्रहण करेगा। समझौते के दिन बीत गये। हम तो स्वतन्त्रता के लिए युद्ध क्षेत्र में ब्रिटेन से मोर्चा लेंगे। शत्रु के पराजित हो जाने के बाद ही समझौता हो सकता है। हिन्दुओं और मुस्लिमों की संयुक्त माँग के समक्ष ब्रिटिश साम्राज्यवाद को झुकना होगा। हम भारतीय स्वतन्त्रता की भीख माँगने नहीं जाएंगे।” 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। अरुणा आसफ अली दिल्ली प्रदेश काँग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनीं। वर्ष 1947-48 में उन्होंने दिल्ली में शरणार्थियों की समस्या को हल करने के लिए अपना जी-जान लगा दिया था। आर्थिक नीतियों के प्रश्न पर भारत के पहले प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू से सैद्धांतिक मतभेद होने के कारण वे काँग्रेस से अलग हो गयीं और वर्ष 1948 में आचार्य नरेन्द्र देव की सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गयीं। दो साल बाद सन् 1950 ई. में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई और वे 'मज़दूर-आन्दोलन' में जी-जान से जुट गयीं। फिर वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गयीं। 1953 में पति आसिफ अली के निधन से ��रुणा जी को निजी जीवन ��ें गहरा धक्का लगा। वे मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत कमजोर हो गयी थीं। 1954 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की महिला इकाई, “नेशनल फेडरेशन ऑफ वीमेन” का गठन किया। 1956 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को भी छोड़ दिया मगर वे पार्टी की हमदर्द बनी रहीं। इस दौरान वर्ष 1958 में अरुणा आसफ अली दिल्ली की पहली मेयर चुनी गयीं। मेयर बनकर उन्होंने दिल्ली के विकास, सफाई और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया और नगर निगम की कार्य प्रणाली में भी उन्होंने यथेष्ट सुधार किए।
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 जयप्रकाश नारायण के साथ मिलकर उन्होंने दैनिक समाचार पत्र ‘पैट्रियाट’ और साप्ताहिक समाचार पत्र ‘लिंक’ का प्रकाशन किया। जवाहरलाल नेहरू तथा बीजू पटनायक आदि से सम्बन्धित होने के कारण जल्दी ही दोनों समाचार पत्रों को देश में अच्छी पहचान मिल गयी। लेकिन अंदरूनी राजनीति से आहत होकर उन्होंने कुछ ही समय में प्रकाशन का काम भी छोड़ दिया। पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद मई 1964 में अरुणा आसफ अली फिर से भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में शामिल हो गयीं और प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा देने के लिए काम करने लगीँ, किन्तु सक्रिय राजनीति से वे दूर रहीं। अरुणा आसफ अली, इन्दिरा गाँधी और राजीव गाँधी के करीबियों में भी गिनी जाती थीं। यद्यपि उन्होंने 1975 में इन्दिरा गाँधी द्वारा आपातकाल लगाने का विरोध किया था। अरुणा आसफ अली की एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसमें उन्होने अपने संघर्ष तथा राजनीतिक विचारों को वाणी दी है। पुस्तक का नाम है, ‘वर्ड्स ऑफ फ्रीडम : आइडियाज ऑफ ए नेशन’। मार्च 1944 में उन्होंने अपनी पत्रिका ‘इंकलाब’ में लिखा, “आजादी की लड़ाई के लिए हिंसा-अहिंसा की बहस में नहीं पड़ना चाहिए। क्रान्ति का यह समय बहस में खोने का नहीं है। मैं चाहती हूँ, इस समय देश का हर नागरिक अपने ढंग से क्रान्ति का सिपाही बने।” दैनिक ‘ट्रिब्यून’ ने अरुणा आसफ अली की साहसिक भूमिगत मोर्चाबंदी के लिए उन्हें ‘1942 की रानी झाँसी’ की संज्ञा दी थी। साथ ही ��न्हें ‘ग्रैंड ओल्ड लेडी’ भी कहा जाता है। उनके नाम पर दिल्ली में अरुणा आसफ अली मार्ग है जो वसंत कुंज, किशनगढ़, जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी, आईआईटी दिल्ली को जोड़ता है। सामाजिक कार्यों में अरुणा आसफ अली की गहरी रुचि थी। वे समाज के दबे पिछड़े लोगों के लिए हमेशा संघर्ष करती रहीं। वे भारत-रूस संस्कृति संस्था की सदस्य थीँ और उन्होंने दोनो देशों की मित्रता बढ़ाने में बहुत सहयोग किया। दिल्ली में उन्होंने सरस्वती भवन की स्थापान भी की, जो संस्था गरीब और असहाय महिलाओं की शिक्षा से जुड़ी थी। अरुणा आसफ़ अली ‘इंडो-सोवियत कल्चरल सोसाइटी’, ‘ऑल इंडिया पीस काउंसिल’, तथा ‘नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन’ आदि संस्थाओं के लिए उन्होंने बड़ी लगन, निष्ठा, ईमानदारी से कार्य किया। दिल्ली से प्रकाशित वामपन्थी अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र ‘पेट्रियट’ से वे जीवनपर्यंत पूरी निष्ठा से जुड़ी रहीं। भारत के बँटवारे को वे कभी स्वीकार नहीं कर पाईं। पंजाब में 1983 में जब सिख दंगे हुए तो विभिन्न धर्मावलम्बी एक सौ स्वयं-सेवकों के साथ वे वहाँ अपने शान्ति-मिशन में डटी रहीं। दिल्ली की प्रतिष्ठित लेडी इर्विन कॉलेज की स्थापना भी अरुणा के प्रयासों से हुई। वे आल इंडिया ट्रेड यूनियन काँग्रेस की उपाध्यक्ष भी रहीं। लम्बी बीमारी के बाद 29 जुलाई 1996 को अरुणा आसफ अली का नयी दिल्ली में 87 वर्ष की आयु मे निधन हो गया। अरुणा आसफ अली की अपनी विशिष्ट जीवन शैली थी। वे आजीवन अपने पति के साथ एक कमरे के फ्लैट में रहीं। उम्र के आठवें दशक में भी वह सार्वजनिक परिवहन से सफर करती थीं। वर्ष 1975 में अरुणा आसफ अली को शान्ति और सौहार्द के क्षेत्र में लेनिन शान्ति पुरस्कार, 1992 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ से सम्मानित किया गया। जन्मदिन के अवसर पर देश और समाज के लिए अरुणा आसफ अली के महान योगदान का हम स्मरण करते हैं और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। . Read the full article
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RR Film Presenter - Incredible India - Producer Renuka Raj Rajput Singh Director Raj Singh Rajput
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RR Film Presenter - Incredible India - Producer Renuka Raj Rajput Singh Director Raj Singh Rajput
India’s first Hindi movie. , Incredible India, which launched the calendar of every artist. The producer of this film has done a unique way of promoting all of his artists. Very few are such filmmakers, whose purpose is not to make money from films, but to make sense of patriotism among the people through the film. It is to create a feeling among the people that the responsibility of making the beautiful country in which you are living is yours, only then we will call the country an incredible India, which was also at that time when the country was not divided. After partition, the country was split into two pieces, which came in the form of India and Pakistan. India is still incredible where there are people of many religions and where good souls struggle with the evil spirits. These evil spirits repeatedly attack the country. Live-ji could not do anything, now die trying to distort India’s picture. These evil spirits remain in the danger of spreading hatred among the two countries.
Many terrorist attacks on the country by the neighboring country were also a game of such evil spirits. In total, the film ‘Incredible India’ is a mutual battle between good and evil spirits of two countries, in which many innocent people are killed. For the first time, a film has shown mutual war between the two countries and the message is also being given through it. Produced under the banner of RR Films, Renuka Singh, Rajput and Raja Rajput Rajput will have five heroes, five heroines and five villains in this film, which is a wonderful case of cinematic history. Rajpal Yadav, Mushtaq Khan, Ali Khan, Ramesh Goyal, Basheer Khan, Dilip Kedar etc. Many of the senior and prominent actors, Vishal Desai, Prashant Pundir, Tanushree Mukherjee, Vijay Singh Patel, Kapil Solanki, Shiv Pujan Tiwari, Ramcharan Patel, Vinod Patel, Nagendra Kumar Patel, Shweta Sinha, Gulab Patel, Rajkumari Saket, Ajit Aryan, Zakir Khan, Anil Anuj, Neelam Arora, Yogesh Yadav, Sachin Choure , Neelu Sharma, Dharmedar Bachchan, Shobha Singh Rajput, Sonia Kamra, Devendra Dixit, Aurangzeb Chippa, Manish Kumar, Khushbu Shukla, Purvi Shirke, Ravishakant, Pooja Pandya, Raju Harsana, Mithlesh Kumar, natak Thakkar, Sakshi Tiwari, Sunny Tiwari, Prashant Magadhar, A Raza, Deepali Soni, Ranveer Waghwani, Mahesh Bhatekar, Ranjit Das, Jagdish Patil, Shivraj Alam, Ritesh Rathore, Niraj Rathok, Mamta Pathak, Seema Sharma, Awadhesh Verma, Sunil Desai, Life It was not easy to get out of 66 artists together with Vadra, Manoj Gurjar, Mohammad Islauddin, Vaishali Ghosh, Tarabje Khan, Bandu Khanna, Geeta Sharma, Tapan Arora, Tanuja Khandelwal, Ramu Yadav, Deepak Kumar, but director Raja Raj Singh Rajput It has been shown by the directorial skill that has decided that 25 percent of the earnings from the film are for the country’s martyred soldiers and the affected farmers. Aron will, who have already lost their lives due to financial constraints. On this occasion, all film stars and guests and all friends and media have given Dhanbad with heart and all are the writers of the film Mohammed Atik. The songs of Khalid bhati and  Mohammad atik  are decorated with music by Asif Zakir. Executive Producer is Awadhesh Sharma. Shadow is Hemant Patil and Ex Director is Riyaz Sultan P. R. Studio Parvez Alam, P. R.O. filmy jhalak Raja Ram Singh.
  आर आर फिल्म प्रजे��ट ‘इनक्रेडिबल इंडिया’ निर्माता रेनुका राज राजपूत सिंह निर्देशक राज सिंह राजपूत,
भारत की पहली हिंदी फिल्म है। ,इनक्रेडिबल इंडिया, जिसका हर कलाकार का  कलेंडर लांच किया। इस फिल्म के निर्माता ने अपने सारे कलाकारों का प्रमोशन का अनोखा तरीका किया बहुत कम ऐसे फिल्मकार हैं, जिनका मकसद फिल्मों से पैसा कमाना नहीं, बल्कि फिल्म के जरिए लोगों में देशभक्ति की भावना जगाना है। लोगों में यह अहसास पैदा करना है कि जिस देश में तुम रह रहे हो, उसको सुंदर बनाने का दायित्व भी तुम्हारा है, तभी देश को हम अतुल्य भारत कहेंगे, जो उस समय भी था, जब देश का विभाजन नहीं हुआ था। विभाजन के बाद देश दो टुकड़ों में बंट गया, जो भारत और पाकिस्तान के रूप में सामने आया। भारत आज भी अतुल्य है जहां कई धर्मों के लोग रहते हैं और जहां अच्छी आत्माएं बुरी आत्माओं के साथ संघर्ष करती हैं। ये बुरी आत्माएं देश पर बार—बार हमला करती हैं। जीते—जी तो ये कुछ कर नहीं पाई, अब मरकर भारत की तस्वीर बिगाड़ने की कोशिश करती हैं। ये बुरी आत्माएं दो देशों के बीच नफरत की आग फैलाने की ताक में रहती हैं।
देश पर पड़ौसी मुल्क द्वारा किए गए कई आतंकी हमले भी उन्हीं बुरी आत्माओं का खेल था। कुल मिलाकर फिल्म ‘इनक्रेडिबल इंडिया’ दो देशों की अच्छी और बुरी आत्माओं की आपसी लड़ाई है, जिसमें कई निर्दोष लोग मारे जाते हैं। पहली बार किसी फिल्म में दो देशों की आत्माओं के बीच आपसी जंग दिखाई गई है और उसके जरिए मैसेज भी दिया जा रहा है। आर आर फिल्म्स के बैनर तले बनी निर्माता रेणिुका सिंह राजपूत और राजा सिंह राजपूत की इस फिल्म में पांच हीरो, पांच हीरोइन और पांच खलनायक नजऱ आएंगे, जो सिनेमाई इतिहास का अद्भुत मामला है। राजपाल यादव, मुश्ताक खान, अली खान, रमेश गोयल, बशीर खान, दिलीप केदार आदि कई वरिष्ठ व कद्दावर अभिनेताओं ने सजी इस फिल्म में विशाल देसाई, प्रशांत पुंडीर, तनुश्री मुखर्जी, विजय सिंह पटेल, कपिल सोलंकी, शिवपूजन तिवारी, रामचरण पटेल, विनोद पटेल, नागेन्द्र कुमार पटेल, श्वेता सिन्हा, गुलाब पटेल, राजकुमारी साकेत, अजीत आर्यन, जाकिर खान, अनिल अनुज, नीलम अरोड़ा, योगेश यादव, सचिन चौर, नीलू शर्मा, धर्मेेंद्र बच्चन, शोभा सिंह राजपूत, सोनिया कामरा, देवेंद्र दीक्षित, औरंगजेब चिप्पा, मनीष कुमार, खुशबू शुक्ला, पूर्वी शिर्के, रविशकांत, पूजा पांड्या, राजू हरसाना, मिथलेश कुमार, नैतिक ठक्कर, साक्षी तिवारी, सन्नी तिवारी, प्रशांत जादूगर, ऐ के रजा,दीपाली सोनी, रणवीर वाघवाणी, महेश भटेकर , रंजीत दास, जगदीश पाटिल, शिवराज आलम, रितेश राठौर, निरज राठौक, ममता पाठक, सीमा शर्मा, अवधेश वर्मा, सुनील देसाई, जीवन वडेरा, मनोज गुर्जर, मौहम्मद इस्लाउद्दीन, वैशाली घोष, तरबेज खान, बंधु खन्ना, गीता शर्मा,  तपन अरोड़ा, तनुज खंडेलवाल, रामू यादव, दीपक कुमार आदि करीब 66 कलाकारों से एक साथ निकलवा पाना आसान नहीं था लेकिन  निर्देशक राजा सिंह राजपूत ने अपने निर्देशकीय कौशल से यह कर दिखाया, जिन्होंने तय किया है कि इस फिल्म से होने वाली कमाई का 25 प्रतिशत हिस्सा वह देश के लिए शहीद हो चुके जवानों व पीडि़त किसान परिवारों को देंगे, जो आर्थिक तंगी के चलते अपनी जान दे चुके हैं। इसी मौके पर आये सभी फिल्म कलाकार ओर मेहमानों और सभी दोस्तों वा मीडिया को दिल से धनबाद दिया  सभी को इस फिल्म के लेखक हैं मोहम्मद अतीक। खालिद भाटी के गीतों को संगीत से सजाया है आसिफ जाकिर ने। कार्यकारी निर्माता हैं अवधेश शर्मा। छायांकन हेमंत पाटिल का है और एक् शन डायरेक्टर हैं रियाज़ सुल्तान। पी आर स्टूडियो परवेज आलम, पी आर ओ फिल्मी झलक राजा राम सिंह.
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crickettr · 2 years ago
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'बेवकूफ चरम स्तर पर'- फरीद मलिक पर आसिफ अली के बल्ला उठाने पर ट्विटर पर प्रतिक्रिया
‘बेवकूफ चरम स्तर पर’- फरीद मलिक पर आसिफ अली के बल्ला उठाने पर ट्विटर पर प्रतिक्रिया
पाकिस्तान बनाम के दौरान अफ़ग़ानिस्तान बुधवार (7 सितंबर) को खेले गए मैच में बाबर आजम की अगुवाई वाली टीम ने एक विकेट से जीत दर्ज कर टूर्नामेंट के फाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली है। हालांकि, थ्रिलर चेज के दौरान, पाकिस्तान के बल्लेबाज आसिफ अली और अफगान तेज गेंदबाज फरीद अहमद मलिक के बीच तीखी नोकझोंक हुई। मलिक के ओवर में अली ने सबसे पहले गेंद को छक्का लगाया. हालाँकि, अगली ही गेंद पर, अली पुल शॉट के लिए…
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crickettr · 2 years ago
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मैदान पर भिड़े शादाब खान, आसिफ अली; एशिया कप फाइनल बनाम श्रीलंका में छक्का लगाने के लिए महत्वपूर्ण कैच छोड़ें
मैदान पर भिड़े शादाब खान, आसिफ अली; एशिया कप फाइनल बनाम श्रीलंका में छक्का लगाने के लिए महत्वपूर्ण कैच छोड़ें
श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच हाई-ऑक्टेन एशिया कप फाइनल में, शादाब खान और आसिफ अली भानुका राजपक्षे का कैच लेते हुए टकरा गए और अंततः इसे एक छक्के में बदल दिया। रविवार को दांव ऊंचे थे क्योंकि भानुका राजपक्षे ने अपनी टीम को 20 ओवरों में 170/6 के कुल स्कोर तक पहुंचाने के लिए शुरुआती विकेट के बाद अपनी टीम के लिए एक अकेली लड़ाई लड़ी। यह अंतिम ओवर की आखिरी गेंद थी जब राजपक्षे ने गेंद को डीप मिड-विकेट पर…
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crickettr · 2 years ago
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"टीम खतरे में हो सकती थी": अफगानिस्तान फैन फ्यूरी पर पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख रमिज़ राजा
“टीम खतरे में हो सकती थी”: अफगानिस्तान फैन फ्यूरी पर पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख रमिज़ राजा
अफगानिस्तान के प्रशंसकों ने एशिया कप मैच के बाद हंगामा किया।© ट्विटर बुधवार को अफगानिस्तान-पाकिस्तान के मैच के बाद प्रशंसकों के हंगामे के कारण एशिया कप 2022 कुछ अप्रिय घटना क�� गवाह बना। मैच करीबी मुकाबला था क्योंकि पाकिस्तान ने 130 के कम लक्ष्य का पीछा करते हुए आखिरी ओवर में जीत हासिल की थी। पाकिस्तान के बीच लड़ाई थी। आसिफ अली और अफगानिस्तान के फरीद अहमद मलिक को बाद वाले ने विदा कर दिया। बाद…
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